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Fake News Politics: झूठी ख़बरों की राजनीति... जब नेता और संगठन ही फ़ेसबुकिये-व्हाट्सएपिये बनकर काम करने लगे थे (पार्ट 1)


लास्ट अपडेट अक्टूबर 2019
 
फ़ेक न्यूज़, अविश्वसनीय दावे या भ्रमित करने वाली ख़बरों को लेकर बड़े से बड़े ग्रंथ लिखे जा सकते हैं। फ़ेक न्यूज़ क्यों फैलाए जाते हैं, कौन फैलाते हैं, कब फैलाते हैं, उससे क्या फ़ायदे या नुक़सान होते हैं, बहुत लंबा लिखा जा सकता है। "World of Fake News: फ़ेक ख़बरों का जंगल..." में हमने यह विस्तृत रूप से देखा। इस संस्करण में हम केवल उन फ़ेक ख़बरों की बात करेंगे, जो नेताओं, उनकी पार्टी या उनके संगठन के ज़रिए जाने-अनजाने में फैलाई गई और बाद में ख़बरों का गुब्बारा फूटा भी था।
 
फ़ेक राजनीतिक ख़बरों का व्यापार अरसे से भी पुराना होगा यह नोट कर लें
इस संस्करण में हम राजनीति और फ़ेक ख़बरों (अविश्वसनीय दावे, भ्रमित करने वाली ख़बरें) को देख रहे हैं। फ़ेक ख़बरों का यह 'राजनीतिक व्यापार' अरसे से भी पुराना होगा इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए। बरसों पुराने क़िस्सों को छोड़ दें और हालिया क़िस्सों की बात करें तो, आरएसएस कार्यकर्ताओं की ब्लैक एंड वाइट फ़ोटो, जिसमें उन्हें ब्रिटेन की महारानी को सलाम करते हुए दिखाया गया था, इस फ़ेक तस्वीर को कांग्रेस के नेता संजय निरुपम ने भी ट्वीट कर दिया था। मोदी का भाषण देखते हुए ओबामा की झूठी तस्वीर को भाजपा सांसद सीआर पाटील ने शेयर किया था। राजनाथ सिंह-नरेंद्र मोदी की साझा तस्वीर, जिसमें राजनाथ मोदीजी को लड्डू खिला रहे थे, में मोदीजी को हटाकर प्रकाश करात को जोड़ दिया गया था। तृणमूल कांग्रेस नेता डेरेक ओ ब्रायन ने इस तस्वीर को शेयर कर दिया था और बाद में माफ़ी भी मांग ली थी। ढेरों राजनीतिक उदाहरण मिल जाएँगे, जिसमें राजनीतिक दलों के आईटी सेल जानकारी साझा करते हैं या कुछ और, यह तय करने की ज़रूरत है।
 
यूएई और ब्रिटेन में दाऊद की संपत्ति ज़ब्त करने की ख़बरें, जिसे बाद में ख़ारिज कर दिया गया
2016 में बीजेपी के आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर एक निजी न्यूज़ चैनल की ख़बर को ट्वीट किया गया। दावा किया गया कि यूएई में दाऊद की संपत्तियाँ ज़ब्त की जा रही हैं। निजी न्यूज़ चैनल के हवाले से बीजेपी के आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर यह ट्वीट आया! लोगों ने सोचा कि न्यूज़ चैनल बिकाऊ हो सकते हैं, पार्टी थोड़ी न बिक जाएगी।
 
लेकिन कुछ ही दिनों बाद जिस देश में दाऊद की संपत्ति ज़ब्त होने की बात हो रही थी, उसी देश की संस्थाओं ने इसे ग़लत ख़बर करार दिया! बाद में भारत में भी अनौपचारिक रूप से इसे ग़लत ख़बर बताया गया! बताइए, मीडिया वाले नेताओं के ट्वीट को सोर्स बताकर ख़बरें चलाते हैं और नेता मीडिया के सोर्स को!!! लेकिन सारे सोर्स तो टोमेटो सॉस की तरह ही लगते है!
 
फिर अगले साल, 2017 में भी दाऊद की संपत्ति ज़ब्त होने की ख़बरें चलीं। इस बार दावा किया गया कि ब्रिटेन में यह कार्रवाई हुई है। सितम्बर 2017 के दौरान यह ख़बरें भारतीय मीडिया में छपी। मीडिया रिपोर्ट की माने तो ब्रिटेन में दाऊद की संपत्ति को ज़ब्त कर लिया गया था। हालाँकि यह मीडिया रिपोर्ट थे, ब्रिटेन या भारत में आधिकारिक तौर पर अब तक इस ख़बर की कोई पुष्टि नहीं की गई थी। सोशल मीडिया से लेकर प्रिंट मीडिया या न्यूज़ पोर्टल पर ख़बरें चलने लगी थीं।
 
जब ब्रिटेन गवर्नमेंट की ऑफिशियल वेबसाइट पर इससे जुड़ी जानकारी सर्च की गई तो पता चला कि वहाँ इस संबंध में कोई नोटिफिकेशन नहीं है! ब्रिटेन में सरकारी तौर पर किसी की संपत्ति को ज़ब्त करने का काम यूके सरकार के एचएम ट्रेजरी मिनिस्ट्री के अंतर्गत आता है। वेबसाइट पर ऐसी कोई ख़बर नहीं थी। यानी कि आधिकारिक तौर पर हाल तो यही था कि सरकार के एचएम ट्रेजरी मिनिस्ट्री ने प्रॉपर्टी सीज़ करने जैसी कोई कार्रवाई नहीं की थी! हाँ, दाऊद इब्राहिम का नाम सरकार की फाइनेंशियल सेंक्शंस टारगेट लिस्ट में 182वें नंबर पर ज़रूर मेंशन था, लेकिन अब तक प्रॉपर्टी ज़ब्त करने जैसा एक्शन नहीं हुआ था।
 
जब भारत के गृह मंत्रालय ने स्पेन की सीमा की चमकदार तस्वीर इस्तेमाल कर ली!!!
2017 में भारत के केंद्रीय गृह मंत्रालय की रिपोर्ट में स्पेन की सीमा की चमकदार तस्वीर छप गई थी! भारत के गृह मंत्रालय की 2016-17 की सालाना रिपोर्ट के पेज नंबर 40 पर यह जानकारी दी गई कि अंतरराष्ट्रीय सीमा है, वहाँ 2043 किमी तक तेज़ रोशनी की व्यवस्था करने की मंज़ूरी प्रदान की है, सिर्फ़ 100 किमी ही काम बाकी रह गया है और बाकी हो गया है। इसे दिखाने के लिए गृह मंत्रालय की रिपोर्ट में एक तस्वीर लगाई गई, जिसके नीचे लिखा हुआ था सीमा पर तेज़ रोशनी की व्यवस्था।
 
गृह मंत्रालय की रिपोर्ट को कौन झूठ बता सकता था भला। जिसने देखा चकाचौंध रह गया। पिछले साल इतने तालाब खुद गए थे किसी को पता नहीं चला था और अब 1900 किमी से अधिक इलाके में सरहद पर तेज रोशनी का भी किसी को पता नहीं चला!
 
लेकिन 14 जून 2017 को ऑल्ट न्यूज़ ने इसे झूठ बताते हुए सबूतों या तथ्यों के साथ एक रिपोर्ट छापी। ऑल्ट न्यूज़ ने जब पकड़ा तो गृह मंत्रालय ने माफ़ी मांगी!!!
 
सोचिए ऑल्ट न्यूज़ ने सच या झूठ का पर्दाफ़ाश नहीं किया होता तो हम एक नागरिक के रूप में यही सोचते रहते कि वाह क्या काम हुआ है। लेकिन यहाँ पेंच तो यही है कि किसी देश का गृह मंत्रालय ग़लत तस्वीर छाप देता है, वो भी सरहद की!!! ऐसा भी नहीं कि पंजाब की सरहद लिखा हो और तस्वीर राजस्थान के इलाके की हो। यहाँ तो भारत की सरहद लिखा था, और तस्वीर स्पेन की सरहद की थी!
 
लोगों को लाखों तालाब खुद गए ये नहीं पता था, इधर गृह मंत्रालय तक को नहीं पता था कि हमारी सरहद कौन सी है और वहाँ तेज़ रोशनी वाली व्यवस्था है या नहीं!
 
केंद्रीय ऊर्जा मंत्री भी रेस में पीछे नहीं रहे, रूस की तस्वीर को बता दिया भारत की तस्वीर!!!
ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल ने सोचा कि मैं भी हाथ आजमा लूँ! 27 अगस्त 2017 के दिन इन्होंने एक तस्वीर पोस्ट कर दावा किया कि केंद्र की मोदी सरकार की बदौलत हम भारतीय सड़कों को जगमगाने में सफल हो पाए हैं। लेकिन ज़ल्द ही पीयूष गोयल का भी बंटाधार हो गया। इन्होंने अपने दावे में जिस तस्वीर का इस्तेमाल किया वो भारत की नहीं बल्कि रूस की थी!!! इन्होंने हाथ आजमाने की जगह हाथ ही मार लिया था!
 
पीयूष गोयल ने रूस की इस तस्वीर को भारत का बताकर अपने ट्वीट में लिखा था - सरकार ने 50 हज़ार किलोमीटर की सड़कों को 30 लाख एलईडी लाइट्स से चमकाने का काम कर दिखाया है।
 
पीयूष गोयल द्वारा इस्तेमाल की गई ये फ़ेक तस्वीर सोशल मीडिया यूज़र्स की निगाहों से बच नहीं पाई। जॉय दास नाम के एक यूज़र ने इस तस्वीर को पकड़ लिया कि ये तो रूस की तस्वीर है। जॉय दास ने इस तस्वीर की सच्चाई बयान करते हुए सरकार पर तंज कसा और ट्वीट किया। देखते ही देखते जॉय दास का ये ट्वीट वायरल होने लगा।
 
फ़ेक तस्वीर के इस्तेमाल की ख़बर केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल तक भी पहुंची। गोयल को अपनी ग़लती का अहसास हुआ और उन्होंने तत्काल इस तस्वीर को हटा दिया। पीयूष गोयल ने अपनी ग़लती मानते हुए उन्हें तस्वीर की हक़ीक़त बताने वाले लोगों का शुक्रिया करते हुए एक और ट्वीट किया। केंद्रीय मंत्री ने अपने इस ट्वीट में लिखा कि जिस तरह से हम सड़कों को रोशन कर रहे हैं उसी तरह सोशल मीडिया तथ्यों को उजागर कर हमें रोशनी दे रहा है।
 
उनके इस नये ट्वीट के बाद सवाल तो यह बनता था कि अगर सोशल मीडिया रोशनी ही दे रहा है, तो फिर उसे नियंत्रण वाली कोठरी में डालने की सरकारी मंशा का मतबल क्या है।
 
पीएम मोदी ने पहले से चल रहे संस्थान को देश को समर्पित किया!!! 15 दिनों में दूसरी घटना से पता नहीं किसकी किरकिरी हुई
अक्टूबर माह में 15 दिनों के भीतर पीएम मोदी द्वारा दो-दो बार ऐसे संस्थान देश को समर्पित कर दिए गए, जो पहले से ही अस्तित्व में थे!!!
 
17 अक्टूबर 2017 के दिन पीएम मोदी ने नई दिल्ली में अखिल भारतीय आर्युवेद संस्थान देश को समर्पित किया। भाजपा के आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर लिखा गया, "पीएम मोदी ने संस्थान का उद्धाटन किया है।" राजनीतिक दल के जुमले तक तो ठीक है, किंतु कई मीडिया संस्थानों ने भी इसे नोट नहीं किया और ख़बरें चलती रही कि यह देश को समर्पित हुआ, वगैरह वगैरह!
 
जबकि दूसरी तरफ़ इस संस्थान के वेबसाइट में यह लिखा पाया गया कि 26 अक्टूबर 2010 के दिन तत्कालीन यूपीए सरकार के स्वास्थ्य मंत्री एस गांधीसेल्वम ने इसका उद्धाटन किया था। एक निजी न्यूज़ चैनल ने तो इस अस्पताल में इलाज करवा चुके मरीजों की सूची भी दिखा दी। एक पत्रकार ने कहा कि उसने पिछले साल ही अपने माता-पिता का इलाज इसी अस्पताल में कराया था।
 
अस्पताल के वेबसाइट में लिखा था कि सन 2004 में तत्कालीन उप राष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत ने इसका शिलान्यास किया था! फ़ेक न्यूज़ वाली माथापच्ची के बाद अब ऐसे संस्करणों को नया नाम क्या दें, यह आप ही तय कर लीजिए। या फिर दुआ कीजिए कि हमारे नेता लाल क़िले का शिलान्यास ना कर दें और मीडिया दिनभर चटपटा लाल रंग का वैभवी क़िला देश को हुआ समर्पित टाइप ख़बरें ना चलाने लगे।
 
इनकम टैक्स रिटर्न फ़ाइल करने वालों की संख्या का आँकड़ा सभी की जुबान पर अलग-अलग!!!
नोटबंदी के बाद सबसे बड़ा मुद्दा यही सामने आ रहा था कि तमाम प्रकार के आँकड़ों में बहुत बड़ी ऊंच नीच थी। सरकार के मंत्रालयों तक के बयानों में अंतर था! इनकम टैक्स रिटर्न फ़ाइल करने वालों की संख्या को लेकर भी यही मंजर पसरा रहा।
 
एक आकलन में कहा गया कि नोटबंदी के बाद आईटी रिटर्न फ़ाइल करने वालों की संख्या 25 फ़ीसदी बढ़ी है। उसमें क़रीब 56 लाख नये रिटर्न फ़ाइल किए गए थे ऐसी जानकारी देश को दी गई। जबकि 2016-17 का आर्थिक सर्वेक्षण पेश करते समय अरविंद सुब्रमण्यम ने कहा कि 5.4 लाख नये टैक्स पेयर दर्ज हुए हैं। 56 लाख और 5.4 लाख.... अच्छा था कि किसीने यह नहीं कहा कि पहले वाले आकलन में बीच में पॉइंट लगाना भूल गए थे, या फिर अरविंदजी ने ग़लती से पॉइंट लगा दिया था!!!

 
लेकिन दो और बयान भी थे, जो वित्त मंत्री और प्रधानमंत्री के थे। एक लोकसभा में दिया गया बयान था, तो दूसरा लाल क़िले से। चौंकाने वाली बात तो यह थी कि दोनों के बयानों में अंतर था!!! 16 मई 2017 को वित्त मंत्री ने कहा था कि 91 लाख नये टैक्स पेयर दर्ज हुए हैं। लाल क़िले से पीएम मोदी ने 56 लाख का आँकड़ा दिया, जो एक आकलन में हमने पहले ही देखा।
 
सोचिए, टैक्स पेयर के आँकड़े निश्चित ही नहीं थे और अब तो इसमें भी बहुमत वाला टोटका ही आजमाना पड़ रहा था! दो जगह 56 लाख का आँकड़ा, एक जगह 5.4 लाख का और एक जगह 91 लाख का। पीएम का आँकड़ा सच माने, देश के दस्तावेज़ आर्थिक सर्वेक्षण का आँकड़ा सच माने या फिर देश के वित्त मंत्री का? लेकिन रूकिए, अभी एक और ट्विस्ट बाकी था! सरकारी डाटा ये आँकड़ा 33 लाख का बता रहा था!!! सरकारी डाटा वाला यह आँकड़ा पहले भी सरकार के हवाले से मीडिया में छप चुका था!
 
फ़ेक पोस्ट को लेकर कोलकाता में भाजपा आईटी सेल इंचार्ज की गिरफ़्तारी, कभी भोजपुरी मूवी के वीडियो चले, कभी गुजरात हिंसा की तस्वीरें इस्तेमाल हुईं
जुलाई 2017 के दौरान पश्चिम बंगाल सांप्रदायिक हिंसा की आग में झुलस रहा था। वैसे भी दंगे के बारे में एक बात हमेशा कही जाती है कि दंगे होते नहीं, बल्कि करवाए जाते हैं। सांप्रदायिक हिंसा का अपना एक भद्दा इतिहास रहा है।
 
बंगाल की इस हिंसा के दौरान बशीरहाट में भी सांप्रदायिक हिंसा की घटना हुई थी। वहाँ एक तस्वीर फैलाई जाने लगी कि बदुरिया में हिन्दू औरतों के साथ ऐसा हो रहा है। बांग्ला में जो लिखा था, उसका हिंदी अनुवाद यूँ था - टीएमसी को समर्थन करने वाले हिन्दू, बताओ क्या तुम हिन्दू हो। इसके साथ उपरोक्त तस्वीर के सहारे एक समुदाय विशेष के ख़िलाफ़ एक समुदाय को भड़काया जा रहा था।
 
ऑल्टन्यूज़.इन ने बताया कि इस तस्वीर को बीजेपी हरियाणा की एक सदस्य ने हिन्दी में लिखकर शेयर कर दिया। लिख दिया कि बंगाल में जो हालात हैं, हिन्दुओं के लिए चिंता का विषय है।
 
बाद में पता चला कि यह तस्वीर बंगाल की नहीं है, बल्कि 2014 में रिलीज़ हुई भोजपुरी फ़िल्म के एक सीन की है!!! आप सोच सकते हैं कि भोजपुरी फ़िल्म के एक सीन का इस्तेमाल बंगाल और बंगाल से बाहर धार्मिक भावना को भड़काने के लिए हो रहा था!!!
 
स्क्रॉल.इन ने इस पर पूरी ख़बर छापते हुए एक और जानकारी दी कि बीजेपी की प्रवक्ता नुपूर शर्मा ने 2002 के गुजरात दंगों की तस्वीर साझा कर दी थी, यह लिखते हुए कि यह बंगाल में हो रही सांप्रदायिक हिंसा की है!!! स्क्रॉल ने लिखा था कि बताने-कहने के बाद भी इन ट्वीट को डिलीट नहीं किया गया।
 
इन्हीं दिनों पश्चिम बंगाल में आसनसोल के बीजेपी आईटी सेल के सचिव तरुण सेनगुप्ता को कथित रूप से फ़ेक फ़ोटो पोस्ट करने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया। उन पर आरोप लगा कि उन्होंने रामनवमी के दौरान एक फ़ेक वीडियो अपलोड किया था कि एक मुस्लिम पुलिस अफ़सर हिन्दू आदमी को मार रहा है। इस वीडियो के साथ आपत्तिजनक और सांप्रदायिक टिप्पणी की गई थी। सवाल उठे कि फ़ेक ख़बरें फैलाकर हमारे नेता ऐसी चीज़ें क्यों कर रहे हैं? यह कौन सी रणनीति का हिस्सा है?
 
इस गिरफ़्तारी को लेकर पश्चिम बंगाल की ममता सरकार पर सवाल भी उठे। सवाल उठना लाज़िमी भी था। क्योंकि सांप्रदायिक हिंसा के अपने भद्दे इतिहास में सत्ता दल विपक्ष की आवाज को अमूमन क़ानून की आड़ में दबाता रहा है। वहीं यह भद्दा इतिहास यह भी दर्शाता है कि ऐसे मामलों में ज़्यादातर तो विपक्ष भी डेटॉल से धुला हुआ नहीं होता! आप कह सकते हैं कि डेटॉल से धुला तो कोई नहीं होता।
 
आरोप लगा कि संदिप सेनगुप्ता ने लघुमती कौम के पुलिस अधिकारी बहुमती कौम के नागरिकों को मार रहे हो ऐसा वीडियो पोस्ट किया था। यह वीडियो 17 अप्रैल 2017 के दिन रामनवमी के मौक़े पर पोस्ट किया गया था। जिसमें लघुमती कौम के दो आईपीएस अधिकारी इरादतन बहुमती कौम के लोगों को निशाना बना रहे थे ऐसा दावा किया गया।
 
अजीब तो यह भी था कि सीआईडी को यह कथित भड़काऊ वीडियो जुलाई में नज़र आया और उन्होंने सेनगुप्ता को गिरफ़्तार कर लिया। सोशल मीडिया में भड़काऊ या फ़ेक न्यूज़ फैलाने के प्रयास में ये तीसरी गिरफ़्तारी थी। इससे पहले कोलकाता पुलिस ने भाजपा की नेता नुपूर शर्मा के ख़िलाफ़ दो मामले दर्ज किए थे, जिसमें उन्होंने कथित रूप से पश्चिम बंगाल की हिंसा का विरोध करने के लिए गुजरात हिंसा की तस्वीरों का इस्तेमाल किया था। वहीं कालीगंज के अहमद हुसैन तथा रुपनगर के भवतोष चटर्जी को भी गिरफ़्तार किया गया था, जिन्होंने भोजपुरी मूवी का वीडियो सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दावा किया था कि ये पश्चिम बंगाल की हिंसा के दृश्य हैं!
 
सांसद परेश रावल और एक झूठा कथन, जो अब्दुल कलाम का बताया गया
जुलाई 2017 के दौरान बीजेपी के बड़े नेता, सांसद और अभिनेता परेश रावल ने एक ट्वीट किया। 3 जुलाई को ट्वीट आया, जिसमें सांसद परेश रावल ने एक बयान ट्विटर हैंडल पर शेयर किया, जो बकौल परेश रावल, पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम का था।
 
ट्वीट में लिखा था, "मुझे पाकिस्तान ने इस्लाम का हवाला देकर मिलाने का प्रयास किया लेकिन मैंने मातृभूमि के साथ गद्दारी नहीं की।" इस बयान को वे अब्दुल कलाम का कथन बता रहे थे। साथ में लिखा कि यह छद्म लिबरल लोगों के लिए है।
 
बाद में पता चला कि वो बयान कलाम का था ही नहीं! जब हंगामा हुआ तो परेश रावल ने कहा कि मुझे पता नहीं था कि यह फ़ेक है, अगर इनकी जगह कोई और होता तो मैं इसे दो बार चेक करता मगर कलाम की वजह से मुझे यह सही लगा! इतने बड़े बड़े सांसद किसी सामान्य सोशल मीडिया यूज़र्स सरीखी शैली लेकर चलने लगे तो फिर इनके ज्ञान को किस लेवल पर रखेंगे आप?
 
पाकिस्तान के फ़ेक न्यूज़ को भारतीय सांसद परेश रावल ने इस्तेमाल किया, चैनलों में फ़ेक न्यूज़ को लेकर बाक़ायदा दिनों तक होती रही थी बहस!!!
17 मई 2017 को परेश रावल ने ट्वीट किया कि, "अरुंधति रॉय ने इंटरव्यू दिया है कि 17 लाख भारतीय सेना कश्मीर के आज़ादी गैंग को हरा नहीं सकती।" इसके साथ उन्होंने अरुंधति रॉय की तस्वीर लगा दी, जिसमें वो सेना की जीप के आगे बंधक अवस्था में बिठाई गईं थीं।
 
अरुंधती रॉय के तरीक़ों से आपको नफ़रत हो तो आप उसे गाली दे दो। लेकिन तब आप नागरिक होने चाहिए, नेता नहीं। सार्वजनिक जीवन व्यतित कर रहे लोगों का अपना एक दायरा होता है। परेश रावल ने तो फ़ेसबुकिया टाइप वो फ़ेक तस्वीर ही इस्तेमाल कर ली। वैसे तस्वीर फ़ेक थी यह सभी को पता था, परेश रावल को भी। लेकिन अरुंधती रॉय के इंटरव्यू वाला बयान बवाल काट गया।
 
इसे लेकर कई बड़े न्यूज़ चैनलों पर बाक़ायदा बहस हो गई। बहस का तेवर ऐसा था कि अरुंधति रॉय का देशनिकाला ही हो जाएगा। ताज्जुब यह था कि ये सब कुछ परेश रावल के उस ट्वीट के बाद हुआ था और बाद में पता चला कि ट्वीट का दावा तो पूरी तरह निराधार था!!!
 
सोचिए, टीवी चैनल, विशेषज्ञ, नेता, समर्थक... सारे के सारे उस चीज़ पर अपने फेफड़े फाड़ गए, जो चीज़ हुई ही नहीं थी!!! पता चला कि अरुंधति रॉय न तो हाल में श्रीनगर गईं थीं और न ही ऐसा कोई इंटरव्यू किसी को दिया था। अरुंधति रॉय ने एक साल पहले आउटलुक पत्रिका को ज़रूर इंटरव्यू दिया था। मगर परेश रावल का ट्वीट उस इंटरव्यू को लेकर नहीं था।
 
24 मई को दवायर.इन ने जब यह पता लगाया कि परेश रावल तक जानकारी कैसे पहुंची, तो फ़ेक न्यूज़ का एक और ख़तरनाक पहलू सामने आया। इस पूरे खेल को समझना बड़ा दिलचस्प है।
 
परेश रावल ने अरुंधति रॉय का यह फ़ेक इंटरव्यू द नेशनलिस्ट नाम के फ़ेसबुक पेज से उठाकर ट्वीट कर दिया था! बताइए, किसी फ़ेसबुक पेज पर लिखा हो उसे जाँचना या परखना चाहिए ये नागरिकों तक की कॉमन सेंस में है, लेकिन एक सांसद को यह ठीक नहीं लगा था!!! खैर... हम आगे चलते हैं। इस पेज पर ख़बर पहुंची थी पोस्टकार्ड.न्यूज़ से। गौरतलब है कि इन दिनों कई ऐसे साइट लोगों की नज़रों में आ चुके थे, जो फ़ेक ख़बरों के लिए पूरी तरह बदनाम थे। पोस्टकार्ड.न्यूज़ भी इसी सिलसिले में विवादित हो चुका था।
 
इस पर लिखा था कि अरुंधति रॉय ने यह इंटरव्यू द टाइम्स ऑफ़ इस्लामाबाद को दिया था कि 17 लाख भारतीय सेना कश्मीर के आज़ादी गैंग को हरा नहीं सकती। पोस्टकार्ड.न्यूज़ ने अपना सोर्स नहीं बताया था! किसी न्यूज़ का सोर्स नहीं बताना भी अपने आप में चर्चा का विषय है। वायर.इन ने पाया कि रेडियो पाकिस्तान ने सबसे पहले यह प्रसारित किया था। जिस द टाइम्स ऑफ़ इस्लामाबाद को पाकिस्तानी अख़बार बताया जा रहा था, दरअसल वो वेबसाइट था, अख़बार नहीं!!!
 
पोस्टकार्ड.न्यूज़ ने जिस दिन ये फ़ेक इंटरव्यू छापा था उसी दिन इसे सत्यविजयी.कॉम ने भी छापा और चार पांच वेबसाइट ने भी इसे अपने यहाँ जगह दी। इन सभी का नाम भी फ़ेक न्यूज़ के सिलसिले में आ चुका था। दवायर.इन ने पकड़ा कि दइंटरनेटहिंदू.इन ने अपनी स्टोरी में टाइम्स ऑफ़ इस्लामाबाद का लिंक दिया था।
 
देखिए और सोचिए और साथ में समझिएगा भी कि किस तरह पाकिस्तानी साइट से चलते हुए कोई फ़ेक न्यूज़ या फ़ेक इंटरव्यू भारत के सांसद के ट्विटर हैंडल पर पहुंचता है और वहाँ से भारत के चैनलों पर अरुंधति रॉय के ख़िलाफ़ ज़ोरदार बहस छिड़ जाती है! परेश रावल ने ट्वीट डिलीट कर दिया, लेकिन महीनों बाद भी यह फ़ेक इंटरव्यू रेडियो पाकिस्तान की वेबसाइट और भारत के पोस्टकार्ड.न्यूज पर तस्वीर के साथ था! यह भी एक रणनीति है। जब विवाद थम जाएगा तो फिर से इस फ़ेक इंटरव्यू को घुमाया जाने लगेगा। क्या पता व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी में घुमाया ही जा रहा हो।
 
लालू प्रसाद यादव ने रैली को रेला बताने के लिए यहाँ भी कर दिया था घोटाला
28 अगस्त 2017 को लालू ने भाजपा भगाओ देश बचाओ रैली का आयोजन किया, जिसमें विपक्षों का जमघट लगा। हालाँकि एक दर्जन से ज़्यादा विपक्ष पार्टियाँ मिलकर भी पटना का गांधी मैदान पूरा नहीं भर पाई। फिर क्या था। लालूजी ने तो फ़ेक तस्वीर का ही इस्तेमाल कर लिया! जैसे फ़ेसबुकिये यूज़र होते हैं, वैसे यहाँ इन्होंने ट्विटरियाँ ही कर दिया!
 
लालू यादव ने इस रैली की एक तस्वीर ट्विटर पर शेयर की। तस्वीर में पूरा मैदान लोगों से खचाखच भरा हुआ दिखाई दे रहा था। लालू ने लिखा – "कोई भी चेहरा लालू के आधार के आगे नहीं टिक सकता। आओ और गिनो, जितना गिन सकते हो।"
 
लेकिन ज़ल्द ही रैली की असली तस्वीर कहीं से सामने आ गई और लालू रैली के बजाए फ़ेक पोस्ट की वजह से ही सुर्खियों में आ गए। लालू ने जो तस्वीर डाली थी वो वास्तविक तस्वीर से उलट थी, जिसे कंप्यूटर तकनीक के ज़रिए बनाया गया था! फिर तो ऐसी अनेक फ़ेक तस्वीर बनाकर विरोधियों ने जमकर लालू की खिंचाई की। आरजेडी के प्रवक्ता ने कहा कि ग़लती हुई है, हम इसे सुधार लेंगे।
 
कर्णाटक में गणेश चतुर्थी को लेकर फ़ेक न्यूज़ का कारोबार चला
सितम्बर 2017 का महीना था। कर्णाटक में भी गणेश चतुर्थी के त्यौहार का माहौल बना हुआ था। तभी सोशल मीडिया में इसे लेकर एक ख़बर फैली। ख़बर यह थी कि – "कर्णाटक सरकार जहाँ बोलेगी वहीं गणेशजी की प्रतिमा स्थापित करनी है। प्रतिमा स्थापित करने से पहले दस लाख का डिपॉजिट करना होगामूर्ति की ऊंचाई की इजाज़त सरकार से लेनी पड़ेगी। दूसरे धर्म के लोग जहाँ रहते हैं वहाँ से विसर्जन के लिए नहीं जा सकेंगे। पटाखे नहीं जला सकते।"
 
वैसे जिनके भेजे में ऊपर वाले ने कुछ भेजा हो उनको तो पहली नज़र में ही इस ख़बर में कितनी नकली हवा है यह पता चल ही जाना था। लेकिन भेजा और भेजे में कुछ ना भेजा, ये सब कुछ काम का ही नहीं, जब अपने माध्यम से कोई संगठन इस ख़बर को फैलाने लगे। ये झूठ इतना ज़ोर से फैल गया कि अंत में कर्णाटक के पुलिस प्रमुख आरके दत्ता को प्रेस बुलानी पड़ी और सफ़ाई देनी पड़ी कि सरकार ने ऐसा कोई नियम नहीं बनाया है और ये सब झूठ है।
 
इस झूठ का सोर्स जब पता लगाया गया तो फिर एक बार पोस्टकार्ड.न्यूज़ वेबसाइट का नाम सामने आया। कई पत्रकारों ने इस साइट के बारे में आलोचनात्मक लेख में कहा है कि इसका काम ही हर दिन फ़ेक न्यूज़ बनाकर सोशल मीडिया में फैलाना है। 11 अगस्त 2017 को पोस्टकार्ड.न्यूज़ ने एक आर्टिकल छापा था, जिसका शीर्षक था कर्णाटक में तालिबान सरकार। फिर तो इस लिंक के ज़रिए सोशल मीडिया में गणेश चतुर्थी के नियमों का झूठ जमकर फैला और अंत में पुलिस प्रमुख को सफ़ाई देनी पड़ी।
 
नये राष्ट्रपति कोविंद और ट्विटर फ़ॉलोअर्स का तिकड़म
इस ख़बर को पढ़कर आप वाक़ई हैरान होंगे कि कोई कहानी कितनी अजीबोग़रीब होनी चाहिए, ताकि मैट्रिक पास इसे झूठी ख़बर मान सके। बिना यह सोचे कि क्या वाक़ई ऐसा संभव है, भारतीय समाज का एक हिस्सा इस बात से अभिभूत हो गया कि एक घंटे में राष्ट्रपति कोविंद के तीस लाख फ़ॉलोअर बन गए!
 
जब रामनाथ कोविंद ने राष्ट्रपति पद की शपथ ली तो उस दिन बहुत सारे अंग्रेज़ी टीवी चैनलों ने ख़बर चलाई कि सिर्फ़ एक घंटे में ट्विटर पर राष्ट्रपति कोविंद के फ़ॉलोअर की संख्या 30 लाख हो गई है। वे चिल्लाते रहे कि 30 लाख बढ़ गया, 30 लाख बढ़ गया।
 
मक़सद यह बताना था कि कितने लोग कोविंद को सपोर्ट कर रहे हैं। जबकि सच यह था कि उस दिन पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का सरकारी अकाउंट नए राष्ट्रपति के नाम हो गया था। जब ये बदलाव हुआ तब राष्ट्रपति भवन के फ़ॉलोअर अब कोविंद के फ़ॉलोअर हो गए थे। अब आप यह भी कह सकते हैं कि प्रणब मुखर्जी को भी तीस लाख से भी ज़्यादा लोग ट्विटर पर फ़ॉलो करते थे। लेकिन यह राष्ट्रपति का ट्विटर अकाउंट था, ना कि प्रणब मुखर्जी या कोविंद का।
 
तिरंगे को लेकर दो केंद्रीय मंत्रियों ने फ़ेक फ़ोटो इस्तेमाल कर ली
अगस्त 2017 में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने एक फ़ोटो शेयर किया था, जिसमें कुछ लोग तिरंगे में आग लगा रहे थे। फ़ोटो के कैप्शन पर लिखा था – "गणतंत्र के दिवस पर हैदराबाद में तिरंगे को आग लगाई जा रही है।"
 
इसी तरह एक टीवी पैनल के डिस्कशन में बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा कि सरहद पर सैनिकों को तिरंगा लहराने में कितनी मुश्किलें आती हैं, फिर जेएनयू जैसे विश्वविद्यालयों में तिरंगा लहराने में क्या समस्या है। और यह सवाल पूछकर संबित ने एक तस्वीर दिखाई, जिसमें एक सैनिक झंडा लहरा रहा था।

 
गूगल इमेज सर्च एक नया एप्लीकेशन आया है, उसमें आप किसी भी तस्वीर को डालकर जान सकते हैं कि ये कहाँ की और कब की है। यह सहूलियत इस्तेमाल की गई और उस एप्लीकेशन के ज़रिए गडकरी के शेयर किए गए फ़ोटो की सच्चाई उजागर हो गई। पता चला कि ये फ़ोटो हैदराबाद का नहीं है, बल्कि पाकिस्तान का है, जहाँ एक प्रतिबंधित कट्टरपंथी संगठन भारत के विरोध में तिरंगे को जला रहा है।
 
इसी तरह संबित बाबू ने जो तस्वीर दिखाई थी, उसके बारे में पता चला कि यह एक मशहूर तस्वीर है, मगर इसमें भारतीय नहीं, अमेरीकी सैनिक हैं! दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अमेरीकी सैनिकों ने जब जापान के एक द्वीप पर क़ब्ज़ा किया तब उन्होंने अपना झंडा लहराया था। मगर फ़ोटोशॉप के ज़रिए संबित पात्रा लोगों को चकमा दे रहे थे या फिर कोई संबित बाबू को चकमा दे गया था, यह पता नहीं चल पाया। लेकिन ट्विटर पर लोगों ने इनका बहुत मज़ाक उड़ाया।
 
फ़ोटोशॉप को सांसद ने इस्तेमाल किया, पता चला तो डिलीट किया, पर माफ़ी नहीं मांगी
कर्णाटक से भाजपा नेता और सांसद प्रताप सिंहा भी फ़ेक तस्वीर के इस्तेमाल को लेकर अपना नाम दर्ज करवा चुके हैं। उन्होंने एक रिपोर्ट को शेयर किया था, जो कथित रूप से टाइम्स ऑफ़ इंडिया से आया था। इस रिपोर्ट का शीर्षक था – "हिन्दू लड़की की मुसलमान ने चाकू मारकर हत्या कर दी।"
 
फ़ेक न्यूज़ को लेकर कुछ लिंक या कुछ राजनीतिक साइट आजकल मशहूर हैं। उनके लिंक से ही पता चल जाता है कि फ़ेक न्यूज़ फैकट्री का उत्पादन है यह। लेकिन टाइम्स ऑफ़ इंडिया का रिपोर्ट शेयर किया जाए तो फिर कौन शक करता था। लेकिन रिपोर्ट का हेडलाइन ही लोगों के दिमाग में शक पैदा करने लगा। कॉमन सेंस की बात थी कि टाइम्स ऑफ़ इंडिया जैसा मशहूर अख़बार किसी रिपोर्ट का शीर्षक सांप्रदायिकता वाले लफ़्ज़ों से कैसे बुन सकता था? जब शक पैदा हुआ तो कुछ ने इसकी जाँच की।
 
पहले तो पता चला कि कमाल की बात यह थी कि भारत के किसी भी दूसरे अख़बार ने ऐसी कोई रिपोर्ट नहीं छापी थी। सबको कॉमन सेंस थी, लेकिन सांसद को नहीं थी, ये भी कमाल की ख़बर ही मान ले! खैर, तभी तो सांसद बनते होंगे लोग। बाद में पता चला कि यह एक फ़ोटोशॉप था, जिसमें किसी दूसरे न्यूज़ में हेडलाइन लगा दिया था और सांप्रदायिकता का रंग दिया गया था। पता तो यह भी चला कि ऐसा कोई रिपोर्ट टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने भी नहीं छापा था। हंगामा हुआ तो सांसद ने पोस्ट डिलीट कर दिया। हालाँकि उन्होंने ना ही माफ़ी मांगी और ना ही पछतावा जाहिर किया।
 
दिग्विजय सिंह ने पोस्ट किया फ़र्ज़ी वीडियो, बाद में रवीश कुमार से मांगी माफ़ी
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने अपने वेरिफ़ाइड ट्विटर अकाउंट से एक पोस्ट किया था। इस पोस्ट में यूट्यूब वीडियो का लिंक भी दिया गया था और दावा किया गया था कि एनडीटीवी के एग्जीक्यूटिव एडिटर रवीश कुमार ने प्रधानमंत्री मोदी को 'गुंडा' कहा है।
 
दरअसल 5 सितम्बर 2017 के दिन बेंग्लुरु में जानीमानी पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या कर दी गई, जिसके बाद दिल्ली स्थित प्रेस क्लब में पत्रकारों ने एकत्र होकर अपने-अपने विचार रखे थे। इस दौरान रवीश कुमार ने इस बात पर पीएम मोदी से जवाब मांगना चाहा था कि गौरी लंकेश की हत्या के बाद उन्हें (गौरी लंकेश को) अपशब्द कहने वाले कुछ लोगों को पीएम ट्विटर पर क्यों फ़ॉलो करते हैं? हालाँकि रवीश कुमार ने सवाल पूछा, लेकिन किसी प्रकार का अपशब्द या आपत्तिजनक शब्दों का प्रयोग नहीं किया था। लेकिन कांग्रेसी नेता ने एक वीडियो लिंक रखकर पोस्ट के ज़रिए दावा कर दिया कि रवीश कुमार ने पीएम को गुंडा कहा था!
 
हालाँकि कांग्रेसी नेता दिग्गी का यह झूठ कुछ घंटे तक ही चल पाया और जब सारा मामला झूठ साबित होने लगा तो दिग्गी ने बाक़ायदा ये लिखकर माफ़ी भी मांग ली कि, "रवीश ने प्रधानमंत्री के प्रति कोई अपशब्द का उपयोग नहीं किया। यूट्यूब पर जो रवीश का भाषण था, वह मैंने ट्वीट किया था। रवीशजी क्षमा करें।"
 
यूएन में पाकिस्तान ने लिया फ़ेक न्यूज़ का सहारा, फिलिस्तीनी लड़की को बता दिया कश्मीर की पीड़िता
नेताओं की बात निकली है तो इसी साल एक ऐसा वाक़या भी हुआ, जहाँ एक राष्ट्र ने फ़ेक तस्वीर का इस्तेमाल कर लिया था! और वो भी यूएन जैसे मंच पर!!! पाकिस्तान ने सचमुच हदें पार ही कर दी थीं।
 
भारत की विदेशमंत्री सुषमा स्वराज के 23 सितम्बर 2017 के दिन यूएन में दिए गए भाषण के बाद पाकिस्तान के राजनयिक मलीहा लोधी ने एक तस्वीर पेश की। तस्वीर में दिख रही लड़की का चेहरा घावों से भरा था। लोधी ने इस तस्वीर को कश्मीर की तस्वीर बताया और कहा कि यह भारत की लोकशाही का चेहरा है।
 
लेकिन उसी दिन साफ़ हो गया कि पाक ने यूएन जैसे मंच पर व्हाटस्एप यूनिवर्सिटी टाइप घिनौनी हरकत कर दी थी। दरअसल यह तस्वीर भारत की नहीं बल्कि फिलिस्तीन की थी! गाज़ा की अबु जोमा नाम की लड़की की तस्वीर थी यह, जिसे पाकिस्तान ने कश्मीर की लड़की बताया था! सन 2014 में इज़राइल ने गाज़ा शहर पर हवाई हमला किया था, इसी दौरान यह लड़की ज़ख़्मी हुई थीं। यरूशलेम के फ़ोटो जर्नलिस्ट हिदी लिवाइन ने इस तस्वीर को 22 जुलाई 2014 के दिन खींचा था। 27 मार्च 2015 के दिन डॉ. रामी अब्दु ने इस तस्वीर को ट्विटर पर इस्तेमाल किया था।
 
(इनसाइड इंडिया, एम वाला)