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Dark Face of Indian Politics? : गुजरात... जहां विकास नहीं बल्कि प्रचार ही पागल हो गया !!!




नेताओं के बिगड़े बोल को लेकर हम एक अलग संस्करण पहले ही देख चुके हैं। “Netao ke Bigde Bol : इस कदर छा गये हम पर पॉलिटिक्स के साये, कि अपनी जुबां तक हिन्दुस्तानी ना रहीनामक उस संस्करण में हमने राष्ट्रीय राजनीतिक दलों से लेकर दूसरे तमाम दलों के नेताओं की बिगड़े बोल प्रतियोगिता का इतिहास देखा। तंज कसते हुए अब तो लोग कहते हैं कि अच्छा है कि ये नेता लोग अपनों के खिलाफ चुनाव नहीं लड़ते, वर्ना उनको भी नहीं छोड़ते। वैसे लोगों की इस उम्मीद पर नेता पानी फेर चुके हैं। क्योंकि कई जगहों पर अपनों के खिलाफ भी ऐसे मंजर देखने के लिए मिल चुके हैं।

भारत में चुनाव लोकशाही का त्यौहार माना जाता है और इस त्यौहार में अरसे से नेता लोग जमकर एकदूसरे के साथ रंगों के बजाय दूसरे प्रकार की होली खेला करते हैं। पुराने दौर की कहानियां ज्ञात होगी यह उम्मीद है।

गुजरात का चुनाव प्रचार भी अजीब रंग लेकर कई गलियों से गुजरता रहा। जिस गुजरात मॉडल और उस राज्य के कथित विकास के सहारे एक पार्टी दिल्ली तक जा पहुंची, उसी राज्य में विकास के नाम पर कम बल्कि दूसरे अनाप-शनाप मुद्दों पर चुनावी बहसबाजी ज्यादा होती रही। भारत के किसी राज्य में चुनाव हो और उसमें पाकिस्तान का ज़िक्र जमकर होने लगे तब समझ जाना चाहिए कि राजनीति लंपटता के चरमबिंदु पर पहुंच चुकी है। अब यह ज़िक्र कोई भी पार्टी करे, उससे लेना-देना मत रखिएगा।

वैसे तो सरकार कोई भी हो, अमूमन लोगों को सवालों के जवाब मिलते नहीं हैं। किंतु चुनावी मौसम में लोगों को उम्मीदें होती हैं कि कम से कम इस सीजन में उन्हें नीतियां, योजनाओं या सरकारी कार्यों का लेखा-जोखा मिलेगा। किंतु बजाय इसके जब बात धर्म, जाति, पूर्व सरकार, व्यक्तिगत छींटाकशी, भावना, राष्ट्रवाद, देशभक्ति, मंदिर या पाकिस्तान तक की होने लगे, तब कहा जा सकता है कि विकास नहीं बल्कि प्रचार पागल हो चुका था।

गुजरात का चुनावी अभियान काफी राजनीतिक उठा-पटक वाला रहा। यह चुनावी घमासान दर्शक के नजरिये से भले ही काफी दिलचस्प रहा हो, मगर एक लोकतंत्र के लिहाज से इसे कभी भी आदर्श चुनाव कैंपेन नहीं माना जा सकता। जी हां... पता है कि आदर्श वगैरह राजनीति में, विशेषत: चुनावी राजनीति में नहीं चलते भाई। लेकिन क्या करे, आप में से ज्यादातर लोग ही आदर्श वगैरह का झंडा थाम लेते है, ऐसे में मैंने आदर्श की थोड़ी सी बात कर दी तो फिर इसमें कौन सी आचार संहिता का उल्लंघन हो गया भाई...!!!

किसी राजनीतिक दल ने गुजरात के दम पर या गुजरात के नाम पर केंद्र की सत्ता हासिल की हो तब लाजमी था कि इसी प्रदेश के चुनाव में उस प्रदेश की नीतियां, कार्य, योजनाएं आदि की बातें होनी थी। किंतु सत्ता दल और विरोधी दल, पता नहीं किसने सड़क छोड़ दी, तमाम भाषण और अखबारों की सुर्खियां गुजरात के कार्यों के बजाय धर्म, जाति, उपजाति, व्यक्तिगत छींटाकशियों से होती हुई पाकिस्तान में जाकर लैंड कर गई।

सबसे पहले तो चुनावी तारीख घोषित करने के मुद्दे पर चुनाव आयोग ही घिरता दिखाई दिया। बाढ़ के राहत कार्यों को आगे धरते हुए चुनाव आयोग ने हिमाचल की तारीखें घोषित की, किंतु गुजरात को वक्त दे दिया। चुनाव आयोग की इस कार्यशैली को लेकर विपक्ष हंगामा करता ये स्वाभाविक था। खैर, किंतु उसका चुनावी प्रचार से लेना-देना नहीं है, लिहाजा उस मसले को छोड़ देते हैं।

गुजरात मॉडल या विकास वाले गुजरात मॉडल का यह चुनाव वाकई हर दिन नये-नये रंग लेकर आया। वैसे राहुल गांधी ने मर्यादा, शालीनता और मुद्दों से नहीं भटकने की कोशिशें ज़रूर की, किंतु उन्हीं के नेता उनका साथ नहीं दे पाए। पीएम मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने अपने ऊपर उठ रहे सवालों को खूबसूरती से धर्म, राष्ट्र और कांग्रेस के काले कारनामों वाले हथियार के सहारे दूसरी ओर मोड़ दिया। उधर हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी या अल्पेश ठाकोर जैसे युवा चेहरे भी सुर्खियों में छाये रहे। हार्दिक का सीडी कांड कुछ दिनों तक खूब चर्चे में रहा, लेकिन भाजपा या मोदी-शाह की ये राजनीतिक खूबी ही कह लीजिए कि उन्होंने हर दिन नये नये मुद्दे पेश करके लोगों को पुराने मुद्दों के मायाजाल में फंसाए रखा। राजनीति और चुनावों में यह चीज़ कांग्रेस भी करती थी, दूसरी पार्टियां भी करती थी। लेकिन मोदी-शाह की जोड़ी ने इसका फिर एक बार गुजरात की प्रयोगशाला में जमकर इस्तेमाल किया।

हार्दिक पटेल का सीडी कांड कुछ दिनों तक खूब चला। हार्दिक पटेल आरक्षण और पाटीदार युवाओं के साथ अन्याय का झंडा थामते दिखे, लेकिन सीडी कांड ने कुछ दिनों तक सारे मुद्दे हवा कर दिए। सीडी कांड कुछ दिनों तक खूब चला और सीडी की संख्या, सीडी किसने बनाई, किसने षड्यंत्र किया, क्या सच और क्या झूठ में दिनों तक प्रचार फंसता रहा। फिर अचानक से यह मामला लुप्त होता दिखाई दिया और नया मुद्दा उठने लगा! वैसे हर दिन जो मुद्दे उठते रहे उन्हें विकास या नीतियों से कम ही लेना-देना था।

सीडी कांड से पहले विकास पागल हो चुका है वाला जुमला खूब चला। कांग्रेस ने महीनों तक इस जुमले पर खूब मेहनत करी थी। व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी में यह जमकर चलता रहा। लेकिन तारीखें घोषित हुई तो कांग्रेस इसे जारी रख नहीं पाई। कांग्रेस ने कहा कि विकास पागल हो चुका है और उसके सामने मोदी खुद मैदान में उतरे और खुद को ही विकास बता दिया। कांग्रेस पहले से खयाल रखती दिखाई दे रही थी कि मोदी और गुजरात की अस्मिता नाम के दो पहलूओं को छेड़ा ना जाए। लेकिन विकास पागल हो चुका है के सामने मोदी ने कहा कि मैं ही विकास हूं। उन्होंने दूसरे पैंतरों को छोड़कर या विकास के सवालों के जवाब देने के बजाय खुद को ही मुद्दा बनाकर मैदान में उतार दिया!

पीएम मोदी ने सारे मुद्दों और तमाम समस्याओं का हल एक ही देखा और वो हल था खुद को ही मुद्दा बना देना। मोदीजी की ये कोशिश कितनी बारीकियों से तथा समझदारी से भरी हुई है इस पर बेशक अलग चर्चा हो सकती है। क्योंकि इस प्रवृत्ति में सामाजिकता, सभ्यता, राष्ट्रीयता, प्रादेशिकता, नागरिकी भावना से लेकर कई सारे पहलूओं को उन्होंने बखूबी समेटा हुआ है।

और उन्होंने किया भी ठीक वैसा ही। चुनावों के दौरान वे सिर्फ अपने ऊपर चर्चा को केंद्रित करने में बिजी दिखाई दिए। चाहे वह नकारात्‍मक हो या सकारात्‍मक, सबकुछ उनके इर्द-गिर्द ही घूमते रहना चाहिए की कोशिश रंग ला रही थी। उनकी शैली ऐसी ही है कि वह अपने आसपास एक ध्रुवीकृत वातावरण बना लेते हैं, जिसमें कोई उन्‍हें पसंद करे या उनसे घृणा करे, लेकिन कभी भी उनकी अनदेखी नहीं कर सकता। पहले पहल वो ऐसा जादू चलाने में असमर्थ दिखे, किंतु जैसे जैसे मौके मिलते गए, वे उस दिशा में सफलतापूर्वक आगे बढ़ते रहे। चुनावी प्रचार के रण में एक बात तो दर्ज करनी होगी कि मोदी नाम के सामने या मोदी की राजनीति के सामने भारत के तमाम वर्तमान राजनीतिक विपक्षी दलों को इकठ्ठा कर लिया जाए तब भी उन दलों को अपनी काबिलियत के साथ साथ कई सारे नागरिकी व सरकारी नीतियों संबंधित मुद्दों की ज़रूरत होगी, तब जाकर वे मोदी नाम की शख्सियत को बैकफुट पर ले जा पाएंगे। यह व्यक्तिगत मान्यता है, लिहाजा इसे तवज्जो ना दे तो चलेगा।

वैसे यहां ये भी दर्ज करना होगा कि उत्तरप्रदेश के चुनावी परिणामों के बाद गुजरात में मोदीजी नाम की शख्सियत को जीतने के लिए पसीना बहाना पड़ सकता है यह बात वाकई विश्लेषकों या राजनीतिज्ञों के लिए एक के साथ एक फ्री वाला सब्जेक्ट था। ये भी एड कर ले कि हारी हुई बाजी जीतनी कैसे है यह समझना बीजेपी विरोधियों के लिए भी फ्री सब्जेक्ट ही था!

शुरुआत में भाजपा और कांग्रेस दोनों की होड़ विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ने की थी। भाजपा ने शुरुआत भी इसी से की। कांग्रेस ने सोशल इंजीनियरिंग पर काम करते हुए विकास के साथ-साथ जातिगत समीकरण का कार्ड खेला। भाजपा ने शुरू में बचने की कोशिश की। कांग्रेस ने नोटबंदी और जीएसटी पर जनता की नाराजगी को भुनाने का प्रयास किया। चुनाव की अधिसूचना जारी होने के पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री विजय रुपाणी ने राज्य की जनता के लिए खजाना खोल दिया। जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे के साथ प्रधानमंत्री ने हाई स्पीड बुलेट ट्रेन की आधारशिला गुजरात में ही रखी। तमाम उद्घाटन किए। जीएसटी पर जब व्यापारी वर्ग नाराज होने लगा और लोग परेशान दिखाई दिए तो जीएसटी के स्लैब में बदलाव हुआ। गुजरात के कारोबार तथा जनता की खरीद से जुड़े खाने के सामान तक पर जीएसटी का रेट कम किया गया। इतना ही नहीं पिछले दो दशक में पहली बार गुजरात में जातिगत समीकरण को ज्यादा ध्यान में रखते हुए टिकट बांटे गए।

कांग्रेस आ रही है... नवसर्जन ला रही है वाला जुमला भी खूब चला। लेकिन ये सब तब तक चला जब तक मोदी मैदान में नहीं उतरे थे। महीनों तक कांग्रेस ने नारे खूब चलाए और एक तरीके से भाजपा के खिलाफ बन रहे माहौल को अपने तरफ करने में सफलता भी पाई। किंतु जब मोदी मैदान में आये तो सारे जुमले ध्वस्त होते दिखाई दिए। महीनों से उठ रहे सवालों को मोदीजी ने खूबसूरती से खुद के साथ जोड़ करके चुनावी प्रचार में भावनात्मकता का पहला हथियार जमकर इस्तेमाल किया। फिर तो हिंदू, धर्म, जाति, उपजाति, राष्ट्रवाद, देशभक्ति, माँ भारती, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, जापान सब कुछ आया... बस विकास, नीतियां या योजनाएं कही काजल की कोठरी में दब गई!!!

नवंबर महीने के आखिरी सोपान में कांग्रेस और भाजपा खुलकर आमने सामने रही। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तरह कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी भी प्रचार अभियान में डटे रहे। भाजपा ने आक्रामक चुनाव प्रचार की रणनीति बनाई। इसके बरअक्स कांग्रेस ने मिक्स रणनीति को अहमियत दी। हार्दिक पटेल की टीम स्वतंत्र प्रचार अभियान के जरिए आक्रामकता को निभाती रही। हार्दिक पटेल की एक सीडी भी आई। इस मामले ने मतदाताओं को कितना प्रभावित किया यह नहीं पता किंतु चुनाव प्रचार में भाजपा ने सवालों को मोड़ने में सफलता ज़रूर प्राप्त कर ली थी। भाजपा ने राहुल गांधी के हर रोज मंदिर जाने को भी मुद्दा बनाया। सोमनाथ मंदिर में कांग्रेस उपाध्यक्ष के गैर हिंदू रजिस्टर में पंजीकृत होने का मुद्दा उठा, हिंदुत्व पर सवाल उठा। जवाब में कांग्रेस ने उन्हें जनेऊधारी हिंदू और शिव भक्त बताया।

इन दिनों कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव भी हुआ। हालांकि चुनाव नाम का था, औपचारिकताएँ ज्यादा थी। गुजरात चुनाव में भाजपा ने राहुल गांधी का नामांकन और कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव भी मुद्दा बना लिया। राहुल गांधी के बहनोई रॉबर्ट वाड्रा तथा वाड्रा के बहनोई तहसीन पूनावाला के विरोध ने भाजपा को कुछ दिन टाइम पास करने का मौका दे दिया। तहसीन पूनावाला के भाई शहजाद पूनावाला ने सवाल उठाया और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसके जरिए वंशवाद की राजनीति के मुद्दे पर कांग्रेस उपाध्यक्ष को घेरा। पीएम ने बिना चुनाव कांग्रेस अध्यक्ष को चुने जाने को कांग्रेस में आंतरिक लोकशाही की कमी बताया। उधर कांग्रेस ने अमित शाह के अध्यक्ष चुने जाने की प्रक्रिया को याद दिलाया तो भाजपा ने बिना जवाब दिए मुद्दे को मंदिर की तरफ मोड़ दिया!!!

अल्पेश ठाकोर का गोरी चमड़ी और मशरूम वाला लहजा उतना अच्छा नहीं था। गुजरात में ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर ने पीएम मोदी की त्वचा के रंग पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि, मोदी जब अब गोरे हो गए हैं, पहले वह मेरे जैसे काले थे। उन्होंने कहा कि, वह ताइवान का मशरूम खाकर गोरे हो गए हैं। अल्पेश ने कहा कि ताइवान से जो मशरूम आता है उस एक मशरूम की कीमत 80 हज़ार रुपये है। गुजरात की समस्याओं के लिए खुद को खड़ा करनेवाले ये युवा नेता गुजरात की समस्याओं को छोड़ कर मशरूम के खेत में जाकर लहराने लगे थे!!! वैसे कांग्रेस का शुक्रिया कि फायर ब्रांड नवजोत सिंह सिद्धू या फिर दिग्विजय सिंह सरीखे नेताओं को इन्होंने चुनावी प्रचार के रणक्षेत्र से दूर रखा था। वर्ना बात मशरूम से भी आगे पहुंच जाना तय था!

वैसे तमाम जगहों पर चुनाव प्रचार अमूमन ऐसा ही होता है, किंतु गुजरात को लेकर काफी उत्सुकता थी। उसके विकास, उसकी योजनाएं, नीतियां... लेकिन यहां तो मोरारजी देसाई तक भाषणों में आए तथा इंदिरा गांधी द्वारा नाक पर रुमाल रखने का प्रसंग भी कहानियों में छाया रहा! मोरारजी देसाई का अपमान किया गया था के नाम पर मोरारजी देसाई, गुजरात और गुजरात की अस्मिता का ये खेल वाकई बड़ा सुलझा हुआ ही मान लीजिए।

मंदिर तथा राम मंदिर का मुद्दा भी आया। जमकर राजनीति हुई। हालांकि इस चुनाव प्रचार का सबसे चौंकानेवाला तथा राहत देने वाला पहलू यह रहा कि जहां हिंदू-मुस्लिम के नाम पर सत्ता हासिल की गई थी उसी सूबे में इस दफा ना हिंदू को मुसलमान के खिलाफ भड़काने की लगातार या बड़ी कोशिशें हुई और ना ही मुसलमानों को इस प्रक्रिया का सामना करना पड़ा। हम बड़े और लगातार प्रयासों की बात कर रहे हैं, ना कि इक्का-दुक्का घटनाओं की। अप्रत्यक्ष कोशिशें ज़रूर हुई थी, लेकिन पूर्व दौर की तरह प्रत्यक्ष कोशिशों से तमाम दल बचते ज़रूर नजर आए!

पिछले दो दशकों में पहली बार गुजरात के मुसलमान तथा हिंदू इस बार यह सुकून महसूस कर रहे होंगे कि इस बार विधानसभा चुनावों में हिंदू मुस्लिम विरोध का कोई मुद्दा नहीं था। हालांकि सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का कार्ड खेलने की कम कोशिश नहीं हुई, लेकिन जमीन पर इसे उतारने में कोई खास कामयाबी मिलती नहीं दिखाई दी। गजब सीन था कि कट्टरवाद का चोला ओढ़ने वाली भाजपा इस दफा हिंदू-मुस्लिम मुद्दे को टालती दिखी, वहीं मुस्लिम परस्त छवि वाली कांग्रेस भी नरम हिंदुत्व की सड़क पर चल पड़ी थी!

वैसे तो अमूमन हर राज्यों में सत्ता की सीढ़ियां धार्मिक संस्थान, धार्मिक प्रतिनिधि और उनके भक्तजनों के आसपास से होकर गुजरती है। गुजरात में भी यही होना लाजमी था। कथित रूप से राजनीतिक तौर पर मजबूत स्वामीनारायण संप्रदाय हो या फिर पाटीदारों के कुछेक धार्मिक संस्थान हो, नेता सिर झुकाते दिखाई दिए। लेकिन हिंदू-मुस्लिम वाला वो दौर इस दफा उतना नहीं दिखा इसके लिए नेताओं का शुकराना अदा करना तो बनता है ही।

वैसे पहले चरण के चुनाव प्रचार में राहुल गांधी के हिंदू होने न होने के विवाद से लेकर कांग्रेस को औरंगजेब राज की मुबारकबाद और पाकिस्तान में मणिशंकर अय्यर द्वारा मोदी की सुपारी देने तक के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयानों ने कितना असर डाला इसका पता तो शायद ही लग पाए। लेकिन जमीनी तौर पर सभी को एक बात चौंका गई कि विकसित राज्य गुजरात मॉडल में चुनाव प्रचार के दौरान हिंदू-मुस्लिम के बजाय हिंदू-हिंदू की डिवाइड एंड रूल ट्रेन चलाने की कोशिशें बहुत हुई। पाटीदार, दलित, राजपूत समेत कई जातियां या उपजातियां डिवाइड होने लगी थी, ताकि रूल (सत्ता) तक पहुंचा जा सके। हिंदू-मुस्लिम के इतिहास का गवाह रहे गुजरात में हिंदू विभाजन की यह नीति भी पुरानी ही थी, जिसे एक दफा कांग्रेस सफलतापूर्वक आजमा चुकी थी।

गुजरात में हिंदू समुदाय में जाति आधारित हालिया आंदोलनों के चलते हिंदू-मुस्लिम वाला कार्ड काजल की कोठरी में रह गया था या कुछ दूसरी वजहें थी इसकी चर्चा तो बड़ी लंबी चलेगी। हालिया दौर में हिंदू जातियां या उपजातियां गुजरात सरकार के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन कर रही थी। विशेषत: वो तबका जो मुस्लिम विरोधी नीतियों में सरकार के काम आया करता था! क्या इसी वजह से ये कार्ड अपनी जेब से किसी ने बाहर नहीं निकाला था या फिर ये कार्ड अब बेअसर होने लगा था। इसके जवाब फिलहाल तो मेरे पास नहीं है, क्योंकि जवाब ढूंढने के लिए जहां-जहां बात करते हैं, सभी के दिलो-दिमाग अलग अलग स्पष्टीकरण देते हैं। सड़कों पर हो या सोशल मीडिया में हो, हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण वाले चैप्टर को इतनी तवज्जो नहीं मिली थी यह सुकूनभरी बात ही थी। शायद जातीय अस्मिता तथा जातीय ज़रूरतों के मुद्दे ने इस कार्ड को आगे आने ही नहीं दिया।

चुनावी प्रचार के दौरान सबसे ज्यादा हैरान करनेवाला मंजर तो यह रहा कि विकास के नाम पर सत्ता हासिल करके खुद को विकासपुरुष के रूप में स्थापित करने वाले पीएम मोदी ने ही गुजरात चुनाव प्रचार में विकास और नीतियों के बजाय दूसरे तमाम मुद्दों को खींचा था! अब पीएम जब दूसरे अनाप-शनाप मुद्दों को खींच के ले आते, ऐसे में कांग्रेस और दूसरों के लिए हम क्या टिप्पणियां करे। कहा तो यह भी जा रहा था कि नरेन्द्र मोदी के पास अपने कथित विकास कार्यों का कोई जवाब है ही नहीं, चाहे वो राज्य के हो या केंद्र के हो। और इसीलिए उनके लिए ज़रूरी था कि अपने कामों पर भाषण करने के बजाय दूसरी सड़कों पर ले जाकर जनता को छोड़ दिया जाए। गुजरात मॉडल, गुजरात का विकास... ये दोनों लफ्ज़ स्वयं मोदीजी के द्वारा उत्पन्न किए गए थे। गुजरात में करीब करीब डेढ़ दशक लंबा शासन तथा केंद्र में 3 साल का शासन, किंतु इस वक्त को कम ही याद क्यों किया गया होगा इसका अंदाजा शायद सभी को था।

गुजरात में किसान आंदोलन, किसानों के विरोध-प्रदर्शन, भूमि अधिग्रहण को लेकर कई गांवों की नाराजगी, पाटीदार आंदोलन, दलित आंदोलन, राजपूत समाज के विरोध का दौर, शिक्षकों तथा आंगनबाड़ी कर्मियों की नाराजगी, भूगर्भ गटर योजना का बूरा हाल, ग्राम्य व छोटे शहरी इलाकों में बिजली आपूर्ति की समस्याएं, किसानों की समस्याएं, नोटबंदी के बाद लोगों की परेशानियां, जीएसटी लागू होने के बाद व्यापारी तबके की नाराजगी, महंगी शिक्षा, स्कूली संस्थानों के फिस का मुद्दा, अस्पतालों के कारनामे, बेरोजगारी आदि चीजें चुनावी तारीख घोषित होने से पहले ही लोगों के लिए चिंता का सबब बनी हुई थी।

अमित शाह के बेटे जय शाह की कंपनी पर विपक्ष ने सवाल उठाए। विपक्ष ने सत्ता मिलने के बाद इनके नेताओं या नेताओं के पुत्रों की आमदनी में बुलेट ट्रेन जैसे इजाफे पर सवाल उठाए। लाजमी था कि चुनावी राजनीति में सवाल का जवाब सामने एक और सवाल फायर कर देना ही होता है!!! कांग्रेस के नेताओं के पुत्रों का इतिहास भी बहुत अच्छा नहीं रहा था, लिहाजा सत्तादल ने सवाल फायर करके जवाब दे दिया। उधर विपक्ष ने इसका जवाब एक और सवाल फायर करके दिया।

वैसे सवाल-सवाल वाली इस पोकेमोन टाइप चुनावी प्रतियोगिता में गजब का हाल यह था कि सवाल पूछने वालों को जवाब की नहीं पड़ी थी और जिन्हें सवाल पूछा जा रहा था उन्हें भी सवाल की नहीं पड़ी थी!!! बस सवाल-सवाल वाला गेम चलता रहा। सवाल पूछे जाते और व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी में समर्थक दिन गुजार देते। नर्मदा की बातें ज़रूर होती थी, किंतु किसान नाम का महत्वपूर्ण विषय पूरे प्रचार के दौरान काजल की कोठरी में छुपा दिया गया। पानी की बात हुई, किंतु किसान का तो ज़िक्र ही गायब रहा!!! जब कहीं लगा कि पानी की बात या नर्मदा की बात करेंगे तो किसानों की बात करनी पड़ेगी, उस जगह ओबीसी वाला कार्ड राजनीतिक दल फेंकने लगे।

शायद अब की बार भाजपा और मोदीजी को अपने ही विकास का जवाब अपने ही गृहराज्य में देना पड़ रहा था। गुजरात के नाम पर केंद्रीय सत्ता तक पहुंचने के बाद गुजरात से ही ऐसे सवाल उठे तो भाजपा के लिए परेशानियां लाजमी थी।

शायद नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी दूसरे कामों में मास्टर हो ना हो, किंतु चुनाव कैसे जीतना है उसमें वो यकीनन सबसे आगे है। लोग अपनी तरफ से सवाल पूछते या फिर पूछे गए सवालों के जवाब मिलने की उम्मीद करते इससे पहले तो पीएम समेत पूरा केंद्रीय मंत्रीमंडल गुजरात में आसमान से उतर पड़ा और पूर्व सरकारों के गुनाह नयी सरकारों के लिए आशीर्वाद होते हैं वाला सत्य लागू करने में जुटने लगा। अपने पिछले 15 सालों के शासन का जवाब देने के बजाय इन्होंने 15 साल पहले कांग्रेस का शासन कैसा था उसका खौफ लोगों में भरना शुरू कर दिया! अगर राज्य में कांग्रेस सरकार बन गई तो वो पुराना दौर वापस आ जाएगा वाली कल्पनाएँ मतदाताओं के दिमाग में डालने की कोशिशें तेज होने लगी। करीब देढ़ या दो दशक पहले कांग्रेस शासन की अराजकता का सच्चा या झूठा जहर लोगों के दिमाग में डालने की इन राजनीतिक कोशिशों को लोग कैसे देखते हैं ये उन पर निर्भर है। लेकिन इससे भाजपा को दो फायदे ज़रूर हुए। उन्हें अपने 15 साल के शासन का जवाब देने से बच निकलने की पतली गली मिल गई थी और साथ ही कांग्रेस के चरित्र और शासन प्रणाली को बदतर बताकर लोगों को कांग्रेस से दूर करने की पुरानी जड़ीबूटी भी हाथ लग गई थी।

वैसे चुनाव प्रचार के श्रीगणेश हुए तभी से एक बात बहुत कही जाती थी कि भाजपा की मास्टर जोड़ी कांग्रेस की एकाध गलती के इंतज़ार में रहेगी। गलती से कांग्रेस ने गलती कर दी तो फिर उस मौके का फायदा कैसे उठाना है उसका पूरा ज्ञान और अनुभव भाजपा की मास्टर जोड़ी के पास है। शायद राहुल गांधी को अंदाजा भी था इस बात का। और होगा भी, क्योंकि उनकी माता सोनिया गांधी मौत का सौदागर वाली गलती के परिणाम का अनुभव अपने पुत्र राहुल गांधी में डाल चुकी होगी!!! राहुल गांधी ने अपने पूरे चुनाव प्रचार के दौरान खास खयाल रखा कि गुजरात की अस्मिता और नरेन्द्र मोदी का अपमान, इन दोनों चीजों पर फूंक फूंक कर छाछ पी जाए।

मेरे एक मित्र, जो आरएसएस से जुड़े हैं, उनकी भाषा में, राहुल गांधी ने तास के पत्तों का महल बनाया जिसे उनके ही नेता मणिशंकर अय्यर ने पंखा चालू करके उड़ा दिया!!! अपने विकास कार्यों के बजाय कांग्रेस, राहुल गांधी और उनके पुराने राज को बदतर दिखाने में बिजी नरेन्द्र मोदी मुमकिन होता तो मणिशंकर अय्यर को स्पेशल थेंक यू कार्ड भेज देते!!!

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर ने उस खोखले भ्रम को तोड़ दिया था जिसमें कहा जाता था कि कांग्रेस के नेता अपनी भाषा को ज्यादा संयमित रखते हैं। 7 दिसंबर 2017 के दिन मणिशंकर अय्यर ने वही गलती कर दी जो सालों पहले सोनिया गांधी ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री मोदी को मौत का सौदागर कहकर कर दी थी। अंबेडकर के मुद्दे पर प्रधानमंत्री मोदी की आलोचना करते हुए अय्यर ने उन्हें नीच आदमी तक कह डाला। अय्यर यहीं नहीं रुके और कहा, उस आदमी को कोई सभ्यता नहीं है। मोदी की आलोचना करते हुए मणिशंकर इतना आगे निकल गए कि उन्हें ये भी भान नहीं रहा कि प्रधानमंत्री के प्रति वह कैसे शब्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं। पीएम मोदी के राहुल परिवार के लिए औरंगजेब वाले बयान पर प्रतिक्रिया देने के चक्कर में मणिशंकर बोल गए कि, अंबेडकरजी की जो सबसे बड़ी ख्वाहिश थी कि उसे साकार करने में एक ही आदमी का सबसे बड़ा योगदान था उनका नाम था जवाहर लाल नेहरू। अब इस परिवार के बारे में ऐसी गंदी बातें करें वो भी जबकि अंबेडकरजी की याद में एक बहुत बड़ी इमारत का उद्घाटन यहां हो रहा है, तब ऐसी बात की जाए, मुझे लगता है ये आदमी बहुत नी##@@ किस्म का आदमी है, इसमें कोई सभ्यता नहीं है। ऐसे मौके पर ऐसी गंदी राजनीति की क्या आवश्यकता है।

मणिशंकर अय्यर के इस बयान पर पीएम मोदी ने तुरंत पलटवार किया तथा कांग्रेस को मुगलों से जोड़ दिया। उधर भाजपा के प्रवक्ता जीवीएल नरसिम्हा मीडिया के सामने रोने लगे!!! रोने-धोने की यह कला उन्होंने मोदीजी से ही सीखी होगी, क्योंकि मोदीजी का ताजा इतिहास ऐसा ही रहा है, जिनके सार्वजनिक रुदन पर लगता था कि ये नरेन्द्र मोदी है या नेहा कक्कड़। वैसे नेताओं का रोना-धोना नाटकीय ज्यादा होता है, किंतु मणिशंकर गुजरात में कांग्रेस की नांव को शायद उसी मोड़ पर ले आए थे, जहां सोनिया अपनी उस मौत का सौदागर वाली गलती के बाद ले आई थी।

राजनीति के मास्टर नरेन्द्र मोदी इस मौके को कहां छोड़ने वाले थे। राहुल गांधी समेत समूची कांग्रेस डैमेज कंट्रोल करने की कोशिशें करती रही। जैसे हमने आगे ज़िक्र किया वैसे, गुजरात के चुनाव घोषित हुए इससे पहले ही कहा जा रहा था कि भाजपा और मोदी-शाह की जोड़ी को विकास और अपने कार्यों के बजाय कांग्रेस की गलती की ज्यादा राह होगी। और हुआ भी यही। मणिशंकर अय्यर की विशालकाय गलती और वाकई गटरछाप भाषा ने मोदी को वो मौका दे ही दिया, जिनकी उन्हें तलाश थी।

इस आपाधापी में नुकसान की संभावना को शायद राहुल गांधी जल्दी समझ गए थे। उन्होंने मणिशंकर अय्यर की आलोचना की और उन्हें पीएम की माफी मांगने के लिए कहा। उसके बाद अय्यर ने अपने शब्दों के लिए पीएम से माफी मांगी और बचाव करते हुए फिर वही राजनीतिक बहाना आगे कर कहा कि, मैंने अंग्रेजी के शब्द LOW का हिंदी अनुवाद किया था। अगर नीच का मतलब LOW BORN होता है तो मैं माफी मांगता हूं। कांग्रेस ने तुरंत प्रेस कोन्फरन्स कर बयान से किनारा कर लिया। अय्यर ने बेहद बचकाना बचाव करते हुए कहा कि, मुझे अच्छे से हिन्दी नहीं आती। अगर इसका मतलब हिन्दी में ये होता है तो मैं माफी मांगता हूं।

चुनाव प्रचार में अपने शासन का लेखा-जोखा लोगों के सामने रखने से बच रहे मोदी को बड़ा हथियार मिल चुका था। देखा जाए तो गलती या राजनीति का निचला स्तर कांग्रेस के नेता मणिशंकर अय्यर ने पकड़ा था। चुनाव जीतने के लिए मोदीजी आगे जो भी विवादास्पद गलियां पकड़ते, किंतु कांग्रेस ने भी दकियानूसी सड़क पकड़ ली थी।

अब नरेन्द्र मोदी को जो चाहिए था वो उन्हें मिल चुका था। चुनाव में जीतना ज़रूरी होता है, कैसे जीतना है यह ज़रूरी नहीं होता!!! भारतीय राजनीति का यह कड़वा सच अब विकसित राज्य में उफान पर था। कांग्रेस हो या भाजपा हो, दोनों ने मिलकर विकास के बजाय चुनावी प्रचार को ही पागल बना दिया था। पता नहीं मणिशंकर अय्यर को कांग्रेस के ऊपर गुस्सा था या फिर उनकी फितरत ही ऐसी थी, लेकिन उन्होंने कांग्रेस के तास के पत्तों के महल को करीब करीब हिला ही दिया। अब उस महल को धराशायी करने की औपचारिकताएँ मोदीजी को संपन्न करनी थी। और उसमें वे मास्टर ही थे।

मुझे गालियां देने में कांग्रेस ने कोई कसर नहीं छोड़ी, लेकिन मैं चुप रहता हूं। क्योंकि काम करना ही मेरी प्राथमिकता है...यह बोलकर मोदी चुप नहीं रहे!!! फिर तो उन्होंने बाकायदा चुनावी भाषणों में कांग्रेस के बिगड़े बोल की पूरी सूची ही खोलकर रख देना मुनासिब समझा। कांग्रेस ने जहां अय्यर की सदस्यता रद्द करके मामला संभालने की कोशिशें की, वहीं पीएम ने कहा, श्रीमान गांधी, अय्यर को सजा करके खुद को अच्छा मनवाने के लिए निकले हो क्या?”  पीएम ने मैं चुप रहता हूं यह बोलकर चुप रहने का छोड़ ही दिया!!! रेणुका चौधरी ने मुझे वायरस बोला था, जयराम रमेश ने मुझे भस्मासुर कहा था, बेनी प्रसाद ने मुझे पागल कुत्ता कहा था, गुलाम नबी आजाद ने मुझे गंगु तेली और दिग्विजय सिंह ने मुझे रावण कहा था... न जाने कितने कितने कांग्रेसी बिगड़े बोल को पीएम कब्र से बाहर निकालने लगे।

फिर क्या था। भाजपा के खिलाफ मैदान में उतरे हार्दिक पटेल ने शुरुआत करते हुए मोदी पर वार किया और कहा, आपने एक महिला को बार गर्ल कहा था, आपने तो माफी भी नहीं मांगी थी। हार्दिक पटेल ने शुरू किया तो फिर मोदी के बिगड़े बोल की सूची भी चुनावी मैदान में खुलने लगी। सीएम रहते हुए मोदीजी का अच्छे फिगर की चाहत में लड़कियां कम खाती है वाला बयान हो, या फिर पीएम के तौर पर विदेश में जाकर बोला गया पहले भारत में पैदा होने में भी शर्म आती थी वाला बयान हो, कांग्रेस भी इतिहास पर मैग्नीफायर लेकर टूट पड़ी। 50 लाख की गर्लफ्रेंड से लेकर नरेन्द्र मोदी द्वारा दिए गए अन्य विवादित बयानों की खाताबही इधर भी खुलने लगी। 

सर्जिकल स्ट्राइक के बाद राहुल गांधी द्वारा दिए गए बयान जवानों के खून की दलाली भाजपा ने याद किया। इसके एवज में सर्जिकल स्ट्राइक के बाद यूपी चुनावों में भाजपा द्वारा लगाए गए पोस्टर विवाद का आगमन गुजरात में होने लगा। व्यक्तिगत छींटाकशियों के अलावा इस चुनाव में विकास, नीतियां या योजनाओं को छोड़कर सभी ने भावनात्मक लहजा ज्यादा रखा। मतदाताओं को भावनात्मक तौर पर लुभाने की कोशिशें दोनों दल के मुखियाओं ने की और भाषणों में कभी निरूपा रॉय की आत्मा दिखी, तो कभी शोले का गब्बर सिंह बाहर आया!!!

वैसे इस दफा राहुल गांधी ने भाषा की मर्यादा या शालीनता का खयाल रखने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी, वे विकास के मुद्दों और नोटबंदी व जीएसटी जैसे टॉपिक से भटके नहीं थे। लेकिन उनके ही नेता मणिशंकर अय्यर ने सारी मेहनत पर कहीं से पानी का टैंकर लाकर खाली कर दिया! निष्पक्ष रूप से देखा जाए तो अपने बिगड़े बोल को लेकर इससे पहले भी विवादों में छाने वाले मणिशंकर का नीच वाला बयान वाकई गटरछाप राजनीति का सीधा उदाहरण था। ऊपर से बयान के बाद उनकी बहानेबाजी उन्हें ज्यादा हास्यास्पद बना चुकी थी। नीच वाले लफ्ज़ पर जमकर बवाल हुआ।

नीच से शुरू हुआ चैप्टर आखिरकार पाकिस्तान जाकर लैंड कर गया!!! नागरिकी नजरिये से देखा जाए तो नेताओं ने सोचा होगा कि विकास जाए भाड़ में, जब गरमागरम मुद्दा हाथ लगा है तो विकास और नीतियों को कब्र में समेट ही दो!!! पीएम मोदी ने 10 दिसंबर 2017 के दिन चुनावी रैली में चौंकानेवाला आरोप लगाया और कहा कि, पाकिस्तान गुजरात विधानसभा चुनावों में हस्तक्षेप कर रहा है। साथ ही उन्होंने कांग्रेस से उसकी पार्टी के आला नेताओं के हाल ही में पड़ोसी देश के नेताओं से मिलने पर स्पष्टीकरण भी मांगा। पालनपुर में एक रैली को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने पाकिस्तानी सेना के पूर्व महानिदेशक (डीजी) सरदार अरशद रफीक द्वारा कथित तौर पर की गई अपील को लेकर सवाल उठाए। पीएम मोदी के दावे के मुताबिक रफीक ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल को गुजरात का मुख्यमंत्री बनाने की अपील की थी।

मोदी ने कहा कि कांग्रेस के निलंबित वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर ने कांग्रेस के आला नेताओं के पाकिस्तानी नेताओं से मुलाकात करने के एक दिन बाद उन्हें नीच कहा था। प्रधानमंत्री ने कहा कि, मीडिया में मणिशंकर अय्यर के आवास पर हुई बैठक के बारे में शनिवार (9 दिसंबर) को खबरें थी। इसमें पाकिस्तान के उच्चायुक्त, पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री, भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने हिस्सा लिया। अय्यर के आवास पर तकरीबन तीन घंटे तक बैठक चली। उन्होंने कहा, अगले दिन मणिशंकर अय्यर ने कहा कि मोदी नीच है। यह गंभीर मामला है। मोदी ने कहा कि, रफीक ने अहमद पटेल को गुजरात का अगला मुख्यमंत्री बनाने का समर्थन किया था।

पीएम ने आगे कहा, एक तरफ पाकिस्तानी सेना के पूर्व डीजी गुजरात के चुनाव में हस्तक्षेप कर रहे हैं। दूसरी तरफ पाकिस्तान के लोग मणिशंकर अय्यर के आवास पर बैठक कर रहे हैं। मोदी ने कहा, और उस बैठक के बाद गुजरात की जनता, पिछड़ा समुदाय, गरीब लोगों और मोदी का अपमान किया गया। क्या आप नहीं मानते कि इस तरह की घटनाएँ संदेह पैदा करती हैं। उन्होंने कहा कि, कांग्रेस को देश की जनता को बताना चाहिए कि क्या योजना बन रही थी।

गिरिराज सिंह भले तीन सालों में प्रमोट ना हो सके हो, लेकिन उनकी वो लाइन बहुत आगे जा चुकी थी। पाकिस्तान वाला जुमला उनसे होते हुए उनके राष्ट्रीय अध्यक्ष, और वहां से अब देश के पीएम तक जा पहुंचा था! गिरिराज सिंह की यह विचारधारा इतने ऊंचे स्तर तक पहुंच जाए, ये वाकई गिरिराज सिंह के लिए किसी अवार्ड सरीखा ही है।

मुझे तो भाजपा या कांग्रेस, राहुल या मोदी, या फिर दूसरे नेता, इन तमाम में कोई फर्क नजर नहीं आता। कड़वा सच लिखे तो इनमें से कौन सबसे अच्छा के बजाय कौन सबसे बुरा वाला एंगल ज्यादा काम आता है। खैर, किंतु इसी तथ्यात्मक नजरिये से देखे तो अफजल गुरु को शहीद बतानेवाली पीडीपी के साथ भाजपा जम्मू-कश्मीर में गठबंधन सरकार चला रही थी!!! बताइए, बावजूद इसके पीएम मोदी आतंक, पाकिस्तान और सुपारी वाली राह पर बेफिक्री से चल पड़े थे!!! अंत तक सोचा जाए तो, अपने विशेष या अतिविशेष समर्थकों पर मोदीजी को कितना भरोसा रहा होगा सोच लीजिए। तभी तो अपने विवादास्पद गठबंधन के बावजूद इन्होंने यह हिम्मत दिखाई थी!

पीएम ने पहला आरोप यह कहते हुए मड़ा कि गुपचुप बैठक हुई, साथ में यह भी कहा कि मीडिया में खबरें चल रही थी”…!!! अब जहां तक इस बैठक का ब्यौरा खुद पीएम ने दिया, मीडिया ने दिया और कांग्रेस ने दिया, बैठक के दौरान पुलिस बल, सुरक्षा बल तक मौजूद था। बैठक में भाग लेने वालों के लिए सुरक्षा तक सरकार दे रही हो तो फिर ये बैठक गुपचुप वाली कैटेगरी में कैसे रखे यह पीएम को बताना चाहिए था। पीएम ने आरोप लगाया कि पाकिस्तान के पूर्व डीजी गुजरात चुनाव में दखल दे रहे हैं। इस आरोप को उन्होंने गुपचुप वाली बैठक के साथ नहीं जोड़ा था, और ना ही इस आरोप के कोई तथ्य पेश किए, जैसे उस बैठक को लेकर किए थे।

राजनीति वाले एंगल को छोड़ दे तो ऐसी बैठकें महज एक शिष्टाचार या औपचारिकताएँ होती हैं। और ऐसा इसलिए क्योंकि ऐसी बैठकें पहले भी विपक्ष वाले करते आए हैं। तर्कों के हिसाब से मोदीजी गलत साबित होते थे। दावों के हिसाब से मोदीजी ने खुद को सच साबित करने के लिए कोई तथ्य तो नहीं रखे, उधर कांग्रेस लोकसभा में मोदी से माफी मांगने की बात करने के अलावा और कुछ कर नहीं सकी। यानी पूरा मसला बताया गया राष्ट्रद्रोह या गैरकानूनी या अनैतिक... किंतु तथ्यों की बात करे तो दोनों पार्टियां फिसड्डी साबित हुई थी!!!

वैसे मणिशंकर पूर्व राजनयिक थे, सांसद थे, कांग्रेस के विदेश विभाग के सक्रिय नेता थे। पाकिस्तान के खुर्शीद महमूद कसूरी पूर्व विदेश मंत्री थे। नटवरसिंह, सलमान हैदर, टीसीए राघवन, शरत सब्बरवाल भी पूर्व राजनयिक की श्रेणी में आते थे। जिन पाकिस्तानी शख्सियतों का ज़िक्र पीएम ने या कांग्रेस ने किया, ज़िक्र के वक्त दोनों पक्षों ने उन शख्सियतों के पद को भी सूचित किया था। महमूद कसूरी की किताब हो, कांग्रेसी नेताओं द्वारा लिखी गई किताबें हो, भाजपाई नेताओं की किताबें हो या मीडिया पत्रकारों द्वारा लिखे गए प्रसंग हो, पूर्व में ऐसी अनेकों अनेक बैठकें होती रही है। पाकिस्तान हो या चीन हो, सभी के साथ शिष्टाचार भेंट होती रही है ऐसा आपको अनेकों अनेक पक्षों की किताबों में मिल जाएगा। ऐसे में मुलाकात बड़ा मुद्दा नहीं थी ऐसा मान ले तो फिर सवाल आकर यही ठहरता था कि पीएम का वो दावा जिसमें उन्होंने सुपारी, समझौते या सौदेबाजी की बात की थी उसका जवाब क्या था। और अजीब था कि उसका तथ्यात्मक जवाब ना तो पीएम मोदी के पास था और ना ही अब तक कांग्रेस के पास!!!

पार्टी में शामिल लोगों ने मीडिया से बात करते हुए कहा था कि उस मुलाकात में पाकिस्तान-भारत के संबंध, पहल, वहां के आतंकी सरगना हाफिज मोहम्मद सईद, उसके द्वारा नई राजनीतिक पार्टी बनाए जाने समेत अन्य मुद्दों पर चर्चा हुई। हंसी-ठहाके के बीच आपसी विचार भी साझा हुए। पूर्व प्रधानमंत्री इस पार्टी में केवल रात्रिभोज में शामिल हुए थे।

लेकिन पूरा मामला, जो कि महज एक सामान्य बात थी, असामान्य तब हुआ जब दूसरे दिन मणिशंकर अय्यर ने पीएम मोदी को नीच कहा। कांग्रेसी नेता के बेहद घटिया और निचले स्तर के बयान के बाद एक नया बखेड़ा खड़ा हो गया।

अजय अग्रवाल नामका एक चेहरा भी इसमें काम कर गया। 7 दिसंबर को मणिशंकर अय्यर ने टीवी रिपोर्टर को बयान दिया। इसमें उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को अपशब्द कहा। बताया गया कि इससे अजय अग्रवाल ने अंदाजा लगाया कि पार्टी में निश्चित रूप से गुजरात विधानसभा चुनाव को प्रभावित करने पर चर्चा हुई थी। उन्होंने अपने व्यक्तिगत निष्कर्ष से यह निकाला कि यह पाकिस्तान की साज़िश का हिस्सा है। अजय अग्रवाल के बयान को 9 दिसंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लपक लिया और उन्होंने इसमें एक कड़ी और जोड़ते हुए अहमद पटेल को गुजरात का मुख्यमंत्री बनाने की बात भी जोड़ दी।

दरअसल अजय अग्रवाल जंगपुरा एक्सटेंशन, नई दिल्ली स्थित अपने आवास से 6 दिसंबर को जा रहे थे। उन्होंने जी-ब्लॉक में पूर्व केंद्रीय मंत्री मणिशंकर अय्यर के घर के बाहर भारी पुलिस बल की तैनाती देखी। अजय ने जानकारी ली तो पता चला कि यहां पाकिस्तान के राजनयिक आ रहे हैं, पार्टी है। वैसे उन्होंने यह भी लिखा कि यह एक शिष्टाचार भेंट थी।

एक रिपोर्ट के मुताबिक अजय अग्रवाल अपने दावे से पीछे नहीं हट रहे थे। उनका कहना था कि पार्टी, बैठक और रात्रिभोज में निश्चित रूप से यह चर्चा हुई थी। वह पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर भी आरोप लगा रहे थे और उन्हें कांग्रेस पार्टी से निकालने की मांग कर रहे थे। लेकिन साथ में उन्होंने स्वीकार किया कि दोनों (भाजपा, कांग्रेस) तरफ से मतदाताओं के ध्रुवीकरण की कोशिश हो रही है। अग्रवाल ने कहा कि, राजनीति में यह चलता है। उन्हें जो लगा उन्होंने अपना काम कर दिया। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी से इस मुद्दे को उठाने के लिए कहा था। प्रधानमंत्री ने खुद इसे जरूरी समझकर उठाया है।

पूरे मामले में एक चीज़ कही जा सकती थी कि यदि सभी के दावे सच थे, तो ऐसे में पीएम सरीखे आदमी ने पूरा मामला एक पत्रकार के निष्कर्ष के आधार पर खड़ा किया था। यानी कि देश के सर्वोच्च पद पर बिराजमान शख्सियत ने एक पत्रकार के निजी निष्कर्ष को अपने तरीके से पेश किया था। मणिशंकर का बयान वाकई निचले स्तर का था, किंतु पीएम खुद भी ओछे स्तर की राजनीति कर रहे थे यही लग रहा था।

पीएम ने जो जो दावे किये उसमें शायद बैठक वाली बात सच थी और यह सार्वजनिक थी। किंतु बैठक में हुई चर्चा, पाकिस्तान का गुजरात चुनाव में हस्तक्षेप, अहमद पटल वाला दावा या सुपारी वाली बातें अब तक महज एक दावा बनकर रहे चुनावी भाषण थे। इसका कोई तथ्यात्मक सबूत भाजपा ने अब तक पेश नहीं किया। सवाल उठे कि क्या चुनाव जीतने के लिए पीएम सरीखा आदमी कुछ भी बोल सकता है। वहीं, कांग्रेस के लिए भी परेशानी यह रही कि बैठक की बात सच थी। पेंच यह था कि भले वो औपचारिक बैठक हो, सदैव चलनेवाली विपक्षी औपचारिकता हो, किंतु इसे आसानी से पाकिस्तान-कांग्रेस-सौदा-समझौता वगैरह से जोड़ा जा सकता था।

सीधी सी बात थी कि पीएम मोदी ने गुजरात में खुद पर जो नागरिकी सवाल थे उसे बड़े खूबसूरत राजनीतिक तरीके से पाकिस्तान और कांग्रेस को जोड़कर मोड़ दिया था। ये खूबसूरत राजनीतिक प्रयास था, नैतिक या दूसरे नजरिये से इतना ही बदसूरत था यह लिखने में मुझे कोई आपत्ति नहीं दिखती। जिस प्रकार की बैठकें महज एक शिष्टाचार और औपचारिकता मानी जाती हो उसे सनसनीखेज बनाकर लोगों के सामने परोसने का पीएम का यह प्रयास किसी निजी न्यूज़ चैनल के एंकर से कम नहीं था!!! रही बात, पीएम के उन दावों की, जिसमें उन्होंने सौदे, समझौते और सुपारी का दावा किया था, वो चीज़ ही सुर्खियों में छानेवाली थी ये लाजमी था।

सौदे, समझौते और सुपारी वाला दावा कितना तथ्यात्मक था या कितना खोखला इसे लोग फिलहाल देखनेवाले भी नहीं थे। क्योंकि चुनाव प्रचार में 'सनसनीखेज चीजें' ज्यादा चलती है। जबकि इस बार सनसनी का माहौल स्वयं पीएम ही क्रिएट कर रहे थे। उन्होंने बड़ी चालाकी से महज एक औपचारिक बैठक को सनसनीखेज भी बना दिया तथा उसमें सौदा, समझौता और सुपारी का मसाला डालकर तड़का भी लगा दिया था! साफ था कि मणिशंकर का घिनौना बयान घिनौना तो था ही, किंतु मौके का राजनीतिक फायदा पीएम ने उठा ही लिया था। नीच जाति का अपमान, गुजरात की अस्मिता, मुझे गालियां, मेरा अपमान जैसी भावनात्मक गलियों से पीएम गुजरने लगे, जो कि उनका पसंदीदा रास्ता था।

कांग्रेस के प्रवक्ता सुरजेवाला ने मोर्चा संभाला और पीएम के आरोप को बेबुनियाद बताया। उन्होंने कहा, मोदीजी चिंतित, हताश और गुस्से में हैं। ऐसे बयान में कोई सच्चाई या तथ्य नहीं है और यह झूठ पर आधारित है। ऐसा व्यवहार प्रधानमंत्री को शोभा नहीं देता।

अब तक यूपी-बिहार में पाकिस्तान का ज़िक्र सिर्फ पटाखों तक होता था, लेकिन इस दफा पीएम मोदी ने गुजरात बचाने के लिए वाकई बड़ी सनसनी पैदा कर दी थी। पाकिस्तान तक को जब घसीटा गया तो पाकिस्तान ने अपनी और से कह दिया कि, गुजरात विधानसभा चुनावों के लिए चुनाव प्रचार के दौरान भारतीय नेताओं को अपनी घरेलू राजनीति में पाकिस्तान को नहीं घसीटना चाहिए। पाकिस्तान के विदेश कार्यालय के प्रवक्ता मोहम्मद फैसल ने ट्विटर पर लिखा, अपनी चुनावी बहस में भारत अब पाकिस्तान को घसीटना बंद करे और ऐसे मनगढ़ंत षड्यंत्रों के बजाय अपने दम पर जीत हासिल करे जो बिल्कुल निराधार एवं गैरजिम्मेदार हैं।

पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री खुर्शीद महमूद कसूरी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उन्हें भारतीय राजनीति में बिना वजह घसीटे जाने पर नाराजगी जताई और कहा कि, नई दिल्ली में एक निजी डिनर में किसी ने 'गुजरात' शब्द तक नहीं बोला। कसूरी ने कहा, मैं आपको बताता हूं कि भारत या पाकिस्तान की आंतरिक राजनीति के बारे में कोई चर्चा नहीं हुई। यहां तक कि चर्चा के दौरान किसी भी व्यक्ति ने 'गुजरात' शब्द तक नहीं बोला। कसूरी ने लगे हाथ भारतीय लोकतंत्र पर वार करना भी नहीं छोड़ा। बताइए, गुजरात चुनाव में पीएम पाकिस्तान को घसीट लाए, वो भी किसी पत्रकार की राय पर, और अब पाकिस्तान भारतीय लोकतंत्र पर तंज कस रहा था!

यहां ये तथ्य भी दर्ज होना चाहिए कि हमारा मीडिया और हमारे नेता आज भी पाकिस्तान के नाम पर भारतीय नागरिकों या भारतीय मतदाताओं को अपनी और मोड़ने की कोशिशें करते हैं। और यह बात किस हद तक चिंताजनक है ये आपको सोचना है। संतोष लेना है तो यही लीजिएगा कि ये लगभग तमाम मीडिया हाउस और लगभग तमाम राजनीतिक दल करते हैं। कोई जमकर करता है, कोई बिना जमके। कोई मौका देख कर करता है, कोई बिना मौके के।

वैसे पाकिस्तान का यह स्पष्टीकरण कांग्रेस के ज्यादा काम नहीं आनेवाला था। कुछ तथ्यात्मक नजरिये से लिखे तो, इतिहास गवाह है कि मुस्लिम वोटों को साधने के चक्कर में कांग्रेस की छवि मुस्लिम परस्त पार्टी की तो बन ही चुकी थी। उपरांत रही सही कसर भाजपा की दशकों पुरानी प्रचार-नीति ने पूरी कर दी थी, जिसमें उनके द्वारा सदैव कांग्रेस को इसी चक्कर से जोड़ा जाता था। ऐसे में जब पाकिस्तान का स्पष्टीकरण आया तो व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी में भी इसे पाकिस्तान-कांग्रेस के गठबंधन के रूप में पेश किया जाने लगा। पीएम ने जो तीर चलाया था, मामला भले कुछ ना हो, लेकिन अब कांग्रेस के लिए जवाब देना मुश्किल हो रहा था।

पाकिस्तान के बयान के बाद विधि एवं न्याय मंत्री रविशंकर प्रसाद कूद पड़े। उन्होंने पाकिस्तान को नसीहत देकर राष्ट्रवाद, देशभक्ति वाला मसाला डाला और कहा कि, मैं पाकिस्तान से कहना चाहता हूं कि भारतीय भारत के लोकतंत्र को स्वयं चलाने में समर्थ हैं जैसा कि वह करते आए हैं

उधर मणिशंकर अय्यर के घर जो बैठक हुई थी उसके बारे में बताते हुए पूर्व राजनयिक चिन्मय गरेखन ने कहा कि, डिनर पर सिर्फ़ भारत-पाक रिश्तों के बारे में बात हुई थी। जहां तक मुझे याद है 100 फीसदी किसी एक शख्स ने भी गुजरात चुनाव और भारत या पाकिस्तान के अंदरूनी हालात के बारे में बात नहीं की थी। जी हां वहां सिर्फ़ भारत-पाकिस्तान संबंधों के बारे में बात हुई थी। किसी ने राजनीति पर बात नहीं की थी। मैं इन सब बातों में नहीं पड़ना चाहता। मैं किसी तरह का अंदाज़ा नहीं लगाना चाहता। मैं तथ्यों की बात कर रहा हूं। मैं सिर्फ़ वही बता रहा हूं जो हुआ था। लेकिन चिन्मय गरेखन का स्पष्टीकरण जमीन से ऊपर उठकर सुर्खियों में आ ही नहीं पाया।

उधर भाजपा के फायरब्रांड नेता शत्रुध्न सिंहा ने पीएम मोदी के बयान पर आपत्ति जताते हुए ट्वीट कर कहा, आदरणीय सर, सिर्फ़ किसी भी तरह चुनाव जीतने के लिए, आप अपने राजनीतिक विरोधियों के ख़िलाफ़ अंतिम चरण प्रक्रिया में रोज़ अनसुलझे और अविश्वसनीय मुद्दों को लेकर आ रहे हैं। अब चुनाव में पाकिस्तान उच्चायुक्त और जनरल को जोड़ दिया है। शत्रुध्न सिंहा ने ट्वीट कर पीएम को यह भी कहा कि, सर नए-नए ट्विस्ट और भरपाई की कोशिश की बजाए आप उन मुद्दों पर बात करें जिनका आपने विकास मॉडल में वादा किया था। जैसे आवास, विकास, युवाओं को रोज़गार, स्वास्थ्य और शिक्षा. सांप्रदायिकता फैलाने वाले वातावरण को रोकें और स्वस्थ राजनीति और स्वस्थ चुनावों में वापस जाएं। जय हिंद। बीजेपी नेता यशवंत सिंहा ने इस मुद्दे पर सारा माझरा खत्म होने के बाद साल के पहले दिन, यानी कि 1 जनवरी 2018 को टिप्पणी देते हुए कहा कि, मैं यह सवाल उठाना चाहता हूं कि क्या यही राष्ट्रीय नीति है? क्या उन्हें इसका अंदाजा है?”

कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने कहा कि, पीएम मोदी को अपने पद की गरिमा बनाए रखने के लिए अपने दिए बयान पर माफ़ी मांगनी चाहिए। वैसे गुजरात चुनाव संपन्न होने के बाद शीतकालीन सत्र के पहले दिन कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने भी पीएम मोदी से सबूत पेश करने के लिए या फिर माफी मांगने के लिए कहा। लेकिन राजनीतिक नजरिये से देखे तो, अब क्या था जब ताला टूट चुका था। क्योकि एग्ज़िट पोल में कांग्रेस हार रही थी। चुनाव खत्म हो चुके थे और परिणामों के बाद माफ़ी से लेकर ये पूरा मामला हवा हो जाने वाला था।

भारतीय राजनीति में भाजपा या कांग्रेस की ये लंपटता खुद ही देख लीजिएगा, जहां इतने गंभीर आरोप पीएम सरीखा आदमी लगाता है, इतना विवादास्पद आरोप कांग्रेस जैसी पुरानी पार्टी झेलती है, और फिर परिणाम घोषित होने के बाद लोगों को इसी मायाजाल में छोड़कर दोनों दल चलते बनते हैं!!!

वैसे जो चीज़ योगी आदित्यनाथ ने यूपी से गुजरात चुनाव के बारे में कही थी वो सत प्रतिशत सही भी थी इसमें कोई दो राय नहीं। इस चुनाव ने राहुल गांधी को मंदिर जाना सीखा दिया था और मनमोहन सिंह को बोलना!!! आमतौर पर मौनी बाबा के नाम से मशहूर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह गुजरात के चुनाव प्रचार में कई बार दिखाई दिए। गजब था कि वे सिर्फ दिखाई ही नहीं दिए, बल्कि बोले भी!!! किसी को उनका बोलना फेक न्यूज़ लगता हो तो मीडिया के वीडियो रिपोर्ट देख ले।

वैसे पूर्व पीएम मनमोहन सिंह के मौन को उनके समर्थक शालीनता और मर्यादा कहते हैं और विरोधी समर्थक इस प्रक्रिया को मौनी बाबा के नाम से जानते हैं। एक पीएम के तौर पर उनके लिए मुझे मौनी बाबा वाला नामकरण पहले से ठीक लगा है, क्योंकि उनकी चुप्पी शालीनता के बजाय दूसरी सड़क की ओर ले जाती थी, जहां तक उनके कार्यकाल को देखा जाए वहां तक की बात है यह। खैर, किंतु मौन को अतिप्रिय माननेवाले मनमोहनजी इस दफा बोले! आदित्यनाथ के लफ्जों में उन्हें गुजरात चुनाव ने बोलना सीखा दिया!!!

पीएम मोदी के पाकिस्तान वाले दावे, मीटिंग में कथित सौदे या समझौते या बातों वाले भाषण के विरुद्ध टिप्पणी करते हुए पूर्व पीएम मनमोहन सिंह ने कहा कि, प्रधानमंत्री मोदी ऐसा डर, हताशा और गुजरात विधानसभा चुनाव में हार को सामने देखकर बोल रहे हैं। हताश प्रधानमंत्री झूठ के तिनके का सहारा लेकर अपनी डूबती नैय्या पार लगाने का असफल प्रयास कर रहे हैं। मनमोहन सिंह ने कहा कि, वह मोदी द्वारा फैलाये जा रहे झूठ, भ्रामक प्रचार और अफवाह को सिरे से खारिज करते हैं। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि, पीएम के बयान को हम पूरी तरह खारिज करते हैं। पीएम के बयान पर हमें दुख और गुस्सा हुआ है। मणिशंकर के यहां किसी से गुजरात चुनाव पर बात नहीं हुई है। चुनावों में अपनी हार की आशंका से पीएम मोदी बौखला गए हैं। मनमोहन ने आगे कहा, पीएम मोदी ने एक खतरनाक परंपरा की शुरुआत की है। कांग्रेस को राष्ट्रवाद पर किसी के ज्ञान की ज़रूरत नहीं है। (वैसे राष्ट्रवाद या देशभक्ति के बारे में भाजपा या कांग्रेस या किसी राजनीतिक दल को ज्ञान की ज़रूरत वाकई नहीं है, क्योंकि सभी ने इन लफ्जों की व्याख्याओं के साथ जमकर दुष्कर्म किया हुआ है)

वैसे समर्थकों तथा विरोधियों की बात और है, किंतु पाकिस्तान के अधिकारियों तथा विपक्षी पार्टियों के नेताओं की मुलाकातें, ये चीज़ औपचारिकता का इतिहास है यह सर्वविदित है। ऐसी चीजें हमेशा होती रही हैं। पाकिस्तान के अलावा दूसरे राष्ट्रों के अधिकारियों के साथ विपक्षों की बैठकें हमेशा होती रही हैं। लेकिन बैठक में कथित अपील या कथित विवादास्पद बातें तथा सुपारी वाले बयान से पीएम मोदी ने गुजरात चुनाव प्रचार को नयी और विवादास्पद दिशा दे दी थी। मोदी तथा गुजरात सरकार को विकास पर सवाल पूछने पर आमादा कांग्रेस को मजबूरन सवाल-जवाब छोड़कर जवाब देने में बिजी हो जाना पड़ा!

तर्क, तथ्य, इतिहास वगैरह को छोड़ दे तो मोदी सफलतापूर्वक अकेले दम पर कांग्रेस को उसी रास्ते ले जाने में सफल हुए थे, जहां वे ले जाना चाहते थे। दूसरे अन्य नजरिये से यह कितना सही था या कितना गलत वो बात फिलहाल छोड़ देते हैं। क्योंकि हम यहां एक दूसरे नजरिये से प्रचार के दौर को देख रहे हैं। लिहाजा सही या गलत वाले मुद्दे को अपने तरीके से टटोल लीजिएगा।

पूर्व पीएम ने साफगोई से बैठक को स्वीकार किया, किंतु मोदी के दावों को सिरे से खारिज कर दिया। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि, वह मणिशंकर अय्यर के आवास पर आयोजित रात्रिभोज में शामिल हुए थे। इस दौरान पाकिस्तान के राजनयिक के साथ गुजरात विधानसभा चुनाव आदि पर कोई भी चर्चा नहीं हुई थी। मनमोहन सिंह ने कहा कि, इस चर्चा में गुजरात विधानसभा का ज़िक्र नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि, राजनयिक की यह शिष्टाचार मुलाकात थी और इस बैठक में भारत-पाकिस्तान संबंध पर चर्चा हुई। इसमें कुछ पत्रकार, राजनयिक, नौकरशाह, सैन्य अधिकारी मौजूद थे और पूर्व प्रधानमंत्री ने उनकी सूची भी सौंपी।

जैसे पहले लिखा वैसे औपचारिक मुलाकात को तत्कालीन पीएम मोदी ने चुनावी प्रचार में गरमागरम मुद्दा बनाकर पेश ज़रूर कर दिया था। इस प्रवृत्ति को अपने तरीके से टटोल लीजिएगा यह पहले ही लिख दिया है। पीएम मोदी के गरमागरम दावे पर जवाब देते हुए पूर्व पीएम ने कहा कि, इस बैठक को लेकर किसी पर भी राष्ट्रद्रोह का आरोप लगाना सरासर झूठ और अधर्म का कार्य होगा। प्रधानमंत्री से उम्मीद है कि वह अपने पद की गरिमा का ख्याल रखते हुए परिपक्वता दिखाएंगे।

वैसे परिपक्वता वाली मनमोहन सिंह की बात मजाकिया बयान ज्यादा लगा। क्योंकि मणिशंकर ने जो परिपक्वता दिखाई थी उसके बाद ही हाथ में आया मौका थामकर मोदीजी ने भी अपनी परिपक्वता दिखाई थी। अब दोनों तरफ से इतनी ज्यादा परिपक्वता दिखाई गई कि गुजरात का आम तो वैसे भी पक चुका था!!!

इसके बाद मनमोहनजी लहजे में थोड़े और सख्त होते दिखाई दिए और उन्होंने कहा, प्रधानमंत्री मोदी पद की मर्यादा का ध्यान रखते हुए अपने इस तरह के दुर्व्यवहार पूर्ण आचरण के लिए राष्ट्र से सार्वजनिक रूप से माफी मांगेंगे। वह झूठ का सहारा लेने, अफवाह फैलाने के आचरण से बचेंगे। उन्होंने कठोर शब्दों में कहा कि, उन्हें और उनकी पार्टी कांग्रेस को अपनी राष्ट्रभक्ति को लेकर एक प्रधानमंत्री से कोई प्रमाण पत्र नहीं चाहिए, जिनका आतंकवाद, उग्रवाद से लड़ने का रवैया ही ढुलमुल रहा हो।

आमतौर पर आरोप-प्रत्यारोप से बचते दिखाई देनेवाले मनमोहन इस दफा उग्र हो गए और उन्होंने भी उसी राजनीति का कुर्ता धारण कर पीएम मोदी के हालिया विवादास्पद कदमों को याद कर लिया। सिंह ने कहा कि, वह मोदी को उनकी लाहौर यात्रा की याद दिलाना चाहते हैं। मोदी ने यह यात्रा मेहमान के तौर पर उधमपुर और गुरुदासपुर में आतंकी हमला होने के बाद की थी। क्या वह (मोदी) देश को बताएंगे कि उन्होंने पठानकोट एयरफोर्स स्टेशन जैसे सामरिक स्थल पर आतंकी हमले के बाद ऐसी संवेदनशील जगह पर पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई को क्यों आमंत्रित किया था?”

इस बीच यह नोट करना ज़रूरी है कि हालिया इतिहास में यह पहली घटना होगी जब किसी राज्य के विधानसभा चुनाव प्रचार में मूल मुद्दों को छोड़कर तत्कालीन पीएम ने औपचारिकता या शिष्टाचार वाले विषय को गरमागरम मुद्दा बनाकर पेश कर दिया हो। इतना ही नहीं, तत्कालीन पीएम पूर्व पीएम पर आरोप लगाते दिखाई दिए, जबकि बदले में पूर्व पीएम ने तत्कालीन पीएम को भी भला-बुरा सुना दिया।

क्या मंजर था! तत्कालीन प्रधानमंत्री तथा पूर्व प्रधानमंत्री एकदूसरे पर जमकर फायरिंग किये जा रहे थे। कई तथाकथित बुद्धिजीवी लेखकों ने लिखा था कि पीएम मोदी को सवाल पूछने का हक़ था कि आखिरकार उस मिटींग में कांग्रेस ने क्या चर्चा की थी। वाकई सच है। लेकिन सवाल पूछने का हक़ और सनसनी फैलाने के प्रयास, दोनों में अंतर ज़रूर था यह बुद्धिजीवियों के पल्ले भी पड़ा होगा।

वैसे मणिशंकर अय्यर का नीच बयान वाकई बहुत हल्के दरज्जे का बयान था इसमें कोई शक नहीं। कइयों को याद नहीं होगा, किंतु नवम्बर 2015 में मणिशंकर अय्यर ने कहा था कि भारत-पाकिस्तान के बीच बातचीत में मोदीजी को हटा देना चाहिए। इतना ही नहीं, अय्यर ने ये बयान पाकिस्तानी टेलीविजन को दिए साक्षात्कार मेंं दिया था। वैसे कांग्रेसी नेता को भारतीय चैनल नहीं मिले कि वे पाकिस्तानी चैनल के सामने चले गए यह सवाल जायज बनता था। उन्हें (भाजपा) को हटाइए और हमें (कांग्रेस) ले आइए वाला मणिशंकर का वो पुराना बयान शायद कांग्रेसियों को ज्ञात होगा। इन शोर्ट... पाकिस्तानी पत्रकारों के सामने अय्यर जैसे कांग्रेसी नेता हदें पार कर चुके थे। ऐसे में उनके घर हुई मुलाकात पर पीएम मोदी सवाल उठाते वो जायज भी था। पूर्व पीएम मनमोहन सिंह की पीड़ा या दर्द उस समय भी छलकना चाहिए था, जो कि नहीं छलका था!!!

किंतु ये भी उतना ही गजब था कि देश का पूर्व प्रधानमंत्री वर्तमान प्रधानमंत्री पर झूठ, फरेब, दुष्प्रचार और अफवाह फैलाने का आरोप लगा रहा था। इससे पहले ये भी शायद हालिया इतिहास में पहली बार हुआ था जब वर्तमान प्रधानमंत्री ने पूर्व प्रधानमंत्री पर शिष्टाचार में आयोजित रात्रिभोज को लेकर इस तरह का हल्कापन दिखाया हो। इस बारे में विदेश मंत्रालय के अधिकारी कुछ भी नहीं कह रहे थे, जबकि मीडिया रिपोर्ट के सहारे दावा शुरू हुआ और दावा चुनाव खत्म होते ही हवा भी हो गया!!! पूरे प्रकरण में विपक्ष की ओर से कोई कानूनी या संवैधानिक अपराध नहीं दिखाई दे रहा था, लेकिन भाजपा या कांग्रेस या मंत्रालय के अधिकारी, कोई रिकॉर्ड के तौर पर सामने नहीं आना चाहता था।

पीएम ने मीडिया रिपोर्ट के सहारे भाषण करके दावा कर दिया था। अब अगर ये दावा सच था तो फिर नैतिक रूप से गलत होगा, कानूनन नहीं। वर्ना भारत की जिम्मेदार सरकार होने के नाते सत्तादल सख्त कदम उठाने को बाध्य था। और अगर ये दावा झूठ था, तो फिर कांग्रेस इतने बड़े गंभीर इल्ज़ाम के बाद इतना ज्यादा चुप क्यों रही थी यह भी सवाल था। क्योंकि दावे को इन्होंने झुठलाया ज़रूर, किंतु अगर ये चीज़ कानूनन व संवैधानिक अपराध था, तो फिर किसी ने एक दूसरे के खिलाफ कोई सख्त कार्रवाई करने के संकेत भी नहीं दिए। हां, राज्यसभा में पीएम मोदी से माफ़ी की मांग करके सभा को स्थगित ज़रूर करवाया।

गजब था कि भारत में चुनावों के दौरान अब राजनीतिक दल कुछ भी बोले जा रहे थे। मंजर तो यह था कि आधे के लिए वो सच था और आधे के लिए झूठ। लेकिन वो सच कितना सच था या कितना झूठ, इसके जवाब किसी को नहीं चाहिए थे!!!

मजेदार यह था कि चुनाव गुजरात का था, किंतु बातें पाकिस्तान, अफगानिस्तान, चीन और जापान की हो रही थी!!! एक बात धड़ल्ले से लिखने में कोई संकोच नहीं कि भले ही मोदी का जादू वगैरह मीडियाई लफ्ज़ जोरों पर हो, लेकिन अब किसी चुनावी प्रचार में पीएम मोदी का भाषण लिखने को कहा जाए तो वो बड़ा सरल सा काम होगा। भाषण के आधे हिस्से में विपक्ष को गालियां लिख दो, कुछ हिस्से में भारत माता और राष्ट्रवाद का डोज डाल दो और थोड़े-बहुत हिस्से में सपनों का सौदागर फिल्मों के डायलॉग लिख दो... पीएम का भाषण तैयार हो गया! पीएम कहते हैं कि कांग्रेस का कोई अस्तित्व ही नहीं रहा है इस देश में, लेकिन फिर भी पीएम को अपने भाषण के ज्यादातर हिस्से में आप कांग्रेस को गालियां देते हुए ज़रूर देखेंगे!!! अब कुछ भाजपाई और भाजपाई संलग्न संगठनों के मित्र खफा होंगे, लेकिन जो है वो है, इसमें संबित पात्रा या दिग्विजय सिंह टाइप हवा-हवाई बातें करने का कोई मतलब नहीं है। अब जहां कांग्रेस का कोई नेता भविष्य में पीएम बनेगा तो उनकी भी बुराई कर लेंगे, मुझे इसमें कभी कोई परहेज नहीं रहा है।

गुजरात के लोगों के नसीब बहुत अच्छे थे कि चीन, जापान, पाकिस्तान, सुपारी, सौदा, समझौता जैसे बहुमूल्य मुद्दों के अलावा सी प्लेन के दर्शन भी हो गए! जो चीज़ आउट डेटेड थी, वो नये पैक में बाज़ार में दोबारा दिखी। आचार संहिता का तो क्या है, राहुल हो या मोदी हो, दोनों ने शायद एक साथ बंद कमरे में तीन घंटे तो नहीं, किंतु तीन मिनटों तक बैठक करके तय कर लिया होगा कि आचार संहिता की तो ऐसी की तैसी कर देंगे!!! ये मेरा अपना दावा है और इसका कोई वीडियो मेरे पास नहीं है ये नोट कर ले।

सी प्लेन भले आउट डेटेड चीज़ थी, लेकिन जहां लोगों ने मैट्रो ट्रेन के दर्शन ना किये हो वहां सी प्लेन सुर्खियां बटोरने वाला ही था। रोड शो की इजाज़त नहीं मिली तो नये नये प्रयोगों के ज्ञाता नरेन्द्र मोदी सी प्लेन वाला शो कर गए। शायद पहली दफा भारत के चुनावों में सी प्लेन का इस्तेमाल हुआ था यह बात नोटेबल ज़रूर थी। चुनाव में इस्तेमाल लिखा है, देश में नहीं ये बात ज़रुर नोट करें।

दूसरे चरण के वोटिंग का प्रचार आखिरकार खत्म हो गया। लगा कि अब छींटाकशियों से निजाज मिलेगी, लेकिन ईवीएम के बजाय नेताओं द्वारा आचार संहिता के साथ छेड़छाड़ वाला मंजर अभी बाकी था। ईवीएम से छेड़छाड़ की जाती है या नहीं की जाती वो तो पता नहीं, किंतु आचार संहिता के साथ तो छेड़छाड़ के बजाय उससे भी कुछ अधिक किया जाता है ये बात निश्चित है!!!

दूसरे चरण के वोटिंग से पहले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा एक टीवी को इंटरव्यू देने का मामला विवादों में आ गया। बीजेपी ने चुनाव प्रचार समाप्त होने के बाद इंटरव्यू देने पर सवाल उठाए। पार्टी ने इस मामले को लेकर चुनाव आयोग से शिकायत की। रेल मंत्री और बीजेपी के वरिष्ठ नेता पीयूष गोयल ने कहा कि वोटिंग से 48 घंटे पहले इंटरव्यू देने की किसी को अनुमति नहीं है। ऐसे में राहुल गांधी ने क्यों एक गुजराती चैनल को इंटरव्यू दिया। उन्होंने कहा कि मुझे भरोसा है कि चुनाव आयोग इस पर संज्ञान लेगा और कार्रवाई करेगा। गुजरात के मुख्य निर्वाचन अधिकारी बीबी स्वेन ने कहा कि हमें एक इंटरव्यू के प्रसारण के बारे में शिकायत मिली है। हमने डीवीडी एकत्र किया है और उसकी जांच कर रहे हैं। जांच के बाद ही पता चलेगा कि क्या उन्होंने नियम 126 आरपी अधिनियम का उल्लंघन किया है या नहीं।

उधर गुजरात विधानसभा चुनाव के पहले चरण का चुनाव प्रचार थमने के बाद पीएम मोदी ने भी जनता से 9 दिसंबर को बीजेपी के पक्ष में वोटिंग करने की अपील की थी। एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था कि 9 और 14 दिसंबर को बीजेपी के पक्ष में मतदान करें। दरअसल, गुजरात विधानसभा चुनाव के पहले चरण के लिए प्रचार खत्म हो चुका था। उस दौरान पीएम की इस अपील पर विवाद बढ़ गया था। इतना ही नहीं, दूसरे चरण का प्रचार खत्म होने के बाद राहुल गांधी के साक्षात्कार पर जहां बवाल हुआ, वहीं दूसरे दिन स्थानिक अखबारों में नरेन्द्र मोदी की बड़ी तस्वीरों के साथ बीजेपी को वोटिंग करने के इश्तेहार छपे थे! संदेश अखबार में पहले और आखिरी पन्ने पर यह इश्तेहार देखे गए। पता नहीं, इंटरव्यू या इश्तेहार में फर्क होता होगा या आरपी अधिनियम वगैरह पेचीदा होगा। जो तय करना है खुद ही कर लीजिएगा।

उधर चुनाव आयोग ने राहुल गांधी के इंटरव्यू पर कड़ी आपत्ति जताई। आयोग ने प्रदेश के मुख्य निर्वाचन अधिकारी को उन मीडिया चैनलों के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिया जिन्होंने चुनाव वाले जिलों में यह इंटरव्यू प्रसारित किया था। आयोग ने ऐसे मीडिया चैनलों के खिलाफ जनप्रतिनिधि अधिनियम 1951 के उल्लंघन के तहत एफआईआर दर्ज कराने का निर्देश दिया। चुनाव आयोग ने राहुल गांधी पर आचार संहिता का उल्लंघन करने का आरोप लगाते हुए नोटिस जारी किया। आयोग ने राहुल के इंटरव्यू के प्रसारण को दूसरे चरण के मतदान से 48 घंटे पहले तक लगी पाबंदी का उल्लंघन करार दिया। मतदान वाले जिलों में राहुल के इंटरव्यू के प्रसारण की खबरें और इसके खिलाफ मिली शिकायतों पर कार्रवाई करते हुए आयोग ने कहा कि इस तरह का प्रसारण जनप्रतिनिधि कानून की धारा 126(3) के तहत चुनाव मामले की व्याख्या में आता है और मतदान वाले क्षेत्रों में 48 घंटे पहले तक इनका प्रसारण इस कानून का उल्लंघन माना जाता है।

और ये सारी कार्रवाई इंटरव्यू प्रसारित करने के बाद कुछ ही घंटों में की गई। आयोग की इस तत्परता को एक दफा सलाम ज़रूर कीजिएगा। हां, पहले चरण के पश्चात पीएम मोदी का बीजेपी को वोटिंग करने की अपील करता भाषण या दूसरे चरण में प्रचार थमने के बाद दूसरे दिन अखबारों में बीजेपी के पक्ष में वोटिंग करने के इश्तेहार, ये चीजें मत देखिएगा। वर्ना खामखा नियम-अधिनियम के अधिक लफड़ों में घूमने जाना पड़ेगा।

उधर पीएम मोदी ने दूसरे दिन फिक्की समारोह में भाषण दिया। उन्होंने फिक्की के मंच से कांग्रेस पर आरोप लगाए। इसे लेकर भी कांग्रेस ने आपत्ति जताई। क्योंकि फिक्की समारोह में कांग्रेस के खिलाफ भाषण के फूटेज गुजरात में खूब चले थे। उधर राहुल गांधी को नोटिस मिलने के बाद कांग्रेस ने आपत्ति जताई। देर रात कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता चुनाव आयोग के दफ्तर पहुंचे और बीजेपी पर आचार संहिता उल्लंघन का आरोप लगाया। कांग्रेस प्रतिनिधिमंडल ने पीएम नरेंद्र मोदी, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह, वित्त मंत्री अरुण जेटली और रेल मंत्री पीयूष गोयल पर आचार संहिता के उल्लंघन का आरोप लगाया।

पार्टी नेताओं ने कहा कि फिक्की के मंच पर पीएम ने कांग्रेस पर जो आरोप लगाए हैं, वो आचार संहिता का उल्लंघन है। कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि 2014 के चुनावों में मोदीजी ने भी मतदान के दिन बीजेपी का चुनाव चिन्ह दिखाया था लेकिन चुनाव आयोग ने उन पर एक्शन नहीं लिया। उन्होंने आरोप लगाया कि गुजरात चुनाव के पहले चरण से पहले बीजेपी ने एक प्रेस वार्ता आयोजित किया। सुरजेवाला ने कहा कि चुनाव आयोग का दोहरा रवैया सही नहीं है। इसलिए पीएम नरेंद्र मोदी और बीजेपी के अन्य नेताओं पर तुरंत प्राथमिकी दर्ज की जानी चाहिए।

अब जहां, आचार संहिता पर विवाद की बात चल रही थी, मतदान के दिन पीएम मोदी ने तो बाकायदा रोड शो करके आचार संहिता की ऐसी-तैसी करने का आखिरी काम कर दिया। शायद मोदीजी ने सोचा होगा कि साक्षात्कार के बजाय शो करना आचार संहिता नाम की संहिता का संरक्षण है!!! मोदीजी ने ना सोचा हो तो पता नहीं, समर्थकों ने तो यही सोचा! अंतिम चरण में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा साबरमती में वोट डालने के बाद पीएम मोदी ने बाकायदा रोड शो ही निकाल दिया! इजाज़त की क्या ज़रूरत थी, है न! चुनाव के अंतिम चरण में प्रधानंमत्री मोदी ने साबरमती पहुंचकर रणिप क्षेत्र में पोलिंग बूथ नंबर 115 पर वोट डाला। इसके बाद वह बाहर निकले तो सड़कों पर लोगों का हुजूम जमा था, जिसे देख प्रधानमंत्री ने गाड़ी में सवार होकर उनका अभिवादन शुरू कर दिया, जिससे पूरी तरह रोड शो जैसा नजारा बन गया। इस दौरान भारी संख्या में मौजूद लोगों ने मोदी-मोदी के नारे भी लगाए। मीडिया में इस रोड शो की तस्वीरें आने के बाद हंगामा खड़ा हो गया। कांग्रेस ने तुरंत इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया देते हुए प्रेस कॉन्फ्रेंस कर भाजपा और चुनाव आयोग पर निशाना साधा।

कांग्रेस ने इसे चुनावी आचार संहिता का खुला उल्लंघन बताते हुए आरोप लगाया कि चुनाव आयोग पीएमओ के दबाव में काम कर रहा है। गुजरात कांग्रेस के प्रभारी अशोक गहलोत ने आरोप लगाया कि भाजपा और उसके नेताओं द्वारा चुनावी आचार संहिता उल्लंघन के मामलों की लगातार शिकायत के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है, जबकि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने एक इंटरव्यू देकर अपनी अभिव्यक्ति जाहिर की तो उनके और चैनल के खिलाफ मुकदमा कर दिया गया। कांग्रेस की प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद पार्टी कार्यकर्ताओं ने भी चुनाव आयोग के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। काफी संख्या में कार्यकर्ता नारेबाजी करते हुए चुनाव आयोग के दफ्तर पहुंचे और हंगामा शुरू कर दिया। गहलोत ने सनसनीखेज आरोप जड़ते हुए कहा कि जो रिश्ता मुख्य चुनाव आयुक्त और प्रधानमंत्री के बीच गुजरात में बना था वो आज भी कायम है। कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता ने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री मोदी जिस तरह चुनाव आयोग और प्रशासन के साथ मिलकर रोड शो कर रहे हैं वह सीधे सीधे संविधान की धज्जियां उड़ाने जैसा है।

अब किसने कितना लिहाज किया वो भी दूर की कौड़ी है, क्योंकि अतिशीघ्र कार्रवाई करनेवाले चुनाव आयोग ने चुनावी परिणाम घोषित हो उससे पहले राहुल गांधी को दिया गया नोटिस वापस भी ले लिया!!! आयोग ने 17 दिसंबर की देर शाम कहा कि कांग्रेस ने अपना पक्ष पेश कर दिया है और राहुल गांधी के खिलाफ नोटिस वापस लिया जा रहा है। खैर, किंतु कुल मिलाकर, चुनावी प्रचार हो या वोटिंग के महज कुछ घंटों पहले तथा वोटिंग के बाद आचार संहिता के विवाद हो, भाजपा हो या कांग्रेस हो, किसी ने लिहाज करना ज़रूरी नहीं समझा। दोनों ने भाषा, लोगों के लिए ज़रूरी मुद्दों और आचार संहिता, इन तीनों को जमीं के दस गज नीचे गाड़ दिया था।

घोषणापत्र नामका बहुमूल्य दस्तावेज तो इस चुनाव में मुद्दा या चर्चा का विषय ही नहीं रहा!!! एक दफा तो यही लगा कि दोनों पार्टियां मेनिफेस्टो को शायद भूल गई है। प्रचार जमकर होता रहा, दावे, व्यक्तिगत छींटाकशियां, आरोप-प्रत्यारोप जमकर चला, लेकिन मेनिफेस्टो था कि अवतरित होने का नाम ही नहीं ले रहा था! लगा कि यह चुनाव बिना मेनिफेस्टो के लड़ा जाएगा! पहले चरण के मतदान हुए 9 दिसंबर को और उसके महज एक दिन पहले, 8 दिसंबर को बीजेपी ने अपना मेनिफेस्टो घोषित किया। जबकि कांग्रेस ने 8 दिसंबर से कुछ दिन पहले ही मेनिफेस्टो को लोगों के सामने रखा। यानी कि मतदान का वक्त आ चुका था, लेकिन तब तक मेनिफेस्टो की कोई बात ही नहीं कर रहा था! दोनों ने महज कुछ घंटों पहले मेनिफेस्टो को रखा, किंतु लगा कि यह भी औपचारिकता भर ही है। ना ही मीडिया में, ना ही नेताओं में और ना ही कार्यकर्ताओं में मेनिफेस्टो को ज्यादा तवज्जो मिल पाई। घोषणापत्र नामका महत्वपूर्ण दस्तावेज बेचारा तन्हा-तन्हा होकर चुनावी गलियों से गुजर गया!!!

14 दिसंबर की शाम मतदान का दौर खत्म हुआ और एग्जिट पोल आना शुरू हुए। लगभग तमाम एग्जिट पोल में कांग्रेस गुजरात और हिमाचल दोनों जगहों पर हारती दिखाई दी। आनन-फानन में 15 दिसंबर के दिन गुजरात चुनाव में 25 फीसदी वीवीपैट पर्चियों के सत्यापन की मांग के साथ कांग्रेस सुप्रीम कोर्ट पहुंची। हालांकि कांग्रेस को यहां भी झटका लगा। कांग्रेस की इस मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने दखल देने से इनकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, कांग्रेस की इस याचिका में कोई मेरिट नहीं मिल पाई है। शीर्ष न्यायालय ने कहा कि, चुनाव सुधारों के लिए कांग्रेस अलग से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर सकती है।कांग्रेस ने मांग की थी कि ईवीएम में पड़े वोटों से वीवीपैट पर्चियों का मिलान किया जाए। कांग्रेस ने अपने सर्वे में 110 सीटें मिलने की बात कही थी। कांग्रेस का आरोप यह था कि गुजरात चुनाव में ईवीएम और वीवीपैट में गड़बड़ी की गई है। कांग्रेस की तरफ से कपिल सिब्बल और अभिषेक सिंघवी दलील देने पहुंचे थे, लेकिन शीर्ष न्यायालय ने कांग्रेस की मांग को खारिज कर दिया।

शीर्ष न्यायालय ने यह भी कहा कि, ये हमारा कार्यक्षेत्र नहीं है, आप चुनाव आयोग के पास जाइए। अदालत ने कहा, हम चुनाव आयोग के अधिकारों में दखल नहीं दे सकते। चुनावी प्रक्रिया लोकशाही में ज्यादा महत्वपूर्ण मसला है। इस प्रक्रिया में किसी राजनीतिक दल के शक के आधार पर हम दखल नहीं दे सकते। आप चुनाव आयोग के पास जा सकते हैं।

उधर 15 दिसंबर 2017 के दिन राज्यसभा में कांग्रेस ने पीएम मोदी के विवादास्पद दावे तथा उनके द्वारा पूर्व पीएम मनमोहन पर लगाए गए आरोपों को लेकर जमकर हंगामा किया। कांग्रेस ने मांग की कि पीएम मोदी मनमोहन सिंह के खिलाफ बोले गए लफ्जों के लिए माफ़ी मांगे। कांग्रेस की ओर से गुलाम नबी आजाद ने इस मुद्दे को लेकर पीएम मोदी से सबूतों की पेशकश अन्यथा माफ़ी की मांग की। इसके अलावा दूसरे कुछेक मुद्दों को लेकर जमकर हंगामा हुआ और आम जनता के पैसों से चल रही राज्यसभा को 18 दिसंबर तक स्थगित कर दिया गया।

19 दिसंबर 2017 के दिन इसी मुद्दे को लेकर कांग्रेस ने फिर एक बार सख्त नाराजगी जताई और पीएम मोदी से माफ़ी मांगने की मांग की। इस मुद्दे को लेकर सरकार की ओर से वित्त मंत्री अरुण जेटली ने पक्ष रखा। उन्होंने कहा कि, वे एक बैठक करेंगे, जिसमें विपक्ष के नेता भी शामिल होंगे और इस मुद्दे के समाधान पर बातचीत करेंगे। अब इस बयान को आप जैसे लेना है ले सकते हैं, दिख तो यही रहा था कि चुनावों में कुछ भी बोलेंगे और फिर एकाध-दो दिन तक लोकशाही के मंदिर में बवाल करेंगे, फिर क्या, फिर मिल-बैठ कर समाधान कर लेंगे!!! लेकिन अगले दिन देश के उपराष्ट्रपति वैंकेया नायडू ने तो समाधान का रास्ता छोड़कर कांग्रेस के विरोध के बीच एलान ही कर दिया कि, सदन में कुछ नहीं हुआ था इसलिए माफी की कोई ज़रूरत नहीं है। ये 20 दिसंबर 2017 का दिन था, जब कांग्रेस पीएम की माफ़ी की मांग को लेकर राज्यसभा के भीतर शोरगुल मचा रही थी। इस बीच दोनों पक्षों ने मिलकर एक समिति बनाने का फैसला भी ले लिया था! खैर, इस मुद्दे को यही छोड़ देते हैं। खास करके तब कि जब राष्ट्रपति स्वयं ही घोषणा करते हो।

वैसे लाजमी था कि पीएम मोदी ने चुनावी प्रचार के दौरान जो विवादास्पद भाषण दिया था, कांग्रेस के साफ माने जा रहे चेहरे पर तथा समूची कांग्रेस पर जिस तरह से गजब का दावा कर दिया था, कांग्रेस जैसी बड़ी पार्टी उसे आसानी से जाने भी नहीं देती। लेकिन माफी वाले मसले को लेकर एक बात तो साफ थी। पीएम मोदी का चुनावी प्रचार के दौरान दिया गया बयान भले ही अप्रत्याशित या विवादास्पद तथा गलत परंपरा के करीब हो, लेकिन कांग्रेस द्वारा सदन के भीतर माफ़ी की मांग करना भी शायद गलत परंपरा के करीब था। पीएम मोदी ने गलत तरीके से भाषणबाजी की थी यह स्वीकार है, किंतु वो भाषणबाजी सदन के बाहर हुई थी, लिहाजा कांग्रेस को भी अपनी लड़ाई सड़कों पर लड़नी चाहिए थी, ना कि सदन के भीतर। साफ था कि कांग्रेस का ये रवैया पीएम मोदी की माफ़ी की मांग के बजाय दूसरे राजनीतिक फायदों का प्रयास था। क्योंकि अभी अगले साल 8 जगह चुनाव भी होने वाले थे।

27 दिसंबर 2017 के दिन इसी मुद्दे पर दोनों पार्टियों के बीच गतिरोध खत्म हो गया, जब वित्तमंत्री अरुण जेटली ने कहा कि पीएम मोदी ने मनमोहन पर सवाल नहीं उठाए थे, हमें उनकी देशभक्ति पर संदेह नहीं है। बताइए, दोनों दलों के समर्थकों ने फेफड़े फाड़े और अंत में एक हल्के-फुल्के बयान ने सारा कीचड़ साफ कर दिया!!! मनमोहन पर सवाल उठाने के बाद राज्यसभा से कहना कि उन पर सवाल नहीं उठाए थे, पाकिस्तान वाला पैंतरा आजमाकर आखिरकार कह देना कि हमें उनकी देशभक्ति पर संदेह नहीं है... कोई शक नहीं कि गजब की राजनीति का स्तर था यह।

इस बीच नतीजे घोषित हुए, लेकिन नतीजों का दिन भी एग्जिट पोल से लेकर शेयर बाज़ार के लिए उतना ही नाट्यात्मक रहा। कभी एग्जिट पोल वालों को लगा कि उनकी ऑपरेशन टेबल पर ही मोत हो जाएगी, तो कभी एग्जिट पोल गलत हो जाने की आशंका से शेयर बाज़ार ओंधे मुंह गिर गया। कभी भाजपा आगे, कभी कांग्रेस आगे, कभी दोनों फिफ्टी-फिफ्टी! घंटे भर के इस सांसें थमा देने वाले पल के बाद आखिरकार ऑपरेशन टेबल पर लैटा मरीज़ थोड़ा खुश होने लगा और बाज़ार खुद को संभालने में लग गया।

18 दिसंबर को चुनावी परिणाम घोषित हुए, जहां गुजरात की सत्ता भाजपा ने लगातार छठी बार हासिल कर ली। आजाद हिंदुस्तान के इतिहास में शायद ये दूसरा मौका था जब किसी राजनीतिक दल को लगातार इतनी दफा किसी राज्य की जनता ने चुना हो। लेकिन यह परिणाम भी बड़े सुलझे हुए रहे। गुजरात की जनता ने एक ऐसा फैसला दिया, जैसे कि उसने खयाल रखा हो कि किसी भी दल को बूरा ना लग जाए! खैर, ये मजाकिया लहजा है, किंतु वाकई गुजरात की जनता का ये फैसला बड़ा परिपक्व सा था या फिर नहीं था। उसने भाजपा को हटाया नहीं, किंतु उसके रथ को रोक कर कहा कि अगली दफा ध्यान रखिएगा। वहीं उसने कांग्रेस को स्वीकार नहीं किया, किंतु उसके रथ को धक्का मारकर कहा कि थोड़ी मेहनत ज्यादा कर लीजिए। वैसे एक तरीके से देखा जाए तो गुजरात की जनता ने दोनों दलों को संदेश दे दिया कि मेहनत ज्यादा करिएगा।

वैसे जीत के बाद पीएम मोदी ने कहा था कि यह विकास की जीत है, जबकि कांग्रेस ने अपने अच्छे प्रदर्शन को विकास की इच्छा जताया था। दोनों से सीधे मुंह पूछ लेना चाहिए था कि प्रचार में न विकास की बात हो रही थी, ना विकास संबंधित लेखा-जोखा तोला जा रहा था, फिर यह जीत विकास की जीत या विकास की इच्छा कैसे हो गई???!!!

रही चुनावी प्रचार के दौरान राजनीतिक स्तर की बात, ये कितना जायज या नाजायज है उसकी चर्चा प्रचार के दौरान ही होती है, उसके बाद नहीं! और यही चीज़ नागरिकी स्तर को भी तय कर जाती है। एक दौर था जब रिश्वत को पाप या बड़े गंभीर अपराध सरीखी चीज़ माना जाता था, आज उसकी इतनी आदत इस समाज में हो चुकी है कि लोग कहते हैं कि यार, पैसे दिये बगैर काम थोड़ी न होता है! जैसे कि रिश्वत देना एक संवैधानिक फर्ज सरीखा मान लिया गया है!!! प्रचार का भी कुछ कुछ ऐसा ही है। लोग कहते हैं कि प्रचार ऐसा ही होता है, वहां एकदूसरे की पूजा थोड़ी न की जाती है। लोकशाही है, लोगों को पूरा अधिकार है कि वे दकियानूसी आदतें धारण करे या ना करे! 
 
लेकिन पूरी फिल्म देखकर यह ज़रूर कहा गया कि विकास के बदले प्रचार ही पागल हो गया था। ये बात और है कि चुनाव खत्म होने के बाद तथा नतीजे घोषित होने के बाद प्रचार को ना ही जीतने वाले याद रखते हैं और ना ही हारने वाले! यह स्वाभाविक है, किंतु साथ ही जनता भी इसे याद नहीं रखती। गालियां, आरोप-प्रत्यारोप, हल्की भाषा, निचला स्तर, सब कुछ जैसे कि जनता भूल जाती है और अप्रत्यक्ष इजाज़त देती है कि अगले चुनावों में भी इसी तरह मनोरंजन करते रहिएगा!!!

(इंडिया इनसाइड, एम वाला, मूल लेखन 12 दिसंबर 2017)