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Oxygen Crisis : ऑक्सीजन की कमी से देश में कोई नहीं मरा, सत्ताधारियों ने भारत के नागरिकों के साथ खेला कर दिया


कितनी भोली है, कितनी प्यारी है, कितनी नादान है! केंद्र सरकार की बात कर रहे हैं भाई! कभी किसी भी रिपोर्ट को नहीं मानती, कभी ऐसी वैसी रिपोर्ट को मान लेती है!!! ये केंद्र सरकार भी कमाल है! अब तक राज्यों की कोई भी बात नहीं मानी। हर बात पर राज्यों को झूठा तक कह दिया। पता नहीं, ऑक्सीजन की कमी से कोई नहीं मरा वाली बात कैसे मान ली केंद्र ने? इस बात को भ्रामक नहीं कहा केंद्र ने! केंद्र सरकार अब केंद्र सरकार नहीं है, वह केवल पब्लिशर है! जो आँकड़े देते हैं राज्य, उसको लिखकर नीचे टोटल लगाकर देश का कुल आँकड़ा प्रकाशित करना ही केंद्र का काम है।
 
सत्ताधारियों ने उन तमाम मीडिया रिपोर्टस को, सोशल मीडिया के उन तमाम संदेशों को, अस्पतालों की उन पुकारों को, अदालतों की उन माथापच्ची को, उन तमाम मौतों को, महज़ भ्रम साबित कर दिया है। एक दूसरे के साथ खेला करते करते सत्ताधारियों ने समूचे भारत के नागरिकों के साथ ही खेला कर दिया! खेला होबे खेला होबे करने वाली प्रजा को पता ही नहीं चला और उनके साथ ही खेला हो गया! लगे हाथ यह भी बता देते कि देश में कोरोना वायरस की दूसरी लहर ही नहीं आई थी!
 
बैकलॉग वाला खेला तो चल ही रहा है। फ़िलहाल केंद्र ने कह दिया है कि राज्यों ने ऐसी कोई रिपोर्ट ही नहीं दी है जिसमें कहा गया हो कि कोई ऑक्सीजन की कमी से मरा हो! मृत्यु प्रमाणपत्रों को ढंग से कैसे तैयार किया जाता है वह काम आजकल अदालतें सरकारों को सिखा रही हैं!!! कोविड से मरने वालों का आँकड़ा संदेह के घेरे में है ही! केंद्र सरकार ने कह दिया है कि वह तो नादान है, जो राज्य कहते हैं मान लेती है! लेकिन नादान होने में भी सिलेक्टीव है! जो मानना है वही मानती है, सारी चीज़ें नहीं मानती!!!
 
बहरहाल केंद्र सरकार ने 20 जुलाई 2021 के दिन राज्यसभा को बता दिया है कि कोरोना वायरस संक्रमण की दूसरी लहर के दौरान ऑक्सीजन की कमी से भारत भर में किसी की मौत नहीं हुई है। यह जानकारी स्वास्थ्य राज्य मंत्री भारती प्रवीण पवार ने एक सवाल के जवाब में दी। उन्होंने जो जवाब दिया वह चालाक जवाब है! उन्होंने कहा कि कोविड 19 महामारी की दूसरी लहर के दौरान किसी भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश से ऑक्सीजन के अभाव में किसी भी मरीज़ की मौत की ख़बर नहीं मिली है।
केंद्र ने चालाकी से बयान दिया है। उसने कहा है कि राज्यों ने ऐसी कोई जानकारी नहीं दी है, जिसमें बिना ऑक्सीजन के किसी के मारे जाने की ख़बर हो। संबित पात्रा ने भी मैदान में आकर यही कहा है। केंद्र दोनों हाथों में लड्डू रखकर चल पड़ी है! छाती फूलाकर कह सकती है कि भारत में ऑक्सीजन की कमी से कोई नहीं मरा। इसमें श्रेय लेने का समय आएगा तब केंद्र सरकार आगे कूद जाएगी! लेकिन जब सवाल उठेंगे तो पीछे चली जाएगी! कहेगी कि राज्य डाटा देते हैं, हमें तो राज्यों ने ऐसा कोई डाटा दिया ही नहीं।
 
ज़्यादातर राज्यों में बीजेपी शासित या बीजेपी भागीदारी वाली सरकारें हैं। यानी उन राज्यों ने भी ऐसा ही कहा होगा। दूसरे राज्यों में, जहाँ विपक्षी शासन है, उन राज्यों ने भी यही कहा है, ऐसा केंद्र सरकार का दावा है।
 
कुल मिलाकर, केंद्र सरकार ने तथा राज्य सरकारों ने एक झटके में ही भारत के नागरिकों को झूठा साबित कर दिया है! सत्ताधारियों ने उन तमाम मीडिया रिपोर्ट्स को, उन तमाम सोशल मीडिया संदेशों को, उन तमाम मौतों को, महज़ कल्पना साबित कर दिया है!

 
पवार ने बताया कि स्वास्थ्य राज्यों का विषय है और राज्य तथा केंद्र शासित प्रदेश कोविड के मामलों और मौतों की संख्या के बारे में केंद्र को नियमित सूचना देते हैं। इस बयान ने कोरोना संक्रमितों के आँकड़ों का झोल हो, मारे गए लोगों के आँकड़ों में गड़बड़ी हो, या ऑक्सीजन की कमी से मारे गए लोगों की संख्या हो, सारी चीज़ों में राज्यों पर ठीकरा फोड़ दिया है। इसमें बीजेपी शासित राज्य भी शामिल हैं। यानी, केंद्र ने खाया पिया और मजा किया! जो कुछ ग़लत शलत किया, वह तो राज्यों ने किया!
 
बतौर केंद्र सरकार, किसी भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश ने ऑक्सीजन के अभाव में किसी की जान जाने की ख़बर नहीं दी है। केंद्र की माने तो उसे राज्यों ने ऐसा कहा नहीं है कि हमारे यहाँ इतने लोग ऑक्सीजन के बिना मारे गए। भोले और नादान केंद्र ने ख़ुशी ख़ुशी इस बात को मान लिया!!! अब तक हर जायज़ माँग पर राज्यों को झूठा कहने वाली केंद्र सरकार ने ऐसी बात को मान लिया!!! जो चीज़ें जगज़ाहिर थीं उसे ना मानकर केंद्र ने राज्यों की कथित बात मान ली!!! ऐसा कैसे मुमकिन है, वाला सवाल पूछने का कोई अर्थ नहीं रह जाता। केंद्र सरकार का जवाब हैरत में डालने वाला तो है, लेकिन हैरत में डूबे रहिए।
    
मेडिकल ऑक्सीजन की कमी को लेकर कोरोना की दूसरी लहर में एक समय भले ही देश भर में हाहाकार मच गया था, मौत की ख़बरें आ रही थीं और सरकार के मंत्री ऑक्सीजन एक्सप्रेस, प्लांट और कंसंट्रेटर की तसवीरें और वीडियो पोस्ट कर रहे थे, लेकिन अब इसी सरकार के मंत्री ने संसद को बता दिया है कि ऑक्सीजन की कमी से कोई भी मौत नहीं हुई है!
देश की राजधानी दिल्ली के अस्पतालों में, कर्नाटक और गोवा के अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी से मौत की ख़बरें आईं। उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, हरियाणा जैसे राज्यों से भी ऐसी रिपोर्टें आईं। दिल्ली हाईकोर्ट केंद्र को बार-बार फटकार लगाता रहा। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने टिप्पणी की थी कि ऑक्सीजन की आपूर्ति नहीं करना अपराध है और यह किसी तरह नरसंहार से कम नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने भी केंद्र को फटकार लगाई। यहाँ तक कि इसने कहा था कि ऑक्सीजन वितरण प्रणाली में पूरे बदलाव, इस पूरी व्यवस्था के ऑडिट किए जाने और ज़िम्मेदारी तय किए जाने की ज़रूरत है।
 
लेकिन केंद्र सरकार ने संसद में जो बयान दिया है वह चौंकाने वाला है। कोविड महामारी के दौरान ऑक्सीजन की कमी से किसी के मरने की कोई सूचना किसी राज्य या केंद्रशासित प्रदेश से नहीं है, केंद्र ने यह जवाब लिखित में दिया है। केंद्र सरकार की माने तो राज्यों ने कोरोना संक्रमण के दौरान ऑक्सीजन की कमी से मौत की ख़बर नहीं दी है।
 
यानी केंद्र और राज्यों ने मिलकर देश के नागरिकों को बता दिया है कि भले देश में रोज़ाना 4 लाख से ज़्यादा मामले आ रहे थे, भले गंगा नदी में सैकड़ों शव तैर रहे थे, भले ऑक्सीजन के लिए सोशल मीडिया में लोग मदद मांग रहे थे, भले ही अख़बारों में इसे लेकर रिपोर्ट छप रहे थे, अध्यादेश आ गया है कि ऑक्सीजन की कमी से किसी की मौत नहीं हुई है, ऐसा मान लें।

 
दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी के बीच 24 घंटे में 25 मरीज़ों की मौत हो गई थी। अस्पताल ने ही 23 अप्रैल 2021 को यह बयान जारी किया था। 1 मई 2021 को दिल्ली के बत्रा अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी से 1 डॉक्टर समेत 8 लोगों की मौत की ख़बर आई थी। इससे पहले ख़बर आई थी कि दिल्ली स्थित जयपुर गोल्डन अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी से 20 कोरोना मरीज़ों की मौत हो गई थी।
 
मई महीने के मध्य में ख़बर आई थी कि गोवा के सरकारी मेडिकल कॉलेज में चार दिनों में 74 मरीज़ों की मौत ऑक्सीजन के स्तर में कमी के कारण हो चुकी थी। मई महीने की शुरुआत में ही कर्नाटक के चामराजनगर स्थित एक सरकारी अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी से दो घंटे में 24 लोगों की मौत हो गई थी। अस्पताल के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इसकी पुष्टि की थी।
 
दिल्ली में अप्रैल महीने में जब ऑक्सीजन कम पड़ने की ख़बरें आ रही थीं तब दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को फटकार लगाते हुए कहा था कि उसके लिए मानव जीवन की कोई क़ीमत नहीं है। अदालत ने केंद्र सरकार से कहा था कि भीख माँगो, किसी से उधार लो या चोरी करो, लेकिन ऑक्सीजन दो। कोर्ट उस मामले में सुनवाई कर रहा था, जिसमें मैक्स अस्पताल समूह ने दिल्ली हाईकोर्ट में दायर एक याचिका में कहा था कि उसके अस्पतालों में ऑक्सीजन का स्तर ख़तरनाक स्तर पर गिर चुका है, उसे तुरन्त ऑक्सीजन चाहिए। कोर्ट द्वारा सप्लाई बढ़ाने के आदेश देने के बाद भी जब दिल्ली को पूरी आपूर्ति नहीं की गई थी तो अदालत ने अवमानना की कार्यवाही की चेतावनी भी दी थी।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ऑक्सीजन आपूर्ति नहीं होने पर कड़ा रुख अपनाते हुए इससे जुड़े सरकारी अधिकारियों को जो़रदार फटकार लगाई थी और कहा था कि इसकी आपूर्ति नहीं करना अपराध है और यह किसी तरह नरसंहार से कम नहीं है।
 
लखनऊ और मेरठ ज़िलों में ऑक्सीजन की कमी से कुछ लोगों की मौत होने से जुड़ी ख़बरों पर प्रतिक्रिया जताते हुए अदालत ने यह टिप्पणी की थी और जाँच का आदेश दिया था। उत्तर प्रदेश के मेरठ में भी ऑक्सीजन की कमी से 7 कोरोना मरीज़ों की मौत की ख़बर आई थी।
 
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भी निर्देश दिया था। वह ऑक्सीजन आवंटन पर सरकार की योजना को लेकर सुनवाई कर रहा था। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और एमआर शाह की पीठ ने कहा था कि बेड की संख्या के आधार पर केंद्र के मौजूदा फ़ॉर्मूले को पूरी तरह से बदलने की आवश्यकता है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा था"जब आपने फ़ॉर्मूला तैयार किया था तो हर कोई आईसीयू में नहीं जाना चाहता था। कई लोगों को घर में ऑक्सीजन की आवश्यकता है। केंद्र के फ़ॉर्मूले में परिवहन, एम्बुलेंस और कोरोना-देखभाल सुविधाओं को ध्यान में नहीं रखा गया है।"

 
ऑक्सीजन की मांग कोरोना की पहली लहर की अपेक्षा दूसरी लहर में काफ़ी ज़्यादा बढ़ गई थी। पहली लहर में जहाँ 3095 मिट्रिक टन ऑक्सीजन की मांग थी, वह दूसरी लहर में बढ़कर क़रीब 9000 मिट्रिक टन तक पहुँच गई थी। ऑक्सीजन की कमी पर जब देश-दुनिया में हंगामा मचा था तब ऑक्सीजन एक्सप्रेस तक चलाई गई थी। इसके प्लांट लगाने की बड़ी-बड़ी घोषणाएँ की गई थीं। दुनिया भर के कई देशों से सहायता में कंसेंट्रेटर और ऑक्सीजन टैंकर भेजे गए थे
 
केंद्र सरकार ने जो जवाब दिया है वह वाक़ई राजनीतिक रूप से चालाक जवाब है। हम अरसे से कहते आए हैं कि राजनीति में कोई शेर नहीं होता। वहाँ सभी या तो बाध होते हैं, या लोमड़ी। केंद्र ने जो जवाब दिया है, उसने जवाब में स्वास्थ्य राज्यों का विषय है, बतलाकर उस पुरानी आशंका पर मुहर लगा दी है। कौन सी पुरानी आशंका? पिछले साल मार्च से ही लिख रहे हैं कि कुछ अच्छा होगा तो वह मोदीजी का मास्टर स्ट्रोक होगा, बुरा होगा वह राज्यों का दोष होगा। केंद्र ने इस एक जवाब से संक्रमितों के आँकड़ों में गड़बड़ी से लेकर कोरोना वायरस के चलते मारे गए लोगों की मौतों के उलझाते आँकड़े, सभी में अपनी ज़िम्मेदारी से हाथ धो डाले हैं! कह दिया है कि हम तो राज्यों के डाटा पर काम कर रहे थे! कह देंगे कि राज्यों ने ही सही स्थिति से अवगत नहीं कराया, वर्ना मोदीजी 18 दिनों में महाभारत का युद्ध जीत ही लेते!!!
    
आप ही देख लीजिए। इसी दिन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया कहते हैं, "मोदीजी ने कहा कि डेथ रजिस्टर कीजिए, छुपाइए मत, मौतें तो राज्यों को रजिस्टर करनी होती है, अब यह कहा जाए कि भारत सरकार आँकड़े छुपा रही है तो यह ग़लत है।" यह बयान राज्यसभा में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने दिया है। बयान को बार बार पढ़िए और फिर समजिए। खेला होबे नहीं, खेला तो हो गया!!!
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री राज्यसभा जैसे पटल पर देश को मैनिपुलेटेड इन्फॉर्मेशन दे रहे हैं। वे कहते हैं कि मोदीजी ने कहा कि डेथ रजिस्टर कीजिए। नये स्वास्थ्य मंत्री हैं मांडविया, लिहाज़ा पता नहीं रहा होगा इन्हें। यह आदेश मोदीजी ने नहीं, अदालत ने दिया था मोदीजी को और राज्यों को। गुजरात के लोकल अख़बार दिव्य भास्कर ने गुजरात में भी ऐसे मामले को लेकर रिपोर्टींग की थी, जिसमें मौतों को दर्ज ही नहीं किया गया था। डेथ सर्टिफ़िकेट, श्मशानों के आँकड़े, इन चीज़ों में बड़ा झोल अख़बारों ने छापा था। कई राज्यों से ऐसी चीज़ें बाहर आई थीं। फिर अदालत ने संज्ञान लिया और मोदीजी को और राज्यों को आदेश दिया था कि मौतें रजिस्टर कीजिए।
 
मांडविया की हिम्मत को दाद देनी चाहिए। अदालत मोदीजी को और राज्यों को आदेश देती है कि मौतों को रजिस्टर कीजिए, मौतों की वजह बताइए-लीखिए, कोरोना से मारे गए लोगों का डाटा सही ढंग से रखिए। फिर भी मांडविया राज्यसभा में कहते हैं कि मोदीजी ने कहा कि डेथ रजिस्टर कीजिए!!! जबकि मोदीजी को ऐसा करने का आदेश अदालत ने दिया था।

 
बीजेपी के वैज्ञानिक संबित पात्रा काफ़ी दिनों बाद राष्ट्रीय स्तर पर जगह बना पाए इस बार। केंद्र सरकार के राज्यसभा में जवाब पर बवाल हुआ तो संबित पात्रा मैदान में आए। उन्होंने कहा कि किसी भी राज्य ने ऑक्सीजन की कमी को लेकर हुई मृत्यु पर कोई आँकड़ा नहीं भेजा, किसी ने ये नहीं कहा कि उनके राज्य में ऑक्सीजन की कमी को लेकर मौत हुई है। इसके साथ उन्होंने राहुल गाँधी को ट्विटर ट्रोलर भी कह दिया। संबित पात्रा टूल किट के कथित संस्थापक संबित पात्राजी ने जो कहा उसमें अब गेंद राज्यों के पाले में है।
 
संबित पात्रा ने तीन मुख्य दलीलें सामने रखीं। पहली, स्वास्थ्य राज्यों का विषय है। दूसरी, केंद्र राज्यों के भेजे डाटा को संग्रहित करता है। तीसरी, राज्य को मौतों के आँकड़ों को रिपोर्ट कर सके इसलिए केंद्र ने दिशानिर्देश जारी किए हैं।
 
जब सब कुछ राज्यों को करना है तो अब तक मोदीजी जंग किसके साथ, किसके लिए और किस आधार पर लड़ रहे थे यह संबित पात्राजी ने नहीं बताया। बीजेपी शासित राज्य और ग़ैरबीजेपी शासित राज्य ऑक्सीजन के संदर्भ में ऐसी बेतुकी और पहली नज़र में झूठी जानकारी देते हैं तो फिर इतनी हुशियार केंद्र सरकार उसे एक नज़र में सही कैसे मान सकती है? इसका जवाब ना संबित पात्राजी ने दिया है, ना मांडविया बाबू ने। अदालतों ने मोदीजी और राज्यों को आदेश दिया था कि हर मौत रजिस्टर करिए, वजह के साथ करिए। बावजूद इसके मांडविया बाबू की हिम्मत देखिए कि वह कह देते हैं कि मोदीजी ने निर्देश दिया था कि डेथ रजिस्टर करिए!!! जबकि ये आदेश तो मोदीजी और राज्यों को अदालत ने दिया था।
    
आजकल बैकलॉग के नाम पर आँकड़ों में थोड़ा बहुत सुधार करके उठ रहे सवालों को दबाने कुचलने की चालाक प्रवृत्ति तो चल ही रही है! अगर राज्य पहली नज़र में ही बेतुकी लगे ऐसी रिपोर्ट देते हैं और केंद्र उसे मान लेता है, तो फिर राज्यों की वह मांगे, वह बातें किस आधार पर झूठी बता रही थी केंद्र सरकार? कोरोना वायरस की दूसरी लहर के दौरान कई राज्यों ने केंद्र से ऑक्सीजन मांगा, दवा मांगी, दूसरी मदद मांगी, अंत में वैक्सीन का स्टोक मांग रहे हैं। हर चीज़ में केंद्र सरकार राज्यों को झूठा बताती है। बस यही एक बात में केंद्र ने राज्यों को राजा हरिश्चंद्र मान लिया!!!
भारत सरकार आँकड़ा छिपा रही है। केंद्र सरकार ने इस आरोप को काटने के लिए यह खेला कर दिया हो ऐसा महसूस होता है। क्योंकि मंत्रीजी कह गए कि केंद्र तो राज्यों से आए आँकड़े जुटाता है और उसे केवल प्रकाशित करता है। अरे मंत्रीजी, तो फिर मोदीजी कोरोना से कौन सी जंग लड़ रहे हैं? और भारत सरकार केवल आँकड़ा प्रकाशित करने का ही काम करती है तो फिर वह भारत सरकार किस आधार पर कहती है कि भारत में ज़्यादा लोग नहीं मारे गए। दूसरी राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टों को किस आधार पर झुठलाती है भारत सरकार? जबकि वो तो केवल प्रकाशक ही है। प्रकाशक के पास कौन सा आधार है कि राज्यों ने एकदम सही जानकारी दी? जबकि सैकड़ों रिपोर्टें, बातें, कहानियाँ जगज़ाहिर हैं।
 
कोरोना वायरस की दूसरी लहर के वो दिन, वो रातें। जब जनप्रतिनिधियों को, सामाजिक कार्यकर्ताओं को, एनजीओ को अंजान नंबरों से फ़ोन आते थे। ऑक्सीजन के लिए लोग जगह जगह भटकते थे, पूछा करते थे ऑक्सीजन के लिए। केंद्र ने चालाकी से राज्यों के सिर पर ठीकरा फोड़ एक साथ कई सवालों से पीछा छुड़ा लिया है!
 
केंद्र के इस बयान का विरोध होना ही चाहिए। लेकिन नागरिकों द्वारा होना चाहिए। बीजेपी शासित राज्य तो आगे नहीं आएँगे। ग़ैरबीजेपी राज्य वालों, आप ही कह दो कि आपके यहाँ बिना ऑक्सीजन के इतने लोगों की मौतें हुई हैं। लेकिन क्या करें? केंद्र ने ऐसा चालाक जवाब दिया है कि ग़ैरबीजेपी राज्य कैसे कहे कि हमारे यहाँ इतने लोग बिना ऑक्सीजन के मारे गए। ग़ैरबीजेपी शासित राज्यों ने कह दिया तो गारंटी यह नहीं है कि बीजेपी शासित राज्य भी कह देंगे। यानी ग़ैरबीजेपी शासित राज्यों को केवल बोलकर विरोध करना पड़ेगा। वे लिखकर जानकारी देते हैं तो भविष्य में केंद्र की सत्ताधारी पार्टी और उसका आईटी सेल इसे न जाने कैसे कैसे, कहाँ कहाँ और कब कब इस्तेमाल कर ले।

 
कुल मिलाकर, आम लोग इन लोगों की राजनीति में बुरी तरह फँस गए हैं!!! खेला होबे खेला होबे करते करते नागरिकों को ही पता नहीं चला और उनके साथ ही खेला हो गया है!!! ऑक्सीजन की कमी से मरने वाले लोग एक झटके में काल्पनिक पात्र बन गए हैं!!! बस ऐसे ही, कोरोना से भी कोई नहीं मरा था, यही बता दो!
 
अपने पति को सीपीआर देते हुए रेणुजी की वह तस्वीर देश में कोरोना की दूसरी लहर के दौरान ऑक्सीजन की कमी से उपजे भयानक मंज़र का प्रतीक बन गई थी। वह अस्पताल के सामने रोती रहीं। कहती रही कि मेरे पति को भर्ती कर लो। अस्पताल ने कहा कि ऑक्सीजन बेड नहीं है, भर्ती नहीं कर पाएँगे। श्रीराम अस्पताल के गेट पर वह मंज़र पूरे देश ने देखा था। अपने पति को बचाने के लिए वह मुँह से साँस देने लगी, लेकिन वह उन्हें और उनकी बच्ची को छोड़ चल बसे।
1 मई 2021 के दिन दिल्ली के बत्रा अस्पताल के मेडिकल डायरेक्टर एससीएल गुप्ता ने दिल्ली हाईकोर्ट में कहा था कि हमें ऑक्सीजन वक्त पर नहीं मिली, 12 बजे दोपहर में ऑक्सीजन ख़त्म हो गई, हम मरीज़ों को नहीं बचा सके, जिसमें हमारे एक डॉक्टर भी शामिल थे, शनिवार (30 अप्रैल) को हमने लगभग एक घंटे अस्पताल बिना ऑक्सीजन के चलाया। 27 अप्रैल 2021 को दिल्ली के जयपुर गोल्डन अस्पताल ने बताया था कि 22 अप्रैल 2021 की शाम 5 बजे ऑक्सीजन की सप्लाई मिली, लेकिन 23 अप्रैल 2021 को ऑक्सीजन 10-15 मिनट देरी से मिली और इसके लिए कई इमरजेंसी मैसेज जारी किए गए तब जाकर एम्स अस्पताल से कुछ ऑक्सीजन डायवर्ट की गई, लेकिन 10-15 मिनट की देरी में 20 लोगों की मौत हो गई।
 
30 अप्रैल 2021 की रात गुरूग्राम के कीर्ति अस्पताल में छह लोगों की मौत हो गई थी। बताया गया कि देर रात अस्पताल में ऑक्सीजन सप्लाई बंद हो गई और अस्पताल के सभी कर्मचारी भाग गए। इस घटना का वीडियो ख़ूब वायरल हुआ था। 11 मई 2021 के दिन गोवा मेडिकल कॉलेज में रात 2 बजे से लेकर सुबह 6 बजे के बीच 26 लोगों की मौत हो गई थी, जिस पर गोवा के स्वास्थ्य मंत्री ने कहा था कि देर रात ऑक्सीजन की सप्लाई रुकने के कारण लोगों की मौत हुई है। उन्होंने इस मामले में हाईकोर्ट को एक कमेटी बनाकर जाँच करने का आग्रह किया था। कहा था कि हमने 1200 सिलेंडर मांगे थे, मिले थे 400।
 
3 मई 2021 को कर्नाटक के चामराजनगर में मेडिकल ऑक्सीजन के लो-प्रेशर की वजह से एक अस्पताल में भर्ती 12 मरीज़ों की मौत हो गई थी। यह सभी कोरोना के मरीज़ थे। चामराजनगर इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइसेंज़ के डीन डॉ. जीएम संजीव ने यह बयान दिया था। 11 मई 2021 को आंध्र प्रदेश में तिरुपति के एक सरकारी अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी से 11 कोविड मरीज़ों की मौत हो गई थी। ये सारे मरीज़ आईसीयू वार्ड में भर्ती थे। अस्पताल के सुपरिटेंडेंट डॉक्टर भारती ने बताया था  कि ये हादसा ऑक्सीजन सप्लाई के प्रेशर में कमी आने के कारण हुआ।
 
गुजरात में भी दिव्य भास्कर ने ऑक्सीजन की कमी को लेकर अनेक रिपोर्ट छापे हैं। ख़बरें दी हैं कि ऑक्सीजन की कमी के चलते यहाँ अहमदाबाद के सोला सिविल अस्पताल के मेन गेट पर ताला मारना पड़ा था।
एक स्वतंत्र कम्युनिटी डेटाबेस प्रोजेक्ट डेटामीट को देश में कोरोना महामारी के दौरान बनाया गया है और वह कोरोना से जुड़े मामलों का डेटा रखता है। इस डेटाबेस में ऑक्सीजन से हुई मौतों के आँकड़ों की जानकारी देते हुए 27 मई 2021 के दिन बताया गया था कि उस दिन तक देश में ऑक्सीजन की कमी से कई मौतें हुई थीं। नोट करें कि उसके बाद वहाँ इस जानकारी को अपडेट नहीं किया गया है।
 
केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों के कंधे पर बंदूक रखकर गोली चला दी है। तकनीकी रूप से कह दिया है। बैकलॉग वाला आगे जो भी झोल हो वो दूसरी तीसरी बात होगी। सोचिए, डेथ सर्टिफ़िकेट तक में मौतों की वजह लिखी नहीं जा रही थी, तो फिर किसकी मौत किस वजह से हुई होगी, कैसे देश को पता चलेगा? तकनीकी रूप से, या यूँ कहे कि मेडिकली, मौतों की वजह लिखना बताना या पता करना, इन सारी चीज़ों में महामारी की तमाम पीड़ा भी मार दी गई है!
 
दिल्ली वाले बवाल मचा रहे हैं, किंतु लिखकर कह नहीं रहे कि हमारे यहाँ इतने लोग ऑक्सीजन के बिना मरे हैं! गुजरात सरकार ने कह दिया है कि उनके वहाँ ऑक्सीजन की कमी से कोई नहीं मरा! महाराष्ट्र, जहाँ बीजेपी सत्ता में नहीं है, उस राज्य के स्वास्थ्य मंत्री ने भी कह दिया कि वहाँ भी ऑक्सीजन के बिना किसी की मौत नहीं हुई! बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ (जहाँ कांग्रेस शासन है) के हेल्थ मिनिस्टर, गोवा के सीएम, तमिलनाडु के हेल्थ सेक्रेटरी, आदि ने भी ऑक्सीजन की कमी से किसी की मौत से इनकार कर दिया है!
 
राज्यों की तो छोड़ ही दीजिए, जहाँ इलाज होता रहा उन अस्पतालों में से कई अस्पतालों ने कह दिया है कि उनके वहाँ ऑक्सीजन की कमी के चलते किसी की जान नहीं गई। जबकि सैकड़ों अस्पताल उन दिनों कुछ दूसरा ही कह रहे थे। केंद्र सरकार की अस्पतालों ने भी ऐसा ही कहा है, राज्यों की अस्पतालों ने भी।
    
हम पिछले साल से लिखित रूप से कह रहे हैं कि हमारे पास महामारी के दौरान संक्रमितों और मौतों के आँकड़े इक्ठ्ठा करने की कोई सटिक और सही प्रणाली है ही नहीं। कुछ महीनों पहले केंद्र सरकार कह रही थी कि आँकड़े सटीक हैं। अब बैकलॉग वाला खेला चल रहा है! जब जानकारी सटीक थी तो फिर बैकलॉग क्यों? क्योंकि संक्रमितों और मृतकों के आँकड़े सटीक नहीं हैं। ऐसे में कौन किस वजह से मरा उसका सही पता नहीं चल पाएगा, यह भी एक सच है।
मेडिकली तरीक़े से ऑक्सीजन की कमी से कोई मरा है या नहीं मरा है उसे साबित करने का कोई ठोस सिस्टम हमारे पास नहीं है। अगर है तो देश को पता होता। कितने लोग कोरोना की वजह से मारे गए उसका ही पता नहीं, तो फिर कितने लोग बिना ऑक्सीजन के मारे गए, यह कैसे पता चल पाएगा? डेथ सर्टिफ़िकेट पर ऑक्सीजन की कमी वाला कोई कारण लिखा जाए यह आपको मुमकिन लगता है क्या? मेडिकली ढंग से सर्टिफ़िकेट में वजह लिखी जाएगी तो ऑर्गन फेलियर वजह बनेगा, ऑक्सीजन नहीं।
 
कोई भी राज्य हो, वह अपने ख़राब प्रदर्शन को जगज़ाहिर भी नहीं करना चाहेगा। यह एक ज़मीनी सच्चाई है। ग़ैरबीजेपी शासित राज्य वाले भले हल्ला मचाए, वह ज़ाहिर भी तो नहीं कर रहे कि हमारे यहाँ ऑक्सीजन की कमी से इतने लोगों की मौतें हुई है! उधर गुजरात जैसे बीजेपी शासित राज्य तनकर कह रहे हैं कि हमारे यहाँ ऑक्सीजन की कमी से कोई नहीं मरा!
 
राज्यों से भी शिकायतें हैं। केंद्र सरकार तो भोली और बेचारी है। छोटे बच्चे जैसी। आपने जो रिपोर्ट दीं, नादान केंद्र सरकार ने मान लिया। अब आप केंद्र सरकार को कटघरे में खड़ा मत कीजिए। कितने लोग बिना ऑक्सीजन के मारे गए उसका आँकड़ा सार्वजनिक कर दीजिए। राज्यों को यह बिनती है। लेकिन विपक्षी राज्य अब सोचने को मजबूर हैं कि हम तो सार्वजनिक कर देंगे, फिर बीजेपी वाले राज्य नहीं करेंगे। फिर आगे चलकर वे लोग चुनावों में प्रचार करेंगे कि बिना ऑक्सीजन इन राज्यों में लोग मर गए। राजनीति ने केंद्र स्तर से लेकर राज्य स्तर तक, लोगों के साथ ऐसा खेला कर दिया है, जिसके ज़िम्मेदार लोग ही हैं।
    
कोरोना वायरस की दूसरी लहर के दौरान वो सारे मीडिया रिपोर्ट, सोशल मीडिया पर एकदूसरे से ऑक्सीजन मांग रहे लोग, वो सारी बातें देश के सामने हैं। लेकिन राज्यों और केंद्रो ने कह दिया है कि तमाम बातें झूठी थीं, वे ही सच्चे थे!
 
केंद्र ने राज्यों के कंधे पर रखकर जिस तरह से बंदूक चलाई है, पता नहीं उन दिनों वे लोग कौन थे, जो सोशल मीडिया पर ऑक्सीजन के लिए गुहार लगा रहे थे? एक झटके में देश की पीड़ा को फ़ेक न्यूज़ में बदल दिया गया है! तड़प तड़प कर जो मर गए उनके परिजनों के दुख दर्द का मज़ाक उड़ाया गया है।
मोदीजी को स्पेशल एपिसोड में राष्ट्र के नाम संबोधन कर लेना चाहिए। कह देना चाहिए कि राज्य जो भी कहेंगे, हम जस का तस देश के सामने रख देंगे और राज्य झूठे हैं वाले उनकी सरकार के पुराने आरोप तत्काल प्रभाव से वापस लिए जाते हैं।
 
''पोस्ट डिलीट कर रहा हूँ। जिसके लिए ऑक्सीजन सिलेंडर चाहिए था, वो अब नहीं रहे।'' इस तरह के मैसेज आपमें से कइयों को मिले होंगे। कइयों ने पढ़े होंगे। कइयों को लिखने भी पड़े होंगे। हम सभी ने वो मंज़र देखे, जब ऑक्सीजन के लिए हम, हमारे परिजन, हमारे दोस्त मारे मारे फिर रहे थे। सोशल मीडिया पर ऑक्सीजन के लिए एक दूसरे से गुहार लगा रहे थे। किसी को मिल जाता था ऑक्सीजन, किसी को नहीं मिलता था। ऑक्सीजन नहीं मिलने की वजह से उनके स्वजन की मौत हो जाती तो फिर वे लोग आँसूओं के साथ संदेश भेजते कि अब ऑक्सीजन के लिए मेहनत मत करना, जिनके लिए चाहिए था वे अब इस दुनिया में नहीं रहे।
 
''अर्जेंट। एक ऑक्सीजन सिलेंडर चाहिए। मरीज़ की हालत बहुत नाज़ुक है।'', ''ऑक्सीजन बेड कहीं नहीं मिल रहा। प्लीज़ मदद करें।'' ऐसे कितने ही पोस्ट, ट्वीट, मैसेज हमने उन दिनों पढ़े होंगे, लिखे होंगे। वह तस्वीरें कैसे भुलाई जा सकती हैं, वह मंज़र कैसे मिटाए जा सकते हैं, जब हम अपनों को बचाने के लिए ऑक्सीजन सिलेंडर के लिए भटक रहे थे।
 
फिर भी केंद्र ने राज्यों के दम पर एलान कर दिया है कि भारत में ऑक्सीजन की कमी से कोई नहीं मरा! जो बीजेपी शासित राज्य हैं वे केंद्र के इस दावे के ख़िलाफ़ एक लफ्ज़ भी नहीं बोलेंगे। ग़ैरबीजेपी शासित राज्य राजनीति के लिए बोलेंगे। वे सामने आकर रिपोर्ट नहीं देंगे कि हमारे यहाँ ऑक्सीजन की कमी से इतने लोग मरे। वे ऐसा करेंगे तो बीजेपी भविष्य में इसे मुद्दा बनाएगी। कहेगी कि हमारे यहाँ ऐसा नहीं हुआ, आपके वहाँ कैसे हो गया।
 
कुल मिलाकर, कोरोना पर राजनीति की शुरुआत पिछले साल ही शुरु करने वाली केंद्र सरकार ने इस मसले पर ऐसा खेला खेल दिया है, जिससे अपमान और नुक़सान लोगों का ही हुआ है। आप नागरिकों को एक ही झटके में सत्ताधारियों ने झूठा साबित कर दिया है। देश की इस पीड़ा के साथ केंद्र और राज्य, दोनों ने भद्दा मज़ाक किया है। लेकिन देश को इस मज़ाक से कोई फ़र्क़ पड़ नहीं रहा। क्योंकि देश भाजपाइयों, कांग्रेसियों, आपियों, संघियों आदि में बँटा हुआ देश है। देश में ऑक्सीजन के बिना कोई मरा हो, ना मरा हो, नागरिकों की भीतर से मरने की वारदातें अरसे से जारी है। नोट करें कि यह कोरोना के ख़िलाफ़ लड़ाई है। जी हाँ, ऐसी ही। बेतुकी, अनजानी और बेसलेस!
(इनसाइड इंडिया, एम वाला)