भले ही अन्ना हजारे को एक बड़ा तबका अब नापसंद किया करता है, लेकिन इन्होंने कहा
था कि जेल जाना दूषण नहीं है, भूषण है। लेकिन शर्त यह थी कि अगर समाजहित के लिए
जेल-यात्रा हो तभी वो भूषण है। हमारे महान नेता किन किन वजहों से जेल गए यह तो सबको
पता ही होगा। समाज का हित नहीं बल्कि अहित किया तभी अदालतों ने इन्हें जेल भेजा।
लेकिन ‘राजनीति और लोगों की नीति का मेल’ देखिए। नेता जेल
में जाना जेल-यात्रा सरीखा दिखाने लगे, जैसे कि तीर्थ-यात्रा करके आए हो! क्यों न दिखाते भला? क्योंकि लोग इन
नेताओं को वैसा ही सम्मान देते दिखे, जैसे वो सचमुच तीर्थ-यात्रा करके आया हो!
अदालत ने कड़े
फैसले दिए लेकिन हुआ क्या? लोगों ने कहा कि
भले अदालत हमारे नेता को जेल भेज दे, बेल पर आने के बाद हम इन्हें लोकतंत्र के मंदिर
में ज़रूर भेजेंगे! और फिर शाम का खाना खाने के बाद लोग
नुक्क्ड़ या चौराहों पर बैठकर यह भी कह लेते हैं कि देश बहुत पीछे जा रहा है, नेताओं में भ्रष्टाचार बहुत है!!! अदालतों ने ऐसे
नेताओं को जेल भेजा, लेकिन चुनावों में अदालतें मतदान थोड़ी न करने आई थी? मतदान करके इन्हें लोकतंत्र के मंदिर में लोगों ने ही तो भेजा होगा। बावजूद इसके
नुक्कड़ों-चौराहों पर यही घिसी पीटी लाइनें आपको सुनने मिल जाएगी! बताइए, दोगलेपन का ऑस्कर नेता को मिले या हम नागरिकों को?
चलिए, देखते हैं उन
घटनाओं को, उन नेताओं को, जिन्हें अदालत ने जेल भेजा। समाजहित के लिए नहीं बल्कि समाज
के अहित के लिए! (इनमें बड़े नामों की जेल-यात्रा का ही
ज़िक्र है, लिहाजा अन्य सैकड़ों जेल-यात्राओं का विवरण ना मिले तो इसे समाज का अहित
मत मानिएगा)
भारतीय राजनीति की दुर्गा इंदिरा गांधी को भी जाना पड़ा था जेल
1978 में पूर्व प्रधानमंत्री
इंदिरा गांधी को जेल जाना पड़ा था। 19 दिसंबर,
1978 को संसद की कार्यवाही से इंदिरा गांधी को निलंबित कर दिया
गया था। तत्कालीन मोरारजी देसाई सरकार ने इसके बाद उन्हें संसद के सत्र जारी रहने तक
के लिए जेल भेज दिया था। उन पर संसदीय विशेषाधिकार के हनन का आरोप था। इंदिरा संसद
भवन में गिरफ्तारी के आदेश मिलने तक टिकी रहीं। आखिरकार रात के 8 बजकर 47 मिनट पर उन्हें
स्पीकर के दस्तखत वाला गिरफ्तारी आदेश दिया गया। गिरफ्तारी के बाद वह संसद के उसी दरवाजे
से बाहर निकलीं, जहां से वह प्रधानमंत्री की हैसियत से बाहर निकला करती थीं। इस गिरफ्तारी के बाद
तकरीबन हफ्ते भर तक इंदिरा गांधी दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद रही थीं। उन्हें तिहाड़
जेल के वार्ड नंबर 19 में रखा गया था।
बात क्या थी वो
सभी को ज्ञात ही होगा। भारतीय राजनीति के इतिहास में इस मुकदमे को 'इंदिरा गांधी बनाम
राजनारायण' के नाम से जाना जाता है। 1971 के लोकसभा चुनावों में रायबरेली की इस सीट पर एक लाख
से ज़्यादा वोटों से हारने के बाद राज नारायण ने इंदिरा पर सरकारी मशीनरी का दुरूपयोग
करने, वोटरों को खरीदने और चुनाव में धांधली कराने का आरोप लगाया था। नतीजे जारी होने
के कुछ दिनों बाद राज नारायण ने इंदिरा गांधी के निर्वाचन के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट
में एक अर्जी भी दाखिल की और अदालत से उन्हें अयोग्य घोषित किये जाने की मांग की। राज
नारायण ने यह याचिका 15 जुलाई, 1971 को दाखिल की थी। इस अर्जी पर सबसे पहले जस्टिस लोकुर ने
सुनवाई की थी। बाद में यह मामला जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा की बेंच में ट्रांसफर हो
गया। साढ़े तीन साल तक चली सुनवाई के बाद जस्टिस सिन्हा ने जब राज नारायण द्वारा लगाए
गए तमाम आरोपों को सच के करीब पाया तो उन्होंने प्रतिवादी बनाई गई तत्कालीन प्रधानमंत्री
इंदिरा गांधी को समन जारी कर उन्हें 18 मार्च 1975 को कोर्ट में तलब कर लिया। भारत
के इतिहास में यह पहला मौका था जब किसी तत्कालीन प्रधानमंत्री को अदालत ने समन जारी
किया और उन्हें कोर्ट में पेश होना पड़ा।
न्यायमूर्ति जगमोहनलाल
सिन्हा ने अपने ऐतिहासिक निर्णय में श्रीमती गांधी की जीत को अवैध करार दिया और उन्हें
6 वर्ष के लिए चुने हुए पद पर आसीन होने से रोक लगा दी। 12 जून 1975 के दिन इंदिरा
को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने चुनाव में धांधली का दोषी पाया और छह साल के लिए पद से बेदखल
कर दिया। इंदिरा गांधी पर चुनाव संबंधी धांधली के 14 आरोप लगे थे, जिसमें वोटरों को घूस
देना, सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग, सरकारी संसाधनों का दुरुपयोग आदि आरोप शामिल थे।
जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने इस मामले पर अपना फैसला सुनाया। नानाभाय पाल्खीवाला इंदिरा
गांधी के वकील थे। तो वहीं राज नारायण के वकील शांति भूषण थे।
तमिलनाडु की दिग्गज नेता जयललिता को भी जाना पड़ा था जेल
आय से अधिक की संपत्ति
अर्जित करने के मामले में प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट, यानी पीसीए के तहत विशेष अदालत
ने जयललिता, शशिकला, जेएलवअरासी और व्ही. सुधाकरन को दोषी करार देते हुए सज़ा सुनाई थी। इस मामले में जयललिता को जेल जाना पड़ा था। जयललिता पर कोई सरकारी पद लेने तथा 6 साल तक चुनाव लड़ने
की पाबंदी लग गई थी। नतीजतन उन्हें सीएम की कुर्सी छोड़नी पड़ी थी। जयललिता पर आरोप
था कि वर्ष 1991 से 1996 के दौरान तमिलनाडु की सीएम रहते हुए उन्होंने 66.65 करोड़
की संपत्ति अर्जित की और यह उनके आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक थी। 18 सितम्बर 1996
के दिन आय से अधिक संपत्ति के मामले में एफआईआर दर्ज हुई और जांच शुरु की गई। 27 सितंबर
2014 के दिन विशेष अदालत ने अपने फैसले में जयललिता और शशिकला समेत तीन को दोषी ठहराया।
जयललिता को 4 साल की जेल और 100 करोड़ रुपए के जुर्माने की सज़ा सुनाई गई। इस मामले
में उनकी नजदीकी नेता शशिकला को उकसाने और साजिश रचने की दोषी करार दिया गया था।
हालांकि 11 मई
2015 के दिन कर्नाटक हाईकोर्ट ने जयललिता, शशिकला समेत सभी को बरी कर दिया। इसके
बाद सुप्रीम कोर्ट में कर्णाटक सरकार ने अर्जी दायर की। 7 जून 2016 के दिन जयललिता के
खिलाफ आय से अधिक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित किया। लेकिन इस
बीच 5 दिसंबर 2016 के दिन लंबी बीमारी के बाद तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता का चेन्नई
की एपोलो अस्पताल में निधन हो गया। 14 फ़रवरी 2017 के दिन सुप्रीम कोर्ट ने इस
मामले में अपना फैसला सुनाया और जयललिता के निधन के बाद तमिलनाडु की सीएम बनने जा
रही शशिकला और अन्य अभियुक्तों को मामले में अपराधी माना और उन्हें जेल भेजने का आदेश
सुनाया।
चारा घोटाला में लालू को जेल, सुप्रीम कोर्ट ने आपराधिक मुकद्दमा चलाने का
दिया था आदेश
1997 में सीबीआई ने
चारा घोटाला मामले में आरोप-पत्र दाखिल किया तो लालू यादव को मुख्यमन्त्री पद से हटना
पड़ा। अपनी पत्नी राबड़ी देवी को सत्ता सौंपकर लालू राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष बन
गए और अपरोक्ष रूप से सत्ता की कमान अपने हाथ में रखी। चारा घोटाला मामले में लालू
यादव को जेल भी जाना पड़ा और वे कई महीने तक जेल में रहे भी। लगभग 17 साल तक चले इस
मुकदमे में सीबीआई की स्पेशल कोर्ट के जज प्रवास कुमार सिंह ने लालू प्रसाद यादव को
वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये 3 अक्टूबर 2013 को 5 साल की कैद व 25 लाख रुपये के जुर्माने
की सज़ा सुनाई।
यादव और जदयू नेता
जगदीश शर्मा को घोटाला मामले में दोषी करार दिये जाने के बाद लोकसभा से अयोग्य ठहराया
गया। इसके कारण राँची जेल में सज़ा भुगत रहे लालू प्रसाद यादव को लोक सभा की सदस्यता
भी गंवानी पड़ी। चुनाव आयोग के नये नियमों के अनुसार लालू प्रसाद अब 11 साल (5 साल
जेल और रिहाई के बाद के 6 साल) तक लोकसभा चुनाव नहीं लड़ सकते थे। सुप्रीम कोर्ट ने
चारा घोटाला में दोषी सांसदों को संसद की सदस्यता से अयोग्य ठहराये जाने से बचाने वाले
प्रावधान को भी निरस्त कर दिया था। लोकसभा के महासचिव एस बालशेखर ने यादव और शर्मा
को सदन की सदस्यता के अयोग्य ठहराये जाने की अधिसूचना जारी कर दी। लोकसभा द्वारा जारी
इस अधिसूचना के बाद संसद की सदस्यता गंवाने वाले लालू प्रसाद यादव भारतीय इतिहास में
लोकसभा के पहले सांसद बने, जबकि जनता दल यूनाइटेड के एक अन्य नेता जगदीश शर्मा दूसरे, जिन्हें 10 साल के
लिए अयोग्य ठहराया गया।
8 मई 2017 के दिन 950 करोड़ रुपये के चारा घोटाला मामले में
आरजेडी प्रमुख लालू यादव और अन्य पर से आपराधिक साजिश और अन्य धाराएँ हटाये जाने के
खिलाफ सीबीआई की दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया था। सुप्रीम कोर्ट
ने अपने फैसले में लालू यादव पर इस मामले में आपराधिक साजिश का केस चलाने की इजाज़त
दी थी। कोर्ट ने 9 महीनों में सुनवाई पूरी करने का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने
कहा कि चारा घोटाले से जुड़े अलग अलग मामले चलते रहेंगे। इस मामले में लालू यादव समेत
45 अन्य नेताओं पर मामला चलाने का आदेश दिया गया था।
23 दिसम्बर 2017
के दिन चारा घोटाले से जुड़े एक मामले में सीबीआई की विशेष अदालत ने लालू प्रसाद यादव
को दोषी करार दिया। इसी मामले में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा, ध्रुव भगत, विद्यासागर निषाद सहित
6 लोगों को बरी कर दिया गया। जबकि लालू सहित 16 लोगों को अदालत ने दोषी पाया। अदालत
ने 950 करोड़ रुपये के चारा घोटाले से जुड़े देवघर कोषागार से 89 लाख़ 27 हज़ार रुपये की अवैध निकासी के मामले में फैसला सुनाया था। इससे पहले चाईबासा
कोषागार से 37 करोड़ 70 लाख रुपये अवैध ढंग से निकासी करने के चारा घोटाले के एक अन्य
मामले में इन सभी को सज़ा हो चुकी थी। 6 जनवरी 2018 के दिन देवघर कोषागार मामले में
लालू यादव को साढ़े तीन साल की सज़ा सुनाई गई। सीबीआई स्पेशल कोर्ट ने दो मामलों में लालू यादव को 5-5 लाख का जुर्माना भी किया।
लालू प्रसाद को चारा
घोटाला के चाईबासा कोषागार से अवैध निकासी मामले में रांची की अदालत ने 24 जनवरी
2018 को दोषी करार दिया। अदालत ने इस मामले में 56 में से 50 को दोषी करार दिया,
जिसमें लालू प्रसाद यादव और जगन्नाथ मिश्रा भी शामिल थे। जब यह घोटाला हुआ था तब लालू
बिहार के सीएम थे। यह 33.67 करोड़ के घोटाले का मामला था। सज़ा का एलान करते हुए
अदालत ने लालू प्रसाद यादव को 5 साल की सज़ा सुनाई व 10 लाख का जुर्माना लगाया।
दिग्गज नामों की
बात हो तब भारतीय राजनीति में बार-बार जेल जाने के मामले में लालू प्रसाद यादव का रिकॉर्ड शायद ही कोई दूसरा बड़ा नेता तोड़ पाएँ। 6 जनवरी 2018 के दिन चारा घोटाले से
संबंधित देवघर कोषागार मामले में लालू यादव को साढ़े तीन साल की सज़ा सुनाई गई थी। इस
दिन तक का लालू का जेल योग देखे तो वो इससे पहले 200 से ज्यादा दिन तक का कारावास
भुगत चुके थे। 1997 में 35 दिन, 1998 में 73 दिन, 2000 में 11 दिन तथा 1 दिन, 2011 में 23 दिन, 2013 में 2 महीना 10 दिन...। 23 दिसम्बर 2017 के दिन देवधर कोषागार मामले
में उन्हें दोषित ठहराया गया, उसके बाद की गिनती इसमें शामिल नहीं है। कुछ रिपोर्ट के
अनुसार वो शायद 300 से ज्यादा दिन जेल में गुजार चुके थे।
ओमप्रकाश चौटालाः पहले मुख्यमंत्री जिनको हुई जेल
कथित रूप से घड़ियों
की स्मगलिंग के लिए घर से निकाले जाने वाले ओम प्रकाश चौटाला और उनके बेटे अजय चौटाला
को दिल्ली की एक अदालत ने शिक्षक भर्ती घोटाले में 10 साल की सज़ा सुनाई थी। जेल की
सज़ा काट रही चौटाला जोड़ी पर हरियाणा सिविल सेवा में भी फर्ज़ी भर्ती कराने पर मामला
दर्ज हुआ था। जाटों के बड़े नेता देवीलाल के बेटे ओमप्रकाश चौटाला देश के ऐसे पहले
मुख्यमंत्री हैं जिन्हें किसी आरोप में दोषी पाया गया हो। 2 दिसंबर 1989 को देवीलाल का
पुत्र प्रेम तब जागा जब उन्हें केंद्र में उप प्रधानमंत्री का पद मिला और तब उन्होंने
अपने बेटे ओम प्रकाश चौटाला को हरियाणा के मुख्यमंत्री का पद दिया।
जूनियर बेसिक ट्रेंड
शिक्षक भर्ती घोटाले में भ्रष्टाचार और अन्य आरोपों में चौटाला पिता पुत्र और दो आईएएस
अधिकारी समेत 55 लोगों को दोषी ठहराने वाले विशेष सीबीआई न्यायाधीश विनोद कुमार ने
दोषियों को अलग अलग अवधि की जेल की सज़ा सुनाई थी।
शशिकला के सपने हुए थे चकनाचूर, सुप्रीम कोर्ट ने भेज दिया था जेल
तमिलनाडु में अम्मा
के नाम से प्रसिद्ध नेता जयललिता की मृत्यु के बाद उनकी विश्वासपात्र नेता शशिकला
तमिलनाडु की गद्दी संभालने वाली ही थी। शशिकला सीएम तो बनने वाली थी, लेकिन उनके
खिलाफ चल रहा आय से अधिक संपत्ति का मामला उनके लिए रास्ते का बम्प बना हुआ था। 14
फरवरी 2017 के दिन शशिकला का सीएम बनने का सपना टूट गया। आय से अधिक संपत्ति के
मामले में सुप्रीम कोर्ट ने शशिकला को अपराधी माना और 4 सालों के लिए जेल भेजने का
आदेश दे दिया। शशिकला को 10 करोड़ का जुर्माना भी लगा तथा 6 साल के लिए चुनाव में हिस्सा लेने पर पाबंदी लगा दी गई। कोर्ट ने शशिकला को आदेश दिया कि वो तुरंत
सरेंडर करें।
कोर्ट का फैसला
आने के बाद शशिकला ने सरेंडर होने के लिए कुछ वक्त मांगा। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय
ने तीखे और सीधे लफ्जों में कहा कि, “आप को जेल जाना ही पड़ेगा।” सुप्रीम कोर्ट ने
सरेंडर के लिए वक्त की अर्जी खारिज करते हुए कहा कि, “फैसले में सब कुछ स्पष्ट लिखा हुआ है, उसमें एक भी लफ्ज़ का परिवर्तन नहीं होगा।” कोर्ट ने शशिकला को तुरंत सरेंडर करने का आदेश देते हुए उनके वकील से कहा कि,
“आप तुरंत का अर्थ समझते ही होंगे।” गौरतलब है कि शशिकला ने स्वास्थ्य को आधार बनाकर सरेंडर के लिए वक्त मांगा
था। शशिकला की तरफ से सिनियर एडवोकेट केटीएस तुलसी ने अर्जी डाली थी। जस्टिस घोष ने
उन्हें कहा कि, “मुझे आशा है कि आप तुरंत का मतलब समझते
होंगे।”
कोयला घोटाले में मधु कोड़ा दोषी करार
कोयला घोटाले में दिल्ली
की स्पेशल सीबीआई कोर्ट ने झारखंड के पूर्व सीएम मधु कोड़ा को दोषी माना था। सीबीआई
कोर्ट का यह फैसला 13 दिसम्बर 2017 के दिन आया था। सज़ा का एलान 14 दिसम्बर 2017
के दिन होना था। मधु कोड़ा के साथ-साथ पूर्व कोयला सचिव एचसी गुप्ता, झारखंड के पूर्व मुख्य सचिव अशोक कुमार बसु के साथ एक और शख्स को दोषी पाया गया।
सभी लोगों को आपराधिक साजिश रचने और सेक्शन 120बी के तहत दोषी पाया गया। 14
दिसम्बर के दिन अदालत में मधु कोड़ा ने सीबीआई की विशेष अदालत से रहम की अपील की। इसके
पीछे उन्होंने अपनी बेटियां और स्वास्थ्य का तर्क रखा। अदालत ने सज़ा का एलान 16
दिसम्बर 2017 तक टाल दिया। 16 दिसम्बर 2017 को सज़ा का एलान हुआ। मधु कोड़ा को 3 साल
की सज़ा सुनाई गई। साथ ही उन्हें 25 लाख जुर्माना भी देना था। हालांकि, सज़ा के एलान
के तुरंत बाद ही (उसी दिन) कोड़ा तथा अन्य तीन लोगों को अंतरिम जमानत भी मिल गई।
कोड़ा ने इसी दिन सीबीआई कोर्ट के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी। 3 जनवरी 2018
को हाईकोर्ट ने कोड़ा की सज़ा पर रोक लगा दी थी।
इन नेताओं को भी काटनी पड़ी जेल की सज़ा
अमित शाह
देश के गृहमंत्री,
मौजूदा बीजेपी अध्यक्ष और बतौर विधायक लगातार पांच चुनाव जीतने वाले अमित शाह कई मामलों
में आरोपी रहे हैं। इनमें चोरी, अपहरण और हत्या जैसे मामले भी शामिल हैं। सोहराबुद्दीन फर्जी एनकाउंटर केस में
उनकी गिरफ्तारी भी हुई थी और तीन महीने जेल में रहना पड़ा था। तीन महीने के बाद ही
बेल मिल गई थी। इन्हें तड़ीपार किया गया था। हालांकि केंद्र में उनकी सरकार आई इसी
दौर में इन पर लगे सारे मामलों का निबटारा हो चुका था।
पी चिदंबरम
जब अमित शाह को
जेल-यात्रा करनी पड़ी थी तब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी और चिदंबरम मंत्री थे।
वक्त बदला और फिर ठीक इससे उल्टा हुआ। अब की बार पी चिदंबरम को जेल-यात्रा करनी
पड़ी। केंद्र में इस वक्त बीजेपी की सरकार थी और अमित शाह मंत्री थे। चिदंबरम को एयरसेल-मैक्सिस मामले में तथा अपने
पुत्र कार्ति चिदंबरम मामले के चलते कई महीनों तक जेल में रहना पड़ा था। पी चिदंबरम जैसे कदावर नेता का इस कदर जेलगमन बड़ी खबर बना था।
कनिमोझी
डीएमके प्रमुख करुणानिधि
की बेटी और राज्यसभा सांसद कनिमोझी टूजी स्पेक्ट्रम मामले की प्रमुख आरोपियों में से
एक थी। इस मामले में कलिगनर टीवी को फायदा पहुंचाने का उन पर आरोप लगा था। सीबीआई ने
कनिमोझी को गिरफ्तार कर तिहाड़ जेल भेज दिया था। उन पर 200 करोड़ रुपये की हेराफेरी
का आरोप था। 6 महीने की जेल के बाद उन्हें जमानत मिल गई। 21 दिसम्बर 2017 के दिन
पटियाला हाउस कोर्ट की सीबीआई विशेष अदालत ने कनिमोझी समेत 25 आरोपियों को बरी कर
दिया। अदालत ने कहा कि इस मामले को साबित करने के लिए जांच एजेंसी के पास पर्याप्त
सबूत नहीं हैं।
ए राजा
डीएमके नेता एंडीमुत्थु
राजा टूजी घोटाला मामले में मुख्य आरोपी रहे। कथित रूप से 1,76,000 करोड़ के इस बड़े
घोटाले में उन पर टूजी स्पेक्ट्रम के बंटवारे में भेदभाव करने का आरोप था। 15 महीने
जेल की सज़ा काट चुके राजा जमानत पर बाहर ज्यादा रहे। 21 दिसम्बर 2017 के दिन
पटियाला हाउस कोर्ट की सीबीआई विशेष अदालत ने ए राजा समेत 25 आरोपियों को बरी कर दिया।
अदालत ने कहा कि इस मामले को साबित करने के लिए जांच एजेंसी के पास पर्याप्त सबूत
नहीं हैं।
बीएस येदियुरप्पा
बीएस येदियुरप्पा दक्षिण
भारत में बीजेपी के पहले मुख्यमंत्री रहे हैं और बेंगलुरु जमीन घोटाले और खनन समेत अन्य मामलों में मुख्य अभियुक्त रह चुके हैं। आरोप था कि उन्होंने बेंगलुरु में अपने
बेटे को गैरकानूनी ढंग से जमीन आवंटित की थी। लोकायुक्त की रिपोर्ट के मुताबिक अवैध
खनन के चलते कर्नाटक को 1827 करोड़ का नुकसान हुआ था। लोकायुक्त की शिकायत पर जेल काटने
वाले येदियुरप्पा के लिए बाद में ‘अच्छे दिन’ भी आ गए थे और वे दोबारा मुख्यमंत्री बनाए गए।
अमर सिंह
समाजवादी पार्टी के
पूर्व नेता अमर सिंह पर तीन बीजेपी सांसदों को घूस देने का आरोप है। नोट के बदले वोट
कांड में 13 दिन की सज़ा काट चुके अमर सिंह को बाद में जमानत मिल गई थी। अमर सिंह
भारतीय राजनीति में सूटकेस मैन के नाम से ज्यादा जाने गए।
कांग्रेस-बीजेपी-सपा-बसपा-बॉलीवुड-कॉर्पोरेट... इनके रिश्तें हर जगह पाए जाते हैं।
अलादीन के जिन्न की तरह अमर सिंह हर दरवाजे पर जाकर हुकुम मेरे आका बोलते होंगे या
नहीं यह मुझे नहीं पता, लेकिन इन्हें सूटकेस मैन क्यों कहा जाता होगा यह मैट्रिक पास
आदमी भी समझ सकता है।
रशीद मसूद
कांग्रेस के राज्य
सभा सांसद रशीद मसूद मेडिकल भर्ती घोटाले के आरोपी रहे हैं। उन पर आरोप है कि उन्होंने
अपने लाभ के लिए अयोग्य छात्रों को मेडिकल सीटें आवंटित की। 2013 में उन्हें 4 साल
की जेल हुई। वे पहले ऐसे सांसद हैं जिन्हें सुप्रीम कोर्ट ने संसद से बाहर का रास्ता
दिखाया।
सुखराम
पूर्व टेलीकॉम मंत्री
सुखराम पर भ्रष्टाचार के कई आरोप लगे थे। सीबीआई ने 1996 में उनके घर से 3.6 करोड़
रुपये बरामद किए थे। उन पर टेलीकम्युनिकेशन क्षेत्र में अनियमितता बरतने के आरोप थे।
कई मामलों में कोर्ट उन्हें जेल भेज चुकी हैं। कोर्ट ने 2002 में तीन साल की और 2011
में 5 साल की सज़ा सुनाई थी।
बंगारू लक्ष्मण
पूर्व कैबिनेट मंत्री तथा बीजेपी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण पर आर्म्स डील कांड में घूस लेने का आरोप लगा। उन पर आरोप था कि सेना
को रक्षा उपकरण उपलब्ध कराने के लिए उन्होंने एक विदेशी कंपनी से पैसा लिया था। मामले
की जांच में कोर्ट ने उन्हें दोषी पाया और 2012 में उन्हें चार साल की सज़ा सुनाई। 2014
में बेल मिलने के कुछ ही दिनों बाद उनकी मौत हो गई।
शिबू सोरेन
झारखंड मुक्ति मोर्चा
के अध्यक्ष शिबू सोरेन 2004 में मनमोहन सिंह की सरकार में कोयला मंत्री बने, लेकिन चिरूडीह कांड
में गिरफ्तारी का वारंट जारी होने के बाद उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल से 24 जुलाई
2004 को इस्तीफ़ा देना पड़ा। चिरूडीह कांड में 11 लोगों की हत्या हुई थी। शिबू सोरेन
झारखंड के दुमका लोकसभा सीट से छठी बार सांसद चुने गए थे।
सुरेश कलमाड़ी
70,000 करोड़ के राष्ट्रमंडल
खेल घोटाले के मुख्य आरोपियों में से एक सुरेश कलमाड़ी को सीबीआई ने पहले ट्रायल पर
रखा और फिर जेल भेजा। साथ ही उन पर 5
लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया। उन पर कई और मामले भी चल
रहे हैं। 10 महीने जेल में रहने के बाद कलमाड़ी को जमानत मिल गई। कलमाड़ी पुणे से कांग्रेस
सांसद रहे हैं।
वीरभद्र सिंह
हिमाचल प्रदेश के
मुख्यमंत्री रहे वीरभद्र सिंह आय से अधिक संपत्ति के मामले में घिरे और उन्हें जेल भी
जाना पड़ा। बाद में सीबीआई की विशेष अदालत ने उनको जमानत दी, लेकिन जून 2017 के
दौरान सीबीआई की पटियाला हाउस कोर्ट ने वीरभद्र का पासपोर्ट जब्त कर लिया। यानी कि भारत के एक राज्य के सीएम रह चुके ये शख्स अब बिना अदालत की इजाज़त के विदेश नहीं जा
सकते थे। उनके ऊपर आरोप था कि बतौर केंद्रीय मंत्री रहते हुए उन्होंने आय से अधिक
संपत्ति अर्जित की थी। मामले में उनकी पत्नी प्रतिभा, एलआईसी एजेंट आनंद
चौहान, सहयोगी चुन्नी लाल, जोगिंद्र सिंह, प्रेमराज, लवन कुमार रोच, वाकामुल्ला चंद्रशेखर और राम प्रकाश भाटिया नामजद थे।
जगन्नाथ मिश्रा
चारा घोटाला के चाईबासा
कोषागार से अवैध निकासी मामले में रांची की अदालत ने 24 जनवरी 2018 को बिहार के
पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा को दोषी करार दिया। अदालत ने इस मामले में 56 में
से 50 को दोषी करार दिया, जिसमें लालू प्रसाद यादव और जगन्नाथ मिश्रा भी शामिल थे।
यह 33.67 करोड़ के घोटाले का मामला था। जगन्नाथ मिश्रा को भी 5 साल की सज़ा हुई। उन
पर 5 लाख का जुर्माना लगा। मिश्रा ने 5 फरवरी 2018 को रांची की विशेष सीबीआई कोर्ट
में सरेंडर किया। अपनी पत्नी के निधन के बाद उनके श्राद्ध तक डॉक्टर मिश्रा रुके हुए
थे। श्राद्ध करने के उन्होंने रांची की विशेष कोर्ट में आत्मसमर्पण किया। कोर्ट में
डॉक्टर मिश्रा के वकीलों ने उनके खराब स्वास्थ्य का हवाला देते हुए जमानत की याचिका
दायर की लेकिन सज़ा तीन साल से अधिक होने के कारण उन्हें निचली अदालत से जमानत नहीं
मिली।
क्रिमिनल लीडरशिप हो, चुनाव लड़ने के मामले हो या फिर
पारदर्शिता के मसले हो... लोगों को बांटनेवाले सारे बागड़बिल्ले इन मुद्दों पर एक हो
जाते हैं
चुनाव आयोग ने कई दफा प्रस्ताव रखा है कि जिनकी पृष्ठभूमि आपराधिक हो इन्हें चुनाव लड़ने से रोका जाना चाहिए और इसके लिए एक मार्गदर्शिका होनी चाहिए व कानून
पारित किया जाना चाहिए। अदालतों ने भी चुनाव आयोग के इन प्रस्तावों पर सरकारों से
जवाब मांगा है। कांग्रेस के समय भी यह हुआ था और बीजेपी के दौर में भी यह हुआ। भले
दोनों दल भारत को बांटकर सत्ता भुगतने में माहिर हो, लेकिन इस मसले पर वे बाकायदा
लिखित रूप से एक रहे हैं। मनमोहन सरकार ने भी नेतागिरी को बचाने का काम किया और
मोदी सरकार ने भी यही किया। दोनों सरकारों ने लोगों के सामने अच्छा और सच्चा देशभक्त
बनने की नौटंकियां की, लेकिन जब लिखित रूप से जवाब की बात आई, दोनों ने जवाब ऐसे दिए
कि मामला टल गया। इससे पहले भी यही होता आया था। भारतीय चुनाव सुधार का ताज़ा इतिहास – इस लेख में विस्तृत रूप से इस
विषय से संबंधित चीजें हम पहले ही लिख चुके हैं।
जिन नेताओं को अदालतों से सज़ा मिली हो उन्हें लोकतांत्रिक रूप से नियंत्रित करने
के लिए भी चुनाव आयोग ने प्रस्ताव भेजे, अदालतों ने अलग-अलग सरकारों से पूछा भी कि
आपकी क्या राय है। तमाम सरकारों ने नेतागिरी को बचा लिया। देखिए न, अपने अपने
मुद्दों के लिए सारे दल देश में आग लगा देते हैं। चाहे कांग्रेस हो या बीजेपी हो या
कोई तीसरा-चौथा। सभी अपने अपने एजेंडा को देशहित का बता कर क्या क्या नहीं कर जाते
कौन नहीं जानता। अध्यादेश से लेकर दूसरे पैंतरे आजमाकर जबरन कोई कानून लागू करवाने
का काम सभी करते हैं। लेकिन जनलोकपाल से लेकर चुनाव सुधार, क्रिमिनल लीडरशिप,
करप्शन एक्ट, आरटीआई जैसे कानूनों में ये सारे एक होकर देशहित के इन कार्यों को
लटका कर छोड़ देते हैं।
मसला इतना नहीं है। दरअसल नेताओं की जेल-यात्रा से पहले इन
नेताओं का अतीत तथा उसके बाद वर्तमान और भविष्य, इन तीनों में आपको हम नागरिकों की
हमारे नेताओं के साथ लोकतांत्रिक-यात्रा कैसी रही उस छोर को भी छूना चाहिए। हम
अदालतों में भ्रष्टाचार की बातें करते हैं, राजनीति में भ्रष्टाचार की बातें करते हैं, लेकिन एक नागरिक के रूप में हम कितने दोगले हैं उस विषय का शुभारंभ किया जाए तो लोग
अलादीन के चिराग से जिन्न नहीं बल्कि बहानों का पिटारा निकाल कर मैदान में उतर जाते
हैं। देखकर तो यही लगता है कि भाई, दो-तीन अच्छे काम कर दो, जनता आपको पांच-छह गुनाह
करने की इजाज़त दे देगी!!!
(इंडिया इनसाइड, एम वाला)
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