जैसा कि आप जानते हैं, 26 जनवरी हमारा गणतंत्र दिवस है जबकि 15 अगस्त स्वतंत्रता दिन, तथा 26 नवम्बर संविधान दिवस
के रूप में मनाया जाता है। 26 जनवरी 1950 वो दिन था जब संविधान लागू हुआ। उसी दिन से भारत एक लोकतांत्रिक, संप्रभु तथा गणतंत्र
देश बना। इस दिन सुबह 10 बजकर 18 मिनट पर भारत के अंतिम गवर्नर जनरल चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने भारत को संप्रभु
लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित किया और भारत का संविधान लागू हुआ।
उसी दिन भारत के पहले
राष्ट्रपति के तौर पर डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने गवर्नमेन्ट हाउस में शपथ ली। भारतीय
संविधान की कमेटी द्वारा चुनाव के बाद 26 जनवरी 1950 को स्वतंत्र और गणतंत्र भारत के पहले राष्ट्रपति के रूप में इन्होंने पदभार ग्रहण
किया। उन्हें 31 तोपों की सलामी दी गई और इरविन स्टेडियम में तिरंगा फहराया गया। पहले गणतंत्र
दिवस के समारोह में इंडोनेशिया के राष्ट्रपति डॉ. सुकर्णो मुख्य अतिथि थे।
दिल्ली के राजपथ पर, जिसका आधिकारिक नाम
अब कर्तव्य पथ है, गणतंत्र दिवस का जश्न मनना 1955 में शुरू हुआ। राजपथ (कर्तव्य पथ) पर मनाए गए इस प्रथम जश्न में मुख्य अतिथि पाकिस्तान
के गवर्नर जनरल गुलाम मोहम्मद थे। हमने जिस राष्ट्र से स्वतंत्रता हासिल की थी उस ब्रिटेन
से पहली बार 1961 में रानी एलिज़ाबेथ मुख्य मेहमान बनी थीं।
गणतंत्र
दिवस से जुड़ी हुई कुछ बातें
देश की राजधानी दिल्ली
में 26 जनवरी 1950 को पहला गणतंत्र दिवस समारोह तब राजपथ (वर्तमान में कर्तव्य पथ) के बजाय
इरविन स्टेडियम (जिसे आज मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम के नाम से जाना जाता है) में
मनाया गया था। उस दौरान स्टेडियम की चारदीवारी नहीं थी। खुले मैदान के सामने स्थित
पुराना क़िला साफ दिखाई देता था।
इसके बाद 1954 तक गणतंत्र दिवस समारोह
कभी इरविन स्टेडियम, कभी किंग्स वे (राजपथ), लाल क़िला तो कभी रामलीला मैदान में मनाया गया। राजपथ पर इस परंपरा की नियमित
शुरूआत वर्ष 1955 से हुई। तब से आज तक गणतंत्र दिवस समारोह के दौरान परेड की शुरूआत रायसिना
हिल्स से होती है और वह राजपथ (कर्तव्य पथ), इंडिया गेट से गुज़रती हुई लाल क़िला तक जाती है।
गणतंत्र दिवस आयोजन
की ज़िम्मेदारी रक्षा मंत्रालय की होती है। आयोजन में लगभग 70 अन्य विभाग व संगठन
रक्षा मंत्रालय की मदद करते हैं। देश के प्रथम नागरिक यानी राष्ट्रपति गणतंत्र दिवस
समारोह में हिस्सा लेते हैं और राष्ट्रीय ध्वज भी वही फहराते हैं। संबंधित राज्यों
के राज्यपाल राज्य की राजधानियों में गणतंत्र दिवस समारोह के मौक़े पर राष्ट्रीय ध्वज
फहराते हैं।
गणतंत्र दिवस समारोह
की शुरूआत राष्ट्रपति के क़ाफ़िले के आगमन के साथ होती है। राष्ट्रपति अपनी विशेष कार
से आते हैं तथा इनके आसपास स्पेशल घुड़सवार अंगरक्षक चलते हैं। राष्ट्रपति द्वारा ध्वजारोहण
के समय उनके विशेष घुड़सवार अंगरक्षक समेत वहाँ मौजूद सभी लोग सावधान की मुद्रा में
खड़े होकर तिरंगे को सलामी देते हैं। फिर राष्ट्रगान की शुरूआत होती है।
गणतंत्र दिवस समारोह को मुख्य रूप से तीन भागों में विभाजित किया जाता है – गणतंत्र दिवस परेड, बीटिंग रिट्रीट और
पुरस्कार वितरण। बीटिंग रिट्रीट समारोह गणतंत्र दिवस के तीसरे
दिन, यानी 29 जनवरी के दिन आयोजित किया जाता है। बीटिंग रिट्रीट का आयोजन रायसीना हिल्स पर
राष्ट्रपति भवन के सामने किया जाता है, जिसके चीफ़ गेस्ट राष्ट्रपति होते हैं। यह समारोह गणतंत्र दिवस समारोह की समाप्ति
का सूचक है।
गणतंत्र
दिवस के मौक़े पर राजधानी में जश्न का मुख्य आकर्षण - परेड
गणतंत्र दिवस पर राजधानी
में जो जश्न मनाया जाता है उसका मुख्य आकर्षण होता है परेड। इस दिन कर्तव्य पथ की सुबह
बेहद शानदार होती है। समूचा दिल्ली ट्रैफ़िक में थम जाता है, लेकिन कर्तव्य पथ
और उसके आसपास के इलाक़े तीन रंगों में बहते हुए दिख जाते हैं। भारत के राष्ट्रपति
भव्य परेड की सलामी लेते हैं। वे भारतीय सशस्त्र बलों के कमांडर-इन-चीफ़ भी हैं।
परेड निकलती है तब
लगता है कि हम उसे देख नहीं रहे, बल्कि उस परेड में हम भी शामिल हैं। फ़ौजियों की टोलियाँ जब अनुशासित तरीक़े से
कदम से कदम मिलाकर निकलती हैं, लगता है कि हम भी उसी पथ पर उनके साथ चल रहे हो। हर झाँकी, हर टोलियाँ, सेना समूहों द्वारा
चमकदार बूट के साथ ताल से ताल मिलाकर चलना, आसमान में ग़ज़ब के नियंत्रण के साथ उड़ते जहाज़ों को देखना, सब कुछ अविस्मरणीय
अनुभव प्रदान करता है। अनुशासित तरीक़े से टोलियों को चलता देख लगता है कि दिल की धड़कनें
भी ख़ुद-ब-ख़ुद ताल से ताल मिला रही हो।
यह परेड कर्तव्य
पथ पर राष्ट्रपति भवन से लेकर इंडिया गेट और वहाँ से लाल क़िले तक होती है। परेड
की शुरूआत भारत के राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रीय ध्वज फहराने के साथ होती है। इसके
बाद थलसेना, नौ सेना और वायु सेना की कई टुकड़ियों द्वारा मार्च किया जाता है। इस दौरान विभिन्न
राज्यों की सांस्कृतिक विशेषताओं को दर्शाने के लिए कुछ झाँकियाँ प्रदर्शित की जाती
हैं। साथ ही विभिन्न सरकारी मंत्रालयों व विभागों की झाँकियाँ भी प्रदर्शित की जाती
हैं।
परेड में शामिल सभी
झाँकियाँ 5 किमी प्रति घंटा की नीयत रफ़्तार से चलती हैं, ताकि उनके बीच उचित दूरी बनी रहे और लोग आसानी से उन्हें देख
सकें। परेडों का उद्देश्य प्रतिद्वंदियों के समक्ष शक्ति प्रदर्शन का भी होता है और
इन्हीं वजहों से परेड के दौरान भारतीय सेना की ताक़त का प्रदर्शन होते हुए देखना दिलचस्प
नज़ारा प्रदान करता है।
स्वाभाविक है कि परेड
और झाँकियों की तैयारियाँ महीनों पहले से शुरू हो चुकी होती हैं। सर्वश्रेष्ठ परेड
की ट्रॉफी देने के लिए पूरे रास्ते में कई जगहों पर जजों को बिठाया जाता है। ये जज
प्रत्येक दल को 200 मापदंडों पर नंबर देते हैं। इसके आधार पर सर्वश्रेष्ठ मार्चिंग दल का चुनाव होता
है। किसी भी दल के लिए इस ट्रॉफी को जीतना बड़े गौरव की बात होती है।
सालाना परेड के मुख्य
अतिथियों की सूची हम नीचे देखेंगे। 2016 के जश्न में शायद पहला मौक़ा था जब किसी विदेशी सैनिकों की टुकड़ी ने कर्तव्य
पथ (पूर्व में राजपथ) पर परेड की हो। यह फ्रांस की सैनिक टुकड़ी थी। 2017 के जश्न में एनएसजी
कमांडो पहली बार परेड में शामिल हुए। उसी साल स्वदेशी फ़ाइटर जेट तेजस भी जश्न में
पहली बार पथ से गुज़रा था। भारतीय तोप धनुष भी 2017 के जश्न में पहली बार उतरी थी। 2017 के जश्न में अरबी
सैनिक टुकड़ी ने परेड में हिस्सा लिया था।
पहले
गणतंत्र दिवस की पहली परेड
गणतंत्र दिवस की पहली
परेड आज की तरह भव्य नहीं थी, लेकिन 1950 में ऐसा पहली बार ऐसा हुआ था इसलिए यह भारतीयों के दिल पर अमिट छाप छोड़ने वाली
थी। वह उनके लिए यादगार थी। दिल्ली समेत अनेक शहरों में लोग चौराहे पर खड़े होकर आने-जाने
वालों को मिठाई बाँट रहे थे। चांदनी चौक समेत देश के अनेक चौक-चौराहे सजाए गए थे और
जगह-जगह लोग फूल और तिरंगे के साथ निकले थे। इस दिन गणतंत्र दिवस का जश्न मनाने के
लिए राष्ट्रीय अवकाश घोषित किया गया था।
पहली परेड में किसी
तरह की झाँकियों ने हिस्सा नहीं लिया था, लेकिन थल, वायु और नौ सेनाओं की टुकड़ियों ने हिस्सा लिया था। वर्तमान में गणतंत्र दिवस
की परेड राजपथ से होते हुए लाल क़िले तक जाती है, लेकिन पहली परेड में ऐसा नहीं था।
सुबह नहीं, शाम को निकली थी परेड
वर्तमान में परेड की
शुरूआत सुबह होती है, लेकिन पहली परेड की शुरूआत शाम को हुई थी। 26 जनवरी 1950 को दोपहर 2 बजकर 30 मिनट पर देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद बग्गी में सवार होकर राष्ट्रपति
भवन से निकले। कनॉट प्लेस से होते हुए वे 3 बजकर 45 मिनट पर नेशनल स्टेडियम पहुँचे, जिसे उस दौर में इरविन स्टेडियम कहा जाता था।
राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र
प्रसाद विशेष रूप से सुसज्जित बग्गी में सवार थे, जिसे 6 ऑस्ट्रेलियाई घोड़े खींच रहे थे। परेड स्थल पर शाम को राष्ट्रपति को 31 तोपों की सलामी दी
गई। 1971 में 31 तोपों की सलामी देने की परंपरा को ख़त्म करके राष्ट्रपति को 21 तोपों की सलामी की
शुरूआत हुई।
21 तोपों की सलामी वास्तव में भारतीय सेना की 7 तोपों द्वारा दी जाती है, जिन्हें पौन्डर्स कहा जाता है। प्रत्येक तोप से तीन राउंड फायरिंग
होती है। ये तोपें 1941 में बनी थीं और सेना के सभी औपचारिक कार्यक्रमों में इन्हें शामिल करने की परंपरा
है।
पहली परेड में 3 हज़ार जवान और 100 विमानों को हिस्सा
बनाया गया था। इसके अलावा सेना के सात बैंड भी शामिल हुए थे। यह परंपरा आज भी क़ायम
है। गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि को बुलाने की परंपरा की शुरूआत पहली परेड से ही हो
गई थी और उस मौक़े पर इंडोनेशिया के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. सुकर्णो को चीफ़ गेस्ट
बनाया गया था।
गणतंत्र
दिवस के जश्न के मुख्य अतिथियों की सूची (1950-2024)
पहला गणतंत्र दिवस
1950 में मनाया गया था, जिसमें इंडोनेशिया के राष्ट्रपति डॉ. सुकर्णो
मुख्य अतिथि थे। सूची को क्रम में रखे तो,
साल
|
नाम
|
देश
|
1950
|
डॉ. सुकर्णो, राष्ट्रपति
|
इंडोनेशिया
|
1951
|
राजा त्रिभुवन बीर
बिक्रम शाह
|
नेपाल
|
1952
|
-
|
-
|
1953
|
-
|
-
|
1954
|
जिग्मे दोरजी वांगचुक,
राजा
|
भूटान
|
1955
|
मलिक गुलाम मोहम्मद,
गर्वनर जनरल
|
पाकिस्तान
|
1956
|
चांसलर ऑफ़ द एक्सचेकर
आर ए बटलर
मुख्य न्यायाधीश
कोटारो तनाका
|
यूनाइटेड किंगडम
जापान
|
1957
|
रक्षा मंत्री जियोर्जी
ज़ुकोव
|
सोवियत संघ
|
1958
|
ये जियानयिंग, मार्शल
|
चीन
|
1959
|
ड्यूक ऑफ़ एडिनबर्ग
प्रिंस फिलिप
|
यूनाइटेड किंगडम
|
1960
|
क्लिमेंट वोरोशिलोव,
राष्ट्रपति
|
सोवियत संघ
|
1961
|
रानी एलिज़ाबेथ द्वितीय
|
यूनाइटेड किंगडम
|
1962
|
प्रधान मंत्री विगगो
कैंपमैन
|
डेनमार्क
|
1963
|
नोरोदोम सिहानोक,
राजा
|
कंबोडिया
|
1964
|
रक्षा स्टाफ़ के
प्रमुख लॉर्ड लुईस माउंटबेटन
|
यूनाइटेड किंगडम
|
1965
|
राना अब्दुल हामिद,
खाद्य एवं कृषि मंत्री
|
पाकिस्तान
|
1966
|
-
|
-
|
1967
|
राजा मोहम्मद ज़हीर
शाह
|
अफ़ग़ानिस्तान
|
1968
|
एलेक्सी कोज़ीगिन,
प्रधानमंत्री
जोसिप ब्रोज़ टीटो,
राष्ट्रपति
|
सोवियत यूनियन
यूगोस्लाविया
|
1969
|
टोडर ज़िकोव, प्रधानमंत्री
|
बुल्गारिया
|
1970
|
राजा बौदौइन
|
बेल्जियम
|
1971
|
जुलियस न्येरेरे,
राष्ट्रपति
|
तंजानिया
|
1972
|
सीवूसागुर रामगुलाम,
प्रधानमंत्री
|
मॉरीशस
|
1973
|
मोबुतु सेसे सीको,
राष्ट्रपति
|
जैरे
|
1974
|
जोसिप ब्रोज़ टीटो,
राष्ट्रपति
सिरिमावो रतवत्ते
दियास भंडारनायके, प्रधानमंत्री
|
यूगोस्लाविया
श्रीलंका
|
1975
|
केनेथ कौंडा, राष्ट्रपति
|
जांबिया
|
1976
|
जैक्स शिराक, प्रधानमंत्री
|
फ्रांस
|
1977
|
एडवर्ड गिरेक, प्रथम
सचिव
|
पोलैंड
|
1978
|
पैट्रिक हिलेरी, राष्ट्रपति
|
आयरलैंड
|
1979
|
मलकोलम फ्रेजर, प्रधानमंत्री
|
ऑस्ट्रेलिया
|
1980
|
वैलेरी गिस्कार्ड
डी'एस्टाइंग, राष्ट्रपति
|
फ्रांस
|
1981
|
जोस लोपेज़ पोर्टिलो,
राष्ट्रपति
|
मेक्सिको
|
1982
|
जॉन कार्लोस प्रथम,
राजा
|
स्पेन
|
1983
|
शेहु शगारी, राष्ट्रपति
|
नाइजीरिया
|
1984
|
राजा जिग्मे सिंघे
वांगचुक
|
भूटान
|
1985
|
रॉल अलफोन्सिन, राष्ट्रपति
|
अर्जेंटीना
|
1986
|
एँड्रियास पपनड्रीयु,
प्रधानमंत्री
|
ग्रीस
|
1987
|
एलेन गार्सिया, राष्ट्रपति
|
पेरू
|
1988
|
जुलियस जयवर्धने,
राष्ट्रपति
|
श्रीलंका
|
1989
|
गुयेन वैन लिंह
|
वियतनाम
|
1990
|
अनिरुद्ध जगन्नाथ,
प्रधानमंत्री
|
मॉरीशस
|
1991
|
मौमून अब्दुल गयूम,
राष्ट्रपति
|
मालदीव
|
1992
|
मारियो सोरेस, राष्ट्रपति
|
पुर्तगाल
|
1993
|
जॉन मेजर,
प्रधानमंत्री
|
यूनाइटेड किंगडम
|
1994
|
गोह चोक टोंग,
प्रधानमंत्री
|
सिंगापुर
|
1995
|
नेल्सन मंडेला, राष्ट्रपति
|
दक्षिण अफ्रीका
|
1996
|
डॉ. फर्नांडो हेनरिक
कार्डोसो, राष्ट्रपति
|
ब्राज़ील
|
1997
|
बासदियो पांडेय,
प्रधानमंत्री
|
त्रिनिदाद - टोबैगो
|
1998
|
जैक्स शिराक,
राष्ट्रपति
|
फ्रांस
|
1999
|
राजा बीरेंद्र बीर
बिक्रम शाह देव
|
नेपाल
|
2000
|
ओलुसेगुन ओबासान्जो,
राष्ट्रपति
|
नाइजीरिया
|
2001
|
अब्देलअज़ीज़ बुटेफ़्लिका, राष्ट्रपति
|
अल्जीरिया
|
2002
|
कसाम उतीम,
राष्ट्रपति
|
मॉरीशस
|
2003
|
मोहम्मद ख़ातमी,
राष्ट्रपति
|
इरान
|
2004
|
लुइज़ इनासियो लूला
दा सिल्वा, राष्ट्रपति
|
ब्राज़ील
|
2005
|
राजा जिग्मे सिंघे
वांगचुक
|
भूटान
|
2006
|
अब्दुल्ला बिन अब्दुल्लाजीज
अल-सऊद, राजा
|
सऊदी अरेबिया
|
2007
|
व्लादिमीर पुतिन,
राष्ट्रपति
|
रूस
|
2008
|
निकोलस सरकोजी,
राष्ट्रपति
|
फ्रांस
|
2009
|
नूरसुल्तान नजरबायेव,
राष्ट्रपति
|
कज़ाकिस्तान
|
2010
|
ली म्युंग बाक,
राष्ट्रपति
|
कोरिया गणराज्य
|
2011
|
सुसीलो बाम्बांग
युद्धोयोनो, राष्ट्रपति
|
इंडोनेशिया
|
2012
|
यिंगलुक शिनावात्रा, प्रधानमंत्री
|
थाईलैंड
|
2013
|
जिग्मे खेसर नामग्याल
वांगचुक, राजा
|
भूटान
|
2014
|
शिंजो आबे,
प्रधानमंत्री
|
जापान
|
2015
|
बराक ओबामा,
राष्ट्रपति
|
यूएसए
|
2016
|
फ्रांस्वा ओलांद,
राष्ट्रपति
|
फ्रांस
|
2017
|
शेख मोहम्मद बिन
जायद अल नाहयान,
क्राउन प्रिंस
|
अबू धाबी
|
2018
|
सभी दस आसियान देशों
के प्रमुख
|
|
2019
|
सिरिल रामाफोसा,
राष्ट्रपति
|
दक्षिण अफ्रीका
|
2020
|
जेयर बोल्सोनारो,
राष्ट्रपति
|
ब्राज़ील
|
2021
|
-
|
-
|
2022
|
-
|
-
|
2023
|
अब्देल फत्ताह अल
सीसी, राष्ट्रपति
|
मिस्र
|
2024
|
इमैनुएल मैक्रों,
राष्ट्रपति
|
फ्रांस
|
गणतंत्र
की आत्मा सरीखे संविधान की कुछ रोचक बातें
गणतंत्र दिवस की आत्मा
है भारत का संविधान। इसके बारे में संक्षेप में देखे तो, भारत का संविधान, भारत का सर्वोच्च
विधान है, जो संविधान सभा द्वारा 26 नवम्बर 1949 को पारित हुआ तथा ठीक 2 महीने बाद 26 जनवरी 1950 से प्रभावी हुआ। वक़्त था सुबह 10 बजकर 18 मिनट। 26 नवम्बर भारत के संविधान दिवस के रूप में घोषित किया गया है, जबकि 26 जनवरी का दिन भारत
में गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है।
भारत का संविधान विश्व
के किसी भी गणतांत्रिक देश का सबसे लंबा लिखित संविधान है। संविधान के उद्देश्यों को
प्रकट करने हेतु प्राय: उनसे पहले एक प्रस्तावना प्रस्तुत की जाती है। प्रस्तावना यह
घोषणा करती है कि संविधान अपनी शक्ति सीधे जनता से प्राप्त करता है, इसी कारण यह 'हम भारत के लोग' - इस वाक्य से प्रारम्भ
होती है।
संविधान विशेष क़ानूनी
शुचिता वाले लोगों के विश्वास और आकांक्षाओं का दस्तावेज़ है। देश के बाकी सभी क़ानून
और रीति-रिवाजों को वैध होने के लिए इसका पालन करना होगा। समय-समय पर संविधान में कई
संशोधन किए गए हैं।
संविधान को बनाने में
2 वर्ष 11 महीने और 18 दिन लगे थे। भारतीय
संविधान की ख़ूबी यही है कि यह संविधान स्वयं की आलोचना करने की इजाज़त देता है। यानी
कि आप संविधान पर सवाल उठा सकते हैं। इतनी छूट शायद ही कोई संविधान प्रदान करता हो।
साथ ही भारत का संविधान संशोधन की जगह भी रखे हुए हैं।
अब तक 110 से भी अधिक संविधान
संशोधन हो चुके हैं। स्थिरता प्रगति का सबसे बड़ा रोड़ा है और इसी भावना के आधार पर
संविधान स्वयं को संशोधित करने की अनुमति देता है। भारत का संविधान स्थिर नहीं है, बल्कि संशोधनात्मक
है। इसमें पहला संशोधन इसके लागू होने के एक साल बाद ही, 1951 में हुआ था और यह
सिलसिला संविधान बनने के इतने साल बाद आज भी जारी है।
यहाँ नोट करना चाहिए
कि संविधान की प्रस्तावना, संविधान की मूल भावना और उसके मूल ढाँचे को संशोधित नहीं किया जा सकता।
भारत के संविधान में
विकेंद्रीकरण या शक्ति विभाजन महत्वपूर्ण लाक्षणिकता है। इसीके ज़रिए सत्ता या शक्ति
को किसी एक जगह केंद्रित होने से रोका गया है। राज्यसभा, लोकसभा, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, सर्वोच्च न्यायालय...
कोई भी हो, सत्ता का केंद्रीकरण नहीं है बल्कि सत्ता का विभाजन किया गया है।
भारत के संविधान की
शुरूआत ही 'वी द पीपल' से होती है। दरअसल, संविधान निर्माताओं ने सत्ता के विकेंद्रीकरण के साथ साथ नागरिकों को शायद सबसे
ज़्यादा सत्ता प्रदान की है, जिसका सही व ग़लत इस्तेमाल संविधान को सही व ग़लत साबित करता है।
डॉ. भीमराव आंबेडकर
ने कहा था कि - मैं महसूस करता हूँ कि संविधान चाहे कितना भी अच्छा क्यों न हो, यदि वे लोग, जिन्हें संविधान को
अमल में लाने का काम सौंपा जाए, ख़राब निकले तो निश्चित रूप से संविधान भी ख़राब सिद्ध होगा। दूसरी ओर, संविधान चाहे कितना
भी ख़राब क्यों न हो, यदि वे लोग जिन्हें संविधान को अमल में लाने का काम सौंपा जाए, अच्छे हो तो संविधान
अच्छा सिद्ध होगा।
और संविधान को अमल
में लाने का काम किसे सौंपा जाए उसकी आख़िरी सत्ता लोगों के पास है। लोगों के विवेक
पर है कि वे किसका विवेक इस्तेमाल करें। शायद... अविवेक के समय में लोगों का विवेक
ही संविधान का मूल आधार है। और संविधान गणतंत्र की आत्मा है।
(इनसाइड इंडिया, एम वाला)