हमारे नेताओं के
वाणी विलास से निराश होकर सैकड़ों बार कहा गया है कि... इन्हें राजपुरुष नहीं बल्कि
नेता इसीलिए तो कहा जाता है! इस कदर
छा गये हम पर पॉलिटिक्स के साये... कि अपनी जुबां तक हिन्दुस्तानी ना रही...। यहां जिस स्तर के बिगड़े बोल की सूची है, हो सकता है कि आगे जाकर आपको यह बोल उतने भी बिगड़े हुए ना लगे, क्योंकि तब हमारे नेता लोग अपने स्तर को और गिरा हो चुके होंगे।
विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को
भारतीय संविधान के मूलाधिकार में जगह दी गई। हर व्यक्ति को अपनी बात कहने या
लिखने का अधिकार है। किंतु संविधान यह भी कहता है कि बोलने की या फिर लिखने की आजादी
ज़रूर है, किंतु तब तक कि जब तक बोलना या लिखना संवैधानिक मू्ल्यों को चुनौती न देता
हो। संवैधानिक मूल्यों की चुनौती के अलावा नस्लीय मसलों को उभारना, ईशनिंदा करना,
जाति का अपमान करना, मुल्क के खिलाफ टिप्पणी करना जैसी छूट नहीं है। संवैधानिक व
कानूनी प्रावधान को छोड़ दे, तब भी समाज में नैतिकता का तकाजा होता है। खासतौर पर राजनेताओं
को इस मर्यादा का सदैव ध्यान रखना चाहिए। यह सोचने का समय ऐसे नेताओं के पास होना
चाहिए कि समाज व देश पर उनके बयानों का क्या असर हो रहा है।
पाकिस्तान के पत्रकार हामिद मीर ने
पाक टीवी चैनल जियो न्यूज़ को कथित तौर पर बताया था कि नवाज शरीफ ने उनसे एक निजी बातचीत
में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को “देहाती औरत” करार दिया
था। हालांकि ट्विटर पर उन्होंने इससे इनकार किया था।
भारतीय राजनीति में असंसदीय छींटाकशियों
और अपने प्रतिद्वंदियों के प्रति अपमानजनक टिप्पणियों का एक लंबा इतिहास रहा है। शायद
इसकी शुरुआत आज़ादी से पहले तीस के दशक में हुई थी जब ब्रिटेन के प्रधानमंत्री विंस्टन
चर्चिल ने गाँधी से अपने मतभेदों के चलते उनके लिबास पर अभद्र टिप्पणी करते हुए उन्हें
“नंगा फ़कीर” कहा था।
साठ के दशक में जब इंदिरा गाँधी प्रधानमंत्री
बनी तो शुरू में संसदीय बहसों में वो इतनी मुखर नहीं थीं। पहले उनके पिता के और बाद
में उनके ज़बर्दस्त आलोचक बन चुके समाजवादी नेता राममनोहर लोहिया उन्हें “गूँगी गुड़िया” कह कर
पुकारने लगे थे। अपनी निजी बातचीत में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन भी
उन्हें 'चुड़ैल' के नाम से पुकारते थे। पाकिस्तान के तत्कालीन
राष्ट्रपति याह्या खॉं भी उनका ज़िक्र 'वो औरत' (दैट वुमन) कहकर करते थे। “इंदिरा इज इंडिया, इंडिया इज इंदिरा” बयान को आप ऐतिहासक रूप से विवादित
बयान कह सकते हैं, जो भारत देश की मूल भावना से एकदम उलट था।
नरसिम्हा राव की महत्वपूर्ण विषयों
पर कुछ न कहने की प्रवृत्ति ने उन्हें ‘मौनी बाबा’ का ख़िताब दिलवा दिया था, जिसका इस्तेमाल
उनके आलोचक उनके लिए गाहेबगाहे करते थे। बाद में डॉ. मनमोहन सिंह को भी इसी नाम से
बुलाया जाता था।
1984 के दौर में तत्कालीन प्रधानमंत्री
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दंगे भड़क उठे। उसी संदर्भ में राजीव गांधी ने बयान दे
दिया था कि, “बड़ा पेड़ गिरता है तब धरती हिलती तो है।” उनके इस बयान ने उस दौर में बड़ा विवाद उत्पन्न कर दिया था। उस बयान के समय राजीव गांधी
देश के प्रधानमंत्री थे।
1992 के उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव
में भारतीय जनता पार्टी ने मुलायम सिंह यादव की मुस्लिम परस्त छवि के लिए ‘मौलाना
मुलायम’ का विशेषण गढ़ा था, जिसका उन्हें राजनीतिक
फ़ायदा भी मिला। इसकी कहानी जगजाहिर है।
1999 के लोकसभा चुनाव में राजनीति
का कखग सीख रहे राजेश खन्ना ने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी पर बिलो द
बेल्ट टिप्पणी करते हुए कहा था, “औलाद नहीं हैं पर दामाद है, ये पब्लिक है
सब जानती है।”
2010 में पूर्व प्रधानमंत्री एचडी
देवगौड़ा ने उस समय कर्नाटक के मुख्यमंत्री येदीयुरप्पा पर ऐसे शब्दों से हमला किया
था जिसे लिखा नहीं जा सकता।
2011 के विधानसभा चुनाव में केरल
के पूर्व मुख्यमंत्री अच्युतानंद ने कहा था, “राहुल एक अमूल बेबी
हैं जो दूसरे अमूल बेबियों के लिए प्रचार करने आए हैं।” इस फ़िकरे
की वजह ये थी कि राहुल गाँधी ने अच्युतानंद की बढ़ती उम्र का ज़िक्र अपने भाषण में
किया था।
सलमान ख़ुर्शीद ने जनलोकपाल
आंदोलन के दौर में अरविंद केजरीवाल और उनके समर्थकों पर जो टिप्पणी की उससे कई राजनीतिक
विश्लेषक हतप्रभ रह गए। ख़ुर्शीद ने कहा,
''उनको फ़रुख़ाबाद आने दीजिए, लेकिन वो
वहाँ से वापस कैसे जाएंगे?"
2002 के गुजरात विधानसभा चुनावों के दौरान सोनिया गांधी ने तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को “मौत का
सौदागर कहा” था। उनकी ये टिप्पणी विवादित गोधरा कांड से संबंधित थी। वही 2013 या 2014 के दौरान सहारनपूर के कोंग्रेसी नेता
ईमरान मसूद ने कहां था कि – नरेन्द्र मोदी की बोटी बोटी एक कर देंगे।
राजनीतिक अपमान करने में खुद
नरेंद्र मोदी भी पीछे नहीं रहे हैं। उन्होंने शशि थरूर की पत्नी सुनंदा थरूर के लिए ‘पचास करोड़ की गर्ल फ़्रेंड’ जैसे जुमले का इस्तेमाल किया था। उन्होंने
कहा था कि, "इस देश में कभी किसी ने 50 करोड़ रुपये की गर्ल
फ्रैंड देखी है?" थरूर ने जवाब दिया
था, "सुनंदा मेरे लिए
अमूल्य हैं जिन्हें रुपयों में तोला नहीं जा सकता।" इस मुद्दे पर अभद्र टिप्पण्याँ
इस जवाब के बाद भी ठंडी नहीं पड़ी थीं। भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता मुख़्तार अब्बास
नक़वी ने कहा था, "थरूर अंतर्राष्ट्रीय
लव गुरू हैं जिन्हें लव अफ़ेयर्स मंत्रालय का मंत्री बना दिया जाना चाहिए।"
2016 के दौरान एक चुनाव प्रचार में मोदी ने केरल को सोमालिया करार दे दिया था,
जिसका स्वयं केरल में उग्र विरोध हुआ था।
एक दफा गुजरात के मुख्यमंत्री के
तौर पर नरेन्द्र मोदी ने कह दिया था कि, “मिडिल
क्लास के परिवारों की लड़कियों को सेहत से ज्यादा खूबसूरत दिखने की फिक्र होती है और
अच्छे फिगर की चाहत में वे कम खाती है।”
वहीं गोधरा कांड पर अपनी सफाई
देते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि, “कुत्ता
किसी वाहन के नीचे आ जाए तब भी बहुत दुख होता है। मुझे इस घटना का अत्यंत दुख
होना स्वाभाविक है।” 2014 के लोकसभा चुनावों में मतदान करने
के बाद एक सेल्फी को लेकर नरेन्द्र मोदी ने विवाद उत्पन्न कर दिया था। उन्होंने इसके लिए खेद तो प्रक्ट नहीं किया, बल्कि बयान ज़रूर दिया कि, “मैंने
कमल हाथ में रखा था, पिस्टल नहीं।”
एक बार तो तत्कालीन प्रधानमंत्री
नरेन्द्र मोदी की जुबान विदेश में फिसल गई जब उन्होंने कह दिया कि “पहले
भारत में पैदा होने में भी शर्म आती थी।” उनके इस बयान
की काफी आलोचना हुई। लेकिन हमारे नेता बयान देने के बाद या तो उत्तर नहीं देते या
फिर उनके दिये गये बयानों को कोई दूसरा नेता आकर समझाने में जुट जाता है।
प्रधानमंत्री के रूप में विदेश यात्रा के दौरान भारत की,
भारतीय व्यवस्थाओं की तथा पूर्व भारतीय सरकारों की बुराई करने के कारण नरेन्द्र मोदी
कई बार विवाद उत्पन्न कर चुके हैं।
पूर्व बीजेपी नेता प्रमोद महाजन ने
एक बार सोनिया गांधी की तुलना मोनिका लेविंस्की से कर ली थी। वहीं गुजरात की
तत्कालीन मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल ने सूरत में अपने भाषण के दौरान लड़कों के लिए “रिजेक्टेड
माल” लफ्ज़ का प्रयोग कर दिया था!
बाल ठाकरे अपने प्रतिद्वंदी शरद पवार
को ‘आटे का बोरा’ कह कर अपनी ख़ासी फ़ज़ीहत करवा चुके हैं।
इसी कड़ी में गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पार्रीकर अपनी ही पार्टी के वयोवृद्ध नेता
लालकृष्ण आडवाणी को ‘बासी अचार’ कह चुके हैं।
उत्तरप्रदेश के भदोही जिले के औराई
विधानसभा इलाके में चुनाव प्रचार के दौरान भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष
नितिन गडकरी की जुबान फिसली थी। इसमें उन्होंने विपक्षी दलों पर निशाना साधते हुए कहा
कि, “घोड़ों को नहीं मिल रही है घास, जबकि गदहे
खा रहे हैं च्यवनप्राश।” गडकरीजी ने तो अजित पवार के सिंचाई
घोटाले पर कह दिया था कि, "चार काम हम उनके करते हैं, चार
काम वो हमारे करते हैं।"
तत्कालीन केंद्रीय मंत्री सुशील कुमार
शिंदे ने बयान दिया था कि, "जिस तरह से देश बोफोर्स मामले को भूल गया उसी तरह
कोयले का मुद्दा भी एक दिन भुला दिया जाएगा।" इस बयान पर विपक्ष ने जब काफी हंगामा
मचाया, तब जाकर शिंदे ने कहा कि उन्होंने यह बात मजाक में कही थी।
फिसलती जुबान कहा तक जाती है
किसीको पता नहीं चलता और उसका परिणाम भी किसी को ज्ञात नहीं होता। एक दफा रामकृपाल
यादव ने कह दिया था कि, “मोदी आतंकवादी
है, मोदी हत्यारा है।” ठीक वैसे ही कांग्रेसी नेता लाल सिंह भी
हदे पार कर गए थे। उन्होंने कहा था कि, “हम तो
कुत्ते भी नस्ल देख के रखते है मोदी की क्या औकात?” वैसे
फिसलती जुबान देश को कितना आहत करती है वो तो पता नहीं, किंतु पार्टियों को ज्यादा
आहत नहीं करती होगी। क्योंकि ये दोनों फिलहाल भाजपा में शामिल है और भाजपा की ओर से
चुनाव भी लड़े! ये मत समझिएगा कि यह भाजपा में ही होता है। हर दल यही करता है।
गालियां देने वाले पार्टी बदलते रहते हैं। गालियां खाने वाले दरवाजें खोल देते हैं।
यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसकी वजह से ही राजपुरुषों को नेता विशेषण से नवाजा जाता
है।
दिल्ली में सामूहिक बलात्कार मामले
के गर्माने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अपने संदेश का वीडियो रिकॉर्डिंग
पूरा होने के बाद पूछा, 'ठीक है?' यह संदेश देश के तमाम समाचार चैनलों पर बिना
संपादित ही चल गया। इन दो शब्दों के चलते सोशल मीडिया में प्रधानमंत्री महोदय की काफी
आलोचना हुई।
भारतीय क्रिकेट टीम को टी-20 मेच
में जीत मिली उसके बाद प्रतिक्रिया देते वक्त श्रीप्रकाश जायसवाल की जबान फिसल गई
और उन्होंने कहा कि, "नई-नई जीत और नई-नई शादी, इसका अपना अलग महत्व होता है। जैसे-जैसे
समय बीतेगा, जीत की यादें पुरानी
होती जाएंगी। जैसे-जैसे समय बीतता है, पत्नी पुरानी
हो जाती है।" महिलाओं के प्रति आपत्तिजनक बयान देने के बाद जायसवाल को बाद में
माफ़ी मांगनी पड़ी।
भोपाल में नीतिन गडकरी पुरुषों व
महिलाओं के बीच होने वाले भेदभाव के मुद्दे पर बोल रहे थे। बोलते बोलते वो आईक्यू
लेवल तक पहुंचे और उन्होंने कह दिया कि, "अगर साइंटिफिक भाषा में हम कहें तो दाऊद
इब्राहिम और स्वामी विवेकानंद का आईक्यू लेवल एक समान था। लेकिन एक ने इसे गुंडागर्दी
में लगाया और दूसरे ने इसे समाजसेवा में लगाया।" उनकी मंशा चाहे जो रही हो,
लेकिन इस बयान पर भी खूब हंगामा हुआ।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पेट्रोलियम
उत्पादों की कीमत बढ़ाने और रसोई गैस सिलिंडर पर सब्सिडी बंद करने की वजह बताते हुए
कहा था कि, "पैसे पेड़ पर नहीं उगते।" देश में एक के
बाद एक सामने आने वाले घोटालों को देखते हुए प्रधानमंत्री के इस बयान की खूब आलोचना
हुई।
एक बार बॉलीवुड अभिनेता ऋषिकपुर
ने कह दिया था कि, “सब जगह गांधी परिवार का ही नाम क्यों? क्या
वो देश की संपत्ति को अपने बाप का माल समझते है?” इस पर
बहुत विवाद हो गया था। इसी प्रकार एक बार जब प्रधानमंत्री मोदी लंदन में भाषण कर
रहे थे तब उन्होंने कहा था कि, “बस कीजिए,
बहुत लंबा भाषण है, कृपया थोडा छोटा कीजिए।”
महंगाई के मुद्दे पर बाबा रामदेव
के बोल भी विचित्र रह चुके हैं जब उन्होंने कह दिया था कि, “दाल
खाने से जोड़ों का दर्द होता है, इसलिए दाल वैसे ही कम खानी चाहिए, दाम अपने आप कम
हो जाएंगे।” वहीं एक बार साध्वी प्राची ने राष्ट्रीय अपराधी छोटा
राजन को “हिंदू शेर” तक कह दिया
था। अप्रैल 2016 के दौरान रोहतक में सद्भावना सम्मेलन में बाबा रामदेव ने भड़काऊ बयान
देते हुए कहा था कि “देश के कानून और संविधान का सम्मान करते
हैं, नहीं तो भारत माता का अपमान करने वाले सैकड़ों सर काटने का ताकत रखते हैं।”
तत्कालीन विदेश राज्यमंत्री वीके
सिंह ने फरीदाबाद दलित हत्याकांड मसले पर पत्रकारों से कह दिया था कि, “कोई
कुत्ते को पत्थर मार दे तो इसमें सरकार जिम्मेदार नहीं।”
इसी तरह तत्कालीन वित्तमंत्री
अरुण जेटली की जुबान भी फिसल गई और उन्होंने कह दिया कि, “मध्यमवर्ग
अपना खयाल खुद रखा करे।” भाजपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष
अमित शाह भी पीछे नहीं रहे हैं। काले धन पर उनके दल के चुनावी वायदे पर उन्होंने कह
दिया था कि, “काला धन वापिस आने पर हर एक नागरिक को
पंदरह लाख मिल सकते हैं वो बात तो एक चुनावी जुमला थी।” बाद
में उनके इस बयान पर सालों तक चुटकियां ली गई थी। अमित शाह बिहार राज्यसभा चुनाव के
दौरान हद पार कर गए थे जब उन्होंने बोल दिया कि, “अगर
बिहार में बीजेपी हारती है तो पाकिस्तान में पटाखे फोड़े जाएंगे।” इसके
बाद उन्हें बार बार अपने बयान के सही मतलब समझाने में लग जाना पड़ा था।
मुंबई आतंकी हमले के बाद भाजपा नेता
मुख्तार अब्बास नकवी ने नेताओं के खिलाफ नारेबाजी कर रहीं कुछ महिलाओं के बारे में
कहा था कि, “ये लिपस्टिक-पाउडर लगाकर क्या विरोध करेंगी।” नकवी ने
इन महिलाओं की तुलना कश्मीर के अलगाववादियों से कर दी थी! उन्होंने कहा था कि, “नेताओं
के विरोध में नारे लगाने वाले दलों की जांच होनी चाहिए।”
दिल्ली के निर्भया मामले पर
तत्कालीन गृहमंत्री शिंदे ने कहा था कि, “दिल्ली के
अलावा और भी जगह बलात्कार होते रहते है।” उस वक्त के
दिल्ली पुलिस कमिश्नर निरज कुमार ने कहा था कि, “मैं अपना त्यागपत्र
क्यों दूं?” आसाराम जैसे धार्मिक क्षेत्र से जुड़े व्यक्ति ने कहा था कि, “उस लड़की ने लड़कों को भाई बना लिया होता
तो वो बच जाती।” प्रधानमंत्री ने कहा था कि, “समाज
को अपने अंदर झांक के देखना होगा।” हम नागरिकों के
बयान भी उसी रास्ते चले थे, जैसा हर ऐसी घिनौनी घटनाओं पर होते हैं। महिला संबंधित
हादसों पर हमारे तमाम दलों के नेताओं के बयान सर्वविदित है। सैकड़ों बार हमारे नेता इस
संवेदनशील विषय पर अपने बयानों से नेतागिरी का स्तर और नीचे लेते गए है। आरआर
पाटिल का बयान “चुनाव के बाद रेप करना चाहिए था”, अरुण
जेटली का बयान, “दिल्ली में बलात्कार की एक छोटी घटना को समूचे देश में
बड़ी घटना कै तौर पर दिखा दिया गया”, राहुल गांधी
का बयान, “मंदिर में जाने वाले भी लड़कियों को छेड़ते है”,
साक्षी महाराज का बयान, “दिल्ली और मुंबई की महिलाएं भारतीय
संस्कृति के लिए घातक है”, मुलायम सिंह का बयान, “लड़कों से कभी कभी गलती हो जाती है”, बाबुलाल गौर का बयान, “कभी
कभी बलात्कार सही होता है”... इस विषय पर हमारे नेताओं के छिछोरे
बयानों की बड़ी लंबी सूची है।
वहीं 8 जनवरी,
2016 के दौरान कर्णाटक के राज्यपाल मैसूर में एक वैज्ञानिक सेमिनार में भाषण दे रहे
थे। नेताजी को माईक मिला तो उनका भाषण रास्ता भटकने लगा। उन्होंने कहा कि, “कोलेज ब्युटी कॉन्टेस्ट का प्लेटफॉर्म नहीं है, लड़कियां फैशन छोड़े, आईब्रो करना छोड़े,
फैंसी कपड़ें छोड़े, लिपस्टिक लगाने की ज़रूरत नहीं है, बालों को ट्रीम करने की भी ज़रूरत नहीं है।” आखिरकार एक वैज्ञानिक ने उसी दौरान उनसे
कह भी दिया कि, “ये सायन्स सेमिनार है, आप सायन्स की बाते कीजिए, मेकअप करना ना करना व्यक्गित
मसला है।”
एक दौर ऐसा भी आया जब लगभग तमाम
दलों के नेता अपनी जुबान साफ नहीं रख पाए थे। उन दिनों उनकी जुबान थी कि फिसलती ही
रही। कांग्रेसी नेता सोनिया गांधी गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी
को “मौत का सौदागर” बता चुकी थी। इसके बाद बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने सोनिया गांधी को “कायर
महिला” कह दिया। एक बार तो तत्कालीन प्रधानमंत्री नरेन्द्र
मोदी की जुबान विदेश में फिसल गई जब
उन्होंने कह दिया कि, “पहले भारत में पैदा होने में भी शर्म आती
थी।” उधर दिल्ली के तत्कालीन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल
नरेन्द्र मोदी को “कायर और मनोरोगी” भी कह
गए। उस दौर में सोशल मीडिया में आम लोग जिस तरह की अभद्र भाषा का प्रयोग किया करते
थे, वैसी ही बोली नेताओं ने भी दिखाई और राजनीति के स्तर को और नीचे गिरा दिया।
तमिलनाडु के एक विधानसभा चुनाव में
मिली हार के बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री और डीएमके प्रमुख करुणानिधि के पोते दयानिधि
मारन ने बेहद ही विवादित बयान दिया था। एआईएडीएमके के हाथों मिली हार पर इस डीएमके
नेता ने कहा कि, “तमिलनाडु
के लोगों ने अपना जमीर शैतान के हाथों बेच दिया है।”
प. बंगाल की तत्कालीन
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मयूरेश्वर में एक सभा को संबोधित करते हुए कह दिया था
कि, “चुनाव आयोग पर भाजपा पार्टी का नियंत्रण है और वह पश्चिम
बंगाल में चुनाव कराने के लिए केंद्रीय बलों की उचित तैनाती सुनिश्चित करेगी।”
उन्होंने कहा था कि, “अगर भाजपा बिहार में जीत जाती है तो वह अगले
साल बंगाल में बुलडोजर चला देगी।” बाद में
केंद्रीय चुनाव आयोग ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई थी तथा भाजपा व टीएमसी दोनों से
स्पष्टीकरण मांगा था।
मध्यप्रदेश के गृहमंत्री बाबूलाल
गौर भी अपने बयान से सभी को हैरान कर चुके हैं। बाबूलाल ने कहा था कि, “शराब पीना स्टेटस
सिंबल की बात है, अपराध शराब पीने से नहीं होते, बल्कि पीकर डगमगाने से बढ़ते हैं।
शराब पीना हर इंसान का मौलिक अधिकार है।”
एक बार सईद ने जम्मू में मुख्यमंत्री
पद की शपथ लेने के बाद संवाददाता सम्मेलन के दौरान कहा, “मैं ऑन
रिकॉर्ड कहना चाहता हूं और मैंने प्रधानमंत्री से कहा है कि राज्य में विधानसभा चुनावों
के लिए हमें हुर्रियत, आतंकवादी संगठनों को श्रेय देना चाहिए।” इस शपथ ग्रहण समारोह
में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल हुए थे। इस बयान पर काफी विवाद हुआ और
उनके साथी दल भाजपा को इसकी सफाई देकर कहना पड़ा कि चुनावों को सफलतापूर्वक संपन्न
करवाने के लिए भारत का चुनाव आयोग, भारतीय सुरक्षा एजेंसियां तथा भारत के
अधिकारियों को श्रेय जाना चाहिए।
बीजेपी के सासंद साक्षी महाराज
भी अपनी विवादित भाषा के कारण अपने दल की काफी किरकिरी करवा चुके हैं। उन्होंने कहा
था कि, “हमने 'हम दो, हमारा एक' का नारा
स्वीकार किया। तब भी इन देशद्रोहियों को संतोष नहीं हुआ है।” उन्होंने
एक और नारा दे दिया, “हम दो और हमारे... इसीलिए मैं हिंदू महिलाओं से आग्रह करना
चाहता हूं कि वे कम से कम चार बच्चों को जन्म दें। उनमें से एक साधुओं और संन्यासियों
को दे दें। मीडिया कह रहा है कि सीमा पर संघर्ष विराम उल्लंघन की घटनाएं हो रही हैं, इसलिए एक को सीमा पर भेजें।”
साक्षी महाराज ने इससे पहले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को
'देशभक्त' बताकर विवाद खड़ा कर दिया था और इसके लिए
उन्हें संसद में माफ़ी मांगने पर मजबूर होना पड़ा था।
वहीं पश्चिमी दिल्ली के श्याम नगर
में एक रैली को संबोधित करते हुए यूपी के फतेहपुर से भाजपा सांसद साध्वी निरंजन
ज्योति ने कहा था,
“आपको तय करना है कि दिल्ली में सरकार रामजादों की बनेगी या हरामजादों की। यह आपका
फैसला है।” उन्होंने अपने बयान में कहा कि, “इस देश के तमाम
लोग राम की संताने है। जो राम में नहीं मानते वे इस देश में रहने लायक नहीं है।” सख्त विरोध
होने के बाद उन्हें संसद में अपने बयान के लिये माफ़ी मांगनी पड़ी। हालांकि उनका बचाव
करते वक्त सत्ता दल भाजपा का तर्क भी बड़ा विचित्र सा रहा। सत्ता दल ने कहा था कि, “साध्वीजी
नयी है, नयी नयी राजनीति में आयी है, गरीब परिवार से है, लिहाजा उन्हें माफ़ी दे देनी
चाहिए।”
बिहार में आई बाढ़ से प्रभावित लोगों
के चूहे खाकर जिंदा रहने की खबर पर मुख्यमंत्री मांझी ने अजीबोगरीब बयान देकर पूरे
बिहार की राजनीति को गरमा दिया था। उन्होंने कहा था कि, “चूहा मारकर
खाना खराब बात नहीं है।” मांझी ने कहा कि वह खुद भी चूहा खाते थे।
वैसे जीतनराम मांझी एक बार तो यह भी बोल चुके थे कि, “मैंने
भी बिजली बिल में सेटींग करवाया है, ये सब करना ही पड़ता है।”
नोएडा से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार
नरेंद्र भाटी ने अपने पहलवानों को सलाह देते हुए कह दिया था कि, “अपने−अपने
गांव में 90 फीसदी वोटिंग करवाएं और फिर दूसरे पोलिंग बूथ पहुंच जाएं। डरने की बात
नहीं सरकार अपनी है।” बात की झोंक में भाटी अपने पहलवानों को
यह भी कह गए हैं कि, “मुख्यमंत्री से आश्वासन मिला है कि सभी मुकदमें
वापस ले लिए जाएंगे।” इस विवादित बयान के चलते भाटी के खिलाफ
एफआईआर दर्ज की गई थी।
इसके कुछ ही दिन पहले शरद पवार ने
अपने वोटरों को दो बार वोट देने की सलाह दे दी थी। जब सब तरफ से खिंचाई हुई तो कहा
कि मज़ाक में कहा था।
बिहार में नीतीश सरकार में मंत्री
भीम सिंह ने पुंछ में शहीद हुए जवानों के बारे में काफी शर्मनाक बयान देते हुए कह
दिया था कि, “लोग सेना और पुलिस में मरने के लिए ही आते हैं... शहीदों
के अंतिम संस्कार के बारे में ऐसा क्या खास हो गया है।”
हालांकि इस बयान को लेकर विवाद बढ़ने पर नीतीश कुमार ने अपने मंत्री से माफ़ी मांगने
को कहा और मंत्री को माफ़ी मांगनी पड़ी।
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित
शाह भी राजनेता का काम सरहदों पर फौजियों का जो काम होता है उससे भी ज्यादा
जोख़िमवाला काम है, ऐसा बोलकर फंस चुके हैं।
आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत भी इस क्रम में पीछे नहीं रहे हैं। इंदौर में एक रैली में उन्होंने कहा था कि, “पति और पत्नी के बीच एक करार होता है, जिसके तहत पति का यह कहना होता है कि तुम्हें
मेरे घर की देखभाल करनी चाहिए और मैं तुम्हारी सभी ज़रूरतों का ध्यान रखूंगा।” उन्होंने
कहा, “इस तरह पति करार
के नियमों का पालन करता है। जब तक पत्नी करार का पालन करती है, पति उसके साथ रहता है। यदि पत्नी करार का
उल्लंघन करती है, तो वह उसे त्याग
सकता है।”
वहीं अगस्त 2016 के दौरान
उत्तरप्रदेश में शिक्षकों की एक रैली को संबोधते हुए भागवत ने कहा कि, “अगर
भारत को हिंदू राष्ट्र बनाना है तो हिंदुओं को ज्यादा से ज्यादा बच्चे पैदा करने
होंगे।” उन्होंने कहा कि, “किसी
कानून में यह नहीं लिखा है कि हिंदू कम बच्चे पैदा करे। हिंदुओं को किसने रोका है?” इसी
रेली में जब शिक्षकों ने सरकार के कल्याण कार्यों के बारे में पूछा, तब उन्होंने गुस्से
में कह दिया कि, “मुझे सरकार का दूत ना समझे। मैं आप की
समस्याओं के समाधान में मदद नहीं कर पाऊंगा। इसके लिए मानवसंसाधन मंत्री प्रकाश
जावडेकर का संपर्क करे।” उनके ज्यादा बच्चे पैदा करने के बयान
पर काफी तंज कसे गए। दिल्ली के तत्कालीन मुख्यमंत्री केजरीवाल ने भी इस बयान के
विरोध करने के चक्कर में सीमाएं लांध दी और कहा कि, “भागवत
शुरुआत खुद से करे और वो खुद 10 बच्चे पैदा करके उनका पोषण करके दिखा दे।”
उनका साथीदल शिवसेना भी पीछे नहीं रहा। इस विवाद को आगे बढ़ाने में योगदान देते हुए शिवसेना ने सामना में लिखा कि, “क्या
सरकार हिंदुओं को एक से ज्यादा पत्नी रखने की इजाज़त देगी?” सामना
में समाधान के तौर पर आगे लिखा गया कि, “मोहन
भागवत ने पुराने विचार को नये तरीके से पैश किया है। मुस्लिमों की तादाद बढ़ती जा
रही है यह चिंता का विषय है। लेकिन हिंदुओं को भी बच्चों की लाइन लगा देनी चाहिए ऐसा
विचार देशहित है यह प्रधानमंत्री मान्य नहीं रखेंगे।” आगे लिखा गया
कि, “हिंदुओं को ज्यादा संतान करने चाहिए यह
विचार समस्या का समाधान नहीं है। समान नागरिक संहिता के द्वारा इसका समाधान आ सकता
है।”
विवादित बयानों के विषय में लालू प्रसाद
यादव का ज़िक्र ना हो ऐसा नहीं हो सकता। 15 साल तक बिहार की सत्ता संभालने वाले लालू
अपने काम से कम और मसखरेपन को लेकर ज्यादा चर्चा में रहे। लालू ने खूब विवादित बयान
दिए हैं। एक रैली में लालू बोल गए थे कि, “नीतीश को मैंने पैदा किया, मुझे नहीं पता
था कि नीतीश बबूल निकलेंगे। मैं यह जानता तो गर्म पानी से नीतीश को जला देता।” हालांकि फिर
वे दोनों नेता साथ मिलकर सरकार चलाते रहे और ये तय नहीं कि ये साथ कितना लंबा
चलेगा।
कभी मुलायम सिंह यादव के करीबी रहे
बेनी प्रसाद वर्मा ने एक वक्त विवादित बोलों की झड़ी लगा दी थी। उनके आए दिन के बयानों
ने कांग्रेस को ही मुश्किल में डाल दिया था। कभी मुलायम पर तो कभी नरेंद्र मोदी पर
उनके बयानों ने मर्यादा की सीमा लांघ ली। 19 अगस्त 2012 को बेनी ने कहा, “मुलायम सिंह पगला गए हैं, सठिया गए हैं।” 9 अगस्त 2012 को बेनी ने कहा, “अन्ना हजारे का शनिचर उतर गया है और अब वो
बाबा रामदेव पर चढ़ गया है। ये बेकार के लोग हैं, इन्हें बस कुछ काम चाहिए।” बेनी ने नरेंद्र
मोदी पर भी कई बार भद्दे शब्दों का इस्तेमाल किया।
कभी बीजेपी के घोर विरोधी रहे और
वाजपेयी की पहली सरकार गिराने वाले सुब्रमण्यम स्वामी ने भी विवादित बयान देने में
कोई कसर नहीं छोड़ी। एक बार उन्होंने कहा,
“रावण का डीएनए दलित का था। रावण लंका का नहीं यूपी का रहने वाला था। नोएडा के पास
स्थित बसरख में पैदा हुआ था।” एक बार स्वामी ने कह दिया कि, “कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की बेटी प्रियंका
गांधी अगर बनारस से चुनाव लड़ती तो वह बुरी तरह से हार जाती क्योंकि वह बहुत शराब पीती
हैं और उनका नाम खराब है।” स्वामी के नाम अनगिनत विवादित बयान हैं।
सन 2016 के दौरान तत्कालीन आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन पर सुब्रमण्यम स्वामी के
बयानों ने बड़ा विवाद खड़ा कर दिया था। वे अपने ही वित्तमंत्री अरुण जेटली पर भी कई
बार तंज कस चुके हैं।
कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने भी
कम विवादित बयान नहीं दिए हैं। कुछ समय पहले दिग्विजय अपने बयानों को लेकर अक्सर सुर्खियों
में रहते थे। मध्यप्रदेश में एक रैली के दौरान दिग्विजय ने जुलाई 2013 में मंदसौर की तत्कालीन महिला सांसद मीनाक्षी
नटराजन को 100 टका टंच
माल कह दिया था। एक बार उन्होंने कहा था, “मुझे मिली जानकारी
के मुताबिक 26/11 के पीछे हिंदू कट्टरपंथी संगठनों का हाथ
हो सकता है।” इसी तरह 2011 में उन्होंने कहा था, “ओसामाजी पाक आर्मी बेस के 200 मीटर नजदीक रह रहे थे। फिर भी पाकिस्तान
को इसकी कोई भनक क्यों नहीं लगी।” वे ओसामा को ‘ओसामाजी’ तक कह
गए!!! दिग्विजय के इस तरह के बयानों पर खूब हंगामा मचा है।
कभी मुलायम सिंह के बेहद करीबी रहे
अमर सिंह ने भी कई बार विवादित बयान दिए। अमर ने नरेंद्र मोदी से लेकर अमिताभ बच्चन
पर हमला किया। अप्रैल 2014 में अमर
सिंह ने मोदी की तुलना बकरी से कर डाली। अमर सिंह ने कहा कि, “मोदी हर
जगह मैं-मैं करते हुए घूम रहे हैं, जबकि उन्हें
पता होना चाहिए कि मैं-मैं करना तो बकरी का काम है।”
सपा नेता आजम खान से ज्यादा विवादित
बोल शायद ही किसी और नेता ने दिए हो। आजम ने अनगिनत बार अपने बयानों से विवाद पैदा
किया है। अप्रैल 2014 में चुनावी
सभा के दौरान आजम खान ने कहा कि, “करगिल युद्ध में
भारत को जीत हिंदू नहीं, मुस्लिम
सैनिकों ने दिलाई थी।” कुछ समय पहले आजम ने ताजमहल को मकबरा बताते
हुए कहा था कि, “जैसे कि ताजमहल एक मकबरा है, इसलिए हर मकबरा 'वक्फ' है।” दिसंबर 2014 में आजम ने आरएसएस और बजरंग दल को आतंकी
संगठन बताकर हंगामा खड़ा कर दिया। आजम खान ने दिसंबर 2014 में पीएम की तुलना तानाशाह
सद्दाम हुसैन से कर दी। इसी तरह जनवरी 2014 में आजम ने बयान दिया कि, “उन्नाव
के गंगा नदी में मिले 200 शव बीजेपी सांसद साक्षी महाराज ने डाले हैं।” आजम ने
कहा था कि, “पीएम मोदी को तो दाऊद से भी ज्यादा खौफनाक और खतरनाक
बताया जाता है। पीएम मोदी का नाम दुनिया के टॉप-10 अपराधियों में है।” आजम ने
आगे कहा कि, “ये काम मैं नहीं कर रहा। आपने कभी गूगल में सर्च करके
देखा है। पीएम मोदी का नाम world's ten top criminals? सर्च करने पर नजर आता है।” आजम
खान ने 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान भारतीय चुनाव आयोग को ही चैलेंज कर दिया
था।
कभी बसपा से जुड़े रहे
स्वामीप्रसाद मौर्य भी बिगड़े बोल प्रतियोगिता में अंतरमन से हिस्सा ले चुके हैं। वे
बसपा में रहते हुए हिंदू देवी देवताओं पर भी कटाक्ष करने में पीछे नहीं रहे। उन्होंने
पडरौना क्षेत्र के एक चौराहा पर जनसभा के दौरान सनातन धर्म पर प्रहार किया था।
उन्होंने अपने भाषण में हिंदुओं पर आपत्तिजनक भाषा का प्रयोग कर दिया था। हालांकि
देवी देवताओं पर टिप्पणियां कई सारे नेता कर चुके हैं। धर्म आधारित बयान लिखने के
लायक नहीं होते।
बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष और केंद्रीय
मंत्री नितिन गडकरी ने भी खूब विवादित बयान दिए हैं। मई 2010 में चंडीगढ़ में एक रैली के दौरान गडकरी
ने आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह को
‘सोनिया गांधी का कुत्ता’ कह दिया। इसी तरह
अक्टूबर 2014 में महाराष्ट्र
में एक चुनाव सभा में गडकरी ने कहा कि, “जहां से जो मिले, लोग बटोर लें। लक्ष्मी को ना नहीं बोलना, लेकिन वोट बीजेपी को ही देना।” लोकसभा
चुनाव 2014 के दौरान ही नितिन
गडकरी ने बयान दिया कि, “बिहार के डीएनए में जातिवाद है।” जिस पर
खूब हंगामा मचा।
बिहार बीजेपी के नेता गिरिराज सिंह
ने भी विवादित बयानों से खूब सुर्खियां बटोरीं। लोकसभा चुनाव के दौरान गिरिराज ने कहा
था कि, “जो लोग मोदी का विरोध करते हैं, वो पाकिस्तान की ओर देख रहे हैं, ऐसे लोगों का स्थान पाकिस्तान में है, भारत में नहीं।”
केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने बिहार
के हाजीपुर में कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी को लेकर बेहद आपत्तिजनक टिप्पणी की
थी। सोनिया पर टिप्पणी करते हुए गिरिराज सिंह ने कहा, “अगर राजीव
गांधी किसी नाइजीरियाई महिला से शादी किए होते,
जो गोरी चमड़ी वाली नहीं होती... तो क्या कांग्रेस पार्टी उनका नेतृत्व स्वीकार
करती?” बाद में गिरिराज
सिंह को उस वक्त अपने बयान पर खेद जताना पड़ा,
जब बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने उन्हें फोन कर साफ कहा कि ऐसी भाषा स्वीकार्य नहीं
है। गिरिराज सिंह अपनी जुबानी फिसलन के कारण मीडिया की खबरों में काफी फिसलते रहे हैं।
तृणमूल कांग्रेस सांसद डेरेक ओ ब्रायन
भी बयान बहादुरों में शामिल हैं। नरेंद्र मोदी को लेकर उनके बयानों ने भी कई बार मर्यादाओं
को तार-तार किया। अप्रैल 2014 में डेरेक
ने मोदी को “गुजरात का कसाई” करार दिया। डेरेक
ने ट्वीट किया, “गुजरात के कसाई
बंगाल में आसमान से उतरे हैं।”
तृणमूल कांग्रेस के सासंद तापस
पाल ने अपनी जुबान इतनी काली कर दी थी कि माफ़ी मांगने के बाद भी कोर्ट ने उनकी
गिरफ्तारी का आदेश दिया था। तापस पाल ने कहा था कि, “अगर
सीपीएम का कोई भी बंदा हमारी मां-बहन को छेड़ेगा तो तापस पाल नहीं छोड़ेगा। मैं
रिवोल्वर से गोली मार दूंगा। मैं अपने लड़कों को भेजकर उनका रेप करवाउंगा।” तब
कोलकता हाईकोर्ट ने कहा था कि इस बयान ने सभी हदें पार कर दी है, इनके खिलाफ एफआईआर
होनी चाहिए। तापस पाल के माफ़ी मांगने के बाद भी कोर्ट को कहना पड़ा कि किससे माफ़ी मांगी गई है, जनता से या अपनी पार्टी से? कोर्ट ने अपने
आदेश में कहा कि अगर कानून बनाने वाला ही कानून तोड़ेगा और कानून का पालन करानेवाली
एजेंसियां आंखें बंद कर लेगी तो क्या इसे कोई सदस्य सभ्य मुल्क बर्दास्त करेगा?
2014 के दौरान महाराष्ट्र की एनसीपी
पार्टी के नेता अजित पवार ने गांव वालों को धमकी देते हुए कह दिया था कि, “यदि उनकी
बेटी सुप्रिया को वोट नहीं दिया तो पूरे गांव का 'हुक्का-पानी' बंद कर दिया जाएगा।”
बारामती गांव में चुनाव प्रचार के दौरान अजित के इस बयान को एक व्यक्ति ने अपने मोबाइल
में कैद कर लिया था। 2013 में पवार ने पानी की मांग को लेकर धरने पर बैठे लोगों का मजाक
उड़ाते हुए कहा था कि, “अगर पानी नहीं है तो क्या वह डैम में पेशाब
कर दें।”
अप्रैल 2015 के दौरान आम आदमी
पार्टी के प्रवक्ता आशुतोष ने भी जुबान फिसलन प्रतियोगिता में हिस्सा ले लिया।
जंतर-मंतर पर आम आदमी पार्टी की किसान रैली के दौरान किसान द्वारा आत्महत्या किए जाने
के विवाद के वक्त उन्होंने कह दिया कि, “अगली बार
यदि कोई खुदकुशी की कोशिश करेगा तो मैं दिल्ली के मुख्यमंत्री से कहूंगा कि वह पेड़
पर चढ़कर उसे बचाएं।” बाद में आशुतोष ने अपने बयान के लिए माफ़ी मांग ली।
उनकी ही पार्टी के तथा दिल्ली के
पूर्व कानून मंत्री सोमनाथ भारती ने यह कहकर विवाद खड़ा कर दिया था कि, “अगर राष्ट्रीय
राजधानी में पुलिस व्यवस्था आप सरकार के पास हो तो ‘खूबसूरत महिलाएं’ आधी रात को बाहर
जा सकती हैं।”
असदुद्दीन ओवैसी भी अपनी जहरीली
जुबान के कारण काफी विवाद उत्पन्न करते रहे हैं। भड़काऊ भाषण देने के आरोप में अकबरुद्दीन
ओवैसी को जेल भी जाना पड़ा था। 2014
में लोकसभा चुनाव से पहले असदुद्दीन ओवैसी ने हैदराबाद में मोदी के खिलाफ भड़काऊ
भाषण दिया था। उन्होंने मोदी के खिलाफ काफी अपशब्द कहे थे, जिसके लिए
उनकी काफी आलोचना हुई थी। असदुद्दीन ओवैसी ने यह कहकर विवाद खड़ा कर दिया था कि, “याकूब को
मुस्लिम होने की वजह से फांसी की सज़ा दी जा रही है।” 2011 में अकबरुद्दीन
ने कहा था कि, “अगर पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव अपने आप न मर
गए होते तो वो अपने हाथों से उन्हें मार देते।” असदुद्दीन ने
विवादित बयान देते हुए कहा था कि, “अगर कसाब को फांसी
दी गई, तो गुजरात
दंगों के लिए नरेंद्र मोदी को भी फांसी दी जानी चाहिए।” ओवैसी
ने कहा था, “चाहे मेरे गले पर चाकू लगा दो पर मैं भारत माता की जय
नहीं बोलूंगा। हमारे संविधान में कहीं नहीं लिखा है कि भारत माता की जय बोलना जरूरी
है।” आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बयान के विरोध में ओवैसी ने यह
बात कही थी, जिसमें भागवत ने कहा था कि नई पीढ़ी को भारत माता की जय बोलना सिखाना चाहिए।
जावेद अख्तर ने ओवैसी की इस बात पर
जवाब दिया। राज्यसभा में अपने आखिरी भाषण के दौरान जावेद अख्तर ने ओवैसी पर निशाना
साधा। अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि, “एक नेता ने खुद को नेशनल लीडर समझ लिया है, जबकि वो हैदराबाद
के एक मोहल्ले का नेता है।” उन्होंने कहा कि, “संविधान ये नहीं
कहता कि भारत माता की जय बोलो, लेकिन संविधान तो उन्हें शेरवानी और टोपी पहनने को भी नहीं कहता।
भारत मां की जय कहना हमारा कर्तव्य है या नहीं, ये मैं जानना भी नहीं चाहता क्योंकि भारत
मां की जय बोलना मेरा अधिकार है।”
महंगाई एक ऐसा मुद्दा रही, जो हर
सरकारों को परेशान करती आयी है। लेकिन अलग अलग राजनीतिक दलों के महंगाई के मुद्दे पर
हमेशा ही आसमानी तर्क रहे हैं। जैसे कि लाल गाल वाले
टमाटर खाते हैं... मध्यम वर्ग अपना खयाल खुद रखा करे... मेरे पास जादू की कोई छड़ी नहीं है... पैसे पेड़ पर नहीं उगते... दाल महंगी है तो एक दिन उपवास किया करे...
इत्यादि इत्यादि।
जुलाई 2016 के दौरान मध्यप्रदेश
के गृहमंत्री ने किसानों की आत्महत्या के मुद्दे पर अजीबोगरीब बयान दे दिया।
उन्होंने विधानसभा में जवाब देते हुए कह दिया कि, “किसान
फसल बर्बाद होने की वजह से नहीं बल्कि भूत व प्रेतों की वजह से आत्महत्या कर रहे हैं।”
नेताजी ने सोचा होगा कि भूत-प्रेत अच्छा हथियार है। वो बेचारे मानहानि की याचिका
दायर तो नहीं करेंगे न।
इसी महीने जेडीयू राज्यसभा सांसद
अली अनवर ने टेक्सटाइल मिनिस्टर स्मृति ईरानी को लेकर भाषा की सीमाएं लांध दी।
उन्होंने कहा कि, “स्मृति ईरानी को खराब विभाग नहीं मिला है, उन्हें तन ढकने
वाला विभाग मिला है।” वही दूसरी ओर दिल्ली के तत्कालीन
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर विवादित बयान दे
दिया। उन्होंने कहा कि, “मोदी गुस्से में
बौखला गए हैं और वह मेरी हत्या भी करा सकते हैं।” वे अपने
पार्टी के विधायकों की गिरफ्तारी पर केंद्र को कोसते कोसते बयानों में भी कोसो दूर
चले गए। इसी दौर में गुजरात में दलित उत्पीडन मामले के बाद आदमी पाटीँ की महिला नेता
संगीता चंदपा ने ब्राह्मण समुदाय के ऊपर अभद्र भाषा का प्रयोग करके विवाद उत्पन्न
कर दिया।
वहीं इसी दौरान उत्तरप्रदेश के
भाजपा के उपाध्यक्ष दयाशंकर ने मायावती के बारे में अभद्र टिप्पणी कर दी। उन्होंने
मायावती पर टिकट वितरण के मामले में ऐसी टिप्पणी कर दी जिसे यहां लिखा नहीं जा सकता।
आनन फानन में भाजपा को उन पर कार्रवाई करनी पड़ी और उन्हें 6 सालों के लिए पक्ष से
निलंबित कर दिया गया। उन पर एफआईआर भी दर्ज हुई। वे कई दिनों तक भागते रहे और
आखिरकार उन्हें पुलिस के सामने सरेंडर करना पड़ा। उनकी मायावती के ऊपर की गई अभद्र
टिप्पणी को लेकर काफी बवाल मचा रहा था। वहीं मायावती की पार्टी के नेता भी पीछे नहीं रहे और उन्होंने दयाशकंर की पत्नी तथा बेटी पर भी आपत्तिजनक टिप्पणी कर दी। अजीब था
कि मायावती ने खुलकर अपने नेता को नसीहत देना भी ठीक नहीं समझा था। महिला सम्मान का
तंबूरा बजाने वाले दलों के नेता लोग कुछेक दिनों तक बयानों का ऐसा खेल खेलते रहे,
जिससे राजनीति का स्तर और नीचे ज़रूर चला गया।
गुजरात की तत्कालीन सीएम
आनंदीबेन ने लड़कों के लिए जिस विशेषण का प्रयोग कर दिया था, उसी विशेषण से
उत्तरप्रदेश के चुनाव से पहले शीला दीक्षित को नवाजा गया। एसी के पूर्व नेता
स्वामीप्रसाद मौर्य ने शीला दीक्षित को “रिजेक्टेड माल” तक कह
दिया। कभी कभी कहा जाता है कि अच्छा है कि यह नेता लोग एक दूसरे के
माता-पिता के विरुद्ध चुनाव नहीं लड़ते, वर्ना...।
वहीं अगस्त 2016 के दौरान भदोही
से भाजपा सासंद वीरेन्द्र सिंह ने सूखे और मानसून पर लोगों को सलाह देते हुए बयान
दिया कि, “यज्ञ करने से, हवन करने से मानसून अच्छा
होता है और सूखे से बचा जा सकता है।” वीरेन्द्र सिंह
ने तो अपने बयान में यज्ञ करने से कौन कौन से पदार्थ उत्पन्न होते हैं उसका अच्छा
खासा वैज्ञानिक विश्लेषण भी कर दिया। गौरतलब है कि ये बयान उस वक्त दिया गया था जब
वहां पर सातत्यपूर्ण विकास के तरीकों पर चर्चा हो रही थी।
रियो ओलंपिक 2016 के दौरान
भारत के खेलमंत्री विजय गोयल ने भी अपने रवैये को लेकर वैश्विक स्तर पर सरकार की
किरकिरी करवाने में अपना योगदान दिया था। विजय गोयल पर अनअधिकृत तौर पर एंट्री के
आरोप लगे। उन पर आरोप लगे कि वे उन लोगों की वेन्यू में एंट्री करवा रहे थे जिनके
पास एंट्री के पास तक नहीं थे!!! उनके साथ आये लोगों के खराब रवैये और वर्तन को लेकर
शिकायतें आई। एक-दो किस्से में उनके साथ आये लोगों ने धक्कामुक्की तक कर दी।
ओलंपिक कमेटि ने विजय गोयल को चेतावनी देनी पड़ी और उनका पास कैंसिल कर देने तक
की बात छेड़ दी!!! हालांकि, विजय गोयल साफगोई से खुद को साफ बताकर
स्पष्टता देते रहे।
19 अगस्त, 2016 के दिन भाजपा
विधायक संगीत सोम भी अमित शाह के रास्ते चल पड़े। मेरठ की एक रैली में सोम ने कहा कि, “यूपी
का अगला चुनाव हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बीच एक जंग जैसा होगा। इसमें बीजेपी को
हराना यहां पाकिस्तान बनाने के बराबर है।” गैर-भाजपाई दलों
में इस बयान की तीखी प्रतिक्रिया हुई। भाजपा ने कहा कि वह इस बयान की समीक्षा कर रही
है।
वैसे नेतागीरी का यह ट्रिक भी
कमाल का है। बयान कोई एक नेता देता है, उसका मतलब समझाने कोई दूसरा बैठ जाता है! संदर्भ कोई तीसरा समझाता है!! अगर तब भी विवाद नहीं थमता तब चौथा आकर आखिरी हथियार
छोड़ देता है कि वह बयान व्यक्तिगत था, उसका पक्ष से कोई सरोकार नहीं है, हम बयान की
निंदा करते हैं!!! इन नेताओं की आपसी समझ को सलाम ही बनता
है। क्योंकि बयान किसी ने भी दिया हो, लेकिन बयान देने की पीछे का साफ सुथरा मन हर
सह्योगी को पता होता है!!! वे तमाम बयानों के वक्त मकसद को साफ
सुथरा मकसद ज़रूर बता देते हैं। वैसे इन्होंने बयान को लेकर एक नया तरीका भी ढूंढ रखा है। तरीका है कि बयान वापस भी लिया जा सकता है!!! कमाल
की चीज़ है यह। संसद में बयान दो, सड़क पर दो, मीडिया में दो, रैलियों में दो। फिर उसे
वापस भी लिया जा सकता है। इस प्रकार की अन-डू व्यवस्था उनके लिए ही है। आम
नागरिकों के लिए यह व्यवस्था नहीं है। वर्ना फेसबुक पर कुछेक मामलों को लेकर या
कार्टून बनाने को लेकर गिरफ्तार हुए नागरिक अन डू कह कर मामला खत्म कर लेते।
नेताओं के बिगड़े बोल का इतिहास और ऐसे वाक़ये बहुत लंबे हो सकते हैं। हो सकता है कि आप जिसे पसंद ना करते हो ऐसे दल
के कुछेक बयान छूट भी गये हो। क्योंकि उन नेताओं की कृपा से ऐसी घटनाओं की बाढ़ है। लेकिन सवाल किसी की पसंदगी या नापसंदगी का नहीं है। सवाल मर्यादाएं लांधती भाषा का
है। कोई आम नागरिक सीमाएं लांध दे वो एक अलग विषय है, जबकि सार्वजनिक जीवन में शुमार
शख्सियत ऐसा कर दे तब विषय अलग होता है। घर में बैठे रहने वालों को शालीनता या
संस्कृति का उतना दबाव नहीं होता, जितना सार्वजनिक जीवन जीने वालों को होता है।
क्योंकि आम नागरिक की आवाज की पहुंच हर किसी को पता है। जबकि सार्वजनिक जीवन में
प्रवृत्त व्यक्तियों का हर बयान या हर कदम बड़े तबके पर असर डालता है। वैसे नेताओं की
बात है तो हम नागरिक तंज कस सकते हैं। लेकिन सोशल मीडिया पर हम तो उनसे भी गये
गुजरे दिखते हैं। कहा जाता है कि भाषा ही चरित्र की पहचान है। मोटे तौर पर एक ही
नागरिकी आह निकलती है कि... इस कदर छा गये हम पर पॉलिटिक्स के साये, कि अपनी
जुबां तक हिन्दुस्तानी ना रही। अरसे के बाद भी यह आह जस की तस है... या फिर आह ही
आहत है।
कौन सी भाषा प्रदेश में या देश में इस्तेमाल की जाए उसे लेकर कई दफ़ा निरंतर बवाल होता रहता है। कौन सी भाषा को महत्व
दिया जाए ये तय करने से पहले भाषा को सुधारने के बारे में क्यों सोचा नहीं जाता
होगा ये वाकई बड़ा सवाल है।
(इंडिया इनसाइड, मूल लेखन 7
अगस्त 2016, एम वाला)
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