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Brainless Speeches: राजनीति की छतरी ऐसी कि बात हिंदुस्तान की, लेकिन जुबां हिंदुस्तानी नहीं रहती!

 
वैसे नेतागीरी का यह ट्रिक भी कमाल का है। बयान कोई एक नेता देता है, उसका मतलब समझाने कोई दूसरा बैठ जाता है! संदर्भ कोई तीसरा समझाता है!! अगर तब भी विवाद नहीं थमता तब चौथा आकर आख़िरी हथियार छोड़ देता है कि वह बयान व्यक्तिगत था, उसका पक्ष से कोई लेना-देना नहीं है, हम बयान की निंदा करते हैं!!!
 
पार्ट 4
 
ये नेता लोग बोलते वक़्त इतने भयमुक्त हो जाया करते हैं कि इन्हें किसी भी धर्म के देवी या देवता या व्यक्ति का भय ही नहीं रहता। लगता है कि धार्मिक भावना आह्त करने के जितने भी क़ानून व नियम हैं, वे आम लोगों के लिए हैं, नेताओं को किसी विशेष स्थिति में ही लागू होते होंगे।
 
19 जुलाई 2017 के दिन सपा सांसद नरेश अग्रवाल सदन में कुछ इसी तरह बोलते नज़र आए। उन्होंने कहा कि, “1991 में राम जन्मभूमि आंदोलन के दौरान कई रामभक्त जेल में गए थे। उस वक़्त कई स्कूलों को अस्थायी जेल बना दिया गया था। ऐसी एक जेल में मैं भी गया था। मैंने वहाँ दीवारों पर रामभक्तों द्वारा लिखी गई दो लाइन देखी थीं।उन्होंने राज्यसभा में कहा कि, “उन दो लाइन में लिखा था, व्हिस्की में विष्णु बसे, रम में श्रीराम, जिन में माता जानकी और ठर्रे में हनुमान। सियावर रामचंद्र की जय।
 
फिर क्या था। हंगामा होना तय था। हंगामा बरपा तो नरेश अग्रवाल ने तुरंत माफ़ी भी मांग ली और उनका भाषण रिकॉर्ड से हटा भी दिया गया। बताइए, कुछ भी बोलो वहाँ, कोई गल नहीं जी! अन-डू वाला टूल जमकर इस्तेमाल होता है वहाँ!
 
दिसंबर 2020 के दौरान भाजपा सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने कहा कि, राष्ट्र की रक्षा के लिए क्षत्रिय अधिक संख्या में बच्चे पैदा करें।
 
दिसंबर 2020 में भाजपा सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने कहा, क्षत्रिय को क्षत्रिय कह दो बुरा नहीं लगता, ब्राह्मण को ब्राह्मण कह दो तो बुरा नहीं लगता, वैश्य को वैश्य कह दो तो बुरा नहीं लगता, शूद्र को शूद्र कह दो तो बुरा लग जाता है। कारण क्या है?”
 
अगस्त 2017 में एक उप चुनाव के प्रचार के दौरान वाईएसआर कांग्रेस के नेता जगनमोहन रेड्डी तो प्रतियोगिता में पहले नंबर पर आने को आमादा दिखे। आंध्र के सीएम चंद्रबाबू नायडू की आलोचना करने के चक्कर में इन्होंने कह दिया, नायडू ने लोगों को ठगने के साथ झूठे वादे किए हैं और ऐसे मुख्यमंत्री को गोली मार देना ही ठीक है।
 
वैसे आप नागरिक किसी मुख्यमंत्री तो क्या, छिटपुटिये नेता के बारे में भी ऐसा मत बोलिएगा। चंद मिनटों में जेल के अंदर ही होंगे आप!!!
 
सेवानिवृत्त हो रहे उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने भी 10 अगस्त 2017 के दिन एक विवादित बयान अपने आख़िरी भाषण में दिया था। उन्होंने कहा, “देश के मुस्लिम समुदाय में भय तथा असुरक्षा की भावना व्याप्त है। असहिष्णुता तथा गौरक्षा के नाम पर हो रही हिंसा का मुद्दा मैंने प्रधानमंत्री तथा उनके मंत्रियों के सामने उठाया है। बिगड़े बोल वाला बयान नहीं था, लेकिन विवादित ज़रूर था।
बेटी बचाओ का नारा देने वाली भाजपा को उनके नेता ही सुन नहीं रहे थे ऐसा लगा। अगस्त 2017 में चंडीगढ़ में एक लड़की की छेड़खानी मामले में जब हरियाणा भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सुभाष बराला के पुत्र का नाम उछला और मामला राष्ट्रीय मीडिया में दिनों तक चमका तो ज़िम्मेदारी से बोलने के बजाय हरियाणा भाजपा के उपाध्यक्ष रामवीर भट्टी ने कहा, “शिकायत करने वाली लड़की देर रात बाहर क्यों घूम रही थीं? लड़कियों को रात 12 बजे के बाद बाहर नहीं निकलना चाहिए। आज का ज़़माना ठीक नहीं है। ख़ुद की सुरक्षा ख़ुद ही करनी पड़ती है।
 
इसीलिए तो इन्हें नेता कहा जाता है! और ये लोग ऐसे ही देश में घूम रहे हैं। इन्हें कोई बांधता क्यों नहीं है?
 
अगस्त 2017 के दौरान गोरखपुर के एक अस्पताल में कथित रूप से ऑक्सीजन की कमी की वजह से दो दिनों के भीतर 30 से ज़्यादा मासूमों की जान चली गई। उस वक़्त वहाँ भाजपा शासित सरकार थी। सरकार के स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह ने तो मुलायम सिंह प्रशासन की कमी की भरपाई ही कर दी।
 
इन्होंने बचाव में कहा कि, बीडीआर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में हर साल अगस्त महीने में ज़्यादा बच्चों की मौतें होती ही हैं। उधर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने तो इन्हें भी पीछे छोड़ दिया, यह कहकर कि, इतना बड़ा देश है, ऐसे हादसे तो होते रहते हैं।
 
कांग्रेस का दौर याद आ गया, जब 2008 में उनके मंत्री ने कहा था कि आतंकी ज़्यादा लोगों को मारने आये थे, लेकिन कम ही मरे ये हमारी सफलता है। इन्होंने भी कहा कि, हर साल बच्चे मरते हैं, इस बार कम मरे। कांग्रेस और मुलायम सिंह, किसी की कमी भी महसूस नहीं होने दी इन्होंने।

 
इन दोनों को कुछ बोलने के बजाय 15 अगस्त को पीएम देश को उपदेश देते दिखे कि हमें ऐसे हादसों के प्रति सजग होना चाहिए। मनमोहन के काल में निर्भया कांड के दौरान मनमोहन सिंह के उपदेश सुन के लगता था कि पीएम चुना है या पादरी। लेकिन मोदीजी भी मनमोहन के बाद दूसरे पादरी बन कर तेज़ी से उभर रहे थे।
 
इस बीच अपने विवादित बयानों से ज़्यादा प्रसिद्ध आदित्यनाथ शायद सीएम पद से कुछ देर विमुक्त होकर पुरानी गलियों में लौटना चाहते थे। इन मासूमों की मोत के बाद इसी अस्पताल में दूसरी बिमारियों के चलते 3 दिनों में 60 बच्चों की मौतें हुई। अगस्त माह में इसी अस्पताल में 386 बच्चों की जान जा चुकी थी।
 
सूबे के सीएम आदित्यनाथ ने लखनऊ में एक कार्यक्रम के दौरान कहा, “हम लोगों ने अपनी ज़िम्मेदारी सरकार पर डाल दी है, जैसे हम सभी ज़िम्मेदारियों से मुक्त हो गए हों। मुझे तो कभी कभी लगता है कि एक समय के बाद ऐसा ना हो कि लोग अपने बच्चों को एक-दो साल का होते ही सरकार के भरोसे छोड़ दें कि अब सरकार इन बच्चों का पालन पोषण करे।
 
संवैधानिक ज़िम्मेदारी को बेशर्मी से ख़ारिज करने वाला बयान। वे अपने नाम के आगे योगी भी लगाते हैं, इस लिहाज़ से धर्मप्रतिनिधि के रूप में यह बयान धर्म के प्रचलित संस्कारों से भी विपरित ही था। उधर, पीएम देश को सजग रहने का कह चुके थे।
 
25 अगस्त 2017 के दिन भाजपा सांसद साक्षी महाराज फिर एक बार एक्शन में दिखे। उस दिन दोपहर डेरा सच्चा सौदा के मुखिया गुरमीत रामरहिम को पंचकुला की विशेष सीबीआई अदालत ने दुष्कर्म मामले में दोषी ठहराया। फिर हिंसा का अभूतपूर्व मंज़र सामने आया।
इस बीच साक्षी महाराज ने तो गुरमीत राम रहीम को एक पवित्र आत्माकह दिया! साक्षी महाराज ने अपने बयान में कहा कि, करोड़ों लोग राम रहीम को भगवान मानते हैं, लेकिन कोर्ट ने सिर्फ़ एक आदमी के आरोप के आधार पर उन्हें दोषी करार दे दिया। करोड़ों लोगों की भावनाएं आहत हुई हैं। इसका ज़िम्मेदार कौन है?”
 
साक्षी महाराज तो कुछ ज़्यादा ही रंग में दिखे और इन्होंने इसे भारतीय संस्कृति को नष्ट करने की योजना बताई। उन्होंने कहा कि, “आशाराम बापू, कर्नल पुरोहित, प्रज्ञा ठाकुर और सच्चिदानंद और भी कई लोग इन्हें निशाना बनाया जा रहा है, जबकि दिल्ली की जामा मस्जिद के इमाम हैं उनके ख़िलाफ़ सैकड़ों एफ़आईआर हो चुकी हैं, उसके ख़िलाफ़ कार्रवाई करने की हिम्मत किसी की नहीं पड़ती है।
 
रामरहीम की आत्मा कैसी है वो क़ानून और संविधान तय कर चुके थे, इधर साक्षी महाराज अपनी आत्मा का खुल्ला प्रदर्शन कर रहे थे! अदालत के फ़ैसले को इन्होंने भारतीय संस्कृति को नष्ट करने की योजना बता दिया! जिस बाबा को बलात्कारी करार दिया जा चुका था, उसे इन्होंने पवित्र आत्मा कह दिया! रही बात ईमाम वगैरह की, देश के लगभग आधे से ज़्यादा प्रदेशो में इनकी ही सरकार थी, पीएम, राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति तक इनके थे और वे हिम्मत और डर वाला बयान दे रहे थे!
 
इतना ही नहीं, जब डेरे को 50 लाख के अनुदान वाले सवाल भाजपा पर उठे तो भाजपा नेता अनिल विज ने तो यह भी कह दिया था कि, हमने डेरे को अनुदान दिया था, ना कि राम रहीम को।
 
जीएसटी को लेकर भाजपा ने अपना स्टैंड बदला था ये तो सभी जानते हैं। भाजपा समर्थक जानते हैं, पर मानते नहीं ये बात और है! अगस्त 2017 के अंत में जीएसटी को लेकर केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने जीएसटी की तुलना नई बहू के साथ कर दी और कहा कि, “जीएसटी घर में आई उस नई बहू जैसा है, जिसे घर के अन्य सदस्यों के साथ सामंजस्य बैठाने में वक़्त लगता है।
 
अर्जुन राम मेघवाल का प्रभाव केंद्रीय मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान पर अक्टूबर 2017 में दिखा। धर्मेंद्र प्रधान ने जीएसटी तथा नोटबंदी का बचाव करते हुए कहा, “नए जूते शुरुआत में कुछ दिनों तक काटते हैं, लेकिन बाद में आरामदायक हो जाते हैं। आर्थिक सवालों के जवाब में नेताजी बहू और जूतों के उदाहरण दिए जा रहे थे!
 
5 सितम्बर 2017 के दिन वरिष्ठ पत्रकार और हिंदुत्व राजनीति की कट्टर आलोचक गौरी लंकेश की बेंगलुरु में उनके घर के बाहर गोली मार कर हत्या कर दी गई। गौरी लंकेश जानीमानी पत्रकार थीं, जो तीखी भाषा में लिखा करती थीं। उनकी हत्या के बाद प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक जमकर बवाल मचा।
 
ट्वीट के सम्राट बन चुके पीएम मोदी की चुप्पी पर विरोधी दलों ने जब सवाल उठाए तो सरकार के मंत्री नितिन गड़करी ने व्हाट्सएप सरीखा उत्तर दिया कि, क्या पीएम को हर मुद्दों पर बोलना ज़रूरी होता है?”
 
कांग्रेस के समय मनमोहन सिंह के बचाव में उनके मंत्री ऐसी ही दलील दिया करते थे, आज दलील वही थी, किरदार बदल चुके थे! वैसे प्रधानमंत्री को शिखर धवन के टूटे अँगूठे पर ट्वीट करना ज़रूरी था, इस मुद्दे पर नहीं!
नितिन गड़करी फट पड़े तो कर्नाटक के श्रृंगेरी से भाजपा के विधायक और पूर्व मंत्री जीवराज को भी फटने का मन हुआ। चिकमंगलूर में एक कार्यक्रम में विधायक ने कहा, “गौरी लंकेश ने अगर आरएसएस के ख़िलाफ़ नहीं लिखा होता तो आज वह ज़िंदा होती। गौरी लंकेश जिस तरह लिखती थीं, वो बर्दाश्त के बाहर था।
 
बताइए, एक ज़माना था, जब आतंकवादी लेखन से डरते थे और स्कूलों को जला देते थे। लेकिन अब नेता लोग भी लेखन को बर्दास्त नहीं कर पा रहे थे! हां, संसद के भीतर आपत्तिजनक वीडियो ज़रूर बर्दास्त कर गए थे।
 
वैसे इस दौर में विदेश में जाकर भारत की गंदी राजनीति की तरह एकदूसरे पर बयानबाजी करने का चलन केवल नरेंद्र मोदी ही नहीं, बल्कि राहुल गांधी भी कर चुके थे। विदेश में जाकर नरेंद्र मोदी के बाद राहुल गांधी की जुबान भी फिसली थी, जब इन्होंने अमेरिका में भारत की राजनीति में परिवारवाद, पीएम मोदी, पार्टियों के आईटी सेल समेत कई मुद्दों पर टिप्पणियाँ कर दी थीं।
 
सितम्बर 2017 में जब पेट्रोल का दाम 80 के पार जा पहुंचा और लोगों में नाराज़गी सतह पर आई, तो पत्रकारों ने केंद्रीय पर्यटन राज्यमंत्री अल्फोंस कन्ननथनम से इस पर टिप्पणी मांगी। इन्होंने तो बड़ी बहादुरी दिखाते हुए बढे हुए दामों को सही ठहरा दिया।
 
उन्होंने कहा, समाज कल्याण वाले कार्यों में काफी पैसा लगने वाला है। इसके लिए हम टैक्स बढ़ा रहे हैं। जो लोग सक्षम हैं उन्हें टैक्स देना होगा।वे यहीं नहीं रुके और कह दिया कि, “जो लोग पेट्रोल ख़रीद रहे हैं वह कौन हैं? पेट्रोल वहीं ख़रीद रहे हैं, जिनके पास कार या बाइक है। निश्चित रूप से ये लोग भूखे नहीं मर रहे हैं।
 
कभी कभी तो यह भी लगता है कि जो सत्ता में आता है उसको एक बीमारी सी हो जाती होगी। अल्फोंस के बयान का विवाद चल ही रहा था कि उत्तर प्रदेश के योगी सरकार में पिछड़ा वर्ग एवं विकलांग जन कल्याण मंत्री ओम प्रकाश राजभर ने एक जनसभा में कहा कि, यूपी में बीजेपी एक महीने में जितना ख़र्च करती है उतने का तो उनकी बिरादरी वाले एक दिन में शराब पी जाते हैं।राजभर ने कहा, “जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमसे पूछा कि मैं बिना पैसों के पार्टी कैसे चलाता हूँ, तो मैंने उन्हें कहा कि मोदी जी आपकी पार्टी का उत्तर प्रदेश में जितना मासिक ख़र्च है, हमारे समुदाय के लोग रोज़ाना उतने पैसों की शराब पी जाते हैं।

 
बताइए, ये नेताजी तो दावा कर रहे थे कि पीएम के सामने भी इन्होंने शराब वाली शेखी मारी है!
 
कभी रोजगारी के मुद्दे पर पुरे देश को झकझोरने वाली भाजपा जब सत्ता में आयी तो उनके ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल ने 7 अक्टूबर 2017 के दिन रोजगारी की समस्या के मुद्दे पर कहा था, देश में बेरोजगारी की बढ़ती समस्या अच्छी निशानी है। इससे युवा स्वरोजगार की तरफ़ मुड़े हैं।
 
अपने आलाकमान की प्रशंसा करने में एक दफा यूपी के तत्कालीन सीएम योगी आदित्यनाथ इतने उतावले हो गए कि इन्होंने गुजरात के वलसाड़ में एक सभा के दौरान कह दिया कि, “पूरा देश गुजरात मॉडल का अनुसरण करता है, इतना ही नहीं अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी नरेंद्र मोदी का अनुसरण करते हैं।
 
हमारे यहाँ ऐतिहासिक इमारतें या स्मारक भी नेताओं की नज़र में राजनीति का एक विशेष हथियार बने रहते हैं। इसी क्रम में 15 अक्टूबर 2017 के दिन मेरठ से भाजपा के सांसद संगीत सोम ने कह दिया, गद्दारों द्वारा बनाए गए ताजमहल की इतिहास में जगह नहीं होनी चाहिए। नोट करें कि इससे कुछ दिन पहले ही उन्हीं की पार्टी की केंद्र सरकार ने 2015-16 के दौरान सरकार को सबसे ज़्यादा आमदनी देने वाली ऐतिहासिक इमारतों में ताजमहल को प्रथम स्थान दिया था।
 
फिर तो ताजमहल पर एक के बाद एक विवादित बयान का दौर चलने लगा। पीएम मोदी ने देश के इतिहास को सम्मान देने की नसीहत दी। किंतु लगा कि उनके ही नेताओं ने इस नसीहत को नहीं सुना था।
 
इतिहास को उलट-पुलट करने की चाहत के इस क्रम में केंद्रीय मंत्री अनंत कुमार हेगड़े ने टीपू सुल्तान पर अपना ज्ञान बिखेरते हुए कहा, “टीपू सुल्तान हत्यारा व सामूहिक बलात्कारी शासक था।इन दिनों कर्नाटक में टीपू जयंती का समय था। जयंती का समर्थन और विरोध चल रहा था और इसी चक्कर में इतिहास को आलू-मटर की तरह छीला जा रहा था।
इन्हीं दिनों असम से भाजपा सांसद कामाख्या प्रसाद तासा पर आरोप लगा कि उन्होंने एक रैली के दौरान कह दिया कि, “कांग्रेस ने दीन दयाल उपाध्याय की विचारधारा के बारे में जाने बिना लोगों के दिमाग में गांधी और नेहरू जैसा 'कचरा' भर दिया।गांधी-नेहरू को कचरा कहने पर इनके ख़िलाफ़ काफी विरोध भी हुआ। कांग्रेस ने शिकायत भी दर्ज करवाई थी।
 
अक्टूबर 2017 के दौरान गुजरात में कांग्रेस के नेता मोहन सिंह राठवा ने चुनावी विवादों को आगे बढ़ाते हुए कहा, “चुनाव से पहले पहली धार की शराब मिले तो पी लेना, पाउच मिले तो खा लेना, अंग्रेज़ी आती है तो उसे भी छोड़ना नहीं और पैसे मिलते हैं तो पैसे भी ले लेना, लेकिन भाजपा को वोट नहीं करना।
 
एक दौर था जब लालू प्रसाद यादव ने बिहार की सड़कों को अभिनेत्री हेमा मालिनी के गाल जैसा बता दिया था! वहीं अक्टूबर में मध्य प्रदेश के सीएम शिवराज सिंह ने वॉशिंग्टन जाकर कह दिया कि, मैं जब एयरपोर्ट से निकल कर जा रहा था तब मुझे मध्य प्रदेश की सड़कें अमेरिकी रास्तों से ज़्यादा बेहतर लगी थीं।

 
उधर लघुमतियों के वोट को साधने की नीति कांग्रेस छोड़ नहीं सकती थी। इसी क्रम में अक्टूबर 2017 के दौरान कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व वित्त मंत्री चिदंबरम ने कहा, “कश्मीर में आज़ादी, यानी लोग ज़्यादा स्वायत्त होने की मांग कर रहे हैं।वोटों के चक्कर में चिदम्बरजी को कश्मीर की आज़ादी का सही सही मतलब भी पता चल गया था।
 
चुनावी मौसम था और गिरिराज सिंह के बोलने का समय आ चुका था। उन्होंने ट्वीट कर लिखा कि, "आतंकवाद के समाप्त होने से कांग्रेस परेशान (अपसेट) है और कांग्रेस के समाप्त होने पर आतंकवादी परेशान हैं।" कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल जिस अस्पताल के ट्रस्टी रहे थे उस अस्पताल से आतंकी की गिरफ़्तारी के बाद उनका ये ट्वीट आया था।
 
नेता और संत-बाबा लोग कूदते हैं तो अभिनेता लोग क्यों ने कूदे? नवंबर 2017 के दौरान प्रसिद्ध अभिनेता कमल हासन ने तमिल पत्रिका आनंद विकटन में अपने नियमित कॉलम में लिखा, “हिंदू आतंकवाद अब वास्तविकता बन चुका है और हिंदू संगठन अपने अंदर इस अतिवाद की मौजूदगी से इनकार नहीं कर सकते हैं।
 
साथ ही उन्होंने लिखा कि, “गुज़रे ज़माने में हिंदू दक्षिणपंथी अन्य धार्मिक समूहों के साथ अपने विवादों पर सिर्फ़ बौद्धिक बहस किया करते थे, लेकिन जैसे ही यह तरीक़ा नाकाम होने लगा, वे बाहुबल का सहारा लेने लगे और अब उन्होंने हिंसा का रास्ता अख्तियार कर लिया है। अब हिंदू दक्षिणपंथी दूसरे समूहों के अतिवाद पर उंगली नहीं उठा सकते हैं, क्योंकि उनके अंदर भी इसी तरह के तत्व मौजूद हैं।
चुनावी मौसम था, ऐसे में भला हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज कैसे चुप रह पाते? 5 नवंबर 2017 को विज ने ट्विटर पर लिखा कि, सौ कुत्ते मिलकर भी एक शेर का मुक़ाबला नहीं कर सकते। गुजरात चुनाव बीजेपी ही जीतेगी।
 
वैसे नेताओं को चुनावी मौसम के दौरान गधे, कुत्ते आदि विशेषण क्यों याद आते हैं ये मुद्दा विश्लेषण करने लायक नहीं है। क्योंकि बिना विश्लेषण के ही इसका अंदाज़ा लगाया जा सकता है। वैसे यह भी ज़रूरी नहीं कि चुनावी मौसम ही इनकी जुबां को गिराता हो।
 
उधर कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी ने इस ट्वीट का जवाब ट्वीट से दिया और उन्होंने भाजपाई नेताओं को बौखलाए हुए चूहेकहा।
 
उधर महाराष्ट्र से चिकित्सा शिक्षा मंत्री गिरीश महाजन महिलाओं और शराब के बारे में बोलकर अपनी किरकिरी करवा गए। महाजन एक सुगर फैक्ट्री के उद्घाटन समारोह में पहुंचे थे, जहाँ उन्होंने कंपनी को सलाह दी कि, “उन्हें शराब की बोतल पर नाम 'महाराजा' की जगह 'महारानी' रखना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि कोल्हापुर और संघली में ब्रांड्स के नाम जूली, भिंगारी और बॉबी रखे हुए हैं और उनकी कंपनियाँ अच्छा बिज़नेस कर रही हैं।इस विवादित बयान के बाद एक एनजीओ ने उनके ख़िलाफ़ पुलिस थाने में शिकायत दर्ज करवाई। जिसके बाद महाजन ने बाक़ायदा माफ़ी भी मांग ली।
 
उधर यूपी में आज़म खान ने अधिकारियों को बाक़ायदा सार्वजनिक रूप से धमकी देते हुए कहा कि, अधिकारी मुझे भूले नहीं। उनका इलाज पाँच साल बाद किया जाएगा। आज़म खान के इस बयान के सामने भाजपा के नगर अध्यक्ष गजराज राणा ने भी धमकी देते हुए कह दिया कि, वो अपनी भाषा को मर्यादित कर ले, नहीं तो उसे उठाकर बंगाल की खाड़ी में फेंक आऊँगा।
 
(इनसाइड इंडिया, एम वाला)