नरेंद्र दामोदरदास मोदी। पूंजीपतियों के माध्यम से देश के मेनस्ट्रीम मीडिया को
मुठ्ठी में भींच कर स्वयं का आभामंडल रच कर स्वयं को किसी महान वीरगाथा के नायक के
रूप में प्रस्तुत करने वाले एक चालाक राजनेता। एक ऐसे प्रधानमंत्री, जिनके लिए देश में
फेकू या जुमलेबाज लफ़्ज़ गाहे-बगाहे इस्तेमाल होता है। एक ऐसे प्रधानमंत्री, जो अपने तमाम पुराने
दावों, वचनों और वायदों से बेशर्मी से हटकर काम करने के लिए जाने जाते हैं। एक ऐसे प्रधानमंत्री, जो ख़ुद को ख़ुद ही
भगवान का अवतार बताने की फूहड़ता कर देते हैं।
पहले से ही विकसित राज्य गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री, तथा पिछले दस सालों
से दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के प्रधानमंत्री। किंतु इनके भाषणों, कार्यशैली और राजनीति
का स्तर इतना नीचे गिरता जा रहा है कि बोद्धिक जगत के लोग सवाल उठाते हैं कि यह शख़्स
सार्वजनिक जीवन के लायक है क्या? हालाँकि वे इस देश में लोकतांत्रिक तरीक़े से लगातार तीसरी बार चुने गए हैं। इस
लिहाज़ से वे बौद्धिक जगत के चंद लोगों के लिए सार्वजनिक जीवन के लिए लायक नहीं होंगे, किंतु लाखों-करोड़ों
लोगों के लिए बिलकुल लायक हैं। किंतु बहुमत का अर्थ सदैव यह नहीं होता कि अल्पमत ग़लत
है।
नरेंद्र मोदी के बारे
में गुजरात के एक समय के प्रसिद्ध क्राइम रिपोर्टर प्रशांत दयाल अपनी कुछ गुजराती
किताबों के ज़रिए जो लिख गए उसका निष्कर्ष निकलता है कि - नरेंद्र मोदी ना ही हिन्दूवादी
हैं, ना ही राष्ट्रवादी, वह तकवादी (मौक़ापरस्त) हैं। यदि नरेंद्र मोदी को सही के आसपास समझ सकते हैं, तो वह गुजरात के वे
अनेक पुराने पत्रकार हैं, जिन्होंने नरेंद्र मोदी को उनके उदयकाल से लेकर इस काल तक देखा है। सारे पत्रकार
अलग अलग अलंकारों के साथ लगभग लगभग एक ही बात कहते हैं कि नरेंद्र मोदी अपने स्टैंड
से पलटने में महारत रखते हैं, वे कभी भी, किसी भी समय, अपने तमाम रूप- रंग- दावों- वायदों- शैली, तमाम से पलट सकते हैं।
यूँ तो नरेंद्र मोदी
2001 से 2014 तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे, किंतु तब तक गुजरात की जनता तक को पता नहीं था कि वे शादीशुदा हैं! बीजेपी की तरफ़ से प्रधानमंत्री उम्मीदवार घोषित होने के बाद जब इन्होंने लोकसभा
लड़ने के लिए नामांकन किया तब जाकर गुजरात की जनता को पता चला कि उनका मुख्यमंत्री
शादीशुदा हैं! बतौर गुजरात के मुख्यमंत्री वे स्वयं मीडिया
के समक्ष कहते थे कि मैं ज़्यादा पढ़ा-लिखा नहीं हूँ। इस मीडिया साक्षात्कार के वीडियो
आज भी सोशल मीडिया पर घूम रहे हैं। लेकिन 2014 के बाद केजरीवाल की कृपा से गुजरात को पता चला कि ये तो बहुत पढ़े-लिखे हैं!
उपरांत, पैतीस साल तक भीख
माँगना, हिमालय में जाकर तपस्या करना, भारत के हर राज्य के साथ इनका गहरा रिश्ता होना, चाय की केतली और वहाँ
चाय बेचना, मगरमच्छ पकड़ना, लाइब्रेरी में जाकर किताबें पढ़ना, बहुत ग़रीब परिवार, इनकी माता का दूसरों के घर बर्तन मांजने जाना, इतने ग़रीब होने के बाद भी संचार क्रांति से पहले ही ईमेल करना, एयरपोर्ट से मोबाइल
फ़ोन करना, डिजिटल कैमरा होना, जैसी चर्चा गुजरात में होती नहीं थी, इसलिए यह रहस्य भी गुजरात को पता नहीं थे!
इन सब रहस्यों से इतर
सन 1990 से लेकर सन 2014 तक गुजरात और नरेंद्र मोदी को लेकर अनेका अनेक तथ्यात्मक किस्से- कहानियाँ- लेख
हैं, जिसे अनेक स्थानीय पत्रकारों-लेखकों आदि ने कहा और लिखा है। इन सबसे नरेंद्र मोदी
की जो तस्वीर बनती है, इससे आज नरेंद्र मोदी जिस तरह विवादित ढंग से काम कर रहे हैं, इससे कोई आश्चर्य
नहीं होता।
गुजरात में मोदीजी
के द्वारा शंकरसिंह वाघेला, केसुभाई पटेल, हरेन पांड्या, संजय जोषी, प्रवीण तोगड़िया, गोरघन झड़फीया, लाल कृष्ण आडवाणी, से लेकर अनेका अनेक घर के ही नेताओं को ठिकाने लगाने के किस्से जगह जगह पढ़ने-सुनने
को मिल जाते हैं। इनका उद्योगपति प्रेम, फंडिग विवाद, क्रूर चुनावी राजनीति, आदि के किस्से-कहानियाँ भी अनेक हैं।
1999 से
पहले के मोदी, 1999 से
2001 के मोदी, 2001 से 2002 तक
के मोदी, 2002 से
2006 तक के मोदी, 2006 के बाद के मोदी, 2010 से
2013 के मोदी... इनके साथ जुड़े किस्से समय के साथ इतने बदलते रहे
हैं कि उसे लिखने- पढ़ने- सुनने वाले लोग आश्चर्य नहीं करते।
देश की राजनीति में
नरेंद्र मोदी और आरएसएस के बीच के तल्ख़ रिश्तों को लेकर अब जाकर राष्ट्रीय विवेचक
कुछ बोल रहे हैं कि सब कुछ ठीक नहीं है, किंतु गुजरात के पुराने पत्रकारों को पता है कि 2001 से ही नरेंद्र मोदी
ने गुजरात में आरएसएस को नियंत्रित करना शुरू कर दिया था और वे इसमें सफल भी हुए थे।
अनेक गुजराती पत्रकार कहते- लिखते- बताते हैं कि मोदी बतौर प्रधानमंत्री संघ की पहली
पसंद नहीं थे, किंतु अपने ही गुरू और अपने ही मित्रों को ठिकाने लगाने में सफल होने वाले मोदी
संघ को इतना कमज़ोर कर चुके थे कि संघ के लिए मोदी पसंद नहीं बल्कि मजबूरी बन गए।
2014 में कांग्रेस के पापों और आरएसएस की सामाजिक-चुनावी बिसात के दम पर मोदी देश के
पीएम बन गए। देश के ताक़तवर पद पर पहुंच कर, सर्वोच्च शक्ति अर्जित कर, नरेंद्र मोदी ने अपनी पुरानी राजनीतिक शैली को सीमा पार जाकर इस्तेमाल किया। वे
जैसा गुजरात में कर चुके थे, ठीक वैसे ही राष्ट्रीय स्तर पर अपने आसपास भविष्य में ख़तरा बन सकें ऐसे तमाम
लोकप्रिय, ज़मीन पर मज़बूत और बुद्धिजीवी कहे जाए ऐसे तमाम घर के ही नेताओं को ठिकाने लगा
दिया। उधर 2019 में पुलवामा के घटनाक्रम ने कुछ ऐसा माहौल बनाया कि जो मोदी 2019 में ही गठबंधन स्थिति
में फँस सकते थे, वे ज़्यादा ताक़त के साथ लौटे।
गुजरात में अपनी ही
पार्टी के लोकप्रिय, बड़े और पुराने नेताओं को राजनीतिक रूप से ठिकाने लगाने का तथा गुजरात में आरएसएस
को अपनी मुठ्ठी में भींचने का आरोप नरेंद्र मोदी पर गाहे-बगाहे लगता रहा है। आरएसएस
तथा उससे संबंधित तमाम हिन्दू संस्थाओं- दलों- संगठनों के नेताओं के पर कतर कर उन्हें
ठिकाने लगाने का श्रेय स्थानीय पत्रकार-लेखक नरेंद्र मोदी को ही देते हैं। विवादित
और फ़र्ज़ी मुठभेडों के मामले, राजनीति के विवादित स्तर को छूना, ग़लत बयानबाजी करना जैसे कई ऐसे चैप्टर हैं, जिसे एक लेख में लिखना मुमकिन नहीं है। किंतु इतना तय है कि
विज्ञापन और कैमरा प्रेम, आत्ममुग्धता, एकाधिकारवाद, मैं के सिवा और कोई नहीं, घोर और क्रूर राजनीति, समेत सारे चरित्र गुजरात में ही पनपे हैं।
बौद्धिक जगत एकमत से बोलता-लिखता नज़र आता है कि एक प्रधानमंत्री
का जिस तरह का आचरण होना चाहिए, उनके
पास जिस तरह का ज्ञान होना चाहिए, एक
प्रधानमंत्री को जिस तरह बोलना चाहिए, एक
प्रधानमंत्री का जिस तरीक़े का सार्वजनिक जीवन होना चाहिए, इनमें से कुछ भी नरेंद्र मोदी के पास नहीं है। बौद्धिक जगत
में यह सब कुछ कहा जाता है तो यूँ ही नहीं कहा जाता, क्योंकि वह व्हाट्सएप की दुनिया नहीं है, बल्कि बौद्धिक जगत है। वहाँ तर्क हैं, तथ्य हैं, आँकड़े
हैं, उदाहरण हैं, विमर्श
है, विश्लेषण हैं।
सबसे पहले तो यह चीज़
कही गई कि गोदी मीडिया के सहारे गुजरात मॉडल नाम का सबसे बड़ा झूठ रचा गया। और इसी
गोदी मीडिया के सहारे 2014 के बाद ऐसा झूठ फैलाया गया कि नरेंद्र मोदी भारत के सबसे लोकप्रिय नेता हैं। जबकि
सच यह है कि जब तक वे बतौर गुजरात के मुख्यमंत्री उम्मीदवार विधानसभा चुनाव लड़े
और जीते, तब भी, उस दौर में भी, उन्हें और उनकी पार्टी को जितने प्रतिशत वोट शेयर मिलता था, उस आँकड़े के मुताबिक़
वे गुजरात में ही सर्वमान्य और सर्वस्वीकार्य नेता कभी नहीं रहे! 2014 के बाद 2024 तक देश में भी इसी तरह के हालात है और इसके पुख़्ता प्रमाण अलग अलग चुनावों के
नतीजे हैं।
आरोप लगाया जाता है
कि गोदी मीडिया के सहारे अपनी लोकप्रियता के फ़र्ज़ी सर्वे और प्रतिशत निकलवा कर इन्होंने
स्वयं को किसी नायक के रूप में पेश किया। लोकसभा चुनाव 2024 के प्रचार के बीच
तथा 18वीं लोकसभा के गठन के पश्चात राष्ट्रपति अभिभाषण के बाद, किसके भाषण सबसे ज़्यादा
देखे गए उसके आँकड़े आए तब नरेंद्र मोदी मुख्य विपक्षी नेता राहुल गांधी से बहुत पीछे
थे! इनकी लोकप्रियता के सर्वे या प्रतिशत विश्वसनीय नहीं थे इसका
पुख़्ता तर्क तब मिला जब वाराणसी से मोदी जैसे-तैसे करके जीत पाए। जीते भी इतने कम
अंतर से कि वे देश में 225वें क्रम पर चले गए!
542 लोकसभा सीटों में से 224 सीटों पर जीतने वाले उम्मीदवार पीएम मोदी के मुक़ाबले ज़्यादा अंतर से जीते! यानी, नरेंद्र मोदी से ज़्यादा शानदार और ज़्यादा बड़ी जीत 224 उम्मीदवारों ने दर्ज
की! नरेंद्र मोदी 225वें क्रम पर चले गए! विपक्ष के 112 सांसद और ख़ुद उनकी
ही पार्टी बीजेपी के 112 सांसद इनसे आगे निकल गए!
इतना ही नहीं, नरेंद्र मोदी बनाम
लोकप्रिय प्रधानमंत्रियों की तुलना की जाए तब भी नरेंद्र मोदी आसपास नज़र नहीं आते।
पूरे राजनीतिक जीवन में तीसरे कार्यकाल के लिए निकटतम प्रतिद्वंद्वी से जीत के
अंतर के चुनाव आयोग के आँकड़े इस बात की पुष्टि करते हैं। इंदिरा गांधी जब तीसरी बार
साल 1980 में प्रधानमंत्री बनीं, तब उन्होंने अपने नज़दीक़ी प्रतिद्वंद्वी को 49.35 प्रतिशत वोटों के अंतर से हराया था। यह भारत के राजनीतिक इतिहास
में तीसरे कार्यकाल के लिए बतौर पीएम उम्मीदवार अब तक का सबसे बड़ा प्रतिशत है। जवाहरलाल
नेहरू जब तीसरी बार प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने अपने नज़दीक़ी प्रतिद्वंद्वी को 33.45 प्रतिशत वोटों के
अंतर से हराया था। अटल बिहारी वाजपेयी लगातार तीन चुनाव जीत कर तीसरी बार प्रधानमंत्री
नहीं बने थे, किंतु उन्होंने तीसरी टर्म के दौरान अपने नज़दीक़ी प्रतिद्वंद्वी को 16.39 प्रतिशत वोटों के
अंतर से हराया था। इन सबके मुक़ाबले नरेंद्र मोदी अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी से 13.49 प्रतिशत वोटों के
अंतर से जीते। यानी, इंदिरा गांधी-जवाहरलाल नेहरू और वाजपेयी से भी कम।
बतौर प्रधानमंत्री अपनी पार्टी को जिताई गई कुल सीटों के प्रतिशत की बात हो तब
भी नरेंद्र मोदी बहुत ही पीछे नज़र आते हैं। चुनाव आयोग के आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार इस मामले में नरेंद्र मोदी 7वें क्रम पर हैं। नेहरू
3 बार, इंदिरा 2 बार और राजीव 1 बार के साथ पहले 6 क्रम पर हैं। साथ
ही इन सबके सामने नरेंद्र मोदी का प्रतिशत बेहद कम है।
नायक वह होता है जो
समाज को तथा आने वाले कल को कुछ प्रेरणात्मक दे जाता है। किंतु यह नायक झूठ बोलता है, अपनी बातों और वायदों
से पलट जाता है, ज़हरली बातें करता है, नफ़रत की राजनीति करता है, घटिया स्तर की शैली अपनाता है। ऐसे में सवाल यह बनता है कि यदि वे नायक हैं भी, तो किसके नायक हैं?
नरेंद्र मोदी ने 2024 के लोकसभा चुनावों के हर चरण में उत्तरोत्तर इसके प्रमाण दिए
हैं कि बतौर प्रधानमंत्री भाषा की आक्रामकता, ज़हरीलेपन, विभाजकता, द्वेषपूर्णता, झूठ
और भारत की सामाजिक एकता को खंडित और माहौल को दूषित करने वाले आख्यान गढ़ने में उनका
कोई मुक़ाबला नहीं है। ऊपर से विराट अहंकार।
भारतीय संस्कारों में
बड़बोलापन अच्छा नहीं माना जाता। हमारे यहाँ विनम्रता-विनय सद्गुण माने जाते
हैं। नरेंद्र मोदी को बड़बोला प्रधानमंत्री के रूप में अनेकों बार बौद्धिक जगत के लोग
उल्लेखित कर चुके हैं।
नरेंद्र मोदी भाषण
देते समय हर बार कोई न कोई संदिग्ध और अपुष्ट मुद्दा ले आते हैं और उस पर इतना
अधिक अविश्वसनीय दावा कर देते हैं कि आख़िर में किरकिरी उनकी ही होती है। वे आम जनता
को ऐसा वचन दे देते हैं, इस तरह दे देते हैं, इतना अधिक दे देते हैं, की जब वह इससे पलटते हैं तो इनके लिए लोग अशोभनीय विशेषण गढ़ने को मजबूर हो जाते
हैं।
प्रधानमंत्री बनते
समय देश से 1 साल माँगा। फिर 100 दिन माँगे। नोटबदली (नोटबंदी) के समय 50 दिन माँगे। अंत में कोविड19 के समय 13 दिन माँगे। और इन सबमें आख़िर में देश का तथा देश की जनता का क्या हाल हुआ वह
सार्वजनिक है। कोई इनसे कहता नहीं कि आप 24 घंटे में इतना कर दीजिए, किंतु वे स्वयं ही अति उत्साह में आकर कह देते हैं कि मैं इतने दिनों में ये-ये
कर दूँगा! लाज़मी है कि फिर जब होता नहीं तो आलोचना
होती है।
नरेंद्र मोदी के कुछ
यू टर्न बड़े प्रसिद्ध हैं। जैसे कि एफडीआई को इन्होंने दानव समान और देशविरोधी
बताया था, फिर एफडीआई को विकास का रास्ता बता दिया और सिंगल ब्रांड रिटेल ट्रेड में 100 फ़ीसदी तक की परमीशन
दे दी! मनमोहन सरकार के दौरान जीएसटी का सबसे पहला
विरोध गुजरात से हुआ था और तब मोदीजी ने जीएसटी को देश को बर्बाद करने वाली टैक्स प्रथा
बताया था। इन्होंने जीएसटी को ग़ैरज़रूरी तथा देश के लिए ख़तरनाक प्रवृत्ति बताते हुए
कहा था कि भारत जैसे देश में जीएसटी कभी सफल नहीं हो सकता। फिर पीएम बने तो आधी रात
को संसद खोलकर तामझाम के साथ बिना पूर्वतैयारियों के जीएसटी लागू किया और कहा कि जीएसटी
भारत को तरक्की के रास्ते पर ले जाएगा!
आधार पर इनका यू टर्न
एफडीआई और जीएसटी से भी ज़्यादा विवादित रहा। आधार को भारत के लिए ख़तरा, राजनीतिक नौटंकी आदि
बताया, कभी इशारा किया कि उनकी सरकार इस योजना को बंद कर देगी। फिर आधार को देश का एकमात्र
आधार बता दिया! मनमोहन सरकार ने जहाँ इसे वैकल्पिक रखा था, इन्होंने इसे अनिवार्य
कर दिया! सुप्रीम कोर्ट में कह दिया कि आधार न बनवाना
अपराध है। निजता का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है - मोदी सरकार ने यह तक कहा, जिस पर सुप्रीम कोर्ट
में लड़ाई लड़ी गई और निजता का अधिकार सुरक्षित बचा रहा।
भूमि अधिग्रहण बिल-2013 में जहाँ किसानों
की सहमती अनिवार्य थी, इन्होंने इस सहमती को ख़त्म कर दिया, साथ ही बिल में दूसरे विवादित संशोधन कर डाले! भारी विरोध हुआ तब जाकर इन्होंने अपने तमाम संशोधन वापस लिए। बांग्लादेश के साथ
ज़मीन की अदला-बदली का भारी विरोध करने वाले मोदीजी ने ख़ुद ही इस अदला-बदली को मंजूरी
दे दी और इसे ऐतिहासिक तक बता दिया! पेट्रोल-डीज़ल के दाम, रेल किराया, रसोई गेस के दाम बढ़ने पर आक्रामक बनने वाले मोदीजी ने ख़ुद ही दाम बढ़ाए और कहा
कि सपनों का भारत बनाने के लिए जनता को बलिदान देना होगा! पीएम बनने के बाद इन्होंने 2016 में रसोई गैस के दाम प्रति माह बढ़ाने की छूट दे दी थी, जिसका विरोध होने
के बाद इन्होंने अपनी छूट को वापस ले लिया।
अमेरिका जाकर वहाँ रिपब्लिक पार्टी के पीएम उम्मीदवार के लिए
अब की बार ट्रंप सरकार के नारे लगाने वाले नरेंद्र मोदी पहले भारतीय प्रधानमंत्री हैं! पाकिस्तान समर्थित आतंकी भारत
के महत्वपूर्ण वायुसेना संस्थान पर बड़ा हमला करते हैं तो ये पाकिस्तान की कुख्यात
आईएसआई को मंजूरी दे देते हैं कि वह भारत के उस संस्थान के भीतर घुसकर जाँच करें कि
वह आतंकी पाकिस्तान समर्थित थें या नहीं! ये पहले भारतीय प्रधानमंत्री
हैं जो हर चुनाव में पाकिस्तान को गाली देते हैं और फिर बिना पूर्व कार्यक्रम के अपने
विमान को पाकिस्तान की तरफ़ मोड़ देते हैं और वहाँ के प्रधानमंत्री की माताजी के पेर
भी छू लेते हैं! ये पहले प्रधानमंत्री हैं जो भारत की जनता को कुछ ख़ास नहीं
बल्कि यह कहते नज़र आते हैं कि मेरे चैनल को सब्सक्राइब करें! ये पहले भारतीय प्रधानमंत्री
हैं जो बिना सोचे कोई भी नीति और योजना लागू करते हैं और सवाल उठते हैं तो कहते हैं
कि अगर मेरी नियत ग़लत निकली तो मुझे फाँसी लगा देना, मुझे लात मार कर भगा देना, मुझे चौराहे पर लाकर सज़ा देना।
मनरेगा को इन्होंने
संसद के भीतर असफलता का स्मारक कहा, और फिर हर बार बजट में इस योजना के लिए अधिक से अधिक पैसा देने लगे! इन्होंने तो ईपीएफ पर भी टैक्स लगा दिया, भारी विरोध हुआ तो अंत में वापस ले लिया। 2005 में जब आरबीआई ने कुछ नोट को बंद करने की बात की तो मोदीजी
ने ही इसका कड़ा विरोध किया था और फिर ख़ुद ही अचानक से यह कर दिया! जनलोकपाल को लेकर वे पूर्व सरकार पर काफी बरसे, लेकिन फिर सरकार बनाते ही जनलोकपाल का जोकपाल कर दिया, साथ ही आरटीआई जैसे
क़ानून को कमजोर करने के आरोप इन पर लगने लगे।
100 दिन के अंदर काला धन वापस लाएँगे कहने वाले मोदीजी ने एक बार मन की बात में कह
दिया कि विदेशों में भारत का कितना काला धन है इसका सही आँकड़ा नहीं है! 15 लाख और जुमला वाली बात ने इनके ऊपर शुरूआत से ही जुमलेबाज का लैबल चिटका दिया।
एनसीटीसी के प्रस्ताव को खारिज़ करने वाले मोदीजी ने सरकार बनाने के बाद एनसीटीसी को
लागू करने की तैयारियाँ शुरू कर दी!
अलग गोरखालैंड की माँग
कर रहे लोगों का समर्थक बनने वाले मोदीजी बाद में मुकर गए! एमएसपी बढ़ाने की बातें करने वाले मोदीजी ने तीन कृषि क़ानूनों को लागू कर दिया, जिसे तुरंत ही काले
क़ानून कहे गए। देश के किसानों ने 1 साल से ज़्यादा समय तक सड़कों पर आंदोलन किया, संघर्ष किया। कथित रूप से 700 से ज़्यादा किसान मारे गए और फिर मोदीजी ने तीन कृषि क़ानूनों
को रोक दिया। क़ानून को रोकते समय भी वही अंदाज़ कि उनकी (मोदीजी की) तपस्या में कमी
रह गई और किसान समझ नहीं पाए!
संवैधानिक संस्थाओं
की सुरक्षा और स्वायत्ता की बात करने वाले मोदीजी पर अनेकों बार कहा गया कि इन्होंने
भारत की तमाम संवैधानिक व स्वायत्त संस्थाओं को इतना नुक़सान पहुंचा दिया है, जितना किसी पीएम ने
नहीं पहुंचाया होगा। सत्ता के केंद्रीकरण में वे इंदिरा गांधी से बहुत आगे निकल गए।
राष्ट्र के नाम संबोधन
वाली परंपरा को इन्होंने एक मज़ाक बना कर रख दिया। जो बात सामान्य सी होती थी, जिसे दूसरे मंत्रियों
द्वारा पूर्व सरकारें कह देती थीं, ऐसी बातों को भी वे राष्ट्र के नाम संबोधन में घंटे-घंटे भर तक उड़ेलते रहे! यहाँ भी पीएम मोदी ने राष्ट्र के नाम संबोधन में अनर्गल प्रलापों, कमज़ोर तथ्यों, अपुष्ट बातों और संदिग्ध
दावों को शामिल किया!
रोना-घोना पीएम मोदी का सबसे प्रिय विषय रहा। दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक
राष्ट्र का प्रधानमंत्री कभी भी, किसी भी मंच पर, भावुक होने के नाम पर अपने आँसू बहाता रहा! इनकी ऐसी चेष्टा की वजह से इन्हें सोशल मीडिया पर नेहा कक्कड़ या निरूपा रॉय जैसे
नामों से नवाज़ा जाने लगा।
मीडिया को मोदीजी ने
कुछ इस तरह बना दिया कि देश के इतिहास में पहली बार लोकतंत्र के इस चौथे स्तंभ को गोदी
मीडिया के नाम से पहचाना जाने लगा। बाक़ायदा उन चैनलों और एंकरों की सूची बनी, जो कथित रूप से नरेंद्र
मोदी के आगे नत मस्तक ही नहीं बल्कि दंडवत अवस्था में पाए जाते हो। एक ऐसा मीडिया देश
के सामने आया, जिसने सवाल सरकार से नहीं बल्कि विपक्ष से पूछे, जिसने सत्ता पक्ष
की लहर बनाने के लिए विवादित ढंग से काम किया!
अक्सर कहा जाता है कि नरेंद्र मोदी ने 2001 से लेकर 2024 तक
इस तरह का सार्वजनिक जीवन जिया है कि अगर मेनस्ट्रीम मीडिया को सिर्फ़ एक महीने के
लिए उस मुठ्ठी से आज़ाद किया जाए तो बीजेपी और आरएसएस, दोनों को यक़ीनन इनसे तुरंत किनारा करना होगा।
2018 में सैन्य अधिकारियों के रैंक और स्टेटस में कमी का आदेश पीएम मोदी ने दे दिया, जिसका भी भारी विरोध
हुआ और अंत में आदेश वापस लिया गया। भारत के सैन्य संस्थान पर आतंकी हमला हुआ तो इन्होंने
इतिहास में पहली बार पाकिस्तान की बदनाम संस्था आईएसआई को भारतीय संस्थान के भीतर जाकर
जाँच करने की छूट दे दी! पाकिस्तान का विरोध
करने वाले मोदीजी एक विदेशी दौरे में अचानक ही पाकिस्तान पहुँच गए, नवाज़ शरीफ़ की माताजी
के पैरों को छू भी लिया!
दूसरी तरफ़, सर्जिकल स्ट्राइक और
सैन्य कार्रवाईयों का इन्होंने घोर राजनीतिकरण किया। दशकों से स्थापित एस्कैशन लैडर
सिस्टम को ध्वस्त कर इन्होंने सैन्य कार्रवाईयों का चुनावी इस्तेमाल करना शुरू कर दिया।
सेना के विरोध के बाद भी जम्मू-कश्मीर में एनएसजी को भेज दिया, जो सालों तक वहाँ
बिना काम के बैठी रही। अंत में अग्निपथ (अग्निवीर) जैसी योजना ले आए, जिसमें कोई भी चर्चा-
सलाह- मश्विरा, कुछ भी नहीं किया गया था।
इनके कार्यकाल में
एचएएल, इसरो, डीआरडीओ जैसे संस्थानों से अनेक बौद्धिक कर्मचारियों ने विदाई ले ली। प्रिंट और
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से भी सवाल पूछने की हिम्मत करने वाले एंकरों- पत्रकारों- लेखकों
को विदाई लेनी पड़ी। मंत्रीमंडल हो, मीडिया हो, साहित्य हो, उद्योग जगत हो, अधिकारीगण हो, संवैधानिक-स्वायत्त या सरकारी-ग़ैरसरकारी संस्थान हो, लगभग तमाम जगहों पर
उन्हीं की जगह बची, जो पीएम मोदी का अत्यधिक से अत्यधिक गुणगान कर पाएँ!
अपनी करनी-कथनी की वजह से ही इनकी आलोचना होती है। लोकतंत्र
में आलोचना अति स्वाभाविक प्रक्रिया है। किंतु वे इस आलोचना को गाली दी-गाली दी, ऐसा बोलकर देश की जनता के सामने रोते रहते हैं और स्वयं को
भावुक और पीड़ीत नेता दर्शाने का फूहड़ कार्य करते हैं। जनता अपना दुख किसे सुनाए? क्योंकि ये जनता के सामने आते हैं तो जनता को अपना दुखड़ा सुनाने
लगते हैं! मन की बात करते हैं, लेकिन जन की बात नहीं सुनते। परीक्षा पे चर्चा करते हैं, लेकिन नीट परीक्षा पर किसी की नहीं सुनते। महिला खिलाड़ी देश
के लिए मैडल जीतकर आए तो उनके साथ फ़ोटू-सोटू खींचाते हैं, लेकिन यही महिलाएँ अपने साथ हुई संगीन अपराध की व्यथा सुनाती
हैं तो वे मुँह फेर लेते हैं। देश में 175-200 दौरे कर लेते हैं, विदेशों में चले जाते हैं, लेकिन मणिपुर नहीं जाते!
इनके भाषणों को, इनकी बातों को बड़बोलापन
बोला जाता है। उधर संसदीय आँकड़ों की बात निकली तो पता चला कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन
सिंह संसद में अपने 10 साल के कार्यकाल में नरेंद्र मोदी से ज़्यादा बोले थे! नरेंद्र मोदी बाहर बोलते हैं, बहुत बोलते हैं, ग़ैरज़रूरी मुद्दों पर बोलते हैं, लेकिन संसद के भीतर वे पूर्व प्रधानमंत्री से भी कम बोले हैं!
नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व
के ऊपर फेकू या जुमलेबाज के अलावा एक और लफ़्ज़ चिपका हुआ है, और वो है – आत्ममुग्धता। विवेचकों के अनुसार नरेंद्र मोदी भारत के सबसे आत्ममुग्ध राजनेता हैं। इनमें
आत्म-महत्व की भावना प्रबल है। इन्हें ध्यान और प्रशंसा की आवश्यकता
अत्यधिक मात्रा के लिए ज़रूरी है।
देश में हो या विदेश
में हो, नरेंद्र मोदी को कैमरे और स्वयं के मध्य दूसरा कुछ नहीं चाहिए! और यह बात वे अनेकों बार साबित कर चुके हैं, दिखा चुके हैं। टीवी हो, न्यूज़ चैनल हो, एंटरटेनमेंट चैनल हो, अख़बार हो, डिजिटल मीडिया हो, सड़कें हो, पेट्रोल पंप हो, चौराहे हो, सरकारी बस हो, शिक्षा संस्थान हो, वहाँ के साहित्य हो, वैक्सीन सर्टिफ़िकेट हो या दूसरे सर्टिफ़िकेट हो, कुछ भी हो, इन्हें अपनी फ़ोटू
हर स्थान पर चाहिए ही चाहिए! शर्त यह कि अपनी ही
चाहिए, साथ में कोई दूसरा चेहरा नहीं होना चाहिए।
भारतीय इतिहास में नरेंद्र मोदी शायद पहले व्यक्ति होंगे जो
कैमरा, मीडिया, पत्रकार
और सुरक्षा कर्मी लेकर साधना करने जाते हैं, साथ ही वो साधना कर रहे हैं उसका प्रसारण भी कराते हैं!!! हिन्दू संस्कृति की उस एकांत
साधना को नरेंद्र मोदी ने प्रोपेगेंडा में बदला है।
हिन्दू संस्कृति और
हिन्दू इतिहास में आध्यात्मिकता एक गंभीर विषय है। आध्यात्मिक व्यक्ति झूठा नहीं होता, वह बड़बोला नहीं होता, वह आत्ममुग्ध नहीं
होता, ज़हरीला नहीं होता, आक्रामक नहीं होता, द्वेष धारण करने वाला नहीं होता, शांत-सौम्य-सच्ची और उच्च स्तर की वाणी बोलने वाला होता है। सबसे महत्वपूर्ण बात
यह है कि आध्यात्मिक व्यक्ति स्वयं को या स्वंय की आध्यात्मिकता को कभी भी प्रदर्शित
नहीं करता, उसका प्रचार नहीं करता। वह तो स्वंय को छिपाता है।
जो व्यक्ति स्वयं को
आध्यात्मिक बना कर उसका विज्ञापन करता हो उसके लिए 'मैं' और अपने नाम का स्वयं ही इतना ऐसा प्रयोग असामान्य अहंकार ही माना जाएगा। शास्त्र
आत्म-प्रशंसा को आत्महत्या कहते हैं। राम-रावण युद्ध और महाभारत में युद्ध के बीच
अर्जुन-युधिष्ठिर टकराव को लेकर इसके बारे में रोचक कथा है। आध्यात्मिक व्यक्ति
स्वयं को छिपाता है। हर संभव वस्तु और अवसर पर अपनी ही छवि देखने-दिखाने का विराट
आत्ममोह नहीं दिखाता। आत्मगोपन, मौन, एकांतप्रियता, आध्यात्मिक व्यक्ति के सहज लक्षण हैं।
गीता (अध्याय 13, श्लोक 10) में श्रीकृष्ण भक्त
के लक्षण बताते हैं - विविक्तदेशसेवित्वम् अरतिर्जनसंसदि। (एकान्त और निर्जन शुद्ध
स्थान पर रहना और लोगों की भीड़ में अ-रति यानी विरक्ति)
अध्यात्म और शक्ति
लिप्सा परस्पर विरोधी हैं। राजसत्ता की ऐसी लपलपाती प्रबल पिपासा से भरा व्यक्ति आध्यात्मिक
हो ही नहीं सकता। उसका आध्यात्मिक होने का प्रदर्शन करना शुद्ध नाटक है, एक राजनीतिक प्रोपेगेंडा
है। हाँ, वह सतही तौर पर आस्थावान ज़रूर होगा। आध्यात्मिक व्यक्ति इतना वैभव-प्रिय, अपने वस्त्रों अपनी
छवि को लेकर इतना सावधान नहीं होता।
नरेंद्र मोदी की आध्यात्मिकता
और साधना में आत्ममुग्धता – आत्मप्रचार - आत्मप्रशंसा के सिवा दूसरा कुछ मिलता या दिखता नहीं है। और इसीलिए
कहा जाता है कि इन्होंने हिन्दू संस्कृति की साधना और आध्यात्मकिता को प्रोपेगेंडा
में बदल दिया है।
यह केवल दिखने-दिखाने
का, छवि का, ही मामला
होता तो चल जाता। किंतु यह मनोविज्ञान जब शक्ति और सत्ता के शिखर पर सक्रिय होता है
तो सत्ता की शैली और समूचे आचरण की संस्कृति बन जाता है। तब सत्तासीन व्यक्ति अपनी
ओर देखने वाली हर आँख में भक्ति – समर्पण – कायरता – भय – प्रशंसा - स्तुति देखना चाहता है। उनका अभ्यस्त हो जाता है। एक सहज समानता और स्वाभिमान
के साथ देखती आँखें और भंगिमा उसे अस्तव्यस्त और विचलित करती हैं। क्रुद्ध करती हैं।
ऐसी आँखें, ऐसी बातें दंड पाती हैं। तब असहमति अपराध बन जाती है। विरोध शत्रुता की तरह लिया
जाता है। दोनों दबाए जाते हैं। संवाद असंभव हो जाता है। प्रश्न धृष्टता बन जाते हैं।
अधिकारों की माँग चुनौती की उद्दंडता की तरह देखी जाती है।
ऐसा शासक नरेंद्र मोदी
की तरह ही पहले तो उन्हें ही मंत्री बनाता है, जिसके पास लोकप्रियता और लोकसमर्थन ना हो। क्योंकि ऐसा व्यक्ति स्वयं को असुरक्षित
महसूस करता रहता है और इसीलिए वह नहीं चाहता कि दूर दूर तक कोई भी थोड़ा सा भी लोकप्रिय
बन पाएँ, या लोकसमर्थन हाँसिल कर पाए।
फिर वह शासक अपने मंत्रिमंडलीय
सहयोगियों तक को अपने से नीचे कक्षा के विद्यार्थियों की तरह बिठाता है। उन्हें खड़े
होकर अपना रिपोर्ट कार्ड पेश करना पड़ता है। उन्हें डाँट पड़ती है। मंत्रिमंडल की बैठकों
में खुली, निर्भय मंत्रणा और संवाद नहीं होता। एक या दो बोलते हैं। बाक़ी सुनते हैं।
झूठ बोलने के आदती नरेंद्र मोदी इतना झूठ बोल चुके हैं कि अब
तो ख़ुद उन्हें उनका झूठ सच लगता होगा। और इसी विचित्र आदत के चलते वे बार-बार, लगातार, झूठ
और हास्यास्पद बातें करते रहते हैं। वे आसानी से, बड़ी सहजता के साथ, संदिग्ध और अपुष्ट दावा कर देते हैं। और यह वे बार-बार करते
हैं।
नरेंद्र मोदी के द्वारा
बोले गए झूठ की सूची इतनी लंबी है कि उस पर बहुत सारे लेख लिखे भी गए हैं, और लिखे भी जाएँगे।
नरेंद्र मोदी, बीजेपी और आरएसएस की तार्किक और तथ्यात्मक आलोचक व पत्रकार गौरी लंकेश, जिनकी कथित रूप से
इसी आलोचनाओं के चलते हत्या कर दी गई थी, उन्होंने नरेंद्र मोदी के बारे में कहा था कि यह आदमी जब भी अपना मुँह खोलता है
तो उस मुँह से सिर्फ़ झूठ ही निकलता है।
जवाहरलाल नेहरू, महात्मा गाँधी, सरदार पटेल, शहीद भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस समेत
तमाम नायकों पर नरेंद्र मोदी अनेकों बार सफ़ेद झूठ बोल चुके हैं। इतिहास को तो वे आलू-मटर
की तरह छिलते नज़र आते हैं!
सामान्य सी सभा हो, चुनावी भाषण हो, राष्ट्र के नाम संबोधन
हो, संसद हो या लाल क़िला
हो, वे हर जगह से - हर
मंच से अपुष्ट और संदिग्ध बयान दे चुके हैं। भारत का पासपोर्ट, मेट्रो ट्रेन का पहला
यात्री, चेतक घोड़ा, सिकंदर, नगला फतेला गाँव, सीमेंट की बोरी के दाम, एलईडी बल्ब के दाम, सी-प्लेन की सवारी का दावा, ईद और दिवाली पर बिजली, कानपुर ट्रेन हादसा, ईमेल, डिजिटल कैमरा, मोबाइल फ़ोन, बादल और राडार, नाली से बनता गैस... इनकी यह सूची बहुत लंबी है! इतिहास हो या अर्थतंत्र, पीएम मोदी के दावे-बातें सदैव बिना तथ्यों और बिना तर्कों से लबालब पाए जाते हैं।
सोशल मीडिया के पिछले
10 वर्षों का इतिहास
दर्शाता है कि नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी, दोनों में स्पर्घा लगी है कि दोनों में से किस पर सबसे ज़्यादा चुटकुले बने हैं, मज़ाक उड़ा है। कभी
मोदी आगे निकलते हैं, कभी राहुल। एक तथ्य यह भी दर्शाता है कि राहुल गांधी पर चुटकुले बनाने के लिए
एडिट करना पड़ता है, मोदीजी में यह नहीं करना पड़ता! वहाँ ऑरिजिनल चल जाता है!
नरेंद्र मोदी हिन्दी
और अंग्रेज़ी, दोनों में कमज़ोर हैं। अंग्रेज़ी में विशेष रूप से। सोशल मीडिया पर इनकी विचित्र
और हास्यास्पद अंग्रेज़ी के अनेक ऑरिजिनल वीडियो मज़ाक के रूप में मौजूद हैं। भाषणों
में इनकी ग़लतियाँ, इनके आँकड़ें, इनके दावे, इनका ज्ञान इनके थोकबंध चुटकुले बनाने में सहायक है।
देश की सर्वोच्च अदालत
और चुनाव आयोग, दोनों का स्पष्ट आदेश है कि चुनाव प्रचार सांप्रदायिक नहीं होना चाहिए। नरेंद्र
मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं और उन्हें इसका पालन कर देश की राजनीति और देश के लोकतंत्र
को मजबूत करना चाहिए। किंतु वे ख़ुद सांप्रदायिक चुनाव प्रचार करते हैं। वे ख़ुद जाति, धर्म, संप्रदाय, हिन्दू, मुस्लिम वाले भाषण
निरंतर देते रहते हैं।
दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 के दौरान इतना ज़हरीला प्रचार हुआ कि लिखना पड़ा कि मोदीजी, चाहे तो आप 400 सीटें
ले लीजिए, किंतु भाषा तो अच्छी दे दीजिए। नरेंद्र मोदी बतौर प्रधानमंत्री
इतनी हास्यास्पद- घृणास्पद- नफ़रती- सांप्रदायिक- अतार्किक- झूठी- अपुष्ट बातें करते
हैं, जितनी आज़ाद भारत के इतिहास में किसी प्रधानमंत्री ने नहीं
की होगी।
नरेंद्र मोदी नोटबंदी
का विरोध कर रहे विपक्ष को पाकिस्तानी, आतंकवादी जैसा कह चुके हैं! इनकी सरकारी नीतियों-योजनाओं
की आलोचना करने वालों को वे देशद्रोही सरीखा गिनवा देते हैं! वे अपने प्रतिद्वंदी नेताओं के लिए इस तरह की आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल कर चुके
हैं, जैसी भाषा गली-मोहल्लों के व्हाट्सएप पर चलती है! इनके भाषणों में, इनके जवाबों में तर्क नहीं होते, तथ्य नहीं होते, बल्कि किसी नगरसेवा सदन के छोटे कार्यकर्ता सरीखी निम्न स्तर की भाषा होती है!
वे विदेश यात्रा पर
जाते हैं और वहाँ भारत की पूर्व सरकारों की तथा पूर्व और वर्तमान विपक्षी नेताओं की
आलोचना करते हैं तो ठीक होता है, किंतु कोई भारत में ही उनकी सरकार की या उनकी आलोचना कर दें तो वह देशद्रोह और
देश को तोड़ने वाली बात! वे एक ऐसा अलोकतांत्रिक
माहौल तैयार कर चुके हैं जहाँ आलोचना और सवालों को देश की एकता, अखंडता और संस्कृति
से जोड़ दिया जाता है। यदि विदेश से आलोचना आती है तो देश के ख़िलाफ़ साज़िश।
2020 का दिल्ली विधानसभा चुनाव, जो घोर नफ़रती और सांप्रदायिक भाषणों से लबालब था, में बीजेपी के अमित
शाह समेत तमाम नेताओं ने अति नफ़रती, अति सांप्रदायिक और अति विवादित भाषण किए। पीएम मोदी ने भी इस दौरान एकाध-दो बार
संदिग्ध-अपुष्ट और विवादित भाषण दिए। शाहीन बाग आंदोलन को सांप्रदायिक रंग देने का
शुभारंभ पीएम मोदी ने ही किया।
2024 लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान वे नरेंद्र मोदी ही थे, जिन्होंने बीजेपी
का चुनावी प्रचार हिन्दू-मुस्लिम के ईर्दगिर्द ही रखा। अनुच्छेद 370 और नोटबंदी (नोटबदली)
को मोदीजी ने याद तक नहीं किया! अपने 10 सालों की सफरगाथा, कथित सफलताएँ, कथित सिद्धियाँ, कुछ भी इनके प्रचार
में नहीं था! बस हिन्दू- मुसलमान- भैंस- मंगलसूत्र- मुजरा-
पाकिस्तान के आसपास ही वे ठहरे रहे!
2024 के लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान इनके भाषणों का विश्लेषण दिखाता है कि नरेंद्र
मोदी ने मुसलमानों को टारगेट करने वाले सबसे ज़्यादा भाषण उत्तर भारत और ख़ासकर यूपी
में दिए।
2024 के लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान विपक्ष के मुख्य नेताओं के भाषण बेरोजगारी, ग़रीबी, महंगाई, अग्निवीर, अन्य योजनाओं की विफलता, ईडी-सीबीआई जैसी संस्थाओं
का ग़लत इस्तेमाल, विपक्षी नेताओं की ग़लत गिरफ़्तारियाँ, संविधान की सुरक्षा, लोकतंत्र की रक्षा, किसान आंदोलन, महिला खिलाड़ियों का आंदोलन, नोटबंदी, जीएसटी, अदानी-अंबानी, जैसे मुद्दों पर था। और इसकी काट के लिए नरेंद्र मोदी ने एक ही रास्ता चुना!
इस लोकसभा चुनाव प्रचार में नरेंद्र मोदी ने अपने भाषणों में
जो कहा वह घोर हास्यास्पद भी था, घोर
अतार्किक भी था, नफ़रती भी था, सांप्रदायिक
भी था। नरेंद्र मोदी ने चुनाव प्रचार में यहाँ तक कहा कि अगर कांग्रेस सत्ता में आ
गई तो वह आपसे सब कुछ छीनकर मुसलमानों को दे देगी, आपकी दो भैंस में से एक भैंस दे देगी, आपका मकान दे देगी, आपका सोना दे देगी, आपका मंगलसूत्र छीन लेगी, राम मंदिर को ताला लगा देगी, राम मंदिर पर बुलडोजर चला देगी...! बतौर प्रधानमंत्री मोदीजी
द्वारा दिए गए निहायत तर्कहीन और घोर हास्यास्पद बयानों की सूची बड़ी लंबी है।
इनके अपने भाषण, इनके दावे इस कदर
हास्यास्पद होते हैं कि उनके अपने भाषण उनके सामने सूचीबद्ध कर दिए जाए, तो वे ख़ुद ही अपने
दावों को किसी दूसरे भाषण में काट रहे होते हैं! सोशल मीडिया तंज कसने को मजबूर हो जाता है कि जो व्यक्ति 72 की उम्र में 18-18 घंटे काम कर सकता
है, वह जवानी में भीख क्यों माँग रहा था? वे हर चीज़ पर अपना
नाम चिपकाने के बहुत अधिक आदि रहे हैं! इसी वजह से इन पर लिखा जाने लगा कि एक दिन आर्यभट्ट बैठे बैठे मोदी साहब के 10 सालों को गिन रहे
थे, बस यहीँ से शून्य
की खोज हुई।
बौद्धिक जगत तर्कों, तथ्यों, आँकड़ों आदि की बात
करता है, लेकिन फिर वह भी कहने को बाध्य हो जाता है कि नरेंद्र मोदी सरकार उस व्यक्ति
की तरह है, जो यह कहकर हर बार पैसे गटक जाता था कि मेरी बीवी अस्पताल में है। फिर पता चला
कि उसकी बीवी नर्स है। बताओ! सवाल किए तो वह कह रहा है कि मैंने तो वही कहकर पैसे माँगे जो सच था, मेरी बीबी अस्पताल
में ही है न?
इन्होंने मीडिया को
मुठ्ठी में कर भारतीय राजनीति में एक ऐसा भक्त गण तैयार किया है, जिसकी पूर्व में कोई
मिशाल नहीं मिलती। इस भक्त गण के बीच तर्क- तथ्य- आँकड़े- सत्य कुछ भी मायने नहीं रखता।
यूँ तो आप बीजेपी के समर्थक या मोदी के भक्त पर भरोसा कर सकते हैं! क्योंकि उनका स्तर कितना है यह सीधे सीधे पता चल जाता है। किंतु आरएसएस के स्वयंसेवक
रहस्यमयी होते हैं।
इन्होंने बीजेपी को
वॉशिंग मशीन के रूप में प्रसिद्ध करने में भूमिका निभाई। ग़ैरबीजेपी दलों के
तमाम कथित भ्रष्टाचारी- दागदार- आरोपी नेताओं को अपनी पार्टी बीजेपी में शामिल कर लिया! जो शामिल नहीं हुए उनके पीछे कथित रूप से ईडी- सीबीआई- आईटी जैसी संस्थाओं को
लगा दिया गया। जिसे इन्होंने आतंकवादी पार्टी कहा था उसके साथ कश्मीर में गठबंघन करके
सरकार भी चला ली!
देश
के पीएम मोदी ने सरेआम कुछ ऐसा कहा कि उनके मित्र और विरोधी अचंभित हुए, कहा – अदानी
अंबानी ने टेम्पो भर के पैसा कांग्रेस को पहुंचाया
8 मई 2024 के दिन पीएम मोदी ने अपने विरोधियों ही नहीं बल्कि अपने मित्रों तक को अचंभित
कर दिया। यूँ तो नरेंद्र मोदी तथा उद्योगपति गौतम अदानी और मुकेश अंबानी के कथित रिश्ते
को लेकर विपक्षी नेता राहुल गांधी सबसे ज़्यादा मुखर रहते हैं। किंतु इस बार स्वयं
पीएम मोदी ने इन दोनों उद्योगपतियों को लेकर कुछ ऐसा बोला कि सारे लोग विस्मय से पीएम
को देखने लगे।
पीएम मोदी ने इस दिन
तेलंगाना के करीमनगर में एक चुनावी सभा में कहा, "जब से चुनाव घोषित हुआ है, इन्होंने (राहुल गांधी) अंबानी, अदानी को गाली देना बंद कर दिया है।" राहुल गांधी की तरफ़ इशारा करते हुए
पीएम मोदी बोले, "मैं आज तेलंगाना की धरती से पूछना चाहता हूँ कि शहज़ादे घोषित करें कि चुनाव में
ये अंबानी, अदानी से कितना माल उठाया है? काले धन के कितने बोरे भरकर मारे हैं? आज टेम्पो भरकर नोट कांग्रेस के लिए पहुंची है क्या? ऐसी कौन सी डील हुई
कि रातोरात अंबानी-अदानी को गाली देना बंद हो गया?”
देश के सर्वोच्च संवैधानिक
पद पर रहते हुए एक पीएम का यह भाषण ग़ज़ब स्थिति ही कह लीजिए। पीएम ने अपने भाषण के
ज़रिए सिर्फ़ विपक्षी नेता राहुल गांधी ही नहीं बल्कि देश को दो बड़े उद्योगपतियों
तक को एक तरीक़े से सार्वजनिक रूप से कटघरे में खड़ा किया। उपरांत पीएम मोदी के भाषण
में शब्दों का चयन कुछ ऐसा था, जैसे कि कोई छोटा-मोटा कॉर्पोरेटर किसी नुक्कड़ सभा में इस्तेमाल कर रहा हो! कितना माल उठाया है, कितने बोरे मारे हैं, टेम्पो भरकर नोट, सरीखे शब्दों का एक पीएम के मुँह से निकलना सामान्य बात नहीं थी।
पीएम मोदी के बयान
में पहला आरोप यह कि राहुल गांधी चुनाव घोषित होने के बाद अंबानी अदानी पर बोल नहीं
रहे यह भी सफ़ेद झूठ था। यूँ तो पीएम ने गाली शब्द का इस्तेमाल किया था, जबकि राहुल गांधी
ने कभी अपने आरोपों में गाली श्रेणी में रखे जाए ऐसे किसी शब्द का इस्तेमाल नहीं किया
था। पीएम मोदी का कहना यह था कि चुनाव घोषित होने के बाद राहुल गांधी ने अदानी-अंबानी
को लेकर कुछ नहीं बोला। पीएम मोदी ने जिस दिन यह कहा उसी सप्ताह को देखे तो झारखंड
में 7 मई के दिन भाषण में, 6 मई को मध्य प्रदेश के खरगौन रैली में, उसी दिन रतलाम में प्रेस वार्ता में, 4 मई को दिल्ली में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में, 2 मई को कर्नाटक के शिमोगा में, राहुल गांधी ने पीएम मोदी- अंबानी- अदानी को लेकर खुलकर हमले किए थे, आरोप लगाए थे। इससे
पहले भी वे लगातार इस मुद्दे पर बोलते रहे हैं।
एक बात यह भी कि देश
के पीएम सार्वजनिक रूप से जिस बात को कह रहे थे, इससे उलट जाकर शहर-शहर जाकर रैलियों में कहते नज़र आते थे कि
उनकी सरकार ने काले धन और भ्रष्टाचार का नाश कर दिया है। अरे मोदीजी, आप देश के पीएम हैं, आपके पास इतनी गंभीर
और विस्फोटक जानकारी उपलब्ध है कि देश के उद्योगपति बोरा भरकर माल दे रहे हैं, पैसे से लदे टेम्पो
इघर से उघर घुम रहे हैं, तो ईडी को भेज दीजिए, जाँच कराइए।
हालाँकि उसी दिन शाम
को राहुल गांधी ने एक वीडियो जारी किया, जिसका मौका स्वयं पीएम ने उन्हें दिया था।
इस दिन शाम को जारी वीडियो में राहुल गांधी ने कहा, "नमस्कार मोदीजी, थोड़ा सा घबरा गए क्या? आमतौर पर आप बंद कमरों में अदानी और अंबानी जी की बात करते हो। आपने पहली बार पब्लिक
में अंबानी, अदानी बोला। आपको ये भी मालूम है कि ये टेम्पो में पैसा देते हैं। निजी अनुभव
है क्या?" वीडियो में राहुल आगे कहते हैं,
"एक काम कीजिए। सीबीआई और ईडी को इनके पास भेजिए। पूरी जाँच करवाइए।
जल्दी से जल्दी करवाइए। घबराइए मत मोदीजी। मैं देश को फिर दोहराकर कह रहा हूँ कि जितना
पैसा नरेंद्र मोदीजी ने इनको दिया है न.. उतना ही पैसा हम हिंदुस्तान के ग़रीबों को
देने जा रहे हैं। इन्होंने 22 अरबपति बनाए हैं, हम करोड़ों लखपति बनाएंगे।"
स्वाभाविक है कि देश
के पीएम का किसी सार्वजनिक सभा में ऐसा भाषण देना, गली-मोहल्लो वाले शब्दों का चयन करना, देश के दो बड़े उद्योगपतियों
पर सरेआम एक पीएम के तौर पर ऐसे अतिगंभीर और संगीन आरोप लगाना, यह वाक़ई अचंभित करने
वाला क्रम था।
भारत
के सबसे बड़े दुष्कर्म काँड के आरोपी प्रज्वल रेवन्ना के लिए प्रचार करने के लिए छप्पन
की छाती मोदीजी में होगी, महिला
खिलाड़ियों का आंदोलन और बीजेपी सांसद वृजभूषण वाले काँड में मौन रहने की महानता इस
अवतार में होगी, किंतु
इससे इनका ही सार्वजनिक जीवन सवालों के घेरे में आता है
यूँ तो कुछ सालों से
खुलकर कहा जाने लगा है कि महिला सम्मान और भारतीय संस्कृति में महिलाओं के स्थान के
बारे में चिकनी चुपड़ी बातें करने वाली बीजेपी का ख़ुद का महिला सम्मान का रिकॉर्ड
घृणास्पद है और सीमाओं से परे जाकर निंदनीय है।
2024 के लोकसभा चुनाव प्रचार के बीच कर्नाटक के हासन से सांसद प्रज्वल रेवन्ना का एक
बड़ा काँड सामने आया, जो महिलाओं के यौन शोषण से संबंधित था। पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा के
पोते रेवन्ना इस समय जनता दल सेकुलर के नेता हैं और इनकी पार्टी के साथ मोदी-शाह की
बीजेपी ने गठबंधन किया है। रेवन्ना का यह कथित अपराध छोटी-मोटी श्रेणी का नहीं था।
धीरे धीरे जब पर्ते खुली तो पता चला कि भारत में किसी नेता ने इतना बड़ा महिला संबंधित
गुनाह नहीं किया होगा और फिर रेवन्ना का यह काँड दुनिया के सबसे बड़े महिला यौन शोषण
अपराधों की सूची में गिना जाने लगा।
क्योंकि प्रज्वल रेवन्ना
पर एक-दो नहीं, एक सौ या दो सौ नहीं बल्कि एक हज़ार से ज़्यादा महिलाओं के यौन शोषण के आरोप लगे! आरोप लगे कि इसने हज़ारों बार सैकड़ों महिलाओं का यौन शोषण किया और उसके वीडियो
भी बना रखे थे! इन दिनों 3000 वीडियो क्लिप वायरल
हुए, जिसमें कथित तौर पर रेवन्ना ज़्यादातर वीडियों में नज़र आ रहे थे! इनमें से सैकड़ों वीडियो सार्वजनिक जीवन में भी लाए गए और लोग एक दूसरे को भेजने
लगे। बाद में मीडिया चर्चा के दौरान स्थानिक पत्रकार यह बताते नज़र आए कि फलाँ फलाँ
गाँव या इलाक़े में अनेक महिलाएँ, उनका परिवार घर छोड़ कहीं चले गए हैं। कितनों के घर टूटे होंगे इसका अंदाज़ा किसी
को नहीं था।
और ऐसे अपराधी के लिए
देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसी चुनावी प्रचार के दौरान सार्वजनिक सभा कर लोगों
से अपील कर चुके थे कि प्रज्वल रेवन्ना को वोट देकर उन्हें जीताएँ! पीएम की इस रैली के बाद रेवन्ना को लेकर वीडियो सामने आए और भारत का सबसे बड़ा
दुष्कर्म काँड सामने आया। किंतु बीजेपी और मोदीजी के समर्थकों की यह दलील कि रेवन्ना
के लिए चुनाव प्रचार करते समय मोदीजी को यह पता नहीं था, यह दलील कमज़ोर है।
देश के पीएम तो राहुल गांधी, अदानी, अंबानी, मनमोहन सिंह, पाकिस्तान की मीटिंग, सब जानते हैं तो फिर रेवन्ना के करतूतों के बारे में इन्हें अंदाज़ा नहीं होगा
यह सोचना बचपना है।
महिला पहलवानों का
वह आंदोलन पीएम मोदी की नीति और नियत को हमेशा के लिए खोल गया। देश की वह बेटियाँ जब
मैडल जीत कर भारत लौटी तो पीएम मोदी ने उन बेटियों के प्रधानमंत्री निवास पर बुलाया, बधाई दी और फ़ोटू
सोटू खिंचाए। उन तस्वीरों को सोशल मीडिया पर पोस्ट तो ऐसे किया, जैसे कि उन पहलवानों
को ट्रेनिंग उन्होंने ही दी हो।
जब इन्हीं महिला खिलाड़ियों
ने उनकी पार्टी के साथ जुड़े दबंग नेता, भारतीय कुश्ती महासंघ के तत्कालीन अध्यक्ष और भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह के
ख़िलाफ़ अति गंभीर शिकायतें की, महीनों तक आंदोलन किया, प्रधानमंत्री एक लफ्ज़ तक नहीं बोले! यह सदैव याद रखा जाना चाहिए कि महिला पहलवानों की शिकायत को लेकर पुलिस एफ़आईआर
दर्ज करें, यह आदेश देश के सर्वोच्च न्यायालय को देना पड़ा था!!!
महिला पहलवान शिकायतकर्ताओं
ने भूषण पर सहमति के बिना स्तनों और नाभि को छूने, पीछा करने, डराने-धमकाने और पेशेवर मदद के बदले में यौन सहायता की माँग करने का आरोप लगाए।
नोट यह भी करें कि इस बाबत शिकायत केंद्र सरकार के संबंधित मंत्रालय को भी की गई थी।
यानी कि जनवरी 2023 के आंदोलन से पहले। महिला पहलवानों को कहीं पर सुना नहीं गया। आख़िरकार देश की
इन बेटियों ने जनवरी से लेकर इस साल के मध्य तक दिल्ली में सड़क पर अपनी ऐतिहासिक लड़ाई
लड़ी। ओलंपिक पदक विजेता विनेश फोगाट, साक्षी मलिक, अंशु मलिक, बजरंग पुनिया सहित तीस भारतीय पहलवानों ने डब्ल्यूएफआई के अध्यक्ष बृज भूषण शरण
सिंह और उसके कोचों पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न करने का आरोप लगाते हुए धरना दिया।
जनवरी से अप्रैल तक
का समय गुज़र गया! भूषण के ख़िलाफ़ सात अलग अलग पहलवानों की
शिकायतें फिर एक बार सुनी नहीं गई! दिल्ली पुलिस पर निष्क्रियता और एफ़आईआर दर्ज करने से इनकार करने का आरोप लगाया
गया। शिखर धवन के टूटे अँगूठे पर ट्वीट करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह अब तक चुप थे! महिला पहलवानों में से एक साक्षी मलिक ने कहा, "वह प्रधानमंत्री मोदी की चुप्पी के कारण आहत है।" महिला पहलवानों को
आंदोलन करते करते सुप्रीम कोर्ट जाना पड़ा और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद एफ़आईआर
हुई!
किंतु जिन घाराओं के
तहत मामला दर्ज किया गया, अमूमन दूसरे आरोपियों के साथ जो होता है उनमें से कुछ भी इस दबंग आरोपी के ख़िलाफ़
नहीं हुआ! पॉक्सो एक्ट लगा था, लेकिन उस संवेदनशील
घारा का पालन होता हुआ दिखाई नहीं दिया!
महिला सम्मान की बातें
करने वाले, महिला पहलवानों के मैडल के साथ फ़ोटू खिंचाने वाले पीएम मोदी चुप रहे! देश को नयी संसद के अनावरण का विशाल आयोजन किया और उसी दिन देश की इन बेटियों
को सड़क पर घसीटा गया, उनके मुँह पर जूते रगड़ गए, अपमानजक तरीक़े से इन महिला पहलवानों को खीँचा गया! केंद्र सरकार के नियंत्रण में आने वाली दिल्ली पुलिस ने इन्हें बलपूर्वक जंतर-मंतर
से हटा दिया! पीएम मोदी देश के ऐसे पहले प्रधानमंत्री
बन गए, जिन्होंने अपने देश की बेटियों को उनके मैडल माँ गंगा की गौद में बहाने के कदम
तक पहुंचा दिया था!
पीएम
मोदी द्वारा क्रिकेट टीम में भी हिन्दू-मुसलमान और राम मंदिर पर कांग्रेस का बाबरी
ताला...
पीएम मोदी ने 7 मई 2024 को मध्य प्रदेश के
धार में बड़ा विवादास्पद बयान दिया। मोदी ने धार की रैली में कहा, "कांग्रेस पार्टी का
इरादा अल्पसंख्यकों को खेल में महत्व देना है। इसका मतलब है कि धर्म के आधार पर कांग्रेस
तय करेगी कि क्रिकेट टीम में कौन रहेगा और कौन नहीं। यही सब करना था तो 1947 में ही भारत का नामो
निशान मिटा देना था...।"
बतौर पीएम अपने चुनाव
प्रचार में इस तरह की हास्यास्पद, अतार्किक और सांप्रदायिक बात करने के बाद भी वे नहीं ठहरे! इसी धार की रैली में मोदी ने एक और विवादास्पद बात कही। मोदी ने कहा, "वह भाजपा के नेतृत्व
वाले एनडीए के लिए 400 सीटों का जनादेश चाहते हैं ताकि यह तय किया जा सके कि कांग्रेस कश्मीर में धारा
370 वापस न लाए और अयोध्या
में राम मंदिर पर 'बाबरी ताला' न लगाए।"
पीएम मोदी ने यहाँ
पर बाबरी ताला शब्द पर जोर दिया। जिस मंदिर का उद्घाटन हो चुका हो, ख़ास करके जिस पर
देश का सर्वोच्च न्यायालय अपना फ़ैसला सुना चुका हो, जिस जगह के साथ हिन्दुओं की आस्था जुड़ी हो, उस पर कोई भी राजनीतिक
दल ताला क्यों लगाएगा? कोई भी दल ये कर सकता है? सवाल यह भी कोई भी दल ऐसी मूर्खता करेगा? आसान सा जवाब है कि कर भी नहीं सकता और करेगा भी नहीं।
अपनी उपलब्धियों और
योजनाओं पर करोड़ों ख़र्च करने वाले पीएम मोदी चुनाव में किसी उपलब्धि, किसी योजना पर बात
करने की जगह ऐसी बेतुकी बातें कर रहे थे! क्यों? इस पर सोचना चाहिए।
पीएम
मोदी के बाबरी ताले को अमित शाह ने दोहराया,
किसानों की मौतों के आरोपी के पिता के लिए चुनावी प्रचार किया
पीएम मोदी के बाबरी
ताले वाली बात केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने अलग संदर्भ के साथ अगले दिन लखीमपुर
खीरी में दोहराई। लखीमपुर खीरी, वही लोकसभा क्षेत्र, जहाँ से अजय मिश्रा टेनी चुनाव लड़ रहे थे। उनके बेटे आशीष मिश्रा पर ऐतिहासिक
किसान आंदोलन के दौरान किसानों पर जीप चढ़ाकर उन्हें रौंदने का आरोप है। अमित शाह उन्हीं
टेनी का प्रचार करने आए थे!
अमित शाह ने कहा, "अगर ग़लती से भी ये
दो शहजादे आ गए तो राम मंदिर पर बाबरी ताला लगवा देंगे।" अमित शाह को अपना यह
जुमला इतना पसंद आया कि अपने वीडियो बयान को सोशल मीडिया पर भी शेयर किया।
पीएम मोदी ने पहली
बार मुसलमानों की आड़ लेकर कांग्रेस पर हमला नहीं किया था। 2014 से लेकर अब तक जितने
भी चुनाव हुए हैं, उसमें पीएम मोदी ने ऐसे ही कुतर्को, ऐसी ही सांप्रदायिकता वाले भाषण दिए हैं। जिसमें ख़ास तौर पर दिल्ली विधानसभा
चुनाव का ज़िक्र हम ऊपर कर चुके हैं। लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में यह इतनी सामान्य बात हो गई, जैसे कि सुप्रीम कोर्ट
और चुनाव आयोग ने छूट दे दी हो कि सांप्रदायिक भाषण किए जा सकते हैं।
आपकी
दो भैंस हैं उनमें से एक भैंस कांग्रेस मुसलमानों को दे देगी – पीएम मोदी का निहायत हास्यास्पद और तर्कहीन भाषण
पीएम मोदी ने एक ऐसा
भाषण दिया, जिसे लेकर उनकी बहुत किरकिरी हुई। 1 मई 2024 को गुजरात के बनासकांठा में मोदी ने कहा,
"यदि आपके पास दो भैंस हैं, तो सत्ता में आने पर कांग्रेस एक छीन कर मुसलमानों को दे देगी।
कांग्रेस देश के लोगों को लिखित रूप में दे कि वो धर्म-आधारित आरक्षण लागू नहीं करेगी।"
2 मई 2024 को गुजरात के आनंद जिले में पीएम ने कहा, "मैं भव्य परिवार के राजकुमार (राहुल गांधी) और पूरे कांग्रेस तंत्र को चुनौती देता
हूँ... कांग्रेस और उसके सदस्यों को यह लिखित में देना होगा कि वे संविधान बदलने के
बाद धर्म के आधार पर मुसलमानों को आरक्षण नहीं देंगे, वे देश को नहीं बांटेंगे।"
गुजरात की ही रैलियों
में मोदी ने 2 मई 2024 को यह भी कहा, "इंडिया गठबंधन के नेता मुस्लिम मतदाताओं से 'वोट जिहाद' करने की अपील कर रहे हैं। इंडिया गठबंधन का साफ़ कहना है कि सभी मुसलमानों को एकजुट
होकर वोट करना चाहिए। लोकतंत्र के उत्सव में वोट जिहाद की बात कर उन्होंने लोकतंत्र
और संविधान का अपमान किया है।"
जो कांग्रेस
के घोषणापत्र में या विपक्षी नेताओं के भाषण तक में नहीं था, पीएम मोदी ने उस झूठ को लगातार बोला, यहाँ भी मुसलमान खिलाड़ी, भैंस, मकान
वाला सांप्रदायिक और तर्कहीन भाषण जारी रहा
5 अप्रैल 2024 को कांग्रेस का घोषणापत्र आया और उस घोषणापत्र में जो नहीं था वह पीएम मोदी एक
से अधिक बार लगातार झूठ बोलते गए। नरेंद्र मोदी ने ना बीजेपी के घोषणापत्र की बात की
और ना ही कांग्रेस के घोषणापत्र की। इन्होंने हिम्मत के साथ झूठ बोलते हुए इसमें भी
हिन्दू-मुस्लिम वाला वातावरण बनाने की खुली कोशिश कर दी।
पीएम मोदी ने 6 अप्रैल को ही कांग्रेस
के घोषणापत्र को मुस्लिम लीग से जोड़ दिया और कहा कि यह घोषणापत्र मुसलमानों के लिए
बनाया गया है। कांग्रेस के घोषणापत्र में जो था ही नहीं, ऐसा झूठ बोलना पीएम
मोदी ने शुरू किया! कहने लगे कि कांग्रेस
के घोषणापत्र में लिखा है जिसके पास दो मकान होंगे, उसमें से एक छीन कर मुसलमान को दे दिया जाएगा, जिसके पास दो भैंस
होगी, एक भैंस मुसलमान को दे दी जाएगी। देश के पीएम सरीखे शख़्स ने तो क्रिकेट टीम में
ज़्यादा खिलाड़ी मुसलमान होने का डर भी दिखाया!
जब कांग्रेस का घोषणापत्र
आया तो पीएम मोदी ने प्रतिक्रिया देते हुए वह सब आरोप लगा दिए, जो उस घोषणापत्र में
थे ही नहीं। पीएम मोदी ने स्वयं अपने मन से सांप्रदायिक एंगल को उभारा और 29 अप्रैल 2024 को कहा, "2024 के उनके (कांग्रेस
के) मेनिफेस्टो में भी पूरी तरह मुस्लिम लीग की छाप है। उन्होंने जो स्थितियाँ बनाई
हैं, जिस प्रकार से संविधान की धज्जियाँ उड़ा रहे हैं, जिस प्रकार बाबा साहेब
को अपमानित करते हैं, एससी-एसटी के आरक्षण पर भी तलवार लटका देते हैं, ओबीसी का तो जीना
मुश्किल कर देंगे। क्या देश की जनता को हमें प्रशिक्षित करना चाहिए कि नहीं करना चाहिए?"
उसी दिन पीएम मोदी
ने टीवी18 को दिए इंटरव्यू में यह भी कहा, "कांग्रेस का एक्स-रे से मतलब है - हर परिवार में जाना, घर-घर छापा मारना।
अगर कोई महिला अनाज की बोरी में भी अपने गहने छिपा कर रखी है तो वो उसका भी एक्स-रे
करेंगे। उनकी ज़मीनों का हिसाब-किताब करेंगे और फिर उसे री-डिस्ट्रीब्यूट करेंगे।
(मुसलमानों को दे देंगे) ये पूरी तरह अर्बन नक्सल सोच का प्रकटीकरण है। इसलिए उनकी
पूरी जमात चुप है।"
इंटरव्यू लेने वालों
ने पीएम मोदी को पलट कर यह नहीं पूछा कि ऐसा कांग्रेस के घोषणापत्र में कहाँ लिखा है
कि कांग्रेस लोगों की संपत्ति छीनकर मुसलमानों को बाँट देगी? इंटरव्यू लेने वालों
ने यह भी नहीं पूछा कि कांग्रेस ने 70 साल तक देश में राज किया, क्या उसने कभी दूसरों की संपत्ति छीनकर मुसलमानों में बांटी?
पीएम
मोदी का वह भाषण जो ज़्यादा ख़तरनाक था, आपका
मंगलसूत्र और माँ-बहनों का सोना कांग्रेस छीन लेगी और मुसलमानों को दे देगी, आपका एक घर छीनकर मुसलमानों को दे देगी कांग्रेस
पीएम मोदी का 22 अप्रैल 2024 का अलीगढ़ में दिया
गया भाषण बांसवाड़ा (राजस्थान) में 21 अप्रैल को दिए भाषण से ज़्यादा ख़तरनाक था। मोदी ने 22 अप्रैल को अलीगढ़
में कहा, "मैं देशवासियों को चेतावनी देना चाहता हूँ। कांग्रेस और इंडिया गठबंधन की नज़र
आपकी कमाई और आपकी संपत्ति पर है। कांग्रेस के 'शहजादा' (राहुल गांधी) कहते हैं कि अगर उनकी सरकार आती है सत्ता में, वे जाँच करेंगे कि
कौन कितना कमाता है, किसके पास कितनी संपत्ति है... हमारी माताओं और बहनों के पास सोना (गोल्ड) है, इसे पवित्र माना जाता
है, कानून भी इसकी रक्षा
करता है। महिलाओं का 'मंगलसूत्र', माँ-बहनों का गोल्ड चुराना है इनका इरादा... अगर आपके गाँव में किसी पुराने पूर्वज
का घर है और आपने अपने बच्चों के भविष्य के लिए शहर में एक छोटा सा फ्लैट भी ख़रीदा
है दोनों में से एक को छीन लेंगे... ये माओवादी सोच है, ये कम्युनिस्टों की
सोच है। ऐसा करके वो पहले ही कई देशों को बर्बाद कर चुके हैं अब यही नीति कांग्रेस
पार्टी और इंडिया गठबंधन भारत में लागू करना चाहते हैं।"
नोट करें कि कांग्रेस
के घोषणापत्र में ऐसा कुछ कहीं नहीं लिखा था। बहुत सिंपल सी बात है कि कोई भी राजनीतिक
दल ऐसा घोषणापत्र लिख ही नहीं सकता। उपरांत कांग्रेस के किसी भी नेता ने 2024 तो क्या, इससे पहले भी ऐसा
कभी नहीं कहा था। बावजूद इसके नरेंद्र मोदी हिम्मत के साथ झूठ बोल गए!
पीएम मोदी ने इसी रैली
में कहा, "अगर विपक्षी कांग्रेस पार्टी सत्ता में आती है तो वह आपकी सारी संपत्ति इकट्ठा
करेगी और इसे उन लोगों को वितरित कर देगी जिनके पास अधिक बच्चे हैं और घुसपैठियों को
दे देगी।"
यहाँ अधिक बच्चे और
घुसपैठियाँ शब्द किसकी तरफ़ इशारा कर रहे थे यह सबको समझ में आ गया था। यही वो रैली
थी, यही वो भाषण था, जिसका ज़िक्र विदेशी मीडिया तक में हुआ और दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के चुनावी
पर्व के दौरान वातावरण को धार्मिक रंग देने का दोष नरेंद्र मोदी पर आया।
मोदी मुस्लिमों पर
अटैक इलाके और वहाँ की हिन्दू-मुस्लिम आबादी के हिसाब से करते नज़र आए। मसलन दक्षिण
भारत के राज्यों में जब भी मोदी की रैली हुई, उसमें सिर्फ़ विकास और कांग्रेस के कथित भ्रष्टाचार की बातें थीं। वहाँ मुसलमानों
से हिन्दुओं को डराने की बातें ग़ायब थीं। लेकिन उत्तर भारत की अधिकांश रैलियों में
मोदी ने हिन्दुओं को मुसलमानों से डराने में कोई कमी नहीं छोड़ी।
पीएम
मोदी का एक और सार्वजनिक झूठ – मनमोहन
सरकार ने कहा था कि संपत्ति पर पहला अधिकार मुसलमानों का है
चुनावी प्रचार के दौरान
अप्रैल महीने में राजस्थान की एक रैली के दौरान पीएम मोदी ने एक और सार्वजनिक झूठ बोला
और कहा, "उन्होंने (कांग्रेस ने) कहा था कि देश की संपत्ति पर पहला अधिकार मुसलमानों का
है। इसका मतलब, ये संपत्ति इकट्ठी कर किसको बाँटेंगे? जिनके ज़्यादा बच्चे हैं उनको बाँटेंगे। घुसपैठिए को बाँटेंगे। ...ये कांग्रेस
का मैनिफेस्टो कह रहा है... कि माताओं-बहनों के सोने का हिसाब करेंगे। ...जानकारी लेंगे
और फिर संपत्ति को बाँट देंगे। और उनको बाँटेंगे जिनको मनमोहन सिंह जी की सरकार ने
कहा था कि संपत्ति पर पहला अधिकार मुसलमानों का है। ये अर्बन नक्सल की सोच, मेरी माताओ, बहनो, ये आपका मंगलसूत्र
भी बचने नहीं देंगे।"
पीएम मोदी ने मनमोहन
सिंह और उनकी सरकार का ज़िक्र कर झूठ फैलाया कि मनमोहन सिंह की सरकार ने कहा था कि
देश की संपत्ति पर पहला अधिकार मुसलमानों का है। पीएम मोदी की मुठ्ठी में कैद गोदी
मीडिया ने भी इस झूठ के सामने तथ्य और सही जानकारी सामने नहीं रखी! दरअसल, गोदी मीडिया मोदीजी के मुँह से निकली हर अनाप-शनाप बातों को वेदवाक्य की तरह पेश
किए जा रहा था!
पीएम मोदी ने मनमोहन
सिंह के जिस भाषण का ज़िक्र किया वह 9 दिसंबर 2006 का था। प्रधानमंत्री के रूप में मनमोहन सिंह ने राष्ट्रीय विकास परिषद को संबोधित
किया था। उन्होंने भाषण अंग्रेज़ी में दिया था। उसका आधिकारिक हिंदी अनुवाद यूँ है-
"मैं मानता हूँ कि हमारी सामूहिक प्राथमिकताएँ साफ़ हैं। ये हैं - कृषि, सिंचाई - जल संसाधन, स्वास्थ्य, शिक्षा, ग्रामीण बुनियादी
ढाँचे में अहम निवेश और सामान्य बुनियादी ढाँचे के लिए ज़रूरी सार्वजनिक निवेश। इसके
साथ ही अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए कार्यक्रम, अल्पसंख्यक और महिलाएँ
और बच्चों के लिए कार्यक्रम भी सामूहिक प्राथमिकताएँ हैं। अनुसूचित जातियों और अनुसूचित
जनजातियों के लिए योजनाओं को पुनर्जीवित करने की ज़रूरत है। हमें नई योजना लाकर ये
सुनिश्चित करना होगा कि अल्पसंख्यकों का और ख़ासकर मुस्लिमों का भी उत्थान हो सके, विकास का फ़ायदा मिल
सके। इन सभी का संसाधनों पर पहला अधिकार है। केंद्र के पास बहुत सारी ज़िम्मेदारियाँ
हैं, और पूरे संसाधनों की उपलब्धता में सबकी ज़रूरतों को शामिल करना होगा।"
साफ़ है कि पूर्व प्रधानमंत्री
मनमोहन सिंह ने अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़े वर्ग, अल्पसंख्यक, मुस्लिम, सभी का संसाधनों पर पहला अधिकार है ऐसा कहा था। उन्होंने देश की संपत्ति के रूप
में जल- स्वास्थ्य- शिक्षा- बुनियादी ढाँचा चिन्हित किया था और इन सब संसाधनों पर प्रथम
अधिकार उपरोक्त जातियों का बताया था, ना कि सिर्फ़ मुसलमानों का।
मई के अंतिम दिनों
में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने आख़िरकार अपना मौन तोड़ा, क्योंकि तब तक तत्कालीन
प्रधानमंत्री मोदी अनेक सांप्रदायिक व तथ्यहीन-तर्कहीन बातें कर चुके थे। मनमोहन सिंह
ने पंजाब से एक रैली में कहा, "'मोदीजी पहले प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने पद की गरिमा और उसके साथ ही प्रधानमंत्री
पद की गंभीरता को कम किया है। इससे पहले किसी भी प्रधानमंत्री ने... इतनी घृणित, असंसदीय और निम्नस्तरीय
भाषा का इस्तेमाल नहीं किया।"
पीएम
मोदी स्तर को ऊंचा करना ही नहीं चाहते थे, एक
और जुमला फेंका, कहा
– कांग्रेस
वाले मंदिर पर बुलडोजर चलवा देंगे, सबका
आरक्षण छीन कर मुसलमानों को दे देंगे
17 मई 2024 के दिन यूपी के बाराबंकी रैली में मोदीजी ने बिना सबूत, यूँ ही कह दिया कि, "सपा और कांग्रेस वाले
अगर सत्ता में आएंगे तो राम लला को फिर से टेंट में भेजेंगे और मंदिर पर बुलडोजर चलवा
देंगे। क्या योगीजी से यही सीखना है? अरे जरा योगीजी से ट्यूशन लो बुलडोजर कहाँ चलाना है कहाँ नहीं चलाना?" (सोर्स – इंडियन एक्सप्रेस)
इसी दिन यूपी के ही
हमीरपुर में रैली के दौरान पीएम मोदी ने फिर से एक और जुमला छोड़ा और कहा, "अगर कांग्रेस और सपा
सत्ता में आए तो वे एससी-एसटी और ओबीसी का आरक्षण छीन लेंगे और अपने वोट बैंक में बाँट
देंगे। ये लोग वोट जिहाद करेंगे।" (सोर्स – इंडियन एक्सप्रेस)
सांप्रदायिक और नफ़रती
भाषणों को लेकर इनके ख़िलाफ़ चुनाव आयोग में शिकायत तक की गई, किंतु चुनाव आयोग
ने अपनी शैली से उस संस्था की भद्द पिटवा दी, जिसे कभी टीएन शेषन ने चार चाँद लगाए थे।
2014 और 2019 के आम चुनावों में मोदीजी के भाषण इतने तीखे नहीं थे। दिल्ली विधानसभा चुनाव से
पीएम मोदी अपने भाषणों, तर्कों और सार्वजनिक जीवन का स्तर और नीचे गिराने लगे थे।
गुजरात
विधानसभा 2017 चुनावी
प्रचार के दौरान कांग्रेस और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर बहुत बड़ा झूठ बोल
दिया था पीएम मोदी ने, फिर
संसद में कह दिया कि हमें मनमोहनजी की देशभक्ति पर कोई संदेह नहीं है
नरेंद्र मोदी चुनाव
जीतने के लिए ऐसे ऐसे जुगाड़ करते हैं कि आख़िर में प्रधानमंत्री जैसे संवैधानिक ओहदे
को ही चोट पहुंचती है। 2017 गुजरात विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान पीएम मोदी ने एकदम झूठा दावा कर दिया था
कि, "एक तरफ़ पाकिस्तानी सेना के पूर्व डीजी गुजरात के चुनाव में हस्तक्षेप कर रहे हैं।
दूसरी तरफ़ पाकिस्तान के लोग मणिशंकर अय्यर के आवास पर बैठक कर रहे हैं। कांग्रेस को
देश की जनता को बताना चाहिए कि क्या योजना बन रही थी।"
पीएम सरीखे व्यक्ति
ने कांग्रेस पार्टी के ऊपर सनसनीखेज़ आरोप लगा दिया कि वह देश के ख़िलाफ़ साज़िश कर
रही है, पाकिस्तान भारत के एक राज्य के चुनाव में हस्तक्षेप कर रहा है। इस बैठक में पूर्व
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी शामिल थे। पीएम मोदी ने बड़ा गंभीर आरोप लगाते हुए पूरे
देश में बवाल खड़ा कर दिया। हालाँकि वे पीएम हैं, उनके पास देश के ख़िलाफ़ साज़िश की जानकारी है, तो फिर वे देश की
सुरक्षा के लिए कौन सा एक्शन ले रहे हैं, यह मोदीजी ने देश को नहीं बताया!
दरअसल, पीएम का यह बयान अपने
आप में किसी एंकर के दकियानूसी प्रयास से कम नहीं था। बीच चुनाव मोदीजी की मुठ्ठी में
बंद हो चुके मीडिया ने और बीजेपी के आईटी सेल ने इस दकियानूसी प्रयास को काफी हवा दी।
फिर चुनाव समाप्त हुए। इसके बाद कुछ दिनों तक सदन के भीतर कांग्रेस-भाजपा के बीच पीएम
मोदी के उस दावे को लेकर माथापच्ची चलती रही। और एक दिन अचानक सरकार की तरफ़ से सदन
के भीतर कहा गया कि हमें पूर्व पीएम मनमोहन सिंह की देशभक्ति पर संदेह नहीं है!!!
पीएम
मोदी सांप्रदायिक प्रचार से हटने को तैयार नहीं थे, कहा
– कांग्रेस
राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को पलटने की तैयारी कर रही है
2024 के लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान 17 मई को हमीरपुर रैली के भाषण में पीएम ने कोरी कल्पना पर आधारित एक और बयान दे
दिया और कहा, "कांग्रेस राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को पलटने की तैयारी कर रही है।
कुछ लोग कहते हैं कि ऐसा कैसे हो सकता है? भ्रम में मत रहो। देश जब आज़ादी का आंदोलन कर रहा था और देश के टुकड़े करने की
बात आती थी, तो देश का हर व्यक्ति कहता था नहीं यार देश के टुकड़े थोड़े ही होते हैं। हो गए
कि नहीं हो गए? इन्होने कर दिया की नहीं कर दिया? ये किसी भी हद तक जा सकते हैं जी। इनका ट्रैक रिकॉर्ड ही ऐसा है। इनके लिए देश
वेश कुछ नहीं है भाई।"
सोचिए, ख़ुद को मजबूत प्रधानमंत्री
कहने वाले, ख़ुद की सरकार को मजबूत सरकार कहने वाले पीएम मोदी दावा कर रहे थे कि कांग्रेस
राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला पलटने की तैयारी कर रही है! जिस पार्टी के पास लोकसभा-राज्यसभा, कहीं पर भी बहुमत नहीं है, जो 50 के आँकड़े को भी मुश्किल से छू पाई थी, वो इतनी मजबूत सरकार में इतना कमजोर विपक्ष होते हुए भी सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले
को कैसे पलट सकती है? पीएम मोदी की इसी नकारात्मकताओं की वजह से इन्हें अपमानजनक टिप्पणियों का सामना
करना पड़ता है।
चुनाव प्रचार के दौरान मोदीजी अपने आपे से बाहर हो जाते हैं! लिहाज़ नहीं करते कि वह किस
पद पर है और उस पद की गरिमा क्या है! बतौर प्रधानमंत्री वे नगर निगम के चुनाव में भी प्रचार कर चुके
हैं और भ्रष्टाचार- क़त्ल- महिला संबंधित अपराध- दुष्कर्म जैसे संगीन अपराधों से जुड़े
लोगों के लिए भी भाषण दे चुके हैं! एक बार तो चुनाव ख़त्म होने के बाद जब इनके आपत्तिजनक भाषण
पर सवाल उठा तो इन्होंने कह दिया था कि चुनाव प्रचार में कहीं गई बातों पर ध्यान न
दें, चुनाव प्रचार में तो कुछ बातें यूँ ही कह दी जाती हैं! अमित शाह इनके 15 लाख वाले उस बयान को जुमला कह ही चुके हैं!
चुनाव प्रचार के दौरान
ग़ज़ब के अपुष्ट और तर्कहीन भाषण देने वाले पीएम मोदी बाद में आसानी से कह देते हैं
कि चुनाव प्रचार में तो कुछ बातें यूँ ही कह दी जाती है, उस पर ध्यान न दें! उनके साथी अमित शाह तो बाक़ायदा कह देते हैं कि कुछ बातें तो जुमला होती हैं, सबको पता होता है
कि ऐसा नहीं हो सकता!
2024 के लोकसभा चुनावों में कदाचित भारत के सबसे बड़े यौन शोषण काँड के अपराधी, यूँ कहे कि अंतरराष्ट्रीय
स्तर के यौन शोषण काँड के अपराधी के लिए पीएम मोदी ने चुनाव प्रचार किया! स्कैंडल की गहमा गहमी के बीच भी अपने इस कृत्य के लिए इन्होंने ख़ेद प्रक्ट नहीं
किया। करते भी कैसे? क्योंकि अपने सांसद बृजभूषण शरण सिंह के ख़िलाफ़ अतिगंभीर आरोप लगाने वाली, जंतर मंतर से लेकर
गंगा घाट तक महीनों लंबा आंदोलन करने वाली देश की बेटियों तक की बात इन्होंने सुनी
नहीं थी!
लालू
प्रसाद यादव पर इशारा करके झूठ बोल गए पीएम मोदी, कहा
– वो कह
रहे हैं कि पूरा आरक्षण मुसलमानों का होना चाहिए
इसी बाराबंकी रैली
में पीएम मोदी ने लालू प्रसाद यादव का अप्रत्यक्ष ज़िक्र करते हुए कहा, "वो तो यहाँ तक कह रहे
हैं कि पूरे का पूरा आरक्षण अब मुसलमान को मिलना चाहिए। अब मुझे बताओ इसका मतलब दलित, आदिवासी, पिछड़े, ओबीसी - इनके पास
कुछ बचेगा ही नहीं भाई। इसीलिए मैं आपके अधिकारों की रक्षा करने के लिए 400 पार मांगता हूँ आपसे।"
सिंपल सी बात है कि
लालू प्रसाद यादव ने ऐसा कुछ नहीं कहा था, बावजूद इसके पीएम सरीखा शख़्स आसानी से देश के सामने झूठ बोल रहा था! दरअसल, पीएम मोदी वही कर रहे थे, जो वे सालों से करते आए थे।
बाराबंकी वाली रैली
में इनका एक और भाषण था, जिसमें वे निहायत तर्कहीन बात कर रहे थे। बाराबंकी रैली में पीएम मोदी ने आगे
यह भी जोड़ा कि, "कांग्रेस के शहजादे ने लोगों की संपत्ति का 'एक्स-रे' करने का वादा किया है, यानी लोगों के लॉकर में क्या है, ज़मीन, सोना, चांदी, मंगलसूत्र आदि का पता लगाना चाहते हैं। वो कहते हैं कि आपके पास जो है आपसे लेकर
जिसके पास नहीं है उसको दे दिया जाएगा। मतलब जो वोट जिहाद करेगा उनको दिया जाएगा।"
मोदी के इन भाषणों
में कहीं भी रोटी-रोजगार या पूर्वी उत्तर प्रदेश की तरक्की का कोई रोडमैप नहीं था! उनके पास ऐसा कुछ भी बताने के लिए नहीं था कि बाराबंकी या हमीरपुर में अगले पाँच
वर्ष में वो और उनकी सरकार क्या करेगी या पिछले पाँच वर्षों में उन्होंने इन दोनों
क्षेत्रों के लिए क्या किया है।
इतना सब हिन्दू-मुसलमान करने वाले पीएम मोदी ने चुनावी प्रचार के बीच टीवी18 को इंटरव्यू दिया, जिसमें इन्होंने कहा, "मैं जिस दिन हिन्दू-मुसलमान
करूँगा ना, उस दिन मैं सार्वजनिक जीवन में रहने योग्य नहीं रहूँगा। मैं हिन्दू-मुस्लिम नहीं
करूँगा। यह मेरा संकल्प है।"
उनके इस बयान को गंभीरता
से लिया जाए और इनके भाषणों को सुना-पढ़ा जाए तो नरेंद्र मोदी अपने आप ही सार्वजनिक
जीवन जीने के योग्य नेता नहीं रह जाते, पीएम सरीखे संवैधानिक ओहदे की बात तो दूर है।
नरेंद्र मोदी शायद देश के ऐसे पहले प्रधानमंत्री भी होंगे, जो सार्वजनिक रूप से ख़ुद की जाति बता चुके हैं और इसका राजनीतिक
फ़ायदा या वातावरण बनाने की कोशिश कर चुके हैं। ख़ुद के बारे में, ख़ुद के जीवन के बारे में, ख़ुद के परिवार के बारे में इतनी अपुष्ट और संदिग्ध बाते कर
चुके हैं कि इन्हें बहुत पहले से ही जुमलेबाज जैसे अपमानजनक शब्दों के साथ याद किया
जाता है।
मैं इस जाति का हूँ, मेरा बचपन ऐसे बीता, मैंने 35 सालों तक भीख माँगी... से लेकर यह पहले ऐसे प्रधानमंत्री हैं जो अपनी माँ से कैमरे
और मीडिया के तामझाम के साथ मिलते हैं! ये पहले ऐसे हिन्दू हैं जो सैंकड़ों कैमरे-सुरक्षा कर्मी और मीडिया पर लाइव प्रसारण
के साथ साधना करने बैठते हैं! ये देश के पहले ऐसे पीएम हैं जो यह मानते हैं कि 1982 में गाँधी फ़िल्म
आने के बाद दुनिया ने महात्मा गाँधी को जाना!
ये हर जगह, हर राज्य, हर घटना के साथ ख़ुद को जोड़ने के इतने आदि हैं कि कभी कभी डर लगता है कि ये यह
न कह दें कि 1857 की क्रांति में झाँसी की रानी के पीछे बंधा हुआ बालक मैं ही था! कैमेरे के सामने ही ये रोते हैं! बिना कैमरा इनके आँसू बाहर नहीं आते!
2014 में मैं देश नहीं बिकने दूँगा... 2024 में मैं भैंस नहीं बिकने दूँगा! रामायण में कुंभकर्ण भी छह महीने में जाग जाता था, लेकिन मोदीजी 1 साल से ऊपर से मणिपुर
जल रहा है, नहीं जागे! 1 साल से ऊपर की अवधि तक किसानों ने ऐतिहासिक आंदोलन किया, तब थोड़ी देर के लिए
आँखें खोल बोले कि किसान हमारी तपस्या को समझ नहीं पाए इसलिए मैं क़ानून वापस लेता
हूँ। और फिर सो गए!
अदानी
अंबानी- क्रिकेटर- पाकिस्तान, सबके
साथ घुल-मिलने वाले पीएम मोदी मणिपुर- किसान- महिला खिलाड़ियों की तरफ़ देखते ही नहीं! जनता
के सामने आते हैं तो लोगों के दुख सुनने की जगह अपना दुखड़ा रोते हैं!
नरेंद्र मोदी सरकार
के मंत्री के बेटे ने कथित रूप से किसानों और पत्रकारों की जीप से रोंद कर हत्या कर
दी, नरेंद्र मोदी ने अमित
शाह को उसके चुनावी प्रचार के लिए भेजा और उसे जीताने की अपील की! रेवन्ना ने भारतीय इतिहास का सबसे बड़ा यौन शोषण काँड किया, सैंकड़ों वीडियो आए, उससे चंद दिनों
पहले नरेंद्र मोदी उसे जीताने की अपील करने और उसका प्रचार करने चले गए थे! अंबानी परिवार का कोई भी उत्सव हो, नरेंद्र मोदी सज-धज कर शिरकत करने पहुंच जाते हैं। अदानी से इनका रिश्ता संसद
से लेकर सड़क तक विवादों में है। शिखर धवन का अँगुठा टूटा तो ट्वीट करना भी मोदीजी
को याद रहा था!
अचानक ही पूरा कार्यक्रम
बदल कर पाकिस्तान पहुंचने वाले, वहाँ पहुंच कर नवाज़ शरीफ़ की माता के पैर छूने वाले नरेंद्र मोदी ने पूरे 1 साल तक देश के किसानों
को सड़कों पर रखा, किंतु उनके किसी भी प्रतिनिधि से मुलाक़ात नहीं की!
मंदिर, मस्जिद, मुग़ल, मटन, मछली, मुसलमान, मंगलसूत्र, मुजरा, की बात करने वाले मोदी म से मणिपुर नहीं बोले! 1 साल तक देश का एक राज्य जलता रहा, वहाँ की महिलाओं के साथ घोर अनैतिक अपराध हुए, किंतु नरेंद्र मोदी वहाँ नहीं गए! जाने की बात तो दूर, वे बतौर पीएम तक कुछ नहीं बोले! देश के लिए दुनिया से मैडल जीतने वाली महिला खिलाड़ी उनकी ही सरकार के मंत्री
के ख़िलाफ़ अति गंभीर शिकायत लेकर सड़कों पर बैठी रहीं, नरेंद्र मोदी चुप
रहे!
मणिपुर एक साल तक जलता
रहा, लोग मरते रहे, महिलाओं के साथ घोर अनैतिक अपराध होते रहे, और इस बीच पीएम मोदी ने देश के भीतर 162 दौरे किए, विदेशों में भी चले
गए, किंतु मणिपुर नहीं
गए और ना ही मणिपुर पर कुछ विशेष बात की!
विपक्षी पार्टियों
के मुख्य नेताओं को इन्होंने चुन चुन कर जेल में डाल दिया, जबकि विपक्षी पार्टियों
के छोटे-मोटे नेताओं को अपनी पार्टी में ले लिया। 2024 के दौरान बीजेपी की तरफ़ से जितने उम्मीदवार लोकसभा चुनाव लड़े
उनमें 100 से ज़्यादा तो दूसरी पार्टियों से आए वे नेता थें, जिन्हें डरा-धमका
कर, जाँच संस्थाओं का
कथित इस्तेमाल कर बीजेपी में शामिल किया गया था। जिन मुख्य नेताओं को जेलों में डाल
दिया गया उन्हें अदालतें एक-एक कर जमानत देती रही और ये एक-एक कर उन्हें किसी दूसरे
मामले में फँसाते रहे।
नोटबंदी (नोटबदली), जो एक ऐतिहासिक ग़लती
थी, जिसने असंगठित क्षेत्र
की कमर तोड़ दी, जिसने बेरोजगारी बढ़ाने में और अर्थतंत्र को चौपट करने में प्रमुख भूमिका निभाई, उस नोटबंदी (नोटबदली)
पर पीएम मोदी के मुँह से कुछ भी नहीं निकला। आधी रात को संसद खोल कर तामझाम के साथ
जीएसटी को लागू किया था, जिसने नोटबंदी के छोटे भाई की तरह ही आपाधापी का माहौल बनाया, उस पर भी मोदी मौन
रहे।
जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद
370 को निष्प्रभावी करने
वाली मोदी सरकार के हालात यह थे कि उसने कश्मीर में लोकसभा चुनाव में अपने उम्मीदवार
तक नहीं उतारे! जम्मू में उसने चुनाव लड़ा, किंतु कश्मीर और 370 पर बड़े बड़े आसमानी
दावे करने वाली बीजेपी ने कश्मीर में चुनाव नहीं लड़ा!
पीएम
मोदी ने ग़ज़ब हास्यास्पद बयान दिया, कहा
– मेरा
जन्म जैविक रूप से नहीं हुआ था, मुझे
तो भगवान ने एक मिशन पूरा करने के लिए भेजा है... संबित पात्रा ने कहा था – भगवान जगन्नाथ मोदीजी के भक्त हैं... मोदीजी पात्रा
से भी आगे निकल गए, कहा
– मैं
बायोलॉजिकल नहीं हूँ
2014
– आप मुझे सेवक समझिए। 2019
– आप मुझे चौकीदार समझिए। और फिर आया 2024 – आप मुझे भगवान समझिए।
बतौर पीएम चुनावी प्रचार
में तमाम हदें लाँधने के बाद नरेंद्र मोदी आध्यात्मिकता का शानदार आयोजन करते हैं और
तामझाम के साथ साधना करते हैं। किंतु इस बार तो इन्होंने साधना करने से पहले ही ग़ज़ब
एलान कर दिया। बीच चुनाव इन्होने न्यूज़ 18 को इंटरव्यू दिया और कह दिया कि उनका जन्म जैविक रूप से नहीं हुआ था, बल्कि उन्हें भगवान
ने एक मिशन को पूरा करने के लिए भेजा था!
इसके बाद इन्होंने
यह बात इंडिया टीवी के कार्यक्रम में भी दोहराई और दूसरे इंटरव्यू में भी। नोट करें
कि इंटरव्यू पाने वाले किसी चैनल ने इसका विरोध नहीं किया, बल्कि इस फूहड़ बयान
को दिव्य आदेश मानकर बार-बार प्रचारित किया!
मोदी भक्त तो कब का
इन्हें भगवान ही बता रहे थे। व्हाट्सएप की उस हास्यास्पद दुनिया को बीजेपी नेताओं ने
उधार ले लिया। गिरिराज सिंह, कंगना रनौत जैसे बीजेपी के कई नेता भी पीएम मोदी को भगवान का अवतार बताने लगे।
2024 लोकसभा चुनाव प्रचार के बीच भाजपा के प्रवक्ता और ओडिशा से चुनाव लड़ रहे संबित
पात्रा ने तो यहाँ तक कह दिया कि, "भगवान जगन्नाथ मोदी के भक्त हैं।" एकजुट हो चुके विपक्ष ने इस बयान का काफी
विरोध किया। किंतु नरेंद्र मोदी पलटकर एक बार भी संबित पात्रा को कुछ नहीं कहा! शायद मोदीजी संबित पात्रा के इस बयान से ख़ुश हो गए थे, तभी कोई टोका-टोकी
नहीं की। विपक्ष ने इसे मुद्दा बना लिया और चुनावी नुक़सान की आशंका दिखाई देने लगी
तब जाकर संबित पात्रा ने माफी माँगी और प्रायश्चित के तौर पर उपवास रखा।
नरेंद्र मोदी संबित
पात्रा से भी आगे निकल गए! उन्होंने कह दिया
कि वे बायोलॉजिकल नहीं हैं! कह दिया कि भगवान
ने उन्हें ख़ास मिशन के लिए भेजा है! हिन्दू संप्रदाय की धार्मिक किताबों के अनुसार राम, कृष्ण जैसे अवतार
भी जैविक रूप से पैदा हुए थे, मोदीजी ने तो ख़ुद को इन अवतारों से भी आगे पहुँचा दिया!
सन 1971 में जब इंदिरा गांधी
के नेतृत्व में भारत ने पाकिस्तान के ख़िलाफ़ युद्ध में जीत हासिल की और नतीजे में
बांग्लादेश का निर्माण हुआ तब इंदिरा गांधी को राष्ट्रीय स्तर पर अनेक मंचों से देवी
दुर्गा बताया गया। मगर इंदिरा गांधी ने कभी इस 'सम्मान' को स्वीकार नहीं किया। उन्होंने अपने भाषणों और अपने निर्णयों से कभी यह जाहिर
नहीं होने दिया कि वे स्वयं को देवी समझती या मानती हैं।
मगर तत्कालीन प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी, जो लोकप्रियता के मामले में, अपनी पार्टी को लोकसभा सीटें जीताने के मामले में, अंतरराष्ट्रीय और
राष्ट्रीय स्तर पर भावि के लिए नींव सरीखा काम करने के मामले में, अच्छे सार्वजनिक जीवन
के मामले में, प्रसिद्ध पूर्व प्रधानमंत्रियों से बहुत नीचे हैं, वह स्वयं को स्वयं
ही, अपने ही मुँह से ख़ुद
को भगवान का अवतार बताने लगे थे!
पीएम मोदी ने ख़ुद
को नॉन-बायोलॉजिकल बताते हुए यह भी कहा कि जो लोग उन्हें वोट देंगे उन लोगों का उनके
(मोदी) अच्छे कार्यों का पुण्य मिलेगा। सोचिए, दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक राष्ट्र का मुखिया गाहे-बगाहे अंधश्रद्धा की
बाते कर रहा था, जबकि पूर्व प्रधानमंत्रियों ने देश को विज्ञान के क्षेत्र में बुलंदियों पर पहुंचाया
था।
पीएम नरेंद्र मोदी
के इस अजीबोग़रीब बयान के चलते उन पर काफी मीम्स बने, मज़ाक उड़ा, कार्टून बने, तथा इनकी जमकर आलोचना
भी हुई। बीच चुनाव और चुनाव ख़त्म होने के बाद भी इस हास्यास्पद बयान के चलते पीएम
मोदी ख़ुद के चुटकुले बनवाने में सबसे आगे निकल गए। फिर तो मशहूर हो गया कि मोदीजी
बायोलॉजिकल हो या न हो, इनकी बातें कभी लॉजिकल नहीं होती।
मंदिर, मस्जिद, मुग़ल, मटन, मछली, मुसलमान, मंगलसूत्र
के बाद पीएम मोदी अब मुजरा पर आए!
25 मई 2024 को एक चुनावी रैली में कहा, "इंडिया गठबंधन वोट के लिए अपने वोट बैंक के सामने 'मुजरा' (नृत्य) भले ही कर सकता
है, लेकिन मैं उन्हें
एससी/एसटी को दिए गए आरक्षण लाभ को छीनने नहीं दूँगा।"
देश के प्रधानमंत्री
के मुँह से मुजरा जैसा शब्द भी निकल आया। महंगाई, ग़रीबी, रोजगारी की बात करने की जगह मोदी अब मुजरा पर पहुँच गए थे! इनका पूरा चुनावी अभियान आत्म-प्रशंसा और परनिंदा, इन दो बातों पर आकर
ठहर गया था।
पीएम मोदी एक तरफ़
ख़ुद ही ख़ुद को भगवान का अवतार बता रहे थे, दूसरी तरफ़ सत्ता के लिए इतने लालायित दिख रहे थे कि भाषा और सभ्यता, दोनों में भद्द पीटवा
रहे थे!
दुनिया
के सबसे बड़े लोकतांत्रिक राष्ट्र के प्रधानमंत्री मोदी की महा अज्ञानता, कहा – दुनिया
गाँधीजी को जानती नहीं थी, 1982 में उन पर फ़िल्म बनने के बाद दुनिया ने गाँधीजी
को जाना
प्रधानमंत्री नरेंद्र
मोदी का यह बयान स्पष्ट रूप से इनकी महा अज्ञानता को उजागर कर गया। प्रेस वार्ता से
सदैव बचने वाले पीएम मोदी ने बीच चुनाव (मई महीने के अंत में) एबीपी न्यूज़ को एक इंटरव्यू
दिया। इस इंटरव्यू में पीएम ने कहा, "महात्मा गाँधी एक महान आत्मा थे। क्या इस 75 साल में हमारी ज़िम्मेदारी नहीं थी कि पूरी दुनिया महात्मा गाँधी को जाने। माफ़
करना मुझे, कोई नहीं जानता था महात्मा गाँधी को। पहली बार जब गाँधी फ़िल्म बनी तब दुनिया
में क्यूरियोसिटी हुई कि कौन है, क्या है। हमने नहीं किया।"
बता दें कि रिचर्ड
एटनबरो ने 1982 में फ़िल्म 'गाँधी' बनाई थी। और यह फ़िल्म इसलिए बनी थी, क्योंकि गाँधीजी 1982 से ही नहीं बल्कि 1947 से पहले ही दुनिया में जाना-पहचाना नाम थे। उनकी मृत्यु के पश्चात उन पर अऩेक
किताबे, जीवनी, लेख प्रकाशित हुए, अनेक टीवी शो हुए, ढेरों डोक्यूमेंट्री वगैरह बनीं। गाँधीजी को पाँच-पाँच बार नोबेल शांति पुरस्कार
के लिए नामांकित किया गया। 1982 से पहले ही महात्मा गाँधी के नाम पर कई देशों में पुरस्कार तक दिए जाते हैं। एटनबरो
ने दुनिया में जाने-पहचाने और रिसर्च के लिए सबसे बड़े विषय बन चुके महात्मा गाँधी
पर फ़िल्म बनाई थी। और उसी गाँधीजी के देश का प्रधानमंत्री सरीखा व्यक्ति अज़ीबोग़रीब
बात कर गया कि उस फ़िल्म से पहले कोई गाँधीजी को जानता नहीं था!
पीएम मोदी अपनी महा
अज्ञानता को उजागर कर गए। जबकि दूसरी तरफ़ स्वयं महात्मा गाँधी की फ़िल्म जगत के बारे
में अज्ञानता को लेकर काफी कुछ लिखा गया है। महात्मा गाँधी फ़िल्मों में उतनी दिलचस्पी
नहीं रखते थे। किंतु फ़िल्म और संगीत जगत के अनेक दिग्गज गाँधीजी के मुरीद थे। गाँधीजी
1931 में दूसरे गोलमेज सम्मेलन के लिए लंदन गए तो मशहूर फ़िल्मकार और कलाकार चार्ली
चैप्लिन उनसे मिलने को आतुर थे। जब उनकी मेजबान मुरियल लिस्टर ने कहा कि आप से चार्ली
चैप्लिन मिलना चाहते हैं तो गाँधीजी ने पूछा कि यह कौन हैं।
महात्मा गाँधी की लोकप्रियता और उनके नाम का विस्तार दुनिया
के बड़े बड़े देशों, राष्ट्राध्यक्षों, राजनयिकों, राजाओं
और राजकुमारों, पत्रकारों, कलाकारों, बौद्धिकों, चिंतकों
से लेकर आम जनों में फैला हुआ था। नोट करें कि यह उस ज़माने की बात है जब आज के जैसे
संचार-प्रचार-प्रसार माध्यम नहीं थे, इंटरनेट
नहीं था, सोशल मीडिया नहीं था। पीएम मोदी का गाँधीजी पर यह बयान सिर्फ़
मोदीजी की ही महा अज्ञानता नहीं, बल्कि
वे जहाँ से आए हैं उस संस्था आरएसएस की बौद्धिक क्षमता को भी कटघरे में खड़ा करता है।
मशहूर पत्रकार और युद्ध
संवाददाता वेब मिलर, लुई फिशर, मार्गरेट बर्कह्वाइट, विलियम शरर, विन्सेंट सीन जैसे बड़े पत्रकारों की लंबी सूची है जो गाँधीजी को कवर करने के
लिए एक देश से दूसरे देश पहुँच जाया करते थे। मशहूर तत्वचिंतक रोमां रोलां और लियो
टॉलस्टॉय जैसे बड़े बड़े नाम भी महात्मा गाँधी से मिलते थे।
नोट करें कि गाँधीजी
पर सबसे पहली किताब सन 1909 में रेवरेंड डोके द्वारा लिखी गई थी। और वह किताब भारत से नहीं बल्कि भारत से
दूर दक्षिण अफ़्रीका से लिखी गई थी। क्या बिना गाँधीजी को जाने विदेश का कोई लेखक उनकी
जीवनी उनके भारत-आगमन से सालों पहले लिख सकता था?
फ़िल्म ही नहीं बल्कि
नरेंद्र मोदी के पैदा होने से पहले ही गाँधीजी विश्वप्रसिद्ध हो चुके थे। पीएम मोदी
का जन्म हुआ उसके भी लगभग बीस साल पहले अमेरिका की मशहूर टाइम मैगज़ीन ने 'टाइम पर्सन ऑफ़ द इयर' चुनते हुए महात्मा
गाँधी की तस्वीर अपने कवर पेज पर छापी थी। वह साल 1930 का था। नोट करें कि पूरी दुनिया को अपनी शख़्सियत से प्रभावित
करने वाले व्यक्ति को यह सम्मान दिया जाता है। क्या बिना गाँधीजी को जाने टाइम मैगज़ीन
यह सम्मान दे सकता था?
नरेंद्र मोदी को ज्ञान
होना चाहिए कि गाँधीजी की दाँडी कूच, जिसे नमक सत्याग्रह भी कहा जाता है, को मानव जाति के इतिहास में दस सबसे महत्वपूर्ण मार्च में शामिल किया जा चुका
है। इससे भी 20 साल पहले से ही गाँधी का नाम भारत के बाहर फैला था।
नरेंद्र मोदी को उस
इतिहास का भी पता होना चाहिए कि जिस साल उनका (मोदी का) जन्म हुआ, उसी साल, यानी 1950 में अमेरिकी पत्रकार
लुई फ़िशर की मशहूर किताब 'द लाइफ़ ऑफ़ महात्मा गाँधी' का प्रकाशन हुआ था। इस किताब की धूम पूरी दुनिया में थी। मोदीजी को जानना चाहिए
था कि इसी किताब को पढ़कर ही रिचर्ड एटनबरो गाँधीजी पर फ़िल्म बनाने को बेचैन हो उठे
थे।
महात्मा गाँधी की हत्या हुई तब सोवियत रूस को छोड़ पूरी दुनिया
से आधिकारिक भाव विह्वल संदेश आए थे। सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक़ भारत को विदेशों से
संवेदना के 3441 संदेश प्राप्त हुए थे। अनेक देशों के शासनाध्यक्ष और प्रतिनिधियों
ने महात्मा गाँधी की शव यात्रा में हिस्सा लिया था। पाकिस्तान समैत दुनिया भर के अख़बारों
और न्यूज़ चैनलों ने महात्मा गाँधी पर शोक संदेश चलाए थे और उन्हें श्रद्धांजलि देते
हुए एपिसोड प्रसारित किए थे। पीएम मोदी से एबीपी न्यूज़ के एंकर को पूछना चाहिए था
कि क्या दुनिया ने बिना गाँधीजी को जाने ये सब किया था?
महात्मा गाँधी की शहादत
की ख़बर मिलने के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ ने शोक में अपना झंडा झुका दिया था। यह सब
गाँधी फ़िल्म रिलीज़ होने के 34 सालों पहले हो रहा था। एबीपी न्यूज़ के एंकर की यह ज़िम्मेदारी थी कि उन्हें पीएम
मोदी से पूछना चाहिए था कि इतना सब कुछ बिना गाँधीजी को जाने हो रहा था?
बिना मिले ही दुनिया
के महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन गाँधीजी के मुरीद थे। उनका कथन आज भी इतिहास में
दर्ज है कि, "आने वाली पीढ़ियाँ मुश्किल से ही यह विश्वास कर पाएगी कि हांड़-मांस से बना ऐसा
कोई व्यक्ति भी कभी धरती पर आया था।"
महात्मा गाँधी 1910 के बाद से ही दुनिया
में छाने लगे थे और 1925 आते आते दुनिया में जाना-पहचाना नाम बन गए थे। यह वही गाँधी थे जिन्होंने दुनिया
के सबसे ताक़तवर साम्राज्य को उसीकी ज़मीन पर जाकर चुनौती दी थी। वह शख़्स, जिसकी एक बाइट के
लिए दुनिया का मीडिया उतावला रहता था। वह व्यक्ति, जिसकी दांडी कूच, सविनय अवज्ञा आंदोलन, चरखा क्रांति, भारत छोड़ो आंदोलन
जैसे अनेक लोकोपयोगी कार्यों को दुनिया ने सलाम किया।
एकमात्र नाम, जिसे दुनिया समूची
इंसानियत का प्रतीक मानती है - मानवता का प्रतिनिधि मानती है। वह महात्मा गाँधी, जिसे मार्टिन लूथर
किंग- जेम्स बेवल- नेल्सन मंडेला- आंग सान सू की जैसे अनेक दिग्गजों ने अपना आदर्श
माना। वह गाँधीजी, जिसे हिटलर-मुसोलिनी जैसे तानाशाह भी जानते थे।
वह गाँधीजी, जिसे दुनियाभर के
अनेका अनेक लोग प्रेरणा, चिंतन, संशोधन, नैतिक ताक़त, सत्य के लिए ज़िद, आदर्शवाद, आश्चर्य का एक यादगार ग्रंथ सरीखा मानते हैं, जिसका चिंतन और नाम भारतीय सीमाओं को लाँधते हुए संसार में
फैला, जिसका जीवन दुनिया ने संदेश माना। वह एकमात्र व्यक्ति जिसका उल्लेख दुनिया के
अनेक देशों के भीतर लेखों में, पुस्तकों में, सबसे अधिक मिलता है। वह इंसान जिसके नाम पर दुनिया में कई सड़कें, कई चौराहे, गलियाँ या जगहें हैं, उसे 1982 में फ़िल्म आने के
बाद दुनिया ने जाना। पीएम मोदी का यह बयान उनकी महा अज्ञानता का सबसे बड़ा प्रतीक है।
चुनावी
प्रचार का 7वाँ
चरण आते आते पीएम मोदी और तीखे बने, स्वर
उग्र हुआ और मुद्दे सिकुड़ कर हिन्दू-मुसलमान और पाकिस्तान पर जाकर ठहर गए
मोदी का मास्टर स्ट्रॉक, मोदी का मास्टर स्ट्रॉक, यह रट्टा मारने वाला
मीडिया देख नहीं पा रहा था कि मोदीजी के पास भाषणों में एक ही कंटेट बचा था। अपने 10 साल के शासन की तथाकथित
सिद्धियों-उपलब्धियों की बातें वे कम करते थे और अब तो 7वाँ चरण आते आते करना
ही बंद कर दिया था! अब की बार 400 पार या विश्वगुरू
जैसा जुमला भी वे ख़ुद भूल चुके थे!
मंगलसूत्र, मुजरा और भैंस भी
अब पुराना हो चुका था। महात्मा गाँधी पर महा अज्ञानता भी अब पीछे छुट चुकी थी। ना वे
परिवारवाद पर भाषण दे रहे थे, ना विपक्ष के भ्रष्टाचार पर। पीएम मोदी अब अपने भाषणों का अधिकतर और विशेष हिस्सा
सिर्फ़ सांप्रदायिकता में ख़र्च करने लगे थे। दरअसल चुनाव उन इलाक़ों में पहुंच चुका
था और अब उन्हें जमकर यह करना था।
जमकर
संदिग्ध, विवादित, आपत्तिजनक, तर्कहीन, सांप्रदायिक बयानों की बारिश करने के बाद पीएम
मोदी चुनाव ख़त्म होने से पहले पहुँचे कन्याकुमारी, हिन्दू
संप्रदाय की एकांत साधना को फिर बदला कैमरा और प्रचार वाले प्रोपेगेंडा में
चुनाव प्रचार ख़त्म
होते ही, किंतु मतदान ख़त्म होने से पहले, 2014 में प्रतापगढ़, 2019 में केदारनाथ जाकर हिन्दू संप्रदाय की एकांत साधना को राजनीतिक प्रोपेगेंडा में
बदलने वाले मोदी इस बार भी कन्याकुमारी में विवेकानंद रॉक मेमोरियल पहुँच गए।
लाज़मी था कि वह अकेले
नहीं पहुँचे। साथ थे कैमरा और प्रचार-प्रसार के तमाम माध्यम! गोदी मीडिया को यह अघोषित आदेश था कि अब मोदी तथा कन्याकुमारी के सिवा दूसरा कुछ
करना मना है। लोकसभा चुनाव का साइलेंट पीरियड शुरू हो चुका था और पीएम मोदी अप्रत्यक्ष
चुनावी प्रचार के अपने इस विवादित तरीक़े में लग गए।
प्रचार का यह तरीक़ा
तो विवादित था ही, साथ ही हिन्दू संप्रदाय की एकांत साधना को चुनावी प्रोपेगेंडा में बदलने की यह
चेष्टा भी विवादित ही थी। पीएम मोदी कैमरा, पत्रकार और ढेरों सुरक्षा कर्मी लेकर साधना करने पहुँच गए! आध्यात्मिकता का विज्ञापन शुरू हो चुका था!
ग़ज़ब साधना थी, जहाँ पीएम के लिए
अनेक स्तरीय सुरक्षा घेरा तो था ही, साथ ही इनकी सुरक्षा के लिए 3000 से अधिक पुलिस जवान ज़मीन पर लगे हुए थे। समुद्र में तटीय पुलिस के क़रीब 300 जवान गश्त लगा रहे
थे। तटरक्षक बल और भारतीय नौ सेना के जवान भी इस व्यक्ति की विज्ञापन वाली साधना के
समय अपनी कष्टदायी साधना कर रहे थे।
हिंदू संप्रदाय की
एकांत साधना को शायद मोदीजी ने पूर्वतैयारियों के साथ और विज्ञापन की व्यवस्था के साथ
किया होगा। गोदी मीडिया पीएम मोदी की इस वैभवी साधना को दर्शाने लगा। वीडियो
चलने लगे। टीवी चैनल, न्यूज़ चैनलों पर स्वयंघोषित भगवान की साधना का प्रचार-प्रसार होने लगा, विशेष कार्यक्रम चलाए
जाने लगे।
एक यूज़र ने एएनआई
द्वारा एक्स पर साझा किए गए वीडियो को शेयर करते हुए तंज कसा। अंकित मयंक नाम के यूज़र
ने लिखा, "9 कैमरा एंगल। 5 से ज़्यादा कैमरे के साथ ध्यान। तीन बार अपनी स्थिति बदली। दो बार अपना आसन बदला।
दो बार स्थान बदला। ये सब 28 सेकंड के वीडियो में।"
स्टैंडअप कॉमेडियन
वरुण ग्रोवर ने तस्वीरों के एक कोलाज़ को साझा करते हुए लिखा, "ये ध्यान लगाना नहीं, ध्यान खींचना है।"
"कैमरा मुखी ध्यान" शब्द के साथ पीएम के मीम्स सोशल मीडिया पर चलने लगे। सैकड़ों
कैमरों के साथ ध्यान... सिंपल सी बात है कि कोई कैमरे के साथ ध्यान नहीं करता, और अगर वह ऐसा करता
है तो अर्थ यही होता है कि वह तो लोगों का ध्यान अपनी और खींचना चाहता है।
सिर्फ़ 2024 लोकसभा चुनाव प्रचार
ही नहीं, इससे पहले भी, अनेक चुनावी सभाओं में, रैलियों में, मीडिया इंटरव्यू में, सामाजिक या वैज्ञानिक संस्थाओं के मंच से, संसद से, सड़क से, हर जगह से पीएम मोदी और उससे पहले सीएम मोदी तर्कहीन, तथ्यहीन, स्तरहीन, संदिग्ध भाषण दे चुके
हैं।
इनकी हिंदी पहले से
ठीक नहीं है और इसीलिए 2014 से पहले तथा इसके बाद भी इनके हिंदी भाषणों का अध्ययन किया जाए तो अनेका अनेक
हास्यास्पद- आपत्तिजनक- गंभीर ग़लतियाँ मिल जाती हैं। अंग्रेज़ी में उनके तमाम भाषण
पर इतने सारे मीम्स बने हैं कि बिना एडिट किए पप्पू के सामने मोदीजी की अंग्रेज़ी को
पेश किया जाता रहा है।
अब की बार इस सरकार को बैसाखी पर चलना है। आगे क्या होगा यह तो पता नहीं, किंतु बौद्धिक जगत यह कहता ज़रूर नज़र आता है कि पूर्व प्रधानमंत्रियों
को अपना शेष जीवन जिस तरह बिताते देखा गया, यह शायद नरेंद्र मोदी के नसीब में न भी हो। क्योंकि जिन प्रधानमंत्रियों ने अपना
कार्यकाल पूरा किया उनमें से लगभग सारे किसी न किसी विषय में ज्ञानी थे। किसी की पकड़
अर्थशास्त्र में थी, किसी की समाजशास्त्र
में, किसी की गणित में, किसी की विज्ञान में, किसी की बैंकिग सिस्टम में, किसी की बाज़ार और
समाज के संदर्भ में, किसी की देश में, इतिहास में, कला में, संगीत में, भाषाकीय- भौगोलिक-
जैविक विविधता में। नरेंद्र मोदी के पास निर्मम चुनावी राजनीति के सिवा दूसरा कोई विशेष
ज्ञान कभी नज़र नहीं आया है। तो फिर अपने शेष जीवन में कौन सी संस्था किस कार्यक्रम
में इन्हें किस विषय पर व्याख्यान देने बुलाएगी?
बीजेपी के एक नायक अटल बिहारी वाजपेयी ने तो अपने राजनीतिक जीवन में विरोध की राजनीति
करने के बावजूद मित्र ही मित्र कमाए थे, नरेंद्र मोदी की निर्मम
चुनावी राजनीति ने उन्हें यह कमाई प्रदान नहीं की है। वाजपेयीजी ने अपने सार्वजनिक
जीवन की बदौलत अनेक प्रशंसक प्राप्त किए थे, भक्त एक भी नहीं। नरेंद्र मोदी को यह भी प्राप्त नहीं हुआ है, बल्कि इसका उलटा प्राप्त हुआ है। रही बात किसी सर्वोच्च सम्मान
की, वो तो आडवाणीजी को
भी प्राप्त हो चुका है। बिना योग्यता के प्राप्त किया हुआ सम्मान दो सौ पन्ने की जनरल
नॉलेज की पुस्तक में किसी एक पंक्ति की साल और नाम की सूची बन कर रह जाता है।
(इनसाइड इंडिया, एम वाला)
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