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Bye Bye 2017 : वही मंजर, जो याद दिलाते रहते हैं कि साल बदलेंगे, व्यवस्थाएं रहेगी जस की तस


2017 का यह साल सिद्धियां लेकर आया, नयी नीतियां लेकर आया, नये दौर लेकर आया, लेकिन अजीब था कि पुरानी सिद्धियां, पुरानी नीतियां और पुराना दौर बिलकुल नहीं बदला!!! अब इसमें पुरानी सिद्धियां, नीतियां या दौर... इन लफ्जों के तंज को मैट्रिक पास आदमी भी समझ सकता है। कहते हैं कि हकारात्मक सोच के साथ नये साल को गले लगाना चाहिए। इस लिहाज से यह नकारात्मक लेखन लग सकता है, लेकिन फिर नये साल में यही सुविचार लटके मिलते हैं कि अपनी गलतियों को ठीक करके आगे चलने से मंजिल मिलती है वगैरह वगैरह...। लिहाजा गलतियों को याद रखना ज़रूरी है, ताकि सुधारने का मौका मिले। वर्ना कल को इतने ज्यादा हकारात्मक हो जाएंगे कि लगेगा कि गलतियां है ही नहीं तो सुधारने की ज़रूरत क्या!!!

घोटाला... जो हुआ ही नहीं? करोड़ों के 2जी घोटाले में ए राजा, कनिमोझी समेत बड़े बड़े आरोपियों को अदालत ने किया बरी
ये अदालती फैसला वैसे तो साल के आखिरी दौर में आया, लेकिन था ही ऐसा कि उसे Shocking and Unbelievable सीरीज में पहला स्थान मिलना ही था। 2017 के आखिरी महीने में यूपीए-2 सरकार के दौरान हुए कथित 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में सीबीआई विशेष अदालत का जो फैसला आया वो वाकई अविश्वसनीय तथा झकझोरने वाली घटना थी। 21 दिसंबर 2017 के दिन पटियाला हाउस कोर्ट की सीबीआई विशेष अदालत ने ए राजा समेत 25 आरोपियों को बरी कर दिया। अदालत ने कहा कि इस मामले को साबित करने के लिए जांच एजेंसी के पास पर्याप्त सबूत नहींं हैं। कंपनियों को गलत तरह से टूजी स्पेक्ट्रम आवंटित करने का यह महाघोटाला यूपीए सरकार के समय का था। कैग के एक अनुमान के ​मुताबिक जिस कीमत में इन स्पेक्ट्रमों को बेचा गया और जिस कीमत में इसे बेचा जा सकता था उसमें 17.6 खरब रूपये का अंतर था। टूजी स्पेक्ट्रम घोटाले को स्वतंत्र भारत का सबसे बड़ा वित्तीय घोटाला माना गया था। लेकिन इस दिन जो फैसला आया, लोग वाकई सकते में थे। सोशल मीडिया पर एक लाइन खूब चली, जिसमें तंज कसते हुए लिखा गया था कि काले हिरण को किसी ने नहीं मारा था... आरुषि का कत्ल किसी ने नहीं किया था... और टूजी घोटाला ऐसा घोटाला है जो हुआ तो सही लेकिन किसी ने नहीं किया।

संस्कृति और इतिहास का गौरव करनेवाले देश में महिलाओं के साथ हादसे बदस्तूर जारी रहे
इस देश की संस्कृति और इतिहास का गौरव सदैव चलने वाली प्रक्रिया है, जो ज़रूरी भी है। लेकिन इसी प्रक्रिया के साथ साथ महिलाओं के साथ हादसों की घिनौनी वारदाते भी चलती रहती हैं। इस साल भी यह रुका नहीं। कहते हैं कि सोशल मीडिया में हर सुबह जितने अच्छे अच्छे विचार लटके हुए मिलते हैं, लगता है कि अपराध या बुरी चीजें दूसरे ग्रह से आए हुए लोग ही करते होंगे। लेकिन ये मजाकिया भ्रम भी साल के पहले दिन ही टूट गया। बेंगलुरु में नये साल के जश्न के दौरान ही सामूहिक छेड़खानी का शर्मसार करने वाला मामला सामने आया। देश शर्मसार होने की औपचारिकताएँ निभाता इससे पहले दूसरे दिन भी यहां ऐसा ही हादसा हो गया। सालभर अलग अलग राज्यों से ऐसी घटनाएँ सामने आती रही। हरियाणा के रोहतक का सामूहिक दुष्कर्म मामला हो या फिर यमुना एक्सप्रेस वे पर 4 महिलाओं के साथ घिनौनी वारदात का शर्मसार करने वाला मंजर हो, मुजफ्फरनगर हो या दिल्ली हो, लगभग हर जगहों से सालभर ऐसी ही खबरें अखबारों में आती रही। हर हादसों के बाद देश ने (नागरिकों तथा सरकारों ने) आहत और शर्मसार होने की औपचारिकताएँ निभाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।

दाना मांझी का इतिहास फिर दोहराया गया, अस्पतालों ने सालभर लोगों को झकझोरना नहीं छोड़ा
इस साल भी दाना मांझी का इतिहास यूपी से मजदूर उदयवीर के रूप में दोहराया गया, जो अपने 15 साल के बेटे का शव उठाए सड़क पर चलते रहे। वहीं दूसरी ओर अस्पतालों ने सालभर लोगों को झकझोरना नहीं छोड़ा। यूपी, दिल्ली, गुरुग्राम, अहमदाबाद समेत कई बड़े बड़े शहरों के बड़े बड़े अस्पतालों के कारनामे अखबारों की सुर्खियों में छाये रहे। कहीं नवजात बच्चों ने अपने भारत देश को देखा उससे पहले तो भारत देश ने उन्हें सदा के लिये दुनिया से विदा कर दिया था। बच्चों की मौतों ने कई राज्यों में लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया। कुछ जगहों पर अस्पतालों को कब्रिस्तान का नाम मिला। कहीं मंत्री अस्पताल का दौरा करते दिखे, ठीक उसी वक्त मरीज़ ऑक्सीजन सिलेंडर समेत अस्पताल के बाहर दिखाई दिए। कहीं जिंदा इंसान को मृत घोषित किया गया, कहीं 20 पन्नों का लंबा बिल देखकर मरीज़ के परिजनों को बीमारी दिखाई देने लगी। स्टेंट के मसमोटे दाम कम करने की घोषणा हुई, किंतु अस्पताल फिर भी बाज नहीं आए।

नेताओं ने जमकर उत्पात मचाने का अधिकार इस साल भी नहीं छोड़ा
राज्यसभा या विधानसभाओं में हमारे कथित जनसेवकों द्वारा जमकर उत्पात मचाने का इतिहास इस साल भी दोहराया गया। जम्मू-कश्मीर, तमिलनाडु, गुजरात, दिल्ली या पंजाब विधानसभाओं में नेताओं ने जमकर तू तू मैं मैं का सीन रिपीट किया। तमिलनाडु विधानसभा में स्पीकर को कहना पड़ा था कि क्या बताऊं, मेरे साथ क्या क्या हुआ। गांधी के गुजरात में विधानसभा के भीतर जमकर हाथापाई हुई और अपशब्दों का दौर भी चला। दिल्ली में नेता ने नेता को सदन के भीतर ही पीट दिया। पंजाब में भी पगड़ी उछालने का कार्यक्रम चला। सुप्रीम कोर्ट ने सिनेमाघरों में राष्ट्रगान के दौरान नागरिकों को क्या करना है इसके निर्देश दिए थे, लेकिन साल के दूसरे दिन ही जम्मू-कश्मीर विधानसभा में राष्ट्रगान बज रहा था और नेता एक दूसरे से भिड़ने में व्यस्त थे। बताइए, जो नेता लोकशाही के मंदिर में ही ऐसे चैप्टर लिख जाते हो, वे हवाई जहाज में निजी कंपनियों के सामने कैसे झुकते!!!

रैली के बाद हुई हिंसा के सर्वे का खर्च 6 लाख...!
ये मामला था गुजरात से। सन 2015 में अहमदाबाद में पाटीदार समाज का आरक्षण को लेकर एक बड़ा कार्यक्रम हुआ। अहमदाबाद के जीएमडीसी मैदान पर यह रैली हुई थी। रैली के बाद पूरे शहर और राज्य के अन्य इलाकों में जमकर हिंसा और आगजनी हुई। अहमदाबाद म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन के बीआरटीएस, एएमटीएस के स्टैंड तथा परिवहन बसों को काफी नुकसान पहुंचा। इस हिंसा के बाद कॉर्पोरेशन को कितना नुकसान पहुंचा है उसके लिए कोटेशन के जरिये एक कॉन्ट्रैक्ट दिया गया। काॅन्ट्राक्टर ने सर्वे किया और नुकसान का आंकड़ा दिया। लेकिन इन्होंने इस सर्वे का बिल भी भेजा, जो था 5 लाख 89 हज़ार का। आगे आप खुद सोच लीजिए। ये भी सोच सकते हैं कि काॅन्ट्राक्टर का ये सर्वे बिल नुकसान वाले खाते में आएगा या मुनाफ़े वाले खाते में!

भारत का हाईटेक रक्षा अनुसंधान फेसबुक पर हुआ असहायलोगों ने उड़ाई हंसी
देश के सबसे हाईटेक रक्षा अनुसंधान डीआरडीओ (डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन) की 20 जनवरी 2017 को ट्विटर पर खूब हंसी उड़ाई गई। हंसी उड़ाए जाने के पीछे का कारण था संगठन का एक ट्वीट। दरअसल इस दिन डीआरडीओ ने फेसबुक को एक ट्वीट कर अपने अधिकृत पेज को लोग इन करने में हो रही असुविधा के लिए मदद मांगी थी। डीआरडीओ ने ट्वीट करके फेसबुक से कहा कि उनका 'फेसबुक पेजओपन नहीं हो रहा है। एक से बढ़कर एक हाईटेक मिसाइल बनाने वाले रक्षा अनुसंधान डीआरडीओ द्वारा इस तरह की मदद मांगे जाने को लेकर ट्विटर यूजर्स ने खूब हंसी उड़ाई। तंज कसते हुए ट्वीट खूब चले, जैसे कि, "क्या आपने कंप्यूटर बंद करके दोबारा चालू किया।" हालांकि डीआरडीओ ने ट्वीट को तीन घंटे बाद हटा लिया। बाद में डीआरडीओ के प्रवक्ता ने कहा कि ये संचालन की गड़बड़ी थी, हैकिंग की नहीं।

कानून में संशोधन 2017 में, अमल होगा 55 साल पहले से!!!
जी हां, वाकई शॉकिंग एंड अनबिलीवेबल टाइप की खबर है यह। लेकिन है सच। फरवरी 2017 में छपी मीडिया रिपोर्ट की माने तो, तत्कालीन केंद्र सरकार ने टैक्स कानून में संशोधन किया। संशोधन भी ऐसा कि किसी ने सोचा तक ना हो। वित्तमंत्री अरुण जेटली ने कानून में जो बदलाव किया वो लागू होना था 1 अप्रैल 1962 से!!! 1962 गलती से नहीं लिखा गया, बल्कि सही है। मनी बिल 2017 में आयकर अधिनियम में ये समीक्षा की गई। सरकार ने अपना वादा तोड़कर इसे 55 साल पहले से लागू किया। यानी कि किसी ने आप के खिलाफ अफवाह फैला दी तो आयकर अधिकारी आप के घर आ धमकेंगे। उन्हें आपको कोई दस्तावेज दिखाने की ज़रूरत नहीं होगी। ना ही जांच का हुक्म और ना ही कोई और चीज़। काला धन और बेनामी संपत्ति के खिलाफ आयकर अधिकारियों को ज्यादा अधिकार देने के लिए ये समीक्षा की गई। इस संशोधन से अधिकारियों को छापेमारी की कोई वजह नहीं बतानी पड़ेगी। अब देखना यह था कि इस संशोधन का इस्तेमाल उन प्रचलित मामलों में होता है या नहीं। या फिर नोटबंदी के जैसे ही बिना पनामा और स्विस सूची वालों को परेशान किए, इसमें भी छोटी-मोटी मछलियों को ढूंढा जाएगा। या फिर दिखावे के खातिर एकाध बड़ा मामला पेश करने की प्रचलित परंपरा आजमायी जाएगी। सारी चीजें तो आने वाला वक्त ही बताएगा।

16 सालों तक पाक अधिकृत कश्मीर की जमीन के लिए भारतीय सेना ने चुकाया था किराया
सैन्य संबंधित ये मामला बड़ा ही चौंकानेवाला था। 16 साल से भारतीय सेना एक ऐसी जमीन के लिए किराया चुका रही थी, जो पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में थी। यानी कि भारतीय सेना ने 16 सालों से पाक अधिकृत कश्मीर में जमीन किराये पर ले रखी थी!!! सन 2017 में ये मामला बाहर आया और सीबीआई ने मामला दर्ज किया। सीबीआई एफआईआर के मुताबिक, खसरा 3000, 3035, 3041, 3045 के 122 कनाल और 18 मारला जमीन का इस्तेमाल भारतीय सेना कर रही थी। यह इलाका पाक अधिकृत कश्मीर में है और फिर भी इसका किराया चुकाया जा रहा था। इस मामले में प्राथमिक तौर पर डिफेंस एस्टेट विभाग के अधिकारियों पर शक की सुई घूमी। माना तो यह भी गया कि इस घोटाले में सेना के कुछ वरिष्ठ अधिकारी भी शामिल हो सकते थे। प्राथमिकी जांच में सामने आया कि यह घोटाला सन 2000 से चल रहा था। जाली दस्तावेज बनाए गए थे और इससे सरकार को 6 लाख का चूना लगा।

शादी में फिजूलखर्ची का बिल लाने वाली कांग्रेस सांसद की शादी का खर्चा सुनकर उड़ गए सबके होश
इन दिनों शादी-विवाह में फिजूलखर्ची रोकने के लिए प्रस्तावित विधेयक की बातें खूब हो रही थी। इस प्रस्तावित विधेयक में एक प्रावधान यह था कि जो लोग शादी-ब्याह में 5 लाख रुपये से अधिक राशि खर्च करते हैं वे गरीब परिवार की लड़कियों के विवाह में योगदान करें। लोकसभा में कांग्रेस सांसद रंजीत रंजन यह निजी विधेयक पेश करने वाली थी। जहां यह प्रस्तावित विधेयक के लिए उनकी तारीफ बनती थी, वहीं दूसरी ओर खुद उनकी शादी को लेकर ऐसा खुलासा हुआ कि सुनकर हर कोई हैरत में पड़ गया। दावा किया गया कि बिहार के सांसद पप्पू यादव से प्रेम विवाह करने वाली रंजीत रंजन की शाही शादी में 1 लाख से ज्यादा लोग शामिल हुए थे और मेहमानों के ठहरने की व्यवस्‍था के लिए 200 एकड़ क्षेत्र में पंडाल लगाया गया था। उस शादी में शामिल हुए एक चश्मदीद ने एक टीवी चैनल से बातचीत के दौरान बताया कि ये शादी 6 फरवरी 1994 को पू‌र्णिया में हुई थी। जिसमें 1 लाख से ज्यादा लोग शामिल हुए थे। उस दिन शहर का आलम ऐसा था कि हर चौक-चौराहे को भव्य तरीके से सजाया गया था। शहर का कोई होटल ऐसा नहीं था जिसमें मेहमानों के रुकने की व्यवस्‍था न की गई हो। उस दिन जिससे पूछो वो यही कहता कि मुझे भी शादी का निमंत्रण है। ऐसा लगता था जैसे पूरा शहर ही उस आयोजन में आमंत्रित हो।

इस शादी में उस दौर के बड़े नेता मुलायम सिंह यादवचौधरी देवी लालडीपी यादव और राज बब्बर सहित कई बड़ी फिल्मी हस्तियां भी पहुंची थी। आलम ये था कि शाम होते होते पूरा शहर गाड़ियों से भर गया था। पूर्णिया कॉलेज और आसपास के मैदानों के लगभग 200 एकड़ क्षेत्र में शादी के कार्यक्रम की व्यवस्‍था की गई थी। खास बात ये थी कि शादी के दिन रंजीत रंजन का पूरा परिवार जालंधर से एक चार्टेड प्लेन में सवार होकर पटना आया था। दुल्हन बनी रंजन भी उसी में थी। वहीं इस पर रंजीत रंजन ने कहा कि ये सारी व्यवस्‍था लड़के वालों की ओर से की गई थी, हमनें इसमें कुछ खर्च नहीं किया था। हां ये बात सही है कि हम चार्टेड प्लेन से वहां पहुंचे थे, लेकिन वह भी उन्हीं ने भिजवाया था।

सूखा पीड़ित महाराष्ट्र में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दानवे के पुत्र की शादी में भी हुआ था करोड़ों का खर्च?
शादी के खर्च वाला प्रयोजित बिल, बिल को पेश करने वाली रंजीत रंजन की शादी का विवाद और अब उसके बाद महाराष्ट्र भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष दानवे की पुत्र की शादी का विवाद। लगा कि कानून बनने से पहले ही इसे जमकर तोड़ने की नेताओं ने ठान ली हो! प्रस्तावित कानून को भी लगा होगा कि मेरा तो अवतार हो उससे पहले ही मजाक उड़ाया जा रहा है!

मार्च 2017 के दौरान रावसाहेब दानवे के पुत्र संतोष के शाही विवाह का विवाद हो गया। वो भी उसी राज्य में, जो सूखे से पीड़ित था। मीडिया रिपोर्ट की माने तो संतोष की शादी में तीस हज़ार के करीब मेहमान आए थे। इस शाही शादी का लाइव रिकॉर्डिंग ड्रोन के जरिये किया गया था। अखबारों को पता नहीं कहां से आंकड़ा मिला होगा, लेकिन उन्होंने क्वेश्चन मार्क लगाकर दावा किया कि शादी में 100 करोड़ का खर्च आया था। कहा गया कि विशेष सुरक्षा हेतु औरंगाबाद का मुख्य मार्ग बंद कर दिया गया था। इस शादी में महाराष्ट्र के तत्कालीन सीएम फडणवीस समेत कई बड़े बड़े नेताओं ने शिरकत की थी। सुरक्षा के लिए भी ड्रोन लगाए गए थे तथा विशेष पुलिस बल तैनात था। शादी का मंडप बनाने के लिए राजस्थान से आदमी बुलाए गए थे। खाने में कई भारतीय प्रदेशों की डिशेज थी, जो 30 से 40 प्रकार की रही होगी। 400 से 500 टेंकर पानी तो रास्तों के लिए इस्तेमाल किया गया था। बताइए, महाराष्ट्र पिछली गर्मी में एक-एक टेंकर को मोहताज था और अगली गर्मी में भी हालात शायद ही बदलने वाले थे। नोटबंदी के बाद आयकर विभाग और उनके बनाए गए कानून जिन लोगों को कोने कोने से ढूंढ रहे थे, उन्हें इस जगजाहिर तामझाम का अंदाजा भी कैसे लगता, क्योंकि वो तो कोने में सर्च चलाए हुए थे!!!

सुना है कि पेपर लीक हो जाएं, यहां तो पूरा बजट ही लीक हो गया !
किसी परीक्षा में पर्चा लीक हो जाएं उसकी आदत हमें हो चुकी है। बुरी आदत है यह, लेकिन हो चुकी है! खैर, पर अब बजट लीक की आदतें डालनी पड़ेगी। 3 मार्च 2017 के दिन ऐसा ही एक वाक़या केरल विधानसभा में हुआ। विधानसभा में बजट पेश हो उससे पहले तो बजट टेलीविजन न्यूज़ चैनल और सोशल मीडिया पर लीक हो गया। सरकार विपक्ष को भरोसा देती दिखी कि अगर ये बात सच है तो इसकी जांच की जाएगी। दरअसल केरल के वित्तमंत्री थॉमस इसाक बजट पेश करने ही जा रहे थे कि विपक्षी नेता रमेश चेन्नीथला ने गृह में कागज पेश किए और दावा किया कि ये बजट का वो हिस्सा है जो वित्तमंत्री विधानसभा में पढ़ेंगे। इसीके साथ विधानसभा में शोर मचना शुरू हो गया। वित्तमंत्री ने अपना बजट भाषण रोक दिया। केरल के सीएम पिनराई विजयन गृह को भरोसा दिलाते रहे कि अगर ये सच है तो जांच होगी। बताइए, पेपर लीक होते होते अब इस देश में बजट भी लीक होने लगे तब आप इसकी आदत कौन से नये तरीके से डालेंगे? जांच के अंजाम के बारे में मत पूछना, क्योंकि योगानुयोग से हमारे यहां कई आयोग बनते हैं लेकिन आयोग में अंजाम का कोई योग नहीं होता!

देश डिजिटल बन रहा था, वहीं पीएमओ के सामने किसानों को मजबूरन नंगा होना पड़ा
यूं तो कई राज्यों में इस साल किसान आंदोलन हुए थे, किंतु तमिलनाडु के किसानों का दिल्ली में प्रदर्शन इस देश की व्यवस्था की असली तस्वीर को सामने ले आया। नरमुंड गले में लटकाए हुए लगभग अर्धनग्न अवस्था में ये लोग महीनों तक जंतर-मंतर पर डटे रहे। इस देश का अन्नदाता मजबूरन अर्धनग्न हुआ, जिंदा चूहा खाया, नरमुंड डाले, सांप को मुंह में दबाया, घास खाया... किंतु सत्ता के कान नहीं खुले। आखिरकार इन किसानों ने लगभग बिना कपड़ों के पीएमओ के सामने प्रदर्शन किया। सोचिए, देश के अन्नदाता की मजबूरी उन्हें बिना कपड़ों के डिजिटल इंडिया की सडक़ों पर दौड़ा रही थी। बात सिर्फ तमिलनाडु की नहीं थी, बल्कि कुछ कुछ ऐसी ही मांगों को लेकर कई राज्यों में किसान सडक़ों पर थे। हर साल की तरह इस साल भी एक भी उद्योगपति जंतर-मंतर पर अपनी मांगों को लेकर फेफड़े फाड़ते हुए दिखाई नहीं दिया, किंतु हर साल की तरह इस साल किसानों को अपने कपड़ें फाड़ने के लिए मजबूर ज़रूर होना पड़ा।

5000 करोड़ कहां खर्च हुए कोई दस्तावेज ही नहीं, सुप्रीम कोर्ट तक सकते में
गरीब लोगों के कल्याण के लिए राशि की घोषणा तो की जाती है, लेकिन लाभ गरीब तबके तक नहीं पहुंचता। ये चीज़ बहुत बार सुनी होगी। राजीव गांधी का 1 रुपये वाला बयान भी खूब चर्चे में रहा और इसे विरोधी दल खूब याद करते रहते हैं। एक रुपये का मामला और है, किंतु यहां एक-दो करोड़ नहीं, सौ-दो सौ करोड़ नहीं, लेकिन पूरे पांच हज़ार करोड़ खर्च हो गए, लेकिन कहां खर्च हुए उसका कोई दस्तावेज ही नहीं था। ये बात सुन कर किसी को भी झटका लग सकता है। अप्रैल 2017 के दौरान सुप्रीम कोर्ट को भी यह जानकर झटका ही लगा। जस्टिस एमबी लोकुर ने अधिक सॉलिसिटर जनरल को बताया कि, 26,000 करोड़ की राशि से 5,000 करोड़ कहां खर्च हुए हैं, लेकिन इतनी बड़ी राशि कहां खर्च हुई उसका कोई रिकार्ड ही नहीं है। इसकी जांच होनी चाहिए कि इतनी बड़ी राशि कहां खर्च हुई। अब बताइए, चंद हज़ार करोड़ को लेकर सरकारें पूर्व सैनिकों को सालों तक तरसाती रही और जंतर-मंतर पर लाठियां भी खाई। लाखों किसानों की चंद हज़ार के बकाये की सूची बैंक नहीं भूलते। ऐसे में 5,000 करोड़ जितनी बड़ी रकम का कोई रिकार्ड ना हो ये वाकई अद्भुत, अकल्पनीय और अविश्वसनीय है।

मई 2017 के मध्य में एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को जमकर लताड़ लगाई। जस्टिस मदन बी लोकुर और जस्टिस दीपक गुप्ता की पीठ ने हैरानी जताई और कहा कि, कैग तक को भी इस बारे में पता नहीं है। कोर्ट ने सख्त लहजे में पूछा कि, मज़दूर कल्याण से संबंधित भारी भरकम राशि कहां चली गई? क्या इसे चाय पार्टियों पर खर्च कर दिया गया या फिर अधिकारियों की छुट्टियों पर खर्च कर दिया गया?”

शीर्ष अदालत ने कैग से कहा कि, यह धन कहां जा रहा है आप इसका पता लगाएं। पीठ ने कहा कि, पहला कदम जो आवश्यक है वह यह है कि प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित क्षेत्र से 1996 में भवन एवं अन्य निर्माण मज़दूर कल्याण कर अधिनियम लागू होने के समय से इस साल 31 मार्च तक एकत्रित धन के बारे में जानकारी ली जाए। पीठ ने कहा कि, एकत्रित राशि की सूचना कैग कार्यालय को भेजी जाएगी। इसी तरह पिछले वर्षों में एकत्रित धन और भवन एवं अन्य निर्माण मज़दूर कल्याण बोर्ड को भेजी गई राशि के बारे में 31 मार्च 2017 तक की स्थिति के अनुसार कैग को सूचित किया जाना चाहिए।

न्यायालय ने कहा कि, यदि कोई ऐसी राशि है जो एकत्र कर ली गई है, लेकिन बोर्ड को स्थानांतरित नहीं की गई, तो वह छह सप्ताह के भीतर स्थानांतरित किया जाना चाहिए और कैग को भी इसकी सूचना दी जानी चाहिए। पीठ ने अगली सुनवाई के लिए तारीख निर्धारित करते हुए कैग से कहा कि वह न्यायालय के समक्ष ब्यौरा रखे। सुनवाई के दौरान अदालत में मौजूद कैग के प्रधान कानूनी सलाहकार ने कहा कि धन राज्यों के पास है और भवन एवं अन्य निर्माण मज़दूर कल्याण बोर्डों के खातों के ऑडिट के लिए निर्देश दिया जा सकता है। इस पर पीठ ने कहा कि, यदि उन्होंने चाय पार्टी पर धन खर्च कर दिया हो तो तब क्याआप पता लगाएंकितना स्थानांतरित (कल्याण बोर्डों को) किया गया और उन्होंने किस तरह खर्च किया है।

बिहार और राजस्थान में चूहे पी गए शराब
वैसे हमारे यहां कई खबरें ऐसी आती हैं कि फलांना फलांना जानवर शराब पीता है। कोई जानवर सिगार भी पी लेता है। लेकिन चूहे शराब पी जाएं... और वो भी सरकारी कस्टडी में रखी हुई शराब... मामला तो शॉकिंग एंड अनबिलीवेबल सीरीज का ही है। मई 2017 के दौरान बिहार से और फिर राजस्थान से ऐसी खबरें आई। लगा कि बिहार में चूहों ने शराब पी और फिर वहां सारा माल खत्म करके राजस्थान पहुंच गए होंगे। राजस्थान के उदयपुर में एक्साइज विभाग ने 8 साल पहले बियर के 483 तथा शराब के 83 बक्सों को जब्त किया था। 2017 में जब कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई तब पता चला कि सारा माल पुलिस थाने से गायब था। अब आगे जाने से पहले मामले का पेंच तो देख लीजिए।

शराब जब्त होती है 8 साल पहले और सुनवाई शुरू होती है 8 साल बाद। अब इस देश में बुलेट ट्रेन दौड़ाने की क्या ज़रूरत है!!! सारी प्रक्रिया में कछुएं न जाने कहां से अपना प्रभाव डाल ही जाते हैं कि मामले सालों तक च्यूंईगम की तरह खींचे जाते हैं। खैर, अब कछुएं से चूहों पर लौटते हैं। सुनवाई शुरू हुई, कोर्ट ने कहा कि माल पेश किया जाए। पुलिस वाले बोले कि जज साहब... माल तो चूहे पी गए। अब यहां पेंच नाम के पेंच के भी चींथड़े उड़ जाते हैं। चोरी हो गया, गायब हो गया ये तक जवाब मिलता तो चल जाता, लेकिन चूहे पी गए!!! पेंच के तो सारे स्क्रू लुढ़क जाएंगे। पता नहीं, जज साहब को ये जवाब सुन कर क्या महसूस हुआ होगा। हमारे घर में दो दिन पहले एकाध बोतल शरबत रखा हो और दो दिन बाद कोई बोल दे कि शरबत तो चूहे पी गए, तो ऐसे में, भले ही एक बोतल का मामला हो, महसूस होता है कि....। पता नहीं जज साहब को क्या महसूस हुआ होगा।

खैर, जज साहब ने आदेश दिया कि शराब चूहे पी गए तो खाली बोतलों को लाइए। पुलिस वाले खाली बोतल लेकर कोर्ट पहुंच गए। पुलिस ने कोर्ट को बताया कि स्टोर रूम में चूहे बहुत हैं, उपरांत कुछ शराब हवा में हवा हो जाती है और कुछ मानसून की नमी के कारण हवा हो जाती है। बिहार के तत्कालीन सीएम नीतीश कुमार और राजस्थान के तत्कालीन सीएम गुलाबचंद कटारिया, दोनों को चूहों ने परेशान कर दिया हो तो उन्हें बिहार के पूर्व सीएम जीतन राम मांझी से मुलाकात करनी चाहिए। चूहों में उनकी दिलचस्पी एक दफा कुछ ज्यादा ही दिखी थी। बाद में एक दूसरे किस्से में बिहार के जल संसाधन मंत्री राजीव रंजन सिंह ने बाढ़ के लिए भी चूहों को कटघरे में खड़ा कर दिया था!!!

गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने का सुझाव देने वाले जज ने कहा- मोर कभी सेक्स नहीं करता
राजस्थान हाईकोर्ट के जज महेश चंद्र शर्मा ने 31 मई को गाय को राष्ट्रीय पशु बनाने का सुझाव दिया। उन्होंने राष्ट्रीय पक्षी मोर के बारे में एक अलग ही नजरिया पेश किया। जस्टिस महेश चंद्र शर्मा ने कहा कि, जो मोर हैये आजीवन ब्रह्मचारी होता है। वह कभी भी मोरनी के साथ सेक्स नहीं करता। इसके जो आंसू आते हैंमोरनी उसे चुगकर गर्भवती होती है और मोर या मोरनी को जन्म देती है। उन्होंने कहा कि, मोर ब्रह्मचारी हैइसलिए भगवान कृष्ण अपने सिर पर मोरपंख लगाते हैं। गाय के अंदर भी कई सारे दिव्य गुण हैंजिन्हें देखते हुए इसे राष्ट्रीय पशु घोषित किया जाना चाहिए।

किसी हाईकोर्ट के जज की ये टिप्पणी वाकई सभी को चौंका गई। कई किताबों में तथा विज्ञान संबंधित कई लेखों में अनेकों बार कहा गया है कि मोर के आंसू चुगकर मोरनी का गर्भवती होना महज एक मिथक है और ये सच बात नहीं है। विज्ञान के कई लेखों में इसे मिथक बताकर इसका सिरे से छेद उड़ाया जा चुका है। ऐसे में भारतीय न्यायिक प्रक्रिया के प्रमुख व्यक्ति कोर्ट के अंदर किसी फैसले में ऐसी बातों का उल्लेख कर दे ये वाकई चौंकानेवाला था। सोशल मीडिया में कई दिनों तक जज की इस टिप्पणी को लेकर कई सारी नोंक-झोंक होती रही। नोक-झोंक को खत्म होना था, क्योंकि बाद में तो दिसंबर 2017 के दौरान सिक्किम हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश सरेआम विवादित धर्मगुरु आसाराम के सामने हाथ जोड़ते दिखाई दिये थे, वो भी अदालत के बिलकुल बाहर!!!

पीएम नरेंद्र मोदी की नीतियों को लेकर फोन पर हुआ झगड़ाटूट गई शादी
अगर आप इसे महज राजनीतिक चश्मे से देखते हैं तो फिर ये आपके लिए फन टाइप न्यूज़ होगा। लेकिन कई साल पहले कहीं पर सुना था कि  एक वक्त ऐसा आएगा जब आयोजित खबरें (फेक न्यूज़ या प्रोपेगेंडा) नागरिकों या मतदाताओं के दिमाग को सुन्न कर देंगे, उनका आईक्यू लेवल खत्म हो जाएगा और सोशल मीडिया पे एक दूसरे पर भड़कने वाले लोग अपने ही घरों में विचार अलग होने पर एक दूजे को मरने-मारने पर उतारू हो जाएंगे। शायद यह उस कथन का छोटा या बड़ा सबूत था। सोचिए, राजनीतिक रणनीतियों ने नागरिकों के दिमागों को इतना सुन्न कर दिया है कि वे अपने दिमाग से सोच ही नहीं पा रहे। आयोजित खबरें या फेक न्यूज़ का नशा अपने उफान पर है, जहां लोगों के पास पहले से ज्यादा सूचनाएँ तो है, लेकिन वे इसे अपने दिमाग से समझ पाने के लिए सक्षम ही नहीं। आप कह सकते हैं कि सूचना की शक्ल में सनकी बनाने का कार्यक्रम हावि हो रहा है।

किसी सरकार की नीतियों को लेकर झगड़ा होना आम बात है, लेकिन स्वजनों के अंदर बहस इस हद तक पहुंच जाएं कि रिश्ते ही टूटने लगे वो चीज़ उतनी सहज रूप से लेनी भी नहीं चाहिए। ये खतरे की घंटी है, जिसे कोई गंभीरता से लेगा भी नहीं!!! इस वाक़ये की बात करे तो, इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार फोन पर अपनी होने वाली पत्नी से वो बात कर रहा था। दोनों के बीच पीएम मोदी को लेकर बात होने लगी। लड़का पीएम मोदी का समर्थक निकला, जबकि सरकारी नौकरी करने वाली लड़की उनकी आलोचक। इसके बाद शादी टूट गई। वैसे शादी से पहले आजकल होने वाले पति-पत्नी फोन पर राजनीतिक चर्चा भी किया करते हैं ये बात श्रृंगार कविओं के लिए घातक हो सकती है! उपरांत जो बुद्धिजीवी लोग कहते हैं कि युवाओं को प्यार-मुहब्बत के अलावा देश की राजनीति पर भी सोचना होगा, उन बुद्धिजीवी के लिए भी ये निराशा ही है कि युवा राजनीति पर अपने दिमाग से सोच नहीं रहे, बल्कि उन्हें किसी एक निश्चित पगडंड़ी पर घसीटा भी जा रहा है।

राजनीतिक चर्चाओं का दौर आजकल गरम है। सोशल मीडिया से लेकर नुक्कड़ों की चर्चाओं तक में लोग अपने-अपने मत जोरदार ढंग से रख रहे हैं। गरमा-गरम बहस भी हो रही है और लड़ाई-झगड़े तक हो जा रहे हैं। सोशल मीडिया पर तो राय एक ना होने पर पर अनफ्रेंड’ करने औऱ यहां तक कि ब्लॉक’ करने का खेल भी खूब चल रहा है। लेकिन असल जिंदगी में भी अब लोग मतभेद जैसी आम चीज़ पर रिश्ते ब्लॉक किए जा रहे हैं। कह सकते हैं कि रिश्ते राजनीति के सामने हारे जा रहे हैं।

मामला उत्तरप्रदेश का बताया गया। भावि पति-पत्नी के बीच बातचीत के दौरान दोनों सपने और मुहब्बत की गलियों से देश के आर्थिक हालातों के एक्सप्रेस वे पर पहुंच गए। दोनों के बीच बातचीत के दौरान देश के आर्थिक हालातों को लेकर चर्चा हुई। लेकिन इस मुद्दे पर दोनों के मत बिलकुल अलग निकले। बातचीत गरमा गई और थोड़ी ही देर में उनके बीच जबरदस्त झगड़ा हो गया। बात यहां तक बढ़ गई कि दोनों ने शादी नहीं करने का फैसला किया। घरवालों को तो पहले इस पर भरोसा भी नहीं हुआ।

इससे पहले शादी टूटने के कारणों में दूल्हे का शराब पीनाखाने-पीने में गड़बड़ी होनादूल्हा या दुल्हन का पढ़ा लिखा न होना आदि शामिल थे। लेकिन यह मामला अपने आप में अनोखा ही था। राजनीतिक सोच अलग रखने की वजह से शादी टूटी। जबकि दोनों में से कोई सक्रिय राजनीति में नहीं था। इससे पहले भी ऐसा एक वाक़या हुआ था, जिसमें राजनीतिक मतभेदों ने शादी रुकवा दी थी। मत अलग होना महज सामान्य और स्वाभाविक सी प्रक्रिया है यह चीज़ 21वीं सदी में भारत समझ नहीं रहा और यही लोग अक्सर भारत के महान और विशाल स्वतंत्रता संग्राम पर वार किया करते हैं, जहां सैकड़ों मतभेदों के बीच सभी ने अमूमन एकजुट होकर अंग्रेजों का प्रतिकार किया था। राजनीति में कहा जाता है कि  जब राजनीतिक मतभेद की वजह से परिवार टूटने लगे तब समझ जाइए कि पार्टियां और नेता वाकई खुशकिस्मत है, क्योंकि तब उनकी कुंडली में हर तरफ से और हर पल लाभ और शुभ ही होता है।

कर लो बात... 12 साल पहले जिसकी मौत हुई थी उसके नाम पर ई-मेमो आया
डिजिटल होने से कई चीजें जल्द हो जाती हैं ऐसा कहा जाता है। लेकिन डिजिटल होने से चीजें इतनी भी बदल जाएगी कि एक दशक पहले जो शख्स मर चुका हो उसके नाम से ई-मेमो आएगा ये तो सरकार ने भी दावा नहीं किया था। ज्यादा चौंकिए मत, क्योंकि प्रशासन के पास इसका एक ही रेडीमेड जवाब होगा कि  अफसरों की कोताही। जो भी हो, लेकिन अहमदाबाद नामके स्मार्ट सिटी की स्मार्ट ट्रैफिक पुलिस ने स्मार्ट कंप्यूटर सिस्टम के जरिये हसमुखभाई एम शाह के नाम से ट्रैफिक चलन भेज दिया। जब हसमुखभाई के पुत्र भरतभाई को यह ई-मेमो मिला तो वे इतनी बड़ी स्मार्टनेस पर क्या महसूस किए होंगे ये बताने की ज़रूरत नहीं। भरतभाई के पिता हसमुखभाई की 12 साल पहले ही मौत हो चुकी थी। सोचिए, हमारे डिजिटल सिस्टम की पहुंच कितनी ऊंची होगी। ट्विस्ट तो यह था कि ई-मेमो बाइक का था, जबकि हसमुखभाई ने जिंदगी में कभी बाइक खरीदा ही नहीं था। उन्हें बाइक चलाना ही नहीं आता था।

2008 में बड़े आतंकी हमले पर या फिर 2017 में सैकड़ों बच्चों की मौत पर जब हमारे नेता बोल सकते हैं कि इतने बड़े देश में ऐसे हादसे तो होते रहते हैं, तो फिर आप ट्रैफिक विभाग से इस मल्टीड्रामा के सामने क्या उम्मीद करते हैं ये आप खुद मन ही मन सोच लीजिएगा।

बाढ़ का एक महीना बीत गया फिर भी गुजरात का एक गांव पूरा पानी में डूबा हुआ था
ये 2017 है और आज के दौर में यदि ये पता चले कि कहीं पर बाढ़ आई हो, उपरांत वो जगह देश का विकसित इलाका माना जाता हो, और वहां बाढ़ के एक माह बाद भी समूचा गांव पानी में डूबा है तो यकीनन शॉकिंग एंड अनबिलीवेबल टाइप न्यूज़ ही है। गुजरात में बनासकांठा के एक गांव खानपुर का यही हाल था। यहां पिछले महीने बाढ़ आई थी, एक माह बीत गया, देश ने अपना 70 वां स्वतंत्रता दिन भी मना लिया, लेकिन यहां हालात जस के तस बने हुए थे। समूचा गांव अब भी पानी में था। पानी भी थोड़ा सा नहीं, बल्कि कुछ घरों में तो केवल छतें दिख रही हो इतना पानी अब भी जमा था। गुजरात विकसित राज्य माना जाता रहा है और यहां ऐसे हालात वाकई चौंकानेवाला मंजर ही था। गुजरात के सीएम पांच दिनों तक बाढ़ग्रस्त इलाके का दौरा करते रहे थे और करोड़ों का पैकेज भी घोषित किया था, लेकिन क्या पता कि इस गांव मेंं ऐसे बदतर हालात अभी क्यों थे। ना बच्चे स्कूल जा पाएं, ना कमानेवाले कमाने के लिए जा पाएं। सोचिए, घर की छत ही दिख रही हो इतना पानी जमा हो तो फिर दूसरा क्या लिखे।

बिहार के भागलपुर में अनावरण से पहले ही टूट गया कनाल
वैसे अब तो ऐसी खबरें ना ही झकझोरती हैं और ना ही चौंकाती हैं। हर राज्य में ऐसे ही हालात है। सितम्बर 2017 के दौरान यह कहानी बिहार में दोहराई गई। भागलपुर जिले में कहलगांव में 389 करोड़ की लागत पर बटेश्वर गंगा पंप कैनाल परियोजना ने अपनी जिंदगी शुरू की। नोट करे कि यह परियोजना 40 सालों से अपनी पहली सांस के इंतज़ार में थी। कनाल की जिंदगी तत्कालीन सीएम नीतीश कुमार के हाथों शुरू होने ही वाली थी कि कनाल की दीवार टूट गई। अनावरण के एक दिन पहले ही कनाल की दीवार ने अपनी जिंदगी को खत्म कर लिया। अनावरण को छोड़-छाड़ अनारकली डिस्को तो नहीं गई, किंतु दीवार को रिपेर करना ज़रूर शुरू कर दिया! हमारा देश वाकई चमत्कारों की भूमि है, जहां अनावरण से पहले रिपेरिंग का काम शुरू करना पड़ता है! वैसे इस दफा चूहे ने ये किया था या किसी और जानवर ने यह पता नहीं चला, क्योंकि बयान आना अभी बाकी था।

कभी कहा - लाईट बिल बचाने के लिए एलईडी बल्ब लगाओ... कभी कहा- एलईडी बल्ब लगाना खतरे से खाली नहीं
बताइए, आम आदमी जिंदगी में किस पर भरोसा करे। वैसे तो राजनीति पर आम आदमी का भरोसा जगजाहिर है। मजाक में कहा जाता है कि लोग सरकारों से ज्यादा मैगी पर भरोसा कर लेंगे, फिर भले मैगी के सैंपल फेल हो रहे हो!!! वैसे मैगी से लेकर तमाम खाद्य पदार्थों का मसला हो, या फिर इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का मामला हो, आम आदमी को जिन चीजों की तरफ मोड़ा जाता है, आखिर में उन्हीं चीजों से नुकसान होता है वाला दावा करके आम आदमी के रस को पूरी तरह निचोड़ दिया जाता है।

अक्टूबर 2017 में एक रिपोर्ट छपी। रिपोर्ट में सनसनीखेज टाइप लहेजा इस्तेमाल करके कहा गया कि अगर आप घर में बिजली बचाने के लिए एलईडी बल्ब का इस्तेमाल करते हैं तो थोड़ा सा सावधान हो जाइए। ऐसा इसलिए क्योंकि भारत में बिकने वाले 76 फीसदी एलईडी बल्ब को लगाना खतरे से खाली नहीं है। इससे आपके परिवार को स्वास्थ्य संबंधी शिकायत हो सकती है। बताइए, एलईडी बल्ब बिजली की बचत करता है, ये वाली टेगलाइन स्वयं सरकार चलाने लगी थी। लेकिन अब सनसनीखेज लहेजा चलने लगा था।

नीलसन द्वारा किए गए एक सर्वे के अनुसारदेश भर में बिकने वाले तीन चौथाई से अधिक एलईडी बल्ब सरकार की तरफ से जारी ग्राहक सुरक्षा मानकों को पूरा नहीं करते हैं। इससे लोगों की जान का खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है। एलईडी बल्ब से निकलने वाली गैस कई लोगों का स्वास्थ्य बिगाड़ रही है। सर्वे में देश भर के 200 से अधिक रिटेल आउटलेट्स पर मुंबईहैदराबादअहमदाबाद और दिल्ली में किए गए सर्वे के अनुसारज्यादातर बल्ब मानकों पर खरे नहीं उतरे। सबसे ज्यादा बुरा हाल राजधानी दिल्ली में बताया गयाजहां पर ऐसे बल्ब बड़ी संख्या में बिकते थेजो कि मानकों को पूरा नहीं करते थे।

दरअसल भारतीय मानक ब्यूरो ने अगस्त में एलईडी बल्ब बनाने वाली सभी कंपनियों को आदेश दिया था कि वो अपने उत्पाद को ब्यूरो के साथ रजिस्टर करेंताकि उनका सेफ्टी चेक किया जा सके। देश भर में चीन से चोर रास्ते से मंगाए गए सस्ते बल्ब ज्यादा बिक रहे हैं। बताया गया कि चीन में बने एलईडी बल्ब सबसे ज्यादा हानिकारक हैंक्योंकि इनके उत्पादन में किसी प्रकार के मानकों का ध्यान नहीं रखा जाता है। इससे सरकार को टैक्स भी नहीं मिलता। सर्वे में पता चला है कि 48 फीसदी बल्ब में बनाने वाली कंपनी का पता नहीं थातो 31 फीसदी में बल्ब बनाने वाली कंपनी का नाम ही नहीं था।

नौसेना प्रमुख का पत्र - जिन्होंने हमारे लिए जान दीउनके बच्चों की पढ़ाई का फंड मत काटो
हमारी सरकारें भारत देश को माँ भारती और भारतीय सेनाओं को अपनी जान से प्यारा बताने में कोई कसर नहीं छोड़ती। कम से कम भाषणों में ये दावे या जुमले अधिक चलते हैं। लेकिन जुमले तो जुमले होते हैं, जिसका सामना आवाम को तो क्या, सेनाओं तक को करना पड़ता है। कुछ कुछ ऐसा ही नजारा दिसंबर 2017 में देखने के लिए मिला। यहां एक मामले में नौसेना प्रमुख सुनील लांबा को रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण को पत्र लिखकर गुजारिश करनी पड़ी कि, देश के लिए जान गंवाने वाले जवानों के बच्चों को मिलने वाली शिक्षा प्रतिपूर्ति को कम करने का जो फैसला किया गया है उसको वापस ले लिया जाए। सुनील लांबा ने लिखा कि, उन लोगों ने देश के लिए जान गंवाई हैऐसे में सरकार को उनके बच्चों को पढ़ाई के लिए मिलने वाला फंड कम नहीं किया जाना चाहिए। अपने पत्र में लांबा ने कहा कि, अगर सरकार इस गुजारिश को मान लेगी तो इससे पता लगेगा कि सरकार देश के लिए बलिदान देने वालों को याद रखती है और उनका आदर भी करती है।

दरअसल पहले जान गंवाने वाले, लापता हो जाने वाले या दिव्यांग सैनिकों के बच्चों की ट्यूशन फीस, हॉस्टल फीस, किताबों का खर्च, स्कूल और घर के कपड़ों का पूरा खर्च सरकार उठाती थी, लेकिन 1 जुलाई 2017 से इसको 10 हज़ार रुपए तक सीमित कर दिया गया। एक अनुमान के मुताबिकसशस्त्र बल के जवानों के लगभग 3,400 बच्चे इससे प्रभावित हुए। इस व्यवस्था को भारत सरकार ने 1971 की लड़ाई जीतने के बाद शुरू किया था।

हाईकोर्ट का सवाल: लहसुन सब्जी या मसाला! जवाब दे सरकार
लहसुन को भी न्यायालय में जगह मिल जाए ये वाकई अजीब सा है। वैसे जीआई टैग को लेकर कई चीजों को न्यायालय में जगह मिलती रही है, लेकिन इस दफा मामला जीआई टैग का नहीं बल्कि जीएसटी का था। जीएसटी के कारण व्यापारियों को हो रही परेशानी रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। वहीं व्यापारियों के कई सवालों का सरकार के पास भी कोई जवाब नहीं था। इसलिए व्यापारी अब कोर्ट की शरण में पहुंच रहे थे। ऐसे ही एक मामले में 4 दिसंबर 2017 के दिन राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा कि, सरकार स्पष्ट करे कि टैक्स के लिहाज से लहसुन सब्जी है या मसाला। क्योंकि यदि लहसुन मसाले के तौर पर मंडी पहुंचता है और उस पर टैक्स लगता है, ज​बकि सब्जी के तौर पर लहसुन पर कोई टैक्स नहीं है। सरकार ने लहसुन को सब्जी व मसाले दोनों के तौर पर टैक्स लिस्ट में सम्मलित कर रखा था। दरअसल जोधपुर के एक व्यापारी संघ ने इस मामले में याचिका लगाई थी। जस्टिस संगीतराज लोढ़ा और विनीत माथुर की खण्डपीठ इस मामले की सुनवाई कर रही थी।

आरटीआई डालने से कभी कभी जानकारी के बदले पुलिस भी आ सकती है!!!
चेन्नई के आरटीआई कार्यकर्ता को ओएनजीसी के बारे में आरटीआई डालने के बाद यही सरकारी ज्ञान प्राप्त हुआ कि आरटीआई के सामने जानकारी के बदले पुलिस भी आ सकती है। 16 दिसंबर 2017 के दिन रेडिफ.काॅम ने इस पर एक विस्तृत रिपोर्ट छापी। रिपोर्ट के अनुसार, चेन्नई की 39 साल की महिला आर विजयालक्ष्मी ने ओएनजीसी के बारे में जानकारी के लिए आरटीआई डाली थी। रिपोर्ट के मुताबिक विजयालक्ष्मी ने अपनी जिंदगी में पहली दफा आरटीआई का उपयोग किया। उन्होंने ओएनजीसी के बारे में आरटीआई डाली, जिसमें एनवायरमेंटल क्लियरेंस, प्रोडक्शन तथा ऑपरेशनल लाइसेंस, एर-वोटर क्वालिटी एनालिसिस रिपोर्ट, एनवायरमेंटल इंपेक्ट एसेसमेंट, डेल्टा में वेल्स का आंकड़ा तथा वेल्स के बारे में दूसरी संबंधित जानकारियां मांगी थी।

रेडिफ.काॅम रिपोर्ट की माने तो ओएनजीसी ने विजयालक्ष्मी को जानकारी देने से मना कर दिया। यह कहते हुए कि आरटीआई कानून की कुछेक धाराओं के तहत ये जानकारी सार्वजनिक नहीं की जा सकती। आरटीआई आवेदन में विजयालक्ष्मी ने चेन्नई सोलिडेरिटी ग्रुप का एड्रेस दिया था, जिनके साथ वो पिछले 6 महीने से काम कर रही थी। ओएनजीसी ने जानकारी देने से मना तो कर दिया, लेकिन बात यहीं खत्म नहीं हुई। आरटीआई आवेदन में इन्होंने जो एड्रेस दिया था वहां पुलिस ने 6 बार उनसे मुलाकात की। अब मुलाकात का मतलब खुद ही समझ लीजिएगा। इनमें कथित रूप से 3 बार सीआईडी की टीम थी और 3 बार आईबी की!!!

रेडिफ की इस रिपोर्ट में दावा किया गया कि एक पुलिस सब इंस्पेक्टर ने कहा था कि आरटीआई आने के बाद जानकारी का लफड़ा आरटीआई के धारा के तहत जो भी हो, लेकिन सरकार ये जानना चाहती है कि विजयालक्ष्मी का राष्ट्रविरोधी तत्वों के साथ लेना-देना है या नहीं। 6 बार पुलिसियां मुलाकात के बाद एक बार एक महिला पुलिस कर्मी ने भी उसी एड्रेस पर विजयालक्ष्मी से मुलाकात की। हालांकि उस वक्त विजयालक्ष्मी ऑफिस में मौजूद नहीं थी।

चेन्नई सोलिडेटरिटी ग्रुप का इतिहास शायद प्रशासन या उनकी संस्थाओं को मालूम होगा तथा ओएनजीसी की जानकारी मांगने की परंपरा का आरटीआई कार्यकर्ताओं को ज्यादा खयाल हो सकता है। मांगी गई जानकारी किस लिहाज से राष्ट्र की सुरक्षा के लिए खतरा हो सकती थी ये भी विशेषज्ञों को पता होगा। ग्रुप की कुंडली या आरटीआई में जानकारी छुपाने का सरकारी इतिहास, दोनों पक्ष के बारे में आगे बढ़ना जानकारों का काम है। बहरहाल, मामला किसी भी पक्ष से संदिग्ध हो, लेकिन आरटीआई डालने से जानकारी के बदले कुछ और भी मिल सकता है ये डर नये नये आरटीआई कार्यकर्ताओं को दोबारा ड्रोइंग रूम के सोफा पर बैठा गया।

चीफ मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के पत्र में पंद्रह स्पेलिंग एरर, हाईकोर्ट ने अंडरलाइन करके पत्र चीफ जस्टिस को भेजा
एकाध-दो एरर मानवीय गलती हो सकती है, लेकिन एक ही पत्र में पंद्रह स्पेलिंग एरर गलती से कुछ ज्यादा क्या हो सकता था ये सोचा नहीं जा रहा। दिसंबर 2017 के मध्य में अहमदाबाद में कुछ ऐसी घटना दर्ज की गई। दरअसल, अहमदाबाद के चीफ मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट एमए शेख की अदालत से हाईकोर्ट को एक पत्र अंग्रेजी भाषा में लिखा गया था। लेकिन स्पेलिंग मिस्टेक इतनी कि पत्र को पढ़कर हाईकोर्ट जज को नाराजगी तक जतानी पड़ गई। इतना ही नहीं, हाईकोर्ट ने गलत स्पेलिंग के नीचे लाइन करके पत्र चीफ जस्टिस को भेज दिया। एक ही पैरा में 15 स्पेलिंग मिस्टेक देखकर हाईकोर्ट ने अपने फैसले में लिखा कि, इतना भयानक अंग्रेजी पढ़ने या फिर उसे सुधारने के लिए चीफ मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट ने तस्दी लेना ठीक नहीं समझा और इसी गलतियों के साथ ये पत्र हाईकोर्ट को भेज दिया गया है। हाईकोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कहा कि चीफ मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट पत्र को पढ़े बगैर दस्तखत कर देते हैं ये बहुत गलत उदाहरण है।

(इंडिया इनसाइड, एम वाला)