दुनिया का तो पता नहीं, लेकिन हमारे यहां
चुनाव नतीजे घोषित होने के बाद तीन प्रकार के दृष्टिकोण पसरे हुए दिखाई देते हैं। पहला
यह कि जीतने वाले लोकशाही, जनता या जनादेश
की खूब तारीफ किया करते हैं। दूसरा, हारने वाले उसी
जनता को या चुनावी प्रक्रिया व उसमें इस्तेमाल किए गए संसाधनों को कोसा करते हैं।
तीसरा, हारने वाले शिद्दत से हार स्वीकार करके
जीतने वाले को बधाई देते हैं। तीसरा वाला दृष्टिकोण आजकल कब दिखाई देता है और कब अदृश्य
हो जाया करता है, कोई बता नहीं सकता। क्योंकि हारने वालों ने
चौथा दृष्टिकोण ढूंढ निकाला है। चौथा दृष्टिकोण नया नहीं है, बल्कि यह नया
ट्रेंड दूसरे और तीसरे दृष्टिकोण का मिश्रण है।
वैसे जीतने वाले और हारने वाले हर चुनावों में बदलते रहते हैं, लेकिन उनके ये तीन-चार दृष्टिकोण शायद ही
बदलते हो। कहते हैं कि सम्मानपूर्वक हार को स्वीकार करके जीतने वाले को बधाई की
औपचारिकताएँ ज़रूर निभाई जाती है, लेकिन वो
औपचारिकता भर होती है। चुनाव के बाद चिंतन नाम का लफ्ज़ काफी सुनाई देता है। कहा
जाता है कि हारने वाले आत्मचिंतन करेंगे। लेकिन बाद में पता चलता है कि इन्होंने “आत्मचिंतन” के बजाय “परायाचिंतन” ज्यादा किया
होगा!!! याद रखिएगा, जीतने वाले और
हारने वाले बदलते रहते हैं, यानी कि हर कोई कभी न कभी हारता है, लेकिन उन सभी का
हारने के बाद ट्रेंड अमूमन इसी सड़क से होकर गुजरता है।
कुछ पुराने से दौर में बूथ कैप्चरिंग, बैलेट पेपर, मतगणना से लेकर स्याही तक में घपले के या गड़बड़ी के इल्ज़ाम लगते थे। नयी शताब्दी में अब ईवीएम पर
ठीकरा फोड़ा जाता है। ये तमाम आरोप या बातें कितनी सच होगी या कितनी झूठ, यह दूसरा सिरा
है।
जब बलराज मधोक ने
अदृश्य इंक को बताया था हार का कारण
1971 का दौर था। 1971 के लोकसभा चुनाव
के तत्काल बाद भारतीय जनसंघ के पूर्व अध्यक्ष बलराज मधोक ने सनसनीखेज आरोप लगाते
हुए कहा था कि इन चुनावों में अदृश्य इंक का इस्तेमाल किया गया था। आरोप था कि
सोवियत संघ से मंगाई गई स्याही की मदद से इंदिरा गांधी ने चुनाव जीता। प्रोफेसर
मधोक तब नई दिल्ली लोकसभा क्षेत्र में इंदिरा कांग्रेस के शशि भूषण से चुनाव हार
गए थे। उससे पहले वह दो बार सांसद चुने गए थे। जनसंघ के संस्थापकों में से एक मधोक
ने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की भी स्थापना की थी।
1971 के लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के
तत्काल बाद मधोक ने यह कह कर देश को चौंका दिया था कि, “मुझे शशि भूषण ने
नहीं हराया है, बल्कि अदृश्य स्याही ने हराया है। मैं
कुछ ऐसा रहस्य खोलने जा रहा हूं जिससे सारा देश हिल जाएगा।” मधोक ने आरोप
लगाया था कि इस चुनाव के मतपत्रों पर अदृश्य स्याही लगी हुई थी। इस अदृश्य स्याही
से गाय-बछिया के सामने पहले से ही निशान लगा हुआ था।
उनके आरोप के अनुसार यह निशान मत पत्रों
के मतपेटियों में जाने के बाद कुछ समय के बाद अपने-आप उभर आता था। दूसरी ओर मतदाता
द्वारा लगाया गया निशान अपने आप मिट जाता था। तब इंदिरा कांग्रेस का चुनाव चिन्ह
गाय-बछिया था। 1971 के लोकसभा चुनाव में इंदिरा कांग्रेस बड़े बहुमत से जीत गई थी।
मधोक के इस बयान से देश में सनसनी फैली थी।
इस संबंध में मधोक ने अपने दल के नेताओं
के साथ-साथ सहयोगी दल संगठन कांग्रेस के नेता एस निजलिंगप्पा से भी भेंट की थी।
निजलिंगप्पा ने कहा था कि, “मधोक साहब ऐसा कुछ कह तो रहे थे, पर मैं नहीं
जानता सच्चाई क्या है?”
1969 में कांग्रेस का महाविभाजन हुआ था।
तब अविभाजित कांग्रेस के अध्यक्ष निजलिंगप्पा थे। महाविभाजन के बाद कांग्रेस दो
हिस्सों में बंट गई। मूल कांग्रेस का नाम संगठन कांग्रेस पड़ा और इंदिरा गांधी के
दल का नाम कांग्रेस ही रहा। निजलिंगप्पा संगठन कांग्रेस में थे। पार्टी में
महाविभाजन के बाद लोकसभा में इंदिरा सरकार का बहुमत समाप्त हो गया था और
कम्युनिस्टों के समर्थन से वह सरकार चला रही थीं।
अब मधोक के इन आरोपों पर जनसंघ, सत्तादल और
विपक्षी पार्टियों का क्या कहना था वो राजनीतिक झरोखा है। संक्षेप में लिखे तो
जनसंघ और अन्य विपक्षी पार्टियों ने ना ही इन आरोपों को सच कहा और ना ही झूठ! शायद
ये आरोप इनके लिए राजनीतिक सुविधा जैसे होंगे। सत्तादल का क्या प्रत्युत्तर रहा
होगा वो लिखने की भी ज़रूरत नहीं।
भारत में ईवीएम की
शुरुआत, पहली ही चुनौती में मामला जा पहुंचा था
सुप्रीम कोर्ट में
शायद सन 1982 में भारत में ईवीएम की
शुरुआत हुई थी। चुनाव आयोग ने इसे केरल के 50 बूथों पर टेस्ट केस के तौर पर आजमाया
था और बवाल इतना हुआ कि मामला कोर्ट पहुंच गया था। 1982 में केरल की पारावुर
विधानसभा सीट पर कांग्रेस के एसी जोस और सीपीआई के सिवन पिल्लई के बीच मुकाबला था।
मतदान से पहले ही सीपीआई उम्मीदवार पिल्लई ने केरल हाईकोर्ट में एक अपील दायर कर
आयोग द्वारा ईवीएम के इस्तेमाल को चैलेंज किया। नोटिस पाकर चुनाव आयोग भी कोर्ट
पहुंचा और मशीन का डेमो दिखाया तो कोर्ट ने दखल देने से इनकार कर दिया।
लेकिन कहानी में सबसे बडा ट्विस्ट अभी
बाकी था। खास बात ये रही कि कांग्रेस उम्मीदवार जोस ने पूरे मामले से दूरी बनाए रखी। नतीजे आए तो पिल्लई 123 वोटों से विजयी घोषित किए गए। हारने के बाद
कांग्रेस उम्मीदवार जोस भी हरकत में आए और कोर्ट में ये कह कर चुनौती दी कि ईवीएम
के इस्तेमाल से चुनाव प्रक्रिया कानूनों का उल्लंघन हुआ है। जब हाईकोर्ट ने फिर से
फैसला चुनाव आयोग के पक्ष में सुनाया तो जोस सुप्रीम कोर्ट चले गए। सुप्रीम कोर्ट
ने हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए दोबारा और वो भी बैलेट पेपर से चुनाव कराने का
आदेश दिया। मामला और भी दिलचस्प रहा। बैलेट पेपर से दोबारा चुनाव हुए तो कांग्रेस
के जोस चुनाव जीत गए।
इस पूरी कहानी में पहले ईवीएम का विरोध
सीपीआई उम्मीदवार ने किया और तब जोस ने चुप्पी बनाए रखी। जब जोस हारे तो उनकी
चुप्पी टूट गई और उन्होंने विरोध किया और हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक जा
पहुंचे! अब चुप्पी बनाने की बारी सीपीआई उम्मीदवार की थी! दिलचस्प तो यह था कि फिर
दोबारा चुनाव हुआ और हारने वाले जीत गए, जबकि जीतने वाले
हार गए!
जयललिता भी चली
गई थी कोर्ट
जयललिता अब दुनिया में नहीं हैं लेकिन
2001 में वे मद्रास हाईकोर्ट चली गईं। आरोप था कि ईवीएम में वोटर बटन दबाता है
लेकिन जब तक पीठासीन अधिकारी बटन नहीं दबाता, उसका वोट रजिस्टर नहीं होता है। अगर
किसी भी वजह से पीठासीन अधिकारी से बटन नहीं दबा तो वोटर का वोट गिना नहीं जाएगा।
जयललिता ने कहा था कि रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस और एम करुणानिधि ने भी ईवीएम
पर सवाल उठाए थे मगर जीतने के बाद चुप हो गए।
चंद्रबाबू नायडू
भी पीछे नहीं रहे
आप कह सकते हैं कि ईवीएम पर ठीकरा फोड़ने
में किसी दल का नेता पीछे नहीं रहा। जो हारा उसने ईवीएम को निशाने पर ले लिया। 2010
में तेलुगु देशम पार्टी के नेता चंद्रबाबू नायडू ने कहा था कि ईवीएम को टेम्पर
किया जा सकता है।
अरुण जेटली और
बीजेपी ने भी उठाया था मुद्दा
टाइम्स ऑफ इंडिया की अगस्त 2010 की एक
ख़बर के मुताबिक राज्यसभा में बीजेपी और लेफ्ट के नेताओं ने ईवीएम का मसला उठाया
था। अरुण जेटली ने मांग की थी कि, “सरकार इस पर सर्वदलीय बैठक बुलाए, कुछ तकनीकी
विशेषज्ञों को भी बुलाए ताकि जो संदेह हैं उन्हें दूर किया जा सके।” मार्च 2012 के
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में बीजेपी नेता किरीट सोमैया का बयान छपा था कि, “राज्यों के चुनाव
आयोग को ईवीएम में सुधार करना चाहिए ताकि इसे फुलप्रूफ बनाया जा सके।”
गुजरात में
कांग्रेस ने किया था ईवीएम का विरोध
ये मंजर बड़ा विचित्र ही कह लीजिए, जहां दूसरे
राज्यों में भाजपा ईवीएम पर सवाल उठा रही थी और कांग्रेस चुप्पी साधे हुई थी, वहीं 2010 में
गुजरात में कांग्रेस ने तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर ईवीएम मशीनों से
छेड़छाड़ का आरोप लगाया था! तब कांग्रेस निकाय चुनावों में हार गई थी।
लाल कृष्ण आडवाणी
भी नहीं रहे पीछे
इसी दौर में भाजपा के कद्दावर नेता लाल
कृष्ण आडवाणी ने कहा था कि, “पूरे विश्व के अनुभव के अनुसार ऐसी कोई चीज़ नहीं है जिसे
टेम्पर प्रूफ ईवीएम कहा जा सके।” मतलब ऐसी कोई मशीन नहीं है जिसके बारे में दावा किया जा
सकता है कि छेड़छाड़ नहीं हो सकती है।
ईवीएम और
सुब्रमण्यम स्वामी
ईवीएम मशीनों में छेड़छाड़ की संभावना को
लेकर सुब्रमण्यम स्वामी मुख्य चेहरा हैं और वे अदालत तक इस लड़ाई को लेकर गए। कभी
कांग्रेस, कभी जनता पार्टी तो कभी भाजपा में अपनी
पैंठ बिठाने वाले सुब्रमण्यम स्वामी ने भी एक एमआईटी प्रोफेसर के साथ मिलकर ये
दिखाया था कि ईवीएम मशीनों को कितनी आसानी से छेड़ा जा सकता है और नतीजे भी बदले
जा सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर 2013 में
सुब्रमण्यम स्वामी बनाम भारत निर्वाचन आयोग मामले में व्यवस्था देते हुए कहा कि
वीवीपीएटी स्वतंत्र तथा निष्पक्ष चुनावों के लिए अपरिहार्य है तथा भारत निर्वाचन
आयोग को वीवीपीएटी प्रणाली की सटीकता सुनिश्चित करने के लिए ईवीएम को वीवीपीएटी से
जोड़ने का निर्देश दिया।
भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी का एक
वीडियो टेप भी खूब चला था, जिसमें उन्होंने ईवीएम में छेड़छाड़ हो
सकने की बात कही थी। वीडियो में स्वामी कह रहे थे कि जापान में ईवीएम बने थे लेकिन
वहां चुनाव में मत पत्रों का ही इस्तेमाल होता है, क्योंकि मशीनों
से छेड़छाड़ की जा सकती है। वीडियो में भाजपा नेता को यह कहते सुना जा सकता था कि
यहां तक कि अमेरिका और जर्मनी जैसे देश ईवीएम की बजाय मत पत्रों का इस्तेमाल करते
हैं।
ईवीएम का विरोध
करते हुए भाजपा नेता लिख चुके हैं किताब
बीजेपी नेता और कभी बीजेपी के प्रवक्ता
रहे जीवीएल नरसिम्हा राव तो ईवीएम मशीनों में छेड़छाड़ की संभावना को लेकर एक किताब
भी लिख चुके हैं। किताब लिखकर उन्होंने ईवीएम मशीनों की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाए थे। हालांकि 2017 में उनकी सरकार के वक्त उनकी राय बदल चुकी थी! तब वे ईवीएम को
विश्वसनीय मानने लगे थे!
कैप्टन
अमरिंदर सिंह के ईवीएम पर वैविध्यपूर्ण बयान
2016 के सितंबर महीने में कैप्टन
अमरिंदर सिंह ने एक बयान दिया कि 2012 में चुनाव हारने के बाद उन्होंने मुख्य
चुनाव आयुक्त को लिखा था कि ईवीएम के बारे में विस्तार से जांच की जाए। इसे कैसे
फुलप्रूफ बनाया जा सकता है यह देखा जाए, क्योंकि कुछ देशों ने दोबारा बैलेट पेपर
का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। कांग्रेस ने पंजाब में लगातार कहा कि ईवीएम
फुलप्रूफ नहीं है। 2016 के सितंबर महीने में कैप्टन अमरिंदर सिंह ने फिर से ईवीएम
पर सवाल उठाया और कहा कि, “सरकारी अधिकारी ईवीएम से छेड़छाड़ कर सकते हैं इसलिए दूसरे
राज्यों से ईवीएम मशीनें लाईं जाएं।”
2017 में चुनाव जीतने के बाद कैप्टन
अमरिंदर सिंह ने जो कहा वो मज़ेदार था। उन्होंने कहा कि, “आम आदमी पार्टी
हार से बोखला कर ईवीएम में गड़बड़ी का आरोप लगा रही है।” पंजाब के सीएम
बनने के बाद 2017 में उन्होंने कहा कि, “अगर ईवीएम में
गड़बड़ी हुई होती, तो मैं पंजाब का
मुख्यमंत्री नहीं होता। यहां पर तीसरी बार अकाली दल की सरकार होती।” खयाल रखना होगा
कि 2017 में कैप्टन का ये बयान जिन दिनों आया, ठिक इन्हीं दिनों कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी की अगुवाई में 13 राजनीतिक दलों का प्रतिनिधिमंडल
ईवीएम की शिकायत लेकर राष्ट्रपति भवन पहुंचा था। सोचिए, उनकी पार्टी राष्ट्रपति
से मिलकर ईवीएम की शिकायत करती है, लेकिन उनका ही एक
सीएम ईवीएम में गड़बड़ी को खारिज कर देता है!!! अमरिंदर के तीनों बयानों से लगता है कि
वे हारने के बाद, हार के डर से तो
ईवीएम पर सवाल उठा रहे थे मगर जीतने के बाद उन्हें ईवीएम पर भरोसा हो गया!!!
ईवीएम को लेकर
महाभारत, 2017 में मायावती, केजरीवाल, अखिलेश, ममता समेत कइयों
ने ईवीएम पर आक्रमण ही कर दिया
2017 के विधानसभा चुनावों में हार मिलने
के बाद मायावती और अरविंद केजरीवाल ने ईवीएम पर जमकर धावा बोल दिया। यूपी में
मायावती को केवल 19 सीटें मिली। केजरीवाल की आम आदमी पार्टी पंजाब में 20 पर सिमट
गई। उन्हें यहां 75 से ज्यादा सीट मिलने की आश थी। वहीं गोवा में तो आम आदमी पार्टी
खाता ही नहीं खोल पायी। उसके बाद सबसे पहले मायावती ने तत्कालीन केंद्र सरकार पर
यूपी में ईवीएम से छेड़छाड़ का आरोप लगा दिया। उन्होंने बाकायदा प्रेस कोन्फरन्स कर
कहा कि, “यूपी में मोदी नहीं बल्कि मशीन ने उन्हें हराया है।” दूसरी ओर
केजरीवाल भी मायावती के रास्ते चल पड़े। उन्होंने भी पंजाब नतीजों के लिए ईवीएम पर
सारा दोष मड़ दिया। उन्होंने तो चुनाव आयोग से मांग की कि प्रस्तावित
एमसीडी चुनावों में बैलेट पेपर इस्तेमाल हो। हालांकि चुनाव आयोग ने उनकी ये मांग
खारिज कर दी। दूसरी पार्टियों ने सीधे तौर पर ईवीएम पर तो ठीकरा नहीं फोड़ा, लेकिन उनके
समर्थक सोशल मीडिया पर इसीको लेकर चर्चा करते और आरोप लगाते दिखे।
हारने वालों का चिंतन नहीं थमा। पहले हारने
पर आत्मचिंतन किया करते थे, लेकिन लगा कि अब हार का ठीकरा फोड़ने के
लिए मशीन तो है! अरविंद केजरीवाल
ने कहा कि पंजाब में ईवीएम मशीन से आम आदमी पार्टी के 20 से 25 प्रतिशत मत शिरोमणी
अकाली दल तथा कांग्रेस को बदली किए गए थे। भाजपा नेता हरसिमरत कौर ने केजरीवाल
के आरोपों का बड़ा तीखा सवाल पूछकर जवाब दिया। उन्होंने कहा कि, “जब दिल्ली में 70
में 67 सीटें आम आदमी पार्टी को मिली तब ईवीएम ठीक लगे थे और आज बुरे क्यों लगने लगे?” कौर का ये सवाल
वाकई जायज था। वैसे जायज तो यह भी था कि कौर ये बताती कि यही ईवीएम उनकी पार्टी
और उनके नेताओं को इतने बुरे क्यों लगे थे कि उन्होंने तो पूरी की पूरी किताब ही लिख
डाली।
इतिहास को छोड़ दे तब भी ये सवाल तो जायज
थे कि जब जीते तब ईवीएम प्यारे लगे और हारने पर ईवीएम बेवफा से दिखे इसके पीछे कौन
सा एंगल हो सकता है। आत्मचिंतन या मंथन में ईवीएम को दोष देना हारने वालों के लिए सुविधा की राजनीति होगी यह भी कहा जा सकता है।
मायावती ने तो ईवीएम के कथित घोटाले के
हेंडबिल भी बांटे। मायावती ने पार्टी की बैठक में इस मुद्दे को उठाया और ईवीएम मशीन
में कथित घोटाले के हेंडबिल बांटने लगी। वैसे यहां ये लिखना होगा कि ये बैठक हार के
ऊपर मंथन के लिए थी। लेकिन मंथन के पहले या मंथन के बाद बिल ही निकले! मायावती ने तो
यहां तक कहा कि वो इस मामले को लेकर कोर्ट जाएगी।
अखिलेश यादव ने भी इसी नतीजों के बाद
ईवीएम पर सवाल उठाए थे। उन्होंने अपनी हार के लिए मीडिया और ईवीएम, दोनों को
जिम्मेदार ठहराया। कहा जा सकता है कि ईवीएम पर शायद ये सबसे बड़ा विवाद था। क्योंकि
दो तत्कालीन मुख्यमंत्री और एक पूर्व मुख्यमंत्री इस पर ठीकरा फोड़ रहे थे। अब ये
आरोप कितने सच या कितने झूठ थे वो एक दूसरा विषय है। हालांकि कांग्रेस से किसी बड़े नेता ने ईवीएम को सीधा निशाना नहीं लगाया, लेकिन दिल्ली
प्रदेश अध्यक्ष अजय माकन ने ईवीएम पर टिप्पणियां ज़रूर की थी।
उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव 2017 में
ईवीएम से छेड़छाड़ किए जाने के आरोपों के बीच पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता
बनर्जी ने 17 मार्च 2017 को कहा कि चुनाव आयोग को इस मुद्दे पर चर्चा के लिए एक
सर्वदलीय बैठक बुलानी चाहिए। ममता ने कहा कि कोई स्वीकार करे या ना करे यह पूरी
तरह से उनकी पसंद है,
लेकिन चुनाव आयोग एक सर्वदलीय बैठक बुला सकता है। उन्होंने कहा कि, “मैंने भाजपा नेता
सुब्रमण्यम स्वामी का भी एक वीडियो टेप देखा है जिसमें उन्होंने ईवीएम में
छेड़छाड़ हो सकने की बात कही है।”
ये आरोप-प्रत्यारोप का दौर इतना बढ़ा कि
चुनाव आयोग को दो बार बयान देने पड़े और कहना पड़ा कि ये निराधार आरोप है। चुनाव
आयोग ने तो यहां तक कहा कि जिन्हें शक है वो इसे साबित करके दिखा दे। आयोग ने ईवीएम
टेंपरींग की बात को सिरे से खारिज कर दिया और लोगों की जानकारी के लिए ईवीएम से
संबंधित विवरण भी दिया। आयोग ने कहा कि जिन्हें नतीजों के ऊपर कुछ संदिग्ध लगता हो
वो कोर्ट जा सकते हैं।
ईवीएम में गड़बड़ी
साबित करने की चुनाव आयोग की चुनौती
भिंड की विवादित घटना के पश्चात दिल्ली के तत्कालीन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने चुनाव आयोग को चुनौती दी थी कि, “हमें वक्त दे दीजिए, हम ईवीएम को
टेंपर करके दिखा देंगे।” ईवीएम मशीनों में गड़बड़ी के “होलसेल आरोपों” के बीच
केंद्रीय चुनाव आयोग ने चुनौती देते हुए कहा कि, “हम तारीख तय
करेंगे, ईवीएम में गड़बड़ी हुई है ऐसा मानने वाले इसे साबित करके दिखा दे।” 2009 के बाद यह दूसरा मौका था कि जब चुनाव आयोग को फिल्मी
स्टाइल में चुनौती का सहारा लेना पड़ा हो। अब राजनीतिक दलों और उनके प्रतिनिधियों पर
था कि वो इस चुनौती को स्वीकार करते या फिर आरोपों की पारंपरिक गलियों में खोए रहते।
उत्पादक स्वयं भी
ईवीएम के साथ छेड़छाड़ नहीं कर सकता – चुनाव आयोग का दावा
ईवीएम मशीनों को लेकर हो रहे विवादों के
बीच चुनाव आयोग ने एक और दावा ठोक दिया। चुनाव आयोग ने कहा कि ईवीएम के साथ किसी
प्रकार की छेड़छाड़ नहीं हो सकती। चुनाव आयोग ने दावा किया कि, “मशीनों के उत्पादन
के समय उत्पादक भी मशीन के साथ किसी प्रकार की छेड़छाड़ नहीं कर सकते।” आयोग ने ईवीएम
मशीनों के बारे में कहा कि, “एम1 ईवीएम मशीनों का उत्पादन 2006 तक हुआ। उसके अंदर वो तमाम
विशिष्टताएं थी कि उसे हैक करना नामुमकिन था। 2006 से 2012 तक एम2 मशीन बनाए गए।
इन मशीनों के अंदर ज्यादा सिक्योरिटी फिचर्स डाले गए थे।” आयोग ने कहा कि, “ईसीआई-ईवीएम मशीन ऐसे मशीन हैं कि जिन्हें कंप्यूटर से कंट्रोल नहीं किया जा सकता तथा इंटरनेट या
अन्य किसी नेटवर्क से कनेक्ट भी नहीं किया जा सकता। इन्हें रिमोट के जरिए भी हैक
नहीं किया जा सकता।”
ईवीएम का विवाद
राष्ट्रपति भवन पहुंचा, विपक्षी
पार्टियों ने की शिकायत
पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद ईवीएम पर हंगामा चुनौतियों वाले फिल्मी स्टाइल से होता हुआ राष्ट्रपति भवन
जा पहुंचा। 12 अप्रैल 2017 के दिन विपक्षी पार्टियों ने तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब
मुखर्जी के सामने ईवीएम को लेकर अपनी शिकायत रखी। कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी
के नेतृत्व में 13 राजनीतिक दलों के नेताओं का प्रतिनिधिमंडल राष्ट्रपति भवन पहुंचा
था। मजेदार बात तो यह थी कि पंजाब में कांग्रेस की जीत के बाद सीएम बने कैप्टन
अमरिंदर सिंह ने इन्हीं दिनों एक बयान में कहा था कि, “अगर ईवीएम में
गड़बड़ी हुई होती, तो मैं पंजाब का
मुख्यमंत्री नहीं होता। यहां पर तीसरी बार अकाली दल की सरकार होती।” अब ये मंजर
वाकई विश्लेषण के लायक है, जहां उनकी पार्टी बाकी विपक्षों को लेकर
राष्ट्रपति से ईवीएम की शिकायत करती है, लेकिन उनका एक
सीएम ईवीएम को बाइज्जत बरी कर देता है!!!
पेंटागन हैक किया
जा सकता है तो ईवीएम क्यों नहीं – कपिल सिब्बल
वैसे कपिल सिब्बलजी ने पिछले 10 सालों से
ईवीएम पर इतनी तीखी टिप्पणी नहीं की थी। लेकिन अब उनकी पार्टी सत्ता में नहीं थी और
शायद यही पारंपरिक वजह उन्हें इस टिप्पणी तक ले आई। क्योंकि भाजपा हो, कांग्रेस हो या
कोई और हो, जब सत्ता गवाते या सत्ता में नहीं होते तब
ही ईवीएम को लेकर शिकायत करते दिखे थे। अप्रैल 2017 में सुप्रीम कोर्ट में ईवीएम को
लेकर एक सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल ने कहा कि, “दक्षिण अफ्रिका
के सिवा किसी देश में ईवीएम का इस्तेमाल नहीं होता। हर तकनीक को हैक किया जा सकता
है। अगर पेंटागन हैक किया जा सकता है, तो ईवीएम क्या
चीज़ है।” जब जज ने कहा कि
ईवीएम से बूथ कैप्चरिंग बंद हो चुका है तब उन्होंने ये बात कही थी। ये नेता भी बड़े कमाल के होते हैं। शायद कपिल सिब्बल के हिसाब से ईवीएम 2014 के बाद बेकार मशीनें बन
गई थी, क्योंकि इससे पहले उनकी सरकार में सब ठीक
था? सवाल यह भी पूछा
जा सकता है। कमाल तो यह है कि उनकी सरकार के वक्त आधार कार्ड को लेकर भी जो दलीलें आती थी उसका कॉपी-पेस्ट इन्होंने अब ईवीएम मामले में किया था।
इतिहास में प्रथम
बार विधानसभा के अंदर ईवीएम हैकिंग का लाइव डेमो, चुनाव आयोग को
भारद्वाज ने दी खुल्ली चुनौती- गुजरात की मशीनें हमें दे दो, हम नतीजे बदल
देंगे
9 मई 2017 के दिन दिल्ली की आम आदमी
पार्टी सरकार ने दिल्ली विधानसभा के अंदर ईवीएम हैकिंग का लाइव डेमो किया। ये
भारत के राजनीतिक इतिहास की पहली घटना थी, जब किसी विधानसभा
के अंदर इस प्रकार डेमो किया गया हो। आम आदमी पार्टी द्वारा बुलाए गए दिल्ली
विधानसभा के विशेष सत्र में ईवीएम जैसी मशीन को कैसे हैक किया जा सकता है इसके
बारे में विस्तार से जानकारी दी गई। ग्रेटर कैलाश से पार्टी के विधायक सौरभ
भारद्वाज ने पार्टी की तरफ से यह बताया कि कैसे मशीन की कोडिंग बदलकर के उसको कोई
भी इंजीनियर आसानी से हैक कर सकता है।
डेमो की शुरुआत करते हुए सौरभ ने सबसे
पहले मॉक पोलिंग की, जैसे कि आमतौर पर चुनाव आयोग चुनाव शुरू होने से पहले पोलिंग
एजेंट के सामने करके दिखाता है। उसमें सभी पर वोट की गिनती सही तरीके से आती है।
सौरभ ने कहा कि, “जब चुनाव खत्म हो जाता है उसके बाद मशीन को सील कर दिया
जाता है। मशीन सील करने के बाद स्ट्रांग रूम में रख दी जाती है। लेकिन मतगणना से
पहले चुनाव आयोग के अधिकारी उसमें पार्टी विशेष के सीक्रेट कोड को बदल देते हैं।” सौरभ ने कहा कि, “ईवीएम में हर
पार्टी का सीक्रेट कोड होता है। सीक्रेट कोड की मदद से छेड़छाड़ संभव है। भिंड में
जो मशीन आई थी, वो यूपी से आई
थी। उसमें वीवीपैट था और जो कोई भी वोट डालता था, वो बीजेपी को जाता था।” उन्होंने कहा कि, “मैंने सभी बड़ी
बड़ी कंपनियों में काम किया है और मैं सभी बड़े से बड़े साइंटिस्ट को चैलेंज करता
हूं। तीन घंटे में आसानी से कोई भी ईवीएम को हैक कर सकता है। गुजरात में जो मशीन
चुनाव के लिए दी जानी है उनको हमें दे दो, हम पूरा चुनाव बदल दे सकते हैं। अगर ऐसा
नहीं हुआ तो मैं राजनीति छोड़ दूंगा।” उन्होंने कहा कि, “ईवीएम का केवल
मदरबोर्ड चेंज करना है, बाकि काम अपने आप हो जाएगा। दुनिया के अंदर कोई भी ऐसी
मशीन नहीं है जो हैक नहीं हो सकती है। क्रिकेट मैच फिक्सींग की तरह ईवीएम की भी फिक्सींग
संभव है।”
मशीन का डेमो देखने के लिए जदयू, टीएमसी, राजद और सीपीएम
के नेता विधानसभा में मौजूद थे। पार्टी की नेता अल्का लांबा ने कहा कि नई ईवीएम
होते हुए भी एमसीडी के चुनाव पुरानी मशीन से क्यों हुए। भारद्वाज ने सीधे चुनौती
दे डाली और कहा कि, “हमें असली ईवीएम दे दीजिए, 90 सेकंड में हैक
करके दिखा देंगे। 3 घंटे के लिए ईवीएम दे दीजिए, गुजरात में एक भी
सीट भाजपा को नहीं मिलेगी।” वैसे ये राजनीतिक बयानबाजी या स्टंटबाजी ज्यादा हो सकती थी, क्योंकि
व्यावहारिक और संवैधानिक तरीके से ये मुमकिन नहीं था कि चुनाव आयोग के ईवीएम किसी
चुनौतीबाज के हवाले कर दिए जाए।
लाइव डेमो पर
पक्षों तथा चुनाव आयोग की प्रतिक्रियाएं
अब इस पर सत्ता पक्ष की राय देख लीजिए।
भाजपा ने कहा कि, “ये भ्रष्टाचार के आरोपों से बचने की नौटंकी है।” वही भाजपा जो
2014 से पहले ईवीएम टेंपरींग को लेकर गाहे-बगाहे आरोप लगाती रही थी और पूरी बुक तक
लिख डाली थी। कांग्रेस ने बीच का स्टैंड लिया और खुलकर कुछ नहीं कहा। वैसे कहते तो
पंजाब की जीत और अन्य जगह पर हार का मैनेजमेंट शायद उनसे मुश्किल हो जाता!
चुनाव आयोग ने कहा कि जिस मशीन का डेमो
आप विधायक ने दिल्ली विधानसभा में दिखाया वह असली ईवीएम नहीं है, उससे मिलती जुलती
मशीन है। चुनाव आयोग ने फिर एक बार कहा कि ईवीएम को हैक किया नहीं जा सकता। आयोग की
तकनीकी समिति की सदस्य रजत मोना ने कहा कि, "विधानसभा में जिस
मशीन पर छेड़छाड़ का प्रदर्शन किया गया है वह ईवीएम की तरह दिखने वाला एक उपकरण
मात्र है, ईवीएम नहीं। इस
मशीन के आधार पर ईवीएम को हैक करने का दावा निराधार है।"
चुनाव आयोग की ओर से चौंकानेवाला बयान
आया कि, “अगर भारद्वाज असली ईवीएम लाए होंगे तो उनके खिलाफ चोरी का
मामला चलेगा।” चौंकानेवाला इस
लिहाज से कि चुनाव आयोग ईवीएम को रेप्लिका कह के इस लाइव डेमो को सिरे से खारिज कर
रहा था, वहीं दूसरी ओर कह रहा था कि अगर असली
ईवीएम होगा तो कदम उठाएंगे। यानी कि ईवीएम हैक नहीं हो सकता लेकिन ईवीएम को कोई
पार्टी चुरा ज़रूर सकती है!!! खैर, ये मजाकिया तर्क इसलिए क्योंकि चुनाव
आयोग की प्रतिक्रिया संस्थागत तरीके से ठीक नहीं थी। या तो अपने ईवीएम को हैक करने
की चुनौती दोहराकर लोकतंत्र के ऊपर उठ रहे इन सवालों को सिरे से खारिज करने का
प्रयास करना था या फिर रेप्लिका को जांच कर सही ईवीएम और रेप्लिका वाले ईवीएम में
फर्क दिखाकर इस राजनीतिक प्रयास का अंत करना था। बजाय एक राजनीतिक पार्टी के साथ
बयानबाजी करने के। हालांकि बाद में चुनाव आयोग ने आम आदमी पार्टी को इसी महीने के
अंत में ईवीएम की सुरक्षा जांच के लिए आयोजित होने वाली हैकाथॉन में भाग लेने के
लिए चुनौती दी।
चुनाव आयोग ने
आयोजित कर ही दिया ईवीएम का स्वयंवर, सबसे ज्यादा
तिलमिलाने वाली आप पार्टी ही रही दूर
आखिरकार ईवीएम पर उठ रहे गंभीर विवादों का खात्मा करने का वक्त आ गया था। चुनाव आयोग ने 20 मई के दिन अपने लाइव डेमो के
बाद तमाम राजनीतिक पार्टियों को 3 जून की तारीख दी। तमाम राजनीतिक पार्टियों को
चुनाव आयोग ने कहा कि वे 3 जून 2017 को आए और ईवीएम को हैक करके दिखा दे। हैक
करने के लिए पांच राज्यों के चार ईवीएम को पसंद करने की बात कही गई। नसीम जैदी ने
कहा कि, “जिन्हें ईवीएम हैक करना हो वे ईमेल या ऑनलाइन अर्जी के जरिये
हिस्सा ले।” यानी कि अब वो
हिस्सा आ चुका था जो बिलकुल सीधा और सही भी था। क्योंकि इस दफा ईवीएम को लेकर
काफी बवाल उठ खड़ा हुआ था और अब राजनीतिक पार्टियों पर निर्भर था कि वे ईवीएम हैक
स्वयंवर में हिस्सा लेते हैं या नहीं। अब वो वक्त तय हो चुका था कि हिस्सा लेने के
बाद उपलब्ध कराए गए चार घंटों में वे अपने इल्जामों को साबित करते हैं या फिर देश के
सामने अपनी फजीहत करवाते हैं। ईवीएम के साथ छेड़छाड़ करने का आरोप लगा रहे राजनीतिक
दलों के लिए आयोग ने 26 मई की शाम पांच बजे तक आवेदन मंगाया था।
लेकिन इस मामले में सबसे ज्यादा उग्र दिख
रही आम आदमी पार्टी स्वयंवर से पहले ही अपनी फजीहत करवा बैठी। जिस पार्टी ने
विधानसभा जैसी संवैधानिक जगह पर ईवीएम हैकिंग का लाइव डेमो दिया था, वही पार्टी हैकिंग
मैराथोन से भागती हुई दिखी! आम आदमी पार्टी ने सबसे पहले ईवीएम के मदरबोर्ड को
लेकर अपनी मांग आयोग के सामने रखी। चुनाव आयोग ने 25 मई को ईवीएम के मदरबोर्ड या
आंतरिक सर्किट में छेड़छाड़ करने की इजाज़त देने की आम आदमी पार्टी की मांग को
खारिज कर दिया। आयोग ने इस दल को चिट्ठी लिखकर कहा कि, “मदरबोर्ड में
बदलाव की अनुमति देना किसी व्यक्ति को नई मशीन बनाने या फिर चुनाव आयोग की प्रणाली
में नवनिर्मित ईवीएम की अनुमति देने जैसा होगा जोकि असंभव और अतार्किक है।” आयोग ने कहा कि, “यह एक सामान्य सी
बात है कि किसी भी इलेक्ट्रॉनिक मशीन के मदरबोर्ड या इंटरनल सर्किट सिस्टम को
बदलना पूरे उपकरण को बदलने जैसा है। इसे बदलने के बाद इस मशीन का स्वरूप ही बदल
जाएगा। लिहाजा, हम आपकी मांग को
खारिज करते हैं और तय मानकों के आधार पर ही ईवीएम चैलेंज साबित करने की चुनौती देते
हैं।”
वैसे आम आदमी पार्टी की यह मांग विचित्र
ही कही जा सकती थी। उसने विधानसभा में लाइव डेमो भले रेप्लिका पर दिया हो, लेकिन उसे साबित
करना था कि चुनाव आयोग के ईवीएम हैक हो सकते हैं। उनके युवा नेता सौरभ तथा आम आदमी
पार्टी ने देश के सामने चुनाव आयोग को खुल्ली चुनौती दी थी कि अपने ईवीएम हमारे
हवाले कर दो, हम कुछ ही घंटों में उसे हैक करके दिखा
देंगे, गुजरात के चुनाव नतीजे बदल देंगे वगैरह वगैरह। लेकिन इस मामले में मदरबोर्ड वाली मांग करना और फिर हैकिंग की चुनौती से खुद
को दूर कर देना आम आदमी पार्टी की खासी फजीहत करवा गया। अरविंद केजरीवाल पर पहले
से ही विरोधी आरोप लगाते रहे थे कि केजरीवाल तथा उनकी पार्टी शोरगुल मचाने के लिए ही आरोप लगाते हैं, जबकि उनके पास कोई आधार नहीं होता। इस
दफा केजरीवाल और उनकी पार्टी ने विरोधियों की ये बात कुछ कुछ सही साबित कर दी थी।
चुनाव आयोग के सामने उन्होंने खुल्ली चुनौती दी थी कि अपने ईवीएम हमें दे दो। अब जब
चुनाव आयोग ईवीएम दे रहा था तो वे मदरबोर्ड के पीछे लग गए और फिर धीरे से खुद को
इस चुनौती से दूर भी कर दिया!!!
महीनों से चले आ रहे इस प्रकरण में ईवीएम
की जितनी फजीहत नहीं हुई, उतनी आखिर में तो आम आदमी पार्टी तथा
उनके नेताओं की हुई। वहीं, शरद पवार की एनसीपी ने इस प्रतियोगिता
में खुद को उतारकर सभी को चौंका दिया। 26 मई की शाम होते होते खबरें आई कि एनसीपी
ने आयोग की चुनौती स्वीकार की है।
आखिरकार ईवीएम के
स्वयंवर का दिन आया, लेकिन सारे दल चुनौती से भागते हुए
दिखाई दिए
3 जून 2017 का वो दिन आ ही गया, जब चुनाव आयोग
ने ईवीएम हैकिंग के लिए दिन तय किया था। दो स्तर में होने वाले इस चैलेंज में
अलग-अलग राज्यों से 14 मशीनें हैक के लिए मंगवाई गई। एनसीपी की ओर से वंदना हेमंत
छावन, गौरव जयप्रकाश
झाचक और यासिन हुसैन शेख चुनाव आयोग के हेडक्वार्टर पहुंचे। ये हैकिंग चैलेंज सुबह
10 बजे से 2 बजे तक चला। इसके लिए एनसीपी और सीपीआई दोनों ही अपने 3 सदस्यीय टीम
का नाम चुनाव आयोग को सौंप चुकी थी। हालांकि एनसीपी इस पर अपने तर्क या विरोध जता
चुकी थी।
सीपीएम और एनसीपी के प्रतिनिधि वहां पर
पहुंचे थे। दोनों ही दलों के प्रतिनिधियों को चार-चार ईवीएम दी गई थी। लेकिन दो
घंटे बाद सीपीएम और एनसीपी ने साफ किया कि वे केवल प्रक्रिया को समझने आए थे!!! यानी
कि कई महीनों से ईवीएम को लेकर शोरगुल करने वाले तमाम राजनीतिक दल आधिकारिक रूप से
दूबकते नजर आए!!! बीच बाज़ार या मीडिया पर ढेरों दावे करने वालों से कोई नहीं आया और जो
आया उन्होंने कहा कि वे तो प्रक्रिया को समझने आए थे! सीपीएम तो पहले ही मान चुका
था कि ईवीएम टेंपर प्रूफ है और वे सिर्फ मौके का इस्तेमाल करेंगे। इस चैलेंज को
मीडिया को देखने की इजाज़त नहींं थी। चुनाव आयोग ने कहा था कि वह पीआईबी के ट्विटर
हैंडल के जरिए जानकारी लगातार साझा करते रहेंगे।
ईवीएम और लोकतंत्र को खतरा समेत कई सारे जुमले फेंकने वाले खुद जुमला बन गए। सीपीएम और एनसीपी तो जैसे विजिटिंग गेस्ट
बनकर गए और लौट आए! बाकियों ने तो यह
ज़हमत भी नहीं उठाई!!! पिछले दो महीनों में करीब 16 राजनीतिक दल चुनाव आयोग जाकर अधिकारियों से बात कर चुके थे, लेकिन कोई अपनी
बात देश के सामने साबित करने नहीं उतरा।
सुप्रीम कोर्ट
में चुनाव आयोग का दावा - हमारी ईवीएम अमेरिकी वोटिंग मशीनों से बेहतर, नहीं हो सकती हैक
सुप्रीम कोर्ट में बीते दिनों कई याचिका
दायर की गई थी, जिसमें ईवीएम की विश्वसनीयता पर सवाल
उठाए गए थे। अगस्त 2017 के प्रथम सप्ताह में चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में ईवीएम
को लेकर दिए जवाब में कहा कि हमारी मशीनें पूरी तरह से हैक प्रूफ और विश्वसनीय है।
इन्हें हैक नहीं किया जा सकता है। कोर्ट में हलफनामा पेश करते हुए आयोग के निदेशक
विजय कुमार पांडे ने कहा कि, “ऐसी याचिकाओं को
खारिज किया जाना चाहिए, जिसमें ईवीएम हैकिंग की बात कही जा रही है।” चुनाव आयोग ने
यह भी कहा कि, “भारत में
इस्तेमाल होने वाली ईवीएम मशीन अमेरिका, जर्मनी, नीदरलैंड और आयरलैंड में इस्तेमाल होने
वाली ईवीएम मशीनों से कहीं बेहतर है।” आयोग ने बताया कि, “विदेश में जो ईवीएम मशीनें इस्तेमाल होती हैं वह इंटरनेट से
जुड़ी है। जबकि हमारे यहां ऐसा नहीं है। भारत में जो ईवीएम इस्तेमाल होती है वह
पूरी तरह से आंतरिक प्रक्रिया पर काम करती है। ये मशीनें किसी भी तरह से इंटरनेट
से जुड़ी नहीं है इसलिए इन्हें हैक नहीं किया जा सकता है।”
सवाल उठना लाजमी था कि हमारी ईवीएम
मशीनें हैक प्रूफ है और इतनी सक्षम है तो आये दिन ऐसी गड़बड़ी क्यों हो जाती थी, जिसमें मशीनें बटन
के आदेश को माने बगैर ही किसी एक पार्टी को ही फ्लेस करती थी। चुनाव आयोग के इस
दावे पर तंज कसे जाने लगे कि क्या मशीनें हैक प्रूफ वाले मुद्दे पर इतना ध्यान दे
देती थी कि ऐसी तकनीकी गड़बड़ियां रोकी नहीं जा सकी।
आरोप-प्रत्यारोप और बचाव करने वाले दल बदले... पर मंजर नहीं बदला
2017 में ईवीएम को लेकर जो विवाद हुआ था
वो शायद अब तक का सबसे बड़ा और लंबा विवाद था। ईवीएम का स्वयंवर मांगा गया, स्वयंवर भी हुआ, लेकिन आरोप
लगाने वाले शायद इस खिड़की को खुली ही रखना चाहते होंगे। ईवीएम विवाद को लेकर शुरू से अब तक देखे तो एक बात स्पष्ट दिखाई देती थी। सारे विवादित मामलों में सत्तादल
ईवीएम के साथ जीवनसाथी बनकर खड़ा रहता और जो भी विपक्ष होता वो ईवीएम को कोसने
लगता। 2014 से पहले कांग्रेस ने जो भूमिका निभाई वो 2014 के बाद भाजपा निभा रही थी
और भाजपा की 2014 के पहले की भूमिका में कांग्रेस दिखाई दे रही थी। भाजपा ने ईवीएम
का बचाव करते हुए कहा कि वोटिंग मशीनों पर सवाल उठाना जनादेश के खिलाफ सवाल उठाने
के बराबर है। यानी कि ईवीएम को लेकर आरोप-प्रत्यारोप का जो
मंजर था वो जस का तस रहा... केवल चेहरे बदले और उनके बयान बदले।
वैसे ईवीएम और आधार, इन दोनों के बारे
में एक चीज़ तय है कि यह दोनों विपक्ष के हिसाब से खतरा है और असुरक्षित हैं, जबकि सत्तादल के
हिसाब से ये सौ फीसदी सुरक्षित हैं। लगता है कि इंसान के बजाय ईवीएम या आधार का
अवतार मिलता तो सरकारें हमें ज्यादा संभालती।
(इंडिया इनसाइड, मूल लेखन 16
मार्च 2017, एम वाला)
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