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Bhopal Gas Tragedy : भोपाल गैस त्रासदी – इंसाफ के साथ किया गया क्रूर मजाक?


भोपाल शहर का काली मैदान... उस इलाके में एक फैक्ट्री चल रही थी, जिसका नाम था यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड। यह कंपनी मूल रूप से अमेरिका की थी। यह वही कंपनी थी जो प्रचलित एवरडे बैटरियां बनाती थी। एवरडे बैटरियों में अपनी सफलताओं के झंडे गाड़ने के बाद इस कंपनी ने भोपाल के काली मैदान इलाके में सेविन नाम की किटनाशक दवाइयां बनाने के लिए एक फैक्ट्री शुरू की। इस फैक्ट्री में छोटी-मोटी दुर्घटनाओं का सिलसिला पहले से ही चल रहा था। 

2 दिसंबर 1984 की वो रात थी और 3 दिसंबर 1984 की वो चीखती सुबह थी। भोपाल शहर कातिलाना ठंड की चपेट में ठिठुर गया था। लोग गहरी नींद में थे। और अचानक ही, चीखें और शोरगुल से लोग जग गए। झोपड़पट्टियों में भगदड़ मच गई। सांस लेने में दिक्कत होने लगी। लोगों को उल्टियां होने लगी। पास बसी यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री से मिक के नाम से जाना जाने वाला मिथाइल आइसो साइनाइड नाम का जहरीला गैस शहर में फैलने लगा था। उस रात हजारों लोग मारे गए। शहर के लोगों की चीखें आसमान में गूंजने लगी थी। लेकिन उन्हें बचाने वाला कोई नहीं था।
भोपाल गैस त्रासदी दुनिया के औद्योगिक इतिहास की सबसे बड़ी त्रासदी मानी जाती है। तकरीबन 25,000 लोगों की मौतें इस दौरान हुई। इसके अलावा दूसरे लाखों लोग हमेशा के लिए अपाहिज और शारीरिक रूप से विकृत बन गए। कइयों की आंखें फट गई। कइयों के हाथ या पैरों ने काम करना बंद कर दिया। कई लोग कैंसर जैसी बीमारी के शिकार हो गए। तकरीबन 3 दशक पहले भोपाल शहर में मौत का जो खेल खेला गयाउससे सना हुआ आंसूओं का इतिहास आज भी जिंदा सा नजर आता है।

इस त्रासदी के तकरीबन 25 साल बाद भोपाल की कोर्ट ने फैसला सुनाया। लेकिन कैसा फैसला? ऐसा फैसला, जिसमें बार माह बाद बाबाजी बोलते हैं कि जा बेटा, सूखा पड़ेगा। कोर्ट का ये फैसला इंसाफ के साथ क्रूर मजाक के तौर पर देखा गया। भारत में एक इंसान के कत्ल की सजा आजीवन कारावास या फांसी है। यहां 25,000 लोगों का कत्ल हुआ और उसके मुख्य संदिग्ध वॉरेन एंडरसन को कोई भी सजा नहीं हुई। 8 लोगों को सजा सुनाई गई, लेकिन उन्हें जो सजा दी गई थी वो किसी डकैत को मिल रही सजा के बराबर ही थी।
भारत अमेरिका स्थित मल्टिनेशनल कंपनियों की जाल में किस कदर फंस चुका है और अब ब्रिटेन के बाद अप्रत्यक्ष रूप से अमेरिका के तले किस कदर प्रभावित है, उसका सबसे बड़ा नमूना भोपाल गैस त्रासदी है। यूनियन कार्बाइड मूलतअमेरिकी कंपनी है, जो उस दौर में किटनाशक दवाइयां बनाती थी। उस दौर में सेविन नाम की किटनाशक दवाइ किसानों में जानामाना नाम था। इस दवाई को बनाने के लिए जो जहरीला केमिकल इस्तेमाल होता था, उसे अमेरिका से कंपनी में लाया जाता था। इसे वहां पर 3 अलग अलग टैंक में भर कर रखा जाता था। उन टैंक का आधा हिस्सा जमीन के अंदर गाड़ दिया जाता था। टैंक को पूरा भरा नहीं जाता था। अगर उसमें पानी चला जाए तब आइसो साइनाड नामका जहरीला रसायण बनने का जोखिम रहता था। ये जहर लोगों को जान से मारने की क्षमता रखता है। जिसे मिक के नाम से जाना जाता था।

भोपाल में 1984 के दौरान जब यह त्रासदी हुई, उसके कुछ महीनों पहले ही स्थानीय अख़बार के पहले पन्ने पर एक खबर छपी थी। रिपोर्ट का शीर्षक था - Bhopal on the brink of disaster” राजकुमार केसवानी नाम के एक पत्रकार ने फैक्ट्री के कर्मचारियों से काफी मात्रा में अलग अलग जानकारियां हासिल की। उन्होंने लिखा था कि जो जानकारियां मिल रही थी उसके विश्लेषण के बाद उन्हें किसी बड़ी दुर्घटना की आशंका थी। उन्होंने यूनियन कार्बाइड के भोपाल प्लांट में सुरक्षा व्यवस्था की कमजोरी, मशीनी व्यवस्थाओं में गड़बड़ी, कंपनी कानूनों का और सुरक्षा मामलों का उल्लंघन व भ्रष्टाचार जैसे कई पहलूओं को लोगों के सामने रखने के जबरदस्त प्रयास किए। लेकिन विराट कंपनी के सामने एक छोटे पत्रकार का विरोध इतना प्रकाशित नहीं हो पाया। स्थानीय सरकारी दबाव के चलते उनके तथ्यात्मक अहवालों पर पर्दा डाल दिया गया।
गौरतलब है कि इस फैक्ट्री के अंदर छोटी दुर्घटनाओं की एक लंबी सूची थी, जिसे संज्ञान में लिया जाता तो कोई बड़ी दुर्घटना नहीं होती। कई सारे ताने बाने बुन गए थे... कई सारी मानवीय गलतियां हो रही थी... कई वजहें प्राकृतिक भी थी... कई सारी वजहें (जो राजकुमार केसवानी के अहवालों के अनुसार थी) उसकी चर्चा लंबी हो सकती है... और ऐसी कई सारी वजहें एक दूसरे से जुड़ी और भोपाल शहर को भयानक त्रासदी के बिल्कुल नजदीक लाकर खड़ा कर दिया।

इस त्रासदी की करुणता यह थी कि 3 दिसंबर1984 की उस सुबह के बाद भी भोपाल शहर से मौत का पंजा हटा नहीं। इस काली रात के सालों बाद भी ऐसी करुण घटनाएँ होती रही... ऐसा लगा कि उस काली रात के आंसू आज भी आंखों से छलक रहे हैं और मौत के झोंके आज भी बदस्तूर जारी हैं। इस भयानक गैस त्रासदी के सालों बाद भी उस प्लांट के आसपास की जमीनपानी और हवा शुद्ध करने के प्रयत्नों में गंभीर सरकारी कमियां पायी गई। 25 सालों बाद भी वहां जन्म लेने वाले बच्चों ने हिरोशिमा और नागासिकी घटना की यादें ताज़ा कर दी थी। स्वास्थ्य के अहवाल बताते हैं कि भोपाल शहर की एक पूरी पीढ़ी आज भी उस गैस त्रासदी से पीड़ित है।
दुर्घटना हुई तब तत्कालीन पुलिस अधिकारी स्वराज पूरी ने बयान दिया था कि, यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री से जहरीला गैस लीक हो सकता है तथा उससे हजारों लोग मारे जा सकते हैं इस बात की खबर फैक्ट्री के अमेरिका स्थित अधिकारियों को थी। भोपाल गैस त्रासदी के दौरान लोगों को मदद करने वाले पुलिस मुखिया स्वराज पूरी राष्ट्रपति चंद्रक प्राप्त पुलिस अधिकारी थे। उन्होंने कहा था, भोपाल में ऐसी दुर्घटना हो सकती है इस बात का एंडरसन को पता नहीं था ऐसा कहना सफेद झूठ है। स्वराज पुरी ने ही 7 दिसंबर1984 के दिन एंडरसन को गिरफ्तार किया था। लेकिन एंडरसन को 25,000 रुपये के मुचलके पर छोड़ दिया गया था। सवाल उठा था कि फैक्ट्री का मैनेजमेंट तथा सरकार दोनों चुप क्यों थेगंभीर आरोप भी लगे कि तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुनसिंह के खास हवाई जहाज में एक मंत्री के साथ एंडरसन ने देश छोड़ा था। यह मामला सीबीआई को दिया गयाउसके बाद सीबीआई ने भी एंडरसन को भारत वापस लाने पर ज्यादा गंभीरता नहीं दिखाई। उस वक्त राज्य में तथा केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी। लेकिन बाद में एनडीए भी सत्ता पर आई तथा मध्यप्रदेश में भी भाजपा काबिज हुई। लेकिन उस दौर में वो भी एंडरसन को भारत वापस लाने पर वास्तविक रूप से ज्यादा उत्साही नहीं दिखे। स्वाभाविक सवाल उठता रहा कि ऐसा क्यों? इसका संतुष्ट उत्तर ना तो कांग्रेस के पास है और ना ही भाजपा के पास।

भोपाल गैस त्रासदी के दौरान आरोप तो यह भी लगे थे कि अमेरिका ने एमआईसी गैस का मनुष्यों पर क्या असर होता है उसका प्रयोग किया है। हजारों लोगों का मारे जानालाखों लोगों का जीवनभर विकृत हो जाना तथा आनेवाली पीढ़ी का अपाहिज होकर जन्म लेना... इस दुर्धटना को दुनिया की सबसे बड़ी ओद्योगिक त्रासदी का तमगा मिलना... सब कुछ होने के बाद भी कंपनी का मैनेजमेंट, राज्य सरकार तथा केन्द्र सरकार ही नहींबल्कि आने वाली सरकारें भी अपराध की तह तक जाने में या अपराधियों को गिरफ्तार करने या सख्त सजा दिलाने पर ज्यादा उत्साहित नहीं दिखी। भोपाल के लोगों का गुस्सा जायज था और उन्होंने कहा कि भारत में किसे गिरफ्तार करना हैकिसे छोड़ देना है, सीबीआई को क्या करना हैकिसे सजा देनी हैकितनी सजा देनी हैमुख्यमंत्रियों को क्या करना हैविदेशमंत्रालय को कौन से आदेश देने हैंपाकिस्तान भारत में घुसकर हमला करता है तब भी पाकिस्तान की सीमा में भारत को नहीं घुसना है... ये सब अमेरिका ही तय करता है। अमेरिका की कंपनियां ठंडे के नाम पर लोगों को जहर पिलाती है और फिर भी उन कंपनियों को कोई कुछ नहीं कहता। बड़ा गंभीर आरोप है यह,  किंतु उन्होंने जो भुगता और न्याय के नाम पर उन्हें जो मिलाउसके बाद ऐसी प्रतिक्रियाएँ स्वाभाविक भी है। क्योंकि भारत ने अमेरिका के साथ परमाणु करार किये हैंपरमाणु उर्जा उत्पन्न करने के लिए जटिल मशीनरी व उपकरण अमेरिका से आने वाले हैंलेकिन भविष्य में कोई दुर्घटना होती है और जानहानि होती है तो उसकी जिम्मेदारी लेने के लिए अमेरिका आज भी तैयार नहीं है। अमेरिका तैयार हो या ना होलेकिन भारतीय व्यवस्था भी इस पर गंभीर नहीं है।
वक्त गुजरता गया... यूनियन कार्बाइड कंपनी की मालिकी बदल गई... लेकिन कानूनी पेंच फंसे रहे। काफी जोरो से मुआवजे के एलान किए गए और सालों तक लोग मुआवजे के लिए भी लड़ते रहे। कई सारे विवाद हुएअपराधी को भगाने केभ्रष्टाचार केसरकारी कार्यशैली के, लेकिन नतीजा कुछ भी नहीं निकला। भोपाल के लोगों ने यहां तक कहा कि उन्हें मुआवजा नहीं बल्कि इंसाफ चाहिए था। भोपाल शहर की नयी पीढ़ी के लिए सरकार के बाद कोर्ट एकमात्र भरोसा था। लेकिन फैसले के बाद उनके दिलों से यही आवाज निकली थी कि भोपाल गैस कांड हो या उपहार सिनेमा कांडयह अदालत है और वो निरंतर याद दिलाती रहेगी कि उनका काम न्याय देना नहीं किंतु फैसला देना होता है। कहा गया कि उस कंपनी के प्लांट में जो कमजोरियां थीउससे कई गुना ज्यादा कमजोरियां तो हमारे देश की सिस्टम में पाई गई। एक पूरी पीढ़ी बदल चुकी हैकिंतु भारत का लड़खड़ाता कानून अब तक नहीं बदलाकानून को अपने दम पर तराशने वाला राजनीतिक सिस्टम भी अब तक नहीं बदला।

(इनक्रेडिबल इंडिया, 20 जून 2010एम वाला)