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Aafat Ko Avshar Me Badalna Hai : आत्म प्रचार की इतनी भूख कि पीएम मोदी कोरोना की आफत को भी स्वयं के प्रचार-प्रसार के अवसर में पलट रहे हैं


जी, बिल्कुल सही, आपकी बात बिल्कुल सही है। सोलह नहीं सोलह सौ आने सच। यही कि कोरोना की इस अभूतपूर्व त्रासदी के बीच केवल मोदी-शाह ही नहीं, केजरीवाल-राहुल से लेकर दूसरे कई राज्यों के नायक हर जगह अपनी फोटू लगाकर आफत को अवसर में ही पलट रहे हैं। जिन पांच राज्यों में अभी चुनाव के नतीजे नहीं आए वहां नतीजे आने के बाद किसी न किसी के फोटू लगेंगे। देश का नायक हो या राज्यों के नायक हो, सारे इस बात का ज़रूर खयाल रख रहे हैं कि अस्पताल, एम्बुलेंस, बेड,
ऑक्सीजन वगैरह मरीज़ तक पहुंचे उससे पहले मरीज़ तक ये बात ज़रूर पहुंचनी चाहिए कि इसे कौन सा देवदूत भेज रहा है!!! तभी तो आपको एम्बुलेंस, ऑक्सीजन बोतल, अस्पताल वगैरह के बाहर या ऊपर इन देवदूतों के फोटू चिपके हुए ज़रूर मिल जाएंगे।

जब सारे नायक ऐसा ही कर रहे हैं तो फिर मोदी-शाह पर ही बात क्यों, ये वाली वही पुरानी और घिसी पिटी दलील दागी जा सकती है। पहली बात तो यही कि जब छोटे-मोटे देवदूत और प्यादे देश के महानायक की कॉपी कर रहे हैं, तो फिर बात महानायक से ही क्यों शुरू ना हो? देवदूतों और प्यादों को भी नजर में रखते जाएंगे। इसमे कौन सी दिक्कत है भाई? अरे भाई, जब हर हर मोदी घर घर मोदी ही है तो फिर ऐसे महानायक को नजरअंदाज करने का पाप क्यों करना है? अवतारी और अलगारी की बात ना हो ऐसा थोड़ी न चलेगा? अवतारी-अलगारी के साथ या बाद दूसरों की बारी आएगी न।

एक दर्जन केला देते हैं और फोटू खिंचाते हैं हमारे यहां हमारे कथित जनसेवक!!! केले वाली फोटू तो सोशल मीडिया में बहुत महीनों से घूम रही है। किसकी है पता नहीं, लेकिन खुद को जनसेवक बताने वाले किसी आत्म-प्रचारी जीव की है। एक वक्त का खाना देते समय, कहीं पांच सौ रुपये की मदद करते समय, किसी सेवा कार्य में फोटू खींचने वाला आए तब सारे काम छोड़-छाड़ के भीतर की अनारकली को फोटू सेशन के डिस्को ले जाते समय, कोई ना हो तो सेल्फी वाली पगडंडी पर चलते समय, खाने के पैकिंग पर तो ठीक है रोटी पर भी छाप छोड़ी जाती है! यह रोग महानायकों से लेकर नागरिक से प्रजा बन चुके लोगों में हम बहुत पहले से देख ही रहे हैं।

राजनीति में आत्म-प्रचार ज़रूरी है इससे कोई इनकार नहीं है। लेकिन त्रासदी के समय, महामारी के समय, इन आत्म-प्रचारी जीवों के पास दूसरा वक्त हो ना हो, अपनी फोटू, अपना नाम चिपकाने का समय ज़रूर मिल जाता है इन्हें! त्रासदी का समय ना हो, महामारी का दौर ना हो, तब वे करते ही है ऐसा। उनकी ये मजबूरी है और उनका ये ज़रूरी अवगुण है यह मानकर छोड़ ही देते आए हैं इन गधापंथियों को। लेकिन सोचिए कि जब लोग तिल-तिल के मर रहे हो, सैकड़ों बीमार अधमरे पड़े हो, सैकड़ों लाशें बिछी पड़ी हो तब भी इनका ये अवगुण जारी रहता है। यह राक्षसी गुण है, जिसे मानव सभ्यता में सबसे निचले स्तर का दर्जा माना जाता है। 
जैसे ऑक्सीजन बोतल पर अपनी तस्वीरें लगाने का महान कार्य करनेवाले गुजरात के उस भाजपाई नेता ने कह दिया वैसे मोदीजी के लिए भी कहा जा सकता है कि उन्हें नहीं पता था, उनके प्रशंसकों ने ऐसा कर दिया। कहा जा सकता है कि किसी प्रशंसक या अधिकारी ने बिना उनकी जानकारी के अस्पताल के नाम से भी बड़ी फोटू वहां लगा दी। व्हाट्सएप विश्वविद्यालय वाली प्रजाति से निवेदन है कि इसमें अब प्रोटोकॉल वाली चिड़िया को बीच में मत लाना। क्योंकि ऐसा कोई प्रोटोकॉल नहीं है इतना पता होना चाहिए। दरअसल ऐसी महामारी में जो प्रोटोकॉल थे उसकी धज्जियाँ तो स्वयं पीएम मोदी, उनके सेनापति अमित शाह और उनके दूसरे प्यादे उड़ा ही चुके हैं!!! उन्हें पता नहीं था और किसी ने उनकी फोटू चिपका दी वाली दलील व्हाट्सएप विश्वविद्यालय में ही चल सकती है। या फिर जियो के शुभारंभ समारोह में!

सोचिए, उस अस्पताल में जितने बेड की घोषणा हुई थी उसके आधे बेड अब भी नहीं लगे हैं वहां!!! ऊपर से वह अस्पताल इतने सारे विवादों को जन्म दे चुका है कि उसके लिए गुजरात हाईकोर्ट तक को हर दिन सुनवाई करनी पड़ी और गुजरात सरकार को निर्देश-आदेश देने पड़े!!! गाहे-बगाहे अस्पताल की घोषणा हुई, प्रोटोकॉल की धज्जियाँ उड़ाते हुए केंद्रीय गृह मंत्री ने शुभारंभ का रंगारंग कार्यक्रम भी कर लिया इस बीच!!! फिर आईटी सेल और व्हाट्सएप विश्वविद्यालय वालों ने वाहवाही भी कर ली। लेकिन दिनों बाद भी वहां स्थिति ऐसी कि हाईकोर्ट को मैदान में उतरना पड़ा!

मतलब कि कोई और चीजें हो ना हो, बस बाहर फोटू लगाने का काम तुरंत कर दिया गया था! सोचिए, अस्पताल में अंदर जो चीजें चाहिए वो हैं या नहीं हैं इसका खयाल उस समय किसी ने नहीं रखा होगा, बस यह ज़रूर देखा होगा कि मोटा भाई और छोटा भाई का फोटू ठीक से लगा है या नहीं! घोषणाओं की सरकार, घोषणाओं का प्रचार... आत्म प्रचार...। आफत को अवसर में बदलने की उनकी जो पुरानी घोषणा थी उसे वे एक दूसरे तरीके से ही लागू किए जा रहै हैं। बाकी सारी घोषणाएँ पता नहीं बिना ऑक्सीजन के कहां मरी पड़ी होगी!
 
जो समझदार नहीं है उन्हें समझाया नहीं जा सकता, किंतु जो समझते हैं उनके लिए स्पष्ट कर दे कि यहां एक बात यह है कि फोटू लगाना है तो लगाओ, शहर भर में लगाओ, लेकिन बढ़-चढ़ कर जिसकी घोषणाएँ करते हो, जिसका शुभारंभ करते हो, वो सही ढंग से और सही क्षमता से काम करें उसका खयाल रखकर वहां फोटू लगाओ। मूल बात तो यह है कि ऐसी अपार पीड़ा के समय तो आत्म प्रचार की अनारकली को काबू कर लो।
 
इस समय देश में सैंकड़ों अस्थायी अस्पतालों की ज़रूरत है। हर जगह इलाज से संबंधित चीजों की ज़रूरत है। कहां कहां फोटू लगाते रहेंगे? ऑक्सीजन प्लांट लगाने को कहा तो नहीं लगाए, लेकिन फोटू लगा दिए!!! एक तो प्रोटोकॉल की जमकर धज्जियां उड़ाई और मार्गदर्शिकाओं को कुचलते हुए रंगारंग शुभारंभ किया। फिर अस्पताल उस दिन चालू नहीं हुआ, बल्कि कहा गया कि दूसरे दिन से इलाज शुरू होगा। दूसरे दिन क्या हुआ। मॉक ट्रायल हुआ! बताइए। मॉक ट्रायल किया उससे पहले तो शुभारंभ कर दिया था!!! मॉक ट्रायल में ऑक्सीजन का प्रेसर सही नहीं रहा तो अस्पताल ने पहले दिन ही काम करना बंद कर दिया!!! कहा गया कि आज मरीज़ भर्ती नहीं किए जाएँगे! जैसे तैसे दूसरे दिन अस्पताल ने काम करना शुरू किया तो पता चला कि करीब 900-950 की क्षमता वाले इस अस्पताल में हर दिन 25-50-75 की संख्या के हिसाब से मरीज़ भर्ती किए जाएँगे! सोचिए, जिस अस्पताल को 1000 बेड वाला अस्पताल बताया गया वहां 25-50-75 के हिसाब से पूरी क्षमता के साथ काम करने में कितने दिन लग गए होंगे? जब एक-एक घंटा कीमती था तब इतने दिन का हिसाब कितना महंगा पड़ा होगा?
बात यही नहीं रुकी। फिर तो हर दिन नये नये विवाद सामने आने लगे। एम्बुलेंस से आए मरीज़ ही भर्ती किए जाएँगे को लेकर विवाद इतना बढ़ा कि गुजरात हाईकोर्ट में सुनवाई होने लगी! आखिरकार हाईकोर्ट को आदेश देकर इन आत्म-प्रचारियों को समझाना पड़ा कि मरीज़ कैसे भी आए, सरकारी एम्बुलेंस से आए-निजी एम्बुलेंस से आए-निजी वाहनों में आए-चलकर आए, मरीज़ को भर्ती कर उनका इलाज करना सरकार का फर्ज है। बताइए, इतने समझदार लोगों को ऐसी बेसिक समझ देने का काम गुजरात हाईकोर्ट को करना पड़ा!!! तब जाकर कुछेक दिनों के पश्चात यह अजीब नियम वापिस लिया गया। इस दौरान अस्पताल के गेट पर कुछेक लोगों के मौत के मामले भी दर्ज हो चुके थे!!! जिस गेट के पास इनकी बड़ी बड़ी फोटू लगी थी वहीं बिना इलाज के कुछेक लोग जान गंवा बैठे। गुजरात के अख़बार दिव्य भास्कर का एक रिपोर्ट है इस अस्पताल को लेकर। दिव्य भास्कर ने दावा किया कि इस अस्पताल में हाउसकीपिंग स्टाफ ने खाना मांगा तो सुपरवाइज़र ने थप्पड़ जड़ दिया। स्थिति देखकर यही महसूस हुआ कि आत्म प्रचार ज़रूरी है, दवा-इलाज वगैरह तो बाद में दे दिए जाएँगे।

राजनीति में कई छोटे-मोटे प्यादे, दूत, देवदूत ऐसा करते ही हैं। लेकिन ऐसी ऐतिहासिक त्रासदी की स्थिति में खुद को जोर-जबर्दस्ती महानायक मनवाने वाला शख्स इस राक्षसी प्रवृत्ति की अगुवाई करे तो यह चीज़ किसी नजरिए से अच्छे दिन या अच्छे गुण या आदर्शवाद वाली श्रेणी में रखी नहीं जा सकती। पीएम कोई छोटा-मोटा ओहदा नहीं है। यह ओहदा किसी छोटी-मोटी जिम्मेदारी का निर्वाहन नहीं करता। ऊपर से जो पीएम खुद को जबरन महानायक मनवाता हो, जो पीएम खुद को अनर्गल तौरतरीकों से अवतारी पुरुष के रूप में दर्शाता हो, वो पीएम ऐसी राक्षसी प्रवृत्ति की अगुवाई करे तो फिर उस किले के भीतर कितनी लोलुपता, कितनी संकीर्णता, कितनी आत्म मुग्धता, कितनी लालच छिपी होंगी इसका आकलन बहुत आसानी से लगाया जा सकता है।
 
नरेंद्र मोदी जब गुजरात के सीएम थे तब से आत्म प्रचार के आदती रहे हैं। जैसे जैसे समय बीतता गया वे इस आदत के लालची होते गए। गुजरात में स्कूली बच्चों के अंकपत्र के पीछे तक उनके फोटू वे लगाते गए!!! लाजमी है कि कोई अपने आप लगाता नहीं होगा, बल्कि साहब किसी न किसी तरह से लगवाते होंगे। वर्ना पढ़ाई तो हमने भी की है, शायद पीएम से भी ज्यादा पढ़ाई की है, किंतु कभी भी हमारे अंकपत्र के आगे या पीछे किसी राजनेता ने आत्म प्रचार की ऐसी लालच नहीं दिखाई थी! स्कूली बच्चों के अंकपत्र तो छोड़ दीजिए, फिर तो बिजली बिल के आगे-पीछे भी इन्हें चिपकने का शौक लगा! बहुत पहले से होता है वैसे सरकारी बसों के पीछे तो थे ही। लेकिन यकीन मानिए, जब इन्होंने दिल्ली जाकर लाल बत्ती वाला सिस्टम खत्म करने एलान किया तो दिल बाग बाग हो गया। लाल बत्ती वाला सिस्टम खत्म हुआ या वह एलान ही खत्म हो गया, पता नहीं चला! लेकिन सैकड़ों लोगों की जानवर की तरह मौतों के बीच महानायक की आत्म प्रचार की ऐसी भूख... दूसरे नायकों और देवदूतों को उनकी पगडंडी पर चलता देख सारे प्रशंसकों को खुशी ज़रूर मिली होगी, यह मौतों के तांडव के बीच अच्छे दिन वाली खबर ही मान लीजिए।
 
कुछ लोग ज़रूर कहेंगे कि ऐसे समय में जो बात करनी चाहिए वह बात मैं करूं। ऐसी बेफजूल की बात ना करूं। अरे भाई, जो बात ऐसे समय में करनी चाहिए वह बात तो पिछले एक साल से ही कर रहे हैं। लेकिन क्या करे? लंगूरों की तादाद इतनी बढ़ गई है कि काम की बात का तो कोई काम ही नहीं रहा। वैसे आज के लेख की बात भी काम की ही बात है। लेकिन बेचारी क्या काम की? है न? सोचिए, अस्पताल का शुभारंभ होता है, सैकड़ों समर्थकों-चापलूसों-चाटुकारों के साथ साथ अनेक अधिकारियों का काफिला कोरोना प्रोटोकॉल की धज्जियां उड़ाता हुआ शामिल रहता है!
वैक्सीनेशन कार्यक्रम शुरू हुआ तो वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट पर भी इन्होंने अपनी फोटू चिपका दी थी!!! सालों से भीतर आत्म-प्रचार की जो लोलूपता थी उसके लिए अवसर था। आफत को अवसर में पलटना ही था! सरकारी योजनाओँ में, सरकारी संसाधनों में फोटू लगाना बहुत पुरानी परंपरा है हमारे यहां। मोदीजी भी इसी राह सालों से चलते आ रहे हैं। फिर भी वे खुद को दूसरों से जुदा बताते हैं। देखा जाए तो वे दूसरों से जुदा ही तो हैं। बच्चों के अंकपत्र, बिजली बिल के आगे-पीछे, न जाने कहां कहां और अब वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट पर! ये दूसरों से जुदा ही तो है! बताइए, वैक्सीनेशन कार्यक्रम को लेकर महीनों के बाद भी वे अदालत के आगे कोई खाका नहीं दे पा रहे। राज्यों की अदालतें इनकी वैक्सीनेशन नीति को लेकर इनसे अनेकों बार सवाल पूछ चुकी हैं, फटकार लगा चुकी हैं, बदलाव के लिए कह चुकी हैं। सुप्रीम कोर्ट ने भी इनसे इसे लेकर पूछा है। लेकिन इनके पास ठोस जवाब नहीं हे। लेकिन सर्टिफिकेट में फोटू पहले दिन से ही लगा दी!

इन दिनों कुछ राज्यों में चुनाव थे, कहीं पर उपचुनाव थे, कहीं नगर निगमों के चुनाव थे, पंचायती स्तर के चुनाव थे। आत्म प्रचार की इनकी भूख इतनी समझदार है कि फोटू लगाने की लालच भी पूरी हो रही थी, साथ ही प्रचार का काम भी हो रहा था। जहां चुनाव नहीं थे वहां भी इस प्रकार की ओछी हरकतों का विरोध हुआ। जहां चुनाव थे वहां तो विरोध होना ही था। चुनाव आयोग में किसी अद्दश्य शक्ति ने प्रवेश किया और आयोग ने सर्टिफिकेट से तस्वीर हटाने का आदेश दे दिया। सोचिए, जो खुद को महानायक कहता हो उसको आयोग तस्वीर हटाने के लिए कहता है, तो फिर उस महानायक की चुनावी समझ, नैतिक समझ, चुनावी पीड़ा और महामारी की पीड़ा के मुद्दों को अपने तौर पर समझ लीजिए।

काम हो ना हो नाम तो होना ही चाहिए! उन दिनों चाय बेचने में बिजी थे, वर्ना नेहरू की जगह मोदीजी ही प्रधानमंत्री बन जाते। नाले की गैस से ऑक्सीजन बनाने का कोई प्लांट अभी तक इन्होंने शुरू नहीं कराया ये वाक़ई देश के साथ छल है। आज जब बिना ऑक्सीजन के लोग मारे जा रहे हैं तो यह काम मोदीजी के दिमाग से निकल गया लगता है। हमारे पास संसाधनों की कमी है, नालों की थोड़ी न कमी है?

'नामकरण' जितनी छोटी चीज़ लगती है उतनी छोटी चीज़ है नहीं। काम कभी अमर नहीं होता, बस नाम ही अमर रहता है। ऊपर से उसमें मोदीजी विकास ही तो कर रहे हैं! पहले कहीं नाम चिटकाया करते थे, फिर फोटू चिपकाने लगे! फिर स्टेडियम का नाम खुद पर करने लगे!!! अभी कोरोना आफत है तो इस आफत को अवसर में बदलना है इसका एलान करके ही तो अस्पतालों के बाहर अपने बड़े बड़े फोटू लगा रहे हैं। ये खयाल भी रख रहे हैं कि अस्पताल का नाम दूर से दिखे ना दिखे, खुद का चेहरा दिख जाना चाहिए! ये खयाल भी रख रहे हैं कि अस्पताल जिन चीजों के लिए बनाया गया है वो सहूलियतें वहां हो ना हो, मुख दर्शन हो जाना चाहिए!
नामकरण, फोटूकरण व्यक्ति पूजा के लिए आह्वान है। स्वामी विवेकानंद का राजनीतिक इस्तेमाल करना है, लेकिन उनके विचारों को अपना कर पैरों पर कुल्हाड़ी थोड़ी न चलानी है? इसीलिए व्यक्ति पूजा की सनक पैदा तो करनी ही होगी। इससे आपका नाम एक प्रतीक में तब्दील होता है। जीवित व्यक्ति किसी चमकते हुए प्रतीक की भांति लगने लगता है। मूर्ति सरीखा लगने लगता है। और प्रतीक भावना पैदा करता है, पूजने पर विवश कर देता है। विचारशून्य और भावनाप्रधान सभ्यता का निर्माण करने के लिए जितने भी अवसर मिलते हैं उसका लाभ उठाना ही चाहिए। आफत को अवसर में बदलना ही चाहिए।

भाजपा के नेता जो भी कहे, हम तो उस स्टेडियम को मोटेरा स्टेडियम कहा करते थे। जब कोई पूछता कि उसका असली नाम क्या है, तो हम मोटेरा स्टेडियम को सरदार वल्लभ भाई पटेल स्टेडियम कहा करते थे। उनका नाम हटाकर वहां अपना नाम चिपका दिया। अरुण जेटली का नाम दिल्ली के क्रिकेट स्टेडियम से जुड़ा तो मोदीजी को लगा कि अरुण वहां तक पहुंच सकता है, तो मैं तो अरुणों का राजा हूँ। इन्होंने जीते जी पूरा का पूरा स्टेडियम गटक लिया!!! संपत सरल के लफ्जों में कहे तो जिस राजा को जीते जी अमर होने का चस्का लगे वो दुनिया की सबसे बड़ी मूर्ति पे अपना सिर भी लगवा सकता है। शुक्र है कि वहां अब तक उन्हीं का सिर है, जिनकी मूर्ति है।

काम नहीं किया तो क्या नाम तो है!!! लार्जर देन लाइफ़ वाले नैरेटिव को गढ़ने की सनक। मायावती अपनी मूर्तियाँ लगवा सकती हैं, अपने परिजनों की मूर्तियाँ और नाम चिटका सकती हैं, तो मोदी इतना नहीं कर सकते? व्यक्ति पूजा का विरोध स्वामी विवेकानंद किया करते थे। उसी स्वामी विवेकानंद का राजनीतिक इस्तेमाल कर युवाओं के दिमाग की साफ-सफाई करो और फिर वक्त रहते स्वामी विवेकानंद से भी खुद को बड़ा साबित कर दो! जीते जी किसी प्रधानमंत्री का नाम कहीं लगे ना लगे, इन्हें लगाना है! अवतार है वोह और अवतार कुछ भी कर सकता है।

बुद्धिजीवी लोग सवाल करते हैं कि क्या मोदीजी को ये शोभा देता है कि जीते जी अपने प्रचार के ऐसे निम्न तरीके का चलन देश को दें। लेकिन संपत सरल कह ही चुके हैं कि या तो बुद्धिजीवी हुआ जा सकता है या फिर मोदीजीवी। दोनों का भेद वे समझा चुके हैं। लेकिन संपत सरल नायक नहीं है, नायक तो मोदीजी ही है। इसलिए मोदीजी का कहना ज्यादा ठीक है कि या तो आंदोलनजीवी हुआ जा सकता है या चुनावजीवी। दोनों का भेद बुद्धिजीवी और मोदीजीवी के लिए कितना भिन्न है यह सोचकर भेद-भरम के नाले में ना गिरे। नाले से कुछ याद आ जाए तो जो भूल गए हैं उन्हें याद दिला दें।
गुजरात में सीआर पाटील ने जो कथित कांड किया वो वाक़ई उस चरित्र का असली दर्शन कराता है, जो कहीं कोने में दबा हुआ है। बाकी राज्यों की तरह गुजरात में भी कोरोना की दूसरी लहर लोगों की जानें ले रही थी। यहां भी वही हाल था, जो बाकी जगहों पर था। संसाधनों की कमी, ऑक्सीजन की किल्लत, इंजेक्शन के लिए लंबी लाइन, ना बेड, ना अस्पताल, ना इलाज। स्मशानों में कतार ही कतार। गुजरात मॉडल की पर्ते खुल चुकी थी यहां। ऐसी पीड़ा के बीच गुजरात के प्रदेश अध्यक्ष सीआर पाटील ने सूरत शहर में 1000 इंजेक्शन मुफ्त में बांटना शुरू कर दिया! पूरे गुजरात में 5000 मुफ्त इंजेक्शन दने की घोषणा कर दी इन्होंने! बाकायदा एक नंबर जारी किया गया।

हडकंप मचा कि सरकार के पास ही स्टॉक नहीं है, सरकार अस्पतालों की इंजेक्शन की ज़रूरतें पूरी कर पा नहीं रही, लोग हजारों रुपये बहाकर इसे खरीदने की कोशिशे कर रहे हैं, ऐसे में इनके पास इतना स्टॉक कहां से आया? मुख्यमंत्री से पूछा गया तो मुख्यमंत्री ने बोल दिया कि जो बेच रहा है उसे जाकर पूछो, मुझे नहीं!!! इस तरह से दवा बेचना गैरकानूनी होता है यह पता होने के बाद भी मुख्यमंत्री का यह जवाब लोगों की सामूहिक खिल्ली उड़ाने समान उत्तर था। साथ ही जिम्मेदारी से हाथ खड़ा करता हुआ निठल्ला एलान भी था यह उत्तर!!! एक तरह से यह दवा की जमाख़ोरी का भी मामला था। अगर पाटील के पास हजारों इंजेक्शन इक्ठ्ठा करने का कोई छिपा हुआ हुनर है भी, तब भी सरकार को मदद करके आगे बढ़ना होता है। ऐसी चीजों में इजाज़त जैसी कोई चीज़ भी तो होती है न? दवा वितरण का परमिट जैसे कानून के उल्लंघन की चीज़ भी थी इसमें। फिर तो महाराष्ट्र में बीजेपी के ही देवेन्द्र फडणवीस, प्रवीण दरेकर, सुजय विखे पाटिल जैसे देवदूतों ने भी रेमडेसिविर इंजेक्शन को लेकर ऐसा ही कांड कर दिया।

अनर्गल प्रलापों वाले राष्ट्र के नाम संदेश देने वाले पीएम मोदी इतनी बड़ी हेरफेर पर चूप रहे! इधर गुजरात में एक तरीके से मूक संमति के साथ सेवायज्ञ के नाम पर यह प्रवृत्ति बिना रोक टोक चलती रही! सेवायज्ञ के नाम पर प्रचार चलता रहा। सब जगह पीएम मोदी और गुजरात के स्थानिक नेताओं ने नाम-फोटू लगाकर आत्म प्रचार का कार्य बखूबी निभाया गया। कोविड सेंटर के शुभारंभों में नियमों की धज्जियां उड़ाकर जमघट लगता रहा! लाजमी था कि यह जमघट पक्ष और मोदी-शाह के प्रचार-प्रसार के लिए ही था। आफत को अवसर में बदलने की वृत्ति ही थी।

जब नायक का चरित्र ही ऐसा हो तो फिर नायक के नकशे कदम पर चलना हिरा भाई सोलंकी को अच्छा ही लगता, बूरा कैसे लगता भला? हिरा भाई सोलंकी गुजरात भाजपा के विधायक हैं। अमरेली से हैं शायद। इन्होंने अप्रैल के आख़िरी दिनों में 25 बेड वाला कोविड सेंटर खोला। जिला प्रशासन की अनुमति से खोला था, ऐसी जानकारी मीडिया ने दी है। अनुमति ली थी ये सही है तो हिरा भाई सोलंकी इनके प्रदेश अध्यक्ष सीआर पाटील से तो अच्छे साबित हुए! लेकिन जब नायक ही अपने कर्मों से सीख दे रहा था तो फिर सोलंकी को नायक के नक्शे कदम पर चलना ही था।
देश या राज्य मौत के सन्नाटे में डूबा हो या ना डूबा हो, आत्म प्रचार का अवसर है तो इस आफत को अवसर में बदलना ही चाहिए, नायक की इस सीख को इन्होंने अपना लिया। ऑक्सीजन सिलेंडर पर अपनी शानदार तस्वीरें चिपका दी!!! लोकप्रियता बढ़ाने का अवसर है यह मोदीजी ने सिखाया तो इन्होंने सीख लिया। सोशल मीडिया पर जमकर ट्रोल हुए तो इन्होंने कह दिया कि मेरे समर्थकों ने ऐसा किया होगा, मुझे इस बारे में पता नहीं है। यानी कि आत्म प्रचार की सीख मोदीजी से ली और जब सवाल पूछा गया तो जवाब देने की सीख मुख्यमंत्री विजय रुपाणी से ले ली! विजय रुपाणी, जो हर बार यही कहते हैं कि मुझे नहीं पता!!!

एक दूसरे नेता ने टिफिन सेवा का सेवायज्ञ शुरू किया। होम क्वारंटीन हुए कुछेक इलाकों के लोगों के लिए था यह यज्ञ। नाम रखा नमो टिफिन सेवा। मोदी-शाह, विजय रुपाणी-सीआर पाटील समेत स्वयं की फोटू वाला प्रचार इसमें भी किया गया! अरे भाई, टिफिन जो खा रहा है उसको भी तो पता चलना चाहिए न कि इतनी बड़ी त्रासदी के समय कौन सा देवदूत उसे खाना खिला रहा है। खाना खाने वालों को टिफिन के साथ पोस्टर पर इतने सारे देवदूतों को देखकर वाक़ई अच्छा लगा होगा। देवदूतों की तादाद जितनी ज्यादा उतना अच्छा ही तो होता है देश के लिए।
मोदीजी फोटू खिंचवाने के और फोटू चिपकाने के कितने बड़े शौकीन मिजाजी आदमी है यह सबको पता है। वे सचमुच नायक है। कुछ भी छिप कर नहीं करते। नायक सरेआम करता है, ये भी सरेआम ही करते हैं! बच्चों के अंकपत्र या बिजली बिल के आगे पीछे अपना चेहरा चिपका कर भी सेवा करने का इनका स्वभाव तृप्त नहीं होता तो ये पेट्रोल पंपों पर भी अपनी फोटू लगा देते हैं! महंगाई-वहंगाई, जीडीपी-वीडीपी जैसी कोई चीजें अब तो देश में है नहीं। पेट्रोल डलवाओ, फोटू देखो, नमन करना है तो नमन करो, नफरत निकालनी है तो नफरत निकाल लो! इतनी सहूलियत कौन से प्रधानमंत्री ने दी है भाई!

मौतों के बीच भी आत्म प्रचार की ऐसी लालच, देश के नायक की देश के दूसरे राजनेताओं को भेंट है। राजनेता पहले से ही आत्म प्रचार के लालची रहे हैं। लेकिन नैतिकता, समय का तकाजा, बची हुई थोड़ी सी शर्म आदि चीजें नेताओं को रोक देती थी। लेकिन अवतारी और अलगारी बाबा ने इन सब मर्यादाओं को बेवकूफी और बेवकूफियों को शानो-सौकत साबित कर दिया है! ऐसे में दूसरे नेताओं के लिए मोदीजी सचमुच प्रेरणा की मूर्ति है।
 
जिस प्रकार की महामारी का सामना दुनिया कर रही है, जिस प्रकार की पीड़ा भारत करीब एक साल से भुगत रहा है, ऐसे अभूतपूर्व समय के बीच भी इनकी आत्म-प्रचार की लालच छुपाए नहीं छुपती। इनकी तैयारियां सही होती, इनके पास ठोस नीतियां होती इस त्रासदी को लेकर, अच्छे परिणाम देने की क्षमता होती, तो फिर आत्म-प्रचार की इस भूख को चला भी लेते। लेकिन लोग मरते रहे... ये फोटू चिपकाते रहे!!!
 
कर्णाटक बीजेपी ने तो महानायक से प्रेरणा लेकर और भी बड़ा कारनामा करके दिखा दिया। बेंगलुरु शहर के एक श्मशान के पास बीजेपी के एक दूत ने, सॉरी, देवदूत ने, बड़ा सा एक बैनर लगा दिया। देवदूत महाशय ने बैनर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा और राजस्व मंत्री आर अशोका के अलावा विश्वनाथ और स्थानीय नेताओं का फोटो लगाया!!! होर्डिंग में दावा किया कि गिद्देनाल्ली श्मशान में येलाहंका विधायक एसआर विश्वनाथ के मार्गदर्शन में अंतिम संस्कार में शामिल होने वाले लोगों के लिए मुफ्त भोजन और जलपान की व्यवस्था की गई है। मतलब कि बिना इलाज के लोगों को श्मशान तक तो पहुंचा दिया, अब इससे भी आगे करना है।
वो तो अच्छा था कि एसआर विश्वनाथ, जिनके मार्गदर्शन का दावा करता था बैनर, उन्होंने बैनर को हटवा दिया। कहा कि तत्काल प्रभाव से बैनर हटा दिया गया है। इन्होंने तो इस घटना के लिए बाकायदा माफी भी मांगी थी। एसआर विश्वनाथ ने माना था कि ऐसी त्रासदी में सहूलियतें देते हुए फोटो लगाना अनुचित है। महानायक से प्रेरणा लेते हुए आत्म-प्रचार की भूख श्मशान तक जा पहुंची। अब विश्वनाथजी ने माफी मांगी, बैनर हटाया... तो फिर विश्वनाथजी से प्रेरणा लेने का काम महानायक करेंगे या नहीं ये चर्चा ना करें। क्योंकि महानायक लेता नहीं, देता है!!! जब महानायक खुद ही प्रचार में कब्रिस्तान-श्मशान की बातें करता हो तो फिर...।

पिछले साल जब देश बंद था और आजादी के बाद का सबसे बड़ा माइग्रेशन हो रहा था, जब अप्रवासी मजदूर सड़कों पर दम तोड़ते तोड़ते घूम रहे थे, तब मजूदरों को दी जा रही रोटी के पैकेट पर दल और मोदी, दोनों का प्रचार किया जा रहा था!!! सिर्फ बीजेपी और मोदी ही नहीं, समाजवादी पार्टी और अखिलेश भी ऐसा ही कर रहे थे उन दिनों!!! बुंदेलखंड में राजनीतिक दलों से जुड़ा कोई मोदी लंच पैकेट, तो कोई समाजवादी भोजन बांट कर अपने दल का प्रचार कर रहा था। मोदी पैकेट बांटा जा रहा था। रोटी देंगे, लेकिन हर हर मोदी बोलकर रोटी खानी पड़ेगी। है न?
मोदी-शाह की चुनावी प्रचार के भूख के बारे में सबको पता है। जैसा उनका राजनीतिक चरित्र है, पुलवामा हमले का वो दिन हो या किसी भी विपदा का दौर हो, इनके चुनावजीवी चरित्र में हर बार उजाला ही पाया जाता है, अंधेरा नहीं। मोदी-शाह और उनके आह्वान पर चल रहे बाकी राजनेताओं के चुनावजीवी चरित्र के बारे में हम लिख चुके हैं। लोग मरते रहे... वे चुनाव लड़ते रहे, में हम लिख चुके हैं।

इस देश में नेताओं और महान लोगों के नाम पर सड़कों, पार्कों, स्कूलों, कॉलेजों, विश्वविद्यालयों और अस्पतालों के नामकरण की ऐसी परंपरा है कि इसकी आलोचना नहीं की जा सकती। दुर्भाग्य से व्यक्ति पूजा की यह परंपरा कांग्रेस ने शुरू ही नहीं की, बल्कि उसे लगभग अश्लील चापलूसी तक पहुंचा दिया। आज़ादी की लड़ाई के योद्धाओं को श्रद्धांजलि या सम्मान देने की बात फिर भी समझ में आती है और इस नाते, गांधी, पटेल, नेहरू, भगत सिंह, आजाद या बोस या ऐसी दूसरी हस्तियों के नाम पर सार्वजनिक स्थलों के नाम देने का तर्क भी समझ में आता है। लेकिन धीरे-धीरे हर पार्क, अस्पताल, सड़क, मैदान और योजना का नाम रखने की ऐसी संस्कृति बन गई कि किसी को अजीब तक लगना बंद हो गया। लेखकों, संस्कृति कर्मियों, खिलाड़ियों के नाम जहां होने चाहिए थे, वहां भी नेताओं के नाम चमकने लगे। इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के नाम पर संस्थानों का ढेर लग गया।

मोदीजी ने तो पहले ही कह दिया था कि हम तो कांग्रेस से भी अच्छा करेंगे। व्यक्ति पूजा, आत्म प्रचार में वो कांग्रेस से भी अच्छा कर रहे हैं!!! 70 साल के गुनाहों की बराबरी 5-7 सालों में करना, यह कोई छोटी-मोटी उपलब्धि तो है नहीँ!!! हम फिर एक बार कहते हैं कि हमारे नेता प्रचार के भूखे पहले से ही हैं, आज से नहीं हैं। लेकिन जब देश के पास मरे हुए लोगों को अंतिम बिदाई ठीक से देने का भी समय नहीं है तब भी इनके पास इतना तो समय है कि चीजों पर अपनी शानदार फोटू चिपकाने की व्यवस्था कर सकें!!!

अंत में फिर एक बार कहते हैं कि इस मौत के तांडव के बीच केजरीवाल के आत्म प्रचार वाली फोटू भी देखी थी, कांग्रेस वालों की भी देखी थी, ममता बनर्जी की भी देखी, दूसरों की भी देखी। और सबसे ज्यादा, सबसे बड़ी स्वयंभू घोषित महानायक की देखी।

देश का नायक देश को कुछ न कुछ अच्छा दे जाता है। लेकिन मोदी-शाह ने देश को ऐसा कुछ दिया नहीं जिस पर चलकर आने वाली पीढ़ी संस्कृति-सभ्यता-समाज का सही दिशा में विकास कर पाएँ। लोकतंत्र में अपने विरोधियों की बुराई करने का अवगुण राजनीति तंत्र में आवश्यक गुण माना जाता है। मोदी दूसरों की बुराई करने की सीमा को बुरी तरह कुचलकर राजनीति को बहुत ही निम्न स्तर पर पहले ही ले जा चुके हैं। मोदीजी ने बिहार चुनाव प्रचार के दौरान कोरोना के बीच अक्टूबर 2020 में कहा था कि विपक्ष कोरोना से भी खतरनाक है। इधर आत्म प्रशंसा और आत्म प्रचार का रोग मोदीजी के भीतर कोरोना से भी बड़े वायरस के रूप में अटक गया है... तभी तो नायक के नक्शे कदम पर चलकर कई राज्यों के मुख्यमंत्री कोविड अस्पतालों के गेट पर अपनी फोटू चिपका रहे हैं। लोगों को भी पता चलना चाहिए कि जहां वो इलाज ले रहे हैं वहां कौन से देवदूतों का वास है!!! खुद को जबरन महानायक मनवा रहे देश के नायक मोदी भले लोगों को अब तक अस्पताल, इलाज, दवा, इंजेक्शन, ऑक्सीजन, एम्बुलेंस, बेड वगैरह नहीं दे पा रहे, लेकिन सरकार के कर्तव्यों को बेढंग से नहीं बल्कि ढंग से निभाने का प्रयत्न करते तो महानायक के पीछे पीछे दूसरे नायकों ने उसी तरह से कौए नहीं उड़ाए होते।
(इनसाइड इंडिया, एम वाला)