लास्ट अपडेट मई 2022
हर साल गणतंत्र दिवस
के मौक़े पर हम हमारी सेना की ताक़त को देखते हैं। आज हम बात करेंगे भारत के उन फोर्सेज़ के बारे में, जो दुनिया में मशहूर हैं। समय के साथ युद्ध
व बचाव के तौर-तरीक़ों में काफी बदलाव आया है और यह बदलाव कॉम्बैट और सिक्योरिटी फोर्सेज़ में भी साफ़-साफ़ दिखाई देता है।
यूँ तो भारत के पास
अनेक ऐसे बल हैं, जिनका अपना शानदार और अभूतपूर्व इतिहास रहा
है। इन बलों ने अपने बलिदानों से अनेक अविस्मरणीय गाथाएँ लिखी हैं। जैसे कि, युद्ध के दौरान जिन्हें सबसे पहले दुश्मन देश की ज़मीन पर क़दम
रखने का काम करना होता है वह स्ट्राइक फोर्स, रॉ का स्पेशल ग्रुप, एसएसबी, सीएपीएफ, तटरक्षक, आरपीएफ, सभी के बारे में किसी एक लेख में लिखा नहीं जा सकता। अत: हम यहाँ कुछ बलों की बात
करेंगे।
सीआरपीएफ (सेंट्रल रिज़र्व पुलिस फोर्स)
सीआरपीएफ भारत का सबसे
बड़ा केंद्रीय सशस्त्र सुरक्षा बल है। इसका गठन 27 जुलाई 1939 को किया गया था। यह देश के संवेदनशील इलाक़ों में शांति स्थापित करने, चुनावों के वक़्त सुरक्षा प्रदान करने, आदि में अहम भूमिका निभाता
है। वर्तमान समय में यह बल गृह मंत्रालय के अधिकार क्षेत्र के भीतर काम करता है। यह
केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों में से एक है। भारतीय स्वतंत्रता के पश्चात 28 दिसंबर 1949 के दिन सीआरपीएफ अधिनियम
के लागू होने पर यह केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल बन गया।
इस बल ने कानून और
व्यवस्था को सुनिश्चित करना, उग्रवाद विरोधी कर्तव्यों का पालन, आम चुनावों में दायित्व निभाना, अशांति और हिंसक संघर्ष वाले राज्यों में अपनी भूमिका अदा करना, जैसे कर्तव्यों का निर्वाहन किया है। इसने संयुक्त राष्ट्र मिशनों
में भी हिस्सा लिया है। 247 बटालियनों और विभिन्न अन्य प्रतिष्ठानों के साथ, यह भारत का सबसे बड़ा केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल है, जिसमें 2019 तक तीन लाख से भी अधिक कर्मियों की स्वीकृत शक्ति है।
सीआरपीएफ के भीतर कुछ
विशेष यूनिट हैं। जैसे कि, आरएएफ (रैपिड एक्शन फोर्स), जो नीले कपड़ों में सज्ज होते हैं। वह सीआरपीएफ का ही एक यूनिट
है, जिसका गठन 1992 में किया गया था। उपरांत पीडीजी (पार्लियामेंट ड्यूटी ग्रुप) सीआरपीएफ की ही एक
इकाई है, जिसे संसद भवन को सशस्त्र सुरक्षा प्रदान
करने का काम सौंपा गया है। पीडीजी सदस्यों को परमाणु और जैव रासायणिक हमलों से निपटने, बचाव कार्यों और व्यवहार प्रबंधन में प्रशिक्षित किया जाता है।
एसडीजी (स्पेशल ड्यूटी
ग्रुप) भी सीआरपीएफ की एक विशिष्ट बटालियन है, जिसे प्रधान मंत्री के आधिकारिक आवास और नॉर्थ
ब्लॉक में उनके कार्यालय के बाहरी घेरे के साथ साथ बाहरी कार्यक्रमों के दौरान सुरक्षा
प्रदान करने का काम सौंपा गया है। कोबरा कमांडो भी सीआरपीएफ का ही एक यूनिट है, जिसके बारे में अलग से आगे जानकारी दी गई है।
स्पेशल फ्रंटियर फोर्स (एसएफएफ)
यह पैरामिलिट्री फोर्स
की स्पेशल यूनिट है। इस कमांडो यूनिट का गठन 14 नवम्बर 1962 को किया गया था। यह भारत का एक विशेष अर्धसैनिक बल है। यह बल भारतीय थल सेना का
हिस्सा नहीं है, किंतु उन्हीं के साथ मिलकर काम करता है। इसकी
रचना का मुख्य उद्देश्य चीन की पीएलए (पीपुल्स लिबरेशन आर्मी) का सामना करना था। इन्हें
'विकास रेजिमेंट' या 'इस्टैाब्लिशमेंट 22' (टूटू) जैसे नामों से भी जाना जाता है।
यह फोर्स गुरिल्ला
युद्ध कौशल में भी माहिर होती है। हाई एल्टीट्यूड पर दुश्मन का डटकर मुक़ाबला करना
और उस माहौल में रहने की आदत, यही इनका जीवन है। इन्हें ग़ैर परंपरागत युद्ध
लड़ने और गुप्त अभियानों की विशेष ट्रेनिंग दी जाती है। 1962 के युद्ध के बाद चीन
की सीमाओं के पास सेना के गुप्त अभियानों को अंजाम देने के लिए इसका निर्माण हुआ। साथ
ही विशेष अभियानों के लिए भी इसका प्रयोग किया जाता है।
यह बल भारतीय ख़ुफ़िया एजेंसी रॉ की देखरेख में काम करता है और प्रधानमंत्री इसका निरीक्षण करते हैं। इसकी
देखरेख रक्षा मंत्रालय के सुरक्षा महासचिव करते हैं। अनेक बार ऐसा भी होता है कि इसके
अभियानों की जानकारी सेना तक को नहीं होती।
घातक प्लाटून
दरअसल 1962 की भारत-चीन की लड़ाई के बाद हर इन्फैंट्री बटालियन में एक प्लाटून
नियुक्त किया जाता था, जिसका नाम होता था कमांडो प्लाटून। उस दौर
में कमांडो प्लाटून का काम यही होता था कि किसी ऐसी परिस्थिति में जब गुत्थमगुत्था
होना पड़े या दुश्मन के पीछे जाना पड़े या कहीं घात लगाना पड़े, तो इनकी भूमिका बेहद महत्वपूर्ण थी। बाद में इन्हें घातक प्लाटून
के नाम से जाना जाने लगा तथा इन्हें विशेष रूप से ट्रेन किया जाने लगा।
यह भारतीय सेना की
स्पेशल कंपनी है, जो ‘मैन टू मैन असॉल्ट’ के वक़्त बटालियन के आगे चलती है। वे पैदल
सेना के भीतर स्पेशल ऑपरेशन संचालित करने के लिए ही तैयार किए जाते हैं। वे दुश्मन
के तोपखानों पर हमला करने में माहिर होते हैं। इन्हें दुश्मन के साथ आमने सामने की
लड़ाई लड़नी होती है। अपने नाम की ही तरह यह सेना घातक, यानि की ख़ूँख़ार है। ये कमांडोज़
शारीरिक रूप से भी ख़ूब ताक़तवर होते हैं।
जानकारों के मुताबिक़
सेना की हर इन्फैंट्री में ऐसे जवान मौजूद हैं, जिनके पास हथियारों के बिना लड़ने का
हुनर है और वे मार्शल आर्ट जैसी विद्याओं में भी पारंगत हैं। सैनिकों के इस समूह को
'घातक प्लाटून' के नाम से जाना जाता है। साथ ही हथियारों के साथ लड़ाई लड़ने
में भी ये बल बेहतरीन माना जाता है।
पैदल चलने के लिए विख्यात
यह दस्ता, बटालियन से आगे रह कर दुश्मन से लड़ाई लड़ता
है। भारतीय सेना की हर पैदल बटालियन में इसका एक दस्ता होता है। इस दस्ते में सबसे
क़ाबिल और मज़बूत सिपाहियों को ही शामिल किया जाता है। घातक फोर्स के जवानों को आतंकी
हमलों, घुसपैठ और बंधक बनाने जैसे हालातों के लिए
विशेष सशस्त्र प्रशिक्षण दिया जाता है।
नाम से ही घातक इसके
कमांडोज़ ‘वेरी शोकिंग ट्रूप्स’ माने जाते हैं। इन्हें यह संज्ञा पूर्व जनरल
बिपिन चंद्र जोशी ने दी थी। दुश्मन के रणनीतिक ठिकानों को ध्वस्त करना इनका काम है।
यह फोर्स दुश्मन के आर्टिलरी पोजीशन, एयरफ़ील्ड और टेक्टिकल संस्थानों को निशाना
बनाती हैं। मैन टू मैन फाइट, माउंटेन वॉरफेयर और क्लोज्ड़ क्वार्टर वॉरफेयर
में ये कमांडो प्रशिक्षित होते हैं।
पैरा कमांडो (एलीट पैरा कमांडो फोर्स)
यह भारतीय सेना की
सबसे ज़्यादा प्रशिक्षित स्पेशल फोर्स मानी जाती है। इस कमांडो यूनिट का गठन 1965 के भारत-पाकिस्तान
युद्ध के दौरान हुआ था। इसकी ख़ास बात यह है कि पैरा कमांडोज़ क़रीब पाँच हज़ार फ़ीट से
भी ऊपर से छलांग लगाने में माहिर हैं। 1971 की जंग में ढाका पहुंचने वाली पहली यूनिट पैरा कमांडोज़ ही थे।
इन्होंने अपने जीवन
काल के दौरान अनगिनत अविस्मरणीय अभियानों को अंजाम दिया है। कड़ी ट्रेनिंग के बाद ये
जवान मरून टोपी पहनते हैं, जो सम्मान का प्रतीक मानी जाती है। यह टोपी
दर्शाती है कि ये जवान पैरा एसएफ है। इनके यूनिफॉर्म में कैमोफ्लॉज़ की सुविधा होती
है। यानी अलग-अलग स्थानों के हिसाब से छिपने में मदद होती है।
जून 2000 में सिएरा लियोन में
इन कमांडोज़ ने गोरखा राइफल्स के 200 से ज़्यादा सैनिकों को बचाया था। इन सैनिकों को विद्रोहियों ने बंदी बनाकर रखा
था। श्रीलंका में लिट्टे से निपटने के लिए भेजी गई शांति सेना में भी इन कमांडोज़ की
अहम भूमिका थी। ये फोर्स 1965 से वर्तमान समय तक अनेक विशेष अभियानों को सफलतापूर्वक अंजाम दे चुकी है। इस यूनिट
के जवानों को ज़मीन से लेकर आसमान तक लड़ने का हुनर सिखाया जाता है। ये घने जंगलों में
भी अभियानों को अंजाम देते हैं।
यदि इसे भारत की मोस्ट
एडवांस्ड ट्रेंड फोर्स कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। ये पैरा कमांडो देश की तीनों
सेनाओं के लिए कितने महत्वपूर्ण हैं इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि 1971 की भारत-पाक जंग में
700 पैरा कमांडो ने लड़ाई
का रुख़ बदल दिया था।
सीआईएसएफ (सेंट्रल इंडस्ट्रियल सिक्योरिटी फोर्स)
केंद्रीय औद्योगिक
सुरक्षा बल का गठन 10 मार्च 1969 को किया गया था। यह गृह मंत्रालय के अधीन है। सीआईएसएफ दुनिया का सबसे बड़ा औद्योगिक
सुरक्षा बल है। यह केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (सीएपीएफ) में से एक है। इसका मुख्य कार्य सरकारी कारखानो एवं अन्य सरकारी उपक्रमों को सुरक्षा प्रदान करना है। ये बल देश
के विभिन्न महत्वपूर्ण संस्थानों की भी सुरक्षा करता है।
सीआईएसएफ के क़रीब पौने
दो लाख जवान भारत में स्थापित क़रीब 300 औद्योगिक इकाइयों के साथ-साथ कई अन्य इकाइयों को भी सुरक्षा प्रदान करते हैं।
इन इकाइयों में पावर प्लांट्स, स्टील प्लांट्स, थर्मल प्लांट्स, अंतरिक्ष प्रतिष्ठान, बुनियादी ढाँचे, खदानें, रिफाइनरियाँ, बंदरगाह, हवाई अड्डे, परियोजनाएँ व प्रतिष्ठान शामिल हैं। ये गृह
मंत्रालय के अधीन आता है और इसका मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है।
यह आपदा प्रबंधन में
भी प्रमुख भूमिका निभाता है। सीआईएसएफ के पास एक 'फ़ायर विंग' है, जो उन उद्योगों में आग दुर्घटनाओं के दौरान
मदद करता है, जहाँ सीआईएसएफ पहरा देता है।
एसपीजी (स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप)
इस फोर्स के जवान हॉलीवुड
स्टाइल में हर वक़्त प्रधानमंत्री के आसपास जमे रहते हैं। यह दस्ता देश का सबसे शक्तिशाली
स्पेशल फोर्स माना जाता है, जिसे एसपीजी के नाम से जाना जाता है। एसपीजी
को 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद स्थापित किया गया था।
इस विशेष बल का गठन 2 जून 1988 के दिन किया गया। 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद एसपीजी को नए सिरे से तैयार किया गया था।
इसका मुख्य काम प्रधानमंत्री, पूर्व प्रधानमंत्री और उनके परिवार को सुरक्षित रखना होता है। हालाँकि सन 2003 और फिर सन 2019 में एसपीजी एक्ट को
संशोधित किया गया था। इस फोर्स के कमांडो के पास कई अत्याधुनिक हथियार होते हैं। एसपीजी
में 3000 से भी ज़्यादा प्रशिक्षित जवान हैं। इन जवानों का चयन पुलिस, पैरामिलिट्री फोर्स (बीएसएफ, सीआईएसएफ, आईटीबीपी, सीआरपीएफ) से किया जाता है। एसपीजी के जवानों को विश्वस्तरीय ट्रेनिंग से गुजरना
होता है। यह लगभग वैसी ही होती है, जो यूनाइटेड स्टेट सीक्रेट सर्विस एजेंट्स
को दी जाती है। एसपीजी जवानों की ट्रेनिंग में शारीरिक क्षमता, निशानेबाजी, जवाबी हमले की कार्रवाई और कम्युनिकेशन का
बेहद अहम रोल रहता है।
इस ग्रुप का काम करने
का तरीक़ा चार हिस्सों में बंटा हुआ है। इसमें ऑपरेशन, ट्रेनिंग, इंटेलिजेंस एंड टूर्स और एडमिन हैं। 'ऑपरेशन' की टीम कम्युनिकेशन, टेक्निकल चीजों और ट्रांसपोर्ट का बंदोबस्त
देखती है। वहीं ट्रेनिंग डिपार्टमेंट जवानों की लगातार होते रहने वाली ट्रेनिंग की
ज़िम्मेदारी संभालता है। 'इंटेलिजेंस एंड टूर्स' धमकी और ख़तरे को भांपता है, इंटरनल इंटेलिजेंस पर नजर रखता है और साथ में यात्राओं का ज़िम्मा
संभालता है। 'एडमिन' इंतज़ामों पर काम करता है। बता दें कि एसपीजी
में शामिल जवानों की पहचान ज़ाहिर नहीं की जा सकती।
एसपीजी जवान पीएम के
आसपास मल्टीपल सिक्यॉरिटी रिंग बनाकर रहते हैं। इस रिंग के अंदर मौजूद जवानों का एक
ही काम होता है, किसी भी संभावित हमले से पीएम को सुरक्षित
रखना। हमले के वक़्त इन जवानों का काम हमलावरों का पीछा करना भी नहीं है। सिर्फ़ और सिर्फ़ पीएम को बचाना ही इनका मिशन है। ये जवान आधुनिकतम हथियारों व उपकरणों से लैस तथा सुरक्षा
तंत्र से जुड़े हुए होते हैं। हमले की सूरत में सेकंड कार्डन की ज़िम्मेदारी होती है
कि वह पीएम के चारों ओर घेरा बनाकर खड़े जवानों को सिक्यॉरिटी कवर दें, ताकि प्रधानमंत्री को सुरक्षित बाहर निकाला जा सके। यहाँ यह
जान लेना ज़रूरी है कि यह हमलावर फोर्स नहीं, बल्कि रक्षात्मक फोर्स है।
एनएसजी (नेशनल सिक्योरिटी गार्ड)
नेशनल सिक्योरिटी गार्ड
यानी एनएसजी, ये भारत की सबसे प्रमुख सिक्योरिटी फोर्स
है। ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद 16 अक्टूबर 1984 के दिन इसकी स्थापना की गई थी। एनएसजी के सदस्यों को ब्लैक कैट के नाम से भी जाना
जाता है, क्योकि वे विशेष कार्यो में काले ओवरऑल और
नक़ाब या हेलमेट पहनते हैं।
एनएसजी मुख्य रूप से
दो समूहों में बंटा है - स्पेशल एक्शन ग्रुप (एसएजी) और स्पेशल रेंजर्स ग्रुप (एसआरजी)।
उपरांत इसमें स्पेशल कंपोजिट ग्रुप एससीजी तथा इलेक्ट्रॉनिक सपोर्ट ग्रुप ईएसजी, नाम के समूह भी होते हैं। यह बल देश के एकमात्र राष्ट्रीय बम
डाटा केंद्र (नेशनल बॉम्ब डाटा सेंटर) की भी देखभाल करता है।
यह मूल रूप से प्रतिक्रिया
बल है। यह समुचित ढंग से प्रशिक्षित और प्रेरित बल है, जिसका काम देश में आतंकवादी गतिविधियों से निपटना है। यह राज्य
पुलिस के कमांडों को प्रशिक्षण भी देता है, ताकि आतंकवादी ख़तरों से निपटने, बम की तलाशी करने, उसे निष्क्रिय करने आदि में उनकी क्षमताओं
को बढ़ाया जा सकें। यह बल अपहरण जैसी घटना के दौरान प्रतिक्रिया देना, बंधकों को छुड़ाना जैसे अभियानों के लिए प्रशिक्षित है।
समय के साथ इन्हें
अतिविशिष्ट व्यक्तियों को सुरक्षा प्रदान करना, अन्य बलों के सुरक्षा अभियानों में मदद देना, राज्य पुलिस बलों को अतिविशिष्ट प्रशिक्षण देना, जैसे दायित्व
भी दिए गए हैं। एनएसजी ने अपनी जीवन काल में अऩेक आतंक विरोधी अभियानों, बंधक घटनाओं और अन्य आपातकालीन घटनाओं के दौरान अपना दायित्व
सफलातपूर्वक निभाया है।
मार्कोस कमांडो फोर्स (मरीन कमांडोज़)
मार्कोस भारतीय नौ
सेना की स्पेशल ऑपरेशन यूनिट है। मार्कोस कमांडोज़ को वर्ष 1991 तक मरीन कमांडो फोर्स
के नाम से भी जाना जाता था। यूएस नेवी सील के तर्ज़ पर यह एक ऐसी स्पेशल फोर्स है, जो पूरे हथियारों के साथ पानी में भी दुश्मन का मुक़ाबला कर
सकती है। मार्कोस का उपनाम 'मगरमच्छ' है। इसकी एनिवर्सरी वैलेंटाइन डे के दिन, यानी 14 फ़रवरी को होती है। इसका मोटो है, 'द फ्यू द फियरलेस।'
गरुड़ कमांडो की तरह
इनका प्रशिक्षण भी लंबा चलता है और इन्हें जल,
थल या वायु क्षेत्र से अभियानों को अंजाम देने के लिए ट्रेन
किया जाता है।
दरअसल, अप्रैल 1986 में नेवी ने एक मैरीटाइम
स्पेशल फोर्स योजना शुरू की और 1987 में इसका गठन किया गया। उन दिनों समुद्र में बढ़ते ख़तरे को देख एक ऐसे विशेष
बल की आवश्यकता महसूस की जा रही थी, जो समुद्री लुटेरों और आतंकवादियों को मुंहतोड़
जवाब देते हुए समुद्री अभियानों को अंजाम दे सकें। जल से ज़मीन पर युद्ध छेड़ने में
माहिर ये दल काउंटर टेररिज्म, डायरेक्ट एक्शन, किसी जगह का ख़ास निरीक्षण, अनकंवेंशनल वॉरफेयर, होस्टेज रेस्क्यूज़, पर्सनल रिकवरी और इस तरह के ख़ास अभियानों को पूरा करने के लिए
प्रशिक्षित है।
मार्कोस हाथ पैर बंधे
होने पर भी तैरने में माहिर होते हैं। ये कमांडोज़ झेलम और चेनाब जैसी गहरी नदियाँ
तो दूर, समुद्र तक में गोते लगाकर लोगों की जान बचाने
की क्षमता रखते हैं। इन्होंने अपने जीवनकाल में अनेक राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय अभियानों
को सफलतापूर्वक पूरा किया है।
आरएएफ (रैपिड एक्शन फोर्स)
रैपिड एक्शन फोर्स
(आरएएफ), केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल, सीआरपीएफ की एक
विशेष शाखा है, जिसे दंगा और भीड़ नियंत्रण स्थितियों से
निपटने के लिए स्थापित किया गया है। इसका गठन 11 दिसंबर 1991 के दिन हुआ था। आरएएफ के पास नीले रंग के छलावरण पैटर्न के साथ एक विशिष्ट वर्दी
है, जो शांति का प्रतीक है।
7 अक्टूबर 1992 तक यह बल पूर्ण रूप से कार्यरत हो गया था। दंगों, दंगे जैसी स्थितियों, भीड़ नियंत्रण, बचाव और राहत कार्यों और संबंधित अशांति से निपटना इसके मुख्य कार्य हैं। भीड़ को कम से कम नुकसान के साथ तितर-बितर करने के लिए यह बल ग़ैर-घातक हथियारों
से लैस है। स्थिति की मांग होने पर इसे हमेशा तेज़ी से तैनाती के लिए तैयार रखा जाता
है और केवल राज्य सरकारों की विशिष्ट मांगों पर गृह मंत्रालय के आदेशों द्वारा छोटी
अवधि के लिए तैनात किया जाता है।
गरुड़ कमांडो फोर्स
यह भारतीय वायुसेना
की टुकड़ी में रहते हैं। इसका गठन सन 2004 में किया गया था। अत्याधुनिक हथियारों से लैस इस फोर्स को हवाई क्षेत्र में हमला
करने, हवाई आक्रमण करने, स्पेशल कॉम्बैट और रेस्क्यू ऑपरेशन के लिए ख़ास तौर पर ट्रेन
किया जाता है। इनका प्रशिक्षण बुहत लंबा होता है। एक ट्रेनी को कार्यरत गरुड़ बनने
में 3 साल का समय लगता है। इसका निर्माण हवाई ठिकानों की विशेष सुरक्षा के साथ ही प्राकृतिक
आपदा के दौरान हवाई सहायता और अन्य हवाई ऑपरेशनों के लिए किया गया है।
पैरा कमांडोज़ और मार्कोस
की तरह इन्हें भी अतिमुश्किल ट्रेनिंग से गुजरना होता है। इन्हें पैरा जंपिंग और जल
से थल की लड़ाई का भी प्रशिक्षण दिया जाता है। हवाई ठिकानों की सुरक्षा के साथ ही वे
वायु सेना के अह्म अभियानों में भी भूमिका निभाते हैं। संयुक्त राष्ट्र शांति सेना
का हिस्सा होने की वजह से गरुड़ कमांडोज़ केवल देश की सुरक्षा ही नहीं करते, बल्कि ये दुनिया के दूर दराज़ इलाक़ों में जाकर संकट में फँसे
लोगों की मदद भी करते हैं।
ये फोर्स एक मशीन की
तरह काम करती है, जिसके पुर्ज़े एक-दूसरे से मिले होते हैं।
आमतौर पर चार गरुड़ कमांडो मिलकर एक छोटा दस्ता बनाते हैं, जिसे ट्रैक कहते हैं। चार-चार कमांडो के ऐसे ही तीन ट्रैक बनाए
जाते हैं। पहला ट्रैक दुश्मन पर हमला बोलता है, जबकि कमान नंबर टू के पास होती है। इतने में
नंबर थ्री टेलिस्कॉपिक गन से निशाना लगाता है, जबकि आख़िरी गरुड़ भारी हथियारों से तबाही
मचाता है। ये आगे बढ़ने की तकनीक होती है। इसे कैटर पिलर पैंतरा कहते हैं।
यह कमांडो फोर्स एयर
फ़ील्ड पर कब्जा करने में विशेषज्ञ है। बंधक स्थिति या फोरेस्ट वॉरफेयर में भी ये
माहिर हैं। 2001 में जब जम्मू-कश्मीर में स्थित वायु सेना के दो हवाई अड्डों पर हमला किया गया
उसके बाद इस फोर्स का गठन हुआ। पहले इस कमांडो फोर्स का नाम 'टाइगर फोर्स' रखा गया था, लेकिन बाद में इसे बदलकर 'गरुड़ कमांडो फोर्स' कर दिया गया।
कोबरा कमांडो (कमांडो बटालियन फॉर रेसोल्यूट एक्शन)
ये दुनिया की सबसे
बेहतरीन पैरामिलिट्री फोर्स में से एक है। कोबरा सीआरपीएफ का विशेष दस्ता है। इसे नक्सलवाद की समस्या से निपटने के लिए बनाया गया था। इसका मोटो है, यश या मृत्यु। समय के साथ इन्हें राष्ट्रपति भवन व संसद के सुरक्षा
दायित्वों में भी लगाया गया है।
इसका गठन 12 सितंबर 2008 के दिन हुआ था। 2009 में गृह मंत्रालय
ने 10 कोबरा बटालियन की स्थापना को मंजूरी दी।
ये उन विशेष सेन्य
बलों में से है, जिसे गुरिल्ला युद्धशैली की तकनीक विशिष्ट
रूप से सिखाई जाती है। ये भेष बदलने और घात लगाकर हमला करने में माहिर होते हैं। साथ
ही इन्हें नक्सलियों से लोहा लेने के लिए भी भेजा जाता है। इन जवानों को जंगल में छिपने, घात लगाने और सर्वाइवल टेक्नीक सिखाई जाती है। ये जवान ऊंचे
पेड़ों पर चढ़ने, पेड़ पर घंटों तक घात लगाकर छिपने और तेज़ी
से नीचे आने में माहिर होते हैं।
फोर्स वन
मुंबई में हुए 26/11 हमले के बाद महाराष्ट्र
सरकार ने बेस्ट कमांडोज़ का चुनाव कर राज्य में एक नई फोर्स तैयार की, जिसे नाम दिया
गया फोर्स वन। इसे तेज़ रिस्पॉन्स टीम्स के तौर पर ट्रेन किया जाता है, जो महज़ कुछ मिनटों के भीतर किसी भी ऑपरेशन के लिए तैयार हो सकें।
मुंबई हमले के बाद
26 नवंबर 2010 के दिन इस फोर्स का
निर्माण किया गया। ये महाराष्ट्र सरकार के लिए काम करने वाला दल है, जो मुंबई महानगरीय क्षेत्र की सुरक्षा के लिए मुंबई पुलिस की
एक विशेष इकाई है। यूनिट का प्रारंभिक प्रशिक्षण इज़रायली विशेष बल की सहायता और देखरेख
में किया गया था। आज कल इन्हें नेताओं और दूसरी हस्तियों की सुरक्षा में भी लगाया गया
है।
स्वाट - स्पेशल वैपन एंड टेक्टिक्स
यह दिल्ली पुलिस की
स्पेशल कमांडो फोर्स है, जो दिल्ली और राजधानी क्षेत्र की सुरक्षा
और ‘कोवर्ट ऑपरेशन’ का ज़िम्मा उठाती है। इसकी ट्रेनिंग एनएसजी
ट्रेनिंग सेंटर मानेसर में कराई जाती है। इस फोर्स ने ही कॉमनवेल्थ गेम्स की सुरक्षा
की ज़िम्मेदारी संभाली थी। यह फोर्स दिल्ली पुलिस कमिश्नर के प्रति उत्तरदायी होती है।
(इनसाइड इंडिया, एम वाला)
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