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PM’s Ups & Down : पीएम मोदी के वो भाषण या वो दावे, जिस पर तथ्यात्मक सवाल उठने लगे थे

 
कुछ लोग कुछ ज़्यादा ही आहत हो सकते हैं। कह सकते हैं कि राहुल गांधी या अरविंद केजरीवाल के बारे में क्यों नहीं लिखा। जवाब बड़ा सीधा है। इसलिए क्योंकि राहुल गांधी या केजरीवाल भारत के प्रधानमंत्री नहीं हैं, मोदीजी ही पीएम हैं।
 
ज़्यादा वक्त बर्बाद किए बिना हम भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उन दावों की बात शुरू करते हैं, जो शायद जाने-अनजाने में किए गए और फिर तथ्यात्मक सवाल भी उठे। दर्ज हो कि भाजपा के फायरब्रांड नेता शत्रुध्न सिन्हा भी ट्वीट कर पीएम मोदी को उनके अपुष्ट और विवादित दावों को लेकर कह चुके हैं कि आप कृपया 'अनसुलझे' और 'अविश्वसनीय' मुद्दों की जगह विश्वसनीय बातें करके देश को आगे ले जाइए। लाज़िमी है कि देश के पीएम सरीखे आदमी को सुलझे हुए और विश्वसनीय मुद्दों को आगे करके अपनी बातें देश के सामने रखनी चाहिए, ना कि विवादास्पद और अविश्वसनीय बयानों के जरिए।
 
भगत सिंह और इतिहास के सहारे विरोधियों पर वार किया, लेकिन लगा कि इतिहास जैसे कि इतिहास नहीं बल्कि आलू हो, जिसे छीलते ही जाओ
मई 2018 के दौरान कर्णाटक विधानसभा चुनावों के बीच पीएम मोदी ने भगत सिंह का इतिहास आलू-मटर की तरह छील दिया। उन्होंने नेहरू और फ़ील्ड मार्शल करिअप्पा, जनरल थिमय्या को लेकर भी ग़लत तथ्यों के साथ भाषण दिया, जिसकी ख़ूब चर्चा हुई।
 
ग़ज़ब भाषण के ग़ज़ब दावे का हाल भी ग़ज़ब था। वो सबसे पहले भगत सिंह वाले बयान में ही खुद को अलग करते हैं। कहते हैं कि उन्हें इतिहास की जानकारी नहीं है और फिर अगले वाक्यों में विश्वास के साथ यह कहते हुए सवालों के अंदाज़ में बात रखते हैं कि उस वक्त जब भगत सिंह जेल में थे, तब कोई कांग्रेसी नेता मिलने नहीं गया। अगर इतिहास की जानकारी नहीं है तो फिर इतिहास को आलू-मटर की तरह छीलने का क्या मतलब, यह तो वे ही समझा सकते हैं।
 
भगत सिंह, जेल, कांग्रेसी नेता, इसका इतिहास क्या है वह जो लोग व्हाट्सएप इस्तेमाल नहीं करते उन्हें पता ही है। रही बात नेहरू-फ़ील्ड मार्शल करिअप्पा या जनरल थिमय्या, वो विवाद सर्वविदित है, किंतु उसे कुछ अधिक मिर्च मसाले के साथ चौपाल की चर्चा की तरह पेश करना प्रभावी नहीं था। इतिहास की जानकारी नहीं है यह कहकर इतिहास को छील देने की वृत्ति लोगों में चर्चा का विषय बनी रही।
 
नगला फतेला गाँव, बिजली और पीएम का लाल किले से दावा... शाम होते होते गाँव वालों ने ही दावे को कर दिया था ख़ारिज!
15 अगस्त 2016, लाल किले से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भाषण दे रहे थे। प्रधानमंत्री ने अपने भाषण के दौरान उत्तर प्रदेश के हाथरस के गाँव नगला फतेला का ज़िक्र करते हुए कहा कि वहाँ पर 70 साल बाद बिजली पहुंची है, जबकि इस गाँव की दिल्ली से दूरी केवल तीन घंटे की है। पीएम मोदी ने अपने संबोधन में कहा, "हम एलईडी बल्ब का इस्तेमाल कर ग्लोबल वार्मिंग में कमी करने के साथ ही बिजली की बचत भी कर सकते हैं। हाथरस के नगला फतेला गाँव जाने में दिल्ली से तीन घंटे लगते हैं। लेकिन वहाँ बिजली पहुंचने में 70 साल लग गए।"
 
नगला फतेला गाँव उत्तर प्रदेश के महामाया नगर ज़िले में आता है। इस गाँव की आबादी 1,550 है और यहाँ 235 परिवार रहते हैं।
 
पीएम के भाषण के दिन ही प्रधानमंत्री दफ़्तर की ओर से नगला फतेला गाँव के लोगों के टीवी पर पीएम का भाषण देखने की तस्वीरें भी जारी की गई थीं। पीएम के ऑफिशियल ट्विटर हैंडल 'पीएमओ इंडिया' ने नगला फतेला गाँव में एक साथ बैठकर लोगों द्वारा टीवी पर मोदी का भाषण सुनते हुए फ़ोटो ट्वीट किया।
 
दूसरी तरफ़ पीएम के इस दावे पर गाँव के लोग ही सवाल उठाने लगे!!! गाँव वालों का कहना था कि गाँव में केवल बिजली के तार खींचे हैं, बिजली नहीं आई है!!! गाँव के लोगों ने बताया कि छह महीने पहले यहाँ बिजली के खंभे लगा दिए गए और तार भी खींच दिए गए। कई घरों में मीटर भी लग गए, लेकिन बिजली सप्लाई शुरू नहीं हुआ! हालाँकि गाँव के कुछ लोगों ने निजी केबल से गाँव के बाहर से बिजली कनेक्शन ले रखा था। गाँव वालों ने इसी शाम मीडिया को बताया कि जो फ़ोटो सोशल मीडिया में ट्विटर हैंडल के जरिए घूम रहे हैं, वो हमारे गाँव की है ही नहीं!!!
 
ग़ज़ब यह हुआ कि 15 अगस्त को ट्विटर हैंडल पर तस्वीरें साझा की गई और ट्वीट किए गए, जबकि 16 अगस्त को ट्विटर हैंडल से सारे ट्वीट डिलीट कर दिए गए थे!!!
 
जब पीएम ने बस यूँ ही बोल दिया- भारत के पासपोर्ट की इज़्ज़त बढ़ी है
भाषणों में पाकिस्तान तो आता ही रहता है, किंतु भारत का पासपोर्ट तक आ जाए तो फिर क्या कहने। जनवरी 2018 में दावोस यात्रा से पहले पीएम मोदी ने टाइम्स नाउ से कहा कि दुनिया में भारत के पासपोर्ट की इज़्ज़त बढ़ी है। अपने इस बिना तथ्य के दावे के साथ उन्होंने कुछ ऐसी बात कह दी कि दावे का मखौल उड़ने लगा।
 
पीएम मोदी ने टाइम्स नाउ से कहा, "शायद... जो लोग विदेश में रहते हैं और जो लोग विदेश आते-जाते रहते हैं, आज भारत के पासपोर्ट की जो इज़्ज़त है, आज भारत के पासपोर्ट की जो ताक़त है, शायद ही पहले कभी इतनी ताक़त किसी ने अनुभव की होगी। आज एयरपोर्ट पर इंटर होते ही इमीग्रेशन ऑफिसर के पास जब भारत का पासपोर्ट कोई रखता है तो बड़े शान के साथ, सामने वाला बड़े गर्व के साथ उसे देखता है। ये हर कोई बताता है, हर कोई कहता है, दुनिया में आज हम, मैं समझता हूँ कि सत्य यही है।"
 
पीएम के इस बयान में पीएम ने खुद ही कोई तथ्य नहीं दिया, बस बोल दिया!!! ग़लत कथन के साथ बात भी ऐसी कही, लगा कि क्या पीएम सरीखा आदमी कुछ भी बोल सकता है? पीएम द्वारा यह कहना कि कोई भारतीय कहीं पर भी अपना पासपोर्ट रखता है और दुनिया के किसी भी कोने में खड़ा इमीग्रेशन ऑफिसर उसे गर्व के साथ देखता है, यह लहज़ा वाक़ई पीएम पद की गरिमा के अनुसार नहीं था। यह लहज़ा तो समर्थकों का व्हाट्सएपिया तरीक़ा था।
 
मीडिया का तो क्या था, वे तो पासपोर्ट पर श्रृंगार कार्यक्रम तक बनाने लगे। पीएम का शुक्रिया कि उनके इस कथन से देश में पासपोर्ट के इज़्ज़त के बारे में चर्चा तो हुई। वर्ना पहले पासपोर्ट जैसा बहुमूल्य दस्तावेज़ चर्चा का विषय बनता ही नहीं था।

 
पासपोर्ट की इज़्ज़त या पासपोर्ट की ताक़त, इस राजनीतिक लहजे वाले लफ़्ज़ का तकनीकी मतलब इसके उपयोगकर्ता के दूसरे देशों की यात्रा करने की स्वतंत्रता को दर्शाता है। उपरांत पासपोर्ट की ताक़त वाला डाटा आसानी से उपलब्ध है। पीएम मोदी ने जब पासपोर्ट की इज़्ज़त वाला इंटरव्यू दिया उस वक्त उन्हें विश्व आर्थिक मंच (डब्ल्यूईएफ) में भाषण देने जाना था। और इसी विश्व आर्थिक मंच ने एक ट्वीट में डाटा साझा किया था, जो हेनले एंड पार्टनर्स वीज़ा प्रतिबंध सूचकांक पर आधारित था। यह कंपनी दुनिया के सभी देशों और क्षेत्रों के वीज़ा विनियमों का विश्लेषण कर एक ऐसा सूचकांक प्रस्तुत करता है जो प्रत्येक देश को दूसरे देशों की संख्या से जोड़ता है, जिससे कि उनके नागरिक दूसरे देशों के वीज़ा प्राप्त किए बगैर यात्रा कर सकते हैं। यह सूचकांक अंतरराष्ट्रीय वायु यातायात संघ (आईएटीए) के सह्योग से तैयार किया गया था।
 
इस सूचकांक में भारत का नंबर 75 के भी पार था!!! यानी कि 74 देश हमसे आगे थे!!! लेकिन फिर भी पीएम के हिसाब से भारत का पासपोर्ट दुनिया का शक्तिशाली पासपोर्ट था!!! सूचकांक के मुताबिक़, जर्मनी का पासपोर्ट हो तो आप 177 देशों में बिना वीज़ा के जा सकते थे। सिंगापुर का पासपोर्ट हो तो आप 176 देशों में बिना वीज़ा के जा सकते थे। तीसरे नंबर पर 8 देश थे जिनका पासपोर्ट होगा तो आप 175 देशों में वीज़ा के बग़ैर यात्रा कर सकते थे। डेनमार्क, फिनलैंड, फ्रांस, इटली, जापान, नॉर्वे, स्वीडन और ब्रिटेन तीसरे नंबर पर थे। 9वें नंबर पर माल्टा और 10वें पर हंगरी।
 
एशिया के मुल्कों में सिंगापुर का स्थान पहला है। भारत एशिया के आख़िरी तीन देशों में था। दुनिया में भारत के पासपोर्ट का स्थान 76वें नंबर पर था। सूचकांक के मुताबिक़ इन दिनों आपके पास भारत का पासपोर्ट है तो आप 55 देशों में वीज़ा के बिना पहुंच सकते थे। कुल मिलाकर, प्रधानमंत्री का यह दावा यही कहता था कि मैं मानता हूँ तो आप भी मान लीजिए!!!
 
जब मोदीजी ने कहा- पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी भारत की सबसे पहली मेट्रो ट्रेन के यात्री थे, जबकि पूरे भारत को पता है कि मेट्रो 1984 में शुरू हुई थी
25 दिसम्बर 2017 का दिन, जब पीएम मोदी ने दिल्ली मेट्रो की मंजेटा लाइन का उद्घाटन किया। इस मौक़े पर पीएम ने कहा, "पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी उस समय भारत की अब तक की पहली मेट्रो सेवा के यात्री बने थे जब दिल्ली मेट्रो को 2002 में शुरू किया गया था।"
 
हो सकता है कि पीएम सरीखे आदमी से ढेर सारे कामों के कारण कुछ ग़लती हो गई हो, या फिर उन्हें ऐसे ही बातें बनाने की बुरी आदत हो। लगभग पूरे भारत को पता है और दस्तावेजों तथा सरकारी जानकारी में दर्ज है कि भारत की पहली मेट्रो सेवा कोलकाता मेट्रो थी, ना कि दिल्ली मेट्रो। कोलकाता मेट्रो की आधारशिला पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सन 1972 में रखी थी। यह सेवा आख़िरकार सन 1984 में शुरू हो गई थी। दिल्ली मेट्रो सेवा तो भारत की दूसरी मेट्रो सेवा थी, जो 2002 में शुरू हो पाई थी।
 
सी-प्लेन की सवारी का दावा जो आख़िरकार झूठा साबित हुआ
मेट्रो ट्रेन के बाद अब बारी थी सी प्लेन की! प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अहमदाबाद से मेहसाणा तक सी-प्लेन सवारी को भारत में उड़ने वाला अब तक का पहला सी-प्लेन बताया गया! यह दावा पीएम मोदी की व्यक्तिगत वेबसाइट पर किया गया था, और इसे बीजेपी पदाधिकारियों और मुख्यधारा के मीडिया घरानों द्वारा दोहराया गया था! जबकि यहाँ भी सार्वजनिक था कि वर्ष 2010 में अंडमान-निकोबार प्रायद्धीप में सी-प्लेन सबसे पहले उपयोग किया गया था।
 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वेबसाइट नरेंद्रमोदी.इन पर 12 दिसंबर 2017 को प्रकाशित एक स्टोरी का आकर्षक शीर्षक था- पीएम मोदी भारत के पहले सी-प्लेन के पहले यात्री बने! वेबसाइट के इस लेख में अहमदाबाद में साबरमती नदी से मेहसाणा के धरोई बांध तक पीएम की सी-प्ले‍न यात्रा का ज़िक्र किया गया था और इसे गुजरात में दूसरे चरण के मतदान से पहले उनके अभियान का हिस्सा बनाया गया था। इस दावे को बीजेपी के आधिकारिक ट्विटर अकाउंट और भाजपा नेताओं और पदाधिकारियों की तरफ़ से बार बार दोहराया गया।
 
ग़ज़ब यह था कि भारत में पहला सी प्लेन वर्ष 2010 में चला था यह जानकारी सार्वजनिक थी, और फिर भी चुनिंदा न्यूज़ चैनलों और चुनिंदा न्यूज़ पेपरों ने इस ख़बर को ख़ारिज नहीं किया, बल्कि उसी रूप में एक साहसी और अनोखे कदम के रूप में पेश किया! मीडिया तो इस ख़बर को भारतीय जलमार्ग की क्रांति के रूप में पेश करने लगा! और फिर प्रधानमंत्री मोदी के साइट पर इस स्टोरी का शीर्षक बदल गया! पहले सी प्लेन के पहले यात्री, यह हिस्सा वहाँ से गायब हो गया!
 
सी प्लेन कब चला था यह जानकारी सार्वजनिक थी और इसीके आधार पर ऑल्ट न्यूज़ ने तथ्यों के साथ रिपोर्ट पेश किया और लिखा, सबसे पहली व्यावसायिक सी प्लेन सेवा भारत में वर्ष 2010 में शुरू की गई थी। सार्वजनिक क्षेत्र की हेलीकॉप्टर कंपनी पवन हंस और अंडमान-निकोबार प्रायद्वीप के प्रशासन द्वारा संयुक्त रूप से संचालित इस सेवा, जल हंस का उद्घाटन दिसंबर 2010 में हुआ था।"

 
ये बात और है कि जल हंस सेवा उसके बाद रुक गई थी। 2010 के बाद केरल सरकार द्वारा जून 2013 में सी प्लेन सेवा शुरू की गई थी। केरल टूरिज्म इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड द्वारा प्रवर्तित सेवा केरल सी प्लेन की घोषणा राज्य के जलमार्गों को जोड़ने के लिए की गई थी। हालाँकि स्थानीय मछुआरा समुदाय द्वारा विरोध किए जाने के कारण यह परियोजना लंबी नहीं चली।
 
भारत में सी प्लेन सेवा शुरू करने की कोशिश सिर्फ सरकारों तक सीमित नहीं थी। निजी कंपनियों ने वर्ष 2011-12 में ही सी प्लेन सेवाओं की घोषणा की थी। वर्ष 2012 में सीबर्ड सी प्लेन प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बनाई गई और इसने केरल और लक्षद्वीप में सेवा शुरू करने की घोषणा की। एक अन्य  कंपनी मीहैर ने वर्ष 2011 में अंडमान-निकोबार प्रायद्वीप में सेवा शुरू की और बाद में इसे महाराष्ट्र और गोवा तक विस्तारित किया। हालाँकि इन निजी कंपनियों ने व्यावसायिक रूप से फ़ायदा न होने और सरकारी मंजूरी की समस्याओं के चलते इनका परिचालन बंद कर दिया था।
 
9 दिसंबर 2017 को स्पाइसजेट ने मुंबई के गिरगाँव चौपाटी में समुद्री परीक्षण किए थे, जहाँ केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और अशोक गजपति राजू उपस्थित थे। गडकरी द्वारा इस्तेमाल किए गए एयरक्राफ़्ट का ही इस्तेमाल प्रधानमंत्री मोदी की अहमदाबाद से मेहसाणा तक यात्रा के लिए किया गया था। ऑल्ट न्यूज़ के रिपोर्ट की माने तो दोनों प्लेन के रजिस्ट्रेशन नंबर N181KQ द्वारा इसकी पुष्टि की जा सकती थी। दिलचस्प बात यह थी कि जब ऑल्ट न्यूज़ ने एयरक्राफ़्ट का फ़्लाइट पाथ देखा तो पता लगा कि यह प्लेन 3 दिसंबर 2017 को कराची, पाकिस्ता़न से मुंबई आया था! पिछले 90 दिनों में, क्वेस्ट कोडिएक का यह सिंगल इंजन एयरक्राफ़्ट ग्रीस से लेकर सऊदी अरब और न्यू‍ज़ीलैंड तक पूरी दुनिया में सफ़र कर चुका था।
 
गुजरात चुनावों को ध्यान में रखकर की गई पीएम मोदी की सी प्लेन यात्रा को प्रधानमंत्री के वेबसाइट द्वारा देश की अब तक की पहली सी प्लेन यात्रा कहकर प्रचारित किया गया और इसे कई समाचार संस्थानों ने दोहराया! जबकि ऐसा नहीं था, और न ही प्रधानमंत्री सी प्लेन में यात्रा करने वाले पहले भारतीय थे। पहले इस बात को फैलाया गया और फिर बाद में पीएम मोदी के वेबसाइट से इसे चुपचाप हटा लिया गया!!! बाद में पीएम के वेबसाइट ने इस ख़बर का शीर्षक भी बदल दिया, लेकिन मीडिया संस्थानों ने कोई स्पष्टीकरण जारी नहीं किया।
 
गुजरात चुनाव, पीएम मोदी का सनसनीखेज़ दावा जो आख़िरकार ग़लत साबित हुआ, फिर सदन में सरकार ने कहा - हमें मनमोहन सिंह की देशभक्ति पर संदेह नहीं है
देश के प्रधानमंत्री सरीखे व्यक्ति को, जिसके बारे में लोकप्रियता के सूचकांक ऊंचे बताए जाते हो, उसे चुनाव जीतने के लिए अपने ऐसे जुगाड़ आजमाने पड़ जाए तब क्या कहे।
 
10 दिसम्बर 2017 का दिन था, जब पीएम मोदी ने गुजरात में चुनावी रैली के दौरान सनसनीखेज़ आरोप लगा दिया। प्रधानमंत्री ने कहा, "मीडिया में मणिशंकर अय्यर के आवास पर हुई बैठक के बारे में शनिवार (9 दिसम्बर) को ख़बरें थीं। इसमें पाकिस्तान के उच्चायुक्त, पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री, भारत के पूर्व उप राष्ट्रपति और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने हिस्सा लिया। अय्यर के आवास पर तक़रीबन तीन घंटे तक बैठक चली।" उन्होंने कहा, "अगले दिन मणिशंकर अय्यर ने कहा कि मोदी नीच है। यह गंभीर मामला है।" पीएम ने कहा, "रफीक ने अहमद पटेल को गुजरात का अगला मुख्यमंत्री बनाने का समर्थन किया था।"
 
पीएम मोदी ने बहुत ही गंभीर आरोप लगाते हुए कहा, "एक तरफ़ पाकिस्तानी सेना के पूर्व डीजी गुजरात के चुनाव में हस्तक्षेप कर रहे हैं। दूसरी तरफ़ पाकिस्तान के लोग मणिशंकर अय्यर के आवास पर बैठक कर रहे हैं। कांग्रेस को देश की जनता को बताना चाहिए कि क्या योजना बन रही थी।"
 
पीएम मोदी ने इशारों इशारों में उस मिटिंग में देश के ख़िलाफ़ साज़िश का सनसनीखेज़ आरोप लगा दिया था। जबकि नई दिल्ली में 6 दिसंबर को कांग्रेसी नेता मणिशंकर अय्यर के घर पर पाकिस्तानी उच्चायुक्त से मिलने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, पूर्व उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी और पूर्व सेना प्रमुख जनरल दीपक कपूर इक्ठ्ठा हुए थे। पीएम मोदी ने भाषणों में सांकेतिक रूप से यह कहकर विवाद छेड़ दिया कि इस बैठक और गुजरात चुनावों के बीच कोई रिश्ता है। इसके बाद राजनीतिक तूफ़ान उठ खड़ा हुआ। पीएम ने तो यहाँ तक कहा कि, "पाकिस्तान गुजरात चुनावों में हस्तक्षेप कर रहा है।"
 
मणिशंकर अय्यर के घर जो बैठक हुई थी उसके बारे में बताते हुए पूर्व राजनयिक चिन्मय गरेखन ने कहा, "डिनर पर सिर्फ़ भारत-पाक रिश्तों के बारे में बात हुई थी। जहाँ तक मुझे याद है 100 फ़ीसदी किसी एक शख़्स ने भी गुजरात चुनाव और भारत या पाकिस्तान के अंदरूनी हालात के बारे में बात नहीं की थी। जी हां वहाँ सिर्फ़ भारत-पाकिस्तान संबंधों के बारे में बात हुई थी। किसी ने राजनीति पर बात नहीं की थी। मैं इन सब बातों में नहीं पड़ना चाहता। मैं किसी तरह का अंदाज़ा नहीं लगाना चाहता। मैं तथ्यों की बात कर रहा हूँ। मैं सिर्फ़ वही बता रहा हूँ जो हुआ था।"


भूतपूर्व चीफ़ ऑफ आर्मी स्टाफ़ जनरल दीपक कपूर भी इस बैठक में मौजूद थे और उन्होंने कहा कि इस बैठक में गुजरात चुनाव पर चर्चा नहीं हुई थी।
 
भाजपा के नेता शत्रुध्न सिन्हा ने पीएम मोदी के बयान पर आपत्ति जताते हुए ट्वीट कर कहा, "आदरणीय सर, सिर्फ़ किसी भी तरह चुनाव जीतने के लिए आप अपने राजनीतिक विरोधियों के ख़िलाफ़ अंतिम चरण प्रक्रिया में रोज़ अनसुलझे और अविश्वसनीय मुद्दों को लेकर आ रहे हैं। अब चुनाव में पाकिस्तान उच्चायुक्त और जनरल को जोड़ दिया है।"
 
शत्रुध्न सिन्हा ने ट्वीट कर पीएम को कहा, "सर नए-नए ट्विस्ट और भरपाई की कोशिश करने की जगह आप उन मुद्दों पर बात करें जिनका आपने विकास मॉडल में वादा किया था। जैसे आवास, विकास, युवाओं को रोज़गार, स्वास्थ्य और शिक्षा। सांप्रदायिकता फैलाने वाले वातावरण को रोकें और स्वस्थ राजनीति और स्वस्थ चुनावों में वापस जाएँ। जय हिंद।"
 
दरअसल, पीएम का यह बयान अपने आप में किसी एंकर के दकियानूसी प्रयास से कम नहीं था। क्योंकि चुनावों के दौरान तो पीएम ने ख़ूब आरोप लगाए, लेकिन चुनाव ख़त्म होने के बाद बाकायदा संसद में भाजपा ने साफ कर दिया कि उन्हें मनमोहन सिंह की देशभक्ति पर कोई संदेह नहीं है!!! 27 दिसंबर 2017 के दिन सदन के भीतर वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा, "हमने मनमोहन सिंह पर कोई सवाल नहीं उठाए थे, हमें उनकी देशभक्ति पर कोई संदेह नहीं है।"
 
बीजेपी नेता यशवंत सिन्हा ने इस मुद्दे पर सारा मामला ख़त्म होने के बाद 1 जनवरी 2018 को टिप्पणी देते हुए कहा, "मैं यह सवाल उठाना चाहता हूँ कि क्या यही राष्ट्रीय नीति है? क्या उन्हें इसका अंदाज़ा है?"
 
चुनाव समाप्त हुए, भाजपा ने गुजरात में सरकार बचा ली थी। इसके बाद कुछ दिनों तक सदन के भीतर कांग्रेस और भाजपा के बीच पीएम मोदी के उस दावे को लेकर माथापच्ची चलती रही। और एक दिन अचानक सरकार की तरफ़ से सदन के भीतर कहा गया कि हमें पूर्व पीएम मनमोहन सिंह की देशभक्ति पर संदेह नहीं है!!!
 
प्रत्यक्ष लाभ अंतरण योजना हमने शुरू की - पीएम मोदी का दावा, जबकि इससे पहले उनका ही कार्यालय पूर्व सरकार के दौरान इस योजना के आँकड़े पेश कर चुका था
अक्टूबर 2017 के दौरान कर्णाटक में एक रैली को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा, "मेरी सरकार ने प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) योजना आरंभ की है।" उन्होंने कहा, "सरकार ने बिचौलियों को ख़त्म करके और फंड के दुरुपयोग को रोककर 57,000 करोड़ की बचत की है।"
 
पीएम का यह दावा भी ग़लत साबित हो गया! जिस नेता को इतना लोकप्रिय माना जाता है उनका जन्म दिवस जुमला दिवस के रूप में क्यों मनाया जाता है, शायद मोदीजी स्वयं इसकी समझ दे रहे थे।
 
जानकारी के अनुसार डीबीटी योजना वर्ष 2013 में पहली बार आरंभ हुई थी। फ़रवरी 2013 में केंद्रीय बजट में इसकी घोषणा की गई थी कि इस योजना को पिछली तिथि यानी 1 जनवरी 2013 से लागू किया जाएगा। जानकारी को तो छोड़ ही दें, क्योंकि स्वयं पीएम मोदी के ही कार्यालय ने, यानी कि पीएमओ ने अगस्त 2017 में एक ट्वीट कर अपनी सरकार की प्रगति के लिए एक आँकड़ा दिया था। उस ट्वीट में पीएमओ ने बताया था कि 2013-14 से वर्तमान वर्ष तक डीबीटी योजना में किस तरह प्रगति हुई है।
 
यानी कि पीएमओ खुद 2013 से आँकड़े जारी कर रहा था, जबकि पीएम इसके बाद भी दावा कर रहे थे कि यह योजना उनकी सरकार ने शुरू की थी!!!
 
मुग़ल वंश और कांग्रेस पार्टी के बारे में मणिशंकर अय्यर के बयान को सचमुच तोड़-मरोड़कर पेश किया गया था
वैसे मणिशंकर अय्यर अपने विवादित वचनों के लिए काफी मशहूर हैं और पूर्व में कई बार आपत्तिजनक टिप्पणियाँ कर चुके हैं। पीएम ने सोचा होगा कि जो पहले से मशहूर हैं, उसको थोड़ा ज़्यादा मशहूर कर दिया जाए।
 
गुजरात चुनावों के दौर में पीएम मोदी ने एक दावा कर कहा था कि कांग्रेसी नेता मणिशंकर अय्यर ने ही कांग्रेस पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को मुग़ल वंश की शैली के साथ जोड़ा है। पीएम ने इसके लिए मणिशंकर के एक कथित बयान का हवाला दिया और दावा किया कि अय्यर ने कांग्रेस पार्टी की तुलना मुग़ल वंश से की थी। पीएम ने यहाँ तक कहा कि इस कांग्रेसी नेता ने स्वीकार किया था कि कांग्रेस पार्टी ही परिवार थी और परिवार ही पार्टी थी।
 
हालाँकि फिर एक बार यह सामने आया कि इस बयान को शरारतपूर्ण ढंग से मोदीजी द्वारा एडिट किया गया था। पीएम सरीखे शख़्स को बार बार एडिटर बनते देखना आहत कर गया।
 
दरअसल कांग्रेसी नेता अय्यर ने राहुल गांधी की ताजपोशी की तुलना औरंगज़ेब राज से नहीं की थी, जैसा कि पीएम मोदी और मीडिया की एक ख़ास विचारधारा ने दावा कर दिया था। असल में अय्यर उस आरोप का जवाब दे रहे थे जिसमें कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व पर मुग़ल वंश वाली टिप्पणियाँ की जाती थीं। अय्यर ने अपने बयान में मुग़लों के राजवंश और कांग्रेस पार्टी के भीतर अध्यक्ष पद के चुनाव की लोकतांत्रिक प्रवृत्ति के बीच विरोधाभास होने की बात कही थी। जिसे पीएम द्वारा एडिट कर पेश किया गया!
 
यह सच है कि मणिशंकर अय्यर विवादित बयान देने के लिए मशहूर थे। किंतु जब पीएम सरीखा आदमी किसी बयान को एडिट करके ग़लत ढंग से पेश करें, तब अय्यर जैसे नेता की जगह पीएम सरीखे बड़े आदमी पर ज़्यादा सवाल उठते हैं।
 
उत्तर प्रदेश में दिवाली की जगह ईद पर ज़्यादा बिजली आपूर्ति का विवादित दावा, जो ग़लत साबित हुआ था
पीएम मोदी भाषण अच्छा देते होंगे, लेकिन सवाल उठे कि क्या सच के आसपास भी कभी देते हैं? हर बार ग़लत जानकारियाँ परोसते रहने की इनकी आदत इन्हें आलोचना का अधिकारी बनाती रही।
 
2017 के यूपी विधानसभा चुनावों के प्रचार के दौरान पीएम मोदी ने गैरजिम्मेदाराना ढंग से एक ऐसे विषय को विवाद बना दिया, जो दरअसल था ही नहीं! यूपी के फतेहपुर से एक रैली में पीएम मोदी ने कहा, "उस समय समाजवादी पार्टी के नेतृत्व में चलने वाली उत्तर प्रदेश सरकार ने दिवाली की जगह ईद पर ज़्यादा बिजली की आपूर्ति की।" पीएम ने कहा, "रमज़ान में अगर बिजली मिलती है, तो दिवाली में भी बिजली मिलनी चाहिए। भेदभाव नहीं होना चाहिए।"

 
देश के प्रधानमंत्री मोदी का यह तरीक़ा वाक़ई आपत्तिजनक था। सुप्रीम कोर्ट जैसी संस्था देश के नेताओं को आगाह कर रही थी कि चुनाव प्रचार में धर्म आधारित भाषणबाजी करने से बचे, लेकिन देश का प्रधानमंत्री स्वयं ही सुप्रीम कोर्ट के निर्देश को अनदेखा कर गया!!! अजीब था कि यही पीएम अपने दूसरे भाषणों में या मन की बात से देश को यही उपदेश देते थे कि जातिवाद और धर्म के विवादों से दूर रहे, लेकिन वे खुद ऐसा करते नजर नहीं आए।
 
लहज़ा तो ग़लत था ही, साथ ही पीएम का यह दावा भी झूठा साबित हो गया। आधिकारिक आँकड़ों के मुताबिक़, ईद (6 जुलाई 2016) को बिजली आपूर्ति 13,500 मेगावाट प्रतिदिन थी, जबकि दिवाली (28 अक्टूबर से 1 नवंबर, 2016) को सभी 5 दिनो में 24 घंटे आपूर्ति के साथ बिजली आपूर्ति 15,400 मेगावाट प्रतिदिन थी। आँकड़ों के अनुसार दिवाली पर बिजली आपूर्ति कम नहीं, बल्कि ईद की तुलना में ज़्यादा थी।
 
रमज़ान और दिवाली वाला आपत्तिजनक दावा करने के साथ साथ पीएम स्मशान और कब्रिस्तान वाला गैरज़रूरी विषय उठा गए थे। जबकि इसी महीने गुजरात के सुरेन्द्रनगर के रतनपुर गाँव में, जहाँ हिंदुओं की जनसंख्या ज़्यादा थी, स्मशान बनाने को लेकर आंदोलन चल रहा था।
 
जब पीएम ने कानपुर ट्रेन हादसे को आतंकवाद और आईएसआई से जोड़ दिया, लेकिन रेलवे ने ही पीएम के दावे को ख़ारिज किया
नवम्बर 2016 में कानपुर के पुखराया में इंदौर-पटना एक्सप्रेस के 14 डिब्बे पटरी से उतर गए, जिसमें क़रीब 150 लोगों की मौतें हुई। इस घटना को लेकर फ़रवरी 2017 में उत्तर प्रदेश चुनाव के दौरान एक रैली को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने हैरतअंगेज दावा कर दिया। उन्होंने कहा, "रेल को पटरी से उतारने के लिए पाकिस्तान की आईएसआई ज़िम्मेदार थी।"
 
देश का प्रधानमंत्री ऐसा दावा कर रहा हो, तो फिर इसका कोई तो आधार होगा। केंद्रीय एजेंसी या राज्य की जाँच एजेंसी अपनी रिपोर्ट में ऐसा कहती होगी, तभी पीएम ने यह कहा होगा। कुछ तो आधार होगा, तभी पीएम ने एक हादसे को आतंकवादी घटना करार दिया होगा। किंतु उत्तर प्रदेश के तत्कालीन डीजीपी जावीद एहमद और डीजी रेलवे, यूपी पुलिस ने कुछ और ही जानकारी दी। पीएम ने भाषण में दावा किया था, जबकि इन्होंने आधिकारिक तौर पर बताया कि, "ट्रेन के पटरी से उतरने के पीछे आईएसआई का कोई हाथ नहीं है।"
 
सोचिए, देश का प्रधानमंत्री एक घटना को आतंकवाद से जोड़कर कहता है कि घटना में पाकिस्तान की आईएसआई का हाथ है, जबकि रेलवे जैसा केंद्रीय विभाग कहता है कि ऐसा नहीं है!!! नोट करें कि रेलवे के बड़े अधिकारियों ने केंद्र में भी ऐसा ही कहा था, जो ख़बरें बाद में अख़बारों में छपी थीं।
 
जब पीएम ने कहा – उत्तर प्रदेश अपराध के मामले में नंबर वन राज्य है, लेकिन पीएम का आकलन और तरीक़ा, दोनों सवालों के घेरे में आ गए
पीएम मोदी ने दावा किया था कि, "देश के सभी राज्यों में से उत्तर प्रदेश में अपराध दर सबसे ज़्यादा है, जबकि रोज़ाना 24 दुष्कर्म, 21 दुष्कर्म के प्रयास, 13 हत्या, 33 अपहरण, 19 दंगे और 136 चोरियाँ होती हैं।" पीएम ने यह टिप्पणी चुनावी रैली के दौरान की थी।
 
यूँ तो देश का प्रधानमंत्री सरीखा आदमी आँकड़ों के साथ देश को सूचित करें, तब यक़ीन होना ही चाहिए। क्योंकि आख़िर में तो देश के पीएम का बयान होता है, किसी फ़ेसबुकियाँ या व्हाट्सएपियाँ यूज़र का नहीं। लेकिन हालात ऐसे बन चुके थे कि पीएम मोदी की हर बात ग़लत निकल रही थी और अब की बार फिर एक बार... ग़लत ही निकली! सामान्य जाँच से ही सामने आ गया कि पीएम की यह टिप्पणी ग़लतऔर गुमराहकरनेवाली थी!
 
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार, अपराध दर की गणना प्रति 1 लाख लोगों की जनसंख्या के आधार पर होती है, ना कि प्रतिदिन माप के आधार पर। ग़ज़ब था कि देश में अपराध दर के आकलन का एक सिस्टम है, जबकि पीएम प्रतिदिन (रोज़ाना) वाला संदर्भ दे रहे थे!!! उपरांत एनसीआरबी के वेबसाइट पर उपलब्ध नवीनतम डाटा से यह पाया गया कि पीएम मोदी ने आँकड़ों को ग़लत ढंग से तो पेश कर ही दिया था, साथ ही बढ़ा-चढ़ा कर भी पेश किया था! मान लेते हैं कि जो डाटा एनसीआरबी ने देश को उपलब्ध कराया था उसका प्रतिदिन के हिसाब से विश्लेषण किया गया होगा, लेकिन प्रतिदिन के लिहाज़ से विश्लेषण करके जो आँकड़े प्राप्त किए गए थे उसमें भी अपराध दर में उत्तर प्रदेश से बहुत से राज्य आगे थे।
 
जब पीएम ने दलितों के ख़िलाफ़ उत्पीड़न की ग़लत जानकारी परोस दी
शायद पीएम मोदी आँकड़ों या जानकारियों में यक़ीन नहीं करते होंगे, तभी तो बार-बार उनके भाषणों से ऐसी जानकारियाँ निकल रही थीं, जो बाद में अनसुलझी या झूठी साबित हो रही थीं।
 
फ़रवरी 2017 के दौरान बाराबंकी में एक रैली में पीएम ने दावा कर दिया कि, "हिंदुस्तान में सबसे ज़्यादा दलितों पर अत्याचार अगर कही होता है तो उस प्रदेश का नाम है उत्तर प्रदेश।"
 
लेकिन अब तक तो लोग पीएम के दावे पर आँख मुंद भरोसा करने की जगह उन दावों को जाँचने का काम शुरू कर चुके थे। पीएम सरीखे शख़्स के बयानों को अब तो गूगल कर जाँचा जा रहा था! वैसे नोट करें कि गूगल भी झूठी जानकारियों और एल्गोरिदम के मायाजाल के लिए बदनाम हो चुका है!
 
जैसा कि ऊपर देखा वैसे, अपराध दर की गणना प्रति 1 लाख जनसंख्या के हिसाब से होती है। जहाँ तक अनुसूचित जाति (एससी) के ख़िलाफ़ अपराधों का संबंध है, उत्तर प्रदेश की तुलना में कम से कम 11 राज्यों में इससे ख़राब अपराध दर दर्ज की गई है। एनसीआरबी के आँकड़ों के मुताबिक़, प्रति 1 लाख जनसंख्या के लिए 57 अपराधों के साथ राजस्थान यूपी से बहुत आगे था।
 
चुनावी प्रचार झूठ के क़रीब होता है यह सभी को पता है, लेकिन इसकी अगुवाई पीएम सरीखा व्यक्ति करे, साथ ही एक बार नहीं लेकिन लगातार करे, यह चर्चा का विषय था।
 
मौसम आधारित अनिश्चितताओं से बचाने के लिए बीमा योजना आरंभ की गई, पीएम का वो दावा जो फिर एक बार ग़लत साबित हुआ
"हम ऐसी प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना लाए हैं कि अगर प्राकृतिक कारणों से किसान बुआई नहीं कर पाया तो भी उसको बीमा मिलेगा। ऐसी कोई योजना देखी है?" फ़रवरी 2017 के दौरान पीएम मोदी ने यह बात भी यूपी चुनाव प्रचार में कही थी।
 
पीएम ने ऐसी कोई योजना देखी है? वाले लहज़े से दावा किया कि यह योजना हमने शुरू की है। लेकिन हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार किसानों के लिए पिछली सरकार की बीमा योजना में एक उपयोजना थी, जिसका नाम मौसम आधारित फसल बीमा योजना (डब्ल्यूबीसीआईएस) था।
 
पायलट आधार पर वर्ष 2003 के खरीफ के मौसम के दौरान भारत में मौसम आधारित फसल बीमा योजना आरंभ की गई थी। डब्ल्यूबीसीआईएस ने प्राकृतिक आपदाओं जैसे सूखा, भारी वर्षा होने और पाला पड़ने पर फसलों को बीमा सुरक्षा प्रदान की थी। ऐसी कोई योजना देखी है? का जवाब शायद पीएम ने खुद ही ढूंढ़ लिया होता तो देश के प्रधानमंत्री सरीखा बड़ा पद लज्जित न होता।
 
राहुल गांधी को नारियल जूस और आलू की फैक्ट्री से जोड़ दिया, बाद में वो लहज़ा भी झूठा ही साबित हुआ
1 मार्च 2017 को उत्तर प्रदेश की एक रैली में पीएम मोदी ने दावा किया कि कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा था कि वह नारियल जूस निकालने और इसे लंदन में बेचने में मणिपुर के किसानों की मदद करेंगे। पीएम ने कहा कि राहुल गांधी ने दावा किया था कि वह किसानों के लिए आलू की फैक्ट्री लगाएँगे। ऐसा कहकर पीएम मोदी ने राहुल गांधी की अज्ञानता और बचपने को निशाने पर लिया।
 
लेकिन जब सच्चाई सामने आई तो लगा कि पीएम ही बचपने पर उतर आए हो! रही बात अज्ञानता की, अपने भाषणों में आँकड़ों और जानकारियों के साथ अन्याय करके वे ज्ञान-अज्ञान का ही अंत कर चुके थे! पीएम के इस दावे को लेकर मीडिया के ख़ास वर्ग ने बहुत हो-हल्ला किया और राहुल गांधी पर अनेक कार्टून पेश कर दिए। लेकिन सच्चाई सामने आई तो मीडिया का हो-हल्ला शांत हो गया।
 
दरअसल, राहुल गांधी ने नारियल या नारियल जूस की नहीं बल्कि अनानास जूस की बात की थी। और यह चीज़ कई मंचों से साबित हो चुकी है। रही बात आलू की फैकट्री लगाने की, यह भी साबित हो गया कि राहुल गांधी ने आलू चिप्स की फैक्ट्री का ज़िक्र किया था, ना कि आलू की फैक्ट्री का। हालाँकि पीएम के ये दोनों दावे झूठ साबित होने के बाद भी आज भी व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी में यह धड़ल्ले से चल रहा है!
 
जब गुजरात के सारंगपुर तीर्थधाम में पीएम ने ग़ज़ब का दावा कर दिया, जब देश में मोबाइल नहीं थे तब मोबाइल इस्तेमाल का दावा
सारंगपुर, गुजरात में स्वामीनारायण संप्रदाय के गुरु के अवसान पर अंतिम दर्शन के लिए गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वहाँ भाषण भी दिया। अपने भाषण में उन्होंने कहा, "1992 में कश्मीर में हिंसा के दौरान मैं 26 जनवरी के दिन झंडा फहराने गया था। वहाँ से मैं एयरपोर्ट पर पहुंचा तभी दो फ़ोन आए। एक फ़ोन मेरी माताजी का था तथा दूसरा फ़ोन प्रमुख स्वामी महाराज का था।...."
 
इस दावे को लेकर उन्होंने पूरा विवरण नहीं दिया, जैसा कि वो हमेशा करते हैं। और फिर उनके दावे को लेकर बहस शुरू हो गई। सार्वजनिक तथ्य है कि भारत के दूरदराज़ इलाकों में मोबाइल सेवा 1995 के बाद शुरू हुई थी। वे एयरपोर्ट पर लैंडलाइन फ़ोन लेकर घूम रहे होंगे ये मानना थोड़ा और ग़ज़ब का स्तर होगा। उनके दावे की माने तो जब फ़ोन आया तब वे किसी ऑफिस में या घर में नहीं, बल्कि एयरपोर्ट पर जा रहे थे। लैंडलाइन फोन लेकर तो नहीं चल रहे होंगे। साथ में इस भाषण के दौरान अपने माताजी के नाम का उपयोग करके उन्होंने थोड़ी-बहुत सीमाएँ ज़रूर छू ली थीं।
 
वे इस वक्त भारत के प्रधानमंत्री थे, उपरांत किसी संत के अवसान के समय उनके पार्थिव देह के पास वो भाषण दे रहे थे। उपरांत वे सारंगपुर जाकर रोए भी थे। पीएम बनने के बाद कितनी बार रोये यह गिनती भी ग़लत होगी उतनी बार वो भावुक होने के नाम पर रोए हैं! जब जब कोई नेता भावुक होकर रोता है तब तब जनता को सावधान हो जाना चाहिए।
 
उपरांत, उनके बयान से एक तर्क यह भी निकलता था कि पूर्व सरकार के दौरान वो कश्मीर जाकर झंडा फहरा सकते थे, लेकिन उन्हीं की सरकार में वहाँ जाकर झंडा फहराना मुमकिन नहीं हो पाया था!!! क्योंकि दोनो लड़कियाँ (जहान्वी और तंजीम) को वापस आना पड़ा था!!!
 
लाल किले से एलईडी बल्ब के दाम को लेकर बवाल शुरू हुआ
2016 में लाल किले से मोदीजी ने भाषण दिया। अपने भाषण में उन्होंने एलईडी बल्ब की बात छेड़कर लोगों को ऊर्जा बचत का उपदेश देना चाहा। लेकिन भाषण में उन्होंने एलईडी बल्ब का दाम 50 रुपये बताया। और वे 50 का बल्ब जैसा लफ़्ज़ अनेकों बार भी बोले। जबकि इन दिनों बाज़ार में एलईडी बल्ब 150 रुपये से शुरू होते थे। इसी दौरान उन्हीं की पार्टी की मध्य प्रदेश सरकार एलईडी बल्ब लोगों को मुहैया करा रही थी, लेकिन वहाँ भी इस बल्ब के सरकारी दाम 80 रुपये बताए गए थे।
 
लाल किले से एलईडी बल्ब, नगला फतेला गाँव और फिर गन्ने का बवाल
2016 के लाल किले के भाषण में उन्होंने फिर एक अपुष्ट दावा कर दिया। गन्ना के विषय पर उन्होंने ग़लती कर दी। नोट करें कि 'राष्ट्र के नाम संबोधन' जैसे संवेदनशील भाषण में!
 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा लाल किले की प्राचीर से देश के सामने रखे गए आँकड़ों ने किसानों के घावों पर नमक छिड़क दिया। पीएम ने 95.5 प्रतिशत गन्ना भुगतान होने का दावा किया, जबकि हालात यह थे कि अकेले उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों का ही चीनी मिलों पर क़रीब 2700 करोड़ रुपये बकाया थे।
 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा राष्ट्र के नाम दिए गए संबोधन में गन्ना भुगतान संबंधी तथ्यों को किसान संगठनों ने ग़लत करार दिया। राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के प्रवक्ता विकास बालियान ने कहा कि पीएम को ग़लत आँकड़े उपलब्ध कराए गए हैं, हालात यह है कि गन्ना भुगतान न होने के कारण किसान बेहाली का शिकार हैं। बकौल बालियान, उत्तर प्रदेश में चीनी मिलों पर किसानों का कुल 18 हज़ार करोड़ रुपये का बकाया था और अभी भी मिलों पर किसानों का करीब 2700 करोड़ रुपये का भुगतान बकाया है।
 
मन की बात और मिस्त्री का तिकड़म, सीमेंट की बोरी के दाम भी ख़ूब उछले
मन की बात नाम का कार्यक्रम अच्छा सरकारी या व्यक्तिगत प्रयास है। किंतु इसमें भी कई चीजों में वे तथ्यात्मक गलतियाँ कर चुके हैं।
 
जैसे कि एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने कहा कि राज मिस्त्री ने मुफ़्त टॉयलेट बनाने की बात कही है। उन्होंने राज मिस्त्री का सहारा लेकर स्वयं को मिलने वाले देश के समर्थन को हवा देने की कोशिशें की।
 
उधर लेकिन राज मिस्त्री ने खुद सामने आकर मीडिया व देश के सामने कहा कि उन्होंने मुफ़्त में टॉयलेट बांधने का कोई भरोसा नहीं दिलाया, बल्कि उन्होंने कॉन्ट्रैक्ट किया है, जिसके तहत वे पैसे लेकर टॉयलेट बनाएंगे। अब इस कहानी का अंत क्या हुआ था नहीं पता, क्योंकि कहानी का किरदार (दोनों किरदार) फिर इस पर सार्वजनिक रूप से कुछ ज़्यादा बोले नहीं थे।
 
सीमेंट की बोरी पर नरेंद्र मोदी द्वारा दिया गया बयान भी सभी को हैरान कर गया। उन्होंने अपने बयान में कहा, "पहले सीमेंट की बोरी 350 रुपयों में मिलती थी, जो अब 120 रुपये में मिल जाती है।"
 
यह बयान इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में भी दिखाया गया। लोग ढूंढ़ते रहे कि सीमेंट की बोरी कहाँ इतने सस्ते में मिलती है। हो सकता है कि पीएम ने किसी योजना के अधीन यह दावा किया हो। राहुल गांधी ने ऐसा कह दिया होता तो फिर बात और होती।
 
बोधगया जाकर वाजपेयी का दौरा भुला दिया, श्रीनगर जाकर भी यही ग़लती कर दी
2015 के दौरान पीएम मोदी बोधगया गए थे। वहाँ जाकर उन्होंने स्वयं अपने ही मुँह से भाषण दिया कि, "भाईयों बहनों, इतने सालों में बोधगया आने वाला मैं पहला प्रधानमंत्री हूँ।"
 
दूसरी तरफ़, सरकारी और भारतीय दस्तावेजों के अनुसार तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी 8 नवम्बर, 1998 के दिन बोधगया गए थे।
 
एक बार पीएम मोदी ने श्रीनगर में चुनावी रैली की थी। वहाँ अपने भाषण में कहा कि, "1983 के बाद पहली बार कोई शेर-ए-कश्मीर के अंदर रैली कर रहा है।"
 
यहाँ भी सच कुछ और ही था। सन 2005 में मनमोहन सिंह और 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी वहाँ रैली कर चुके थे। और दोनों उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री भी थे।
 
प्रधानमंत्री के भाषण में बार बार तथ्यात्मक गलतियाँ होने से अब इनके बारे में कहा जाने लगा कि वे जब भी बोलते हैं, ....।
 
इतिहास हो या अर्थतंत्र हो, आँकड़े या दावे सदैव तथ्यों के बिना झूला झूलते रहे
मोदीजी ने बतौर गुजरात सीएम, अपने भाषण में एक बार कहा था, "चीन अपनी जीडीपी का 20 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च करता है, लेकिन भारत सरकार नहीं।" - लेकिन दस्तावेजों के अनुसार इस दावे के समय तक चीन अपनी जीडीपी का महज 3.93 प्रतिशत ही शिक्षा पर खर्च करता था। वहीं भारत में वाजपेयीजी वाली एनडीए सरकार के कार्यकाल में शिक्षा पर 1.6 प्रतिशत खर्च हुआ और मनमोहन सिंह वाली यूपीए के कार्यकाल में सालाना जीडीपी का 4.04 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च हुआ था।
 
बतौर पीएम इन्होंने एक रैली के दौरान कह दिया था, "सिकंदर महान को गंगा नदी के तट पर बिहारियों ने हराया था।" - जबकि असल में सिकंदर 326 ई.पू. तक्षशिला से होते हुए पुरु के राज्य की तरफ बढ़ा, जो झेलम और चिनाब नदी के बीच बसा हुआ था। राजा पुरु से हुए घोर युद्ध के बाद वह व्यास नदी तक पहुंचा, परन्तु वहाँ से उसे वापस लौटना पड़ा। उसके सैनिक मगध (वर्तमान बिहार) के नन्द शासक की विशाल सेना का सामना करने को तैयार नहीं थे। इस तरह से सिकंदर पंजाब से ही वापस लौट गया था।
 
प्रधानमंत्री मोदी ने एक रैली में बोल दिया था, "विश्वप्रसिद्ध तक्षशिला या टेक्सिला विश्वविद्यालय बिहार में था।" - सभी जानते हैं कि तक्षशिला प्राचीन भारत में शिक्षा का प्रमुख केंद्र था, जो पंजाब प्रांत में था, और यह उस जगह था, जहाँ फिलहाल पाकिस्तान का रावलपिंडी ज़िला है। तक्षशिला इतिहास में कभी बिहार प्रदेश का हिस्सा नहीं रहा।
 
एक दफा उन्होंने बतौर पीएम कहा था, "एनडीए के कार्यकाल में भारत की विकास दर 8.4 प्रतिशत थी।" - किंतु सरकारी दस्तावेजों के मुताबिक़ एनडीए के कार्यकाल में भारत की विकास दर 6 प्रतिशत थी।
 
बतौर गुजरात के मुख्यमंत्री उन्होंने कहा था, "गुजरात में देश में सबसे अधिक विदेशी पूंजी निवेश होता है।"जबकि आँकड़ों के अनुसार वर्ष 2000 से 2011 तक गुजरात में 7.2 बिलियन डॉलर का विदेशी पूंजी निवेश हुआ और इसी अवधि में महाराष्ट्र में 45.8 बिलियन डॉलर और दिल्ली में 26 बिलियन डॉलर का विदेशी पूंजी निवेश हुआ था।
बतौर गुजरात सीएम मोदीजी ने कहा था, "नर्मदा पर बांध बनने पर लोगों को मुफ़्त बिजली मिलेगी।" - जबकि सच यह है कि अब तक भारत में कभी ऐसा नहीं हुआ है कि किसी प्रदेश में नदियों पर बांध बनने से मुफ़्त में लोगों को बिजली मिली हो। राष्ट्रीय बिजली नियामक आयोग के अनुसार बिजली के लिए पैसा देना ही होगा।
 
बतौर सीएम अहमदाबाद में अक्टूबर 2003 में नरेंद्र मोदी ने कहा था, "अहमदाबाद नगरपालिका में महिलाओं के आरक्षण का प्रस्ताव सरदार वल्लभभाई पटेल ने 1919 में रखा था।" - लंबे समय तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी यह भूल गए थे कि वल्लभभाई पटेल ने यह प्रस्ताव 1926 में दिया था।
 
नवंबर 2013 में खेड़ा में नरेंद्र मोदी श्यामजी कृष्ण वर्मा और श्यामा प्रसाद मुखर्जी में अंतर नहीं कर पाए! मोदी ने श्यामा प्रसाद मुखर्जी को गुजरात का बेटा कह दिया और यह भी कह दिया कि उन्होंने लंदन में इंडिया हाउस का गठन किया था और उनकी मौत 1930 में हो गई थी।  - दरअसल श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म कोलकाता में हुआ था। उनकी मौत 1953 में हुई थी। दरअसल मोदी श्यामजी कृष्ण वर्मा की जगह श्यामा प्रसाद मुखर्जी बोल गए थे।
 
2015 में मन की बात में पीएम मोदी ने खादी की बिक्री को लेकर ग़लत आँकड़े दिए थे। मन की बात में उन्होंने कहा था, "देश में खादी बिक्री में विक्रमी बढ़ोतरी हुई है।" उन्होंने दावा किया था कि खादी की बिक्री में दोगुना इज़ाफ़ा हुआ है और इस दावे को ट्वीट भी किया था। - सरकार के ही आँकड़ों के मुताबिक देश में वर्ष 2013-14 में खादी की कुल बिक्री 1081.04 करोड़ हुई थी और 2014-15 में यह महज 1149.90 तक पहुंची थी। यानी कि करीब 5.82 फ़ीसदी का इज़ाफ़ा!
 
उत्तराखंड त्रासदी और 20 हज़ार को बचाने का विवादित बयान
बतौर गुजरात के सीएम इन्होंने यह ग़ज़ब बयान दिया था। उत्तराखंड त्रासदी के समय इन्होंने कहा था, "भाईयों बहनों... मैंने स्वयं उत्तराखंड जाकर 20 हज़ार लोगों को बचाने में मदद की थी।"
 
कई तर्क या कुतर्क हुए, लेकिन यह कभी पता नहीं चल पाया कि 20 हज़ार का परफेक्ट आँकड़ा कहाँ से आया था और यह चमत्कार किस तरह से हुआ था! भारतीय सेना, एयर फोर्स या नेवी ने भी जो दावा नहीं किया था, वो बात इन्होंने कही थी!!! सेना उस वक्त बचान अभियान में पिछड़ रही थी। इसके पीछे सेना का कहना था कि वहाँ बचाव के लिए पहुंचने के तरीक़े और सामान फ़िलहाल नहीं है। लेकिन सेना को भी छोटा साबित कर देने वाला यह चमत्कार आज तक रहस्य के भांति पर्दे के पीछे ही छुपा हुआ है!