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Corona Fake News : निराधार ख़बरों को चाव से फैलाने वालों के लिए भी 'मैं समाज का अपराधी हूँ' वाला बैनर होना ही चाहिए



अगर समाज में पढ़े-लिखे लोग ही फ़ेक न्यूज़ के हत्थे चढ़कर मूर्खता करते हैं, तो फिर ऐसे पढ़े-लिखे लोगों को भी मैं समाज का अपराधी हूँ वाला बैनर लगना चाहिए। कोरोना को लेकर फ़ेक न्यूज़ और निराधार जानकारियों का जो उबाल आया, उसमें ज़्यादा हैरान करने वाली बात यह है कि इस उबाल में पढ़े-लिखे लोगों का योगदान बहुत ही ज़्यादा है!

नौकरी करने वाले, बिज़नेस करने वाले, यूँ कहे कि ख़ुद को 21वीं सदी का बताने वाले कई पढ़े-लिखे लोग फ़ेक न्यूज़ के हत्थे चढ़े! शिक्षक सरीखे लोग, जो भारत के भविष्य के निर्माता का तमगा लिए घूमते हैं, वे भी इस मूर्खतापूर्ण यज्ञ में शामिल दिखाई दिए! सारे न सही, लेकिन तादाद ख़ासी थी! हम यह नहीं लिखेंगे कि पढ़े-लिखे लोग शिकार हुए। बल्कि हम यही लिखेंगे कि इन्होंने चाव से इन ख़बरों को फैलाने में योगदान दिया।

फ़ेक न्यूज़ परखने को लेकर कई सारी सिंपल सी चीज़ें होती हैं, बहुत ज़्यादा नहीं बल्कि थोड़ा-बहुत ही ज्ञान ज़रूरी होता है और कॉमन सेंस होनी चाहिए। अब इतनी सामान्य सी चीज़ें पढ़े-लिखे लोगों में ना मिले, और वे लोग चाव से फ़ेक न्यूज़ को फैलाते रहे, तब वे शिकार नहीं बने होते, बल्कि मूर्खता के यज्ञ में योगदान दे रहे होते हैं।

फ़ेसबुक तो फ़ेकबुक के नाम से बदनाम था ही! फ़ेसबुक तो फिर भी अच्छा है यह व्हाट्सएप आने के बाद पता चला!!! हालात यह है कि फ़ेक न्यूज़, जिसके साथ मूर्खतापूर्ण पाठकों को जोड़ा जाता है, उन्हें व्हाट्सएप विश्वविद्यालय कहा जाने लगा है। व्हाट्सएप विश्वविद्यालय नामकरण एक विशेष तमगा बन गया है। यह तमगा गौरव के लिए है या फिर शर्म के लिए, यह समझने के लिए मैट्रिक पास होना ज़रूरी है!

हम फ़ेक न्यूज़ की दुनिया टेग के भीतर ऐसी कई ख़बरों को लिख चुके हैं। कोरोना महामारी के दौरान भी भारत में फ़ेक न्यूज़ और निराधार जानकारियों का उबाल सा आया। बिना वक़्त गवाएं देखते हैं कुछ ऐसी फ़ेक ख़बरों को, जो राष्ट्रीय स्तर पर फैल गईं। सैकड़ों की तादाद में निराधार चीज़ें फैली थीं, सबको यहाँ लिखना मुमकिन नहीं है। इसलिए कोरोना से जुड़ी मुख्य फ़ेक ख़बरों को ही हम यहाँ संक्षेप में रख रहे हैं। नोट करें कि इन्हें ऑल्टन्यूज़, बीबीसी फैक्ट चेक, डब्ल्यूएचओ, भारत सरकार के पत्र सूचना कार्यालय समेत कई प्रमाणित प्लेटफॉर्म से फ़ेक साबित किया जा चुका है।

13 साल पुरानी मूवी का सीन इटली की सामूहिक कब्र बता दिया गया!!!
हमने फ़ेक न्यूज़ के इससे पहले के संस्करणों में यह भी देखा है कि राष्ट्रीय स्तर के न्यूज़ चैनल 2-3 साल पुराने वीडियो को हाल के वीडियो बताकर पेश कर चुके हैं, जिन्हें बाद में चैनलों ने ही हटा दिया था!!! मीडिया 2-3 साल पीछे जा सकता है तो फिर सोशल मीडिया 12-13 साल पीछे क्यों नहीं जा सकता भाई? है न?

यह वीडियो पढ़े-लिखे लोगों के वाल पर, स्टेटस पर ख़ूब फैला। वीडियो में एक बड़ा गड्ढा होता है, जिसमें ट्रकों से सैकड़ों लाशें गिराई जा रही होती हैं। यह दिखाकर दावा किया गया कि यह इटली का वीडियो है, जहाँ हज़ारों लोगों को इस तरह से दफ़नाया जा रहा है। वीडियो में एंकर और आवाज़ भी डाली गई और झूठा दावा किया गया कि मुर्दाघर क्षमता से अधिक भरे पड़े हैं, इसलिए इटली की सेना इस तरह से सामूहिक रूप से लाशों को दफ़ना रही है।

भयावह... दर्दनाक... सरीखे भावनात्मक लफ्ज़ तो थे ही, जिससे भावना नामकी लोगों की भावना पर सीधा वार हो और दिमाग़ बंद हो जाए। बंद दिमाग़ में फ़ेक न्यूज़ जल्दी घुसता है। वीडियो का रिजोल्यूशन इतना हाई था कि लगा कि किसी बहुत ही विशिष्ट कैमरे से वीडियो को रिकॉर्ड गया हो। दरअसल कैमरा विशिष्ट ही था। जी हां, इतना विशिष्ट कि यह हॉलीवुड मूवी में इस्तेमाल होने वाला कैमरा था!

जी हाँ, यह इटली का वीडियो नहीं था! ना ही 2020 का वीडियो था! बल्कि यह 13 साल पुरानी हॉलीवुड मूवी का वीडियो क्लिप था!!!

वीडियो में एंकर Riptide Virus का नाम लेती हैं। इसी ज़िक्र से बहुत ही आसानी से पता लगा कि ये वीडियो 2007 में रिलीज हुई मिनीसीरीज़ Pandemic का है! ये सीरीज़ यूट्यूब पर उपलब्ध है और वायरल क्लिप वाले हिस्से को 1:01:54 से 1:02:22 के दौरान देखा जा सकता है। Pandemic एक साइंस-फ़िक्शन हॉरर सीरीज़ है, जिसमें एक बीमारी के विशेषज्ञ और एफबीआई एजेंट इस जानलेवा वायरस को रोकने की कोशिश करते हैं।

यह हॉलीवुड मूवी का एक क्लिप था, इसीलिए तो रिजोल्यूशन हाई था। ऊपर से हम लोग ख़ुद को कितना भी ज्ञानी या पढ़ा-लिखा मान लें, लेकिन हम अनपढ़ और गंवार ही साबित होते हैं! देखिए न, व्हाट्सएप विश्वविद्यालय में कोरोना के विशेषज्ञ बने घूम रहे लोगों का, वीडियो में रेप्टीटाईड वायरस का ज़िक्र होने के बाद भी दिमाग़ नहीं खुला था!

8 साल पुरानी मूवी की तस्वीर को फिर से इटली के साथ जोड़ दिया गया!
वैसे भी इन दिनों भारत में इटली की धूम थी! सोनपापड़ियों से निवेदन है कि बुरा मत लगाना, क्योंकि इनके यहाँ तो इटली की धूम पहलें से ही है! लेकिन अब की बार भारत में कोरोना को लेकर इटली की तस्वीरें ठैलने का चलन जोरों पर था।

बताइए, किसीको तस्वीरें नहीं मिलीं, तो 8 साल पुरानी मूवी से तस्वीरें निकाल लीं!!! नीचे इटली से जुड़े आँकड़े लिख दिए और सोशल मीडिया पर डालकर इटली के विनाश को तस्वीरों में पेश कर दिया!!!

तस्वीर में ढेर सारी लाशें नज़र आ रही थींं। दावा यही कि कोरोना वायरस ने कई लोगों की जान ले ली और अब एक साथ दफ़नाया जा रहा है। लेकिन तस्वीर का इटली से कोई लेना-देना ही नहीं था! इस तस्वीर से काल्पनिक दुनिया का लेना-देना था, किसी देश का नहीं!

दरअसल यह तस्वीर 2011 में रिलीज हुई मूवी कंटेजियन के एक सीन की थी!!! मूवी के ट्रेलर का जो वीडियो है उसमें 2 मिनट 20 सेंकड पर यही तस्वीर नज़र आ जाएगी। इस फ़ेक न्यूज़ के जन्मदाता ने सोचा होगा कि कोई 12 साल पीछे जा सकता है, तो वो 8 साल क्यों पीछे नहीं जा सकता!

10-12 साल छोड़िए... क़रीब 35 साल पुरानी तस्वीर को भी फ़ेक न्यूज़ के लिए इस्तेमाल किया गया!!!
10-12 साल तो छोड़ ही दीजिए। क्योंकि अब की बार क़रीब 34-35 साल पुरानी एक तस्वीर को 2020 का बता कर शेयर कर दिया गया था!!!

इस तस्वीर में हमें एक महिला दिखाई दे रही है, जिसके साथ एक बच्चा भी है। महिला को पूरी तरह से प्रोटेक्टिव गियर से ढका हुआ देखा जा सकता है। ये तस्वीर कोरोना वायरस से जुड़ी हुई बताकर शेयर की गई। और फिर वही बात... दर्दनाक वगैरह वगैरह।

गूगल पर रिवर्स इमेज सर्च करने पर इस तस्वीर को तुर्की की एक वेबसाइट ‘gelecekegitimde’ के ट्विटर हैन्डल पर पाया गया। तस्वीर को 21 जुलाई 2019 को ट्वीट किया गया था। ट्वीट में बताया गया था कि बच्चे को कैंसर है और महिला अपने बच्चे को प्रोटेक्टिव गियर पहन कर गले लगा रही है। बात यही ख़त्म नहीं होती। भले ही तस्वीर को पिछले साल ट्वीट किया गया था, लेकिन यह तस्वीर 34-35 साल पुरानी थी!!!

आगे सर्च करने पर पता चला कि यह तस्वीर pro.magnumphotos.com नामक वेबसाइट पर भी है। तस्वीर को वाशिंगटन के फ्रेड हचिंसन कैंसर सेंटर का बताया गया है। और वेबसाइट के मुताबिक़ ये तस्वीर 1985 की है। बताइए, क़रीब 35 साल पुरानी तस्वीर... वो भी अमेरिका की... ऊपर से केंसर पीड़ितों की... जिसे कोरोना से सन 2020 में जोड़ दिया गया!!!

एक दूसरे मामलें में तो क्रोएशिया के भूकंप पीड़ितो की तस्वीर को इटली के कोरोना संक्रमित मरीजों की तस्वीरें बताकर पेश किया गया था!

जनता कर्फ्य़ूं के दिन लोग वैज्ञानिक बनने की मूर्खता करने लगे, वायरस इतने घंटे तक ज़िंदा रह सकता है, उतने घंटे तक ज़िंदा रह सकता है वाला गुणाभाग धड़ल्ले से चलने लगा था!
जनता कर्फ़यू के दौरान यह मैसेज ख़ूब फैला। दावा यह कि वायरस इतने घंटे तक ज़िंदा रह सकता है, उतने घंटे तक ज़िंदा रह सकता है। यह लिखकर कोई लिखने लगा कि इसीलिए सरकार ने 14 घंटे का जनता कर्फ़यू लगाया है। मास्टर स्ट्रोक वाला राजनीतिक अंदाज़ तैरने लगा। उन दिनों यही लगा कि डब्ल्यूएचओ और वैज्ञानिकों को जो नहीं पता, वो हमारे यहाँ व्हाट्सएप विश्वविद्यालय वालों को पता है!!!

ग़ज़ब के दावे होने लगे कि वायरस इतने घंटे में मर जाएगा, पूरी श्रृंखला टूट जाएगी! कोरोना वायरस का जीवनचक्र लोग समझाने लगे! हमने तो उसी दिन चुनिंदा पढ़े-लिखे लोगों को मैसेज भेजकर कहा कि इस मूर्खता में गिरकर जगहँसाई मत करवाओ। 20 मार्च 2020 का दिन था वो।

अब भी कई लोगों के पास हमारा वो मैसेज पड़ा होगा, जो यूँ था – "जिस रिसर्च की दो लाइन कॉपी-पेस्ट किए जा रहे हैं हम सब, उस रिसर्च को पहले पूरा पढ़ लेना चाहिए। इतने घंटे तक कोरोना ज़िंदा रह सकता है, उतने घंटे तक ज़िंदा रह सकता है वाला जो मैसेज घूम रहा है, घुमाने वालों को भी नहीं पता कि यह National Institute of Health, Centers for Diseases Control and Prevention, UCLA and Princeton University के रिसर्च के एक पेरा की दो लाइन हैं। उसी रिसर्च में यह भी लिखा है कि कोविड-19 प्लास्टिक और फ़र्श पर 9 दिनों तक ज़िंदा रह सकता है।"

दरअसल, वैज्ञानिकों को अभी कोविड-19 के जीवनचक्र, प्रभाव, स्वभाव और उपाय नहीं पता है, सो जो बात वैज्ञानिक कर ही नहीं रहें, उन बातों को लिखने की मूर्खता का कोई मतलब नहीं रह जाता!

उसी दिन हमने यह भी एड किया था कि इतने घंटे या उतने घंटे के चक्कर में मत पड़ो यारो, यह संयोग नहीं है संभवित प्रयोग है। ठीक उसी दिन के कोरोना इन इंडिया वाले ब्लॉग में भी साफ़ लिखा कि घंटों के मैथेमेटिक्स छोड़कर इस एक दिन के कर्फ़यू को किसी बड़ी तैयारी के रूप में सोच लीजिएगा।

वैसे भी इसरो में जितने वैज्ञानिक नहीं होते उतने तो सोशल मीडिया पर मिल जाएँगे हमारे यहाँ!!! देश अर्थशास्त्री भी बन जाता है, रक्षा विशेषज्ञ भी!!!

वाहियात संदेश भी चाव से फैले, जैसे कि बर्तन या ताली की ध्वनि से होने वाले वाइब्रेशन से कोरोना वायरस ख़त्म होता है!
एकदम वाहियात बातें भी बड़ी आसानी से फैलती गईं। इनमें से एक थी बर्तन या ताली की ध्वनि से होने वाले वाइब्रेशन से कोरोना वायरस का ख़त्म होने का दावा!

ऊपर देखा वैसे, घंटों का गुणाभाग हो रहा हो वहाँ वाइब्रेशन के ज़रिए व्हाट्सएप को वैज्ञानिक तो बनना ही था!!! फिर तो लोग बर्तन-ताली के साथ साथ शंख भी बजाने लगे! वैसे उस दिन शाम को जुलूस निकालने वाले महान लोग ही आज-कल घर में रहने का ज्ञान बाँट रहे हैं!!!

भारत सरकार के पीआईबी ने भी इस दावे को झूठा बता दिया। वैसे भी थोड़ा-बहुत ज्ञान हो तो पता चल ही जाता था कि बर्तन-ताली-शंख आदि की ध्वनि वायरस को नहीं बल्कि बैक्टेरिया को ध्वस्त करती है। बैक्टेरिया और वायरस में फ़र्क़ बहुत ही ज़्यादा होता है।

साउंड वाइब्रेशन का साइंस बैक्टेरिया को लेकर लिखता है, लेकिन वायरस को लेकर नहीं लिखता। वर्ना हमसे पहले तो वैज्ञानिकों को पता होता। फिर तो महीनों से दुनिया के देश रिसर्च नहीं कर रहे होते, इतनी सी कॉमन सेंस उन दिनों कोई दिखा नहीं पा रहा था!

एक आर्ट प्रोजेक्ट की इस तस्वीर को कोरोना वायरस के मृतकों के साथ जोड़ दिया गया!!!
इस तस्वीर को ख़ूब फैलाया गया। सब के सब गूगल इस्तेमाल करते हैं, लेकिन रिवर्स इमेज सर्च पर टच करना भूल ही जाते हैं! जबकि गूगल किसी न्यूज़, तस्वीर और वीडियो को चेक करने के लिए सहुलियत तो देता ही है। 
तस्वीर में लोग सड़क पर पड़े नज़र आ रहे थे। ढेरों लोग, सड़क पर जैसे-तैसे बिखरे पड़े, जिन्हें लाशें बताया गया। पहली नज़र में ही कॉमन सेंस के हिसाब से इटली जैसे देश में यह मुमकिन है या नहीं उसको लेकर दिमाग़ में बत्ती जलनी चाहिए थी। बत्ती जलती तो गूगल अपनी सहुलियत लेकर खड़ा ही था।

जिस तस्वीर को इटली में कोरोना वायरस से मारे गए लोगों की तस्वीर बताया जा रहा था, दरअसल यह एक आर्ट प्रोजेक्ट था और इसका ना ही कोरोना वायरस से लेना देना था, ना ही इटली से!!!

यह तस्वीर 2014 में फ्रेंकफर्ट में प्रदर्शित हुए एक आर्ट प्रोजेक्ट की थी। फ्रेंकफर्ट के हिरासत केंद्र में रहे नाजी के काट्जबैक पीड़ितों को याद करते हुए यह आर्ट प्रोजेक्ट किया गया था। लोग इसे गूगल रिवर्स इमेज सर्च में पता करते तो भी पता चल जाता कि 24 मार्च 2014 को रोयटर्स ने इस तस्वीर को प्रकाशित किया था। वैसे इस फ़ेक न्यूज़ को सच मानने वाले लोगों को यह भी पता होना चाहिए कि इसी तस्वीर को चीन की तस्वीर बताकर भी फैलाया गया था!

जियो के फ्री रिचार्ज की स्कीम सोशल मीडिया ने लॉन्च कर दी, कंपनी को कहना पड़ा हमारे यहाँ ऐसी कोई स्कीम नहीं है
जियो फ्री तो देता ही रहता है, सो इसके नाम पर ऐसी फ़ेक न्यूज़ फैलाना किसीके लिए आसान रास्ता था। क्योंकि उसे यह भी पता था कि फ्री का नाम आएगा तो पढ़े-लिखे लोग भी जियो की वेबसाइट चेक करने का बेसिक भुला देंगे!

इस ख़बर में दावा किया गया कि कंपनी इस कठिन परिस्थितियों में भारतीय उपभोक्ताओं को 498 रुपये का रिचार्ज मुफ़्त में दे रही है। साथ में लिंक भी दे दिया और 31 मार्च आख़िरी तारीख़ बताई गई।

दरअसल लिंक को जिसने खोला न्हें पता चला कि लिंक तो खुल ही नहीं रहा, जबकि गूगल पर सर्च करके जियो का वेबसाइट खोला तो खुल रहा था। आधिकारिक वेबसाइट पर ऐसा कोई ऑफर था ही नहीं।

अरे भाई, मुकेश अंबानी को दान करना था तो ऐसे उद्योगपति शांति से दान थोड़ी न करेंगे? बाक़ायदा चमकाया जाएगा दान प्रक्रिया को! जियो प्रवक्ता ने भी बता दिया कि कंपनी कोई फ्री रिचार्ज नहीं दे रही।

डॉकटर रमेश गुप्ता की किताब का सहारा लेकर वायरस की दवा का झूठ फैलाया गया
फ़ेक न्यूज़ फैलाने के तरीक़ों में से एक सामान्य सा तरीक़ा है किसी बड़े नाम को झूठी ख़बर के साथ जोड़ दें। चाणक्य को भी नहीं पता होगा इतने सुवाक्य उनके नाम से सोशल मीडिया ने फैला दिए हैं!!!

इस दफा डॉक्टर रमेश गुप्ता की किताब 'आधुनिक जन्तु विज्ञान' का एक पेज वायरल किया गया। दावा यह कि कोरोना वायरस और इसकी दवा के बारे में इस किताब में पहले से ही जानकारी दी गई है। कहा गया कि यह कोई नयी बीमारी नहीं है, बल्कि इसके बारे में तो पहले से ही इंटरमीडिएट की किताब में बताया गया है और इलाज भी है।

कॉमन सेंस है कि दुनिया के अनेक देश कोरोना की दवाई ढूंढ रहे थे, क्या उनको यह पता नहीं होगा, जो सोशल मीडिया को पता था?

दरअसल, किताब में कोरोना वायरस के बारे में लिखा ही नहीं गया था! विशेषज्ञ तो यहाँ तक कहते हैं कि कोरोना वायरस कोई एक वायरस नहीं है, बल्कि यह वायरस की फ़ैमिली का नाम है। फ़ैमिली के तमाम वायरस के लक्षण और उपचार अलग अलग है।

किताब के जिस चैप्टर को आधार बनाया गया उसमें तो जुकाम के प्रकारों को लेकर बात थी, जिसे विज्ञान की भाषा में वायरस ही कहा जाता है। डॉकटर गुप्ता की किताब में जो दवाइयाँ लिखी थीं, वो तो सर्दी-जुकाम की दवाइयाँ थीं!

उधर इसी दिनों भारत सरकार के पत्र सूचना कार्यालय का आधिकारिक ट्वीट था जिसमें इस ख़बर को फ़र्ज़ी बताया गया था। लेकिन आधिकारिक ट्वीट को पढ़े-लिखे लोगों ने देखना ज़रूरी नहीं समझा होगा शायद।

जानकारी के लिए बता दें कि अभी हम जिस वायरस का सामना कर रहे हैं वो कोरोना फ़ैमिली के सैकड़ों वायरस में से एक वायरस है और उसका वैज्ञानिक नाम रेस्पिरेटरी डिसीज़ कोजिंग कोरोना वायरस (SARS-Cov-2) है और इससे होने वाली बीमारी को कोविड-19 कहा जाता है।

दवाई के नाम पर और मदद-दान के नाम पर फ़ेक न्यूज़ की सुनामी, रंजन गोगोई का फ़ेक ट्वीट भी चल पड़ा
इन दिनों कोरोना वायरस की दवाई के नाम पर तथा मदद करने के नाम पर फ़ेक न्यूज़ की सुनामी सी आ गई। इसने इतने करोड़ की मदद की है, उसने इतने लाख की मदद की है, सरीखी फ़ेक न्यूज़ भी फैली

पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई का एक फ़ेक ट्वीट भी चल पड़ा। जबकि उनके आधिकारिक ट्विटर अकाउंट के बारे में कइयों को पता ही नहीं है! जिसको जो मन में आया लिख दिया! जिसने जो सोचा उतने करोड़, उतने लाख हीरो से, हीरोइन से, संतों से, मौलवियों से, उद्योगपतियों से दान करवा दिए! अरे भाई, जब ये लोग दान करेंगे तो शांति से नहीं करेंगे, तामझाम के साथ ही करेंगे! तब सबको पता चल ही जाएगा।

तमाम धर्मों के घुरंघर व्हाट्सएपियें लिखने लगे कि फलां फलां किताब में यह पहले से ही था, इसकी भविष्यवाणी की गई थी! बताइए, यहाँ हादसा होने के बाद हादसों की भविष्यवाणियाँ बाज़ार में आती हैं!!! अरे भाई, कोई पहले भी लाया करो, बाद में नहीं। 

दवाई के नाम पर तो एक दफा शराब से कोरोना ठीक होता है वाली ख़बर फैली। दरअसल डब्ल्यूएचओ ने गाईडलाइंस में ऐल्कोहॉल का ज़िक्र हेंडवॉश को लेकर किया था। ख़ुराफ़ातियों ने पीने को लेकर लिख दिया और पढ़े-लिखे लोगों को सच मानने से कोई रोक भी नहीं पाया!

लहसुन की कहानी भी ख़ूब चली। इसे लेकर भी डब्ल्यूएचओ को कहना पड़ा कि ऐसा कोई रिसर्च नहीं है।

एक मैसेज में दावा था कि गहरी सांस लेकर 10 सेकंड तक इसे रोक लिया तो समझें आपको संक्रमण नहीं है! स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी ने इस दावे को झूठा बताया।

किसीने हल्दी-नींबू को उपाय बता दिया! अरे भाई, इतना आसान होता तो काहें को महीनों से लैब में वैज्ञानिक माथापच्ची करते?

एक दावा यह भी था कि अंडा, चिकन, मछली से कोरोना होता है! नोट करें कि यह दावा सोशल मीडिया का था। किसी भी सरकारी या निजी संस्थान ने ऐसा कहा ही नहीं था।

केंद्रीय पशुपालन, डेयरी व मत्स्य पालन मंत्री गिरिराज सिंह ने इस तथ्य का खंडन करते हुए 5 मार्च 2020 को ट्वीट कर कहा कि मछली, अंडे और चिकन से कोरोना वायरस का कोई लेना-देना नहीं है। कहा कि मछली, अंडा और चिकन छोड़ने से आपके शरीर में प्रोटीन की कमी हो सकती है, अतः स्वच्छता का ध्यान रखें और सभी भोजन अच्छी तरह पका कर खाएँ।

किसीने अमूल दूध की फैक्टरी को बंद करवा दिया! अमूल प्रशासन को कहना पड़ा कि हम फैक्टरी बंद कर ही नहीं रहे, बल्कि सप्लाई बढ़ाने पर काम कर रहे हैं।

आज तक चैनल के नाम से फ़र्ज़ी स्क्रीनशोट भी फैला कि तानसेन खाने से बचा जा सकता है!

किसीने कहा कि भारत सरकार फ्री में मास्क बांट रही है! सरकार ने कह दिया कि ऐसी कोई योजना नहीं है।

फलां पुस्तक में या फलां ग्रंथ में इसकी भविष्यवाणी पहले से की गई थी, यह दावा तो बिना पैर के दौड़ रहा था! कोई बाबा के सहारे, तो कोई मौलवी के सहारे इसे आगे बढ़ा रहा था!    

बार-बार लोगों को बताया जा रहा था कि यह एक बीमारी है और इसका इलाज विज्ञान के पास है, कहीं और नहीं। लेकिन लोग इतने ज़्यादा पढ़े-लिखे थे कि जागरूक होने का नाम ही नहीं ले रहे थे!!!

सेना के नाम से ग़ज़ब दावा, कहा कि सेना सामूहिक अंतिम संस्कार की ट्रेनिंग ले रही है, सेना ने बताया झूठी ख़बर
हर ऐसी चीज़ों में सेना को लेकर फ़ेक न्यूज़ तो फैलती ही है। अब की बार फिर एक बार। एक दावा किया गया कि भारतीय सेना शवों के सामूहिक अंतिम संस्कार की ट्रेनिंग ले रही है। दावा यह कि कोरोना का कहर टूटने वाला है, लाखों लोग मारे जाने वाले हैं और इसीलिए सेना सामूहिक अंतिम संस्कार की तैयारियाँ कर रही है, ट्रेनिंग कर रही है।

किसीने सेना की तैयारियाँ, राज्यों में तैनाती, लोगों के इलाज के लिए सेना की तैयारी आदि को लेकर कहा होता तो ठीक था। लाज़मी था कि सामूहिक अंतिम संस्कार की ट्रेनिंग के इस दावे को सेना ने ही ख़ारिज कर दिया।

डॉकटर नरेश त्रेहान के हवाले से नेशनल इमरजेंसी का झूठा दावा
अब की बार मेदांता के एमडी डॉक्टर नरेश त्रेहान के नाम से वायरल मैसेज में दावा किया गया कि देश में अगले एक-दो दिन में नेशनल इमरजेंसी लगने वाली है। इसलिए राशन, दवाई जैसी ज़रूरी चीज़ें पर्याप्त मात्रा में ख़रीद लें। डॉकटर नरेश त्रेहान देश में बहुत फेमस नाम है, जो मेदांता अस्पताल के चेयरमैन और एमडी हैं।

मेदांता हॉस्पिटल ने इस दावे को झूठा बताया और कहा कि हमने ऐसा कुछ कहा भी नहीं, और ना ही देश में नेशनल इमरजेंसी लगने की कोई बात हमने सुनी या पढ़ी है। मेदांता अस्पताल ने आधिकारिक ट्वीटर अकाउंट से इस ख़बर को खारिज भी किया। टंगडी ऊंची रखने के लिए कोई कह सकता है कि लॉकडाउन एक इमरजेंसी ही तो है!

एक दंपति की तस्वीर को ख़ुराफ़ाती ने कोरोना के साथ जोड़ दिया
इस दंपति की तस्वीर ख़ूब चली और चल भी रही है। दावा यह कि यह इटली के डॉकटर दंपति है, जो कोरोना वायरस पीड़ितों का इलाज कर रहे थे। 134 मरीजों का इलाज किया यह आँकड़ा भी कही से चिटका दिया। फिर दावा किया कि अब वे ख़ुद संक्रमण का शिकार हुए हैं।

पहली बात यह कि यह दंपति डॉकटर जोड़ा है यह बात भी फ़ेक थी! दूसरी यह कि इन्होंने किसी कोरोना पीड़ितों का इलाज नहीं किया था! और तीसरी यह कि तस्वीर तो बार्सिलोना एरपोर्ट की थी!

रिवर्स सर्च करने पर यह फ़ोटो एसोसिएटेड प्रेस पर मिल जाता है। इसे 12 मार्च 2020 को शिकागो ट्रिब्यूनल, बोस्टन ग्लोब और फोक्स ट्रिब्यून ने प्रकाशित किया था। ऑल्ट न्यूज़ के दावे की माने तो इसे असोसिएटेड प्रेस के लिए एमिलियो मोरेनाती ने 12 मार्च 2020 को खींचा था।

टेस्टिंग किट को कोरोना की दवाई बताकर झूठी ख़बर फैलाई गई
इन दिनों कोरोना की दवाई को लेकर बहुत सारी झूठी ख़बरें फैलाई गई थीं। जैसे कि आर्युवेदिक इलाज, फलां फलां मौलवी या बाबा का इलाज, यह इलाज, वो इलाज! मलेरिया की दवाई तक को खींचकर डाल दिया गया था! सबको पता था कि सैकड़ों देशों के वैज्ञानिक दिन-रात लैब में घुसे हैं और शोध कर रहे हैं। दवाई किसी देश ने इजाज नहीं की यह भी पता था। लेकिन फिर भी अनाप-शनाप तरीक़ों को लेकर पढ़े-लिखे लोग चाव से पढ़ा करते थे! जैसे कि फ़ेक न्यूज़ का इंतज़ार ही कर रहे हो!

ऐसी ही एक ख़बर कोविड-19 लिखी एक तस्वीर की। दावा यही कि यह कोरोना वायरस की दवाई है। दवाई मिल गई है। बताइए, डब्ल्यूएचओ को दवाई नहीं मिली लेकिन इधर सोशल मीडिया वालों को मिल गई!!!

दावा किया गया कि वैक्सीन बन चुकी है, तीन घंटे में रोगी ठीक हो जाएगा। और साथ में ऊपरवाली तस्वीर ठैली जा रही थी। ट्रंप को भी बीच में डाल दिया। सोचिए, वैक्सीन बन चुकी है यह डब्ल्यूएचओ को नहीं पता था, दुनिया के देशों को पता नहीं था, न्यूज़ चैनलों को पता नहीं था, बस सोशल मीडिया को ही पता था!!!

दरअसल कोविड-19 वाली यह कथित दवाई कोई वैक्सीन नहीं बल्कि टेस्टिंग किट है। और इसे साउथ कोरिया द्वारा विकसित किया गया है। तस्वीर में कंपनी का नाम भी लिखा है – सुगेंटेक। यह साउथ कोरियन कंपनी है, अमेरिका की नहीं।

सोचिए, मेडिकल स्टोर से दवाई लेते समय एक्सपायरी डेट देखने वाले पढ़े-लिखे लोग यह पढ़ नहीं पाए कि वैक्सीन लिखा ही नहीं है!!!

एक और झूठा दावा – इज़राइल ने वैक्सीन खोज ली है
दवाइयाँ और उपायों के शोध को लेकर फ़र्ज़ी ख़बरों की जो सुनामी चली उसमें एक ख़बर इज़राइल को लेकर भी थी। दावा किया गया कि इज़राइल ने टीका विकसित कर लिया है। वही भावनात्मक तरीक़ा... अब नहीं होगी मौत... भगवान इज़राइली को आर्शीवाद दे... वगैरह वगैरह!

उधर डब्ल्यूएचओ के प्रवक्ताओं को फिर कहना पड़ गया कि किसी देश ने अभी तक कोई वैक्सीन नहीं खोजी है और अब तक कोई दवाई मिल नहीं पाई हैं।

इन्होंने तो पहले भी कहा था कि महीनों लग सकते हैं और लोगों तक पहुंचने में भी बहुत ही सारा समय लगेगा। बताइए, कथित जागरूक लोग इतनी सीधी बात से जागरूक होने का नाम ही नहीं ले रहे थे!

शुक्र है कि रशिया में शेर को खुला छोड़ देने के इस दावे को कइयों ने पहले ही झूठ माना था, लेकिन फिर भी कई जगहों पर यह फ़ेक न्यूज़ चलती रही
शुक्र है कि रशिया (रूस) में शेर को खुला छोड़ दिया गया है वाली इस फ़ेक न्यूज़ को कइयों ने पहले ही झूठी ख़बर मान लिया था। इस ख़बर को लेकर कॉमन सेंस का इस्तेमाल दूसरी ख़बरों की तुलना में ज़्यादा हुआ। लेकिन कई जगहों पर यह फ़ेक न्यूज़ घड़ल्ले से चल रही थी।

दावा यह कि रूस ने 500 शेर छोड़ दिए हैं, ताकि लोगों को घरों के अंदर रखा जा सके। हमें नहीं पता कि 500 का आँकड़ा इन्हें रुस की सरकार ने दिया था, या फिर फ़ेक न्यूज़ के कलाकार ने। दावे के साथ रूस में कोरोना, बीमार लोगों के आँकड़े वगैरह परोसा गया, ताकि लोगों के गले में इस झूठी ख़बर को डालने में आसानी हो। एक दिग्गज उद्योगपति तक ने इस ख़बर को शेयर कर दिया था!

दरअसल यह तस्वीर फिर एक बार तीन साल पुरानी थी!!! जैसा कि कई मामलों में हमने ऊपर देखा। यह 2016 की तस्वीर थी, जो साउथ आफ्रिका के जोहान्सबर्ग में क्लिक की गई थी। पुष्टि के लिए मेट्रो का पब्लिश आर्टिकल देख ले। तस्वीर में जो शेर नज़र आ रहा था उसका नाम कोलंबस है। कोलंबस शेर का नाम ही है और वो शेर एक फ़िल्म प्रोडक्शन का हिस्सा है। हालाँकि जिस मूवी के लिए यह शूटिंग किया गया था उसे वन्य जीवन क़ानून की माथापच्ची के कारण रिलीज होने से रोक दिया गया था।

7 साल पुरानी तस्वीर चल पड़ी, ताबूत के तस्वीर की झूठी कहानी, जिसे फिर एक बार इटली से जोड़ दिया गया
इन दिनों इटली के ऊपर काफी लोड था! बीमारी को लेकर भी तथा फ़ेक न्यूज़ को लेकर भी! अब ताबूतों की तस्वीर ठैल दी गई। साथ में दावा किया गया कि यह इटली की तस्वीर है, जहाँ हज़ारों लोग कोरोना वायरस के चलते मारे गए हैं। उसी तरह... यानी कि डराकर... दर्दनाक और खौफ़नाक बताकर इस ख़बर को फैलाया गया।

गूगल रिवर्स सर्चिंग में यह तस्वीर गेटी इमेज में मिल जाएगी। दरअसल यह तस्वीर 7 साल पुराने एक हादसे की तस्वीर है! सभी ताबूत अफ्रिकन प्रवासियों के थे, जो इटली के लैम्पेटुसा द्वीप पर एक जहाज़ की दुर्घटना में मारे गए थे। यह फ़ोटो 5 अक्तूबर 2013 को लैम्पेटुसा एरपोर्ट पर ली गई थी। जिसे उस समय वहाँ के कई अख़बारों ने जगह दी थी।

बिरयानी में दवाई मिलाने के फ़ेक न्यूज़ को तो चलना ही था
महामारी के दौर में हिंदू-मुसलमान वाला ल टाइम हिट सब्जेक्ट तो चलना ही था। इसे लेकर ढेरों फ़ेक न्यूज़ फैली हैं। मुसलमानों ने यह किया, या हिंदू लोग ऐसा-वैसा कर रहे हैं, सब कुछ बिना दिक्कत से चल पड़ा।

इनमें से एक ख़बर यह थी कि कोयंबतूर स्थित एक रेस्टोरेंट में हिंदूओं के लिए टैबलेट मिलाकर बिरयानी बनाई जा रही है। इसे लेकर दावा भी बड़ा चौंकाने वाला और ग़ज़ब का था।

यहाँ भी सालों पुरानी कहानी ही निकली। तस्वीर 2016 की थी। पहली पिक्चर को स्ट्रीट फूडी ऑफिशियल नाम के चैनल ने 30 जून 2016 को पोस्ट किया था। साथ में फ़ोटोशोप के ज़रिए दूसरी कहानी भी मिक्स की गई थी इसमें। दवाइयों की जो फ़ोटो थी, वो ग़ैरक़ानूनी दवाओं की थी, जो श्रीलंका में पकड़ी गईं थीं।

ऐसा ही एक और वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें कई बकरे-बकरियाँ जमीन पर पड़े दिख रहे थे। दावा यह कि अजमेर के बकरा मार्केट में कोरोना वायरस फैल गया है, गाँव खाली हो गया है, जानवर मर गए हैं।

असल में यह वीडियो भारत में कोरोना वायरस के जीरो पेशेंट के दर्ज होने के महीने भर पहले का था। 12 दिसंबर 2019 को यह वीडियो यूट्यूब पर अपलोड किया गया था। राजस्थान एनिमल हसबेंडरी डिपार्टमेंट के अतिरिक्त निदेशक डो. प्रदीप सारवस्त ने भी बाद में इसे फ़ेक वीडियो करार दिया।

हालाँकि कई ख़बरें सच्ची भी थीं, जैसे कि मनाही के बावजूद नमाज पढ़ने के लिए इक्कठा होना, या फिर प्रतिबंध के बाद भी कुछ कार्यक्रमों का चलना।

एक और झूठा दावा – इटली में कोरोना वायरस से पूरे परिवार की मौत के बाद एक लड़के ने बिल्डिंग से कूद कर जान दे दी
फिर एक बार इटली फ़ेक न्यूज़ की दुनिया में था। एक तस्वीर डाली गई और दावा किया गया कि एक व्यक्ति इमारत की छत से कूद रहा है, क्योंकि लड़के का पूरा परिवार कोरोना वायरस के संक्रमण के कारण मर गया और इसी वजह से लड़के ने अपनी जान दे दी।

फिर एक बार रिवर्स इमेज सर्च ने बता दिया कि यह स्पेन की घटना है, इटली की नहीं! उपरांत वो लड़का नहीं, लड़की है! इसे 31 दिसम्बर 2019 को मेल्डिटिया फेमिनीस्मो अख़बार में प्रकाशित किया गया था। 24 दिसम्बर 2019 को यहाँ एक महिला ने तस्वीर में दिखाया वैसे ख़ुदकुशी कर ली थी। हूडसाइट ने 27 दिसम्बर को इसका वीडियो भी शेयर किया था।

मोबाइल सिम बंद होने के गुणाभाग को कोरोना से जोड़ने का कोई मजबूत कारण अब तक सामने नहीं आया है
वैसे अब तक इस दावे को लेकर कोई प्रमाणित आधार नहीं है, और ना ही दुनिया के किसी प्लेटफॉर्म ने इस दावे की पुष्टि की है। यानी कि आज के दिन तक तो यह ख़बर अपुष्ट ख़बर है। आगे यह ख़बर फ़ेक कैटेगरी में जाएगी या नहीं यह तो वक़्त बताएगा। फ़िलहाल तो यह संदिग्ध श्रेणी में आती है।

एक ब्लॉगर कम एक्टिविस्ट ने ब्लॉग लिख कर दावा कर दिया कि चीन में इतने लाख मोबाइल सिम स्विच ऑफ हुए हैं, जो पहले ऑन थे। दावा यह कि जो मोबाइल सिम बंद हुए हैं, वे सारे लोग कोरोना वायरस के चलते मारे जा चुके हैं।

लाखों का गुणाभाग करके दावा किया गया कि चीन छुपा रहा है और लाखों लोग मारे गए हैं। वैसे चीन की दीवार के भीतर क्या चल रहा है यह पहले से ही रहस्य होता है। मतलब यह कि चीन के भीतर सचमुच क्या है, बहुत कम लोग जानते है। इस लिहाज़ से कइयों को लगा कि लाखों लोग मारे जाने की ख़बर सच भी हो सकती है।

इस दावे को झूठा बताते हुए कुछ फैक्ट चैकरों ने एक तर्क दिया वैसे, कोई भारत में पिछले कुछ महीनों का ऐसा ही गुणाभाग करें, तो कुछ कुछ ऐसी ही तस्वीर बाहर निकलेगी। मतलब कि भारत में भी पिछले कुछ महीनों में लाखों ना सही, लेकिन हज़ारों सिम कार्ड बंद हो चुके हैं। अब हम भारतीयों को पता है कि ऐसा क्यों हुआ हमारे यहाँ, लेकिन विदेश के लोगों को थोड़ी न पता होगा?

कोई ख़ुराफ़ाती इसे कोरोना के मृतांक से जोड़ दे तो बिना दिक्कत के चल पड़ेगा। पिछले कुछ महीनों से भारत में कोल रेट में इज़ाफ़ा, मिनिमम बैलेंस वाला एंगल, डाटा पैक के दामों में बढ़ोतरी, आदि चीज़ों को लेकर हज़ारों सिम कार्ड बंद हुए हैं।

चीन में 2 करोड़ के क़रीब सिम बंद होने का दावा, 8 लाख लैंडलाइन बंद होना का दावा, और इसे जोड़ा गया कोरोना के संभवित मृतकों से। ये आँकड़े चीन की वायरलेस केरियर कंपनियों के हवाले से लिए गए। लेकिन रिसर्च के मुताबिक़ वहाँ भी भारत जैसा हाल है। मतलब कि दाम बढ़ोतरी वगैरह।

उपरांत चीन में कोरोना का मामला पिछले साल से ही तेज़ी पर पर था। भारत में जैसा अभी हो रहा है वैसे वहाँ भी अफ़रा-तफ़री फैली थी, कामकाज बंद था, लोग कार्यस्थल को छोड़कर घर को लौट रहे थे। कइयों के पास एक से अधिक सिम थे, जो अतिरिक्त थे वो बंद हुए, ज़रूरी चालु रखे गए। नोट करे कि इसकी पुष्टि नहीं हुई है, इसलिए सारे दावे अब भी संदिग्ध हैं।

सैकड़ों फ़ेक न्यूज़ हैं, जिन्हें यहाँ लिखना संभव नहीं है। बहुत ही सारी चीज़़ें बिना आधार के फैलती रही और फैलेगी भी। हमने किसीको जागरूक बनाने के लिए ही कोरोना फ़ेक न्यूज़ वाला यह आर्टिकल नहीं लिखा है, बल्कि इसलिए भी लिखा है ताकि हमें हम जैसे पढ़े-लिखे लोगों का ख़ुद ही का सही लेवल पता चल सके। ज़ायके में थोड़ा कड़वा है, पर सच है।

कितना दर्दनाक... कितना खौफ़नाक... इसको सलाम... उसको सलाम... दुआ करें... इसी शब्दों के साथ झूठे वीडियो, झूठी ख़बरें इस वायरस को लेकर ख़ूब फैली और फैलेगी भी। नोट करें कि हमारे यहाँ किसी ख़बर के फ़ेक होने की पुष्टि हो भी जाए तब भी उसे सालों बाद भी बड़ी आसानी से दोबारा फैलाया जा सकता है! ऐसा पहले भी हुआ है। बावजूद इसके इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले पढ़े-लिखे लोग ख़ुद को आधुनिक नागरिक बताते हैं!!!
(इनसाइड इंडिया, एम वाला)