लास्ट अपडेट अक्टूबर
2019
पहले ख़बरें प्रमाणित
हैं या नहीं यह जाँचने हेतु न्यूज़ चैनल देखे जाते थे, आजकल न्यूज़ वालों की ख़बरों में कितना दम है यह जाँचने किसी दूसरे प्लेटफॉर्म
पर जाना पड़ता है! फ़ेक न्यूज़, अविश्वसनीय दावे या
भ्रमित करने वाली ख़बरों को लेकर बड़े से बड़े ग्रंथ लिखे जा सकते हैं। फ़ेक न्यूज़
क्यों फैलाए जाते हैं, कौन फैलाते हैं, कब फैलाते हैं, उससे क्या फ़ायदे या नुक़सान होते हैं, बहुत लंबा लिखा जा
सकता है। उसे हमने एक दूसरे संस्करण "World of Fake News: फ़ेक ख़बरों का जंगल..." में विस्तृत रूप से देखा।
मीडिया स्वयं ही अब
फ़ेसबुकिया-व्हाट्सएपिया बनकर काम करने लगा है! फ़ेक न्यूज़ और मीडिया, इसके संबंध में हम चौथे संस्करण की तरफ़ आगे बढ़ते हैं।
टाइम्स ऑफ़ इंडिया
ने प्रिया प्रकाश वारियर के बारे में कॉलेज सर्कुलर पर फ़र्ज़ी ख़बर प्रकाशित की
कोयंबटूर कॉलेज ने
छात्राओं से कहा, "प्रिया वारियर की तरह आँख मारने पर आपको कॉलेज से निकाल दिया जाएगा!" यह 18 मार्च 2018 को अंग्रेज़ी दैनिक टाइम्स ऑफ़ इंडिया द्वारा प्रकाशित एक लेख की हेडलाइन थी, जिसे बाद में वापस
ले लिया गया था।
वापस ली गई उस रिपोर्ट के अनुसार कोयंबटूर, तमिलनाडु में वीएलबी जनकीअम्मल कॉलेज ने एक सर्कुलर जारी किया था, जिसमें कहा गया था
कि जो छात्राएँ अभिनेत्री प्रिया वारियर की तरह आँख मारती पाई गईं, उन्हें एक साल के
लिए कॉलेज से निकाल दिया जाएगा।
लेख में उस कथित सर्कुलर
के बारे में बताया गया था, जिसमें रिपोर्ट के अनुसार यह कहा गया था कि संकाय सदस्यों ने शिकायत की थी कि
छात्राएँ 'सुश्री प्रिया प्रकाश वारियर की वायरल आँख मारने की नकल कर रही हैं।' इस कथित सर्कुलर में
आगे कहा गया था कि इस तरह के व्यवहार पर नज़र रखने के लिए सभी कक्षाओं में सीसीटीवी
कैमरे लगाए गए हैं। वह फ़र्ज़ी सर्कुलर और असली सर्कुलर नीचे पोस्ट किया गया है।
कथित सर्कुलर की तस्वीर
सोशल मीडिया पर वायरल हो रही थी, जिसे कई यूज़र्स ने पोस्ट और शेयर किया और माना कि यह सच है। उनके लिए सर्कुलर
सच होने का मजबूत आधार टाइम्स ऑफ़ इंडिया द्वारा प्रकाशित किया गया लेख था।
टाइम्स ऑफ़ इंडिया
जैसे प्रतिष्ठित और पुराने संस्थान ने एक बेसिक चीज़ नहीं देखी कि जिस सर्कुलर की बात
हो रही थी, जिसकी तस्वीर सोशल मीडिया पर घूम रही थी, उस पर तारीख़ 24 जनवरी 2018 लिखी थी, जबकि प्रिया वारियर की आने वाली फ़िल्म का टीज़र फ़रवरी 2018 में मशहूर हुआ था!
इस ख़बर को टाइम्स
ऑफ़ इंडिया जैसे बड़े अख़बार ने विश्वसनीय बताया था, और उसके दम पर सोशल मीडिया पर इसकी चर्चा हो रही थी। लेकिन
उसी दिन साबित हुआ कि यह सर्कुलर फ़र्ज़ी था।
वीएलबी जनकीअम्मल कॉलेज, कोयंबटूर ने 18 मार्च 2018 को फ़ेसबुक पर पोस्ट
करके पुष्टि की कि ऐसा कोई सर्कुलर जारी नहीं किया गया है। साथ ही यह भी कहा कि जनवरी
2018 में एक सर्कुलर जारी किया गया था, जिसमें छात्रों को सूचित किया गया था कि अब से कैंपस में सॉफ़्ट ड्रिंक्स की जगह
ताज़ा जूस परोसा जाएगा।
कथित सर्कुलर पर तारीख़
जनवरी की थी, जबकि फ़िल्म का टीज़र फ़रवरी में मशहूर हुआ था! उपरांत उस फ़र्ज़ी सर्कुलर को ध्यान से देखने पर पता चल जाता कि जिस जगह टेक्स्ट
छपा था, वहाँ एक रेक्टेंगल का आउटलाइन स्पष्ट देखा जा सकता था, जो दर्शाता था कि
इमेज एडिटेड है।
ट्विटर यूज़र @beastoftraal ने भी सोशल मीडिया
यूज़र्स के ध्यान में यह बात लाई थी। किंतु एक प्रतिष्ठित और पुराने न्यूज़ संस्थान
के ध्यान में यह बात नहीं आई! हालाँकि यह लेख अब टाइम्स ऑफ़ इंडिया की
वेबसाइट से हटा दिया गया है।
कठुआ में बच्ची के
साथ दुष्कर्म मामले में हिंदी न्यूज़ पेपर दैनिक जागरण की ग़लत रिपोर्ट
"कठुआ में बच्ची से नहीं हुआ था दुष्कर्म, पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में सिर्फ जख्मों की बात, सवालों के घेरे में क्राइम ब्रांच की चार्जशीट" - ये हेडलाइन
थी 20 अप्रैल 2018 को हिंदी समाचारपत्र दैनिक जागरण की पहले पन्ने की ख़बर की।
दैनिक जागरण ने इस
लेख में दावा किया कि कठुआ घटना की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में दुष्कर्म का कहीं ज़िक्र
नहीं है। अख़बार ने बताया कि पीड़ित लड़की को लगी चोटें किन्हीं दूसरे कारणों से लगी
हो सकती हैं। अख़बार ने दावा किया कि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि
जाँघ पर खरोंच के निशान गिरने से लग सकते हैं और साइकिल चलाने, तैरने, घुड़सवारी करने आदि
से हाइमन फट सकती है। इस लेख में उन चोटों का कोई ज़िक्र नहीं था जो दुष्कर्म की ओर
इशारा करती थीं।
यह लेख दैनिक जागरण
संस्करण में नई दिल्ली, आगरा, इलाहाबाद, अमृतसर, अलीगढ़, कठुआ और जम्मू आदि संस्करणों में छपा था। दैनिक जागरण समूह के अख़बार 'नई दुनिया' ने भी यह लेख छापा था।
मामले को समझाने
हेतु बता दें कि कठुआ में बच्ची के साथ दुष्कर्म मामले में जो आरोपी थे वे ज़्यादातर
हिंदू थे और पीड़ित बच्ची दूसरे धर्म से थी। स्वाभाविक था कि सोशल मीडिया पर मौजूद
अतिवादी लोग दैनिक जागरण की रिपोर्ट को सच्चाई और पुख़्ता आधार बनाकर लिखने लगे कि
कुछ लोग हिंदुओं को बदनाम करना चाहते हैं, राष्ट्र को गुमराह करने के लिए लिबरल्स माफी माँगे, आदि। सोशल मीडिया पर दैनिक
जागरण की इस रिपोर्ट को जमकर फैलाया गया और लिखा जाने लगा कि हिंदुओं को बदनाम करने
की पूरी साज़िश का पर्दाफ़ाश हुआ है।
तथ्यों को जाँचने-परखने वाली संस्था ऑल्ट न्यूज़ ने कठुआ पीड़िता की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट हासिल की। संस्था ने
लिखा कि इस रिपोर्ट में वल्वा में चीर फाड़, योनि से ख़ून, हाइमन और जाँघ और पेट पर ख़ून के निशान का ज़िक्र है।
ऑल्ट न्यूज़ ने लिखा
कि ज़िला अस्पताल कठुआ के बोर्ड ऑफ़ डॉक्टर द्वारा पुलिस को दिए गए लिखित जवाब में
बताया गया है कि बताई गई चोटें किसी भी प्रकार के यौन हमले की वजह से लग सकती है।
ऑल्ट न्यूज़ ने दुष्कर्म
और यौन अपराधों के मामलों पर काम करने वाले फोरेंसिक एक्सपर्ट और निठारी केस से जुड़े
रहे डॉ. जयदीप सरकार से संपर्क कर उनसे की गई विस्तृत बातचीत को रिपोर्ट किया, जो इस प्रकार थी
-
"दो पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के आधार पर संभावित तौर पर कहा जा सकता है कि यौन हिंसा
हुई है। इसके अलावा अन्य मेडिकल रिपोर्ट, सबूतों और जाँच के बाद दावे से कहा जा सकेगा कि यौन हिंसा हुई है। जेनाइटल एरिया
में चोटें जैसे जाँघों, वेजाइना, वल्वा, हाइमन और लेबिया (जैसा कि शरीर की आंतरिक जाँच के प्वाइंट 1, 2, 3 और 7 में लिखा है), ये तीन कारणों से
हो सकती हैं - एक्सीडेंट, ख़ुद को चोट पहुँचाने की वजह से या फिर हिंसा की वजह से। मौत से पहले, शरीर के जेनाइटल हिस्से
में ही चोटें इतनी ज़्यादा हैं कि ये किसी एक्सीडेंट का केस नहीं लगता है। ख़ुद को
चोट पहुँचाने की संभावना भी नहीं है, क्योंकि मौत की वजह आत्महत्या नहीं बताई गई है, पोस्टमार्टम में नहीं
आया है। इसलिए सिर्फ़ हमला होने के विकल्प पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। ऐसा इसलिए
क्योंकि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट को अन्य तथ्यों के संदर्भ में देखा जाना चाहिएः अपहरण, पीड़िता को जबरन नशीले
पदार्थ देना, हत्या, आरोपी व्यक्तियों की स्वीकारोक्ति और इस मामले की अन्य घटनाएँ।" (अनुवाद)
"2013 के दिल्ली उच्च न्यायालय के फ़ैसले में लिंग के 'प्रवेश' को दुष्कर्म के रूप
में परिभाषित किया गया था, जिसका क़ानूनी बोलचाल में मतलब होता है - रखना, निकट लाना या धकेलना।
इसके लिए महिला की योनि में पूरी तरह लिंग का प्रविष्ट होना ज़रूरी नहीं होता है। जाँघ
के बीच में प्रजनन अंगों वाले क्षेत्र में लिंग रखना, इसे वल्वा/योनि के
निकट लाना और धकेलना ही क़ानून के अनुसार दुष्कर्म का आरोप लगाने के लिए पर्याप्त है।
आंतरिक जाँच में बताई गई संबंधित चोट पीड़िता के यौन अंगों में बिना सहमति के और जबरन
के कारण हुई दिखाई देती है। वल्वा के मध्यवर्ती (बीच) और पिछले हिस्से (पिछली तरफ़)
में चोट, वल्वा में शिथिलता (8 वर्षीय बच्ची के लिए) जिसमें एक अंगुली का प्रवेश हो सकता है, फटी हुई हाइमन और
वल्वा व जाँघ पर ख़ून के निशान यह बताते हैं कि किसी बाहरी वस्तु को डालने के लिए काफी
प्रयास किए गए - (कोई लिंग?) जिसके लिए धकेलते हुए ताक़त लगाई गई।" (अनुवाद)
"वह एक बच्ची थी वयस्क नहीं और इसलिए अगर हायमन को नुक़सान नहीं भी पहुँचा है तो
भी दुष्कर्म की संभावना को ख़ारिज नहीं किया जा सकता है, क्योंकि बच्चियों में हाइमन
काफी भीतर होती है। बच्ची की योनि भी काफी संकुचित होती है और जब तक लिंग को बलपूर्वक
प्रवेश कराने के लिए काफी ताक़त का इस्तेमाल नहीं किया गया हो, जिससे ज़्यादा और
स्वाभाविक चोट लगेगी, इसकी अधिक संभावना है कि कम बल का उपयोग किया गया था। यह तथ्य कि कथित गतिविधि
करते समय उसे नशीला पदार्थ दिया गया था। इससे चोट कम लगेगी क्योंकि पीड़िता की ओर से
कम प्रतिरोध होने या कोई प्रतिरोध न होने की संभावना है। प्रजनन अंगों से जुड़ी चोटें
जो काफी विशिष्ट हैं, दुष्कर्म के प्रयास या दुष्कर्म होने का मजबूती से संकेत करती हैं। अंतिम फोरेंसिक
विश्लेषण से अंतिम तथ्य सामने आएगा।" (अनुवाद)
20 अप्रैल को दैनिक जागरण ने "कठुआ की बच्ची से नहीं हुआ था दुष्कर्म"
शीर्षक से लेख प्रकाशित किया था, इसके बाद जम्मू कश्मीर पुलिस ने 21 अप्रैल को स्पष्टीकरण जारी करके यह बताया कि मेडिकल एक्सपर्ट्स की राय के आधार
पर इस बात की पुष्टि की जा चुकी है कि आरोपियों द्वारा पीड़िता का यौन उत्पीड़न किया
गया था।
समाज में इन दिनों
जातिगत मतभेद, धार्मिक भावनाएँ, अफ़वाहें इतनी ज़्यादा घर कर गई हैं कि अब तो भारतीय समाज अपराध और अपराधियों
की जाति और धर्म देखकर चिंतित होते हैं। ऐसे में मीडिया द्वारा ऐसी झूठी, अपुष्ट या अप्रमाणिक
ख़बरें न सिर्फ़ सामाजिक तानेबाने को, बल्कि अपराध या घटना को भी बुरी तरह से प्रभावित करती हैं।
अमर उजाला, न्यूज़ 18 यूपी, पत्रिका, कैच न्यूज़, ओप इंडिया ने आरएसएस
संबंधित संगठन की महिलाओं को राम मंदिर समर्थक मुस्लिम महिलाएँ बताया
देश के प्रमुख हिंदी
मीडिया संस्थान अमर उजाला ने 25 नवंबर 2018 को एक लेख प्रकाशित किया, जिसका शीर्षक था - "कसम खुदा की खाते हैं मंदिर वहीं बनवाएंगे, आगे आईं मुस्लिम महिलाएं, पुरुषों का रुख साफ नहीं।"
ऐसा दिखलाते हुए कि
मेरठ के मुस्लिम समुदाय की महिलाएँ राम मंदिर के समर्थन में आगे आ गईं हैं, अमर उजाला ने आगे
बताया - "अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर देश में जबरदस्त हलचल शुरू हो
चुकी है। हिंदू संगठनों के साथ मुस्लिम महिलाओं ने भी राम मंदिर निर्माण को लेकर आवाज
उठानी शुरू कर दी है।"
इसके बाद मीडिया संगठन
ने अभियान का नेतृत्व करने वाली दो महिलाओं के नाम का उल्लेख किया - "मुस्लिम
राष्ट्रीय मंच की शाहीन परवेज और राष्ट्रीय एकता मिशन की सदया सुबही।"
अमर उजाला को जो लिखना
चाहिए था वही उसने नहीं लिखा। हिंदी अख़बार ने अपने रिपोर्ट में इन महिलाओं की पहचान
व प्रवृत्ति तथा मुख्य रूप से जिन दो संगठनों का नाम रिपोर्ट में लिखा था उनकी पहचान
संबंधी जानकारी छोड़ दी!
ऑल्ट न्यूज़ ने इस
बारे में फैक्ट फाइंड रिपोर्ट छापी। सबसे पहले पता चला कि जिन दो संगठनों के नाम अमर
उजाला की रिपोर्ट में थे, वे दोनों संगठन आरएसएस से संबंधित हैं! उपरांत जिन दो महिलाओं के नाम रिपोर्ट में थे, वे दोनों आरएसएस से संबंधित उन मुस्लिम संगठनों की नेता हैं!
ऑल्ट न्यूज़ के अनुसार
परवेज और सुबही, दोनों ने आरएसएस से संबद्ध संगठनों के बैनर के तहत राम मंदिर अभियान का नेतृत्व
किया था। यह दिखलाने के लिए कि मेरठ की मुस्लिम महिलाओं के समूह ने राम मंदिर के कार्य
के लिए अपना समर्थन दिया, अमर उजाला की रिपोर्ट में यह महत्वपूर्ण जानकारी छोड़ दी गई थी!
मुस्लिम राष्ट्रीय
मंच और राष्ट्रीय एकता मिशन पहले से मीडिया की ख़बरों में रहे हैं, और इनका सीधा संबंध
आरएसएस से बताया जाता है। 2016 में, मुस्लिम राष्ट्रीय मंच या फिर राष्ट्रीय एकता मिशन, में संजय जोशी की
भर्ती की ख़बरें आई थीं। संजय जोशी, यानी, आरएसएस के पुराने नेता और पीएम नरेंद्र मोदी के गुजरात समय के पुराने प्रतिस्पर्धी, जिन्हें कथित रूप
से नरेंद्र मोदी ने 2005 में सीडी कांड घटना को अंजाम देकर अपने रास्ते से हटाया था। जोशी की इन दोनों
में से किसी एक संगठन में भर्ती के पीछे दावा किया गया कि यह मुस्लिमों को ख़ुश करने
की आरएसएस की रणनीति भी है, तथा जोशी की वापसी का लंबा आयोजन भी।
नोट करें कि आरएसएस
ने अयोध्या में राम मंदिर के लिए जन समर्थन जुटाने के लिए नया सहयोगी संगठन श्री राम
मंदिर निर्माण सहयोग मंच (एसआरएमएनएसएम) बनाया था। द कैरेवान ने अक्टूबर 2018 में रिपोर्ट किया
था कि इस संगठन को सीधे मुस्लिम राष्ट्रीय मंच (एमआरएम) की देखरेख में रखा गया था! और इसका कार्यभार वरिष्ठ आरएसएस नेता इंद्रेश कुमार को दिया गया था!
दावा किया जाता है
कि आरएसएस से संबंधित मुस्लिम राष्ट्रीय मंच की देखरेख भी इंद्रेश कुमार के हाथों में
है। कैरेवान ने आगे ख़बर दी कि एमआरएम के राष्ट्रीय सह-संयोजक ने बताया कि "सहयोग
मंच" अन्य "सम-विचारी" संगठनों द्वारा समर्थित है और इनमें से एक राष्ट्रीय
एकता मिशन था।
ऑल्ट न्यूज़ ने अपने
विश्लेषण में तथ्यों के साथ लिखा कि एमआरएम की शाहीन परवेज फ़ेसबुक पर ख़ुद को
"भाजपा की पक्षकार" बताती हैं; उनकी डीपी (डिस्प्ले पिक्चर) और राम मंदिर समारोह में उनकी तस्वीर, दोनों इंद्रेश कुमार
के साथ हैं!
जैसे कि आरएसएस सालों
पहले ख़ुद को सांस्कृतिक और सामाजिक संगठन बताकर भाजपा से स्वयं के रिश्तों का इनकार
करता रहता था, उसने मुस्लिम राष्ट्रीय मंच से संबंधों का भी इनकार किया था और एमआरएम को एक स्वतंत्र
संगठन कहा था।
हालाँकि एमआरएम स्वयं
अपनी वेबसाइट पर उल्लेख करता है कि वह आरएसएस का एक हिस्सा है। इसके अलावा आरएसएस के
वरिष्ठ नेता इंद्रेश कुमार की एमआरएम के आयोजनों में निरंतर उपस्थिति और इस संगठन को
आरएसएस से संबद्ध के रूप में संबोधित करतीं पूर्व मीडिया रिपोर्ट और वरिष्ठ पत्रकारों
के दावे यही कहते हैं कि वह आरएसएस से ही संबंधित है।
सिर्फ़ अमर उजाला ही
नहीं था, जिसने भ्रामक रिपोर्ट की थी। न्यूज़ 18 यूपी ने ब्रेकिंग न्यूज़ के रूप में ट्वीट किया था - "मेरठ - राम मंदिर निर्माण
के मुद्दे पर मुस्लिम महिलाओं का बड़ा बयान, कसम खुदा की खाते हैं मंदिर वहीं बनाएंगे, श्री राम जन्मभूमि में सभी की आस्था है, बाबरी मस्जिद से मुस्लिमों का कोई लेना देना नही, बाबर ने मुसलमानों
को भी गुलाम बनाया था।"
'पत्रिका' ने भी भ्रामक रिपोर्ट की थी - "धार्मिक शिक्षा देने वाली मुस्लिम महिलाओं
ने राम मंदिर के बारे में ऐसी शपथ ली कि हर कोई चकित होगा, वीडियो देखें।"
हालाँकि इस लेख में उल्लेख किया गया था कि यह कार्यक्रम आरएमएम द्वारा आयोजित किया
गया था, फिर भी आरएसएस के साथ इसकी संबद्धता की सूचना इसमें नहीं थी, जो कि मीडिया रिपोर्ट
में होनी चाहिए थी।
'पत्रिका' का हवाला देते हुए कैच न्यूज़ ने भी यही ख़बर दी थी - "अयोध्या में धर्म
सभा के बीच मुस्लिम महिलाओं ने राम मंदिर के लिए खुले समर्थन का वचन दिया, कसम खुदा की खाते
है मंदिर वहीं बनाएंगे।" हालाँकि कैच न्यूज़ ने इस लेख में आगे शामिल किया था
कि यह कार्यक्रम आरएसएस और विश्व हिंदू परिषद द्वारा आयोजित किया गया था।
ओप इंडिया भी इस भ्रामक
रिपोर्टिंग में शामिल हो गया और लिखा - "कसम खुदा की खाते है, मंदिर वहीं बनाएंगे, मुस्लिम महिलाओं ने
राम मंदिर के लिए समर्थन दिया।" (अनुवाद) ओप इंडिया ने अपनी रिपोर्ट में एक तस्वीर
में मुस्लिम महिला फाउंडेशन की नेता नाज़नीन अंसारी की तस्वीर इस्तेमाल की। नाज़नीन
और मुस्लिम महिला फाउंडेशन, दोनों की कहानी वही थी, जो उपरोक्त दोनों संगठनों और उनकी मुस्लिम महिला नेताओं की थी।
तमाम मीडिया संस्थानों
ने एक सरीखे शीर्षक से अपनी रिपोर्ट पेश की और यह धारणा फैलाई कि अधिसंख्य मुस्लिम
महिलाओं ने मंदिर के लिए समर्थन किया है! एक निष्पक्ष मीडिया रिपोर्ट में जितनी जानकारी होनी चाहिए थी, उन तमाम जानकारियों
को मीडिया संस्थानों ने छोड़ दिया था! आरएसएस से इन नेत्रियों के रिश्ते, कार्यक्रम, वीडियो, तस्वीरें, वेबसाइट, तमाम संगठनों से आरएसएस के रिश्ते, इंद्रेश कुमार का आरएसएस और इन संगठऩों से रिश्ता, तमाम बातों को मीडिया
संस्थानों ने चालाकी से छोड़ दिया था!
टाइम्स नाउ, टीवी 9 तेलुगु, वीटीवी गुजराती ने
हांगकांग में नीरव मोदी की गिरफ़्तारी की फ़र्ज़ी ख़बर चलाई
9 अप्रैल 2018 को शाम 5:41 बजे टाइम्स नाउ ने एक स्टोरी ब्रेक की। स्टोरी यह थी कि 11,000 करोड़ रुपये के पीएनबी घोटाले के आरोपी नीरव मोदी को हांगकांग में गिरफ़्तार कर
लिया गया है।
टाइम्स नाउ के एंकर
ने कहा - "ठीक है, यह अब तक की सबसे बड़ी ब्रेकिंग न्यूज़ है, नीरव मोदी को हांगकांग में गिरफ़्तार कर लिया गया है। टाइम्स
नाउ पर हम आपको सबसे पहले यही बता रहे हैं। हांगकांग में नीरव मोदी की गिरफ़्तारी की
ख़बरें आ रही हैं; यह सुरक्षा एजेंसियों और जाँच एजेंसियों के
लिए एक बड़ी सफलता हो सकती है, जो नीरव मोदी को भारत वापस लाने और क़ानून
का सामना करने की कोशिश कर रही हैं।" (अनुवाद)
टाइम्स नाउ के अलावा
क्षेत्रीय समाचार चैनल वीटीवी गुजराती ने भी ख़बर दी कि नीरव मोदी को हांगकांग में
गिरफ़्तार कर लिया गया है। समाचार चैनल टीवी 9 तेलुगु ने भी इसकी ख़बर दी।
मज़े की बात यह कि
टाइम्स नाउ ने इस 'बड़ी ब्रेकिंग न्यूज़' को वापस नहीं दिखाया! इसके अलावा टाइम्स नाउ द्वारा इस ख़बर को 'ब्रेक' करने के 3 घंटे बाद तक एक भी राष्ट्रीय चैनल ने नीरव मोदी की गिरफ़्तारी
की घोषणा नहीं की थी! ऐसा इसलिए, क्योंकि टाइम्स नाउ ने नीरव मोदी पर जो ख़बर चलाई, वह फ़र्ज़ी थी।
वास्तव में हांगकांग
द्वारा भारत के अनुरोध को स्वीकार करने की संभावना के बारे में ही ख़बर थी, जो एक सामान्य सी प्रक्रिया है। असल में नीरव मोदी की गिरफ़्तारी
के बारे में कहीं पर भी कुछ भी नहीं था!
(इनसाइड इंडिया, एम वाला)