भारत और चीन के बीच हिमालय में 3380
किमी लंबी विशाल सरहद है। चीन आये दिन वहाँ घुसखोरी करता रहता है। चीन के साथ लगी हुई
इस सरहद पर भारतीय फ़ौज की आईटीबीपी तैनात है, जो उन बर्फ़ीली चोटियों पर और कातिलाना
मौसम में सफ़ेद मौत से टक्कर लेती है।
यह वो इलाक़ा है, जहाँ ऑक्सीजन की कमी
रहती है और साल में 10 महीने तो बर्फ़ जमी रहेती है। सांस लेने में किसी भी स्वस्थ इंसान
को दिक्कतें रहती हैं, और किसी भी हट्टे-कट्टे इंसान के लिए वहाँ ज़िंदगी जीना एक जंग
जैसा ही होता है। लेकिन इस फोर्स को ख़ास तौर पर प्रशिक्षित किया जाता है और उन्हें ख़ास
प्रकार के कपड़े और हथियारों के साथ वहाँ रखा जाता है।
मसूरी में आईटीबीपी का प्रशिक्षण केन्द्र
है और भारतीय फ़ौज की जो रूटीन ट्रेनिंग होती है उससे इस फोर्स की ट्रेनिंग बहुत अलग होती है। यहाँ महिला और पुरुष, दोनों ट्रेनिंग लेते हैं और उन्हें मार्शल आर्ट्स की
विशिष्ट ट्रेनिंग दी जाती है, जिससे उन्हें फ़ौजी हथियारों का मोहताज ना रहना पड़े।
यहाँ महिला फ़ौजी और पुरुष फ़ौजी, दोनों के लिए ट्रेनिंग एक समान ही होती है।
उनकी ट्रेनिंग सुबह पाँच बजे से
शुरू होती है। जिसमें सबसे पहले 5 किमी लंबा राउंड दौड़ना होता है। इन्हें पहाड़ी इलाक़े में सुरक्षा करनी होती है इसलिए “रॉक क्लाइंबिंग” की “स्पेशल
ट्रेनिंग” दी जाती है। उनमें एक निश्चित समयावधि में
निश्चित फ़ीट की ऊंचाई पर चढ़ने की क्षमता होना ज़रूरी है। आईटीबीपी दुनिया के उस ख़ास
फ़ौजी दस्तों में शुमार है, जो किसी भी पहाड़ी को फतेह करने की क्षमता रखता है।
कारगिल युद्ध में विजय हासिल करने
में और उत्तराखंड त्रासदी में अनगिनत लोगों की ज़िंदगियाँ बचाने में इसी दल की मदद ली गई
थी।