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Politics Fake News: झूठी ख़बरों की राजनीति... जब नेता और संगठन ही फ़ेसबुकिये-व्हाट्सएपिये बनकर काम करने लगे थे (पार्ट 2)


लास्ट अपडेट अक्टूबर 2019
 
फ़ेक न्यूज़, अविश्वसनीय दावे या भ्रमित करने वाली ख़बरों को लेकर बड़े से बड़े ग्रंथ लिखे जा सकते हैं। फ़ेक न्यूज़ क्यों फैलाए जाते हैं, कौन फैलाते हैं, कब फैलाते हैं, उससे क्या फ़ायदे या नुक़सान होते हैं, बहुत लंबा लिखा जा सकता है। "World of Fake News: फ़ेक ख़बरों का जंगल..." में हमने यह विस्तृत रूप से देखा। इस संस्करण में हम केवल उन फ़ेक ख़बरों की बात करेंगे, जो नेताओं, उनकी पार्टी या उनके संगठन के ज़रिए जाने-अनजाने में फैलाई गई और बाद में ख़बरों का गुब्बारा फूटा भी था। हम इस संस्करण के दूसरे हिस्से की तरफ़ आगे बढ़ते हैं।
 
सुब्रमण्यम स्वामी, जिनका प्रिय विषय है भविष्यवाणियाँ, सच साबित हो या झूठ इन्हें शायद परहेज़ नहीं
भाजपा के सांसद और जाने-माने नेता सुब्रमण्यम स्वामी वाक़ई ऐसे नेता हैं, जो कुछ हटकर हैं। भविष्णवाणियाँ करना इनका प्रिय विषय है। साथ ही इन्हें परहेज़ नहीं है कि ये सारी वाणियाँ सच साबित हो रही हैं या झूठ!
 
स्वामी की एक भविष्यवाणी बहुत प्रचलित रही। "एक डॉलर = एक रुपिया" वाली उनकी वाणी सच का तो छोड़ दीजिए, सच के क़रीब पहुंचने से भी बहुत दूर रही। अप्रैल 2012 में स्वामी ने यह महान भविष्यवाणी की थी, जो सच होने के बजाए चुटकुलों की प्रेरणा बनी रही। बाद में स्वामी ने अपना मूल ट्वीट हटा दिया था और ग़ज़ब जवाब देते हुए कहा था कि ऐसा हो सकता था यदि वह वित्त मंत्री बनते! स्वामी की कई बातें या कई भविष्यवाणियाँ आ चुकी हैं... और बिना किसी को बताए जा भी चुकी हैं!
 
स्वामी ने 18 सितंबर, 2015 के दिन द हिंदू में एक लेख लिखा था। इसका शीर्षक था The way out of the economic tailspin'। स्वामी ने लिखा था कि अर्थव्यवस्था एक बड़े संकट की ओर बढ़ रही है और 2016 की शुरुआत तक अर्थव्यवस्था क्रैश हो जाएगी। स्वामी ने लिखा था, "मैं आपको ये बताने को विवश हूँ कि अर्थव्यवस्था लड़खड़ाने ही वाली है। अगर सही कदम नहीं उठाए गए तो नवंबर से लेकर फ़रवरी 2016 के बीच एक बड़े क्रैश को टाला नहीं जा सकेगा।" वक़्त ख़ुद ही गवाह है कि उनकी यह भविष्यवाणी महज़ एक आधारहीन तर्क साबित हुई।
 
"कई कांग्रेसी जेल जाने वाले हैं" - इस दावे की हालत तो यह हुई कि आज़ाद हिंदुस्तान के सबसे बड़े घोटाले 2जी मामले में सभी आरोपी बाइज़्ज़त बरी हो गए! स्वामी बार बार 'किसी' के जेल जाने की डेडलाइन देते रहे। एक ऐसी डेडलाइन ख़त्म हो गई तो स्वामी का एक ट्वीट था, "कोन्गी कुटिल (अपराधी) के जेल जाने की प्रक्रिया 1 नवम्बर 2017 से शुरू होनी थी।" हालाँकि यह डेडलाइन तो निकल चुकी है, लेकिन अभी भी अगस्त 2018 की अंतिम तारीख़ के रूप में उम्मीद बची हुई है!
 
स्वामी को एक ऐसी तोप कहा जाता है, जिसकी नाल कब और कहाँ मुड़ती है, कोई नहीं जानता! वे अपनों को भी नहीं छोड़ते। अपनी ही सरकार के जीडीपी के आँकड़ों पर उन्होंने कहा था, "जीडीपी पर सीएसओ का डाटा बोगस है, जीएसटी का कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ेगा यह सरकार ने कहा है जो सही नहीं है।" राम मंदिर बनना अभी शुरू नहीं हुआ और धारा 370 को छुआ भी नहीं गया है। लेकिन इन दोनों मुद्दे पर भी स्वामी भविष्यवाणियाँ कर चुके हैं। स्वाभाविक है कि ये वाणियाँ भी अपनी आत्मा छोड़ ऊपर जा चुकी हैं। इन्होंने राम मंदिर निर्माण की अंतिम तारीख़ दे दी थी, जो कि बीत गई है। इसके बाद इन्होंने कहा था, "मोदी सरकार 2017 में यूनिफोर्म सिविल कोड लाएगी।" लेकिन नयी सूचना देश को यह मिली जब विधि आयोग के चेयरमैन ने कह दिया कि यूनिफोर्म सिविल कोड संभव नहीं है, यहाँ तक कि विकल्प के रूप में भी यह मान्य नहीं है।
 
इन्हें उम्मीद थी कि अगर 2014 के आम चुनावों में कांग्रेस को 70 से कम सीटें मिलीं, तो वह एनडीए के साथ जुड़ जाएगी और वाड्रा जेल चले जाएंगे! मार्च 1 2014 के दिन उनका ट्वीट था, जिसमें उन्होंने कांग्रेस की सीटें और एनडीए से जुड़ने वाली बात लिखी थी। फ़रवरी 11, 2014 को वाड्रा की भविष्यवाणी थी। अब इस वाणी के बारे में एक ही टिप्पणी की जा सकती है कि भारत में इस वाणी को किसने गंभीरता से लिया होगा?
 
धारा 370 को 2015 में ख़त्म कर दिया जाएगा, स्वामी ने यह एलान भी किया था। 2018 तक तो इस धारा को छुआ भी नहीं गया है। उनकी चुनावी भविष्यवाणियाँ भी ग़लत साबित हो गई, जब दिल्ली ने किरण बेदी को हरा दिया और पंजाब ने अकाली-बीजेपी गठबंधन को धूल चटाई। "2018 तक स्मार्ट सिटीज़ वास्तव में बन जाएगी", "हमें दिवाली तक राम मंदिर मिल जाएगा", "2018 के अंत तक सोनिया गांधी और राहुल गांधी जेल के पीछे होंगे", "आर्थिक मोर्चे पर भारत चीन को पछाड़ देगा"... ये उनकी नई भविष्यवाणियाँ हैं, जो उसी पुरानी गलियों में जाने के इंतज़ार में हैं।
 
सी-प्लेन की सवारी का दावा, जो आख़िरकार झूठा साबित हुआ
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अहमदाबाद से मेहसाणा तक सी-प्लेन सवारी को भारत में उड़ने वाला अब तक का पहला सी-प्लेन बताया गया था! यह दावा पीएम मोदी की व्यक्तिगत वेबसाइट पर किया गया था, और इसे बीजेपी पदाधिकारियों और मुख्यधारा के मीडिया घरानों द्वारा दोहराया गया था! हालाँकि यह दावा झूठा साबित हुआ, जब पता लगा कि वर्ष 2010 में अंडमान-निकोबार प्रायद्धीप में सी-प्लेन सबसे पहले उपयोग किया गया था।
 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वेबसाइट नरेंद्रमोदी.इन पर 12 दिसंबर 2017 को प्रकाशित एक स्टोरी का आकर्षक शीर्षक था- पीएम मोदी भारत के पहले सी-प्लेन के पहले यात्री बने! वेबसाइट के इस लेख में अहमदाबाद में साबरमती नदी से मेहसाणा के धरोई बांध तक पीएम की सी-प्ले‍न यात्रा का ज़िक्र किया गया था और इसे गुजरात में दूसरे चरण के मतदान से पहले उनके अभियान का हिस्सा बनाया गया था। इस दावे को बीजेपी के आधिकारिक ट्विटर अकाउंट और भाजपा नेताओं और पदाधिकारियों की तरफ़ से बार बार दोहराया गया।
 
ग़ज़ब यह था कि भारत में पहला सी प्लेन वर्ष 2010 में चला था यह जानकारी सार्वजनिक थी, और फिर भी चुनिंदा न्यूज़ चैनलों और चुनिंदा न्यूज़ पेपरों ने इस ख़बर को ख़ारिज नहीं किया, बल्कि उसी रूप में एक साहसी और अनोखे कदम के रूप में पेश किया! मीडिया तो इस ख़बर को भारतीय जलमार्ग की क्रांति के रूप में पेश करने लगा! और फिर प्रधानमंत्री मोदी के साइट पर इस स्टोरी का शीर्षक बदल गया! पहले सी प्लेन के पहले यात्री, यह हिस्सा वहाँ से ग़ायब हो गया!
 
सी प्लेन कब चला था यह जानकारी सार्वजनिक थी और इसीके आधार पर ऑल्ट न्यूज़ ने तथ्यों के साथ रिपोर्ट पेश किया और लिखा, "सबसे पहली व्यावसायिक सी प्लेन सेवा भारत में वर्ष 2010 में शुरू की गई थी। सार्वजनिक क्षेत्र की हेलीकॉप्टर कंपनी पवन हंस और अंडमान-निकोबार प्रायद्वीप के प्रशासन द्वारा संयुक्त रूप से संचालित इस सेवा, जल हंस का उद्घाटन दिसंबर 2010 में हुआ था।"

 
ये बात और है कि जल हंस सेवा उसके बाद रुक गई थी। 2010 के बाद केरल सरकार द्वारा जून 2013 में सी प्लेन सेवा शुरू की गई थी। केरल टूरिज्म इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड द्वारा प्रवर्तित सेवा केरल सी प्लेन की घोषणा राज्य के जलमार्गों को जोड़ने के लिए की गई थी। हालाँकि स्थानीय मछुआरा समुदाय द्वारा विरोध किए जाने के कारण यह परियोजना लंबी नहीं चली।
 
भारत में सी प्लेन सेवा शुरू करने की कोशिश सिर्फ़ सरकारों तक सीमित नहीं थी। निजी कंपनियों ने वर्ष 2011-12 में ही सी प्लेन सेवाओं की घोषणा की थी। वर्ष 2012 में सीबर्ड सी प्लेन प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बनाई गई और इसने केरल और लक्षद्वीप में सेवा शुरू करने की घोषणा की। एक अन्य  कंपनी मीहैर ने वर्ष 2011 में अंडमान-निकोबार प्रायद्वीप में सेवा शुरू की और बाद में इसे महाराष्ट्र और गोवा तक विस्तारित किया। हालाँकि इन निजी कंपनियों ने व्यावसायिक रूप से फ़ायदा न होने और सरकारी मंजूरी की समस्याओं के चलते इनका परिचालन बंद कर दिया था।
 
9 दिसंबर 2017 को स्पाइसजेट ने मुंबई के गिरगाँव चौपाटी में समुद्री परीक्षण किए थे, जहाँ केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और अशोक गजपति राजू उपस्थित थे। गडकरी द्वारा इस्तेमाल किए गए एयरक्राफ़्ट का ही इस्तेमाल प्रधानमंत्री मोदी की अहमदाबाद से मेहसाणा तक यात्रा के लिए किया गया था। ऑल्ट न्यूज़ के रिपोर्ट की माने तो दोनों प्लेन के रजिस्ट्रेशन नंबर N181KQ द्वारा इसकी पुष्टि की जा सकती थी। दिलचस्प बात यह थी कि जब ऑल्ट न्यूज़ ने एयरक्राफ़्ट का फ़्लाइट पाथ देखा तो पता लगा कि यह प्लेन 3 दिसंबर 2017 को कराची, पाकिस्ता़न से मुंबई आया था! पिछले 90 दिनों में, क्वेस्ट कोडिएक का यह सिंगल इंजन एयरक्राफ़्ट ग्रीस से लेकर सऊदी अरब और न्यू‍ज़ीलैंड तक पूरी दुनिया में सफ़र कर चुका था।
 
गुजरात चुनावों को ध्यान में रखकर की गई पीएम मोदी की सी प्लेन यात्रा को प्रधानमंत्री के वेबसाइट द्वारा देश की अब तक की पहली सी प्लेन यात्रा कहकर प्रचारित किया गया और इसे कई समाचार संस्थानों ने दोहराया! जबकि ऐसा नहीं था, और न ही प्रधानमंत्री सी प्लेन में यात्रा करने वाले पहले भारतीय थे। पहले इस बात को फैलाया गया और फिर बाद में पीएम मोदी के वेबसाइट से इसे चुपचाप हटा लिया गया!!! बाद में पीएम के वेबसाइट ने इस ख़बर का शीर्षक भी बदल दिया!
 
सांसद किरण खेर ने रूसी सेना के जवानों को भारतीय सैनिक बताते हुए फ़ोटो पोस्ट किया
बीजेपी सांसद किरण खेर ने अपने ट्विटर अकाउंट पर बेहद ठंडे मौसम का बहादुरी से सामना करते सैनिकों की एक फ़ोटो पोस्ट की, यह कहते हुए कि यह फ़ोटो सियाचिन में तैनात भारतीय सेना के जवानों की फ़ोटो है।
 
यह फ़ोटो सोशल मीडिया पर लंबे समय तक वायरल रहा। लेकिन बाद में साफ़ हो गया कि ये भारतीय सैनिकों की नहीं, बल्कि रूसी सेना के जवानों की तस्वीर थी!
 
सांसद की परेश मेस्ता और हिंदू लड़की से दुष्कर्म की स्टोरी, जो आख़िरकार झूठ निकली, नेशनल मीडिया हाउस तक ने बगैर जाँचे इस दावे को ट्वीट में दोहरा दिया था
उडुपी-चिकमंगलूर की बीजेपी सांसद, शोभा करंदलाजे ने आरोप लगाया कि परेश मेस्ता को क्रूरतापूर्वक यातना देकर जिहादी तत्वों ने मार डाला। ज्ञात हो कि परेश मेस्ता का शव राज्य के उत्तर कन्नड़ ज़िले में होनावर शहर की एक झील में पाया गया था। उनकी बात को राष्ट्रीय स्तर के मीडिया हाउस द्वारा एक ट्वीट में दोहराया गया।
 
हालाँकि तुरंत ही कर्नाटक पुलिस द्वारा जारी की गई फोरेंसिक रिपोर्ट के विवरणों से इस दावे की सच्चाई सामने आई, जिसमें बताया गया था कि कोई यातना नहीं दी गई थी।
 
दूसरी घटना में, शोभा करंदलाजे ने दावा किया था कि जिहादियों ने होनावर में एक हिंदू लड़की से दुष्कर्म करने का और उसकी हत्या करने का प्रयास किया। यह दावा भी झूठा साबित हुआ जब पुलिस ने बताया कि ऐसी कोई घटना नहीं हुई थी। करंदलाजे पर विभिन्न समूहों के बीच द्वेष पैदा करने के लिए मामला दर्ज किया गया।
 
जब लालू पुत्र ने फ़र्ज़ी चुनाव अधिकारी के नाम वाला फ़र्ज़ी पत्र ट्विटर पर पोस्ट कर दिया
राजद नेता और राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद के बेटे तेजस्वी यादव ने एक पत्र ट्विटर पर पोस्ट् किया था, जिसे चुनाव आयोग के अधिकारी का पत्र बताया गया था। इस पत्र में आरोप लगाया गया कि टेलीकॉम कंपनियों की मदद से बड़े पैमाने पर ईवीएम मशीनों से छेड़छाड़ की जा रही है।
 
बाद में पता चला कि यह पत्र झूठा है, क्योंकि राज्यों के चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया कि उसे ऐसा कोई पत्र प्राप्त नहीं हुआ है। इतना ही नहीं, पत्र में उल्लेखित नाम का कोई चुनाव अधिकारी ही नहीं था!
 
बीजेपी आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने नेहरू की अपनी बहन के साथ स्नेहभरी तस्वीरों को कुछ दूसरे द्दष्टिकोण से पेश किया, बताया था अज्ञात महिला
बीजेपी आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय झूठी ख़बरें फैलाने वाले सामान्य दोषी व्यक्ति माने जा सकते हैं। उन्होंने अपने ट्विटर खाते से पंडित जवाहरलाल नेहरू की कुछ फ़ोटो का कोलाज़ अपलोड किया, जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री नेहरू को अलग-अलग महिलाओं के साथ दिखाया गया था। मालवीय ने दावा किया कि यह हार्दिक पटेल का डीएनए है। मालवीय ने इस कोलाज़ को गुजरात चुनावों के दौरान जारी की गई पाटीदार नेता हार्दिक पटेल की सीडी से जोड़ा।
 
लाज़िमी था कि नेहरू की छवि ख़राब करने के मक़सद से यह फ़ोटो कोलाज़ अपलोड किया गया होगा। नेहरू के साथ तस्वीरों में जो महिलाएँ थीं, उन्हें 'अज्ञात महिला' के रूप में दर्शाया गया था। अमित मालवीय फ़ेक ख़बरें बनाने के चक्कर से बाहर आकर थोड़ा सा ज्ञान अर्जित कर लेते. तो वे अपनी ही जगहंसाई करवाने से बच जाते।
 
दरअसल, मालवीय जिन्हें अज्ञात महिला के रूप में दिखा रहे थे, वह कोई और नहीं बल्कि पंडित नेहरू की अपनी बहन विजयलक्ष्मी पंडित थीं! जो दूसरी महिला थीं वह नेहरूजी की भांजी नयनतारा सहगल थीं। पारिवारिक रिश्तों की स्नेहभरी तस्वीरों को मालवीय ने इस तरह से पेश किया कि अंत में इज़्ज़त तो मालवीय की अपनी ही गिर गई।
 
बीजेपी आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने शरारतपूर्ण तरीक़े से एडिट की हुई वीडियो क्लिप साझा करके रवीश कुमार की छवि ख़राब करने की कोशिश की
अमित मालवीय फिर से अपने पुराने काम में जुटे थे। इस बार उन्होंने एनडीटीवी के पत्रकार रवीश कुमार के एक भाषण का एडिट किया हुआ वीडियो क्लिप पोस्ट किया, ताकि ऐसा लगे जैसे कि रवीश कुमार किसी राजनीतिक पार्टी की ओर से बोल रहे हैं, और जिससे रवीश कुमार की निष्पक्षता पर सवाल खड़े किए जा सकें।
 
अमित मालवीय ने जो एडिटेड वीडियो क्लिप साझा किया उसमें रवीश कुमार बोल रहे थे, "मैं अपनी पार्टी के लोगों से कहता हूँ।" दरअसल यह रवीश कुमार ने ज़रूर बोला था, किंतु वो 10 मिनट के एक भाषण का मात्र एक हिस्सा था, जो उन्होंने प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया में दिया था। रवीश कुमार यहाँ किसी राजनीतिक पार्टी का उल्लेख नहीं कर रहे थे। लेकिन शायद अमित मालवीय के लिए इस तथ्य का कोई मतलब नहीं था
 
नेता और वकीलों ने चंडीगढ़ में पीछा करने की घटना का सामना करने वाली लड़की को शर्मिंदा करने के लिए पुरानी असंबंधित फ़ोटो इस्तेमाल कीं
बीजेपी नेता शाइना एनसी और सुप्रीम कोर्ट के वकील उन लोगों में शामिल थे, जिन्होंने चंड़ीगढ़ में एक लड़की का पीछा करने की घटना के बाद सोशल मीडिया में एक फ़ोटो प्रचारित की थी। इस घटना में हरियाणा बीजेपी प्रमुख का बेटा आरोपी था।
 
फ़ोटो प्रचारित कर दावा किया गया कि इस घटना का सामना करने वाली लड़की ने आरोपी विकास बराला के साथ फ़ोटो खिंचवाई थी। उस घटना का सामना करने वाली लड़की को शर्मिंदा करने का नैरेटिव इसलिए तैयार किया गया, ताकि लड़की की तरफ़ उंगली उठ जाए और यह वातावरण बनाया जाए कि उस लड़की ने झूठी शिकायत दर्ज कराई है। किंतु तुरंत स्पष्ट हो गया कि बीजेपी नेता और वकीलों ने जिस फ़ोटो को प्रचारित किया था, उसमें दिख रहा लड़का विकास बराला था ही नहीं!
 
भारत की आर्थिक असमानता पर राहुल गांधी का गुमराह करने वाला दावा
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने असमानता पर हुए एक सर्वेक्षण के नतीजे ट्वीट करते हुए जनवरी 2018 के दौरान सरकार और प्रधानमंत्री पर हमला बोला। इस सर्वेक्षण में देश के भीतर संपन्नता के वितरण पर भारत को ख़राब स्थिति में दिखाया गया था। राहुल गांधी ने ट्वीट किया, "प्रिय प्रधानमंत्री, स्विट्जरलैंड में आपका स्वागत है! कृपया दावोस को बताएं कि भारत की 1% प्रतिशत आबादी के पास इसकी सम्पति का 73% प्रतिशत क्यों है?" कांग्रेस अध्यक्ष का यह ट्वीट ऐसे समय में आया, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 23 जनवरी 2018 को दावोस में विश्व आर्थिक मंच के पूर्ण अधिवेशन को संबोधित कर रहे थे।
 
राहुल गांधी ने ऑक्सफेम की रिपोर्ट का हवाला दिया था, जो कि 14 संगठनों का एक महासंघ है, जो सामाजिक-आर्थिक मुद्दों पर मिल-जुलकर काम करते हैं। इस रिपोर्ट का प्रकाशन स्विटजरलैंड के दावोस में होने वाले विश्व आर्थिक मंच के आयोजन से ठीक पहले किया गया था। ऑक्सफेम की रिपोर्ट वैश्विक सम्पति रिपोर्ट 2017 पर आधारित थी, जिसे एक स्विस वित्तीय सेवा कंपनी क्रेडिट स्विस द्वारा प्रत्येक वर्ष जारी किया जाता है।

 
तो सच्चाई क्या थी? क्या भारत के 1 फ़ीसदी सर्वाधिक संपन्न लोगों को देश की कुल सम्पति का 73 फ़ीसदी हिस्सा मिला था, जैसा कि राहुल गांधी ने दावा किया था?
 
ऑक्सफेम की रिपोर्ट में ज़िक्र किया गया था कि वर्ष 2017 में भारत में निर्मित कुल सम्पति में से, 73 फ़ीसदी संपत्ति सर्वाधिक संपन्न 1 फ़ीसदी लोगों द्वारा प्राप्त की गई। हालाँकि ऑक्सफेम ने ज़िक्र किया था कि इसकी रिपोर्ट क्रेडिट स्विस की वैश्विक सम्पति रिपोर्ट 2017 पर आधारित है। इस संस्था की गणना करने की अपनी ख़ुद की पद्धति है, जिसके आधार पर संभवतः यह आँकड़ा हासिल हुआ था।
 
हालाँकि राहुल गांधी अपने ट्वीट में ऑक्सफेम रिपोर्ट का उल्लेख कर रहे थे, लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया कि इस रिपोर्ट में उद्धृत आँकड़े वर्ष 2017 से संबंधित हैं और ये भारत में कुल सम्पति के सामान्य वितरण को व्यक्त नहीं करते हैं! राष्ट्रीय पार्टी के अध्यक्ष सरीखे शख़्स ने अपने ट्वीट को आधा-अधूरा क्यों रखा, ये सवाल उठने ज़ायज़ थे।
 
टूजी का फ़ैसला देने वाले जज ओपी सैनी को कांग्रेस विधायक अंगद सिंह सैनी के पिता के तौर पर दिखा दिया गया
"टूजी में भ्रष्टाचारियों को छोड़ने वाले माननीय जज साहब ओपी सैनी कांग्रेस के पंजाब से सबसे युवा विधायक अंगद सिंह सैनी के पिता भी हैं।" - सोशल मीडिया पर इस संदेश के साथ एक व्हाट्सएप मैसेज वायरल हो रहा था। दावा किया जा रहा था कि टूजी घोटाले में निर्णय सुनाने वाले जज, जिन्होंने ए. राजा, कनिमोझी और अन्य आरोपियों को बरी किया, वह पंजाब के कांग्रेसी एमएलए अंगद सिंह सैनी के पिता हैं।
 
आरएसएस विचारक रतन शारदा ने भी अपने ट्विटर अकाउंट से ऐसा ही एक ट्वीट किया था, "ओम प्रकाश सैनी, अंगद सिंह सैनी के पिता हैं, जो पंजाब (नवाँशहर) से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सबसे युवा विधायक हैं।" हालाँकि जब उन्हें पता चला कि वह सूचना जो उन्हें विश्वसनीय सूत्र से मिली है, वास्तव में व्हाट्सएप पर फॉरवर्ड किया गया संदेश है, तो बाद में उन्होंने इसे डिलीट कर दिया। रतन शारदा के ट्वीट को बीजेपी प्रवक्ता संजू वर्मा ने भी रीट्वीट किया था।
 
गूगल पर की गई एक आसान खोज से स्पष्ट हो जाता था कि यह और कुछ नहीं बल्कि ग़लत सूचना फैलाने का एक और अभियान था। दरअसल, अंगद सिंह के पिता का नाम प्रकाश सिंह सैनी था, ओम प्रकाश सैनी नहीं। वह ख़ुद एमएलए थे, किंतु 17 नवंबर 2010 को दिल्ली में उनका देहांत हो गया था। ट्रिब्यून में छपी एक रिपोर्ट बताती थी कि परिवार के पास श्रद्धांजलि व्यक्त करने वाले प्रमुख कांग्रेसी नेताओं में मौजूदा मुख्यमंत्री अमरिन्दर सिंह भी शामिल थे।
 
जज ओपी सैनी पर अनाप-शनाप और झूठी पोस्ट की बारिश हुई
अंग्रेज़ी में तो एक न्यूज़ वायरल की गई थी। दावा किया गया था कि टूजी मामले में जितने भी आरोपी मुक्त किए गए हैं, उन सब मामलों में एक ही जज ओपी सैनी हैं। वायरल मैसेज में लिखा था, "कैसा संयोग है, 21 दिसंबर 2017: जज ओपी सैनी ने कनिमोझी और ए राजा को टूजी घोटाले में सभी आरोपों से मुक्त किया। 2 फ़रवरी 2017: जज ओपी सैनी ने मारन बंधुओं को टूजी घोटाले में सभी आरोपों से मुक्त किया। 5 फ़रवरी 2012: जज ओपी सैनी ने चिदंबरम को टूजी घोटाले में सभी आरोपों से मुक्त किया। संयोग? ओम प्रकाश सैनी, अंगद सिंह सैनी के पिता हैं, जो पंजाब (नवाँशहर) से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का सबसे युवा विधायक है। #2GScamVerdict"
 
यहाँ भी ओपी सैनी के पिता को लेकर वही झूठा दावा था, जो ऊपर हमने विस्तार से देखा। उसे छोड़ इस आरोप पर गौर करते हैं, जिसमें कहा गया था कि सब मामलों में एक ही जज ओपी सैनी हैं। बकौल ऑल्ट न्यूज़, इस नये आरोप को रेखांकित करने वाले शुरुआती लोगों में श्रीराम नाम का एक व्यक्ति भी था, जिसे ट्विटर पर प्रधानमंत्री मोदी फ़ॉलो करते थे। श्रीराम के इस ट्वीट को 1600 बार रीट्वीट किया गया था।
 
इस नये आरोप के संबंध में तुरंत ही गूगल पर कुछ बुनियादी खोजबीन से पता चल गया कि इस मामले के लिए ओपी सैनी को चुना गया था, और इसलिए एक ही जज द्वारा सभी फ़ैसले सुनाया जाना कोई संयोग नहीं था, बल्कि हर मामलों में होती है वही प्रक्रिया थी।
 

12 नवंबर, 2011 के दिन इंडिया टुडे में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, "जस्टिस जीएस सिंघवी और एके गांगुली की सुप्रीम कोर्ट बेंच ने इस केस पर विचार करने के लिए सरकार से एक विशेष कोर्ट स्थापित करने के लिए कहा था। इसके बाद इस बेंच ने सैनी को ख़ास तौर पर टूजी मुकदमे पर विचार करने के लिए ज़िम्मेदारी दी थी।"
 
इस रिपोर्ट में जानकारी यह भी थी कि, "नामित सीबीआई जज सैनी ने उस समय तक कॉमनवेल्थ गेम्स से जुड़े मामलों की सुनवाई की थी और सुरेश कलमाड़ी के सहयोगी ललित भनोट, वीके वर्मा, केयूके रेड्डी, प्रवीण बख्शी और देवरुखर शेखर को जेल भेज चुके थे। उन्होंने भ्रष्टाचार के एक मामले में नाल्कोम के चेयरमैन एके श्रीवास्तव को भी बेल देने से मना कर दिया था। टूजी घोटाले से पहले सैनी के पास सबसे बड़ा मामला लाल किला शूटआउट का आया था, जिसमें उन्होंने मुख्य आरोपी मोहम्मद आरिफ को मौत की सज़ा सुनाई थी और छह अन्य लोगों को उम्रक़ैद की सज़ा दी थी।"
 
अपने पक्ष में कोई फ़ैसला न आने पर ग़लत सूचना का सहारा लेकर न्यायिक प्रणाली के सदस्यों के बारे में सवाल खड़े करने की यह चाल कोई नई बात नहीं है। हाल ही में जस्टिस अर्जुन कुमार सीकरी, जिन्होंने दिवाली के दौरान दिल्ली में पटाखों की बिक्री प्रतिबंधित करने का फ़ैसला सुनाया था, उन्हें भी ग़लत सूचना अभियान का सामना करना पड़ा था। होली के मौक़े पर कांग्रेसी नेता केपी सिंह देव द्वारा सोनिया गांधी के चेहरे पर गुलाल लगाने वाली फ़ोटो को यह कहकर प्रचारित किया गया कि स्वयं जस्टिस सीकरी इसमें गुलाल लगा रहे हैं। इस फ़र्ज़ी दावे का गुब्बारा भी ज़ल्द फूट गया था।
 
व्यापमं व्हिसल ब्लोअर आनंद राय ने स्मृति ईरानी के बारे में शर्मनाक और झूठी ख़बर फैलाई, डॉ. राय इससे पहले भी नकली ख़बरें फैला चुके थें
स्वयं को गुरु मानने वाले और आध्यात्मिक विश्वविद्यालय के बाबा वीरेंद्र देव दीक्षित इन दिनों नाबालिग और महिलाओं के साथ यौन शोषण की वजह से समाचार में थे। इसी दौर में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी की बाबा दीक्षित से आशीर्वाद लेते हुए दावा करने वाली तस्वीर वायरल हुई।
 
डॉ. आनंद राय, जिनका व्यापमं घोटाले को उजागर करने में बड़ा ही अहम रोल था, ने तस्वीर को ट्वीट करते हुए एक सांकेतिक शीर्षक के साथ लिखा - "इन्हें भी कोई देख लें। आदर्श सरकार की आदर्श मंत्री दिल्ली की आध्यात्मिक यौन यूनिवर्सिटी के बलात्कारी बाबा वीरेन्द्र देव दीक्षित के आश्रम में प्रसाद लेने गयी थीं स्मृति ईरानी।" इस अपमानजनक आरोप में शब्द प्रसाद को कोट कर ट्वीट की ओर ध्यान खींचने की कोशिश की गई थी।
 
दरअसल, राय का आरोप सिर्फ़ अपमानजनक ही नहीं था, बल्कि पूरी तरह से झूठा भी था। वैसे कुछ भाजपा नेताओं के कई पुराने फ़ोटोग्राफ ऐसे गुरुओं के साथ हैं, जो अब क़ानून के अनुसार आरोपी या अपराधी हैं, जैसे कि आशाराम, बाबा राम रहीम, राधे माँ इत्यादि। लेकिन कम से कम यह दावा पूरी तरह झूठा निकला।
 
मूल रूप से यह तस्वीर इंडिया टुडे द्वारा वर्ष 2014 में प्रकाशित की गई थी, जब स्मृति ईरानी ने राजस्थान के प्रख्यात ज्योतिष पंडित नाथूलाल व्यास से मुलाकात की थी। राय ने उस पुरानी तस्वीर को शेयर करते हुए स्मृति ईरानी के बारे में शर्मनाक ख़बर फैला दी थी।
 
यह पहली बार नहीं था जब डॉ. राय के द्वारा नकली ख़बर फैलाई गई हो। इससे पहले भी एक बार योगी आदित्यनाथ द्वारा गोमूत्र पीते हुए फ़ोटोशॉप्ड तस्वीर लेकर उन्होंने कैप्शन के साथ ट्वीट किया था, जिसे बाद में डिलीट किया गया। जून 2017 में उन्होंने जम्मू-कश्मीर में सीआरपीएफ द्वारा मारे गए एक आतंकवादी की तस्वीर को ये कहते हुए ट्वीट किया कि ये मंदसौर के किसान का जवान बेटा है जिसे सरकार ने गोलियों से भून डाला।
 
राय ने यह भी दावा किया था कि अभिशस्त डेरा प्रमुख बाबा राम रहीम को जिस हेलीकॉप्टर में ले जाया गया, वो गौतम अडानी का था। हेलीकॉप्टर वाला यह दावा ऑल्ट न्यूज़ ने झूठा साबित किया था। अगस्त 2017 में डॉ. राय द्वारा दिलीप कुमार के मरने की ख़बर को फैलाया गया था, जो तुरंत ही हटा दिया जब उन्हें बताया गया कि ये झूठी ख़बर है।
 
बेशक राय ने व्यापमं घोटाले को उजागर करने में बहुत ही शानदार काम किया, लेकिन ऐसा ऑनलाइन व्यवहार उनकी विश्वसनीयता को नुक़सान पहुंचा गया।
 
पीएम मोदी का दावोस भाषण विदेश मंत्रालय के वेबसाइट पर बदल गया!
ऑल्ट.न्यूज़ ने इस विषय पर एक विस्तृत रिपोर्ट छापी थी। ऑल्ट.न्यूज़ की रिपोर्ट के अनुसार, जनवरी 2018 के दौरान दावोस, स्विटजरलैंड में विश्व आर्थिक मंच के पूर्ण अधिवेशन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाषण दिया था। पीएम मोदी ने अपने भाषण में साइबर सुरक्षा, परमाणु सुरक्षा, आतंकवाद, ग्लोबल वार्मिंग आदि मुद्दों को उठाया था। विदेश मंत्रालय के वेबसाइट पर एक सेक्शन मीडिया सेंटर है। इसके सबसेक्शन 'भाषण और बयान' में विदेश मंत्रालय द्वारा प्रधानमंत्री, विदेश मंत्री, विदेश सचिव आदि के सभी भाषण, बयान और मूल वक्तव्य अपलोड किए जाते हैं।
 
दावोस में पीएम द्वारा भाषण समाप्त करने के कुछ ही समय बाद वेबसाइट पर प्रधानमंत्री का भाषण अपलोड कर दिया गया था। ऑल्ट न्यूज़ के मुताबिक़, पीएम मोदी का दावोस भाषण और विदेश मंत्रालय के वेबसाइट पर छपे भाषण में बड़ा अंतर था! पीएम मोदी ने अपने संबोधन के अनेक हिस्से आश्चर्यजनक रूप से इस दस्तावेज़ में नहीं थे! ऑल्ट न्यूज़ का विस्तृत विवरण निम्न प्रकार से था।
 
1. "आज डाटा सबसे बड़ी संपदा है। डाटा के ग्लोबल फ्लो से सबसे बड़े अवसर बन रहे हैं और सबसे बड़ी चुनौतियाँ भी।"
इस भाषण के आधिकारिक पाठ में डाटा और डाटा के वैश्विक प्रवाह का कोई उल्लेख नहीं था। पीएम के भाषण का यह हिस्सा दस्तावेज़ से पूरी तरह ग़ायब था।
 
2. "आतंकवाद एक बड़ा ख़तरा है लेकिन इससे भी बड़ा ख़तरा तब पैदा होता है जब आप अच्छा आतंकवाद और बुरा आतंकवाद जैसी परिभाषाएँ देते हैं।"
प्रधानमंत्री के मूल वक्तव्य संबोधन के बारे में विदेश मंत्रालय के दस्तावेज़ में यह हिस्सा भी ग़ायब था। प्रकाशित हिस्से में, आतंकवाद इसके सभी रूपों और आयामों में बुरा होता है, यह लिखा हुआ था। अच्छा आतंकवाद और बुरा आतंकवाद, यह परिभाषा ग़ायब थी।
 
3. "साइबर सुरक्षा और परमाणु सुरक्षा सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं।"
विदेश मंत्रालय के दस्तावेज़ में परमाणु सुरक्षा या साइबर सुरक्षा का कोई उल्लेवख नहीं था। यह हिस्सा भी भाषण के पाठ से पूरी तरह ग़ायब था।
 
4. "भारत में डेमोक्रेसी, डेमोग्राफ़ी और डाइनेमिज्म मिलकर डेवलपमेंट और डेस्टिनी को आकार दे रहे हैं।"
समिट में अनुप्रास अलंकार का उपयोग पीएम मोदी के भाषण में बखूबी देखा जा सकता था, लेकिन भाषण के आधिकारिक दस्तावेज़ में यह नहीं था।
 
5. "जलवायु परिवर्तन फ़िलहाल एक बड़ा ख़तरा है। आर्कटिक में बर्फ पिघ़ल रही है; कई द्वीप डूब रहे हैं या डूबने वाले हैं।"
प्रधानमंत्री के इस उद्धरण का कोई संदर्भ आधिकारिक टेक्स्ट में नहीं था। आर्कटिक का कोई ज़िक्र नहीं था। हालाँकि जलवायु परिवर्तन का ज़िक्र था, लेकिन आर्कटिक, बर्फ पिघ़लना, द्वीप का डूबना, जैसी भाषण के शब्द यहाँ संग्रहित नहीं थे।
 
6. "आवश्यकता के अनुसार चीजों के उपयोग के बारे में महात्मा गाँधी का ट्रस्टीशिप का सिद्धांत महत्वपूर्ण है। वह किसी के लालच के लिए किसी भी चीज़ के उपयोग के ख़िलाफ़ थे। आज हम अपने लालच के लिए प्रकृति का दोहन कर रहे हैं। हमें ख़ुद से पूछना होगा कि क्या यह प्रगति है या प्रतिगमन है।"
जबकि आधिकारिक टेक्स्ट में महात्मा गाँधी और ट्रस्टीशिप पर उनके दर्शन का कोई संदर्भ नहीं था। इसे अलग तरह से कहा गया था और दर्ज किया गया था, जो प्रधानमंत्री के उस भाषण की मूल बातों से मेल नहीं खाता था।
 
7. "कई समाज और देश आत्मकेंद्रित बनते जा रहे हैं। ऐसा लगता है कि वैश्वीकरण अपनी परिभाषा के उलट संकुचित हो रहा है। ऐसी ग़लत प्राथमिकताओं को किसी भी प्रकार से आतंकवाद या जलवायु परिवर्तन से कम बड़ा ख़तरा नहीं माना जा सकता है। हमें मानना चाहिए कि वैश्वीकरण की चमक फीकी पड़ रही है।"
समिट में वैश्वीकरण पर पीएम मोदी की यह बात आधिकारिक पाठ से ग़ायब थी। असल में, इसमें वैश्वीकरण शब्द का कहीं ज़िक्र नहीं था।
 
8. "पिछली बार कोई भारतीय प्रधानमंत्री दावोस में 1997 में आया था, जब देवगौड़ाजी आए थे। उस समय हमारी जीडीपी 400 बिलियन डॉलर से कुछ ही अधिक थी, अब यह छह गुना अधिक हो गई है।"
दर्ज किए गए दस्तावेज़ में भूतपूर्व प्रधानमंत्री देवगौड़ा का उल्लेख कहीं नहीं था, और न ही भारत की बढ़ती जीडीपी का कहीं उल्लेख था।
 
9. "30 वर्ष के बाद 2014 में 600 करोड़ भारतीयों ने केंद्र में सरकार बनाने के लिए किसी राजनीतिक पार्टी को संपूर्ण बहुमत दिया है।"
भाषण वाले दिन सोशल मीडिया पर पीएम मोदी की यह बड़ी ग़लती चर्चा का विषय बनी थी। और उम्मीद के मुताबिक़ इस बड़ी ग़लती को आधिकारिक पाठ से निकाल दिया गया था।
 
10. "1997 में चिड़िया ट्वीट करती थी, अब मनुष्य  करते हैं, तब अगर आप एमेजॉन इंटरनेट पर डालते तो नदियों और जंगल की तस्‍वीर आती।"
पीएम मोदी मनोरंजक प्रभाव डालने के लिए शब्दों से खेलने की अपनी विशेषता का उपयोग कर रहे थे। इसकी तुलना में आधिकारिक पाठ नीरस था और उसमें भाषण का यह वाला हिस्सा नहीं था।
 
दिलचस्प बात यह थी कि प्रधानमंत्री की व्यक्तिगत वेबसाइट नरेन्द्रमोदी.इन पर दावोस के उनके भाषण को शब्दश: प्रकाशित किया गया था। लेकिन सवाल यह उठा कि विदेश मंत्रालय ने मूल भाषण को प्रकाशित क्यों  नहीं किया?
 
फोरम के पूर्ण अधिवेशन में प्रधानमंत्री ने जो कहा, उसमें और विदेश मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत भाषण के आधिकारिक संस्करण में भारी असंगतता एकदम साफ़ दिखती थी! किसी अंतर्राष्ट्रीय मंच पर प्रधानमंत्री का भाषण रिकॉर्ड (संग्रहित और सूचीबद्ध करना) का विषय है। सवाल उठा कि स्वयं मंत्रालय ने पूरा रिकॉर्ड क्यों नहीं रखा था? एक दावा यह भी सामने आया कि ऑल्ट.न्यूज़ के अंग्रेज़ी वेबसाइट पर लेख प्रकाशित होने के बाद विदेश मंत्रालय ने भाषण के लेख में बदलाव किया था।
 
(इनसाइड इंडिया, एम वाला)