स्पष्ट हो कि गुजरात ही नहीं, बल्कि भारत के तमाम राज्यों की यही कहानियां होगी
ये मानने में कोई हर्ज नहीं होना चाहिए। काजल की कोठरी क्यों कहा यह अपने अपने तौर
पर सोच लें। सोचने के आगे भी कुछ करना हो तो अपने अपने राज्यों की काजल की कोठरीयां
भी शब्दों में ढालकर पेश करने की तकलीफ उठा लें। ऐसा ना करना हो तो हमारे प्रमुख
राजनीतिक दलों की तरह करे, जहां खुद के 90 किलोग्राम के काले काम पर सवाल उठे तो
सामने वाले के 90 किलोग्राम काले काम गिनाए जाते हैं।
गुजरात के चौंकानेवाले तथ्य
👉 नवम्बर 2016 तक गुजरात में इंटेलिजेंस चीफ का पद सन 2009
से रिक्त था। सालों तक लोकायुक्त का भी यही हाल रहा।
👉 गुजरात में शिक्षकों की कमी के चलते 19 प्रतिशत बच्चे स्कूल
छोड़ने को मजबूर हैं।
👉 बाल विकास सूचकांक 2015 के आंकड़ों के मुताबित गुजरात 15वें
क्रम पर था।
👉 गुजरात राज्य सरकार ने एक कंपनी के साथ सन 2005 में एमओयू
किया था। दस्तावेजों में उस कंपनी की स्थापना सन 2010 में हुई थी। (छत्राला इंडिया ग्रुप, एमओयू हुआ था ग्लोबल इन्वेस्टर्स
समिट 2005 में, होटल प्रोजेक्ट)
👉 सन 2015 तक के रिपोर्ट के मुताबिक गुजरात में नर्मदा नहर के 66 प्रतिशत काम अधूरे थे।
👉 2014 के लोकसभा चुनावों में नोटा का इस्तेमाल सबसे ज्यादा
गुजरात में हुआ था।
कैग रिपोर्ट – क्या गुजरात में प्रेजेंटेशन ज्यादा हुआ और काम कम?
कैग ने अपने रिपोर्ट में सीधा लिखा था कि गुजरात की पोर्ट
पॉलिसी 15 साल बाद भी पूरी तरह नाकाम है। इसके लिए आयोजन, समय मर्यादा, मॉनिटरींग
और गैरजिम्मेदाराना व्यवहार को मुख्य वजहें बताया गया था।
गुजरात पर कैग का 2008-13 का रिपोर्ट। रिपोर्ट का काल देखकर पक्षपात या दबाव के तर्क दागने से पहले यह भी याद कर लीजिएगा कि यही वो काल था जब कैग के रिपोर्ट ने यूपीए सरकार के कपड़े भी फाड़ दिए थे। खैर, गुजरात पर कैग के रिपोर्ट के अंश को देख लेते हैं। इस काल के
दौरान मुख्यमंत्री थे नरेन्द्र मोदी। कैग ने अपने रिपोर्ट में सीधा लिखा था कि
शौचालय व स्वच्छता के मामले में गुजरात सरकार फिसड्डी साबित हुई है। कैग के इस
रिपोर्ट के स्पष्ट अंश थे कि गुजरात में गंदगी दूर हो और लोग शौचालय बनाए इसके
लिए विज्ञापनों में सैकड़ों रुपये खर्च हुए, लेकिन सिस्टम बीमार रही और कमजोर सिस्टम
के चलते गुजरात इस योजना में 46 फीसदी ही सफल हो पाया। कैग ने लिखा था कि आधे से
ज्यादा शौचालय तैयार नहीं किये गए थे। कागज पर सब तैयार करके ग्रांट में घोटाले
हुए। शौचालय बनवाने का अभियान तत्कालीन यूपीए सरकार का था, लेकिन गुजरात सरकार ने
अपनी नीतियों के कारण अपने ही राज्य को योजना के फायदों से वंचित रखा। गुजरात सरकार
पर फिर सवालियां निशान उठे थे। क्योंकि गरीब परिवार के लिए शौचालय बनवाने और उन्हें जागरूक बनाने के नाम पर किये गए खर्च में घोटाले बाहर आए। सामूहिक शौचालय व गंदे
कचरे के निकाल की व्यवस्थाएँ 54 प्रतिशत अधूरी रह गई। स्वच्छता की योजनाओं का व्याप
सिर्फ 46 प्रतिशत ही रहा। कैग के ऑडिट रिपोर्ट में कई सारी खामियां उजागर हुई थी। लगा
कि जैसे निर्मल गुजरात अभियान कागज पर ही चलाया गया था। जमीनी हक़ीक़त कुछ अलग थी।
आखिरी 5 सालों में शौचालय बनाने का लक्ष्यांक 54 प्रतिशत अधूरा रह गया।
गुजरात पर कैग का 2008-13 का रिपोर्ट। इस काल के
दौरान मुख्यमंत्री थे नरेन्द्र मोदी। कैग ने अपने रिपोर्ट में सीधा लिखा था कि
गुजरात में शिक्षा का अधिकार जैसे संवेदनशील कानून को प्रशासन ने गंभीरता से लिया
ही नहीं। प्राथमिक शिक्षा में गुजरात प्रशासन ने गंभीरता नहीं दिखाई और बच्चे शिक्षा
से वंचित रहे। इस रिपोर्ट में कैग ने यह भी लिखा था कि गुजरात में प्राथमिक शिक्षा
में अनगिनत कमियों की वजह से ड्रॉप आउट रेशियो पिछले 6 सालों से बढ़ता चला गया।
मूलभूत ढांचा व सुविधाओं को मुहैया कराने में राज्य सरकार विफल रही थी। आखिरी 6 सालों के दौरान प्राथमिक शिक्षा में शिक्षकों की कमी उभरकर सामने आई थी और प्रशासन इन कमियों
को पूरा करने पर संजीदा नहीं था। इन कमियों की वजह से व मूलभूत सुविधाएँ उपलब्ध न
कराने की वजह से राज्य का प्राथमिक शिक्षा का पूरा ढांचा बुरी तरह क्षतिग्रस्त
हुआ। केन्द्र में मोदी सरकार सुप्रीम कोर्ट की फटकार खाती रही, तो गुजरात में भी
हाईकोर्ट की अनगिनत फटकार लग चुकी थी और इस मसले पर भी आखिर गुजरात हाईकोर्ट ने
नवम्बर-14 में राज्य सरकार को फटकार लगाई और कहा कि, “शिक्षा के अधिकार के अधीन गरीब बच्चों को प्रवेश क्यों नहीं दिया जा रहा इसका
जवाब दीजिए।” हाईकोर्ट ने कहा कि, “शिक्षा के अधिकार कानून का राज्य सरकार इस्तेमाल क्यों नहीं कर रही? उसमें कोताही नहीं चलेगी।”
गुजरात पर कैग का 2008-13 का रिपोर्ट। इस काल के
दौरान मुख्यमंत्री थे नरेन्द्र मोदी। कैग ने अपने रिपोर्ट में सीधा लिखा था कि इस
दौरान जूनागढ़ इलाके के कई शिक्षा संस्थान पेड़ों के नीचे चल रहे थे तथा कई संस्थान
के मकान पक्के बनाए ही नहीं गए थे!!! 48 शिक्षा संस्थान के मकान “अयोग्य” करार दिये गए। 3,146 शिक्षा संस्थान में शिक्षा का अधिकार जैसे संवेदनशील कानून की धज्जियां उड़ाई गई थी। “सर्व शिक्षा अभियान” जैसी महत्वपूर्ण योजना को स्थानिक सरकार
ने गंभीरता से लिया ही नहीं था। संस्थानों के खंडहर जैसे मकान, पेड़ के नीचे बच्चों को
पढ़ाना, स्टाफ की कमियां, मूलभूत सुविधाएँ उपलब्ध न कराना, ग्रांट में घोटाले, फंड के
उपयोग में आयोजन की कमी, मिड डे मील जैसी गरीब लक्षी योजनाओं में गंभीर क्षतियां व घोटाले,
संस्थानों में शौचालय सुविधाओं के मामलों में ढीला-ढाला रवैया, कई जगह पर तो लड़कियां और
लड़कों के लिए एक ही शौचालय, पीने के पानी की कमी जैसी चीजों को नोट किया गया था।
कैग रिपोर्ट - एएमसी के सर्वेक्षण में 84 फॉर्म रिक्त, 858
में दस्तखत ही नहीं थे
कैग ने अपनी रिपोर्ट में एएमसी (अहमदाबाद म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन) द्वारा सन 2010 में किये गए सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण की पोल खोल दी। कैग ने 8 स्कीमों के 1,701 फॉर्म
को जांचा था। हालांकि एएमसी ने कैग को 2 स्कीमों के फॉर्म उपलब्ध नहीं कराए थे।
जितने फॉर्म को जांचा गया, पता चला कि 406 मामलों में नाम रिपीट हो रहे थे!!! 84 फॉर्म
पूरी तरह रिक्त थे!!! 620 फॉर्म में पीने के पानी की जानकारी ही लिखी नहीं गई थी। 332 फॉर्म में शौचालय की जानकारी नदारद थी! 399 फॉर्म में समयसीमा, 493 में शैक्षिक
जानकारी तथा 399 फॉर्म में मासिक आय की जानकारी लिखी ही नहीं गई थी! 858 फॉर्म तो ऐसे थे, जिसमें सर्वेक्षण करने वालों के दस्तखत ही नहीं थे!!!
कैग ने किया एएमसी का ऑडिट, 600 करोड़ की गड़बड़ पकड़ी
कानून में संशोधन के बाद कैग ने पहली दफा एएमसी (अहमदाबाद म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन)
का ऑडिट किया। 2017 में कैग ने यह ऑडिट रिपोर्ट पेश किया। ऑडिट में 600 करोड़ की
गड़बड़ी पाई गई। एएमसी की स्लम रि-डेवलपमेंट स्कीम में सरकारी तिजोरी को 600 करोड़ का
नुकसान हुआ था यह तथ्य ऑडिट रिपोर्ट में पाया गया। कैग की रिपोर्ट के अनुसार स्लम
रि-डेवलपमेंट की 10 स्कीमों में पांच बिल्डरों को 334 करोड़ का टीडीएस भुगतान ज्यादा
पाया गया। दूसरी ओर जमीनों के दाम कम बताए गए थे, जिससे सरकारी तिजोरी को 100
करोड़ का नुकसान हुआ था। उपरांत इमारतों की ऊंचाई के मामले में भी 100 करोड़ से ज्यादा
का चूना लग गया। कंस्ट्रक्शन की कीमत तय करने के मामले में भी 106 करोड़ का घाटा
सरकारी तिजोरी को उठाना पड़ा। दो स्कीमों में बिल्डरों ने तो स्थानिकों की इजाज़त ही नहीं ली और टेंडर जैसे तैसे मंजूर भी करा लिए गए थे। इससे केंद्र सरकार की तरफ से
मिलने वाली ग्रांट का फायदा भी नहीं मिल पाया।
उद्योग कंपनियों की मनमानी या सरकारी जिम्मेदारी का अभाव
स्थानिक मीडिया रिपोर्ट की माने तो वटवा, नारोल, दाणीलिमडा,
ओढव में गैरकानूनी केमिकल ढांचों का जाल है। 60 प्रतिशत केमिकल फैक्ट्रियां सेफ्टी ऑडिट रिपोर्टस ही पेश नहीं करती! 50 प्रतिशत में इमरजेंसी प्लान ही नहीं! सेफ्टी
अलार्म का ठिकाना नहीं! विंड इंडिकेटर नहीं, अनुभवी दल नहीं, सेफ्टी कमेटी नहीं,
एक्सपर्ट अधिकारी नहीं, ऑक्सीजन मास्क तक का कोई ठिकाना नहीं! यूनिट के नकशे का कोई
ठिकाना तक नहीं और फिर भी सैकड़ों यूनिट प्रोडकशन करते रहते हैं! केमिकल कनाल के
जरिये नदी में छोड़ दिया जाता है। लगता है कि हमने भोपाल गैस दुर्धटना से सबक नहीं लेने का फैसला किया हुआ है।
यह कैसा सुशासन है?
टाटा नैनो प्रोजेक्ट को एनवायरमेंट क्लीयरेंस देने में सिर्फ 25 दिन लगे थे।
महात्मा मंदिर के मामले में 2 दिन में निर्णय लेकर काम शुरू करवा दिया गया था!!! दूसरी
ओर 1,739 छोटे और मध्यम कद के प्रोजेक्ट्स वहां पिछले 11-12 महीनों से इंतज़ार
कर रहे थे!!! वजह बताई गई कि इतने महीनों से कमेटी सदस्य उपलब्ध नहीं हो पाये थे!!! पता
नहीं, टाटा और महात्मा मंदिर के मामले में कैसे कुछ दिनों में उपलब्ध हो गये होंगे।
जब उपमुख्यमंत्री ने कह दिया – मैं आप का नोकर नहीं हूं
25 अक्टूबर 2016 का दिन था। जगह थी स्वर्णिम संकुल,
गांधीनगर, गुजरात। नीट के मुद्दे को लेकर छात्रों के माता-पिता डिप्टी चीफ मिनिस्टर
नितिन पटेल से मिलने आये थे। इस दौरान तनातनी बढ़ गई और हंगामा होने लगा। गुस्साए उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल ने यहां तक कह दिया कि मैं आप का नोकर नहीं हूं, मुझे किसी
की बात नहीं सुननी। बाद में नितिन पटेल हाय हाय के नारे भी लगे। मामला बिगड़ने लगा और
स्वर्णिम संकुल में पुलिस बुलानी पड़ी। कई अभिभावकों को डीटेन भी किया गया।
तथाकथित विकास शिविर का चौंकानेवाला नजारा
2 सितम्बर, 2016 का दिन था। गांधीनगर स्थित महात्मा मंदिर
में प्रि-वाइब्रेंट गुजरात शिविर आयोजित हुआ था। गुजरात से सैकड़ों किसानों तथा किसान
संबंधी संस्थाओं के लोगों को आमंत्रित किया गया। भाग लेने वालों के मुताबिक, पूरे दौर
में जिस हेतु आयोजन था वो चीज़ नहीं दिखी!!! केवल भाषण और भाषण!!! भाषणों में पार्टी और
राज्य व केंद्रीय नेताओं की प्रशंसा के प्रवचन हुए। समिट के दौरान एक विदेशी
मेहमान भाषण देने खड़े हुए और अंग्रेजी में बोलने लगे। बसों में भर भर कर आये लोगों ने
(लाए गए लोगों ने) वहां से हटना चाहा और वे बाहर जाने लगे। लेकिन दरवाजे बंद कर दिये
गए और उन्हें बड़े प्यार से वहां बैठने के लिए आग्रह किया गया!!! यानी कि जबरन भाषण सुनो और वो भी लगभग कैद होकर!!! वहीं, भोजन की व्यवस्था में इतनी आपाधापी मची कि किसानों ने खाने के प्लेट फेंकना
शुरू कर दिया। खाली बर्तन फेंके गए। कुछ लोग तो नाराज होकर रसोई में पहुंच गए और
जो मिला वो उठा कर ले आने लगे!!! यह खबर दूसरे दिन स्थानीय अखबारों में भी छपी थी।
वाइब्रेंट समिट 2015
9 जनवरी, 2015 को प्रधानमंत्री मोदी महात्मा मंदिर,
गांधीनगर में भाषण कर रहे थे और उस वक्त कुछ राज्यों के मुख्यमंत्री और कई सारे
एनआरआई सो रहे थे!!! बताइए, कुछ लोग बताते हैं कि मोदीजी को पूरी दुनिया सुनती है, लेकिन इघर अपने ही सोये हुए थे!!! आनंदीबेन पटेल के भाषण के दौरान केरल के मुख्यमंत्री ने अपनी
नींद पूरी कर ली थी और एमपी तथा आंध्र के मुख्यमंत्री एक दूसरे के साथ बातचीत में काफी व्यस्त थे!!!
इस समिट के दौरान प्रवासी भारतीय दिन का घिनौना रूप
देखने के लिए मिला था। पूरा अहमदाबाद, साबरमती व कांकरिया रोशनी से नहाये हुए थे
और महात्मा गांधी द्वारा स्थापित पालडी का कोचरब आश्रम व साबरमती आश्रम अंधेरे में डूबा हुआ था!!! और इस घिनौना पन की तस्वीरें अखबारों में पेश भी हुई थी।
2015 की इस समिट के दौरान महात्मा मंदिर में महात्मा गांधी
की पूरे कद की एक शिल्पकृति रखी गई थी। लेकिन पूरी नग्न...!!! और वो भी पूरे दो दिन तक....!!! इतनी हिन्दु मानसिकता तो है कि हम दुश्मन
को भी नंगा नहीं रखेंगे... इतनी तो संस्कृति है हम में। किंतु ये तो उस मानसिकता से
भी नीचे का स्तर पकड़ने के बराबर था।
वाइब्रेंट समिट 2017
2017 के गुजरात वाइब्रेंट समिट में खाने की एक डिश की कीमत थी 5,000 रुपये। मीडिया
रिपोर्ट के मुताबिक भारत के जाने-माने फाइव स्टार होटल्स के शेफ अपनी पूरी टीम के
साथ इतनी सस्ती डिश बनाने आये थे। महात्मा मंदिर की छत के ऊपर गाला डिनर का आयोजन
हुआ था। महात्मा गांधी खुद दो बर्तन में खाना खा लिया करते थे, यहां तो उनके नाम के मंदिर की छत
के ऊपर फाइव स्टार डिनर हुआ!!! आर्टिफिशियल गार्डन तैयार किया गया। यूरोप से घास
मंगवाई गई थी। 40 दिन में गार्डन बनाया गया। मीडिया रिपोर्ट की माने तो एक डिश की
कीमत थी 5 हज़ार!!! कह सकते हैं कि लोग नोटबंदी के चलते 2 हज़ार भी निकाल नहीं पाते
थे, इन्होंने एक डिश 5 हज़ार वाली निगल ली!!! लोगों ने तंज कसते हुए कहा था कि एक डिश
खाने की कीमत तुम क्या जानो? तुम तो बस 2,000 के लिए कतार में लगने लायक जीव ही हो!!!
इस समिट में विदेश से आये मेहमानों के लिए शराब की दुकानें खुली छोड़ दी गई थी।
अहमदाबाद की 12 और गांधीनगर की 3, कुल मिलाकर 15 होटलों के लिकर शॉप के वर्क अवर
में 6 घंटों का इज़ाफ़ा कर दिया गया था। इसमें 2 होटल तो ऐसे थे, जहां 24 घंटे तक
सेवाएँ दी गई। शराब के शौकीन विदेशी मेहमानों के लिए गुजरात सरकार ने अपने
अधिकारियों को भी लगाया था।
इसके अलावा इस समिट में गौतम अडानी की कंपनी को लेकर भी स्थानिक अखबारों में कई
रिपोर्ट छपे थे। अखबारों ने छापा था कि - वाइब्रेंट के नाम पर अडानी को 50,000 करोड़ का फायदा पहुंचाने का मंच तैयार? गुजरात के स्थानिक अख़बार में छपी एक खबर के अनुसार गुजरात सरकार ने अडानी
ग्रुप से 34,300 करोड़ का एमओयू फिक्स किया था। कहा तो यह भी गया कि 1995 से तय
पोर्ट नीति में बदलाव करके अडानी के मुंद्रा पोर्ट को फायदा पहुंचाने की भी
तैयारियां थी। मीडिया रिपोर्ट की माने तो इन दोनों से अडानी को पचास हज़ार करोड़ का
फायदा पहुंचने वाला था।
पर्यावरणीय विवादों में घिरा हुआ गुजरात
गुजरात में गिरनार रोप-वे प्रोजेक्ट शुरू होने वाला था। इसकी लागत 110 करोड़ बताई जा रही थी और इसे बिना टेंडर किसी कंपनी को दे दिया गया था। इसे लेकर
स्थानिक अखबारों में रिपोर्ट छप चुके हैं। उपरांत इस योजना के लिए 7.2 हेक्टर
जंगल काटना पड़ेगा। जिससे आरक्षित गिद्ध पक्षियों की वसाहत भी इससे प्रभावित होगी।
एक और रिपोर्ट के मुताबिक, अहमदाबाद-गांधीनगर रास्ते में वीवीआईपी लोगों को आने-जाने में दिक्कत ना हो इसलिए 4,823 पेड़ काट दिये गए। आखिरी 7 सालों में (2009-2016)
गांधीनगर में 2.5 लाख पेड़ काटे गए। पहले ग्रीन सिटी बनाना और फिर स्पेशल लोगों की दिक्कतें कम करने के लिए पेड़ काट दिये गए!!!
गुजरात के हुक्का बार
हुक्का बार पर नकेल कसने के लिए गुजरात सरकार अध्यादेश ले आई थी। जबकि
बहुमत वाली सरकार है यहां, विधानसभा से कानून भी पारित हो सकता था!!! आनन-फानन में अध्यादेश लाया गया जो महीनों तक राष्ट्रपति के पास लंबित था!!! केवल सरकारी आदेश के
नाम पर नकेल कसने के नाकाम प्रयत्न किये जा रहे थे। ऊपर से स्थानिक अख़बार बताते थे
कि हुक्का बार में भाजपा से संबंधित कई व्यवसायी शामिल है। सच या झूठ, इसका पर्दाफाश
किसी राज्य में कहा होता है।
गुस्साए लोगों ने
अधिकारी को टोमेटो केचप लगाकर नोट मुंह में ठूंस दिये
यह घटना फरवरी 2017 की थी। अहमदाबाद में बोडकदेव इलाके की सरकारी कचहरी में
गुस्साए लोगों ने अधिकारी को टोमेटो केचप लगाए नोट मुंह में ठूंस दिये। दरअसल
एक संस्था के कार्यकरों ने भ्रष्टाचार से नाराज होकर विरोध के दौरान गुस्से में आकर
यह कदम उठाया। म्युनिसिपल कचहरी में लोगों ने जमकर नारे लगाए और नाराजगी दिखाई।
आरोप था कि प्रोफेशनल टैक्स की वसूलात में अधिकारी भ्रष्टाचार कर रहे हैं। वसूलात में
सेटिंग किया जा रहा है ऐसे आरोप लगे। नाराज लोगों ने केचप और अचार के साथ नोट
अधिकारी के मुंह में ठूंस दिये। यह वाक़या स्थानिक अख़बार में तस्वीर के साथ छपा था।
बांधकाम सेस वसूलने में और इस्तेमाल करने में गुजरात देश में
12 वे नंबर पर
इसे लेकर कैग ने गुजरात राज्य सरकार की सख्त आलोचना भी की थी। दरअसल, केन्द्रीय
श्रम व रोजगार मंत्रालय ने नये बांधकामों के एवज में वसूल किये जा रहे कामदार
कल्याण सेस की 30 फीसदी राशि बांधकाम कल्याण बोर्ड को जमा कराने के तमाम राज्य
सरकार को आदेश दिये हुए हैं। बताया गया कि गुजरात सरकार यह राशि कामदार कल्याण की
जगह अन्य हेतुओं पर इस्तेमाल कर रही है!!! इसे लेकर कम्पट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल ऑफ
इंडिया (कैग) ने गुजरात सरकार की सख्त आलोचना की थी। वैसे बताया गया कि आज भी
राज्य सरकार इसे लेकर संजीदा नहीं है!!! द बिल्डिंग एंड अदर कंस्ट्रक्शन वर्कर्स वेलफेयर सेस एक्ट-1996 को लागू करने में गुजरात सालों से पिछड़ रहा है। जनवरी 2016 के
डाटा बताते थे कि गुजरात पूरे देश में 12 वे नंबर पर था! महाराष्ट्र, कर्णाटक,
उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, केरल, पंजाब
तथा आंध्रप्रदेश भी गुजरात से आगे थे! जानकार बताते हैं कि सेस वसूलात में पिछड़ने से
सबसे ज्यादा फायदा बिल्डर लॉबी को होता है।
श्रमिकों के लिए वसूले 614 करोड़, खर्च हुए 54 करोड़
इन दिनों बांधकाम सेस वसूलने में और उसका इस्तेमाल करने में गुजरात देश में 12 वे
नंबर पर आता था। द बिल्डिंग एंड अदर कन्ट्रक्शन वर्कस सेस एक्ट के तहत गुजरात सरकार
ने 2015 और 2016 के दौरान 614.73 करोड़ वसूले थे। हालांकि वसूले गये पैसों में से
केवल 54.09 करोड़ ही बांधकाम संबंधित कामदारों के कल्याण के लिए खर्च किये गए। यह
आंकड़ा गुजरात सरकार ने गुजरात विधानसभा में दिया था। राज्य सरकार ने 2015 में 327.08
करोड़ वसूले, जिसमें से 11.45 करोड़ खर्च हुए। जबकि 2016 में 287.65 करोड़ वसूले, जिसमें से 42.64 करोड़ खर्च किये गए।
भाजपा सांसद के ड्राइवर ने 12 साल के बच्चे पर की दबंगई, बच्चे के पिता को पीट दिया
6 फरवरी 2017 के दिन स्थानिक अख़बार संदेश के हवाले से यह खबर आई। मीडिया
रिपोर्ट की माने तो, भाजपा के एक सांसद के ड्राइवर ने 12 साल के एक बच्चे को थप्पड़ जड़ दिए। वाक़या अहमदाबाद शहर के बापूनगर इलाके के योगेश्वर पार्क था। मीडिया
अहवाल की माने तो, यहां 12 साल का प्रीत 4 फरवरी की शाम 6 बजे खेल रहा था। उसी
वक्त सोसायटी में रहने वाले सांसद के ड्राइवर आये और प्रीत को खेलने के लिए मना
किया। प्रीत ने कहा कि हम यहां ना खेले तो कहां खेले? कथित रूप से ड्राइवर साहब गुस्सा हो गए और उन्होंने प्रीत
का हाथ मरोड़ दिया। हाथ में दर्द होने की वजह से बच्चा रोते हुए अपने घर लौटा और बाद
में उसके पिता ड्राइवर के पास शिकायत लेकर पहुंचे। लेकिन ड्राइवर साहब का आपा फिर
से आसमान तक पहुंच गया और प्रीत के पिता को उसने दो थप्पड़ तक जड़ दिए। मीडिया
रिपोर्ट की माने तो यह साहब भाजपा सांसद की कार चलाते थे और इलाके में दबंग आदमी के
तौर पर जाने जाते थे।
जब राज्यसभा सांसद शंकर वेगड को जड़ दिया गया थप्पड़
5 फरवरी 2017 के दिन सुरेन्द्रनगर में सहकारी जीन कंपाउन्ड में एक समुदाय विशेष
का सामूहिक शादी समारोह चल रहा था। इस समारोह में राज्यसभा सांसद और बीजेपी नेता
शंकर वेगड भाषण शुरू ही कर रहे थे। ठीक उसी वक्त एक शख्स स्टेज पर आ धमका और उसने
सांसद को जन्नाटेदार थप्पड़ जड़ दिया। गुस्साए शख्स ने सांसद पर समुदाय विशेष के लिए योगदान नहीं देने का आरोप लगाया और उनसे माइक तक छीन लिया।
राज्य के गृहमंत्री पर जब फेंका गया जूता
2 फरवरी 2017 के दिन गुजरात के गृहमंत्री प्रदीपसिंह जाडेजा पर विधानसभा
संकुल में ही जूता फेंका गया। एक पाटीदार युवा ने बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और
शराबबंदी के नारे लगाते हुए गृहराज्यमंत्री पर जूता फेंका। हालांकि जाडेजा ने
जैसे तैसे अपना बचाव किया। गुस्साए युवा ने दूसरी बार भी जूता फेंका। आनन-फानन में सुरक्षाकर्मियों ने उस युवा को गिरफ्तार कर लिया। बताया गया कि यह युवा पहले पुलिस
कॉन्स्टेबल था। पुलिस की नौकरी छोड़ने के बाद उसने किसी ग्रामीण इलाके के एसडीएम
की ऑफिस में बतौर क्लर्क जॉइन किया था। सरकारी कर्मचारी होने के नाते उसे सचिवालय
में किसी ने रोका नहीं था।
केंद्रीय मंत्री मनसुख मांडविया पर फेंका गया जूता
28 मई 2017 के दिन वलभीपुर में भाजपा तथा नगरपालिका द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम
के दौरान केंद्रीय मंत्री मनसुख मांडविया पर जूता फेंका गया। बताया गया कि पास के
कन्वीनर ने भारत माता की जय के नारे के साथ मंत्री के सामने जूता फेंका था। पुलिस
ने उसे गिरफ्तार कर लिया।
केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी की तरफ चूड़ियां फेंकी गई
12 जून 2017 के दिन अमरेली में मोदी सरकार के तीन साल पूरे होने के उपलक्ष में एक कार्यक्रम आयोजित हुआ था। कार्यक्रम में हिस्सा लेने हेतु तत्कालीन केंद्रीय कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी पहुंची थी। मंच से उनका भाषण जारी था, इसी बीच एक शख्स ने खड़े होकर उनकी तरफ चूड़ियां फेंक दी और किसानों का कर्ज माफ करो के नारे लगाने लगा। मंत्री
ने इसे कांग्रेस की साजिश बताया। पुलिस ने इस शख्स को गिरफ्तार कर लिया।
वडोदरा में भाजपा कॉर्पोरेटर को पेड़ के साथ बांधकर लोगों ने
पीट दिया
जनसेवकों से लोग नाराज ज़रूर रहते हैं, लेकिन पिटाई की नौबत कुछ विशेष वजहों से ही
आती है। कुछ ऐसा ही हुआ वडोदरा में भाजपा कॉर्पोरेटर हसमुख पटेल के साथ। 3 अक्टूबर
2017 के दिन उन पर भीड़ का गुस्सा फूट पड़ा और लोगों ने उन्हें पेड़ के साथ बांधकर पीट
दिया। किसी ने लातों से मारा, किसी ने लकड़ी से। भीड़ ने उन्हें इस कदर मारा कि उनके
कपड़े भी फट गए। दरअसल इस घटना से करीब चार माह पहले शहर के बापोद तालाब किनारे से कॉर्पोरेशन ने 110 से ज्यादा कच्चे मकान और झोंपडियां हटा दी थी। बदले में बेघर
हुए लोगों के लिए पास ही आवासीय योजना के तहत घर दिये गए। दिक्कत यह थी कि इन
आवासीय घरों में मूलभूत सुविधाएँ नहीं थी तथा अन्य कई परेशानियां भी थी। इससे नाराज
होकर लोगों ने विरोध किया और जहां से उनके कच्चे मकान या झोंपडियां हटा दी गई थी
वहीं पर दोबारा छत बनाने लगे। वार्ड नं. 5 के कॉर्पोरेटर हसमुख पटेल 3 अक्टूबर के
दिन वहां पहुंचे।
मीडिया रिपोर्ट तथा लोगों की माने तो कॉर्पोरेटर ने समस्या का समाधान निकालने
के बजाय दोबारा जो छतें बनाई गई थी उसे ही हटाना शुरू करा दिया। इससे मामला बिगड़ गया। लाजमी था कि परेशान लोगों का गुस्सा सातवें आसमान पर जाना ही था। नाराज और
गुस्साए लोगों ने कॉर्पोरेटर के साथ मारपीट शुरू कर दी। कॉर्पोरेटर के साथ तीन से
चार कार्यकर भी थे। भीड़ का गुस्सा देख वे भाग खड़े हुए। भीड़ का गुस्सा इस कदर फूटा
कि उन्होंने कॉर्पोरेटर को नीम के पेड़ के साथ बांध दिया। जानकारी मिलते ही पुलिस
पहुंची और कॉर्पोरेटर को मुक्त कराया गया। अज्ञात या ज्ञात लोगों के खिलाफ कौन सा
मामला दर्ज हुआ था यह ज्ञात नहीं है।
केन्द्र में भी भाजपा सरकार, राज्य में भी भाजपा सरकार, फिर
भी फंड को लेकर ठनी
अहमदाबाद में साबरमती आश्रम के पास पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई की समाधि
स्थित है, जिसे अभयघाट के नाम से जाना जाता है। इस जगह के विकास हेतु राज्य सरकार
पिछले 10 सालों से केंद्र से 1 करोड़ की मांग कर रही थी। अजीब बात थी कि इतने विकसित
राज्य के पास गुजरात के ही मोरारजी देसाई की समाधि का विकास करने के लिए फंड नहीं था!!! जबकि करोड़ों रुपये
अन्य चीजों में अब तक बर्बाद किये जा चुके हैं!!! खैर, पिछले करीब 5 सालों से केंद्र में
भी भाजपा शासित सरकार है। सन 2007 में गुजरात सरकार ने यह कहकर पल्ला झाड़ दिया था
कि यह केंद्र सरकार की जवाबदेही है!!! सन 2007 में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र
मोदी थे और आज वो खुद भारत के प्रधानमंत्री हैं। लेकिन अब तक इस विषय को लेकर कोई
प्रगति नहीं हुई है, सॉरी... कोई विकास नहीं हुआ है!!! विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा तक का निर्माण हो गया, लेकिन
गुजरात के ही पुत्र मोरारजी देसाई मन से निकल गए!!! कह सकते हैं कि आप चाहे जितना बड़ा चेहरा क्यों न हो, जब तक वोट
बटोरने की सुविधा मृत व्यक्ति में नहीं होगी, मरणोपरांत राजनीतिक मोहब्बत मिलना
मुश्किल ही है!!!
रेलवे पार्किंग में 15 प्रतिशत सर्विस चार्ज!!! लोग सर्विस टैक्स समझकर चुकाते हैं चार्ज
मामला है कालूपुर रेलवे स्टेशन का। रेलवे स्टेशन पर सुविधाएँ मुहैया कराना
तो दूर, बल्कि यहां पर पार्किंग के नाम पर लोगों को लूटने की शिकायतें सामने आई थी।
7 फरवरी 2017 के दिन स्थानिक मीडिया में एक ख़बर छपी। कहा गया कि शब्दों का मायाजाल
बनाकर यहां पार्किंग की रसीद दी जाती है और इस मायाजाल के जरिए लोगों को लूटा जा रहा है। स्टेशन के
पार्किंग में चार घंटे के लिए टू-व्हीलर पार्क करने का चार्ज है 17.25 रुपये, जबकि
फोर व्हीलर के लिए 34.50 रुपये वसूले जाते हैं। इतना ही नहीं, 15 प्रतिशत सर्विस चार्ज
भी वसूला जाता है। लोग इसे सर्विस टैक्स समझकर चुका देते हैं!!! बताइए, केंद्र सरकार
रेस्तरां वालों को नोटिफिकेशन जारी कर रही थी और इधर शायद रेलवे को नोटिफिकेशन का इंतज़ार था!!! इसके अलावा छुट्टे ना होने के नाम पर ज्यादातर 20 रुपये और 35 रुपये वसूल कर
लिए जाते हैं। कहा गया कि आप अपना वाहन 10 मिनट के लिए पार्क करो तब भी चार्ज 4
घंटे का ही वसूला जाता है। आप जानकर चौंक जाएंगे कि अहमदाबाद की ज्यादातर
कमर्शियल इमारतों में भी इन दिनों पार्किंग चार्ज 10 रुपये तक ही है। यानी कि अब आप निजी
कंपनियां या जगहों को सरकार से ज्यादा सस्ते कह सकते हैं।
मेट्रो रेल घोटाले का आरोपी आईएएस संजय गुप्ता अस्पताल से
हुआ फरार
गुजरात का मेट्रो रेल घोटाला काफी सुर्खियां बटोरता रहा था। इस घोटाले का मुख्य
अभियुक्त आईएएस संजय गुप्ता के खिलाफ सेशन कोर्ट ने गैरजमानती वारंट इश्यू किया
था। उस वक्त संजय गुप्ता दिल्ली के निजी अस्पताल में भर्ती था। गुजरात पुलिस जब यहां पहुंची तब पता चला कि संजय गुप्ता अस्पताल से फरार हो चुका है!!! सोचिए, इतने बड़े घोटाले का आरोपी अस्पताल से बिना दिक्कत कितनी आसानी से फरार हो जाता है!!! मेट्रो रेल
घोटाले में संजय गुप्ता और अन्य अभियुक्तों के खिलाफ मामला चल रहा है। यह घोटाला 211
करोड़ का बताया गया था। इससे पहले संजय गुप्ता गिरफ्तार भी हो चुका था।
192 कॉर्पोरेटर के दस दिन के खाने का खर्च 182 विधायकों के
तीस दिनों के फूड बिल से भी ज्यादा !
चौंकना या सिर के बाल खड़े हो जाना, सारी कहावतें इस खबर में समन्वित हो जाती हैं।
2015-16 में एएमसी (अहमदाबाद म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन) के 192 कॉर्पोरेटर के 10 दिन
के भोजन का खर्च था पूरे 15 लाख। 2012 से लेकर 2015 तक इन्होंने बजट पर चर्चा की और
इस अवधि के दौरान इनके भोजन खर्च का आंकड़ा बैठता है 54.76 लाख। बताइए, बैंक से
खुद के ही 2,000 रुपये निकालने में जिनके पैर दर्द करने लगे हो, उनका पेट ऐसे शाही
खाने को कैसे झेलेगा? अगर विधायक 30 दिन तक राज्य की चर्चा करे तब भी उनके खाने का बिल एवरेज 8.80
लाख आता है। या तो कॉर्पोरेटर विधायक से ज्यादा फाइव स्टार सहूलियतों के बीच काम
करते होंगे या फिर मामला कुछ और भी होगा। क्योंकि कई लोग इसे खाने के बिल में करप्शन को लेकर भी देखते हैं।
एएमसी का सालाना डाटा देखे तो... (सोर्स - स्थानिक मीडिया रिपोर्ट)
वर्ष भोजन खर्च
2005-06 4,18,181
2006-07 4,49,000
2007-08 5,38,688
2008-09 5,79,743
2009-10 4,63,550
2010-11 5,93,965
2011-12 3,73,400
2012-13 7,50,000
2013-14 13,53,226
2014-15 15,00,000
2015-16 15,00,000
गरीबों को खुद का घर देने के वादे का सच, बनाने थे 2,75,000
आवास और बनाए 4…!!!
तत्कालीन मोदी शासित केंद्र सरकार की योजना के तहत गुजरात में ग्रामीण इलाकों में
2,75,401 घर बनाने की योजना थी, लेकिन फरवरी 2017 तक सिर्फ और सिर्फ 4 घर बन पाए थे!!! इससे भी ज्यादा चौंकाने वाली बात यह थी कि इस योजना के तहत गुजरात सरकार को 365
करोड़ दिये गए थे, जिसमें से 80 करोड़ खर्च हो चुके थे। केंद्र सरकार की योजना के
मुताबिक गुजरात को 2018-19 तक ग्रामीण इलाकों में 2,75,401 आवास तैयार करने थे। इस
योजना के तहत राज्य सरकार को 635.91 करोड़ मिलने थे, जिसमें से 365.27 करोड़ मिल चुके
थे। इसमें से सरकार ने 81.78 करोड़ खर्च किये थे और इतनी राशि खर्च करने के बाद 4 घर
बनाए गए थे!!!
10 साल में बनने थे 34 फ्लाईओवर, 5 साल गुजरे लेकिन बना
सिर्फ 1
अहमदाबाद म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन (एएमसी) ने ट्रैफिक की समस्या सुलझाने के
लिए 2012 में सेंट्रल रोड रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीएसआईआर) के जरिए एक सर्वे
कराया था। सर्वे के बाद सन 2022 तक 34 जंक्शन के ऊपर फ्लाईओवर बनाने का आयोजन
हुआ। पांच साल बीते और 2017 का फरवरी महीना आ गया। लेकिन इन पांच सालों में केवल एक
ही फ्लाईओवर बन पाया था!!! एकमात्र फ्लाईओवर आईआईएम जंक्शन पर बना था। हाटकेश्वर
सर्किल, इनकम टैक्स सर्किल, दिनेश चेम्बर्स चौराहा और अंजलि सर्किल के फ्लाईओवर का
काम ताज़ा ताज़ा शुरू हुआ ही था। जबकि नरोडा रेलवे क्रॉसिंग तथा विराटनगर चौराहों के
लिए टेंडर प्रक्रिया अभी अभी शुरू ही हुई थी!!! यानी कि पांच साल गुजरे, बना एक
फ्लाईओवर!!! चार फ्लाईओवर के बारे में फाइलों में लिखा होगा- अंडर प्रोसेस, जबकि अन्य तीन
में- सूचित लिखा होगा। बाकी जितने बचे उस पर भी ऐसा ही कुछ न कुछ लिखा गया होगा। 34
जंक्शन पर फ्लाईओवर बनाने के लिए 2022 तक का समय निर्धारित किया गया था और पांच
साल गुजरने के बाद एक ही बना!!!
नोटबंदी के बाद सूरत के हिरा उद्योग पर पड़ा था बुरा असर, 500
से ज्यादा कारखाने हो गए बंद
2016 में नोटबंदी के फैसले के बाद गुजरात के सूरत शहर का डायमंड बिजनेस दिक्कतों से घिरा हुआ था। कई छोटे-मोटे हिरा कारखाने ऐसे थे जो दिवाली के बाद अपना
काम शुरू ही नहीं कर पाए। फरवरी 2017 आते आते भी जब इन्हें अपनी उम्मीदें संवरती नहीं दिखी
तो वे दूसरे धंधे की ओर जाने को मजबूर होने लगे। कहा गया कि छोटे हिरा कारखानों में
25 फीसदी कामदार बेरोजगार हो चुके थे। शहर के वराछा, कतारगाम, वेड रोड, कापोद्रा
आदि इलाकों में 2000 के करीब कारखाने थे, जिनमें से तकरीबन 500 कारखाने दिवाली के बाद
काम शुरू ही नहीं कर पाए। सूरत डायमंड एसोसिएशन के प्रमुख दिनेश खावडिया की माने
तो, कई छोटे कारखाने वालों को धंधा बंद करने की नौबत आन पड़ी थी। नोटबंदी के बाद जब
इन्हें 2017 के लिए कुछ उम्मीदें थी वह उम्मीदें भी टूट गई जब कैशलेस का सरकारी प्रचार
होने लगा। क्योंकि छोटे कारखाने वालों के लिए नकदी में व्यापार करना मुश्किल था।
गुजरात विधानसभा में अपशब्दों के साथ हुई हाथापाई,
पक्ष-विपक्ष ने मिलकर फिर एक बार किया बंटाधार
23 फरवरी 2017 के दिन गुजरात विधानसभा में हमारे तथाकथित जनसेवकों ने फिर एक बार
वही दृश्य दोहराए, जिसे अब तो औपचारिक तौर पर लोकशाही का काला टीका लिख दिया जाता
है। इस दिन गुजरात विधानसभा में निम्न स्तर के दृश्य देखने को मिले। किसानों की
खुदकुशी को लेकर मामला इतना बिगड़ गया कि हमारे जनसेवकों ने मिलकर लोकशाही और लिहाज
का ही गला घोंट दिया। अमरेली से कांग्रेस के तत्कालीन सांसद परेश धानाणी ने किसानों की खुदकुशी में इजाफे को लेकर सवाल उठाया। बजाय इसका जवाब देने के, कृषि मंत्री
सापरिया चुनावी रैलियों के मूड में दिखे। उन्होंने जवाब को डस्टबिन में डालते हुए
कांग्रेस काल के 1995 के किस्से को याद किया। आम तौर पर फेसबुकियों में जो मंजर
दिखता है, जहां हररोज अपने कलंक को छिपाने के लिए दूसरों के कलंक को उजागर किया
जाता है, यह फेसबुकियां मंजर विधानसभा में देखने के लिए मिला! फिर क्या था।
कांग्रेस के लोग उत्तेजित हो चले और कृषि मंत्री के हाथ से सरकारी कागज छीनने लगे।
लेकिन सत्ता दल के लोग कांग्रेस से भी ज्यादा गुस्सेवाले निकले! मीडिया रिपोर्ट के
मुताबिक, भाजपा के कांति अमृतिया, प्रफुल्ल पानेसरिया समेत कुछ नेताओं ने महिला
नेताओं की उपस्थिति में ही अपशब्द बोल दिए!!!
फिर दोनों दलों के नेता मरने-मारने पर उतारू हो गए और विधानसभा को युद्ध का
मैदान समझने लगे। एक दूसरे के साथ हाथापाई और गालियां बोलना विधानसभा में ही शुरू हो
गया। भद्दी गालियों के कारण लोकशाही और गुजरात तो शर्मसार हुआ ही। लेकिन लगा कि
अपशब्द बोलने की कोई प्रतियोगिता चल रही है और कांग्रेस वाले भी पीछे रहना नहीं चाहते।
भाजपा के लोगों ने अपशब्द और गालियां बकना शुरू किया तो उधर कांग्रेस के नेता भी
इसी भाषा में जवाब देने लगे! हाथापाई-अपशब्द और एकदूसरे को देख लेने की धमकियां
विधानसभा में गूंजती रही। गांधी के गुजरात के पक्ष-विपक्ष के नेता किसी शर्म लिहाज के
बिना भद्दा प्रदर्शन करते रहे। आगे क्या होगा यह सोचना बहुत आसान है। दोनों को शर्म
नहीं होगी और दोनों एक दूसरे पर इसका आरोप मड़ते रहेंगे। लेकिन इन नेताओं ने जमकर
साबित तो कर ही दिया कि इन्हें नेता इसीलिए तो कहा जाता है, वर्ना राजपुरूष न कहते?
बर्ड सेन्कच्यूरी को पिकनिक स्पॉट बनाने के प्रयासों पर
विवाद
गुजरात के जामनगर शहर के नजदीक खिजड़िया बर्ड सेन्कच्यूरी स्थित है। यह अभ्यारण्य विश्व प्रसिद्ध है। लेकिन विकास के नाम पर कई सारे कंस्ट्रक्शन और रास्तों के निर्माण के चलते किसी दौर में जंगल समान यह बर्ड सेन्कच्यूरी अब रण के समान हो चुका
है। पक्षी प्रेमी लोगों के विरोध के बावजूद यहां विकास के नाम पर यह दौड़ जारी है।
बर्ड सेन्कच्यूरी में रास्ते बनाने के लिए बबूल समेत कई पेड़ काट दिये गए। इतना ही
नहीं, लकड़े के पुल बनाए गए, टेबल और कुर्सियां लगाई गई, वॉच टावर बना। पर्यटन
उद्योग को बढ़ावा देने की जद्दोजहद में बर्ड सेन्कच्यूरी पिकनिक स्पॉट बनकर रह गया।
पक्षी प्रेमियों ने दावा किया कि अब यहां से कई पक्षी बिदा ले रहे हैं और कई सारे
नदारद हैं। चौंकाने वाली चीज तो यह थी कि बर्ड सेन्कच्यूरी के भीतर जितने कथित विकास
कार्य चल रहे थे या पर्यटन उद्योग को बढ़ावा देने की जो योजनाएँ थी, उसके लिए किसी
पक्षी विशेषज्ञ की मदद तक नहीं ली गई थी!!!
गुजरात सरकार के पास आशाकर्मी या आंगनवाड़ी कर्मियों के लिए पैसे नहीं, लेकिन उत्सवों के पीछे खर्च कर डाले थे 119 करोड़ रुपये
गुजरात राज्य सरकार वैसे भी अपने उत्सवों और उत्सवों के पीछे खर्चों के लिए विवादों में रहती आई है। कई अरसे से कहा जाता रहा है कि सरकार विकास के नाम पर
उत्सव करती है, लेकिन विकास कार्यों में जितने पैसे खर्च नहीं होते उतने तो इन उत्सवों
में खर्च कर दिये जाते हैं!!! सन 2009 से 2016 तक रण उत्सव, पतंग उत्सव या नवरात्र
उत्सवों में सरकार ने 119 करोड़ रुपये खर्च किए थे। ये आंकड़ा गुजरात विधानसभा में
सरकार की तरफ से दिया गया था। विपक्षी सदस्यों के सवाल के जवाब में विधानसभा में कहा
गया कि 2010-11 से 2014-15 तक रण उत्सव के लिए 39.04 करोड़, पतंग उत्सव के लिए 20.23 करोड़ तथा नवरात्र उत्सवों के पीछे 32.96 करोड़ खर्च हुए थे। 2015 और 2016 के
दौरान भी इन उत्सवों के पीछे लाखों-करोड़ों खर्च कर दिये गए थे। यह वही दौर था जब कई
अस्थाई शिक्षक, आशाकर्मी या आंगनवाड़ी कर्मी अपने आर्थिक अधिकारों के लिए आंदोलन
करते आए थे या आवाज उठाते आए थे, लेकिन उनकी बात को दरकिनार किया जा रहा था।