जैसे भारत में कोई खेल राष्ट्रीय खेल नहीं है, ठीक वैसे ही भारत
की कोई राष्ट्र भाषा भी नहीं है। मीडिया में, लेखों में, हमारी भावनाओं और मान्यताओं में जो भी हो, आधिकारिक रूप से भारत
की कोई राष्ट्र भाषा नहीं है। हिंदी भी नहीं, या अंग्रेज़ी भी नहीं।
हिंदी राजभाषा है, राष्ट्रभाषा नहीं। 1950 में भारतीय संविधान द्वारा देवनागरी लिपि में लिखी गई हिंदी को संघ की आधिकारिक
भाषा घोषित किया गया था। प्रति वर्ष 14 सितंबर हिंदी दिवस मनाया जाता है।
लगे हाथ हिंदी और हिन्दी
वाले भेद में यह भी जान लें कि भाषा विद्वानों के मुताबिक़ भले ही हिन्दी शुद्ध वर्तनी
हो, किंतु सरकारी दस्तावेज़ों
में इसे हिंदी ही लिखा जाता है। केंद्र सरकार के वेबसाइट rajbhasha.gov.in पर हिंदी और हिन्दी, दोनों वर्तनी मिल
जाती है। नोट यह भी करें कि भारत, जिसे अंग्रेज़ी में इंडिया कहते हैं, वह इंडिया नाम कोई शोर्ट फॉर्म नहीं है, और उसका कोई पूरा नाम नहीं है, जैसा कि सोशल मीडिया पर दावा किया जाता है। ख़ैर, हम राष्ट्रीय भाषा
तथा राजकीय भाषा वाली सड़क पर लौटते हैं।
भारत का संविधान किसी
भी भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं देता। हिंदी और अंग्रेज़ी का उपयोग आधिकारिक
उद्देश्यों जैसे क़ानून, न्यायपालिका और केंद्र सरकार और राज्य सरकार के बीच संचार के लिए किया जाता है।
भारत 28 राज्यों और 8 केंद्र शासित प्रदेशों
का एक संघ है, जिसमें भाषाओं की एक विस्तृत श्रृंखला है जो कुछ सैकड़ों किलोमीटर के बाद अलग-अलग
होती है। संविधान की स्थापना के बाद से राष्ट्रभाषा पर अनेक चर्चाएँ होती रही हैं।
हालाँकि, भारत की कोई राष्ट्रभाषा नहीं है। राष्ट्रभाषा और राजभाषा दो अलग-अलग चीज़ें हैं।
जैसा कि हमने ऊपर पैरा
में देखा, भारत राज्यों तथा केंद्र शासित प्रदेशों का एक संघ है, जिसका आधिकारिक नाम
रिपब्लिक ऑफ़ इंडिया; भारत गणराज्य है। लेख में आगे संघ शब्द का इस्तेमाल इसी संदर्भ में होगा।
भारत
की आधिकारिक भाषाएँ
1950 में भारतीय संविधान द्वारा देवनागरी में लिखी गई हिंदी को संघ की आधिकारिक भाषा
घोषित किया गया था। हमारे संविधान में किसी भी भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं दिया
गया। भारतीय संविधान के भाग 17 के अध्याय की अनुच्छेद 343(1) में इस प्रकार वर्णित है - संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी।
देश की स्वतंत्रता
के पश्चात भारतीय संविधान में शुरुआत में 14 भाषाओं को सूचीबद्ध किया गया था, जिनका प्रतिनिधित्व राजभाषा आयोग में किया गया था।
आधिकारिक उद्देश्यों
के लिए अंग्रेज़ी का उपयोग संविधान लागू होने के 15 साल बाद, या 26 जनवरी 1965 को समाप्त होना था, जब तक कि संसद ने अन्यथा मतदान नहीं किया। हालाँकि, परिवर्तन के विचार
ने भारत के ग़ैर-हिंदी भाषी क्षेत्रों में, विशेष रूप से द्रविड़ भाषी राज्यों में, जिनकी भाषाओं का हिंदी से कोई संबंध नहीं था, बहुत चिंता पैदा कर दी। आंदोलन, विरोध तथा हिंसा का दौर
चला।
परिणामस्वरूप, संसद द्वारा राजभाषा
अधिनियम, 1963 पारित किया गया, जो 26 जनवरी 1965 को लागू हुआ, जिसने गारंटी दी कि 1965 के बाद भी आधिकारिक उद्देश्यों के लिए हिंदी और अंग्रेज़ी का उपयोग जारी रहेगा।
भारतीय संविधान संसदीय
कार्यवाही में इस्तेमाल की जाने वाली भाषा और क़ानून बनाने की भाषा में अंतर करता है।
संविधान के अनुसार संसदीय कामकाज हिंदी या अंग्रेज़ी में किया जा सकता है। जो जन प्रतिनिधि
हिंदी या अंग्रेज़ी में अपनी बात कहने में असमर्थ है, वह संबंधित सदन के
अध्यक्ष की अनुमति से सदन को अपनी मातृभाषा में संबोधित कर सकता है। इसके विपरित संविधान
के अनुसार सभी नियमों, अधिनियमों, विनियमों, क़ानून या ऐसी कोई भी दस्तावेज़ी कार्रवाई जो संघ के संदर्भ में की जानी हो, वह
हिंदी तथा अंग्रेज़ी भाषा में लिखी व प्रकाशित की जाएगी।
भारतीय
संविधान के अनुसार राजभाषा, अनुच्छेद
343
अनुच्छेद 343 (एल) के अनुसार, संसद क़ानून द्वारा
निम्नलिखित सहित कुछ उद्देश्यों के लिए अंग्रेज़ी के अलावा हिंदी के उपयोग का प्रावधान
कर सकती है:
• सर्वोच्च न्यायालय का कार्य
• उच्च न्यायालयों का कार्य
• राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किसी न्यायाधिकरण या अन्य प्राधिकारी का कार्य
• संसद में कामकाज का लेन-देन
अनुच्छेद 343(एल) में यह भी कहा
गया है कि निम्नलिखित सहित कुछ उद्देश्यों के लिए हिंदी को अंग्रेज़ी द्वारा प्रतिस्थापित
किया जाएगा
• संघ और राज्य के बीच संचार
• संघ और एक लोक सेवक के बीच संचार
• एक लोक सेवक और एक ऐसे व्यक्ति के बीच संचार जो भारत का नागरिक नहीं है
• राष्ट्रपति और राज्यों के राज्यपालों के बीच पत्राचार
• उपराष्ट्रपति और लोक सभा के अध्यक्ष के बीच पत्राचार
• मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों के बीच पत्राचार
संविधान किसी भी भाषा
को कोई अधिमान्य दर्जा नहीं देता। भारत की आधिकारिक भाषाओं का निर्णय संसद द्वारा क़ानून
बनाकर किया जाता है।
भारत
की अनुसूचित भाषाएँ
ग़ौरतलब है कि हिंदी
को भारत की राष्ट्रभाषा घोषित नहीं किया गया है। यह अधिकांश आबादी द्वारा बोली जाती
है।
भारतीय संविधान के
अनुच्छेद 344(1) और 351 के अनुसार, आठवीं अनुसूची में 22 क्षेत्रीय भाषाओं की मान्यता शामिल है, जिन्हें अनुसूचित भाषाएँ कहा जाता है।
इस सूची में शामिल भाषाएँ संविधान लागू होने के समय राजभाषा आयोग में प्रतिनिधित्व
की हकदार थीं, तथा संघ की आधिकारिक भाषाओं हिंदी और अंग्रेज़ी को समृद्ध करने के लिए इस्तेमाल
की जाने वाली नींव में से एक के रूप में काम करने के कारक के रूप में देखी गई थीं।
इसके अलावा, उम्मीदवारों को सार्वजनिक सेवा के लिए आयोजित परीक्षा में प्रश्नों का उत्तर देते
समय इनमें से किसी भी भाषा का उपयोग करने की अनुमति है।
ये 22 अनुसूचित भाषाएँ इस
प्रकार हैं:-
असमिया
|
बंगाली
|
बोडो
|
डोगरी
|
गुजराती
|
हिंदी
|
कन्नड़
|
कश्मीरी
|
कोंकणी
|
मैथिली
|
मलयालम
|
मणिपुरी
|
मराठी
|
नेपाली
|
उड़िया
|
पंजाबी
|
संस्कृत
|
संथाली
|
सिंधी
|
तामिल
|
तेलुगू
|
उर्दू
|
|
|
इस समय संविधान की
आठवीं अनुसूची में 38 और भाषाओं को शामिल किए जाने की माँग है, जो इस प्रकार है:-
अंगिका
|
बंजारा
|
बज्जिका
|
भोजपुरी
|
भोटी
|
भोटिया
|
बुंदेलखंडी
|
छत्तीसगढ़ी
|
धत्ती
|
अंग्रेज़ी
|
गढ़वाली पहाड़ी
|
गोंडी
|
गुर्जरी
|
हो
|
कच्छी
|
कानपुरी
|
कार्बी
|
खासी
|
कोडवा कूर्गी
|
कोक बोरोक
|
कुमाऊँनी पहाड़ी
|
कुरुख
|
कुरमाली
|
लेपचा
|
लिम्बू
|
मिज़ो लुशाई
|
मगही
|
मुंडारी
|
नागपुरी
|
निकोबारी
|
पहाड़ी हिमाचली
|
पाली
|
राजस्थानी
|
संबलपुरी कोसली
|
शौरसेनी प्राकृत
|
सिरैकी
|
तेनियादी
|
तुलू
|
|
|
|
|
1857 तथा
1947 के
पश्चात भारत में हिंदी का सफ़र संक्षेप में
भारत में भाषाओं के
शताब्दियों पुराने सफ़र में हम केवल हिंदी की बात कर रहे हैं और यह सफ़र भी बहुत पुराना
है। इसलिए हम आधिकारिक और पुष्ट सड़क को नापते हुए इसे 1857 के पश्चात काल से
ही देख लेते हैं।
स्वतंत्रता से पहले
ब्रिटिश भारत की आधिकारिक भाषाएँ अंग्रेज़ी, मानक उर्दू और बाद में आधुनिक मानक हिंदी थीं। तभी से अंग्रेज़ी का उपयोग केंद्रीय
स्तर पर किया जाने लगा था। आधिकारिक हिंदी प्रयोग की शुरुआत 19वीं सदी के अंत में
हुई।
1881 में उर्दू की जगह हिंदी बिहार की आधिकारिक भाषा बनी। कह सकते हैं कि स्वतंत्रता
प्राप्ति से बहुत पहले ही हिंदी को राजभाषा बनाने वाला पहला प्रदेश बिहार था। स्वतंत्रता
प्राप्ति के पश्चात भारतीय संविधान का अंश बनने के बाद बिहार पहला ऐसा राज्य था जिसने
हिंदी को अंगीकार किया। जबकि कई क्षेत्र ऐसे भी थे जहाँ हिंदी का इस्तेमाल नहीं होता
था और वहाँ हिंदी भाषा को थोपने के प्रयास का तत्काल विरोध होता रहा। वे प्रदेश हिंदी
विरोधी बिलकुल नहीं थे, किंतु स्वाभाविक है कि इन क्षेत्रों की जनभाषा अलग थी।
1900 में मैकडॉनेल ने एक आदेश जारी किया, जिसने उत्तर-पश्चिमी प्रांतों की अदालतों में हिंदुस्तानी भाषा के लिए देवनागरी
के "Permissible – but not exclusive – use" की अनुमति दी। वर्ष 1918 में महात्मा गाँधी ने हिंदी साहित्य सम्मेलन में हिंदी भाषा को राष्ट्रभाषा बनाने
पर जोर दिया था। इसे गाँधीजी ने जनमानस की भाषा भी कहा था।
स्वतंत्रता प्राप्ति
के पश्चात बी. आर. अम्बेडकर की अध्यक्षता वाली समिति में भाषा संबंधी क़ानून बनाने
का असाधारण कार्य अलग-अलग भाषाई पृष्ठभूमियों से आए दो विद्वानों की अगुआई में चला।
एक थे बंबई की सरकार में गृह मंत्री रह चुके कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी, जबकि दूसरे थे 1937 से 1943 के दरम्यान जम्मू-कश्मीर
के प्रधानमंत्री के रूप में काम करने वाले एन. गोपालस्वामी आयंगर। इनकी अगुआई में भारत
की राष्ट्रभाषा को तय किए जाने के मुद्दे पर हिन्दी के पक्ष और विपक्ष में तीन साल
तक गहन वाद-विवाद चला।
संविधान सभा भाषा के
मुद्दे पर एकराय नहीं थी। अनेक सदस्य देवनागरी में लिखी गई हिंदी को अपनाने के पक्ष
में तो थे, किंतु भाषा - लिपि तथा अंक के मुद्दे पर मतभेद थे। विशाल भारत में आम जनजीवन
तथा संस्कृति में विशाल भाषाकीय वैविध्यता भी बड़ा मसला था। हिंदी भले ही सबसे ज़्यादा
बोली जाने वाली भाषा हो, किंतु सभी भारतीयों तथा भारत के सभी प्रदेशों की जनभाषा और संस्कृति नहीं थी।
काफी विचार-विमर्श
के बाद अंततः मुंशी-आयंगर फ़ॉर्मूला कहे जाने वाले एक समझौते पर मुहर लगी और 1949 के साल में 14 सितम्बर के दिन संविधान
सभा ने यह निर्णय लिया कि हिंदी स्वतंत्र भारत की राष्ट्रभाषा नहीं बल्कि आधिकारिक
भाषा होगी। चूँकि भारत में अधिकतर क्षेत्रों में हिंदी भाषा बोली जाती थी, इसलिए हिंदी को राजभाषा
बनाने का निर्णय लिया गया था।
हालाँकि जब राजभाषा
के रूप में हिंदी को चुना गया और लागू किया गया तो ग़ैर-हिंदी भाषी राज्य के लोग इसकी
आलोचना तथा विरोध करने लगे। यह बिलकुल स्वाभाविक भी था, क्योंकि यह उनकी जनभाषा
नहीं थी और आधिकारिक इस्तेमाल करने से उन्हें अनेक दिक्कतों का सामना करना पड़ता। स्वाभाविक
है कि गुजरात में आधिकारिक भाषा गुजराती होगी, हिंदी या अंग्रेज़ी नहीं, क्योंकि गुजराती यहाँ की जनभाषा है। यही स्वाभाविक दिक्क्त इन राज्यों में थी।
इसीके चलते हिंदी के
साथ अंग्रेज़ी का उपयोग आधिकारिक उद्देश्यों के लिए किया गया। अंग्रेज़ी का आधिकारिक
इस्तेमाल 26 जनवरी 1965 को समाप्त होना था, किंतु ग़ैर-हिंदी भाषी क्षेत्रों की व्यावहारिक और स्वाभाविक दिक्क्तों को देखते
हुए राजभाषा अधिनियम, 1963 पारित किया गया, जो 26 जनवरी 1965 से लागू हुआ। जिसके बाद आधिकारिक उद्देश्यों के लिए हिंदी और अंग्रेज़ी का उपयोग
जारी रहा।
महत्वपूर्ण
बिंदु
1950: प्रारंभ में 14 अनुसूचित भाषाओं को
संविधान में शामिल किया गया।
1967: 21वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम द्वारा सिंधी को जोड़ा गया।
1992: 71वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम द्वारा कोंकणी, मणिपुरी (मैतेई) और नेपाली को जोड़ा गया।
2003: 92वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम द्वारा बोडो, डोगरी, मैथिली और संताली को शामिल किया गया।
2011: 96वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम द्वारा वर्तनी उड़िया को ओडिया से बदल दिया गया।
दिलचस्प
• हिंदी को इसका नाम फ़ारसी शब्द हिंद से मिला है, जिसका अर्थ है - सिंधु नदी की भूमि। हिंदी इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार की इंडो-आर्यन
शाखा की सदस्य है। यह देवनागरी लिपि में लिखी गई है और संस्कृत से काफी प्रभावित है।
• हिंदी में 11 स्वर और 33 व्यंजन हैं, और कोई आर्टिकल नहीं
है (जैसे अंग्रेजी में 'ए', 'ए' और 'द')।
• राज्यों के स्तर पर हिंदी को बिहार, छत्तीसगढ़, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता दी गई है।
• उम्मीदवारों को सार्वजनिक सेवा के लिए आयोजित परीक्षा में प्रश्नों का उत्तर देते
समय 22 अनुसूचित भाषाओं से किसी भी भाषा का उपयोग करने की अनुमति है।
• इंडियन एक्सप्रेस के एक रिपोर्ट की माने तो, विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं में हिंदी तीसरे क्रम पर है।
• भारत के अलावा, यह मॉरीशस, फ़िजी, सूरीनाम, गुयाना, त्रिनिदाद और टोबैगो, पाकिस्तान और नेपाल जैसे देशों में भी बोली
जाती है।
• आम जन भाषा में कहा जाता है कि ऊंच-नीच नहीं मानती हिंदी। देखा जाएँ तो यह सच भी
है। क्योंकि हिंदी लिखते समय इसमें कोई भी लेटर कैपिटल या स्मॉल नहीं होता।
लाज़मी है कि भारत
विशाल देश है, जहाँ तरह तरह की भाषाएँ
बोली जाती हैं। इस देश की विविधिता के बारे में इतराते समय यह समझ भी होनी चाहिए कि
इतनी विशाल वैविध्यताओं के बीच यहाँ किसी एक भाषा को राष्ट्रभाषा घोषित करना व्यावहारिक
नहीं है। हिंदी भले ही भारत में सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली भाषा हो, किंतु अनेक राज्यों, करोड़ों नागरिकों की संस्कृति में यह भाषा
नहीं है। अगर हम 'कदम कदम पर धरती बदले रंग' गाने के साथ गौरवान्वित
होने का सुख प्राप्त करते हैं तो फिर इस सुख के साथ समझ भी होनी चाहिए कि किसी एक भाषा
को सभी पर थोपना व्यावहारिक नहीं हो सकता।
हिंदी को राजभाषा के
रूप में मान्यता दी गई है। वह राष्ट्रभाषा होनी चाहिए ऐसा मानने वाले ज़्यादातर नागरिक
ही हिंदी ठीक से बोल-लिख-समझ नहीं पाते। हमने ऊपर देखा कि सिर्फ़ 9 राज्यों में हिंदी
आधिकारिक भाषा है। सिंपल सी बात है कि हिंदी संघ की राजभाषा है और अंग्रेज़ी के
आधिकारिक इस्तेमाल की अनुमति है। कौन सी भाषा बोली-लिखी जाए यह ज़रूरी नहीं है, ज़रूरी तो यह है कि मुँह से जो भाषा निकलने
लगी है उसे सुघारा जाएँ।
हमारे संविधान निर्माता संभवत: इस बात को अच्छी तरह जानते थे कि भाषा की औपनिवेशिक दासता से बाहर आने के लिए बहुत
मेहनत करनी होगी। इसीलिए राजभाषा क़ानून के आख़िरी अनुच्छेद में उन्होंने सरकार के
कर्तव्य निर्धारित करते हुए लिखा, "संघ का यह कर्तव्य होगा कि वह हिंदी भाषा का प्रसार बढ़ाए, उसका विकास करे, जिससे वह भारत की सामासिक
संस्कृति (कंपोजिट कल्चर) के सभी तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके।" राजभाषा
आयोग ने यह भी बताया था कि किस तरह हिंदी का शब्द भंडार समृद्ध किया जाना चाहिए।
(इनसाइड इंडिया, एम वाला)