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Promiscuity: सत्ताधारी नेतृत्व की वैज्ञानिक समझ, 'संकीर्ण समाज सृजन नीति' का वो हिस्सा, जो सफल भी हो रहा है

 
'संस्कारी के साथ साइंसकारी' होना भी ज़रूरी है। वर्ना ख़ुद ही देख लीजिए। भारत और पाकिस्तान, एक ही भूमि के दो टुकड़े, एक ही कालखंड में स्वतंत्र हुए। स्वतंत्रता के पश्चात भारत ने राष्ट्र को आगे रखा, धर्म को उससे थोड़ा सा पीछे। पाकिस्तान ने इससे बिलकुल उलटा किया। भारत ने वैज्ञानिक द्दष्टिकोण को महत्व दिया और वो चांद के पार जाने को सक्षम हुआ, आसमान की बुलंदियों तक पहुंचने में सफलता पाई। उधर पाकिस्तान ने धार्मिक द्दष्टिकोण को अपनाया, और वो आज तक सरहद पर लगे तार काटने में ही जुटा हुआ है!
 
किंतु 21वीं शताब्दी में हालात यह हो चले है कि भारत की नयी पीढ़ी पढ़ने-लिखने के बाद, आधुनिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद, पड़ोसी के उसी द्दष्टिकोण की तरफ़ झुकने लगी है! स्वयं को विश्वगुरु मानने वाला भारत अपने बच्चों को आधुनिक से आधुनिक शिक्षा देता है और फिर उसे जातियों, उपजातियों, खोखले गौरव, मिथ्या अभिमान, धर्म का अति तत्व, बाबा, तांत्रिक, काल्पनिक कथा, भाँति भाँति के भ्रम, आदी में फंसा देता है! फ़ेक न्यूज़ के बल पर इस पीढ़ी को संकीर्ण समाज में तब्दील किया जा रहा है।
 
जहाँ छात्रों को संविधान, नागरिकी अधिकारों व कर्तव्यों तथा वैज्ञानिक चेतना की प्राथमिक समझ दी जानी चाहिए, वहाँ धार्मिक किताबों, मिथकों और मान्यताओं को अभ्यासक्रम में शामिल करने की बात करना सहज नहीं है।
 
फ़ेक न्यूज़, यह किसी भी देश या किसी भी समाज को बर्बाद करने वाला सफल हथियार है। ऐसा हथियार, जिसके इस्तेमाल के बाद भी पीड़ित को पता तक नहीं होता कि वह फंस चुका है! बीजेपी, यूँ कहे कि सत्ताधारी राजनीतिक दल बीजेपी, इसका इतना अधिक उपयोग कर रही है कि शायद एक ऐसी पूरी पीढ़ी तैयार हो चुकी है, जो अपनी मृत्यु तक भाँति भाँति के भ्रम में ज़िंदगी जीती रहेगी! ग़ज़ब यह है कि सत्ताधारी दल की 'संकीर्ण समाज सृजन नीति' का आह्वान उसके मुख्य नायक और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं गाहे बगाहे करते हैं!
 
इसने एक ऐसी नयी पीढ़ी तैयार कर दी है, जो अपनी मृत्यु तक अनेक अनर्गल प्रलापों और झूठे इतिहास के बीच ज़िंदगी जीती रहेगी! यह पीढ़ी उस हद तक पहुंच चुकी है, जहाँ से उसे कोई चमत्कार भी वापस ज़मीं पर ला नहीं सकता। बस एक ही सच सामने आ रहा है कि एजुकेटेड होने का अर्थ यह नहीं होता कि वह इंटेलीजेंट भी होगा।
 
कॉमन सेंस नाम की सेंस की बात यहाँ दूर दूर तक नहीं की जा सकती, क्योंकि यह पीढ़ी उसी भ्रम में जी रही है कि सचमुच राणा प्रताप 300-400 किलो के अस्त्र-शस्त्र धारण करके जंग लड़ने जाते थे! जबकि उनके अस्त्र-शस्त्र का कुल वजन 40 किलोग्राम से अधिक नहीं था यह सूचना उदयपुर स्थित संग्रहालय में साफ साफ लिखी हुई है। किंतु यह पीढ़ी उस सूचना को नहीं पढ़ेगी और यदि पढ़ लिया तो मानेगी नहीं! उसे तो भ्रम से ज़बर्दस्त इश्क़ हो चुका है।
इस पीढ़ी को यह कॉमन सेंस तक नहीं है कि परंपरागत जंग में शस्त्रों का वजन जितना ज़्यादा होता था, योद्धा के सफल होने की संभावना उतनी ही कम होती थी। ऐसे में यह पीढ़ी इतनी कॉमन सेंस नहीं लगा सकती कि उन परंपरागत युद्धों में योद्धा कम से कम वजन वाले हथियार पसंद करते थे, ना कि वजन वाले। क्योंकि युद्धकौशल और शरीर विज्ञान परंपरागत जंग के मूल तत्व थे। राणा प्रताप महान योद्धा थे। वे विज्ञान को धत्ता दिखाने की मूर्खता थोड़ी न करते?!
 
किंतु कोई कॉमन सेंस इस्तेमाल नहीं करता। क्योंकि ऐसी कोई चीज़ होती भी है, यह इस नयी पीढ़ी को नहीं पता! यह तो संकीर्ण समाजनीति से पीड़ित है। देश का तो हमें नहीं पता, किंतु हमारे यहाँ तो आजकल यह नयी पीढ़ी अपनी तात्कालिक और सतही सोच, व्हाट्सएप वाली समझ धारण करते हुए और अनुभवी लोगों को किनारे कर ख़ुद ही ख़ुद को तीसमारखाँ समझने लगी है!
 
यह पीढ़ी रात भर लोककला और लोकसंस्कृति के नाम पर होने वाले कार्यक्रमों में जगती है और उन कार्यक्रमों में इतिहास-तथ्यों और तर्कों पर जो बलात्कार होता है, उसे ही सच मानती रहती है! धर्म के नाम पर होने वाले कार्यक्रमों में समय-पैसा और शक्ति बर्बाद करती है। ठीक है, लेकिन उसे घर का कोई काम बता दों, तो ऊब जाती है, दूसरी तरफ़ बाबा, तांत्रिक, फलां जाति कार्यक्रम, फलां जाति समारोह के नाम पर यहाँ से वहाँ भटकती रहती है!

 
ग़ज़ब यह है कि यह सब कुछ यूँ ही नहीं हो रहा। ऐसा लगता है, जैसे कि सब कुछ आयोजित ढंग से किया जा रहा हो। जिस भारत ने 'संस्कारी के साथ साइंसकारी' ध्येय के साथ आसमान की बुलंदियों को छुआ, उस भारत को संकीर्ण समाज बनाने के बहुत ऊंचे स्तर से अविरत प्रयास होते रहते हैं! और यह प्रयास इस नयी पीढ़ी को पसंद भी आ रहे हैं! अखंड भारत बनाने के सपने के साथ भारत को घोर जातिगत भावना के अंधियारे कुएँ में धकेला जा रहा है।
 
यहाँ हम किसी प्रकार की चिंता-सिंता व्यक्त नहीं कर रहे हैं, यह नोट ज़रूर करें। हम यथार्थवादी हैं। हम तो जो है, वह लिख रहे हैं। खाली-पीली चिंता-सिंता करना हमारा स्वभाव नहीं है। जो है, वो है। और जिसका समय आ गया हो उसे किसी तरह से रोका नहीं जा सकता।
 
चार जाति और चार धाम वाला भारत आज एक ही जाति वाले घर में भाँति भाँति की जातियों में विभाजित परिवार बन गया है! चार धाम की जगह एक ही गाँव में आजकल अनेक धाम मिल जाएँगे! हर धाम आख़िर में तो किसी जाति विशेष या समुदाय विशेष का ही प्रतिनिधित्व करता होता है! हम अनेक बार लिख चुके हैं कि जब तक नागरिक जाति आधारित राजनीति को समझ पाएँगे, हमारे नेता समुदाय आधारित राजनीति को लागू कर चुके होंगे। अब जाति-वाति को छोड़ ही दें, क्योंकि अब तो समुदाय एवं शक्ति आधारित राजनीति अपने पैर पसार चुकी है। एक ही घर में भाँति भाँति की जाति के लोग रहते हो, इस हद तक विभाजन हो चुका है!
यह पीढ़ी इस आर्टिकल के बार में यही कहेगी कि ये लोग मोदी विरोधी हैं। इस पीढ़ी के लिए दल से ऊपर कोई व्यक्ति है। वैसे इतना तो कॉमन सेंस होना चाहिए न कि जो सत्ता पर है उसीकी बात ज़्यादा होती है, जो सत्ता में नहीं है उसकी नहीं।
 
स्वतंत्र भारत में ऐसे 'आत्ममुग्ध' प्रधानमंत्री पहली बार नसीबों से मिले हैं! इतना 'चुनावजीवी नेतृत्व' और इतना 'चुनावी समाज' देख समय भी बढ़िया तरीक़़े से निकल जाता है! उत्सवप्रिय नेतृत्व सबको पसंद आ रहा है! मेरी चैनल को लाइक करें और सबस्क्राइब करें, कहने वाला नेतृत्व वाक़ई अभूतपूर्व है, अनूठा है!
 
2014 में रेडीफ.कॉम साइट पर किसीका एक लेख था, जिसके शीर्षक का हिंदी अनुवाद यूँ था- अंतिम परिणाम यही होगा कि समाज संकीर्णता में घसता चला जाएगा। तब लेख लिखने वाले मोदी विरोधी लगे थे। किंतु अब पता चलता है कि हमसे ज़्यादा समझ जमाने में मौजूद है, हम ही नासमझ हैं।

 
सत्ता दल की वैज्ञानिक समझ, या फिर संकीर्ण समाज सृजन नीति का ख़याल, इनके बयानों, भाषणों, बातों से छलक ही जाता है। तभी तो चुनावी दौर में किसी समुदाय या जाति को किसी धार्मिक चौखट पर ले जाकर क़स्मे-वादे प्यार-वफ़ा की गलियों से गुज़ारा जाता है।
 
वैसे नरेंद्र मोदी जैसे प्रधानमंत्री को मेरी यूट्यूब चैनल को लाइक करें और सबस्क्राइब करें, यह कहते हुए देखना अचरज समान तो नहीं है। उत्सवप्रिय होना और आत्ममुग्ध होना गुनाह भी तो नहीं है। किंतु शीर्ष जगह से ही तर्कों, तथ्यों, सच्चे इतिहास, आदी का हनन हो, तो फिर यह प्रवृत्ति बहुत अधिक ताक़त और उत्साह के साथ हर स्तर पर होगी ही होगी।
 
स्वयं नरेंद्र मोदी इतने विचित्र और संदेहास्पद दावे बतौर देश के प्रधानमंत्री होते हुए भी कर देते हैं कि निचले स्तर का नेतृत्व इनसे आगे निकलने के लिए सरपट दौड़ लगा देता है! तभी तो, देश का केंद्रीय मंत्री आसानी से चार्ल्स डार्विन का सिद्धांत झूठा है ऐसा कह कर स्कूल और कॉलेज के पाठ्यक्रम में बदलाव की भी हिमायत करने की हिम्मत कर सकता है! स्वास्थ्य मंत्री सरीखे पद वाला नेता कैंसर को इंसानी पाप बता देता है! यज्ञ करने से कोरोना नष्ट हो जाता है! पापड़ खाने से कोरोना से बचा जा सकता है!
 
नरेंद्र मोदी घड़ल्ले से कुछ भी बोल देते हैं, तो फिर उनकी सरपरस्ती में यह प्रवृत्ति भी घड़ल्ले से चलेगी ही चलेगी। बिना किसी तर्क के, बिना किसी तथ्य के, यूँ कहे कि बिना किसी कॉमन सेंस के, अनेकों बार सत्ताधारी दल के अनेक मंत्रियों और नेताओं ने ऐसा ज्ञान भारत को दिया है कि फिर माथा पीटने के सिवा दूसरा रास्ता बचता नहीं!
जनवरी 2018 के मध्यकाल में केंद्रीय मंत्री सत्यपाल सिंह ने ग़ज़ब दावा कर दिया कि, "मानव के क्रमिक विकास का चार्ल्स डार्विन का सिद्धांत वैज्ञानिक रूप से ग़लत है।" उन्होंने तो स्कूल और कॉलेज के पाठ्यक्रम में इसमें बदलाव की भी हिमायत कर दी थी!
 
मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री के मुताबिक़, "हमारे पूर्वजों ने कहीं भी लिखित रूप से या मौखिक तौर पर यह ज़िक्र नहीं किया है कि उन्होंने किसी बंदर को मानव में बदलते देखा। जब से धरती पर मानव को देखा गया, वह हमेंशा से ही मानव था।" उन्होंने कहा, "हमने जो भी किताबें पढ़ी हैं या अपने दादा-नाना से कहानियाँ सुनी हैं, उनमें कहीं भी इसका ज़िक्र नहीं है।"
 
मंत्रीजी की ये टिप्पणी और डार्विन के सिद्धांत पर उनका आधारहिन दावा उनकी किरकिरी की वजह बना। इस बयान को लेकर सोशल मीडिया पर मनोरंजन का एक छोटा सा दौर चल पड़ा। बीजेपी और पूरी पार्टी हास्यास्पद स्थिति में आ गए। हालात को भाँपते हुए उनकी पार्टी के वरिष्ठ नेता और मानव संशाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को उन्हें नसीहत देते हुए कहना पड़ा कि ऐसी टिप्पणी करने से बचिए।
 
जावड़ेकर को कहना पड़ा कि, "मेंने अपने राज्य मंत्री को सलाह दी कि हमें विज्ञान को कमतर करने का प्रयास नहीं करना चाहिए। डार्विन के सिद्धांत को ग़लत साबित करने के लिए हमारी ओर से कोई कार्यक्रम आयोजित करने की कोई योजना नहीं है। यह वैज्ञानिकों के अधिकार क्षेत्र का विषय है और उन्हें देश की प्रगति के लिए काम करने की पूरी छूट होनी चाहिए।"
 
25 अक्टूबर 2018 को मंत्री सत्यपाल सिंह ने आतंकवाद का समाधान वेदों को बता दिया! केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय में राज्य मंत्री सत्यपाल सिंह का कहना था कि, "जितने भी अपराध, आतंकवाद, समस्याएं हैं, उन सबका निदान अगर कोई कर सकता है तो वो वेदों के विचार, ऋषि ज्ञान ही कर सकते हैं। अगर इस देश के गौरव को पुन: लौटाना है तो हमें पुन: वेदों की तरफ़ जाना पड़ेगा।" इन्होंने तो आगे यह भी कहा कि, "राष्ट्रपति को भी इसकी शपथ लेते देखने का सपना है।"
सोचिए, आतंकवाद, अपराध और दूसरी समस्याओं के लिए क़ानून, उससे जुड़ी हुई संस्थाएँ, विभाग, जाँच, फोरेंसिक, अन्वेषण आदि चीज़ें बेहतर की जानी चाहिए। किंतु मंत्रीजी समाधान यह दे रहे थे कि सब ग़लत है, बस वेदों की तरफ़ लौट जाओ, जाँच-वाच, फोरेंसिक-वोरेसिंक वगैरह तो जुमले हैं! वैसे सत्यपाल सिंह को क्या कहे, क्योंकि आतंकवाद का कोई दूसरा इलाज नहीं मिला, तभी तो पीएम मोदीजी ने आतंकवाद को रोकने के लिए नोटबंदी (नोटबदली) लागू कर दी थी! दुनिया में पहला मौक़ा था, जब आतंकवाद को नोटबंदी से रोकने के प्रयास किए गए! अंतिम परिणाम सभी को मालूम है, किंतु उसे देखना कोई नहीं चाहता।
 
राजस्थान हाईकोर्ट के जज महेश शर्मा ने कह दिया था कि, "मोर ज़िंदगी भर ब्रह्मचारी रहता है। उसके आँसू चुगकर मोरनी गर्भवती होती है। इसीलिए मोर को राष्ट्रीय पक्षी बनाया गया। ठीक इसी तरह गाय के अंदर भी इतने गुण हैं कि उसे राष्ट्रीय पशु घोषित किया जाना चाहिए।"

 
इधर नोट यह भी करें कि सत्यपाल सिंह मुंबई शहर के पुलिस कमिश्नर रह चुके हैं। जजों और पुलिस कमिश्नरों के अजब-ग़ज़ब बयानों के दौर को देख लगता है कि क्लास-1 या क्लास-2 लोगों के क्लास इतने भी क्लासलेस होने लगे हैं आज कल!
 
कोविड19 कोरोना महामारी का समय विवादित और विचित्र बयानों का दौर था। "यज्ञ करो, कोरोना की अगली लहर भारत को छू नहीं पाएगी", "सब लोग कुछ दिन सुबह 10 बजे आहूतियाँ डालें तो कोरोना कुछ नहीं कर पाएगा", "गो मूत्र पीजिए, कोरोना से बच जाओगे", "भाभीजी पापड़ कोरोना से लड़ने में मददगार है", "कोरोना वायरस प्राणी है, उसे भी जीने का अधिकार है", "गाय के पास रहने से कोरोना की बीमारी ठीक हो जाती है, क्योंकि गाय ऑक्सीजन छोड़ती है", "एलोपैथिक दवाएँ खाने से लाखों लोगों की मौत हुई है, एलोपैथी स्टुपिड और दिवालिया साइंस है", "ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं है, वातावरण में भरपूर ऑक्सीजन है, लोग बेवजह सिलेंडर ढूँढ रहे हैं"', "निजी अस्पताल मरीजों की इम्यूनिटी कमज़ोर कर रहे हैं, इसलिए ब्लैक-व्हाइट फंगस फैल रहा है"...
 
कोरोना महामारी समय के ये वाणी विलास किसी आम नागरिकों के नहीं हैं, किंतु यह केंद्रीय या राज्य मंत्री स्तर के नेताओं के बयान हैं!!! कुछ बयान महान उद्योगपति बाबा रामदेव के भी हैं इसमें!
कोरोना काल में मध्यप्रदेश प्रोटेम स्पीकर रामेश्वर शर्मा ने कहा था, "कोरोना वायरस महामारी का अंत अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण कार्य की शुरुआत के साथ हो जाएगा।"
 
"केवल गायें ही ऑक्सीजन लेती और छोड़ती हैं", यह बीजेपी की पसंदीदा "वैज्ञानिक" खोज है। गाय, गो मूत्र और गाय का दूध, इस पर बीजेपी के नेताओं ने दुनिया को नवीनतम खोजें दी हैं, नयी नयी शक्तियाँ और गुणों के बारे में अवगत कराया है! वो भी बिना किसी आधार के, बिना किसी तर्क के, बिना किसी तथ्य के! वे इसे सालों से कह रहे हैं, साबित अब तक नहीं कर पाए हैं!
 
राजस्थान के शिक्षा व पंचायती राज मंत्री वासुदेव देवनानी ने 'गाय का वैज्ञानिक महत्व' बताने के लिए बिना किसी प्रमाण के, अपने घर का स्वदेशी सिद्धांत सामने रख दिया था! देवनानी के अनुसार गाय एकमात्र जीव है, जो ऑक्सीजन लेता और छोड़ता है। उन्होंने यह भी कहा था कि ज़ुकाम और खाँसी जैसी बीमारियाँ तो गाय के निकट जाने से ही ठीक हो सकती हैं!
 
उधर बीजेपी नेता दिलीप घोष ने रहस्योद्घाटन किया कि, "भारतीय नस्ल की गायों में एक ख़ासियत होती है। इनके दूध में सोना मिला होता है और इसी वजह से उनके दूध का रंग सुनहरा होता है। हमें स्वस्थ रहने के लिए गोमूत्र पीना चाहिए।"
 
इसी बीच जूनागढ़ कृषि विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने दावा कर दिया था कि गुजरात के गिर इलाक़े की गायों के मूत्र रिसर्च से पता चला है कि उसमें सोना, यौगिक और दूसरे औषधीय गुण हैं। हालाँकि यह दावा जल्द ही झूठा साबित हो गया, जब पता चला कि सोने जैसी क़ीमती धातु को तो छोड़ दें, गायें अपने शरीर में धातुओं को संश्लेषित ही नहीं कर सकती।
 
त्रिपुरा के नव-नियुक्त मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब कहते हैं, "महाभारत काल में भी इंटरनेट और सैटेलाइट की सुविधा उपलब्ध थी।"
 
"स्टेम सेल और टेस्ट ट्यूब तकनीक के कारण हमारे पास एक माँ से 100 कौरव थे", "हिंदू महाकाव्य रामायण के नायक रावण के पास 24 प्रकार के विमान थे और वह कई हवाई अड्डों का संचालन करता था", "हिंदू भगवान विष्णु निर्देशित मिसाइल चलाते थे", "यह हिंदू देवता ब्रह्मा थे जिन्होंने सबसे पहले डायनासोर की खोज की थी", "अर्जुन के पास परमाणु ऊर्जा से चलने वाले तीर थे", "भारत ने बीजगणित और पाइथागोरस प्रमेय की खोज की, लेकिन फिर उदारतापूर्वक दूसरों को श्रेय का दावा करने की अनुमति दी"...
 
ऊपर के सारे दावे या बयान... यह सब मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों, राज्यपालों आदि संवैधानिक पदधारियों के बयान हैं!!! जो शीर्ष स्तर पर हो रही प्रवृत्ति से प्रेरित हैं। सब कुछ पहले से ही था और हमने ही किया था- यह तमाम दावों और बयानों का मूल है!
उधर असम के एक मंत्रीजी ने तो कैंसर की वजह भी ढूंढ ली थी और वे स्वयं स्वास्थ्य मंत्री थे। असम के स्वास्थ्य मंत्री हिमंत विश्व शर्मा ने नवंबर 21 को कहा कि, "कुछ लोग कैंसर जैसी घातक बीमारियों से इसलिए ग्रस्त हैं, क्योंकि उन्होंने अतीत में पाप किए हैं और यह ईश्वर का न्याय है।" ऐसे स्वास्थ्य मंत्री किसके पाप के कारण अवतरित होते होंगे ये भी सोचने का विषय है।
 
इधर वासुदेव देवनानी बीजेपी की पसंदीदा वैज्ञानिक खोज को छोड़ने के लिए तैयार नहीं। वे कह गए, "अगर आपको कैंसर से बचना है तो गाय की रक्षा करने की ज़रूरत है, क्योंकि गोमूत्र कैंसर को पूरी तरह से ठीक करने में कारगर है।" और यह दावा बीजेपी के कई विधायक या सांसद कर चुके हैं।
 
एक तरफ़ स्वास्थ्य मंत्री केंसर को इंसानी पाप का परिणाम बताते हैं, दूसरी तरफ़़ दूसरा मंत्री इस पाप का इलाज भी ढूंढ ले आता है! संस्कार और गौरव के नाम पर साइंस की ऐसी नृशंष हत्या का दौर भारत को विश्वगुरु बनाने जा रहा है, यह मान्यता भी अजीब ही है! नोट करें कि ऑन्कोलॉजिस्टों ने देवनानी के इन दावों को ख़ारिज कर दिया था।

 
8 फ़रवरी के दिन अगरतला की एक रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं, ''कुछ लोग क़िस्मत और जीवन बेहतर करने के लिए रत्नों की अंगूठी पहनते हैं। लेकिन यदि आप ग़लत मानिक (अंगूठी) पहन लें तो इससे दिक्कत हो सकती है। त्रिपुरा में ग़़लत मानिक (सीएम) थे, अब समय आ गया है कि इसे उतार दें और एक हीरा पहने। एच-हाईवे, आई-आईवे, आर-रेलवे, ए-एयरवे।'' (अनुवाद)
 
नामों के शॉर्ट फॉर्म के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का प्यार जगज़ाहिर है। इसलिए हीरा का फूल फोर्म उन्होंने दे ही दिया। किंतु पौराणिक और अस्पष्ट मान्यताओं और भ्रमों के तरफ़ एक देश के प्रधानमंत्री का इतना झुकाव इतना सहज भी नहीं। ठीक है कि वह समाज में व्याप्त भ्रांति को एक जुमले की तरह चुनावी प्रचार में इस्तेमाल कर रहे थे। किंतु ऐसा होते ही रहना, ऐसा करना उनका स्वभाव व पहचान बन जाना, यह उतना भी ठीक नहीं है।
 
नसीबवाला और बदनसीब, यह प्रधानमंत्री बनने के तुरंत बाद के समय से उन्होंने शुरू किया था! रत्न पहनने से अच्छी क़िस्मत आ सकती है, इस भ्रम को देश का प्रधानमंत्री जैसे कि पुष्ट कर रहा था।
 
असल में ना सिर्फ़ प्रधानमंत्री मोदी, बल्कि उनकी पार्टी के कई प्रमुख सदस्य जो महत्वपूर्ण पदों पर हैं, उन्होंने भी विज्ञान और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में प्राचीन भारत की सर्वश्रेष्ठता पर ज़ोर देने के लिए ऐसे कई बयान दिए हैं! ऐसा करते हुए वे एकदम ग़लत बयान से लेकर अजीबोग़रीब बयान तक दे डालते हैं!
हिंदू पौराणिक कथाओं का हवाला देते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने एक बार कह दिया था कि उन्हें भरोसा है कि भगवान गणेश प्लास्टिक सर्जरी के सबसे पहला उदाहरण थे। प्रधानमंत्री मोदी ने एक से अधिक बार इस बात को दोहराया है! अक्टूबर 2014 को मुंबई में मेडिकल प्रोफेशनल्स की बैठक को संबोधित करते हुए भी इसका हवाला दिया था।
 
महाभारत के एक पात्र कर्ण का जन्म जेनेटिक इंजीनियरिंग की वजह से हुआ था, ऐसा दावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ही था! प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, "जिन्होंने महाभारत पढ़ा है या सुना है उनको मैं महाभारत की तरफ़ ले जाना चाहता हूँ। और मेरी जो छोटी सी समझ है उसके हिसाब से मुझे लगता है कि कर्ण का जो जन्म हुआ था, वो स्टेम सेल का साइंस था टेक्नोलॉजी थी।"
 
डार्विन वाला अपना मशहूर बयान देने से पहले मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री सत्यपाल सिंह ने सितंबर 2017 में कहा था कि आईआईटी जैसे प्रमुख इंजीनियरिंग संस्थानों में प्राचीन भारत की खोजों और आवश्यक आविष्कारों के बारे में अवश्य पढ़ाया जाना चाहिए, जैसे पुष्पक विमान, जिसका ज़िक्र रामायण में किया गया है।

 
सत्यपाल सिंह ने तो यह भी कह दिया कि राइट बंधुओं द्वारा हवाई जहाज़ का आविष्कार करने से पहले एक भारतीय शिवाकर तलपड़े ने राइट बंधुओं से 8 साल पहले इसका आविष्कार कर दिया था। मंत्रीजी ने अपने इस अघुरे ज्ञान को दुनिया का सच्चा इतिहास बताकर इस मिथक को किताबों में शामिल करने के लिए भी कह दिया था!
 
नोट करें कि भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु ने इस विषय पर एक अध्ययन प्रकाशित किया हुए है और यह तथ्य बहुत पहले स्पष्ट किया हुआ है कि विमानिका शास्त्र में दी गई अधिकांश थ्योरी अव्यावहारिक थी, जिनके आधार पर कथित रूप से तलपड़े ने वो कथित हवाई जहाज़ बनाया था, जिसे वह संसाधन माना नहीं जा सकता था, जो उनका दावा था।
 
आयुष मंत्रालय के राज्य मंत्री श्रीपद नायक ने 2016 में कहा कि योग से कैंसर सहित प्रमुख बीमारियाँ ठीक हो सकती हैं। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार को एक वर्ष में इसका वैज्ञानिक प्रमाण प्राप्त हो सकता है। उन्होंने अपने इस दावे को प्रमाणित तथ्य कह दिया और दावा किया कि बेंगलुरु स्थित स्वामी विवेकानंद योग अनुसंधान संस्थान के कई लोगों ने उन्हें ऐसा बताया है और उस संस्थान ने कैंसर की रोकथाम और इलाज के लिए योग की एक तकनीक खोजी है।
अभी 2024 का साल चल रहा है। 2016 के बाद क़रीब 8 साल का समय बीत चुका है। ना तो सरकार और ना ही ऐसा दावा करने वाले मंत्री, ना ही उस संस्थान ने इसका प्रमाण प्रस्तुत किया है! कांगेन वाटर मशीन का पानी पीने से कैंसर दूर हो जाता है वाला छलिया व्यवसाय जैसे सरेआम चलता है, सत्ताधारी दल के प्रधानमंत्री से लेकर मंत्री, अपने मन में जो आया वह बोल देते हैं! जबकि वे जो बोलते हैं उसका सत्य दर्शन दशकों पहले हो चुका होता है।
 
आज का आधुनिक और पढ़ा लिखा समाज युगों पुराने भारत को जानने समझने का दावा करता है, किंतु जिस बात का सत्य दर्शन अभी कुछ दशक या साल पहले हो चुका होता है, उसकी ख़बर उसको नहीं होती!
 
हरिद्वार के बीजेपी सांसद और उत्तराखंड के भूतपूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने बिना किसी तथ्य या प्रमाण के दावा कर दिया था कि असल में एक ऋषि ने कई लाख वर्ष पहले परमाणु परीक्षण किया था। इन्होंने यह दावा लोकसभा में एक बहस में भाग लेते हुए कर दिया था!

 
निशंक ने कहा था, "आज हम परमाणु परीक्षण की बात कर रहे हैं। लाखों वर्ष पहले एक ऋषि ने परमाणु परीक्षण किया था। हमारी जानकारी और विज्ञान में किसी तरह की कमी नहीं है।" उन्होंने उस वक्त भगवान गणेश और प्लास्टिक सर्जरी के बारे में प्रधानमंत्री मोदी की टिप्पणी काफी बचाव किया था और कहा था, "एक कटे हुए सिर को प्रत्यारोपण करने का विज्ञान या ज्ञान केवल भारत में मौजूद था।"
 
वासुदेव देवनानी ने तो न्यूटन और गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत के इतिहास को झूठा बता दिया था, और बस यूँ ही, बिना किसी रिसर्च पेपर के, दावा कर दिया था कि असल में यह खोज भारतीय वैज्ञानिक ब्रह्मगुप्त द्वितीय द्वारा न्यूटन से 1000 साल पहले की गई थी।
 
देवनानी ने कहा, "3-4 दिन पहले मैं पढ़ रहा था कि गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत की खोज किसने की। यह बताया गया कि न्यूटन ने की थी। मैंने ये पढ़ा है, आपने भी पढ़ा होगा। लेकिन यदि आप गहराई में जाएं तो अब जान जाएँगे कि इससे 1000 साल पहले ब्रह्मपुत्र द्वितीय ने गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत की खोज की थी। हम इसका संबंध क्यों नहीं स्थापित करते?"
 
स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अनेकों बार इतिहास, विज्ञान आदि को जमकर कूट चुके हैं! वे बहुत बार इतिहास को उलट-पुलट करते हुए बयान दे चुके हैं तथा विज्ञान की भी हालत ख़राब कर चुके हैं! भगत सिंह, सिकंदर, ई-मेल, डिजिटल कैमरा, बादल और रडार, पीएम मोदी के ऐसे बयानों की सूची लंबी है!
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कह चुके हैं, "भारतीय ऋषि अपनी योग विद्या का उपयोग करके दिव्य दृष्टि प्राप्त कर लेते थे। इसमें कोई संदेह नहीं है कि टीवी के आविष्कार का इतिहास इसीसे जुड़ा है।"
 
केंद्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह कृषि विकास के लिए विज्ञान को छोड़ दूसरा रास्ता खोज ले आए। वे कहते हैं, "योगिक खेती के पीछे का विचार सकारात्मक सोच की मदद से बीजों को सशक्त बनाना है। हमें परमात्मा की किरणों से बीजों की शक्ति को बढ़ाना चाहिए।"
 
विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री हर्षवर्धन ने तो आव देखा न ताव, दावा कर किया कि, "वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग ने कहा था कि हिंदू वेदों में एक सिद्धांत है, जो आइंस्टीन के सापेक्षता के सिद्धांत को मात देता है।"
 
जब मंत्रीजी पर इस अज्ञात बयान के बारे में सोर्स मांगा गया तो उन्होंने यह कह कर पल्ला झाड़ लिया कि सोर्स ढूंढना पत्रकारों का काम है! सोचिए, देश के मंत्री कुछ भी बोल देते हैं, और उन्होंने जो कहा वो सच है या झूठ, यह भी पूछा जा नहीं सकता!

 
इधर अनंत कुमार हेगड़े ने ज़ोर देकर कहा कि, "दुनिया भर के प्रख्यात वैज्ञानिक इस विचार पर आ रहे हैं कि संस्कृत भविष्य के सुपर कंप्यूटरों की भाषा होगी।" हालाँकि, उन्होंने किसी भी प्रतिष्ठित वैज्ञानिक के नाम का खुलासा नहीं किया, बस यूँ ही कह दिया!!!
 
उत्तराखंड के भूतपूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक बीजेपी के ग़ैर वैज्ञानिक प्रयासों पर जैसे कि मुहर लगा देते हैं। वे तो सरेआम एलान ही कर देते हैं कि, "ज्योतिष शास्त्र सबसे बड़ा विज्ञान है। वास्तव में, यह विज्ञान से ऊपर है। हमें इसे बढ़ावा देना चाहिए।"
 
सिर से लेकर पाँव तक के झूठे वैज्ञानिक दावे, शिक्षा में इसे लागू करने के विचित्र आह्वान, इतिहास की किताबे बदलने के सुझाव! यह सब बहुत ऊपर से निचले स्तर तक लगातार होता रहा। वैज्ञानिक समुदाय इसका विरोध करते रहे, कभी पत्र लिखते रहे, कभी विरोध जताते रहे। लेकिन जनता को नये वैज्ञानिक पसंद आ रहे हैं, ऐसे में असली वैज्ञानिकों की बात कौन देखेगा भला?
 
ग़ज़ब यह कि ये लोग सत्ताधारी दल के मंत्री या नेता हैं, उनकी अपनी सरकार है, तो फिर वे लोग जिस नवीनतम इतिहास की बात कर रहे थे, वे इतने सालों बाद प्रमाणित या आधिकारिक ढंग से साबित क्यों नहीं कर पा रहे हैं? वे इसका कोई रिसर्च पेपर क्यों नहीं बना रहे? क्योंकि, वे जो बोल रहे हैं, वह सब सफ़ेद झूठ है, जिसका कोई सिर-पैर नहीं है।
 
1900 से 1950 के भारत के नायकों ने, जिसमें स्वयं महात्मा गाँधी, सरदार वल्लभ भाई पटेल, शहीद भगत सिंह और दूसरे तमाम नायक शामिल होते हैं, सभी ने बाक़ायदा, लिखित रूप से, वैज्ञानिक चेतना और वैज्ञानिक शिक्षा आधारित भारतीय समाज की कल्पना की थी, चिंतन की शिक्षा द्वारा तर्कसंगत सिद्धांतों पर आधारित समाज और देश की कल्पना की थी। वे तमाम नायक आज याद किए जाते हैं, लेकिन उनके विचार आयोजित ढंग से नष्ट किए जा चुके हैं।
बीजेपी के प्रमुख सदस्यों और पदाधिकारियों द्वारा समय-समय पर दिए जाने वाले बयानों पर ध्यान देने से ऐसा लगता है कि वैज्ञानिक तथा तार्किक भावनाओं को प्रोत्साहित करने का उद्देश्य पूरा होने से अभी काफी दूर है। संविधान में वैज्ञानिक चेतना, मानववाद और जाँच तथा सुधार की भावना विकसित करना, बुनियादी कर्तव्य है।
 
प्राचीन भारत का महिमामंडन भारत में हिंदू दक्षिणपंथी प्रवचन का आवर्ती विषय रहा है। नरेंद्र मोदी के कार्यकाल के दौरान, यह विज्ञान के क्षेत्र में भी छा गया और मीडिया को संदिग्ध वैज्ञानिक दावों से भर दिया गया! जनता सिर्फ़ नागरिक न रहे, किंतु वह भावुक बने, तर्कहिन बने, यह तमाम हिंदू दक्षिणपंथी प्रवचनों का मूल रहा है।
 
ऐसा लग रहा है, जैसे कि विज्ञान के ताक़तवर स्वरूप से पिछड़ रही धार्मिक शक्तियाँ अब मिथकों को विज्ञान से जोड़ने की सजग कोशिश कर रही हो, ताकि आम मानस पर उनकी प्रभुता और सत्ता बनी रहे। सत्ताधारी दल के ग़ैर वैज्ञानिक बयानों में एक निरंतरता है, जो स्थापित वैज्ञानिक तथ्यों पर सीधा हमला करती है।
 
समाज में सदैव मिथक व्याप्त रहते हैं, किंतु यह सत्ता उन मिथकों को वैध साबित करने के प्रयत्नों में व्यस्त दिखती है! वे हर वैज्ञानिक खोज का आधार धार्मिक किताबों को बताते हैं, ताकि लोगों के दिमाग में ग़ैर तार्किक मिथकों का वर्चस्व बना रहे। (लगे हाथ नोट यह भी कर लें कि भारत में 300 से भी ज़्यादा प्रकार की रामायण हैं, और तमाम में कहानियों में अंतर भी मिल जाता है)
 
वैज्ञानिक संस्कृति के विस्तासर को बढ़ाने के लिए ज़िम्मेदार सरकार इसके बजाय ऐसे अजीब, अंधश्रद्धा से भरपूर और झूठे वैज्ञानिक विचारों के पक्ष में खड़ी नज़र आती है! इस प्रवृत्ति को विश्वसनीयता ख़ुद प्रधानमंत्री ने प्रदान की है, जिन्होंने पौराणिक कथाओं को विज्ञान के समक्ष खड़ा किया और इस प्रक्रिया में राजनीति की वेदी पर विज्ञान को कमज़ोर बनाया!
 
कसूर पासपोर्ट का था, बदनाम राशन कार्ड हो गया! दरअसल इस विषय में भी यही तथ्य उभरता है। जज, आला अधिकारी, मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री, शिक्षक समाज से लेकर प्रोफ़ेसर तक के लोग, डॉक्टर जैसा कथित रूप से पढ़ा-लिखा समुदाय, सारे के सारे इस बीमारी के शिकार हैं, किंतु दोष आता है बेचारे आम लोगों पर!
 
'फ़ेक न्यूज़' के ज़रिए फैलाई जा रही 'संकीर्णता' नाम की यह 'ख़तरनाक बीमारी' इस कदर हावि है कि कोई भी शिक्षक या प्रोफ़ेसर या डॉक्टर आपको शायद ही मिले, जो किसी न किसी ऐसे संस्थान या व्यक्ति से जुड़ा हुआ न हो! हर जगह, हर संस्थान में, चाहे वो सरकारी हो या ग़ैर सरकारी, ऐसे ऐसे लोग भरे पड़े हैं, जो बेसिक का, कॉमन सेंस का विचित्र ढंग से धत्ता बताते रहते हैं! हर पढ़ा लिखा हुआ व्यक्ति किसी न किसी ऐसे संस्थान या समुदाय का गुलाम होता ही है। वो ख़ुद स्वतंत्र या आज़ाद नहीं होता, तो फिर वो आने वाली पीढ़ी को क्या देकर जाएगा, यह समझना कॉमन सेंस की बात है। 
(इनसाइड इंडिया, एम वाला)