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The Constitution of India : संक्षेप में भारत का संविधान



भारत का संविधान, भारत का सर्वोच्च विधान है, जो संविधान सभा द्वारा 26 नवम्बर 1949 को पारित हुआ तथा 26 जनवरी 1950 से प्रभावी हुआ। यह दिन (26 नवम्बर) भारत के संविधान दिवस के रूप में घोषित किया गया है, जबकि 26 जनवरी का दिन भारत में गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारत का संविधान विश्व के किसी भी गणतांत्रिक देश का सबसे लंबा लिखित संविधान है। संविधान के उद्देश्यों को प्रकट करने हेतु प्राय: उनसे पहले एक प्रस्तावना प्रस्तुत की जाती है। प्रस्तावना यह घोषणा करती है कि संविधान अपनी शक्ति सीधे जनता से प्राप्त करता है, इसी कारण यह 'हम भारत के लोग' - इस वाक्य से प्रारम्भ होती है।

संविधान विशेष क़ानूनी शुचिता वाले लोगों के विश्वास और आकांक्षाओं का दस्तावेज़ है। देश के बाकी सभी क़ानून और रीतिरिवाजों को वैध होने के लिए इसका पालन करना होगा। समयसमय पर संविधान में कई संशोधन किए गए हैं। जैसे, 42 वें संशोधन अधिनियम 1976 द्वारा कई बदलाव किए गए।

संक्षिप्त परिचय
भारतीय संविधान में वर्तमान समय में 465 अनुच्छेद तथा 12 अनुसूचियाँ हैं और ये 25 भागों में विभाजित है। परन्तु इसके निर्माण के समय मूल संविधान में 395 अनुच्छेद, जो 22 भागों में विभाजित थे, इसमें केवल 8 अनुसूचियाँ थीं। संविधान में सरकार के संसदीय स्‍वरूप की व्‍यवस्‍था की गई है जिसकी संरचना कुछ अपवादों के अतिरिक्त संघीय है। केन्‍द्रीय कार्यपालिका का सांविधानिक प्रमुख राष्‍ट्रपति है। भारत के संविधान की धारा 79 के अनुसार केन्‍द्रीय संसद की परिषद् में राष्‍ट्रपति तथा दो सदन हैं, जिन्‍हें राज्‍यों की परिषद राज्‍यसभा तथा लोगों का सदन लोकसभा, के नाम से जाना जाता है। संविधान की धारा 74 (1) में यह व्‍यवस्‍था की गई है कि राष्‍ट्रपति की सहायता करने तथा उसे सलाह देने के लिए एक मंत्रिपरिषद होगा, जिसका प्रमुख प्रधानमंत्री होगा। राष्‍ट्रपति इस मंत्रिपरिषद की सलाह के अनुसार अपने कार्यों का निष्‍पादन करेगा। इस प्रकार वास्‍तविक कार्यकारी शक्ति मंत्रिपरिषद में निहित है, जिसका प्रमुख प्रधानमंत्री है।

मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से लोगों के सदन (लोकसभा) के प्रति उत्तरदायी है। प्रत्‍येक राज्‍य में एक विधानसभा है। जम्मू और कश्मीर, उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, कर्नाटक,आंध्रप्रदेश और तेलंगाना में एक ऊपरी सदन है, जिसे विधानपरिषद कहा जाता है। राज्‍यपाल राज्‍य का प्रमुख है। प्रत्‍येक राज्‍य का एक राज्‍यपाल होगा तथा राज्‍य की कार्यकारी शक्ति उसमें निहित होगी। मंत्रिपरिषद, जिसका प्रमुख मुख़्यमंत्री है, राज्‍यपाल को उसके कार्यकारी कार्यों के निष्‍पादन में सलाह देती है। राज्‍य की मंत्रिपरिषद् सामूहिक रूप से राज्‍य की विधानसभा के प्रति उत्तरदायी है।

संविधान की सातवीं अनुसूची में संसद तथा राज्‍य विधायिकाओं के बीच विधायी शक्तियों का वितरण किया गया है। अवशिष्‍ट शक्तियाँ संसद में विहित हैं। केन्‍द्रीय प्रशासित भू-भागों को संघराज्‍य क्षेत्र कहा जाता है।

इतिहास
द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद जुलाई 1945 में ब्रिटेन ने भारत संबंधी अपनी नई नीति की घोषणा की तथा भारत की संविधान सभा के निर्माण के लिए एक कैबिनेट मिशन भारत भेजा, जिसमें 3 मंत्री थे। 15 अगस्त 1947 को भारत के आज़ाद हो जाने के बाद संविधान सभा की घोषणा हुई और इसने अपना कार्य 9 दिसंबर 1947 से आरंभ कर दिया। संविधान सभा के सदस्य भारत के राज्यों की सभाओं के निर्वाचित सदस्यों के द्वारा चुने गए थे। जवाहरलाल नेहरू, डॉ. भीमराव आम्बेडकर, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, सरदार वल्लभभाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, आदि इस सभा के प्रमुख सदस्य थे। इस संविधान सभा ने 2 वर्ष, 11 माह, 18 दिन में कुल 114 दिन बहस की। संविधान सभा में कुल 12 अधिवेशन किए तथा अंतिम दिन 284 सदस्यों ने इस पर हस्ताक्षर किया और संविधान बनने में 166 दिन बैठक की गई। इसकी बैठकों में प्रेस और जनता को भाग लेने की स्वतंत्रता थी। भारत के संविधान के निर्माण में संविधान सभा के सभी 389 सदस्यों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, और इसे 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया था।

आधारभूत विशेषताएँ
संविधान प्रारूप समिति तथा सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय संविधान को संघात्मक संविधान माना है, परंतु विद्वानों में मतभेद हैं। अमेरीकी विद्वान इस को 'छद्म-संघात्मक-संविधान' कहते हैं, हालाँकि पूर्वी संविधानवेत्ता कहते हैं कि अमेरिकी संविधान ही एकमात्र संघात्मक संविधान नहीं हो सकता। संविधान का संघात्मक होना उसमें निहित संघात्मक लक्षणों पर निर्भर करता है, किंतु माननीय सर्वोच्च न्यायालय (पी कन्नादासन वाद) ने इसे पूर्ण संघात्मक माना है।

भारतीय संविधान के प्रस्तावना के अनुसार भारत एक सम्प्रुभतासम्पन्न, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक, गणराज्य है।

सम्प्रभुता
सम्प्रभुता शब्द का अर्थ है सर्वोच्च या स्वतंत्र होना। भारत किसी भी विदेशी और आंतरिक शक्ति के नियंत्रण से पूर्णतः मुक्त सम्प्रभुतासम्पन्न राष्ट्र है। यह सीधे लोगों द्वारा चुने गए एक मुक्त सरकार द्वारा शासित है तथा यही सरकार क़ानून बनाकर लोगों पर शासन करती है।

समाजवादी
समाजवादी शब्द संविधान के 1976 में हुए 42वें संशोधन अधिनियम द्वारा प्रस्तावना में जोड़ा गया। यह अपने सभी नागरिकों के लिए सामाजिक और आर्थिक समानता सुनिश्चित करता है। जाति, रंग, नस्ल, लिंग, धर्म या भाषा के आधार पर कोई भेदभाव किए बिना सभी को बराबर का दर्जा और अवसर देता है। सरकार केवल कुछ लोगों के हाथों में धन जमा होने से रोकेगी तथा सभी नागरिकों को एक अच्छा जीवन स्तर प्रदान करने की कोशिश करेगी।

भारत ने एक मिश्रित आर्थिक मॉडल को अपनाया है। सरकार ने समाजवाद के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कई क़ानूनों जैसे अस्पृश्यता उन्मूलन, जमींदारी अधिनियम, समान वेतन अधिनियम और बाल श्रम निषेध अधिनियम आदि बनाया है।

पंथनिरपेक्ष
धर्मनिरपेक्ष शब्द संविधान के 1976 में हुए 42वें संशोधन अधिनियम द्वारा प्रस्तावना में जोड़ा गया। यह सभी धर्मों की समानता और धार्मिक सहिष्णुता सुनिश्चीत करता है। भारत का कोई आधिकारिक धर्म नहीं है। यह ना तो किसी धर्म को बढ़ावा देता है, ना ही किसी से भेदभाव करता है। यह सभी धर्मों का सम्मान करता है व एक समान व्यवहार करता है। हर व्यक्ति को अपने पसंद के किसी भी धर्म की उपासना, पालन और प्रचार का अधिकार है। सभी नागरिकों, चाहे उनकी धार्मिक मान्यता कुछ भी हो क़ानून की नज़र में बराबर होते हैं। सरकारी या सरकारी अनुदान प्राप्त स्कूलों में कोई धार्मिक अनुदेश लागू नहीं होता।

लोकतांत्रिक
भारत एक स्वतंत्र देश है, किसी भी जगह से वोट देने की आज़ादी, संसद में अनुसूचित सामाजिक समूहों और अनुसूचित जनजातियों को विशिष्ट सीटें आरक्षित की गई हैं। स्थानीय निकाय चुनाव में महिला उम्मीदवारों के लिए एक निश्चित अनुपात में सीटें आरक्षित की जाती हैं। सभी चुनावों में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित करने का एक विधेयक लंबित है। हालाँकि इसकी क्रियान्वयन कैसे होगा, यह निश्चित नहीं हैं। भारत का चुनाव आयोग स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के लिए ज़वाबदेह है।

गणराज्य
राजाशाही, जिसमें राज्य के प्रमुख वंशानुगत आधार पर एक जीवन भर या पदत्याग करने तक के लिए नियुक्त किया जाता है, के विपरीत एक गणतांत्रिक राष्ट्र के प्रमुख एक निश्चित अवधि के लिए प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जनता द्वारा निर्वाचित होते हैं। भारत के राष्ट्रपति पाँच वर्ष की अवधि के लिए एक चुनावी कॉलेज द्वारा चुने जाते हैं।

शक्ति विभाजन
यह भारतीय संविधान का सर्वाधिक महत्वपूर्ण लक्षण है। राज्य की शक्तियाँ केंद्रीय तथा राज्य सरकारों में विभाजित होती हैं। दोनों सत्ताएँ एक-दूसरे के अधीन नहीं होती हैं, वे संविधान से उत्पन्न तथा नियंत्रित होती हैं। शक्ति विभाजन या विकेंद्रीकरण भारतीय संविधान का सबसे अनूठा पहलू है, जिसके माध्यम से किसी एक जगह सत्ता को केंद्रित होने से रोकने का मकसद स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।

संविधान की सर्वोच्चता
संविधान के उपबंध संघ तथा राज्य सरकारों पर समान रूप से बाध्यकारी होते हैं। केन्द्र तथा राज्य शक्ति विभाजित करने वाले अनुच्छेद निम्न दिए गए हैं:
1. अनुच्छेद 54,55,73,162,241
2. भाग -5 सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय राज्य तथा केन्द्र के मध्य वैधानिक संबंध
3. अनुच्छेद 7 के अंतर्गत कोई भी सूची
4. राज्यो का संसद में प्रतिनिधित्व
5. संविधान में संशोधन की शक्ति अनु 368इन सभी अनुच्छेदो में संसद अकेले संशोधन नहीं ला सकती है उसे राज्यों की सहमति भी चाहिए

अन्य अनुच्छेद शक्ति विभाजन से सम्बन्धित नहीं हैं:
1. लिखित संविधान अनिवार्य रूप से लिखित रूप में होगा क्योंकि उसमें शक्ति विभाजन का स्पष्ट वर्णन आवश्यक है। अतः संघ में लिखित संविधान अवश्य होगा।
2. संविधान की कठोरता इसका अर्थ है संविधान संशोधन में राज्य केन्द्र दोनों भाग लेंगे।
3. न्यायालयों की अधिकारिता- इसका अर्थ है कि केन्द्र-राज्य क़ानून की व्याख्या हेतु एक निष्पक्ष तथा स्वतंत्र सत्ता पर निर्भर करेंगे।

विधि द्वारा स्थापित:
1. न्यायालय ही संघ-राज्य शक्तियों के विभाजन का पर्यवेक्षण करेंगे।
2. न्यायालय संविधान के अंतिम व्याख्याकर्ता होंगे भारत में यह सत्ता सर्वोच्च न्यायालय के पास है।

ये पाँच शर्ते किसी संविधान को संघात्मक बनाने हेतु अनिवार्य हैं। भारत में ये पाँचों लक्षण संविधान में मौजूद हैं, अतः यह संघात्मक है। परंतु भारतीय संविधान में कुछ विभेदकारी विशेषताएँ भी हैं:
भारतीय संविधान में कुछ विभेदकारी विशेषताएँ भी है
1. यह संघ राज्यों के परस्पर समझौते से नहीं बना है
2. राज्य अपना पृथक संविधान नहीं रख सकते हैं, केवल एक ही संविधान केन्द्र तथा राज्य दोनों पर लागू होता है
3. भारत में द्वैध नागरिकता नहीं है। केवल भारतीय नागरिकता है
4. भारतीय संविधान में आपातकाल लागू करने के उपबन्ध है [352 अनुच्छेद] के लागू होने पर राज्य-केन्द्र शक्ति पृथक्करण समाप्त हो जाएगा तथा वह एकात्मक संविधान बन जाएगा। इस स्थिति में केन्द्र-राज्यों पर पूर्ण सम्प्रभु हो जाता है
5. राज्यों का नाम, क्षेत्र तथा सीमा केन्द्र कभी भी परिवर्तित कर सकता है [बिना राज्यों की सहमति से] [अनुच्छेद 3] अत: राज्य भारतीय संघ के अनिवार्य घटक नहीं हैं। केन्द्र संघ को पुर्ननिर्मित कर सकती है
6 संविधान की 7वीं अनुसूची में तीन सूचियाँ हैं संघीय, राज्य, तथा समवर्ती। इनके विषयों का वितरण केन्द्र के पक्ष में है।
6.1 संघीय सूची में सर्वाधिक महत्वपूर्ण विषय है
6.2 इस सूची पर केवल संसद का अधिकार है
6.3 राज्य सूची के विषय कम महत्वपूर्ण हैं, 5 विशेष परिस्थितियों में राज्य सूची पर संसद विधि निर्माण कर सकती है किंतु किसी एक भी परिस्थिति में राज्य, केन्द्र हेतु विधि निर्माण नहीं कर सकते-
           1 अनु 249राज्य सभा यह प्रस्ताव पारित कर दे कि राष्ट्र हित हेतु यह आवश्यक है [2/3 बहुमत से] किंतु यह बंधन मात्र 1 वर्ष हेतु लागू होता है
           2 अनु 250राष्ट्र आपातकाल लागू होने पर संसद को राज्य सूची के विषयों पर विधि निर्माण का अधिकार स्वत: मिल जाता है
           3 अनु 252दो या अधिक राज्यों की विधायिका प्रस्ताव पास कर राज्य सभा को यह अधिकार दे सकती है [केवल संबंधित राज्यों पर]
           4 अनु 253--- अंतराष्ट्रीय समझौते के अनुपालन के लिए संसद राज्य सूची विषय पर विधि निर्माण कर सकती है
           5 अनु 356जब किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू होता है, उस स्थिति में संसद उस राज्य हेतु विधि निर्माण कर सकती है
           7 अनुच्छेद 155राज्यपालों की नियुक्ति पूर्णत: केन्द्र की इच्छा से होती है इस प्रकार केन्द्र राज्यों पर नियंत्रण रख सकता है
           8 अनु 360वित्तीय आपातकाल की दशा में राज्यों के वित्त पर भी केन्द्र का नियंत्रण हो जाता है। इस दशा में केन्द्र राज्यों को धन व्यय करने हेतु निर्देश दे सकता है
           9 प्रशासनिक निर्देश [अनु 256-257] -केन्द्र राज्यों को राज्यों की संचार व्यवस्था किस प्रकार लागू की जाए, के बारे में निर्देश दे सकता है, ये निर्देश किसी भी समय दिये जा सकते हैं, राज्य इनका पालन करने हेतु बाध्य है। यदि राज्य इन निर्देशों का पालन न करे तो राज्य में संवैधानिक तंत्र असफल होने का अनुमान लगाया जा सकता है
           10 अनु 312 में अखिल भारतीय सेवाओं का प्रावधान है ये सेवक नियुक्ति, प्रशिक्षण, अनुशासनात्मक क्षेत्रों में पूर्णतः: केन्द्र के अधीन है जबकि ये सेवा राज्यों में देते हैं राज्य सरकारों का इन पर कोई नियंत्रण नहीं है
           11 एकीकृत न्यायपालिका
           12 राज्यों की कार्यपालिक शक्तियाँ संघीय कार्यपालिक शक्तियों पर प्रभावी नहीं हो सकती है।

भारतीय संविधान का संक्षिप्त परिचय
भारतीय संविधान एक मौलिक क़ानूनी आलेख है, जिसके अंतर्गत किसी देश की सरकार कार्य करती है। यह संविधान देश में विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका की व्यवस्था तथा उनके अधिकारों/ उत्तरदायित्वों को सुनिश्चित करता है।
भारतीय संविधान का निर्माण एक संविधान सभा द्वारा किया गया, जिसकी अनुशंसा कैबिनेट मिशन (1946) द्वारा की गई थी।
संविधान सभा का चुनाव अप्रत्यक्ष निर्वाचन पद्धिति द्वारा हुआ था, जिसमें राज्यों की विधानसभाओं में से प्रत्येक 10 लाख की जनसँख्या पर एक प्रतिनिधि चुना गया।
संविधान सभा के लिए कुल प्रतिनिधि 389 (296 ब्रिटिश अधीन प्रान्तों से + 93 देशी भारतीय रियासतों से) थे।
संविधान सभा की प्रथम बैठक 9 दिसंबर 1946 को नई दिल्ली स्थित काउंसिल चैम्बर के पुस्तकालय भवन में हुई, जिसके अस्थाई अध्यक्ष डॉ. सच्चिदानंद सिंहा थे। 11 दिसंबर 1946 को डॉ. राजेंद्र प्रसाद को स्थाई अध्यक्ष चुना गया।
13 दिसंबर 1946 को संविधान का उद्देश्य प्रस्तावप. जवाहरलाल नेहरू ने प्रस्तुत किया।  जिसे 22 जनवरी 1947 को संविधान सभा द्वारा स्वीकार कर लिया गया।
संविधान की निर्माण प्रक्रिया में श्री बीएन राव को संवैधानिक सलाहकार नियुक्त किया गया तथा विश्व के 60 देशों के संविधान का अध्ययन किया गया।
संविधान सभा में महिला सदस्य के रूप में सरोजिनी नायडू एवं श्रीमती हंसा मेहता चुनी गई थीं।
संविधान का निर्माण 9 दिसंबर 1946 से 26 नवम्बर 1949 के बीच कुल 2 वर्ष 11 माह 18 दिन में पूर्ण हुआ। 26 नवम्बर 1949 को संविधान अंगीकृत/ग्रहण किया गया एवं 26 जनवरी 1950 को भारत में लागू हुआ।
भारत के मूल संविधान में 22 भाग, 395 अनुच्छेद और 8 अनुसूचियाँ थी, वर्तमान में 465 अनुच्छेद और 12 अनुसूचियाँ हैं।
संविधान सभा के सदस्यों ने 24 जनवरी 1950 को संविधान के अंतिम प्रारूप पर हस्ताक्षर किये। साथ ही डॉ. राजेंद्र प्रसाद को भारतीय गणतंत्र का अंतरिम राष्ट्रपति चुना गया। इसी दिन सभा ने राष्ट्रगान (जन गण मन) की घोषणा की थी।
संविधान के निम्न 15 अनुछेद 26 नवम्बर 1949 को ही लागू हो गए थे - 5, 6, 7, 8, 9, 60, 324, 366, 367, 372, 380, 388, 391, 392, 393 तथा शेष अनुच्छेदों को 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया।
भारतीय संविधान के अनुसार भारत राज्यों का संघहै।
संविधान में वर्णित नीति निर्देशक तत्वोंमें लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा निहित है।
भारतीय संविधान के अनुसार राजनीतिक शक्ति का आधारभारत की जनता है।
भारतीय संविधान में "मूल कर्तव्यों" को 42वें संविधान संशोधन (1976) द्वारा जोड़ा गया है। 42वें संविधान संशोधन को मिनी कांस्टीट्यूशन कहा जाता है।
भारतीय संविधान में एकल नागरिकता का प्रावधान किया गया है।
डॉ. भीमराव आम्बेडकर ने अनुच्छेद 32 (संवैधानिक उपचारों का अधिकार)को भारतीय संविधान का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा मानते हुए इसे संविधान की आत्माकहा है। नागरिकों के लिहाज से सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। यदि किसी नागरिक को लगता है कि संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों का शासन, प्रशासन अथवा संस्था द्वारा हनन किया जा रहा है तो वह उच्च न्यायलय या उच्चतम न्यायलय जा सकता है।
उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों को मौलिक अधिकारों का संरक्षक कहा जाता है।

भारतीय संविधान में सम्मिलित विदेशी तत्व
1. संयुक्त राज्य अमेरिका - मौलिक अधिकार, ‘क़ानून का समान संरक्षण’,  उप-राष्ट्रपति का पद एवं उसका राज्यसभा का पदेन सभापति होना, स्वतन्त्र न्यायपालिका,  न्यायिक पुनर्विलोकन एवं सर्वोच्च न्यायालय का संगठन एवं शक्तियाँ
2. आयरलैंड - नीति निर्देशक तत्व, राज्यसभा में कला, समाज, सेवा, साहित्य, विज्ञान के क्षेत्र से 12 सदस्यों का मनोनयन, आपातकाल उपबंध
3. ब्रिटेन - संसदीय प्रणाली, संसदीय विशेषाधिकार, एकल नागरिकता, विधि का शासन, विधि के समक्ष समानता (अनुच्छेद 14) एवं राष्ट्रपति द्वारा अभिभाषण
4. ऑस्ट्रेलिया - समवर्ती सूची का प्रावधान, केंद्र-राज्यों के बीच शक्तिओं/अधिकारों का विभाजन
5. कनाडा - संघात्मक विशेषताएं, अवशिष्ट शक्तियां केंद्र के पास
6. दक्षिण अफ़्रीका - संविधान संशोधन की प्रक्रिया
7. रूस - मौलिक अधिकारों की स्थापना
8. जापान - विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया

विशेष टिप्पणी
हमारे यहाँ कई मौक़ों पर संविधान को कोसा जाता है। संविधान की आलोचना करना अलग विषय है, जबकि संविधान को ही अपराधी की नज़र से देखना अलग विषय है। संविधान के समर्थक और आलोचक, दोनों अक्सर संविधान के गुण व दोष पर चर्चा करते रहते हैं। सालों की चर्चा के बाद भी संविधान के गुण और संविधान का समर्थन जीतता नज़र आता है। ऐसा इसलिए, क्योंकि भारत का संविधान सचमुच अनूठा है।

भारत के संविधान में विकेंद्रीकरण या शक्ति विभाजन महत्वपूर्ण लाक्षणिकता है। इसीके ज़रिए सत्ता या शक्ति को किसी एक जगह केंद्रित होने से रोका गया है। राज्यसभा, लोकसभा, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, सर्वोच्च न्यायालय... कोई भी हो, सत्ता का केंद्रीकरण नहीं है, बल्कि सत्ता का विभाजन किया गया है। अगर फिर भी संविधान के मूल उद्देश्यों को बाधित होने का ख़तरा हो, तब संविधान में संशोधन का महत्वपूर्ण विषय उभर कर आता है। भारत का संविधान स्थिर नहीं है, बल्कि संशोधनात्मक है। संविधान निर्माताओं ने यक़ीनन सोचा था कि समय के हिसाब से संविधान में बदलाव होने ही चाहिए। इसीलिए सत्ता विभाजन और संशोधन, दोनों का मिश्रण अनूठा पहलू उभकर आता है। किसीने कहा था कि जो संविधान संशोधन की अनुमति प्रदान न करता हो, वो संविधान क्रांति को खुल्ला न्योता देता है। भारत का संविधान संशोधन की इजाज़त देता है, समय के अनुसार कुछेक ज़रूरी परिवर्तन करने की मान्यता पर आधारित है।

समर्थन और आलोचना, भारत के संविधान को यह दो चीजें भी अनूठा बनाती हैं। ख़ास करके आलोचना। एक अज्ञात कथन है कि भारत के संविधान की आप कठौर आलोचना कर सकते हैं, कौन सा संविधान इतनी स्वतंत्रता देता है? सबसे बड़ा पहलू यह है कि भारत के संविधान की शुरुआत ही वी द पीपल से होती है। अर्थात संविधान सबसे बड़ा है, लेकिन उसे भारत गणराज्य के नागरिकों के लिए बनाया गया है, और इन्ही नागरिकों के पास सबसे बड़ी सत्ता है। संविधान के तहत जितनी भी व्यवस्थाएँ निर्मित हैं, भारत संघ के नागरिकों के पास ही वो ताक़त है, जिसकी मदद से वे संविधान के चलत्व का इस्तेमाल कर सकते हैं। दरअसल, संविधान निर्माताओं ने सत्ता के विकेंद्रीकरण के साथ साथ नागरिकों को शायद सबसे ज़्यादा सत्ता प्रदान की है, जिसका सही व ग़लत इस्तेमाल संविधान को सही व ग़लत साबित करता है।

डॉ. भीमराव आंबेडकर ने कहा था कि - मैं महसूस करता हूँ कि संविधान चाहे कितना भी अच्छा क्यों न हो, यदि वे लोग, जिन्हें संविधान को अमल में लाने का काम सौंपा जाए, ख़राब निकले तो निश्चित रूप से संविधान भी ख़राब सिद्ध होगा। दूसरी ओर, संविधान चाहे कितना भी ख़राब क्यों न हो, यदि वे लोग जिन्हें संविधान को अमल में लाने का काम सौंपा जाए, अच्छे हो तो संविधान अच्छा सिद्ध होगा।

और संविधान को अमल में लाने का काम किसे सौंपा जाए उसकी आख़िरी सत्ता लोगों के पास है। लोगों के विवेक पर है कि वे किसका विवेक इस्तेमाल करें। शायद... अविवेक के समय में लोगों का विवेक ही संविधान का मूल आधार है।