कोरोना फ़ेक न्यूज़ से जुड़े पहले लेख में हमने लिखा था कि
समाज के पढ़े-लिखे लोग ही फ़ेक न्यूज़ के हत्थे चढ़कर मूर्खता यज्ञ में योगदान दे
रहे थे। इनमें शिक्षक, सरकारी या अर्धसरकारी कर्मी, बिजनेस करने वाले, आदि महानुभाव
शामिल थे। किंतु जैसे जैसे यह सिलसिला आगे बढ़ा, समाज के इन पढ़े-लिखे लोगों को भी
अच्छा साबित कर दिया देश के नेताओं और भारत के सितारों ने! आइये देखते हैं कोविड-19 से जुड़े फ़ेक न्यूज़ के दूसरे
संस्करण को...
नोट करें कि इन्हें ऑल्टन्यूज़, बीबीसी फैक्ट चेक, डब्ल्यूएचओ, भारत सरकार के पत्र
सूचना कार्यालय समेत कई प्रमाणित प्लेटफॉर्म से फ़ेक साबित किया जा चुका है।
वैसे 29 अप्रैल को
हिमालय से भी बड़ा ऐस्टरौएड हमारी पृथ्वी से टकराने वाला था, लेकिन कोरोना की वजह
से शायद ऐस्टरौएड ने अपनी योजना बदल ली थी! ख़ैर, आइये चलते हैं कोरोना फ़ेक न्यूज़ के दूसरे संस्करण की तरफ़...
सदी के महानायक अमिताभ बच्चन हो या एक्शन के देवता
रजनीकांत, तमाम ने फ़ेक न्यूज़ के हवन में घी डाला, राज्यपाल किरण बेदी भी पीछे नहीं थी
जो
लोग दिनभर टेलीविज़न पर आकर देश को जागरूक बनाने का काम करते दिखाई देते थे, वही सोशल
मीडिया पर जाकर रायता फैलाने लगे! जब कोई कलाकार या
सेलिब्रिटीज़ कोई सूचना सोशल मीडिया पर साझा करते हैं तो उसे कई लोग आधिकारिक सच मान
लेते हैं। लेकिन सदी के महानायक अमिताभ बच्चन, एक्शन के देवता रजनीकांत आदि
सेलिब्रिटीज़ ने अपनी हरकतों से दिखा दिया कि हम जो कहे उसे आधिकारिक सच ना माने।
कोरोना महामारी के समय इन लोगों ने भी सोशल मीडिया पर ग़लत सूचनाएँ साझा कर दी थीं!
सबसे
पहले बात करते हैं सदी के महानायक अमिताभ बच्चन की। इन्होंने एक फ़ोटो रिट्वीट किया था,
जिसमें कहा गया कि पीएम मोदी द्वारा लाइट बंद कर घरों में दीपक जलाने की अपील के बाद
अंतरिक्ष से भारत चमकता नज़र आया, दुनिया में अंधेरा रहा।
ऐसी तस्वीरों को पहली नज़र में ही झूठी तस्वीरें साबित करना आसान
है। सदी के महानायक पता नहीं कौन से मूड में थे कि इन्होंने इस तस्वीर को
इस्तेमाल कर लिया! प्रतीक के तौर पर
इस्तेमाल किया होता तो नीचे लिखा होता कि यह तस्वीर प्रतीकात्मक है, लेकिन ऐसा भी
नहीं लिखा। मजेदार बात यह है कि इस दिन सुबह से ही सोशल मीडिया पर ऐसी तस्वीरों को
लेकर आगाह किया जा रहा था, यह बताकर कि ऐसी तस्वीरों का इस्तेमाल फ़ेक न्यूज़ को
लेकर होगा। साफ़ था कि अमिताभ बच्चन का यह पोस्ट फ़ेक कैटेगरी वाला था।
इससे
पहले अमिताभ बच्चन ने कोरोना वायरस पर ज्योतिष ज्ञान साझा किया था, जिसे लेकर वह काफ़ी ट्रोल हुए थे। अपने इस पोस्ट में इन्होंने नक्षत्र, शंख बजाना, ख़ून का बहाव, काली
शक्तियाँ और वायरस का ज़िक्र किया था! हालाँकि बाद में अमिताभ बच्चन ने वह पोस्ट डिलीट कर दी थी।
कोविड-19 मक्खियों से भी फैल सकता है, यह ज्ञान महानायक ने ही दिया था! जिसे बाद में इन्हें डिलीट करना पड़ा था। इन 15 दिनों में अमिताभ
बच्चन तीन-तीन बार फ़ेक न्यूज़ पोस्ट करके ट्रोल हो चुके थे!
अब
बात एक्शन के देवता रजनीकांत की। इन्होंने एक वीडियो अपलोड किया था। सोचिए, इस
वीडियो को ग़लत करार देकर ट्विटर ने ही डिलीट कर दिया था!
रजनीकांत ने जो वीडियो ड़ाला था उसमें दावा था कि वायरस
ख़त्म होने में 14 घंटे लगते है। घंटे के गुणाभाग को लेकर सामान्य सर्च से ही पता
चल सकता था कि यह थ्योरी आधारहीन है। लेकिन रजनीकांत शायद व्यस्त होंगे, तभी
इन्होंने वीडियो में जो दावा था उसे अपने तरीक़े से परखा नहीं और अपलोड कर दिया! साफ़ था कि यह झूठा और बेतुका दावा था।
अब
बारी थी मलयाली सुपरस्टार मोहनलाल की। इन्होंने कहा कि थाली बजाने से वायरस मारा
जाएगा! जी हाँ, सुपरस्टार ने ही ऐसा कहा था! क्यों भाई, सुपरस्टार
व्हाट्सएप इस्तेमाल ना करें क्या? उनके लिए मनाही है क्या? और व्हाट्सएप इस्तेमाल करेंगे तो फिर फ़ेक न्यूज़ के यज्ञ में
घी डालना तो बनता ही है न?
सेलिब्रिटीज़ व्हाट्सएपिये गैंग बने तो फिर नेता क्यों नहीं बन सकते भाई? किरण बेदीजी ने भी यही सोचा होगा! पुडुचेरी की राज्यपाल किरण बेदी ने मुर्गियों का वीडियो साझा
करते हुए दावा किया था कि इनका जन्म कोरोना वायरस की वजह से नकारे गए अंडों से हुआ
है! सोचिए, जो बात डब्ल्यूएचओ को पता नहीं थी
वह बात किरण बेदी को पता थी!!!
लोगों को क्या कहे जब मंत्रालय ही मन में जो आया वो बोलने
लगा था, विदेश मंत्रालय ने कहा - लॉकडाउन नहीं होता तो 8 लाख होते संक्रमित,
स्वास्थ्य मंत्रालय ने विदेश मंत्रालय के
दावे का किया खंडन!
जब
देश का नायक, देश का महानायक और फिर उसके बाद देश के मंत्रालय तक झूठ बोल देते हो, ऐसे में व्हाट्सएप विश्वविद्यालय के लोगों को क्या दोष दें? शायद व्हाट्सएप की बीमारी नायक-महानायक-मंत्रालय सब जगह
फैल चुकी होगी! कोरोना से भी ख़तरनाक है
व्हाट्सएप विश्वविद्यालय!
कोरोना
को लेकर भारत के विदेश मंत्रालय ने एक बयान दिया था। बयान में विदेश मंत्रालय ने
कहा कि यदि 21 दिनों का लॉकडाउन नहीं हुआ होता तो भारत में इस संक्रमण की चपेट में
8 लाख लोग आ गए होते। इस दावे में सबसे पहला मजेदार ट्विस्ट तो यहीं था कि यह दावा
विदेश मंत्रालय ने किया था!!!
कोरोना एक बीमारी है और
उससे संबंधित अध्ययन स्वास्थ्य मंत्रालय करता है। लेकिन यहाँ चिकित्सा सेवा के
मामले में विदेश मंत्रालय बोल रहा था!!! वैसे भी हमारे यहाँ सरहदों को लेकर वित्त मंत्री बोलते हैं,
आरबीआई को लेकर गृहमंत्री! लेकिन विदेश मंत्रालय के
इस विशिष्ट दावे की धज्जियाँ तब उड़ी, जब स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस दावे का खंडन कर
दिया!!! स्वास्थ्य मंत्रालय ने
कहा कि ऐसा कोई अध्ययन नहीं हुआ है और ऐसी कोई रिपोर्ट नहीं है।
इंडियन
एक्सप्रेस की एक ख़बर के अनुसार विदेश सचिव (पश्चिम) विकास स्वरूप ने एक प्रेस ब्रीफिंग
में दावा किया था कि सोशल डिस्टैंसिंग के उपाय नहीं अपनाए जाने पर वायरस की प्रजनन
दर 2.5 व्यक्ति प्रति दिन होती, लॉकडाउन की वजह से इसमें 75 प्रतिशत की कमी आई और यह दर घट कर
0.625 व्यक्ति प्रति दिन रह गई। विकास स्वरूप ने इसके आगे कहा कि लॉकडाउन नहीं होने
पर 15 अप्रैल तक देश में कोरोना से संक्रमित लोगों की संख्या 8,20,000 होती।
उन्होंने
बाद में यह भी कहा कि वह यह बात इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च के एक अध्ययन और उसकी
रिपोर्ट के आधार पर कह रहे हैं। लेकिन बाद में स्वास्थ्य मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी
लव अग्रवाल ने इससे इनकार कर दिया। उन्होंने साफ़ कह दिया कि ऐसी कोई रिपोर्ट नहीं
है।
सोचिए,
देश का विदेश मंत्रालय आरोग्य के मामले में देश को सूचना देता है। ऊपर से दावा
करता है कि उसे यह जानकारी स्वास्थ्य संबंधित संस्थाओं के अध्ययन से मिली है। उधर
स्वास्थ्य मंत्रालय कह देता है कि ऐसा कोई अध्ययन हुआ ही नहीं है!!! ऐसे ही लड़ेंगे कोरोना से... है न?
भारत में जो तालियाँ बजी उन्हें नासा ने भी सुना, बताइए
नासा वालों को दूसरा कोई काम नहीं होता क्या?
यह
व्हाट्सएप विश्वविद्यालय है। यहाँ विचित्र से विचित्र चीज़ें ही चलती हैं। एक ऐसी ही
बेढंग न्यूज़ भी चल पड़ी थी इन दिनों।
मार्च में, यानी कि लॉकडाउन के प्रथम अध्याय के दौरान भारत को पहला टास्क मिला।
टास्क दिया था पीएम मोदी ने। बात इतनी सी थी कि शाम को घरों की बालकनी में आकर
तालियाँ बजानी थीं। जो लोग इस आपातकालीन स्थिति में काम पर थे उन्हें धन्यवाद देने
के लिए और उनका सामूहिक अभिवादन करने के लिए यह कदम था। अच्छा था यह, लेकिन
उत्साही लोग हर अच्छे कामों को बेतुका साबित कर देते हैं।
कुछ उत्साहियों ने मैसेज
फैला दिया कि पूरे भारत ने तालियाँ बजाई और इससे जो ध्वनि पैदा हुई उसे नासा के
सैटेलाइट ने सुना। बताइए, विचित्र नाम के लफ्ज़ को शर्म आ जाती अगर वो इन मैसेज को
पढ़ पाता। नासा वालों को तो दूसरा कोई काम होता ही नहीं होगा, है न?
सोचिए, इतने सारे
पूर्ण युद्ध हुए हैं एशिया में, लेकिन कभी नासा के सैटेलाइट ने किसी फाइटर जेट की
आवाज़ सुनी हो ऐसा वाक़या सुना या पढ़ा नहीं है। यह पहली दफा था जब मानव तालियां सुन
ली थी सैटेलाइट ने!
इस दावे को स्वयं भारत सरकार ने ख़ारिज किया था। नोट करें कि सिरे
से ख़ारिज किया था।
इसरो से संबंधित इस पुरानी फ़ोटो को कोरोना से जोड़ने का
कारनामा भी चल गया
एक
तस्वीर फैली थी इन दिनों। समूचे भारत में तो नहीं, किंतु बहुत सारे हिस्सों में इस
तस्वीर ने रायता ज़रूर फैला दिया। तस्वीर में एक शख़्स को प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी गले लगा रहे थे। तस्वीर के नीचे लिखा था कि पीएम वैज्ञानिकों को
हौसला दे रहे हैं, गले लगाकर उन्हें हिम्मत देकर उन्हें यक़ीन दिला रहे हैं कि देश उनके
साथ है। तस्वीर में पीएम मोदी को हिम्मतवाला नायक बताकर
पेश करने की चेष्टा की गई थी।
दरअसल तस्वीर कोरोना से संबंधित नहीं थी। तस्वीर
थी चंद्रयान-2 के असफल हो जाने के बाद की। तब पीएम मोदी ने इसरो के हेड के सीवन को
गले लगाया था। वैसे उन दिनों भी पीएम की यह चेष्टा बेतुका स्टंट ही करार दिया गया
था, क्योंकि इसरो-डीआरडीओ जैसे संस्थानों में वैज्ञानिकों को हौसले की नहीं सरकारी
मदद और पैसों की ज़रूरत होती है। जो भी हो, लेकिन चंद्रयान से जुड़ी तस्वीर को
कोरोना से व्हाट्सएप ही जोड़ सकता है।
स्मृति ईरानी, वायनाड में फँसे अमेठी के मजदूर और आरएसएस...
महामारी के दौर में राजनीति कब तक ख़ुद को काबू में रख सकती थी?
जब
वैश्विक महामारी का सीजन चल रहा हो ऐसे समय में राजनीति कब तक ख़ुद को काबू में रख
सकती थी? बीजेपी और कांग्रेस को अपने-अपने
प्रोपेगेंडा तो चलाने ही थे। एक सुबह आरएसएस के मुखपत्र आर्गेनाइजर में एक रिपोर्ट
छपी। शीर्षक था - स्मृति ईरानी ने अमेठी के मजदूर, जो राहुल गांधी के ससंदीय क्षेत्र
वायनाड में फंसे थे, की मदद की। महामारी के समय राजनीति नहीं करनी चाहिए, यह नसीहत देश को देने के बाद राजनीति
की शुरुआत इन्होंने ही कर दी! शीर्षक का जो अंदाज़ था उसमें ही राजनीति को कूट-कूट कर
डाला गया था।
आर्गेनाइजर
में छपी इस ख़बर पर सवालिया निशान तब लगा जब केरल के सीएम पिनाराई विजयन ने मीडिया
के सामने आकर इस रिपोर्ट का खंडन किया। उधर एक ख़बर कांग्रेस की तरफ़ से भी चली, जिसमें दावा किया गया कि राहुल गांधी ने सैनिटाइज़र, मास्क, साबुन का जत्था अमेठी
भिजवाया है। इस ख़बर का खंडन बीजेपी नेताओं ने किया।
सोचिए, एक मुखपत्र में ख़बर
छपती है जिसका खंडन उसी राज्य के सीएम करते हैं। दूसरी तरफ़ एक ख़बर एक राजनीतिक दल
की तरफ़ से चल पड़ती है, जिसका खंडन विपक्षी नेता करते हैं। कुल मिलाकर स्मृति ईरानी
के बारे में आर्गेनाइजर ने जो दावा किया उसका खंडन उसी राज्य के सीएम ने कर दिया,
उधर कांग्रेस ने जो दावा किया उसका खंडन वहीं से बीजेपी नेताओं ने कर दिया। इन
शोर्ट, ख़बरें लिखकर दैनिक अख़बारों में आए या व्हाट्सएप से... उसका कोई वजूद ही नहीं होगा यह तमाम राजनीतिक दलों ने साबित कर दिया! कोरोना से भी ज़्यादा ख़तरनाक है हमारी यह राजनीति।
महाराष्ट्र: बीजेपी नेताओं ने शेयर किया पीएम केयर्स फंड का फ़र्ज़ी लिंक!!!
इस ख़बर में सब कुछ
अद्भुत, अकल्पनीय और अविश्वसनीय ही था। नेताओं में व्हाट्सएप विश्वविद्यालय वालों
से ज़्यादा कॉमन सेंस होती होगी यह अब तक माना जाता था, लेकिन अब इस धारणा को
अलविदा कहने का समय आ चुका है।
कोरोना महामारी के समय रुपये इक्ठ्ठा करने के लिए
पीएम मोदी ने पीएम केयर्स फंड शुरू किया। वैसे यह प्रयास शुरू से ही विवादों में
रहा था। क्योंकि जनता से दान इकठ्ठा करने को लेकर पहले से ही एक ढाँचा
है, जिसकी व्यवस्थाएँ पहले से मौजूद हैं, जिसमें पक्ष-विपक्ष के सदस्यों-ऑडिट-पहले
से मौजूद सार्वजनिक जानकारी, सब
व्यवस्था होती है। बावजूद इसके नया ढाँचा
बनाने की क्या ज़रूरत थी यह सवाल हर तरफ़ से आए थे। पहले से जो मौजूद था उसे दरकिनार करके नया ढाँचा शुरू किया तो इसमें
शरारती और ख़ुराफ़ाती तत्वों के फंदे में आम लोग फँसेंगे यह जोखिम पहले से ही था,
लेकिन इसमें नेता सरीखे लोग भी फँसेंगे यह जोखिम तो कही पर नहीं था। लेकिन महाराष्ट्र
बीजेपी के नेताओं ने इसे हक़ीक़त का रूप दे दिया!
महाराष्ट्र बीजेपी
के नेताओं ने, नोट करें कि दिग्गज नेताओं ने, फंड जुटाने के लिए एक लिंक शेयर किया।
लिंक इन्होंने इसलिए शेयर किया, ताकि लोगों के इसके बारे में अवगत कराया जा सके। यूँ कहे कि लोगों तक जानकारी पहुंचायी जा सके। लेकिन मैट्रिक पास इंसान में जो कॉमन सेंस
होती है, वह यहाँ नेताओं में नहीं दिखी! इन नेताओं ने जो लिंक शेयर किया वह फ़र्ज़ी था!!!
लिंक शेयर करने वालों में राज्य की पूर्ववर्ती बीजेपी सरकार के मंत्री सरीखे
नेता भी शामिल थे! पीएम केयर्स फंड की आधिकारिक वेबसाइट
पीएमकेयर्स.जीओवी.इन है, जबकि इन नेताओं ने जो लिंक शेयर किया उसमें एड्रेस था
पीएमकेयर्सफंड.ओनलाइन। अब मैट्रिक पास लोगों को भी पता होता है कि सरकारी वेबसाइट
में जीओवी या डोट इन जैसी पूँछ होती है, लेकिन यहाँ पूँछ की किसको पड़ी थी!!!
विधायकों को यहाँ से वहाँ ले जाने वाले कथित स्थानिक चाणक्य गिरीश महाजन,
पूर्व मंत्री सुभाष मारे, वर्तमान सासंद डॉ. हिना गावित, पूर्व मंत्री चंद्रशेखर
बावनफुले, पूर्व गृहमंत्री रणजीत पाटिल, विधायक गणपत गायकवाड़ सरीखे बड़े बड़े
नेताओं ने इस फ़र्ज़ी लिंक को शेयर किया था! सोचिए, दिनों तक भारत भर में पीएम केयर्स फंड के फ़र्ज़ी लिंक की ख़बरें चली
थीं, बावजूद इसके इन नेताओं ने फ़र्ज़ी लिंक को शेयर कर दिया था! फ़ेक न्यूज़ अंजाने में भी फैलते हैं, लेकिन इस तरह के लोगों द्वारा भी अंजाने
में फैलते हो तो फिर यही कहा जाएगा कि मूर्खता के यज्ञ में घी हर जगह से डाला
जाता है।
टिकटॉक ने व्हाट्सएप से आगे पहुंचने के लिए जोर लगाया, लोगों ने भी टिकटॉक के इस प्रयासों को सहारा ही दिया था
फ़ेसबुक तो
फ़ेकबुक के नाम से बदनाम हो ही चुका था। फिर व्हाट्सएप आया। व्हाट्सएप आने के बाद
पता चला कि फ़ेसबुक तो फिर भी अच्छा था। लेकिन अब व्हाट्सएप को भी अच्छा साबित
करने टिकटॉक आ चुका है। और लोगों ने टिकटॉक को सहारा दिया भी है।
टिकटॉक के ज़रिए छोटे-छोटे आपत्तिनजक और सांप्रदायिक व झूठे वीडियो
बनाकर दो समुदायों को बाँटने की कोशिशों का खुलासा भी हुआ। प्रमाणित ख़बरों के
अनुसार एक निजी साइबर संस्था ने रिसर्च कर 20 हज़ार से भी अधिक वीडियो को जाँचा और
फिर गृह मंत्रालय को रिपोर्ट सौंपी। वैसे मंत्रालय को रिपोर्ट सौंपने से क्या हो
जाता होगा? क्योंकि ऊपर देखा वैसे, दिग्गज नेताओं तक को असली लिंक और फ़र्ज़ी लिंक का
कॉमन सेंस नहीं है, तो फिर इन नेताओं से बने मंत्रालय ऐसे रिपोर्ट्स का क्या करते
होंगे?
वैसे केंद्रीय मंत्रालय क्या क्या कर जाते हैं, वो तो शुरूआत
में ही हमने देखा। स्वास्थ्य मंत्रालय और विदेश मंत्रालय वाले मामले का ज़िक्र
है यहाँ। केंद्रीय मंत्री क्या क्या कर जाते हैं, वो आगे दखेंगे।
बात टिकटॉक की फ़र्ज़ी दुनिया की करें तो, रिसर्च के मुताबिक़ ज़्यादातर वीडियो मिडिल ईस्ट
एशिया में बनाए गए थे। फिर इन्हें भारत भेजकर यहाँ की स्थानीय भाषाओं में तब्दील
किया गया था। इन वीडियोज़ में कुछ वीडियो ऐसे भी थे, जो कोरोना को लेकर ग़लत जानकारी
देकर लोगों को भटका रहे थे, कुछ वीडियो धर्मविशेष के लोगों को ग़लत रास्ते मोड़ने की
कोशिश करते दिखे। गृह मंत्रालय को रिसर्च रिपोर्ट मिलने के बाद मामले की जाँच
आईबी के साथ दिल्ली पुलिस की साइबर क्राइम सेल को सोंपी गई। टिकटॉक को पत्र लिखकर ऐसे वीडियो को उनके एप से हटाने के निर्देश भी दिए गए। जिस
निजी साइबर संस्था ने यह रिसर्च किया था उसका नाम था वॉइजर
इंफोसेक।
भारत के केंद्रीय आयुष राज्य मंत्री ने ग़ज़ब झूठा दावा कर दिया, उनके इस
दावे को प्रिंस चार्ल्स के प्रवक्ता ने ख़ारिज किया!!!
अब बात करते
हैं ग़ज़ब दावा करने वाले ग़ज़ब मंत्री श्रीपद नाइक के बारे में। इन्होंने तो आव देखा न
ताव, सीधा ब्रिटेन के प्रिन्स को फ़ेक न्यूज़ में शामिल कर लिया! सोचिए, हमारे नेता फ़ेक न्यूज़ को फैलाने के लिए कितने उत्सुक होंगे की
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंच जाने के लिए तैयार हो गए! मंत्रीजी केंद्रीय स्तर के थे, साथ ही आरोग्य संबंधित महकमे के थे यह भी नोट
करें!
केंद्रीय आयुष राज्य मंत्री श्रीपद नाइक ने दावा कर दिया
कि आयुर्वेद चिकित्सा के ज़रिए कोरोना संक्रमण से जूझ रहे ब्रिटेन के प्रिंस चार्ल्स
को उबरने में मदद मिली। पहली नज़र में ही श्रीपद नाइक पर मान उत्पन्न हो गया। यह
सोचकर कि जिस व्यक्ति की बारे में ब्रिटेन के अख़बारों को पता नहीं था, उसके बारे
में हमारे मंत्रीजी को पता था!!!
श्रीपद नाइक ने
कहा था कि बंगलूरू में आयुर्वेदिक डॉक्टर मथाई हैं, जो सौख्य नाम
से एक आयुर्वेद रिजॉर्ट चलाते हैं, डॉ. मथाई ने मुझे फ़ोन कर बताया कि ब्रिटेन के प्रिंस
चार्ल्स का कोरोना वायरस संक्रमण उनकी दवाई से सही हुआ है, यह दवाई आयुर्वेद और होम्योपैथी
का मिश्रण है।
मंत्रीजी का यह दावा एक दिन बाद ही ख़ारिज हो गया। प्रिंस चार्ल्स के
प्रवक्ता ने श्रीपद नाइक के इस दावे को ख़ारिज करते हुए कहा कि उन्होंने सिर्फ़ चिकित्सा
सलाह का पालन किया है। वेल्स के प्रिंस के प्रवक्ता एला लिंच ने इंडियन एक्सप्रेस से
एक ईमेल में कहा कि यह जानकारी ग़लत है। उन्होंने सफ़ाई देते हुए लिखा कि वेल्स के राजकुमार
ने यूके में एनएचएस (राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा) की चिकित्सा सलाह का पालन किया है,
इससे अधिक कुछ भी नहीं किया है।
बीसीजी वैक्सीन के बारे में जो दावा किया गया था वो अब भी अपुष्ट ही है
हमने कोरोना
फ़ेक न्यूज़ को लेकर पहले लेख में ऐसे अनेक फ़र्ज़ी दावों के बारे में बात की थी। दवाई
और उपचार के नाम पर अपुष्ट दावों की बाढ़ सी थी इन दिनों। ऐसे में बीसीजी वैक्सीन
को लेकर एक ख़बर फैली। ऑल्ट न्यूज़ ने और बीबीसी टीम ने जब इस ख़बर को खंगाला तो पता
चला कि यह ख़बर विदेश से आयी थी, और फिर कांग्रेस समर्थकों ने इसे जमकर फैलाया। यह
कहकर कि बीसीजी वैक्सीन नेहरू-इंदिरा के जमाने से दी जा रही थी, और उन्हीं के
प्रयासों के बाद आज भारत के लोग कोरोना के सामने सुरक्षित हैं।
दरअसल बीसीजी वैक्सीन वाली ख़बर में दावा किया गया था कि जिन लोगों ने बचपन में बीसीजी, यानी बैसिलस
कैलमेट गुएरिन का टीका लिया हो, उन लोगों को कोरोना वायरस से संक्रमण की चिंता नहीं
करनी चाहिए, क्योंकि बीसीजी की वजह से उनमें कोविड-19 से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता
विकसित हो गई है।
इस ख़बर को
लेकर डब्ल्यूएचओ ने कहा कि, "इस बात के कोई प्रमाण नहीं मिले हैं कि बीसीजी का टीका
कोविड-19 के संक्रमण से बचाव करता है।" डब्ल्यूएचओ ने यह भी बताया कि कोविड-19 के
इलाज की खोज की दिशा में बीसीजी के टीके को लेकर दो क्लिनिकल ट्रायल्स चल रहे हैं और
जब ये पूरे हो जाएँगे तो विश्व स्वास्थ्य संगठन इसके निष्कर्ष की जाँच करेगा।
मतलब कि अभी शोध-संशोधन जारी था, लेकिन कुछ लोग नतीजों पर पहुंच चुके थे!!! दरअसल बीसीजी ही नहीं, बल्कि ऐसी कई चीज़ों को लेकर इन दिनों अपने-अपने दावे हर
जगह थे, मसलन लारियागो टैबलेट को लेकर भी। बिना
प्रमाण या बिना पुष्टि के आधे अधुरे दावों को सच बताने वाली ख़बरें इन दिनों जमकर
चलीं।
एक और फ़ेक न्यूज़ - कोरोना वायरस मैसेज शेयर करने को गृह मंत्रालय ने दंडनीय अपराध
बनाया है
यूँ तो फ़ेक
न्यूज़ को फैलाना दंडनीय अपराध ज़रूर है और इसे लेकर सज़ा देने के कुछ नियम भी है।
लेकिन यहाँ दावा फ़ेक मैसेज को लेकर नहीं बल्कि कोरोना के
किसी भी मैसेज को लेकर था।
कोरोना महामारी के बीच एक वायरल मैसेज में दावा किया गया
कि सोशल मीडिया पर कोरोना वायरस से जुड़ी कोई भी पोस्ट डालना सरकार द्वारा दंडनीय अपराध
घोषित किया गया है। इस वायरल मैसेज में गृह मंत्रालय (एमएचए) के एक अधिकारी
रवि नायक का नाम लिखा गया था, जो वायरल की गई तस्वीर में नीचे था। वायरल मैसेज पोस्ट
में लिखा था - ग्रुप के सभी माननीय सदस्यों को सूचित किया जाता है कि अभी कोरोना वायरस
से संबंधित किसी भी पोस्ट को केंद्र सरकार द्वारा दंडनीय अपराध घोषित किया गया है, केवल एक सरकारी एजेंसी कोरोना पर पोस्ट कर सकती है।
जो तस्वीर डाली गई थी उसे लेकर कॉमन सेंस के ज़रिए ही पता चल जाता था कि दिखाया
गया पत्र फ़र्ज़ी है। ऊपर से लेखन में बहुत अधिक भाषागत ग़लतियाँ थीं। साथ ही सरकारी रिलीज
और विज्ञप्ति की भाषा तथा लेखन शैली के तरीक़़े से यह पोस्ट मेल नहीं खाती थी। सरकारी
लेखन में जो सुनिश्चित फॉर्मेट होता है वह कहीं पर नहीं था। संबोधन और लैटर हेड
वाला एंगल चीख-चीख कर कह रहे थे कि यह ग़लत पोस्ट है।
अमर उजाला ने
इस दावे को जाँचा तो उन्हें पूरी साइट की स्कैनिंग करने बाद कोई भी ऐसी सरकारी रिलीज
नहीं मिली। अमर उजाला ने पड़ताल में पाया कि वायरल मैसेज झूठा था और गृह मंत्रालय द्वारा
ऐसा कोई भी सर्कुलर जारी नहीं किया गया था। जिस अधिकारी रवि नायक का नाम इसमें शामिल किया गया
था, उसके बारे में कोई भी जानकारी गृह मंत्रालय के वेबसाइट पर नहीं मिली। मतलब कि यह
सरकारी सर्कुलर और नोटिफिकेशन फ़र्ज़ी था।
स्विट्ज़रलैंड ने दूसरे मक़सद के लिए पहाड़ पर तमाम देशों के ध्वज की डिजिटल
तस्वीरें बनाई थीं, भारत में कुछ ख़ुराफ़ाती तत्वों ने इसका प्रचार अलग ढंग से ही किया
18 अप्रैल 2020
को भाजपा के नेशनल जनरल सेक्रेटरी बीएल संतोष ने स्विट्ज़रलैंड के मैटरहॉर्न पर्वत
की एक तस्वीर शेयर की। इस तस्वीर में दिख रहा था कि मैटरहॉर्न पहाड़ पर भारत के तिरंगे
जैसी रोशनी की गई है। भारत में दावा यह फैलने लगा कि स्विट्ज़रलैंड ने भारत के
प्रयासों की सराहना करने के लिए तथा पीएम मोदी ने जो दवाइयाँ भेजी हैं उसका
शुक्रिया अदा करने के लिए यह अभूतपूर्व कदम उठाया है। प्रसार भारती ने भी इस
तस्वीर को शेयर किया। फिर क्या था, समूचे भारत में यह तस्वीर और इसकी आधी
सच्ची-आधी झूठी कहानी फैलने लगी।
ऑल्ट न्यूज़ ने जब पता लगाया तो सारा मामला कुछ उलटा ही नज़र आया। ऑल्ट न्यूज़ की पड़ताल के
मुताबिक़ ज़रमैट मैटरहॉर्न टूरिज़म की वेबसाइट पर ऐसा सिर्फ़ भारत के लिए ही नहीं लेकिन
कोरोना वायरस के ख़िलाफ़ लड़ने वाले सभी देशों के प्रति एकजुटता दिखाने के लिए किया
गया था।
मैटरहॉर्न पर्वत पर सभी देशों के लोगों को ऐसे बुरे वक़्त में उम्मीद देने के
लिए झंडों के रंग की रोशनी की गई थी। वेबसाइट के मुताबिक़ मैटरहॉर्न पर भारत, चीन, अमेरिका, जापान, जर्मनी, ब्रिटेन, स्पेन, फ्रांस, इटली जैसे देशों
के झंडों के रंग की रोशनी की गई थी। इस तरह कोरोना महामारी के दौरान स्विट्ज़रलैंड
के मैटरहॉर्न पर्वत पर कई देशों के प्रति एकजुटता दिखाने के लिए झंडों की रोशनी की
गई थी। लेकिन भारत में कुछ ख़ुराफ़ाती तत्वों ने इसका प्रचार और प्रसार अलग और झूठे
ढंग में ही कर दिया था।
मुंबई के वीडियो को अहमदाबाद में गूंगे-बहरे शख़्स की पुलिस की पिटाई के नाम पर
शेयर किया गया
इन दिनों यही
चल रहा था। हमनें कोरोना फ़ेक न्यूज़ के पहले लेख में देखा था वैसे, 5-10 साल ही नहीं बल्कि 30-35 साल पूरानी तस्वीरों को कोरोना महामारी से जोड़ा जा रहा था! सालों पुरानी हॉलीवुड मूवी के सीन कोरोना से जोड़े गए थे! एक ऐसा ही मामला यह भी था।
सोशल मीडिया पर
एक विचलित करने वाला वीडियो वायरल हो रहा था, जिसमें कई पुलिसकर्मी एक व्यक्ति पर लाठीचार्ज
करते दिख रहे थे। वीडियो में देखा जा सकता था कि वह व्यक्ति पुलिसकर्मियों से बचकर
भागने का प्रयास कर रहा है, लेकिन वे उसे पकड़कर पीट रहे हैं। वीडियो के साथ कैप्शन में
दावा यह था कि यह गुजरात के अहमदाबाद शहर के इलाक़े बहरामपुरा का परीक्षितलाल नगर है।
व्यक्ति का नाम मस्तान मकसूद बताया गया था, जिसे दावे में गूंगा-बहरा और निर्दोष
शख़्स बताया गया। इसे 14 या 15 अप्रेल के बाद शेयर किया जा रहा था।
ऑल्ट न्यूज़ ने जब इस दावे को खंगाला तो पता चला कि यह वीडियो मुम्बई मिरर ने 3 अप्रैल को शेयर
किया था। यह वीडियो दिखाता था कि मुम्बई के वसाई कोलीवाड़ा की गलियों में पुलिस लोगों
को दौड़ा दौड़ा कर मार रही है। यानी यह वीडियो बहरामपुरा में लगे कर्फ़्यू का नहीं था
और ना ही यह किसी गूंगे-बहरे या निर्दोष शख़्स की कहानी थी।
न्यूज़ वेबसाइट पर इस
वीडियों के बारे में पहले से ही ख़बर थी, जिसके मुताबिक़ वसाई पुलिस ने कोरोना वायरस
के संदिग्ध संक्रमित की जाँच के लिए आये सरकारी अधिकारियों और पुलिस की टीम पर हमला
करने के आरोप में 9 लोगों पर मामला दर्ज किया था। यानी कि यह वीडियो अहमदाबाद का
नहीं बल्कि मुंबई का था! मामले में
जो पड़ताल ऑल्ट न्यूज़ ने की उसके मुताबिक़ यहाँ लोग कोरोना गाइडलाइन्स का उल्लंघन
कर रहे थे और बदले में पुलिस ने कार्रवाई की थी।
राम माधव जैसे दिग्गज नेता ज़रूरत से ज़्यादा ही भावविभोर हो गए, उत्साह में फ़ेक
न्यूज़ को फैला दिया, भारत का मैप ऐसा जिसमें क़ानून का उल्लंघन था
भाजपा के महासचिव
राम माधव ने भी इस वायरल तस्वीर को ट्वीट किया था। मैप के नीचे लिखा था कि इसे एक अमेरिकी
सीईओ ने अपने हिसाब से डिज़ाइन कर अपने कर्मचारियों को बताया कि अप्रत्यक्ष रूप से भारत इतने सारे
देशों में उपजी कोविड19 संक्रमण की समस्या का सामना कर रहा है, ये किसी समस्या
से प्रभावी ढंग से निपटने का उदाहरण है।
राम माधव सरीखे दिग्गज नेता इतने भावविभोर
हो गए कि पहली नज़र में ही जो चीज़ फ़ेक थी उसे ही शेयर कर दिया! लाज़मी है कि पीएम मोदी को स्टार दिखाने की अंधइच्छा का परिणाम था यह। लेकिन
राम माधव ने जो शेयर किया था उसे यदि सरकारी गाइडलाइन के तहत गंभीरता से लिया जाए
तो फिर राम माधव को इंडियन पीनल कोड के तहत दंडित ही होना पड़ेगा!
दरअसल इस मैप
में पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर (पीओके) और अरुणाचल प्रदेश को विवादित क्षेत्र
के तौर पर दिखाया गया था। ऐसा करना भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत एक दंडनीय अपराध
है।
अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने राम माधव के ट्वीट को री-ट्वीट किया
था। भावविभोर होकर बीजेपी मेंबर
और आंध्र प्रदेश की पूर्व सांसद गीता कोथापल्ली और द डेली मिलाप के एडिटर रिशी सूरी
ने भी राम माधव के ट्वीट को री-ट्वीट किया था। नेताओं की बात तो ठीक है, यह मैप
टीवी9 भारतवर्ष कार्यक्रम का हिस्सा भी बना, जहाँ इन्होंने मैप की सीमाएँ ठीक कर ली
थी!
इन दिनों निष्पक्ष संशोधन यही बता रहे थे
कि भारत में लॉकडाउन के अलावा दूसरे कोई भी प्रभावशाली अभियान चल ही नहीं रहे, इधर
नेता ज़रूरत से ज़्यादा भावविभोर हुए जा रहे थे। चाटुकारिकता भी कोई
मुद्दा होता है न भाई?
ऑल्ट न्यूज़ की पड़ताल ने तो ज़्यादा चौंकाया। दरअसल इस मैप को 8 साल पहले अर्पण श्रीवास्तव नाम
के एक शख़्स ने बनाया था। सोचिए 8 साल पुराना मैप दिग्गज नेताओं के टाइम लाइन पर
दौड़ने लगा था।
ऊपर से पड़ताल में एक और सिम्पल सी बात दिखाई दी। मैप को ज़्यादा गौर
से देखने पर पता चला कि इस मैप में आंध्र प्रदेश और तेलंगाना को एक स्टेट के तौर पर
दिखाया गया था, जबकि दोनों राज्य 2014 में एक-दूसरे से अलग हो गए थे!
अर्पण श्रीवास्तव ने ही राम माधव को उनकी पहाड़ जैसी ग़लती के बारे में आगाह
किया! श्रीवास्तव ने मैप का एक लिंक भी जोड़ा, जो उन्होंने 26 नवंबर 2012 को क़ोरा पर पोस्ट किया था।
देश में नक़्शे
पर ग़लत बाउंड्री दिखाना क़ानूनन ग़लत है। इसमें सज़ा का भी प्रावधान है। सरकारी नियमों
के मुताबिक़ अगर कोई ऐसे नक़्शे पब्लिश करता है, जो सर्वे ऑफ़ इंडिया की गाइडलाइंस के हिसाब
से तय किए गए मानकों पर खरा नहीं उतरता है, तो उसे सज़ा मिल सकती है। सज़ा में जेल या
ज़ुर्माने या दोनों का प्रावधान है। अधिकतम क़ैद 6 महीने की है। राम माधव बच गए! क्योंकि क़ानून या संविधान समान है, बस उसे पालन करवाने के तौर-तरीक़े अलग-अलग
होते होंगे!
रतन टाटा के नाम से चल रहे फ़र्ज़ी मैसेज को कई सेलेब्स ने कर दिया था शेयर
जब अमिताभ,
रजनीकांत और भारत के मंत्रालय तक व्हाट्सएपिये बन सकते हैं, तो फिर दूसरे सेलेब्स हवन
में घी क्यों डाल नहीं सकते?
रतन टाटा के नाम से एक फ़र्ज़ी ख़बर चली, जिसमें ग्राफिक्स
वाला मैसेज था। दावा यह कि रतन टाटा ने उन विशेषज्ञों का विरोध किया है, जो यह कह
रहे हैं कि अर्थव्यवस्था तहस-नहस हो जाएगी। फ़र्ज़ी मैसेज में रतन टाटा को उन
विशेषज्ञों को मानव ज़िंदगी की अहमियत समझाते हुए दिखाया गया था। उस फ़र्ज़ी मैसेज को
आप ऊपर देख सकते हैं। पहली नज़र में ही ग्राफिक्स का कमाल दिख जाता है।
बावजूद इसके
इसे अरशद वारसी और हुमा कुरैशी जैसे सेलेब्ज ने शेयर कर दिया! इन सेलेब्स को ग्राफिक्स के कमाल का प्रथमदर्शी कोण तथा चेक कर लेने की
ज़िम्मेदारी समझ नहीं आयी!
वायरल हुआ
तो फिर रतन टाटा ने ट्विटर के ज़रिए इस बयान को ख़ारिज करते हुए लिखा कि ये बातें न
तो मैंने कही हैं और न ही लिखी हैं। रतन टाटा ने कहा कि मुझे कुछ कहना होता है तो मैं
अपने आधिकारिक चैनल के ज़रिए कहता हूँ।
डब्ल्यूएचओ जिसे पहले ही फ़र्ज़ी बता चुका था, जनरल वीके सिंह ने नेशनल टीवी पर उसी
प्रोटोकॉल का ज़िक्र किया!
9 अप्रैल को इंडिया
टुडे ग्रुप के चैनल आज तक ने केंद्रीय मंत्री जनरल वीके सिंह से बात की। यह बातचीत
उत्तर प्रदेश सरकार के उस फ़ैसले के बारे में थी, जिसके तहत यूपी के प्रभावित इलाक़ों
या कोरोना वायरस हॉटस्पॉट क्षेत्रों को सील करने का आदेश दिया था। इस बातचीत की मेज़बानी
पत्रकार रोहित सरदाना कर रहे थे।
इंटरव्यू ख़त्म होने से पहले सरदाना ने लॉकडाउन बढ़ाने
के सवाल पर केंद्रीय मंत्री की राय पूछी। इसके जवाब में जनरल सिंह कहते हैं, “देखिए, ऐसा है कि.. अच्छा ये रहेगा। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइज़ेशन का भी एक प्रोटोकॉल है...”
पूरे बयान में वीके सिंह उसी प्रोटोकॉल का ज़िक्र कर रहे थे, जिसमें स्टेप
1 से स्टेप 4 तक की बातों वाला व्हाट्सएप मैसेज चला था। इस मैसेज को डब्ल्यूएचओ पहले
ही ख़ारिज कर चुका था! डब्ल्यूएचओ ने
कहा था कि हमने कोई लॉकडाउन प्रोटोकॉल जारी नहीं किया है।
5 अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य
संगठन दक्षिण-पूर्व एशिया ने भी इन मैसेजों को झूठा और आधारहीन बताया था। यानी कि
वीके सिंह के इंटरव्यू से भी चार दिनों पहले! केंद्रीय मंत्री तक को यह पता ना हो तो फिर क्या कहे? चलो सिंह तो मंत्री हैं, लेकिन ख़ुद को देश का नंबर वन न्यूज़ चैनल बताने वाले
चैनल तक को भी इसका पता नहीं था क्या?
जिसे लोगों तक ज़रूरी सामान पहुंचाने का पीएम का आइडिया कहा जा रहा था, उसका वीडियो 7 साल पुराना निकला!
एक वीडियो
वायरल हुआ था, जिसमें मालगाड़ी पर बहुत सारे ट्रक लदे हुए दिख रहे थे। साथ में वही
दावे कि धन्य है देश के पीएम, जिन्होंने इस आपदा में अपना दिमाग लगाते हुए देश के
ज़रूरतमंद लोगों तक सामान पहुंचाने का नायाब आइडिया लगाया है। आम लोगों को तो छोड़ ही दीजिए, इसे तो सीएनबीसी आवाज़ की एंकर दिपाली राना तक ने शेयर कर लिया!!!
ऑल्ट न्यूज़ ने पता लगाया तो मालूम पड़ा कि इस वीडियों को आज से 7 साल पहले,
यानी कि 2013 में, एक यूज़र ने अपलोड किया था!!! इसके पीछे कहानी ईंधन के बचाव तथा दूसरे ख़र्चों में कमी करने के आइडिया को
लेकर थी। उत्साही इतने ज़्यादा उत्साही होते हैं कि इन्हें फज़ीहत
तथा अज्ञान को फैलाने के गुनाह का डर लगता ही नहीं!
दुनिया में कोई कोरोना टास्क फोर्स था ही नहीं, बावजूद इसके नेताजी ने भारत के
पीएम को उस काल्पनिक फोर्स का कमांडर बना दिया!!!
नेताजी करें तब हद ही करते हैं! बताइए, जिस फोर्स का दुनिया में
कोई अस्तित्व ही नहीं था, उस फोर्स का, सॉरी, काल्पनिक फोर्स का कमांडर इन्होंने भारत
के पीएम को बना दिया!!! फिर क्या था? व्हाट्सएप पर घड़ल्ले से चलने लगा यह!
WION न्यूज़ की एक क्लिप
सोशल मीडिया पर वायरल हो रही थी, जिसमें बताया जा रहा था कि यूनाइटेड स्टेट्स और यूनाइटेड
किंगडम समेत 18 देश नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में कोरोना वायरस से निपटने के लिए एक
टास्क फोर्स बनाना चाहते हैं। नीचे महाराष्ट्र के बीजेपी जनरल सेक्रेटरी अतुल भटकलकर
का एक ट्वीट था। रजत सेठी, जो कि मणिपुर
मुख्यमंत्री के सलाहकार हैं, उन्होंने एक कदम आगे जाकर लिख दिया कि दुनिया के नेता, ट्रम्प, बोरिस जॉनसन, स्कॉट मॉरिसन
वगैरह चाहते हैं कि हमारे प्रधानमंत्री मोदी की अगुवाई में प्रास हो!
ऑल्ट न्यूज़ ने पड़ताल की तो पता चला कि जिस क्लिप की बात की जा रही थी वो WION के 15 मार्च 2020 को दिखाए गए एक शो का एक हिस्सा था! इस शो में एंकर वह नहीं कह रही थीं, जो नेताओं ने लिख दिया था! जब ऐसा कोई टास्क फोर्स था ही नहीं, तो एंकर कहेगी भी कैसे? और वो भी भारत में जनता कर्फ़यू के दिन भी नहीं थे तभी से क्यों कहने लगेगी?
दरअसल जिस टास्क फोर्स का ज़िक्र था क्लिप में, वो तो जी20 समूदाय को लेकर था! यह शो कोरोना को लेकर तो था ही नहीं!!! दूर दूर तक इसका संबंध कोविड19 से नहीं था!!! साथ हीं उसमें भारत के पीएम को लीडर बनाने का ज़िक्र नहीं था, बल्कि औपचारिक
तौर पर अभिवादन वाक्य ही थे उसमें, जैसा तमाम बड़े देशों के नेताओं के लिए होते
हैं।
कोरोना को लेकर अजब अफ़वाहों का दौर, उधर जो सरकार अभी सभी को जागरूक बना रही
है वही महीने भर पहले कोरोना को लेकर कुछ और ही कह रही थी, इधर राष्ट्रीय स्तर के
चैनल और पत्रकार व्हाट्सएपियें बने हुए थे
सरकार ही
यज्ञ में घी डाल रही थी तो फिर लोगों को क्या कहे? झारखंड के रांची
में स्थित पिठोरिया क्षेत्र में किसी ने अफ़वाह फैला दी कि एक-दूसरे को सिंदूर लगाना
है, नहीं तो घर में अनहोनी का ख़तरा है! इसके बाद प्रत्येक महिलाएँ मोहल्लों में घर-घर जाकर एक-दूसरे को सिंदूर लगाने
लगीं! इसी बीच सूचना पाकर पिठोरिया थाना प्रभारी विनोद राम मौक़े पर
पहुंचे और महिलाओं को समझा-बुझाकर घरों में रहने की सलाह दी।
जब विपक्ष
कोरोना की गंभीरता को अनदेखा करने के आरोप सरकार पर लगा रहा था तब, यानी कि 12
मार्च 2020 को बीजेपी ने कहा था कि विपक्ष कोरोना को लेकर भ्रम फैला रहा है!!! 13 मार्च 2020 को सरकार से जुड़े नेताओं ने कहा था कि देश में कोरोना से किसी
तरह की मेडिकल इमरजेंसी नहीं पैदा होने वाली है!!!
याद कीजिए वो दौर, जब मौलाना साद के जो कथित ओडियो क्राइम ब्रांच के पास हैं, उसमें मौलाना अपने लोगों को बतला रहे थे कि मौत के लिए मस्जिद से ज़्यादा अच्छी जगह कोई नहीं है, कोरोना
हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता!!! स्वामी चक्रपाणी बतला रहे
थे कि कोरोना वायरस नहीं है, बल्कि एक अवतार है!!!
राष्ट्रीय
स्तर के चैनल भी अलग ही सड़क पर चल पड़े थे। 14 अप्रैल को मुंबई के बांद्रा स्टेशन
के पास मज़दूरों की भारी भीड़ जमा होने की ख़बर पर एबीपी न्यूज़ ने एक ही ख़बर को
दो अलग-अलग एंगल में पेश किया! पहले चैनल ने इस भीड़ को साज़िश
के तौर पर पेश किया और दिखाया कि इस घटना के पीछे कारण धार्मिक भी हो सकता है। इनकी
एंकर शोभना यादव ने पाँच धार्मिक सवाल खड़े कर दिए।
उसी दिन चैनल की एक और पत्रकार रुबिका
लियाक़त ने एबीपी न्यूज़ के फ़ेसबुक पेज से एक लाइव किया और इस मामले में साज़िश
तथा धार्मिक दृष्टिकोण को ख़ारिज कर दिया। उधर इंडिया टीवी ने सन 2017 का एक
वीडियो कोरोना के समय का है यह झूठा दावा करके धार्मिक एंगल के ज़रिए कार्यक्रम कर
दिया था! रिपब्लिक भारत चैनल ने
ज़िंदा शख़्स को कोरोना बीमारी से मरा हुआ बताकर आधे घंटे तक का कार्यक्रम चला दिया!
सितम्बर
2019 के एक वीडियो को, जिसमें भीड़ पुलिस को मार रही थी, कोरोना से जोड़कर सोशल
मीडिया में परोस दिया गया। मलेशिया में ग़ैरक़ानूनी तरीक़े से जमा हुए लोगों की तस्वीर
को गुजरात में फँसे हिंदू मजदूरों के रूप में प्रसारित कर दिया गया। 9 बजे 9 मिनट
वाले टास्क के बाद एक पुराना वीडियो वायरल होने लगा और दावा यह कि टास्क में
अतिउत्साही लोगों की ग़लती की वजह से आग लग गई। पत्रकार राजदीप सरदेसाई और कांग्रेस
के श्रीवत्स उन लोगों में से थे, जिन्होंने इस फ़र्ज़ी ख़बर को शेयर किया था!
सैकड़ों फ़ेक न्यूज़ हैं, जिन्हें यहाँ लिखना संभव नहीं है। बहुत ही सारी चीज़ें बिना आधार के फैलती रही और फैलेगी भी। नोट करें कि हमारे यहाँ किसी ख़बर की फ़ेक होने
की पुष्टि हो भी जाए तब भी उसे सालों बाद भी बड़ी आसानी से दोबारा फैलाया जा सकता
है! ऐसा पहले भी हुआ
है।
(इनसाइड इंडिया,
एम वाला)
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