नरेन्द्र दामोदरदास मोदी, इस राजनीतिक शख्सियत में वो सारी चालाकियां हैं कि वो
अगर आज विपक्ष के साथ हो जाए तो देश को यह मानना पड़ेगा कि 2014 के बाद की भाजपा की
सरकार अब तक की सबसे घटिया सरकार थी!!! एक अकल्पनीय चीज़ मान लीजिए कि नरेन्द्र मोदी विपक्ष के पीएम उम्मीदवार है। तो
क्या होगा? वो देश को यकीन
दिला देंगे कि पिछले पांच साल में सरकार ने हमारी 70 सालों की मेहनत पर पानी फेर
दिया है!!!
बड़बोलेपन का हुनर
इनमें ठूंस ठूंस के भरा है। वो बोलना जानते हैं। परहेज नहीं करते कि कब बोलना है। बस
बोलना, बोलना और बोलना। इतना बोलते हैं कि किसीके पास उनसे कुछ पूछने का वक्त ही
नहीं बचता! इतना बोलते हैं कि किसीके पास वक्त नहीं बचता कि कोई और क्या बोला इसके बारे में सोचा जाए! वो बहुत बहुत बहुत ही बोलते हैं। इससे भी बड़ी बात यह है कि वो अपने बारे में
नहीं बल्कि औरों के बारे में ही बोलते हैं। वो विपक्ष में हो तब सरकार से ज्यादा
बोलते हैं! सरकार उनकी हो तब वो विपक्ष से भी
ज्यादा बोलते हैं! लेकिन हर बार दूसरों के बारे में बोलते
हैं। ताकि उनके बारे में कोई बात ही ना हो पाए, बल्कि बात ये हो कि वो क्या बोले हैं।
वो परहेज नहीं करते कि वो क्या बोलते हैं। वो बस बोलते हैं। गुजरात में कहावत है कि
बोले एना बोर वेचाय। बचपन से इन्हें इसी कहावत से लगाव रहा होगा। वो बोलते ही रहते
हैं। सच या झूठ, तर्क या तथ्य, आंकड़े या जानकारी, उन्हें इन सबसे कोई लेना-देना नहीं है। उन्हें बस बोलना है। उनका बोलना इतना ज्यादा होता है कि बोलना ही न्यूज़ बन जाए।
क्या बोला यह न्यूज़ ना बने। वो इतिहास को भी आलू-मटर की तरह छील देते हैं। वो
अर्थशास्त्र में भी भावना ले आते हैं। वो बस बोलते हैं। वो एक ही चीज़ इतनी बार बोलते
हैं कि बस फिर देश वही बोलने लगता है!
नेहरू उनके सामने
कभी चुनाव लड़ने नहीं आने वाले, लेकिन फिर भी वो नेहरू कथा छोड़ते नहीं। क्योंकि नेहरू के नाम पर जो लोग चुनाव लड़ते हैं उनका इतिहास वाला मजबूत हथियार ही धुंधला कर देना
है। नेहरू ने जो नहीं किया होता उस पर भी वो कह देते हैं कि नेहरू ने यह किया था! नेहरू ने जो नहीं कहा था, वो बोल देते हैं कि नेहरू ने कहा था! नेहरू तो बोलने के
लिए है नहीं कि मैंने यह नहीं कहा था। बस ये बोलते ही रहते हैं कि कहा था या किया था! जब देश ढूंढना शुरू करता है तो वे फिर से बोल देते हैं। देश ढूंढना छोड़कर पहले
सुनना शुरू कर देता है। सुनने के बाद एक दूसरे को कहने लगता है। फिर सब मिलजुल कर
तय करते हैं कि चलो ढूंढा जाए कि कहा था या नहीं कहा था। तभी वो फिर एक बार बोल देते
हैं। लोगों को सुनना पड़ता है फिर एक बार। यह चक्र इतनी तेजी से चलता कि फिर लोग
ढूंढना छोड़कर सुनना ही पसंद करने लगते हैं! एक वक्त तो ऐसा आता है कि लोग ऊब जाते
हैं, लेकिन वो नहीं थकते। वो बोलते ही रहते हैं। लोग भूल जाते हैं कि उन्हें क्या पसंद
है या क्या नहीं पसंद! वो इतना बोलने लगते हैं कि लोग ये ढूंढना भी छोड़ देते हैं कि
उन्हें क्या सुनना था!
इतिहासकार पूरी जिंदगी
बीता देता है कुछ चीजें ढूंढने में। इधर मोदीजी पल भर में पता लगा लेते हैं कि इस साल के
फलांने फलांने दिन, दोपहर के बाद इंदिराजी ने रुमाल नाक पर रखा था! इतिहासकार अपना इतिहास छोड़कर रुमाल और नाक का इतिहास ढूंढने में लग जाता है! लेकिन इतिहासकार को भी आखिरकार ऊपरवाले पैरा में लिखा वैसे, यह ढूंढना छोड़ देना पड़ता है कि नाक और रुमाल का इतिहास क्या था। क्योंकि इतिहास आलू की तरह छील
गया होता है।
फेक न्यूज़ पकड़नेवाले आज-कल साबित कर देते हैं कि फलांना फलांना विषय इस तरह से फेक है। फेक
न्यूज़ पकड़ने वाले विशेषज्ञ तथ्यों और तर्कों से साबित कर देते हैं कि फलांना फलांना विषय बेसिकली
झूठा है। नायक मोदी उसी विषय पर बोल देते हैं!!! उन्हें कोई शर्म या डर नहीं कि वो उसी चीज़ पर बोल रहे हैं जिसका बाजा पहले ही बज
चुका है!!! वो इतना बोलते हैं
कि फेक न्यूज़ पकड़नेवालों को ही लोग फेक बोलने लगते हैं! वो सुबह जिसे भाषणों में गाली दे रहे हो उसे शाम को अपनी पार्टी में बाइज्जत
शामिल कर लेते हैं! फिर इतना बोलते हैं कि लोग उन पर सवाल
नहीं उठाते कि किसी ऐहरे-गेहरे को आप अपनी पार्टी में क्यों उठा लाए? लोग यही सोचते हैं कि सामनेवाला कमजोर हो गया!
वो कुछ भी बोल
देते हैं। आज उन्हें विपक्षी पार्टियां अपना पीएम उम्मीदवार बना दे तो वे बेखौफ होकर
जोरों से भाषण करेंगे कि, “भाइयों-बहनों, पिछले 5
सालों से भाजपा ने कांग्रेस के पिछले 70 सालों की मेहनत पर पानी फेरा है। भाइयों-बहनों,
हमने पिछले 70 सालों से खून देकर इस भारत माँ की सेवा की है। लेकिन इस दो लोगों की
सरकार ने पिछले 5 सालों में देश को 500 साल पीछे धकेल दिया है। भाइयों-बहनों... मेरे
साथ पुरी ताकत से हाथ उठाइए और अपनी भारत माता के पैरों में प्रणाम करके बोलिए कि अब
की बार इस सरकार को पाकिस्तान के समंदर में डाल देंगे।”
अगर वो विपक्ष के
पीएम उम्मीदवार होते तो जीएसटी पर भी इतिहास छेड़ देते! जीएसटी विषय है अर्थशास्त्र का, लेकिन वो पूरा शास्त्र लिख देते, आगे का अर्थ
निकालकर! कहते कि, “भाइयों-बहनों... जी... एस... टी...। जी यानी
गुजरात... एसटी यानी स्टेट ट्रान्सपोर्ट। जीएसटी जैसे विषय को इस भाजपा की सरकार
ने गुजरात की एसटी बस जैसा बना कर रख दिया है मित्रोंओंओंंओं। हमने दिन-रात एक करके
जीएसटी का पूरा खाका तैयार करके रखा था। हमने 18-18 घंटे काम किया था जीएसटी पर।
अपने दिन और रात, अपना पसीना और समय, अपनी पूरी जिंदगी इस भारत माता की सेवा में
अर्पण कर दी थी। ताकि जीएसटी से देश में तरक्की आ सके। लेकिन फिर कुछ लोगों के
दुष्प्रचार की वजह से भारत की जनता गलत रास्ते चली गई और इन्होंने 2014 में हमें
नापसंद करके इस भाजपा सरकार को मौका दिया। और इसी भाजपा सरकार ने हमारे जीएसटी
को... जिसे हमने 9-9 महीने तक, जैसे कोई माँ अपने बच्चे को कोख में पालती है वैसे,
दिन-रात की पीड़ा झेल कर बहुत ध्यान से जीएसटी को तैयार किया था... उस जीएसटी को
अपने कुछ उद्योगपति मित्रों के लिए इन्होंने बदल दिया। मित्रोंओंओं... बदल दिया से
ज्यादा अच्छा यह रहेगा कि बर्बाद कर दिया। हम जो जीएसटी लानेवाले थे उससे इस देश
में सोने की चिड़िया आसमानों में उड़ती, हर किसी के घर में 15-15 लाख की गाड़िया पड़ी होती, हर धर के आंगन में बच्चे महंगे खिलौने से खेल रहे होते, हर बुजुर्ग को अपना
एक सहारा होता कि उसे किसीके आगे हाथ फैलाना ना पड़े, हर जवान को, हर किसान को, इस
देश के विज्ञान को रामराज्य मिल चुका होता। लेकिन इन्होंने कुछ दो-चार उद्योपतियों
के आदेश पर उस जीएसटी को इतना बर्बाद कर दिया कि अब इस भाजपा सरकार ने जो जीएसटी
लागू किया है उससे देश 500 साल पीछे जा चुका है।”
“मित्रोंओंओंओं, इनके मंत्रियों को तो जीएसटी का पूरा नाम तक नहीं आता। इनकी मंत्री
तो 12वीं फेल है। इनके प्रधानमंत्री की डिग्री का कोई ठिकाना नहीं है। ये लोग जीएसटी
जैसे भारी-भरखम विषय को कैसे समझ पाते। वो इन लल्लू-पंजूओं के बस की बात नहीं है
मित्रों। जीएसटी को समझने के लिए तो 56 इंच की छाती चाहिए, 56 इंच की छाती। इन्हें तो 56 कैसे होता है यह भी नहीं पता होगा, तो फिर इन्हें जीएसटी की एबीसीडी कहां से पता
होती। भाइयों-बहनों... इनकी हिम्मत तो देखो। जीएसटी को लागू करने के लिए इन्होंने आधी
रात को संसद में सत्र बुला लिया। मैं देश को बात बताना चाहता हूं। सुनो देशवालों...
ये लोग तो इतने नौटंकीबाज है कि राफेल का एकाध नट-बोल्ट भी देश में आए तो जश्न मना
लेंगे। जीएसटी को लागू करने के लिए आधी रात को संसद का विशेष सत्र बुलाकर ताम-झाम
करने की ज़रूरत ही क्या थी? हमारी सरकार
जीएसटी को देश का पैसा बचाने के लिए लागू करना चाहती थी। इन्होंने तो आधी रात को
देश का पैसा बर्बाद कर दिया। देशवासियों... देश का संसद पिछले 70 सालों में केवल तीन
बार आधी रात को खुला है। वो तीनों मौके आजादी के उपलक्ष में थे। मैं इस सरकार से
पूछना चाहता हूं कि ये ऐसा कौन सा बड़ा मौका था कि आधी रात को पटाखे फोड़े और संसद
को रोशन भी किया?”
“एक बात आपने गौर की है मित्रोंओंओंओं? जीएसटी कौन लाया? अरुण जेटली। यह अरुण जेटली कौन है? एक हारा हुआ
नेता। जिसका अपना मतक्षेत्र में कोई वजन नहीं उसे इतना वजनी काम दे दिया। ये कैसी
सरकार है मित्रों? भाइयों-बहनों... ये मेरी भारत माँ के साथ धोखा है। जिस देश की जनता ने अरुण जेटली को हराया उसे इन्होंने मंत्री बनाया और उस
मंत्री ने ऐसा बेकार जीएसटी लागू करवाके देश को चूना लगा दिया है मित्रों। आप
सोचिए, एक हारा हुआ नेता मंत्री कैसे बन सकता है? ये तो देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था की हत्या है। ये देश की व्यवस्थाओं का
खात्मा है। देश के संविधान की सरेआम हत्या है। हम इस मुद्दे को लेकर अपने संगठनों के साथ उनका घेराव करेंगे और उनसे जवाब मांगेंगे। ये देश सवाल पूछ रहा है जेटलीजी।
बताइए भाइयों-बहनों... जवाब चाहिए या नहीं, बताइए चाहिए या नहीं???”
“इसमें आपने एक बात नोटिस की मित्रों? मुझे पता चला है कि संसद को रोशन करने के लिए भी चाइनीज लाइटों का इस्तेमाल किया गया
था। इसमें भी किसी भारतीय को रोजगार नहीं मिला। डेकोरेशन का काम भी इनके जीजा के
साले के छोटे बेटे को दिया गया था, जो चाइना में कंपनी चलाता है। सोचिए, चाइना के इशारे पर भारत की संसद को खोला गया मित्रों। ये विदेशियों की कठपुतली सरकार है। इसे
उखाड़कर फेंक दो मित्रों। हम स्वदेशी लोग है। अपने देश को विदेशियों के हाथों में बिकने नहीं देंगे।”
“भाइयों-बहनों... हमने एक देश एक टैक्स का सपना देखा था। 9-9 महीने की मेहनत करी
थी। हमारे लिए जी का मतलब था ग्रेट, एस का मतलब था सेकुलरीजम और टी का मतलब था
टी। क्योंकि मैं बचपन में चाय बेचा करता था। आज इस भाजपा सरकार को ये बात रास नहीं आ
रही कि चाय की केतली पर बैठने वाला छोटा लड़का नरेन्दर बड़ा होकर उनकी सत्ता के लिए
खतरा बन चुका है। लेकिन इन्होंने जीएसटी को गब्बरसिंह टैक्स बना दिया। हमारे
ग्रेट-सेकुलरीजम और टी वाले जीएसटी की इस कदर हत्या होते देख मैं कई रातों तक सो
नहीं पाया था। मेरी आत्मा आंसूओं से रो रही है। (भावनात्मक चेहरा और मंच पर
सन्नाटा... खामोशी) शांत लफ्जों में... मेरे भारत के आसमान में सोने की चिड़िया उड़ेगी
यह हमारा सपना था। (फिर एक बार भावनात्मक चेहरा, मंच पर सन्नाटा...) फिर जोरों से... सौगंध मुझे इस मिट्टी की, मैं सर नहीें झुकने दूंगा, मैं सर नहीं झुकने दूंगा।
मित्रोंओंओंओं... मुझे पता चला है कि जिस रात जीएसटी लागू हुआ उसके दो दिन पहले अरुण
जेटली ने पाकिस्तान के विदेश मंत्री के साथ अपने घर पर मुलाकात की थी। देश जानना
चाहता है कि उस रात मीटिंग के बाद इतना खराब जीएसटी क्यों आया? क्या पाकिस्तान से कोई सौदा हुआ है? देश जानना चाहता है। लोग जानना चाहते हैं। हम जानना चाहते हैं। आपको जवाब देना
पड़ेगा। जवाब देना पड़ेगा। दोनों हाथ उठाइए और बोलिए कि आप जवाब चाहते हैं या नहीं...
बोलिए जवाब चाहते हैं या नहीं???”
एफडीआई अच्छा है
या बुरा ये तो मोदीजी देश को या मीडिया को सोचने तक का मौका नहीं देते! एफडीआई पर यू-टर्न को लेकर सड़कों पर आंदोलन ही छेड़ देते। एफडीआई पर तकनीकी
बातें या ऊंच-नीच पर कोई बात कर ही नहीं पाता। बस एक ही बात हो रही होती कि यू-टर्न
लिया ही क्यों? “भाइयों-बहनों, इस दो जनों की सरकार ने मेरी भारत भूमि को विदेशियों के हाथों में सोंप दिया है, मुझे सौगंध है इस मिट्टी की, मैं अपनी भूमि को ऐसे बिकने नहीं दूंगा ऐसे बिकने नहीं दूंगा।” नोटबंदी के लिए
सरकार 50 दिन मांगती उससे पहले तो नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में पहले 5 दिन के भीतर
सड़कों पर आंदोलन शुरू हो चुका होता। बैंक के आगे लंबी लाइनें नहीं बल्कि मैदानों में हजारों की तादाद देखने मिलती। नोटबंदी से आतंकवाद खत्म होगा इस मुद्दे को लेकर वो
सरकार की जगहंसाई तो नहीं बल्कि भारतहंसाई ज़रूर करवा देते।
“भाइयों-बहनों, इतिहास में पहला मौका है जब किसी देश की सरकार यह मानती है कि
आतंकवाद का खात्मा नोटबंदी से होगा। यह कैसा भद्दा मजाक है मित्रोंओंओंओं। मुझे बताइए,
भला आतंकवाद जैसी समस्या नोटबंदी से कैसे खत्म होगी? मैं सरकार को चुनौती देता हूं कि मुझे यहां आकर समझाए। आओ खुले में और चुनौती
देता हूं। इस देश की जनता को ठग रहे हैं आप। काला धन नहीं बल्कि आप मेरे देश के
गरीबों का धन खत्म करना चाहते है।” वो गाहे-बगाहे हर
रैली से चिल्लाते कि, “बताइए, किसी लाइन में आपने काले धन वालों को देखा था क्या?” नोटबंदी के मुद्दे पर वो इतना बड़ा आंदोलन चलाते कि सरकार से पहले आरबीआई को
मान लेना पड़ता कि भाई हमने तो सरकार को चेताया था लेकिन सरकार ने नहीं माना!!!
उनके होते हुए कोई
भी सरकार सैन्य कार्रवाई के नाम पर वोट बटोरने का सोच ही नहीं पाती। “भाइयों-बहनों, मेरे देश के 40 वीर जवान शहीद हो गए हैं... ये देश जवाब मांग रहा
है... उनकी शहीदी पर मेरी भारत माता पूछ रही है... 120 करोड़ जनता आंसूओं के साथ
सवाल पूछ रही है... जवाब दीजिए।” शहीदों के परिजनों के द्वारा पूछे गए सवालों को वो देश की सड़कों पर उतारने में सफल होते। सबूत मांगना
देशभक्ति माना जाता, जिम्मेदारी मानी जाती, प्रथम कर्तव्य समझा जाता। “ये देश सबूत मांग रहा है भाइयों-बहनों... ये देश प्रमाण मांग रहा है...।” किसी सरकार की मजाल नहीं होती कि किसी शहीद का फोटो पीछे लगाकर भाषण करे। वो
तो सरकार को दिनों तक रैली भी नहीं करने देते।
वो “पिछले 5 सालों में सरकार ने इतना घटिया काम किया है कि देश 500 साल पीछे जा चुका
है” इस विषय को हर एंगल से, हर मौके पर, हर मैदान से, हर
शहर - हर गांव - हर गली - हर मोहल्ले से साबित करते दिखाई देते। उनकी “70 सालों की मेहनत पर इन 5 सालों ने पानी फेर दिया है” यही डिबेट हर जगह दिखाई देती। जनलोकपाल पर अन्ना देश को प्रेरित करे ना करे,
अन्ना से पहले तो वो आंदोलन पर बैठ जाते। काले धन पर रामदेव लाठीयोग से धबराएँ या
ना धबराएँ, वो नोटबंदी को काला धन का घोटाला साबित करके ही दम लेते।
नरेन्द्र मोदी
बोलने वाले और कुछ भी बोलने वाले राजनेता है। नेहरू को यदि भाजपा वाले कुछ भी कहते तो
वो इसे लेकर इतना बड़ा पहाड़ बना देते कि भाजपा वाले इसके नीचे दब जाएँ। “भाइयों-बहनों... नेहरू सिर्फ हमारे नेहरू नहीं हैं, वो इस देश के नेहरू हैं। इस देश
की मिट्टी के संतान हैं, जिन्होंने अपना हर मिनट, हर पल देश की आजादी की लड़ाई में
दिया। इन भाजपा वालों ने क्या किया था देश की आजादी में? बताइए मुझे भाजपा वालों, आपका क्या योगदान रहा है स्वतंत्रता के यज्ञ में? करा कुछ नहीं आपने। नेहरूजी ने अपना समस्त जीवन देश की आजादी के लिए समर्पित
कर दिया था मित्रोंओंओं। सैकड़ों बार जेल गए। अंग्रेजों की लाठियां खाई। जेल में यातनाएँ
सही। हमारे ही देश के पुत्र शहीद भगत सिंह के प्राण बचाने हेतु वो अंग्रेजों के साथ
भिड़ गए। अनेकों बार भगत सिंह के साथ जेल में मुलाकातें की और उन्हें फांसी से बचाने के
लिए अपनी जी-जान लगा दी थी। महात्मा गांधी और सरदार पटेल के साथ कदम से कदम मिलाकर नेहरूजी ने अंग्रेजों को भारत माँ की भूमि से भगा दिया। उसके बाद कश्मीर की समस्या
आई और नेहरूजी ने अपनी दीर्घ दृष्टि और सूझबुझ से उसका यथोचित समाधान निकाला।
धारा 370 का प्रभावी इस्तेमाल करके कश्मीर को बचा लिया। भाइयों-बहनों... अंग्रेजों ने
हमारे भारत को बर्बाद कर दिया था। उसी बंजर जमीन में नेहरूजी ने नई आशा के बीज बोए।
भारत खुशहाल हो उठा। नये पड़कार थे और नेहरूजी ने समूची दुनिया को दिखा दिया कि
भारत में वो ताकत है कि दुनिया का सुपरपावर बन सके। आपको याद है न मित्रोंओंओंओं। उस
अंग्रेज ने क्या कहा था? कहा था कि हमने
भारत को आजादी दी तो 10 साल में भारत का दिवाला निकल जाएगा। आज उस अंग्रेज की
पुश्तें हमारे यहां आकर देखे तो उनके दिमाग का दिवाला निकल जाएगा। भारत को फिर से
स्वर्णिम दौर में पहुंचाया हमने। और इन लोगों ने 5 सालों में भारत के 70 सालों की मेहनत
को बेकार कर दिया। नेहरू जैसे महान पुरुष को ये लोग गाली देते हैं। ये इनकी
संस्कृति है। ऐसी संस्कृति को कुचल डालो भाइयों-बहनों।”
गांधी, सरदार
पटेल, नेहरू, लालबहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, नरसिम्हाराव,
मनमोहनसिंह आदि के ऊपर तो वो भारत देश को इतना गर्व लेने को कहते कि गर्व के मारे
छाती 156 इंच की हो जाए। नेहरू, शास्त्री, इंदिरा या राजीव का देश के प्रति काम
करते करते ही मौत की नींद सो जाने का इतिहास... इस पर मोदीजी के भाषण कितने तीखे
होते वो तो आप सोच ही सकते हैं। “भाइयों-बहनों, हमारी इंदिराजी ने इस देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर किए हैं। मैं देश को बताना चाहता
हूं कि उन्हें अंदाजा हो चला था कि उनकी मौत हो सकती है, लेकिन इंदिराजी जैसी
विरांगना ने देश के लिए हसते हसते मौत को गले लगा लिया। वो दुर्गा थी मित्रोंओंओं।
उन्होंने गोलियां खाना पसंद किया, लेकिन देश की रक्षा करना नहीं छोड़ा।” भाजपा का कोई पीएम ये कहता कि – हम तो फकीर है जी, हमारा क्या है, झोला उठाकर
चल पड़ेंगे। इस लाइन को वो इंदिरा की एक लाइन के साथ तुक बिठाकर देशभर में एक
आंदोलन खड़ा कर देते। कहते कि, “देशवासियों, आप ही
तय करे। इनका पीएम कहता है कि हमारा क्या है, हम तो फकीर आदमी है, झोला उठाकर चल
पड़ेंगे। और हमारी विरांगना इंदिराजी ने कहा था कि मेरे खून का एक एक कतरा देश के
काम आएगा। मैं आखिरी सांस तक देश की सेवा करूंगी।” वो एक ऐसा वातावरण तैयार कर देते कि देश इन दो लाइनों में ही बंट जाता। कहते
कि, “भाइयों-बहनों, ये लोग झोला उठाकर भागने की
बात करते हैं। हमारी दुर्गा ने खून का एक एक कतरा बहाने की बात की थी। पर भागना
स्वीकार नहीं किया था। भागने वालों को क्या आप मेरी भारत माँ का भाग्य विधाता बनाएंगे? मुझे जवाब चाहिए मित्रोंओंओं, क्या आप इन भगोड़ों को भारत माँ का भाग्य विधाता
बनाएंगे? जवाब दीजिए मित्रोंओंओं। बनाएंगे या नहीं बनाएंगे? जोर से बोलिए बनाएंगे या नहीं बनाएंगे?” भारत का कोई भी कोना हो, वो हर कोने से रैली में मंच से झोला उठाकर भागने वाली
बात और आखिरी सांस तक डटे रहकर खून का एक एक कतरा देश के लिए बहा देने की बात को
भारत का आंदोलन ही बनाकर दम लेते।
नेहरू गाथा आज जो
है उससे उलट होती। कहते कि, “भाइयों-बहनों, हमने
तो पिछले 70 सालों में रक्षा, अंतरिक्ष, विज्ञान, तकनीक से लेकर तमाम क्षेत्रों में
भारत माँ को आसमांन की बुलंदियों पर पहुंचाया है। हमने जिन व्यवस्थाओं को लागू किया
है, उन्हीं व्यवस्थाओं पर बैठे बैठे ये लोग मजे ले रहे हैं और बात करते हैं कि हमने
कुछ नहीं किया। मित्रोंओंओं... सोचिए, भारत माँ के लिए सोचिए। देशभक्त हो तो सोचिए कि
इन भाजपा वालों के लिए कुछ करने का समय आया तो ये कहते हैं कि हमने इतना कुछ बिगाड़ दिया है कि ठीक करने में वक्त लगेगा। ये नौटंकियें जब भी कुछ करने का समय आता है तो
बहाने बनाते हैं कि हमारी सरकार ने काम बिगाड़ दिया है। ये लोग पिछली गलतियों का
रोना ही रोते हैं। मेरे प्यारे देशवासियों, सोचिए। अगर आजादी के बाद इनके नसीब में देश
सेवा का मौका आता तो ये लोग यही कहते कि 250 सालों से अंग्रेजों ने देश को बर्बाद
करके रख दिया है, अब हम क्या करे? हमारे नेहरूजी ने
उस कठिन परिस्थितियों से इस देश को निकाला, आगे बढ़ाया और एशिया की महासत्ता बनाया।
और ये ढालगरवाड़ के नुक्कड़बाज आज तैयार भोजन को खाकर कहते हैं कि दाल खराब है। मैं
देश से पूछना चाहता हूं कि दाल खराब है या इनकी नियत खराब है? ये देश जवाब चाहता है मित्रोंओंओंओं। दाल खराब है या इनकी नियत खराब है? जवाब दीजिए मित्रोंओंओंओं।”
भारतीय स्वतंत्रता
संग्राम में कांग्रेस के योगदान की यशगाथा वो हर गली-मोहल्ले में गाते दिखाई देते।
आजादी के बाद की व्यवस्था और नये ढांचे के निर्माण से लेकर शून्य से आसमान तक
पहुंचने के सफर की गाथा मोदीजी हर देश के मंच से भाजपा को सुनाते होते। प्रगति,
अवकाश, रक्षा, सैन्य, कृषि से लेकर चिकित्सा, सड़कें, शिक्षा समेत तमाम सफलताओं की
यशगाथा पर बॉलीवुड वालों को कहते कि फिल्में बनाते जाओ। पाकिस्तान को दो टुकड़ों में
बांटने के कारनामे पर तो वो हर पांच साल में एक फिल्म बनाने का मंत्रालय अलग से
खुलवा देते!!! पहले परमाणु
परीक्षण पर तो मोदीजी अध्यादेश ले आते कि हर साल के पहले दिन एक घंटे तक वो देश को
संबोधित करेंगे, पहले परमाणु परीक्षण को लेकर!!!
अगर भोपाल गैस
दुर्घटना के समय सवाल उठते तो मोदीजी आगे हो जाते। कहते कि ये राज्य का विषय है,
इसमें केंद्र का कोई दोष नहीं है। बहुत सवाल उठते तो गर्जना करके कहते कि, “भाइयों-बहनों, ये देश ऐसे हादसों से टूट जाए इतना कमजोर देश नहीं है, मैं देश नहीं झुकने दूंगा, मैं देश नहीं झुकने दूंगा।” बोफोर्स पर भाजपा कुछ नहीं कर पाती, मोदीजी ही सब कुछ कर जाते। “मित्रोंओंओं, पुरे देश ने देखा कि जिस बोफोर्स तोप पर ये लोग फेफड़े फाड़ रहे थे
उसी तोप ने कारगिल में इनकी लाज रखी थी। इनके दौर में कारगिल हुआ। पाकिस्तानियों की हिम्मत नहीं थी कि हमारी सरकार के वक्त भारत की तरफ आंख उठाकर देख पाते। इनकी सरकार
में पाकिस्तानियों ने हमारी कई पहाड़ियों पर कब्जा जमा लिया। ये कमजोर नेताओं का गैंग
हे भाइयों-बहनों। ऊपर से इन्होंने वही तोप इस्तेमाल की जिसके खिलाफ वे आंदोलन चलाते
थे। भाइयों-बहनों... सब जानते हैं कि बोफोर्स ने ही कारगिल की जंग जीती थी। इन्होंने
बोफोर्स को घटिया तोप कहा था। ये लोग कहते थे कि बोफोर्स से गोला ही नहीं निकलता।
तोप गरम हो जाती है। तोप घटिया है। अब इन्हीं तोपों ने इनकी लाज रख ली थी। भाइयों-बहनों... इन्होंने सालों तक इस देश से झूठ बोला। राष्ट्रीय सुरक्षा के विषय पर
देश को गुमराह किया। ये पाकिस्तान का भला चाहते हैं या भारत का ये सोचने समय आ गया
है मित्रोंओंओं। बोफोर्स तोप के गोले की तरह इन्हें भी उठाकर पाकिस्तान की सीमा में डालने का समय आ गया है मित्रोंओंओं।”
हमारे यहां कुछ
नेता एक ब्रांड के रूप में स्थापित हो जाते हैं। नरेन्द्र मोदी उन्हीं में से एक
है। विशेषता यह है कि उन्होंने खुद को खुद ही ब्रांड के रूप में स्थापित किया हुआ
है! आप कह सकते हैं कि उनका ब्रांड उनके कामों की वजह से नहीं बना,
बल्कि उनकी योजनाबद्ध रूप से मार्केटिंग की गई और उन्होंने स्वयं को ही एक ब्रांड
बना लिया! उनके समर्थक उनकी नाकामियों को
स्वीकारने के लिए तैयार हो जाएंगे, लेकिन किसी दूसरे विकल्प को स्वीकारने के लिए
तैयार नहीं होंगे!!! उनके समर्थक कह
सकते हैं कि सच है कि नरेन्द्र मोदी कई मोर्चों पर विफल रहे हैं, लेकिन दूसरे उनसे
ज्यादा विफल रहे हैं!!! उन्होंने दूसरी
सरकारें, दूसरे दल, दूसरे नेता... इन सब मुद्दों पर एक ऐसी सामूहिक धारणा स्थापित
कर दी है कि उनके अलावा फिलहाल तो ज्यादातर लोग दूसरे विकल्प की सोचते नहीं है! वो कुछ भी कर जाए, लोगों को अच्छा लगने लगता है। वो उनकी माँ को नोटबंदी की
लाइन में लगा गए। अगर कोई दूसरा नेता यह करता तो स्वयं मोदीजी उस नेता के पीछे हाथ
घोकर पड़ जाते।
मुझे लात मार कर
भगा देना, मुझे फांसी पर चढ़ा देना, उन्हें नहीं मुझे मारो, बीच चौराहे पर मुझे लटका
देना... पीएम ऐसा नहीं बोलते लेकिन मोदीजी बोलते हैं! क्योंकि वो पीएम कम आईएम ज्यादा है। आई एम यानी कि मैं! वो खुद को ऊंचा नहीं दिखाते, बल्कि दूसरों को नीचा बता देते हैं! इसके बाद भी वो ऐसा वातावरण तैयार करते है कि लोग उन्हें ऊंच-नींच का
सर्टिफिकेट देने की नहीं सोचते, बल्कि लोग जिन्हें मोदीजी ने नीचा दिखाया या बताया है
उनके बारे में ही बातें करते हैं! फिर वो स्वयं ही
दूसरों से ऊंचे हो जाते हैं! इसके लिए वे
चालाकी से खुद को लोगों के दिमाग में उस जगह रख देते है। पहले तो लोगों को बताया
जाता है कि फलांना फलांना नेता ने ये गलती की थी। उस कथित गलती को बार-बार लगातार ताजा किया जाता है। फिर अचानक से उस गलती को गुनाह बताया जाता है।
वो हर दिन नये नये
मुद्दे उछालने में माहिर नेता है। देश किसी एक मुद्दे पर सोच ही नहीं पाता। क्योंकि
हर सुबह नये नये इश्यू लेकर मोदीजी टेलीविजन पर आक्रमण ही कर देते हैं। एक महीने
पहले देश मंदिर मंदिर कर रहा होता है। दूसरे महीने कोई भी मंदिर को याद नहीं कर रहा
होता, सारे के सारे पाकिस्तान पर ही बात कर रहे होते हैं। वो जब जी चाहे, देश को
उसी मुद्दे पर ले जाते हैं। कोई ये सोच नहीं पाता कि जिस मंदिर के सहारे वो 2 सीट से
200 तक पहुंचे थे, उसी मंदिर को 5 साल के शासन के बाद भी उन्होंने लटकाकर रखा है।
वो मंदिर के सहारे जीतने का वातावरण बनाते हैं, फिर मंदिर को छोड़कर विकास की बात
करते हैं। विकास पे जीतते हैं और फिर स्मशान-कब्रिस्तान-पाकिस्तान की बात करके विकास
को छोड़ देते हैं। वो पहले कोई मुद्दा उछाल देते हैं। फिर देखते हैं कि लोगों में ये
चलता है या नहीं। वैसे लोगों में ये मुद्दा चले इसके लिए उनकी कुछ राजनीतिक योजनाएँ होती भी होगी, ताकि वो मुद्दा चल जाए। कुछ दिनों तक वो देखते हैं कि मुद्दा कितना
चलता है। अगर लोगों में मुद्दा चलता दिख जाए तो फिर वे उस मुद्दे पर राई का पहाड़ बनाने से नहीं झिझकते।
इनकी राजनीतिक
सफलता तो देखिए। ये साबित कर चुके हैं कि अब महंगाई सरकारी नीतियों की वजह से नहीं बढ़ती! अब तो लोग मानने लगे हैं कि महंगाई खुद-ब-खुद
बढ़ती है, इसमें सरकार का कोई हाथ नहीं होता होगा!!! रुपया चाहे कितना भी नीचे गिर जाए, सरकार पर कोई उंगली नहीं उठा सकता। क्योंकि
वो खुद को सरकार नहीं बल्कि राष्ट्र साबित कर चुके हैं। एक जमाना था जब इंदिरा इज इंडिया वाला नारा चला था। इन्होंने भी नारों के सहारे खुद को इंडिया बना दिया है। यह कमाल के राजनेता है। मंदिर के साथ लोग इनको जोड़ देते हैं। लोग से मेरा मतलब समर्थक
है। हिंदू हृदयसम्राट बना दिया है इन्होंने खुद को। लेकिन वे विकास के नाम पर वोट
ले आते हैं, मंदिर के नाम पर नहीं!!! ये कोई छोटी-मोटी
सफलता तो है नहीं। जब विकास नहीं कर पाते और सवाल उठने लगते हैं तो वे राष्ट्रवाद का
छाता धारण कर लेते हैं। दरअसल, भारत में लोग या यूं कहे कि बुद्धिजीवी लोग कहते हैं
कि यहां लोग सरकार चुनते हैं। मैं नहीं मानता इस ढकोसले को। कम से कम ज्यादातर मौकों
पर ऐसा बिल्कुल नहीं होता। इक्का-दुक्का मौकों पर हो गया है यह पता है, लेकिन
ज्यादातर ऐसा नहीं होता। अगर हम ये मानते है कि हम सरकार चुनते हैं, तो हम ग्रेट इडियट्स ऑफ इंडिया है। हम सरकार नहीं चुनते, बल्कि वो लोग हमारे दिमाग और हमारी
सोच बदलते रहते हैं। वो लोग यानी राजनीति। राजनीति हमारे दिमाग और हमारी सोच को
बदलती रहती है और हम इस भ्रम में जिंदा रहते हैं कि हमने सरकारें बदली थी। खैर, सच
कड़वा है इसलिए लंबी चौड़ी चर्चा हो सकती है इस पर।
यह नरेन्द्र मोदी
है। यह राजनेता किसी एक जगह कभी स्थायी होकर नहीं बैठा। दरअसल ये बैठने में मानते ही
नहीं हैं। वर्ना 2014 में ऐतिहासिक जीत के पश्चात भाजपा का कार्यकर्ता आराम कर रहा
होता। उल्टा ये ज्यादा मेहनत करते हैं और करवाते हैं। इनमें आलस्य नहीं है, बल्कि भूख
है। यह बात और है कि अपनी मंजिल को पाने के लिए इन्हें नीति, आदर्शवाद, शालीतना आदि
को कुचलने से कभी परहेज नहीं रहा। तभी तो इतने बड़े बड़े और विवादास्पद गठबंधनों के
बाद भी ये खुद को क्लीन एंड नीट साबित करके रखे हुए हैं। ये खुद को सफलता से जोड़ने
में माहिर है। वो ये नहीं देखते कि सफलता उनकी है या पूर्व सरकार की!!! बस वो अपने उस सबसे बड़े हुनर के अनुसार बोल देते हैं कि मैंने यह करके दिखा दिया
है!!! फिर सवाल की बात आए तो पहले देखा वैसे दोबारा बोल देते हैं।
ऊपर देखा वैसे चक्र तेजी से ही चलता है कि लोग सोचना छोड़ देते हैं। ऊपर से वे किसी
भी छोटी-मोटी चीज़ का बड़े से बड़ा जश्न मनाने में यकीन रखते है। इससे लोगों को यह लगता
हैं कि यह चीज़ तो श्रीराम के समय के बाद अब जाकर मुमकिन हुई होगी!!! सोचिए, भारत के सबसे पहले अणु परीक्षण, पूर्ण युद्ध और उसके बाद पाकिस्तान को
दो टुकड़ों में बांटना, एशिया का नकशा बदल देना, सैकड़ों मिसाइलों की फौज खड़ी करना,
इसरो से लेकर डीआरडीओ का हर क्षेत्र में झंडे गाड़ना, पहले ही प्रयास में चंद्र पर
पहुंचने का दुनिया का एकमात्र कारनामा हो, सरहदों के पार खुफिया संस्थाओं के बड़े बड़े फौजी और खुफिया अभियान... हर मौकों पर वो विपक्ष में होते तो अब तक क्या क्या और
कितना कितना जश्न के रूप में यह देश देख चुका होता।
वो उत्सव प्रिय
राजनेता है। टैक्स लागू करने की सामान्य सी प्रक्रिया हो या कुछ दूसरे मौके हो, वो
हमेशा “छोटी छोटी चीजों” पर “बड़े बड़े उत्सव” मना लेते हैं। जैसे कि मार्च 2019 के अंतिम दिनों में लो ऑर्बिट में दुश्मन की
मिसाइल तोड़ने का परीक्षण। मौका बड़ा था, लेकिन वैज्ञानिकों के लिए। सेना के बाद
इन्होंने वैज्ञानिकों का सहारा भी ले लिया! सुबह सुबह ट्वीट कर दिया कि मैं देश को
संबोधित करूंगा। बात देश के प्रति संबोधन की आयी है तो आजादी के बाद परंपरा सी है
कि पीएम जैसा शख्स तभी देश को संबोधित करता है जब मौका आपातकालीन हो। लेकिन
इन्होंने तो नोटबंदी के 50 दिन पूरे होने के मौके पर भी देश को संबोधित कर दिया था। अब की बार फिर एक बार... एक घंटा टेलीविजन पर रहे, देश को अंतरिक्ष में घुमाया और जो चीज़ आमतौर पर वैज्ञानिक
संस्थानों को करनी थी वो उन्होंने खुद कर ली। सोचिए, देश के पहले परमाणु परीक्षण का
मौका होता, पाकिस्तान को दो टुक़डों में बांटने की 1971 वाली घटना होती, एशिया का
नकशा बदलकर बांग्लादेश नामके नये देश के उदय की घोषणा होती, इसरो की स्थापना का
मौका होता, इसरो का नासा के बाद दुनिया में दूसरे क्रम पर पहुंचने का दौर होता,
डीआरडीओ की स्थापना का समय होता, डीआरडीओ द्वारा अग्नि या पृथ्वी से लेकर तमाम तरह
के बड़े बड़े हथियारों और योजनाओं की सफलताओं का दौर होता, अणु संशोधन केंद्र से लेकर
तमाम तरह के बड़े बड़े संस्थानों की शुरुआत करने का समय होता, मंगल ग्रह पर पहले ही
प्रयास में पहुंचने का दुनिया का एकमात्र कारनामा होता, कारगिल विजय की घोषणा करनी
होती, या फिर ग्लोबलाइजेशन पॉलिसी के तहत देश की अर्थव्यवस्था में अब तक का सबसे
बड़ा बदलाव का मौका होता... तब इनके हाथ चाबी होती तो ताला कहां कहां और कैसे कैसे
खुलता? लेकिन इससे उलट सोचिए कि भाजपा की इस
उत्सव प्रिय राजनीति के सामने उन्हें विपक्ष की भूमिका निभानी होती तो वो क्या करते? नोटबंदी के बाद फिर एक बार पता चला कि देश के नाम इनका संबोधन तो प्री-रिकॉर्डेड था। नोटबंदी के दिन उनका देश के नाम दिया गया संदेश... इस विषय पर
दूरदर्शन के ही कर्मचारी ने दावा किया था कि वो संदेश पहले से ही रिकॉर्ड किया गया
था, लाइव नहीं था। अंतरिक्ष परीक्षण वाला संदेश भी लाइव नहीं था यह चुनाव आयोग ने
बता दिया। लेकिन फिर भी देश ये सोच ही नहीं पाता कि लाइव प्रसारण कहके फिर पता चले
कि प्रसारण लाइव नहीं था बल्कि पहले से ही रिकॉर्ड किया गया था, तो फिर यह कौन सी
शैली है। देश को क्या सोचना है, यह देश सोचे इससे पहले तो मोदीजी बोलना शुरू कर
देते हैं! फिर सोचने का समय शेष ही नहीं रहता देश के पास!
वो विपक्ष में होते
तो कहते कि, “भाइयों-बहनों... इस समय देश में चुनाव है। बेरोजगारी,
महंगाई, गरीबी, किसान आदि मुद्दे हैं और
ये नाकाम और विफल लोग देश को अंतरिक्ष में घुमा रहे हैं। जमीन पर भारत परेशान है और
ये लोग हमें आसमान की सैर करा रहे हैं। क्यों? ये तो मेरे देश का बच्चा-बच्चा समझ सकता है। ना ये नोटबंदी पर वोट मांग सकते
हैं, ना जीएसटी पर। ये लोग सेना के बाद अब देश के वैज्ञानिकों के कंधे पर बैठकर
चुनावी प्रचार करने लगे हैं। मित्रोंओंओंओं... मौका यकीनन बड़ा है वैज्ञानिकों के लिए।
लेकिन इसका भी राजनीतिक फायदा उठाना चाहा है इन्होंने। इन दो लोगों की सरकार को मैं
कहना चाहता हूं। मैं जब चाय बेचता था तो मेरी चाय की दुकान के पास धीरुभाई का ठेला
लगता था। धीरुभाई चौथी कक्षा तक भी नहीं पढ़े थे। जैसे तैसे गुजरान चलाते थे अपने
परिवार का। उस धीरुभाई को भी पीएम बना दो तब भी डीआरडीओ वाले और इसरो वाले अपना
काम तो करेंगे ही। इसमें धीरुभाई का कोई करिश्मा नहीं है। ये लोग तो बात ऐसे करते हैं
जैसे इन्होंने अपने कार्यालय पर ये सब पांच सालों में तैयार किया हो। इसमें सालों की
मेहनत लगती है। मेरे देशवासियों... आप मुझे बताइए कि ऐसा मिशन सोमवार को शुरू हो और
मंगलवार को खत्म हो जाय ऐसा कभी हो सकता है? मुझे बताइए मित्रों, ऐसा हो सकता है क्या? इसके लिए तो सालों की तपस्या चाहिए। वो तपस्या हमने दिखाई थी, तब जाकर इन्हें ये मौका मिला है।”
वो आगे कहते कि, “भाइयों-बहनों, हमने तो 1974 में पहला परमाणु परीक्षण किया तब भी इतना प्रचार नहीं किया था। पाकिस्तान को दो टुकड़ों में बांट दिया तब भी झंडे हाथ में लेकर सड़कों पर नहीं निकले थे हम। बांग्लादेश नाम के नये देश का निर्माण हमारी सरकार ने किया था और इसकी
घोषणा संसद में करके हमने हमारा फर्ज पूरा किया। इसके लिए देश के नाम संदेश जैसी
नौटंकियां नहीं की थी हमने। ग्लोबलाइजेशन पॉलिसी से देश का नसीब बदल दिया हमने,
लेकिन ग्लोबलाइजेशन की घोषणा टीवी पर नहीं की थी हमने। इन्होंने तो जीएसटी जैसे छोटे-मोटे
विषय पर भी जश्न मना लिया। ये क्या तरीका है मित्रोंओंओं?” वे देश को अपनी ही अदा में कह देते कि, “भाइयों-बहनों, ऐसे लोगों को हमारे गुजरात में एचपी कहते हैं। एच यानी हरख और पी यानी
पदुड़ा। एचपी यानी हरखपदुड़ा।” गुजरात का ये लफ्ज़ देश में घूम रहा होता।
“भाइयों-बहनों, इन दो लोगों की सरकार ने राष्ट्र के नाम संदेश जैसे मंच को भी मजाक
बनाकर रख दिया है। मित्रोंओंओं, मैं आपसे पूछना चाहता हूं। मैं पूछता हूं कि राष्ट्र के
नाम संदेश कब कब दिए गए थे? जब जब आपातकालीन
स्थितियां होती थी तब। लेकिन इन्होंने तो वैज्ञानिक परीक्षण पर भी खुद को टीवी पर
उतार दिया। देश पूछ रहा है कि जमीन पर अनाज नहीं है, मेरे किसान भाई खुदकुशी कर
रहे हैं, मेरे देश के युवा रोजगार को तड़प रहे हैं। जमीन पर आप विफल हो तो फिर
अंतरिक्ष में देश को क्यों उड़ा रहे हो? भाइयों-बहनों... ये लोग तो ऐसे कर रहे हैं जैसे डीआरडीओ की लैब में इन्होंने ही मिसाइल
तैयार किया हो। मित्रोंओंओं, इन एचपीयों को देखिए, कर तो ऐसे रहे हैं जैसे संबित पात्रा ने अपने घर में मिसाइल बनाकर इसरो को दे दिया हो।”
सर्जिकल स्ट्राइक
पर तो मोदीजी भाजपा को धूल ही चटा देते। क्योंकि सैकड़ों अभियान, सैकड़ों दुश्मनों को मारने के मिशन, कई सर्जिकल स्ट्राइक यकीनन पहले भी हो चुके हैं। इसका इतिहास कई
पुस्तकों में भी दर्ज है। भारतीय सेना के अभियान गूगल पर सर्च करेंगे तो हर सीमा पर ऐसे पराक्रमों का इतिहास मिल जाता है। इस स्थिति में सर्जिकल स्ट्राइक का राजनीतिक
फायदा उठाने की भाजपा की कोशिशें मोदीजी जमकर नाकाम कर देते। “भाइयों-बहनों... पठानकोट हुआ ही क्यों? अमरनाथ हमला हुआ ही क्यों? पुलवामा कैसे हुआ? ये देश सवाल पूछ रहा है।” इन्हीं सवालों में वो सत्तादल को इतना उलझा देते कि सर्जिकल स्ट्राइक का नशा देश पर हावी नहीं हो
पाता। ऊपर से कह देते कि, “हमारी सरकार ने
पिछले 10 सालों में 11 सर्जिकल स्ट्राइक किए थे। ये पीएमओ के दस्तावेजों में हैं। आप
जाइए उनके कार्यालय पर और पूछिए कि मैं जो बोल रहा हूं यह सच है कि नहीं। हमने हर
सीमा पर ऐसे खुफिया अभियान चलाए हैं। हजारों आतंकवादियों को मार गिराया है।
पाकिस्तान को ईंट का जवाब पत्थर से हमींने दिया है। इनकी कमजोरी तो देखिए
मित्रोंओंओंओं... ये कहते हैं कि हमने बालाकोट पर स्ट्राइक की है, अब पाकिस्तान की हिम्मत
नहीं होगी। और वही पाकिस्तान दूसरे दिन सुबह ही हमारी सेना पर हमला कर देता है। ये
देश आपसे पूछता है कि आप कह रहे हैं कि अब पाकिस्तान हिम्मत नहीं करेगा और आपने जो कहा
उसके कुछ घंटों के अंदर पाकिस्तान युद्ध शुरू कर देता है। आप कितना झूठ बोलेंगे इस
देश से। आपने गद्दारी की है। आपने झूठ बोला है देश से। आपने सेना के सम्मान को ठेस
पहुंचाई है।”
“भाइयों-बहनों... हमने पिछले 10 साल में 11 सर्जिकल स्ट्राइक किए हैं। हमारी सरकार
ने 70 सालों में ऐसे अनगिनत अभियान चलाए हैं। मैं देश को बताना चाहता हूं कि हमने इसका
उत्सव कभी नहीं मनाया। इसका राजनीतिक फायदा कभी नहीं उठाया। हमने शहीदों के पोस्टर
लगाकर चुनावी भाषण नहीं दिए हैं मित्रोंओंओं। मेरा दिल आज रो रहा है। मेरे देश के महान
शहीदों के शव पर ये लोग चुनावी नृत्य कर रहे हैं। यह नीचता की पराकाष्ठा है भाइयों-बहनों। इनसे कुछ नहीं हो पाया तो ये लोग सेना ने जो किया उसका श्रेय लेने के
लिए निचले स्तर की राजनीति कर रहे हैं। भाइयों-बहनों... ऐसी नीच सरकार को मिग विमान पर
बिठाकर पाकिस्तान में बम के साथ डाल दो। आइए... हम संकल्प लेते हैं कि ऐसे हल्के
कृत्य करनेवालों को हम अपने वोट से सजा दे। ये देश आपका सहयोग मांगता है। भारत माँ
को आज आपकी ज़रूरत आन पड़ी है। एक हो जाइए और इन जश्नबाज गैंग को सीमा पार भेज
दीजिए।”
हर राज्य से सत्ता
दल अपना रिश्ता बताता तो मोदीजी कह देते कि, “भाइयों-बहनों... इतने राज्यों से साहब का जन्म से रिश्ता? समझ नहीं आ रहा है
कि साहब पैदा हुए थे या उन्हें बोया गया था?” वो हर सवाल का जवाब मांग लेते। कहते कि, “देश जवाब
मांग रहा है। देश जानना चाहता है कि पहले 100 दिनों में काला धन वापस लाने का वादा
किया था। 1825 दिन हो गए, महान नेता नेहरूजी लिस्ट चुरा ले गए हैं क्या? अरे भाई,
2014 में आपने कहा था कि कांग्रेस ने कुछ नहीं किया हमें वोट दो। आपको वोट दिया तो
2019 में आप कह रहे हैं कि कांग्रेस ने कुछ नहीं करने दिया, दोबारा वोट दो। अब आपके
झांसे में मेरे भारत की जनता नहीं आएगी। आपने कहा था कि हर एक दिन एक बेकार कानून
खत्म करेंगे। देश जानना चाहता है कि आपने कितने बेकार कानून खत्म किए। अरे
मित्रोंओंओं, इन्होंने तो कानून का पालन करनेवाली सीबीआई को ही खत्म कर दिया। संविधान
की रक्षा करनेवाली सुप्रीम कोर्ट के जजों को हाथ जोड़ना पड़ा देश के आगे। देश की जनता
जानना चाहती है कि आपने कितने स्मार्ट सिटी बनाए। हम लोगों को वहां घूमने जाना है। एकाध नाम तो बता दीजिए। आरबीआई, ईडी, सीबीआई, चुनाव आयोग... आपने किसीको नहीं छोड़ा है। हमने जो 70 सालों में बागीचा बनाया था, आपने 5 सालों में उस बागीचे में अपनी गंदी
विचारधारा के कांटे बो दिए हैं। मेरी भारत माता आज रो रही है। मेरा दिल रो रहा है।
मेरे देश के युवा रोजगार मांग रहे हैं। नौकरी मांग रहे हैं। देश की महिलाएँ आपकी
सरकार की महंगाई नीति के चलते रसोईघर में रो रही हैं। आपने इस देश को 500 साल पीछे
धकेल दिया है। जो हमने बनाया था, आपने उसे बर्बाद कर दिया है। ये देश जानना चाहता
है कि एक तड़ीपार को आपने अध्यक्ष बनाया ही क्यों?”
नोटबंदी एक महाघोटाला है यह अब तक साबित हो चुका होता। जीएसटी
को देश गब्बर सिंह टैक्स मान चुका होता। एफडीआई से देश विदेशियों के हाथों बिक गया
है यह चर्चा हर नुक्कड़ पर हो रही होती। 15 लाख का हिसाब देना भाजपा को महंगा पड़ जाता। 15 लाख केवल एक जुमला था, इस बयान के लिए अमित शाह को हर दिन माफी मांगनी
पड़ती। वो विपक्ष के नेता होते तो सत्ता दल के देशभर में जो सैंक़ड़ों आलिशान कार्यालय
खुले हैं उसी की चर्चा देश में होती, अंतरिक्ष के कारनामे की नहीं। वो आगे यह भी कह
देते कि, “भाइयों-बहनों, ये लोग इस बात का जश्न मना रहे हैं कि
इन्होंने देश की जनता के बैंक खाते खुलवा दिए। अरे ढालगरवाड़ के नुक्कड़बाजों, आपने
जिन बैंकों में इनके खाते खुलवाए हैं वो बैंक ही हमने खुलवाए हैं। हमने बैंक नहीं खोले होते तो आप खाते कैसे खोल पाते?”
आरएसएस को तो वो
छोड़ते ही नहीं। जैश या लश्कर की बात कम होती, मोदीजी के मुंह से आरएसएस की ही बातें ज्यादा निकलती। कहते कि, “इन्होंने कभी किसी अंग्रेज को मारा नहीं, गांधी को मारकर जश्न मना रहे हैं। इनके
अंदर यदि देश भक्ति होती तो किसी अंग्रेज को मारने का श्रेय इतिहास इन्हें देता।
लेकिन इन्होंने तो कभी किसी स्वतंत्रता अभियान में हिस्सा नहीं लिया, कभी किसी
अंग्रेज को मारा नहीं, किसी की लाठी नहीं खाई और तैयार भोजन पर बैठकर खाना खाते हैं।
हम इन्हें इसी देश का समझकर खाना देते हैं। ये लोग भरपेट खाना खाते हैं और फिर कहते
हैं कि दाल ठीक नहीं है। मित्रोंओंओंओं... दाल नहीं इनकी नियत ही ठीक नहीं है।” मुद्दे उछालना, फिर देखना कि कौन सा मुद्दा लोगों को भाता है, फिर उस मुद्दे
पर वो सब कुछ करना जो अब तक नहीं हुआ था, ये सब उनकी पहचान है। वो सिकंदर को बिहार
तक खींच लाने से भी परहेज नहीं करते। नेहरू कथा के तो वे पूर्ण विशेषज्ञ है। इनकी नेहरू कथा में किसी लोक कथा की भांति ही आधा सच, आधा झूठ, कभी पूरा झूठ, सनसनी,
मिथक, अतिरेक सब कुछ होता हैं। भगत सिंह का इतिहास भी वो आलू-मटर की तरह छील चुके हैं
तो फिर नेहरू की कौनौ बिसात?
सुप्रीम कोर्ट के
जजों द्वारा सरेआम प्रेस वार्ता करके लोगों से मदद मांगने वाली घटना पर क्या क्या
होता खुद ही सोच लीजिए। सीबीआई के अंदरूनी विवाद और आधी रात को सीबीआई के तख्तापलट
पर मोदीजी की प्रतिक्रिया का दायरा सोच लीजिए। सोचिए कि स्वतंत्रता दिन की पूर्व
संध्या पर पूर्व सैनिकों को जंतर-मंतर पर पीटा गया, जिन मेडल पर देश नाज़ किया करता है वो मेडल सड़कों पर बिखर गए, उस घटना पर मोदीजी कितने आग बबूला होते। अजित डोभाल
को भारत की नयी डी-कंपनी कहा गया, उनके बेटों का विदेशों में काले धन का कारखाना होने
की बात सामने आई, सोचिए क्या क्या गज़ब की प्रतिक्रियाएँ मोदीजी की जुबां से निकलती।
जज लोया की संदिग्ध मृत्यु पर क्या क्या होता। टूजी घोटाले के सारे आरोपी बाइज्जत
बरी हो गए उस मौके पर तो पीड़ित होने का जबरदस्त नाटक होता। गंगा सफाई के आंदोलन
में एक तरीके से शहीद हो चुके संत स्वामी सानन्द के मुद्दे पर क्या क्यो हो जाता
खुद ही सोच लीजिए। जिस तरह से अदालत ने मोदी सरकार को कुंभकर्ण की उपमा दी थी,
सोचिए वो विपक्ष में होते और सत्ता दल को यह उपमा मिलती तो फिर उनका नारा क्या होता?
वो अगर विपक्ष के
पीएम उम्मीदवार होते तो भाजपा सरकार के यू-टर्न की गाथा ही हर टेलीविजन पर चल
रही होती। नोटबंदी, एफडीआई, काला धन, जीएसटी, आधार, मनरेगा, भारत-बांग्ला भूमि
समझौता, पाकिस्तान, चीन, श्रीलंका, नेपाल, आपराधिक पृष्ठभूमि वाला कैबिनेट, गंगा
सफाई, आरक्षण यू टर्न, मवेशियों की अधिसूचना, बीफ वाली राजनीति, महंगाई, पेट्रोल-डीजल
के दाम में आसमानी इज़ाफ़ा, रसोई गैस के दाम बढ़ना, रेल किरायों में बढ़ोतरी, रुपये का
स्तर गिरना, सैन्य अधिकारियों के रैंक और स्टेटस वाला मामला, नारंगी पासपोर्ट, ईपीएफ
टैक्स, भूमि अधिग्रहण, न्यूनतम समर्थन मूल्य, एनसीटीसी, जनलोकपाल वाली लीपापोती, नेताजी
की फाइलों पर यू-टर्न, हेंडरसन-ब्रुकस रिपोर्ट यू-टर्न, ... समेत जितने भी यू-टर्न
हैं उसी पर देश को बात करनी पड़ती। क्योंकि ये बोलते ही रहते, बोलते ही रहते। जो
बोलते उसी की बात होती। धारा 370 कितनी ज़रूरी थी ये भी साबित कर देते!!! कश्मीर समस्या नहीं किंतु परिस्थिति के अनुसार सुलझा हुआ समाधान था यह देश को
मनवा देते!!! आरएसएस की चड्डी
से लेकर पेंट तक ये खींच लेते। कहते कि चड्डी पहन के फूल खिला करते थे, लेकिन अब तो
पेंट पहनकर कैक्टस निकल रहे हैं!!! महंगाई की बातें होती, किसानों की होती, बेरोजगारी की होती। पीडीपी के साथ गठबंधन के मामले पर वो
क्या क्या कह जाते और क्या क्या करवा जाते ये सोचना आसान सा कार्य है।
राजनीतिक
टिप्पणीकार कहते हैं कि भाषा में लोगों को फंसाना उनकी महारत है। लेकिन टिप्पणीकार यह
कहने से डरते रहते हैं कि ऐसी महारत को अच्छा माना जाए या बुरा। कहते हैं न कि कई
लोग ऐसे होते हैं जिनके पास काफी बुद्धिक्षमता होती है, लेकिन अपनी उस क्षमता को वे
लोग दूसरे रास्तों में इस्तेमाल ज्यादा करते हैं। भाषा में फंसाने वाली गंदी पहल वाले
राजनेताओं में इन्हें अग्रिम क्रम मिलेगा। शब्दों के जाल से देश की समस्याएँ कभी नहीं सुलझ सकती ये तो दशकों से ये देश मानता है। लेकिन इनके आने के बाद देश खुद ही भूल
गया है कि वो क्या मानता था!!! नारों से देश का
पेट भरता तो आज देश को अनाज की ज़रूरत नहीं होती। चायवाला हो या चौकीदार हो....
नरेन्द्र मोदी एक ऐसा वातावरण तैयार करने में माहिर है जिसमें कोई उनसे सवाल ना
पूछे। हर नेता यही चाहता है, लेकिन मोदीजी इसमें सफल रहे हैं। यह राजनीतिक तरीका
कितना सही है यह लोग नहीं सोच पाते।
गुजराती में किसीने
लिखा था कि मोदीजी विचारक नहीं बल्कि प्रचारक है। दूसरे विचार करते रहते हैं, ये
प्रचार कर आते हैं!!! प्रचारक वचन देता
नहीं बल्कि लोगों से वचन लेता है!!! वो जब खुद कुछ नहीं करते तब वो लोगों को कहते हैं कि
मुझे नहीं आपको कुछ करना होगा! वो देश को कहते
हैं कि आपको यह यह करना हैं, तभी देश आगे बढ़ेगा! कई मौकों पर इन्होंने इस थ्योरी को सफलतापूर्वक आजमाया है।
आश्चर्य नहीं है कि
आज से 20 साल बाद, यानी 2039 में मोदीजी पीएम बने तब भी वो 2019 वाले दौर को उसी
तरह लोगों को सामने पेश करेंगे, जैसे वो 2019 में पहले के दौर को पेश करते हैं। मोदीजी
बोलते ही रहनेवाले राजनेता है। इसीलिए वो कितना बोलते उसे एक लेख में लिखा नहीं जा
सकता। वो इतना बोलते हैं कि वेद व्यास टाइप किसी दूसरे शख्स को महाभारत से भी आगे महाभारतनामा
जैसा कोई ग्रंथ लिखने बैठना पड़ता।
मुझे नहीं पता कि पढ़ने वाले इसे किस नजरिये से पढ़ेंगे। लेकिन एक बात ज़रूर सोचने लायक है। वो यह कि एक पुराने राजनीतिक परिवार की महिला साढ़े चार साल जीन्स
पहनकर घूमती है, फिर चुनाव के वक्त भारतीय पोशाक में सज-धजकर लोगों के बीच पहुंचती
है। और लोग मानने लगते हैं कि यही देश की तकदीर बदलेगी। कोई नेता खुद को अचानक से
चाय वाला बताकर ढेरों वादें करता है और फिर बड़ी बेशर्मी से सारे वादों को तोड़ देता
है, कहता है कि चुनाव में तो कुछ बातें कह दी जाती हैं, उस पर ध्यान ना दे, ये तो जुमला था। और फिर भी इस देश का युवा मानता है कि वही आदमी इस देश की तकदीर
बदलेगा। तो फिर आप सोचिए कि बेवकूफ कौन है। धर्म और जाति के नाम पर मतदान होता है,
पांच साल तो क्या... जिंदगी के हर दिन का हर एक पल धर्म और जाति पर ही निकलता है,
और वही युवा विशेषज्ञ बनने का ढोंग करके कहता है कि धर्म और जाति के विषचक्र ने
देश को बर्बाद करके रख दिया है। आप तय नहीं कर पाएंगे कि नेता और जनता, दोनों में से ज्यादा दोगला कौन है।
(इंडिया इनसाइड,
एम वाला)
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