पार्टी पोर्टेबिलिटी को हमारे नेताओं ने मोबाइल वाली पोर्टेबिलिटी से भी ज्यादा
इस्तेमाल किया है। राजनीति में जनसेवा और सत्ता की दौड़ के बीच कौन जीतता है और कौन
हारता है इसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। मोबाइल में एमएनपी करवाने के लिए कुछ
चार्जेस देने होते हैं, राजनीति में किसी पार्टी के नेता को अपना एमएनपी करवाने के
लिए कितने चार्जेस देने पड़ते हैं या कितने चार्जेस मिलते हैं इसके बारे में मुझे कोई
जानकारी नहीं है। इसकी जानकारी खुद ही लगा लीजिएगा।
राजनीति में गठबंधन
और दल-बदलू वाली घटनाओं पर हम पहले ही लेख लिख चुके हैं। हमारे नेताओं की अथक मेहनत
की बदौलत आगे भी लिखते रहेंगे। यह “जनसेवा की दौड़” है। इन सभी दलों
या नेताओं की “जनसेवा तत्परता” अभिभूत कर देती है। हमारे राजनेता कहते आये हैं कि राजनीति देश की सेवा के
लिए है। और इस सेवा के लिए वो इस कदर तत्पर है कि कभी भी दल बदल सकते हैं, बंधन
भी हो सकते हैं, पैसे पानी की तरह बहाये जाते हैं, टिकट को लेकर तोड़फोड़ होती है,
विरोध होता है, प्रदर्शन होते हैं, भाषा की मर्यादाएँ लांधी जाती हैं, आगजनी होती है!!! उनकी जनसेवा करने की इस कदर तत्परता देखकर दिल को अजीब सुकून मिलता है। “ऐसी सेवा... जिसे कोई अपने हाथ से जाने देने के लिए तैयार ही नहीं!!!”
वैसे इसे आईपीएल इसलिए कहा, क्योंकि वहां भी हर साल टीम एक होती है, लेकिन खिलाड़ी बदल दिए जाते
हैं। राजनीति में भी यही हाल है। दल स्थायी रहता है, सदस्य आते-जाते रहते हैं।
क्रिकेट वाले आईपीएल में भी हर टीम खुद का प्रेजेंटेशन या मार्केटिंग करके लोगों के
दिलो-दिमाग पर छा जाने की चेष्टाओं में प्रवृत्त रहती है, राजनीति वाले आईपीएल में भी
राजनीतिक दलों में यही चीज़ दिखती है। कुल मिलाकर दोनों के इश्तेहार टीवी और शहरों की
सड़कों पर छाये रहते हैं। क्रिकेट वाले आईपीएल में टीम को भी बैन कर दिया गया था, राजनीति
में भी ऐसे सैकड़ों दल बने थे, जिन्हें रद्द कर दिया गया था। क्रिकेट वाले आईपीएल में कमेंटेटर और राजनीति वाले आईपीएल में एंकर की जो समानता ठीक लगे कर लीजिएगा!!! इन दोनों आईपीएल की समानता दिलचस्प सी है, लेकिन उस पर अलग से लिख लेंगे। एक
समानता से अंत करके विषय की ओर लौट जाते हैं। आखिरी समानता यही कि वहां दर्शक और
चीयरलीडर्स होते हैं... यहां भी यही हाल है!!!
लोकसभा चुनाव 2019
में दलबदलू नेताओं ने खूब सुर्खियां बटोरी है। चुनावी मौसम में अपनी राजनीतिक सेहत
के हिसाब से नेताओं ने अपने दल बदले हैं। किसीने टिकट नहीं मिलने से नाराज होकर दूसरी
पार्टी का दामन थाम लिया, तो किसीने मौजूदा पार्टी में मतभेद के कारण किसी और
पार्टी के झंडे को थाम लिया। अमूमन हर चुनाव में कुछ नेता एक दल से दूसरे दल की तरफ
रुख कर लेते हैं। इस बार के चुनाव में भी कई दिग्गज नेताओं ने अपनी पुरानी पार्टी
का साथ छोड़कर नई पार्टी में अपनी राह तलाशना शुरू कर दिया, तो किसीकी अपनी पुरानी
पार्टी में घर वापसी हो गई। सूची तो लंबी है, लेकिन हम इस लेख में दिग्गज नेताओं की
ही बात कर लेते हैं।
बात शुरू करने से
पहले यह ज़रूर नोट करे कि इन दल-बदलू नेताओं को उतना दोष ना दे। क्योंकि इनसे ज्यादा
दोगले तो हम नागरिक होते हैं। हम सुबह जिसे गालियां दे रहे होते हैं, शाम को उसे हार
पहनाने से कभी परहेज नहीं किया करते। नागरिक
और नेता, इन दोनों के साइलेंट एग्रीमेंट से ही यह पूरा प्रोसेस चल रहा है और चलता
रहेगा। लेकिन दोगलेपन के अवॉर्ड पर यकीनन नेताओं और हम नागरिकों के बीच जमकर मुकाबला
समझा जाना चाहिए। चलिए, बात करते हैं 2019 के दिग्गज दल-बदलूओं की...
शॉटगन शत्रुघ्न सिन्हा
शत्रुघ्न सिन्हा
इस बार पटना साहिब से लोकसभा चुनाव कांग्रेस के टिकट पर लड़ रहे हैं। उन्होंने 2014
का लोकसभा चुनाव भाजपा के टिकट पर लड़ा था। लेकिन केंद्र में मोदी सरकार के आने के
बाद से वो अपने बागी तेवर से भाजपा और मोदी सरकार की कार्यशैली पर लगातार सवाल
उठाते रहे थे। जिसकी वजह से भाजपा ने उन्हें टिकट नहीं दिया। इसके बाद उन्होंने
कांग्रेस का दामन थाम लिया। यहां उनके सामने भाजपा उम्मीदवार रविशंकर होंगे।
दलित नेता और सांसद उदित राज
इस बार मौजूदा
सांसद उदित राज ने भी भाजपा को अलविदा कह दिया। इन्होंने तो बीच चुनाव में ही अपना
एमएनपी करवा लिया। भाजपा से टिकट न मिलने के बाद पश्चिमी दिल्ली से सांसद उदित राज
ने अपनी नाराजगी जाहिर करने के बाद कांग्रेस पार्टी का हाथ थाम लिया। भाजपा ने इस
सीट से गायक हंसराज हंस को टिकट देकर सभी को चौंका दिया।
प्रखर वक्ता और सौम्य छवि प्रियंका चतुर्वेदी
इस चुनाव में
प्रियंका चतुर्वेदी कांग्रेस पार्टी से इस्तीफ़ा देकर शिवेसेना में शामिल हो
गईं। प्रियंका ने कांग्रेस पर ये आरोप लगाते हुए पार्टी छोड़ी कि उनके साथ हुई
में शामिल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं पर कांग्रेस पार्टी ने कोई कार्रवाई
नहीं की। वजहें और भी होगी, यूं ही कोई एमएनपी नहीं करवाता। बहरहाल, मौका देख शिवसेना
ने पहल की और प्रियंका को अपने पाले में कर लिया। प्रियंका की छवि प्रखर वक्ता और
सौम्य नेता की रही थी।
पूर्व केंद्रीय मंत्री सुखराम
2019 चुनाव में
पूर्व केंद्रीय मंत्री सुखराम ने भाजपा का दामन छोड़कर कांग्रेस का हाथ थाम लिया।
वो अपने पोते आश्रय शर्मा के साथ कांग्रेस में शामिल हो गए। सुखराम ने इसे अपनी ‘घर वापसी' बताते हुए कहा कि कांग्रेस में
बुजुर्गों का सम्मान है। सुखराम को टेलीकॉम घोटाले में नाम आने के बाद कांग्रेस से
निकाल दिया गया था। फिर इन्हें भाजपा ने स्वीकार कर लिया था। सीबीआई द्वारा उनके
आधिकारिक आवास से 3.6 करोड़ रुपये जब्त करने के 15 साल बाद साल 2011 में उन्हें
दोषी ठहराया गया था।
वरिष्ठ नेता टॉम वडक्कन
2019 चुनाव में
कांग्रेस पार्टी को करारा झटका उस वक्त लगा जब वरिष्ठ नेता टॉम वडक्कन पार्टी
छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए। उन्होंने कहा कि पार्टी के रवैये की वजह से पार्टी
छोड़ने के अलावा कोई रास्ता नहीं रह गया था। टॉम दिल्ली में केंद्रीय मंत्री
रविशंकर प्रसाद की मौजूदगी में बीजेपी में शामिल हुए। वडक्कन ने पुलवामा आतंकी
हमले के बाद वायु सेना के हवाई हमले पर अपनी पूर्व पार्टी के रुख को लेकर उस पर
निशाना साधा था।
नेता प्रतिपक्ष के पुत्र सुजय विखे पाटिल
महाराष्ट्र में भी
कांग्रेस को तगड़ा झटका लगा जब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और नेता प्रतिपक्ष
राधाकृष्ण विखे पाटिल के बेटे सुजय विखे पाटिल कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल
हो गए। वैसे 2014 से कांग्रेस को इतने झटके लगे थे कि उनके लिए यह आसान होगा।
लेकिन लोकसभा चुनाव सिर पर हो तब यह बड़ी बात तो थी ही।
सांसद सौमित्र खान
लोकसभा चुनाव से
ठीक पहले तृणमूल कांग्रेस को झटका देते हुए सांसद सौमित्र खान पिछले
दिनों भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए थे।
सांसद सावित्री बाई फुले
भाजपा से पाला
बदलकर सांसद सावित्री बाई फुले ने कांग्रेस का दामन थाम लिया। कांग्रेस ने उन्हें
उत्तर प्रदेश की बहराइच लोकसभा सीट से मैदान में उतारा।
सांसद राम चरित्र निषाद
2019 का चुनाव के समय एक तरफ
जहां भारतीय जनता पार्टी ने गोरखपुर में सपा को झटका दिया, वहीं जवाब में सपा ने भी
भाजपा को झटका दिया। भाजपा सांसद राम चरित्र निषाद सपा में शामिल हो गए। सपा-बसपा
गठबंधन ने उन्हें मिर्जापुर से गठबंधन का प्रत्याशी घोषित किया।
कद्दावर नेता राकेश सचान
समाजवादी पार्टी
के कद्दावर नेता व पूर्व सांसद राकेश सचान ने अपनी ही पार्टी के खिलाफ बगावत कर
कांग्रेस का हाथ थाम लिया। राकेश सचान मुलायम सिंह और शिवपाल के करीबी माने जाते
हैं।
पूर्व नेता कैशर जहां
सीतापुर से बहुजन
समाज पार्टी की पूर्व नेता कैशर जहां कांग्रेस में शामिल हो गईं। बताया गया कि
उन्होंने लोकसभा का टिकट नहीं मिलने से नाराज होकर बसपा छोड़ी।
पूर्व क्रिकेटर और सांसद कीर्ति आजाद
भाजपा से लंबे समय
नाराज चल रहे कीर्ति आजाद ने आखिरकार इस चुनाव में कांग्रेस का दामन थाम लिया।
कांग्रेस ने उन्हें झारखंड की धनबाद लोकसभा सीट से चुनावी मैदान में उतारा। अरुण
जेटली के खिलाफ मोर्चा खोलने के बाद इनका जाना तय माना जा रहा था।
पूर्व नेता जय पांडा
बीजेडी के पूर्व
नेता जय पांडा ने इस बार नवीन पटनायक को बड़ा झटका देते हुए बीजेपी का दामन थाम
लिया। नवीन पटनायक से मतभेद की वजह से उन्हें पार्टी से निलंबित कर दिया गया था।
इसके बाद उन्होंने भाजपा का दामन थाम लिया।
पूर्व अभिनेत्री और सांसद जया प्रदा
समाजवादी पार्टी
की पूर्व नेता व रामपुर की पूर्व सांसद जया प्रदा इस बार सपा का दामन छोड़ भाजपा
में शामिल हो गईं। भाजपा ने उन्हें रामपुर से ही सपा नेता आजम खान के खिलाफ चुनावी
मैदान में उतारा। यहां आजम खान ने उनके खिलाफ विवादित बयान भी दिया, जिसके कारण
उन पर 48 घंटे तक प्रचार से रोकने का प्रतिबंध भी लगा।
नेता दानिश अली
जेडीएस के नेता
दानिश अली ने जनता दल सेकुलर को छोड़ कर कुमार स्वामी और उनके पिता एचडी
देवेगौड़ा को तगड़ा झटका दिया। दानिश मायावती की पार्टी बसपा में शामिल हो गए।
वरिष्ठ चेहरा अवतार सिंह भड़ाना
इस बार सीनियर
नेता अवतार सिंह भड़ाना ने भाजपा का साथ छोड़कर कांग्रेस का हाथ थाम लिया। भाजपा
से अवतार सिंह भड़ाना के अलग होने की असल वजह यूपी में गुर्जरों की अनदेखी के तौर
पर देखा गया। हालांकि उनके साथ पार्टी बदलने का इतिहास जुड़ा हुआ है।
पूर्व सांसद अरविंद शर्मा
लोकसभा चुनाव 2019
से ठीक पहले हरियाणा कांग्रेस के कद्दावर नेता और करनाल के पूर्व सांसद अरविंद
शर्मा भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए। इस दौरान उन्होंने कहा कि काफी
सोच-विचार कर अपनी आत्मा की आवाज पर भाजपा में शामिल होने का फैसला किया है। इससे
पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से मिलकर अपनी इच्छा
व्यक्त कर चुके हैं और उनके आभारी हैं कि उन्हें भाजपा में काम करने का अवसर मिला।
क्या पता कि आगे इसमें और भी बड़े चेहरे जुड़ते चले जाए। लेकिन इन नेताओं को घबराने
की ज़रूरत नहीं। क्योंकि हमारे यहां नेता लोगों को धोखा देते हैं, लोग नेताओं को नहीं।
नेताओं का एमएनपी तो ठीक है, चुनाव के नतीजे आने के बाद समूची पार्टी ही यहां से वहां एमएनपी करवा लेगी। क्या पता आज जो किसी पार्टी के खिलाफ है, कल उनके साथ हो या फिर आज
जो साथ है वो साथ छोड़ दे। जो एकदूसरे के खिलाफ आज आग उगल रहे हैं, कल ठंडे कमरे में
एकसाथ बैठकर सरकार चलाने का जुगाड़ कर रहे होंगे। वैसे इन नेताओं को जाकर कोई बोल दो
कि चुनाव वही लोग नहीं लड़ रहे, हमारे यहां नुक्कड़ों पर, गलियों में, पान की दुकानों पर
भी लोग एकदूसरे के साथ यही बोलकर लड़ रहे हैं कि अबे ये आएगा... अबे वो आएगा।
(इंडिया इनसाइड,
एम वाला, फोटो सोर्स- अमर उजाला)
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