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Notebandi after 50 Days : कथित नोटबंदी या नोटबदली के पचास दिन बाद की कहानियाँ


8 नवम्बर 2016 की रात 8 बजे राष्ट्र के नाम संबोधन में तत्कालीन प्रधानमंत्री ने 500 और 1000 के नोट अमान्य घोषित कर दिए। उसके बाद 30 नवम्बर तक का वक्त... उसे हमने दो संस्करणों में देखा।

एक संस्करण में हमने उस ऐतिहासिक फ़ैसले, उसके अच्छे असर, बुरे असर, आपाधापी, आशंकाएं, विवाद और ख़ुशी व ग़म के दौर को देखा। अन्य संस्करण में हमने आलोचनात्मक चर्चा भी की। उसके बाद 31 दिसंबर 2016 के दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री ने फिर एक बार राष्ट्र को संबोधित किया। हम वहीं से आगे बढ़ते हैं।

राष्ट्र के नाम फिर एक बार प्रधानमंत्री का संबोधन
31 दिसंबर 2016 के दिन तत्कालीन पीएम ने फिर एक बार राष्ट्र को संबोधित किया। इस दिन राष्ट्र के नाम संदेश में पीएम ने कुछ योजनाओं की घोषणा की। 43 मिनट लंबे अपने राष्ट्र के नाम संबोधन में पीएम ने प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत दो नयी हाउसिंग योजनाएं शुरू करने की घोषणा की। शहरों में नया घर बसाने के लिए 9 लाख तक के लोन पर ब्याज में 4 प्रतिशत तथा 12 लाख तक के लोन में 3 प्रतिशत ब्याज की छूट दी। गांवों में गरीब, मध्यम व निचले तबके के लिए 2 लाख तक के लोन में 3 प्रतिशत ब्याज की छूट दी। पीएम ने कहा कि पीएम आवास योजना के तहत गांवों में बनने वाले आवासों की संख्या में 33 फीसदी इज़ाफ़ा किया जाएगा। यानी कि हर साल 33 लाख नये घर बनेंगे। अपनी दूसरी महत्वपूर्ण घोषणा में उन्होंने कहा कि जिन किसानों ने जिला सहकारी बैंकों से या सहकारी मंडली से लोन लिए हुए हो उनके 60 दिन का ब्याज सरकार चुकाएगी। उन्होंने कहा कि नाबार्ड को पहले 21,000 करोड़ दिए गए हैं, अब उसे 20,000 करोड़ ज्यादा दिया जाएगा। नाबार्ड को जो घाटा होगा उसे सरकार उठाएगी। 60 दिनों तक का ब्याज सरकार किसानों के खातों में डाल देगी। घोषणा हुई कि किसानों के कार्ड को रुपे कार्ड में बदला जाएगा। रुपे कार्ड से किसान पैसे उठा सकेंगे तथा खरीद या बिक्री कर पाएंगे।

इसके अलावा छोटे, लघु व मध्यम व्यापारियों के लिए पीएम ने क्रेडीट गारंटी 1 करोड़ से बढ़ाकर 3 करोड़ कर दी। छोटे उद्योगों के लिए कैश क्रेडिट लिमिट 20 प्रतिशत से बढ़ाकर 25 प्रतिशत की गई। डिजिटल तरीकों से किए गए व्यवहारों के लिए वर्किंग कैपिटल लोन 20 से 30 प्रतिशत की गई। गर्भवती महिलाओं के लिए 6,000 की आर्थिक सहाय घोषित की गई। सीनियर सिटीजन की योजना में 7.50 लाख के डिपॉजिट पर ब्याज दर 8 प्रतिशत किया गया।

संक्षेप में कहे तो, राष्ट्र के नाम संबोधन में तत्कालीन पीएम ने किसानों, गर्भवती महिलाओं, वरिष्ठ नागरिकों, छोटे व्यापारी तथा गरीब तबके के लिए नयी छूट घोषित की।

50 दिन पहले के संबोधन और इस संबोधन में भिन्नताओं से लोगों ने उठाए सवाल
8 नवम्बर के दिन तत्कालीन पीएम ने नोट को अमान्य घोषित करते हुए जो चीजें कही थी या जो भरोसा दिलाया था उसका ज़िक्र 31 दिसंबर के संबोधन में ना होने से लोगों ने सवाल भी उठाए। 8 नवम्बर के दिन अपने संबोधन में पीएम ने नोट अमान्य घोषित करने के पीछे काला धन, आतंकवाद और भ्रष्टाचार पर काफी जोर दिया था। इसके उपरांत अपने उस जोशीले संबोधन में उन्होंने देश को कहा था कि 50 दिन बाद आप के सपनों का भारत होगा। लेकिन इन 50 दिनों मेंं जो चीजें हुई, जो सवाल उठे, आशंकाएं, कालाबाजारी का बढ़ना, कई नकारात्मक प्रभाव व संभावनाएं आदि चीजों का 31 दिसंबर के संबोधन में ज़िक्र नहीं होने से विरोधियों को तो मौका मिला ही, साथ ही जिन्होंने पिछले 50 दिनों से भरोसा रखा था उनके अरमान भी कमजोर से हुए।

साल के आखिरी दिन हुए संबोधन में पीएम ने भ्रष्टाचार, काला धन और आतंकवाद को लेकर देश में जो सवाल उठ रहे थे उस पर कोई ठोस बातें सामने नहीं रखी। कालाबाजारी और 50 दिनों के दौरान उठे ढेर सारे आर्थिक सवाल अनुत्तर ही रह गए। उस फैसले की गोपनीयता पर संदेह, देश में पकड़े जा रहे नये नोट, जाली नोट का मिलना, आतंकवादियों से नोट मिलना, आतंकवाद की घटनाएं, कालाबाजारी का निरंतर जारी रहना, भ्रष्टाचार के ऊपर सवाल, बड़े लोगों पर ढिलापन, काला धन, स्विस और पनामा के सवाल, अर्थतंत्र के सामने मुंह फाड़े खड़े हो चुके सवाल, बैंक संबंधित घटनाएं, नकद निकासी का मुद्दा, कई सारे सवाल लोगों के मन में थे। लेकिन किसी का जवाब नहीं मिला। लोगों ने कहा कि 8 नवम्बर के दिन जो भरोसा दिलाया गया था उस पर उठे सवालों के उत्तर तो नहीं मिले, लेकिन कैशलेस और डिजिटल की नयी योजनाएं घोषित करके सवालों को दरकिनार ज़रूर किया गया था। नोटबंदी को किन परिस्थितियों में लागू किया गया, उसे भ्रष्टाचार और काला धन के खिलाफ हथियार किन वजहों से माना गया, 50 दिनों की इस लड़ाई में देश को सचमुच कितनी कामयाबी मिली, लोगों को इतनी दिक्कतें क्यों उठानी पड़ी, बदतर इंतज़ाम के लिए कौन जिम्मेदार था, कतारों में लोगों की मौतें, बैंक इतने बड़े कथित फ्रॉड कैसे कर पाए, कुछ लोगों के पास लाखो-करोड़ों के नये नोट कैसे पहुंचे, इन 50 दिनों की सही समीक्षा क्या थी, अलग अलग आंकड़ों की सत्यता पर जो संदेह थे उन पर आखिर लोग क्या सच और क्या झूठ माने, बेनामी संपत्ति या राजस्व जैसे कई आंकड़े या बातें नदारद रहने से लोग इस संबोधन से नाराज ज़रूर नजर आए।

स्वाभाविक था कि विरोधी तो नाराज रहते ही, लेकिन ये निराशाएं उन लोगों की भी थी जो स्थायी रूप से विरोधी भी नहीं थे। कुछ भाजपाई मतदाताओं की तल्ख टिप्पणी यहां रखनी ज़रूरी है। ये कुछ ऐसे लोग हैं जिन्होंने भाजपा को ही वोट किया था लेकिन वो ट्विटर या फेसबुक जैसे प्लेटफॉर्म पर कुछ गलत चीजों की आलोचना करने से परहेज नहीं करते थे। यानी कि वो मंगलसूत्र पहने समर्थक नहीं थे। लोगों को छूट है कि वो इसे झूठ माने, लेकिन कुछ भाजपाई मतदाताओं ने ही निराश होकर व्यक्तिगत चर्चाओं में कहा कि दूसरा तो ठीक है लेकिन अब मन की बात की तरह राष्ट्र के नाम संदेश शुरू न कर दे। संबोधन के शुरुआती हिस्से में जब पीएम व्यक्तिगत या राजनीतिक बात कर रहे थे तब इन्होंने कहा था कि पादरीजी ने अभी शुरू किया है, काम की बात तो शायद बाद में होगी। कुछ ने कहा कि पीएम ने जो योजनाएं या घोषणाएं की हैं वो तो कोई और मंत्री या मंत्रालय के जरिये विशेष प्रेस कॉन्फरन्स बुलाकर भी की जा सकती थी, इसके लिए राष्ट्र के नाम संदेश जैसी महत्वपूर्ण परंपरा का मंच इस्तेमाल करने की ज़रूरत भी नहीं थी।

पीएम ने जो योजनाएं घोषित की उस पर भी उठ गए थे सवाल
राष्ट्र के नाम संबोधन में तत्कालीन पीएम ने जो योजनाएं घोषित की उस पर ही सवाल उठे। कहा गया कि पीएम की ये योजनाएं नये पैक में पुरानी चीजें ही थी। जैसे कि प्रधानमंत्री आवाज योजना एक तरह से इंदिरा आवास योजना का ही नया रूप था, जो एनडीए सरकार से पहले लाई गई थी। योजना में सरकार ने 2022 तक 2 करोड़ घर बनाने का वादा किया था। इसमें घर बनाने के लिए 6 लाख रुपये तक के लोन पर ब्याज में 6.5% की सब्सिडी मिलती थी। जिनकी आय सालाना 3 लाख रुपये हो, उन्हें 30 स्क्वायर मीटर और जिनकी आय 3 से 6 लाख रुपये की हो, उन्हें 60 स्क्वायर मीटर के घर मुहैया होते थे। योजना के तहत अप्रेल 2015 से दिसंबर 2016 में 6,716 घर बनाए गए थे। बाकी के 1,52,686 घर निर्माणाधीन थे और 5,58,229 घरों के लिए काम शुरू होना बाकी था। केंद्र ने योजना के लिए आवंटित किए गए 18,854 करोड़ रुपये में से अभी तक 4,275 करोड़ जारी किए थे।

किसान क्रेडिट कार्ड को रूपे कार्ड की तरह इस्तेमाल में लाने की बात नयी नहीं थी। 2012 से ही किसानों को किसान क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल किसी डेबिट कार्ड की तरह करने की इजाज़त थी। वहीं सरकार पहले से ही लघु और मध्यम उद्योगों के लिए क्रेडिट गांरटी फंड ट्रस्ट स्कीम के जरिए लोन्स देती है। यह योजना साल 2000 से चलाई जा रही थी और इसके जरिए 50 लाख रुपये से 1 करोड़ रुपये तक का लोन दिया जाता है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा ऐक्ट2013 में गर्भवती महिलाओं के लिए न्यून्तम 6 हज़ार रुपये देने का प्रावधान पहले ही किया जा चुका है। इसके अलावा इंदिरा गांधी मातृत्व सहयोग योजना भी 2013 में लाई गई थी।

अमान्य नोट का अब क्या होगा
500 व 1000 के अमान्य किए गए नोट 31 दिसंबर के दिन से सीधे आरबीआई में ही जमा कराए जा सकते थे। इन्हें आरबीआई की शाखाओं में 31 मार्च 2017 तक जमा करवाया जा सकता था। कहा गया कि जिनके पास 31 मार्च के बाद अमान्य किए गए नोट मिलेंगे उन्हें कम से कम 10 हज़ार का जुर्माना किया जाएगा। हालांकि इस नियम में पहले ही दिन से असमंजस सी परिस्थिति बनती नजर आई और बाद में सरकार ने 10 हज़ार जुर्माना वाला नियम भी जल्द लागू करने की बातें कही।

आरबीआई में फिर एक बार नियम का हुआ बवाल
साल के नये दिन लोगों को फिर एक बार नियम के असमंजस से रुबरु होना पड़ा। 8 नवम्बर 2016 के दिन से ही एक बड़े तबके में यही मान्यता थी कि 31 मार्च 2017 तक अपने पुराने नोट आरबीआई में जाकर बदले जा सकते हैं। लेकिन साल के पहले दिन से ही लोगों को फिर एक बार दिक्कतों का सामना करना पड़ा। आरबीआई की शाखाओं में पुराने नोट बदलने पहुंचे लोगों को ये सुनकर झटका लगा, जब उन्हें कहा गया कि 31 मार्च वाला नियम एनआरआई के लिए है। 50 दिन की कथित तपस्या के बाद लोगों को मिलनेवाला ये एक और तोहफा था। सरकार द्वारा जारी अध्यादेश के अनुसार अब आरबीआई के ऑफिसेज में वहीं व्यक्ति 500 और 1000 के नोट एक्सचेंज कर सकेगाजो यह साबित करेगा कि वह 9 नवंबर से लेकर 31 दिसंबर के बीच विदेश में था। जिसकी वजह से वह नोट एक्सचेंज नहीं कर पाया। इस अवधि में नोट एक्सचेंज करने की मात्रा की कोई लिमिट आरबीआई ने तय नहीं की थी। यानी जो व्यक्ति शर्तें पूरी करेगावह कितनी भी मात्रा में नोट एक्सचेंज कर सकेगा। इसी तरह जो व्यक्ति एनआरआई कैटेगरी में आता हैवह 30 जून 2017 तक पुराने 500 और 1000 के नोट आरबीआई के ऑफिसेज में एक्सचेंज कर सकेगा। हालांकि उसे भी यह साबित करना था कि वह 9 दिसंबर से लेकर 31 दिसंबर 2016 के बीच भारत में नहीं था। नोट एक्सचेंज करने की लिमिट एनआरआई पर फेमा नियमों के अनुसार लागू थी।

एटीएम निकासी की सीमा बढ़ाई गई
1 जनवरी 2017 से आरबीआई ने एटीएम से निकाले जाने वाली नकदी की सीमा 2,500 से बढ़ा कर 4,500 कर दी। हालांकि सप्ताह की निकासी सीमा में कोई बदलाव नहीं किया गया। वित्तमंत्री ने कहा कि निकासी की सीमा धीरे धीरे बढ़ाई जाएगी। 8 नवम्बर 2016 के बाद देश में ज्यादातर व्हाइट लेबल एटीएम में पैसों की कमी हो गई थी, क्योंकि ज्यादातर ऑपरेटरों को प्रायोजक बैंकों से कैश सोर्स करने में दिक्कत हो रही थी। वैसे निकासी की सीमा ज़रूर बढ़ा दी गई, लेकिन कैश की कमी कुछ दिनों तक बरकरार ज़रूर रही।

साल के पहले ही दिन ईंधन दाम व गैस सिलेंडर के दामों को लेकर मचा बवाल
8 नवम्बर के दिन पीएम का सपनों के भारत का भरोसा दिलाना, 50 दिनों की लोगों की दिक्कतें और मशक्कत, पीएम द्वारा 50 दिन देश से मांगना, 31 दिसंबर के दिन देश को संबोधन करना तथा सवालों को दरकिनार करके कुछ योजनाएं घोषित करना... और इसके बाद 1 जनवरी 2017 के दिन पेट्रोल तथा डीजल के दाम बढ़ गए। पेट्रोल के दाम प्रति लीटर 1 रुपया 29 पैसे तथा डीजल में प्रति लीटर 97 पैसे की बढ़ोतरी हो गई। वहीं सब्सिडी वाले गैस सिलेंडर के दाम 2 रुपये तथा बिना सब्सिडी वाले सिलेंडर में 1 रुपये की बढ़ोतरी हुई। जेट फ्युअल में भी 8.6 प्रतिशत की बढ़ोतरी की गई। साल के पहले ही दिन इस तोहफे ने काफी बवाल मचाया। सोशल मीडिया पर सरकार पर काफी तंज कसे गए। सपनों के भारत तथा तत्कालीन पीएम द्वारा दिलाए गए अन्य आश्वासनों को लेकर लोग गुस्से के साथ अपनी प्रतिक्रियाएं देते दिखाई दिए।

एसबीआई तथा आईडीबीआई जैसे बैंकों ने ब्याज दरें कम की
1 जनवरी 2017 के दिन स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने फंड आधारित लोन का ब्याज 8.90 से घटाकर 8 प्रतिशत कर दिया। एसबीआई ने बताया कि पिछले 2 सालों में ब्याज दरें 2 प्रतिशत तक कम की गई है। आईडीबीआई ने तथा स्टेट बैंक ऑफ त्रावनकोर ने भी एमसीएलआर रेट में 30 से 60 बेसिस पोइन्ट कम करने की घोषणा की। आईसीआईसीआई बैंक ने ब्याज दरों में 0.70 फीसदी की कटौती की। इसके अलावा कोटक महिन्द्रा बैंक, देना बैंक, बंधन बैंक, आंध्रा बैंक और ओरियन्टल बैंक ऑफ कॉमर्स ने अपनी एमसीएलआर में कटौती की। इससे आम लोगों के लिए होम लोन, कार लोन तथा अन्य कर्ज़ सस्ते होने का रास्ता खुल गया। हालांकि एमसीएलआर और घरैलु लोन के बीच कई सारी चीजें थी, जिस पर कुछ सवाल भी उठे।

एटीएम से कैश निकालने की सीमा फिर बढ़ी, अन्य नियंत्रण बरकरार
16 जनवरी 2017 के दिन आरबीआई ने एटीएम से नकद निकासी की सीमा बढ़ा दी और कहा कि अब बचत खाते से 10,000 रुपये निकाले जा सकेंगे। चालू खातों के लिए हफ्ते में निकासी की सीमा 50 हज़ार रुपये से बढ़ाकर एक लाख रुपये कर दी गई। हालांकि अन्य नियंत्रण फिलहाल आरबीआई ने बरकरार रखे। शादी के लिए ढाई लाख वाली शर्तों में कोई बदलाव नहीं हुआ। बचत खातों में सप्ताह की 24,000 की सीमा में कोई बदलाव नहीं किया गया।

जनधन खातों से निकासी के आंकड़े सामने आए
कथित नोटबंदी के पचास दिन के दौरान जनधन खातें काफी सुर्खियों में रहे। इन खातों में करोड़ों रुपये जमा होने की बातें कही गई। वित्तमंत्रालय के मुताबिक 7 दिसंबर 2016 तक जनधन खातों में 74,610 करोड़ रुपये जमा हुए थे। उसके बाद इन खातों में नकदी जमा होना कम हो गया था। जनधन खातों से संबंधित विवाद देखते हुए इन खातों से निकासी की सीमा भी तय की गई थी। लेकिन 15 दिसंबर 2016 के बाद इन खातों में से 3,285 करोड़ रुपये निकाले जाने का आंकड़ा सामने आया। बाद में ये आंकड़ा बढ़ने की संभावना थी। कुछ रिपोर्ट के मुताबिक ये आंकड़ा 5,000 करोड़ तक जा पहुंचा था।

आरबीआई ने बैंकों को 40 फीसदी नोट ग्राम्य इलाकों के लिए भेजने के निर्देश दिए
3 जनवरी के दिन आरबीआई ने बैंकों को निर्देश दिए कि वे 40 फीसदी नोट ग्राम्य इलाकों की शाखाओं में भेजे। अपने बयान में आरबीआई ने कहा कि ग्राम्य इलाकों में जितने नोट भेजे जा रहे हैं उससे वहां की ज़रूरतें पूरी नहीं हो रही। यानी कि आरबीआई ने 50 दिनों बाद गोलमोल तरीके से स्वीकार किया कि ग्राम्य इलाकों में नोट की कमी हो रही है। वैसे ये याद रखना होगा कि भारत में ग्राम्य इलाके ही ज्यादा है।

जनवरी के मध्य तक कतारें कम नहीं हुई
कथित नोटबंदी के पचास दिनों की पीएम की मियाद खत्म होने के बाद भी बैंकों पर लगी कतारों में ज्यादा कमी नहीं आई। एटीएम में नकदी की कमी और खातों से निकासी की सीमा के चलते मंझर ज्यादा नहीं बदले। 8 नवम्बर 2016 के दिन रात को पीएम के भाषण तथा उसके वायदे व भरोसे के ऊपर लोगों ने काफी तंज कसे। हर सुबह लोगों का कतारों में खड़ा रहना जारी रहा। ये मंजर जनवरी के मध्य तक जारी रहा, उसके बाद कतारों में तेजी से कमी आने लगी।

बिना गांधीजी की तस्वीर के नोट बैंकों ने ही उपभोक्ताओं को थमा दिए
ये घटना वाकई व्यवस्था व गंभीरता को लेकर आरबीआई तथा बैंकों पर बड़ा सवालिया निशान थी। 4 जनवरी 2017 के दिन यह मामला सामने आया। इस बार बैंक ने किसान को ऐसे नोट थमा दिए जिसमें गांधीजी ही गायब थे!!! मध्यप्रदेश के श्योपुर जिले की बड़ोदा तहसील की स्टेट बैंक ऑफ इंडिया शाखा ने दो किसानों को दो हज़ार के ऐसे नोट बांट दिए, जिसमें तस्वीर नदारद थी! जब इन किसानों ने बैंक के बाहर आकर देखा तो वे खुद हैरान रह गए। पास खड़े लोग भी समझ नहीं पाए कि आरबीआई जैसा संस्थान ऐसे नोट कैसे छाप सकता है। जब यह लोग वापस बैंक में गए तो बैंक अधिकारियों ने पूछताछ के बाद नोट वापस ले लिए। इन्होंने इसे प्रिंटिंग मिस्टेक बताया। आरबीआई ने तो बीच में करोड़ों के गलत नोट छाप दिए थे। उसके बाद ऐसे गलत नोट छाप दिए। यहां ये ज़िक्र करना होगा कि अगर गलती से भी गलत नोट लेकर कोई बैंक में जाता तो नोट तो जब्त कर लिए जाते, ऊपर से पुलिस का चक्कर भी झेलना पड़ता। यहां तो आरबीआई की गलती लोगों को ही भुगतनी पड़ती होगी, क्योंकि जनता के पैसों से ही नोटों की छपाई होती है।

राष्ट्रपति ने कथित नोटबंदी पर पहली बार दिया भाषण
5 जनवरी 2017 के दिन तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने पहली बार कथित नोटबंदी पर अपनी टिप्पणियां की। उन्होंने कहा कि नोटबंदी की वजह से लोगों को परेशानियां हुई है तथा विशेषतगरीब तबके को दिक्कतों का सामना करना पड़ा है। उन्होंने सांकेतिक रूप से कहा कि नोटबंदी की वजह से अर्थतंत्र भी प्रभावित हुआ है और देश में अस्थायी मंदी की संभावनाएं हैं। राष्ट्रपति देश के राज्यपालों तथा उप राज्यपालों को वीडियो कॉन्फरन्सिंग के जरिए संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि, नोटबंदी से काला धन और भ्रष्टाचार की लड़ाई को बल मिला है, साथ में इससे गरीब तबके को कई मुश्किलियों का सामना करना पड़ा है। नोटबंदी से इकोनॉमी स्लो हुई है और इससे अस्थायी मंदी आ सकती है। मुखर्जी ने कहा कि, नोटबंदी से लंबे दौर का फायदा ज़रूर हो सकता है, लेकिन फायदा पहुंचे उसका इंतज़ार कुछ तबके नहीं कर सकते। गरीब लोग लंबा इंतज़ार नहीं कर सकते। तत्काल प्रभावी लोगों को फायदा पहुंचाना ज़रूरी है। हालांकि बजट से पहले अपने अभिभाषण में राष्ट्रपति ने औपचारिक तौर पर नोटबंदी को साहसी फैसला बताया और इसे सरकार की सिद्धि के रूप में रेखांकित किया। 

कितने नोट वापिस आए, भ्रमित करने वाले आंकड़े, वित्तमंत्री का अप्रत्याशित उत्तर और आंकड़ों का इंतज़ार
कथित नोटबंदी के बाद आरबीआई के पास कितने नोट वापस आए उसके आंकड़े अलग अलग माध्यमों से ज़रूर आए। कभी आरबीआई ने औपचारिक आंकड़े दिए, कभी सरकार संबंधित मंत्रियों या विभागों ने आंकड़े दिए। लेकिन आंकड़े भ्रमित होते चले गए। आखिरकार दरकार थी आधिकारिक उत्तर की। लेकिन वो भी वक्त रहते नहीं मिला। 6 जनवरी 2017 के दिन वित्तमंत्री को नोट वापसी का आंकड़ा पूछा गया। उन्होंने चौंकाने वाला उत्तर दे दिया कि, कितने नोट वापिस आए वो मुझे नहीं पता, ये काम आरबीआई का है। बताइए, अब तक हर छोटी-मोटी चीजों का सर्वकालीन महान दावा करने वाले सरकार के मंत्री अब ये कहते नजर आए कि मुझे नहीं पता!!! हो सकता है कि शायद रक्षा मंत्रालय को पता हो!!! क्योंकि हमारे यहां अर्थतंत्र के ऊपर रक्षामंत्री भी बयान दे देते है और सरहद के ऊपर वित्तमंत्री।

कथित नोटबंदी के वक्त सरकारी की तरफ से कहा गया था कि देश में 15.4 लाख करोड़ के 500 व 1000 के नोट है। सरकार की ओर से बयान भी आए थे कि 5 लाख करोड़ के नोट रद्द हो जाएंगे। यानी कि इतना आंकड़ा काला धन का होगा ऐसा अंदाज स्वयं सरकार ने देश को दिया था। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक, 30 दिसंबर के बाद बैंकों में 97 प्रतिशत नोट वापिस आ चुके थे। अन्य अखबारों में यह आंकड़ा 95 प्रतिशत का भी था। ब्लूमबर्ग ने दावा किया कि उन्होंने ये आंकड़ा आरबीआई से आरटीआई के जरिए प्राप्त किया हुआ है। पत्रकारों ने वित्तमंत्री से पूछा तो वित्तमंत्री ने जो जवाब दिया वो ऊपर लिखा है। आरबीआई ने कहा कि गिनती हो रही है।

कई संदेह उत्पन्न हुए। सबसे पहले तो यह कहा गया कि सरकार ने बढ़चढ़ कर जो दावे किए थे उसमें वो गलत साबित हुई है। देश में काला धन न के बराबर है या उसे किसी तरह से सेट कर दिया गया है। और इसीलिए सरकार आरबीआई के ऊपर ठिकरा फोड़ रही है। यानी कि सरकार गलत साबित हुई थी और इसीलिए आंकड़े घोषित करने में दैरी हो रही है, कुछ कुछ ऐसे ही प्रतिघात हर तबके से आने लगे।

जीडीपी में गिरावट के संकेतः विकास दर का अनुमान 7.1 हुआ
सरकार ने वित्त वर्ष 2017 में जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) ग्रोथ के अनुमान के आंकड़े जारी किए। जीडीपी वृद्धि दर 7.1 फीसदी रहने का अनुमान दिया गया। जबकि पिछले वित्त वर्ष में यह 7.6 फीसदी पर था। 7.1 फीसदी विकास दर का अनुमान पिछले 3 साल का निम्न स्तर था। हालांकि गौरतलब है कि जीडीपी ग्रोथ का अनुमान कारोबारी साल के पहले 7 महीने के औद्योगिक उत्पादन के आधार पर लगाया गयायानी नोटबंदी के असर को इसमें शामिल नहीं किया गया था।

कथित नोटबंदी के बाद जहां कई अर्थशास्त्री और रेटिंग फर्म्स तथा पूर्व प्रधानमंत्री ने भारत की जीडीपी गिरने का अनुमान लगाया था, वहीं ये आंकड़े लोगों की चिंताएं बढ़ा गए। क्योंकि नोटबंदी के असर को शामिल किए बिना ही देश की जीडीपी ग्रोथ में गिरावट का अनुमान आया था। वहीं एचएसबीसी की एक रिपोर्ट में भी बताया गया कि नोटबंदी के बाद मैन्युफैक्चरिंग और सर्विस सेक्टर में सुस्ती से जीडीपी दर पर नकारात्मक असर देखा जाएगा।

रिजर्व बैंक का बैंकों को आदेश- 2 लाख से ज्यादा के व्यवहारों की जानकारी दे
आरबीआई ने आदेश दिया कि बैंक 2 लाख से ज्यादा के व्यवहारो की जानकारी दे। 8 नवम्बर 2016 के बाद आरबीआई ने बैंकों को कहा था कि बचत खातों में 2.5 लाख और चालू खातों में 12.5 लाख या उससे ज्यादा के व्यवहारों की जानकारी आरबीआई को दी जाए। लेकिन बाद में आरबीआई ने कुछ अंदेशों के चलते बैंकों के लिए नया आदेश जारी किया।

वहीं, एक नोटिफिकेशन के मुताबिक आरबीआई ने बैंकों से 1 अप्रैल, 2016 से 9 नवम्बर, 2016 के दौरान जमा की गई कैश की भी जानकारी मांगी। इसका मतलब साफ है कि जिन लोगों ने रकम जमा करवाई होगी उनके नाम सरकार के पास आ जाएंगे। लेकिन जानकारों की माने तो, इसके साथ दूसरी चीज़ यह भी होगी कि आयकर जांच के दायरे में आ जाने की वजह से इन लोगों की जानकारी आरटीआई के जरिए सार्वजनिक नहीं की जा सकेगी।

नोटबंदी ने आतंकवाद पर लगाया लगामकश्मीर में 60 प्रतिशत घटी हिंसा
50 दिन बाद यह शायद पहली अच्छी खबर थी। हालांकि दाउद की संपत्तियां जब्त करने की संदेहात्मक खबरें, कैशलेस गांवों की घोषणाएं और जमीनी सच्चाई के बीच लोगों को इस खबर पर आसानी से अब भरोसा नहीं हो रहा था। लेकिन खबरें यही आई कि घाटी समेत देश के दूसरें हिस्सों में आतंकवाद की घटनाओं में गिरावट दर्ज की गई है। इकोनॉमिक टाइम्स में छपी खबर के मुताबिक, नोटबंदी के फैसले का राष्ट्रीय सुरक्षा पर पड़ने वाले असर की जांच कर रही जांच एजेंसी ने अपनी रिपोर्ट में यह जानकारी केंद्र सरकार के साथ साझा की। रिपोर्ट के मुताबिक नोटबंदी ने आंतकवाद व नक्सलवाद की कमर तोड़ कर रख दी थी। नोटबंदी के बाद आतंकियों को मिलने बाले पैसे बंद हो गए थेजिसके बाद घाटी में पत्थरबाजी और आतंकवादी हिंसा से जुड़ी घटनाओं में 60 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। इसके साथ ही रिपोर्ट में कहा गया कि विदेशों से हवाला के जरिए भेजे जाने वाले पैसों में भी 50 प्रतिशत की कमी आई। वैसे इस रिपोर्ट पर विशेषज्ञों को यकीन नहीं हो रहा था, और उनका यह यकीन सच साबित हुआ जब कश्मीर की जमीनी रपटें छपने लगी।

कश्मीर हिंसा में कमी की खबर और कुछ बड़ी आतंकी वारदातों का दौर
नोटबंदी के बाद कश्मीर हिंसा में 60 प्रतिशत कमी की खबरें आई उसके बाद ही बड़ा आतंकी हमला हो गया। हालांकि 8 नवम्बर 2016 के बाद भी कश्मीर तथा अन्य जगहो पर आतंकी घटनाएं हुई थी। छिटपुट हो रही आतंकी वारदातें कितनी हुई उसकी सटीक जानकारी मिलना मुश्किल सा है। लेकिन 8 नवम्बर के बाद जो आतंकी हमलों की खबरें राष्ट्रीय अखबारों में भी छपी थी उसकी जानकारी इस प्रकार है। 19 नवम्बर के दिन असम में सेना पर आतंकवादी हमला हुआ, जिसमें 3 जवान शहीद हो गए। 22 नवम्बर के दिन छत्तीसगढ में सीआरपीएफ पर हमला हुआ, जिसमें 1 बड़े अधिकारी शहीद हो गए। 25 नवम्बर के दिन कुलगांव में पुलिस पार्टी पर हमला हुआ, जिसमें 2 जवान शहीद हो गए। इसी दिन बांदीपुरा में भी एक आतंकी हमला हुआ, जिसमें एक जवान शहीद हुआ। 26 नवम्बर के दिन कुपवाडा में बीएसएफ काफिले पर आतंकियों ने हमला किया। 29 नवम्बर के दिन नगरोटा आर्मी कैंप पर बड़ा आतंकी हमला हो गया। इसमें 4 जवान शहीद हो गए। यहां बंधक स्थिति भी बनी, जिसे वक्त रहते आर्मी ने विफल कर दिया। 3 दिसंबर के दिन अरुणाचल में असम राइफल्स पर हमला हुआ और 3 जवान शहीद हुए। जेएंडके बैंक से एक माह में तीन तीन बार आतंकियों ने लूंट की। 15 दिसंबर के दिन मणिपुर में पुलिस काफिले पर हमला हुआ, जिसमें 4 जवान मारे गए। 17 दिसंबर के दिन पंपोर में बड़ा आतंकी हमला हुआ। इस हमले में 3 जवान शहीद हो गए। ये सारे वो आतंकी हमले थे जो राष्ट्रीय अख़बार तक में आए। आतंकवाद में कमी की रिपोर्ट आने के एकाध-दो दिन बाद ही 9 जनवरी 2017 के दिन जम्मू कश्मीर के अखनूर से आतंकी हमले की खबर आई। नियंत्रण रेखा के समीप स्‍थित सेना के इंजीनियरिंग फोर्स कैंप पर आतंकी हमला हुआ। हमले में तीन लोगों की मौत हुई।

अलग अलग बयानों ने सरकार की विश्वसनीयता पर उठाए सवाल
8 नवम्बर 2016 के दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री द्वारा नोट बदलने को लेकर दी गई 30 दिसंबर की समयसीमा तथा उसके बाद 31 मार्च वाली समयसीमा और उसके सामने जमीनी तस्वीरों ने स्वयं पीएम के बयानों की विश्वसनीयता पर ही सवाल उठा दिए थे। लोगों ने इसे लेकर काफी तंज कसे और अपना गुस्सा जाहिर किया। वहीं सरकार के मंत्री या सरकार से जुड़े अन्य लोगों के बयान व आरबीआई के बयानों के विरोधाभास ने भी मामले को पेचीदा बनाए रखा।

सरकार की तरफ से दावा किया गया था कि नोटबंदी का फैसला 8 नवम्बर के दिन ही लिया गया था। उसके विरुद्ध 7 जनवरी 2017 के दिन भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी से कहा कि, शासन संभालते ही नोटबंदी की तैयारियां शुरू कर दी गई थी। उन्होंने कहा कि, “इसी कारण जनधन खाते खोले गए थे। उन्होंने एक तरीके से कह दिया कि नोटबंदी की तैयारियां ढाई साल से चल रही थी!!! वहीं तत्कालीन पीएम राष्ट्र के नाम संदेश में इसे अतिगुप्त प्रक्रिया बता चुके थे!!! उनके इस दावे पर पहले से ही सवाल उठ खड़े हुए थे। वहीं, तत्कालीन वित्तमंत्री अरुण जेटली ने 16 दिसंबर 2016 के दिन बयान दिया था कि, 8 नवम्बर के दिन से पहले नोटबंदी पर कोई विचार नहीं किया गया था। उन्होंने कहा था कि, उस दिन जो फैसला लिया गया वो आरबीआई के प्रस्ताव के बाद लिया गया था और उस दिन से पहले काला धन पर सरकार ने कोई आधिकारिक आकलन नहीं किया था। 24 दिसंबर 2016 के दिन आरबीआई ने कहा था कि, 8 नवम्बर के दिन ही नोटबंदी का प्रस्ताव भेजा गया था, जिसके बाद ही नोटबंदी की गई थी। वहीं कुछ बयानों में यह भी कहा गया कि नये नोट छापने की तैयारियां छह महीनों से चल रही थी!!!

सरकार की तरफ से अलग अलग माध्यम द्वारा अब तक दावे आते रहे थे कि नोटबंदी का प्रस्ताव आरबीआई ने दिया, 8 नवम्बर को फैसला हुआ। लेकिन इस दावे को खुद सरकार के ही मंत्री या अन्य बड़े नेता अपने बयानों से ही संदेह के घेरे में ला चुके थे। जो ऊपर के पेरा में हमने देखा। नोटबंदी का फैसला किसका था उस पर दिनों तक चूहे-बिल्ली का खेल चलता रहा।

वहीं, जनवरी में इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के मुताबिक 22 दिसंबर को आरबीआई ने सात पन्नों की एक रिपोर्ट में कहा था कि, सरकार ने 7 नवंबर को आरबीआई को सलाह दी थी कि जाली नोटआतंकियों की फंडिंग और काला धन की समस्‍याओं से निपटने के लिए आरबीआई का सेंट्रल बोर्ड 500 और 1000 के नोटों की कानूनी वैधता को वापस लेने पर विचार कर सकता है। और उसके बाद आरबीआई सेंट्रल बोर्ड की बैठक हुई और सरकारी सलाह पर मुहर लगा दी। यानी कि इसमें आरबीआई ने सरकार की तरफ से सलाह मिलने के बाद मुहर लगाई थी। आरबीआई का कहना था कि सरकार की ओर से प्रस्ताव आया था।

जबकि केंद्रीय ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल ने राज्‍यसभा में नोटबंदी पर बहस के दौरान कहा था कि नोटबंदी का निर्णय आरबीआई बोर्ड ने लिया था। उन्‍होंने कहा था कि, “रिजर्व बैंक के बोर्ड ने यह निर्णय लिया। इसको सरकार के पास भेजा और सरकार ने इस निर्णय की सराहना करते हुएकैबिनेट ने इसे मंजूरी दी कि पांच सौ और हज़ार के पुराने नोटों को रद किया जाए। यानी कि इस बयान में कैबिनेट ने मंजुरी दी थी।

हालांकि तमाम बयान अधूरे थे और अपने अपने हिस्से की कहानियां बयां करते थे। यानी कि बयानों के पेंच में चीजें भ्रमित होती रही। हो सकता है कि दोनों सही हो। लेकिन आधे-अधूरे बयान से एक दूसरे पर जवाबदेही डालने का खेल निश्चित रूप से कुछ दिनों तक तो चलता ही रहा।

वहीं 50 दिनों के बाद सरकार बता रही थी कि अर्थतंत्र में सुघार हो रहा है, जबकि कई अर्थशास्त्री, कई संस्थाएं इससे अलग मत पेश कर रहे थे। मूडीज द्वारा रेटिंग सुधारने से इनकार कर देना अर्थतंत्र में सुधार के दावे पर बड़ा प्रश्नार्थ चिह्न भी था।

कुल मिलाकर कोई बयान एक दूसरे के साथ जुड़ता हुआ दिखाई नहीं दे रहा था। हां, उसे किसी न किसी तरीके से जबरन या तार्किक रूप से जोड़ा ज़रूर जा सकता है। नियमों, पेंच आदि में फंसाकर सारे बयानों को नेता एक दूसरे से ज़रूर जोड़ देंगे। लेकिन पहली नजर में तो सारे बयान लोगों को भ्रमित ही कर गए। क्योंकि, सभी का सिरा एक दूसरे से मेल नहीं खाता था।

इंडियन एक्सप्रेस को आरटीआई के जरिए मिली ये जानकारी
इंडियन एक्सप्रेस द्वारा डाली गई आरटीआई के जवाब में आरबीआई ने कहा कि, 19 मई 2016 के दिन 2000 के नोट छापने की इजाज़त दी गई थी। लेकिन तब भी 500-1000 के नोट बंद करने का कोई प्रस्ताव नहीं रखा गया था। मई, जून या अगस्त 2016 के बोर्ड मिटींग में भी इस विषय की चर्चा नहीं की गई थी। अख़बार ने आरटीआई के जरिए यह भी पूछा कि सितम्बर 2016 में रघुराम राजन सेवानिवृत्त हुए तब उन्होंने सरकार को 500 के नोट रद्द नहीं करने के लिए पत्र लिखा था या नहींहालांकि आरबीआई ने इसका उत्तर देने से इनकार कर दिया। 

आरटीआई में आरबीआई का चौंकाने वाला उत्तर- जवाब देंगे तो जान जाएगी
ब्लूमबर्ग न्यूज़ ने 8 दिसंबर से 2 जनवरी के बीच आरबीआई को आरटीआई के जरिए 14 सवाल पूछे। आरबीआई ने 11 जनवरी तक इनमें से 5 सवालों के जवाब दिए। इन पांच सवालों के उत्तर देते हुए आरबीआई ने कहा कि, बोर्ड ने 8 नवम्बर से पहले नोटबंदी की चर्चा नहीं की थी। लेकिन अन्य सवालों के जवाब देने से आरबीआई ने इनकार कर दिया। आरबीआई ने कहा कि, “इससे राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा है। चौंकाने वाला जवाब देते हुए आरबीआई ने यहां तक कहा कि, जवाब देंगे तो जान को खतरा होगा, जानकारी देने वाले की जिंदगी खतरे में आ सकती है। देश की सुरक्षा, जिंदगी पर खतरा से लेकर सार्वभौमत्व पर बुरा प्रभाव तक के तर्क आरबीआई ने दिए।

कितने नोट जमा हुए हमें नहीं पता- आरबीआई
ब्लूमबर्ग को ऊपर के संदर्भ में ही चर्चा करे तो एक जवाब यह भी मिला था कि, रद्द किए गए कितने नोट जमा हुए वो हमें नहीं पता। बताइए, आरबीआई जैसा संस्थान, जिसका काम ही यही है, उसने कहा कि कितने नोट जमा हुए वो उन्हें नहीं पता है। ऊपर से दूसरे अखबारों में कितने नोट जमा हुए उसके संभवित आंकड़े भी आ रहे थे। यानी कि इस असमंजस में आवाम के लिए भ्रमित होने की अवस्था निश्चित थी। 

कितने नोट छापे गए उसकी जानकारी नहीं दी जा सकती- आरबीआई
मुंबई स्थित आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली को आरटीआई के जरिए मिले एक जवाब में आरबीआई ने बताया कि, 10 से लेकर 2000 के कितने नोट छापे गए उसका आंकड़ा शेयर नहीं किया जा सकता। आरबीआई ने आरटीआई के नियम का हवाला देते हुए यह जानकारी साझा करने से इनकार किया। कहा गया था कि इसकी जानकारी वर्तमान में साझा नहीं की जा सकती। आरटीआई में आरबीआई से नोटबंदी के बाद के पहले 20 दिनों की जानकारी मांगी गई थी। 

आरटीआई में आरबीआई का जवाब- सहकारी बैंकों की अनियमितता की उन्हें नहीं है जानकारी
अलग अलग आरटीआई में आरबीआई जिस तरीके से उत्तर दे रहा था, आरबीआई की साख पर ही सवाल उठा। कितने नोट छापे गए नहीं पता, कितने वापिस आए नहीं पता, किसने फैसला लिया नहीं पता, किन परिस्थितियों में फैसला लिया गया नहीं पता और फिर हर नहीं पता वाले उत्तर के बाद कुछ दिनों पश्चात कोई और नया खुलासा, जिसमें आरबीआई अपने तौर पर हर अंदाजों को सामने रख देता था।

अनिल गलगली ने जो आरटीआई की थी उसमें उन्हें सहकारी बैंकों के एक सवाल के बदले में यही जवाब मिला। अनिल ने आरबीआई से सहकारी बैंकों में कथित रूप से जो धांधलियां हुई उसके बारे में जानकारी मांगी थी। लेकिन उन्हें जवाब मिला कि रिजर्व बैंक को अब तक अनियमितता के बारे में जानकारी उपलब्ध नहीं है। इसके साथ ही उन्होंने यह भी जानकारी मांगी थी कि जिन बैंकों में अनियमितता उजागर हुई है उनके खिलाफ की गई कार्रवाई का विस्तृत ब्यौरा दिया जाए। गलगली के इस सवाल के जवाब में केंद्रीय जन सूचना अधिकारी ए.जी.रे ने कहा कि, राज्य एवं जिला सहकारी बैंकों के बारे में मांगी गई जानकारी उनके पास उपलब्ध नहीं हैजबकि शहरी सहकारी बैंकों से संबंधित जानकारी दूसरे विभाग द्वारा दी जाएगी।

आरबीआई का चौंकाने वाला खुलासा- बैंकों में कितने जाली नोट जमा हुए कोई जानकारी नहीं है
मुंबई के आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली द्वारा की गई आरटीआई के उत्तर में आरबीआई ने यह चौंकाने वाला उत्तर दिया। गलगली का सवाल था कि नोटबंदी की घोषणा होने के बाद से 10 दिसंबर 2016 तक बैंकों के पास 500 और 1000 के कितने जाली नोट आए। आरबीआई के मुद्रा प्रबंधन विभाग ने जवाब दिया कि, बैंक द्वारा ऐसा कोई रेकर्ड नहीं रखा गया है और इसीलिए उत्तर में कोई जानकारी नहीं दी जा सकती। आरटीआई द्वारा एक के बाद दिए जा रहे उत्तरों ने आरबीआई जैसी संस्था को देश के लोगों के बीच मजाक का केन्द्र बना कर रख दिया। ये वाकई गैरजिम्मेदाराना उत्तर था। इसे गैरजिम्मेदारी मानी जाए या कुछ और ये आप पर निर्भर है। नकली नोट की समस्या खत्म करने का दावा सरकारी था, लेकिन आरबीआई कह रहा था कि उनके पास ऐसा कोई आंकड़ा मौजूद नहीं है कि जिससे नकली नोट के बारे में जानकारी मिल सके!!!

नये नोट के डिजाइन मई 2016 में हो गए थे मंजूर- आरबीआई ने आरटीआई में दिया जवाब
मुंबई के कार्यकर्ता जितेंद्र गाडगे के आरटीआई आवेदन के जवाब में केंद्रीय बैंक ने यह जानकारी दी थी। पूछे गए सवाल के सामने आरबीआई ने कहा था कि, बैंक के केंद्रीय बोर्ड ने 500 रुपये और 2000 रुपये के नए नोट के डिजाइन को 19 मई2016 को हुई अपनी बैठक में मंजूरी दी थी।

पीएमओ से लेकर आरबीआई तक ने मंत्रियों से संबंधित जानकारी देने में हाथ खड़े कर दिए
आरटीआई एक्टिविस्ट जगदीप छोकर और वेंकटेश नायक ने 24 दिसंबर को प्रधानमंत्री के उस बयान को आधार बनाकर जानकारी मांगी थी, जो उन्होंने 30 नवंबर को दिया था। नरेंद्र मोदी ने कहा था कि भाजपा के सभी सांसद और मंत्री 8 नवंबर से लेकर 31 दिसंबर 2016 तक का बैंक ट्रांजेक्शन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को सौंपे। आरटीआई के जवाब में प्रधानमंत्री कार्यालय ने 20 जनवरी 2017 को जवाब दिया कि, इससे संबंधित कोई भी जानकारी पीएमओ के पास नहीं है। आरटीआई एक्टिविस्टों ने अपनी बात की पुष्टि के लिए आवेदन के साथ एक अंग्रेजी अख़बार की क्लिप भी संलग्न की थी। जानकारी न देने का सिलसिला यहीं नहीं रुका। वेंकटेश नायक ने आरबीआई में 22 दिसंबर को एक आरटीआई आवेदन में जिलेवार करेंसी चेस्ट से संबंधित जानकारी मांगी थी। लेकिन आरबीआई ने 28 जनवरी 2017 को आरटीआई की धारा 8 (1)(अ) का हवाला देकर जानकारी देने से मना कर दिया। वेंकटेश ने कहा कि इस धारा के तहत विदेशों से संबंधदेश की वैज्ञानिक आधार पर जुड़ी जानकारीदेश की सुरक्षासुरक्षा एजेंसियों से संबंधित होने पर जानकारी नहीं दी जाती है। लेकिन करेंसी चेस्ट की जानकारी न देने में इनमें से किस बिंदु को आधार बनाया गया है यह जनसूचना अधिकारी ने स्पष्ट नहीं किया और जानकारी देने से इनकार कर दिया। गौरतलब है कि सभी जिलों में करेंसी चेस्ट होता हैजहां से सभी बैंकों के पास करेंसी पहुंचाई जाती है। पूरे देश में 3,615 करेंसी चेस्ट हैं।

आरबीआई का कथित सर्वे
गुजरात के स्थानिक अख़बार की माने तो आरबीआई ने अहमदाबाद शहर में चुपके चुपके एक सर्वे करवाया। जिसमें आरबीआई ने चार पन्नों वाले एक फोर्म में 30 सवाल पूछे। जिसमें लोगों से पूछा गया था कि नोटबंदी का फायदा हुआ या नहींअख़बार ने दावा किया ये सर्वे बहुत ही गुपचुप किया गया, जिसमें आम आदमी से लेकर छोटे व्यापारियों से रायशुमारी की गई थी। हालांकि अख़बार के इस दावे पर तर्क यह भी निकलता है कि सर्वे इतना गुपचुप था, तो फिर ये सर्वे कितने लोगों का था, जिसे सर्वे नाम दिया गया होगा। वहीं आरबीआई पर भी सवाल उठना लाजमी है। क्योंकि कमाल का द्रश्य तो यह होगा कि पूरा देश आरबीआई से पूछ रहा था कि नोटबंदी कितनी सफल हुई और आरबीआई लोगों को सर्वे मेंं पूछ रहा था कि कितनी सफल हुई!!!

नोटबंदी के बाद 'अपमानितमहसूस कर रहे रिजर्व बैंक के कर्मचारियों ने गवर्नर को लिखा पत्र
नोटबंदी के बाद के घटनाक्रमों से 'अपमानितमहसूस कर रहे आरबीआई के कर्मचारियों ने 13 जनवरी 2017 को गवर्नर उर्जित पटेल को चिट्ठी लिखकर अपना विरोध दर्ज कराया। कर्मचारियों ने पत्र में नोटबंदी की प्रक्रिया के परिचालन में 'कुप्रबंधनऔर सरकार द्वारा करेंसी संयोजन के लिए एक अधिकारी की नियुक्ति कर केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता को चोट पहुंचाने का विरोध किया। पत्र में कहा गया कि इस कुप्रबंधन से आरबीआई की छवि और स्वायत्तता को इतना नुकसान पहुंचा है कि उसे दुरूस्त करना काफी मुश्किल है। इसके अलावा मुद्रा प्रबंधन के आरबीआई के विशेष कार्य के लिए वित्त मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी की नियुक्ति को कर्मचारियों ने 'जबर्दस्त अतिक्रमणबताया।

पटेल को संबोधित इस पत्र में यूनाइटेड फोरम ऑफ रिजर्व बैंक ऑफिसर्स एंड इम्पलॉइज़ की ओर से कहा गया था कि, रिजर्व बैंक की दक्षता और स्वतंत्रता वाली छवि उसके कर्मचारियों के दशकों की मेहनत से बनी थीलेकिन इसे एक झटके में ही खत्म कर दिया गया। यह अत्यंत क्षोभ का विषय है।” इस पत्र पर ऑल इंडिया रिजर्व बैंक इम्पलॉइज़ एसोसिएशन के समीर घोषऑल इंडिया रिजर्व बैंक वर्कर्स फेडरेशन के सूर्यकांत महादिकऑल इंडिया रिजर्व बैंक ऑफिसर्स एसोसिएशन के सीएम पॉलसिल और आरबीआई ऑफिसर्स एसोसिएशन के आरएन वत्स के हस्ताक्षर थे। चिट्ठी में लिखा गया था कि आरबीआई देश में मुद्रा प्रबंधन का काम पिछले आठ दशक यानी 1935 से कर रहा है और उसे किसी भी तरह के 'सहारेऔर वित्तमंत्री का हस्तक्षेप स्वीकार्य नहीं है।

बैंक कर्मियों के संगठन ने किया एक दिवसीय प्रतीक विरोध
7 फरवरी के दिन बैंक एम्पलाइज यूनियन ने एक दिवसीय प्रतीक विरोध किया। नोटबंदी के बाद बैंक कर्मियों को निशाना बनाने की प्रक्रिया के सामने ये विरोध किया गया। ऑल इंडिया बैंक एम्पलाइज एसोसिएशन, ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स एसोसिएशन तथा बैंक एम्पलाइज फेडरेशन ऑफ इंडिया ने संयुक्त रूप से अन्य विरोध कार्यक्रमों की भी घोषणाएं की, जो राज्य स्तर पर किए जाने थे।

संसदीय समिति ने आरबीआई गवर्नर से मांगी सफाई, लोक लेखा समिति ने पूछे 10 सवाल
लोक लेखा समिति (पीएसीने रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के गवर्नर उर्जित पटेल को 28 जनवरी को अपने समक्ष पेश होने के लिए तलब किया था। वरिष्‍ठ कांग्रेस नेता केवी थॉमस की अगुवाई वाली समिति ने पटेल से नोटबंदी के मुद्दे पर 10 सवाल पूछे। फैसला लेने में केंद्रीय बैंक की भूमिकाअर्थव्‍यवस्‍था पर प्रभाव और आरबीआई गवर्नर के रेगुलेशंस में पिछले दो महीनों में आए बदलाव पर पटेल से जानकारी मांगी गई। संसदीय समिति ने आरबीआई गवर्नर से पूछा कि अगर नकदी निकालने पर पाबंदी लगाने को लेकर कोई कानून नहीं है तो उन पर शक्तियों का दुरुपयोग करने के लिए” मुकदमा क्‍यों न चले और उन्‍हें हटाया क्‍यों न जाए? पीएसी ने यह भी जानना चाहा कि कितनी नकदी पर प्रतिबंध लगा था और उसमें से कितनी बैंकिंग व्‍यवस्‍था में लौट आई है? जो 10 सवाल पूछे गए वो कुछ यूं थे। (1) केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने सदन में कहा है कि नोटबंदी का फैसला आरबीआई और इसके बोर्ड द्वारा लिया गया था। सरकार ने सिर्फ सलाह पर कार्रवाई की। क्‍या आप सहमत हैं? (2) अगर फैसला आरबीआई का ही थातो आखिर कब आरबीआई ने तय किया कि नोटबंदी ही भारत के हित में हैं? (3) रातोरात 500 और 1,000 रुपए के नोट बंद करने के पीछे आरबीआई ने क्‍या कारण पाए? (4) आरबीआई के अपने अनुमान दिखाते हैं कि भारत में सिर्फ 500 करोड़ रुपए की नकली/जाली करेंसी है। जीडीपी के मुकाबले भारत में कैश 12 फीसदी था जो कि जापान (18%) और स्विट्जरलैंड (13%) से कम है। भारत में मौजूद नकदी में उच्‍च मूल्‍य के नोटों का हिस्‍सा 86% थालेकिन चीन में 90% और अमेरिका में 81% है। तोअचानक ऐसी क्‍या जरूरत आ पड़ी थी कि आरबीआई को विमुद्रीकरण का फैसला लेना पड़ा? (5) 8 नवंबर को होने वाली आपातकालीन बैठक के लिए आरबीआई बोर्ड सदस्‍यों को कब नोटिस भेजा गया थाउनमें से कौन इस बैठक में आयाकितनी देर यह बैठक चलीऔर बैठक का ब्‍यौरा कहां है? (6) नोटबंदी की सिफारिश करते हुए कैबिनेट को भेजे गए नोट मेंक्‍या आरबीआई ने साफ-साफ लिखा था कि इस फैसले का मतलब देश की 86 प्रतिशत नकदी को अवैध करना होगाआरबीआई उतनी ही नकदी कब तक व्‍यवस्‍था में लौटा सकेगी? (7) सेक्‍शन 3 c(v) के तहत 8 नवंबर2016 को आरबीआई की अधिसूचना द्वारा बैंक खातों से काउंटर के जरिए 10,000 रुपए प्रतिदिन और 20,000 रुपए प्रति सप्‍ताह निकासी की सीमा तय कर दी गई। एटीएम में भी 2,000 रुपए प्रति दिन निकासी की सीमा लगाई गई। किस कानून और आरबीआई को मिली शक्तियों के तहत लोगों पर अपनी ही नकदी निकालने पर सीमा तय की गईदेश में करेंसी नोटों की सीमा तय करने की ताकत आरबीआई को किसने दीअगर ऐसा कोई नियम आप न बता सकेंतो क्‍यों न आप पर मुकदमा चलाया जाए और शक्तियो का दुरुपयोग करने के लिए पद से हटा दिया जाए? (8) पिछले दो महीनों से आरबीआई के रेगुलेशंस में बार-बार बदलाव क्‍यों हुएकृपया हमें उस आरबीआई अधिकारी का नाम बताएं जिसे निकासी के लिए लोगों पर स्‍याही लगाने का विचार आयाशादी से जुड़ी निकासी वाली अधिसूचना किसने तैयार की थीअगर यह सब आरबीआई ने नहींसरकार ने किया था तो क्‍या अब आरबीआई वित्‍त मंत्रालय का एक विभाग है? (9) कितने नोट बंद किए गए और पुरानी करेंसी में से कितना वापस जमा किया जा चुका हैजब 8 नवंबर को आरबीआई ने सरकार को नोटबंदी की सलाह दी तो कितने नोटों के वापस लौटने की संभावना थी? (10) आरबीआई ने आरटीआई के तहत जानकारी देने से मना क्‍यों किया हैवह भी निजी चोट का डर जैसा कारण बताकरआरटीआई के तहत मांगी जाने वाली जानकारी देने को आरबीआई क्‍यों नहीं दे रहा?

संसदीय समिति के सामने पेश हुए आरबीआई गवर्नर, जवाबों से उल्टा-पुल्टा हुआ सारा माजरा
आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल आखिरकार संसदीय समिति के सामने पेश हुए। लेकिन समिति के सामने उनके द्वारा कही गई बातों ने सारी चीजों को ज्यादा उल्टा-पुल्टा करके रख दिया। उन्होंने कहा कि, नोटबंदी के फायदे-नुकसान पर 2016 की शुरूआत से ही चर्चा की जा रही थी। लगा कि नेता या पार्टीयां गोलमटोल उत्तर दिया करते है, लेकिन आरबीआई हर बात का एक ऐसा उत्तर दे रही थी कि मामला गहरा जाता।

जब उनसे पूछा गया कि नोटबंदी के बाद कितने नोट चलन से बाहर हुए और कितने नए नोट छापे गएइस पर आरबीआई गवर्नर ने बताया कि, 9.2 लाख करोड़ के नए नोट अर्थव्यवस्‍था में डाले गए हैं। इस बैठक के बाद स्टैंडिंग कमेटी ऑफ फाइनेंस के सदस्य और टीएमसी नेता सौगता रॉय ने कहा कि उर्जित पटेल ये बताने में असमर्थ रहे कि कितने पुराने नोट बैंकों में वापस आए हैं। समिति के सामने वे ये नहीं बता पाए कि स्थितियां कब सामान्य होगी।

संसदीय समिति के कई सारे सवाल ऐसे थे जिनका उर्जित पटेल के पास कोई जवाब नहीं था। नोटबंदी का फैसला किसने लिया, शुरुआत कब की गई, कितने नोट वापिस आए, आर्थिक परिस्थितियां कब सामान्य होगी, नकदी की कमी कब दूर होगी जैसे कई सवाल अनुत्तर रह गए। उर्जित पटेल के सामने एक स्थिति यह भी आई जब उनसे एक सवाल पूछा गया और तब पूर्व प्रधानमंत्री और आरबीआई गवर्नर रह चुके मनमोहन सिंह उनकी मदद में आगे आए और उर्जित पटेल से कहा कि इस सवाल का कोई जवाब आपको नहीं देना चाहिए। आगे उन्हें पीएसी (लोक लेखा समिति) के सामने भी जवाब देने के लिए जाना था।

जीडीपी के ऊपर कुछ समय के लिए बुरा असर होगा- आरबीआई गवर्नर
लोक लेखा समिति (पीएसी) के सामने आरबीआई गवर्नर ने कहा कि, जीडीपी के ऊपर कुछ समय के लिए नोटबंदी का बुरा प्रभाव ज़रूर होगा। हालांकि उन्होंने इसकी अवधि ज्यादा नहीं होगी यह भी दोहराया। जीडीपी पर बुरा असर होने की बात स्वीकार करके उर्जित पटेल ने उन सारी आशंकाओं और अहवालों को सच साबित कर दिया जो ढाई महीने से लिखे जा रहे थे। गौरतलब है कि पूर्व प्रधानमंत्री भी यही बात संसद में कह चुके थे। लेकिन तब उनकी बातों को विरोध का खोखला बयान ही कहा गया था। पटेल ने इस दौरान निकट भविष्य में एटीएम और बैंकों में नकदी की समस्या पूरी तरह से खत्म हो जाने का आश्वासन भी दिया।

आरबीआई और सरकारी दावे की उड़ी धज्जियां, एक भी जाली नोट जब्त नहीं हुआ- वित्त मंत्रालय
वित्त मंत्रालय का यह बयान वाकई चौंकाने वाला था। वित्त मंत्रालय द्वारा लोक लेखा समिति (पीएसी) को बताया गया कि, नोटबंदी के बाद 9 नवंबर से 30 दिसंबर के बीच किसी भी सरकारी एजेंसी ने जाली नोट में एक भी रुपया जब्त नहीं किया है। आगे बताया गया कि, नोटबंदी के बाद 9 नवंबर से 4 जनवरी तक इनकम टैक्स विभाग द्वारा की गई कई सर्च ऑपरेशन्स में 474.37 करोड़ रुपए के नए और पुराने नोट जब्त किए। लेकिन उनमें जाली नोट शामिल नहीं थे। मंत्रालय को यह भी पता नहीं था कि जो पैसे पकड़े गए वह किसी आतंकी समूह के थे या फिर वह पैसा छोटे-मोटे तस्करों का था।

ढाई महीने में जाली नोट के मिलने की कई विश्वसनीय खबरें आई थी। किसी भी खबर को सरकार ने, मंत्रालय ने या संबंधित सत्ता ने नकारा नहीं था। लेकिन ढाई महीने बाद वित्त मंत्रालय का ये बयान चौंकाने के लिए काफ़ी था। इसके अलावा नोटबंदी को लागू करने के वक्त सरकार ने कहा था कि इससे जाली नोट पकड़े जाएंगे और उन पर लगाम लगाने में मदद मिलेगी। इसके अलावा यह भी कहा गया था कि इससे आतंकवादी गतिविधियों को रोकने में भी मदद मिलेगी। लेकिन वित्त मंत्रालय द्वारा बताई गई ये बातें सबसे उलट साबित हुई। लगा कि अब तो आरबीआई, सरकार और संबंधित मंत्रालय, इनमें से सच कौन बोल रहा है या झूठ कौन बोल रहा है इसके लिए लाई डिटेक्टर मशीन लगाकर ही जवाब लेना चाहिए! ऐसा क्यों इसका जवाब तो इसी संस्करण में अलग अलग बयान, दावे, जवाब और रिपोर्ट से ही मिल जाता है। वित्त मंत्रालय ने केवल यही कहा कि अघोषित आय सामने आने का प्रतिशत बढ़ा है।

बैंक कर्मियों ने सांठगांठ कर 71.5 करोड़ रुपये के पुराने नोट बदले: सरकार
लगा कि अब नोटबंदी की जो कथित विफलता थी उसका ठीकरा बैंकों के सर फूटने वाला था। इसी सिलसिले में 3 फरवरी 2017 के दिन लोकसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में वित्त राज्यमंत्री संतोष गंगवार ने कहा कि बैंकों से मिली सूचना के अनुसार ऐसे 14 शाखाएं मिली हैं जहां के कर्मचारियों ने अवैध तरीके से पुराने नोटों को बदला। सरकार ने कहा कि नोटबंदी के दौरान 9 नवंबर से 30 दिसंबर के बीच कुछ बैंकों के कर्मचारियों ने अवैध तरीके से अमान्य घोषित किए गए 500 और 1000 रुपये के नोटों को बदला। सरकार के मुताबिक बैंक कर्मियों ने सांठगांठ कर 71.47 करोड़ रुपये के पुराने नोटों को बदला था। अवैध तरीके से नोटों की बदली सबसे अधिक एक्सिस बैंक की तीन शाखाओं में की गई। मंत्री ने सदन को बताया कि अवैध तरीके से पुराने नोट बदलने के छह मामले में धनलक्ष्मी बैंक के आठ कर्मचारी लिप्त पाए गए। इसके अलावा सार्वजनिक क्षेत्र के स्टेट बैंक ऑफ मैसूर, बैंक ऑफ महाराष्ट्र, और सिंडिकेट बैंक में पुराने नोट अवैध तरीके से बदले गए। इन ब्रांचों में कितने पुराने नोट बदले गए थे उसके सटीक आंकड़े सरकार ने दिए। जबकि स्वयं सरकार और आरबीआई ने कुछ आरटीआई में यही जवाब दिया था कि उनके पास आंकड़ा नहीं है या जानकारी नहीं है!!!

क्या मीडिया पर भी पड़ी थी नोटबंदी की मार?
एक रिपोर्ट के मुताबिक, नोटबंदी ने देश के बड़े मीडिया संस्थानों को भी हिलाकर रख दिया था। खबर की माने तो कई मीडिया संस्थानों ने छंटनी की योजना बनाकर रखी हुई थी। कहा गया कि हिंदुस्तान टाइम्स ने अपने चार संस्करण और तीन ब्यूरों को बंद करने के स्थिति को सोच के रखा था। खबर की माने तो, हिंदुस्तान टाइम्स ने अपने सर्कुलर में कहा था कि कोलकाताइंदौरभोपालरांची संस्करण हिंदुस्तान टाइम्स 9 जनवरी से बंद कर देगा। बिड़ला ग्रुप की हेड शोभना भारतीय के हवाले से कहा गया कि उन्होंने इलाहाबादकानपुर और वाराणसी के ब्यूरो भी बंद करने का फैसला किया है। मीडिया घरानों का कहना था कि डीमोनेटाइजेशन के बाद कैश में आई कमी के कारण उनके रेवेन्यू में जोरदार कमी आई थी। दावा किया गया कि हिंदुस्तान टाइम्स द्वारा अपने बिजनेस ब्यूरो को बंद किया जा चुका है और ज्यादातर स्टाफ को हटाया जा चुका है। प्रबंधन का कहना था कि समूह के बिजनेस पेपर मिंट को हिंदुस्तान टाइम्स के प्रबन्धन के जरिए चलाया जा रहा है। एबीपी ग्रुप में भी छटनी हो सकती है ऐसी खबरें आई। वहीँ देश के सबसे बड़े मीडिया ग्रुप टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने नयी रिक्रूटमेंट पर पूरी तरह रोक लगा दी।

35 प्रतिशत नौकरियां गई, रेवन्यू हुआ आधा- एआईएमओ का विश्लेषण
विमुद्रीकरण के पहले 34 दिनों में माइक्रो-स्मोल इंडस्ट्रीज में 35 प्रतिशत लोगों को नौकरियां गंवानी पड़ी और रेवन्यू 50 प्रतिशत तक कम हो गया। ये विश्लेषण ऑल इंडिया मैन्युफैक्चरिंग ऑर्गेनाइजेशन (एआईएमओ) का था। इंडियन एक्सप्रेस में छपी इस रिपोर्ट में संभावना जताई गई थी कि मार्च 2017 तक नौकरियां गंवाने का प्रतिशत 60 तक पहुंचेगा, वहीं रेवन्यू में 55 प्रतिशत तक की कमी आएगी। विमुद्रीकरण के विषय में एआईएमओ का ये तीसरा ऐसा विश्लेषण था। उसका चौथा विश्लेषण जल्द आने वाला था। इस संस्था के राष्ट्रीय अध्यक्ष रघुनाथन की माने तो, उन्होंने सारे विश्लेषण केंद्रीय वाणिज्य व वित्त मंत्रालय को दिए थे। नवम्बर 12, नवम्बर 25 और 12 दिसंबर के दिन ये तीनों विश्लेषण मंत्रालय को पहुंचाए गए। लेकिन उन्हें कोई प्रत्युत्तर नहीं मिला। रधुनाथन ने तिख़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि, उन्होंने (सरकार ने) इस आपातकाल स्थिति के सामने आंखे बंद कर दी है और अपने कान भी। उनके विश्लेषण में कहा गया था कि तमिलनाडु और महाराष्ट्र राज्य सबसे ज्यादा प्रभावित हुए।

नोटबंदी ने प्रति एकड़ 20,000 से 50,000 का नुकसान किया- किसान संगठन
अलग अलग स्तर के किसान संगठनों से यह आवाजें आई। सब्जी और फल उगानेवाले किसान खासे नाराज दिखे। दरअसल उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ा था और वो चाहते थे कि सामान्य बजट में उनके लिए कुछ हकारात्मक चीजें आए। किसान नेता अजय वीर जाखड ने दावा किया कि, सब्जी या फल उगानेवाले किसानों को प्रति एकड़ बीस हज़ार से पचास हज़ार का नुकसान उठाना पड़ा है। अन्य किसान भी थे जिन्होंने नुकसानी या परेशानियों की शिकायतें की थी। अखबारों में अपने उत्पाद सड़कों पर बिखेरना जैसी तस्वीरें आती रही। कही किसानों ने लगभग मुफ्त में अपने उत्पाद बांट दिए। हालांकि बाद में सरकार ने 600 करोड़ की ब्याज माफ़ी घोषित करके किसानों का राहत देने का प्रयत्न ज़रूर किया था।  

सरकार ने दिया जनता को झटकाड्राइविंग लाइसेंस 6.5 गुना और वाहन रजिस्ट्रेशन 5 गुणा बढ़ा
6 या 7 जनवरी 2017 के दिन सड़क परिवहन मंत्रालय ने ड्राइविंग लाइसेंस जारी करने की फीस 40 रुपये से बढ़ाकर 200 रुपये कर दी। मोटर व्हीकल एक्ट में 22वां संशोधन करते हुए केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने इसका नोटिफिकेशन जारी कर दिया। केंद्र सरकार के सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने ड्राइविंग लाइसेंस की फीस में करीब 6.5 गुना, जबकि नए वाहनों की रजिस्ट्रेशन फीस 5 गुना तक बढ़ाई। इसके अलावा वाहनों का पंजीकरण शुल्क यानी रजिस्ट्रेशन फीस भी 3 से 6 गुना बढ़ा दिया गया। हालांकि यह इज़ाफ़ा रजिस्ट्रेशन फीस की मूल रकम पर ही होगा। राज्य सरकार द्वारा लिए जाने वाले रोड टैक्स की दर व रकम पहले जैसे ही रहेगी।

ट्रांजेक्शन फीस, डेबिट व क्रे़डिट कार्ड, पेट्रोल पंप, विवाद और नियम का रुकना
साल के प्रथम सप्ताह में असमंजस वाली स्थिति फिर एक बार आई। दरअसल बैंकों ने पेट्रोल पंप परिचालक कार्ड के जरिये भुगतान पर एक प्रतिशत शुल्क और उस पर कर लगाने का निर्णय लिया था। उसके बाद पेट्रोल पंपों ने इस निर्णय का विरोध किया और सभी बैंकों के डेबिट या क्रेडिट कार्ड के जरिए भुगतान स्वीकार नहीं करने का फैसला लिया। बैंकों का ये निर्णय और पेट्रोल पंपों का विरोध कुछ दिनों तक असमंजस सी स्थिति बनाते हुए दिखा। बाद में बातचीत के बाद पेट्रोलपंपों ने अपना फैसला 13 जनवरी तक टाल दिया। लेकिन पूरी माथापच्ची में उपभोक्ता अंत तक परेशान दिखे। बाद में खबर यह भी आई कि 13 जनवरी के बाद भी उपभोक्ताओं को कार्ड पैमेंट पर चार्ज नहीं देना होगा। पेट्रोलिय मंत्री ने कहा कि पेट्रोल पंप और बैंकों के बीच खड़े हुए इस सवाल का समाधान ढूंढ लिया गया है। उन्होंने कहा कि अब पेट्रोल पंप और उपभोक्ता, दोनों में से किसी को अतिरिक्त चार्ज नहीं देना होगा।

वित्त मंत्री- नोटबंदी के बाद टैक्स कलेक्शन में इज़ाफ़ा हुआ
9 जनवरी 2017 के दिन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने पहले तीन क्वार्टर के आंकड़े पेश किए। उन्होंने कहा कि, नोटबंदी के बाद सरकार को टैक्स कलेक्शन में इज़ाफ़ा हुआ है। कहा गया कि, पिछले साल की तुलना में (अप्रैल-दिसंबर 16) डायरेक्ट टैक्स में 12.01 प्रतिशत, इनडायरेक्ट टैक्स में 25 प्रतिशत और सेंट्रल एक्साइज टैक्स में 43 प्रतिशत इज़ाफ़ा हुआ। उन्होंने अपने बयान में देश को यह भी बताया कि, अर्थतंत्र में सुधार हो रहा है।

वित्त मंत्री- अर्थव्यवस्था थोड़ी देर के लिए प्रभावित हुई है, लेकिन जल्द ही सब ठीक हो जाएगा
27 जनवरी के दिन वित्तमंत्री अरुण जैटली ने कहा कि, नोटबंदी से अर्थतंत्र कुछ देर के लिए प्रभावित ज़रूर हुआ है। कुछ चीजें नकारात्मक असर ज़रूर कर रही है। लेकिन बहुत जल्द सब कुछ ठीक हो जाएगा। उन्होंने कहा कि, जल्द ही कानून के अमल में सुधार देखने के लिए मिलेंगे और जीएसटी से भारत राष्ट्रीय बाजार बनेगा। अब तक सरकार से लेकर मंत्री तक दावे कर रहे थे कि अर्थतंत्र को कोई क्षति नहीं पहुंची है। लेकिन वित्तमंत्री ने साफगोई से इशारों में स्वीकार भी कर लिया। लेकिन इसे जल्द ही क्षतिरहित करने का आश्वासन भी दिया।

नोटबंदी के बाद 80,000 करोड़ का लोन जमा हुआ- आयकर विभाग
10 जनवरी 2017 के दिन आयकर विभाग ने कुछ आंकड़े पेश किए। कहा गया कि पुराने नोट में 80,000 करोड़ का लोन किश्त जमा हुआ है। कहा गया कि तकरीबन 3 लाख करोड़ के डिपॉजिट बैंकों को मिले हैं।

अवैध प्रक्रियाओं का जारी रहा सिलसिला, जाली व नकली नोट मिलने की वारदातें
जनवरी 2017 में दिल्ही में 500 और 2000 के नये जाली नोट मिले। इनकी किंमत 6.5 लाख बताई गई। कहा गया कि इसे कंप्यूटर से तैयार किया गया था और उसे बाजार में भी डाला गया था। पहले 50 दिनों की तरह ही 50 दिनों के बाद भी पुराने नोट बदलने की अवैध प्रक्रिया कथित रूप से जारी रही थी। अलग अलग मीडिया रिपोर्ट की माने तो पुराने नोट बदलने वाले दलाल 31 दिसंबर 2016 के बाद भी सक्रिय थे। कहा गया कि 55 प्रतिशत का धंधा जारी रहा। मीडिया में ऐसे कई किस्सें छपे, जिनमें लोगों ने पुराने नोट बदलवाए थे। ये दलाल कौन से दरवाजे का इस्तेमाल किया करते थे या फिर इन पर सीसीटीवी कैमरा क्यों नहीं घूमता था ये ताज्जुब का ही विषय कहां जाएगा! 3 फरवरी 2017 के दिन अमर उजाला ने एक रिपोर्ट छापी थी, जिसमें दावा किया गया कि हिमाचल के जिला कांगड़ा में ऐसे गिरोह का पता चला है जो नकली नोट सप्लाई कर रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक इसका खुलासा बैजनाथ पुलिस ने ही किया था। 8 फरवरी के दिन मुर्शिदाबाद जिले से पुलिस ने अजीजुर रहमान नाम के तस्कर को गिरफ्तार किया थाजिसके पास से 2,000 रुपए के 40 नकली नोट मिले थे। कहा गया कि जाली नोट पाकिस्तान की खुफिया संस्था आईएसआई की मदद से छापे गए थे। ये विचित्र ही था की वित्त मंत्रालय ने बाकायदा कहा था कि कोई जाली नोट जब्त नहीं हुए है। आरबीआई ने कहा था कि कितने जाली नोट जमा हुए उसकी जानकारी नहीं है। और तीसरी तरफ मीडिया रिपोर्ट जाली नोट मिलने की पुष्टि कर रहे थे। फरवरी में आई खबरों के मुताबिक बांग्लादेश वाले पुराने रास्ते ही 2,000 के जाली नोट भारत में आ रहे थे। इसी महीने बीएसएफ और एनआईए ने जाली नोट बरामद किए थे।

चुनाव से ठीक पहले किसानों को बड़ी राहत, कृषि ऋण पर 600 करोड़ की ब्याज माफ़ी
केंद्र ने विधानसभा चुनावों से ठीक पहले किसानों को बड़ी राहत देते हुए 2016 के लिए कृषि ऋण पर ब्याज छूट को मंजुरी दे दी। जिन किसानों ने रबी फसल की बुआई के लिए अल्पावधि के लिए सहकारी बैंकों से ऋण ले रखा थाउन्हें इस घोषणा से जरूर राहत मिली। नोटबंदी के बाद रबी फसल की बुआई प्रभावित हुई थी और वे ऋण का ब्याज नहीं चुका पाए थे। सरकार ने बयान में कहा कि यह निर्णय सहकारी बैंकों के लिए संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए लिया गयाताकि किसानों को आसानी से फसल ऋण मिल सके और वे नकदी की कमी के कारण रबी फसल की बुआई में हुई कठिनाई से बाहर आ सकें। यह चालू वित्त वर्ष के लिए था। किसानों को दिक्कतें हुई थी यह सरकार ने अपने बयान में कहा, जिससे धीरे धीरे वो अंदेशे सही ठहरते जा रहे थे जिसमें कई संस्थाएं या विशेषज्ञों ने नुकसानी की बातें पहले ही कह दी थी।

एटीएम निकासी के नियंत्रण हुए खत्म, अन्य नियंत्रण बरकरार
1 फरवरी 2017 से एटीएम से कैश निकासी के नियंत्रण खत्म हो गए। इस दिन से एटीएम से कैश निकासी की तमाम सीमाएं हटा दी गई। यानी कि नोटबंदी से पहले एटीएम में जो शर्तें थी, उसे फिर से लागू कर दिया गया। हालांकि बचत खातों के नियंत्रण बरकरार रहे। उनमें 24,000 वाली सीमा बरकरार रही। वहीं चालू खातों में 1 लाख वाली सीमा हटा दी गई।

उम्मीदवारों के निकासी सीमा को लेकर चुनाव आयोग और आरबीआई आमने-सामने
नोटबंदी के बाद फरवरी 2017 में पांच राज्यों में चुनाव होने वाले थे। नोटबंदी के बाद आरबीआई ने बैंकों से पैसे निकालने की सीमा तय कर दी थी। चुनाव आयोग ने 25 जनवरी 2017 के दिन आरबीआई से अनुरोध किया कि वे उम्मीदवारों की नकदी निकासी की साप्ताहिक सीमा 24,000 रुपये से बढ़ाकर 2 लाख रुपये कर दे। आयोग का कहना था कि नोटबंदी के बाद लागू सीमा से उम्मीदवारों को अपने प्रचार का खर्च निकालने में कठिनाई होगी। लेकिन आरबीआई ने इससे इनकार कर दिया। बैंक ने कहा कि इस स्तर पर सीमा बढ़ाना संभव नहीं है। हालांकि इसके बाद भी चुनाव आयोग ने रिजर्व बैंक के गवर्नर को पत्र लिखकर इस मुद्दे से निपटने को कहा। चुनाव आयोग ने इसे गंभीर मुद्दा बताया। चुनाव आयोग ने लिखा कि ऐसा लगता है कि आरबीआई को गंभीरता की समझ नहीं है। पत्र में आयोग ने अपने संवैधानिक अधिकारों की दुहाई भी दी। इसके लिए आयोग ने नियमों, कानून व मार्गदर्शिकाओं का ज़िक्र किया और आरबीआई से दोबारा विचार करने का अनुरोध किया। लोगों ने तंज कसते हुए कहा कि शादी के लिए नकद निकासी के मामले में लोगों की दिक्कतों के लिए कोई सामने नहीं आया, लेकिन यहां उम्मीदवारो को आयोग का जमकर साथ मिला। वहीं नोटबंदी के बाद अपने बयानों और कार्यशैली से बदनाम हो चुके आरबीआई को लोगों की टिप्पणी से थोड़ा सा साथ मिला।

कई बड़ी पार्टियों ने आयोग को तय सीमा के अंदर नहीं दिया था डाटा
आरटीआई कार्यकर्ता और कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव के सदस्य वेंकटेश नायक ने चुनाव आयोग को सौंपे गए 22 राष्ट्रीय दलों और क्षेत्रीय दलों के वार्षिक ऑडिट रिपोर्ट का विश्लेषण किया था। हालांकि यहां ये स्पष्ट हो जाए कि 30 अक्टूबर 2016 तक भाजपाकांग्रेस और एनसीपी जैसी बड़ी पार्टियों ने अपनी वार्षिक ऑडिट रिपोर्ट चुनाव आयोग को सौंपी ही नहीं थी। यही नहीं समाजवादी पार्टीआम आदमी पार्टीअसम गण परिषदजनता दल (यूनाइटेड)जनता दल (सेकुलर) और शिवसेना जैसी क्षेत्रीय दलों ने भी आयोग से चंदे की जानकारी साझा करना मुनासिब नहीं समझा था। जिन 22 दलो ने डाटा दिया उसमें नकदी के मामले में सीपीआई (एम) और सीपीआई प्रथम थे, जबकि बैंक बेलेन्स के मामले में बसपा प्रथम थी। अन्य तमाम बड़े बड़े दल डाटा अब तक नहीं दे पाए थे। डेड लाइन के बाद दूसरी लाइफ लाइन उन्होंने इस्तेमाल की थी या नहीं, वो जानकारी नहीं है। यानी कि उन बड़ी बड़ी पार्टियो का विश्लेषण ये कार्यकर्ता नहीं कर पाए, वर्ना डाटा ज्यादा मजेदार हो जाता।

आयकर विभाग की नोटिसें व जांच की प्रस्तावित बातें
इस दौरान आयकर विभाग ने कई बैंक खातेदारों को नोटिस दिया और जमा व निकाल गई राशि के ऊपर जांच की बातें कही। कई अन्य तरीकों से पैसे जमा करवाने वाले या निकालने वालों की जांच की बातें भी हुई। ये अच्छी चीजें थी। लेकिन सभी को पता था कि ये लंबी प्रक्रिया है तथा इसमें आयकर कानूनों से लेकर अन्य कई तरह की गलियों से गुजरना होगा। उपरांत आयकर विभाग खुद एक आरटीआई के जवाब में कह चुका था कि इसके लिए उन्हें पर्याप्त अधिकारी व संसाधन चाहिए, जिसकी उसके पास कमी है। एक आरटीआई में तो आयकर विभाग ने कहा था कि कितने सक्षम अधिकारी हैं ये तक उनके पास सटीक जानकारी नहीं है। लिहाजा ये सब चीजें लंबी प्रक्रिया बनने वाली थी। कई पेंचों व सवालों में घिरी इस प्रक्रिया को अच्छा ज़रूर मानना चाहिए, लेकिन पेंच व सवालों को दरकिनार नहीं किया जा सकता था।

नोटों के लिए और तरसना होगा, काला धन पर कोई अंकुश नहीं- संबंधित शख्सियतों की कुछ बातें
बीबीसी को दिए साक्षात्कार में वरिष्ठ अर्थशास्त्री अरुण कुमार ने कहा कि नोटबंदी के फ़ैसले से काली अर्थव्यवस्था पर कोई अंकुश नहीं लगा है। उन्होंने कहा कि, "काले धन की अर्थव्यवस्था पर कोई असर होता तब तो कुछ फ़ायदा होता। ऐसा हुआ नहीं। काली संपत्ति अब नक़द के तौर पर में बैंक में आ गई हैकाली कमाई बंद नहीं हुई है। लेकिन इससे देश की दूसरी अर्थव्यवस्थाओं को ज़बर्दस्त धक्का लगा है। निवेश गिर गया हैबेरोज़गारी बढ़ गई हैबैंक क्राइसिस में हैं।" उनके मुताबिक नकदी की समस्या पांच छह महीने तक चलेगी और अर्थव्यवस्था पर इसका असर एक-दो साल तक दिखेगा।

ऑल इंडिया बैंकिंग एम्पलाइज एसोसिएशन के महासचिव सीएच वेंकटचलम ने बीबीसी को बताया कि, "रिज़र्व बैंक वाले बोल रहे हैंवित्त मंत्री बोल रहे हैंप्रधानमंत्री बोल रहे हैं। लेकिन लोगों को देने के लिए बैंकों के पास पैसा नहीं है।" वेंकटचलम के मुताबिक, संकट की ये स्थिति देश के ग्रामीण इलाक़ों में भी बनी हुई है और शहरी इलाक़ों में भी। उनके दावे के मुताबिक़ अभी भी देश के आधे एटीएम में पैसा उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। वेंकटचलम ने कहा कि आम लोगों के साथ साथ बैंक कर्मचारी भी भारी मुश्किलों का सामना कर रहे है।

नोबल पारितोषिक विजेता अमर्त्य सेन ने नोटबंदी की आलोचना की। ये उनकी दूसरी आलोचना थी। उन्होंने नोटबंदी को सरकार के द्वारा छोड़ा गया दिशाविहिन मिसाइल बताया। अमर्त्य सेन ने कहा कि लोकशाही परंपराओं का पालन सरकार द्वारा नहीं किया गया। सेन ने कहा कि, ये फैसला बहुत ही जल्दबाजी में लिया गया फैसला था।

नोटबंदी की वजह से निवेश को हुआ नुकसान, बजट पर सारा दारोमदार  ब्लूमबर्ग
ब्लूमबर्ग ने अपने रिपोर्ट में लिखा कि नोटबंदी से आम लोग तो प्रभावित हुए ही, साथ ही उद्योगों पर भी काफी नकरात्मक असर पड़ा। ब्लूमबर्ग ने दावा किया कि कंपनियों का अपनी तरफ से निवेश कम हो गया है और क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों ने भी भारत की रेटिंग को पहले के स्तर से नीचे कर दिया है। विश्व की प्रमुख क्रेडिट रेटिंग एजेंसियां जैसे कि फिचएसएंडपी ग्लोबलमूडी ने भारत की साख को काफी नीचे कर दिया है इस बात का ज़िक्र करते हुए रिपोर्ट में स्वयं आरबीआई द्वारा जीडीपी के कम होने के अंदेशे को भी जगह मिली। रिपोर्ट मे लिखा गया कि नोमुरा ही है जिसने नोटबंदी की नकारात्मक असरो को नहीं माना है। ब्लूमबर्ग ने लिखा कि आने वाले आम बजट में उद्योगों के लिए सरकार को कदम उठाने होंगे, वर्ना अर्थतंत्र पर असरें ज्यादा विपरित होगी। यानी कि अब उद्योगों के लिए सारा दारोमदार आम बजट पर टिका बताया गया।

अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाएं
नोटबंदी के पहले 50 दिन में अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाएं आई थी। ये दौर 50 दिन बाद भी खत्म होता नहीं दिखा। जनवरी में अमेरिका के अख़बार न्यूयॉर्क टाइम्स ने कहा कि भारत सरकार द्वारा उठाया गया नोटबंदी का कदम अत्याचार है और भारतीय अर्थतंत्र दिक्कतों का सामना कर रहा है। न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा कि नोटबंदी से भ्रष्टाचार नियंत्रित किया जा सका हो इसका कोई सबूत नहीं मिल रहा और नकदी की कमी के चलते लोग परेशान है।

वॉशिंग्टन पोस्ट ने दोधारी तलवार जैसे रिपोर्ट छापे। एक रिपोर्ट में उन्होंने भारत की डिजिटल सिस्टम को अमेरिका से भी बेहतर बताया और नोटबंदी के भविष्य के फायदे लिखे। वहीं दूसरे रिपोर्ट में लिखा गया था कि केंद्र सरकार ने भारत को 1970 के जमाने में छोड़ दिया है। साथ ही कैशलेस प्रयासों की आलोचना भी की और लिखा कि भारत इस कदर कैशलेस बनने के लिए तैयार नहीं है।

हालांकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 8 नवम्बर के बाद सबसे बड़ी हकारात्मक प्रतिक्रिया विश्व बैंक की ओर से आई। जनवरी 2017 के मध्य काल में विश्व बैंक ने कहा कि भारत में नोटबंदी का फायदा लंबे समय के बाद ज़रूर देखने के लिए मिलेगा। रिपोर्ट में कहा गया कि किसी भी सुधार के बाद कुछ वक्त के लिए विपरित परिस्थितियां पैदा ज़रूर होती है, लेकिन लंबे अरसे बाद फायदा दिखाई देता है। विश्व बैंक ने कहा कि 2017-18 तथा 2018-19 में भारत का आर्थिक विकासदर तेज होगा। विश्व बैंक ने कहा कि भारत में नोटबंदी का प्रतिकूल प्रभाव भी मध्यावधि यानी सितंबर-17 तक खत्म हो जाएगा। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ये प्रतिक्रिया भारत के लिए राहत की सांस देने वाली प्रतिक्रिया थी।

वहीं संयुक्त राष्ट्र का 2017-18 के लिए भारत का रिपोर्ट कार्ड कुछ चिंताएं लेकर आया। संयुक्त राष्ट्र श्रम संगठन के रिपोर्ट में कहा गया कि 2017-18 में भारत में बेरोजगारी की समस्या बढ़ेगी। रिपोर्ट में सूचित किया गया था कि इस दौर में सामाजिक असमानता बढ़ेगी। इसके लिए भारत के आर्थिक विकासदर में संभवित कमी को भी जिम्मेदार बताया गया था।

अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफने 2016 के लिए भारत की विकास दर 6.6 फ़ीसदी रहने का अनुमान लगाया। यह पिछले साल की विकास दर 7.6 फ़ीसदी से 1 फ़ीसदी कम थी। विकास दर के अनुमान पर नोटबंदी का असर बताया गया। वहीं आईएमएफ ने भारत के पड़ोसी देश चीन के विकास दर के अनुमान को बढ़ा दिया। हालांकि आईएमएफ ने यह उम्मीद भी जताई कि अगले दो साल में भारत की अर्थव्यवस्था दोबारा पटरी पर लौट आएगी।

एसोचैम ने भी नोटबंदी के विषय में अपना रिपोर्ट पेश किया। एसोचैम ने कहा कि नोटबंदी से काले धन को रोका नहीं जा सकता। रिपोर्ट में कहा गया कि सोना और रियल एस्टेट ऐसा क्षेत्र है, जहां काला धन भारी मात्रा में है। नोटबंदी से इन्हें कोई प्रभाव नहीं पहुंचा है। एसोचैम ने लिखा कि नोटबंदी से बेनामी संपत्ति के ऊपर भी नियंत्रण लागू नहीं किए जा सकते। रिपोर्ट में साफ लफ्जों में लिखा गया कि ऐसे कदमों से कुछ दिनों तक सब कुछ नियंत्रित लगता है, लेकिन इस कदम में आगे का कोई भी रास्ता नहीं होता। एसोचैम के महासचिव डीएस रावत ने कहा कि, "कर अधिकारियों के पास संसाधन संबंधी बाधाओं को देखते हुए इतने बड़े पैमाने पर कालेधन को सफेद बनाने की पहचान कठिन कार्य हो सकता है।"

फरवरी 2017 में अमेरिकी अर्थशास्त्री स्टिव एच हेंक की तिख़ी प्रतिक्रिया भी भारतीय अखबारों में छपी थी। स्टिव ने सख्त लहजे में कहा कि नोटबंदी हारनेवालों का फैसला है और प्रधानमंत्री को अंदाजा ही नहीं है कि उनका देश कौन सी दिशा में जा रहा है। इससे पहले वॉशिंग्टन की केटो इंस्टिट्यूट के ट्रबल्ड करेंसी प्रोजेक्ट के वरिष्ठ अधिकारी फेलो हेंक ने कहा था कि भारत में नोटबंदी के फैसले को समर्थन देने के लिए पर्याप्त ढांचा नहीं है।

बजट से पहले पेश हुआ आर्थिक सर्वेक्षण, सरकार ने माना कि नोटबंदी से अर्थव्यवस्था को पहुंची चोट
2017-18 के बजट से पहले सरकार ने आर्थिक सर्वेक्षण पेश किया। मोटे तौर पर आर्थिक सर्वेक्षण में सरकार ने अस्पष्ट इकरार ज़रूर किया कि नोटबंदी ने अर्थव्यवस्था को चोट पहुंचाई है। 8 नवम्बर से अब तक जितने भी गैरसरकारी रिपोर्ट आए थे, लगभग सभी में बुरे असरों को बताया जाता रहा था। हालांकि सरकार ने इन सबको अब तक खारिज किए रखा था। लेकिन फिर आरबीआई के बयान से लेकर आर्थिक सर्वेक्षण में कई चीजों का अस्पष्ट इकरार होता हुआ दिखाई दिया। कुछ जगहों पर तो सरकारी दस्तावेज में जानकारी का आधार मीडिया रिपोर्ट को माना गया था!!! आर्थिक सर्व के पेज नं 62 पर मीडिया रिपोर्ट का ज़िक्र था।

31 जनवरी के दिन आर्थिक सर्वेक्षण पेश करते हुए वित्तमंत्री ने माना कि नोटबंदी से अर्थव्यवस्था को चोट पहुंची है। 2016-17 में उन्होंने नोटबंदी को देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के विकास में बाधा उत्पन्न करने वाला सबसे बड़ा खतरा बताया। जीडीपी कम नहीं होगी के दावे करने के बाद आर्थिक सर्वेक्षण में सरकार ने ही कह दिया कि जीडीपी 6.5 से 7.5 तक रह सकता है! रफ्तार पर कोई असर नहीं पड़ी है वाले निरंतर बयान अब बदल गए और कहा कि रफ्तार धीमी रह सकती है! सर्वे में इस बात पर खास जोर दिया गया कि नकदी समस्या को जितनी जल्दी हो सके दूर किया जाएगा। यानी कि फिर एक बार अस्पष्ट इकरार हुआ कि नकदी एक समस्या ज़रूर है। सर्वेक्षण पेश करते हुए वित्त मंत्री ने यह इकरार भी कर लिया कि देश में उपजे नकदी संकट का असर कृषि क्षेत्र पर व्यापक स्तर पर पड़ेगा। उन्होंने कहा कि इससे उसके उत्पादन और विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। नोटबंदी के चलते छोटे किसान बुरी तरह प्रभावित हुए है इसका भी ज़िक्र हो ही गया।

बजट पेश हुआ, सरकार ने की भरचक कोशिश
दरअसल बजट ही सरकार के पास एकमात्र हथियार था, जिससे वो नोटबंदी के बाद लोगों में फैली नाराजगी को दूर कर सकते थे। 2017 के बजट में सरकार ने इसके लिए भरचक कोशिशें की थी। अब इसका विश्लेषण, दावे, समर्थन, विरोध आदि चीजें एक दूसरा सिरा है। क्योंकि नोटबंदी के बाद बजट में की गई घोषणाओं को विश्लेषण कई गलियों से होकर गुजरता जाएगा। इसके बाद आने वाली चीजें, होने वाली घटनाएं या उठाए जाने वाले कदम अन्य विषय है।

(इंडिया इनसाइड, मूल लेखन 1 जनवरी 2017, एम वाला)