कई सारी घटनाओं को देखकर लगता है... सच ही कहा जाता है कि किसानों और गरीबों के
लिए इस देश में कुछ है तो वो केवल कानून, नियम और संविधान है। या फिर उनके लिए सहानुभूति या आश्वासन है... या फिर आये दिन होती चर्चा है। शायद ही इसके अलावा और
कुछ इन्हें मिल पाया हो। वहीं दूसरी तरफ, उद्योगपतियों और बड़े बड़े नामों के प्रति
नियमों की मेहरबानी का एक लंबा इतिहास है। तभी तो आपने जंतर-मंतर पर अर्घनग्न
किसानों को भूखे विलपते देखा होगा, लेकिन किसी उद्योगपति को इस हालत में कभी नहीं पाएंगे। हम देखते हैं 2017 के ऐसे काले, नीले या फिर पीले इतिहास को।
सर्विस चार्ज, सर्विस टैक्स, रेस्तरां और सरकार का
नोटिफिकेशन
सर्विस टैक्स और सर्विस चार्ज का यह नियम वैसे तो पुराना ही था। पहले से ही
नियम था कि रेस्तरां अपने ग्राहकों से सर्विस टैक्स वसूल नहीं कर सकते। लेकिन कई
रेस्तरां ग्राहकों से सर्विस चार्ज ज़रूर वसूल किया करते थे। बाकायदा बिल में सर्विस
चार्ज लगाया जाता था। इस मामले में 3 जनवरी 2017 के दिन केंद्र सरकार ने रेस्तरां या
होटल को लेकर एक नोटिफिकेशन जारी किया। केंद्र ने नियम याद दिलाते हुए कहा कि
रेस्तरां अपने ग्राहकों से सर्विस टैक्स वसूल नहीं कर सकते। सर्विस चार्ज के मामले में
केंद्र ने कहा कि, “ग्राहकों से रेस्तरां सर्विस चार्ज जबरन वसूल नहीं कर सकते। अगर ग्राहक सर्विस से
खुश है तो वो अपनी मर्जी के हिसाब से टिप समझ कर दे सकता है। लेकिन रेस्तरां इसे
जबरन ले नहीं सकते।”
पहली नजर में यह नोटिफिकेशन लुभावना सा लगता था। लेकिन केंद्र ने नोटिफिकेशन के
जरिये सर्विस चार्ज वाले मामले को ग्राहक व रेस्तरां के ऊपर छोड़ दिया। मानो कह रहे
हो कि तुम दोनों डिसाइड कर लेना। वैसे केंद्र ने यह ज़रूर कहा कि ग्राहक व रेस्तरां के बीच कोई विवाद होता है तो ग्राहक फलांना फलांना जगह पर शिकायत दर्ज करवा सकता है।
लेकिन नोटिफिकेशन को आधा-अधूरा रख कर केंद्र ने गेंद दोनों के पाले में छोड़ दी।
दूसरे ही दिन, होटल एसोसिएशन इस अधूरे नोटिफिकेशन का फायदा ज्यादा उठाता हुआ
दिखा। रेस्तरां वालों के संध ने, माफ करना, एसोसिएशन ने कह दिया कि सर्विस चार्ज
चुकाना ना हो तो ग्राहक रेस्तरां में खाना खाने न आए। अगर ग्राहक सर्विस चार्ज
चुकाकर भोजन करना चाहता हो तो वो आ सकता है। कुल मिलाकर... बल्ला किसी को दे दिया,
गेंद भी दे दी, पर अम्पायरिंग से केंद्र मुकरता हुआ दिखाई दिया!!!
जनवरी में बीमार मरीज जैसा नोटिफिकेशन जारी करने के बाद भी अप्रैल तक सर्विस टैक्स
और रेस्तरां का मुद्दा जस का तस रहा। आखिरकार अप्रैल 2017 में केंद्र ने एडवाइजरी जारी
की और सभी राज्य सरकारों से कहा कि वह कंपनियों, होटलों और रेस्तरां को इस बारे में सचेत कर दें। 22 अप्रैल के दिन केंद्रीय
उपभोक्ता मंत्रालय ने नई गाइ़डलाइंस जारी कर दी। गाइडलाइंस के मुताबिक, अब बाहर खाने
पर बिल में जुड़ने वाले सर्विस चार्ज देना या नहीं देना उपभोक्ता की मर्जी पर होगा।
अगर उपभोक्ता सर्विस चार्ज नहीं देना चाहता है तो होटल और रेस्तरां इसको लेकर के ग्राहक
को बाध्य नहीं कर सकेंगे।
बताइए, जो बात जनवरी माह में कही जा रही थी, अप्रैल तक मामला मूलत: उसी जगह तो रुका था। ये बात और थी कि जनवरी में बोलकर कहा और
अप्रैल में लिख कर!!! लेकिन कहा तो यही कि सर्विस चार्ज जबरन वसूल नहीं कर सकते, अगर उपभोक्ता देना
चाहे तो दे सकता है। लेकिन अगर रेस्तरां या होटलवाले जबरन चार्ज वसूल करते हैं तो
फिर उपभोक्ता को कौन सी पगडंडी पर चलना होगा उसकी स्पष्टता तो अभी तेरी मेरी
अधूरी कहानी सरीखी ही थी! इस अधूरी कहानी का एक नया पैरा जुलाई 2017 में लिखा गया जब फिर एक बार केंद्र
सरकार ने यही चीज़ दोहराई और कहा कि अगर रेस्तरां वाले सर्विस चार्ज वसूलते हैं तो
उपभोक्ता कोर्ट की मदद ले। यानी कि अधूरी कहानी का एक और पैरा आया, कहानी पता नहीं कब पूरी होने वाली थी।
कहानी पूरी कहां से होती, जबकि कहानी का नया सीन सितम्बर 2017 में फिर एक बार
सामने आया। उपभोक्ता मामलों के मंत्री रामविलास पासवान ने ट्वीट कर कहा कि कई
शिकायतें आ रही हैं कि उपभोक्ताओं से अब भी जबरदस्ती चार्ज वसूला जा रहा है। मामले की
गंभीरता को देखते हुए विभाग ने सीबीडीटी को पत्र लिखा है। बताइए, जनवरी से शुरू हुई यह कहानी सितम्बर तक झोले ही खा रही थी। सोचिए, मामले की गंभीरता सचमुच
कितनी गंभीर रही होगी कि अब भी पत्राचार ही हो रहा था! सर्विस चार्ज का तो साइड में रख दीजिए, जीएसटी लागू होने
के बाद विपक्ष और जनता के मिलेजुले विरोध के तले जब केंद्र सरकार ने जीएसटी की दरें
कम की तो उसके बाद भी कई दिनों तक केंद्रीय मंत्री होटल व रेस्तरां वालों को
चेतावनियां देते दिखे कि जीएसटी के कम दर लागू नहीं किए तो जुर्माना भरना पड़ेगा।
बताइए, सर्विस चार्ज के बजाय अब तो जीएसटी रेट सर्व करने का मामला अखबारों में छाने
लगा था।
उधारी पर चल रही दिल्ली एयरपोर्ट की सुरक्षा, सीआईएसएफ का निजी कंपनी पर करोड़ों बकाया
दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे की सुरक्षा का जिम्मा सीआईएसएफ़
पर है। सीआईएसएफ पूरी मुस्तैदी से ये काम करती है। लेकिन उसकी शिकायत रही कि हवाई अड्डे
की देखभाल जिस जीएमआर नाम की कंपनी के हवाले है, वो उसे उसका बकाया
नहीं दे रही। जीएमआर का नाम तो आपने सुना ही होगा। यह बकाया भी थोड़ा बहुत नहीं,
बल्कि 618 करोड़ रुपये था। एनडीटीवी
इंडिया के हवाले से डीजी सीआईएसएफ ओपी सिंह ने बताया कि, "कुछ ऐसे एयरपोर्ट हैं जिनसे हमने बक़ाया लेना है। दिल्ली एयरपोर्ट भी उनमें से एक
है। हम लोगों ने एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया और गृह मंत्रालय के सामने ये मुद्दा उठाया
है।"
सीआईएसएफ देशभर के 59 एयरपोर्ट को सुरक्षा देती है और उनसे करीब 900 करोड़ रुपये
सालाना कमाती है। इसमें से सबसे बड़ी रक़म दिल्ली एयरपोर्ट से आती है। यहां 4,500 सुरक्षाकर्मी
तैनात है। लेकिन डेढ़ साल से सीआईएसएफ को पैसे नहीं मिले। जीएमआर के मुताबिक़ हवाई
अड्डे की पैसेंजर सेफ्टी फीस काफ़ी कम है। इसके मुक़ाबले सुरक्षा पर होने वाला ख़र्च
ज़्यादा है। फिर तीन पे कमीशन आ चुके हैं जिनकी वजह से वेतन का ख़र्च बढ़ गया है। बहरहाल
ये मामला गृह मंत्रालय के सामने था। वैसे सीआईएसएफ अकेला ऐसा सुरक्षा बल है जो अपनी
कमाई ख़ुद से करता है। केंद्र सरकार पर वो किसी तरह का बोझ नहीं डालता। ऐसे में यह ज़रूरी था कि इस संकट का हल जल्दी खोजा जाए,
क्योंकि इससे यात्रियों की सुरक्षा का मामला
भी जुड़ा था। सोचना तो यह भी है कि निजी कंपनियां ऐसे मुद्दों पर सैनिक या अर्धसैनिक बलों के साथ इतना कुछ कर जाती है तो फिर इनके हाथ समूचे एयरपोर्ट आएंगे तो हमें और उन बलों को कितना कुछ देखना या सहना होगा।
रामदेव को जमीन के ऊपर सवाल पूछने पर कथित रूप से अधिकारी
की बदली कर दी गई
सन्यासी कम लेकिन अपने बिजनेस से ज्यादा पहचाने जाने वाले रामदेव बाबा फिर एक
बार विवाद की वजह से सुर्खियों में छाये रहे। दरअसल उन्हें नागपुर में फूडपार्क
स्थापित करने के लिए जो जमीन दी गई थी उसके दाम में 75 प्रतिशत जितनी बड़ी राहत
देने का फैसला सन 2016 में महाराष्ट्र सरकार ने लिया था। पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड
का प्लांट नागपुर में शुरू होने वाला था। एक आरटीआई से पता चला कि इस फैसले का अमल
नहीं हो पाया। वजह यह थी कि फाइनान्शियल रिफॉर्म डिपार्टमेंट के सेक्रेटरी
बिजयकुमार ने प्राइस वॉर के मुद्दे पर सवाल किया था। मार्च 2017 में कुमार ने प्राइस
कैल्क्युलेशन को लेकर उन्हें सवाल पूछे। आरोप लगा कि कथित रूप से अप्रैल 2017 में
उनकी बदली कर दी गई। आमतौर पर सरकारी अधिकारियों की बदली तीन साल के बाद होती है,
लेकिन बिजयकुमार की बदली डेढ़ साल में हुई थी। इसे लेकर सोशल मीडिया में काफी
हाय-तौबा मची रही। परिणाम तो सभी को पता होता है कि ढेर सारे नियमों को आगे रखकर
समझाया जाता है कि नियम तोड़े नहीं गए हैं!
जियो और पेटीएम ने पीएम की तस्वीरें इस्तेमाल की, कानून का उल्लंघन
लेकिन माफी से चल गया काम
निजी कंपनी जियो और पेटीएम ने तत्कालीन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तस्वीर
का इस्तेमाल अपने इश्तेहार के लिए किया था। यानी कि देश के पीएम की तस्वीर निजी कंपनियों
ने मार्केटिंग के लिए इस्तेमाल कर डाली। 2016 में जियो को इसके लिए 500 रुपये
जुर्माना लगा था। जुर्माने की रकम को लेकर सरकार पर ही काफी तंज कसे गए थे।
जुर्माने की मामूली रकम को लेकर लोग मजाक करने लगे कि इतने भारी जुर्माने से तो
कंपनी दिवालिया हो जाएगी। इसके बाद पेटीएम ने भी कानून का उल्लंघन किया था। बताइए, आप ट्रैफिक के नियम को तोडते हैं तो आजकल भारी जुर्माने लगते हैं। कंपनियों ने कानून तोड़ा और पीएम की तस्वीर तक इस्तेमाल कर डाली, लेकिन जुर्माना नाम भर का।
पेटीएम को तो शायद जुर्माना भी नहीं भरना पड़ा था। 10 मार्च 2017 के दिन राज्यमंत्री
सीआर चौधरी ने राज्यसभा में कहा कि इन दोनों कंपनियों ने माफी मांग ली है।
अडानी के ऑस्ट्रेलिया प्रोजेक्ट का विरोध हमारे घर तक पहुंचा, क्रिकेटर चैपल बंधु तक विरोध जताने भारत आए थे
काला रंग तो हर जगह काला ही होता है, थोड़ी न कहीं और इसका आभामंडल अलग हो जाता होगा, वो तो काला ही रहेगा। जो यहां है वो वहां भी है। अडानी ग्रुप ने ऑस्ट्रेलिया में कोयला खदान का प्रोजेक्ट हाथ में लिया था। क्वीन्सलैंड में 16.50 बिलियन डॉलर की लागत के इस कारमाइकल कोल प्रोजेक्ट को ऑस्ट्रेलिया के
संबंधित प्रशासन ने इसके लिए हरी झंडी भी दे दी थी। लेकिन वहां इस परियोजना के
खिलाफ भारी विरोध-प्रदर्शन हो रहे थे तथा कानूनी लड़ाई भी लड़ी जा रही थी। ऑस्ट्रेलिया
के पर्यावरणविद् मार्च 2017 में भारत आ पहुंचे और उन्होंने अहमदाबाद जाकर अपना विरोध
प्रदर्शित किया। ऑस्ट्रेलिया का एक प्रतिनिधिमंडल 16 मार्च 2017 के दिन अहमदाबाद
के अडानी हाउस पहुंचा और अपना आवेदन सुप्रत किया। इनमें विख्यात क्रिकेटर बंधु
ग्रेग चैपल और इयान चैपल के भी दस्तखत थे। इसमें बिनती करते हुए लिखा गया था कि हमें
सोलर एनर्जी चाहिए, ना कि आप की कोयले की खदान। यह प्रतिनिधिमंडल दोपहर अडानी हाउस
पहुंचा, जिसकी अगुवाई ऑस्ट्रेलियन कंजर्वेशन फाउंडेशन के प्रमुख ज्योफ क्जीन्शन
कर रहे थे। मीडिया से उन्होंने कहा कि हम यह चीज़ ईमेल के जरिए कर सकते थे, लेकिन
हमें अडानी ग्रुप के एग्जीक्यूटिव के साथ प्रत्यक्ष मुलाकात करनी थी और इसीलिए हम आए हैं।
मुंद्रा स्थित अडानी साइट का शूटिंग ऑस्ट्रेलियन न्यूज़ चैनल
से डिलीट कराया गया
अगस्त 2017 के अंत में गुजरात के स्थानिक अख़बार में यह खबर छपी कि ऑस्ट्रेलिया
के न्यूज़ चैनल एबीसी (ऑस्ट्रेलियन ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन) के दो पत्रकार दिल्ली के किसी शख्स के साथ मुंद्रा में चल रही अडानी की साइट का जायजा लेने गुजरात पहुंचे
थे। उन्होंने अडानी पोर्ट का शूटिंग तो नहीं किया था, लेकिन उसके सिवा अन्य इलाकों में न्यूज़ के लिए वीडियो शूटिंग किया। जब पुलिस को पता चला तो ये शूटिंग डिलीट करा दिया गया। दावा किया गया कि 27 अगस्त 2017 की रात मुंद्रा स्थित फन हॉलिडे रेजीडेंसी होटल में पुलिस काफिला पहुंचा और उन्होंने इन पत्रकारों की पूछताछ शुरू की।
पुलिस ने बताया कि इन पत्रकारों ने प्रशासन की इजाज़त नहीं ली थी और बिना मंजूरी के
शूट किया था।
ऑस्ट्रेलियन पत्रकारों का आरोप- अडानी पर रिपोर्ट बनाने जा
रहे थे, गुजरात पुलिस ने धमका कर भगा दिया
सितम्बर-अक्टूबर 2017 के दौरान ऑस्ट्रेलियन पत्रकारों ने यह आरोप लगाया।
ऑस्ट्रेलिया के फोर कॉर्नर चैनल के कुछ पत्रकार ऑस्ट्रेलिया में कोयला खदान का काम
कर रहे अडानी ग्रुप के पर्यावरण समेत अन्य मुद्दों पर ट्रेक रिकॉर्ड को जांचने
गुजरात पहुंचे थे। उन्होंने आरोप लगाया कि गुजरात पुलिस से उन्हें भारी परेशानियों का
सामना करना पड़ा। आरोप तो यहां तक लगे कि पुलिस उनसे ज़रूरत से ज्यादा सख्ती से पेश आ
रही थी तथा उन्हें धमकियां भी दी जा रही थी। फोर कॉर्नर के पत्रकार स्टीफन लोंग ने बताया
कि वे गुजरात के मुंद्रा शहर पहुंचकर अपना काम कर रहे थे। लेकिन दूसरे दिन पुलिस
उनके होटल पर पहुंची। उनकी माने तो पुलिस का प्रयत्न यह था कि उनसे भारत में किए गए तमाम इंटरव्यू तथा फूटेज ले लिये जाए। लोंग ने कहा कि उनसे पांच घंटों तक पूछताछ
की गई। पूछताछ के दौरान पुलिस अधिकारी बार बार मोबाइल फोन पर बात करने के लिए बाहर जाते और फिर किसी से बात करके वापस कमरे में आ जाते। वापस आने पर उनकी सख्ती
और बढ़ जाती थी। लोंग ने कहा कि सभी जानते थे कि हम यहां क्यों आए थे, लेकिन कोई भी
अपने मुंह से अडानी का नाम लेने के लिए तैयार ही नहीं था।
ऑस्ट्रेलियाई मीडिया का दावा- अडानी के टैक्स हेवन देशों से
है संबंध
ऑस्ट्रेलिया की न्यूज़ एजेंसी एबीसी ने अपनी एक जांच रिपोर्ट में चौंकाने वाला
दावा किया और कहा कि अडानी ग्रुप के टैक्स हेवन देशों से पहले से ही अज्ञात संबंध
है। एबीसी न्यूज़ के विशेष कार्यक्रम फोर कॉर्नर के तहत की गई जांच के बाद यह दावा
किया गया। दावा किया गया कि ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड में कई महत्वपूर्ण संपत्तियां
अडानी से संबंधित है। एबीसी न्यूज़ ने कहा कि अडानी ग्रुप ने इन कंपनियों की जानकारी
ऑस्ट्रेलियन सरकार को नहीं दी है। एबीसी ने अपनी रिपोर्ट में अडानी ग्रुप के चेयरमैन
गौतम अडानी के बड़े भाई के खिलाफ भारत में चल रही जांच का भी ज़िक्र किया। ऑस्ट्रेलियन
मीडिया ने बताया कि अडानी ग्रुप ने ऑस्ट्रेलियन सरकार को 22 अरब डॉलर टैक्स व
राजस्व के तौर पर देने हैं, लेकिन अडानी ग्रुप के साथ जुड़े ट्रस्ट तथा कंपनी के बड़े नेटवर्क के चलते ऑस्ट्रेलियन सरकार को कम टैक्स व राजस्व मिल पाएगा।
ऑस्ट्रेलिया में अडानी के कोयला परियोजना का भारी विरोध
इससे हमें फिर एक बार यकीन होगा कि कौए भारत में ही नहीं बल्कि हर जगह काले ही
होते हैं। हमारे यहां भी किसी योजना के खिलाफ कॉर्पोरेट और पॉलिटिक्स का मेलजोल तथा
आम जनता के गुस्से की कहानियां होती रहती है। इन्हीं दिनों ऑस्ट्रेलिया में भी यही
हाल था। अक्टूबर 2017 के दौरान भारतीय मीडिया में छपी खबरों की माने तो इन दिनों ऑस्ट्रेलिया में अडानी के कोयला परियोजना का भारी विरोध चल रहा था। हमने पहले देखा
वैसे ऑस्ट्रेलिया के कुछेक संगठन के लोग तथा ऑस्ट्रेलियन मीडिया के कर्मी भी
गुजरात तक अपनी बात ले आए थे। ऑस्ट्रेलिया के क्वीन्सलैंड में अडानी ग्रुप कोयला
खदान परियोजना पर वहां की सरकार की इजाज़त के बाद आगे बढ़ रहा था। लेकिन वहां भी हमारी
तरह ही आम जनता का बड़ा तबका इस परियोजना के विरोध में खड़ा था। 7 अक्टूबर 2017 के
दिन हजारों लोगों का समुदाय 'अडानी गो होम' जैसे बैनरों के साथ सड़कों पर उतर आया।
ऑस्ट्रेलिया के पर्यावरणीय चिंतकों ने 'स्टॉप अडानी' भी चलाया। यह परियोजना पर्यावरण
तथा फाइनेंस के मुद्दे के बीच झोले खा रही थी। पर्यावरणीय चिंतकों की अपनी दलीलें और
अपना विरोध था। इसी दौरान ऑस्ट्रेलिया में अडानी की इस योजना के विरोध में 40 से
ज्यादा विरोध-प्रदर्शन आयोजित हो चुके थे। एक आंकड़े के मुताबिक 40 फीसदी से ज्यादा
ऑस्ट्रेलियन जनता इस योजना के खिलाफ थी।
रिलायंस जियो ने इनकम को कम करके दिखाया : ऑडिट रिपोर्ट
पांच पन्नों की यह रिपोर्ट 22 फरवरी 2017 को आई। इसमें कहा गया कि कंपनी को
2012-13 में 1.29 करोड़ रुपये, 2013-14 में 41.67 करोड़ रुपये व 2014-15 में 20.81 करोड़ रुपये
का विदेशी मुद्रा लाभ हुआ था। मसौदा ऑडिट के अनुसार, “इस तरह से सकल राजस्व
व एजीआर में विदेशी मुद्रा विनिमय दर में परिवर्तन से हुए लाभ को शामिल नहीं किया जाना
लाइसेंस की शर्तों का उल्लंघन है और इससे समायोजित सकल राजस्व 63.77 करोड़ रुपये कम
आंका गया।” दूरसंचार कंपनी रिलायंस जियो के बारे में इस ऑडिट के मसौदे
में कहा गया कि, “कंपनी ने तीन
वर्ष की एक अवधि में अपनी आय को कुल मिला कर लगभग 63 करोड़ रुपये कम दिखाया।” इस दौरान कंपनी ने विदेशी विनिमय दर में बदलाव से हुए लाभ को
आय में नहीं जोड़ा। इसके आधार पर ऑडिट महानिदेशालय (डाक एवं दूरसंचार) ने अपनी रिपोर्ट
में कहा कि, “कंपनी को इस
दौरान लाइसेंस शुल्क का अपेक्षाकृत ‘कम भुगतान’ करना पड़ा।” महानिदेशालय ने रिलायंस जियो द्वारा 2012-13 से 2014-15 वित्त
वर्ष के लिए दाखिल सालाना वित्तीय रपट और राजस्व मिलान के विवरणों की जांच पड़ताल की
थी। इसके अनुसार जब इसे रेखांकित किया गया तो रिलायंस जियो के प्रबंधन ने कहा कि दूरसंचार
आयोग ने भी विदेशी मुद्रा विनिमय दर लाभ पर लाइसेंस शुल्क के भुगतान की मांग की थी
और कंपनी ने इसको लेकर दूरसंचार न्यायाधिकरण टीडीसैट में याचिका दायर कर रखी थी।
माल्या के प्रत्यर्पण को ब्रिटेन सरकार ने दी इजाज़त
भारत में खुद की एयरलाइंस कंपनी किंगफिशर को ताले लगा कर तथा भारतीय बैंकों को
तकरीबन 9,000 करोड़ का चूना लगाकर विदेश गमन करने वाले विजय माल्या के
प्रत्यर्पण को आखिरकार ब्रिटेन सरकार ने इजाज़त दे दी। अब माल्या को वारंट देने का
फैसला ब्रिटेन के वेस्टमिंस्टर कोर्ट के जज को करना था। ब्रिटेन सरकार ने मार्च
2017 के दौरान विजय माल्या के प्रत्यर्पण की इजाज़त दी। अप्रैल 2017 के दौरान
ब्रिटेन सरकार ने कहा कि माल्या के प्रत्यर्पण के बारे में कोर्ट फैसला करेगा,
राजनेता नहीं।
लंदन में माल्या के प्रत्यर्पण की सुनवाई शुरू, गिरफ्तारी और
जमानत
18 अप्रैल से विजय माल्या की प्रत्यर्पण की कार्रवाई लंदन में शुरू हुई। स्कॉटलैंड पुलिस ने इस दिन विजय माल्या को हिरासत में लिया और वेस्टमिंस्टर मजिस्ट्रेट कोर्ट में उन्हें पेश किया गया। करीबन 3 घंटे बाद कोर्ट ने उन्हें शर्ती
जमानत दे दी। जानकारों के मुताबिक इस कार्रवाई से भारत को ज्यादा खुश होने की ज़रूरत
नहीं थी। क्योंकि उनका मानना था कि यह मामला बहुत लंबा चलेगा और भारत को ठोस सबूत
देने होंगे। पूर्व राजनयिक नरेश चंद्रा के मुताबिक विजय माल्या को भारत वापिस लाने
में अभी करीबन तीन साल लग जाने वाले थे। मई 2017 में न्यूज़ एजेंसी एएनआई के मुताबिक, सीबीआई और ईडी की टीम लंदन पहुंच चुकी थी। इस टीम में सीबीआई
और ईडी के चार सदस्य शामिल थे। इससे पहले ईडी ने ब्रिटिश सरकार को कुछ दस्तावेज सौंपे
थे, जिसमें भारत ने ये दावा किया कि माल्या ने भारत के बैंकों से ब्रिटेन की कंपनियों
और बैंकों में मनी लॉड्रिंग की है।
सुप्रीम कोर्ट ने दी गृह मंत्रालय को विजय माल्या को पेश करने
की जिम्मेदारी
मई 2017 के दौरान भगोड़े शराब कारोबारी विजय माल्या को सुप्रीम कोर्ट में पेश करने
की जिम्मेदारी खुद कोर्ट ने गृह मंत्रालय को दे दी। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा
कि मंत्रालय कोर्ट में आकर के सुनिश्चित करें कि वो माल्या को हर हालत में 10 जुलाई
2017 को पेश करें। माल्या को सुप्रीम कोर्ट ने अवमानना का दोषी माना। कोर्ट द्वारा
मना करने के बावजूद माल्या ने अपनी संपत्ति का पूरा ब्यौरा नहीं दिया। इसके साथ ही
माल्या ने कर्नाटक हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद ब्रिटिश कंपनी डिएगो से मिले 40 मिलियन
डॉलर को अपने तीन बच्चों में बांट दिया था।
विजय माल्या, अंतरराष्ट्रीय मैच, सुनिल गावस्कर से बातचीत,
मीडिया का मजाक
4 जून 2017 को इंग्लैंड में खेले गए भारत-पाक अंतरराष्ट्रीय एकदिवसीय मैच के
दौरान विजय माल्या स्टेडियम में बैठे नजर आया। इतना ही नहीं, सुनिल गावस्कर के साथ
उसकी तस्वीर भी सोशल मीडिया में वायरल हुई। भारतीय मीडिया ने मैच के दौरान माल्या
की मौजूदगी को प्रमुखता से कवर किया। इस पर माल्या ने शेखी मारते हुए कहा कि मैं भारत
की हर मैच देखूंगा। इतना ही नहीं, कुछ दिनों बाद माल्या विराट कोहली द्वारा आयोजित एक
चैरिटी कार्यक्रम में भी दिखे।
वीके सिंह बोले- माल्या को वापस लाना मुश्किल
पूर्व जनरल और मंत्री विजय कुमार सिंह (वीके सिंह) ने फरार हुए कारोबारी विजय माल्या
को भारत वापस लाने के मुद्दे पर कहा कि, “माल्या को भारत वापस लाना इतना आसान नहीं है जितना लोग सोचते
हैं।” उन्होंने
यह बयान 12 या 13 जून 2017 को दिया था। उन्होंने आगे कहा कि, “जैसे ही हमें उनके कानून से अनुमति मिलती है वैसे ही हम माल्या को वापस भारत लाएंगे।” वीके ने कहा कि, “ब्रिटेन जब भी इसके लिए आगे बढ़ेगा, तब ही ऐसा हो पाएगा। हम इसकी समय सीमा तय नहीं कर सकते हैं।”
ब्रिटिश जज ने सबूत देने में देरी पर भारत को लताड़ा,
माल्या ने भारतीयों को भेजा संदेश – सपने देखते रहिए
उधर ब्रिटिश जज सबूत देने में देरी होने पर भारतीय अधिकारियों को सुना रहे थे
और इधर मंत्रीजी कह रहे थे कि माल्या को वापस लाना मुश्किल है। वेस्टमिंस्टर मजिस्ट्रेट
कोर्ट की चीफ मजिस्ट्रेट एमा अर्बुथनोट को जब यह पता चला कि भारत सरकार की ओर से साक्ष्य
मुहैया कराए जाने में देरी हो रही है, तो उन्होंने मामले पर अगली सुनवाई दो सप्ताह बाद 6 जुलाई तय कर दी। अब वीके
सिंह को बताना चाहिए था कि देरी क्यों हुई। देरी अंजाने में तो हुई नहीं होगी यह भी
साफ है। क्योंकि ऐसे संवेदनशील मामलों में ऐसी चीजें तो मुमकिन ही नहीं।
भारत की ओर से ऐरन वाटकिंस ने यह कहते हुए अपना पक्ष रखा कि क्राउन प्रॉसीक्यूशन
सर्विस (सीपीएस) को भारत से बाकी साक्ष्य पाने और इनकी समीक्षा करने के लिए और तीन
से चार सप्ताह चाहिए। इस पर चीफ मजिस्ट्रेट अर्बुथनोट ने पूछा, “क्या भारतीय प्रतिक्रिया देने में सामान्यतया फुरतीले होते हैं? उन्होंने अब तक छह महीने बिता दिए और पिछले छह सप्ताह से हमें आगे कुछ भी नहीं
दिया गया है।” उन्होंने आगे कहा, “अगर अब भी साक्ष्य मिलने की कोई उम्मीद नहीं है तो अप्रैल
2018 में (पूरी सुनवाई की) संभावना है। अगर हमारे पास सब कुछ होगा तो यह (आखिरी सुनवाई)
दिसंबर में हो सकती है।”
वाटकिंस ने कहा कि इस केस को लेकर भारत के साथ बहुत करीबी से काम हो रहा है और
प्राप्त सबूत 'अव्यावहारिक नहीं' हैं। कोर्ट ने माल्या को 6 दिसंबर तक सशर्त जमानत देते हुए
6 जुलाई को अगली सुनवाई की तारीख तय कर दी। उस दिन भी इसी तरह ही सुनवाई होनी थी और
तब कोर्ट को देखना था कि सारे साक्ष्य मिल चुके हैं या नहीं। प्रेस से बचाने की
अधिवक्ता की दलील के बाद माल्या को कहा गया कि उन्हें 6 जुलाई की सुनवाई के दौरान मौजूद
रहने की ज़रूरत नहीं है।
जहां एक और भारत की देरी को लेकर विदेश में लताड़ पड़ रही थी, मंत्रीजी माल्या की
वापसी मुश्किल है वाला एकरार भी कर रहे थे, उधर विजय माल्या ने संवाददाताओं से
बातचीत करते हुए कहा कि, “मैं अपने ऊपर लगे सभी आरोपों को खारिज करता हूं और मैं उन्हें खारिज करता रहूंगा।” माल्या ने कहा, “आप एक अरब पाउंड्स का सपना देखते रहिए। आप तथ्यों के बिना कुछ
भी साबित नहीं कर सकते।”
सर्वोच्च न्यायालय को केंद्र ने कहा - माल्या का प्रत्यर्पण
जनवरी 2018 से पहले नहीं हो सकता
गौरतलब है कि कोर्ट ने 10 जुलाई तक हर हालत में विजय माल्या को कोर्ट में पेश
करने के लिए कहा था। 14 जुलाई 2017 के दिन केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय से
कहा कि, “विजय
माल्या का प्रत्यर्पण जनवरी 2018 से पहले नहीं हो सकता।” जब अदालत ने कहा कि माल्या की अनुपस्थिति में उन्हें सजा नहीं दी जा सकती तो उसके जवाब में केंद्र ने यह कहा। अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने
अदालत को कहा कि, “माल्या के प्रत्यर्पण के मामले की सुनवाई यूके की अदालत में 4 दिसम्बर के दिन
शुरू होने वाली है, लिहाजा हमें लगता है कि जनवरी 2018 में हम माल्या को भारत वापस
ला पाएंगे।”
विजय माल्या के प्रत्यर्पण हेतु और सबूत लेकर लंदन पहुची
ईडी और सीबीआई
19 तथा 20 जुलाई 2017 के दिन अलग अलग अखबारों के हवाले से खबरें आई कि एक
कानूनी सलाहकार समेत दो सदस्यों की ईडी टीम दो दिन के लिए लंदन पहुंच चुकी थी।
रिपोर्ट में छपा कि सीबीआई की एक टीम भी इसी सिलसिले में लंदन पहुंची थी।
माल्या फिर गिरफ्तार हुए, साढ़े छह करोड़ रुपये के मुचलके पर
मिली जमानत
विजय माल्या को 3 अक्टूबर 2017 को मनी लॉड्रिंग के एक अन्य मामले में गिरफ्तार
किया गया। ईडी द्वारा दायर इस मामले में माल्या को बाद में वेस्टमिंस्टर मजिस्ट्रेट
कोर्ट से 6 लाख 50 हज़ार पौंड (लगभग साढ़े छह करोड़ रुपये) के मुचलके पर जमानत भी मिल
गई। यह जानकारी क्राउन प्रॉसीक्यूशन सर्विस (सीपीएस) ने दी थी, जो माल्या के खिलाफ
दर्ज मामले में भारत सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहा था।
माल्या ने नेताओं के मुंह पैसे और मुफ्त सवारी से बंद कर रखे
थे- एसएफआईओ का चौंकाने वाला दावा
सीरियस फ्रॉड इन्वेस्टिगेशन ऑफिस (एसएफआईओ) की जांच रिपोर्ट की कुछ बातें मीडिया में अक्टूबर 2017 के दौरान छपी थी। मीडिया रिपोर्ट की माने तो किंगफिशर
एयरलाइंस को 2,000 करोड़ की कॉर्पोरेट लोन मिल जाए इस हेतु विजय माल्या ने अपनी
तमाम पैंतरेबाज़ी का इस्तेमाल किया था। यह पैंतरें राजनीतिक और आर्थिक थे। चौंकाने वाला
दावा किया गया था कि वित्तमंत्रालय के अधिकारियों ने एसबीआई, बीओबी तथा बीओआई के ऊपर किंगफिशर एयरलाइंस के पक्ष में दबाव बनाया था। 27 अगस्त 2017 को एसएफआईओ ने
157 पन्नों का यह रिपोर्ट मंत्रालय को सौंपा था। मीडिया रिपोर्ट में छपी जानकारियों
को सच माने तो विजय माल्या ने वित्तमंत्रालय के अपने लिंक की ताकत का इस्तेमाल किया था।
एक दावा यह भी था कि माल्या कॉर्पोरेट जासूसी करवाते थे, राजनीतिज्ञों को रिश्वत
देते थे, अधिकारियों तक को खरीदते थे। विजय माल्या के 2009 के करतूत रिपोर्ट में कैद बताए गए। सरकार तो अब बदल चुकी थी। अब अगर यह मीडिया रिपोर्ट सच है या
एसएफआईओ का दावा सच है, तब तो सिम्पल सी बात है कि जांच संस्थाओं को इन नेताओं या
अधिकारियों के बारे में जानकारियां रही होगी, जिन्होंने विजय माल्या से कथित रूप से कथित रिश्वत ली होगी। विजय माल्या का क्या होगा पता नहीं, लेकिन इन कथित नेताओं या
अधिकारियों का क्या होगा ये ज़रूर देखने लायक विषय होगा।
विजय माल्या के वकील ने भारतीय जेलों की शिकायत की, सरकार ने
फोटो भेज दावे को ठुकराया
सोचिए, आप को किसी गुनाह के लिए जेल जाना हो और जेल जाने से पहले आप जेलों के
बुरे हालात को लेकर शिकायतें करना शुरू कर दे तो? बड़ी सख्ती से, या फिर कभी कभार दंडे की चोट पर आप को बताया
जाएगा कि बुरे काम के लिए बुरी जगह जा रहे हो, फाइव स्टार होटल में नहीं। लेकिन
विजय माल्या के वकील ने जेलों की शिकायत क्या कर दी, महाराष्ट्र सरकार ने तो जेलों के फोटूं खींच के पूरा रिपोर्ट भेज दिया और दावा किया कि हमारे जेल काफी अच्छे
हैं, बुरे लोगों को अच्छी सहूलियतें मिलेगी, कोई दिक्कत नहीं होगी उन महानुभावों को!!!
दरअसल, यूके की अदालत में विजय माल्या के वकील ने कहा था कि विजय माल्या
डायाबिटिस के मरीज़ है, उनके स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखना पड़ता है, घर में बनी हुई
चीजें ही परोसनी पड़ती है। वकील ने कहा कि भारतीय जेलों में शौचालय की स्थिति अच्छी
नहीं है तथा सरकारी अस्पतालों में आधुनिक स्वास्थ्य सेवाएं नहीं है। शायद बात
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जा पहुंची थी, तभी महाराष्ट्र सरकार ने आर्थर रोड जेल के
यूनिट नं. 12 के फोटो खींचे, पूरा रिपोर्ट बनाया और यूके में सीबीआई को रिपोर्ट भेज
कर विजय माल्या के दावे को गलत बताया। सरकार ने कहा कि हमारे जेल विजय माल्या के
लिए ठीक है। अंतरराष्ट्रीय बदनामी के नजरिये से सोचे तो ठीक है यह चीज़, करनी पड़ी होगी। किंतु राष्ट्रीय स्तर पर विजय माल्या को भी शायद पता होगा कि यहां तो जेलों में भी विशेष महानुभावों को विशेष सहूलियतें दी जाती हैं, टेलीविजन सेट से लेकर मजेदार
गद्दे बिछाए जाते हैं। यहां तो सीबीआई लालू प्रसाद की पूछताछ करती है तब भी विशेष
व्यंजन परोसती है, जेलवास की बात तो दूर है। भला, इतनी सारी सहूलियतें विशेष
व्यक्तियों को दी जाती हो और लोग भारतीय जेलों के बारे में शिकायतें कर दे यह जायज
थोड़ी न है!!!
महाराष्ट्र सरकार ने माल्या को गेस्ट हाउस में रखने की
तैयारी दिखाई
भारतीय जेल की बदतर स्थिति को लेकर लंदन में चल रही माथापच्ची के बीच
महाराष्ट्र सरकार ने केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेज कहा कि वे माल्या के लिए सरकारी गेस्ट हाउस को जेल में तब्दील करने के लिए तैयार है। केंद्र तथा राज्य
सरकारों के पास यह अधिकार होता है कि वे किसी भी जगह को जेल में तब्दील कर सकते हैं। प्रदेश
सरकार के हवाले से मीडिया रिपोर्ट में छपा कि अगर भारतीय जेल की कथित बदतर स्थिति
मामले में रुकावट है तो फिर प्रदेश सरकार गेस्ट हाउस को जेल में तब्दील करने के
विकल्प पर तैयार है।
यूके कोर्ट में भारत सरकार ने रखा पक्ष- लोन के पैसों से माल्या
चुका रहे थे विमानों का किराया
विजय माल्या के प्रत्यर्पण के लिए 4 दिसम्बर 2017 को ब्रिटेन की एक कोर्ट में सुनवाई
शुरू हुई। अभियोजन पक्ष ने अपनी दलील रखते हुए कहा कि माल्या के खिलाफ धोखाधड़ी का
मामला है और उसे इसका जवाब देना होगा। कोर्ट में कार्यवाही के बीच अचानक फायर अलार्म बज
गया। इससे चलते कोर्ट रूम को खाली कराना पड़ा और सुनवाई कुछ समय के लिए टाल दी गई।
61 वर्षीय माल्या कार्यवाही के दौरान वेस्टमिंस्टर मजिस्ट्रेट कोर्ट में मौजूद था।
भारत सरकार की ओर से क्राउन प्रॉसीक्यूशन सर्विस (सीपीएस) ने दलील रखी। सीपीएस ने कोर्ट
को बताया कि माल्या ने पहले किंगफिशर एयरलाइंस के लिए 2000 करोड़ कर्ज लिया। इसके बाद
उन्होंने अन्य बैंकों से कुल 9000 करोड़ का कर्ज लिया, जिसे चुकाया नहीं। सीपीएस ने
माना कि कुछ लोन की मंजूरी में बैंकों की ओर से गड़बड़ी हुई लेकिन यह मामला भारत में
बाद में निपटा लिया जाएगा।
सीपीएस ने कहा कि हमारे मामले का पूरा ध्यान माल्या का व्यवहार है कि कैसे उन्होंने
बैंकों को गुमराह कर करोड़ों का कर्ज लिया और उसे चुकाया नहीं। सीपीएस ने कोर्ट में
माल्या के अपराध का पूरा ब्यौरा पेश किया। सरकारी पक्ष ने कोर्ट को बताया कि माल्या
ने लोन के पैसे को मोटर रेसिंग में और अपने निजी इस्तेमाल के लिए खरीदे गए दो कॉर्पोरेट
जेट का किराया भरने के लिए इस्तेमाल किया।
माल्या पूरी सुनवाई के दौरान शीशे से घिरे कटघरे में बैठा रहा। बचाव पक्ष के वकील
ने जज से माल्या को अपनी टीम के नजदीक बैठने देने की अनुमति मांगी ताकि कुछ कठिन दस्तावेज
पर उनसे बातचीत की जा सके। लेकिन जज ने इसकी मंजूरी नहीं दी। सुनवाई से पहले कोर्ट के
बाहर माल्या ने कहा कि उसके खिलाफ लगाए गए सारे आरोप बेबुनियाद और गलत हैं। कोर्ट में
पेश किए गए सबूतों से यह साबित हो जाएगा।
लंदन कोर्ट में माल्या ने कहा- मैं तो बकाया राशि चुकाना
चाहता था
बैंकों को 9000 करोड़ का चूना लगाने वाले भगोड़े विजय माल्या ने 7 दिसम्बर 2017
के दिन अपने अधिवक्ता के जरिये लंदन की कोर्ट को बताया कि, “स्टेट बैंक की अध्यक्षता वाले बैंकों को 2016 में बकाया राशि का 80 फीसदी हिस्सा चुकाने की ऑफर मैंने की थी। हालांकि बैंकों ने ही इस
ऑफर को नकार दिया था।” वैसे माल्या का यह दावा कोरा मजाक लग सकता है, लेकिन माल्या ने यह दावा लंदन
की अदालत में किया था, लिहाजा कुछ तो पेंच हो सकते थे। और निकला भी यही। भारत सरकार
की ओर से क्राउन प्रॉसीक्यूशन सर्विस ने कहा कि, “ऑफर मिला था और उसे नकारा गया। लेकिन ऑफर इसलिए नकारा
गया, क्योंकि हम पूरी राशि वसूलना चाहते थे।” माल्या के वकील ने दलील देते हुए आरोप लगाया कि हम 4,400
करोड़ की राशि चुकाना चाहते थे, किंतु राजनीतिक दबाव के चलते बैंकों ने यह ऑफर रिजेक्ट किया होगा। बदले में भारत सरकार की ओर से सीपीएस अधिवक्ता मार्क समर्स ने
बताया कि, “भारतीय
बैंकों को पता था कि यह ऑफर अप्रमाणिक व्यक्ति की ओर से आई है। उनके पास पूरी राशि
चुकाने की क्षमता थी लेकिन वे पूरी राशि चुकाना नहीं चाहते थे। इसीलिए बैंकों ने
यह ऑफर रिजेक्ट किया था।”
वैसे बैंकों के ऐसे मामलों में सुना और पढ़ा है कि बैंक किश्तों में भी राशि लेकर
मामले को जितना छोटा कर सके उतना कर देते हैं। लेकिन यहां बैंकों ने कथित रूप से पूरी
राशि के चक्कर में माल्या को मालामाल ही कर दिया था!!! दूसरे ऐसे जितने मामले लंबित
हैं उनमें भी यही हुआ हो तब तो शायद माल्या से प्रेरणा लेने में कइयों को दिक्कत नहीं होगी। बशर्ते, बैंकों वाले भी कुछ प्रेरणा ले ले।
माल्या मामला, लंदन कोर्ट में भारत की मुख्य जांच संस्था
सीबीआई पर सुनवाई के दौरान सवाल उठाए गए
विजय माल्या के प्रत्यर्पण मामले में सुनवाई के दौरान भारत सरकार की ओर से अभियोजन
पक्ष ने बचाव पक्ष के सबूतों की धज्जियां उड़ा दीं। क्राउन प्रॉसीक्यूशन सर्विस (सीपीएस)
ने 12 दिसम्बर 2017 को अदालत में माल्या के पक्ष में पेश राजनीतिक विशेषज्ञ के दावे
को खारिज कर दिया। बचाव पक्ष ने दोषपूर्ण सबूत पेश करने के लिए सीबीआई और प्रवर्तन
निदेशालय पर सवाल उठाया था। माल्या को भारत भेजने के लिए वेस्टमिंस्टर मजिस्ट्रेट कोर्ट
में सुनवाई पांचवें दिन भी जारी रही। इसमें आरोपी के पक्ष में राजनीतिक विशेषज्ञ लॉरेंस
सीज को पेश किया गया। सीज ने भारतीय राजनीतिक व्यवस्था पर अपनी राय दी। उन्होंने सीबीआई
की निष्पक्षता, खास कर उसके विशेष निदेशक राकेश अस्थाना की नियुक्ति पर सवाल उठाया।
उन्होंने सुप्रीम कोर्ट द्वारा सीबीआई को ‘अपने मालिकों की जुबान बोलने वाले पिंजरे का तोता’ कहे जाने का भी ज़िक्र किया। इस पर भारत सरकार का पक्ष रखने वाले मार्क समर्स ने
1997 के सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का ज़िक्र किया और जोर देकर कहा कि उस फैसले से केंद्रीय
सतर्कता आयोग (सीवीसी) का गठन हुआ, जो स्वतंत्र रूप से सीबीआई पर निगरानी रखता है।
माल्या का बचाव कर रहे वकीलों की दलील रही कि भारत सरकार की ओर से उनके खिलाफ लगाए
गए धोखाधड़ी के आरोपों के कोई साक्ष्य नहीं हैं। सुनवाई के दूसरे दिन माल्या की वकील
क्लेयर मोंटगोमेरी ने अपनी दलीलें रखते हुए कहा कि माल्या के खिलाफ धोखाधड़ी के कोई
साक्ष्य नहीं हैं। इससे पहले 12 दिसम्बर 2017 को भारत सरकार की ओर से कोर्ट में बहस करते
हुए क्राउन प्रॉसीक्यूशन सर्विस (सीपीएस) ने कहा था कि शराब कारोबारी के खिलाफ धोखाधड़ी
का मामला बनता है, जिसका उन्हें जवाब देना है।
वहीं मोंटगोमेरी का दावा यह रहा कि सीपीएस की ओर से भारत सरकार के निर्देश पर जो
साक्ष्य पेश किए गए हैं, उनसे लगता है कि फ्रॉड की राशि शून्य है। यह भारत सरकार की ओर
से बड़ी नाकामी है। उन्होंने कहा कि भारत सरकार के पास इस मामले का समर्थन करने के
लिए विश्वसनीय तर्क नहीं है कि माल्या ने धोखे से कर्ज लिया और उनका कर्ज चुकाने का
कोई इरादा नहीं है, क्योंकि घाटे में चल रही किंगफिशर एयरलाइंस को लाभ का अनुमान
भरोसा करने लायक नहीं है।
विजय माल्या के कर्ज के बारे में हमारे पास सूचना नहीं है - वित्त
मंत्रालय ने सूचना आयोग से कहा, जबकि सरकार इससे पहले संसद में माल्या के कर्ज के
बारे में जानकारी दे चुकी थी
विजय माल्या को लेकर वित्त मंत्रालय ने केंद्रीय सूचना आयोग से कहा कि, “उसके पास उद्योगपति विजय माल्या को दिये गए कर्ज के बारे में
सूचना नहीं है।” इस पर सूचना
आयोग ने कहा कि, “मंत्रालय का
जवाब ‘अस्पष्ट और कानून के अनुसार टिकने योग्य’ नहीं है।” मुख्य सूचना आयुक्त आरके माथुर ने राजीव कुमार खरे के आवेदन पर सुनवाई करते हुए
वित्त मंत्रालय के अधिकारी से कहा कि आवेदक द्वारा दिए गए आवेदन को उचित लोक प्राधिकारी
को स्थानांतरित किया जाए।
गजब तो यह था कि वित्त मंत्रालय के अधिकारी भले ही दावा करें कि उनके पास माल्या
को विभिन्न बैंकों द्वारा दिये गए कर्ज या इन कर्ज के बदले में माल्या द्वारा दी गई
गारंटी के बारे में सूचना नहीं है, लेकिन मंत्रालय ने अतीत में इस संबंध में सवालों का संसद में
जवाब दिया था!!! केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री संतोष गंगवार ने 17 मार्च 2017 को माल्या
पर एक सवाल का जवाब देते हुए कहा था कि जिस व्यक्ति के नाम का उल्लेख किया गया (माल्या
को) उसे 2004 में कर्ज दिया गया और फरवरी 2008 में उसकी समीक्षा की गई। उन्होंने कहा
था, “साल 2009 में
8,040 करोड़ रुपये के कर्ज को एनपीए घोषित किया गया और 2010 में एनपीए को रिस्ट्रक्चर
किया गया।” गंगवार ने
21 मार्च 2017 को राज्यसभा में कहा था कि, “पीएसबी ने जैसा रिपोर्ट किया, कर्ज अदायगी में चूक
करने वाले कर्जदार विजय माल्या की संपत्ति जब्त की गई। संपत्तियों की मेगा ऑनलाइन नीलामी के
जरिये बिक्री करके 155 करोड़ रुपये की रकम वसूल की गई है।”
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 17 नवंबर 2016 को नोटबंदी पर उच्च सदन में चर्चा के
दौरान माल्या के कर्ज मुद्दे को ‘भयानक विरासत’ बताया था। गजब ही कहिए कि सरकार सदन में कर्ज के बारे में
जानकारी देती है, वित्तमंत्री बयान देते हैं, लेकिन आरटीआई में मंत्रालय कहता है कि
उसके पास कोई सूचना नहीं है!!!
विजय माल्या का साप्ताहिक भत्था बढ़ा, फरार घोटालेबाज का ऐसो-आराम
फरवरी 2018 के मध्यकाल में खबरें आई कि ब्रिटेन के हाईकोर्ट ने विजय माल्या को
मिलनेवाले साप्ताहिक गुजारा भत्थे में 3 गुना से ज्यादा का इज़ाफ़ा कर दिया है। अब तक
माल्या को प्रति सप्ताह 5,000 पाउंड मिलते थे, अब उसे प्रति सप्ताह 18,000 पाउंड
मिलने वाले थे। भारतीय मूल्य में प्रति सप्ताह करीब 16 लाख रुपये!!! माल्या के वकीलों ने भत्था बढ़ाने के लिए अपील की थी। 30
जनवरी 2018 के दिन जस्टिस रोबिन नोल्से ने विजय माल्या का साप्ताहिक भत्था
18,325.31 पाउंड करने का आदेश दिया। बताइए, इधर भारत में किसानों की आमदनी 2022 तक
दोगुनी होगी या नहीं होगी इसकी आशंकाएं पसरी हुई थी। दर्ज करे कि किसानों की आमदनी
दोगुनी होना मतलब महज कुछेक हज़ार रुपये सालाना बढ़ना। दूसरी तरफ उधर देश की बैंकों को चूना लगाने वाला आरोपी ऐसो-आराम प्राप्त किए जा रहा था, वो भी कानूनन!!!
घोटालेबाज की खातिरदारी के लिए थ्री स्टार जेल के सबूत
भेजने पड़ गए
आखिरकार एक दिन वो भी आया जब भारत सरकार विदेशी सरकार को अपने जेल की तस्वीर
भेजने को विवश हुई, ताकि विजय माल्या जेसे घोटालेबाज महानुभाव की खातिरदारी की
तमाम तैयारियां पुख्ता की जा सके। बताइए, जिन अंग्रेजों ने गंदे जेलों में
क्रूरतापूर्वक हमारे स्वातंत्रसेनानियों को रखा था उसी अंग्रेजों के सामने तस्वीरें न चली तो आखिर में वीडियो तक भेजने पड़ रहे थे!!!
(इंडिया इनसाइड, मूल लेखन 4 जनवरी 2017, एम वाला)
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