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Media Baseless News: लोकतंत्र का चौथा स्तंभ और उसकी ख़बरों की नीति... फ़ेक न्यूज़ ऑन मीडिया (पार्ट 4)


लास्ट अपडेट अक्टूबर 2019
 
पहले ख़बरें प्रमाणित हैं या नहीं यह जाँचने हेतु न्यूज़ चैनल देखे जाते थे, आजकल न्यूज़ वालों की ख़बरों में कितना दम है यह जाँचने किसी दूसरे प्लेटफॉर्म पर जाना पड़ता है! फ़ेक न्यूज़, अविश्वसनीय दावे या भ्रमित करने वाली ख़बरों को लेकर बड़े से बड़े ग्रंथ लिखे जा सकते हैं। फ़ेक न्यूज़ क्यों फैलाए जाते हैं, कौन फैलाते हैं, कब फैलाते हैं, उससे क्या फ़ायदे या नुक़सान होते हैं, बहुत लंबा लिखा जा सकता है। उसे हमने एक दूसरे संस्करण "World of Fake News: फ़ेक ख़बरों का जंगल..." में विस्तृत रूप से देखा।
 
मीडिया स्वयं ही अब फ़ेसबुकिया-व्हाट्सएपिया बनकर काम करने लगा है। फ़ेक न्यूज़ और मीडिया, इसके संबंध में हम चौथे संस्करण की तरफ़ आगे बढ़ते हैं।
 
मीडिया ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की मौत की ख़बरें चला दी, जबकि एम्स या भारत सरकार ने कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की थी
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी नौ सप्ताह से दिल्ली के एम्स में भर्ती थे और 16 अगस्त 2018 को शाम 5:05 बजे उनका निधन हो गया। पिछले कुछ घंटों में उनकी हालत और भी ख़राब हो गई थी और उन्हें लाइफ़ सपोर्ट सिस्टम पर रखा गया था।
 
किंतु भारत के मेनस्ट्रीम मीडिया ने उनके निधन की आधिकारिक घोषणा से पहले ही उन्हें मृत घोषित कर दिया था, जिससे संबंधित लेख ऑल्ट न्यूज़ ने प्रकाशित किया था।
 
टाइम्स नाउ
टाइम्स नाउ ने इस दिन दोपहर 2:39 बजे एक लेख प्रकाशित किया, जिसका शीर्षक था - "पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का 93 वर्ष की आयु में निधन।"
 
कमाल यह कि बाद में रिपोर्ट को बदलकर "अटल बिहारी वाजपेयी स्वास्थ्य लाइव अपडेट: वाजपेयी पर गृह मंत्री राजनाथ सिंह के बयान पर भ्रम" कर दिया गया!
 
टाइम्स नाउ ने इसी शाम क़रीब 4 बजे "वाजपेयी के स्वास्थ्य" पर एक और लेख प्रकाशित किया। लेख की स्ट्रैपलाइन में विडंबनापूर्ण रूप से उल्लेख किया गया कि, "छत्तीसगढ़ के राज्यपाल बलरामजी दास टंडन के संदर्भ में बोलते समय कई मीडिया संगठनों ने राजनाथ सिंह के बयान को ग़लत तरीक़े से उद्धृत किया।"
 
टाइम्स नाउ ने नये लेख में "कई मीडिया संगठनों ने" लिखा, लेकिन यह जोड़ना भूल गया कि उसने भी ग़लती की थी।
 
एबीपी न्यूज़
एबीपी माझा के ट्विटर हैंडल ने भी समय से पहले ट्वीट कर दिया कि वाजपेयीजी का निधन हो गया है और बाद में बिना किसी स्पष्टीकरण या माफ़ी के अपने ट्वीट को हटा दिया।
 

एबीपी न्यूज़ हिंदी ने भी दोपहर क़रीब 12:53 बजे पोस्ट किया गया एक ट्वीट हटा लिया जिसमें लिखा था - "अटल बिहारी वाजपेयी के निधन की ख़बरों के बीच शवगृह वैन एम्स परिसर में पहुँची।"
 
द स्टेट्समैन
स्टेट्समैन ने बताया कि दोपहर 2:40 बजे वाजपेयी नहीं रहे, लेकिन बाद में उन्होंने अपनी रिपोर्ट का शीर्षक बदलकर "सोशल मीडिया पर अटल बिहारी वाजपेयी की मौत की अफ़वाहें" कर दिया! हालाँकि अंग्रेज़ी दैनिक ने लेख में स्पष्ट किया कि "उनकी पिछली रिपोर्ट में अनजाने में कहा गया था कि वाजपेयी का निधन हो गया है।"
 
हफिंगटन पोस्ट
हफपोस्ट इंडिया ने दोपहर 1:40 बजे एक लेख प्रकाशित कर पूर्व प्रधानमंत्री की मृत्यु की घोषणा कर दी, जबकि आधिकारिक घोषणा को उनके रिपोर्टेज़ में स्थान नहीं मिला।
 
इंडिया टीवी
इंडिया टीवी ने दोपहर 2:40 के आसपास लाइव टेलीकास्ट पर कहा कि अटल बिहारी वाजपेयी का निधन हो गया है और दावा किया कि उन्हें यह जानकारी डीडी न्यूज से मिली है। एम्स की प्रेस विज्ञप्ति प्रकाशित होने के बाद इंडिया टीवी ने उसी लाइव प्रसारण में बताया कि पूर्व प्रधानमंत्री का निधन शाम 5:05 बजे हुआ।
 
सुदर्शन न्यूज़
क़रीब 3 बजे सुदर्शन न्यूज़ ने वाजपेयी की मृत्यु की ख़बर दी -  एम्स की प्रेस विज्ञप्ति से दो घंटे पहले! विडंबना यह कि शाम क़रीब साढ़े पाँच बजे उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री की मृत्यु की घोषणा करते हुए एक और लेख प्रकाशित किया।
 
सीधी बात है कि किसी लोकप्रिय और बड़ी शख़्सियत के निधन की सूचना तथ्यों की पुष्टि किए बिना या आधिकारिक घोषणा होने के बाद प्रसारित की जानी चाहिए, वर्ना कभी-कभी अराजकता फैल सकती है। तमिलनाडु की पूर्व सीएम जयललिता के निघन से कुछ घंटे पहले ऐसा हुआ था, फिर अफ़वाहों की बाढ़ आई और उन्मादी नागरिकों ने चेन्नई के अपोलो अस्पताल पर हमला कर दिया था।
 
मीडिया का मूल कर्तव्य है कि वे तथ्यों और प्रमाणित संदर्भों के साथ देश के सामने सूचना रखे, और रिपोर्टिंग के ग़लत तरीक़ों से दूर रहे।
 
डीएनए और ज़ी न्यूज़ ने एम्स के डॉक्टरों द्वारा अटल बिहारी वाजपेयी को अंतिम श्रद्धांजलि देने की फ़र्ज़ी तस्वीर प्रसारित की
लगा कि मीडिया सुधरना ही नहीं चाहता था! डीएनए और ज़ी न्यूज़ ने एक ऐसी तस्वीर के साथ रिपोर्ट किया, जिसका संबंध दिवंगत प्रधानमंत्री वाजपेयीजी से या भारत से भी नहीं था!
 
वाजपेयीजी के निधन के बाद ज़ी न्यूज़ ने ख़बर चलाई- "दिग्गज राजनीतिज्ञ को अंतिम सम्मान देने वाले डॉक्टरों की तस्वीर ज़ी न्यूज़ द्वारा हासिल।"
 
इसी प्रकार डीएनए ने भी एक तस्वीर प्रकाशित की, जिसमें अस्पताल के बिस्तर पर पड़े मृत शरीर के चारों ओर कतार में सिर झुकाए खड़े डॉक्टर दिख रहे थे। उसने तस्वीर का वर्णन किया - "पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के सम्मान में सभी डॉक्टर कतार में खड़े और सिर झुकाए खामोश देखे गए।"
 

ऑल्ट न्यूज़ ने विश्लेषण कर लिखा कि यह तस्वीर ना दिवंगत प्रधानमंत्री वाजपेयीजी की थी, ना ही इस तस्वीर का संबंध भारत से था! दरअसल यह 2012 की तस्वीर थी, जिसमें चीनी डॉक्टरों का एक समूह एक महिला को श्रद्धांजलि दे रहा होता है, जिसके अंगों को उसकी मृत्यु के बाद दान कर दिया गया था।
 
17 वर्षीय मृतक महिला का नाम वू हुआजिंग था, जिन्हें डॉक्टरों का समूह नमन करता है। वू हुआजिंग की मृत्यु 22 नवंबर 2012 को ग्वांगडोंग में  हुई थी और उनकी मृत्यु के बाद उनकी इच्छा के अनुसार उनके अंग दान कर दिए गए थे।
 
बाद में ज़ी न्यूज़ और डीएनए, दोनों को अपनी ग़लती का एहसास हुआ। उनके द्वारा पोस्ट किए गए ट्वीट  हटा दिए गए और लेख संशोधित किए गए। ज़ी न्यूज़ ने संशोधित लेख के अंत में अपनी ग़लती के लिए खेद भी प्रकट किया। हालाँकि डीएनए ने संशोधित लेख तो प्रकाशित किया, किंतु अपनी ग़लती को लेकर ना खेद प्रकट किया और ना ही तस्वीर की चर्चा की।
 
अंकित गर्ग हत्याकांड: मीडिया द्वारा की गई सांप्रदायिक और भड़काऊ रिपोर्टिंग
31 वर्षीय शिक्षक अंकित कुमार गर्ग को 1 अक्टूबर को दिल्ली में गोली मार दी गई। घटना के तुरंत बाद कई समाचार संगठनों ने बताया कि यह ऑनर किलिंग का मामला था। समाचार संगठनों ने पीड़ित के परिवार द्वारा लगाए गए आरोपों के आधार पर यह रिपोर्ट की, जिसमें कथित रूप से पीड़ित के परिवार का आरोप था कि जिस मुस्लिम लड़की के साथ उसके संबंध थे, उसी के परिवार द्वारा अंकित की हत्या हुई थी।
 
मीडिया ने पीड़ित के परिवार द्वारा लगाए गए आरोपों को जाँचना या पुलिस तफ़तीश को प्राथमिकता देना ज़रूरी नहीं समझा और रिपोर्टींग की। अमूमन मीडिया ऐसा ही करता है, किंतु मामला नाजुक था, आरोप संगीन थे और रिपोर्टींग संभ्हाल कर करनी थी, किंतु मीडिया ने यह भी ज़रूरी नहीं समझा।
 
इस मामले में ऑल्ट न्यूज़ ने मीडिया रिपोर्टींग के बारे में एक विश्लेषण पेश किया और पाया कि मीडिया ने सांप्रदायिक और भड़काऊ तरीक़े से मामले को पेश किया था।
 
2 अक्टूबर को ज़ी न्यूज़ ने इस घटना की रिपोर्ट "अंकित को प्यार की सजा या हिंदू होने की सजा?" शीर्षक के साथ की थी। रिपोर्ट में पूछा गया कि क्या अंकित गर्ग और अंकित सक्सेना की मौत का कारण धर्म था? बता दें कि फ़रवरी 2018 में 23 वर्षीय अंकित सक्सेना को उस लड़की के परिवार ने मार डाला था, जिससे वह प्यार करता था।
 
ज़ी न्यूज ने #मर्डर पर सेकुलर सन्नाटा (#MurderParSecularSannata) हैशटैग के साथ एक प्राइम टाइम शो भी प्रसारित किया और पूछा कि मज़हब के नाम पर कितने अंकित का मर्डर? नाम अंकित इसलिए हत्या पर सन्नाटा? मोहब्बत से बड़ा मज़हब है?
न्यूज़ 18 में इस घटना की रिपोर्ट का शीर्षक था - "मुस्लिम छात्रा के साथ 'रिश्ते' के कारण दिल्ली के शिक्षक की गोली मारकर हत्या।" रिपोर्ट 'सूत्रों के आधार' पर थी, जिसमें बताया गया था कि मुस्लिम महिला और पीड़ित शादी करना चाहते थे, लेकिन लड़की के भाई ने इस संबंध का विरोध किया, क्योंकि वे दोनों अलग-अलग धर्मों के थे। घटना की रिपोर्ट करने के लिए चैनल द्वारा उपयोग किया गया हैशटैग था #बुलेट फ़ॉर लव (#BulletForLove)
 
आज तक ने भी बताया कि मुस्लिम लड़की के साथ रिश्ते के कारण अंकित की हत्या हुई थी। एक और लोकप्रिय हिंदी प्रकाशन दैनिक भास्कर ने भी बताया कि किसी अन्य समुदाय से संबंधित लड़की, जिसके साथ अंकित रिश्ते में था, के भाई के द्वारा अंकित की हत्या हुई थी।
 

टाइम्स नाउ हिंदी ने भी 2 अक्टूबर को बताया कि अंकित को इसलिए मार डाला गया क्योंकि वह एक मुस्लिम लड़की से प्यार करता था। रिपोर्ट का शीर्षक था - "दिल्ली: एक और 'अंकित' को उतारा मौत के घाट, मुस्लिम लड़की से करता था प्यार।"
 
द प्रिंट ने बताया - "दिल्ली के ट्यूशन शिक्षक को मुस्लिम छात्रा के साथ 'संबंध' के कारण गोली मार दी गई।"
 
दैनिक भारत, जो एक नकली समाचार वेबसाइट है, ने इस घटना की रिपोर्ट का संभवतः अपना सबसे भड़काऊ शीर्षक दिया था - "ये है हिन्दू लड़का अंकित - मुस्लिम लड़की से दोस्ती पर उतार दिया मौत के घाट, न मीडिया न केजरीवाल।" 
एनडीटीवी इंडिया की रिपोर्ट का शीर्षक था - "दिल्ली में एक और 'अंकित' की हत्या, बहन ने कहा - दूसरे समुदाय की लड़की से था प्रेम-संबंध।" इसने अपने रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया कि पीड़ित के परिवार को शक था कि उसका रिश्ता ही उसकी मौत का कारण था।
 
बीबीसी समाचार हिंदी की रिपोर्ट का शीर्षक था - "प्रेस रिव्यू: फिर एक अंकित की हत्या, दूसरे धर्म में प्यार की सज़ा?" इस रिपोर्ट के शीर्षक में ऑनर किलिंग थ्योरी को प्रश्न चिह्न के साथ पेश किया गया था।
 
न्यूज़ 24 वरिष्ठ एंकर माणेक गुप्ता ने 2 अक्टूबर को ट्वीट किया कि अंकित की हत्या हुई थी क्योंकि वह एक मुस्लिम लड़की से प्यार करता था।
 
मीडिया के सांप्रदायिक और भड़काऊ रिपोर्टींग के बाद दिल्ली के भाजपा सांसद परवेश साहिब सिंह ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को इस मामले में निशाने पर लिया। दिल्ली भाजपा के प्रवक्ता हरीश खुराना ने भी इस मुद्दे पर केजरीवाल को निशाना बनाया। दिल्ली भाजपा के महासचिव रविंदर गुप्ता ने भी वही दोहराया।
 
सोशल मीडिया पर जाने-माने संदिग्धों को इस मुद्दे को सांप्रदायिक बनाने की ज़रूरत ही नहीं पड़ी, क्योंकि मीडिया यह काम पहले से ही कर चुका था! सोशल मीडिया पर मीडिया के इस 'सांप्रदायिक समाचार' का भरपूर इस्तेमाल किया गया।
कुछ ही दिनों बाद 5 अक्टूबर 2018 को एक प्रेस विज्ञप्ति के द्वारा दिल्ली पुलिस ने कहा - "अंकित कुमार गर्ग की हत्या ऑनर किलिंग का मामला नहीं है। 21 वर्षीय आकाश को गर्ग की हत्या के लिए गिरफ़्तार किया गया है।" प्रेस विज्ञप्ति में दिल्ली पुलिस ने स्पष्ट रूप से कहा कि "आकाश" को गर्ग की हत्या के लिए गिरफ़्तार किया गया है।
 
यह पुष्टि होने के बाद कि अंकित गर्ग की हत्या ऑनर किलिंग का मामला नहीं है तथा हिंदू संप्रदाय के इस पीड़ित की हत्या हिंदू व्यक्ति ने ही की थी, मीडिया में वो जोश और उत्साह नहीं दिखा, जैसा कुछ दिन पहले दिखा था! हालाँकि ज़्यादातर मीडिया हाउस ने दिल्ली पुलिस की प्रेस विज्ञप्ति चलाई ज़रूर, किंतु चार दिनों तक मीडिया ने जिस तरह फेफड़े फाड़े, वैसी 'फेफड़ा फाड़ रिपोर्टींग' नहीं हुई! होती भी कैसे, क्योंकि अब सनसनी और सांप्रदायिकता को जगह नहीं थी और बिना सनसनी के इनकी टीआरपी को फ़ायदा नहीं होना था।
 
वैसे अंकित गर्ग की हत्या के तुरंत बाद इन समाचार संस्थानों की रिपोर्ट में पीड़ित के परिवार द्वारा आरोप लगाने का उल्लेख किया गया था, फिर भी इस घटना की प्रस्तुति भ्रामक, सांप्रदायिक और भड़काऊ थी। ऐसे समय में, जब निहित स्वार्थी तत्वों द्वारा सांप्रदायिक विभाजन बढ़ाने के प्रयास हो रहे हो, मेनस्ट्रीम मीडिया द्वारा किसी घटना को सांप्रदायिकता और भड़काऊ लहज़े के साथ पेश करना ग़लत उदाहरण था।
 
केरल की बाढ़ पर मेनस्ट्रीम मीडिया की भ्रामक ख़बरें, संदिग्ध संदर्भ - दूसरे राज्यों की तस्वीर या वीडियो केरल की बताई गई - पुरानी असंबंधित तस्वीर को केरल बाढ़ से जोड़ा गया
अगस्त 2018 में केरल ने शताब्दी की सबसे भारी बारिश की घातक चोट झेली। सैकड़ों लोगों की मौतें हुई, लाखों का विस्थापन और संपत्ति को भारी नुक़सान हुआ। केरल की यह त्रासदी विशाल थी, साथ ही इससे संबंधित झूठे या भ्रामक दावों की बारिश मेनस्ट्रीम मीडिया में भी हुई, जिसकी रिपोर्ट प्रकाशित भी हुई थी।
 
द टेलीग्राफ की रिपोर्ट यूएई राष्ट्रपति के अनाधिकारिक पेज के पोस्ट पर आधारित थी
बाढ़ प्रभावित केरल के लिए संयुक्त अरब अमीरात ने 700 करोड़ रुपये का प्रस्ताव पेश किया है या नहीं, यह विवाद इन दिनों चल रहा था। इस बीच द टेलीग्राफ ने बताया कि यूएई के राष्ट्रपति शेख ख़लीफ़ा बिन ज़ायद अल नाहयान ने अपने फ़ेसबुक पेज पर इस शीर्षक से समाचार दिया है - "केरल में राहत और पुनर्वास के लिए 700 करोड़ रुपये देने का यूएई वचन देता है।" (अनुवाद)
 
इसी आधार पर बताया जाने लगा कि यूएई के राष्ट्रपति ने अपने फ़ेसबुक पेज पर लिखा है तो यह विवाद नहीं बल्कि आधिकारिक घोषणा है। कुल मिलाकर मेनस्ट्रीम मीडिया के इस रिपोर्ट को अप्रत्यक्ष पुष्टि मान लिया गया।
 
किंतु टेलीग्राफ ने यूएई के राष्ट्रपति के जिस फ़ेसबुक पेज का हवाला दिया था वह आधार ही संदिग्ध था! टेलीग्राफ रिपोर्ट में यूएई के राष्ट्रपति के इस कथित फ़ेसबुक पेज पर सरसरी नज़र डालने से ही पता चलता था कि वह उनका आधिकारिक पेज नहीं था! फ़ॉलोअर्स की संख्या और पेज पर वेरिफिकेशन की नीली टिक का नहीं होना इस तथ्य को दर्शाता था कि यह राज्य प्रमुख का आधिकारिक पृष्ठ नहीं हो सकता। बावजूद इसके टेलीग्राफ ने इसे एक आधिकारिक खाता माना और रिपोर्ट कर दिया!
 
रिपब्लिक टीवी, न्यूयॉर्क टाइम्स ने कर्नाटक में भूस्खलन के वीडियो को केरल का बताकर शेयर किया
रिपब्लिक टीवी के समाचार एंकर ने केरल की बाढ़ पर एक रिपोर्ट पेश करते हुए कहा, "केरल में, जहाँ अभी तक बचाव अभियान चल रहा है, मेरे सहयोगी स्नेहेश त्रिवेन्द्रम से हमसे लाइव जुड़ रहे हैं।" केरल में बाढ़ से विनाश के प्रतिनिधि दृश्यों के साथ प्रभावित क्षेत्रों से भी रिपोर्टिंग हुई थी।
 
रिपब्लिक टीवी के वीडियो में 3:28 से एक पहाड़ी से नीचे गिरते दो मंजिला घर का दृश्य दिखाया गया था। स्क्रीन पर दिए नोट के मुताबिक़ ये दृश्य 17 अगस्त 2018 का था। वहीं यही दृश्य द न्यूयॉर्क टाइम्स द्वारा पोस्ट किए गए वीडियो में भी इस्तेमाल किया गया था।

 
मजे की बात यह कि पहाड़ी से नीचे गिरते दो मंजिला घर का यह वीडियो केरल का था ही नहीं! यह वीडियो कर्नाटक के कोडागु का था, जहाँ इसी महीने भूस्खलन के कारण ढलान पर दो मंजिला घर गिरता हुआ रिकॉर्ड किया गया था।
 
कोडागु की इस ख़बर को स्क्रॉल, द टाइम्स ऑफ़ इंडिया और एनडीटीवी समेत मुख्यधारा के कई मीडिया संगठनों के अलावा द न्यूज मिनट द्वारा रिपोर्ट किया जा चुका था, जिसमें वीडियो का स्थान कोडागु, कर्नाटक बताया गया था।
 
टाइम्स नाउ ने पश्चिम बंगाल के घर गिरने का फुटेज केरल का बताया
टाइम्स नाउ के मुख्य संपादक राहुल शिवशंकर ने केरल बाढ़ पर प्राइमटाइम बहस शुरू की, "दर्शक, हम विनाश की कहानी से शुरू करते हैं, तस्वीर जो आप अपनी स्क्रीन पर लगभग 30 सेकंड में देखने जा रहे हैं, वे केरल के जलप्लावित ज़िलों से हैं।" इस संबोधन के साथ दिखाए गए वीडियो में एक दो-मंजिला घर बाढ़ में बहता हुआ दिखाया गया। दावा किया गया कि यह वीडियो कुशल नगर, केरल का था।
 
यहाँ भी मेनस्ट्रीम मीडिया व्हाट्सएपिया बनता दिखा। दरअसल यह वीडियो क्लिप केरल की नहीं बल्कि इसी महीने की पश्चिम बंगाल की थी!
 
दरअसल इसी महीने में पश्चिम बंगाल का बांकुरा ज़िला भी बाढ़ झेल चुका था। 7 अगस्त 2018 को द हिंदू द्वारा प्रकाशित एक लेख था, "सोमवार को भारी बारिश से बांकुरा ज़िले के कई इलाक़ों में बाढ़ आने के कारण दो लोगों की मौत हो गई और कम से कम 2,500 प्रभावित हुए। कई घर भी क्षतिग्रस्त हो गए।"
 
बांकुरा में बाढ़ से दो मंजिला घर के बह जाने का यह दृश्य कई मीडिया संगठनों द्वारा व्यापक रूप से प्रसारित किया गया था। और पश्चिम बंगाल के इसी वीडियो को टाइम्स नाउ ने केरल का बताकर पेश कर दिया था!
 
दैनिक भास्कर ने हाथी के बच्चे को बचाने की पुरानी तस्वीर छापी
23 अगस्त 2018 को दैनिक भास्कर नई दिल्ली संस्करण द्वारा प्रकाशित एक लेख में हाथी के एक बच्चे की तस्वीर इस कैप्शन के साथ थी - "सेना केरल में बाढ़ में फँसे लोगों के साथ जानवरों की भी मदद कर रही है। जवान ने हाथी के बच्चे को रेस्क्यू किया।" कैप्शन में बताया गया था - "केरल बाढ़ के दौरान सेना द्वारा हाथी के एक बच्चे को बचाया गया।"
 
तुरंत ही ऑल्ट न्यूज़ के ज़रिए पता चला कि यह तस्वीर पिछले साल की थी और केरल की नहीं बल्कि तमिलनाडु की थी। दरअसल यह तस्वीर दिसंबर 2017 में तमिलनाडु में कोयंबटूर के पास मेट्टुपलायम में ली गई थी।
 
मेट्टुपलायम के पास तैनात 28 वर्षीय फारेस्ट गार्ड पलानिचमी सरथकुमार ने 12 दिसंबर 2017 को, जब वह रात की शिफ्ट के बाद घर जा रहे थे, एक कॉल प्राप्त की। 29 दिसंबर 2017 को बीबीसी द्वारा प्रकाशित एक लेख में सरथकुमार ने कहा था, "कॉलर ने मुझे बताया कि एक महिला हाथी वानभद्र कालियाम्मन मंदिर के पास सड़क को अवरुद्ध कर रही थी।" (अनुवाद) यह उस घटना की तस्वीर थी।
 
(इनसाइड इंडिया, एम वाला)