यह भी अजीब है। दंगे करने हैं,
सुरक्षा बलों के साथ मारपीट करनी है, उनकी गाड़ियां नदियों में ठेलनी हैं, जवानों को पीटना
हैं, लेकिन साथ में शर्त रखते हैं कि पैलेट गन का इस्तेमाल
मत किया करो। तो क्या फूल-हार निकले ऐसी गन का इस्तेमाल करें?
दुनिया के कई देश, मसलन अमेरिका, इजराइल, रूस इत्यादि हिंसक भीड़ से निपटने के लिए पैलेट गन का इस्तेमाल किया करते
हैं। पैलेट गन के अलावा आंसू गेस के गोले, मिर्ची बम, टेजर गन आदि पैलेट गन के
वैकल्पिक हथियार हैं, जो दंगाइयों से निपटने में काम आते हैं। ये नॉन लीथल हथियार हैं,
यानी गैर-जानलेवा हथियार, जिससे जान नहीं जाती है।
लेकिन आंसू गेस के गोले का तोड़
दंगाइयों ने ढूंढ लिया है। वे जब देखते हैं कि आंसू गेस का गोला छूट रहा है, तो
तुंरत उसके गिरने के बाद उस पर गीले बोरे डाल देते हैं, जिससे उसका असर नहीं के
बराबर हो जाता है। मिर्ची बम, जिसे आलियोरेजन भी कहा जाता है, का भी तोड़ उनके पास
है। मिर्ची बम भी उतना असरदार नहीं होता, क्योंकि इसका असर भीड़ में मौजूद चंद
लोगों तक ही सीमित रहता है और सैकड़ों लोगों की भीड़ पर काबू पाना मुश्किल-सा हो
जाता है। मिर्च पाउड़र से बने हथियार को पावा गोला भी कहा जाता है। यह कम घातक हथियार
निशाने को अस्थाई रूप से अक्षम बना देता है और वे कुछ मिनट के लिए जड़ हो जाते हैं।
‘पावा’ एक ऑर्गेनिक मटेरियल है, जो प्राकृतिक रूप
से मिर्च में पाया जाता है।
पावा शैल को इंडियन इंस्टीट्यूट
ऑफ टॉक्सीकोलॉजी रिसर्च, लखनऊ ने काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च के नेतृत्व
में बनाया गया है। PAVA यानि पेलागॉर्निक एसिड वनीलिल अमाइड को नॉनिवमाइड के नाम से
भी जाना जाता है। यह प्राकृतिक काली मिर्च में पाया जाने वाला कार्बनिक यौगिक है। इसका
इस्तेमाल सामने वाले व्यक्ति के शरीर में जलन पैदा कर देता है और वह कुछ न कर पाने
की हालत में पहुंच जाता है। पावा शैल्स से ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचता। इसके
अलावा स्टन लेक जैसे गोले तथा लॉंग रेंज एकाउस्टिक डिवाइस (लार्ड) हथियारों को भी
पैलेट गन के विकल्प के तौर पर देखा जाता है। बहरहाल, लार्ड का इस्तेमाल ग्रामीण इलाकों
में किया जा सकता है, क्योंकि यह श्रीनगर की पुरानी इमारतों के लिए खतरनाक साबित हो
सकता है।
इसके अलावा बीएसएफ की टियर स्मोक
यूनिट (टीएसयू) द्वारा बनाया गया ‘स्टन ग्रेनेड’ भी एक विकल्प के
तौर पर देखा जाता है। यह टारगेट को बेहोश कर देता है और कुछ मिनट के लिए अंधा कर देता
है। इन हथियारों में अमेरिका निर्मित टेजर गन भी शामिल है, जिससे नौ वोल्ट की
शक्ति का करेंट निकलता है। इससे कोई प्रदर्शनकारी थोड़ी देर के लिए संज्ञा शून्य
हो जाता है और उसे कोई बड़ा नुकसान पहुंचाए बिना पकड़ा जा सकता है। दंगाइयों को
नियंत्रित करने के अन्य गैर घातक हथियारों में पम्प एक्शन गन (पीएजी) शामिल है। पेपर
बाल का भी उपयोग होता है। इससे निकलने वाला भारी धुआं प्रदर्शनकारियों को तितर
बितर होने के लिए विवश कर देता है।
लेकिन इन हथियारों से दंगाइयों को
ज्यादा दिनों तक नहीं रोका जा सकता। वे कुछेक दिन बाद दोबारा आते हैं। कई बार देखा
गया है कि वे हर प्रदर्शनों में घुस जाते हैं और उत्पात मचाते हैं। क्योंकि इन्हें खौफ
नहीं रहता। उन्हें पता होता है कि कई शस्त्रों को वे नाकाम कर सकते हैं और कई शस्त्र ऐसे भी हैं जो उन्हें ज्यादा दिनों तक नाकाम नहीं रख पाते। लिहाजा उनके जहन में खौफ नहीं
होता। इसके चलते हर समय उन्हें नियंत्रित कर पाना टेढ़ी खीर साबित होता रहता है।
पैलेट गन वर्तमान समय में सबसे
ज्यादा कारगर हथियार है। उसे छर्रा बंदूक के नाम से भी जाना जाता है। इसकी रेंज 50
से 60 मीटर होती हैं। इसके एक बार फायर होने से सैकड़ों छर्रे निकलते हैं, जो रबड़
और प्लास्टिक के होते हैं। एक कारतूस में 500 तक ऐसे बॉल हो सकते हैं। छर्रे को
तेजी से बाहर निकालने के लिए हाइड्रोलिक बल का इस्तेमाल किया जाता है। ये पंप करने
वाली बंदूक है, जिसमें कई तरह के कारतूस इस्तेमाल होते हैं। कारतूस 5 से 12 के
रेंज में होते हैं, पांच को सबसे तेज़ और ख़तरनाक माना जाता है। इसका असर काफ़ी
दूर तक होता है। फायर करने के बाद कारतूस हवा में फूटते हैं और छर्रे एक जगह से चारों
दिशाओं में जाते हैं। ये हथियार जान नहीं लेता, किंतु दंगाइयों को दिनों तक अस्पताल
में ज़रूर रखता है। लिहाजा उनका स्वस्थ होकर दोबारा दंगे में उत्पात मचाने लौटने की
संभावनाएँ खत्म हो जाती हैं। जो भीड़ हमेशा से हिंसक होती हैं उनके जहन में खौफ पैदा
करने के लिए यह हथियार ज्यादा कारगर है। उनको डर रहता है कि पैलेट गन से उन्हें काफ़ी नुकसान पहुंच सकता है। इसके अलावा पैलेट गन के एक राउंड फायर से ही सैकड़ों दंगाइयों को नियंत्रित किया जा सकता है। यह काम वर्तमान समय में अन्य हथियार नहीं कर
पाते।
कुछ बुद्धिजीवी जो संभावनाएँ या
खतरे गिना रहे हैं उससे इनकार नहीं किया जा सकता। कइयों की हालत गंभीर बनी हुई है,
तो कइयों की आंखों की रोशनी चले जाने का डर सता रहा है। ऐसा भी नहीं कि इस हथियार
का इस्तेमाल पहली बार हो रहा है। इसका इस्तेमाल तो 2010 से हो रहा है। भीड़ से
निपटने के लिए पैलेट गन का इस्तेमाल दुनिया के कई देशों में हो रहा है। सुरक्षा बल
के लोग बताते हैं कि जब आपकी खुद की जान अटकी हो और कोई दूसरा उपाय न हो तो विरोध
प्रदर्शन कर रहे लोगों पर और क्या इस्तेमाल किया जाए। आप लोगों पर डंडा चलाएंगे तो
क्या ऐसी हिंसक व उग्र भीड़ भागेगी? हालांकि स्टैंडर्ड नियमों के मुताबिक इन हथियार में रबड़ और
प्लास्टिक के छर्रे ही इस्तेमाल किए जाते हैं, पर जख्मी होने वाले युवकों के
अभिभावकों तथा उनका इलाज करने वाले डॉक्टरों के मुताबिक इनमें लोहे के छर्रे
इस्तेमाल किए जा रहे हैं, जो ज्यादा घातक साबित हो रहे हैं। हालांकि सुरक्षा बलों
की कोशिश होती है कि इसे सामने से फायर न करें लेकिन, ज्यादातर इनकी भिड़ंत आमने-सामने होती
है। सुरक्षा बलों का ये भी कहना है कि वो इसे कमर के नीचे फायर करते हैं लेकिन ये
कई बार कमर के ऊपर भी लग जाता है। वजह है जैसे बंदूक से निशाने साधे जाते हैं और
गोली वहीं लगती है जहां फायर की जाती है, लेकिन पैलेट गन में ऐसा कुछ भी नहीं है।
सुरक्षा बल के अधिकारियों का कहना है कि इसके खराब रिजल्ट्स मालूम हैं, पर इसके अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं
है। पैलेट बंदूकें ही हैं जिन्हें विरोध के दौरान आसानी से इस्तेमाल किया जा सकता
है।
सुरक्षा बलों का कहना है कि वे
अंतिम हथियार के तौर पर ही इसे इस्तेमाल करते हैं। भीड़ इनके ऊपर ग्रेनेड फेंक रही
हैं। पत्थर फेंक रही हैं। अब तक केवल सीआरपीएफ के 300 से ज्यादा जवान पत्थर से घायल
हो गए हैं। कई पुलिस वालों के सिर फट गए हैं। एक बार तो भीड़ ने जीप समेत
पुलिसकर्मी को नदी में फेंक दिया, इससे
पुलिस वाले डूबकर मर भी गए। ऐसे में अब ये न करें तो क्या करें?
इस हथियार को लेकर राजनितीक
गलियारों में काफी चर्चा हो रही है, धारणाएँ बाँधी जा रही है। किंतु “तत्काल
स्थिति” में इसका कोई अन्य ‘असरदार विकल्प’ मौजूद नहीं है। जो विकल्प है वे इतने
असरदार या प्रभावी नहीं है। राजनितीक गलियारे विवादों को रोकने के लिए विकल्प ज़रूर
दे सकते हैं, लेकिन वर्तमान समय में ‘तत्काल विकल्प’ पैलेट
गन जितने प्रभावी नहीं हो सकते, यह भी एक सच ही है। जो हिंसा कर रहे हैं उनकी मांगें विचित्र ही कही जा सकती हैं कि उन्हें हिंसा करनी है, लेकिन मांग यह कि बदले में असरदार
हथियार का उपयोग न करें!!! यानी कि धड़ल्ले से हिंसा करने दे? दूसरी ओर वे तथाकथित बुद्धिजीवी भी हैं, जो पूरे साल
सख्त कदमों का हवाला देते हैं, लेकिन जब वक्त आता है तब मानवाधिकार का झंड़ा थाम लेते
हैं, वे लोग शायद उनसे भी ज्यादा विचित्र लगते हैं।
साफ है कि हद से ज्यादा हिंसक
भीड़, जो पुलिस चौकियों पर बेखौफ हमला करती है, सुरक्षा बलों को बिना किसी डर पीटती
है, वो भीड़ जो धड़ल्ले से हिंसक प्रवृत्तियां करती है, हथियार तक लूंट कर ले जाती
है, उनमें खौफ पैदा करना ज़रूरी बन जाता है। बिना स्थायी खौफ पैदा किए नियमित रूप
से हो रहे हिंसक प्रदर्शनों को रोकने का कोई और “तत्काल तरीका”
बुद्धिजीवियों के पास हो तो उन्हें वहां जाकर उन तरीकों को लागू करके सेना की सहायता
कर लेनी चाहिए।
(इंडिया इनसाइड, मूल लेखन 19
जुलाई 2016, एम वाला)
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