अगस्ता वेस्टलैंड। अगर यह सदाचार होता तो शायद पता ही नहीं चलता कि यह किसी उड़न
खटोले, यानी हेलीकॉप्टर कंपनी
का नाम है। भ्रष्ट-आचार ने इतनी ज्ञानपूर्ति तो कर ही दी कि अगस्ता क्या है और वो उड़न
खटोले बनाती है। इटली का भूत-प्रेत फिर एक बार भारतीय राजनीति में आ धमका और पहले से
बदनाम हो चुकी कांग्रेस को फिर एक बार बदनामी का ओवरड़ोज दे गया।
हालाँकि कथित नोटबंदी
या कथित नोटबदली और देश को बदल कर रख देने की उछल रही भावनाएँ और इस बीच सीबीआई द्वारा
अगस्ता मामले में बड़ी गिरफ़्तारी। शायद देश को बदल कर रख देना है और इसीलिए रूटीन
से हो चुके भ्रष्टाचार के मामलों में उतनी दिलचस्पी हम देशभक्त नागरिक दिखा नहीं पाए।
वैसे इस मामले में
पीएमओ तक का नाम उछला! यूपीए सरकार के कार्यकाल
के संबंध में देखा जाए तो ये दूसरा मौका था जब किसी घोटाले में पीएमओ तक का नाम उछला
हो। कोयला घोटाले के बाद उड़न खटोले ने फिर एक बार पीएमओ में जाकर लैंड कर दिया।
उपरांत, वायु सेना के पूर्व मुखिया जैसे ओहदे वाले व्यक्ति का गिरफ़्तार
होना, ये भी अपने आप में इतिहास का दागनुमा पन्ना
है। पूर्व वायु सेनाध्यक्ष एसपी त्यागी को सीबीआई द्वारा गिरफ़्तार किया जाना और उनके
द्वारा पूर्व पीएम या उनकी ऑफिस को कथित घोटाले में घसीटना, दोनों चीजें चीख़ चीख़ कर कह रही थीं कि भ्रष्टाचार ने अपना
दायरा इतना बढ़ा लिया है कि अब किसी योजना से इससे निपटना नामुमकिन है।
बोफोर्स... यह वो इतिहास
है जिसने आज तक कांग्रेस के दामन को छोड़ा नहीं है। सेना पर राजनीति नहीं होनी चाहिए, ऐसा उपदेश कांग्रेस किस मुँह से देती होगी? ख़ास करके तब कि जब बोफोर्स के बाद अगस्ता ने उसके दामन पर चिपकना
शुरू कर दिया हो। वैसे, सेना पर राजनीति नहीं करनी चाहिए जैसे उपदेश
भाजपा जैसे दल भी नहीं दे सकते। क्योंकि कम कार्यकाल में उसने भी कांग्रेस की राह पकड़
ली थी और कुछ मामलें बने भी थे।
दरअसल, उपदेश जैसी
चीजें नैतिकता से साथ जुड़ी हुई हैं। और नैतिकता नाम के तत्व के साथ राजनीतिक दलों
को इतना घनिष्ठ संबंध नहीं होता। वैसे भी नैतिकता एक ब्रांड है, जिसे समय समय पर नये अवतार में आवाम के सामने पेश किया जाता
है, जिससे नैतिकता किसी एक रूप में कैद होकर रह न जाए!
माहौल कुछ ऐसा है कि
जब नेता कोई सदाचार कर जाए तब अज़ूबा सा लगता है! वहीं, उनका नाम किसी भ्रष्टाचार से जुड़े, तब लगता है कि अब सब कुछ नॉर्मल है! किंतु सेना के बड़े अधिकारी सीधे किसी घोटाले से जुड़ जाए, तब नागरिकी घमंड कुछ देर के लिए आहत ज़रूर हो जाता है।
वैसे त्यागी पर फ़िलहाल
आरोप लगे हैं, कुछ भी साबित नहीं हुआ है। लेकिन हमारे यहाँ
हर घोटाले का एक अघोषित नागरिकी नियम है। और वो यह कि सबूत की ज़रूरत नहीं होती! तिरंगे के सामने जो इंसान अपनी छाती फुलाए देश की तरफ़ से सैल्यूट करता हो उसका
किसी घोटाले के साथ जुड़ जाना आवाम को अंदर से झकझोर ज़रूर देता है। ख़ास करके तब कि
जब भ्रष्टाचार विरोधी कानूनों को कमज़ोर किया जा रहा हो।
इसी सत्र में Prevention
of Corruption Act संशोधित होने के लिए नये कपड़े पहने तैयार था, लेकिन विमुद्रीकरण की दौड़ में फिर एक बार इंतज़ार करते करते
वो खुद कतार में खड़ा हो गया। जनलोकपाल की माथापच्ची, वो आंदोलन, उस दौर का माहौल, उसे कमज़ोर बनाने की गुप्त राजनीतिक इच्छाशक्तियाँ, सारी चीजें देश ने देखीं। वैसे नये कपड़े के साथ जनलोकपाल पारित
भी हो गया। सोचा गया था कि वक्त रहते कपड़े को ठीकठाक कर दिया जाएगा, किंतु अब तो लोकपाल खुद कतार में खड़ा है।
प्रिवेंशन ऑफ करप्शन
एक्ट के सूचित संशोधनों के विरुद्ध स्वयं लॉ कमीशन ने सवाल उठाए थे। कहा गया कि सूचित
कानून सख़्त होना चाहिए था, लेकिन इसे लचीला बनाया गया है। लेकिन ये सवाल
किसी राजनीतिक दल ने नहीं उठाए। कहते हैं कि नेता समुदाय अपने स्थापित हितों की रक्षा
मिल जुल कर कर ही लेते हैं। क्योंकि नारों से देश का गुजारा हो जाता है! भ्रष्टाचार और घोटालों का विक्रम बना चुकी कांग्रेस आज भ्रष्टाचार के विरुद्ध
नारे लगाती है और भ्रष्टाचार को ख़त्म करने का नारा लगाने वाली भाजपा आज किसी दूसरी
गलियों में देश को घुमाती रहती है। क्योंकि, नारों से देश का काम चल जाता है!
सेना के मामलों में, संरक्षण सौदों में भ्रष्ट आचार गंभीर विषय है। दूसरी तरफ़ तक़रीबन
हर टेलीविजन डिबेट में कथित रक्षा विशेषज्ञ कहते नजर आते हैं कि शायद ही कोई सौदा सफेद
रंग से रंगा हुआ पाया जाता हो। बिचौलिए और हथियार बनाने वाली कंपनियों के काले भूत
इन सौदों के आसपास घूमते रहते हैं।
स्वतंत्रता के
तुरंत बाद, 1948 में जीप घोटाले से ही शुभारंभ हो गया। राजीव
गांधी के कार्यकाल के दौरान संरक्षण सौदों का ये खेल जमकर उजागर हुआ। वैसे 1987 में एचडीडब्ल्यू सबमरीन
सौदे में संदिग्ध भ्रष्टआचार के चलते तत्कालीन नौसेना अध्यक्ष एसएम नंदा के वहाँ छापेमारी
की घटना भी हो चुकी है। उस वक्त प्रधानमंत्री राजीव गांधी ही थे। इस मामले में कई साल
बीत गए और वही प्रख्यात तर्क ‘सबूतों का अभाव’ के चलते मामला बंद कर दिया गया या मान लिया
गया।
2006 में बराक मिसाइल सौदे के दौरान भी सीबीआई ने नौसेना एडमिरल सुशील कुमार के विरुद्ध
एफआईआर तक दर्ज की थी। लेकिन वो मामला भी बीच राह में दम तोड़ गया।
आर्थिक सुधारों के
प्रणेता मनमोहन सिंह के कार्यकाल के दौरान इस परंपरा में कोई सुधार होता हुआ नहीं
दिखा! उल्टा परंपरा को प्रतिष्ठा के साथ
अपनाया गया हो ऐसा माहौल ज़रूर बना!
2013-14 में अगस्ता मामला भारत में नहीं, बल्कि इटली में उजागर हुआ! इटली के न्यायालय ने इसके संबंध में फ़ैसले भी सुनाए। इटली के मिलान कोर्ट के
फ़ैसले ने भारत की राजनीतिक व्यवस्था को भी कटघरे में खड़ा कर दिया। इसके चलते कुछेक
भारतीय राजनेता तथा सैन्य अधिकारियों पर आरोप लगे।
ये वो दौर था जब एसपी
त्यागी धड़ल्ले से मीडिया के सामने आते थे और खुद को साफ सुथरा बताते थे। वो अगर सचमुच
साफ हैं, तब अच्छी ही बात है। किंतु उस दौर में पूर्व
रक्षा मंत्री जसवंत सिंह भी एसपी त्यागी के बचाव में आए थे। अगस्ता का कथित घोटाला
जसवंत सिंह के कार्यकाल में नहीं हुआ था। किंतु उनके दौर में एसपी त्यागी ज़रूर थे।
जसवंत सिंह उनके लिए यूपीए के कार्यकाल में चैनलों पर आ गए थे! ये भी अजीब सा दौर था।
2 अप्रैल, 2016 के दिन इटली के मिलान कोर्ट ने इस घोटाले से संबंधित फिनमेकेनिका कंपनी के मुख्य
अधिकारी जुईसेफ ओरसी समेत अन्य लोगों को चार साल के लिए जेल भेज दिया। इधर भारत में
पूर्व वायु सेनाध्यक्ष एसपी त्यागी पर आरोप लगाए गए। उन पर जो आरोप लगाए गए वो साल
2005 से संबंधित थे। कहा गया कि 2005 में उन्होंने हेलीकॉप्टर की क्षमता या मानदंडों को कम कर दिया था।
यूँ तो वीवीआईपी चॉपर
बनाने वाली कंपनी फिनमेकेनिका ने अपना नाम बदल लिया है। ईडी के अधिकारियों के मुताबिक, कंपनी ने अपना नाम बदलकर लियोनार्डो रख लिया है।
हालाँकि हेलीकॉप्टर
के पैरामीटर्स में बदलाव करने का दौर सन 2003 भी बताया जाता है। फ़रवरी 14, 2013 के दिन हिंदुस्तान टाइम्स में छपी एक ख़बर की माने तो इस सौदे के टेंडर पैरामीटर
वाजपेयी सरकार के दौरान बदले गए थे। और यह दावा स्वयं एसपी त्यागी ने किया था। उस वक्त
त्यागी वायु सेनाध्यक्ष नहीं बने थे। त्यागी 2004 में वायु सेनाध्यक्ष बने तथा 2007 में सेवानिवृत्त हुए। दूसरी बात यह भी है कि ये सौदा 2010 में मूर्त रूप में
आया था। हालाँकि उससे पहले का दौर 2010 के मूर्त रूप को कितना छू गया होगा ये भी पेचीदा विषय ही है।
जो मूल सौदा था उसके
मुताबिक ये उड़न खटोला 6,000 मीटर की ऊंचाई तक की क्षमता वाला होना था, जबकि अगस्ता में ये क्षमता नहीं थी। आरोप
लगा कि एसपी त्यागी ने यह उड़ान क्षमता 4,500 मीटर कर दी थी या फिर करवा दी थी। अगस्ता मामला सभी जानते हैं और कमीशन वाली बात
भी जगजाहिर है। लिहाजा उसे दोहराने की आवश्यकता नहीं है।
इटली में भी एक अदालत
ने कथित गुनाहगारों को बेगुनाह घोषित कर दिया था। वहीं दूसरी अदालत ने निर्दोष साबित
हो चुके अभियुक्तों को गुनाहगार घोषित किया। कहा जा सकता है कि सीबीआई इटली में चले
मुकदमे और फ़ैसले पर ही आगे बढ़ी है।
पूर्व वायु सेनाध्यक्ष
सरीखे की गिरफ़्तारी सीबीआई जैसी संस्था ने कई तथ्यों या संदर्भों के चलते की होगी।
एक तरफ़ उनका बरी होना मुश्किल लगता है, दूसरी तरफ़ सीबीआई और राजनीति के इतिहास
के चलते यह नामुमकिन भी नहीं लगता। इन सब चीजों के साथ एसपी त्यागी के कथित सह्योगी
अपराधियों को ढूंढ कर उन्हें सज़ा दिलाने का काम भी सीबीआई के लिए गंभीर चुनौती होगा।
क्योंकि कंपनी चाहे किसी भी देश की हो, लेकिन पैसे कथित रूप भारत के अधिकारियों या
संभवत: नेताओं ने लिए होंगे।
सीधा कहा जा सकता है
कि मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार का सत्ता गवाने के बाद भी बदनुमा दागों से पीछा छूट
नहीं रहा। हालात यह है कि कांग्रेस भ्रष्टाचार का जमकर विरोध भी नहीं कर सकती, क्योंकि
पूर्व में किए गए कथित गुनाह वर्तमान में उसे आक्रामक बनने से रोक रहे हैं।
मनमोहन सिंह संचालित
पीएमओ का दो-दो मामलों में नाम आना, बड़े बड़े आँकड़ों के घोटालों की रिकॉर्ड
तोड़ सूची से लेकर अपने ही मंत्रियों या नेताओं का दाग़दार होना। कहा जाता था कि मनमोहन
सिंह कथित रूप से प्रमाणिक इंसान रहे हैं। लेकिन उनकी कथित प्रमाणिकता क्या इतनी कमज़ोर
रही कि उनकी पूरी की पूरी सरकार दाग़दार होती रही? दो मामलों में सीधा पीएमओ का जुड़ना भी उनकी कथित प्रमाणिकता को सवालों के घेरे
में ले रहा है।
वैसे हमारे यहाँ हर घोटाला या हर भ्रष्टाचार किसी के लिए सत्ता गँवाना या किसी
के लिए सत्ता पाना, इससे आगे कभी बढ़ नहीं पाता। हर समय दाग़दार सांसदों की सूची लोकसभा
में बढ़ती जा रही है! हर कोई भ्रष्टाचार
से लड़ने की बात करता है, लेकिन हर उस मामले
को अंतिम परिणाम तक पहुंचने का इंतज़ार है।
मामले लंबे खींच जाते हैं और हम नागरिकों की याददाश्त वैसे भी कमज़ोर है। पूर्व
घोटालों को अब कोई याद नहीं करता! आरोप-प्रत्यारोप का दौर एक निश्चित समयसीमा तक चलता है। समय ही हर मामले का एकमात्र
पारंपरिक समाधान है! हम सदैव राजनीतिक
इच्छाशक्ति पर आरोप लगाते हैं, किंतु कुछ सवालों को
अधूरा छोड़ देने की आदत हमें हमेशा बचा कर रख नहीं सकती।
(इनसाइड इंडिया, एम वाला)
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