तकनीक सदैव सहाय करती है लेकिन समाधान जमीनी कदमों के जरिए होता
है। एक सीधी बात है कि कोविड 19 जैसी महामारी के बीच जमीनी स्तर पर जो संसाधन ज़रूरी है उस
पर काम करने की जगह ऐसी चीजों पर ज्यादा शक्ति खर्च करना आगे जाकर समाधान को रोक ही
देगा। खैर, हम बात करते हैं आज की। क्योंकि आने वाले कल के बारे में ना
सरकार सोच रही है, ना लोग।
मैं तो पहले से ही कहता हूं कि कभी संसद में बैलगाड़ी लेकर आधुनिक
तकनीक का विरोध करने पहुंची बीजेपी आज कांग्रेस से भी अधिक आधुनिक हो चुकी है। प्राचीन
भारत और आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल, दोनों का मेल बीजेपी
कर रही है तो इसमें प्रथम दृष्टि से कुछ भी गलत नहीं है। लेकिन नोटबंदी-नोटबदली के
जमाने से देखा जा रहा है कि सब कुछ सही है, बस बिना प्लानिंग के
हो वही गलत है। बिना आयोजन के कैशलेस और डिजिटलपंति की उस ‘सनक’
के ऊपर हम लिख चुके
हैं, लिहाजा दोबारा लिखने की ज़रूरत नहीं है। जिन दिनों भारत में कोविड 19 की त्रासदी के बीच लोगों के लिए आरोग्य सेतु ऐप अनिवार्य बनाया
जा रहा था, उन्हीं दिनों डब्ल्यूएचओ ने भारत जैसे देशों के लिए इशारों इशारों
में कहा था कि कि ज़मीन पर काम करने के पुराने तरीक़े की जगह कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग ऐप
और अन्य तकनीक नहीं ले सकती है। अब इसका मतलब यह ना माने कि ऐप वगैरा को डस्टबिन में
डाल दो। अर्थ यह है कि आप आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल सफलतापूर्वक तभी कर पाएंगे जब आपने
जमीनी स्तर पर ठोस आयोजन और तैयारियां की हो। हमारे यहां पिछले करीब डेढ़-दो महीने
से हम सरकारी आयोजनों और तैयारियों का जनाजा रोज उठता हुआ देख रहे हैं। महामारी के
इस दौर में सरकारी लापरवाहियों और हैरान-परेशान भारत को संभालने की प्रशासनिक चूक का
काफिला सवालों के घेरे में था,
और इसी समय हमारे यहां
किसीको आरोग्य सेतु ऐप डाउनलोड कराने की सनक थी। ऐप डाउनलोड कर लो इंडियावालों... और
बाकी का लोड उस भारत पर है ही,
जो महीनेभर से सड़कों
पर बिखरा हुआ पड़ा है। सब कुछ सही है, बस बिना प्लानिंग के हो जाता है, वही गलत है। मोदी सरकार के साथ यह कड़वा सच जुड़ा हुआ है। नोटबंदी हो या नोटबदली
हो, जीएसटी हो,
कैशलेस योजनाएँ हो, इलेक्ट्रॉनिक इंडिया के सपने हो,
उसके बाद का काल हो
या उससे पहले का, यह कड़वा सच सदैव साथ रहा है। और अब... अब लिखा जा रहा है कि
लॉकडाउन ज़रूरी है लेकिन बिना प्लानिंग का लॉकडाउन खतरनाक है। वैसे जो लोग आरोग्य सेतु
की माला जप रहे हैं उनके लिए बता दे कि सरकार इससे पहले भी कोरोना कवच नाम के एक मोबाइल
ऐप को पेश कर चुकी है। खैर, आरोग्य सेतु ऐप के बारे में हम पहले जान लेते हैं। इस ऐप को 2 अप्रैल 2020 को लॉन्च किया गया था। यह ऐप ब्लू टूथ और लोकेशन डाटा के आधार
पर एप का प्रयोग करने वाले की स्थिति पर निगरानी रखता है और यह भी कि वह किन-किन व्यक्तियों
के संपर्क में आया है। आरोग्य सेतु को कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग ऐप बताया जा रहा है, जिसकी मदद से नए मामलों की पहचान हो सकती है और क्लस्टर बनने से रोका जा सकता है।
आरोग्य सेतु कोविड-19 पॉजिटिव मामलों को ट्रैक करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा बनवाया
गया एक मोबाइल एप्लीकेशन है। यह स्मार्टफ़ोन के जीपीएस और ब्लू टूथ की मदद से कोरोना
वायरस संक्रमण को ट्रैक करने का दावा करता है। इसे मोबाइल में इंस्टॉल कर व्यक्ति को
ख़ुद ही अपने स्वास्थ्य संबंधी जानकारी इसमें डालनी होती है। सरकार का दावा है कि इसे
एक बार मोबाइल में इंस्टॉल कर लेने से अगर व्यक्ति हमेशा जीपीएस, ब्लू टूथ ऑन रखे तो उसे घर से बाहर निकलने पर यह पता चलता रहेगा कि वह कहीं किसी
संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में तो नहीं आया। डब्ल्यूएचओ जमीनी तैयारियों पर जोर देने की वकालत कर रहा है, इधर भारत आरोग्य सेतु
ऐप के पीछे पड़ा है
वैसे भी मोदी सत्ता ने कोरोना (कोविड 19) काल में अचानक से लॉकडाउन
तो थोप दिया, किंतु लॉकडाउन जिन वजहों से लागू किया जाता है उन मुद्दों पर
इन्होंने कोई काम ही नहीं किया। लॉकडाउन के अलावा भारत में कोई प्रभावी मुहिम छेड़ी
गई हो तो वह थी थाली-ताली-दिया-बाती!!! जिस ऐप को डाउनलोड करना अनिवार्य बनाया जा रहा था उस ऐप को ऐसी आपदाओं के लिए टेस्ट
किया गया था या नहीं किया गया था,
किसीको नहीं पता!!!
भारत सरकार के किसी जवाबदेह ढांचे ने इस ऐप को जांचा है या नहीं, परखा है या नहीं, किसीको पता नहीं है!!! बस अनिवार्य है इतना पता है!!! वैसे एक
बात तो साफ है। एक भारतीय नागरिक के तौर पर आप किसी विषय को लेकर जितना भी बवाल कर
ले, सरकारें तो वही करेगी जो वे करना चाहती हैं या कोई उनसे करवाना
चाहता है। आधार को लेकर सालों तक क्या कुछ नहीं हुआ? बिना क़ानून पारित
किए आधार अनिवार्य भी हुआ,लागू भी हुआ! क़ानून
तो बाद में बना! जब आधार अनिवार्य हो सकता है तो फिर ऐप क्यों नही! पिछले लोकसभा चुनाव के समय एक इजराइली एजेंसी द्वारा बनाया गया पेगासस नाम का स्पाइवेयर
काफ़ी चर्चा में था। इसके माध्यम से भारतीय पत्रकार और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की
जासूसी करने की बात अमेरिकी फ़ेडरल कोर्ट में व्हाट्सएप ने स्वीकार भी की थी। जब भी
कोई तकनीकी चीज़ समूचे देश के लिए लागू की जाए तब उस तकनीकी चीज़ के तमाम पहलू, तमाम कोण को लेकर देश को आश्वस्थ करना किसी भी सरकार की जवाबदेही है। आरोग्य सेतु
ऐप पर विपक्ष ने जो सवाल उठाए उसको हम इस लेख में जगह भी नहीं दे रहे या उसे तरजीह
भी देना नहीं चाहते। क्योंकि आधार के महाभारत पर बीजेपी-कांग्रेस और फिर एक बार बीजेपी
ने जिस तरीके से समूचे देश को भ्रमित किया, वो जगजाहिर है, जिसके ऊपर हम अलग लेख लिख चुके हैं। लिहाजा इतना भरोसा है कि सरकार हो या विपक्ष, सब एक ही थाली में खाने वाला समुदाय है। लिहाजा हम राजनीतिक आरोपों को गटर में
डालकर ही आगे बढ़ते हैं। आरोग्य सेतु ऐप के फायदों को लेकर सबको पता है, लेकिन हमारे यहां यही
अभिगम घातक सिद्ध होता आया है। फायदे गाहे-बगाहें गिनाए जाते हैं, जोखिम-शंकाएँ-सवाल आदि को डस्टबिन में डाल दिया जाता है। फिर क्या? कुछ महीनों बाद, आज जिस ऐप के सरकारी प्रचार के लिए लाखों रुपये फूंके जा रहे
हैं, वो ऐप कहीं कोने में दुबक कर बैठा होगा! दरअसल आरोग्य सेतु ऐप
जैसी चीजों को ज़रूरत से भी ज्यादा अहमियत देने को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन और इंटरनेट
फ़्रीडम फ़ाउंडेशन नामक एक संगठन ने भी अपनी चिंताएँ जताई हैं। डब्ल्यूएचओ के इमर्जेंसी
हेड माइक रायन के मुताबिक़, “हम इस बात पर ज़ोर देना चाहेंगे कि आईटी टूल्स सार्वजनिक स्वास्थ्य
कर्मचारियों की जगह नहीं ले सकते हैं,
जिनकी ज़रूरत ट्रेस, जाँच, आइसोलेट और क्वॉरंटीन करने में पड़ती है।” जो फायदे हैं वो तो सबको पता है,
लेकिन जोखिम के कोण
को लेकर बात करनेवाले दावा करते हैं कि यह ऐप सुरक्षा के मानकों पर खरा नहीं उतरता, उपरांत इसे किसी निजी कंपनी को संचालन के लिए दिया गया है, जिसके पास कोई संस्थागत दूरदृष्टि नहीं है। आँकड़ों की सुरक्षा और निजता को लेकर
भी सवाल उठाए गए। केंद्रीय सूचना और प्रौद्योगिकी मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने इस आरोप
का खंडन किया और कहा कि ऐप का डाटा सुरक्षा आर्किटेक्चर मज़बूत है। बीजेपी के रवि शंकर
प्रसाद बिल्कुल कांग्रेस के कपिल सिब्बल की भांति दिखाई देते हैं। खैर, आधार को लेकर जो कहानियां हैं,
जमीनी घटनाएँ हैं, उसका पुनरावर्तन ना हो वही अच्छा है। एसा नहीं है कि ऐप का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। दरअसल मसला यह है कि जो ज्यादा
ज़रूरी है उस पर ज्यादा प्रयास हो। लॉकडाउन के इस दौर में ज़रूरतमंदो के लिए जितनी
कोशिशें नहीं की गई उतनी तो आरोग्य सेतु ऐप के इस्तेमाल को बढ़ाने के लिए की जा रही
है!!! प्रधानमंत्री और भारत सरकार अनेक माध्यमों से रोज़ाना लोगों से आरोग्य सेतु ऐप
डाउनलोड करने की अपील कर रहे हैं। कहा जा रहा है कि इस ऐप का मक़सद इस बात की जानकारी
देना है कि आप जाने अनजाने में किसी कोरोना वायरस संक्रमित शख्स के संपर्क में आए या
नहीं। इस ऐप के प्रचार-प्रसार में अधिक पैसे डाले जा रहे हैं, जबकि पैसों की ज़रूरत कहीं ओर ज्यादा है। केंद्र सरकार ने सरकारी और निजी क्षेत्र के कर्मचारियों के लिए आरोग्य सेतु ऐप
डाउनलोड करना अनिवार्य कर दिया है। लॉकडाउन 2 के भाषण में पीएम
कहते हैं कि आरोग्य सेतु ऐप ज़रूर डाउनलोड करे। घर पर पित्जा डिलीवरी करने की मनाही
नहीं है, बस उन्हे आरोग्य सेतु ऐप धारण करके मैदान में उतरना होगा। बताइए, इस नियम के बाद भी कई जगहों से खबरें आई थी कि होम डिलीवरी करनेवाला संक्रमित था
और उसकी वजह से दूसरे दर्जनों लोग भी संक्रमित हुए!!! आरोग्य सेतु ऐप धारण करने के
बाद भी यह सबकुछ हुआ!!! फिर सवाल तो उठेंगे ही कि इस ऐप का कोई परीक्षण-वरिक्षण हुआ
था या नहीं? या बस ऐसे ही मन किया तो अनिवार्य कर दिया। या कुछ और वजहें
हैं, जिसका पता लोगों को नहीं है। पीपीई किट्स, दस्ताने, मास्क, वेंटिलेटर,
जांच उपकरण, क्वॉरंटीन सेंटर के हालात, अस्पतालों में बेड, जांच और इलाज का ढांचा...
इन सबके लिए जितनी सरकारी मेहनत नहीं हुई उतनी तो आरोग्य सेतु ऐप के लिए हो रही है!!!
डब्ल्यूएचओ जमीनी तैयारियों पर जोर देने की वकालत कर रहा है, इधर भारत आरोग्य सेतु ऐप के पीछे पडा है!!! यह अजीब तो है ही। ऐप के फायदे गिनवाए जा रहै हैं तो उधर इसके नुकसान भी बताए जा रहे हैं, सब ज़रूरी है लेकिन
बिना प्लानिंग के सब बेतुका ही है
बेशक, आरोग्य सेतु ऐप के फायदे हैं, जो लाभ बताए जा रहे
हैं वह भी सही हो सकते हैं। लेकिन जब भी इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल की दुनिया की बातें
हो, तब फायदों के साथ साथ संभवित नुकसान या जोखिमों का रिसर्च होना
अत्यंत ज़रूरी है। मेंढकों के लिए ज़रूरी हो या ना हो, देश के नागरिक के रूप में यह ज़रूरी ही है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस ऐप के इस्तेमाल का क़ानूनी आधार स्पष्ट नहीं किया
गया है। इसके अलावा उनका आकलन है कि ऐप की निजता पॉलिसी और टर्म्स ऑफ़ सर्विस डाटा
सुरक्षा के कई सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं, जैसे उद्देश्य को सीमित
रखना, न्यूनतम डाटा लेना, उसके भंडारण को सीमित
रखना, और डाटा को प्रोसेस करने में गोपनीयता, पारदर्शिता और निष्पक्षता का पालन होना। विशेषज्ञों का दावा है कि यह ऐप निगरानी
करने वाली काफ़ी उन्नत प्रणाली है जिसे आउटसोर्स कर निजी ऑपरेटर के हाथों में दे दिया
गया है और इस पर कोई संस्थागत निरीक्षण नहीं है। इससे डाटा और लोगों की गोपनीय जानकारियों
की सुरक्षा के लिए गंभीर ख़तरा की आशंका है। उनका कहना है कि प्रौद्योगिकी हमें सुरक्षित
रखने में मदद कर सकती है, लेकिन नागरिकों की सहमति के बिना भय का लाभ उठाने के लिए उनको
ट्रैक नहीं किया जाना चाहिए। अभिव्यक्ति और निजता को लेकर काम करने वाली संस्था इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन (आईएफ़एफ़)
ने आरोग्य सेतु पर अपना विस्तृत शोध किया है। आईएफ़एफ़ ने कहा है कि, “इसमें कई कमियाँ हैं। पहली कमी यह है कि भारत में व्यापक डाटा सुरक्षा क़ानून का
अभाव है और जो सर्विलांस और इंटर्सेप्शन के क़ानून हैं वे वर्तमान हालातों से बहुत
पीछे हैं।” आईएफ़एफ़ यह भी कहता है कि सिंगापुर और कुछ यूरोपीय देशों में भी सरकार इस तरह
की ऐप का इस्तेमाल कर रही है, लेकिन वहाँ ऐसी कई बातों का ख्याल रखा जा रहा है जिन्हें भारत
में नज़रअंदाज़ कर दिया गया है। जैसे,
सिंगापुर में सिर्फ़
स्वास्थ्य मंत्रालय इस तरह की प्रणालियों द्वारा इकट्ठा किए गए डाटा को देख या इस्तेमाल
कर सकता है और नागरिकों से वादा किया गया है कि पुलिस जैसी एजेंसियों की पहुँच इन डाटा
तक नहीं होगी। इसके विपरीत, भारत में स्वास्थ्य मंत्रालय के इसमें मुख्य रूप से शामिल होने
के कोई संकेत नहीं हैं। सिंगापुर में कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग का इस्तेमाल सिर्फ़ बीमारी
के नियंत्रण के लिए हो रहा है और लॉकडाउन और क्वॉरंटीन जैसे क़दम लागू करने के लिए
नहीं हो रहा है। अधिकतर ऐप ब्लूटूथ का इस्तेमाल करते हैं (जैसे सिंगापुर में) या जीपीएस
का, लेकिन आरोग्य सेतु दोनों का इस्तेमाल करता है। अधिकतर ऐप सिर्फ़
एक बिंदु पर डाटा इकट्ठा करते हैं लेकिन आरोग्य सेतु कई बिंदुओं पर डाटा माँगता है।
आईएफ़एफ़ के अनुसार आरोग्य सेतु में पारदर्शिता के मोर्चे पर भी कई कमियाँ हैं। यह
ऐप अपने डेवलपर्स और उद्देश्य दोनों के बारे में जानकारी नहीं देता है। विशेषज्ञ कहते हैं कि ऐप के जरिए जो जानकारी सरकार इक्ठ्ठा करेगी उसका कैसे और
कब, किन तरीकों से इस्तेमाल होगा इसका कोई विवरण सरकार ने नहीं दिया
है। ये जो सारा डेटा एकत्रित हो रहा है आख़िर ये जा किस एजेंसी के पास रहा है, इस पर अभी स्थिति स्पष्ट नहीं है। लोगों का निजी मेडिकल डाटा एकत्रित होकर कहीं
जा तो रहा है पर किसीको भी अभी ये नहीं पता कि आख़िर ये सब किस साइबर क़ानून के अंतर्गत
आता है। पीएम केयर्स फंड की तरह इसके बारे में भी सरकार अपने कान-मुंह बंद कर देगी
यह भी दिख रहा है। महामारी का दौर है और इसी स्थिति का लाभ उठाकर जो पहले ज़रूरी है उस पर शक्ति खर्च
करने की जगह सरकार जो कम ज़रूरी है उस पर देश का धन व्यय कर रही है। सुनने की आदत नहीं होती सत्ता को,
लेकिन कम से कम अपनी मातृसंस्था आरएसएस से जुड़े संगठन स्वदेशी
जागरण मंच के आरोपों पर तो सुन लीजिए सरकार
केवल मोदी सत्ता ही नहीं, कोई भी सत्ता हो, इन्हें सुनने की आदत
नहीं होती। इन्हें कोई टोके यह पसंद नहीं होता। लेकिन कम से कम अपनी मातृसंस्था आरएसएस
से जुड़े संगठन स्वदेशी जागरण मंच के आरोपों को तो सुन लीजिए सरकार। वैसे यहां स्पष्ट
कर देते हैं कि मातृसंस्था से जुड़े संगठन का विरोध कितना राजनीतिक है, कितना अंदरूनी है, कुछ और ही है,
हमें नहीं पता। बस
इतना पता है कि विरोध में जो सवाल उठे वो व्यवहारिक है। स्वदेशी जागरण मंच ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी
अधिकारी अमिताभ कांत की शिकायत की है। मंच ने प्रधानमंत्री और वाणिज्य मंत्री पियूष
गोयल से कहा है कि अमिताभ कांत इस ऐप के ज़रिए विदेशी ई-मेडिसिन कंपनियों की ग़ैरक़ानूनी
तरीके से मदद कर रहे हैं। दरअसल यह आरोग्य ऐप न केवल कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों
पर निगरानी रखती है, बल्कि इसके साथ ही यह रोगियों को ऑनलाइन स्वास्थ्य सलाह देती
है, जाँच के बारे में बताती है और ई-फ़ार्मेसी कंपनियों से जोड़ती
है। स्वदेशी जागरण मंच का कहना है कि ऐप से जुड़ी कुछ ई-फ़ार्मेसी कंपनियाँ विदेशी
हैं और इस तरह यह ऐप इन विदेशी कंपनियों की मदद कर रहा है। स्वदेशी जागरण मंच आरएसएस से जुड़ा संगठन है और आरएसएस की अघोषित इकाई बीजेपी सत्ता
पर है। लिहाजा घर से ही सवाल उठ रहे हैं, व्यवहारिक सवाल उठ
रहे हैं, तो फिर ऐसी चीजें चर्चा के भीतर शामिल होगी ही। सवाल उठाया जा
सकता है कि मेक इन इंडिया, मेड इन इंडिया,
स्वदेशी भारत, आत्मनिर्भर भारत... ये सब महज नारे हैं या हैरान-परेशान लोगों को भारत के गौरव
में डुबोकर सवालों को शिफ्ट करने की राजनीति है। क्योंकि घर से ही जागरण मंच विदेशी
कंपनियों की मदद का आरोप मड़ रहा है। वैसे हमें यह भी पता है कि कुछ चीजों का विरोध भले सही हो, लेकिन उसके पीछे मकसद कुछ दूसरा भी हो सकता है। निगाहे कहीं, निशान कहीं पर! दिखाने के दांत अलग, खाने के अलग! अंदरूनी
राजनीति कई मसलों पर एसे रंग भी दिखाती है यह हमें भली-भांति पता है और समझ भी सकते
हैं। लेकिन घर से व्यवहारिक सवाल सार्वजनिक ढंग से उठे तो फिर ऊपर कहा वैसे, चर्चा के भीतर यह आरोप तो आएंगे ही। स्वदेशी जागरण मंच के संयोजक अश्विनी महाजन ने 'द प्रिंट' से कहा कि अमिताभ कांत ग़ैरक़ानूनी तरीके से विदेशी ई-फ़ार्मेसी की मदद कैसे कर
सकते हैं? उनका आरोप है कि करोड़ों भारतीयों ने इस ऐप को डाउनलोड कर लिया
है और उन तक इन विदेशी कंपनियों की पहुँच हो गई है। आरएसएस से जुड़ी एक और संस्था लघु
उद्योग भारती भी आरोग्य सेतु ऐप और नीति आयोग प्रमुख अमिताभ कांत के विरोध में है।
लघु उद्योग भारती का कहना है कि भारतीय कंपनियों और लघु, छोटे और सूक्ष्म उद्यमों की मदद की जानी चाहिए, इसके उलट विदेशी कंपनियों
की मदद इस ऐप के ज़रिए की जा रही है। अब इस विरोध के पीछे कौन सी राजनीति है यह एक
अलग विषय है, लेकिन निष्पक्ष विशेषज्ञ जो सवाल उठा रहे हैं, वही सवाल घर से भी उठ रहे हैं,
यह चीज़ भी नजरअंदाज
नहीं की जा सकती। ऐप डाउनलोड नहीं किया तो अपराध...!!! लेकिन सरकारी लापरवाहियों की वजह से सड़कों
पर बचा-खुचा भारत बेमौत मरता रहे तो उसमें सरकार कुछ नहीं कर सकती
ऊपर लिखा वैसे, डब्ल्यूएचओ जमीनी तैयारियों पर जोर देने की वकालत कर रहा है, इधर भारत आरोग्य सेतु ऐप के पीछे पडा है। लॉकडाउन 2 के भाषण में पीएम कहते हैं कि आरोग्य सेतु ऐप ज़रूर डाउनलोड करे। होम डिलीवरी
करनेवालों के लिए ऐप अनिवार्य है,
फिर भले वो खुद संक्रमित
हो और वो दर्जनों को संक्रमित करता रहे!!! केंद्र सरकार ने सरकारी और निजी क्षेत्र
के कर्मचारियों के लिए आरोग्य सेतु ऐप डाउनलोड करना अनिवार्य कर दिया है। नोएडा में
तो गजब का ‘फतवा’ जारी हो चुका है। कहा गया कि आरोग्य सेतु ऐप डाउनलोड नहीं किया
तो क़ानूनन अपराध माना जाएगा!!! बताइए, सरकार की गलतियों की
वजह से सैकड़ों लोग बेमौत मारे जा रहै हैं वह सरकार का अपराध नहीं है, लेकिन आपने ऐप डाउनलोड नहीं किया तो वो अपराध!!! इसे अभी तक पाँच करोड़ से भी ज़्यादा बार डाउनलोड किया जा चुका है और केंद्र सरकार
चाहती है कि यह देश में हर व्यक्ति के मोबाइल तक पहुँच जाए। केंद्र सरकार ने सभी सरकारी
विभागों और सभी निजी कंपनियों के लिए ऐप वाला ‘फतवा’ जारी कर दिया है। दिल्ली से सटे नोएडा में तो प्रशासन ने (बीजेपी सरकार ने) मोबाइल
में इस ऐप को इंस्टॉल नहीं करने पर दंडनीय अपराध बना दिया है!!! नोएडा और ग्रेटर नोएडा
में अगर कोई बाहर दिखता है और उसके स्मार्टफ़ोन पर इस ऐप को नहीं पाया जाता है तो उस
पर जुर्माना लगाया जा सकता है या जेल की सजा दी जा सकती है!!! उत्तर प्रदेश के पहले केंद्र सरकार ने अपने सभी कर्मचारियों के लिए आरोग्य सेतु
एप को ज़रूरी कर दिया था। सरकार का यह निर्देश सभी विभागों, मंत्रालयों, कैबिनेट सचिवालय और प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजा गया। आदेश
में कहा गया कि ये मंत्रालय और विभाग सभी स्वायत्त व वैधानिक संस्थाओं और पीएसयू को
भी ये निर्देश भेज सकते हैं। जैसे बिना क़ानूनी आधार के आधार को सरकारें बच्चे की तरह पालती रही, वैसे ही अब बिना क़ानून
के आरोग्य सेतु ऐप को भी कोई भी पाल रहा हो, लेकिन जो पहले ज़रूरी है उस पर जो कम ज़रूरी है उससे भी कम मेहनत
क्यों?
हम दोबारा स्पष्ट कर देते हैं कि जितने भी संसाधन हैं उसका इस्तेमाल महामारी से
लड़ने के लिए ज़रूर होना चाहिए। चाहे वो तकनीक हो या दूसरी चीजें। लेकिन मूल तो यही
है कि जो पहले ज़रूरी है उस पर जो कम ज़रूरी है उससे भी कम मेहनत क्यों? वैसे इस ऐप को भारत सरकार ने बनवाया है। डाटा को लेकर काम एनआईसी कर रहा है। ऐप
डेवलप में भी उसका सह्योग होने की बातें की गई है। वेबसाइट में ऐसा दावा है। हालांकि
सरकारी वेबसाइट यह दावा ज़रूर करता है, लेकिन इस ऐप को लेकर
डाली गई एक आरटीआई में मंत्रालय कहता है कि उनके पास इसकी जानकारी नहीं है कि इस ऐप
को किसने डेवलप किया है। जो भी हो,
लेकिन बिना किसी आधार
के आधार कार्ड भारत की जनता पर कांग्रेस ने भी थोपा और बीजेपी ने भी। आधार की जिंदगी
को अब आरोग्य सेतु ऐप जी रहा है। कानूनन जो दबाव बनाया जा रहा है उसे आलोचनाओं के बाद
हटा भी दिया जाए तब भी क्या। यूजर ने जो डाटा दिए हैं वो कितने दिनों तक सर्वर पर रहेंगे
उसे लेकर नियमों में बदलाव हो रहा है। ये बदलाव तब किए जा रहे हैं जब साइबर सुरक्षा
विशेषज्ञ से लेकर हैकर और राजनेता तक डाटा सुरक्षा को लेकर सवाल उठा चुके हैं। आगे
जाकर सरकार पीछा छुड़ाने के लिए कह देगी कि डाटा सिर्फ और सिर्फ स्वास्थ्य के लिए ही
इस्तेमाल होगा। वैसा ही कहेगी जैसा आधार पर सालों से कह रही थी और फिर वही किया जो
उसने ठाना था। आरोग्य सेतु ऐप को ज़रूरी किए जाने की क़ानूनी वैधता को लेकर सुप्रीम कोर्ट के
पूर्व जज बी एन श्रीकृष्ण भी सवाल उठाते हैं। जस्टिस बी एन श्रीकृष्ण उस सरकारी कमेटी
के अध्यक्ष रहे थे जिसने व्यक्तिगत सुरक्षा संरक्षण अधिनियम का पहला मसौदा तैयार किया
था। हालाँकि सरकार ने उनके सुझावों को नहीं माना था। वह कहते हैं कि आरोग्य सेतु ऐप
को लोगों के लिए ज़रूरी करना पूरी तरह ग़ैर-क़ानूनी है। 'द इंडियन एक्सप्रेस' से बातचीत में उन्होंने कहा, 'किस क़ानून के तहत
आप किसी पर इसे ज़बरदस्ती लाद रहे हैं? अभी तक तो इसके लिए
कोई क़ानून नहीं है।' गृह मंत्रालय ने आरोग्य सेतु ऐप को लेकर कर्मचारियों के लिए दिशा निर्देश जारी
किए थे और ये दिशा निर्देश राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम (एनडीएमए), 2005 के तहत गठित राष्ट्रीय कार्यकारी समिति द्वारा जारी किए गए थे। इस पर जस्टिस श्रीकृष्ण
ने कहा कि आरोग्य सेतु के उपयोग को अनिवार्य बनाने के लिए दिशानिर्देशों को पर्याप्त
क़ानूनी आधार नहीं माना जा सकता है। उन्होंने कहा, 'ये क़ानून के टुकड़े-
दोनों, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम और महामारी रोग अधिनियम - एक
विशिष्ट कारण के लिए हैं। मेरे विचार में राष्ट्रीय कार्यकारी समिति एक वैधानिक निकाय
नहीं है।' नोएडा पुलिस द्वारा आम लोगों के लिए आरोग्य सेतु ऐप को लेकर
जारी आदेश के संदर्भ में जस्टिस श्रीकृष्ण कहते हैं कि “नोएडा पुलिस का आदेश पूरी तरह से ग़ैर-क़ानूनी है। मैं मान रहा हूँ कि यह अभी भी
एक लोकतांत्रिक देश है और इस तरह के आदेशों को अदालत में चुनौती दी जा सकती है।' इंटरनेट फ्रीडम फ़ाउंडेशन के एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर अपार गुप्ता कहते हैं कि ये
डाटा जो सरकार ले रही है वो बिना किसी क़ानून के दायरे में ले रही है। कोरोना कोविड 19 की महामारी के इस दौर में अब तक सरकार ने और जनता ने कितना
सीखा वो तो दिखता है और संभव है कि आगे बहुत ही साफ तरीके से दिखाई भी दे। दिखाई देने
के बाद भी नहीं देखने की बीमारी वालों की बात छोड़ देते हैं हम। लेकिन इस लेख का मूल
तो यही है कि तकनीक सदैव सहाय करती है लेकिन समाधान तो जमीनी कदमों के जरिए ही होता
है। कोविड 19 जैसी महामारी के बीच जमीनी स्तर पर जो संसाधन ज़रूरी है उस
पर काम करने की जगह ऐसी चीजों पर ज्यादा शक्ति खर्च करना आगे जाकर समाधान को रोक ही
देगा। ऐप के इस्तेमाल को लेकर प्रथम दृष्टि से कुछ भी गलत नहीं है। लेकिन नोटबंदी-नोटबदली
के जमाने से देखा जा रहा है कि सब कुछ सही है, बस बिना प्लानिंग के
हो वही गलत है। पीपीई किट्स, दस्ताने, मास्क, वेंटिलेटर,
जांच उपकरण, क्वॉरंटीन सेंटर के हालात, अस्पतालों में बेड, जांच और इलाज का ढांचा...
इन सबके लिए जितनी सरकारी मेहनत नहीं हुई उतनी तो आरोग्य सेतु ऐप के लिए हो रही है!!!
ऊपर से हम ऐप की अनिवार्यता को लेकर मेहनत कर रहे हैं और उधर डब्ल्यूएचओ कह रहा है
कि ज़मीन पर काम करने के पुराने तरीक़े की जगह कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग ऐप और अन्य तकनीक
नहीं ले सकती है। यानी कि जमीनी स्तर पर ठोस आयोजन और तैयारियों को एहमियत मिले यह
ज्यादा ज़रूरी है। बाकी तो... ऐप डाउनलोड कर लो इंडियावालों... और बाकी का लोड उस भारत
पर है ही, जो महीनेभर से सड़कों पर बिखरा हुआ पड़ा है।