फ़रवरी-मार्च 2017 के दौरान पंजाब, गोवा, मणिपुर, उत्तराखंड और यूपी में विधानसभा चुनाव हुए। 11 मार्च 2017 के दिन पाँचों राज्यों के चुनाव नतीजे घोषित हुए। उसके बाद नोटबंदी या नोटबदली की आगे की कहानियाँ कुछ यूँ रही।
चुनावी प्रचार, रैलियाँ और राजनीतिक कार्यक्रमों पर कोई असर पड़ता नहीं दिखा
8 नवम्बर 2017 के दिन नोटबंदी लागू हुई उसके बाद पहली बात यही उठी थी कि 2017 के विधानसभा चुनावों में पार्टियों की रैलियां, कार्यक्रम, गाड़ियों का दौड़ना, चुनाव प्रचार के तौरतरीके कैसे रहते हैं यह भी देखने का एक तरीका होगा कि नोटबंदी ने राजनीतिक दलों को कितना प्रभावित किया। सीधी भाषा में तर्क दिए जाते थे कि चुनाव प्रचार कितनी सादगी से होते हैं वही सीधा तरीका होगा कथित असरों को समझने का। लेकिन शायद ही चुनाव प्रचार के तामझाम में कोई फर्क पड़ा होगा। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से लेकर प्रिंट मीडिया तक, सड़कों से लेकर चौराहों तक प्रचार, प्रसार और इश्तेहार की दुनिया वैसे ही चमकती दमकती रही। रैलियां आलिशान सी रही। जमकर कार्यक्रम होते रहे। आसमान में हेलीकॉप्टर वैसे ही घूमते रहे। इसी दौर में दो बड़े नेताओं के यहां करोड़ों के शादी कार्यक्रम का भी विवाद हुआ। प्राथमिक तौर पर ऐसा लगा कि किसी भी राजनीतिक पार्टी को नोटबंदी या नकदी की कमी का उतना असर नहीं पड़ा, जितना आम नागरिकों को शादी के सीजन में या रोजाना जिंदगी में झेलना पड़ा था। या फिर राजनीतिक दलों ने इसका इलाज ढूंढ निकाला होगा या फिर सारी लेनदेन इलेक्ट्रॉनिक तरीके से की गई होगी! क्या हुआ होगा वो शायद ही पता चल पाए। लेकिन चुनावी प्रचार, रैलियां और तामझाम बदस्तूर शबाब पर ही रहा।
सीएमएस का सर्वे – 1,000 करोड़ रुपये में खरीदे गए वोट
सीएमएस के सर्वे को देखकर वो आशंकाएं सच होती दिखी जो चुनावी प्रचार के मंजर से दिखी थी। राजनेताओं ने दोनों हाथों को खोलकर पैसा लूटाया होगा ऐसी आशंकाओं को सीएमएस के सर्वे से वजन मिला। लगा कि नोटबंदी कम से कम चुनावी तामझाम या राजनेताओं के आगे बौनी साबित हुई। सीएमएस के चुनाव पूर्व एवं पश्चात सर्वेक्षण के मुताबिक उत्तरप्रदेश के चुनाव में विभिन्न दलों ने 5,500 करोड़ रुपये खर्च किए। सर्वे का चौंकानेवाला दावा यह था कि इनमें से करीब 1,000 करोड़ रपये ‘वोट के बदले नोट’ पर खर्च किए गए। सर्वे के दौरान करीब एकतिहाई मतदाताओं ने नकद या शराब की पेशकश की बात मानी थी ऐसा सर्वे का दावा था। इस चुनाव में चौड़े पर्दे पर प्रदर्शन और वीडियो वैन समेत प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक सामग्री पर ही 600 से 900 करोड़ रपये खर्च हुए। सर्वेक्षण कहता था कि उत्तरप्रदेश में डाले गए हर मत पर करीब 750 रुपये खर्च आया, जो देश में सर्वाधिक था। रिपोर्ट के मुताबिक इस विधानसभा चुनाव में उत्तरप्रदेश में करीब 200 करोड़ रुपये और पंजाब में 100 करोड़ रुपये से अधिक धनराशि जब्त की गई। सर्वेक्षण ने दावा किया कि, “रूझान के मुताबिक वर्ष 2017 में 1000 करोड़ रुपये मतदाताओं के बीच वितरित किए जाने का अनुमान है।” जितने मतदाताओं पर सर्वेक्षण किया गया उनमें से 55 फीसदी अपने आसपास में किसी न किसी ऐसे व्यक्ति को जानते थे जिन्होंने इस या पिछले विधानसभा चुनावों में वाकई पैसे लिए।
अध्ययन के अनुसार सबसे आश्चर्य की बात तो यह रही कि नोटबंदी से चुनाव व्यय काफी बढ़ गया। कुछ निर्वाचन क्षेत्रों, जहां मुकाबला कड़ा था, मतदाताओं की संख्या और मतदाता की भूमिका को प्रभावित करने के हिसाब से लोगों के बीच 500 से लेकर 2000 रुपये तक बांटे गए। दो तिहाई मतदाताओं के हिसाब से उम्मीदवारों ने पहले से ज्यादा खर्च किए।
विधानसभा चुनाव के नतीजे, कइयों ने कहा कि नोटबंदी से कोई लेना-देना नहीं, सरकार ने नोटबंदी की जीत बताया
2017 में इन दिनों पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए। गोवा, पंजाब, उत्तराखंड, मणिपुर और उत्तरप्रदेश में चुनाव आयोजित हुए और नतीजें कुछ इस प्रकार रहे। उत्तरप्रदेश में भाजपा ने तमाम विरोधियों को जबर्दस्त शिकस्त दी। यहां 403 सीटों में से भाजपा ने 312, जबकि भाजपा गठबंधन ने 325 सीटें जीती। एसपी-कांग्रेस का गठबंधन 54 तथा बीएसपी 19 पर सीमट गए। देश के सबसे बड़े सूबे में भाजपा की बंपर जीत ने उसकी सरकार के खिलाफ उठ रहे सवालों को जैसे कि समेट लिया। यूपी के बाद उत्तराखंड में भी भाजपा को बहुमत मिला। यहां 70 सीटों में से भाजपा ने 57 सीटें जीती, कांग्रेस 11 सीटें जीत पाई। हालांकि यूपी और उत्तराखंड को बाद करते हुए अन्य राज्यों में कांग्रेस आगे रही। पंजाब की 117 सीटों में से कांग्रेस ने 77 सीटें जीती, जबकि आप 20 तथा भाजपा-अकाली गठबंधन 18 पर रुक गए। मणिपुर की 60 सीटों में से कांग्रेस ने 28 सीटें जीती, जबकि भाजपा ने 21 सीटें ली। गोवा में कांग्रेस 17 पर जीती, जबकि भाजपा 13 पर। गोवा और मणिपुर में दूसरे नंबर पर आने के बावजूद भाजपा ने गठबंधन करके सरकारें बना ली। इन नतीजों को सरकार ने नोटबंदी की जीत बताया। हालांकि तीन राज्यों में ये जीत का दावा कुछ सवाल खड़े ज़रूर कर गया। वैसे ये सब राजनीतिक चीजें और दावे या विषय कहे जा सकते हैं। लेकिन, किसी भी सरकारी और राष्ट्रीय योजना की सफलता या असफलता को नापने के लिए यह मापदंड किस हद तक जायज हो सकते हैं ये आम नागरिकों को सोचना है, जहां शायद ही राय एक सरीखी होगी।
2000 का नोट रद्द नहीं होगा – वित्तमंत्री
तत्कालीन केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने 17 मार्च 2017 के दिन स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि 2000 का नोट रद्द नहीं होगा। वित्तमंत्री ने लोकसभा में लिखित जवाब देते हुए यह कहा। उन्होंने कहा कि, “सरकार के सामने 2000 रुपये के नोट को बंद करने का कोई प्रस्ताव नहीं है।”
नोटबंदी इंपैक्ट: अघोषित कैश डिपॉजिट पर 6,000 करोड़ रुपए का मिला टैक्स
विशेष जांच टीम (एसआईटी) के उपाध्यक्ष जस्टिस अर्जित पसायत ने 17 मार्च 2017 को कहा कि नोटबंदी के बाद सरकार ने अघोषित टैक्स डिपॉजिट पर तकरीबन 6,000 करोड़ रुपए जुटाए हैं। उन्होंने कहा कि यह संख्या बढ़ भी सकती है। अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक, टैक्स अधिकारियों ने उन सभी लोगों से ब्यौरा मांगा जिन्होंने नोटबंदी के बाद पुरानी करेंसी को अपने या दूसरे के अकाउंट में एक मुश्त जमा कराया था। वहीं, कई ऐसे भी लोग थे जो सजा से बचने के लिए एमनेस्टी स्कीम के तहत अपनी अघोषित आय पर 60 फीसदी टैक्स पेनल्टी देने को तैयार थे। हालांकि, केंद्र सरकार ने इसे भी बढ़ा कर 75 फीसदी कर दिया था।
31 दिसम्बर के बाद पुराने नोट को लेना क्यों बंद कर दिया गया – सुप्रीम कोर्ट का सवाल
22 मार्च 2017 के दिन सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से सवाल पूछा कि, “31 दिसम्बर 2016 के बाद 500 और 1000 के पुराने नोट बैंक में जमा करने के लिए क्यों वक्त नहीं दिया गया?” चीफ जस्टिस जेएस खेहर की अध्यक्षतावाली बेंच ने टिप्पणी करते हुए कहा कि, “आप के पास सत्ता है लेकिन इसका मनमाना इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।” अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा कि, “संसद ने हमें कहा था कि कौन सा तबका पुराने नोट जमा नहीं करवाया पाया उसकी जांच करे और इसीलिए हमने एनआरआई के लिए विंडो खुली रखने के लिए यह किया।”
पुराने नोट 31 मार्च तक क्यों बदले नहीं गए – आरटीआई के जवाब में आरबीआई ने जवाब देने से मना किया
आरटीआई के जरिये एक सवाल पूछा गया था कि आरबीआई ने रद्द हो चुके नोट को 31 मार्च तक क्यो नहीं बदले? आरटीआई ते तहत सवाल पूछने वाले को केंद्रीय सूचना अधिकारी सुमन रे ने कहा कि, “आरटीआई कानून की धारा 2 (एफ) के तहत यह जानकारी सूचना के दायरे में नहीं आती।” आरबीआई ने कहा कि, “पारदर्शिता कानून के तहत इस सवाल का जवाब नहीं दिया जा सकता।” आरटीआई में एक सवाल यह भी पूछा गया था कि नोटबंदी से पहले केंद्रीय वित्तमंत्री तथा मुख्य आर्थिक सलाहकार से परामर्श किया गया था या नहीं? आरबीआई ने भी इसका जवाब कुछ ऐसे ही अंदाज में दिया, लगा कि नोटबंदी के विषय में कई सारी जानकारियां प्राप्त करना टेढ़ी खीर जैसा है।
गुजरात के तीन किसानों ने सरकार के अध्यादेश को सुप्रीम में दी चुनौती, सुप्रीम का केंद्र और आरबीआई को नोटिस
गुजरात के सुरेन्द्रनगर जिले के पाटडी इलाके के तीन किसानों ने केंद्र सरकार के उस अध्यादेश को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी जो 30 दिसम्बर 2016 के दिन आया था। दरअसल ये तीन किसान 46 लाख के पुराने नोट 30 दिसम्बर 2016 तक बैंक में जमा नहीं कर पाए। वे ये नोट जमा नहीं कर पाए, क्योंकि उनके पास पैन कार्ड नहीं था। आनन-फानन में वो पैन कार्ड निकलवाते उससे पहले 30 दिसम्बर 2016 के दिन सरकारी अध्यादेश आ गया कि अब 31 दिसम्बर ही नोट जमा करने का आखिरी दिन होगा, उसके बाद एनआरआई ही अपने नोट जमा करवा पाएंगे। परेशान किसानों ने आखिरकार सुप्रीम का दरवाजा खटखटाया और सरकारी अध्यादेश की वैधता तथा अध्यादेश के अंदर कही गई बातों के पेंच को लेकर अपनी दिक्कतें सामने रखी। हालांकि केंद्र सरकार ने इस याचिका का विरोध किया। लेकिन कोर्ट ने केंद्र सरकार और आरबीआई को नोटिसें देकर पूछा कि क्यों किसानों को अध्यादेश की धारा 4(2)(आई) के तहत खास किस्सों में पैसे जमा करवाने से इनकार किया जाता है?
बजट में अपनी ही घोषणा में संशोधन ले आयी सरकार, 2 लाख रुपये से ज्यादा कैश ट्रांजेक्शन पर लगेगा 100 फीसदी जुर्माना
केंद्र सरकार ने 21 मार्च 2017 के दिन संसद में यह प्रस्ताव रखा। नए नियमों के मुताबिक दो लाख रुपये से अधिक के नकद लेनदेन अब गैर-कानूनी माना जाएगा और ऐसा करने पर भारी जुर्माना भरना होगा। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 1 फरवरी को पेश वित्त विधेयक 2017 में 21 मार्च को 40 संशोधन के प्रस्ताव किए जो एक 'अभूतपूर्व' बात थी। संशोधन पेश किए जाने के बाद राजस्व सचिव हसमुख अधिया ने एक ट्वीट किया कि प्रावधान का उल्लंघन होने पर इतनी ही राशि का जुर्माना वसूला जाएगा। जुर्माना उस व्यक्ति या इकाई से वसूला जाएगा, जो नकद प्राप्त करेंगे।
फरवरी में आम बजट पेश करने के दौरान वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि नकद लेनदेन की सीमा 3 लाख रुपये तय की जानी चाहिए। लेकिन सरकार ने नए वित्त वर्ष से नकद लेनदेन की अधिकतम राशि दो लाख रुपये करने का फैसला किया। हालांकि सरकार, बैंकिंग कंपनियों, पोस्ट ऑफिस सेविंग्स बैंक या को-ऑपरेटिव बैंकों के लिए नकद लेनदेन की सीमा लागू नहीं होगी।
इस नियम को लेकर अप्रैल 2017 में उपभोक्ताओं के बीच असमंजस की स्थिति पसर रही थी। अप्रैल 2017 में आयकर कानून में नई शामिल धारा 269 एसटी के बारे में स्पष्टीकरण जारी करते हुए सीबीडीटी ने कहा कि यह प्रतिबंध बैंकों और डाकघरों से निकासी पर लागू नहीं होगा। 6 अप्रैल के दिन जारी बयान में कहा गया कि यह फैसला किया गया है कि नकद लेनदेन पर अंकुश बैंकों, सहकारी बैंकों और डाकघर बचत खातों से निकासी पर लागू नहीं होगा। सीबीडीटी ने कहा कि इस बारे में आवश्यक अधिसूचना जारी की जाएगी।
नोटबंदी के असर का ऑडिट करेगा कैग, राजस्व ऑडिट करने की भी तैयारी
26 मार्च 2017 के दिन मीडिया ने शशिकांत शर्मा के हवाले से बताया कि नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने नोटबंदी के प्रभाव का ऑडिट करने और इसके सरकार के राजस्व पर पड़े असर का आकलन करने की योजना बनाई है। इसके साथ यह भी कहा गया कि सीएजी नई वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) व्यवस्था के तहत कर राजस्व का ऑडिट करने की भी तैयारी कर रहा है।
नोटबंदी का असर- क्रेडिट कार्ड को पछाड़ डेबिट कार्ड बना लोगों की पसंद
नोटबंदी से पहले अक्टूबर 2016 तक देश में डेबिट कार्ड के इस्तेमाल कुल कार्ड इस्तेमाल का 42 फीसदी था। मार्च 2017 तक यह बढ़कर 60 फीसदी तक जा पहुंचा। यह बदलाव सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में ज्यादा देखने को मिला। ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स, पंजाब और सिंध बैक में कार्ड का प्रयोग 5 गुना तक बढ़ गया। अक्टूबर के मुकाबले दिसंबर ने तिगुनी और जनवरी में दोगुनी कार्ड ट्रांजेक्शन देखने को मिलीं। पेमेंट कंपनियों के अनुसार ज्यादातर भुगतान पेट्रोल पंप, ट्रैवलिंग और बिल भरने के लिए किया गया।
पिछले साल अक्टूबर में सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंकों ने 61.7 करोड़ डेबिट कार्ड से 10,893 करोड़ रुपए की डिजिटल ट्रांजेक्शन की। प्राइवेट सेक्टर के बैंकों ने इस दौरान 12.25 करोड़ डेबिट कार्ड्स से 11,048 करोड़ रुपए की डिजिटल पेमेंट की। नोटबंदी के बाद यह नजारा बदल गया। इस साल जनवरी में सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंक ने 29,339 करोड़ और निजी क्षेत्र के बैकों ने 19,664 करोड़ रुपए की डिजिटल ट्रांजेक्शन की। नोटबंदी से पहले 100 डेबिट कार्ड्स में से सिर्फ 19 ट्रांजेक्शन प्रतिमाह ही दर्ज की जाती थीं। इसके बाद दिसंबर में यह आंकड़ा 54 ट्रांजेक्शन और जनवरी में 40 ट्रांजेक्शन तक पहुंचा।
एक्स्पायरी डेट के साथ बड़े नोट छापने का सांसद का सुझाव
30 मार्च 2017 के दिन टीडीपी के सांसद जयदेव गाला ने राज्यसभा में एक सुझाव पेश किया। फाइनान्स बिल-2017 के संदर्भ में राज्यसभा में पांच संशोधनों पर चर्चा के दौरान सांसद ने कहा कि बड़े नोट एक्स्पायरी डेट के साथ छापे जाने चाहिए। उन्होंने सुझाव में यह भी कहा कि 2000 का नोट रद्द कर देना चाहिए और 200 रुपये का नया नोट लाना चाहिए।
200 रुपये का नोट आएगा बाज़ार में?
टीडीपी के सांसद का एक सुझाव उनकी जानकारी के आधार पर था या सिर्फ संयोग था ये पता तो नहीं, लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया 200 रुपये के नोट जारी करने की तैयारी में था। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक भारतीय रिजर्व बैंक इस साल जून के बाद इन नोटों को जारी कर सकता था। दावा किया गया कि पिछले महीने हुई एक मीटिंग में ही आरबीआई ने 200 के नोटों को लागू करने का फैसला ले लिया था। यदि 200 रुपये के नोट जारी किए जाते हैं तो हाल के दिनों में 2000 रुपये के नोटों के बाद जारी की जाने वाली यह दूसरी नई करेंसी होगी। हालांकि पिछले महीने मीडिया ने 1000 रुपये के नये नोटों को जारी करने के बारे में रिपोर्ट छापी थी, जिसे आरबीआई ने सिरे से खारिज कर दिया था। हालांकि इस नये दावे को लेकर आरबीआई ने अब तक कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया था।
200 के नये नोट फिर एक बार खबरों में छाये
200 रुपये के नये नोट फिर एक बार खबरों में छाये रहे। वैसे अब 500 और 2000 के नये नोट की तरह इसमें ये दावा तो नहीं किया जा सकता था कि यह अतिगुप्त प्रक्रिया थी। 7 अप्रैल को फिर एक बार 200 के नये नोट की खबर छायी रही। खबरों में कहा गया कि आरबीआई 200 रुपये के नए नोट लाने की तैयारी कर रहा था। यह नोट कैसा होगा इसकी डिजाइन अभी तक जारी नहीं हुआ था। बताया तो यह भी गया कि ये नए नोट सिर्फ बैंक काउंटर से ही प्राप्त हो सकेंगे। फिलहाल ये नोट एटीएम में उपलब्ध नहीं होंगे। कहा गया कि आरबीआई बैंक शाखाओं के माध्यम से ही नए नोटों को लोगों तक प्रसारित करना चाहता था। हिंदुस्तान टाइम्स की खबर के मुताबिक अधिकारी ने बताया कि, "एक बार फिर से सिस्टम को परेशान नहीं करना है, नवंबर और दिसंबर के बीच चार सप्ताह से अधिक परेशानी हुई है। इसलिए बैंक शाखाओं के जरिए इन नोटों को प्रसारित करने की सलाह दी गई है। हालांकि अभी यह केवल एक प्रस्ताव है।"
आरबीआई गवर्नर के वेतन में बंपर उछाल, नोटबंदी के बाद गवर्नर को मिला हैप्पी सरप्राइज
नोटबंदी के बाद अप्रैल 2017 में आरबीआई गवर्नर के वेतन में बंपर उछाल आया। केंद्र सरकार ने गवर्नर तथा डिप्टी गवर्नर, दोनों की बेसिक सैलरी में दोगुना से ज्यादा इज़ाफ़ा किया। इससे पहले गवर्नर की बेसिक सैलरी 90,000 होती थी, जो अब बढ़ाकर 2,50,000 कर दी गई। डिप्टी गवर्नर की बेसिक सैलरी में भी प्रतिमाह 80,000 का इज़ाफ़ा हुआ। यह इज़ाफ़ा 1 जनवरी 2017 से लागू हो जाना था।
क्या मीडिया ने नदारद कर दी थी लोगों की परेशानियां? कई जगहों पर अब भी मंजर बहुत नहीं बदला था
वैसे तो फरवरी माह में पांच राज्यों के चुनाव घोषित होते ही मीडिया ने नोटबंदी पर लोगों की दिक्कतें जैसे विषय को नदारद कर दिया था। चुनाव, चुनाव प्रचार, भाषण, वादे, आरोप, प्रतिआरोप के दौर को मीडिया ने पूरी जगह दी थी, लेकिन नोटंबदी के बाद लोगों की परेशानिया मीडिया से गायब सी दिख रही थी। चुनाव खत्म होने के बाद ये चीजें पूरी तरह से मीडिया ने नजरअंदाज कर दी थी। लेकिन अप्रैल आते आते कई जगहों पर अब भी मंजर उतने तो नहीं बदले थे। एनआरआई अलग अलग शहरों में आरबीआई के सामने कतारों में लगे थे। ऐसा नहीं था कि इन कतारों में एनआरआई ही थे, बल्कि वो भारतीय नागरिक भी थे जो किसी वजहों से 31 दिसम्बर तक अपने नोट जमा नहीं करवा पाए थे। कतारों में परेशानियों की कहानियां, कही पर आंसूओं के साथ आरबीआई के सामने तकते किसान और नागरिक, एटीएम के हालात, नकदी की कमी आदि चीजें मीडिया से नदारद ही रही।
वैसे नोटबंदी के पहले 50 दिन के सामने हालात उतने बुरे नहीं थे, लेकिन कई शाखाएं और कई इलाकें ऐसे थे, जहां वो कहानियां अब भी खत्म नहीं हुई थी। हम पूरे भारत की तो बात नहीं कर रहे, लेकिन कई शाखाएं और इलाके ऐसे थे, जहां अब भी दिक्कतें मुंह फाड़े खड़ी थी। कई जगहों पर निजी बैंकों में पिछले तीन महीनों से चेकबुक ही नहीं दिए गए थे। बैंक से नकदी निकालने जाते तो लोगों को 10 के नोट के बंडल दिए जाते। यानी कि नये और बड़े नोट की कमी अब भी मौजूद थी। निजी बैंकों के एटीएम में कभी पैसे होते, कभी नहीं होते। नो-कैश के बोर्ड अब भी लटकाए जाते थे। नोटों के बंडल के दाम लग रहे थे। दस के सिक्कों की कहानियां अब भी जारी थी।
हर तीन से चार साल में बदलेंगे नोट?
टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक जालसाजी की जांच के लिए सरकार वैश्विक मानकों के अनुसार 2000 रुपए और 500 रुपये जैसे बड़े मूल्य वर्ग के नोटों के सिक्योरिटी मार्क (सुरक्षा चिन्ह) बदलने का प्लान बना रही थी। मीडिया खबर की माने तो, 30 मार्च 2017 को वित्त और गृह मंत्रालयों के वरिष्ठ अधिकारियों व केंद्रीय गृह सचिव राजीव महर्षि के साथ हुई एक उच्च स्तरीय बैठक में इस मुद्दे पर चर्चा हुई। जाली नोटो का खात्मा के नारे के साथ लागू की गई नोटबंदी का बुरा हाल तो तभी हुआ जब पहले 50 दिनों के भीतर ही इन नये नोट के नये जाली संस्करण खुराफातियों ने बाज़ार में उतार दिए। जब्त की कई नकली भारतीय करेंसी को बरीके से देखा तो पता चला कि 2000 के नोट के 17 सिक्योरिटी फीचर्स में से 11 को दोहराया गया था!!! नकली नोटों में ट्रांसपैरेंट एरिया, वॉटरमार्क, अशोक स्तंभ प्रतीक, बाईं तरफ लिखा गया 'रुपये 2000' व भारत के गवर्नर के हस्ताक्षर व अन्य कई बड़े सिक्योरिटी मार्क एक जैसे पाए गए!!! इसके अलावा, 'चंद्रयान', 'स्वच्छ भारत' लोगो भी हूबहू रिवर्स साइड पर कॉपी किया गया था। हालांकि जब्त किए गए नकली नोटों की प्रिंट और कागज की गुणवत्ता खराब थी, लेकिन फिर भी वे वास्तविक नोटों के समान लग रहे थे।
एसबीआई में मिनिमम बैलेंस के बाद अब चेकबुक, लॉकर और एटीएम पर भी देना होगा चार्ज
ये नियम नए वित्त वर्ष यानि 1 अप्रैल से लागू हो गए। यहां ये गौर करना होगा कि भारतीय स्टेट बैंक में 5 सहायक बैंकों के अलावा भारतीय महिला बैंक का विलय हो चुका था। इन बैंकों में स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर, स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद, स्टेट बैंक ऑफ मैसूर, स्टेट बैंक ऑफ पटियाला और स्टेट बैंक ऑफ त्रावणकोर शामिल थे। एसबीआई के नियमों में बदलाव से इन पांच बैंकों के ग्राहकों पर भी असर पड़ा। खबरों के अनुसार, मिनिमम बैलेंस रखने के बाद अब एसबीआई चेक बुक, एटीएम से पैसे निकालने की लिमिट और लॉकर्स जैसी सुविधाओं के नियमों में भी बदलाव करने जा रहा था। एसबीआई ने मंथली एवरेज बैलेंस यानि एमएबी बढ़ा दिया। इसे 500 रुपए से बढ़ाकर 5000 रुपए कर दिया गया। ये नियम 6 मेट्रो शहरों में लागू हुआ। जिन ग्राहकों का बैंक में सेविंग अकाउंट था उन्हें एमएबी बनाए रखना अनिवार्य किया गया। ऐसा नहीं होने पर उन्हें जुर्माना भरना था। मेट्रो सिटीज के अलावा अरबन और सेमी अरबन शहरों के एसबीआई ब्रांच के लिए एमएबी क्रमश: 3000 और 2000 रुपए निर्धारित की गई। जबकि रूलर ब्रांच के लिए 1000 रुपए एमएबी तय की गई। खातों में एमएबी न रखने पर 20 से 30 रुपए का दंड लगाया जाना था। हालांकि कुछ अकाउंट्स पर एसबीआई का एमएबी नियम लागू नहीं हुआ था। प्रधानमंत्री जन-धन योजना, बेसिक सेविंग अकाउंट और सुरभि अकाउंट पर ये लागू नहीं था।
इसके अलावा अगर कोई व्यक्ति एटीएम का अनलिमिटेड इस्तेमाल करना चाहता है तो उसे अपने अकाउंट में 25,000 की रकम रखना अनिवार्य था। अगर अकाउंट में 25,000 रुपए नहीं रखते तो हर महीने पांच बार एटीएम के इस्तेमाल के बाद आरबीआई के गाइडलाइंस के मुताबिक चार्ज देना था। एसबीआई ने लॉकर का किराया भी बढ़ा दिया। अब 12 बार मुफ्त में लॉकर का इस्तेमाल कर सकते थे। इसके बाद उपभोक्ता को 100 रुपए के अलावा सर्विस टैक्स भी देना था। चेक के लिए भी अब पैसे चुकाने थे। एसबीआई हर फाइनेंशियल ईयर में 50 चेक मुफ्त दे रहा था, इसके बाद हर चेक के लिए 3 रुपए का शुल्क अदा करना था। 25 लीफ के लिए 75 रुपए और 50 लीफ के लिए 150 रुपए देने थे। इसके अलावा सर्विस टैक्स अलग से लिया जाना था। एसबीआई ओपनिंग फीस के तौर पर 20 रुपए लेना भी शुरू कर रहा था। ये सेविंग्स अकाउंट के इनरोलमेंट के लिए लिया जाना था।
बैंकों पर लगने लगा आरोप, जुर्माने से आय बढ़ाने बैंक खाली रख रहे है एटीएम
वैसे यहां ये स्पष्ट हो ये आरोप था। दरअसल हमने हमारे लेखों में आरोपों या प्रत्यारोपों को जगह नहीं दी है। यहां बैंकों पर लग रहे इस कथित आरोपों के लिखने के पीछे उद्देश्य अलग है। उद्देश्य यही है कि जुर्माने और ट्रान्जेक्शन के नियमों के बाद लोगों में बैंक किस तरह से संदिग्ध से बन गए थे। हो सकता है कि लोगों के ये आरोप गलत हो, लेकिन समझना होगा कि बैंकिग सिस्टम पर लोग अब सवाल उठा रहे थे और दूसरी निगाहों से बैंकों को देख रहे थे। बचत खातों में तय सीमा से ज्यादा ट्रान्जेक्शन करने पर जुर्माना लगेगा। इस नियम के बाद लोगों ने जब बैंकों के एटीएम को खाली पाया तो लोग नाराजगी के चलते यही आरोप लगाने लगे थे। एसबीआई जैसे बड़े बैंक के एटीएम भी खाली पाए जाते थे। नोटबंदी के महीनों बाद भी यह हालात थे। ऊपर से सरकार और आरबीआई लोगों को बता रहे थे कि नये नोट छापने का काम चौबीसों घंटे और सातों दिन जारी है और नकदी की कोई कमी नहीं है! लेकिन अब भी एसबीआई, एचडीएफसी, आईसीआईसीआई समेत कई बड़ी बैंकों के एटीएम खाली पाए जाते थे! लोगों ने यह आरोप लगाने शुरू कर दिए कि बैंक जानबूझकर एटीएम में पैसे नहीं डाल रहे है। और इसके पीछे लोग अपने अपने तरीकों से बैंकों पर आरोप लगाने लगे। बैंकों के शूल्क और जुर्माने के नये होलसेल नियमों ने लोगों को कितना नाराज किया था इसका भी यह एक नमूना था।
दस के सिक्के मान्य हैं, स्वीकार नहीं करने पर राजद्रोह का मामला बनेगा – आरबीआई
10 के सिक्कों की माथापच्ची महीनों बाद भी जारी थी। इसे लेकर कई सारी अफवाहें या मान्यताएं पसरी हुई थी। वही इसे लेकर अलग अलग माध्यमों से घोषणाएं भी की गई थी कि ये सिक्के कानूनन मान्य हैं। बावजूद इसके ये सिक्के कई जगहों पर स्वीकार नहीं किये जाते थे। अप्रैल 2017 में आरबीआई ने फिर स्पष्ट किया कि, “अलग अलग समय पर विविध डिजाइन के साथ दस के सिक्के जो जारी किए गए थे, सभी मान्य हैं।” आरबीआई ने कहा कि, “तमाम डिजाइन वाले दस के सिक्के कानूनन मान्य हैं और असली है, इसे अस्वीकार करना राजद्रोह करने जैसा है।”
नोटबंदी के बाद 5,400 करोड़ के बेहिसाबी आय जब्त हुई - सरकार का सुप्रीम कोर्ट मे हलफनामा
अप्रैल 2017 में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर किया। सरकार ने बताया कि, “नवम्बर 2016 से लेकर 10 जनवरी 2017 तक 5,400 करोड़ की बेहिसाबी आय जब्त की गई थी।” तकनीकी रूप से ये बेहिसाबी पैसा था, जिसका हिसाब धारणकर्ताओं को पेश करना था, क्योंकि बेहिसाबी आय को काला धन नहीं कहा जाता। जांच के बाद ही सारी चीजें स्पष्ट होनी थी।
बैंक में पुराने नोट जमा कराने को लेकर नयी पाबंदी
आरबीआई ने 24 अप्रैल 2017 को एलान किया कि अब 500 और 1000 रुपये के पुराने नोटों में 30 दिसंबर तक सिर्फ एक बार ही पांच हज़ार रुपये से अधिक राशि केवाईसी खाते में जमा कराई जा सकती है। इतना ही नहीं, पांच हज़ार रुपये से अधिक राशि जमा करने वालों को बैंक अधिकारियों को बताना होगा कि अब तक वे पुराने नोट क्यों नहीं जमा करा पाए थे। केंद्रीय बैंक ने ये कड़ी शर्तें एक ही खाते में पांच हज़ार रुपये से अधिक एकमुश्त राशि जमा करने वालों पर भी लगाई। लेकिन कहा कि नई कालाधन कल्याण योजना (पीएमजीकेवाई) के तहत पुराने नोट जमा करने की कोई सीमा नहीं होगी। अधिक राशि जमा करने वालों को कम से कम दो बैंक अधिकारियों के समक्ष उपस्थित होकर जवाब देना होगा कि इससे पहले वे पुराने नोट क्यों नहीं जमा करा पाए और संतोषजनक जवाब पाने के बाद ही उन्हें यह रकम जमा कराने की अनुमति दी जाएगी। उनका जवाब भविष्य में कभी लेखा परीक्षण के रिकॉर्ड के लिए सुरक्षित रखा जाएगा। कोर बैंकिंग सॉल्यूशन (सीबीएस) में भी उनके खाते पर उचित निशान लगा दिया जाएगा ताकि वे आगे कोई राशि जमा न कर सकें।
शशिकांत दास ने कहा - पुराने नोट गिनने में अभी लगेंगे कुछ और महीने
नोटंबदी के बाद से बैंकों में जमा किए गए पुराने नोट की गिनती अभी जारी है और इसमें अभी कुछ और महीने लगेंगे, क्योंकि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) एक-एक नोट गिन रहा है। आर्थिक मामलों के सचिव शशिकांत दास ने 4 मई 2017 को यह बातें कहीं। दास ने एक टीवी चैनल को दिए अपने इंटरव्यू में कहा कि, “मैं उम्मीद करता हूं कि अगले कुछ महीनों में नोट गिनने की प्रक्रिया पूरी हो जाएगी। आरबीआई की गिनने की क्षमता सामान्य स्थिति के मुताबिक है। लेकिन, यहां नोटबंदी के बाद प्रचलन में रहे 86 फीसदी नोट गिनने की जरूरत आ पड़ी है।”
उन्होंने कहा कि वित्त मंत्रालय आरबीआई के साथ मिलकर उन क्षेत्रों की पहचान कर रहा है, जहां नोटों की दोबारा गिनती की संभावना है। क्योंकि नकदी बैंक की शाखाओं से उनके क्षेत्रीय कार्यालय और वहां से आरबीआई की करेंसी चेस्ट में जाती है। दास ने कहा कि, “पुराने नोटों की गिनती का काम काफी बड़ा है, क्योंकि एक-एक नोट गिने जा रहे हैं।” ‘एक-एक नोट गिने जा रहे है’ का मतलब तो यही निकलता था कि आरबीआई मशीनों का इस्तेमाल नहीं कर रहा था! डिजिटल इंडिया में पैसे हाथ से गिने जा रहे थे!!!
सेविंग अकाउंट से कैश निकालना महंगा, स्टेट बैंक ने किये बदलाव
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया अपने नियमों में फिर से बदलाव करने जा रहा था। बदले हुए नियम 1 जून से लागू होंने थे। बैंक बेसिक सेविंग डिपॉजिट अकाउंट होल्डर के लिए सर्विस चार्ज के नियमों में बदलाव करने जा रहा था। प्रस्तावित बदलावों के मुताबिक, हर कटे-फटे और गीले नोट पर बैंक 2 से 5 रुपए का चार्ज लेगा। अगर आपके पास 20 से ज्यादा ऐसे नोट हैं जिनकी कीमत 5000 रुपए तक की है तो इस पर ये चार्ज लगेगा। 5000 से कम मूल्य पर ये चार्ज नहीं देना होगा। एटीएम या ब्रांच से बिना चार्ज के पैसे निकालने की लिमिट 4 रहेगी, इससे ज्यादा बार पैसे निकालने पर चार्ज देना होगा। एसबीआई बैंक के एटीएम से तय नंबर से ज्यादा बार ट्रांजेक्शन करने पर 10 रुपए अतिरिक्त शुल्क देना होगा। दूसरे बैंक से ज्यादा ट्रांजेक्शन पर हर बार पैसों के निकास पर 20 रुपए का चार्ज देना होगा। इसके अलावा सर्विस टैक्स अलग से देना होगा। मास्टर और वीजा कार्ड के लिए बैंक चार्ज लेगा, केवल रुपे डेबिट कार्ड मुफ्त में मिलेगा। हालांकि ये सारे प्रस्तावित बदलाव थे। सही स्थिति 1 जून 2017 को पता चलनी थी।
आरबीआई ने नोटबंदी से जुड़ी जानकारियां सार्वजनिक करने से किया इनकार, कहा- देश के आर्थिक हितों को पहुंच सकता है नुकसान
मई 2017 में आरबीआई ने नोटबंदी में अपनाई गई प्रक्रिया का ब्यौरा देने से इनकार करते हुए कहा कि, “ऐसा करना आर्थिक हितों के लिए नुकसानदेह होगा।” सूचना के अधिकार के तहत दाखिल एक आवेदन पर केंद्रीय बैंक ने कहा कि, “नोटबंदी की प्रक्रिया का विवरण बताने से भारत सरकार की भावी आर्थिक या वित्तीय नीतियों की रास्ते में बाधाएं आ सकती हैं।” आरबीआई से उसके कार्यालय में हुई उन बैठकों के ब्यौरे की प्रति मांगी गई थी, जिनमें 500 और 1000 रुपए के नोटों को बंद करने का निर्णय लिया गया था। आरबीआई ने आरटीआई आवेदन के जवाब में कहा कि, “ऐसी सूचना का खुलासा, ऐसे फैसले लेने के उद्देश्य की दृष्टि से देश के आर्थिक हितों के लिए नुकसानदेह होगा। अतएव संबंधित सूचना सूचना के अधिकार कानून की धारा आठ (1) के तहत इस तरह की सूचना न देने की छूट के अंतर्गत आती है। यह धारा उन सूचनाओं को साझा करने पर रोक लगाती है, जो देश की संप्रभुता एवं अखंडता, दूसरे देशों के संदर्भ में देश की सुरक्षा, रणनीतिक, वैज्ञानिक या आर्थिक हितों पर बुरा असर डाल सकती है।”
2014 में 1,36,000 करोड़ का काला धन भारत से बाहर गया – रिपोर्ट
ग्लोबल फाइनेंशियल इंटेग्रिटी (जीएफआई) द्वारा मई 2017 में प्रकाशित किये गए एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2014 में 21 अरब डोलर, यानी कि 1,36,000 करोड़ का काला धन विदेशों में चला गया था। रिपोर्ट में बताया गया कि 2013 के मुकाबले 2014 में 19 प्रतिशत ज्यादा काला धन बाहर गया था। जीएफआई की इस रिपोर्ट के मुताबिक सन 2014 में 6,38,000 करोड़ का काला धन भारत में आया था। 2013 के मुकाबले ये 11 प्रतिशत ज्यादा था। बताया गया कि काला धन की ये हेराफेरी, यानी कि देश में काला धन का आना या देश के बाहर जाना, अंतरराष्ट्रीय व्यापार के नाम पर किया जाता है। 87 प्रतिशत काला धन इसी रास्ते आता-जाता है।
जाली नोट की कहानियां जस की तस, एटीएम अब भी उगल रहे थे चूरनछाप नोट
जाली नोट की कहानियां जस की तस बनी रही। नोटबंदी लागू करते वक्त जाली नोटों के खात्मे के दावे किए गए थे। बढ़-चढ़ कर किए गए ये दावे चंद दिनों में ही धराशायी हो गए थे। क्योंकि 2000 के नोट की क्लोनिंग तुरंत होने लगी थी। नोटबंदी के पहले 50 दिनों में ही जाली नोटों की प्रमाणित कहानियां मिलने लगी थी!!! उसके बाद भी यह मंजर नहीं थमा। हद तो तब हो गई जब बैंक के एटीएम से चूरनछाप नोट मिलने की वारदातें बिन बादल बरसात की तरह बरसने लगी!!! ऐसी सैकड़ों घटनाएं हुई जिसमें एटीएम ने चूरनछाप नोट उगले थे और ये मंजर महीनों बाद भी नहीं थमा। 22 अप्रैल की ऐसी एक घटना अखबारों में छपी। मध्यप्रदेश में बिना महात्मा गांधी की तस्वीर वाले 2000 रुपये के नोट निकलने का मामला सामने आया! मामला भोपाल का था। टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक जब एक किसान एसबीआई एटीएम से 40,000 रुपये निकाले तो उसके साथ नकदी में फर्जी नोट निकला। पीड़ित का नाम पुरुषोत्तम नागर बताया गया था। पीड़ित ने कहा कि उन्होंने एटीएम के साथ-साथ स्थानीय पुलिस स्टेशन में और एसबीआई बैंक की शाखा में भी शिकायत दर्ज कराई, लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ। भोपाल में जनवरी 2017 में भी ऐसा एक वाक़या हुआ था, जब दो किसानों को बिना महात्मा गांधी की तस्वीर के नोट एटीएम ने चिटका दिए थे! दिल्ली में भी एक नोट ऐसा निकला था, जो ब्लैंक था! चिल्ड्रन बैंक ऑफ इंडिया लिखे नोट कई जगहों से मिले थे!
जापान तथा जर्मनी को मात देकर भारत दुनिया का तीसरा बड़ा अर्थतंत्र बनेगा – आईएमएफ
नोटबंदी के बाद और नोटबंदी के दौरान कई सारे नकारात्मक और हतोत्साहित करने वाले रिपोर्टों के बीच आईएमएफ ने कहा कि भारत जल्द ही दुनिया के पांच बड़े अर्थतंत्र में शुमार होगा। कहा गया कि ब्रिटन को पांचवे क्रम से हटाकर भारत उसकी जगह ले सकता है। आईएमएफ की ओर से कहा गया कि 2022 तक जर्मनी को हटाकर भारत चोथे क्रम पर होगा, जबकि 2030 तक भारत जापान तथा जर्मनी तक को मात देकर दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा अर्थतंत्र बन जाएगा।
फिच ने फिर नहीं बदली भारत की रेटिंग, 11 साल से एक ही स्तर पर बरकरार
सरकारी खजाने की कमजोर स्थिति का हवाला देते हुए वैश्विक रेटिंग एजेंसी फिच रेटिंग्स ने भारत के लिए अपनी सरकारी रेटिंग 2 मई 2017 को ‘बीबीबी-’ पर अपरिवर्तित रखी, साथ ही भावी परिदृश्य को स्थिर बताया। यह रेटिंग भारत को लगभग एक दशक पहले दी गई थी और तब से इसमें कोई बदलाव नहीं किया था। फिच ने इससे पहले भारत की सरकारी रेटिंग को 1 अगस्त 2006 में बीबी प्लस से बीबीबी- (स्थिर परिदृश्य के साथ) किया था। बाद में 2012 में उसने इसे बदलकर नकारात्मक किया और उसके अगले साथ स्थिर परिदृश्य वाला कर दिया।
भारत में सरकार व अनेक विश्लेषक वैश्विक एजेंसियों द्वारा दी जाने वाली रेटिंग पर सवाल उठाते रहे हैं और उनका तक है कि कुछ वर्षों में देश की आर्थिक बुनियाद में महत्वपूर्ण बदलाव हुआ है, लेकिन उक्त रेटिंग एजेंसी इस पर जैसे ध्यान ही नहीं दे रही हैं। उल्लेखनीय है कि सरकार ने अपनी आर्थिक समीक्षा 2017 में भी चीन की तुलना में भारत की रेटिंग तय करने में ‘भिन्न’ मानकों का पालन करने के लिए रेटिंग एजेंसियों की आलोचना की थी। इसमें कहा गया था कि ये एजेंसियां जीएसटी जैसी सुधारों को अपनी ‘गणना’ में शामिल नहीं कर रही जो कि उनकी खराब ‘साख’ को ही परिलक्षित करता है। वैसे भारत जैसे अर्थतंत्र को एक दशक से एक ही रेटिंग दिया जाये ये चीज़ प्राथमिक तौर पर संदेहास्पद ज़रूर लगती है, लेकिन इस पर विशेष प्रकाश तो विशेषज्ञ ही डाल सकते हैं।
केवल नोटबंदी से काले घन को रोका नहीं जा सकता – यूएन
जो बात 9 नवम्बर 2016 से कई लोग कह रहे थे, लिख रहे थे वो ही बात मई 2017 में यूएन ने कही। यूएन ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा कि काले धन पर अंकुश लगाने के लिए केवल नोटबंदी ही काफी नहीं है। अघोषित आय को ढूंढने के लिए अन्य कदमों की भी ज़रूरत है। यूएन के एशिया तथा प्रशांत इलाकों के सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण 2017 की रिपोर्ट के मुताबिक भारत के काला धन आधारित अर्थव्यवस्था जीडीपी के 20 से 25 फीसदी तक है, जिसमें माना जाता है कि नकदी के रूप में काला धन 10 फीसदी ही है। अब यही बुनियादी बात 9 नवम्बर 2016 से कही जा रही थी, यूएन ने इसे मई 2017 में कहा। रिपोर्ट में कहा गया कि नोटबंदी से काले धन को रोका नहीं जा सकता, इसके लिए व्यापक बुनियादी सुधार की ज़रूरत है।
(इंडिया इनसाइड, मूल लेखन 18 फरवरी 2017, एम वाला)
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