जैसे कि हम सबको
पता है, भारत का राष्ट्र गान "जन गण मन" है, तथा राष्ट्र गीत "वंदे
मातरम्" है। प्रत्येक राष्ट्र के पास ऐसे प्रतीक होते हैं जो नागरिकों के दिलों
की गहराईयों को झकझोर देते हैं और देशभक्ति की गहरी भावना जगाते हैं। वे देश के अतीत
और वर्तमान, उसके संघर्षों और उसकी जीतों को जोड़ने वाली गर्भनाल की तरह काम करते हैं।
'राष्ट्र गान' और 'राष्ट्र गीत' देश की उन धरोहरों में से हैं, जिनसे देश की पहचान जुड़ी है। राष्ट्र गान और राष्ट्र गीत की भावनाएँ भले ही अलग
हों, लेकिन उनसे देशभक्ति की भावना की ही अभिव्यक्ति होती है। राष्ट्र
गान और राष्ट्र गीत के बारे में लोग अक्सर संशय में पड़ जाते हैं। दरअसल, दोनों के प्रति लोगों के मन में सम्मान का भाव रहता है, लेकिन कई बार लोग ठीक से बता नहीं पाते।
'राष्ट्र गान' और 'राष्ट्र गीत' शब्द अक्सर एक-दूसरे के साथ लौकिक तालमेल
में उपयोग किए जाते हैं, इसलिए दोनों के बीच
के सूक्ष्म अंतर को अक्सर नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है।
'राष्ट्र गान' एक संगीत रचना है, जो प्रकृति में देशभक्तिपूर्ण है, साथ ही देश के इतिहास, परंपरा, संघर्ष और संस्कृति को परिभाषित करती है। इसे देश की सरकार द्वारा आधिकारिक
रूप से अपनाया गया है और मान्यता प्राप्त है, जिसे राष्ट्रीय अवसरों, अंतरराष्ट्रीय
आयोजनों या प्रतियोगिताओं के समय गाया जाता है।
'राष्ट्र गीत' देशभक्तिपूर्ण गीत
है, जिसे देश की सरकार द्वारा सार्वजनिक या राजकीय अवसरों पर गाने के लिए अपनाया गया
है। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने राष्ट्र गान को मूल रूप से बांग्ला में लिखा था, जिसे बाद
में हिंदी और अंग्रेज़ी में अनूदित किया गया, जबकि राष्ट्र गीत की रचना बांग्ला और
संस्कृत में की गई थी।
आइए जानते हैं दोनों
के बीच जो अंतर है उसे...
राष्ट्र गान
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राष्ट्र गीत
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भारत का राष्ट्र गान "जन गण मन" है
|
भारत का राष्ट्र गीत "वंदे मातरम्" है
|
जन गण मन की रचना सन 1911 में रवीन्द्रनाथ टैगोर ने की थी,
यह मुल रूप से उनकी नोबेल पुरस्कार प्राप्त कृति "गीतांजली" का अंश है
|
वंदे मातरम् की रचना 1870 के दशक में बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय
ने की थी, यह उनके द्वारा रचित प्रसिद्ध उपन्यास "आनंद मठ" की एक कविता
है
|
भारत के संविधान के अनुच्छेद 51ए के अनुसार, राष्ट्र गान का सम्मान करना भारत के नागरिक के मौलिक कर्तव्यों में से एक है
|
राष्ट्रीय गीत में ऐसे संवैधानिक विशेषाधिकार नहीं हैं, और यह मौलिक कर्तव्य के अंतर्गत शामिल नहीं है
|
राष्ट्र गान में एक विशेष उच्चारण, विशिष्ट धुन और निर्दिष्ट समय होगा, जिसका इसे गाने वालों को पालन करना होगा
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राष्ट्रीय गीत में भाषा और अन्य सांस्कृतिक कारकों के आधार
पर उच्चारण-धुन आदि में विभिन्न भिन्नताएँ होंगी
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राष्ट्र गान को
52 सेकंड में गाया जाने का नियम है
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राष्ट्र गीत को लेकर
ऐसा कोई नियम नहीं है, हालाँकि इसे गाने में लगभग 1 मिनट 9 सेकंड का समय लगता है
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राष्ट्र गान बजाते
समय कुछ नियम हैं जिनका पालन करना ज़रूरी होता है, इसके बजने के समय प्रत्येक नागरिक
को सावधान मुद्रा में खड़े हो जाना चाहिए, इसके साथ ही उनसे ये 'अपेक्षा' की जाती है कि वे
इसे दुहराएँ
|
राष्ट्र गीत बजने
के समय ऐसा कोई नियम नहीं है, और ना कोई अपेक्षा रखी जाती है
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भारत की संसद चुनिंदा अवसरों पर राष्ट्र गान गाने को अनिवार्य
बनाने के अपने अधिकार का प्रयोग कर सकती है और उसने इसका प्रयोग भी किया है
|
राष्ट्र गीत को राष्ट्र गान के बराबर सम्मान दिया जाता है, लेकिन किसी भी अवसर पर इसे गाना अनिवार्य नहीं है
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यह देश के इतिहास, परंपरा और संस्कृति को दर्शाता है
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देश की जनसंख्या कई अलग-अलग कारकों के कारण राष्ट्रीय गीत
से दृढ़ता से जुड़ी होगी
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इसे सबसे पहले
27 दिसंबर 1911 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में गाया गया था
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इसे सबसे पहले
1896 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में गाया गया था
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इसे संवैधानिक अधिकार प्राप्त है, लिहाज़ा राष्ट्र गान को
राष्ट्रीय उत्सवों, अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताएँ, आयोजनों आदि के समय पूर्ण
सम्मान और प्रोटोकॉल के साथ गाया जाता है
|
राष्ट्र गीत को संवैधानिक अधिकार प्राप्त नहीं है, लिहाज़ा
यह ऐसे अवसरों पर गाया नहीं जाता
|
राष्ट्र गान के
बारे में अधिक
जन-गण-मन अधिनायक जय हे
भारत भाग्य विधाता।
पंजाब-सिन्ध-गुजरात-मराठा
द्राविड़-उत्कल-बंग
विंध्य हिमाचल यमुना गंगा
उच्छल जलधि तरंग
तव शुभ नामे जागे, तव शुभ आशीष मांगे
गाहे तव जय-गाथा।
जन-गण-मंगलदायक जय हे भारत भाग्य विधाता।
जय हे, जय हे, जय हे,
जय जय जय जय हे।
राष्ट्र गान के
बारे में मूल चीज़ें हमने ऊपर पहले ही देख लीं। जैसे कि देखा, इसकी रचना प्रख्यात कवि
रवीन्द्रनाथ टैगोर ने की थी और यह गीतांजली का अंश है। यह मूल रूप से बांग्ला भाषा
में लिखा गया था, लेकिन बाद में इसका हिंदी और अंग्रेज़ी में
भी अनुवाद कराया गया। 24 जनवरी, 1950 को संविधान सभा द्वारा इसे स्वीकार किया गया।
यह मूल रूप से बांग्ला
भाषा में लिखा गया था। राष्ट्र गान में 'सिन्ध' शब्द की जगह 'सिन्घु' शब्द का इस्तेमाल और फिर इसके बारे में
केंद्र सरकार द्वारा अदालत में लिखित जवाब सरीखी घटनाएँ भी हुई हैं। कुछेक राज्य
सरकारों की सरकारी सामग्री तथा पाठ्यपुस्तकों में सिन्ध की जगह सिन्धु शब्द
इस्तेमाल किए जाने को लेकर भी मामले अदालत पहुंचे हैं। विवाद या तर्क जो भी हो, आज
की स्थिति में राष्ट्रगान में 'सिन्ध' शब्द ही सही माना गया है। लाज़िमी है कि भारत का अर्थ केवल भारत का वर्तमान
ही नहीं, बल्कि उसका इतिहास भी है। विविधता में एकता, भारत की विशालता और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, राष्ट्रगान के प्रतिबिंब हैं।
जानकारी के लिए
बता दें कि बांग्लादेश का राष्ट्रगान ‘आमार सोनार बांग्ला’ रवीन्द्रनाथ टैगोर की ही रचना है।
राष्ट्रगान बजते समय ये सावधानी बरतना न भूलें
राष्ट्र गान
संवैधानिक अधिकार प्राप्त है और इसका सम्मान करना हरेक नागरिक का मौलिक कर्तव्य
है। राष्ट्र गान जब भी कहीं बजाया जाता है, तो देश के प्रत्येक नागरिक का ये कर्तव्य
होता है कि वो अगर कहीं बैठा हुआ है तो उस जगह पर खड़ा हो जाए और सावधान मुद्रा में
रहे। साथ ही नागरिकों से ये भी अपेक्षा की जाती है कि वो भी राष्ट्रगान को दोहराएं।
हालाँकि ऐसा क़ानूनी
रूप से अनिवार्य नहीं है, किंतु राष्ट्रगान के प्रति सम्मान दर्शाने के लिए यह
अपेक्षा की जाती है। जैसा कि राष्ट्रध्वज
को फहराने के मामले में होता है, यह लोगों की अच्छी भावना के लिए छोड दिया गया है कि वे राष्ट्रगान
को गाते या बजाते समय किसी अनुचित गतिविधि में संलग्न नहीं हों।
राष्ट्र गीत के
बारे में अधिक
वंदे मातरम्,
वंदे मातरम्!
सुजलाम्, सुफलाम्, मलयज शीतलाम्,
शस्यश्यामलाम्, मातरम्!
वंदे मातरम्!
शुभ्रज्योत्सनाम् पुलकितयामिनीम्,
फुल्लकुसुमित द्रुमदल शोभिनीम्,
सुहासिनीम् सुमधुर भाषिणीम्,
सुखदाम् वरदाम्, मातरम्!
वंदे मातरम्,
वंदे मातरम्॥
राष्ट्र गीत के
बारे में मूल चीज़ें हमने ऊपर पहले ही देख ली। जैसे कि देखा, इसके रचयिता बंकिम चंद्र
चट्टोपाध्याय हैं और यह उनके उपन्यास आनंद मठ की कविता है। इस गीत की रचना 7 नवम्बर 1876 को संस्कृत और बांग्ला
मिश्रित भाषा में की गई थी और बाद में 1882 में प्रकाशित उपन्यास 'आनंद मठ' में लिया गया था।
यह गीत स्वतंत्रता
की लड़ाई में लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत था। वंदे मातरम् के तीन अलग-अलग संस्करण
हैं। ये सभी संस्करण अलग-अलग समय और धुन के हैं। इसे भी भारत के राष्ट्रगान 'जन-गण-मन'
के बराबर का ही दर्जा प्राप्त है। भारत को एक देवी माँ के रूप
में देखते हुए मातृभूमि को श्रद्धांजलि इसका प्रतिबिंब है।
(इनसाइड इंडिया, एम वाला)
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