जहाँ रेगिस्तान का इलाक़ा हो वहाँ सरहदों की सुरक्षा करना लोहे के चने चबाना जैसा होता है। भारत में गुजरात के कच्छ इलाक़े में और राजस्थान राज्य में यह इलाक़ा है। रेगिस्तान के इलाक़े में सबसे आगे की पोस्ट है
“कुड़ा चौकी।”
कुड़ा चौकी पर 55 किमी तक कोई फेंसिंग न होने के कारण यह बहुत ही कठिन चौकी भी है। रेगिस्तान वाले इलाक़े में सरहद पर सबसे
बड़ी समस्या “मिरर इमेज” की होती है। यहाँ कोई छोटी चीज़ भी रखी जाए तो दूर से वो बहुत बड़ी दिखाई देती है। यह समस्या दिन की होती
है। और जंग जैसे माहौल में यह समस्या बहुत विकराल रूप ले लेती है। किसी गस्ती दल का
जवान अगर ये चीज़ देख भी ले तो उसे उस चीज़ के पास पहुंचना ज़रूरी होता है। लेकिन तब तक इस बात की कोई गारंटी नहीं होती कि वो मिरर इमेज ही है या सच में कोई दुश्मन है या दुश्मन की कोई चाल है। मिरर इमेज हर गस्ती दल को भ्रमित करती है और इससे मानसिक दबाव और समय की
बर्बादी, दोनों से जूझना पड़ता है।
ऐसे इलाक़े में लैंड माइंस बिछाना
बहुत आसान होता है और उन्हें ढूंढना उतना ही मुश्किल काम है। रात के पेट्रोलिंग के समय
जवानों को बम डिस्पोजल स्क्वॉड के साथ रहना पड़ता है और उन्हें “थर्मल इमेजिंग” तकनीक साथ
रखनी होती है। यह वो उपकरण है, जो रात के अंधकार में हो रही हलचल पर नजर रखता है। उसका
मॉनिटर आर्मी के कंट्रोल रुम में होता है और वहाँ पर जवान उस मॉनिटर पर नज़र रखते हैं।
रेगिस्तानी इलाक़े में डोग स्क्वॉड होना
बहुत ज़रूरी है। इस डोग स्क्वॉड को ऐसे इलाक़ों में किसी संदिग्ध चीजों को पहचानने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। कुछ इलाक़े ऐसे भी होते हैं, जहाँ जवानों को एक दूसरे के साथ रस्सी बांध कर
पेट्रोलिंग करना होता है। क्योंकि कुछ जगहें ऐसी भी आती हैं, जहाँ जमीन ऐसी होती है
कि कोई इंसान पल भर में पूरा अंदर चला जाता है।
रेगिस्तान के इलाक़े में सबसे बड़ी समस्याओं
में से एक समस्या पानी की होती है। यहाँ जवानों को दुश्मनों के साथ साथ पानी की कमी से
भी दो-दो हाथ करने होते हैं। पानी की समस्या के साथ साथ सांप-बिच्छू सबसे बड़ी समस्या
है। सांप और बिच्छू काट खाने की समस्या इतनी आम है कि इनको इस समस्या को लेकर प्रशिक्षित किया जाता है और उन्हें ख़ास प्रकार के “बाइट लोशन” साथ में
रखने होते हैं, जिसे सांप या बिच्छू के काटने के तुरंत बाद लगाया जाता है।