लास्ट अपडेट अक्टूबर
2022
भारत का राष्ट्रपति
देश का मुखिया और भारत का प्रथम नागरिक है। राष्ट्रपति के पास भारतीय सशस्त्र सेना
की भी सर्वोच्च कमान है। भारत का राष्ट्रपति लोकसभा, राज्यसभा और विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों द्वारा चुना जाता
है। राष्ट्रपति का कार्यकाल 5 वर्षों का होता है।
भारत के राष्ट्रपति
पद की स्थापना भारतीय संविधान के द्वारा की गई है। भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र
प्रसाद थे।
भारत की स्वतंत्रता
से अब तक 15 राष्ट्रपति पूर्णकाल के लिए तथा
3 राष्ट्रपति कार्यकारी रूप में चुने जा चुके हैं। डॉ. राजेंद्र प्रसाद दो बार पूर्णकाल
के लिए चुने गए। दो राष्ट्रपति, डॉ. ज़ाकिर हुसैन और फ़ख़रुद्दीन अली अहमद, इनकी पदस्थ रहते हुए मृत्यु हुई।
इनमें से 13 राष्ट्रपति
निर्वाचित होने से पूर्व राजनीतिक पार्टी के सदस्य रह चुके हैं। इनमें से 10 भारतीय
राष्ट्रीय काँग्रेस, 1 जनता पार्टी तथा 2 भारतीय जनता पार्टी के सदस्य शामिल हैं, जो राष्ट्रपति बने।
4 राष्ट्रपति ग़ैर राजनीतिक
थे। इनमें डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, डॉ. ज़ाकिर हुसैन, जस्टिस मुहम्मद हिदायतुल्लाह और डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम शामिल हैं। हालाँकि डॉ.
कलाम इनमें से एकमात्र पूर्ण रूप से ग़ैर राजनीतिक राष्ट्रपति माने जाते हैं, क्योंकि इनका पूर्व
में राजनीति से कोई रिश्ता नहीं था, ना ही बाद में रहा। जस्टिस मुहम्मद कार्यकारी राष्ट्रपति थे।
3 राष्ट्रपति कुलपति
के पद से यहाँ तक पहुंचे थे। इनमें डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन आंध्रप्रदेश विश्वविद्यालय
और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति रहे थे। डॉ. ज़ाकिर हुसैन अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय
और केआर नारायणन जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के कुलपति रहे।
4 राष्ट्रपति पूर्व
में मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाल चुके थे। इनमें बीडी जत्ती मैसूर (कार्यवाहक), वहीं नीलम संजीव रेड्डी
आंध्र प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री रहे। ज्ञानी ज़ैल सिंह पंजाब के और डॉ. शंकर दयाल
शर्मा मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, फ़ख़रुद्दीन अली अहमद, रामस्वामी वेंकटरमण, डॉ. शंकर दयाल शर्मा, प्रतिभा पाटिल, प्रणब मुखर्जी और
रामनाथ कोविंद वकालत की डिग्री हासिल कर चुके हैं।
प्रतिभा पाटिल भारत
की पहली महिला राष्ट्रपति के तौर पर उत्तरदायित्व निभा चुकी हैं। अब्दुल कलाम ऐसे इकलौते
राष्ट्रपति रहे जो एक वैज्ञानिक थे। द्रौपदी मुर्मू भारत की सबसे कम उम्र की राष्ट्रपति
हैं। अब तक 6 राष्ट्रपति भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित हो चुके हैं।
डॉ. राजेंद्र प्रसाद
जनवरी 26, 1950 - मई 13, 1962 (भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस)
भारतीय स्वतंत्रता
आंदोलन के स्वतंत्रता सेनानी के रूप में अपने संघर्षपूर्ण जीवन के बाद आज़ाद भारत के
पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद बने। वे बिहार से थे। वे भारत के इकलौते राष्ट्रपति
हैं, जो लगातार दो कार्यकाल तक इस सम्माननीय पद पर रहे।
भारतीय संविधान की
कमेटी द्वारा चुनाव के बाद 26 जनवरी 1950 को स्वतंत्र और गणतंत्र भारत के पहले राष्ट्रपति के रूप में इन्होंने पदभार ग्रहण
किया। तीसरे राष्ट्रपति चुनाव के दौरान इन्होंने खुद से सार्वजनिक जीवन से राहत पाने
के लिए अपने कार्यकाल को बढ़ाने के लिए मिले मौक़े को नकार दिया।
इनका जन्म 3 दिसंबर 1884 में अब बिहार (ब्रिटिश
भारत, बंगाल प्रांत) ज़ीरादेई में हुआ था। इनके पिता महादेव सहाय संस्कृत और पर्शियन
भाषा के अध्येता थे। 1907 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने अर्थशास्त्र से अपनी एमए
की डिग्री प्रथम श्रेणी में प्राप्त की। पटना कॉलेज में 1906 में बिहारी विद्यार्थी
सम्मेलन बनाने के लिए इन्होंने काफ़ी मदद की। राजनीति में आने से पहले वे एक अध्यापक
और वकील भी रहे।
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
ने पूरे देश में शैक्षणिक विकास को बहुत बढ़ावा दिया और कई अवसरों पर नेहरू सरकार को
भी शिक्षा संबंधी सलाह दी। नेहरू आज़ाद भारत को वैज्ञानिक चेतना के साथ आगे बढ़ाने के
पक्षधर थे, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद प्रगति के पक्षधर थे,
किंतु भारतीय मानस का मूल बदलकर नहीं, जबकि सरदार पटेल इन
दोनों के बीच कहीं थे। नेहरू सरकार के साथ प्रथम राष्ट्रपति के हिंदू कोड बिल समेत
अनेक मुद्दों पर टकराव रहे। गुजरात स्थित सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण पश्चात हुए
समारोह में उपस्थिति को लेकर दोनों के बीच मतभेद रहे। राष्ट्रपति के अधिकारों को लेकर
दोनों के बीच सब सामान्य नहीं रहा।
प्रथम राष्ट्रपति के
लिए सी राजगोपालाचारी और डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, इन दोनों का नाम सबसे ऊपर था। एक गवर्नर जनरल थे, दूसरे संविधान सभा
के अध्यक्ष। नेहरू और पटेल के बीच खींचतान के बाद आख़िरकार आख़िरी गवर्नर जनरल ने प्रथम
राष्ट्रपति के रूप में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को शपथ दिलाई और फिर वे लगातार दो बार
देश के सर्वोच्च पद पर अपनी सेवा देते रहे।
अपने पद से सेवानिवृत्ति
के पश्चात सन 1962 में इन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया। अपने जीवन के आख़िरी दिनों में वह
पटना के पास स्थित सदाकत आश्रम में रहा करते थे। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की मृत्यु 28 फ़रवरी 1963 में पटना, बिहार में हुई थी।
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन
मई 13, 1962 - मई 13, 1967 (स्वतंत्र)
स्वतंत्र भारत के दूसरे
राष्ट्रपति बने डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन। इन्होंने 13 मई 1962 से 13 मई 1967 तक राष्ट्रपति के
रूप में देश की सेवा की। वे भारत के पहले उपराष्ट्रपति (1952-1962) थे।
इनका जन्म 5 सितंबर 1888 के दिन थिरुथानी, मद्रास प्रांत, ब्रिटिश भारत (वर्तमान
तमिलनाडु) में हुआ था। राधाकृष्णन मुख्यतः दर्शनशास्त्री, शिक्षाविद और लेखक
थे। वे आंध्र विश्वविद्यालय और काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति भी थे। वे आंध्र
और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के उपकुलपति भी रहे।
डॉ. राधाकृष्णन 1949 से 1952 तक सोवियत संघ में
भारत के दूसरे राजदूत भी रहे थे। वे भारत की स्वतंत्रता के बाद के दो वर्षों के लिए
भारतीय संविधान सभा के सदस्य भी रहे।
बतौर राष्ट्रपति राधाकृष्णन
का कार्यकाल कठिनाइयों से भरा रहा। इनके कार्यकाल में जहाँ भारत-चीन युद्ध और भारत-पाकिस्तान
युद्ध हुए, वहीं दो प्रधानमंत्रियों (पंडित नेहरू और लाल बहादुर शास्त्री) की पद पर रहते
हुए मृत्यु भी हुई। वे राष्ट्रपति राधाकृष्णन ही थे, जिनके दबाव के चलते तत्कालीन रक्षामंत्री वीके कृष्ण मेनन को
इस्तीफ़ा देना पड़ा। युद्ध में चीन से हार के बाद बतौर राष्ट्रपति इन्होंने तत्कालीन
प्रधानमंत्री नेहरू की आलोचना की।
इन्हें 1963 में श्रेष्ठता के
ब्रिटिश रॉयल ऑर्डर के सम्माननीय सदस्य और 1931 में नाइटहुड की उपाधि से नवाज़ा गया। वे मेक्सिको के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार
‘ऑर्डेन मेक्सिकाना
डेल एग्वेला एज्टेका’ (ऑर्डर ऑफ़ एज्टेक ईगल) से सम्मानित किए जा चुके हैं।
वर्ष 1954 में भारत के प्रथम
राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने इन्हें भारत रत्न की उपाधि से सम्मानित किया। राधाकृष्णन
का 17 अप्रैल सन 1975 को 86 वर्ष की उम्र में चेन्नई में लंबी बीमारी के बाद देहांत हो गया। बता दें कि हर
साल 5 सितंबर को उनके जन्म दिवस को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।
डॉ. ज़ाकिर हुसैन
मई 13, 1967 - मई 03, 1969 (स्वतंत्र)
डॉ. ज़ाकिर हुसैन भारत
के तीसरे राष्ट्रपति थे। इन्होंने भारत के राष्ट्रपति के तौर पर 13 मई 1967 से 3 मई 1969 तक राष्ट्र की सेवा
की। वे भारत के पहले मुस्लिम राष्ट्रपति के रूप में भी जाने जाते हैं।
इनका जन्म 8 फ़रवरी 1897 के दिन हैदराबाद राज्य
(वर्तमान तेलंगाना, भारत) के हैदराबाद में हुआ था। इनकी शिक्षा मुहम्द ओरिएंटल कॉलेज़ (वर्तमान अलीगढ़
मुस्लिम विश्वविद्यालय) से हुई। बर्लिन के यूनिवर्सिटी ने इन्हें साल 1926 में अर्थशास्त्र में
डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया।
देश के राष्ट्रपति
के रूप में सेवा देने से पहले वे बिहार के गर्वनर (1957 से 1962) और देश के उपराष्ट्रपति (1962 से 1967) भी रहे। वे ज़ामिया मिलीया इस्लामिया के सह-संस्थापक थे और 1928 में इसके उपकुलपति
बने। वे अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के भी उपकुलपति रहे।
1954 में इन्हें पद्म विभूषण और 1963 में भारत रत्न से नवाज़ा गया। वे देश के पहले ऐसे राष्ट्रपति थे, जिनकी मृत्यु अपने
कार्यकाल के दौरान हुई। 3 मई, 1969 के दिन उनका देहांत हुआ था।
वराहगिरि वेंकट गिरि
मई 03, 1969 - जुलाई 20, 1969 (भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस)
अगस्त 24, 1969 - अगस्त 24, 1974 (भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस)
वी.वी. गिरि पदस्थ
राष्ट्रपति डॉ. ज़ाकिर हुसैन की मृत्यु के बाद कार्यवाहक राष्ट्रपति बने। गिरि एकमात्र
व्यक्ति थे, जो कार्यवाहक राष्ट्रपति और राष्ट्रपति दोनों बने।
डॉ. ज़ाकिर हुसैन की
मृत्यु के बाद वी.वी गिरी को कार्यकारी राष्ट्रपति के तौर पर नियुक्त किया गया। हालाँकि
अगले राष्ट्रपति चुनाव में भाग लेने के लिए इन्होंने कुछ महीने बाद ही पद से इस्तीफ़ा
दे दिया। कार्यकारी राष्ट्रपति के तौर पर उनका कार्यकाल सिर्फ 2 महीने और 17 दिन का रहा। 24 अगस्त 1969 के दिन वे भारत के
चौथे राष्ट्रपति के रूप में नियुक्त हुए।
इनका जन्म 10 अगस्त 1894 के दिन ओडिशा, उस समय ब्रिटिश भारत
के मद्रास प्रांत के बेरहमपुर में हुआ था। इन्होंने अपनी क़ानून की डिग्री डबलिन विश्वविद्यालय
(1913 से 1916) से ली। 1916 के दौरान सिन फिन आंदोलन में शामिल होने की वजह से और इस्टर बगावत में संदिग्ध
भूमिका के लिए आयरलैंड से निकाले जाने के बाद वे भारत आए और राजनीति से जुड़ गए।
भारत को स्वतंत्रता
मिलने के बाद वीवी गिरि को उच्चायुक्त के रूप में सीलोन भेजा गया। वे 1952 में संसद की पहली
लोकसभा के लिए चुने गए। इस दौरान गिरि को श्रम मंत्रालय का नेतृत्व करने वाले केंद्रीय
मंत्रिमंडल का सदस्य बनाया गया। इन्होंने 1957 में इंडियन सोसाइटी ऑफ़ लेबर इकोनॉमिक्स की स्थापना की। 1957 से 1960 तक वे उत्तर प्रदेश
के राज्यपाल रहे। 1960 से 1965 तक केरल तथा 1965 से 1967 तक मैसूर के राज्यपाल के रूप में इन्होंने कार्य किया।
बैंकों के राष्ट्रीयकरण
के अध्यादेश पर बतौर उपराष्ट्रपति इन्होंने अपने इस्तीफे के एक दिन पहले ही दस्तख़त
किए थे। बतौर राष्ट्रपति इनका चुनाव बेहद ही विवादास्पद रहा। वे अगर अपने पद से इस्तीफ़ा
देते तो राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति, दोनों पद एक साथ रिक्त रह जाते। अजीबोगरीब स्थिति उत्पन्न हुई। संविधान को पढ़ा
गया, विमर्श हुए और आख़िरकार तत्कालीन सीजेआई मुहम्मद हिदायतुल्लाह कार्यकारी राष्ट्रपति
बने और वीवी गिरी ने इस्तीफ़ा दिया।
चुनाव के दौरान भी
काफ़ी राजनीति हुई। काँग्रेस दो घड़ों में बँट गई। वीवी गिरी चुनाव जीत गए। किंतु उनकी
जीत की वैधता पर सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर हुई। मामला चला और वीवी गिरी देश
के इकलौते राष्ट्रपति बन गए, जो गवाही देने सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हो। याचिका ख़ारिज हुई और वीवी गिरी अपने
पद पर बने रहे।
इन्हें सन 1975 में भारत रत्न से
सम्मानित किया गया। इनकी मृत्यु 24 जून 1980 में मद्रास (वर्तमान चेन्नई) में हुई।
मुहम्मद हिदायतुल्लाह
जुलाई 20, 1969 - अगस्त 24, 1969 (स्वतंत्र)
मुहम्मद हिदायतुल्लाह
भारत के सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और ऑर्डर ऑफ़़ ब्रिटिश इंडिया के प्राप्तकर्ता
थे। इन्हें छोटे समय के लिए भारत के कार्यकारी राष्ट्रपति के रूप में नियुक्त किया
गया था। जब तत्कालीन राष्ट्रपति वीवी गिरी ने अगले राष्ट्रपति चुनाव में हिस्सा लेने
के लिए इस्तीफ़ा दिया तब इन्होंने कार्यकारी राष्ट्रपति के रूप में अपनी सेवा दी।
इनका जन्म ब्रिटिश
भारत, केंद्रीय प्रांत, लखनऊ (वर्तमान उत्तर प्रदेश) में 17 दिसंबर 1905 के दिन हुआ था। वे भारत के सुप्रसिद्ध क़ानूनविद्, शिक्षाविद्, वकील, अध्येता (हिन्दी, अंग्रेजी, परश़ियन, उर्दू और फ्रेंच) लेखक
थे, जो बहु-भाषा अध्ययन
संबंधी जानकार थे।
इनका बतौर कार्यकारी
राष्ट्रपति कार्यकाल केवल 1 महीने 4 दिन रहा। इसके साथ ही इन्होंने भारत के छठवें उपराष्ट्रपति (31 अगस्त 1979 से 30 अगस्त 1984) के तौर पर भी देश
की सेवा की। इस दौरान यह उपराष्ट्रपति होने के कारण राज्यसभा के सभापति भी थे।
18 सितंबर 1992 में मुंबई में हृदयाघात के कारण इनका निधन हो गया। नोट करें कि उनकी वसीयत के
मुताबिक इन्हें दफनाया नहीं गया था, बल्कि उनका अंतिम संस्कार किया गया था।
फ़ख़रुद्दीन अली अहमद
अगस्त 24, 1974 - फ़रवरी 11, 1977 (भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस)
फ़ख़रुद्दीन अली अहमद
भारत के पाँचवें राष्ट्रपति थे। अपने कार्यकाल को पूरा करने से पहले ही 11 फ़रवरी 1977 को इनकी मृत्यु हो
गई। वे भारत के दूसरे राष्ट्रपति थे, जिनकी मृत्यु अपने कार्यकाल के दौरान हुई हो।
इनका जन्म 13 मई 1905 के दिन पुरानी दिल्ली
(हौज क़ाजी क्षेत्र), दिल्ली, पंजाब प्रांत, ब्रिटिश भारत में हुआ था। उनकी शिक्षा दिल्ली के सेंट स्टीफ़न कॉलेज और कैंब्रिज़
के कैथरीन कॉलेज से पूरी हुई। इंग्लैंड में जवाहर लाल नेहरू से मिलने के बाद वे भारतीय
राष्ट्रीय काँग्रेस में शामिल हो गए और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी सक्रिय भूमिका
निभाने लगे।
वे 1952 में असम से राज्यसभा
के लिए निर्वाचित हुए। इसके बाद 1957 से 1967 तक असम में विधायक रहे। 1971 से दोबारा केंद्रीय राजनीती में आए और कई मंत्रालय संभाले। राष्ट्रपति पद के लिए
नामित होने से पहले वह खाद्य एवं कृषि मंत्री के रूप में कार्यरत थे।
तत्कालीन प्रधानमंत्री
इंदिरा गांधी के समय इन्हीं के हस्ताक्षर के बाद धारा 352(1) के अधीन भारत में आपातकाल
लागू हुआ था। भारतीय इतिहास के सबसे स्याह धब्बे पर दस्तख़त करने वाले राष्ट्रपति के
रूप में इन्हें याद किया जाता है।
11 फ़रवरी 1977 के दिन हृदयगति रुक जाने से अहमद का अपने कार्यकाल के दौरान निधन हो गया। उनकी
कब्र नई दिल्ली में संसद चौक पर, सुनहरी मस्जिद के बगल में भारत की संसद के ठीक सामने स्थित है।
बासप्पा दानप्पा जत्ती
फ़रवरी 11, 1977 - जुलाई 25, 1977 (भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस)
बीडी जत्ती, फ़ख़रुद्दीन अली अहमद
की मृत्यु के बाद भारत के कार्यवाहक राष्ट्रपति बने। इससे पहले 1 सितंबर 1974 से 25 जुलाई 1977 तक वे भारत के उपराष्ट्रपति
थे।
इनका जन्म ब्रिटिश
भारत के बम्बई प्रांत के सवलागी में 10 सितंबर 1912 को हुआ था। जमखंडी के नगरपालिका सदस्य के रूप में 1940 में इन्होंने राजनीति
की शुरुआत की और बाद में 1945 में उसी नगरपालिका के अध्यक्ष बने।
तत्कालीन सीजेआई एमएच
बेग ने इन्हें कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में राष्ट्रपति भवन के अशोक हॉल में साधारण
समारोह के दौरान शपथ ग्रहण कराया। अगले राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी न्यूयोर्क में
चिकित्सा हेतु गए तब 4 सितम्बर 1977 से 24 सितम्बर 1977 तक बीडी जत्ती ने कार्यवाहक राष्ट्रपति का दायित्व निभाया था।
इससे पहले सन 1958 से 1962 तक वे मैसूर के मुख्यमंत्री
रहे। इसके बाद 1968 से 1972 तक पोंडीचेरी के उपराज्यपाल तथा 1972 से 1974 तक ओडिशा के राज्यपाल रहे। 7 जून 2002 में बेंगलुरु में इनकी मृत्यु हुई।
नीलम संजीव रेड्डी
जुलाई 25, 1977 - जुलाई 25, 1982 (जनता पार्टी)
नीलम संजीव रेड्डी
भारत के छठवें राष्ट्रपति थे और इन्होंने 25 जुलाई 1977 से 25 जुलाई 1982 तक राष्ट्रपति के तौर पर देश की सेवा की। वे उस समय देश के सबसे युवा राष्ट्रपति
थे। हालाँकि अब ट्रौपदी मुर्मू सबसे युवा राष्ट्रपति हैं। वे भारत के सबसे पहले ग़ैर कांग्रेसी
राष्ट्रपति थे।
इनका जन्म ब्रिटिश
भारत, अनन्तपुर जिला, आंध्रप्रदेश, मद्रास प्रांत के इल्लूर में 19 मई 1933 के दिन हुआ था। इनकी प्राथमिक शिक्षा अड़यार, मद्रास में सम्पन्न हुई तथा आर्ट्स कॉलेज, अनंतपुर से आगे की
शिक्षा के लिए प्रवेश किया। इन्होंने सविनय अवज्ञा आंदोलन में भी भाग लिया था।
स्वतंत्रता के पश्चात
वे संयुक्त आंध्र प्रदेश (नवंबर 1956 से जनवरी 1960) के पहले मुख्यमंत्री बने। वे उस समय आंध्र प्रदेश से चुने गए एकमात्र सांसद थे।
वे लोकसभा में दो बार स्पीकर भी बने और 1964 से 1967 तक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री भी रहे। राष्ट्रपति बनने से पूर्व वे लोकसभा के अध्यक्ष
थे।
वे राष्ट्रपति पद के
लिए दो बार नामांकित हुए थे। पहली वार इन्हें विफलता मिली थी और दूसरी बार वे जीते।
कार्यकाल समाप्त करने के पश्चात् रेड्डी अपने गृह नगर अनन्तपुर में निजी जीवन व्यतीत
करने लगे। इनकी मृत्यु 1 जून 1996 में बेंगलुरू, कर्नाटक में हुई थी।
ज्ञानी ज़ैल सिंह
जुलाई 25, 1982 - जुलाई 25, 1987 (भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस)
भारत के सातवें राष्ट्रपति
ज्ञानी ज़ैल सिंह का कार्यकाल 25 जुलाई 1982 से 25 जुलाई 1987 तक रहा। राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान इन्होंने 12 मार्च 1983 से 6 सितंबर 1986 तक गुटनिरपेक्ष आंदोलन
के महासचिव के तौर पर उत्तरदायित्व निभाया।
इनका जन्म 5 मई 1916 को ब्रिटिश भारत के
पंजाब, संधवान में हुआ था। बता दें कि ज्ञानी ज़ैल सिंह के नाम से पहचाने जाने वाले इस
पूर्व राष्ट्रपति का वास्तविक नाम जरनैल सिंह था।
इन्हीं के कार्यकाल
के दौरान 1984 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हुई और उसके बाद दिल्ली में सिख विरोधी
दंगे हुए। वे पंजाब सरकार में राजस्व मंत्री व कृषि मंत्री के रूप में उत्तरदायित्व
निभा चुके थें। 1972 में वे पंजाब राज्य के मुख्यमंत्री बने। राष्ट्रपति बनने से पूर्व वे 1980 में देश के गृह मंत्री
भी रहे।
बतौर राष्ट्रपति 1986 में इन्होंने राजीव
गांधी द्वारा पारित भारतीय डाकघर (संशोधन) विधेयक के संबंध में पॉकेट वीटो का प्रयोग
किया था। दूसरी तरफ़ प्रेस की स्वतंत्रता पर लगाम, भिंडरावाले संस्करण और ऑपेरशन ब्लू स्टार, दिल्ली दंगे, आलाकमान की तरफ़ सार्वजनिक
समर्पण जैसे विवाद भी इनसे जुड़े रहे।
तख्त श्री केशगड़ साहिब
जाते समय उनकी गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो गई। इन्हें पीजीआई चंडीगढ़ इलाज़ के लिए ले जाया
गया, जहाँ 25 दिसंबर 1994 के दिन उनकी मृत्यु हो गई।
रामस्वामी वेंकटरमण
जुलाई 25, 1987 - जुलाई 25, 1992 (भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस)
भारत के आठवें राष्ट्रपति
के रूप में रामस्वामी वेंकटरमण ने 25 जुलाई 1987 से 25 जुलाई 1992 तक देश की सेवा की। राष्ट्रपति बनने से पहले वे 4 साल तक देश के उपराष्ट्रपति
भी रहे। मई 1992 में वे छह दिवसीय चीन यात्रा पर गए। इसके पूर्व कोई भी भारतीय राष्ट्राध्यक्ष
चीन नहीं गया था।
इनका जन्म 4 दिसंबर 1910 के दिन ब्रिटिश भारत
के मद्रास प्रांत के राजारदम (वर्तमान तमिलनाडु) में हुआ था। इन्हें मद्रास और नागार्जुन
विश्वविद्यालय से क़ानून की डॉक्टरेट उपाधि से सम्मानित किया गया था। वे भारतीय स्वतंत्रता
संग्राम आंदोलन में जेल भी गए। जेल से छुटने के बाद वे काँग्रेस पार्टी के सांसद रहे।
स्वतंत्रता के पश्चात
वे भारत के वित्त एवं औद्योगिक मंत्री, गृह मंत्री तथा रक्षा मंत्री भी बने। वेंकटरमण तमिलनाडु की औद्योगिक क्रान्ति
के शिल्पकार माने जाते हैं। इन्होंने ही लम्बी बस सेवाओं का आरम्भ तमिलनाडु में किया
था। वे योजना आयोग के सदस्य भी रहे।
स्वतंत्रता आंदोलन
में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए इन्हें तांब्र पत्र से भी नवाज़ा गया था। 27 जनवरी 2009 के दिन नई दिल्ली
में सेना के रिसर्च एंड रेफरल हॉस्पिटल में इन्होंने अंतिम साँस ली।
डॉ. शंकर दयाल शर्मा
जुलाई 25, 1992 - जुलाई 25, 1997 (भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस)
भारत के नौवें राष्ट्रपति
डॉ. शंकर दयाल शर्मा का कार्यकाल 25 जुलाई 1992 से 25 जुलाई 1997 तक रहा। इससे पहले वे (3 सितंबर 1987 से 25 जुलाई 1992) भारत के उपराष्ट्रपति भी रहे।
इनका जन्म ब्रिटिश
भारत के केंद्रीय प्रांत भोपाल (वर्तमान मध्य प्रदेश) में 19 अगस्त 1918 को हुआ था। राष्ट्रपति
बनने से पहले शर्मा मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री और भारत के संचार मंत्री रह चुके थे।
इसके अलावा वे आंध्र प्रदेश, पंजाब और महाराष्ट्र के राज्यपाल भी रहे। इन्होंने चंडीगढ़ के प्रशासक (26 नवंबर 1985 से 2 अप्रैल 1986) के रूप में भी काम
किया।
दिल्ली दंगे भड़काने
के आरोप जिन पर लगे उनमें से एक ललित माकन थे, जो शंकर दयाल शर्मा के दामाद थे। 31 जुलाई 1985 को तीन आतंकियों ने गोलियाँ मार उनकी बेटी गीतांजलि, दामाद ललित माकन और
सह्योगी बाल किशन की हत्या कर दी। उस समय शर्मा आंध्र प्रदेश के राज्यपाल थे। हत्यारों
पर मामला चला और उन्हें फाँसी की सज़ा सुनाई गई। हत्यारों के पास एक ही रास्ता बचा
था, और उन दोनों ने राष्ट्रपति
से दया की गुहार लगाई। ये वाक़ई संयोग था कि उस वक्त देश के राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा
थे। दया याचिका ख़ारिज हुई और दोनों को फाँसी दी गई।
अपने जीवन के अन्तिम
पाँच वर्षों में वे बीमार रहे। दिल का दौरा पड़ने से नई दिल्ली में 26 दिसंबर 1999 को इनकी मृत्यु हो
गई।
के. आर. नारायणन
जुलाई 25, 1997 - जुलाई 25, 2002 (भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस)
भारत के दसवें राष्ट्रपति
कोच्चेरील रमण नारायण का कार्यकाल 25 जुलाई 1997 से 25 जुलाई 2002 तक था।
इनका जन्म ब्रिटिश
भारत के त्रावणकोर के पेरुमथनम् (वर्तमान केरल) में 27 अक्टूबर 1920 के दिन हुआ था। इन्होंने
अपनी बीए और एमए की डिग्री केरल यूनिवर्सिटी से ली, जबकि लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स से बीएससी पूरा किया। इन्हें
विज्ञान और क़ानून में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त थी। वे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय
के उपकुलपति भी रह चुके हैं।
1944-45 में केआर नारायणन ने द हिन्दू तथा द टाइम्स ऑफ़ इंडिया में पत्रकार के रूप में
कार्य किया। इस दौरान 10 अप्रैल 1945 में इन्होंने महात्मा गाँधी का इंटरव्यू भी लिया था।
वे भारत के पहले दलित
व्यक्ति थे, जो भारत के राष्ट्रपति पद पर आसीन हुए हो। इससे पहले वे चीन, तुर्की, थाईलैंड और संयुक्त
राज्य अमेरिका में भारत के राजदूत रह चुके थे। केआर नारायण ने 21 अगस्त 1992 से 24 अगस्त 1997 तक भारत के उपराष्ट्रपति
के रूप में भी अपनी सेवा दी।
9 नवम्बर 2005 को आर्मी रिसर्च एंड रैफरल हॉस्पिटल, नई दिल्ली में उनका निधन निमोनिया बीमारी के कारण हो गया। दिल्ली में इनका समाधी
स्थल बनाया गया, जिसे एकता स्थल कहते हैं। इन्हें डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के बाद ऐसे दूसरे राष्ट्रपति
के रूप में भी जाना जाता हैं, जिन्होंने रबड़ स्टांप बनने से परहेज किया हो।
डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम
जुलाई 25, 2002 - जुलाई 25, 2007 (स्वतंत्र)
डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम
भारत के ग्याहरवें राष्ट्रपति थे। वे भारत के अब तक के एक मात्र वैज्ञानिक हैं, जो देश के सर्वोच्च
पद पर पहुंचे हो। भारत के पूर्ण रूप से ग़ैर राजनीतिक व्यक्ति, जो राष्ट्रपति बने।
इस पद पर पहुंचने से पहले तथा बाद में भी, उनका राजनीति से कोई लेना-देना नहीं रहा। रक्षा वैज्ञानिक के रूप में अपने अद्भुत
कार्यों की वजह से इन्हें ‘भारत के मिसाइल मैन’ के रूप में जाना जाता है। वे भारत के अब तक के सबसे लोकप्रिय राष्ट्रपति के रूप
में याद किए जाते हैं। भारत के भीतर इन्हें ‘जनता के राष्ट्रपति’ के विशेषण से याद किया जाता है। दूसरी बार मिले राष्ट्रपति चुनाव के उम्मीदवार
प्रस्ताव को इन्होंने नकार दिया था।
इनका जन्म ब्रिटिश
भारत के मद्रास प्रांत (वर्तमान तमिलनाडु) में, रामानाथपुरम् ज़िले के रामेश्वरम में 15 अक्टूबर 1931 के दिन हुआ था। पूरा नाम अवुल पकिर जैनुलाब्दीन अब्दुल कलाम। कलाम ने मुख्य रूप
से एक वैज्ञानिक और विज्ञान के व्यवस्थापक के रूप में चार दशकों तक डीआरडीओ और इसरो
में अपनी सेवाएँ दीं। वे भारत के नागरिक अंतरिक्ष कार्यक्रम और सैन्य मिसाइल के विकास
के प्रयासों में भी शामिल रहे। 1998 में भारत के दूसरे परमाणु परीक्षण के ऐतिहासिक कार्य में वे प्रमुख हिस्सा थे।
बतौर राष्ट्रपति उनके
कार्यकाल के दौरान 21 दया याचिकाओं में से 20 याचिकाओं पर फ़ैसला न कर पाने की वजह से उनकी आलोचना भी की गई। कलाम की राजनीतिक
अनुभवहीनता तब उजागर हुई जब इन्होंने 22 मई की आधी रात को बिहार में राष्ट्रपति शासन लगाने का अनुमोदन कर दिया। लेकिन
पाँच महीने बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश को ग़ैर संवैधानिक करार दे दिया, जिसकी वजह से यूपीए
सरकार और खुद कलाम की बहुत किरकिरी हुई।
वहीं दूसरी तरफ़ बतौर
राष्ट्रपति इन्होंने 'लाभ का पद' वाला विधेयक पुनर्विचार के लिए मंत्रिमंडल को न भेजकर सीधे संसद को भेजने की
हिम्मत दिखाई थी। यह एक दुर्लभ वापसी थी। अपने सरल स्वभाव, सादगीपूर्ण जीवन,
मज़बूत मानवीय अभिगम, आम जनता से जुड़ने का कौशल, लोकतंत्र में आस्था, उदार विचार,
शिक्षा, तकनीक से लगाव इन्हें अलग ही मुक़ाम पर ले गया।
देश के सर्वोच्च पद
पर पहुंचने से पहले इन्हें सन 1997 में देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। उनके 79वें जन्मदिन को संयुक्त
राष्ट्र द्वारा विश्व विद्यार्थी दिवस के रूप में मनाया गया था। इसके अलावा इन्हें
लगभग चालीस विश्वविद्यालयों द्वारा मानद डॉक्टरेट की उपाधियाँ प्रदान की गयी थीं। वर्ष
2005 में स्विट्ज़रलैंड की सरकार ने डॉ. कलाम के स्विट्ज़रलैंड आगमन के उपलक्ष्य में
26 मई को विज्ञान दिवस
घोषित किया था।
27 जुलाई 2015 की शाम वे शिलॉन्ग में एक व्याख्यान दे रहे थे, जब इन्हें ज़ोरदार कार्डियक अटैक हुआ और बेहोश हो कर गिर पड़े।
इन्हें बेथानी अस्पताल ले जाया गया, किंतु बचाया नहीं जा सका।
प्रतिभा पाटिल
जुलाई 25, 2007 - जुलाई 25, 2012 (भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस)
प्रतिभा पाटिल भारत
के बारहवीं राष्ट्रपति थीं। वे भारत की प्रथम महिला राष्ट्रपति थीं। राष्ट्रपति चुनाव
में प्रतिभा पाटिल ने अपने प्रतिद्वंदी भैरोंसिंह शेखावत को तीन लाख से ज़्यादा मतों
से हराया था।
इनका जन्म 19 दिसंबर 1934 के दिन ब्रिटिश भारत
के बम्बई (वर्तमान महाराष्ट्र) प्रांत के नदगाँव में हुआ था। इन्होंने राजनीति विज्ञान
और अर्थशास्त्र से अपनी परास्नातक की डिग्री जलगाँव के मूलजी जेठा कॉलेज से हासिल की
तथा क़ानून के स्नातक की डिग्री सरकारी लॉ कॉलेज मुम्बई से प्राप्त की।
वे पाँच बार महाराष्ट्र
विधानसभा की सदस्य रहीं। वे महाराष्ट्र सरकार में विविध विभागों में बतौर राज्यमंत्री
व कैबिनेट मंत्री अपनी सेवा दे चुकी हैं।
वह राजस्थान की भी
प्रथम महिला राज्यपाल थीं। 2019 में वे मेक्सिको के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार ‘ऑर्डेन मेक्सिकाना डेल एग्वेला एज्टेका’ (ऑर्डर ऑफ़ एज्टेक ईगल)
से सम्मानित की जा चुकी हैं। यह पुरस्कार पाने वाली वह भारत की दूसरी राष्ट्रपति हैं।
प्रणब मुखर्जी
जुलाई 25, 2012 - जुलाई 25, 2017 (भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस)
25 जुलाई 2012 के दिन इन्होंने भारत के 13वें राष्ट्रपति के रूप में कार्यभार संभाला। सीधे मुकाबले
में इन्होंने अपने प्रतिपक्षी प्रत्याशी पी.ए. संगमा को हराया।
इनका जन्म 11 दिसंबर 1935 के दिन बंगाल प्रांत
(वर्तमान पश्चिम बंगाल में) के वीरभूम ज़िले के मिराटी में हुआ था। इन्होंने राजनीति
शास्त्र और इतिहास से एमए किया और अपनी क़ानून की डिग्री कलकत्ता विश्वविद्यालय से
प्राप्त की। सन 1969 में वे सक्रिय रूप से राजनीति में आ गए।
राष्ट्रपति बनने से
पहले इन्होंने देश के वित्त मंत्री, विदेश मंत्री और रक्षा मंत्री के रूप में अपनी सेवा दी। वे भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में से एक थे। यूरोमनी के एक
सर्वेक्षण के अनुसार वर्ष 1984 में दुनिया के पाँच सर्वोत्तम वित्त मन्त्रियों में से एक प्रणब मुखर्जी भी थे।
वे योजना आयोग के उपाध्यक्ष भी रहे।
बतौर राष्ट्रपति इनका
कार्यकाल दया याचिकाओं का निपटारा करने के लिए उल्लेख़नीय माना गया, जिसमें याकूब मेमन, अजमल क़साब और अफ़ज़ल
गुरु की याचिकाएँ भी शामिल थीं। हालाँकि राष्ट्रपति शासन लगाने के मामले में उत्तराखंड
हाईकोर्ट की वो टिप्पणी कि, “ये कोई राजा का फ़ैसला नहीं है, जिसकी न्यायिक समीक्षा नहीं हो सकती”, उनके कार्यकाल के दौरान हुआ बड़ा विवाद बना रहा।
2019 में इन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया। 31 अगस्त 2020 के दिन दिल्ली के अस्पताल में इनका निधन हो गया।
रामनाथ कोविंद
जुलाई 25, 2017 - जुलाई 24, 2022 (भारतीय जनता पार्टी)
रामनाथ कोविंद भारत
के 14वें राष्ट्रपति थे। पूर्व लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार को हराकर वे देश के राष्ट्रपति
चुने गए थे। इस राष्ट्रपति चुनाव में 99 फ़ीसदी वोट डाले गए थे, जो अब तक का सबसे ज़्यादा वोटिंग प्रतिशत था। वे भारत के राष्ट्रपति के रूप में
सेवा करने वाले सातवें वक़ील थे।
इनका जन्म 1 अक्टूबर 1945 के दिन उत्तर प्रदेश
के कानपुर ज़िला (वर्तमान में कानपुर देहात ज़िला) की तहसील डेरापुर, कानपुर देहात के एक
छोटे से गाँव परौंख में हुआ था। इन्होंने बी.कॉम पूरा कर कानपुर विश्वविद्यालय से एलएलबी
की डिग्री हासिल की थी। इन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट में बतौर सरकारी वकील काम किया।
वे सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के सदस्य भी थे।
राष्ट्रपति चुनाव के
लिए जब वे उम्मीदवार बने तब वे बिहार राज्य के राज्यपाल थे। वे केआर नारायणन के बाद
दूसरे दलित शख़्स थे, जो इस सर्वोच्च पद पर पहुंचे हो। 1991 में भाजपा के साथ जुड़ने वाले रामनाथ कोविंद इससे पहले दो बार सांसद भी रह चुके
थे।
द्रौपदी मुर्मू
जुलाई 25, 2022 से अब तक पदस्थ (भारतीय जनता पार्टी)
द्रौपदी मुर्मू भारत
की 15वीं राष्ट्रपति हैं। वे प्रतिभा पाटिल के बाद भारत की दूसरी महिला राष्ट्रपति
हैं। वे आज़ादी के बाद पैदा होने वाली प्रथम राष्ट्रपति हैं। द्रौपदी मुर्मू भारत की
सबसे कम उम्र की राष्ट्रपति हैं। इससे पहले यह रिकॉर्ड नीलम संजीव रेड्डी के नाम था।
इनका जन्म 20 जून 1958 के दिन ओडिशा के मयूरभंज
ज़िले के बैदापोसी गाँव में हुआ था। इन्होंने भुवनेश्वर के रामादेवी महिला महाविद्यालय
से स्नातक की डिग्री हासिल की। राजनीति में आने से पहले इन्होंने शिक्षक और क्लर्क
की नौकरी की।
साल 1997 में द्रौपदी मुर्मू
ने राइरंगपुर नगर पंचायत के पार्षद चुनाव में जीत दर्ज कर अपने राजनीतिक जीवन का आरंभ
किया। वे भाजपा की तरफ़ से विधायक भी बनीं। वे ओडिशा सरकार के मंत्रिमंडल में विभिन्न
विभागों में 2000 और 2004 के बीच मंत्री के रूप में काम कर चुकी हैं। द्रौपदी मुर्मू मई 2015 में झारखंड की 9वीं राज्यपाल बनाई
गई थीं। वे झारखंड राज्य के राज्यपाल का पद संभालने वाली पहली महिला हैं।
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