लास्ट अपडेट अप्रैल 2020
टेलीविज़न भारतीयता
का एक अघोषित अभिन्न अंग रहा है। आज के दौर में भारत के तक़रीबन हर घर में टेलीविज़न
पाए जाते हैं। 1990 के दशक के बाद भारत में सूचना और प्रसारण क्षेत्र में ढेर सारी विविधताएँ आईं।
लेकिन उस दौर से पहले के भारत के टेलीविज़न दौर का अपना एक ऐसा इतिहास रहा, जिसने कभी ना भुलाए
जाने वाले संस्मरण दिए। ख़ास करके उन लोगों के मन में, जो उस दौर का गवाह
रहे हो। उस दौर के टेलीविज़न धारावाहिक से लेकर विज्ञापन तक आज भी लोगों के दिमाग में
जैसे कि छपे हुए हैं। हम बात करते हैं भारत के कुछ प्रसिद्ध टेलीविज़न धारावाहिकों
की।
चित्रहार
दुनिया में टेलीविज़न
इतिहास का यह सबसे लंबा प्रसारित होने वाला कार्यक्रम है। यह 15 अगस्त 1982 के दिन शुरू हुआ था
और बहुत ज़ल्द ही लोकप्रियता के चरम पर पहुंच गया। हर शुक्रवार को प्राइम टाइम में
तक़रीबन 30 मिनट तक चलने वाले इस कार्यक्रम में बॉलीवुड के नये पुराने गीत बजाए जाते थे।
एक दौर में, जबकि भारत में रेडियो अपनी लोकप्रियता के चरम पर था तब गीतों को उनके ऑडियो सहित
वीडियो फॉर्म में सिनेमा के अलावा टीवी पर देखना नया अनुभव था। संभवत: चित्रहार आज
भी चल रहा है।
हम लोग
हम लोग भारतीय टीवी
पर प्रसारित होने वाला पहला धारावाहिक और पहली नाटक श्रृंखला थी, जो दूरदर्शन पर राष्ट्रीय
प्रसारण के रूप में 7 जुलाई 1984 से प्रारंभ हुई थी। 'हम लोग' को पहला धारावाहिक इसलिए कहते हैं, क्योंकि इससे पहले भी कुछ शो आते थे लेकिन
उनका प्रसारण क्षेत्रीय था, जैसे मुंबई, दिल्ली या कलकत्ता केंद्र में हुआ करता था। हम लोग धारावाहिक को पहली बार पूरे
देश में एक साथ दिखाया गया था। मध्यम और निम्नवर्गीय परिवार के जीवन के रोज़मर्रा के
संघर्षों और उम्मीदों को इसमें दर्शाया गया था। इस सीरियल ने अपनी लोकप्रियता के सारे
रिकॉर्ड तोड़ दिए। 7 जुलाई 1984 को इसे पहली बार दूरदर्शन पर टेलीकास्ट
किया गया। 156 एपिसोड में चले इस सीरियल को मनोहर श्याम जोशी ने लिखा था। इस नाटक को भारत की
80 प्रतिशत से ज़्यादा
आबादी देखा करती थी, जिनके पास टीवी हुआ करते थे। ये उस दशक की सबसे सफल नाटकीय श्रृंखला थी।
ये जो है ज़िंदगी
साल 1984 में अपने टीवी पर
प्रदर्शन के समय से ही 'ये जो है ज़िंदगी' ने प्रसिद्धि पा ली थी और दर्शकों को लुभाने में यह बेहद कामयाब साबित हुआ। यही
वजह रही कि इसे दो सीज़न में बनाया गया। हालाँकि दूसरा सीज़न पहले सीज़न की सफलता
और लोकप्रियता दोहरा नहीं पाया। यह एक सिचुएशन कॉमेडी पर आधारित शो था, जिसे शार्ट फॉम में
सिटकॉम कहा जाता है। इसमें संवादों और परिस्थितियों के द्वारा हास्य पैदा किया गया
था। इसे हास्य विधा में सिद्धहस्त शरद जोशी ने लिखा था और कुंदन शाह, एसएस ओबेरॉय तथा रमन
कुमार इसके निदेशक थे। हर अंक क़रीब 20 से 25 मिनट लंबा था और इसका प्रसारण शुक्रवार को रात 9 बजे किया जाता था।
धारावाहिक में एक ख़ास बात थी कि हर एपिसोड में सतीश शाह अलग पात्र में होते थे। हर
नए अंक में इनका पेशा बदला हुआ होता था। साथ ही साथ यह भारत के अलग अलग इलाक़ों से
ताल्लुक़ रखते थे। इस धारावाहिक की वजह से सतीश शाह को कॉमेडी किंग कहा जाने लगा।
करमचंद
भारतीय जासूसों की
दर्शकों में लोकप्रियता की चरम सीमा पहली बार जासूस करमचंद के साथ देखी गई। साल 1985 में पहली बार भारतीय
दर्शकों के बीच पेश किए गए करमचंद का टाइटल इसके मुख्य पात्र जासूस करमचंद के नाम
पर आधारित था, जो अपनी सहायक किट्टी के साथ मिलकर अपराध के रहस्यों से पर्दा उठाता है। जासूस
करमचंद का निर्देशन पंकज पाराशर ने किया था। पंकज कपूर की उम्दा अभिनय शैली का ऐसा
ग़हरा असर देखा गया कि लोग उन्हें उनके असली नाम के बज़ाए जासूस करमचंद के नाम से ही
पहचानने लगे। करमचंद का धूप का चश्मा पहन गाजर खाते हुए हत्याओं के पीछे छुपे रहस्यों
का पर्दाफ़ाश करने की अनोखी कहानियों ने दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया। करमचंद का
गाजर खाने का स्टाइल, अपनी सहायक की ग़लत मौक़ों पर बोलने की आदत पर 'शट अप' कहने का अनोखा अंदाज़ और सही क़ातिल को खोज निकालने में माहिर होना दर्शकों के
मन में बस गया। करमचंद की सहायक के रूप में किट्टी को दर्शकों का काफ़ी अच्छा प्रतिसाद
मिला। इस पात्र को सुष्मिता मुखर्जी ने निभाया था। निदेशक पंकज पाराशर ने 2007 में एक बार फिर करमचंद
की भूमिका में पंकज कपूर को लेकर सोनी टेलीविज़न के लिए करमचंद बनाकर पुरानी लोकप्रियता
को दोहराना चाहा, परंतु असफलता हाथ लगी।
रजनी
साल 1985 में दूरदर्शन पर प्रसारित
'रजनी' सीरियल ने अपनी अलग
पृष्ठभूमि और मुद्दों को लेकर भारतीय दर्शकों में लोकप्रियता हासिल की। बासु चटर्जी
द्वारा निर्देशित रजनी में प्रिया तेंदुलकर की मुख्य भूमिका थी। सीरियल में उस दौर
के ढीले रवैये वाले ऑफ़िसों और कर्मचारियों में जागरूकता लाने की कोशिश दर्शकों को
ख़ूब भाई। करण राजदान, जो इसमें मुख्य भूमिका में भी नज़र आए, ने इसे लिखा था। रजनी की लोकप्रियता का आलम यह था कि स्वयं तत्कालीन सूचना और
प्रसारण मंत्री को रजनी सीरियल बंद किए जाने संबंधी अफ़वाहों पर बयान देना पड़ा था।
बुनियाद
भारत में टेलीविज़न
आने के शुरुआती दौर में बुनियाद सीरियल ने भी अपने दर्शकों के बीच खासी जगह बनाई। यह
सीरियल भी हम लोग सीरियल के समकालीन ही था। इसे 1986 में पहली बार दूरदर्शन पर ही प्रसारित किया गया। यह भारत-पाकिस्तान
विभाजन त्रासदी पर आधारित था। इसे रमेश सिप्पी और ज्योति ने निर्देशित किया। इस नाटक
की लोकप्रियता इतनी थी कि इसे सालों बाद कई निजी चैनलों ने भी ऑन एयर किया था। बुनियाद
ने हिंदी टीवी और सिनेमा को ऐसे कलाकार दिए जो आज भी फ़िल्म एवं टीवी जगत में सक्रीय
हैं। ये नाटक दूरदर्शन के इतिहास में दूसरा सबसे लंबे समय तक चलने वाला धारावाहिक था।
ये लोगों को इसलिए भी पसंद आया, क्योंकि इसमें सयुंक्त परिवार को टूटते हुए दर्शाया
गया था, जो उस समय जनता की मनोदशा थी। इस नाटक के हर किरदार ने जनता पर अपनी एक छवि बनाई
थी। इस नाटक का प्रभाव ना केवल भारत में था, बल्कि विदेशों में रहने वाले अप्रवासी भारतीय और अप्रवासी पाकिस्तानी भी इस नाटक
को ख़ूब पसंद करते थे।
नुक्कड़
नुक्कड़ ने साल 1986 और 1987 में टेलीविज़न पर
अपनी ख़ास पहचान बनाई। कुंदन शाह और सईद मिर्ज़ा द्वारा निर्देशित इस धारावाहिक की कहानी
प्रबोध जोशी द्वारा लिखित थी। दिलीप धवन, रमा विज, पवन मल्होत्रा, संगीता नाईक और अवतार गिल की इसके अहम भूमिकाएँ थीं। अपने प्रदर्शन के दिनों में
इसकी लोकप्रियता चरम पर थी। इसके कुछ पात्र जैसे खोपड़ी, कादिर भाई और घंषु
भिखारी घर-घर में पहचाने जाने लगे। नुक्कड़ ने 80 के दशक में प्रसारित किए जाने वाले तीन सबसे अधिक लोकप्रिय
धारावाहिकों में अपनी जगह बना ली थी।
रामायण
सन् 1987 से लेकर 1988 तक दूरदर्शन पर प्रसारित
इस धारावाहिक में पहली बार जनता ने अपने आस्था के प्रतीक श्री राम को छोटे पर्दे पर
जीवंत देखा। रामानंद सागर द्वारा निर्देशित इस सीरियल की लोकप्रियता की भी किसी से
तुलना नहीं हो सकीं। दरअसल उस दौर में, जबकि भारत में टेलीविज़न चंद घरों में ही पहुंचा था और रामचरित मानस और वाल्मीकि
रामायण मंदिरों, घरों और गाँव की चौपालों में आस्था और श्रद्धा के साथ गाई जाती थी, ऐसे दौर में रामायण
का पर्दे पर आकार लेना लोगों के लिए न केवल कौतूहल था, बल्कि अपनी भक्ति
के आराध्य का जीवंत होना भी था। अरुण गोविल की लोकप्रियता राम के रूप में आज भी प्रासंगिक
है तथा सीता माता के रूप में लोग दीपिका चिखलिया का किरदार अब तक नहीं भूले हैं। इसके
अलावा दारा सिंह (हनुमानजी), सुनील लाहिरी (लक्ष्मण), ललिता पवार (मंथरा), अरविंद त्रिवेदी (रावण) आदि कलाकारों ने इसमें अभिनय किया था। इस धारावाहिक की
ख़ासियत यह थी कि इसके सभी पात्र, चाहे वो मुख्य हो या सहायक हो, सभी ने लोगों के दिमाग पर अपनी एक छाप छोड़ी थी। मार्च-अप्रैल 2020 के दौरान कोरोना कोविड19 वायरस की वैश्विक
त्रासदी के समय भारत में लॉकडाउन के बीच रामायण को फिर एक बार दूरदर्शन पर प्रसारित
किया गया था।
महाभारत
2 अक्टूबर 1988 को पहली बार प्रसारित हुए महाभारत ने भारतीय जनमानस की आत्मा को छू लिया। देश
की जनता ने केवल चंद पन्नों में दर्ज अपनी आस्था की किताब और उसके महाविशाल कथानक को
पहली बार टीवी नाम के डिब्बे में देखा। श्री कृष्ण, भीष्म, भीम, अर्जुन, कुंती माता, द्रौपदी और युधिष्ठिर
आदि के चरित्र को देख पूरा देश मानों टीवी से चिपक जाता था। निर्माता बीआर चोपड़ा और
निदेशक रवि चोपड़ा का यह सीरियल भारतीय टेलीविज़न के इतिहास का सबसे लोकप्रिय सीरियल
बन गया। यह पूरे दो साल चला। यह 24 जून 1990 तक प्रसारित किया गया। महाभारत का प्रत्येक एपिसोड 45 मिनट का हुआ करता
था और यह सप्ताह में केवल एक दिन, यानी रविवार को दिखाया जाता था। महाभारत की लोकप्रियता इतनी थी कि इसके शुरू होते
ही शहरों की गलियाँ, मोहल्ले और महानगरों की कॉलोनियाँ सन्नाटे में डूब जाती थीं। इस धारावाहिक जितनी
लोकप्रियता भारत में किसी भी धारावाहिक को नहीं मिली। इस सीरियल का सबसे ख़ास हिस्सा
'मैं समय हूँ' था। रामायण की तरह
ही महाभारत धारावाहिक के सभी पात्र बेहद लोकप्रिय रहे। हर पात्रों के संवाद तथा क्रिया
ख़ास्सी चर्चा में रहा करती थी।
विक्रम और बेताल
विक्रम और बेताल दूरदर्शन
पर 1985 के दौर में प्रसारित होने वाला धारावाहिक था, जिसे आज भी याद किया जाता है। यह एक उपन्यास आधारित धारावाहिक
था, जिसे संस्कृत में
लिखा गया था। इस धारावाहिक में अरुण गोविल ने राजा विक्रमादित्य का तथा सज्जन कुमार
ने बेताल का किरदार निभाया था। इस धारावाहिक को सागर प्रोडक्शन द्वारा निर्मित किया
गया था। यह धारावाहिक विक्रम-बेताल की कथाओं पर आधारित था। दरअसल इस धारावाहिक का प्रसारण
रामायण धारावाहिक से पहले हुआ करता था और इसी धारावाहिक के कई मुख्य किरदारों को रामायण
धारावाहिक में देखा गया था।
चंद्रकांता
सन् 1994 में दूरदर्शन पर प्रसारित
होने वाला यह धारावाहिक बेहद लोकप्रिय था। देवकीनंदन खत्री के उपन्यास पर आधारित इस
धारावाहिक के निर्माता नीरजा गुलेरी थे, जबकि इसका निर्देशन सुनील अग्निहोत्री ने किया था। राजा वीरेंद्र सिंह के रोल
में शाहबाज़ ख़ान और चंद्रकांता के किरदार में शिखा स्वरूप ने बेहतरीन एक्टिंग की थी।
इस सीरियल के नकारात्मक किरदार क्रूर सिंह को तथा उसके संवाद 'यक्कू' को लोगों ने काफ़ी सराहा। क्रूर सिंह के
अलावा जादुई अय्यार, पंडित जगन्नाथ ऐसे चरित्र थे, जो हर किसी की ज़बान पर थे। विजयगढ़ व नौगढ़ रियासतों
की इस कहानी को काफ़ी पसंद किया गया। सीरियल देखने के लिए बड़ी बेसब्री से रविवार की
सुबह का इंतज़ार किया जाता था।
भारत एक खोज
दूरदर्शन पर प्रसारित
होने वाले इस धारावाहिक को हिंदी सिनेमा के सर्वोच्च सम्मान दादा साहेब फाल्के पुरस्कार
से सम्मानित श्याम बेनेगल ने बनाया था। यह भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू
की किताब डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया पर आधारित था। इस सीरियल का मूल प्रसारण 1988 से किया गया और यह
दूरदर्शन पर काफ़ी लोकप्रिय भी रहा। यह भारत की 5000 बर्षों की गाथा का 53 एपिसोड का सीरियल था। इसमें भारत की प्राचीन सभ्यता से लेकर भारत की आज़ादी तक
की प्रमुख घटनाओं का वर्णन किया गया था।
मालगुडी डेज़
मालगुडी डेज़ को आरके
नारायण द्वारा रचित विभिन्न कहानियों के आधार पर बनाया गया था। साल 1986 में पहली बार दूरदर्शन
पर प्रसारित किए जाने के बाद इसका एक बार फिर दूरदर्शन पर, सोनी एंटरटेनमेंट
टेलीविज़न और तेलुगु भाषा में माँ टेलीविज़न पर प्रसारण किया गया। मालगुडी डेज़ में
हर एपीसोड में एक नई कहानी दिखाई जाती थी। आम लोगों के जीवन में होने वाली साधारण घटनाओं
पर आधारित इस सीरीज़ ने अपने प्रसारण के समय से अगले कई सालों तक लोगों में लोकप्रियता
बनाए रखी।
वागले की दुनिया
वागले की दुनिया साल
1988 में दूरदर्शन पर प्रदर्शित किया गया कॉमेडी सिटकॉम था। कुंदन शाह, जिन्होंने 1983 में प्रदर्शित कॉमेडी
'जाने भी दो यारों' और 'नुक्कड़' से प्रसिद्धी पाई
थी, द्वारा निर्देशित
वागले की दुनिया प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट आरके लक्ष्मण के एक मध्यम वर्गीय आम आदमी पर
आधारित थी। अंजन श्रीवास्तव ने इसमें वागले की भूमिका निभाई थी। भारती आचरेकर ने वागले
की पत्नी का किरदार निभाया था। वागले की दुनिया की लोकप्रियता इस कदर थी कि अंजन श्रीवास्तव
को घर-घर में पहचाना जाने लगा था। यह धारावाहिक एक सेल्स क्लर्क के हर दिन सामने आने
वाली मुसीबतों को बयां करता था, जिसकी मध्यम वर्गीय सोच उसके काम पर भी असर डालती है। वागले की दुनिया में शाहरुख
ख़ान ने भी एक अतिथि भूमिका निभाई थी।
मुंगेरीलाल के हसीन
सपने
वर्ष 1989 में नेशनल दूरदर्शन
पर रघुवीर यादव अभिनीत हास्य धारावाहिक 'मुंगेरीलाल के हसीन सपने' का प्रसारण हुआ करता
था। मुंगेरी दिन में जागते हुए भी सपने देखा करता था। प्रसिद्ध हास्य अभिनेता राजपाल
यादव को इसी धारावाहिक से पहचान मिली थी। इस धारावाहिक का निर्देशन उन्हीं प्रकाश झा
ने किया था, जिन्होंने बाद में अपहरण और गंगाजल जैसी हिट फ़िल्में बनाई।
फौजी
वर्ष 1989 में दूरदर्शन पर प्रसारित
किए गए फौजी को शाहरुख ख़ान का पहला टीवी धारावाहिक माना जाता है। हालाँकि हक़ीक़त
में इससे पहले वह 'वागले की दुनिया' में मेहमान भूमिका में नज़र आ चुके थे और 'दिल दरिया' नाम के धारावाहिक में एक ख़ास भूमिका निभा चुके थे। सेना में दी जाने वाली मुश्किल
ट्रेनिंग पर आधारित इस धारावाहिक में सैनिकों के ख़याल, भावनाओं, परिवार और उनकी
भावनाओं को एक अलग दृष्टिकोण पेश किया गया था। फौजियों की कठिन ज़िंदगी को उकेरता हुआ
यह धारावाहिक दर्शकों को सैनिकों की ज़िदंगी से जुड़े अनछुए पहलूओं को दिखाने में बेहद
कामयाब रहा और सालों के लिए अपनी छाप छोड़ गया।
रंगोली
हर रविवार की सुबह
लोगों को दूरदर्शन पर आने वाले गानों के कार्यक्रम रंगोली का इंतज़ार रहता था। ज़्यादातर
पुराने गानों का यह कार्यक्रम 1989 में शुरू हुआ था। सबसे पहले प्रसिद्ध अभिनेत्री हेमा मालिनी ने इसे होस्ट किया
था। बाद में स्वरा भास्कर इसे होस्ट करती थीं। बीच में श्वेता तिवारी भी बतौर होस्ट
आई थीं।
चाणक्य
निदेशक और अभिनेता
डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी द्वारा लिखित ऐतिहासिक धारावाहिक चाणक्य, एक समय दूरदर्शन
पर प्रसारित होने वाला सबसे लोकप्रिय सीरियल था। इसमें चाणक्य की भूमिका भी डॉ. चंद्रप्रकाश
द्विवेदी ने निभाई थी। यह दूरदर्शन पर 8 सिंतबर 1991 से लेकर 9 अगस्त 1992 तक प्रसारित हुआ और देश और विदेश के भारतीय दर्शकों में बेहद लोकप्रिय हुआ।
देख भाई देख
यह 1993 से शुरू हुआ दूरदर्शन
का धारावाहिक था। इसका नाम सबसे सफल धारावाहिकों में शुमार होता है। आनंद महेंद्रू
तथा बाद में जया बच्चन इस धारावाहिक के प्रोड्युसर थे। ये दीवान परिवार के तीन पीढ़ियों
की कहानी थी, जिसमें रिश्ते, बिज़नेस और ज़िंदगी की परेशानियाँ हंस हंस कर झेलते हुए हास्य उत्पन्न किया जाता
था। इसमें नवीन निश्चल, शेखर सुमन, फ़रीदा जलाल जैसे कई जानेमाने कलाकारों ने काम किया था। अपनी सरल कहानी और स्वस्थ
मनोरंजन के कारण यह कार्यक्रम काफ़ी प्रचलित हुआ था। इस धारावाहिक को बाद में सोनी
चैनल पर भी प्रसारित किया गया था।
शांति - एक औरत की
कहानी
सन् 1994 में प्रसारित यह धारावाहिक
बेहद लंबा चला था। यह एक तरह से मेगा सीरियल था, और बेहद लोकप्रिय रहा। इसके 807 एपिसोड थे। यह सीरियल
भारत का पहला ड्रामा सीरीज़ थी। शांति के रूप में मंदिरा बेदी का किरदार एक तरह से
अमर ही हो गया।
तहक़ीक़ात
1994-95 में दूरदर्शन पर प्रसारित हुए इस जासूसी धारावाहिक में विजय आनंद और सौरभ शुक्ला
की ज़बरदस्त जोड़ी थी। विजय सैम डीसिल्वा के किरदार में थे और सौरभ शुक्ला ने गोपीचंद
का रोल निभाया था। अपने समय का यह सबसे लोकप्रिय टीवी सीरियल था।
जंगल बुक
मोगली जंगल बुक एक
एनिमेटिड सीरियल था, जिसे बच्चों को ध्यान में रखकर बनाया गया था। इस सीरियल की कहानी
का मुख्य किरदार बालक मोगली था। मोगली जंगल में खो जाता है, जिसके बाद वह जंगली
जानवरों के साथ खेल-कूदकर बड़ा होता है। जंगल जंगल बात चली है पता चला है, चड्डी पहन के फूल
खिला है फूल खिला है... जंगल बुक के यह लफ़्ज़ आज भी उतने ही लोकप्रिय बने हुए हैं।
शक्तिमान
यह दूरदर्शन पर 1997 से आने वाला धारावाहिक
था। क्रिश, रा-वन, चिट्टी जैसे सुपरस्टारों से पहले देश में शक्तिमान का अवतार रचा गया, जिसने ख़ासकर बच्चों
को दीवाना बनाया। अभिनेता मुकेश खन्ना के जीवंत अभिनय ने इस किरदार को अमर कर दिया।
सीरियल ने 400 एपिसोड सफलतापूर्वक पूरे किए और टीवी की दुनिया में छा गया। मुकेश खन्ना ने इस
धारावाहिक में पंडित गंगाधर का किरदार निभाया था, जो एक पत्रकार थे तथा शक्तिमान का रूप लेकर विपत्तियों से लोगों
को बचाते थे।
हम पांच
हम पांच 1990 के दशक में जी टीवी
पर आने वाला हास्य धारावाहिक था। गौरतलब है कि उस धारावाहिक के कई कलाकार उसके बाद
जानेमाने धारावाहिक या फ़िल्मों में काम कर चुके हैं, जैसे कि विद्या बालन।
यह कहानी एक ऐसे माथुर परिवार की थी, जिसमें एक मध्यमवर्गीय दंपति को पाँच बेटियाँ होती हैं और वो पाँचों अलग अलग स्वभाव
की थीं, जो अपनी शरारतों से हास्य उत्पन्न करती थीं।
सीआईडी
यह सोनी टेलीविज़न
पर प्रसारित होने वाला भारत का सबसे सफल जासूसी धारावाहिक है। 21 जनवरी 1998 को इसका प्रसारण प्रारंभ
हुआ। यह धारावाहिक तब से अब तक लगातार चल रहा है। यह 21 जनवरी 2016 को अपना सत्रह वर्ष
पूर्ण कर अठारह वर्ष में आ गया। इसके सर्जक, निदेशक और लेखक बृजेन्द्र पाल सिंह हैं। इसका निर्माण फायरवर्क्स नामक एक निर्माता
कंपनी ने किया है। जिसके संस्थापक बृजेन्द्र पाल सिंह और प्रदीप उपूर हैं। शिवाजी साटम, दयानन्द शेट्टी, आदित्य श्रीवास्तव
और दिनेश फड्निस इस धारावाहिक में सबसे लोकप्रिय किरदार निभा रहे हैं।
कहानी घर घर की
कहानी घर घर की भारतीय
हिन्दी धारावाहिक है, जिसका प्रसारण स्टार प्लस में 2000 से 2008 तक हुआ। इसका निर्माण एकता कपूर ने किया था। यह एक पारिवारिक धारावाहिक था, जो
काफ़ी सफल रहा। इस धारावाहिक की मुख्य भूमिका साक्षी तंवर ने निभाई थी। उनके किरदार
का पार्वती नाम घर घर में गुंजता था।
ऑफ़िस-ऑफ़िस
यह सब टीवी पर 2001 से आने वाला हास्य
धारावाहिक था, जिसमें पंकज कपूर ने मुसद्दीलाल का मुख्य किरदार निभाया था। इसमें आम लोगों को
हर दिन होनी वाली परेशानियाँ मजेदार ढंग से दिखाई जाती थीं। इस धारावाहिक की ख़ूबी
ये थी कि इसमें हर एपिसोड में अलग अलग सरकारी ऑफ़िसों में सरकारी बाबूओं के आलसी रवैये
को मजेदार तरीक़ों से दर्शकों के सामने रखा जाता था। इसमें सभी किरदारों के नाम हर
एपिसोड में एक ही रहते थे, लेकिन उनका काम बदल जाता था। मुसद्दीलाल के अलावा उषाजी, शुक्ला, पटेल, पांडेजी, भाटिया, टीना इत्यादि किरदार
काफ़ी प्रचलित हुए थे। इसकी सफलता से प्रेरित होकर बॉलीवुड फ़िल्म भी बनाई गई थी।
कौन बनेगा करोड़पति
कौन बनेगा करोड़पति
भारत का एक रियालिटी गेम शो है। इसमें कोई व्यक्ति अधिकतम निर्धारित रुपये जीत सकता
है। इसका पहला प्रसारण सन् 2000 में हुआ था। भारत के फ़िल्मोद्योग के महानायक अमिताभ बच्चन इसके सूत्रधार हैं।
बीच में शाहरुख ख़ान ने भी इस शो को प्रस्तुत किया। यह गेम शो भारत में अत्याधिक लोकप्रिय
रहा। प्राइम टाइम में जब यह शो आता था तो सड़कों पर भीड़ कम हो जाती थी। एक वक्त ऐसा
आया था कि कुछ शहरों में थियेटर वालों को 9 से 12 के शो रद्द करने पड़े थे। इस शो में हिस्सा लेने वाले प्रतियोगी विविध विषयों
पर पुछे जाने वाले सवालों के चार विकल्प में से एक विकल्प को उत्तर के रूप में चुनते
और निर्धारित रकम जीतने के अधिकारी बन जाते।
क्योंकि सास भी कभी
बहू थी
यह धारावाहिक 2000 से स्टार प्लस पर
शुरू हुआ। यह एक पारिवारिक धारावाहिक था, जो गुजराती परिवार पर था। बालाजी टेलिफ़िल्म्स द्वारा निर्मित यह धारावाहिक 8 साल तक चला और उस
दौर में वो भारतीय टेलीविज़न का सफलतम धारावाहिक रहा। इसमें मुख्य भुमिका स्मृति
ईरानी ने निभाई थी, जो बाद में केंद्रीय मंत्री बनीं।
खिचड़ी
खिचड़ी स्टार प्लस
पर 10 सितम्बर 2002 से प्रसारित हुआ हास्य धारावाहिक था। तुलसीदास पारेख, हंसा, प्रफुल्ल, जयश्री, चकी, जेकी तथा हिमांशु, भावेश इत्यादि किरदारों
ने सहज़ रूप से हास्य उत्पन्न करने में सफलता हासिल की थी। यह गुजराती परिवार पर फ़िल्मायी
गयी थी, जिनके घर के पास परमिंदर परिवार भी रहता था। यह धारावाहिक सफल भी रहा तथा इससे
प्रेरित होकर एक हिन्दी फ़िल्म भी बनाई गई थी।
तारक मेहता का उल्टा
चश्मा
तारक मेहता का उल्टा
चश्मा भारतीय हिन्दी धारावाहिक है, जिसका प्रसारण सब टीवी पर 28 जुलाई 2008 से सोमवार से शुक्रवार रात 8.30 बजे होता है। इसका निर्माण नीला असित मोदी और असित कुमार मोदी ने किया है। यह
सब टीवी में सबसे अधिक देखा जाने वाला कार्यक्रम है। यह कहानी अहमदाबाद के लेखक तारक
मेहता के 'दुनिया ने ऊन्धा चश्मा' पर आधारित है, जो एक गुजराती साप्ताहिक अख़बार चित्रलेखा के लिए लिखते थे। रोज प्रसारित होने
वाले कॉमेडी सीरियल ने सबसे ज़्यादा एपिसोड पूरे करके अपना नाम लिम्का बुक ऑफ़ रिकॉर्ड्स
में दर्ज करा लिया है।
इसके अलावा अलिफ लैला, मुल्ला नसरुद्दीन, श्रीमान श्रीमती, टीपू सुल्तान, फ्लॉप शो, तेनालीराम, सुरभी, व्योमकेश बक्षी, राजा रेंचो, जबान संभाल के, मोगली, चाचा चौधरी, सर्कस, परमवीर चक्र, झाँसी की रानी, आहट, थोड़ा है थोड़े की ज़रूरत है, भारत के वीर पुत्र महाराणा प्रताप, कुमकुम, बालिका वधू, लाफ्टर चैलेंज, खाना खज़ाना, अलीबाबा और चालीस चोर, दिया और बाती हम, जोधा अकबर, क्राइम पेट्रोल, कॉमेडी नाइट्स विद कपिल, अदालत, भाबीजी घर पर है इत्यादि धारावाहिक जो अलग अलग चैनल पर आते रहे, समय समय पर लोगों
को ख़ूब पसंद आए।
(इनक्रेडिबल इंडिया, एम वाला)
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