साल 2022। 2020 महामारी का साल था और 2021 महामारी के चलते मौत के तांडव का समय था। इसके बाद यह साल यूँ
तो अच्छा ही माना जाएगा! राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक
उथल पुथलों से साल भरे गुज़रा, लेकिन पिछले दो सालों के ख़ौफ़ से लोगों ने निजात पा ली। यह साल राजनीति, धर्म, मनोरंजन और सोशल मीडिया
की माथापच्ची का साल रहा।
माता वैष्णो देवी मंदिर में भगदड़ से 12 लोगों की मौत, नए साल के मौक़े पर भारी संख्या में जुटे थे श्रद्धालु
हालाँकि 2022 के साल की शुरुआत
उतनी अच्छी नहीं रही। जब लोग साल 2022 की शुरुआत का जश्न मना रहे थे, तब माता वैष्णो देवी धाम में बड़ा हादसा हो गया।
नये साल के मौक़े पर माता वैष्णो देवी धाम दर्शन के लिए अनेक लोग पहुंचे थे। 1 जनवरी 2022 को वैष्णो देवी मंदिर
में भगदड़ मच गई। इस दौरान 12 लोगों की मौत हो गई और 14 लोग घायल हो गए। मारे गए लोगों में से ज़्यादातर लोग दिल्ली, हरियाणा और पंजाब से
आए श्रद्धालु थें। मीडिया रिपोर्ट की माने तो मंदिर में क़रीब 70 से 80 हज़ार श्रद्धालु पूजा
अर्चना के लिए पहुंचे थे। एक स्थानीय दुकानदार ने कहा कि श्राइन बोर्ड ने श्रद्धालुओं
की संख्या तय नहीं की थी!
पंजाब में प्रधानमंत्री की सुरक्षा को लेकर मच गया बवाल, पीएम की हत्या की साज़िश
तक के आरोप मड़ दिए गए, जबकि मामला निकला सुरक्षा चूक का
साल का महज पाँचवाँ ही दिन था। प्रधानमंत्री मोदी राजनीतिक रैली के लिए पंजाब पहुंचे थे। साल भर चले किसान
आंदोलन के बाद केंद्र सरकार को तीनों मामलों के कृषि विधेयक क़ानून को वापस लेना पड़ा
था। पंजाब के किसान अब भी एमएसपी को लेकर अपनी माँग पर क़ायम थे। इन हालातों के बीच
पीएम मोदी फिरोज़पुर में एक रैली के लिए पहुंचे।
वहाँ एक ब्रिज पर उनका क़ाफ़िला बहुत समय तक रुका रहा। कथित रूप से किसानों ने और राजनीतिक रूप से किसानों व
कांग्रेस, दोनों ने प्रधानमंत्री के क़ाफ़िले को बाधित किया था। यह आरोप बीजेपी, उनके नेता और उनके
समर्थकों ने लगाए। उस वक़्त पंजाब में कांग्रेस की सरकार थी और मुख्यमंत्री थे चरणजीत
सिंह चन्नी। किसानों पर आरोप लगे और उन्हें कटघरे में खड़ा किया जाने लगा।
बीजेपी के नेताओं और समर्थकों ने कांग्रेस सरकार पर पीएम मोदी की हत्या की साज़िश तक
के आरोप लगा दिए!
इस मामले को तूल स्वयं
पीएम मोदी ने दे दिया!!! उन्होंने ट्वीट कर
दिया कि अपने मुख्यमंत्री को थैंक्स कहना कि मैं बठिंडा एयरपोर्ट ज़िंदा लौट पाया। मोदीजी
ने स्वयं ही सुरक्षा चूक को इतना रंगीन रूप दे दिया तो फिर यह नीचे के लोगों को इशारा
था कि राई का पहाड़ बना दो। ख़ूब हो-हल्ला हुआ,
आरोप-प्रतिआरोप लगाए गए,
मेनस्ट्रीम मीडिया और सोशल मीडिया इसीमें जुटे रहे।
सुप्रीम कोर्ट ने इस
मामले के लिए एक जाँच समिति बनाई। बीजेपी और उनके नेताओं ने तो प्रधानमंत्री मोदी की
हत्या की साज़िश तक के आरोप लगाकर साल की शुरुआत में ही बवाल काट दिया। जाँच समिति
ने फिरोज़पुर के एसएसपी हरमनदीप सिंह को इस
घटना के लिए दोषी माना।
भारत साल भर चुनावों की गलियों से गुज़रता रहा, पाँच राज्यों के चुनाव
ने मीडिया की दुकानों से लेकर गली-मोहल्लों में माहौल चुनावी बनाये रखा
राजनीति के क्षेत्र
में यह साल बहुत महत्वपूर्ण रहा। साल की शुरुआत में और अंत में कई बड़े और राजनीति के लिहाज़ से महत्वपूर्ण राज्यों में चुनाव हुए। साल भर माहौल चुनावी बना रहा। चुनावी माहौल के
चलते मीडिया की दुकानें रात दिन चीखती-चिल्लाती रही। उधर गली-मोहल्लों में अबे ये आएगा-अबे
वो आएगा वाला मंज़र दिखता रहा!
इस साल पाँच राज्यों
में चुनाव हुए। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर के चुनाव परिणाम देश की राजनीति के लिए एक नई दिशा बने। यूपी और
उत्तराखंड में भाजपा की वापसी हुई। पंजाब में आम आदमी पार्टी ने विपक्ष का सफाया कर
दिया। गोवा और मणिपुर में भी भाजपा सत्ता में आई।
साल के अंत में हिमाचल
प्रदेश और गुजरात विधानसभा में चुनाव परिणाम आए। गुजरात में भाजपा दोबारा सत्ता में आई और
हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी। गुजरात में भाजपा ने अपने राजनीतिक इतिहास
का सबसे अच्छा प्रदर्शन किया। उधर दिल्ली के एमसीडी चुनावों में बीजेपी को हार का सामना
करना पड़ा और वहाँ आम आदमी पार्टी सत्ता पर क़ाबिज़ हो गई।
जरा आँख में भर लो पानी... भारत को संगीत के सुरों में पिरोने वाली स्वर साम्राज्ञी
लता मंगेशकर का निधन
6 फ़रवरी 2022 के दिन भारत रत्न से सम्मानित भारत की स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर का निधन हो
गया। दशकों से भारत को संगीत के सुरों में पिरोने वाली लता मंगेशकर 92 साल की थीं। लताजी
ने मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में अंतिम सांस ली। कोरोना संक्रमित पाए जाने के बाद
उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था। 20 भाषाओं में 30 हज़ार से भी ज़्यादा गीत गाने वाली लता मंगेशकर ने क़रीब 1000 फ़िल्मों में अपनी
आवाज़ दी थी।
भारत रत्न से सम्मानित
लता मंगेशकर भारतीय सिनेमा के इतिहास में सबसे लंबा दौर देखने वाली कलाकार थीं। 1943 में आई मराठी फ़िल्म
गजभाऊ में उन्होंने कुछ पंक्तियाँ गाई थीं। 1947 के आते-आते लताजी ने कुछ फ़िल्मों में एक्टींग भी की थी। 1949 में महल फ़िल्म में
लताजी ने अपना पहला हिंदी गाना गाया। इसके बाद वह अपने निधन तक संगीत की दुनिया पर
एकछत्रीय राज करती रहीं। उन्होंने कई ऐसे नग़मे गाए, कई ऐसे गीतों को अपनी आवाज़ दी, जो हमेशा के लिए भारतीय
जनमानस से जुड़ गए।
मुंबई के छत्रपति शिवाजी
महाराज पार्क में उनका अंतिम संस्कार हुआ। अपनी स्वर साम्राज्ञी को अंतिम बार विदा
करने के लिए पीएम मोदी समेत राजनीति और बॉलीवुड के कई दिग्गज उपस्थित रहे।
महाराष्ट्र में शिवसेना का विभाजन, एकनाथ शिंदे बीजेपी के सहयोग से बने मुख्यमंत्री
20-21 जून 2022 के आसपास शिवसेना में सार्वजनिक तौर पर उथल पुथल दिखाई देने लगी। शिवसेना के कदावर
नेता एकनाथ शिंदे ने अपने साथ क़रीब 50 विधायकों को लेकर शिवसेना से किनारा कर लिया। इनमें 41 विधायक शिवसेना से
थें। काफ़ी विवादों और नाटकीय घटनाक्रमों के बाद महाराष्ट्र में शिवसेना-कांग्रेस-एनसीपी
की जो सरकार बनी थी, वह सरकार उसी नाटकीय तरीक़े से भरभरा कर गिर गई। 29 जून को उद्धव ठाकरे
ने इस्तीफ़ा दे दिया और 30 जून को बीजेपी के सह्योग से शिंदे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने।
दरअसल महाराष्ट्र विधानसभा
चुनाव के नतीजों के बाद कोई एक दल सरकार बना नहीं पा रहा था। पुराने सहयोगी बीजेपी
और शिवसेना के बीच मुख्यमंत्री पद को लेकर विवाद सार्वजनिक रूप ले चुका था। उद्धव ठाकरे
और अमित शाह एकदूसरे को विश्वासघाती बता रहे थे। ऐसे में कथित रूप से शरद पवार ने शिवसेना
और कांग्रेस को एक कर सभी को चौंका दिया। शिवसेना-कांग्रेस और एनसीपी ने आख़िरकार मिलकर
सरकार बना ली, जिसे महाविकास अघाड़ी सरकार के नाम से जाना गया। सीएम बने उद्धव ठाकरे।
इसके ढाई साल बाद शिवसेना
के कदावर नेता एकनाथ शिंदे 40 से ज़्यादा शिवसेना विधायकों को अलग लेकर बग़ावत पर उतर आए। इसे बीजेपी के कुख्यात
ऑपरेशन लोटस के रूप में देखा गया। ढाई साल पुरानी सरकार का पतन हो गया। तय था कि शिंदे
गुट के बाग़ी विधायकों को लेकर बीजेपी सरकार बनाएगी और सीएम फडणवीस बनेंगे। लेकिन सीएम
बने शिंदे, जबकि देवेंद्र फडणवीस ने उप मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली।
बाल ठाकरे की शिवसेना
फिर एक बार विभाजित हो गई। मामला अदालत पहुंचा। अदालत में अब यह तय होना बाकी है कि आख़िरकार शिवसेना उद्धव ठाकरे की है या शिंदे की। बाग़ी विधायकों के बारे में भी फ़ैसला
आना बाकी है।
राहुल गांधी ने शुरू की तीन हज़ार पाँच सौ किलोमीटर लंबी भारत जोड़ो यात्रा, पैदल चलकर नापेंगे
भारत को
7 सितंबर 2022 के दिन राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा की शुरुआत की। यात्रा कन्याकुमारी से
शुरू हुई, जो 150 दिनों तक चलनी है और क़रीब 3500 किमी पैदल चलने के बाद जम्मू-कश्मीर में ख़त्म होनी है। सुस्त पड़ी कांग्रेस के
लिए यह महत्वपूर्ण घटनाक्रम माना जा रहा है। यूँ तो राहुल गांधी ने इसे अब तक ग़ैर राजनीतिक
यात्रा के रूप में ही पेश किया है, और इस यात्रा का उद्देश्य भारत को एकजुट करना बताया
जा रहा है। किंतु इस लंबी यात्रा के राजनीतिक परिणाम क्या आएँगे इस पर सभी की नज़र है।
यात्रा के दौरान राहुल
गांधी आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक मुद्दे उठाते रहे। बेरोज़गारी, महंगाई, नफ़रत की राजनीति, विभाजन की राजनीति, अति केंद्रीकरण जैसे
राष्ट्रीय मुद्दों को आवाज़ देते रहे। इस यात्रा के दौरान कुछेक राज्यों में चुनाव भी
हुए, जिसमें कहीं कांग्रेस जीती, तो कहीं बहुत बुरे हालातों में फँसी। यात्रा के दौरान राहुल गांधी कई राष्ट्रीय
मुद्दों, समस्याएँ और दूसरे विवादित मुद्दों को छूते रहे और इसके चलते राजनीति गर्म रही।
राजस्थान में पायलट और गहलोत के बीच की जंग, परेशान कांग्रेस ज़्यादा मुश्किल में घिरती दिखी, इस साल कांग्रेस को मिला नया अध्यक्ष
कांग्रेस अपने राजनीतिक
इतिहास के सबसे बुरे दौर में है। नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने उसे जो झटके दिए, उसके
बाद कांग्रेस अपनों के कर्मों के चलते ज़्यादा से ज़्यादा मुश्किल परिस्थितियों में घिरती
दिख रही है। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और वेटिंग सीएम सचिन पायलट के बीच
जो शांति थी, वह फिर एक बार धधक उठी जब अशोक गहलोत का नाम बतौर कांग्रेस राष्ट्रीय अध्यक्ष सामने
आया।
20 सिंतबर 2022 को सचिन पायलोट के विरोध में 92 विधायकों ने इस्तीफ़ा दे दिया। जैसे तैसे इस आग को बुझा दिया गया। फिर आग भभक उठी, जब अशोक गहलोत का नाम बतौर कांग्रेस राष्ट्रीय अध्यक्ष सामने आया। इस बार उथल पुथल
लंबी चली। नतीजा यह हुआ कि अशोक गहलोत की जगह मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस राष्ट्रीय
अध्यक्ष बने। पायलट वर्सेज़ गहलोत का द्वंद फिर एक बार शांत हुआ, लेकिन धुँआ अब भी निकल
रहा है।
सचिन पायलट और अशोक
गहलोत की राजनीतिक जंग के बीच इस साल कांग्रेस ने अपना नया राष्ट्रीय अध्यक्ष चुन लिया।
लगभग 24 साल बाद पार्टी का अध्यक्ष गांधी परिवार से बाहर का नेता बना। ग़ैर गांधी अध्यक्ष
के तौर पर मल्लिकार्जुन खड़गे ने शशि थरूर को कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव में शिकस्त
दी।
नीतीश की अंतरात्मा ने फिर कोहराम मचाया, बिहार में बीजेपी को
झटका
बिहार के कदावर नेता
और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अंतरात्मा पिछले कुछ सालों से राजनीति में जिस तरह के
नाटकीय घटनाक्रम दिखा रही है, वैसा मंज़र कहीं ओर नहीं दिखता। इस साल फिर एक बार नीतीश बाबू की अंतरात्मा ने कोहराम
मचाया! बिहार की सरकार चला रहे बीजेपी और जेडीयू
में मतभेद तो पहले से ही चल रहे थे। 9 अगस्त 2022 के दिन नीतीश कुमार ने गठबंधन सरकार के अपने सह्योगी बीजेपी से नाता तोड़ने का
एलान कर दिया।
फिर नीतीश बाबू ने
आरजेडी के साथ मिलकर सरकार बना ली। मुख्यमंत्री नीतीश ही बने। इस पूरे घटनाक्रम में
कभी नीतीश बाबू की राजनीति मोदी-शाह की योजनाओं पर पानी फेरती दिखी, तो कभी नीतीश कुमार
की अंतरात्मा को लेकर राजनीति की मूल आत्मा भी दिखी।
कभी नरेंद्र मोदी के
नाम से किनारा कर लेना, एनडीए से बाहर निकलना, जेडीयू और कांग्रेस के साथ मिलकर सत्ता भोगना, फिर उनसे हाथ छोड़ बीजेपी का दामन थामना, उनके साथ मिलकर सरकार
बनाना और चलाना, फिर बीजेपी और एनडीए को छोड़ उसी जगह वापस लौटना!!! नीतीश कुमार की अंतरात्मा ने बिहार और भारत की राजनीति में कोहराम मचाया हुआ है।
बिगड़े बोल प्रतियोगिता में नूपुर शर्मा ने बाजी मारी, देश डेढ़ महीने तक
उबलता रहा, न्यूज़ चैनलों ने ही आग लगा दी थी?
यूँ तो हर साल राजनीति
अपने बिगड़े बोल को लेकर देश को आतंकित करती रहती है। इसके ढेरों उदाहरण नेता लोग सालभर
देते रहते हैं। इस साल की विजेता रही नूपुर शर्मा, जबकि हार गया देश।
26 मई 2022 के दिन नूपुर शर्मा ने एक टीवी डिबेट में पैगंबर मोहम्मद पर निहायती विवादास्पद
बयान दे दिया। यह बयान स्पष्ट रूप से अपराधी और आतंकित करने वाला कृत्य था। इस घटना
में मीडिया डिबेट की भी बड़ी भूमिका थी। राष्ट्रीय चैनल पर नूपुर शर्मा ने ईश निंदा
की श्रेणी वाला कृत्य कर दिया, उधर नूपुर शर्मा को भड़काने वाले मौलाना की भी उतनी ही ज़िम्मेदारी थी। और इस डिबेट
के दौरान राष्ट्रीय चैनल का एंकर चूप होकर पूरे खेल को खुला मैदान देता रहा!
डिबेट ज्ञानवापी मस्जिद
को लेकर हो रही थी। नोट करें कि यह मामला अदालत में विचाराधीन था। बाद में अदालत ने
भी सवाल उठाया था कि जो मामला अदालत में है, उसे लेकर कोई चैनल खुली बहस कैसे कर सकता
है? लेकिन सब कुछ होता
रहा!!! बयान के बाद जो विवाद उत्पन्न हुआ वह देश की सीमाओं को लांधता
हुआ बाहर तक फैल गया। 12 से ज़्यादा देशों ने इस बयान पर आधिकारिक रूप से अपना विरोध जताया। बीजेपी ने नूपुर
शर्मा को पार्टी से सस्पेंड भी किया।
जगह जगह नमाज के बाद
हिंसा भड़क उठी। राजनेता अपनी राजनीति करते हैं और देश की प्रजा का भोग लेते हैं। यहाँ
भी वही हाल रहा। 28 जून को राजस्थान के उदयपुर में कन्हैया लाल की सोशल मीडिया पर पैगंबर मोहम्मद
के बारे में आपत्तिजनक पोस्ट करने को लेकर हत्या कर दी गई। जगह जगह लोग एकदूसरे से
भीड़ते रहे और छिटपुट हिंसा की घटनाएँ होती रहीं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई देशों ने
इस बयान की निंदा की, तो कुछेक देशों ने पक्ष लिया।
ईश निंदा की श्रेणी
में आने वाले इस विवाद ने इतना तूल पकड़ा कि मामला सुप्रीम कोर्ट जा पहुंचा। अदालत
ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा, "कौमों को लड़ाना हमारे नेताओं का काम नहीं होता, यह काम तो अंग्रेज़ों ने किया था। अंग्रेज़ों ने हमारी
संस्कृति, देवी-देवता, जात-पात को हथियार बनाकर हमें ही काटा और अब भी ये सिलसिला जारी है। क्यों?" अदालत ने देश में जो
कौमी आग लगी, नफ़रत का जो माहौल बना उसके लिए नूपुर शर्मा के बयान को ही ज़िम्मेदार ठहराया।
एनडीटीवी ने ख़ुद को बेचा, अडानी का नियंत्रण बढ़ा, रवीश कुमार का इस्तीफ़ा
भारत के मेनस्ट्रीम
मीडिया को 'गोदी मीडिया' का नाम देने वाले रवीश कुमार जिस मीडिया हाउस में काम किया करते
थे, उस एनडीटीवी पर उद्योगपति अडानी का नियंत्रण यूँ तो अप्रत्याशित नहीं था। क्योंकि
पिछले क़रीब एक साल से इसीके आसपास काम होता दिख रहा था। दरअसल एनडीटीवी का जो हिस्सा
अडानी ग्रुप ने ख़रीदा, वह इससे पहले अंबाणी ग्रुप के पास था।
23 अगस्त 2022 के दिन अडानी ग्रुप ने एनडीटीवी में 29.18 फ़ीसदी हिस्सा ख़रीद लिया। 22 नवंबर के दिन ओपन ऑफर आई। ओपन ऑफर के बाद कंपनी में अडानी की हिस्सेदारी क़रीब 37 फ़ीसदी के आसपास हो
गई। इसके बाद उन्हें यह अधिकार मिल गया कि वे (अडानी) एनडीटीवी में किसी निदेशक को
हटा सके या ला सके। प्रणब और राधिका के पास क़रीब 32 फ़ीसदी शेयरहोल्डिंग बाकी रहा। उसके बाद एनडीटीवी के दोनों निदेशक, प्रणव रॉय और राधिका रॉय ने इस्तीफ़ा दिया। इस घटनाक्रम को लेकर मीडिया पर सरकारी नियंत्रण
की चर्चा फिर शुरू हो गई।
कुछ मुद्दों पर एनडीटीवी
की कंपनी, कुछ मुद्दों पर उद्योगपतियों का नियंत्रण,
कुछ मसलों पर राजनीति इस विषय पर ज़िम्मेदार दीखी। इसके बाद एनडीटीवी
के वरिष्ठ कार्यकारी संपादक और पत्रकार रवीश कुमार ने इस्तीफ़ा दे दिया।
द कश्मीर फ़ाइल्स से लेकर पठान मूवी के भगवा कलर तक बॉलीवुड और राजनीति का झोल
पूरा साल बॉलीवुड और
बॉयकॉट वाला साल रहा। मार्च 2022 में रिलीज हुई फ़िल्म द कश्मीर फ़ाइल्स को लेकर जिस तरह की राजनीति चली, उससे पहले और उसके
बाद बॉयकॉट गैंग का जल्वा क़ायम रहा।
अगले साल रिलीज होने
वाली शाहरुख ख़ान की फ़िल्म पठान के एक गीत को लेकर भी यही हाल रहा। 12 दिसंबर 2022 के दिन पठान फ़िल्म
का बेशर्म रंग गीत आया और उसमें अभिनेत्री दीपिका पादुकोण के वस्त्रों के कलर को लेकर
बवाल काटा गया। जेएनयू हिंसा में सरकार और उनकी विचारधारा के विपरित खड़ी रहने वाली
अभिनेत्री दीपिका पादुकोण को लेकर राजनीति ऐसे नाटकीय घटनाक्रम करेगी यह स्वाभाविक
था। शाहरुख ख़ान का नाम भी शामिल था, फिर यह बड़ा स्वाभाविक था। भगवे कलर के वस्त्रों को लेकर बवाल काटने लगे लोग। व्हाट्सएप
और दूसरे सोशल मीडिया पर राष्ट्रवादी अपने अपने तरीक़ों से उबलते रहे। लेकिन यह विवाद
ख़ुद ब ख़ुद बहुत जल्दी से ठंडा हो गया।
2022 का साल फ़िल्में, उनकी कहानियाँ, कलाकार और इसमें भी सरकार की आलोचना करने वाले कलाकारों के बॉयकॉट करने का साल
था। साल की शुरुआत में विवेक अग्निहोत्री की द कश्मीर फ़ाइल्स फ़िल्म ने देश को मुफ़्त में ही प्रवृत्त रखा। आमीर ख़ान की लाल सिंह चड्ढा, अक्षय कुमार की रक्षा बंधन और सम्राट पृथ्वीराज, विजय देवरकोंडा की
लाइगर, रणबीर कपूर की ब्रह्मास्त्र और शमशेरा,
आलिया भट्ट की गंगूबाई काठियावाड़ी, जैसी अनेक फ़िल्मों के बहिष्कार
की मुहिम चलती रही। साल भर बॉयकॉट वाला खेला होता रहा। यह ट्रेंड आज भी जारी है और
आश है कि अगले साल ज़्यादा बल के साथ चलेगा!
अग्निपथ योजना और देश का युवा चल दिया विरोध पथ के ऊपर
14 जून 2022 के दिन अग्निपथ योजना को शुरू किया गया। केंद्र सरकार ने भारतीय सेना में भर्ती
होने की प्रक्रिया में अब तक का सबसे बड़ा परिवर्तन किया। इस योजना के मुताबिक़ भर्ती
होने वाले युवाओं में से 75 फ़ीसदी 4 साल के बाद निवृत्त होंगे और 25 फ़ीसदी को स्थायी किया जाएगा।
4 साल के लिए सेना में नियुक्ति की इस योजना को लेकर देश के युवाओं में नाराज़गी
दिखी और वे सड़क पर उतर आएं। देश के 13 राज्यों में योजना के ख़िलाफ़ भारी प्रदर्शन हुए। इन प्रदर्शनों में हिंसा भी हुई।
बिहार, उत्तर प्रदेश, हरियाणा समेत अनेक राज्यों में एक दर्जन से ज़्यादा ट्रेनों को आग के हवाले कर दिया
गया। रोहतक में एक युवा ने ख़ुद को आग लगा दी। कई ट्रेनें रद्द कर दी गईं।
इस योजना को लेकर पक्ष-विपक्ष
वाले एकदूसरे के ऊपर सवाल उठाते रहे। जवाबों के बारे में मत पूछें! इसका चलन हमारे यहाँ नहीं है! समय बीता और आंदोलन करने वाले थक गए। अब आंदोलन ठंडा पड़ गया है, योजना जारी है।
बुलडोजर बना बीजेपी का नया प्रतीक,
अदालत इसे ग़लत मानती रही लेकिन जनता की अदालत में यह ज़रूरी
माना गया
भारतीय राजनीति में
प्रतीकों का अपना एक महत्व है। हर दल का अपना एक चुनावी प्रतीक होता तो है, लेकिन कई बार राजनीति
समय के हिसाब से कुछ ऐसे प्रतीकों को अपने साथ जोड़ लेती है, जिससे समाज का दिल-ओ-दिमाग़ जुड़ जाता है।
इस साल बीजेपी के लिए
बुलडोजर वही प्रतीक बना। यूपी विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने 403 में से 255 सीटें जीतीं। लखनऊ
में जीत के बाद भाजपा कार्यकर्ताओं ने बुलडोजर पर सवार होकर जश्न मनाया। दरअसल चुनाव
से पहले कई मामलों में कथित आरोपियों के घर बुलडोजर से गिराने की प्रवृत्ति चली थी।
सीएम योगी और बुलडोजर एकदूजे के पर्याय बन गए।
फिर तो मध्य प्रदेश, गुजरात, कर्णाटक समेत बीजेपी
शासित दूसरे राज्यों में भी चुनावों से पहले और बाद में बुलडोजर दिखा। वहाँ भी आरोपियों
की संपत्तियाँ बुलडोजर से ढहाने का कार्य हुआ। चुनावी प्रचार में और चुनावी साहित्य
में बुलडोजर की प्रतिकृतियाँ और छवी जमकर चली। उत्तर प्रदेश के सीएम योगी के लिए बुलडोजर
बाबा और मध्य प्रदेश के सीएम शिवराज सिंह के लिए बुलडोजर मामा लफ्ज़ चलने लगा। गुजरात
के सीएम ने बुलडोजर चलाया तो पीएम मोदी ने इसकी तारीफ़ कर दी।
अदालत के भीतर सरकारों
की इस प्रवृत्ति पर गंभीर सवाल उठे। अदालत ने सरकारों की इस प्रवृत्ति को ग़लत भी कहा।
लेकिन जनता की अदालत में यह मनपंसद प्रवृत्ति बनी रही।
नया संसद भवन, अशोक स्तंभ का अनावरण और सिंहों के रंग व रूप बदलने के आरोप
नये संसद भवन के ऊपर
अशोक स्तंभ का अनावरण कार्यक्रम इस साल हुआ। 11 जुलाई 2022 को पीएम मोदी ने इसका अनावरण किया। कांस्य धातु से निर्मित इस स्तंभ की चौड़ाई क़रीब 11-14 फ़ीट और ऊँचाई 20 फ़ीट है। इसका वजन 9500 किग्रा है। यह अशोक स्तंभ सारनाथ के अशोक स्तंभ की प्रतिकृति है।
लेकिन इस पर ही विवाद
हो गया। विपक्ष और सरकार के आलोचकों ने आरोप लगाया कि अशोक स्तंभ में सिंहों के मूल
आकार को बदला गया है। आरोप यह था कि कॉलम में सिंहो को जानबूझकर आक्रामक बना दिया गया
है, जबकि पहले वे शांत भाव को घारण करते दिखते थे। विवाद यह था कि भारत की जो राजमुद्रा
है, उसमें मूल शेरों के मुँह कम खुले हुए हैं। मूल कृति वाले शेर मोहक, राजसी वैभव, शांति और ज़िम्मेदारी के प्रतीक हैं, जबकि नयी प्रतिकृति में नये शेरों को क्रूर और आक्रामक दिखाया गया है।
इस मसले को लेकर भी
कुछ दिनों तक देश का टाइम पास हो गया। क्या था और क्या है, इसका सही सही जवाब
वैसे भी मिलने वाला नहीं था। समय बीता और फिर किसी दूसरे मुद्दे पर लोग बिजी हो गए।
बिलकिस बानो दुष्कर्म मामले के दोषियों को रिहा किया गया
2002 में गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो सामूहिक दुष्कर्म के तमाम 11 दोषियों को देश के
75वे स्वतंत्रता दिन
पर रिहा कर दिया गया। गुजरात के दाहोद ज़िले में 2002 के दौरान यह कांड हुआ था, जिसमें सामूहिक दुष्कर्म के साथ 14 लोगों की हत्या कर
दी गई थी। गुजरात सरकार ने इन दोषियों को रिहा करने की इजाज़त दी थी।
दोषियों को सज़ा भुगतने
के बाद रिहा करने का फ़ैसला इतना विवाद ना जगाता, अगर सत्ता दल से जुड़े लोग इसे किसी उत्सव के तौर पर ना मनाते।
गोधरा जेल से रिहा हुए दोषियों का स्वागत मिठाई खिलाकर किया गया। उन्हें फूलों के हार
पहनाए गए। साथ ही कुछ विवादास्पद बयानबाजी भी हुई। इस घटना को सांप्रदायिक बयानबाजी
ने ज़्यादा विवादित बना दिया।
सामूहिक दुष्कर्म और
पीड़िता के परिवार के सात सदस्यों की हत्या की सज़ा काट रहे सभी 11 अभियुक्त रिहा कर
दिए गए। गुजरात सरकार की माफ़ी नीति के तहत उन्हें गोधरा उप कारागर से छोड़ दिया गया।
सभी दोषी 15 साल से अधिक वक़्त तक सज़ा काट चुके थे।
श्रद्धा हत्याकांड, निर्मम तरीक़े से की गई हत्या, लव जिहाद का भूत फिर एक बार जाग उठा
साल के अंत में अपराध
की सबसे बड़ी घटना सामने आई। दिल्ली के महरौली में हुए श्रद्धा हत्याकांड ने सभी का
दिल दहला दिया। लिवइन में रहने वाली श्रद्धा की हत्या करके उसके शव के कई टुकड़े किए
गए। श्रद्धा की हत्या का आरोप उसी के बॉयफ्रेंड आफ़ताब पर लगा है। फ़िलहाल आफ़ताब तिहाड़
जेल में बंद है। मामले की तफ़्तीश जारी है।
इस मामले में लड़की
हिंदू और आरोपी लड़का मुस्लिम होने की वजह से लव जिहाद वाला भूत फिर एक बार जाग उठा।
मेनस्ट्रीम मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक उबलता रहा। हालाँकि इस हत्याकांड के बाद
और इससे पहले भी इसी साल शव को अनेक टुकड़ों में काटने की कुछ निर्मम घटनाएं सामने
आ चुकी थीं, किंतु राजनीति और मीडिया ने श्रद्धा हत्याकांड को धार्मिक और जिहादी कृत्य बना
दिया।
(इनसाइड इंडिया, एम वाला)
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