Ticker

6/recent/ticker-posts

Reality Show Inside: रियलिटी शो की रियलिटी, मनोरंजन के मंच पर फीलिंग्स का बाज़ारीकरण

 
हम भारतीय वैसे भी भावनात्मक कुछ ज़्यादा ही हैं। अति और अल्प, दोनों नुक़सानदेह होते हैं। कॉर्पोरेट सेक्टर, बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ, इन सबके साथ जुड़ा हुआ एक सच है हम नागरिकों की भावनाओं का बाज़ारीकरण। अनेक विदेशी कंपनियाँ यहाँ देशी नाम रखकर दशकों से जमकर व्यापार कर रही हैं। लोगों की भावनाओं का बाज़ारीकरण करना कोई संगीन अपराध नहीं है। व्यापार और बाज़ार का यह ज़रूरी पहलू है। रिश्ते, त्यौहार, विशेष प्रसंग, देश, देश से जुड़े नाम या प्रतीक, ये सब व्यापार और बाज़ार के मूल हैं। इसलिए भावनाओं का बाज़ारीकरण कोई अपराध नहीं है। किंतु हमारी भावनाओं का बाज़ारीकरण हुआ है यह पता रहना, इसमें भी तो कोई बुराई नहीं है।
 
कॉर्पोरेट सेक्टर और बाज़ार के अलावा भावनाओं का यह बाज़ारीकरण मनोरंजन के रंगमंच के ऊपर और भीतर, दोनों जगह है। मनोरंजन का कोई भी मंच हो, वहाँ भावनाओं का बाज़ारीकरण होता रहता है। सवाल-जवाब के शो हो, गाने के हो, डांस के हो, हास्य के हो या दूसरी कलाओं के शो हो, हर जगह स्क्रिप्ट, ट्रेजेडी, कॉमेडी, फीलिंग्स, दिल को छू लेने वाले द्दश्य और कहानी, सच-झूठ, सब कुछ होता है। कभी कभी तो यहाँ तक कहा गया है कि अब तो मनोरंजन के बाज़ार में शो का ऑडियंस भी बिकने लगा है! कहा जाता है रियलिटी शो, लेकिन उसकी रियलिटी कुछ अलग ही होती है।
 
अब आप कहेंगे कि हमें कैसे पता? हम ऐसा दावा कैसे कर सकते हैं? किंतु जो बातें पहले ही कही जा चुकी हो, जो दावे तथ्यात्मक रूप से पेश किए जा चुके हो, जिस विषय के ऊपर अनेकों बार संदर्भों के साथ लिखा जा चुका हो, उस विषय में ज़्यादा ड्रामा करने की ज़रूरत भी नहीं।
 
जैसे कि प्रसिद्ध गायक अमित कुमार ने सार्वजनिक रूप से कहा था, इंडियन आइडल में बतौर गेस्ट मुझे कंटेस्टेंट की झूठी प्रशंसा करने के लिए कहा गया। इस शो के सीज़न पाँच और छह में बतौर जज रह चुकी प्रसिद्ध गायिका सुनिधि चौहान भी कह चुकी हैं कि, मुझे कुछ कंटेस्टेंट की झूठी प्रशंसा करने के लिए कहा गया। मैं हर बार इस स्क्रिप्ट से सहमत नहीं हो पा रही थीं। इसलिए मैंने यह शो छोड़ दिया।
 
अब आप कहेंगे कि कंटेस्टेंट की झूठी प्रशंसा करने के लिए कहना, इसमें कौनो बुराई है भाई? बिलकुल बुराई नहीं है। किंतु आगे और भी बहुत कुछ है। अभी से काँहे को रूठ रहे हो भाई? झूठी प्रशंसा कैसे करनी है उसका भी स्क्रिप्ट होता है। नेहा कक्कड़ तो नरेंद्र मोदीजी की तरह आसानी से रो सकती हैं, लेकिन दूसरे जज भला कभी भी, बिना किसी वजह के, कैसे रो लेंगे?
 
कंटेस्टेंट की झूठी प्रशंसा वाली चीज़ इतनी बुरी नहीं मानी जा सकती। कंटेस्टेंट को अच्छा कहा जाएगा तो उनकी हौसला अफ़ज़ाई होगी और वे और अच्छा करेंगे। सालों पहले 16 साल की शिंजिनी सेनगुप्ता एक शो में नृत्य प्रतिस्पर्धा में भाग ले रही थीं और एक राउंड में उनके ख़राब नाच पर शो के जजों की फटकार पर वे न केवल रोईं, बल्कि उनको इतना सदमा लगा कि उन्हें लकवा मार गया। उनका इलाज कर रहे डॉक्टरों ने कहा था कि शायद उन्हें पहले से ही कुछ बीमारी थी, जिस पर सार्वजनिक फटकार ने उनकी ये हालत कर दी।
 
ऐसी घटना दिखाती है कि किसी भी प्रतियोगी को सार्वजनिक रूप से अपमानित करने पर उसका मनोबल टूट भी सकता है। किंतु यहाँ बात झूठी प्रशंसा से आगे जाकर दूसरी चीज़ों की है। लिहाज़ा हम आगे बढ़ते हैं।
 
रियलिटी शो अनेक तरह के होते हैं। दुनिया का पहला टीवी रियलिटी शो 'कैंडिड कैमरा' माना जाता है। 1948 में आए इस शो में हिस्सा लेने वाले लोगों को किसी अकल्पनीय या अजब-ग़ज़ब स्थिति में छोड़ा जाता था और फिर प्रतिक्रियाएँ कैमरे में क़ैद करके प्रसारित करते थे। दुनिया में सबसे लंबे वक़्त तक चलने वाले रियलिटी शो का नाम 'कॉप्स' है। 1989 में शुरू इस शो का अभी 35वाँ सीज़न चल रहा है।
भारत में रियलिटी शो की बात करे तो, 1972 में रेडियो पर क्विज़ कॉन्टेस्ट शुरू हुआ, बाद में इसका टीवी वर्ज़न भी आया। 1995 में सिंगिंग शो 'सारेगामा' की शुरुआत हुई, जिसे सोनू निगम होस्ट किया करते थे। 1996 में पहला डांस रियलिटी शो 'बूगी वूगी' स्टार्ट हुआ, जिसके जज जावेद जाफ़री थे। साल 2000 के बाद, जब अमिताभ बच्चन ने 'कौन बनेगा करोड़पति' शो से छोटे पर्दे पर एंट्री ली, बहुत कुछ तेज़ी से बदल गया। फिर 2004 में 'अमेरिकन आइडल' की तर्ज़ पर 'इंडियन आइडल' की शुरुआत हुई। उसके बाद 'बिग ब्रदर' की तर्ज़ पर भारत में आया 'बिग बॉस' नाम का शो। फिर तो लाइट, कैमरा और एक्शन के साथ स्वयंवर का शो भी आया, साथ ही दूसरे अनेक शो बनने लगे।
 
इस लेख के मूल विषय की बात करे तो, इंडियन आइडल की सर्वप्रथम सीज़न के विजेता अभिजीत सावंत ने कहा था, अब कंटेस्टेंट की गायकी से ज़्यादा ध्यान उनकी दुखभरी कहानियाँ और दूसरे ड्रामा पर दिया जाता है।
 
शो के कंटेस्टेंट के साथ कंपनी एक कॉन्ट्रैक्ट करती है। उस कॉन्ट्रैक्ट के अधीन होकर कुछ कंटेस्टेंट और मेहमान मीडिया से बात नहीं करते। बहुत कुछ सार्वजनिक न करने की शर्त भी होती है। किंतु कुछ पूर्व कंटेस्टेंट मीडिया से बात कर चुके हैं।
 
दैनिक भास्कर समूह की माने तो, उनसे कुछ पूर्व कंटेस्टेंट और पूर्व जजों ने बात की थी। उनके आधार पर इस मीडिया ग्रुप ने लिखा था, लोगों की भावनाओं को झकझोरने और उसका इस्तेमाल करने के लिए पूरा ड्रामा क्रिएट किया जाता है।
 

इंडियन आइडल अपने विवाद, अपने ड्रामा और अपने स्क्रिप्टेड सीन्स के लिए काफ़ी चर्चित रहा है। गीत और संगीत कम, ड्रामा ज़्यादा। रियलिटी शो की ये रियलिटी यह शो समझाता है। ऐसे शो हो, या दूसरे शो हो, तमाम जगहों पर मोटिवेट करने के नाम पर ग़लत प्रशंसा और स्क्रिप्टेड कहानियों का चक्र चलता रहता है।
 
जैसे फ़िल्मी दुनिया में सक्सेस का एक मंत्र कॉन्ट्रोवर्सी है, टेलीविज़न की दुनिया में भी वही चीज़ है। धारावाहिक वगैरह में ड्रामा या रोना-धोना जैसी चीज़ें उसकी कहानी के हिसाब से सही है। किंतु रियलिटी शो में रियल क्या होता है वह ढूंढना पड़ता है! यहाँ स्क्रिप्ट लिखे जाते हैं, डायलॉग दिए जाते हैं। इतना ही नहीं, जो सेलेब्स मेहमान बनकर आते हैं, उन्हें अपने किसी फेमस गाने पर जो डांस करना होता है उसका रिहर्सल भी होता है। साथ ही कंटेस्टंट भी स्क्रिप्ट के मुताबिक़ रिहर्सल करते हैं।
 
ऐसे शो की सफलता को इस बात से समझा जा सकता है कि जब इन शो से कोई कंटेस्टेंट दूसरों से पिछड़ कर बाहर निकलता है, तब उसको पसंद करने वाले लोग निराश हो जाते हैं, दुखी होने लगते हैं, विरोध करते हैं। खाने की मेज़ पर लोग इसे लेकर गंभीरता से चर्चा करते दिखते हैं। यानी कि शो के स्क्रिप्ट और ड्रामा ने पहले से ही लोगों की भावनाओं पर ज़बर्दस्त तरीक़े से वार किया होता है। दर्शकों के दिल और दिमाग़ को भावनात्मक तरीक़े से स्क्रिप्टेड स्टोरीज़ का मंच तैयार करके पहले से ही झकझोरा जा चुका होता है। तभी तो किसी कंटेस्टेंट के हारने या बाहर निकलने के समय घरों में बैठे दर्शक लोग उबल जाते हैं।
 
इंडियन आइडल हो या कोई भी दूसरा शो हो, दरअसल उसका एक मक़सद दर्शकों का मनोरंजन करना भी है। मूल मक़सद अर्थतंत्र से जाकर जुड़ता है। मनोरंजन और अर्थतंत्र, दोनों के लिए ड्रामा शामिल करना होता है और इस हिसाब से कई झूठी बातें गढ़नी होती हैं।
दरअसल ऐसे शो रियल में लाइव होते नहीं। स्क्रिप्ट पहले लिखा जा चुका होता है, और यदि कोई स्क्रिप्ट के बाहर का कुछ कर या बोल जाता है तो उसे एडिट कर दिया जाता है।
 
बीबीसी हिंदी के विकास त्रिवेदी की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, रियलिटी शो क्या होता है यह टीवी चैनलों की क्रिएटिव टीम हेड कर चुके लोगों से पूछेंगे तो जवाब होगा- रियलिटी शो जैसा कुछ नहीं होता है, ये सब जो आप इनमें देखते हैं ये अनस्क्रिपेटेड कंटेंट कहलाते हैं, जो जैसा है, उसे कैमरे में क़ैद किया और बाद में एडिट करके दिखा दिया।
 
दैनिक भास्कर समूह के मुताबिक़, ऐसे शो में कौन क्या बोलेगा, कब बोलेगा, पूरा स्क्रिप्ट होता है। अगर कोई स्क्रिप्ट के बाहर का कुछ कर या बोल जाता है तो वह एडिट हो जाता है। तीस से चालीस मिनट का शो होता है। इश्तेहार के मिनट मिला दें तो घंटे का समय बैठ जाता है। तीस से चालीस मिनट के शो का शूटिंग आठ-आठ घंटों तक चल जाता है।
 
दैनिक भास्कर समूह ने यहाँ तक लिखा है कि कौन से एपिसोड से किस कंटेस्टेंट को आगे लेकर जाना है वह पहले से तय होता है। हर किसी को सूचित किया जाता है कि वे हर समय हर किसी के लिए अच्छा ही कहे।
 
ऐसे प्री प्लांड स्क्रिप्ट के तहत शो में दिखाया जाता है कि जो मेहमान होता है उनसे कोई जज, या कभी कभी कोई कंटेस्टेंट विनती करता है कि वो मेहमान उनके किसी पुराने हीट सोंग पर डांस करें। थोड़े बहुत सीन के बाद मेहमान मान जाता है। मेहमान का गाना बजने लगता है। दावे के मुताबिक़ स्क्रिप्ट के अनुसार गाना बजता है, जिसका डांस रिहर्सल पहले ही हो चुका होता है। मेहमान अपने गाने को बजता देख झूमने लगता है, डांस करने लगता है।

 
यह सब देखकर दर्शकों को संतोष प्राप्ति होती है। भले ही सब स्क्रिप्टेड हो, प्री प्लांड हो, बस मनोरंजन भरपूर होना चाहिए। अपने बीस-तीस साल पुराने किसी गीत के स्टेप भी गेस्ट को याद नहीं होते। इसलिए कोरियोग्राफर उनसे पहले से ही रिहर्सल करवा चुका होता है। हालाँकि यदि किसी गेस्ट से डांस वाला सीन करवाया जाता है तो उसका पेमेंट गेस्ट को अलग से दिया जाना होता है। बगैर पैसे के भला कोई अपनी कला क्यों दिखाएगा?
 
कुछ महीनों पहले जब गोविंदा और नीलम शो में आए, तब भी यही बात संदर्भों के साथ मीडिया में छपी थी। दरअसल, यह मूल रूप से बाज़ार है और बाज़ार में सब कुछ परफेक्ट होना चाहिए। परफेक्शन बिना पूर्वतैयारी के आ नहीं सकता।
 
पद्मावत और पीके जैसी फ़िल्मों में गाना गा चुके इंडियन आइडल की पाँचवीं सीज़न के फ़ाइनलिस्ट स्वरूप ख़ान ने दिव्य भास्कर से कहा था, सिर्फ़ ग्रैंड फिनाले का लाइव टेलीकास्ट होता है। उसे छोड़ बाकी सभी एपिसोड प्री रिकॉर्डेड होते हैं। स्वरूप ख़ान ने भी जज और मेहमानों को झूठी प्रशंसा करनी होती है, इस दावे की पुष्टि की थी।
 
हालाँकि पूर्व कंटेस्टेंट ये ज़रूर मानते हैं कि ऐसे शो की वजह से उनकी कला को जंप मिलता है, और आगे जाकर उन्हें बड़े मौक़े मिल जाते हैं। और ये बात सच भी है। रियलिटी शो के नाम पर शो भले रियल न हो, किंतु कंटेस्टेंट को अपनी प्रतिभा को साबित करने का एक बड़ा मंच मिलता है, और आगे उनके लिए नये रास्ते खुल सकते हैं।
 
जैसे कि कुछ रियलिटी शो ने भारत को कई बड़े सितारे भी दिए। 'एमटीवी रोडीज़' शो से आयुष्मान ख़ुराना निकले, जबकि डीडी नेशनल में 'मेरी आवाज़ सुनो' शो जीतने वालीं सुनिधि चौहान आज बॉलीवुड की प्रसिद्ध गायिका हैं। 
कई रियलिटी शो में जज रह चुके संगीतकार अनु मलिक रियलिटी शो के ऊपर लग रहे आरोपों को झूठा बताते हैं। वे कहते हैं, कंटेस्टेंट कितनी दिक्कतों के बीच अपनी प्रतिभा को संभाले रखता है यह तथ्य वो सच्ची कहानियाँ दिखाती हैं। ये कहानियाँ मनगढ़ंत नहीं होतीं।
 
कई डांस वाले रियलिटी शो में जज रहे टेरेंस लुईस के अनुसार, अगर किसी बंदे की इमोशनल यात्रा है तो वो बाहर आती हैं, कुछ झूठ नहीं होता, अंत में हार-जीत का फ़ैसला उनकी कला के आधार पर होता है, कहानी के आधार पर नहीं।
 
हालाँकि अनु मलिक और टेरेंस लुईस, दोनों, शो में थोड़ा बहुत तो स्क्रिप्टेड होता है, यह साथ में जोड़ भी देते हैं।
 
कौन बनेगा करोड़पति के 15वें सीज़न के पहले करोड़पति जसकरन सिंह रियलिटी शो के आरोपों के ऊपर कहते हैं, जब लोग किसी चीज़ के बारे में नहीं जानते हैं तो वे धारणाएं बना लेते हैं। झूठे दावों पर मत जाइए।
 
बॉलीवुड एक्ट्रेस तापसी पन्नू स्कूपव्हूप के साथ एक इंटरव्यू में कहती हैं, कपिल शर्मा का शो कुछ हद तक स्क्रिप्टेड होता है। लेकिन इतना भी नहीं, जितना सब कहते हैं।
 

दूसरी तरफ़ वो भी चीज़ें खड़ी हैं, जिसमें कहा जाता है कि रियलिटी शो में भावुकता का एंगल काफ़ी दिखाया जाता है और इससे भावुकता दिखाने के चक्कर में मौलिकता ख़त्म हो जाती है। इन सब विवादों से प्रेरित होकर सोशल मीडिया पर मज़ाक भी उड़ाया जाता है कि अगर कोई प्रतियोगी ग़रीब या संघर्ष भरी कहानी वाला नहीं है, तो वो ज़्यादा दिन टिक नहीं पाएगा।
 
ओम शांति ओम और सारेगामापा की कंटेस्टेंट रह चुकी प्रिया मलिक ने कहा था, शो में बहुत सारी मोमेंट पहले से ही तैयार की जा चुकी होती हैं। अब ये बहुत सारी मोमेंट के भीतर क्या कुछ आता होगा ये मेट्रिक पास आदमी तक को समझ आ सकता है।
 
डेढ़ इश्क़िया और मनमर्ज़ियाँ जैसी फ़िल्मों में गाने वाले जैजिम शर्मा के मुताबिक़, ऐसा अनेकों बार हुआ है जब झूठी बात और झूठी प्रशंसा करनी पड़ती है।
 
ये सब ठीक है, किंतु मूल खेल होता है आम दर्शकों की भावना का बाज़ारीकरण। टीआरपी का खेल, जिसे अनेकों बार टीआरपी स्कैम भी कहा जाता रहा है, उस टीआरपी के लिए कंटेस्टेंट को ग़रीब और दुखी बताकर, या कंटेस्टेंट के साथ कोई भावनात्मक स्क्रिप्ट जोड़कर माहौल बनाया जाता है। ठीक वैसे, जैसे राजनीति में माहौल बनाना पड़ता है। माहौल इस तरीक़े से बनाया जाता है, जिससे दर्शकों की भावना में हलचल पैदा हो। शो के भीतर ड्रामा और ट्रेजेडी जितनी ज़्यादा होगी, दर्शक उतने ज़्यादा भावुक होंगे। भावुकता जितनी ज़्यादा, शो के दर्शक और टीआरपी, दोनों में सफलता के क़रीब जाने के चांस ज़्यादा
 
अर्चना पूरन सिंह की हँसी, नवजोत सिंह सिद्धू का 'ठोको ताली' कहना और नेहा कक्कड़ के आँसू। रियलिटी शो के जजों की प्रतिक्रियाएँ भी चर्चा में रहती हैं।
हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ गायक मिस्बाह अली ने स्वीकार किया था कि, रियलिटी शो स्क्रिप्टेड होते हैं। संवाद, जजों की टिप्पणियाँ और यहाँ तक कि प्रत्येक प्रतियोगी को दिए गए अंक, यह सब स्क्रिप्टेड है। मिस्बाह अली सारेगामा, इंडियन आइडल, एक्स फैक्टर जैसे शो में हिस्सा ले चुके हैं, तथा फ़िल्म राजनीति और तुम मिले के लिए गाना भी गा चुके हैं।
 
टाइम्स ऑफ़ इंडिया की एक रिपोर्ट की माने तो, मिनी माथुर से लेकर अपूर्वा अग्निहोत्री व शिल्पा सकलानी तक के सेलेब्स रियलिटी शोज़ को 'फ़र्ज़ी' और 'स्क्रिप्टेड' बता चुके हैं।
 
इंडियन आइडल के छह सीज़न की मेज़बानी कर चुकी मिनी माथुर बताती हैं, मैंने इसे तभी छोड़ दिया जब मुझे एहसास हुआ कि अब कोई वास्तविकता नहीं है। किशोर कुमार के बेटे अमित कुमार और प्रसिद्ध गायिका सुनिधि चौहान ने जो कहा उसे हम पहले ही देख चुके हैं।
 
बिग बॉस 14 जीतने वाली रूबीना दिलैक कहती हैं, बेशक, सब कुछ बहुत स्पष्ट रूप से डिज़ाइन किया गया होता है। पूरा स्क्रिप्ट दिया हुआ होता है।
 
मनीष गोस्वामी, जो बॉलीवुड अभिनेता मनोज कुमार के चचेरे भाई हैं और उन्होंने 35 से अधिक शो का निर्माण किया है, ने ईटाइम्स टीवी को कहा था, "रियलिटी शो स्क्रिप्टेड होते हैं। वे इस हद तक स्क्रिप्टेड होते हैं कि वे दर्शकों के अनुकूल बन जाते हैं। लक्षित दर्शकों की पहचान कर ली जाती है और उन्हें वह दिया जाता है जिसका वे इंतज़ार करते हैं। कभी कभी दर्शकों को सरप्राइज़ देकर कुछ आरोपों से बचा भी जाता है।
 

मशहूर कॉमेडियन वीर दास आईएएनएस को कहते हैं, "ईमानदारी से कहूँ तो, मैं ख़ुद रियलिटी शो का प्रशंसक नहीं हूँ। क्योंकि वे लगभग काल्पनिक हैं और वे सभी स्क्रिप्टेड हैं। मैं वास्तविक फिक्शन शो देखना पसंद करूँगा।"
 
अपूर्वा बजाज, जो टेलीविज़न सीरीज़ ओम शांति ओम की प्रोड्यूसर रह चुकी हैं, के मुताबिक़, “ऐसा तमाम शो में होता है। पूरा शो तो नहीं, किंतु क़रीब 20 फ़ीसदी हिस्सा स्क्रिप्ट के अनुसार ज़रूर होता है।
 
प्रसिद्ध गायिका जसपिंदर नरूला के मुताबिक़, रियलिटी शो में अब ड्रामा ज़्यादा होने लगा है। किसी को ग़रीब या किसी को मजदूर दिखाए जाने वाली कहानियाँ झूठी साबित हो भी चुकी हैं। अब तो लोगों की भावनाओं के साथ खेला जा रहा है।
 
रियलिटी शो पर सवाल उठाने वालों में शो में हिस्सा ले चुके प्रतियोगी भी शामिल रहे हैं। जैसे कि, एक बार बिग बॉस में पारस छाबड़ा ने सलमान ख़ान से ये तक कह दिया था, ''सर, ये प्लीज क्रिएटिव्स को बोलिए कि बेकार की बातें ना ही करें पीछे से।'' लॉकअप शो में करनवीर ने अंजलि से फ़ेक अफे़यर करने की बात कही थी ताकि शो में सफ़लता मिल सके। करनवीर ने इस पर कहा था, ''आपको मालूम है आप कुछ स्टोरी दिखाते हैं और कुछ फ़ेकनेस।'' 
एबीपी न्यूज़ अपनी एक रिपोर्ट में लिखता है, संगीत के एक शो के एंकर आदित्य नारायण ने बताया था कि शो के दो प्रतियोगी पवनदीप और अरुणिता को लेकर जो लव एंगल था, वो फ़र्ज़ी था। उसी तरह जैसे नेहा कक्कड़ से उनका झूठा प्यार दिखाया गया। हर शो में कोई न कोई ऐसी स्टोरी दिखाकर दर्शकों को भरमाया जाता है।
 
इंडियन आइडल पर जिस तरह से कई कंटेस्टेंट अच्छा बोलते हैं और सारे आरोपों को महज़ अफ़वाह बताते हैं, वैसे ही दूसरी तरफ़ जज व गेस्ट से लेकर पूर्व कंटेस्टेंट तक कहते दिखते हैं कि यहाँ ऑडीशन के समय अमानवीय व्यवहार होता है और भेदभाव किया जाता है, जजेस घड़ियाली आँसू बहाते हैं।
 
कौन बनेगा करोड़पति जैसे शो तक विवादों में घिर चुके हैं। अमिताभ बच्चन द्वारा होस्ट किए जाने वाले इस शो के ऊपर ये आरोप लगे हैं कि इस शो में प्रतियोगियों के बारे में संघर्ष की झूठी कहानियाँ दिखाई जाती हैं। ऐसा दर्शकों की सहानुभूति पाने और शो की टीआरपी बढ़ाने के लिए किया जाता है। ऑडियंस पोल में धांधली के आरोप भी इस शो पर लगे थे।
 
जागरण की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ कौन बनेगा करोड़पति के कई कंटेस्टेंट्स का कहना था कि केबीसी में उनकी पर्सनल लाइफ़ और प्रोब्लेम्स के बारे में बताने के लिए कहा जाता है।
 
एक वक़्त वो भी आया, जब कपिल शर्मा शो को लेकर टेलीविज़न शो की दुनिया का ऑडियंस व्यापार भी बाहर आ गया। कुछ रिपोर्टों के मुताबिक़ ऐसे शो के ऑडियंस का मुंबई में व्यापार होता है! एक ही चेहरे बहुत कुछ ध्यान में लें, तब बार बार किसी न किसी शो में दिख जाएँगे। इनके भी कॉन्ट्रैक्टर होते हैं! ऑडियंस का कॉन्ट्रैक्ट देकर शो वाले अपने प्री प्लांड स्क्रिप्ट को देखने लगते हैं। उधर कॉन्ट्रैक्टर किराए पर ऑडियंस ले आता है।
 
एक दावे के मुताबिक़ जैसे पूरा नहीं, किंतु बहुत कुछ हिस्सा रियलिटी शो में प्री स्क्रिप्टेड होता है, वैसे ही पूरा ऑडियंस नहीं किंतु कुछेक हिस्सा किराए वाला होता है। इन्हें भी रिहर्सल कराया जाता है, स्क्रिप्ट दी जाती है। तभी तो आपको किसी न किसी शो में कुछ फनी, शायरीबाज, कॉमेडी या ऐसे दूसरे विशेष दर्शक दिख जाएँगे।
 
कमाल है न? कमाल का मतलब यहाँ यह है कि जैसे राजनीति में पत्थर गैंग वाला दावा अनेकों बार सामने आता रहता है, वैसे यहाँ ऑडियंस किराए पर देने वाला शुद्ध व्यापारिक गैंग भी है। पत्थर गैँग क्या है यह पढ़ने के लिए राजनीतिक हिंसा से जुड़े पुराने लेख पढ़ लीजिएगा। यहाँ टेलीविज़न की दुनिया के लिए जो गैंग लफ्ज़ इस्तेमाल किया उसमें शुद्ध व्यापारिक लफ्ज़ भी है। यानी, ये बाज़ार है, व्यापार है। शादी में खाना परोसने वाले लोग किराए पर लाए जा सकते हैं, तो फिर ये लोग ऑडियंस तो ला ही सकते हैं। हमारे हिसाब से यह अर्थतंत्र है और ये सब तिकड़म लाज़मी है।
 
टाइम्स ऑफ़ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, रियलिटी शो में अपने पसंदीदा प्रतियोगी के लिए तख्तियाँ लेकर शोर मचाने, ताली बजाने और रोने वाले दर्शकों को भुगतान किया जाता है और उन्हें मुफ़्त भोजन मिलता है! इस रिपोर्ट के मुताबिक़ ऑडियंस के भीतर दर्शकों की कैटेगरी होती है! अच्छे दिखने वाले, ऊंचाई वाले, सेंस ऑफ़ ह्यूमर वाले वगैरह! इन शोर्ट, यहाँ ऑडियंस मॉडल, जूनियर कलाकार या भीड़ के रूप में वर्गीकृत किया जाता है!
सलमान ख़ान द्वारा होस्ट किए जाने वाले रियलिटी शो बिग बॉस पर आरोप हैं कि शो की टीआरपी बढ़ाने के लिए इसमें लव स्टोरी, झगड़े, गाली-गलौज का सहारा लिया जाता है। यदि कोई कंटेस्टेंट शो की टीआरपी बढ़ाने में सक्षम नहीं है, तो उसे शो से बाहर कर दिया जाता है। इसी तरह शो की टीआरपी बढ़ाने वाले कंटेस्टेंट को शो में फिर से बुला लिया जाता है। बिग बॉस अपनी कॉन्ट्रोवर्सी के चलते सक्सेस की तरफ़ पहुंचता रहता है। यहाँ स्क्रिप्ट और दूसरे विवाद जमकर होते रहे हैं। मेकर्स के इशारे पर टीवी सितारे लड़ाई करते हैं। इतना ही नहीं बिग बॉस के मेकर्स पर तो विनर फिक्स करने के भी आरोप लगते हैं!
 
इंडियाज़ गॉट टैलेंट शो पर भी आरोप लगे हैं कि इसमें वास्तविक प्रतिभाओं का समर्थन करने के बजाय दर्शकों को ख़ुश करने और पैसा बनाने के लिए योजना बनाई गई थी। यहाँ भी पूरी प्रक्रिया में टीआरपी ही आगे निकल जाता है। कंटेस्टेंट को बेचारा दिखाना, लोगों की ग़रीबी को भुनाना, जजों को ज़बरदस्ती रूलाना, यहाँ सारे टैलेंट के आरोप लगते रहे हैं।
 
एमटीवी स्प्लिट्सविला पर भी कहा जा चुका है कि इस शो में बड़े ही नाटकीय रूप के प्यार, दोस्ती, ब्रेकअप आदि को दिखाया जाता है और जानबूझकर भाषा में शालीनता नहीं रखी जाती है। यहाँ फ़ेक रिलेशन बनाना और शो ख़त्म होने के बाद रिलेशन टूट जाना, जैसी चीज़ें होती रहती हैं।
 
कंगना रनौत का रियलिटी शो अपने पहले ही सीज़न में बुरी तरह बदनाम हो गया। शो के दौरान आरोप लगाए गए कि लॉक अप को हिट करवाने के लिए मेकर्स ज़बरदस्ती सितारों के राज उगलवा रहे थे। रोहित शेट्टी के रियलिटी शो ख़तरों के खिलाड़ी पर भी स्क्रिप्टिंग के आरोप लग चुके हैं।
 
कुल मिलाकर, रियलिटी शो में हारने-जीतने, लड़ने-झगड़ने, रोने-हँसने के पीछे कुछ न कुछ दूसरे तत्व शामिल हो जाते हैं।
 
किंतु हमें यह समझ ज़रूर आना चाहिए कि मनोरंजन की दुनिया हमारे लिए मनोरंजन है, उनके लिए अर्थतंत्र। और अर्थतंत्र में आम लोगों की भावना का व्यापारिक इस्तेमाल करना बेसिक है। बिना भावना के, टेलीविज़न तथा उनके धारावाहिक या उनके शो, व्यापार कर नहीं सकते। अगर मुनाफ़ा ना हो तो ये शो बंद ही हो जाएँगे।
 
टेंशन भरी ज़िंदगी में लोगों को जो कुछ सुकून मिलता है वह टेलीविज़न के मनोरंजक शो से ही मिलता है। अरे भाई, पता है कि कभी कभी कुछ और भी मिल जाता है। शोले देखकर कोई गब्बर बनने का फ़ैसला कर ले तो उसमें फ़िल्म की क्या ग़लती है भाई? दरअसल, रिमोट भले हमारे हाथों में हो, किंतु हमारा रोना- हँसना- गुनगुनाना, सब कुछ उनके हाथों में होता है। हम अकेले हो या भीड़ में हो, बैठे हो या चल रहे हो, हमारी रगों में टेलीविज़न दौड़ता रहता है। बिना फीलिंग्स के जीना भी कोई जीना है? है न?
(इनसाइड इंडिया, एम वाला)