लास्ट अपडेट अक्टूबर
2019
फ़ेक न्यूज़, अविश्वसनीय दावे या भ्रमित करने वाली ख़बरों को लेकर बड़े से बड़े ग्रंथ लिखे
जा सकते हैं। फ़ेक न्यूज़ क्यों फैलाए जाते हैं, कौन फैलाते हैं, कब फैलाते हैं, उससे क्या फ़ायदे या नुक़सान होते हैं, बहुत लंबा लिखा जा सकता है। "World of Fake News: फ़ेक ख़बरों का जंगल..." में हमने यह विस्तृत रूप से देखा। इस संस्करण में
हम केवल उन फ़ेक ख़बरों की बात करेंगे, जो मीडिया, मीडिया के कुछेक चैनल, एंकर या कुछेक संगठन के ज़रिए जाने-अनजाने में फैलाई गई और
बाद में ख़बरों का गुब्बारा फूटा भी था। हम इस संस्करण के दूसरे हिस्से की ओर आगे बढ़ते
हैं।
राहुल गांधी और सोमनाथ
मंदिर रजिस्टर की एंट्री
गुजरात में विधानसभा
चुनाव के समय सोमनाथ मंदिर में राहुल गांधी के जाने पर विवाद खड़ा हो गया, जब यह दावा
किया जाने लगा कि राहुल गांधी ने मंदिर में गैर हिंदुओं के प्रवेश वाले रजिस्टर में
हस्ताक्षर किए थे।
मूल रूप से एक राष्ट्रीय
चैनल के प्रादेशिक इकाई से एक पत्रकार द्वारा प्रकाशित यह ख़बर मुख्यधारा के मीडिया
के लिए ज़ल्द ही सबसे बड़ी स्टोरी बन गई। बाद में पता चला कि बहस का मुद्दा बनी यह
एंट्री दरअसल किसी अन्य व्यक्ति ने की थी, और इसे ग़लत ढंग से पेश किया गया था, ताकि यह लगे कि राहुल गांधी ने इस पर हस्ताक्षर किए थे। मूल
एंट्री मंदिर के नियमित रजिस्टर में की गई थी। हालाँकि इसके बाद भी नया खुलासा बहुत
कम चल पाया, पुराना अपुष्ट विवाद ही सड़कों पर रेंगता
रहा!
जब एक प्रसिद्ध मीडिया
हाउस ने पशुओं पर यातना की झूठी स्टोरी चलाई
दिसम्बर 2017 के आरंभ में देश के
प्रसिद्ध मीडिया हाउस ने प्राइम टाइम पर एक स्टो़री चलाई, जिसमें दिखाया गया कि किस तरह पशुओं को यातना दी जा रही है।
इस स्टोरी का हैशटैग
#CowSlaughterCruelty था। इस स्टोरी के साथ गाय काटने का तो कोई
वीडियो नहीं था, लेकिन पशुओं पर क्रूरता के तौर पर इस वीडियो को दिखाया गया था। लेकिन
असल में यह पशु चिकित्सा संबंधी ऑपरेशन का वीडियो था, जिसे गर्भवती पशुओं में गर्भाशय में ऐंठन की समस्या का इलाज
करने के लिए किया जाता है।
सांसद की परेश मेस्ता
और हिंदू लड़की से दुष्कर्म की स्टोरी, जो आख़िरकार झूठ निकली, नेशनल मीडिया हाउस तक ने बगैर जाँचे इस दावे को ट्वीट में दोहरा
दिया था
उडुपी-चिकमंगलूर की
बीजेपी सांसद, शोभा करंदलाजे ने आरोप लगाया कि परेश मेस्ता
को क्रूरतापूर्वक यातना देकर जिहादी तत्वों ने मार डाला। ज्ञात हो कि परेश मेस्ता का
शव राज्य के उत्तर कन्नड़ ज़िले में होनावर शहर की एक झील में पाया गया था। उनकी बात
को राष्ट्रीय स्तर के मीडिया हाउस द्वारा एक ट्वीट में दोहराया गया।
हालाँकि तुरंत ही कर्नाटक
पुलिस द्वारा जारी की गई फोरेंसिक रिपोर्ट के विवरणों से इस दावे की सच्चाई सामने आई, जिसमें बताया गया था कि कोई यातना नहीं दी गई थी।
दूसरी घटना में, शोभा करंदलाजे ने दावा किया था कि जिहादियों ने होनावर में एक
हिंदू लड़की से दुष्कर्म करने का और उसकी हत्या करने का प्रयास किया। यह दावा भी झूठा
साबित हुआ जब पुलिस ने बताया कि ऐसी कोई घटना नहीं हुई थी। करंदलाजे पर विभिन्न समूहों
के बीच द्वेष पैदा करने के लिए मामला दर्ज किया गया।
शंखनाद ने एक विवादास्पद
उद्धरण को महात्मा गाँधी का उद्धरण बताया, जो बाद में फ़र्ज़ी निकला
शंखनाद ने ट्विटर पर
राइटलोग.इन के एक लेख का लिंक पोस्ट किया, जिसमें यह दावा करते हुए संदेहास्पद स्रोतों
का उद्धरण दिया गया कि महात्मा गाँधी ने हिन्दू और सिख महिलाओं को मुसलमान बलात्कारियों
के साथ सहयोग करने के लिए कहा था।
मैट्रिक पास ना भी
हो वह आदमी भी आसानी से समझ सकता था कि गाँधीजी जैसा शख़्स ऐसा तो क़तई नहीं कह सकता
था। जो लोग गाँधीजी की नीतियों या सिद्धांतों को पसंद ना करते हो वे भी इस दावे को
पहली नज़र में झूठ मानेंगे।
लेकिन शंखनाद ने तो ख़ुद की इज़्ज़त कम करने की ठान ली थी। जैसी कि उम्मीद थी, यह जानकारी भी झूठी पाई गई। उपरोक्त उद्धरण उस किताब में मौजूद
नहीं था, जिसका संदर्भ लेख में दिया गया था। साथ ही कोई भी प्रमाणित पुस्तक या प्रमाणिक
लेखों में ऐसे विवादास्पद दावे का दूर दूर तक कोई ज़िक्र नहीं मिला।
शंखनाद का एक और फ़र्ज़ी
नाद, गाय के मुँह में बम
विस्फोट की झूठी ख़बर
शंखनाद ने अपने ट्विटर
पेज पर लिखा था - "मुसलमानों ने गाय को बम खिलाया, जो गाय के मुँह में ही फट गया।"
इस वेबसाइट ने विदिशा, मध्य प्रदेश में बनाया गया वीडियो पोस्ट किया, जिसमें एक गाय का मुँह फटा हुआ दिख रहा था और मुँह से काफी ख़ून
बह रहा था। शंखनाद ने बताया कि यह किसी एक कौम का काम है, जिन्होंने जानबूझकर गाय के मुँह में जबरदस्ती बम डाल कर विस्फोट
करवाया। कौम विशेष पर किए गए इस हमले को दक्षिणपंथी ट्विटर हैंडलों ने तुरंत ही फैला
दिया। उस जगह पर ज़ल्द ही भीड़ इकट्ठा हो गई, जहाँ गाय का मुँह फटा था। विरोध प्रदर्शन
शुरू कर दिया गया। कुछ प्रदर्शनकारियों ने उस झोपड़ी को भी आग लगा दी, जहाँ वो गाय ज़ख़्मी हुई थी। बजरंग दल के कार्यकर्ता घटना स्थल
पर ज़ल्द ही पहुँच गए। फिर पुलिस भी पहुंची और स्थिति पर काबू पा लिया गया।
शंखनाद के इस दावे
को एक स्थानीय न्यूज़ चैनल सागर टीवी ने फ़र्ज़ी ख़बर करार दिया। दरअसल, यह घटना विदिशा शहर के अहमदपुर रोड नामक इलाके में घटी थी। और
इस ख़बर का सच यह था कि उस गाय ने प्लास्टिक बैग में रखे हुए विस्फोटक को चबा लिया
था। उस क्षेत्र पर अतिक्रमण हुआ था और वहाँ किसी झोपड़ी में किसी एक पोटली में वह विस्फोटक
रखा था।
विदिशा के एसपी विनीत
कपूर ने मीडिया के सामने कहा कि गाय सच में विस्फोटक चबाने की वजह से घायल हुई थी।
यह सूअर मार बम नामक हाथ का बना हुआ बम था, जो यहाँ की खानाबदोश जनजाति जंगली सूअर का
शिकार करने के लिए इस्तेमाल करती है और यह दबाव से फटता है। घास चरते वक्त उस गाय ने
ग़लती से बम चबा लिया था, जिसकी वजह से वह फट गया। घटना में कोई सांप्रदायिक
कोण नहीं था। इससे पहले जनवरी 2017 में भी महाराष्ट्र के मालवण तहसील में ऐसी घटना हुई थी, जब ऐसे ही देशी बम चबाने पर एक गाय की मौत हो गई थी।
कथित रूप से फ़र्ज़ी
समाचार साइट हिंदुत्व.इन्फो के कारनामे
कथित रूप से हिंदुत्व.इन्फो
झूठी, अविश्वसनीय, आधी-अधूरी और भ्रमित करने वाली ख़बरें फैलाने के लिए प्रसिद्ध है। केरल में आरएसएस
के सदस्य के हत्या के रूप में मैक्सिकन वीडियो को भारतीय वीडियो बताकर प्रसारित करना, किसी अनजान
व्यक्ति को भ्रष्टाचार के आरोपों की वजह से रवीश कुमार की बहन बताकर निलंबित कर दिया
गया यह दुष्प्रचार करना, रोहित सरदाना के ख़िलाफ़ फ़तवा जारी होने की अफ़वाह, पश्चिम बंगाल में
हिंदू की हत्या के रूप में बांग्लादेशी वीडियो प्रसारित कर देना... बड़ी लंबी सूची
है इसकी।
कहा जाता है कि हिंदुत्व.इन्फो
नकली वेबसाइटों में मुख्य अदाकार है। पोस्टकार्ड.न्यूज़ जैसी कुछ अन्य संदिग्ध वेबसाइट
भी हैं। दैनिकभारत.ओआरजी भी नकली समाचारों के लिए लोकप्रिय साइट है। लेकिन ट्रैफिक
के संदर्भ में हिंदुत्व.इन्फो ज़्यादा लोकप्रिय है। यह साइट ज़्यादातर झूठी, अविश्वसनीय या भ्रमित
करने वाली ख़बरें फैलाने के लिए जानी जाती है, जो कि हिन्दी में होती है। हिन्दी में होने के कारण इसका प्रचार ज़्यादा होता
है।
हिंदुत्व.इन्फो का
अबाउट अस पेज वेबसाइट के बारे में कुछ नहीं बताता। ऑल्ट न्यूज़ ने हिंदुत्व.इन्फो की
जाँच-पड़ताल की, जिसके बाद एक विस्तृत रिपोर्ट छापी थी। ऑल्ट न्यूज़ ने लिखा था कि WHOIS जो कि डोमेन को चलाने
वाले का नाम, पता, फ़ोन नंबर आदि बता सकती है, हिंदुत्व.इन्फो के मामले में WHOIS की जानकारी (https://www.whois.com/whois/hindutva.info) ‘Domains By Proxy’ नामक भुगतान सेवा का उपयोग कर छिपा हुआ है। ये कंपनी ‘Domains by Proxy’ की है, ना कि हिंदुत्व.इन्फो की। डोमेन 18 अगस्त 2015 को पंजीकृत हुआ था।
आम तौर पर ऐसी वेबसाइटें
अस्तित्व के शुरुआती दिनों में लोकप्रिय होने हेतु ज़्यादा व्यक्तिगत जानकारी प्रकट
करती है। एक सेवा, जिसे Wayback Machine कहते हैं, हमें यह देखने में मदद करती है कि वेबसाइट शुरुआती दिनों में विभिन्न
बिंदुओं पर कैसा दिखता था। ये इंटरनेट पर लगभग सभी वेबसाइटों का नियमित, स्वचालित स्क्रीनशॉट्स
लेती है।
ऑल्ट न्यूज़ ने Wayback Machine पर हिंदुत्व.इन्फो
का 11 सितम्बर 2015 का स्नैपशॉट्स देखा। (http://web.archive.org/web/20151109010752/http://hindutva.info:80/)
जो कि डोमेन नाम के पंजीकरण के सिर्फ़ एक महीने बाद का था। वेबसाइट
पर दो लेखकों के नाम थे। रिपोर्ट में लिखा गया था कि Wayback Machine के माध्यम से स्क्रॉल
करने के बाद एक तथ्य यह स्पष्ट हुआ कि वेबसाइट के शुरुआती संस्करण में विशाल कश्यप
और जिंदल, ये दो लेखक सबसे अधिक सफल थे। अंग्रेजी में लिखी गई सभी विषय-वस्तु विशाल
कश्यप ने लिखी थी, जबकि हिंदी में जिंदल ने लिखी थी। ऑल्ट.न्यूज़ ने विशाल कश्यप और
हिंदुत्व.इन्फो को गूगल पर ढूंढ़ा पर ऐसी कोई जानकारी उप्लब्ध नहीं थी, जिससे यह पता
चले कि विशाल कश्यप ही हिंदुत्व.इन्फो को चलाते हैं। फिर ऑल्ट.न्यूज़ ने जिंदल को ढूंढ़ा।
ऑल्ट.न्यूज़ को पता
चला कि राजेश जिंदल Quora
(https://www.quora.com/profile/Jindal-Rajesh) और LinkedIn
https://www.linkedin.com/in/rajesh-jindal-2b623933/ पर ख़ुद को हिंदुत्व.इन्फो के संस्थापक होने का दावा करते थे। (उनके द्वारा यह linkedin अकाउंट अभी बंद कर
दिया गया था) ऑल्ट.न्यूज़ ने जिस साइट ऑपरेटर का उपयोग किया था वह गूगल सर्च द्वारा
दी गई एक सुविधा है, जिसमें यदि आप एक विशिष्ट साइट खोजना चाहते हैं, जैसे कि आप केवल हिंदुत्व.इन्फो
खोजना चाहते है, कोई अन्य साइट नहीं, तो आप अपनी सर्च क्वैरी में site:hindutva.info जोड़ सकते हैं। हालाँकि यदि आप विशेष साइट से आने वाले सभी परिणामों को फ़िल्टर
करना चाहते हैं, तो आप ‘site’ ऑपरेटर को माइनस साइन => ‘-site’ के साथ प्रस्तुत कर सकते हैं। उपरोक्त खोज क्वेरी में ऑल्ट.न्यूज़ ने हिंदुत्व.इन्फो
वेबसाइट से सभी विषय को फ़िल्टर किया, जिससे हिंदुत्व.इन्फो के अलावा अन्य वेबसाइटों पर जिंदल की व्यक्तिगत जानकारी
प्राप्त हो।
ऑल्ट.न्यूज़ ने अपनी
रिपोर्ट में जिंदल के बारे में लिखा कि राजेश जिंदल एक वीडियो में ख़ुद को एक ब्लॉगर
के रूप में अपनी सफलता पर गर्व करते हुए बताते हैं कि कैसे वो ढेर सारे पैसे कमाते
हैं। ब्लॉग्स का एक फ़ेसबुक इवेंट बताता था कि राजेश जिंदल प्रति माह दस लाख से ज़्यादा
कमाते हैं। ऑल्ट.न्यूज़ को राजेश जिंदल के Quora प्रोफाइल में एक और वेबसाइट का उल्लेख मिला, नाम था हिटपेहिट.कोम, जिसे उन्होंने ख़ुद स्थापित किया था। ऑल्ट.न्यूज़ की रिपोर्ट के अनुसार, हिंदुत्व.इन्फो के
विपरीत हिटपेहिट.कोम की WHOIS जानकारी किसी भी भुगतान सेवा द्वारा नकाबपोश नहीं थी। ऑल्ट.न्यूज़ के पास अब राजेश
जिंदल का ईमेल एड्रेस, फ़ोन नंबर और पता था। ऑल्ट.न्यूज़ ने ट्रूकोलर पर नंबर को देखा तो यह बताता था
कि वास्तव में यह नंबर राजेश जिंदल का है। ऑल्ट.न्यूज़ ने ईमेल एड्रेस, ऑपरेटर और राजेश जिंदल
को सर्च किया।
खोज परिणामों में दो
फ़ेसबुक पेज का नाम आता था। एक था मंदिरमाता वैष्णो देवी फैन क्लब, जिसके 6 लाख से ज़्यादा फ़ॉलोअर्स
थे, दूसरा था कंट्रीसबसेपहले, जिसमें 10 लाख से ज़्यादा फ़ॉलोअर्स
थे। ऑल्ट.न्यूज़ ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया कि इन दोनों पेजों को राजेश जिंदल के
द्वारा चलाया जाता है। अपने दावे की सत्यता के लिए ऑल्ट.न्यूज़ ने लिखा कि फ़ेसबुक
पेज का अबाउट सेक्शन पेज चलाने वाले के द्वारा कॉन्फ़िगर किया जाता है।
इन दोनों पेजों के
अबाउट सेक्शन में राजेश जिंदल का ईमेल एड्रेस संपर्क ईमेल एड्रेस के रूप में कॉन्फ़िगर
किया गया था। उपरांत दोनों पेज एक समान लिंक साझा करते थे, जो सभी हिंदुत्व.इन्फो
से थे। ज़्यादातर लिंक एक ही समय साझा किए गए थे। ऑल्ट.न्यूज़ ने लिखा कि ऐसा नहीं
था कि राजेश जिंदल केवल दो पेज ही हैंडल करते हो, वास्तव में इन्होंने फ़ेसबुक पेजों का एक साम्राज्य बनाया हुआ
था। ऑल्ट न्यूज़ ने अपनी जाँच-पड़ताल के बाद दावा किया कि कम से कम 12 पेज इनके द्वारा चलाए
जाते हैं, जिन सभी की पहुंच 4.5 लाख से 5 लाख तक थी। इन पेजों में ज़्यादातर हिंदुत्व.इन्फो तथा हिटपेहिट.कोम के लिंक साझा
किए जाते थे, मंदिर माता वैष्नोदेवी फैन क्लब पेज को छोड़ दे तो।
एएनआई का पत्रकार एक
सीएम के पैरों में, उधर मीडिया पीएम के साथ सेल्फ़ी खिंचवाने में व्यस्त
हमारे यहाँ नेता विवादित
धर्मगुरुओं के पैरों में गिरे हुए दिखाई देते हैं। एक नये वाक़ये में तो पूर्व जस्टिस
सरीखा आदमी सज़ा काट रहे धर्मगुरु के सामने हाथ जोड़कर लगभग गिरता हुआ दिखाई दिया था।
अधिकारी नेताओं के पैर छूते दिखाई देते हैं। उधर इन गैरजिम्मेदाराना कृत्यों को देश
और समाज के सामने लाकर पत्रकार इस पर आलोचना करते हैं। लेकिन अब तो पत्रकार ख़ुद ही
किसी के पैरों में गिरने लगे तो फिर आलोचना नाम की पत्रकारिता को तो टाटा बाय बाय ही
कह दीजिए।
एक वीडियो सामने आया
था, जिसमें एशियन न्यूज़ इंटरनेशनल (एएनआई) के एक पत्रकार को उत्तर
प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का पैर छूते हुए देखा जा सकता था। लाज़िमी है
कि जब पत्रकार इस कदर नेताओं के फैन हो, तो क्या उनमें उन्हीं नेताओं से तीखे सवाल
पूछने की हिम्मत आ पाएगी? एएनआई के पत्रकार का हाव-भाव इशारा करता था
कि राजनीतिक वर्ग की क़रीबी के कारण मीडिया एवं पत्रकारों का समूह सरकारों, नेताओं एवं उनकी नीतियों के ख़िलाफ़ लिखने और बोलने में विनम्र, मृदु एवं ढीला पड़ सकता है। यह बात जगजाहिर है कि आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के पश्चात मीडिया ने उनका स्वागत खुले हाथों से किया था और ख़ूब
महिमामंडन किया था। न्यूज़ चैनलों पर दिन रात यही चर्चा होती थी कि योगी आदित्यनाथ ने
कब क्या खाया, उनकी शक्ल हॉलीवुड के किस अभिनेता से मिलती
है, वगैरह वगैरह!
दूसरी तरफ़ दिल्ली
में भाजपा कार्यालय में दिवाली मिलन समारोह का आयोजन था। कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री
के साथ ख़ुद को तस्वीर में क़ैद करने और सेल्फ़ी खिंचाने की होड़ आमंत्रित पत्रकारों में
लगी थी। मीडिया नाम का चौथा स्तंभ ख़ुद को एक कमज़ोर खंभे की तरह गिराकर सेल्फ़ी वाले
चक्करों में उलझा था! नोट करें कि एक आरटीआई
के ज़रिए इस बात का खुलासा हुआ था कि मौजूदा केंद्र सरकार ने पिछले तीन सालों में 3,700 करोड़ रूपये मात्र
सरकारी विज्ञापन (प्रिंट, रेडियो, टेलीविज़न मिलाकर) पर ख़र्च किए थे।
गुजरात चुनावों में
मीडिया पूर्वाग्रह: टीवी चैनलों के हैशटैग पर ऑल्ट न्यूज़ का विस्तृत विश्लेषण
ऑल्ट न्यूज़ ने इस
विषय को लेकर एक विस्तृत और दिलचस्प रिपोर्ट पेश की थी। निर्वाचन आयोग द्वारा गुजरात
चुनावों की घोषणा करते ही भारतीय मीडिया बेहद सक्रिय हो गया। प्रधानमंत्री मोदी का
गृहराज्य और विकास के उनके बहुप्रचारित गुजरात मॉडल को ध्यान में रखते हुए ऐसा होना
अनपेक्षित भी नहीं था। ऑल्ट न्यूज़ ने उन हैशटैग का विश्लेषण किया जिन्हें टीवी चैनलों
द्वारा सोशल मीडिया पर सरगर्मी बनाए रखने के लिए प्रचारित किया गया था।
ऑल्ट न्यूज़ के अनुसार
एनडीटीवी, इंडिया टुडे और सीएनएनन्यूज़18 जैसे चैनलों ने निष्पक्ष हैशटैग इस्तेमाल किए थे, जैसे #GujaratElection2017, #BattleForGujarat, #ElectionsWithNews18 और #AssemblyElections2017 वगैरह वगैरह। जबकि रिपब्लिक टीवी और टाइम्स नाउ जैसे अन्य चैनलों ने एकदम स्वेच्छाचारी
तरीक़े से अपने हैशटैग चुनें। उन्होंने राजनीतिक पार्टियों के पक्ष या विपक्ष में अभियान
चलाने और सार्वजनिक राय तैयार करने के लिए इन हैशटैग का इस्तेमाल किया!
ऑल्ट न्यूज़ ने लिखा
कि #BattleForGujarat या #GujaratBattleground जैसे कभी-कभार दिखने वाले तटस्थ हैशटैग के अलावा, रिपब्लिक टीवी और
टाइम्स नाउ द्वारा इस्तेमाल किए गए हैशटैग ने एक स्पष्ट एजेंडे को दिशाभ्रमित करने
का काम किया। ज़्यादा उत्तेजक और ज़्यादा विवादास्पद हैशटैग की जंग में आम लोगों को
प्रभावित करने वाले मुद्दों पर होने वाली बहस पृष्ठभूमि में चली गई! रिपब्लिक टीवी और टाइम्स नाउ, दोनों के हैशटैग के निशाने पर कांग्रेस लगातार बनी
रही। जैसे हैशटैग #CongNeechPolitics में कांग्रेस पर राजनीति खेलने का आरोप लगाया गया, जबकि #CongSlamsIndiaRise और #CongTerrorPhoto जैसे हैशटैग में कांग्रेस को विकास-विरोधी और राष्ट्र-विरोधी के तौर पर प्रस्तुत
किया गया। कांग्रेस पार्टी को जवाब देते हुए जब प्रधानमंत्री मोदी ने एक चुनावी रैली
में कहा कि उन्होंने चाय बेची है देश नहीं, किंतु टाइम्स नाउ ने रट्टू तोते की तरह
इस पर एक हैशटैग बना दिया #UPANeDeshBecha
#CongNeechPolitics
हैशटैग पर रिपब्लिक टीवी के पहले ट्वीट में सवाल पूछा गया कि
क्या राहुल गांधी ‘नीच टिप्पणी’ के लिए मणिशंकर अय्यर के ख़िलाफ़ कार्रवाई करेंगे। इस मुद्दे पर राहुल गांधी द्वारा
कार्रवाई करने के बाद भी चैनल यह हैशटैग इस्तेमाल करने से पीछे नहीं हटा! बल्कि इसके बाद रिपब्लिक टीवी ने हैशटैग का इस्तेमाल करते हुए 150 से अधिक ट्वीट कर
दिए, जिसमें वह सूची भी शामिल थी जिसमें बताया गया था कि कांग्रेसी नेताओं ने नरेंद्र
मोदी का किस तरह और कब-कब अपमान किया था! चैनल ने इसे "लुटियन सर्किट के वयोवृद्ध सदस्य द्वारा पीएम मोदी पर सीधे परंपरागत हमला" करार दिया और घोषणा की कि, "यह लड़ाई अमीर एलीट और उन लोगों के बीच है, जिन्हें वे ‘नीच’ कहते हैं।" प्रतिद्वंद्वी चैनल, टाइम्स नाउ कहीं पीछे न छूट जाए इसलिए उसने भी उतने ही ट्वीट करते हुए इसे #RahulNeechPolitics कहा।
टाइम्स नाउ ने कांग्रेस
के सेल्फ-गोल पर भी फोकस किया। यह यूथ कांग्रेस के ट्वीट के बाद #CongChaiSelfgoal और राहुल गांधी की सोमनाथ मंदिर की यात्रा के बाद #RaGaSomnathSelfGoal था। दक्षिणपंथ के लोकप्रिय नैरेटिव के आधार पर हैशटैग #CongIgnoredPatel बनाया गया और कांग्रेस पर सरदार पटेल की उपेक्षा करने का आरोप लगाया गया।
ग़ज़ब था कि मीडिया
जैसा प्लेटफॉर्म यह काम कर रहा था!!! ऑल्ट न्यूज़ ने लिखा कि चुनावों का दूसरा चरण ख़त्म होने से पहले अंतिम दिन रिपब्लिक
टीवी ने #VadraEntersGujaratPolls हैशटैग को भी उतार दिया था। रिपब्लिक टीवी ने पूछा कि सोनिया गांधी के दामाद किस
हैसियत से हार्दिक पटेल से मिले? और चैनल ने इसे गुजरात में मतदान से एक दिन पहले एजेंडा सेट करने वाली ख़बर करार
दे दिया। गुजरात मॉडल और व्यवसाय करने की सुगमता (ईज ऑफ़ डूइंग बिजनेस) पर राहुल गांधी
की टीका-टिप्पणी के बारे में रिपब्लिक टीवी ने हैशटैग #CongSlamsIndiaRise के साथ ख़बर दी। चुनावों की घोषणा होने के एक दिन बाद, रिपब्लिक टीवी ने
हैशटैग #PakHawalaUnderCongress चलाया।
ऑल्ट न्यूज़ की स्टोरी
के अनुसार टाइम्स नाउ भी पीछे नहीं रहा और उसने 2013 की एक पुरानी फ़ोटो खोज निकाली, जिसमें भूतपूर्व वित्त मंत्री
पी चिदंबरम एक ही कमरे में तालिबानी नेता मुल्ला अब्दुल ज़ईफ के साथ बैठे दिख रहे थे
और चैनल ने इसे हैशटैग #CongTalibanTango के साथ एक एक्सक्लूसिव ख़बर के तौर पर पेश किया। टाइम्स नाउ की इस स्टोरी का पर्दाफ़ाश
ऑल्ट न्यूज़ ने किया तो टाइम्स नाउ ने इसे छिपा दिया!
ग़ज़ब था कि टाइम्स
नाउ ने तो राहुल गांधी की मज़ाक उड़ाने का राजनीतिक काम भी कर लिया! जब गुजरात के राज्य निर्वाचन आयोग ने विज्ञापनों में ‘पप्पू’ शब्द के उपयोग पर
आपत्ति व्यक्त की तो टाइम्स नाउ ने इसे #PappuCensored बताया और यहाँ तक कि इस बारे में एक पोल (वोट सहित सर्वेक्षण) भी करा दिया। जब
निर्वाचन आयोग के पैनल ने बीजेपी के गुजरात विज्ञापन में ‘युवराज’ शब्द के इस्तेमाल
की अनुमति दी तो टाइम्स नाउ ने इसकी ख़बर #YuvrajReplacesPappu
के साथ दी, जो ज़ल्दी ही #PappuBanaYuvraj में बदल गया।
ऑल्ट न्यूज़ ने लिखा
कि कांग्रेसी नेता मणिशंकर अय्यर की मुगल शासन और चुनावों की लोकतांत्रिक प्रक्रिया
के बीच फ़र्क़ बताने वाली टिप्पणी पर प्रधानमंत्री मोदी द्वारा जानबूझकर ग़लत व्याख्या
की गई थी यह तथ्य सामने आने के बाद भी रिपब्लिकटीवी ने हैशटैग #RahulMughalEmperor के साथ अपनी पूरी ताक़त झोंकते हुए ख़बर चलाई! राहुल गांधी की प्रेस कॉन्फ्रेंस को रिपब्लिक टीवी ने #RahulDucks के तौर पर पेश किया।
अर्नब गोस्वामी के पास पूछने के लिए कुछ और सवाल नहीं होंगे, तभी तो उन्होंने राहुल
गांधी सवालों के बीच तीन बार क्यों उठे, राहुल गांधी की दाईं तरफ़ अशोक गहलोत
क्यों बैठे, टाइप सवाल पूछे! ऑल्ट न्यूज़ के
मुताबिक़ रिपब्लिक टीवी ने इस प्रेस कॉन्फ्रेंस की आलोचना करने और राहुल गांधी के ख़िलाफ़
आम राय तैयार करने के लिए हर तरकीब आजमाई।
ऑल्ट न्यूज़ की रिपोर्ट
का विश्लेषण कहता था कि हमला सिर्फ़ कांग्रेस और उनके नेताओं तक ही नहीं रुका। बीजेपी
का विरोध करने वाला हर व्यक्ति इनके निशाने पर रहा! हैशटैग #HardikTapeTrouble #HardikTapes और #GujaratSexScandal के साथ हार्दिक पटेल के तथाकथित सैक्स टेप अनवरत बहसों का विषय बने रहे। टाइम्स
नाउ ने हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवानी को #TheCasteCowboys का तमगा दिया और हैशटैग #RahulHardikTango प्रचारित किया।
रिपोर्ट के अनुसार
टीवी चैनलों ने धर्म का राजनीतिक हथियार भी स्टूडियो से आजमाया। ऑल्ट न्यूज़ की माने
तो रिपब्लिक टीवी और टाइम्स नाउ, दोनों ने नियमित अंतराल पर ठीक यही किया। जब यह झूठी
ख़बर आई कि राहुल गांधी का नाम सोमनाथ मंदिर में गैर-हिंदू रजिस्टर पर दर्ज किया गया
है, तो रिपब्लिक टीवी जानना चाहता था #RahulHinduOrCatholic। तथ्यों की बुनियादी सच्चाई जाने बगैर, चैनल ने इस घटना की अंधाधुंध तरीक़े से कवरेज की। अपनी अजीबोग़रीब कवरेज में, रिपब्लिक टीवी ने
राहुल गांधी के धर्म के बारे में अर्नब गोस्वामी के पाँच सवाल प्रसारित किए। यहाँ तक
कि सीएनएनन्यूज़18, जो बाकी दो चैनलों की तरह कठोर भाषा का इस्तेमाल करने से आम तौर पर परहेज करता
है, वह भी हैशटैग #RaGaSignatureRow और सवाल - क्या भारत जानेगा कि राहुल गांधी हिंदू, इसाई या नास्तिक हैं?, के साथ इस बहस में
कूद गया।
ऑल्ट न्यूज़ ने लिखा
कि जब चैनलों को विपक्ष पर हमला करने से फुर्सत मिलती थी, तो वे बीजेपी और प्रधानमंत्री
मोदी की छवि चमकाने के काम में जुट जाते थे! इसका एक शानदार उदाहरण हैशटैग #GujaratGaaliPolitics
था, जिसे "पीएम ने #GujaratGaaliPolitics को हराया" और "पीएम ने गाली राजनीति पर कांग्रेस को घेरा" (अनुवाद) का दावा करते हुए पोस्टरों के साथ प्रचारित किया गया। कांग्रेस पर पीएम
मोदी के जवाबी हमलों के लिए इस तरह के हैशटैग बनाए गए #SoldChaiNotNation और #UPAnedeshbecha।
चुनाव की तिथि घोषित
होने वाले दिन 25 अक्टूबर 2017 को, टाइम्स नाउ ने हैशटैग #GujaratModiVerdict
के साथ अपने 'टाइम्स नाउ-वीएमआर' सर्वे के नतीजें बताए। हैशटैग #ModiSweepsGujarat का इस्तेमाल करते हुए चैनल ने पूछा, "क्या राहुल अभी भी
पार्टी के लिए एक बोझ हैं?" और दावा किया कि, "चुनाव नतीजें आने से
पहले उसने नतीजों का सटीकता से पूर्वानुमान लगाया है।"
ऑल्ट न्यूज़ ने लिखा
कि दिलचस्प बात यह रही कि गुजरात चुनावों के दौरान टाइम्स नाउ को केवल एक पक्ष की ओर
से असभ्य भाषा का प्रयोग किया जाता हुआ पाया गया और पीएम मोदी को लगातार हमला झेलने
वाले व्यक्ति के तौर पर हैशटैग #ModiMalignedIn2017 के साथ प्रस्तुत किया गया! कांग्रेस की किसी
भी टिप्पणी या हमले के लिए खास हैशटैग जैसे #CongChaiwalaAttack, #RahulNeechPolitics बनाए गए, लेकिन बीजेपी की ओर से किए गए हमलों को या तो पूरी तरह नज़रअंदाज़ किया
गया या सक्रियता से उनका समर्थन किया गया!
ऑल्ट न्यूज़ ने तीखी
टिप्पणी करते हुए लिखा कि बीजेपी के चुनाव अभियान के दौरान रिपब्लिक टीवी चीयरलीडर
की भूमिका में था, और वह #BJPGujaratBlitzkrieg और #ModiMillionRally जैसे हैशटैग के साथ ट्वीट कर रहा था।
पीएम मोदी की सी प्लेन
यात्रा के लिए अलग से हैशटैग बनाए गए, जैसे #ModiAirShow और #PMTakesOff और इसके बारे में "भारत में अब तक का
पहला सीप्लेन" होने का दावा किया
गया। हालाँकि पीएम की वेबसाइट ने स्वयं इस ग़लती को सुधारा कि यह भारत का अब तक का
सबसे पहला सी प्लेन नहीं था। लेकिन रिपब्लिक टीवी की स्टोरी अभी भी ऑनलाइन ही थी! चीयरलीडर की अपनी भूमिका को अतिरिक्त उत्साह से निभाते हुए रिपब्लिक टीवी ने इसे
'ऐतिहासिक' और 'भारत के इतिहास में सबसे महान राजनीतिक वस्तु' करार दिया!
रिपब्लिक टीवी की सलाहकार
चित्रा सुब्रमण्यम बोलती हुई दिखीं, "मेरे विचार से यह उल्लेखनीय बात है, पीएम द्वारा इसमें उड़ान भरना एक प्रतीकात्मक बात थी। लेकिन लोग नुक्ताचीनी करेंगे,
क्योंकि नरेंद्र मोदी का महापाप यह है कि उनका जन्म ग़रीब घर में हुआ था।" रिपब्लिक टीवी द्वारा
चुने गए हैशटैग दिलचस्प थे, क्योंकि उसी समय चैनल #PMTakesOff और #RahulDucks हैशटैग भी चला रहा था।
पीएम मोदी की छवि निखारने
के साथ-साथ, इन दोनों चैनलों द्वारा उन्हें लगातार हमला झेलने वाले व्यक्ति के तौर पर भी पेश
किया, जैसे हैशटैग #ModiFaithAttacked और #RahulHateModiBrigade। न्यूज़ चैनलों ने जैसे कि हर समय लोगों का असली मुद्दों से ध्यान हटाया और #GujaratTemplePolitics, #MuslimQuotaPlot, #RahulSeparatistBhakt और #ModiAttacksRahulBhakt जैसे मुद्दों पर फोकस किया! #AnthemFirstNoCompromise, #BJPISISCharge, #ISISGujaratPlot,
#ChurchVsNationalists और #RahulHinduTerrorCable जैसे हैशटैग भी दिखाई दिए।
लोकतंत्र का चौथा स्तंभ
हैशटेग, विशेष कर राजनीतिक दुनिया वाले हैशटेग में क्यों व्यस्त रहा होगा यह सोचने में
बुराई नहीं है। आर्थिक या नीति विषयक कोई हैशटेग उन्हें नहीं मिला! मीडिया के एक हिस्से ने खुलेआम एक पक्षपातपूर्ण स्थिति अपनाई और एक पार्टी के
पक्ष में किसी भी तरीक़े से जनमत तैयार करने के लिए हैशटैग का इस्तेमाल किया यह कहने
में कोई अतिशयोक्ति नहीं होनी चाहिए।
(इनसाइड इंडिया, एम वाला)
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