सोना सिर्फ़ पीला या चमकीला नहीं होता, वह काला भी होता है। दूसरे रंगों का भी होता होगा, किंतु फ़िलहाल काले रंग के सोने की बात करते हैं। आम बोलचाल
में तीन पदार्थ काले सोने की सूची में सबसे आगे हैं। वे हैं पेट्रोलियम, कोयला और इंसानों के बाल। हम बात करते हैं मानव बाल की। रक्तदान
महादान तो सबने सुना है, उधर बाल दान अभियान
भी चलाए जाते हैं!
बाल पर ग़ालिब से लेकर राहत इंदौरी तक फ़िदा रहे। बॉलीवुड भी अछूता नहीं रहा। गीत, ग़झ़ल से लेकर भारतीय सभ्यता की परंपरा, संस्कृति और धर्म का हिस्सा बनने वाले मानव बाल पर हम इतना ध्यान
देते हैं कि इसकी वजह से सालाना भारतीय बाज़ार लाखों-करोड़ों इधर से ऊधर कर देता हैं।
मानव बाल मानव से जुदा होने के बाद तो ब्लैक गोल्ड बन जाते हैं।
पेट्रोलियम और कोयला
क्यों ब्लैक गोल्ड कहा जाता है उस पर लिखने की ज़्यादा ज़रूरत नहीं है। किंतु बाल की
खाल निकालने वाले हम लोग बाल के बारे में बहुत कम जानते हैं। बाल की खाल का तो पता
नहीं किंतु बाल सोने की छोटी-मोटी खदान सरीखे ज़रूर होते हैं। मानव बाल को भी बाक़ायदा
'ब्लैक गोल्ड' कहा जाता है।
इंसानों के बाल का
दुनिया में बहुत बड़ा बाज़ार है। ग़ौरतलब है कि वैश्विक बाज़ार में भारत के बाल की
माँग बहुत ज़्यादा है। यूँ कह लें कि सबसे ज़्यादा माँग भारतीय बालों की है। सामान्यत:
हिंदू सभ्यता के भीतर बच्चे और पुरुष के बाल भगवान को अर्पण किए जाते हैं।
भारत के भीतर बाल की
बात आए तब तिरुपति बालाजी मंदिर, तिरुमाला का नाम ख़ुद-ब-ख़ुद आ जाता है। एक
अनुमान की माने तो हर दिन यहाँ क़रीब 20 हज़ार लोग अपने बाल अर्पण कर देते हैं। इसके लिए मंदिर और उसके आसपास सैंकड़ों
नाई बैठे रहते हैं। यहाँ कुछ समुदाय की महिलाएँ भी मुंडन करवाती हैं। तिरुपति बालाजी
मंदिर और तिरुमाला प्रशासन इन बालों को बेच देते हैं। सालाना इसकी निलामी की जाती है, जिससे करोड़ों रुपये की आमदनी होती है! अब तो बालों का भी ई-ऑक्शन भी होने लगा है। पूरी संभावना है कि मंदिरों में जो
बाल दान किए जाते हैं वे देश-विदेश की मॉडल्स के सिर पर हो, जो रैंप करती हैं।
हमें परंपराओं या संस्कृतियों
की बात नहीं करनी है, इसलिए उस सड़क पर नहीं चलकर हम सीधे ही बाल
की बात करते हैं, जिसे ब्लैक गोल्ड, यानी काला सोना कहा जाता है। अगस्त 2023 में केंद्रीय वाणिज्य
एवं उद्योग राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल ने लिखित जवाब में उच्च सदन को बताया था कि
पिछले दो वित्तिय वर्ष के दौरान भारत ने 2,650 करोड़ रूपए से अधिक मूल्य के बाल निर्यात किए थे। भारतीय बाल का बाज़ार दुनिया
भर में फैला हुआ है।
यानी, आम भारतीय नागरिक अपने राज्य के बाहर जाए या न जाए, किंतु उस आम नागरिक के बाल कनाडा, यूरोप, अफ़्रीका
या दक्षिण अमेरिका तक पहुँच जाते हैं! ज़िंदगी भर आप अपने प्रदेश से बाहर निकल पाएँ या न निकल पाएँ, आपके बाल दुनिया भर की सैर कर लेते हैं!
मध्यम वर्गीय भारतीय
घरों में अक़्सर कंघी करने के बाद झड़े हुए बाल फेंकने के बजाए इकट्ठा करके रखा जाता
है। फिर कोई महिला कुछ-कुछ महीने में मोहल्ले के चक्कर लगाती है और जो बाल लोगों ने
इकट्ठा करके रखे हो उन्हें ले जाती है। बदले में कोई बर्तन या कुछ और छोटा-मोटा सामान
देती है या पैसा देती है।
चार साल पहले 'द हिंदू' में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक़ चेन्नई के कुछ गाँवों में ऐसे
ही डोर-टु-डोर बाल इकट्ठे करने वाले लोग बालों के वज़न के हिसाब से पैसे देते हैं।
आगे जाकर ये बाल बड़े बिज़नेस का हिस्सा बन जाते हैं। घरों में बाल स्टोर किए जाते
हो तो लाज़मी है कि सैलून, पार्लर या मंदिर में भी किए जाते हैं।
वैसे एक निश्चित समय
बताना मुश्किल है कि आख़िर मानव बालों का बिज़नेस कब से शुरू हुआ। लेकिन कई रिपोर्ट
में कहा गया है कि साल 1840 से बालों के बिज़नेस होने के प्रमाण मिलते हैं। उस दौरान फ्रांस के कंट्री फेयर
में बाल ख़रीदे जाते थे और कई मेलों में लड़कियाँ अपने बाल नीलाम भी करती थीं। भारत
में भी बाल का बिज़नेस स्वतंत्रता प्राप्ति से बहुत पहले से चला आ रहा है।
लंबे समय तक इस कारोबार
की ख़ास बात यह रही कि शहरी इलाक़े के बालों के सामने ग्रामीण इलाक़े के बालों की माँग
ज़्यादा रही। विशेषत: महिला के बालों में। इसके पीछे वजह यह बताई जाती है कि शहरी महिलाएँ
अपने बालों पर कई सारे प्रयोग करती होती हैं। जैसे कि कलर कराना या कोई दूसरे ट्रीटमेंट।
जबकि ग्रामीण इलाक़े की महिलाएँ अपने बालों के साथ उतने ज़्यादा प्रयोग नहीं करती।
हालाँकि बदलते हुए कल्चर के बीच यह वजह अब कितनी मज़बूत रही है यह कहा नहीं जा सकता।
फेंके गए बाल कर रहे
हैं मालामाल! जिन बालों को कटने के बाद या परंपरा के अनुसार
अर्पण करने के बाद हम छूना भी पसंद नहीं करते, उनकी क़ीमत सोने-चांदी जितनी, तथा कभी कभी उससे भी ज़्यादा होती है! इन बालों की नीलामी होती है। क़ीमत भी ऐसी वैसी नहीं बल्कि बालों की लंबाई के
हिसाब से। हालाँकि बालों की गुणवत्ता इसकी असली क़ीमत तय करती है।
सिंपल सी बात है कि
जिस बाल की लंबाई, गुणवत्ता और विविधता अच्छी होगी वे बाज़ार
में बिकेंगे। और इसीलिए सिंपल सी बात है कि बेचारे पुरुष यहाँ महिलाओं के मुक़ाबले
पीछे खिसक जाते हैं। पुरुष के बाल का इस्तेमाल विग, दाढ़ी या नकली मूंछ बनाने के लिए किया जाता है।
उधर महिलाओं के लंबे
वाल विश्व बाज़ार मे फ़ायदेमंद माने जाते हैं। महिलाओं के लंबे बालों को धोया जाता
है और फिर कलर करके सुखाया जाता है। धुलाई, कलर करना और फिर सुखाना, इन प्रक्रियाओं के बाद उन बालों को मशीन तथा कंधी वाली प्रक्रिया
से गुज़रना होता है, जिसमें उन बालों को क़रीब एक सरीख़े लंबे
बनाने का काम किया जाता है।
काले, लाल, सुनहरे या घुंघराले, हर तरीक़े की वैरायटी यहाँ होती है। मुलायम बालों की माँग सबसे
ज़्यादा होती है। लेकिन बाल के बाज़ार पर नज़र डालें तो गुणवत्ता सबसे महत्वपूर्ण पहलू
है।
कुत्रिम विग- दाढ़ी- मूंछ-
पलकें- हेयर एक्सटेंशन- कॉस्मेटिक ब्रश समेत सौंदर्य प्रसाधनों के उत्पादन में, लैब में विभिन्न हेयर केयर प्रोडक्ट के लिए परीक्षण सामग्री
के रूप में, खिलौनों और हेयरपिन कुशन जैसी घरेलू चीज़ों को भरने में, गुड़िया- गहने और सजावट जैसे हस्तशिल्प बनाने के लिए, जैकेट और गद्दों के निर्माण में, कपड़े और कंबल बनाने में, फार्मास्युटिकल और चिकित्सा उद्योग में, खाद्य प्रोडक्ट और खाद्य उद्योगों में, मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार और पौधों के विकास को बढ़ावा देने
के लिए, वायलिन और गिटार जैसे संगीत वाद्ययंत्रों के लिए तार बनाने के
लिए... न जाने कहाँ कहाँ मानव बालों का इस्तेमाल किया जाता है, जिसे कचरा समझकर फेंक दिया गया था।
मानव बालों के बाज़ार
में 'वर्जिन हेयर' की ज़बरदस्त माँग है। वर्जिन हेयर, यानी ऐसे बाल जिनमें कोई रंग नहीं लगाए गए हैं और कोई इलाज भी
नहीं हुआ है। भारत से आयात किए जाने वाले ज़्यादातर बाल इसी श्रेणी में आते हैं। ऐसे
बाल अमेरीका, चीन, ब्रिटेन और यूरोप के अन्य हिस्सों में काफी
लोकप्रिय हैं।
एशियाई बालों में किसी
भी अन्य प्रकार के बालों की तुलना में एल-सिस्टीन की मात्रा अधिक होती है, क्योंकि उनके अधिकांश बाल काले होते हैं।
तिरुपति में जो बाल
दान किए जाते हैं उन्हें पहले एक जगह इकट्ठा किया जाता है। फिर बालों को उबाला जाता
है, जिससे उनकी गंदगी साफ हो जाए। इसके बाद बालों को शैंपू से धोया
जाता है। सुखाया जाता है और उन्हें ख़राब होने से बचाने के लिए सही टेंपरेचर पर स्टोर
किया जाता है।
दशकों से तथा आज भी
मानव बाल, पैनी नज़र और नये नये विचार लागू करने वालों को छप्पर फाड़ पैसा देते हैं।
जैसे कि कानपुर के आशीष और दिल्ली में रहने वाली शिल्पा। कुछ साल पहले दोनों अपने परिवार
के साथ तिरुपति बालाजी मंदिर दर्शन के लिए गए। दोनों ने वहाँ लोगों को अपने बाल अर्पण
करते देखा। उन्हें पहले तो लगा कि बाल फेंक दिए जाते होंगे। लेकिन जब उन्हें पता चला
कि अर्पण किए गए बाल की व्यापारी लोग खाल निकाल लेते हैं तब उन्हें भी आइडिया आया।
दोनों अपने अपने शहर लौटे और रिसर्च और दूसरी तैयारियाँ करके फेंके गए बालों को फैशन
की दुनिया से जोड़ दिया। वे बालों का व्यापार करने लगे और ज़ल्द ही अमेरिका व यूरोप
तक पहुँच बना ली! कानपुर के फजलगंज और आंध्र प्रदेश में इन्होंने
बड़ा उद्योग परिसर बना लिया है!
यूरोपीय बालों की भी
माँग बाज़ार में है। विशेषज्ञों के मुताबिक़ प्राकृतिक सुनहरे बालों को हासिल करना
मुश्किल है। बिना रंग वाले ऐसे बाल दुर्लभ होते हैं और इसी कारण प्राकृतिक काले बालों
की तरह ऐसे सुनहरे बालों की क़ीमत भी ज़्यादा होती है। यूरोपीय बाल एशियाई बालों की
तुलना में मुलायम और पतले होते हैं। इसलिए ख़ासकर यूरोपीय देशों में विग के लिए ये
काफी लोकप्रिय हैं।
कई बार यूरोपीय बालों
की कमी के कारण एशियाई बालों को यूरोपीय कहकर बेचा जाता है। वैश्विक बाज़ार में मानव
बाल की माँग बढ़ती जा रही है और इस कारण बाल बेचकर मुनाफ़ा कमाने के लिए इस काले सोने
के व्यापार में काले काम भी होते हैं, जिसमें बालों की तस्करी भी शामिल है!
जैसा कि तमाम उद्यमों
में होता है, बाल की खाल निकालने वाले इस कारोबार में भी
विवाद, अवैध गतिविधियाँ, कच्चे बालों की तस्करी जैसी घटनाएँ होती रहती हैं। जैसे कि एक ताज़ा मामले में ईडी द्वारा दिए गए आधिकारिक बयान में कहा गया था, "घरेलू रूप से बेचे जाने वाले ये सभी बाल अंततः म्यांमार के माध्यम से चीन जा रहे
थे और बिक्री आय आश्चर्यजनक रूप से मिज़ोरम में शेल बैंक खातों से प्राप्त की जा रही
थी। ईडी ने फंड ट्रेल की जाँच की और मिज़ोरम में स्थित शेल संस्थाओं पर ध्यान केंद्रित
किया, जो सैकड़ों करोड़ नकद जमा कर रही थीं और फिर
जमा राशि को पूरे भारत में फैले कई बाल व्यापारियों को भेज रही थीं।"
ऐसे मामले सामने आते
रहते हैं। जाँच रिपोर्टों की माने तो ऐसे बाल अवैध तरीक़े से बिचौलियों या तस्करों
को बेच दिए जाते हैं, फिर बालों को विभिन्न तरीक़ों से देश से बाहर
तस्करी कर पहुँचाया जाता है, जिसमें इसे अन्य सामानों के शिपमेंट में छिपाना
या पहचान से बचने के लिए झूठे दस्तावेज़ों का उपयोग करना शामिल है।
मानव बाल का कारोबार और तस्करी, दोनों कितने बड़े मामले हैं इसका अंदाज़ा इससे लगाया जा सकता
है कि सदन में मानव बाल के सालाना कारोबार का ब्यौरा दिया जाता है, जबकि मानव बालों की अवैध कटाई, कारोबार से संबंधित क़ानूनों को सख़्त करना, क़ानूनी और टिकाऊ बाल व्यापार प्रथाओं के विकास के लिए सरकारी
प्रोत्साहन, बाल दान अभियान, छोटे पैमाने के आपूर्तिकर्ताओं और मंदिरों के साथ साझेदारी, जैसी प्रक्रियाएँ चलती हैं।
कारोबार की नकारात्मक
ग़लियों से बाहर निकलते हैं। भारत में दक्षिणी राज्यों के बाल ज़्यादा अच्छे दाम ले
आते हैं। आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु के अलावा पश्चिम बंगाल
इस उद्योग का प्रमुख केंद्र है। कच्चे मानव बाल मुख्य रूप से इन राज्यों के घरों और
मंदिरों से एकत्र किए जाते हैं और ये प्रमुख रूप से विश्वस्तर पर सौंदर्य बाज़ार की
ज़रूरतों को पूरा करते हैं। गुजरात के बाल भी चमकदार और मज़बूत माने जाते हैं।
भारत में दो तरह के
बाल एकत्र किए जाते हैं - रेमी और नॉन-रेमी बाल। रेमी बाल, सबसे अच्छा ग्रेड माना जाता है जो मंदिरों से एकत्र किया जाता
है, जहाँ तीर्थयात्री धार्मिक व्रत के हिस्से के रूप में अपने बाल
दान करते हैं। इस गुणवत्ता वाले बाल का उपयोग मुख्य रूप से हेयरपीस और विग बनाने के
लिए किया जाता है। ग़ैर-रेमी बाल गाँवों और शहरों में लोगों के छोटे समूहों द्वारा
एकत्र किया जाने वाला घरेलू कचरा है। वे उसे अलग करते हैं और डीलरों को बेचते हैं।
मानव बाल की विभिन्न श्रेणियों में से कुछ को देखें तो,
वर्जिनः ऐसे बाल जिनमें कोई
रंग नहीं लगाए गए हैं और कोई इलाज भी नहीं हुआ है। यानी इन बालों में कोई रासायणिक
छेड़छाड़ नहीं हुई होती। यह उपलब्ध बालों की उच्चतम गुणवत्ता है और अक़्सर सबसे महंगा
होता है।
रेमी बाल: इस प्रकार के बाल एक ही दाता से एकत्र किए जाते
हैं, जिसमें सभी क्यूटिकल्स एक ही दिशा में संरेखित
होते हैं।
नॉन-रेमी बाल: नॉन-रेमी बाल कई दाताओं से एकत्र किए जाते हैं और उनके क्यूटिकल्स
अलग-अलग दिशाओं में हो सकते हैं।
सिंथेटिक बाल: इस प्रकार के बाल सिंथेटिक सामग्री से बने होते हैं और प्राकृतिक
बालों की तरह दिखने और महसूस करने के लिए डिज़ाइन किए जाते हैं।
रंगीन बाल: प्राकृतिक दिखने वाले रंगों से लेकर बोल्ड और जीवंत रंगों तक, विभिन्न रंगों और टोन को प्राप्त करने के लिए रंगे हुए बाल।
टेक्स्चरड बाल: यह उन बालों को संदर्भित करता है जिनकी एक विशिष्ट बनावट होती
है, जैसे घुंघराले, लहरदार या सीधे।
संसाधित बाल: इस प्रकार के बालों को एक विशेष शैली या रंग प्राप्त करने के
लिए रासायनिक उपचार किया गया होता है। इसमें ऐसे बाल शामिल हो सकते हैं जिन्हें पर्म
किया गया हो, रिलैक्स किया गया हो या रंगे गए हों।
कैंसर के मरीज़ों की
बढ़ती आवश्यकता भी इस ब्लैक गोल्ड मार्केट का बड़ा हिस्सा है। उपरांत आज के ज़माने
में बालों का झड़ना प्रमुख समस्या है और इस कारण भी इन मानव बालों की माँग बढ़ी है।
सिर्फ़ ज़रूरत नहीं
बल्कि फैशन भी इस कारोबार का मुख्य हिस्सा बना रहा है। जैसे क एक ज़माने में देश-विदेश
की 'हाई क्लास फैमिली' की औरतों ने बड़े हैट पहनने शुरू कर दिए।
उन्हें सिर पर अच्छे से अटकाने के लिए घने बाल चाहिए होते थे। ऐसे में उन्होंने ओरिजिनल
बालों के साथ कुछ नकली बाल भी लगाने शुरू किए। इस वजह से बालों का कारोबार और फैला।
जब लाखों-करोड़ों का
मामला हो तब सब आसान बिलकुल नहीं होता। इस व्यापार में भी यही चीज़ है। यूँ तो हर उद्यम
मुनाफ़े वाला ही होता है, किंतु उसमें 'हाथ जम गया' जैसे फ़िक़रे यूँ ही नहीं जुड़े हुए होते।
ऊपर से जो आसान लगता है, दरअसल वो भीतर से उतना आसान नहीं होता। छोटी
से छोटी चीज़ असली कमाल दिखा जाती है।
देखिए न। लगभग आधी या उससे
भी ज़्यादा जनता मानव बाल को बेकार मानती है और उसे कचरे के रूप में फेंक देती है।
जबकि उसी जनता का कुछ हिस्सा रचनात्मक है, जो इस कचरे से न जाने कितनी समस्याओं का समाधान पेश करता है।
चाहे वह सौंदर्य समस्या हो, शारीरिक
समस्या हो, विघटित होने वाले पदार्थों की समस्या हो या फिर रोजगार तथा अर्थतंत्र
की समस्या हो।
हमें इस कारोबार की
बारीक़ियाँ बिलकुल पता नहीं है, किंतु इतना अंदाज़ा ज़रूर है कि यह कारोबार
भी आसान नहीं होगा। बालों की गुणवत्ता, लंबाई, प्रकार आदि को समझने-परखने की मास्टरी होनी चाहिए, किंतु इससे पहले मानव बाल के बारे में बेसिक ज्ञान भी तो होना
चाहिए। फिर उसके व्यापार का सिस्टम, भीतरी ताना-बाना, रूट, पैंतरे, समस्याएँ, समाधान, सब चीज़ों में उतरना होता होगा।
सलून से बाल निकले, घर से निकले या मंदिर
से निकले, वे गुच्छों में होते हैं, जिसमें तरह तरह के बाल मिक्स होते हैं। इन्हें साफ करना, अलग करना, पहचानना, पसंद करना, नापसंद करना, पैक करना, स्टोर
करना, इन माथापच्चियों से उद्यमी गुज़रते हैं। और फिर शुरू होता है मानव बाल के व्यापार
को चलाने का असली रास्ता, जो स्वाभाविक रूप से काफी उलझा हुआ होता है।
जैसा कि हमने देखा
कि भारत इस वैश्विक कारोबार के बड़े खिलाड़ियों में शामिल है। भारत को यहाँ पहुँचाने
में सभ्यताओं की परंपरा और मान्यताएँ, जैसे कि तिरुपति मंदिर प्रथा, प्रमुख है। ब्राज़ील भी बड़े खिलाड़ियों में प्रमुख स्थान पर
रहा है। उपरांत इनके प्रमुख प्रतियोगी चीन, कंबोडिया, वियतनाम और म्यांमार हैं। अगर इन बालों के ख़रीदारों की बात करें तो अमेरिका, ब्रिटेन और चीन बड़े ख़रीदार हैं।
एक आँकड़े के मुताबिक़
अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में लंबे और अच्छे बालों की क़ीमत प्रति किलो 4,000 से 25,000 तक है। हालाँकि ये
दाम तभी मिलते हैं जब बाल लंबे और अच्छी गुणवत्ता वाले हो। आम तौर पर प्रति किलो बाल
की औसत क़ीमत 500 से लेकर 1000 तक होती है। और यह दाम बदलते भी रहते हैं। मसलन बाल की गुणवत्ता अच्छी न रही हो
तो उसके दाम गिरते भी हैं।
जनवरी 2022 में भारत सरकार ने
मानव बाल के निर्यात पर अंकुश लगा दिए थे। इससे पहले बालों के निर्यात पर बिना किसी
अंकुश के अनुमति दी गई थी, किंतु अब निर्यातक को वाणिज्य मंत्रालय के
तहत विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) से अनुमति या लाइसेंस लेना होगा।
हमने ऊपर एक शब्द देखा
– विघटित होने वाले पदार्थों की समस्या। दरअसल, कचरे के रूप में मैदान, गटर, नालों या नदी में जाने वाले बालों की मात्रा
कई वर्षों में धीरे-धीरे विघटित होकर कार्बन, सल्फर, नाइट्रोजन और कई अन्य अणुओं का उत्पादन करती है। उपरांत सीवेज सिस्टम के अवरोधक
के रूप में भी समस्या पैदा करती है। मानव बाल व्यापार इस समस्या का समाधान सहायक भी
है!
मानव बाल का कारोबार चाहे काला हो या सफ़ेद, किंतु यह मानव सभ्यता की सौंदर्य, शारीरिक ज़रूरतों या समस्याओं के समाधान या फिर सभ्यताओं रोजगार, कारोबार और अर्थतंत्र की मूल ज़रूरतों का हिस्सा बनने के साथ
साथ ऊपर के पैरा में इशारा किया वैसे अनेक रोज़ाना या लंबे समय बाद पैदा होने वाली
समस्याओं के समाधान के रूप में भी सहायक है।
भारत में मानव बाल उद्योग का भविष्य व्यापार जगत में अग्रणी उद्योगों में से एक
है। यह उद्योग पारंपरिक प्रथा से आधुनिक और नवीन क्षेत्र में विकसित हुआ है और भारतीय
अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान भी दे रहा है।
(इनसाइड इंडिया, एम वाला)