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Famous Hindi Reporters : प्रसिद्ध हिन्दी पत्रकार


लास्ट अपडेट दिसंबर 2019
 
न्यूज़ रीडर, एंकर, पत्रकार आदि में वैसे तो कई सारे फ़र्क़ हैं। उपरांत मीडिया को लेकर हमारे यहाँ बहुत सारी बातें कही जाती हैं। बहरहाल, इन सब चीज़ों को छोड़ कर हम बात करते हैं भारत के प्रसिद्ध पत्रकारों की। इनमें कुछ नाम शेष रह गए हो यह मुमकिन है।
 
स्व. खुशवंत सिंह
खुशवंत सिंह भारत के प्रसिद्ध पत्रकार, लेखक, उपन्यासकार और इतिहासकार थे। एक पत्रकार के रूप में इन्होंने बहुत लोकप्रियता प्राप्त की। उन्होंने पारंपरिक तरीक़ा छोड़ नए तरीक़े की पत्रकारिता शुरू की। खुशवंत सिंह भारतीय लेखकों और पत्रकारों में हर समय सर्वोपरि रहने वालों में से एक थे। वह एक ऐसे लेखक, पत्रकार और इतिहासकार थे, जो अपनी बेबाक जीवनशैली के लिए आजीवन जाने जाते रहे। खुशवंत सिंह जितने भारत में लोकप्रिय थे, उतने ही पाकिस्तान में भी मशहूर थे।
 
एक पत्रकार के रूप में भी खुशवंत सिंह ने बहुत ख्याति अर्जित की। 1951 में वे आकाशवाणी से जुड़े थे और 1951 से 1953 तक भारत सरकार के पत्र 'योजना' का संपादन किया। 1980 तक मुंबई से प्रकाशित प्रसिद्ध अंग्रेज़ी साप्ताहिक 'द इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ़ इंडिया' और 'न्यू डेल्ही' के संपादक रहे। 1983 तक दिल्ली के प्रमुख अंग्रेज़ी दैनिक हिन्दुस्तान टाइम्स के संपादक भी वही थे। तभी से वे प्रति सप्ताह एक लोकप्रिय 'कॉलम' लिखते थे, जो अनेक भाषाओं के दैनिक पत्रों में प्रकाशित होता था। खुशवंत सिंह उपन्यासकार, इतिहासकार और राजनीतिक विश्लेषक के रूप में विख्यात रहे।
 
साल 1947 से कुछ सालों तक खुशवंत सिंह ने भारत के विदेश मंत्रालय में महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया। 1980 से 1986 तक वे राज्यसभा के मनोनीत सदस्य भी रहे। वर्तमान संदर्भों और प्राकृतिक वातावरण पर भी उनकी कई रचनाएँ हैं। दो खंडों में प्रकाशित 'सिक्खों का इतिहास' उनकी प्रसिद्ध ऐतिहासिक कृति है। साहित्य के क्षेत्र में पिछले सत्तर वर्ष में खुशवंत सिंह का विविध आयामी योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है। खुशवंत सिंह ने कई अमूल्य रचनाएँ अपने पाठकों को प्रदान की हैं। उनके अनेक उपन्यासों में प्रसिद्ध हैं - डेल्ही, ट्रेन टू पाकिस्तान, द कंपनी ऑफ़ वूमन। इसके अलावा उन्होंने लगभग 100 महत्वपूर्ण किताबें लिखीं। अपने जीवन में शारीरिक संबंध, मज़हब और ऐसे ही विषयों पर की गई टिप्पणियों के कारण वे हमेशा आलोचना के केंद्र में बने रहे।
 
1974 में वह भारत के राष्ट्रपति द्वारा पद्म भूषण से सम्मानित किए गए। हालाँकि 1984 में उन्होंने भारतीय सेना के स्वर्ण मंदिर में घुसने और एक अभियान चलाने के कारण विरोध स्वरूप इस सम्मान को लौटा दिया था। वर्ष 2007 में खुशवंत सिंह को पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। वर्ष 2006 में उन्हें पंजाब सरकार द्वारा पंजाब रतन अवॉर्ड से सम्मानित किया गया।
 
जुलाई 2000 में उन्हें अपने बेबाक, ईमानदारी पूर्ण और प्रतिभाशाली तीक्ष्ण लेखन के लिए सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस संगठन द्वारा 'ऑनेस्ट मैन ऑफ़ द इयर अवॉर्ड' दिया गया। 2010 में उन्हें भारत की साहित्य अकादमी द्वारा साहित्य अकादमी फेलोशिप पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 2012 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने उन्हें अखिल भारतीय अल्पसंख्यक फोरम वार्षिक फेलोशिप का अवॉर्ड दिया। उन्हें 'आर्डर ऑफ़ खालसा' (निशान-ए-खालसा) सम्मान से भी सम्मानित किया गया है। खुशवंत सिंह का हृदय गति रुक जाने के कारण 20 मार्च 2014 को 99 वर्ष की आयु में निधन हो गया।
 
स्व. कुलदीप नैयर
कुलदीप नैयर भारत के प्रसिद्ध लेखक एवं पत्रकार थे। भारत सरकार के प्रेस सूचना अधिकारी के पद पर कई वर्षों तक कार्य करने के बाद वे यूएनआई, पीआईबी, द स्टेट्समैन, इंडियन एक्सप्रेस के साथ लंबे समय तक जुड़े रहे। कुलदीप नैयर 25 वर्षों तक 'द टाइम्स' लंदन के संवाददाता भी रहे।
 
कुलदीप नैयर अमेरिका की नॉर्थ वेस्टर्न यूनिवर्सिटी से पढ़ाई कर भारत लौटे तो सरकार के मातहत बतौर सूचना अधिकारी काम करने लगे। हालाँकि यहाँ पर भी इनके अंदर का पत्रकार ज़िंदा रहा, जिसने इनके न्यूज़ एजेंसी यूनाइटेड न्यूज़ ऑफ़ इंडिया (यूएनआई) में जाने का रास्ता साफ किया। नैयर यूएनआई में बतौर संपादक चले गए।
 
यूएनआई के प्रायोजक द हिन्दू, हिन्दुस्तान टाइम्स, अमृत बाज़ार पत्रिका, हिन्दुस्तान स्टैंडर्ड, आनंद बाज़ार पत्रिका, नेशन और डेक्कन हेराल्ड थे। कुलदीप नैयर ने न सिर्फ यूएनआई को मज़बूती दी, बल्कि इसे ब्रेकिंग और ख़ास ख़बर का अड्डा बना दिया। यूएनआई के बाद वे पीआईबी, द स्टैट्समैन एवं इंडियन एक्सप्रेस के साथ लंबे समय तक जुड़े रहे। कुलदीप नैयर 25 वर्षों तक द टाइम्स लंदन के संवाददाता भी रहे।
 
आपातकाल के साथ जैसे जयप्रकाश नारायण और जनता पार्टी का नाम जुड़ा है, कुलदीप नैयर के नाम का भी उन दिनों ख़ूब ज़िक्र होता रहा। 1975 के उन वर्षों को याद करें तो वे बड़े गहमा-गहमी के वर्ष थे। यूनिवार्ता की स्थापना और शुरूआत करके वे स्टैट्समैन में उन दिनों काम कर रहे थे। 1977 के दौर में वह इंडियन एक्सप्रेस में आए। इंडियन एक्सप्रेस में कुलदीप नैयर 'बिटवीन द लाइन्स' नाम से कॉलम लिखते थे। इसमें वे सरकार के क्रिया-कलाप की ख़ूब खिंचाई करते थे। हालाँकि, तब आपातकाल लागू था। फिर भी उन्होंने अपनी कलम नहीं रोकी। सत्ता की तानाशाही के ख़िलाफ़ वे लिखते रहे। आख़िरकार सरकार ने उनकी कलम को विराम देने के लिए उन्हें जेल का रास्ता दिखा दिया था।
 
कुलदीप नैयर पत्रकारिता और राजनीति में अपने सार्थक प्रयास के लिए पहचाने जाते हैं। वे अनेक स्कूप (जो ख़बर किसी को न मिले) के लिए मशहूर हैं। उदाहरण के तौर पर कुलदीप नैयर ने ही सबसे पहले यह ख़बर 1976 में दी कि इंदिरा गांधी लोकसभा का चुनाव कराने जा रही हैं। तब देश में आपातकाल का दौर चल रहा था।
 
सन 1985 से उनके द्वारा लिखे गए 'सिन्डिकेट कॉलम' विश्व के अस्सी से ज़्यादा पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे। बिटवीन द लाइन्स, डिस्टेंट नेवर: ए टेल ऑफ़ द सब कॉन्टिनेंट, इंडिया आफ्टर नेहरू, वॉल एट वाघा, इंडिया पाकिस्तान रिलेशनशिप, इंडिया हाउस, स्कूप, (सभी अंग्रेज़ी में) जैसी किताबों के अलावा 'द डे लुक्स ओल्ड' के नाम से प्रकाशित कुलदीप नैयर की आत्मकथा भी काफी चर्चित रही।
 
वे सन् 1990 में ब्रिटेन के उच्चायुक्त नियुक्त किए गए। उन्हें सन 1999 में नॉर्थवेस्ट यूनिवर्सिटी द्वारा एल्यूमिनी मेरिट अवॉर्ड मिला। वे 1996 में भारत की तरफ़ से संयुक्त राष्ट्र संघ में भेजे गए प्रतिनिधि मंडल के सदस्य भी रहे। अगस्त 1997 में राज्यसभा के मनोनीत सदस्य के रूप में वे निर्वाचित हुए। सरहद संस्था की ओर से दिया जाने वाला संत नामदेव राष्ट्रीय पुरस्कार 2014 पत्रकार कुलदीप नैयर को मिला। 23 नवम्बर 2015 को कुलदीप नैयर को पत्रकारिता में आजीवन उपलब्धि के लिए रामनाथ गोयनका स्मृ़ति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 23 अगस्त 2018 को दिल्ली में उनका देहांत हो गया।
 
स्व. विनोद मेहता
विनोद मेहता जाने माने पत्रकार, आउटलुक पत्रिका के संस्थापक एवं मुख्य संपादक थे। पत्रकारिता के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए विनोद मेहता को प्रतिष्ठित जीके रेड्डी मेमोरियल पुरस्कार और यश भारती पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। संपादक, लेखक और टेलीविज़न टिप्पणीकार की अपनी लंबी पारी के दौरान विनोद मेहता मेज़ पर हाज़िरजवाबी, बेबाकी और निष्पक्षता लेकर आए। इस वजह से वह देशभर और पूरी दुनिया में अपने पाठकों एवं दर्शकों, यहाँ तक कि दोस्तों और दुश्मनों के भी चहेते बने रहें।
 
विनोद मेहता अपने दौर के सबसे प्रयोगधर्मी संपादक रहे। उन्होंने अपने पत्रकारीय करियर की शुरुआत प्लेबॉय के भारतीय संस्करण डेबोनियर के संपादक के तौर पर की। मैगजीन से शुरू हुआ उनका सफ़र हार्डकोर न्यूज़ की दुनिया के सबसे कद्दावर संपादक के रूप में पूरा हुआ। उन्होंने अपने इस सफ़र के दौरान भारत के सबसे पहले साप्ताहिक अख़बार, द संडे ऑब्ज़र्वर को शुरू किया। इसके बाद इंडियन पोस्ट और इंडिपेंडेंट जैसे अख़बारों को संभाला। पायनियर के दिल्ली संस्करण की शुरुआत की और इन सबके बाद क़रीब डेढ़ दशक तक आउटलुक समूह की दस पत्रिकाओं का संपादन किया, जिसमें आउटलुक भी शामिल है, जिसने भारतीय समाचार पत्रिकाओं में सबसे लोकप्रिय पत्रिका इंडिया टुडे को पीछे छोड़ दिया था।
 
एक पत्रकार और संपादक के तौर पर विनोद मेहता का बायोडाटा बेहद कामयाब और चमकदार रहा। इतना ही नहीं, उनके तमाम अख़बार और पत्रिकाओं ने अपने लुक और कंटेंट से एक ख़ास पहचान बनाई। लम्बी बीमारी के कारण 8 मार्च, 2015 को इनका निधन हो गया। वे 73 वर्ष के थे।
 
वेद प्रताप वैदिक
वेद प्रताप भारत के प्रसिद्ध राजनीतिक विश्लेषक, वरिष्ठ पत्रकार और हिन्दी प्रेमी हैं। उन्होंने हिन्दी समाचार एजेंसी भाषा के संस्थापक संपादक के रूप में एक दशक तक 'प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया' में काम किया। इसके पूर्व वे नवभारत टाइम्स में संपादक भी रहे। उस समय नवभारत टाइम्स सर्वाधिक पढ़ा जाने वाले हिन्दी समाचार पत्र था। इस समय वे भारतीय भाषा सम्मेलन के अध्यक्ष तथा नेटजाल.कॉम नामक बहुभाषी पोर्टल के संपादकीय निदेशक हैं। अंग्रेज़ी पत्रकारिता के मुकाबले हिन्दी में बेहतर पत्रकारिता का युग आरम्भ करने वालों में डॉ. वैदिक का नाम अग्रणी है। उन्होंने सन् 1958 से ही पत्रकारिता प्रारंभ कर दी थी।
 
वह अपने बयानों के कारण सुर्खियों में बने रहे। अर्नब गोस्वामी को नीच आदमी कहने का मामला बहुत चला। कश्मीर पर उनके बयान और पाकिस्तान जाकर हाफिज़ सईद का इंटरव्यू लेना, जैसे मामले उनकी किरकिरी करवा चुके हैं। विदेश नीति में उनकी अच्छी पकड़ मानी जाती है।
 
अरुण शौरी
अरुण शौरी भारत के पत्रकार, लेखक, बुद्धिजीवी एवं राजनेता हैं। वे 1968-72 और 1975-77 के दौरान विश्व बैंक में अर्थशास्त्री थे। वे भारत के योजना आयोग में सलाहकार भी रह चुके हैं। वे इंडियन एक्सप्रेस एवं टाइम्स ऑफ़ इंडिया नामक अंग्रेज़ी पत्रों के संपादक थे तथा सन् 1998-2004 तक भारत सरकार में मंत्री थे। हालाँकि अरुण शौरी मुख्य रूप से भाजपा के साथ ज़्यादा जुड़े रहे और राजनीति में ज़्यादा प्रवृत्त रहे। इसीलिए उन्हें पत्रकार कम और एक राजनेता के रूप में ज़्यादा देखा जाता है।
 
अर्नब गोस्वामी
अर्नब गोस्वामी एक पत्रकार हैं। वह मुख्य संपादक और टाइम्स नाउ नामक समाचार चैनल के एंकर रह चुके हैं। द न्यूज़ अवर, नामक सीधा प्रसारण होने वाले शो को वह एंकर करते थे। वह एक विशेष टीवी कार्यक्रम की मेज़बानी करते थे, जिसका नाम था फ्रैंकली स्पीकिंग विद अर्नब, जिसमें प्रख्यात लोग शामिल होते थे।
 
अर्नब ने अपनी जीवन यात्रा की शुरुआत द टेलीग्राफ (कोलकाता) से की थी। जहाँ उन्होंने एक वर्ष समाचार पत्र के संपादक के रूप में काम किया। फिर 1995 में उन्होंने ने 'द टीवी' में काम करना शुरू किया, जहाँ वह एक दैनिक समाचार के एंकर थे और न्यूज़ टुनाइट नामक एक कार्यक्रम की रिपोर्टिंग करते थे। बाद में अर्नब एनडीटीवी का मुख्य हिस्सा (1998) बन गए। एनडीटीवी 24x7 के वरिष्ठ संपादक होने के कारण वह पूरे चैनल के प्रकरण के संपादन के ज़िम्मेदार थे।
 
अर्नब देश के टॉप रेटेड समाचार विश्लेषण कार्यक्रम के एंकर रह चुके हैं। जिसके कारण उनको 2004 में बेस्ट न्यूज़ एंकर के लिए एक पुरस्कार भी मिला था। उन्होंने एनडीटीवी में लंबे समय तक काम किया और फिर टाइम्स नाउ नामक समाचार चैनल लाँच किया, जिसमें वे न्यूज़ अवर नामक कार्यक्रम के एंकर थे। वह फ्रैंकली स्पीकिंग विद अर्नब नामक शो को भी होस्ट किया करते थे। उन्होंने कुछ किताबें भी लिखी हैं, जैसे - कम्पैटिबल टेरिरिज्म, द लीगल चैलेंज आदि।
 
अर्नब गोस्वामी विवादित शख़्सियत भी रहे हैं। उन पर खुलकर आरोप लगाए गए कि जो दल सत्ता में होता है, वे उनके क़रीब जाते हैं। विवादित महिला पत्रकार बरखा दत्त से उनकी कभी नहीं बनी और वे दोनों पत्रकारिता की सीमाएँ लांधते रहे।
 
सन 2017 में अर्नब गोस्वामी ने टाइम्स नाउ छोड़ा और ख़ुद का चैनल रिपब्लिक शुरू किया। हालाँकि इस चैनल में एनडीए के सासंद और नेता का निवेश होने का विवाद शुरू से ही उठा था।
 
आशुतोष
आशुतोष पूर्व टेलीविज़न पत्रकार हैं, जो आम आदमी पार्टी से जुड़े रहे। वे इस राजनीतिक दल के प्रवक्ता के रूप में काम करते थे। बाद में इन्होंने आम आदमी पार्टी को छोड़ दिया था। राजनीति में आने से पहले आशुतोष आईबीएन7 (टीवी18 ग्रुप) के साथ जुड़े हुए थे। वे आईबीएन7 के संचालकीय संपादक थे। बाद में सन 2014 में वे राजनीति में आए और लोकसभा चुनाव में उतरे। उन्होंने कांग्रेस के कपिल सिब्बल तथा भाजपा के डॉ. हर्षवर्घन के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ा। वे कपिल सिब्बल को पीछे छोड़ गए, लेकिन डॉ. हर्षवर्धन से हार गए।
 
अभिज्ञान प्रकाश
एनडीटीवी में सीनियर एग्जीक्यूटिव एडिटर अभिज्ञान प्रकाश लीक से हटकर ख़बरों की दुनिया में अपनी अलग पहचान बना चुके हैं। अपनी धीर गंभीर मुद्रा, विषय को गहराई से पेश करने की आदत व अपने मेहमानों से बात करने का उनका अंदाज़ उनकी पहचान है। वे हिंदी अख़बार दैनिक जागरण के लिए भी लिखते हैं। 1994 से अंग्रेज़ी पत्रकारिता से शुरुआत करने वाले अभिज्ञान 2003 से हिंदी पत्रकारिता की रीढ़ बनते गए। वे एक अच्छे राजनीतिक विश्लेषक माने जाते हैं, जिन्होंने भारत के कई राज्यों में चुनावों के लाइव कवरेज और विश्लेषण में अपना ख़ासा समय बिताया। न्यूज़ पॉइंट और मुकाबला नामक दो शो के ज़रिए वे आज अपनी अलग पहचान बना चुके हैं।
 
अंजना ओम कश्यप
अंजना ओम कश्यप वर्तमान में आज तक की प्रसिद्ध महिला जर्नलिस्ट व न्यूज़ एंकर हैं। वर्ष 2003 में उन्होंने दूरदर्शन पर प्रसारित कार्यक्रम 'आंखों देखी' में न्यूज़ एंकर के रूप में अपने करियर की शुरुआत की। दूरदर्शन को छोड़ने के बाद उन्होंने जी न्यूज़ में कार्य करना आरंभ कर दिया। वर्ष 2007 में न्यूज़ 24 में शामिल होने से पहले उन्होंने जी न्यूज़ में पाँच सालों तक कार्य किया। आज तक में कार्य करने से पहले वह स्टार न्यूज़ में कार्य करती थीं। उन्हें सर्वश्रेष्ठ एंकर के लिए आईटीए अवॉर्ड से सम्मानित किया गया है।
 
बरखा दत्त
बरखा दत्त एक महिला टीवी पत्रकार हैं। वो लंबे समय तक एनडीटीवी की ग्रुप एडिटर रहीं। कारगिल युद्ध के दौरान युद्ध मैदान से पत्रकारिता करने पर उन्हें काफी प्रसिद्धि मिली। हालाँकि तत्कालीन सरकार के समय बरखा दत्त को युद्ध के मैदान पर पेश करने का ये नया मीडियाई दौर विवादित भी बना रहा। बरखा दत्त को कई अंतरराष्ट्रीय व राष्ट्रीय अवॉर्ड से सम्मानित किया जा चुका है। बरखा दत्त पद्म भूषण अवॉर्ड से भी सम्मानित हो चुकी हैं। उन्होंने हिंदुस्तान टाइम्स के लिए कॉलम थर्ड आई भी लिखा है। बरखा दत्त को कॉमनवेल्थ ब्रॉडकास्टिंग एसोसिएशन अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया है।
 
आरंभ में उन्हें बहुत ख्याति मिली, किंतु सन् 2010 के दौरान नीरा राडिया टेप मामले में उनका नाम आने से बदनाम हो गईं और जगह-जगह उनका भ्रष्ट पत्रकार के रूप में विरोध होने लगा। अर्नब गोस्वामी तथा बरखा दत्त के बीच विवाद इतना बढ़ा कि वे एकदूसरे के ख़िलाफ़ अपने अपने कॉलम में लिखने लगे थे।
 
जनवरी 2017 में बरखा दत्त ने एनडीटीवी छोड़ दिया। उन्होंने वहाँ 21 साल तक काम किया था। कहा गया कि बरखा दत्त ख़ुद का साहस शुरू कर सकती हैं।
 
करण थापर
करण थापर एक पत्रकार हैं। वे टेलीविज़न कमेंटेटर और वार्तालाप विशेषज्ञ भी माने जाते हैं। वे सीएनएन-आईबीएन के साथ जुड़े हुए हैं। वे अपने शो 'डेविल्स एडवोकेट' और 'धी लास्ट वर्ड' चलाते थे। वर्तमान में वे इंडिया टुडे से जुड़े हुए हैं और 'टु द पॉइंट' तथा 'नथींग बट ट्रुथ' नामक शो होस्ट करते हैं।
 
उन्होंने लागोस, नाइजीरिया में द टाइम्स के साथ अपनी पत्रकारिता की शुरुआत की थी। उसके पश्चात उन्होंने 1981 तक भारतीय उपमहाद्वीप के ऊपर प्रमुख लेखककार की भुमिका भी निभाई। सन 1982 में उन्होंने लंदन वीकेंड टेलीविज़न में काम करना शुरू किया। वे 11 सालों तक वहाँ काम करते रहे। उसके बाद वे भारत आए और हिंदुस्तान टाइम्स टेलीविज़न ग्रुप, होम टीवी और यूनाइटेड टेलीविज़न के साथ काम किया। अगस्त 2001 में उन्होंने ख़ुद का इन्फोटेनमेंट टेलीविज़न नामक प्रोडक्शन हाउस शुरू किया। इसके तहत उन्होंने बीबीसी, दूरदर्शन तथा चैनल न्यूज़ एशिया के लिए कार्यक्रम तैयार किए।
 
वे वर्तमान समय में इन्फोटेनमेंट टेलीविज़न के अध्यक्ष हैं। करण थापर बड़े राजनेता तथा सेलिब्रिटी के साथ अपने आक्रामक वार्तालापों के लिए जाने गए। उनके ज़्यादा प्रसिद्ध शो में आई विटनेस, टुनाइट एट 10, इन फोकस विद करन, लाइन ऑफ़ फायर और वोर ऑफ़ वर्डस शुमार हैं। उसके पश्चात डेविल्स एडवोकेट और द लास्ट वर्ड भी जानेमाने शो बने, जो सीएनएन-आईबीएन तथा सीएनबीसी टीवी 18 पर प्रसारित किए गए थे। अप्रैल 2014 में थापर ने सीएनएन-आईबीएन छोड़ दिया और इंडिया टुडे ग्रुप से जुड़ गए। वहाँ उन्होंने दु द पॉइंट नामक नया शो शुरू किया।
 
प्रभु चावला
प्रभु चावला इंडिया टुडे के संपादक व इंडिया टुडे समूह के संपादकीय निदेशक हैं। रिपोर्टर और संपादक के तौर पर 25 साल में इन्होंने ऐसी घटनाओं पर व्यापक ढंग से लिखा, जिसने भारतीय राजनीति और इसे संचालित करने वालों की दिशा बदली।
 
प्रभु ने इंडिया टुडे के प्रादेशिक संस्करणों को हिंदी, तमिल, तेलुगू, मलयालम और बंगाली भाषाओं में आरंभ किया। इसके अलावा प्रभु 'आज तक' पर प्रसारित होने वाले साप्ताहिक टॉक शो 'सीधी बात' के एंकर भी रहे। इंडिया टुडे में शामिल होने से पहले प्रभु चावला दिल्ली विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के व्याख्याता थे।

 
वे इंडियन एक्सप्रेस और फाइनेंशियल एक्सप्रेस के संपादक भी रह चुके हैं। इन्होंने सामयिक घटनाओं व खोजी पत्रकारिता में जीके रेड्डी मेमोरियल अवॉर्ड और पत्रकारिता में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए फिरोज़ गांधी मेमोरियल अवॉर्ड समेत कई राष्ट्रीय पुरस्कारों को अपने नाम किया है। इन्हें 2003 में पद्म भूषण पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है।
 
नीरा राडिया के साथ उनकी तथाकथित बातचीत और उस बातचीत में उनके लहज़े ने काफी विवाद जगाया था। उस बातचीत में अनिल अंबाणी, मुकेश अंबाणी, उनके साथ ख़ुद के संबंध, उन दोनों की समझ, भारतीय न्यायतंत्र पर बातें, आदि ने ख़ूब विवाद उत्पन्न किया था।
 
प्रणब रॉय
प्रणव लाल रॉय पत्रकार तथा मीडिया पर्सनालिटी हैं। वे तथा उनकी पत्नी राधिका रॉय एनडीटीवी (न्यू दिल्ली टेलीविज़न) के सहसंस्थापक तथा को-चेयरपर्सन हैं। वे पत्रकार के साथ साथ लेखक तथा ब्रिटेन से सीए तथा अर्थशास्त्री भी हैं। प्रणव रॉय ने भारतीय चुनावी सर्वेक्षण तथा बजेट विश्लेषणों में अपनी छाप छोड़ी है। वे दूरदर्शन तथा बीबीसी न्यूज़ के क्वेश्चन टाइम इंडिया में भी दिखते रहे।
 
1988 में रॉय ने अपनी पत्नी राधिका, जो ख़ुद एक पत्रकार थीं, के साथ मिलकर न्यू दिल्ली टेलीविज़न प्रोड्क्शन हाउस शुरू किया। रॉय ने अपने करियर की शुरुआत भारत के संसदीय चुनावों के कवरेज से की थी। दूरदर्शन के साथ उन्होंने द न्यूज़ टुनाइट तथा द वल्ड धीस वीक समाचार कार्यक्रम किया। इन दोनों कार्यक्रमों को 1947 के बाद के सर्वश्रेष्ठ 5 कार्यक्रमों में स्थान मिला। उन्होंने भारत के पहले 24 घंटे के अंग्रेज़ी समाचार चैनल एनडीटीवी 24x7 को शुरू किया था।
 
वे भारत सरकार के वित्त मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार के रूप में अपनी सेवा दे चुके हैं तथा दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स के सहप्राध्यापक रह चुके हैं। उसी दौरान उन्होंने मेकरो-इकोनोमेट्रिक फोरकास्टिंग मॉडल की खोज की थी। वे इंडियन डिवीजन ऑफ़ इंटरनेशनल अकाउंटेंसी कंपनी प्राइसवॉटरहाउस कूपर्स के सलाहकार भी रह चुके हैं। 2009 के दौरान रॉय उन दो भारतीयों में शामिल थें, जो इंटरनेशनल एडवाइज़री बोर्ड ऑफ़ काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशन्स की पेनल में शामिल हो।
 
1998 के दौरान सीबीआई ने एनडीटीवी के विरुद्ध क्रिमिनल कंस्पायरेसी का मामला दर्ज किया था। उन पर दूरदर्शन के विकास कार्यक्रम में धांधली का आरोप लगा था। जुलाई 2013 में रॉय तथा एनडीटीवी, दोनों को कोर्ट ने बेकसूर पाया और उन पर भ्रष्टाचार की धारा आईपीसी सेक्शन 120-बी के तहत जो आरोप लगाए गए थे उनसे मुक्त कर दिया।
 
आ कॉम्पेंडियम ऑफ़ इंडियन इलेक्शन तथा इंडिया डिसाइड्स इलेक्शन्स 1952-1991 नामक दो पुस्तकों के वे सहलेखक रहे हैं। उनके चैनल ने कई सामाजिक मुद्दों पर अभियान भी चलाए, जैसे कि ग्रीनाथोन, 7 वंडर्स ऑफ़ इंडिया और सेव अवर टाइगर्स। 2011 के दौरान इन अभियानों को किसी न्यूज़ चैनल द्वारा चलाए गए सबसे प्रभावशाली जन सेवा अभियानों में रखा गया। 2010 में सपोर्ट माय स्कूल तथा 2011 में मार्क्स फॉर स्पोर्ट्स जेसे अभियानों ने भी काफी सुर्खियाँ बटोरी। 2011 में उनकी चैनल ने बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन के सह्योग से जीने की आशा नाम का अभियान शुरू किया, जो चाइल्ड केयर इस्यू पर आधारित था।
 
पुण्य प्रसून वाजपेयी
वे एक पत्रकार तथा न्यूज़ एंकर हैं। पुण्य प्रसून वाजपेयी समाचार चैनल आज तक के प्रमुख पत्रकार व कार्यकारी संपादक रह चुके हैं। प्रिंट मीडिया तथा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में इनका नाम ख़ासा प्रसिद्ध रहा, जिनके पास इस क्षेत्र का 20 सालों से अधिक का अनुभव है। बाजपेयी ने कई प्रतिष्ठित मीडिया एजेंसियों के साथ कार्य किया जैसे कि - जनसत्ता, संडे ऑब्ज़र्वर, संडे मेल, लोकमत, ज़ी न्यूज़, एबीपी न्यूज़ इत्यादि।
 
वर्ष 2003 में उन्होंने आज तक छोड़ा और संभवत वे एनडीटीवी के साथ जुड़े। दोबारा आज तक में लौटने से पहले उन्होंने जी न्यूज़ के प्रसिद्ध कार्यक्रम प्राइम टाइम में बतौर एंकर तथा संपादक के रूप में चार साल तक काम किया।
 
वर्ष 2005-06 और 2007-08 में, बाजपेयी को हिंदी प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए रामनाथ गोयनका पुरस्कार से सम्मानित किया गया। पुण्य प्रसून बाजपेयी ही एकमात्र पत्रकार हैं, जिन्हें रामनाथ गोयनका पुरस्कार से दो बार सम्मानित किया गया है।
 
बाजपेयी ने कई किताबें लिखी हैं, जिनमें से कुछ हैं - राजनीति मेरी जान, डिज़ास्टर: मीडिया एंड पॉलिटिक्स, संसद: लोकतंत्र या नज़रों का धोखा, आदिवासियों पर टाडा, आदि। आख़िर में वे एबीपी न्यूज़ के साथ जुड़े थे, जहाँ उनकी माने तो राजनीतिक दबाव और मीडिया हाउस के दबाव के चलते उन्हें एबीपी न्यूज़ को अलविदा कहना पड़ा था।
 
निधि राजदान
निधि राजदान एक महिला पत्रकार हैं, जो मुख्य रूप से एनडीटीवी के समाचार शो लेफ्ट राइट एंड सेंटर में काम करती हैं। वे एनडीटीवी 24*7 के लिए काम करती हैं। 1999 से अपने करियर की शुरुआत करने वाली निधि राज़दान ने अपने करियर में कई समाचार कार्यक्रमों को कवर किया हैं और कई श्रृंखलाओं की मेज़बानी की है। उन्हें वर्ष 2011 में कम्युनिकेशन (इलेक्ट्रॉनिक जर्नलिज़म) के क्षेत्र में टीचर एचीवमेंट अवॉर्ड (टीएए) से सम्मानित किया गया था। निधि जम्मू-कश्मीर और उत्तर-पूर्वी भारत के संवेदनशील क्षेत्रों से रिपोर्ट करने के लिए रामनाथ गोयनका पुरस्कार से सम्मानित हो चुकी हैं।
 
रजत शर्मा
रजत शर्मा, न्यूज़ चैनल इंडिया टीवी के चेयरमैन और एडिटर-इन-चीफ़ हैं। टेलीविज़न में आने से पहले शर्मा 10 वर्षों तक प्रिंट मीडिया में रहे, जहाँ उन्होंने मुख्य राष्ट्रीय प्रकाशनों में संपादक की भूमिका को निभाया। 1995 में उन्होंने भारत के पहले प्राइवेट टेलीविज़न न्यूज़ बुलेटिन की शुरुआत की।
 
उन्हें लोकप्रिय शो 'आप की अदालत' के लिए ज़्यादा जाना जाता है। यह शो पिछले 18 वर्षों से लगातार दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित करने में कामयाब रहा है। भारतीय टेलीविज़न के इतिहास में सबसे लंबे समय तक चलने वाले टेलीविज़न शो 'आप की अदालत' में उन्होंने 750 से अधिक प्रसिद्ध व्यक्तियों के साथ विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की। इस शो के कारण उन्हें कई बार बेस्ट एंकर अवॉर्ड से नवाज़ा गया। इसके अलावा शर्मा को इंडियन टेलीविज़न एकेडमी लाइफटाइम एचीवमेंट अवॉर्ड भी प्राप्त हुआ है।
 
उन पर इंडिया टीवी में काम करने वाली पत्रकार तनु शर्मा ने गंभीर आरोप लगाए थे। तनु शर्मा ने रजत शर्मा तथा उनकी पत्नी रितु धवन पर जिस्मफ़रोशी कराने का आरोप लगाया था। तनु शर्मा ने इस विवाद में अनीता शर्मा बिष्ट और एमएन प्रसाद के भी नाम लिए थे।
 
राजदीप सरदेसाई
उनकी पहली सबसे बड़ी पहचान यही है कि वे भारत के प्रसिद्ध क्रिकेटर स्व. दिलीप सरदेसाई के पुत्र हैं। राजदीप सरदेसाई ने 1994 में न्यू दिल्ली टेलीविज़न (एनडीटीवी) में एक राजनीतिक संपादक की हैसियत से प्रवेश करते हुए टेलीविज़न पत्रकारिता में पदार्पण किया। उन्हें ख़ास तौर से गुजरात दंगों पर कवरेज करने से पहचान मिली।
 
राजदीप सरदेसाई ने बाद में अमेरिकी न्यूज़ हाउस सीएनएन तथा राघव बहल के टीवी18 के साथ मिलकर अपनी ख़ुद की कंपनी ग्लोबल ब्रॉडकास्ट न्यूज़ (जीबीएन) शुरू करने के लिए एनडीटीवी छोड़ दिया। वे सीएनबीसी के भारतीय संस्करण सीएनबीसी-टीवी18, हिंदी उपभोक्ता चॅनल सीएनबीसी आवाज़ एवं एक अंतर्राष्ट्रीय चॅनल SAW ब्रॉडकास्ट करते हैं। इस नए चैनल, जिसमें राजदीप सरदेसाई प्रमुख संपादक हैं, को सीएनएन-आईबीएन नाम दिया गया। 17 दिसंबर 2005 को इसका पहला प्रसारण हुआ। राजदीप की कंपनी द्वारा चैनल की 46 फ़ीसदी हिस्सेदारी ख़रीद लेने के बाद चैनल 7 भी इसी की छत्रछाया में आ गया। उसके बाद से चैनल7 को आईबीएन-7 का नाम दिया गया।
 
राजदीप सरदेसाई वर्तमान में एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया के अध्यक्ष हैं। वे जनसंख्या परिषद तथा भारतीय प्रेस क्लब के सदस्य भी हैं। वे अंग्रेज़ी दैनिक समाचार पत्रों के लिए कॉलम भी लिखते हैं। ''हाई प्रोफाइल मिनिस्टर ने गुजरात दंगों की कवरेज न करने की धमकी दी थी, कहा था कि चैनल बंद कर देंगे'' - राजदीप सरदेसाई का यह कथन ख़ूब विवादित रहा था।
 
रवीश कुमार
रवीश कुमार एक भारतीय टीवी एंकर, लेखक और पत्रकार हैं। वे भारतीय राजनीति और समाज से संबंधित विषयों व समस्याओं को अपने अलग अंदाज़ में उजागर करने के लिए प्रसिद्ध हैं। वे एनडीटीवी इंडिया पर वरिष्ठ कार्यकारी संपादक हैं। उनके प्रसिद्ध कार्यक्रमों में प्राइम टाइम विद रवीश, हम लोग और रवीश की रिपोर्ट सुर्खियाँ बटोरते रहे हैं।
 
अपनी तल्ख़ भाषा और राजनीतिज्ञों को निशाना बनाने के कारण वे हमेशा राजनीतिक समर्थकों के निशाने पर रहे। उन्हें दलित चिंता के नाम पर सीमाएँ लांधने वाला आदमी भी कहा जाने लगा। पत्रकारिता तथा मीडिया की संदेहात्मक शैली पर वार करते हुए कार्यक्रम करने के बाद वे ख़ुद मीडिया के निशाने पर आए। सत्ताधारी दल की सीधी आलोचना वाले कार्यक्रमों के कारण भी सत्ता दल की नाराज़गी का शिकार होते रहे। उनका कार्यक्रम प्राइम टाइम विद रवीश कुमार काफी प्रचलित रहा। वे सत्तादल के समर्थकों की नाराजगी का शिकार भी बनते रहे।
 
चुनावों के दौरान किसी दल की जीत या हार पर नहीं, किंतु ग्रामीण और उप शहरी जीवन के पहलुओं, समस्याओं और आकांक्षाओं को ज़्यादा महत्व देने की शैली तथा ज़मीन पर लोगों की ज़रूरतें और नेताओं के दावों का सच बताने के अपने अंदाज़ से वे लोकप्रिय बनें। इन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य, राजनीति, मीडिया आदि विषयों पर कार्यक्रमों की पूरी श्रृंखला चलाईं।
 
उन्हें राष्ट्रपति द्वारा हिन्दी पत्रिका रंग में गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार प्रदान किया गया है। इसके अलावा पत्रिका रंग में 2013 में रामनाथ गोयन्का पुरस्कार प्राप्त हुआ। सन 2014 तथा 2015 में इंडियन टेलीविज़न पुरस्कार उत्तम हिन्दी एंकर के लिए उन्हें प्राप्त हुआ।
 
2017 में इन्हें सर्वप्रथम कुलदीप नैयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। सन 2016 में द इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी 100 प्रभावशाली भारतीयों की सूची में इन्हें शामिल किया था। इन्हें साल 2019 का प्रतिष्ठित रेमन मैग्सेसे सम्मान भी मिल चुका है। वे भारत के ऐसे छठे पत्रकार हैं, जिन्हें मैग्सेसे सम्मान मिला हो। रवीश कुमार ने इश्क़ में शहर होना, देखते रहिए और रवीशपंती नामक किताबें भी लिखी हैं।
 
शेखर गुप्ता
शेखर गुप्ता पत्रकार हैं, जो बिज़नेस स्टैंडर्ड तथा साप्ताहिक नेशनल इंट्रेस्ट से जुड़े हैं, जो हर शनिवार प्रकाशित होता है। इससे पहले वे इंडिया टुडे ग्रुप के वाइस चेयरमैन रह चुके हैं। उन्होंने 19 साल तक इंडियन एक्सप्रेस के एडिटर इन चीफ़ का कार्यभार भी संभाला। वे इंडिया टुडे पत्रिका के लिए नेशनल इंट्रेस्ट नाम की साप्ताहिक कॉलम भी लिखते हैं। इसके उपरांत एनडीटीवी 24x7 के लिए वे वॉक द टॉक कार्यक्रम करते हैं, जिनमें कुछ विख्यात लोगों से वार्तालाप किया जाता है। उन्हें भारत सरकार की ओर से सन 2009 में पद्म भूषण सम्मान दिया जा चुका है।
 
सागरिका घोष
सागरीका घोष एक पत्रकार, समाचार पाठिका तथा लेखिका हैं। वे 1991 से पत्रकारिता में हैं और टाइम्स ऑफ़ इंडिया, आउटलुक तथा इंडियन एक्सप्रेक्स के साथ जुड़ी हुई हैं। वे सीएनएन-आईबीएन की उपसंपादक तथा प्राइम टाइम एंकर हैं। उन्होंने पत्रकारिकता में कुछ सम्मान भी प्राप्त किए हैं तथा दो नवलकथाएँ लिखी हैं। जुलाई 2014 में जब रिलायंस (मुकेश अंबाणी) ने सीएनएन-आईबीएन ख़रीदा, तब उन्होंने उपसंपादक के पद से इस्तीफ़ा दे दिया। अभी वे टाइम्स ऑफ़ इंडिया में संपादकीय सलाहकार हैं। वे राजदीप सरदेसाई की पत्नी हैं।
 
सुधीर चौधरी
सुधीर चौधरी एक पत्रकार हैं। वे जी न्यूज़ के संपादक हैं। वे काफी विवादित पत्रकार रहे हैं। उद्योगपति और कांग्रेस सांसद नवीन जिंदल ने एक स्टिंग ऑपरेशन की सीडी जारी कर आरोप लगाया था कि उनकी कंपनी के ख़िलाफ़ ख़बर रुकवाने के लिए सुधीर चौधरी और समीर अहलूवालिया ने उनसे 100 करोड़ रुपए मांगे थे।
 
सीएफएल जाँच में स्टिंग ऑपरेशन की सीडी सही पाई गई और फिर दिल्ली पुलिस ने कार्रवाई करते हुए सुधीर चौधरी और जी बिज़नेस के संपादक समीर अहलूवालिया को गिरफ़्तार कर लिया। जिंदल ने स्टिंग ऑपरेशन की ख़बर की सीडी जारी करते हुए कहा था कि जी न्यूज़ के संपादक सुधीर चौधरी और जी बिज़नेस के संपादक समीर अहलूवालिया ने हमारी टीम से कहा कि वे तब तक हमारे ख़िलाफ़ नकारात्मक खबरें दिखाते रहेंगे, जब तक कि हम उन्हें 100 करोड़ रुपए का विज्ञापन देने पर सहमति नहीं जताते।
 
कांग्रेस सांसद ने एक सीडी भी जारी की थी, जिसमें चौधरी को रुपये मांगते हुए दिखाया गया। वहीं जी न्यूज़ ने आरोप लगाया कि जिंदल रिश्वत देकर कोयला घोटाले में अपनी भूमिका से जुड़ी ख़बरों का प्रसारण रुकवाना चाहते थे। बयान में कहा गया कि जी न्यूज़ ने आगे बढ़कर कोयला घोटाले में नवीन जिंदल की कंपनी जेएसपीएल की भूमिका का खुलासा किया था। इस मामले को लेकर सुधीर चौधरी तथा समीर अहलूवालिया को कई महीने तक जेल में रहना पड़ा था।
 
अमर उजाला द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक़ सन 2007 में प्रकाश सिंह रिपोर्टर की मदद से तैयार किए गए स्टिंग में शिक्षिका उमा खुराना को स्कूली छात्राओं को यौन संबंधों के लिए ग्राहकों को पेश करते हुए दिखाया गया था। ख़बर उस समय लाइव टीवी न्यूज़ चैनल पर प्रसारित की गई थी। सुधीर तब इस चैनल के सीईओ थे। ख़बर के बाद तुर्कमान गेट स्थित सरकारी स्कूल के बाहर जमकर हंगामा हुआ। गुस्साई भीड़ ने उमा खुराना को स्कूल के बाहर खींचकर सड़क पर न केवल जान से मारने का प्रयास किया, बल्कि सरे राह उसके कपड़े फाड़ कर उसे नग्न तक कर दिया। मौक़े पर पहुंची पुलिस पर भी भीड़ ने पथराव कर दिया। पुलिस की गाड़ियों में आग लगा दी गई। लोगों के दबाव में पुलिस ने छात्राओं से यौन रैकेट चलाने के आरोप में उमा खुराना को गिरफ़्तार कर लिया।

छानबीन के बाद उमा को बेकसूर पाया गया। जाँच के बाद स्टिंग ऑपरेशन फ़र्ज़ी पाया गया। छानबीन में पुलिस के सामने जो तथ्य सामने आए उसमें पता चला कि यह फ़र्ज़ी स्टिंग पूर्वी दिल्ली निवासी चिटफंड़िए वीरेंद्र अरोड़ा के कहने पर हुआ। चिट फंड का धंधा करने वाले वीरेंद्र का उमा के साथ रुपयों का कुछ लेनदेन था। योजना के तहत उसने प्रकाश सिंह के साथ मिलकर फ़र्ज़ी तरीक़े से उमा को यौन संबंधों के लिए रुपयों की बात करते हुए दिखाया। यहाँ तक कि स्टिंग में 15 साल की एक लड़की को भी ग्राहक को पेश करते हुए दिखाया गया।
 
स्टिंग फ़र्ज़ी पाए जाने पर वीरेंद्र और प्रकाश सिंह को गिरफ़्तार कर लिया गया। सुधीर की स्टिंग ऑपरेशन में बड़ी फ़ज़ीहत हुई। बाद में ख़बर प्रसारित करने वाले न्यूज़ चैनल पर एक महीने का प्रतिबंध भी लगा दिया गया। उमा ने निजी चैनल पर मानहानि का दावा भी किया। फ़र्ज़ी स्टिंग के आरोप में प्रकाश को गिरफ़्तार करके उसके ख़िलाफ़ मामला दर्ज कर लिया गया। सुधीर को पूरी घटना का सूत्रधार बताया गया, लेकिन वो क़ानून की पकड़ में नहीं आया।
 
अपने इन विवादों के बावजूद सुधीर चौधरी ख़ास वर्ग में बेहद लोकप्रिय एंकर हैं। अपनी पत्रकारिता से कम, बल्कि एंकरिंग से ज़्यादा सुर्खियाँ बटोरने वाले सुधीर चौधरी अपने शो डीएनए (डेली न्यूज़ एनालिसिस) के लिए जाने गए।
 
श्वेता सिंह
श्वेता सिंह भारतीय टेलीविज़न की प्रसिद्ध महिला पत्रकार हैं। फ़िल्म निदेशक बनने की चाह रखने वाली यह महिला आज एक पत्रकार के रूप में प्रसिद्ध हैं। इन्होंने आज तक में शामिल होने से पहले जी न्यूज़ और सहारा के लिए काम किया। वर्ष 2005 में, उनका शो 'सौरव का सिक्स' को स्पोर्ट्स जर्नलिज़म फेडरेशन ऑफ़ इंडिया (एसजेएफआई) के द्वारा सर्वश्रेष्ठ खेल कार्यक्रम के लिए पुरस्कृत किया गया। वर्ष 2013 में श्वेता सिंह को सर्वश्रेष्ठ एंकर के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 2016 में इन्हें अलग अलग समारोह में कुल 12 सम्मान मिले थे। पौराणिक कथाओं को वास्तविक अंदाज़ में प्रसिद्ध करने के रिपोर्टों की वजह से इनकी आलोचना भी होती रही है।
 
विनोद दुआ
विनोद दुआ पद्म श्री से सम्मानित भारत के जाने माने हिंदी टेलीविज़न पत्रकार एवं कार्यक्रम निदेशक हैं। वे एनडीटीवी इंडिया के प्रमुख प्रस्तुतकर्ता एवं समाचार वाचक रहे हैं। हज़ारों घंटों के प्रसारण के अनुभवी विनोद दुआ एक राजनीतिक टिप्पणीकार, चुनावी विश्लेषक, निर्माता और निदेशक हैं। वह 2000-03 में सहारा टीवी पर प्रतिदिन दैनिक सुबह कार्यक्रम की मेज़बानी करते थे। उन्हें 2008 में पत्रकारिता के लिए पद्म श्री से सम्मानित किया गया था। वे 1996 में पत्रकारिता में बीडी गोयनका पुरस्कार द्वारा सम्मानित पहले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पत्रकार हैं। उनका जन गण मन शो काफी लोकप्रिय रहा। वे 'द वायर' के लिए भी लिखते हैं।
 
वीर सांघवी
वीर सांघवी भारतीय प्रिंट और टेलीविज़न पत्रकार, स्तंभकार, और परिचर्चा कार्यक्रम के प्रस्तुतकर्ता हैं। वह एचटी मीडिया में सलाहकार रह चुके हैं। वे टेलीविज़न की जानी पहचानी शख़्सियत हैं। वे वर्तमान में हिन्दुस्तान टाइम्स के संपादकीय निदेशक हैं। उनका कार्यक्रम 'कस्टम मेड फ़ॉर वीर सांघवी' में उनकी भारत भर की यात्रा का शो लोकप्रिय शो रह चुका है। उनकी प्रकाशित किताबें रूड फ़ूड, इंडिया देन एंड नाउ और मैन ऑफ़ स्टील दस अन्य भाषाओं में भी अनुदित हो चुकी हैं।
 
स्व. गौरी लंकेश
गौरी लंकेश कन्नड़ की स्थानीय पत्रकार थीं, जिनकी 2017 में हत्या कर दी गई थी। वे बैंगलोर से निकलने वाली कन्नड़ साप्ताहिक पत्रिका 'लंकेश' में संपादिका के रूप में कार्यरत थीं। पिता पी. लंकेश की लंकेश पत्रिका के साथ ही वे साप्ताहिक 'गौरी लंकेश' पत्रिका भी निकालती थीं। उनकी पत्रकारिता को स्थानीय लोग क्रांतिकारी पत्रकारिता भी कहते थे। माना जाता है कि अपने तीख़े लेखों और विचारों को निर्भीक रूप से प्रक्ट करने की उनकी साहसी आदत ने संभवत उनकी जान ली थी। वामपंथी विचारधारा की निकट रही गौरी लंकेश एक कड़ी आलोचक के रूप में जानी जाती थीं, जिन्होंने दक्षिणपंथियों की कार्यशैली के बारे में कड़े लेख लिखे थे। अपने जीवन के आख़िरी दिनों में फ़ेक न्यूज़ के ख़िलाफ़ हल्ला बोलने वाली गौरी लंकेश स्थानिक पत्रकारिता में बड़ा नाम था, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर उनकी पहचान उनकी मृत्यु के बाद हुई थी।
 
उपरांत विक्रम चंद्रा, मेनका दोशी, गौरव कालरा, राजीव मसंद, स्व. एचवाई नारायण दत्त, स्व. उदयन शर्मा, स्व. लाला जगत नारायण, स्व. भागवती कुमार शर्मा, स्व. नीलाभ अश्क़, रोहित सरदाना, रिचा अनिरुद्ध, निधि कुलपति, शीतल राजपूत, नीरजा शंकर चौधरी, मनोरंजन भारती, अभय दूबे, सुधीर जैन, सुहासिनी राज, सुशील बहुगुणा, अभिसार शर्मा, राज चेंगप्पा, ओम थानवी, निस्तुला हेब्बार, रामचरण जोशी, स्व. शिशिर कुमार घोष, पंकज पचौरी समेत कई अन्य चेहरे पत्रकारिता जगत में मशहूर हैं। राजनीति, सामाजिकता, अर्थतंत्र, खेल, प्रकृति से लेकर कई विषयों पर भारत में अनेक पत्रकार अपना जौहर दिखा रहे हैं। तमाम के नाम लिखना नामुमकिन है। क्योंकि भारत में छोटे कस्बे से लेकर बड़े शहरों तक, कई शख़्सियतें बतौर पत्रकार अपना उत्तरदायित्व निभा रही हैं।