भारत हमेशा से ही एक अद्भुत देश रहा है। भारत की अनोखी सभ्यता और संस्कृति सबको मंत्रमुग्ध
कर देती है। सर्व काल से ही भारत की छवि एक ऐसे देश की रही है, जहाँ की परम्पराएँ एवं
संस्कृति सबसे रोचक हैं। 5000 साल पहले जब विश्व में ज़्यादातर सभ्यताएँ खानाबदोश जीवन
व्यतीत कर रही थीं, भारत में सिंधु-घाटी उन्नति
के शिखर पर थी। भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र और विश्व का सातवां सबसे बड़ा देश
तथा प्राचीन सभ्यताओं में से एक है। भारत देश का आधिकारीक नाम रिपब्लिक ऑफ़ इंडिया; भारत गणराज्य है।
भारत पर उद्धरण
हम सभी भारतीयों का अभिवादन करते हैं, जिन्होंने हमें गिनती
करना सिखाया, जिसके बिना विज्ञान की कोई भी खोज संभव नहीं
थी। - अल्बर्ट आइंस्टीन, सैद्धांतिक भौतिक विज्ञानी, जर्मनी
भारत मानव जाति का पालना है, मानवीय वाणी का जन्म स्थान
है, इतिहास की जननी है और विभूतियों की दादी है
और इन सबके ऊपर परम्पराओं की परदादी है। मानव इतिहास में हमारी सबसे क़ीमती और सबसे
अधिक अनुदेशात्मक सामग्री का भण्डार केवल भारत में है! - मार्क ट्वेन, लेखक, अमेरिका
यदि पृथ्वी के मुख पर कोई ऐसा स्थान है, जहाँ जीवित मानवजाति के सभी सपनों को बेहद शुरुआती समय से आश्रय मिलता है, और जहाँ मनुष्य ने अपने
अस्तित्व का सपना देखा, वह भारत है। - रोमां रोलां, फ्रांसीसी विद्वान
भारत ने शताब्दियों से एक लम्बे आरोहण के
दौरान मानव जाति के एक चौथाई भाग पर अमिट छाप छोड़ी है। भारत के पास उसका स्थान मानवीयता
की भावना को सांकेतिक रूप से दर्शाने और महान राष्ट्रों के बीच अपना स्थान बनाने
का दावा करने का अधिकार है। पर्शिया से चीनी समुद्र तक, साइबेरिया के बर्फ़ीले क्षेत्रों
से जावा और बोरनियो के द्वीप समूहों तक भारत ने अपनी मान्यता, अपनी कहानियाँ और अपनी
सभ्यता का प्रचार प्रसार किया है। - सिल्विया लेवी, फ्रांसीसी विद्वान
सभ्यताएँ दुनिया के अन्य भागों में उभर कर
आई हैं। प्राचीन और आधुनिक समय के दौरान एक जाति से दूसरी जाति तक अनेक अच्छे विचार
आगे ले जाए गए हैं... परन्तु मार्क, मेरे मित्र, यह हमेशा युद्ध के बिगुल
बजाने के साथ और तालबद्ध सैनिकों के पद ताल से शुरू हुआ है। हर नया विचार रक्त के
तालाब में नहाया हुआ होता था... विश्व की हर राजनीतिक शक्ति को लाखों लोगों के जीवन
का बलिदान देना होता था, जिनसे बड़ी तादाद में अनाथ बच्चे और विधवाओं
के आँसू दिखाई देते थे। यह अन्य अनेक राष्ट्रों ने सिखा, किन्तु भारत ने हज़़ारों
वर्षों से शांतिपूर्वक अपना अस्तित्व बनाए रखा। यहाँ जीवन तब भी था जब ग्रीस अस्तित्व
में नहीं आया था... इससे भी पहले जब इतिहास का कोई अभिलेख नहीं मिलता, और परम्पराओं ने उस अंधियारे
भूतकाल में जाने की हिम्मत नहीं की। तब से लेकर अब तक विचारों के बाद नए विचार यहाँ से उभर कर आते रहे और प्रत्येक बोले गए शब्द के साथ आशीर्वाद और इसके पूर्व शांति
का संदेश जुड़ा रहा। हम दुनिया के किसी भी राष्ट्र पर विजेता नहीं रहे हैं और यह आशीर्वाद
हमारे सिर पर है और इसलिए हम जीवित हैं...! - स्वामी विवेकानंद, भारतीय दार्शनिक
यदि हम से पूछा जाता कि आकाश तले कौन सा मानव
मन सबसे अधिक विकसित है, इसके कुछ मनचाहे उपहार क्या हैं, जीवन की सबसे बड़ी समस्याओं
पर सबसे अधिक गहराई से किसने विचार किया है और इसके समाधान पाए हैं, तो मैं कहूँगा इसका
उत्तर है भारत। - मैक्स मूलर, जर्मन विद्वान
भारत ने चीन की सीमापार अपना एक भी सैनिक न
भेजते हुए बीस शताब्दियों के लिए चीन को सांस्कृतिक रूप से जीता और उस पर अपना प्रभुत्व
बनाया है। - हु शिह, अमेरिका में चीन के पूर्व राजदूत
दुनिया के कुछ हिस्से ऐसे हैं जहाँ एक बार जाने के बाद वे आपके मन में बस जाते
हैं और उनकी याद कभी नहीं मिटती। मेरे लिए भारत एक ऐसा ही स्थान है। जब मैंने यहाँ पहली बार कदम रखा तो मैं यहाँ की भूमि की समृद्धि, यहाँ की चटक हरियाली और भव्य वास्तुकला से, यहाँ के रंगों, ख़ुशबुओं, स्वादों और ध्वनियों की शुद्ध, संघन तीव्रता से अपने अनुभूतियों को भर लेने की क्षमता से अभिभूत हो गई। यह अनुभव
कुछ ऐसा ही था जब मैंने दुनिया को उसके स्याह और सफ़ेद रंग में देखा, और जब मैंने भारत के जनजीवन को देखा और पाया कि यहाँ सभी कुछ
चमकदार बहुरंगी है। - किथ बेलोज़, मुख्य संपादक, नेशनल ज्योग्राफिक सोसाइटी
मैं भगवत गीता का अत्यंत ऋणी हूँ।
यह पहला ग्रन्थ है, जिसे पढ़कर मुझे लगा कि किसी विराट शक्ति से हमारा संवाद हो रहा
है। - राल्फ वाल्डो इमर्सन
दुनिया की सभी भाषाओं की माता संस्कृत है। सभी भाषाएँ (97%) प्रत्यक्ष या परोक्ष
रूप से इस भाषा से प्रभावित है। - संदर्भ: यूएनओ
सबसे अच्छे प्रकार का कैलेंडर जो इस्तेमाल किया जा रहा है, हिंदू कैलेंडर है, जिसमें नया साल सौर प्रणाली के भूवैज्ञानिक परिवर्तन के साथ शुरू होता है। -
संदर्भ: जर्मन स्टेट यूनिवर्सिटी
भारतीय
संविधान की प्रस्तावना
“हम भारत के लोग,
भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य
बनाने के लिए, तथा उसके समस्त नागरिकों को: सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की
स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए, तथा उन सब में व्यक्ति
की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़
संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर 1949 ई (मिति मार्गशीर्ष शुक्ला
सप्तमी, संवत दो हज़ार विक्रमी)
को एतदद्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित
और आत्मार्पित करते हैं।”
भारतीय
संविधान बनाने में मदद करने वाली ये हैं वो महिलाएं, जिन्हें भुलाया नहीं जा सकता
भारत का संविधान 26 जनवरी 1949 में
बनाया गया और इसे 26 जनवरी 1950 को देश के गणतंत्र दिवस के रूप में समर्पित किया।
भारतीय संविधान के जनक और पिता भले ही बीआर अंबेडकर है, लेकिन संविधान के निर्माण में
महिलाओं का योगदान भी रहा है, जिसे भुलाया नहीं जा सकता।
जब भारतीय संविधान का निर्माण किया
जा रहा था तो महिलाओं के अधिकारों की बात भी जोर-शोर से उठी थी। संविधान निर्माण के
दौरान उस समय में देशभर विभिन्न अभियानों से जुड़ी महिला हस्तियों को भी जोड़ा गया
था।
इन महिलाओ में से एक थी अम्मू स्वामीनाथन।
अम्मू का जन्म केरल के पालाघाट ज़िले के अनक्कारा में हुआ था। उन्होंने 1917 में मद्रास
में एनी बेसेंट सहित कई महिलाओं के साथ मिलकर विमेंस इंडिया एसोसिएशन का निर्माण किया
था। वह 1946 में मद्रास कांस्टीट्यूएंसी की हिस्सा भी थीं। जब 24 नवंबर 1949 में बीआर
अंबेडकर संविधान के बारे में अपनी बात रख रहे थे तब आत्मविश्वास से लबरेज़ अम्मू ने
कहा था - भारत के बारे में दुनिया वालों का कहना है कि भारत में महिलाओं को बराबरी
का अधिकार नहीं दिया गया है, लेकिन अब हम कह सकते हैं कि भारतीयों ने अपना संविधान ख़ुद
बनाया है और दूसरे देशों की तरह अपने देश में भी महिलाओं को बराबरी का अधिकार दिया
है। अम्मू 1952 में लोकसभा के लिए चुनी गईं थीं, जबकि 1954 में राज्यसभा की सांसद बनी
थीं।
दक्क्षयानी वेल्याधन दबे कुचले वर्ग
की आवाज़ रहीं। वेल्याधन का जन्म 1912 में कोचीन के बोलगट्टी में हुआ था। वह पुलाया समुदाय
से आती थीं। वह अपने समुदाय की पहली महिला थीं, जो पढ़ी लिखी थीं और आधुनिक कपड़े पहना
करती थीं। 1945 में दक्क्षयानी कोचीन लेजिस्लेटिव काउंसिल के लिए नामित की गईं। वह पहली
और अकेली दलित महिला थीं, जिन्हें 1946 में कांस्टीट्यूट असेंबली में चयनित किया गया था।
संविधान के निर्माण के दौरान दक्क्षयानी ने दलितों से जुड़ी कई समस्याओं की ओर ध्यान
दिलाया था। जिसके बाद संविधान में दलितों के लिए विशेष स्थान दिया गया था।
बेगम ऐज़ाज़
रसूल का जन्म मलेरकोटला में एक राजसी परिवार में हुआ था और उनकी शादी युवा ज़मींदार
नवाब ऐज़ाज़ रसूल से हुई थी। वह संविधान सभा की एकमात्र मुस्लिम महिला सदस्य थीं। 1935 में ऐज़ाज़ दंपत्ति ने मुस्लिम लीग ज्वाइन
किया था लेकिन देश के आजाद होने के बाद 1950 में दोनों ने ही कांग्रेस को ज्वाइन कर
लिया। संविधान निर्माण के दौरान ऐज़ाज़ ने कई मुद्दों पर अपनी बात अंबेडकर को बताई, जिसे संविधान में शामिल भी किया गया। 1969-71 में वह सोशल वेलफेयर और अल्पसंख्यक मामलों
की मंत्री भी रहीं। सन 2000 में उन्हें पद्मभूषण सम्मान से सम्मानित किया गया।
दुर्गाबाई देशमुख का जन्म 1909 में राजमुंदरी में हुआ था। महज़ 12 साल की उम्र में उन्होंने असहकार आंदोलन में भाग लिया, साथ
ही उन्होंने 1930 में गाँधीजी के नमक सत्याग्रह आंदोलन में भी भाग लिया था। 1936 में
उन्होंने आंध्र महिला सभा का निर्माण किया था। उन्होंने भारतीय शिक्षा व्यवस्था से
जुड़े मामलों में संविधान में अहम बातें जुड़वाईं। वह शिक्षा और महिला से जुड़ी कई संस्थाओं
से जुड़ीं और उसकी अध्यक्षता भी की। उन्हें 1975 में पद्म विभूषण से भी नवाज़ा गया।
1897 में जन्मी हंसा जीवराज मेहता बड़ौदा के एक
प्रतिष्ठित परिवार में जन्मीं थीं। हंसा ने इंग्लैंड से पत्रकारिता और समाजशास्त्र की
पढ़ाई की थी। वह देश की जानीमानी शिक्षाविद और लेखिका मानी जाती हैं। उन्होंने बच्चों
के लिए गुजराती में कई किताबें लिखीं, वहीं इंग्लिश में गुलिवर ट्रेवल्स भी लिखी। हंसा
ने हैदराबाद में आयोजित ऑल इंडिया विमेंस कांफ्रेंस के अपने प्रेसिडेंशियल संबोधन में
महिला के अधिकारों की बात की। महिला अधिकारों की बात उन्होंने संविधान के निर्माण में
कही, जिसे प्रमुखता से सुना गया और संविधान में जगह भी दी गई।
लखनऊ के एक प्रतिष्ठित परिवार में
जन्मीं कमला चौधरी को अपनी पढ़ाई लिखाई के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा था। उन्होंने क्रांति
घर से ही शुरू की थी और 1930 में ही वो गाँधीजी से जुड़ीं और उनके सविनय अवज्ञा आंदोलन में हिस्सा लिया। वह एक फिक्शन लेखिका थीं और महिलाओं के अधिकारों पर खुल कर अपनी बात रखती
थीं। ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के 54वें सेशन में वो उपाध्यक्ष बनीं और 70 के आख़िरी
दशकों में लोकसभा तक भी पहुंचीं।
लीला रॉय का जन्म 1990 में आसाम के
गोलपारा में हुआ था। उनके पिता डिप्टी मजिस्ट्रेट थे। वह महिला अधिकारों के लिए शुरू
से ही आवाज़ बुलंद करती रहीं। गाँधीजी के साथ
कई आंदोलनों में जुड़ने के बाद 1937 में उन्होंने कांग्रेस पार्टी ज्वाइन की। लीला
रॉय सुभाषचंद्र बोस की महिला सब कमेटी की सदस्य रहीं। 1940 में सुभाष चंद्र बोस जेल
गए तब वह फॉरवार्ड ब्लॉक वीकली की संपादक भी बनीं। देश छोड़ने से पहले नेताजी ने पार्टी
का सारा कार्यभार जिन्हें सोंपा उसमें लीला रॉय प्रमुख थीं। संविधान निर्माण में उनके
महत्व को भुलाया नहीं जा सकता।
पूर्वी बंगाल के एक प्रतिष्ठित परिवार
में जन्मी मालती चौधरी का जन्म 1904 में हुआ था। 16 वर्ष की आयु में मालती शांति निकेतन
गईं। उनकी शादी नबकृष्णा चौधरी से हुई, जो बाद में उड़ीसा के मुख़्यमंत्री भी बने। मालती
गाँधीजी के सत्याग्रह आंदोलन सहित कई आंदोलनों से जुड़ी रहीं। 1933 में उन्होंने उत्कल
कांग्रेस समाजवादी करमी संघ का निर्माण किया। वहीं 1934 में वे गाँधीजी की पदयात्रा
से भी जुड़ीं। कमज़ोर समुदायों के विकास के लिए उन्होंने न केवल आवाज़ बुलंद की, बल्कि
उनकी आवाज़ भी बनीं। ग़रीबों की आवाज़ को उन्होंने संविधान निर्माण के दौरान उठाया और उनकी बातों को स्थान भी दिया गया।
पूर्णिमा बनर्जी भारतीय राष्ट्रीय
कांग्रेस इलाहाबाद में सचिव बनीं और महिलाओं से जुड़े कई मुद्दों पर अपनी आवाज़ बुलंद
करती रहीं। 1930-40 में देश की आज़ादी से जुड़े कई आंदोलन का हिस्सा बनीं। अंग्रेज़ों भारत छोड़ो आंदोलन और सत्याग्रह आंदोलन के कारण जेल भी गईं। संविधान सभा में पूर्णिमा बनर्जी के भाषणों का सबसे महत्वपूर्ण पहलू समाजवादी विचारधारा के प्रति उनकी दृढ़ प्रतिबद्धता थी।
लखनऊ में पैदा हुई राजकुमारी अमृत कौर देश की
पहली स्वास्थ्य मंत्री थीं। वह इस पद पर दस वर्षों तक रहीं। वह कपूरथला महाराजा के बेटे
हरनाम सिंह की बेटी थीं। अमृत कौर की पढ़ाई लिखाई इंग्लैंड में हुई। वह सब कुछ छोड़कर
16 वर्षों तक महात्मा गाँधी की सेक्रेटरी रहीं। अमृत कौर ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेस (एम्स) की संस्थापक रहीं। वह महिला
शिक्षा, खेल और
स्वास्थ्य पर भी बराबर का अधिकार रखती रहीं। उन्होंने देश में ट्यूबरक्लोसिस एसोसिएशन, सेंट्रल लेप्रोसी एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट का भी गठन किया। उन्होंने संविधान निर्माण के दौरान स्वास्थ्य
सेक्टर से जुड़े अहम सुझावों पर बात की।
रेणुका रे आईसीएस अधिकारी सतीश चंद्र
मुखर्जी की बेटी थीं। रेणुका की पढ़ाई लिखाई लंदन में हुई। उन्होंने अपनी बीए तक की
पढ़ाई लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स से की। उन्होंने 1934 में लीगल डिसेबिलिटी ऑफ़ विमेन इन इंडिया का गठन किया था। उन्होंने महिला के अधिकारों के लिए कई लड़ाइयाँ लड़ीं और
संविधान में महिलाओं की बात रखने में अहम योगदान दिया। उन्होंने महिलाओं के अधिकारों
के लिए बात करते हुए कहा था कि पूरी दुनिया में महिलाओं की स्थिति अन्यायपूर्ण है।
सरोजिनी नायडू का जन्म हैदराबाद में
13 फ़रवरी 1879 में हुआ था। वह पहली भारतीय महिला हैं, जो भारतीय नेशनल कांग्रेस की अध्यक्ष
बनीं। सरोजिनी नायडू को भारत की नाइटेंगल कहा जाता है। सरोजिनी नायडू ने लंदन के किंग्स
कॉलेज से पढ़ाई की। वह महात्मा गाँधी के कई आंदोलनों से जुड़ी रहीं।
सुचेता कृपलानी का जन्म अंबाला टाउन
में 1908 में हुआ था। उन्होंने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में अहम किरदार निभाया। उन्होंने
कांग्रेस में 1940 में वुमेन विंग की स्थापना की। आज़ादी के बाद कृपलानी नई दिल्ली से
एमपी बनीं और उत्तर प्रदेश की मुख़्यमंत्री भी बनीं। कृपलानी पहली भारतीय महिला हैं, जो
मुख़्यमंत्री बनीं।
विजयलक्ष्मी पंडित का जन्म 18 अगस्त 1900
में इलाहाबाद में हुआ था। विजयलक्ष्मी पंडित भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू
की बहन थीं। वह आजादी के दौरान 1932-1933, 1940 और 1942-43 में तीन बार जेल भी गईं। उन्होंने
महिलाओं के अधिकारों के लिए काफी काम किया और पहली महिला कैबिनेट मंत्री भी बनीं। वह यूएन जनरल असेंबली में शामिल (1953) शामिल होने वाली पहली भारतीय महिला हैं, साथ में पहली एशियन महिला भी।
एनी मास्कारेन लैटिन कैथोलिक फ़ैमिली
में पैदा हुई थीं। वह पहली महिला बनीं, जिन्होंने त्रावणकोर स्टेट कांग्रेस को ज्वाइन
किया था। आज़ादी की लड़ाई में वो कई बार जेल भी गईं। भारत में हुए चुनाव में वह पहली
महिला थीं, जो लोकसभा चुनाव जीतकर पहुंची। वह केरल से पहली महिला सांसद बनीं और दस वर्षों
तक रहीं। एनी 1949 से 1950 तक कुछ समय के लिए स्वास्थ भी मंत्री रहीं।
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