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IPC Sections : संक्षिप्त में आईपीसी की कुछ धाराएं


लास्ट अपडेट अक्टूबर 2018

भारतीय समाज को क़ानूनी रूप से व्यवस्थित रखने के लिए सन 1860 में लार्ड मैकाले की अध्यक्षता में भारतीय दंड संहिता बनाई गई थी। जिसे आम तौर पर इंडियन पीनल कोड (आईपीसी) के नाम से भी जाना जाता है। इस संहिता में विभिन्न अपराधों को सूचीबद्ध कर उसमें गिरफ़्तारी और सज़ा का उल्लेख किया गया है। इस में कुल मिला कर 511 धाराएं हैं।

इन धाराओं का पूरा विश्लेषण तो नहीं किया जा सकता या तमाम धाराओं की विस्तृत जानकारी नहीं दी जा सकती। क्योंकि इसके लिये हम स्वयं असमर्थ हैं। यहाँ कुछेक धाराओं के बारे में संक्षिप्त में जानकारी जुटाने का प्रयास करते हैं। ख़याल रहे कि जानकारी पूरी और सटीक नहीं है, केवल एक संक्षिप्त लेख में संक्षिप्त प्रयास है।

धारा 3
भारतीय दंड संहिता की धारा 3 ऐसे अपराधों की सज़ा के बारे में है, जो कि भारत से बाहर किये गए हैं, पर क़ानून के अनुसार उन्हें भारत में ही पेश किया जाएगा व यही उनकी सुनवाई होगी। इसके तहत कोई भी व्यक्ति जिस पर यह दंड संहिता लागू होती है, के द्वारा किए गए किसी भी अपराध के बारे में, भले ही वोह भारत से बाहर किये गए हो, की सुनवाई व सज़ा भारत में होगी।

धारा 34
धारा 34 के अंतर्गत यदि दो या दो से अधिक व्यक्ति कोई कार्य संयुक्त रूप से करते हैं, तो विधि के अंतर्गत स्थिति वहीं होगी की मानो उनमें से प्रत्येक के वह कार्य स्वयं व्यक्तिगत रूप से किया गया हो। व्यक्तियों का कार्य अलग हो सकता है, किंतु उनका आशय एक रहना आवश्यक है। इस संबंध में विधि का यह सुस्थापित सिद्धांत है कि धारा 34 किसी आपराधिक कृत्य को करने के संयुक्त दायित्व के सिद्धांत के आधार पर अधिनियमित की गई है। यह धारा केवल एक साक्ष्य का नियम है और इसमें कोई सरवान् अपराध सृजित नहीं किया गया है। इस धारा की सुभिन्न विशेषता यह है कि इसमें कार्यवाई में सहभागिता का तत्व विद्यमान है। अनेक व्यक्तियों द्वारा किए गए आपराधिक कार्य के अनुक्रम में किसी व्यक्ति द्वारा किए गए किसी अपराध के लिए किसी अन्य व्यक्ति का दायित्व धारा 34 के अधीन तभी उद्भूत होगा, यदि ऐसा आपराधिक कार्य उन व्यक्तियों के, जो अपराध करने में सम्मिलित हुए थे, किसी सामान्य आषय को अग्रसर करने के लिए किया गया हो। सामान्य आशय से संबंधित धारा 35,36,37,38 है।

धारा 120 ए और 120 बी
किसी भी अपराध को अंजाम देने के लिए साझा साज़िश, यानी कॉमन कॉन्सपिरेसी का मामला गुनाह की श्रेणी में आता है। ऐसे मामलों में आईपीसी की धारा 120ए और 120बी का प्रावधान है। जिस भी मामले में आरोपियों की संख्या एक से ज़्यादा होती है, तो पुलिस की एफ़आईआर में आमतौर पर धारा 120ए का ज़िक्र ज़रूर होता है। यह ज़रूरी नहीं है कि आरोपी ख़ुद अपराध को अंजाम दे। किसी साज़िश में शामिल होना भी क़ानून की निगाह में गुनाह है। ऐसे में साज़िश में शामिल शख़्स यदि फाँसी, उम्रक़ैद या दो वर्ष या उससे अधिक अवधि के कठिन कारावास से दंडनीय अपराध करने की आपराधिक साज़िश में शामिल होगा तो धारा 120 बी के तहत उसको भी अपराध करने वाले के बराबर सज़ा मिलेगी। अन्य मामलों में यह सज़ा छह महीने की क़ैद या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।

धारा 141
आईपीसी की धारा 141 विधिविरुद्ध जमाव से संबंधित है। पाँच या अधिक व्यक्तियों का जमाव विधिविरूद्ध जमाव कहा जाता है। यदि उन व्यक्तियों का जिनसे वह जमाव गठित हुआ है, सामान्य उद्देश्य इस प्रकार हो। पहला - केंद्रीय सरकार को या किसी राज्य सरकार को, संसद को या किसी राज्य के विधानमंडल को या किसी लोकसेवक को, जब कि वह ऐसे लोकसेवक की विधिपूर्ण शक्ति का प्रयोग कर रहा हो, आपराधिक बल द्वारा या आपराधिक बल के प्रदर्शन द्वारा आतंकित करना अथवा दूसरा - किसी विधि के या किसी वैध आदेशिका के निष्पादन का प्रतिशेध करना अथवा तीसरा - किसी रिष्टि या आपराधिक अतिचार या अन्य अपराध करना अथवा चौथा - किसी व्यक्ति पर आपराधिक बल द्वारा या आपराधिक बल के प्रदर्शन द्वारा किसी सम्पत्ति का कब्ज़ा लेना या अभिप्राप्त करना या किसी व्यक्ति को किसी मार्ग के अधिकार के उपभोग से या जल का उपभोग करने के अधिकार या अन्य अमूर्त अधिकार से जिसका वह कब्ज़ा रखता हो, या उपभोग करता हो, वंचित करना या किसी अधिकार या अनुमति अधिकार को प्रवर्तित करना अथवा पाँचवां - आपराधिक बल द्वारा या आपराधिक बल के प्रदर्शन द्वारा किसी व्यक्ति को वह करने के लिए जिसे करने के लिए वह वैध रूप से आबद्ध न हो या उसका लोप करने के लिए जिसे करने का वह वैध रूप से हकदार हो विवश करना।

धारा 144
जब कहीं भी किसी हिंसा या तनाव के बाद इलाके का माहौल ख़राब होता है या ख़राब होने की संभावना होती है या जिससे तनाव बढ़ने की उम्मीद होती है, ऐसे वक़्त में धारा 144 को ऐहतियातन उस इलाके में लागू किया जाता है। यह पुलिस द्वारा घोषित किये जाने वाला एक आदेश होता है। जिसे दंगा, लूटपाट, आगजनी, हिंसा, मारपीट जैसी विशेष परिस्थितियो को रोक फिर से शांति की स्थापना के लिए इस्तेमाल किया जाता है। धारा 144 लागू होने के बाद उस इलाके में नागरिकों की सुरक्षा के लिहाज़ से लोगों को घरों से बाहर निकलकर घूमने पर प्रतिबंध होता है। यही नहीं, यातायात को भी पूरी तरह से इस अवधि में रोक दिया जाता है। कुछ परिस्थितियों में यह धारा एकमात्र व्यक्ति पर भी लागू हो सकती है। इसके साथ ही लोगों के एक साथ एकत्र होने या ग्रुप में घूमने पर पूरी तरह से पाबंदी होती है। 

धारा 149
प्रतिनिधिक एंव आन्वयिक दाण्डिक दायितत्व विधि विरूद्ध जमाव के प्रत्येक सदस्य हेतु विहित करती हैजहाँ अपराध उस जमाव के सामान्य उद्देश्य के अग्रसरण में ऐसे विधि विरूद्ध जमाव के किसी सदस्य द्वारा कारित किया गया हो या उस जमाव के सदस्यों का उस उद्देश्य के अग्रसरण में कारित किया जाना जानते हुए किया हो। विधि के सुस्थापित सिद्धांतों के अनुसार जब कभी न्यायालय किसी व्यक्ति या व्यक्तियों को धारा 149 की सहायता से अपराध हेतु दोषसिद्ध करती है। जमाव के सामान्य उद्देश्य के संबंध में स्पष्ट निष्कर्ष दिया जाना चाहिए एंव चर्चा किया गया साक्ष्य न केवल सामान्य उद्देश्य की प्रकृति दर्शाना चाहिए। बल्कि यह भी कि उद्देश्य विधि विरूद्ध था। धारा 149 के तहत दोषसिद्धि अभिलिखित करने के पूर्व,  धारा 141 के आवश्यक संघटक स्थापित किये जाने चाहिए।

धारा 153 ए
आईपीसी की धारा 153 (ए) उन लोगों पर लगाई जाती है, जो धर्म, भाषा, नस्ल वगैरह के आधार पर लोगों में नफ़रत फैलाने की कोशिश करते हैं। धारा 153 (ए) के तहत 3 साल तक की क़ैद या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं। अगर ये अपराध किसी धार्मिक स्थल पर किया जाए तो 5 साल तक की सज़ा और जुर्माना भी हो सकता है।

धारा 186
अगर कोई शख़्स सरकारी काम में बाधा पहुंचाता है, तो उस पर आईपीसी की धारा 186 के तहत मुकदमा चलाया जाता है। उसे तीन महीने तक की क़ैद और 500 रुपए तक का जुर्माना या दोनों हो सकता है।

धारा 292
समाज में अश्लीलता फैलाना भी संगीन गुनाह की श्रेणी में आता है। अश्लील साहित्य, अश्लील चित्र या फ़िल्मों को दिखाना, वितरित करना और इससे किसी प्रकार का लाभ कमाना या लाभ में किसी प्रकार की कोई भागीदारी क़ानून की नज़र में अपराध है और ऐसे अपराध पर आईपीसी की धारा 292 लगाई जाती है। इसके दायरे में वो लोग भी आते हैं जो अश्लील सामग्री को बेचते हैं या जिन लोगों के पास से अश्लील सामग्री बरामद होती है। अगर कोई पहली बार आईपीसी की धारा 292 के तहत दोषी पाया जाता है, तो उसे 2 साल की क़ैद और 2 हज़ार रुपए तक का जुर्माना हो सकता है। दूसरी बार या फिर बार-बार दोषी पाए जाने पर 5 साल तक की क़ैद और 5 हज़ार रुपए तक का जुर्माना हो सकता है।

धारा 294
सार्वजनिक जगहों पर अश्लील हरकतें करने या अश्लील गाना गाने पर आईपीसी की धारा 294 लगाई जाती है। इस मामले में गुनाह अगर साबित हो जाए तो तीन महीने तक की क़ैद या जुर्माना या दोनों हो सकता है।

धारा 302
आईपीसी की धारा 302 कई मायनों में काफी महत्वपूर्ण है। क़त्ल के आरोपियों पर धारा 302 लगाई जाती है। अगर किसी पर क़त्ल का दोष साबित हो जाता है, तो उसे उम्रक़ैद या फाँसी की सज़ा और जुर्माना हो सकता है। क़त्ल के मामलों में ख़ास तौर पर क़त्ल के इरादे और उसके मक़सद पर ध्यान दिया जाता है। इसमें पुलिस को सबूतों के साथ ये साबित करना होता है कि क़त्ल आरोपी ने किया है, उसके पास क़त्ल का मक़सद भी था और वो क़त्ल करने का इरादा रखता था।

धारा 304 ए
आईपीसी की धारा 304 (ए) उन लोगों पर लगाई जाती है, जिनकी लापरवाही की वजह से किसी की जान जाती है। इसके तहत दो साल तक की सज़ा या जुर्माना या दोनों होते हैं। सड़क दुर्घटना के मामलों में किसी की मौत हो जाने पर अक्सर इस धारा का इस्तेमाल होता है।

धारा 304 बी
आईपीसी में साल 1986 में एक नई धारा 304 बी को शामिल किया गया। आईपीसी की यह नई धारा ख़ास तौर पर दहेज हत्या या दहेज की वजह से होनी वाली मौतों के लिए बनाई गई है। अगर शादी के सात साल के अंदर किसी औरत की जलने,चोट लगने या दूसरी असामान्य वजहों से मौत हो जाती है और ये पाया जाता है कि दहेज की मांग की ख़ातिर अपनी मौत से ठीक पहले वह औरत पति या दूसरे ससुराल वालों की तरफ़ से क्रूरता और उत्पीड़न का शिकार थी, तो आरोपियों पर धारा 304बी लगाई जाती है। इसमें दोषियों को कम से कम 7 साल की क़ैद होती है। इसमें अधिकतम सज़ा उम्रक़ैद है।

धारा 306 और 305
आईपीसी की धारा 306 और 305 ख़ुदकुशी या आत्महत्या के मामले से जुड़ी है। अगर कोई शख़्स ख़ुदकुशी कर लेता है और ये साबित होता है कि उसे ऐसा करने के लिए किसी ने उकसाया था या फिर किसी ने उसे इतना परेशान किया था कि उसने अपनी जान दे दी तो उकसाने या परेशान करने वाले शख़्स पर आईपीसी की धारा 306 लगाई जाती है। इसके तहत 10 साल की सज़ा और जुर्माना हो सकता है। अगर आत्महत्या के लिए किसी नाबालिग, मानसिक तौर पर कमज़ोर या फिर किसी भी ऐसे शख़्स को उकसाया जाता है, जो अपने आप सही और गलत का फ़ैसला करने की स्थिति में न हो, तो उकसाने वाले शख़्स पर धारा 305 लगाई जाती है। इसके तहत दस साल की क़ैद और जुर्माना या उम्रक़ैद या फिर फाँसी की भी सज़ा हो सकती है।

धारा 307
किसी की हत्या की कोशिश का मामला अगर सामने आता है तो हत्या की कोशिश करने वाले पर आईपीसी की धारा 307 लगाई जाती है। यानि अगर कोई किसी की हत्या की कोशिश करता है, लेकिन जिस शख़्स पर हमला हुआ, उसकी जान नहीं जाती तो धारा 307 के तहत हमला करने वाले शख़्स पर मुकदमा चलता है। आम तौर पर ऐसे मामलों में दोषी को 10 साल तक की सज़ा और जुर्माना हो सकते हैं। अगर जिसकी हत्या की कोशिश की गई है उसे गंभीर चोट लगती है तो दोषी को उम्रक़ैद तक की सज़ा हो सकती है।

धारा 353
आईपीसी की धारा 353 उन लोगों पर लगाई जाती है, जो सरकारी कर्मचारी पर हमला कर या उस पर ताक़त का इस्तेमाल कर उसे उसकी ड्यूटी निभाने से रोकते हैं। ऐसे मामलों में दोषी को दो साल तक की सज़ा या जुर्माना या दोनों से दंडित किया जा सकता है।

धारा 375
जब कोई पुरुष किसी महिला के साथ उसकी इच्छा के विरुद्ध सम्भोग करता है, तो उसे दुष्कर्म कहते हैं। किसी भी कारण से सम्भोग क्रिया पूरी हुई हो या नहीं, लेकिन क़ानूनन वह दुष्कर्म ही कहलाएगा। इस अपराध के अलग-अलग हालात और श्रेणी के हिसाब से इसे धारा 375, 376, 376क, 376ख, 376ग, 376घ के रूप में विभाजित किया गया है। यदि कोई पुरुष किसी महिला की इच्छा के विरुद्ध, उसकी सहमति के बिना, उसे डरा धमकाकर, उसका नकली पति बनकर, दिमागी रूप से कमज़ोर या पागल महिला को धोखा देकर और उसके शराब या अन्य नशीले पदार्थ के कारण होश में नहीं होने पर उसके साथ सम्भोग करता है तो वह दुष्कर्म ही माना जाएगा। यदि स्त्री 16 वर्ष से कम उम्र की है, तो उसकी सहमति या बिना सहमति के होने वाला सम्भोग भी दुष्कर्म है। यही नहीं यदि कोई पुरुष अपनी 15 वर्ष से कम उम्र की पत्नी के साथ सम्भोग करता है, तो वह भी दुष्कर्म ही है। इस सभी स्थितियों में आरोपी को सज़ा हो सकती है।

धारा 376
किसी भी महिला के साथ दुष्कर्म करने के आरोपी पर आईपीसी की धारा 376 के तहत मुकदमा चलाया जाता है। अपराध सिद्ध हो जाने पर दोषी को न्यूनतम सात साल और अधिकतम दस साल की कड़ी सज़ा दिए जाने का प्रावधान है। इसके अलावा दोषी पर अदालत जुर्माना भी कर सकती है।

धारा 377 (कुछ प्रावधान रद्द)
यह धारा अप्राकृतिक यौन संबंध को ग़ैरक़ानूनी ठहराता था। 1862 में यह क़ानून लागू हुआ था। इसके तहत स्त्री या पुरुष के साथ अप्राकृतिक यौन संबध बनाने पर 10 साल की सज़ा व जुर्माने का प्रावधान था। यही नहीं किसी जानवर के साथ यौन संबंध बनाने पर उम्र क़ैद या 10 साल की सज़ा व जुर्माने का भी इसमें प्रावधान था। यह बच्चों के साथ अप्राकृतिक यौन हिंसा को देखते हुए बनाया गया था। सहमति से दो पुरुषों, महिलाओं और समलैंगिकों के बीच सेक्‍स भी इसके दायरे में आता था। धारा 377 के तहत अपराध गैर जमानती था, जिसे संज्ञेय अपराध माना जाता था। यानी इसमें गिरफ़्तारी के लिए वॉरंट की ज़रूरत नहीं होती। सिर्फ शक के आधार पर या गुप्त सूचना का हवाला देकर पुलिस इस मामले में किसी को भी गिरफ़्तार कर सकती थी।

सेक्‍स वर्करों के लिए काम करने वाली संस्‍था नाज़ फाउंडेशन ने हाईकोर्ट में यह कहते हुए इसकी संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाया था कि अगर दो एडल्‍ट आपसी सहमति से एकांत में सेक्‍सुअल संबंध बनाते हैं तो उसे धारा 377 के प्रावधान से बाहर किया जाना चाहिए। 2 जुलाई 2009 को नाज़ फाउंडेशन की याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने अपने फ़ैसले में कहा कि दो व्‍यस्‍क आपसी सहमति से एकातं में समलैंगिक संबंध बनाते हैं तो वह आईपीसी की धारा 377 के तहत अपराध नहीं माना जाएगा। कोर्ट ने सभी नागरिकों के समानता के अधिकारों की बात की थी। सुप्रीम कोर्ट ने 11 दिसंबर 2013 को होमो सेक्सुअलिटी के मामले में दिए गए अपने ऐतिहासिक जजमेंट में समलैंगिकता मामले में उम्रक़ैद की सज़ा के प्रावधान के क़ानून को बहाल रखने का फ़ैसला किया था। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के उस फ़ैसले को ख़ारिज कर दिया था, जिसमें दो बालिगों के आपसी सहमति से समलैंगिक संबंध को अपराध की श्रेणी से बाहर माना गया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब तक धारा 377 रहेगी तब तक समलैंगिक संबंध को वैध नहीं ठहराया जा सकता। साल 2018 में अपने एक ऐतिहासिक फ़ैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने धारा 377 को रद्द कर दिया है। समलैगिंक संबंधों को क़ानूनन मान्यता मिल चुकी है।

धारा 392
आईपीसी की धारा 392 का इस्तेमाल लूट से संबंधित अपराध में पुलिस करती है। लूट रास्ते में हो सकती है या फिर घर में घुस कर। लेकिन लूट के बाद बदमाशों को सज़ा दिलाने में समय का बड़ा महत्व होता है। अगर लूट दिन के वक़्त सूर्यास्त होने से पहले हुई है, तो उसमें अदालत पकड़े गए आरोपी को दस साल की सज़ा सुना सकती है। लेकिन अगर लूट सूर्यास्त के बाद हुई है, तो उसमें सज़ा की अवधि है चौदह साल या आजीवन कारावास। लूट के मामले में मजिस्ट्रेट ट्रायल होता है। मजिस्ट्रेट केवल सात साल की सज़ा ही दे सकता है। ऐसे में अगर मजिस्ट्रेट को लगता है कि पकड़े गए आरोपी को दस साल की सज़ा दी जानी चाहिए, तो वह उस केस को सेशन्स कोर्ट में ट्रांसफर कर सकता है।

धारा 395
आईपीसी की धारा 395 लूट से थोड़ी अलग है। अगर लूट की वारदात में बदमाशों की संख्या चार से ज़्यादा है, तो मामला लूट के बजाय डकैती की धारा में दर्ज होता है। अधिकतर पुलिस इस धारा का इस्तेमाल करने से बचती है। डकैती की धारा में रिपोर्ट दर्ज होने पर मामला आईजी स्तर तक के संज्ञान में रहता है और वह हर सप्ताह केस की प्रगति रिपोर्ट सीओ से लेकर आईजी तक एसआर केस मानते हुए पूछते हैं। डकैती की धारा में भी समय का महत्व होता है। इसका ट्रायल सेशन कोर्ट में होता है। जिसमें सज़ा आजीवन कारावास है।

धारा 396
यह धारा डकैती के दौरान हत्या से संबंधित है। धारा 395 के तहत डकैती होती है और यदि डकैती के दौरान किसी की हत्या की जाती है, तब ऐसे मामले में डकैती में शामिल तमाम लोगों को सज़ा के प्रावधान है। इसमें 10 साल की सज़ा से लेकर आजीवन क़ैद हो सकती है।

धारा 438
यह धारा आग या विस्फोटक पदार्थ से संबंधित शरारत से प्रतिबद्ध है। ऐसी शरारत करने का प्रयास जो कोई करता है उसे दंडित किया जाता है।
(लास्ट अपडेट अक्टूबर 2018)