7 जून 2021 के दिन, सुप्रीम कोर्ट की कड़ी फटकार के बाद, नरेंद्र मोदी शासित सरकार ने वैक्सीनेशन नीति में बदलाव की घोषणा की। इस दिन अपने
राष्ट्र के नाम संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने टीकाकरण को लेकर कुछ आँकड़े
कहे, कुछ बातें उछाली। जल्द ही उनके इन आँकड़ों और बातों को चुनौतियाँ
दी जाने लगी। शायद प्रधानमंत्री ने सोचा कि आँकड़ों में भी बात नहीं बन रही तो बात
को बना ही दिया जाए अब तो! और फिर एक दिन अचानक से भारत ने टीकाकरण में विश्व विक्रम
बना दिया। गौरव करने लायक दिन था वो। लेकिन उसके बाद जिस तरह की चीजें सामने आ रही
हैं, सवाल यही उठता है कि एक दिन का यह कैसा विश्व विक्रम था, जिसके बाद विक्रम कम और बेताल ज्यादा दिख रहे हैं!
विश्व विक्रम से खुश ज़रूर होना चाहिए। रिकॉर्डतोड़ टीकाकरण
की प्रशंसा भी होनी चाहिए। विश्व विक्रम के तुरंत बाद जिस तरह के मंजर देखने को मिल
रहे हैं, उस पर भी ध्यान देना चाहिए। विश्व विक्रम की ही बात निकली है
तो याद रखना चाहिए कि वह हम ही थे, जिन्होंने एक दिन में सबसे ज्यादा कोरोना मरीज़ मिलने का विश्व
विक्रम बनाया, जिसने एक दिन में सबसे ज्यादा मौतों का विश्व विक्रम बनाया, जहाँ हजारों लाशें माँ गंगा की गोद में तैर रही थी, जहाँ लाशें जलाते जलाते चिमनियाँ पिघल गई।
नई कोरोना टीका नीति के तहत 21 जून 2021 को कोरोना टीकाकरण अभियान
शुरू किया गया। हालाँकि इससे पहले भी टीका उत्सव की घोषणा की जा चुकी थी। किंतु उन
दिनों लोगों को दो बूँद ऑक्सीजन नहीं मिल रहा था, टीका कहाँ से मिलता? दूसरी लहर सरकारी आँकड़ों के मुताबिक धीमी हुई उसके बाद 21 जून को नया अभियान शुरू हुआ। इस बार अभियान बिल्कुल काम करने
वाला अभियान महसूस हुआ। 21 जून 2021 को विश्व विक्रम दर्ज हो गया टीकाकरण को लेकर।
86 लाख से अधिक लोगों को कोरोना टीका दिया गया। यह सरकारी दावा
है। लेकिन विश्व विक्रम के एक सप्ताह के भीतर ही कोरोना टीकाकरण अभियान में गिरावट
आई। एक हफ़्ते के अंदर 68 प्रतिशत कम लोगों को कोरोना टीका दिया गया। उसके बाद से यह
लगातार गिरता ही जा रहा है। 27 जून 2021 को पूरे देश में जितने
लोगों को डोज़ दिया गया वह उस विश्व विक्रम वाले दिन में एक राज्य के आँकड़े के बराबर
था!
हम तो यही मानते हैं कि ऐसे अभियानों में, ऐसे समय में, आँकड़े ऊपर नीचे होते रहते हैं। यह स्वाभाविक सी चीज़ है। किंतु
विश्व विक्रम के बाद जिस तरह का मंजर सामने आ रहा है उसकी बात ज़रूर होनी चाहिए। क्योंकि
ऐसे मंजर स्वाभाविक नहीं होने चाहिए।
विश्व विक्रम वाले मेगा इवेंट और हेडलाइन मैनेजमेंट के बाद का हाल देखिए। गुजरात
में 26 जून 2021 को अहमदाबाद, सूरत,
राजकोट जैसे शहरों में वैक्सीनेशन सेंटर के
बाहर पोस्टर लगे हुए थे कि वैक्सीन नहीं है!!! यहाँ लोकल अख़बार दिव्य भास्कर लिखता
है कि कागज पर साढ़े नौ लाख का स्टॉक है, किंतु पोस्टर लगे हुए हैं
कि वैक्सीन नहीं है!!! शायद रिकॉर्ड बनाने के लिए स्टॉक किया जा रहा हो! या फिर रिकॉर्ड
बनाने के बाद बचा ना हो! क्या पता, क्या हो रहा हो। दिव्य भास्कर
लिखता है कि सूरत के एक इलाके में, जहाँ कुछ दिनों पहले जमकर
वैक्सीनेशन हो रहा था, वहाँ अब ताला लगा था!!! लोग ताला देखकर वापस जाने को मजबूर थे!
कुछ दिनों बाद मीडिया में कई रिपोर्ट दर्ज होती हैं कि बिना रजिस्ट्रेशन किए लोगों
को वैक्सीन का डोज़ लग गया है, ऐसे मैसेज मिले थे!!! कुछ जगहों पर नाबालिगों
को टीका लग गया!!! मृतकों के नाम पर उनके परिजनों को टीकाकरण के मैसेज मिले गए!!! कुछ
लोग बताते हैं कि 5 मिनट के भीतर 3 मैसेज आ गए, बस नाम अलग थे, जबकि उन्होंने अब तक टीका
लगवाया ही नहीं है! 13 साल के बच्चे को टीका लग गया है वाला मैसेज भी सरकार ने भेज
दिया, जबकि सरकार कह रही है कि 18 साल के ऊपर वालों को ही टीका लगेगा! अभी बच्चों के लिए सरकार ने वैक्सीनेशन कार्यक्रम
शुरू ही नहीं किया है, लेकिन सरकार फिर भी उसे मैसेज भेज देती है कि तुम्हें डोज़ लग
गया!!! 18 साल से कम उम्र के एक और बच्चे को टीकाकरण का मैसेज मिल जाता
है, जिसमें उसकी उम्र 56 साल लिखी हुई है!
कुछ किस्से ऐसे भी मीडिया ने रिपोर्ट किए हैं, जिसमें शख्स ने स्लॉट तो बुक किया लेकिन किसी वजह से टीका लगवाने नहीं जा पाया।
कमाल यह कि फिर भी उसे मैसेज आ गया कि आपको टीका लग गया है, सर्टिफिकेट डाउनलोड कर लीजिए!!! जबकि वह सेंटर तक पहुंचा ही
नहीं था!
भोपाल से प्रकाशित दैनिक भास्कर ने लिखा कि एक ही आधार नंबर पर कई लोगों को टीका
दे दिया गया है, एक आदमी को कई बार टीका देने का रिकॉर्ड दर्ज है, एक आदमी को पोर्टल पर कई बार रजिस्टर कर दिया गया है!!! अख़बार
ने अपनी रिपोर्ट, अपनी स्टडी, अपने अध्ययन का पूरा ब्यौरा
भी बताया है। गजब कहानियाँ देखने को मिल रही हैं! एक शख्स जो पिछले छह सालों से भोपाल
गया ही नहीं उसे भोपाल के सेंटर में टीका दिया जा चुका है ऐसा मैसेज मिलता है!!! महाराष्ट्र
के पुणे में रहने वाली एक महिला को भोपाल के एक टीका केंद्र से टीकाकरण का मैसेज मिलता
है!!!
ऐसे सैकड़ों लोग हैं जिनके साथ ऐसा हुआ है। दूसरे सैकड़ों लोग होंगे जिनके किस्से
मीडिया तक पहुंच ना पाए हो। ऐसे लोग जब टीका लगाने जाएँगे तो उन्हें डर है कि सरकार
कह देगी कि तुम्हें तो लग गया है टीका। जबकि उनका टीकाकरण हुआ ही नहीं है!!!
ऐसे किस्सों पर अधिकारी या मंत्री कहते दिखे कि ऐसी कोई चीज़ नहीं हुई है, मैं तो पहली बार सुन रहा हूं, आप कहाँ से ऐसी झूठी बात लाए हैं और अगर ऐसी चीजें हुई भी हैं तो हम देखेंगे।
21 जून 2021 के दिन 86 लाख से अधिक लोगों का टीकाकरण हुआ। विश्व
विक्रम। मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश ने विक्रमी टीकाकरण किया इस दिन। इस दिन जिन राज्यों
ने विक्रमी टीकाकरण किया उनमें बीजेपी शासित राज्य ज्यादा थे। सबसे अधिक खुराक देने
वाले शीर्ष 10 राज्यों में से 7 बीजेपी शासित राज्य थे।
उत्तर प्रदेश और बिहार का नाम विक्रमी टीकाकरण में जुड़ा तो बिना गंगा नहाए दोनों के
दाग घूल गए!
लेकिन फिर दूसरे दिन से हाल ऐसा, जैसे कि विश्व विक्रम बनाने
के लिए ही सब कुछ हुआ हो! जिस मध्य प्रदेश में 21 जून को 16.95 लाख टीके लगे थे, वहाँ अगले दिन 4,825 लोगों को ही टीका लगा!!! यूं तो 21 जून से पहले तमाम जगहों पर, तमाम राज्यों में टीकाकरण अपनी रफ्तार कम किए जा रहा था। फिर अचानक से ही इस दिन
विश्व विक्रम बन गया। संकट की जगह आपूर्ति का विक्रम हो गया! टीके की कमी, सरकार की सुस्ती जैसे आरोपों को मार गिराया गया! और फिर दूसरे
दिन से वही पुराने ढर्रे पर लौट गया देश!
हम विपक्ष के आरोपों को तवज्जो नहीं देते अपने लेखों में। किंतु यहाँ विपक्ष समेत
दूसरी जगहों से भी जमकर आरोप तो यह लगे कि मैजिक मंडे हासिल करने के लिए दिनों तक वैक्सीन
की खुराक जमा की गई थी! यानि मैजिक मंडे वाली योजना क्या पहले से तैयार थी? मतलब कि विश्व विक्रम बनाने के लिए भी प्लान होता है क्या? गजब! अगर सच है तो।
हालाँकि मध्य प्रदेश सरकार ने विश्व विक्रम बनाने की चाह में जमाखोरी के आरोप को
सिरे से नकार दिया है। उत्तर प्रदेश ने 21 जून को 6 लाख का टीकाकरण किया था, 22 जून को 7 लाख का टीकाकरण कर अपने अगले दिन के विक्रम को पार कर लिया।
मध्य प्रदेश के अलावा दूसरे राज्यों का कथित खेला भी हम देखेंगे, किंतु उत्तर प्रदेश ने सबसे उलट काम कर लिया। यहाँ विक्रमी दिन
से तीन-चार दिनों पहले से ही डोज़ का आँकड़ा, जो 4 लाख से ऊपर था, बढ़ता ही रहा था और विक्रमी
दिन के बाद भी बढ़ा।
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने तो 21 जून के दिन के लिए पहले से ही समां बांध लिया था। साज सज्जा
ही ऐसी की गई थी, जैसे कि टीका अभियान आज से ही शुरू हो रहा हो! ऐसी सजावट 16 जनवरी 2021 को भी नहीं थी, जब टीका अभियान शुरू हुआ था! मध्य प्रदेश ने 20 जून को एलान कर दिया था कि अगले दिन 10 लाख टीके लगाएँगे! जितनी घोषणा की थी उससे कहीं ज्यादा लोगों
को टीका लगाया, जिसकी प्रशंसा ज़रूर होनी चाहिए। करीब 17 लाख टीका लगाए मध्य प्रदेश ने एक दिन में। भारत में यह अब तक
का सबसे बड़ा विक्रम है। लेकिन दूसरे दिन 4,825 लोगों को ही टीका लग पाया!!!
अगले दिन मध्य प्रदेश में घोषणा होती है, यानि विक्रम की तैयारी पूरी
थी! साज सज्जा पहले से की गई थी! एक दिन के बाद फिर से उसी ढर्रे पर लौटना थोड़ा बुरा
हुआ। उम्मीद है कि फिर से कोई विश्व विक्रम वाला दिन ज़रूर आएगा। नोट करें कि सबसे
बड़े विक्रम के बाद भी मध्य प्रदेश टीका लगाने के मामलों में भारत में सातवें नंबर
पर है!
जो राज्य करीब 17 लाख टीकों के विक्रम के बाद दूसरे दिन 4,825 लोगों को टीका लगा पाता है उससे जुड़ा हुआ एक आँकड़ा अभी शेष
है। सभी यही कहते हैं कि दूसरे दिन महज 5 हज़ार के आसपास ही टीके
लगाए। कोई अगले दिन वाला आँकड़ा भी देख लो। मध्य प्रदेश एक दिन पहले 692 डोज़ लगा रहा था!!! और उसी दिन घोषणा की थी कि अगले दिन विक्रम
होने वाला है!!!
14 जून 2021 के दिन मध्य प्रदेश में 4,92,633 टीके लगे थे और फिर हर दिन यह आँकड़ा घटता गया। 17 जून 2021 को यहाँ 1,24,266 डोज़ लगे। 18 जून 2021 को यह आँकड़ा घटकर 14,862 तक जा पहुंचा। फिर 20 जून 2021 को 692 तक!!! 21 जून को अचानक से विक्रम तक पहुंच गया मध्य
प्रदेश! 22 जून को 17 लाख से घटकर 4,825 रह गया! तो क्या यह सवाल नहीं उठ सकता कि विक्रम बनाने की सनक
के चलते पहले के दिनों में कम टीका लगाकर एक दिन के लिए जमाखोरी की गई?
वैसे मध्य प्रदेश के मंत्री कहते हैं कि कोई जमाखोरी नहीं हुई है। आरएसएस से मत
पूछिएगा, वर्ना वह कह देगा कि पॉजिटिविटी बढ़ाने के लिए अगले दिन कम टीके
लगाए थे, ताकि विश्व विक्रम वाली पॉजिटिविटी की मदद से देश कोरोना से
लड़ ले!
वैसे भी इन दिनों हमारे यहाँ लोगों की मदद करते हुए वीडियो बनाना, वीडियो को वायरल कराना जोर शोर से चल रहा है। मदद ऐसे करो कि
दूसरे हाथ को भी पता न चले वाला सुविचार उन लाशों के साथ या तो जला दिया गया है या
फिर माँ गंगा में बहा दिया गया है! आत्म मुग्धता और आत्म प्रचार वाली मदद पर सवाल उठाने
पर भी बदले में गरियाने वाला मिसाइल सामने से छूटता है और जवाब मिलता है कि लोगों को
मदद की जा रही है यह समाज को पता चलना चाहिए, ताकि दूसरे लोग प्रेरित
हो सकें और समाज में पॉजिटिविटी का फैलाव हो! प्रेरित होना भी वायरल हो चुका है! खैर, यह एक अलग मामला है, जिसे हम यहीं छोड़ देते
हैं।
इधर, मध्य प्रदेश सरकार ने दावा किया कि उसने 35,000 वैक्सीनेशन सेंटर तैयार किए हैं। तो क्या वह सेंटर उस एक दिन
के लिए ही तैयार किए गए थे?
सोचिए, अगर 35 हज़ार वैक्सीनेशन सेंटर हैं तो दूसरे दिन कुल मिलाकर 4,825 डोज़ ही क्यों लगे? क्या वे सारे वैक्सीनेशन
सेंटर अब नहीं रहे होंगे?
क्या सेंटर के कर्मचारी छुट्टी पर चले गए होंगे
अचानक?
सवाल यह भी है कि जब हेडलाइन में छपने के लिए इतने सारे वैक्सीनेशन सेंटर बनाए
जा सकते हैं, तो यह हर दिन क्यों नहीं बनाए जा सकते? एक इवेंट के लिए सैकड़ों कर्मचारी लगाए जा सकते हैं, तो हर दिन क्यों नहीं?
केवल मध्य प्रदेश ही नहीं, कर्नाटक में भी दूसरे दिन से यही हाल है। वहाँ
विश्व विक्रम वाले दिन के बाद चार से पाँच गुना कम आँकड़े हैं! कर्नाटक में भी अगले
दिन, यानि विश्व विक्रम के अगले दिन, रविवार को, जितने कम टीके लगे थे, उतने वहाँ किसी रविवार को नहीं लगे! यानि यहाँ पर भी विश्व विक्रम
के अगले दिन आँकड़ा सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया था!
आंध्र प्रदेश में तो अलग ही खेल है। यहाँ विक्रम के अगल दिन, यानि 20 जून 2021 को रिकॉर्ड बन गया। इस
दिन आंध्र प्रदेश ने देश में सबसे अधिक टीके लगाए थे। 13 लाख 74 हज़ार डोज़। हेडलाइन छपती है और फिर अगले
दिन हवा हो जाती है! जिस दिन दूसरे राज्यों में कथित रूप से आयोजित ढंग से वह विक्र्म
बन रहा था उस दिन, यानि 21 जून 2021 के दिन, आंध्र प्रदेश में 48,785 डोज़ ही लगे थे। आखिर पौने चौदह लाख टीके लगाने वाला राज्य अगले दिन पचास हज़ार
तक भी क्यों पहुंच नहीं पाता होगा? क्या यह कोई नई सनक है कि
कुछ दिनों का टीका रोक कर एक दिन दिया जाए ताकि रिकॉर्ड वगैरह बने!
हरियाणा के आँकड़े भी कुछ कुछ ऐसी ही कहानी बयां करते हैं। वहाँ 21 जून से पहले कुछ हज़ार लोगों को टीके लग रहे थे। फिर अचानक
से 21 जून को 5 लाख तक पहुंच गए। फिर अगले दिन से उसी ट्रेक
पर, जो 21 जून से पहले था! गुजरात, बिहार आदि की भी यही कहानी थी!
कमाल का मंजर है कि जो राज्य अपने यहाँ अच्छे खासे टीके लगा रहे थे उनमें से अधिकतर
राज्य 21 जून 2021 से पहले एक सप्ताह में टीके कम लगाने लगते
हैं!
कुछ इश्किया वाले लोग कहते हैं कि टीके होते हैं तो राज्य लगा देते हैं, नहीं होते तो नहीं लगाते। ऐसे में एक दिन बहुत ज्यादा डोज़, दूसरे दिन कम डोज़, यह तो सिंपल सी बात है।
उनकी इस दलील के सामने पूछा जाता है कि यानि कुछ दिन के लिए टीके होते हैं, बाकी के दिनों के लिए नहीं। एक सप्ताह में एक-दो दिन के लिए
स्टॉक है, बाकी के पाँच-छह दिनों के लिए स्टॉक नहीं है। तो फिर यह टीके
की कमी की तरफ इशारा करता है। ऐसा कहने पर वे लोग कुछ दूसरी ही चीजें कहने लगते हैं।
अपनी पहली वाली चीज़ को लेकर कुछ नहीं कहते।
वैसे विशेषज्ञ आँकड़े को लेकर उतने उत्साहित नहीं होते, जितना प्रतिशत को लेकर होते रहते हैं। द प्रिंट की एक रिपोर्ट
के मुताबिक आँकड़ों को छोड़े और प्रतिशत को देखे तो बिहार और यूपी बहुत पीछे हैं। अभी
कुछ दिनों पहले तक बिहार में एक डोज़ लगाने का प्रतिशत (कुल आबादी के हिसाब से) 10.7 फीसदी था, जबकि दोनों डोज़ लगाने के मामले में 1.74 फीसदी। उत्तर प्रदेश में भी पहले डोज़ के मामले में यह प्रतिशत
10.7 फीसदी है, जबकि दोनों डोज़ के मामले में 1.82 फीसदी बैठता है। झारखंड में पहले डोज़ का प्रतिशत 13.7 फीसदी है, दोनों डोज़ का प्रतिशत 2.5 फीसदी। तमिलनाडु और असम में दोनों डोज़ का प्रतिशत क्रमश 3.13 और 3.25 फीसदी है। यह प्रतिशत 2011 की जनगणना के आँकड़ों पर
आधारित है।
बीजेपी शासित राज्यों की जो कहानियाँ थी उससे उलट विपक्षी शासन वाले राज्यों की
कहानियाँ क्यों अलग थी यह सवाल सरकार और इश्किया वाले लोगों को राजनीतिक लग सकता है।
लेकिन है सिंपल सा सवाल। दिल्ली की बात निकलती है तो इश्किया गली यही कहती है कि केजरीवाल
का काम ही झगड़ा करना है,
झूठ बोलना है। उन गली वालों की यह दलील सच
हो सकती है। किंतु यह काम तो सारे लोग कर ही रहे हैं, बीजेपी भी।
दिल्ली ने शिकायत की कि उसे 21 जून के लिए वैक्सीन उपलब्ध नहीं कराई गई।
कहा कि जो वैक्सीन थी वो 45 साल से ऊपर के लोगों के लिए थी, 18-44 साल वालों के लिए ना स्टॉक मिला, ना इजाजत। इस दिन विक्रमी सूची में दिल्ली देश में 21वें स्थान पर रहा था। केंद्र ने कहा कि दिल्ली झूठ बोल रहा है, उसके पास वैक्सीन थी। छत्तीसगढ़, जो उस दिन 20वें क्रम पर था, ने कहा कि 21 जून के लिए कोई नया स्टॉक
मिला ही नहीं था उन्हें। झारखंड, वहाँ के स्वास्थ्य विभाग ने बीबीसी को बताया
कि उनके पास कुल मिलाकर 4 लाख का ही स्टॉक था, और अब पर्याप्त डोज़ नहीं
बचा है। राजस्थान ने 7 लाख टीके लगाए 21 जून को, और अब वैक्सीन की कमी की चिंता केंद्र तक पहुंचा चुका है।
लेकिन केंद्र के मंत्रियों को इस संबंध में जब भी सवाल पूछे जाते हैं, जवाब एक ही होता है कि राज्य राजनीति कर रहे हैं, झूठ बोल रहे हैं, उनके पास पर्याप्त टीके
हैं, वगैरह वगैरह।
मुफ्त टीका अभियान तो दुनिया में पिछले साल से कई देश चला रहे हैं, भारत में लेट क्यों यह वाला बैनर किसी ने नहीं लगाया, यह अच्छा ही है। क्या पता देशद्रोह का मामला चल जाए! बिहार और
पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के दौरान वहाँ के लोगों को मुफ्त टीका दिये जाने का चुनावी
वायदा हुआ था प्रधानमंत्री के द्वारा! किंतु वह उन दो राज्यों के लिए विशेष ऑफर था!
यदि जीतते हैं तभी वाली शर्त लागू थी!
लेकिन जिस तरह से बीते कुछ दिनों में दिख रहा है, सवाल तैरता ही रहेगा कि क्या महज एक दिन के विश्व विक्रम की
राजनीति करने के लिए ही कुछ राज्यों में कुछ दिनों से टीके की रफ्तार कम की गई थी? ताकि टीका बचाकर 21 जून को लगाया जाए! जिससे
की नंबर बड़ा लगे!! उसके बाद एक बड़ा नंबर दूसरे छोटे नंबरों को मार देगा!!! कमाल है
कि 21 जून को अचानक से ही टीकाकरण का उत्साह कोठरी से बाहर आ गया
और फिर वापस कोठरी में समा गया। उत्साह है बेचारा, टीके का स्टॉक देखकर ही अंदर बाहर होगा न।
एनटीएजीआई के अध्यक्ष डॉ एनके अरोड़ा कहते हैं कि सरकार का लक्ष्य प्रत्येक दिन
1 करोड़ लोगों को टीकाकरण करना है और हमारे पास प्रत्येक दिन
1.25 करोड़ खुराक रखने की क्षमता है। यह अच्छी बात है और अगर यह
मुमकिन है तो ज्यादा अच्छी बात है। किंतु इस तरह से एक दिन के विश्व विक्रम के लिए
ऐसे मंजर देश को देखने पड़े यह बुरी बात है। सरकार लक्ष्य तय करती है और किसी दिन लक्ष्य
में चूक जाती है तो यह स्वाभाविक बात है। लेकिन इससे उलटा हो, यानि कि हर दिन लक्ष्य से चूक जाना और किसी एक दिन लक्ष्य को
प्राप्त कर लेना, यह स्वाभाविक बात नहीं है।
हम बार बार कह रहे हैं कि ऐसे अभियानों में आँकड़ों में ऊंच नीच होना स्वाभाविक
बात है। किंतु साथ में यह भी कह रहे हैं कि इस स्वाभाविक सी बात को अभिमान का विषय
बना दिया स्वयं केंद्र सरकार ने! कैसे यह तो इस लेख की शुरुआत से ही देख रहे हैं। फिर
सवाल उठना लाजमी है कि क्या सारा मकसद विश्व विक्रम बनाना ही था? क्या आगे 1 करोड़ का आँकड़ा किसी एक दिन में पार करके
फिर से वही राजनीति की जाएगी और बाकी के दिनों का फिसड्डीपन गायब कर दिया जाएगा?
विक्रमी टीकाकरण का वह मेगा शो करने के बाद विश्वविद्यालयों की दीवार पर मोदीजी
के फोटू चिपका दिए गए। सोशल मीडिया पर पार्टी के लोग थैंक यू मोदीजी लिखने लगे। टीका
अभियान और हेडलाइन मैनेजमेंट, दोनों सफल रहे। काम पूरा हुआ।
एक तीखा सवाल सामने आया। यह संयोग था या प्रयोग? देश के जाने माने जन-नीति और स्वास्थ्य तंत्र विशेषज्ञ डॉक्टर चंद्रकांत लहरिया
कहते हैं कि रिकॉर्ड बनाने की होड़ में कई राज्यों ने अपने पूरे महीने के वैक्सीन स्टॉक
में से 50-70 फ़ीसदी एक ही दिन में ख़र्च कर दिया।
दरअसल मोदी सरकार के दौर में सबसे बड़ी दिक्कत यही रही है कि वे कुछ भी, कैसा भी दावा कर देते हैं। ज़रूरत से ज्यादा फैला देते हैं आसमान
को। सिर्फ इसलिए ताकि लार्जर देन लाइफ वाली वो छवि चमकती रहे। खैर, उनकी अपनी राजनीति है यह, उनकी अपनी आदत है यह।
वैसे तो दिसंबर 2021 तक का वह दावा करके स्वयं केंद्र सरकार ने ही भँवरे को खुला
छोड़ दिया था। केंद्र सरकार ने कहा था कि दिसंबर तक हमारे पास 216 करोड़ वैक्सीन होगी और दिसंबर 2021 तक सभी का टीकाकरण कर देंगे। 27 या 28 मई 2021 के दिन केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने यह जानकारी देश
को दी थी। उसके एक माह बाद ही, यानि 27 या 28 जून 2021 को, केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट
में हलफ़नामा दायर कर कहती है कि वह दिसंबर 2021 तक 135 करोड़ वैक्सीन उपलब्ध करा पाएगी। पहले सरकार ने आसमान को ज़रूरत
से ज्यादा फैलाया, फिर सिकुड़ा! वैसे एक माह में दो अलग अलग बातें देश को बताना
भ्रम फैलाना नहीं माना जाएगा, समीक्षा मानी जाएगी! भ्रम तो विपक्ष फैला रहा
है!
216 करोड़ और 135 करोड़ वाली चीज़ को लेकर सरकार आँकड़े और समीक्षा की जाल को
बुनकर कह सकती है कि मई में 216 करोड़ की ज़रूरत थी, अभी जून महीना चल रहा है, एक महीने में जितने लोगों को टीके लगे उसको 216 करोड़ से हटाना तो पड़ेगा ही न। यानि 81 करोड़ हट गए। तो फिर क्या
एक महीने में भारत ने 81 करोड़ टीके लगा लिए? यानि 1 दिन में पौने तीन करोड़ का टीकाकरण! दूसरा आँकड़ा 188 करोड़ वाला भी है। यह आँकड़ा माने तो पिछले एक महीने में 28 करोड़ लोगों को टीका लग गया होगा। यानि हर दिन करीब 90 लाख से ऊपर का टीकाकरण! किंतु विश्व विक्रम वाले आँकड़ों में
यह वाला आँकड़ा भी फिट नही बैठता।
वैसे एक माह पहले जब पहला वाला भँवरा छोड़ा गया तभी सवाल उठे थे कि क्या इस लक्ष्यांक
को हासिल किया जा सकता है?
दुनिया भर में टीके की कमी, भारत का ढाँचा, वितरण जैसी चीजें देखकर
यह सवाल उठे थे। लेकिन सरकार तो सरकार है। उसने भँवरा छोड़ दिया! फिर महीने भर बाद
दूसरा भँवरा छोड़ा! अपने अगले भँवरे से थोड़ा छोटा भँवरा!!! अब ऐसे में लोग मोदी सरकार
से सवाल ना पूछे तो किससे पूछे? क्या गुआटेमाला के प्रशासन से जाकर पूछे लोग? मूल चीज़ तो यह कि पहले से थोड़ा लिमिट में रहते तो बहुत कुछ
लिमिट में होता। लेकिन लिमिट के बाहर जाने की आदत न जाने कैसे कैसे दिन दिखाएगी।
देखा जाए तो जून में सबसे अधिक औसत रोज़ाना टीकाकरण होता रहा। फिर मई में यह संख्या
कम हुई। मार्च में मई और जून से भी कम आँकड़ा था। कम ज्यादा होते रहने के पीछे सबसे
बड़ी वजह कोरोना टीके की कमी ही दिखती है। सैकड़ों रिपोर्ट बताते हैं कि केवल भारत
में ही नहीं बल्कि दुनिया भर में टीके की कमी है। टीका बनाने वाली कंपनियों ने सरकारों
को और सरकारों ने उन कंपनियों को चुन लिया है। दूसरे खिलाड़ी मैदान में हैं नहीं। कम
खिलाड़ी हैं। ऐसे में कंपनियों को टीका मुहैया कराने में देर लगती ही है। लेकिन इस
स्थिति में जो देश और उनकी सरकारें अपनी जनता को इससे उलट दूसरा जुमला सुनाती हैं, वहाँ सिंपल सी बात विवादित हो जाती है।
यूं तो ऐसे टीकाकरण अभियानों में आँकड़ों के मायाजाल को सफलता या विफलता का नजरिया
बिल्कुल नहीं बनाना चाहिए। ऐसी चीजें बढ़ती घटती रहती हैं ऐसे दिनों में। दरअसल तत्कालीन
सरकार ने ही अगले पिछले वाली राजनीति का भँवरा उछालकर तथा एक-दो दिनों के आँकड़ों को
कोई बड़ा माइलस्टोन बताकर पेश किया, और उसके बाद रोज़ाना टीकाकरण
के आँकड़े राजनीति के चश्मे से देखे जाने लगे। सरकार ने ही दावा कर दिया था कि दिसंबर
2021 तक 216 करोड़ खुराक दी जाएगी। फिर उसी सरकार ने दावा घटाकर कहा कि
दिसंबर तक 135 करोड़ खुराक का इंतज़ाम हो जाएगा। आँकड़ों में, अगली पिछली सफलता विफलता की गलियों में स्वयं सरकार ही लोगों
को घूमाने लगेगी तो फिर उस सरकार को ऐसी दिक्कतें होगी ही होगी।
रही बात आँकड़ों की, हम बार बार लिख रहे हैं कि भारत और चीन जैसे देशों को अंत में
आँकड़ो के मायाजाल में आगे निकलना ही निकलना है। क्योंकि जनसंख्या का फैक्टर खड़ा है।
भारत में उत्तर प्रदेश की जनसंख्या जितनी है उस हिसाब से उसका आँकड़ा बड़ा ही होगा, जबकि गोवा व सिक्किम जैसे छोटे राज्यों में आँकड़ा छोटा ही होगा।
तो क्या यह माना जाए कि उन जैसे राज्यों ने टीकाकरण ढंग से किया ही नहीं? सभी राष्ट्रों की, उनके भीतर अलग अलग इलाकों
की जनसंख्या भिन्न होती है और उस हिसाब से वह आँकड़ा बड़ा या छोटा लग सकता है।
इधर हमारे यहाँ कोरोना से ही लड़ाई नहीं चल रही, केंद्र और राज्यों के बीच भी लड़ाई चल रही है। लड़ाई एक ही चीज़
को लेकर है। अच्छा होता है तो श्रेय लेने की लड़ाई और बुरा होता है तो दोष देने की
लड़ाई। केंद्र सरकार का कहना है कि राज्यों और केंद्र शासित क्षेत्रों को जितनी खुराक़ें
दी गईं, उनका इस्तेमाल नहीं हुआ है। केंद्र का कहना है कि इन सरकारों
के पास कोरोना टीका अतिरिक्त पड़ा हुआ है, वे उसे देती नहीं हैं और ऊपर से कोरोना टीके की माँग कर रही
है। राज्य इससे उलट कह रहे हैं। उधर रिकॉर्ड टीकाकरण के बारे में सवाल पूछने पर केंद्रीय
स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण कहते हैं कि यह राज्यों और केंद्र के बीच अच्छे तालमेल का
नतीजा है। बताइए, तालमेल भी एक दिन के लिए मेल खाता है, फिर मेल नहीं खाता! राज्य कहते हैं कि वैक्सीन दीजिए, केंद्र कहता है कि आपके पास हैं, आप झूठ बोल रहे हैं।
विश्व विक्रम बनाने से पहले
ज्यादातर राज्यों में टीकाकरण एकदम धीमा हो चुका था, फिर एक दिन अचानक से बढ़ गया, फिर विश्व विक्रम बनाने के बाद उसी ढर्रे पर लोट गया। इसके साथ
ही दूसरी ढेरों कहानियाँ आई, जिसमें एक ही आधार नंबर से एक से अधिक लोगों को टीका लग गया, बिना रजिस्ट्रेशन कराए लोगों को मैसेज मिलने लगे कि आपको टीका
लग गया है! यह पूरा खेला क्या है यह दूसरा सवाल है। मूल चीज़ तो यह कि ऐसे खेल में
उन लोगों का क्या जिन्हें टीका लगा ही नहीं या लगना ही नहीं था। उन्हें तो बाकायदा मैसेज
दे दिया गया! अब क्या उनका सुरक्षित रहने का अधिकार पूरा हो गया? संक्रमितों के और मौतों तक के आँकड़े सही नहीं है हमारे यहाँ, तो अब क्या वैक्सीनेशन के भी आँकड़े सही नहीं होंगे?
सवाल इतना होता कि विक्रमी
दिन के पहले टीकों का आँकड़ा घटने लगा, फिर एक दिन के लिए बढ़ा, फिर घटने लगा, तब भी ठीक था। सवाल तो इससे भी आगे है। विश्व विक्रमी दिवस के बाद ही वह कहानियाँ
क्यों मिलने लगी, जहाँ उन राज्यों में एक
ही आधार कार्ड पर एक से अनेक लोगों को टीके लगे, बिना रजिस्ट्रेशन के टीका लगने के मैसेज मिलने लगे!!! नाबालिगों
और मृतकों तक को टीके लग गए!!! बिना कोरोना वैक्सीन लगवाए लोगों को मैसेज मिले कि आपको
टीका लग गया है!!! 13 साल के बच्चों को वैक्सीन लगने के मैसेज मिले, जबकि उनका वैक्सीनेशन कार्यक्रम शुरू ही नहीं हुआ है!!!
दरअसल यहाँ आँकड़े को किसी
इवेंट मैनेजमेंट की तरह पेश करने पर सवाल है। इतने लोगों के मरने के बाद और अर्थव्यवस्था
के तबाह हो जाने के बाद भी मोदी सरकार कोरोना को लेकर हेडलाइन हड़पने की मानसिकता से
आगे नहीं बढ़ सकी है। विडंबना यह कि हर नयी हेडलाइन दूसरे दिन पुरानी हो जाती है। फिर
नयी हेडलाइन की तलाश में सरकार जुट जाती है। समझ नहीं आता कि कोरोना से लड़ रहे हैं
या धूमिल हुई छवि को सुधारने की राजनीति कर रहे हैं।
21 जून वाले उस विक्रमी टीकाकरण के बाद कोविड टास्क फोर्स के चेयरमैन
वी के पॉल ने कहा कि भारत के पुराने सिस्टम और अनुभवों के चलते हम उस विक्रम तक पहुंच
पाए थे। उधर इससे पहले देश के प्रधानमंत्री मोदी अपने राष्ट्र के नाम संबोधन में कह
रहे थे कि भारत तो पहले फिसड्डी था, टीकाकरण अभियानों में बहुत पीछे था वगैरह वगैरह! वी के पॉल ने बाकायदा कहा कि हमारे
पास वैक्सीनेट करने की क्षमता है जो राज्यों के सह्योग से पिछले अनेक दशकों से तैयार
की गई है। इधर देश का महानायक कह चुका है कि उसे तो पहले भारत में पैदा होने में भी
शर्म आती थी। अधिकारी झूठे होते हैं या हमारे नेता, यह समझना आप पर निर्भर है।
रही बात रिकॉर्ड की, इन दिनों रिकॉर्ड ही रिकॉर्ड बन रहे हैं। एक दिन में सबसे ज्यादा संक्रमितों का रिकॉर्ड, एक दिन में सबसे ज्यादा मौतों का रिकॉर्ड, नदी में लाशें बहने का रिकॉर्ड, स्मशान ना मिलने का रिकॉर्ड, दो बूँद ओक्सीजन ना मिलने से मर जाने का रिकॉर्ड, कोराना के भयंकर खतरे के बीच बड़ी बड़ी चुनावी सभाएँ करने का रिकॉर्ड, पेट्रोल डीज़ल के दाम का रिकॉर्ड, महंगाई का रिकॉर्ड, बेरोजगारी का रिकॉर्ड। रिकॉर्ड ही इतने सारे बन रहे हैं कि इतने सारे रिकॉर्ड का रिकॉर्ड ही परेशान है।
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