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Preamble of the Indian Constitution : भारतीय संविधान की प्रस्तावना



संविधान के उद्देश्यों को प्रकट करने हेतु प्राय: उनसे पहले एक प्रस्तावना प्रस्तुत की जाती है। संविधान की प्रस्तावना में उस मौलिक दर्शन और मौलिक मूल्यों का उल्लेख है जो हमारे संविधान के आधार हैं। प्रस्तावना के माध्यम से भारतीय संविधान का सारअपेक्षाएँ, उद्देश्य, लक्ष्य तथा दर्शन प्रकट होता है। प्रस्तावना यह घोषणा करती है कि संविधान अपनी शक्ति सीधे जनता से प्राप्त करता है, इसी कारण यह 'हम भारत के लोग' - इस वाक्य से प्रारम्भ होती है। केहर सिंह बनाम भारत संघ के वाद में कहा गया था कि संविधान सभा भारतीय जनता का सीधा प्रतिनिधित्व नहीं करती अत: संविधान विधि की विशेष अनुकृपा प्राप्त नहीं कर सकता, परंतु न्यायालय ने इसे ख़ारिज करते हुए संविधान को सर्वोपरि माना है जिस पर कोई प्रश्न नहीं उठाया जा सकता है।

संविधान विशेषज्ञ नानी पालकीवाला ने संविधान की प्रस्तावना को "संविधान का परिचय पत्र" कहा है। संविधान निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले संविधान सभा के अध्यक्ष सर अल्लादी कृष्णस्वामी अय्यर के शब्दों में, "संविधान की प्रस्तावना हमारे दीर्घकालिक सपनों का विचार है।" संविधान सभा के एक अन्य सदस्य पंडित ठाकुर दास भार्गव ने संविधान की प्रस्तावना को "संविधान की आत्मा" कहा है। दरअसल, प्रस्तावना एक ऐसा स्थान है, जहाँ से कोई सम्पूर्ण संविधान का मूल्यांकन कर सकता है।

प्रस्तावना में संशोधन
1976 में, 42वें संविधान संशोधन अधिनियम (अभी तक केवल एक बार) द्वारा प्रस्तावना में संशोधन किया गया था जिसमें तीन नए शब्द- समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और अखंडता को जोड़ा गया था। अदालत ने इस संशोधन को वैध ठहराया था।

संविधान की प्रस्तावना
हम भारत के लोग,
भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न,
समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए,
तथा उसके समस्त नागरिकों को:
सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म
और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता
प्राप्त करने के लिए,
तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता
और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए
दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में
आज तारीख 26 नवंबर 1949 ई (मिति मार्गशीर्ष शुक्ला सप्तमी, संवत दो हज़ार विक्रमी)
को एतदद्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।

प्रस्तावना पर विशेष
संविधान में इतना महत्वपूर्ण स्थान रखने के बावजूद प्रस्तावना न तो विधायिका की शक्ति का स्रोत है, ना ही उस पर प्रतिबंध लगा सकता है
यह ग़ैर न्यायिक है और इसकी व्यवस्थाओं को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती, हालाँकि अपने बहुत सारे निर्णयों में उच्चतम न्यायलय ने प्रस्तावना को आधार बनाया है और इसके महत्व व प्रासंगिकता पर बल दिया है
संविधान का दार्शनिक आधार पंडित नेहरू का उद्देश्य प्रस्ताव (अमेरिकी प्रस्तावना पर आधारित)
संविधान सभा में 13 दिसंबर 1946 को प्रस्तुत
15 दिसंबर 1946 के दिन सर्वसंमत्ति से स्वीकार
संविधान की प्रस्तावना संविधान की आत्मा है
ऊपर देखा वैसे प्रस्तावना में अभी तक सिर्फ़ एक बार संशोधन किया गया है
उच्चतम न्यायालय के अनुसार प्रस्तावना संविधान निर्माताओं के मन की कुंजी व भारत के लोगों के आदर्शों और आकांक्षाओं का प्रतीक है
प्रस्तावना संविधान का हिस्सा नहीं लेकिन भारतीय संविधान की कुंजी माना गया (बेरुवाडी मामला 1960)
प्रस्तावना संविधान का अभिन्न हिस्सा (बोम्बई मामला 1993)