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Corona in India : अगर डरने की ज़रूरत नहीं है, तो हल्के में भी लेने की ज़रूरत नहीं है




वैसे तो ये चालाक नेता लोग स्वयं के लिए कोरोना को हल्के में ले नहीं रहे होंगे, लेकिन दूसरी तरफ़ नेताओं और राजनीतिक दलों के लठैत मज़ाक करने को लेकर आमादा हैं, दूसरों पर गरियाने की बेवकूफ़ी कर रहे हैं। अरे भाई, जो भी है बाद में कर लेना। बहुत वक़्त होगा बाद में। लेकिन समझ लीजिए कि कोविड-19 के फेज-2 के बाद जिसने वक़्त को नहीं परखा, वो सारे आज गंभीर नुक़सान भुगत रहे हैं। 

यहाँ हम कोरोना का ज्ञान नहीं बाँट रहे, दवाइयों की नसीहतें भी नहीं दे रहे हैं। यह हमारा फ़ील्ड नहीं है। बस यही बता रहे है कि राजनीति की अपनी अनाकरली को राजनीति से घसीटकर वापस डिस्को (अपने मूल घर में) ले चलो, वर्ना कली मुर्झा जाएगी। हम तो यही कह रहे हैं कि अगर डरने की ज़रूरत नहीं है, तो फिर हल्के में भी लेने की ज़रूरत नहीं है।

कोरोना, उसके लिए कमज़ोर सरकारी इंतज़ाम, बदतर एरपोर्ट थर्मल स्क्रिनींग, पीएम मोदी का आधे घंटे का भाषण या उनका जनता कर्फ़्यू का आह्वान और थाली पीटने का एलान, आम जनता को संभालने की नसीहतें और ख़ुद नेताओं की रातभर की पार्टियांँ... सबमें जो नकारात्मक चीज़ें हैं उसे लेकर बाद में वक़्त निकालिएगा। उन सारी बातों में जो भी नेगेटिव है वो सारी चीज़ें बाद में, फ़िलहाल तो पॉजिटिव रिपोर्ट ना आए उसके लिए सोच लीजिए। अभी जिस चीज़ को समय देना है दे दीजिए, वर्ना बाद में वक़्त कैसा होता है उसे लेकर चीन, ईरान, इटली, ब्रिटेन आदि की ख़बरें पढ़ लीजिए।
सोचिए। कोई तो 'पेशेंट जीरो' होगा न? कोई एक व्यक्ति तो होगा जो सबसे पहले कोरोना से ग्रसित हुआ होगा। फिलहाल की प्रमाणित रपटों को देखे तो केवल कोई एक पेशेंट जीरो था जो संक्रमित हुआ और उसके बाद उस 1 से होता हुआ कोरोना का संक्रमण 20 मार्च 2020 के प्रमाणित आंकड़ों के मुताबिक 2,76,125 लोगों में फैल चुका है। 11,404 लोगों की मौत हो चुकी है।

पेशेंट जीरो की बात करे तो कोरोना वायरस की उत्पत्ति को लेकर चीनी प्रशासन और विशेषज्ञों के बीच मतभेद हैं। ख़ास तौर पर इस मुद्दे पर कि कोरोना वायरस का पेशेंट ज़ीरो कौन है? चीनी प्रशासन ने पहले बताया था कि कोरोना वायरस का पहला मामला 31 दिसंबर 2019 को सामने आया था और पहले मामलों में कई लोग थे जिनमें निमोनिया के बुखार जैसे लक्षण थे। पहले दावे के मुताबिक उनका संबंध हूबे प्रांत के वुहान शहर के माँस-मछली और जानवरों के एक बाज़ार से था। हालांकि, लांसेट मेडिकल जर्नल में चीनी शोधकर्ताओं द्वारा प्रकाशित एक शोध के अनुसार कोविड-19 से संक्रमित होने वाले पहले व्यक्ति का मामला 1 दिसंबर 2019 को दर्ज हुआ, (यानी बहुत पहले) और यह व्यक्ति वुहान के मछली थोक बाज़ार के संपर्क में नहीं आया था।

कोरोना को लेकर भारत में पेशेंट कम है और एक्स्पर्ट ज्यादा है! इसलिए यह गर्मी में ज्यादा फैलेगा या कम फैलेगा, कितने घंटे जिंदा रहेगा, कितने दिन जिंदा रहेगा, कैसे बचा जाए, क्या करे, क्या ना करे, वगैरह के लिए प्लीज प्रमाणित खबरों को पढ़े। हम कोरोना के या वायरस के विशेषज्ञ नहीं है और इसलिए हमें उसके बारे में नहीं पता। इस लेख का मकसद एक ही है कि हम इतना भी सहज ना हो जिससे दूसरे देशों ने जो झेला वो झेलना पड़ जाए और इतना भी ना डरे कि दुनिया के विनाश वाले स्तर का हउआ पैदा हो।

जितना प्राथमिक स्तर पर पता होना चाहिए उसके मुताबिक फेज 1 संक्रमित होने का पहला चरण है। फेज 2 में संक्रमण स्थानिक स्तर पर फैलता है। फिलहाल भारत फेज 2 का सामना कर रहा है। केंद्र और राज्य सरकारें फेज 2 के बाद की मार्गदर्शिकाओं के मुताबिक कवायद कर रही है। फेज 2 के बाद कोई भी प्रदेश फेज 3 में बहुत जल्द पहुंच सकता है। और फेज 3 के बाद फेज 4 में कितनी स्पीड से पहुंचेगा उसके लिए संक्रमित देशों के प्रमाणित रिपोर्ट खुद ही पढ़ ले।
भारत में कोरोना वायरस का पहला पॉजिटिव केस केरल का वो छात्र था, जो चीन की वुहान यूनिवर्सिटी में पढ़ता था। अब भी जो केस सामने आ रहे हैं, वो इटली, चीन या ईरान से लौटे हैं और इन्हीं के कारण बाकी लोगों में संक्रमण फैल रहा है। फिलहाल भारतीय मेडिकल संस्थानों के मुताबिक भारत फेज 2 और फेज 3 के बीच है। फेज 3 वो पल है जब कोरोना चंद घंटों में कई सौं लोगों तक फैल जाता है। फेज 3 की सीधी-सादी पहचान यही है कि आप सुबह पढ़ते है कि 10 लोग कोरोना से संक्रमित है, शाम होते होते यह तादाद कई गुना आगे बढ़ जाती है।

फेज 3 भारत जैसे देशों के लिए अत्यंत घातक सिद्ध होता है। क्योंकि भारत में जमीन के सामने जनसंख्या का गुणाभाग इसे बेहद घातक साबित करता है। चीन और इटली में यही हुआ और फिर इन देशों में यह बीमारी काबू से बाहर चली गई। दुनिया की सरकारें भी मानती है कि फेज 3 में हालात जल्दी बिगड़ते जाते हैं। इस फेज में यह पता लगा पाना बेहद मुश्किल होता है कि कौन संक्रमित है और कौन नहीं। क्योंकि हालात जल्दी खराब हुए होते हैं।

फेज 3 के बाद फेज 4 में संक्रमण महामारी का रूप ले लेता है। चीन में ऐसा हो चुका है। इटली, ईरान, अमेरिका इस स्तर पर पहुंच चुके हैं। यही कारण है कि आपातकाल घोषित कर हालात काबू में करने की कोशिश की जा रही है।

चीन की बात तो सबको पता है। लेकिन एक बात पता नहीं होगी। चीन भी लापरवाही की भेंट चढ़ा और चीन की वजह से दुनिया और मानवता का बहुत बड़ा हिस्सा जोखिमों में घिर गया। दरअसल यहां डॉक्टर ली वेनलियांग ने चीन की सरकार को कोरोना वायरस के बारे में बताया था और कोरोना की विकरालता के खिलाफ आगाह भी किया था। बदले में चीन की सरकार ने इस डॉक्टर के खिलाफ कार्रवाई कर दी थी।

चीन के लिए सबसे बड़ी फतह यही है कि चीन के वुहान शहर में बीते 2 दिनों में कोरोना संक्रमण का एक भी मामला सामने नहीं आया है। यह अहम इसलिए है कि वुहान ही वह जगह है, जहाँ सबसे पहले कोरोना संक्रमण का मामला सामने आया था। दूसरी ओर चीन सरकार ने उस डॉक्टर से माफ़ी माँग ली है, जिसने सबसे पहले कोरोना वायरस के बारे में बताया था और उसके फैलने की चेतावनी दी थी। चीन ने डॉक्टर ली वेनलियांग के ख़िलाफ़ जो अनुशासनात्मक कार्रवाई की थी, उसे वापस ले लिया है।
इटली को देख लीजिए। स्वास्थ्य और चिकित्सा सेवा में बहुत आगे के क्रम पर आता है यह राष्ट्र। लेकिन एक महीने के भीतर यहां करीब 3,000 से भी ज्यादा लोग मारे जा चुके है। 35,000 से भी ज्यादा मामलों की पुष्टि हो चुकी है। यहां लोग ऐसे हालात में मर रहे हैं जब कोई उनका अपना उनके साथ नहीं होता। आम तौर पर जब कोई मरीज़ मरता है तो उनके परिवार वाले उनके साथ होते हैं। वो एक गरिमामयी अंत होता है। लेकिन पिछले महीने से संक्रमण के ख़तरे को देखते हुए परिवार वालों को आने की इजाज़त नहीं है। यहां तक कि वे अस्पताल भी नहीं आ सकते हैं। इटली लड़ रहा है। वहां ऐसे भी अस्पताल है जिसे कोरोना स्पेशल अस्पताल बना दिया गया है, जहां दूसरे कोई भी मामले देखे नहीं जाते। बावजूद इसके वहां स्थिति बड़ी गंभीर है। 20 मार्च 2020, शुक्रवार के एक दिन में ही यहां 627 लोगों की जानें चली गई। अब यहां भी कई शहर विरान हो चुके है।

अमेरिका में तो उप-राष्ट्रपति कार्यालय तक कोरोना से संक्रमित है। वहां भी कई राज्यों में प्रशासन कवायद में जुटा है। न्यूयॉर्क से सटे राज्य न्यू जर्सी के गवर्नर फ़िल मर्फ़ी ने कहा कि वह जल्द ही सोशल डिस्टेंसिंग की अपील अपने राज्य के लोगों से करने वाले हैं। यदि इन अपीलों को लोगों ने लागू कर दिया तो कुल मिला कर 7.50 करोड़ लोग बिल्कुल अलग-थलग पड़ जाएंगे और देश से कट जाएंगे। यह अमेरिका की कुल आबादी का लगभग 25 प्रतिशत है।

ब्रिटेन जैसा देश भी कोरोना से लड़ रहा है। यहां भी वही हाल है जो अन्य देशों में है। घर पर बैठे काम करो, बाहर मत निकलो से लेकर हर स्तर पर यहां कार्रवाई की जा रही है। ब्रिटेन भी ग़ैरज़रूरी सामाजिक संपर्क रोकने की दिशा में कदम उठा रहा है।

उधर कोलंबिया ने कहा है कि पूरे देश का ही क्वरेन्टीन कर दिया जाएगा। यानी देश के हर आदमी को अलग-थलग कर दिया जाएगा और उन्हें क्वरेन्टीन केंद्रों में भेजा जाएगा। कोलंबिया लातिन अमेरिकी देश है और अमेरिका के पास ही है, जहाँ संक्रमण बड़े पैमाने पर फैलने की आशंका है।

बात ईरान की कर लेते है। ईरान कोरोना वायरस की सबसे भयानक मुश्किल से जूझ रहे देशों में से एक है। आशंका यह भी है कि आने वाले वक़्त में यहां हालात और ख़राब हो सकते हैं। यहां अस्पतालों में काम कर रहे डॉक्टरों ने अपने सह्योगी खोए, अपने परिजनों को खोया, अपने दोस्त खो दिए। कोरोना ने ईरान के समूचे हेल्थ सिस्टम को तबाह कर दिया है। बीबीसी रिपोर्ट के मुताबिक यहां अस्पताल स्टाफ़ का मनोबल गिर चुका है। क्योंकि उन पर भारी दबाव है और उधर वे लोग अपनों को ही खो रहे है। बीबीसी के क्वयान हुसैनी के मुताबिक यहां किसीको सचमुच नहीं पता कि कितनी मौतें हुई है, बस इतना पता है कि लापरवाही के चलते कोरोना ने ईरान की सिस्टम को पंगू कर दिया है। सरकारी लापरवाही और सरकार के स्तर पर झूठ ने ईरान के लोगों को मुश्किलों में डाल दिया है यह भी इस रिपोर्ट का आकलन है। बीबीसी के इस रिपोर्ट का सीधा आकलन यही है कि यहां सरकार को राजनीतिक मुद्दों को लेकर यह लगा कि कोरोना ज्यादा नुकसानदेह नहीं होगा। चुनावी और वोटबेंक की राजनीति ने ईरान को नुकसान किया यह आकलन स्पष्ट लिखते है वो।
ईरान की राजनीति जो भी हो लेकिन बीबीसी रिपोर्ट के मुताबिक महज़ 16 दिनों में ही कोविड-19 ईरान के सभी 31 प्रांतों में फैल गया। दूसरी ओर 16 देशों का दावा है कि उनके यहां यह बीमारी ईरान से फैली है। ये देश इराक़, अफ़ग़ानिस्तान, बहरीन, कुवैत, ओमान, लेबनान, युनाइटेड अरब अमीरात, कनाडा, पाकिस्तान, जॉर्जिया, एस्टोनिया, न्यूज़ीलैंड, बेलारूस, अज़रबैजान, क़तर और आर्मेनिया हैं। यानी ईरान में लापरवाही के चलते कोरोना महज आधे महीने में उस देश के लिए महामारी बन गया और ऊपर से 16 देशों को संक्रमित भी कर गया। यहां सरकारी स्तर पर लोगों को कहा जा रहा था कि धबराइए मत, कुछ नहीं होगा। ईरान के दुश्मनों पर इसका ठिकरा फोड़ा जा रहा था और कहा जा रहा था कि यह एक प्रोपेगेंडा है। बायोलोजिकल अटैक का बहाना कर लापरवाही को ज्यादा बड़ा कर दिया गया। नतीजा यह हुआ कि चंद दिनों में यहां ग्यारहसौ से भी ज्यादा लोग कोरोना वायरस के चलते जान से हाथ धो बैठे।

ईरान के कौम शहर में उसका पेशेंट जीरो था, जो कथित रूप से चीन से संक्रमित होकर आया था। ईरान फिर भी नहीं चेता। उसने तो अपने तमाम धार्मिक जगहों और धार्मिक कार्यक्रमों को ज्यौं का त्यौं रखे। उनके सुप्रीम लीडर मौलवी मुहम्मद सईदी ने तो यहां तक कह दिया कि धार्मिक जगहों पर आने से ऐसी बीमारियां ठीक हो जाती है!!! लोग मर रहे थे। आंकड़ा सौ के पार जा चुका था। संभलने का मौका था, लेकिन ईरान के डिप्टी हेल्थ मिनिस्टर इराज़ हरिर्ची ने भी कह दिया कि अगर मरने वालों की तादाद 25 भी हुई तो वे इस्तीफ़ा दे देंगे। फिर क्या हुआ? उसी दिन बाद में हरिर्ची को कोरोना वायरस पर प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान काफ़ी पसीना बहाते हुए और खांसते हुए देखा गया। बाद में उन्होंने एलान किया कि उनकी टेस्ट रिपोर्ट पॉज़िटिव है!!! इस तरह से वह ईरान के उन कई सारे हाई-प्रोफ़ाइल राजनेताओं में सबसे पहले थे जो कोरोना (कोविड 19) की चपेट में आ चुके थे।

लापरवाही के बाद हालात अब यह है कि इन्हें अपने फुटबोल स्टैडियम को अस्पताल में तब्दील करना पड़ रहा है। अब जाकर वहां तमाम धार्मिक कार्यक्रम बंद है और धार्मिक जगहें खाली करवा दी गई है। सो, ऐसे-वैसे और जैसे-तैसे इलाज की भेंट अपनी जिंदगी को ना झोंके। कोरोना एक बीमारी है और इसका इलाज विज्ञान और मेडिकल के पास है यह समझ ले।

सीधी सी बात है। डरने की ज़रूरत नहीं है, लेकिन हल्के में भी लेने की ज़रूरत नहीं है। जिसे हम आधुनिक राष्ट्र कहते हैं, जिनकी तकनीक, चिकित्सा व्यवस्था आदि की तारीफ़ करते है... उन तमाम देशों में आज स्कूल, यूनिवर्सिटीज़ बंद हैं, सैमिनार रोक दिए गए हैं, तमाम सरकारी और निजी कार्यक्रम रद्द कर दिए गए हैं। कई देशों में लोगों को ट्रैवेल करने से रोका जा रहा है, घरों में बंद किया जा रहा है। चीन, अमेरिका, इटली, स्पेन, फ्रांस, ब्रिटेन समेत 20 देशों में लॉकडाउन है। बड़े बड़े शहर बंद पड़े हैं। सब कुछ विरान है। जिन जगहों पर रोज़ाना भयंकर भीड़ हुआ करती थी वो अब भुतहा लगने लगी हैं। लोगों के इकट्ठा होने पर पाबंदी है।
हमारी दुनिया के पास फिलहाल तो इसके रोकथाम के लिए कोई टीका (रसी) नहीं है। मेडिकल रिपोर्ट कहते हैं कि टीका हम खोज भी लेंगे तब भी उसे आम आदमी तक पहुंचाने में लंबा वक्त लग सकता है। और इतना वक्त कोरोना दे नहीं रहा। क्योंकि कोरोना जोखिम वाली श्रेणी में भले ही ना हो, लेकिन उसके संक्रमण का तरीका बेहद ही तेज-तर्रार वाला है। भले ही कोरोना स्वाइन फ्लू से कम डेथ रेट रखता हो, लेकिन यह खुद को फैलाने में बेहद ही तेज है।

दुनिया के कई देशों के विशेषज्ञ यह ज़रूर कहते हैं कि सब कुछ बंद करने की नीति बड़े तबके के लिए लंबे समय तक संभव नहीं है, साथ ही सामाजिक और आर्थिक नुक़सान तो विध्वंसकारी भी है। अब उनके लिए सबसे बड़ी दिक्कत एग्जिट स्ट्रेटेजी को लेकर है। एडिनब्रा विश्वविद्यालय में संक्रामक रोग महामारी विज्ञान के प्रोफ़ेसर मार्क वूलहाउस कहते हैं, "हमारी सबसे बड़ी समस्या इससे बाहर निकलने की नीति को लेकर है कि हम इससे कैसे पार पाएंगे।" वो आगे कहते हैं, "एग्ज़िट स्ट्रेटेजी सिर्फ़ ब्रिटेन के पास ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के किसी देश के पास नहीं है।"

कोरोना इस समय केवल वैज्ञानिक और शारीरिक चुनौती ही नहीं है। बल्कि यह एक सामाजिक चुनौती भी है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो जनता कर्फ़्यू की अपील की है इसे लेकर राजनीतिक विरोधियों के कुछ तर्क जायज भी मान लेते है। मान लेते है कि उन्हें अपने भाषण में भाषणबाजी के बजाय सरकारी तैयारियों से लेकर देश को अवगत कराना चाहिए था। घर के आगे शोर मचाने की जगह इस महामारी से जूझ रहे लोगों की मदद के लिए असली कदम वाला तर्क भी सही है। उसे भी मान लेते है। मान लेते है कि जो भाषण नगरपालिकाओं या पंचायत स्तर पर होने चाहिए थे वैसा पीएमओ स्तर से हुआ। दूसरे राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने जो आपातकालीन घोषणाएं की, राहत की घोषणाएं की वैसी चीजें उस भाषण में होनी चाहिए थी। मान लेते है उस चीज़ को। सब चीजें मान लेते है थोड़ी देर। मान भी लेते है कि भारत में सरकारी स्तर पर थोड़ी-बहुत ढिलाई रही है कोरोना को लेकर। फिलहाल डब्ल्यूएचओ के मुताबिक भारत में कोरोना वायरस से संक्रमित मरीज़ 1.7 लोगों को संक्रमित करने की क्षमता रखता है। फिलहाल तक यह अच्छा प्रदर्शन है भारत के लिहाज से। इसे उस 2.2 के वैश्विक दर तक नहीं पहुंचाना है तो अस्थायी तरीका सामाजिक संपर्कों की कमी ही है। 

जो लोग कहते हैं कि पीएमओ स्तर से जो भाषण हुआ वो पंचायती स्तर पर होना चाहिए था, उनसे सवाल है कि अरे भाई, कौन सुनता है पंचायती बिनती को? ओटो सरीखे वाहनों में बेचारे कर्मचारी दिनभर चिल्लाते हैं लेकिन कौन सुनता या मानता है? इस ज़रूरी कदम का एलान पीएमओ स्तर से ही हो जाए तो उसमें बुरा ही क्या है? खास करके उस पीएम के जरिए जो भारी बहुमत के साथ जीता हो। आगे जो संभावित खतरा है उसे देखते हुए तो अच्छा ही है यह। वैसे जनता कर्फ़्यू के दिन एक बात ज़रूर होगी। नोट कर लीजिएगा उस बात को। बात यह कि उस दिन कई महान नागरिक अपनी फोटोग्राफी व वीडियोग्राफी की कला को बिखेरने सड़क पर आएंगे! और इस तरह से ऐसे महानुभाव जनता कर्फ़्यू को तोड़ेंगे भी! फिर वापस चले जाएंगे! ऐसे महान नागरिक कोरोना से नहीं बल्कि किसी दूसरे राजनीतिक वायरस से संक्रमित होने की संभावनाएं ज्यादा है! लेकिन यह होगा ज़रूर। सरकार से बिनती है कि इस कैप्चर कला को सम्मानित करते के लिए ऐसे महान नागरिकों को तत्काल इटली या ईरान भेजकर पुरस्कृत करे, ताकि वहां के लोगों को इनकी इस कला का लाभ प्राप्त हो सके!

उधर पीएम ने अपने भाषण में पैनिक में आकर सामान न ख़रीदने का ज़िक्र किया, लेकिन लोग उनके उसी फ़रमान की नाफ़रमानी करने लगे। बाज़ारों में ज़रूरी सामान ख़रीदने वालों की लाइन लग गई। देश के अलग-अलग राज्यों में कई जगह डिपार्टमेंटल स्टोर पर देर रात तक कतारें देखने को मिलीं। एक दिन के जनता कर्फ़्यू को लेकर भी बहुत कुछ कहा जाने लगा, लिखा जाने लगा। समर्थक इतने घंटे तक कोरोना जिंदा रह सकता है या उतने घंटों तक जिंदा रह सकता है वाला कोपी-पेस्ट करने लगे। विरोधी कुछ और कहने-लिखने लगे। इतने घंटे या उतने घंटे की बात छोड़ ही दीजिए। हो सकता है कि यह जनता कर्फ़्यू महज एक संयोग ना हो, बल्कि एक संभावित प्रयोग भी हो। संभावित लिखा है यह नोट कीजिए।
हो सकता है कि स्थिति बिगड़ती नजर आए तो उस हिसाब से एक दिन का यह जनता कर्फ़्यू सरकार को समझा दे कि लोग कितना साथ दे रहे है, किस तरह से दे रहे है और आगे क्या करना है। एक दिन के जनता कर्फ़्यू को किसी बड़ी तैयारी के रूप में भी सोच लीजिएगा। अगर भारत को भी चीन या इटली की तरह लॉकडाउन की ज़रूरत पड़ी तो एक दिन का यह जनता कर्फ़्यू हमें समझा देगा कि हम कितना तैयार है।

फिलहाल तो दुनिया के पास कोरोना का कोई इलाज नहीं है और दुनियाभर में सारे देश इसका पहला अस्थायी इलाज सामाजिक संपर्कों को कम करना ही मानते है। जिसे सोशल डिस्टेंसिंग भी कहते है। भारत के पास भी इसका पहला और अस्थायी इलाज है सामाजिक संपर्कों को कम करना। विशेषज्ञ कहते हैं कि कोरोना का फेज 3 भारत जैसे देशों के लिए अति घातक सिद्ध हो सकता है, यदि उसके संक्रमण को ज्यादा से ज्यादा फैलने से रोका ना जाए। पीएम मोदी का जनता कर्फ़्यू इसी तरफ बढ़ते कदम है। और यह आवकार्य ना हो तब भी फिलहाल तो ज़रूरी ही है। आपदा प्रबंधन में, विशेषत: कोरोना का पहला अस्थायी इलाज ही यही है उस स्थिति में, पीएम मोदी का यह तरीका शायद कारगर तरीका ही है। और ऐसा उन विशेषज्ञों का मानना है जो व्हाट्सएप विश्वविद्यालय में नहीं पढ़े है। 

विशेष टिप्पणी यह कि हम यह मानते और स्वीकार करते हैं कि भारत सरकार ने कोरोना को लेकर खुद को ही जागरूक करने में अक्षम्य देरी कर दी है। यह देरी नुकसानदेह है। स्वास्थ्य के लिहाज से भी, सामाजिक रूप से भी और अर्थतंत्र के संभावित जोखिमों को लेकर भी। दक्षिण कोरिया से जुड़ी खबरों पर फिलहाल तो भरोसा करना मुश्किल है, क्योंकि इसकी अपनी वजहें हैं। लेकिन हमने विशेषज्ञों के हवाले से लिखा कि सोशल डिस्टेंसिंग ही प्रथम अस्थायी उपाय है। इसके साथ-साथ हमें यह भी याद रखना होगा कि डब्ल्यूएचओ ने महीने भर पहले भारत सरकार को आगाह किया, मार्गदर्शिका भेजी, उपाय सुझाएँ, वेंटिलेटर से लेकर दूसरी ज़रूरी चीजों के लिए कहा, लेकिन वो भारत सरकार जो फिलहाल लोगों को जागरूक कर रही है, वही सोती रही!!! इंतज़ाम को लेकर कॉरपोरेट लॉबी वाला कल्चर फिर एक बार चला वो भी एक विषय है। हम धड़ल्ले से लिख सकते हैं कि, "यदि भारत के वो नागरिक समाज के अपराधी है तो फिर भारत सरकार एक प्रकार के संगठित अपराध की आका है।" यह संगठित अपराध क्या उसे लेकर आगे लिखेंगे। फिलहाल इसका ठीक समय नहीं है। लेकिन अब जो हालात है, दूसरा विकल्प बचा भी नहीं है। क्योंकि हम कितना भी फेंक ले, हम (हमारी व्यवस्था) उतने अव्वल नहीं है कि तत्काल प्रभाव को प्रभावी ढंग से रोक सकें। 

अरे भाई, जिन देशों की आधुनिकता की हम दुहाई देते रहते हैं उनके मेडिकल से संबंधित सारे रेंक देख लीजिए। वो सारे दुनिया के पहले 15 देशों में हैं, जबकि हमारे देश का रेंक पहले 100 में भी नहीं है। सोचिए, पहले 15 वालों का यह हाल है, तब तो हम पहले 100 वाले भी नहीं है। लेकिन हमारे पास एक सबक है। वो सबक जो पहले 15 वाले भुगत चुके हैं। अब जाकर दुनिया इस महामारी के ख़िलाफ़ बेजोड़ वैश्विक प्रतिक्रिया दे रही हैं। क्योंकि फेज 3 में प्रवेश करने के बाद सबको पता चल चुका है कि अपने अपने देशों में जो भी नेगेटिव है वो सारी चीज़ें बाद में, फ़िलहाल तो पॉजिटिव रिपोर्ट ना आए उसके लिए ही सोचना पड़ेगा। भारत जैसे देश के लिए ज्यादा चौकन्ना होने की ज़रूरत है। डरना मना है, लेकिन सोते रहने की भी मनाही है। दूसरे देशों ने अपनी ग़लतियों से जो भुगता वो सब भारत के सामने है। दूसरों की ग़लतियों से सीखने की मनाही नहीं है कोरोना के ख़िलाफ़ लड़ाई में।
(इनसाइड इंडिया, एम वाला)