रोशनी करो कि
अज्ञान का ऐसा आनंदलोक नहीं मिलेगा !
दिया प्रकटा लो, मोमबत्ती जला लो कि
सूचना का ऐसा अकाल फिर कब मिलेगा !!!
पीएम है या पादरी? अरे भाई, पता है कि पिछले छह
सालों से स्वयं भगवान ने अवतार लिया है और अवतार के सामने सवाल नहीं उठा सकते! देखिए न? राष्ट्रीय स्तर का मीडिया
सवाल नहीं उठा रहा तो हम कैसे उठा सकते हैं, है न? चुप रहना, हां में हां मिलाना,
किसी भी समस्या को झूठी देशभक्ति के साथ जोड़ देना, सूचना और ज्ञान की जगह अज्ञान मिले
तब भी आनंदलोक में घूमना, यही करना चाहिए मुझे! जैसा ज्यादातर करते हैं, है न? रोशनी करो, थाली बजाओ, ताली
पीटो, मोमबत्ती जलाओ, दिया प्रकटाओ... सब सही है, लेकिन पादरी बनने के बाद नरेंद्र
मोदी पीएम भी बन लेते तो ज्यादा सही होता।
कोरोना
को लेकर मोदी सरकार के कदमों और प्रयासों को लेकर हमने पहले ही लेख में कहा था कि
सरकार के कोरोना को लेकर जो कदम हैं, जितने भी प्रयास हैं उसमें लोगों को साथ देना
चाहिए। हम यह भी कह चुके हैं कि सरकार को लेकर जो भी नेगेटिव है वो बाद में, फिलहाल
तो रिपोर्ट पॉजिटिव ना आए उसके लिए हो सोच लीजिए। हर कोई साथ है, एकजुट ही है देश।
लेकिन लोगों को सूचना देने की जगह अज्ञान का अंधकार देना भी सही नहीं है। पीएम
बेहतरीन उपदेशक है इसमें कोई दो राय नहीं। उपदेश देने का उनका मन है तो कौन रोक सकता
है उनको? लेकिन वो उपदेशक बाद में हैं, पहले भारत के
पीएम हैं।
कुछ
बातें पहले साफ कर देते हैं। पहली – कोरोना से जितना नुकसान होगा वो लोगों और
राज्यों की लापरवाही की वजह से होगा और जितना भी फायदा होगा वो मोदी का मास्टर स्ट्रोक
होगा। राष्ट्रीय स्तर के मीडिया से लेकर आईटी सेल के लोग इसीमें लगे हुए हैं तो
इसमें भी सफलता मिलेगी, कोरोना गया भाड़ में!!! दूसरी – अरे भाई, दूसरी बात
होती ही कहां है? यही होता है! मोदियाबिंद, सोनपापड़ी और
केजरियां गैंग के लोगों की दुनिया के बाहर भी एक भारत है, जिसे सूचना चाहिए,
जानकारी चाहिए। दरअसल इन तीनों के गैंग के बाहर जो है वही भारत है, बाकी का तो
महाभारत है!!! ऐसा लगता
है कि भारत में कोरोना को व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के योद्धा ही हरा देंगे!!!
जिसकी जानकारी होनी चाहिए उसका
स्तर न्यूनतम है, एग्जिट पॉलिसी तो कही है ही नहीं, बस... विशाल आनंदलोक देखने को
मिलता है! एक कड़वा सच – भारत में लॉकडाउन
के अलावा दूसरा कोई प्रभावशाली अभियान नहीं चल सका है, सिवां थाली-ताली-दिया-बाती
के!
रोशनी ही करनी है तो फिर उस रोशनी में
नहाया हुआ एक कड़वा सच भी देखना होगा। कड़वा सच यह कि सैकड़ों न्यूज़ चैनलों और
अखबारों वाले इस महादेश में कोरोना वायरस और उसके सरकारी उपाय और तैयारियों को
लेकर जानकारी न्यूनतम स्तर पर है!!! ‘एग्जिट पॉलिसी’ को लेकर तो कोई सोचता तक नहीं है। व्हाट्सएप विश्वविद्यालय तो एग्जिट पॉलिसी नामकी कोई चीज़ होती भी है यह जानता
ही नहीं है। वहां तो फेक न्यूज़ की जो सुनामी है उसे देखकर तो यही लगता है कि यह देश
खुद को विश्वगुरु मान ही चुका है, बस युएनओ वाले घोषित ही कर दे! पूर्व तैयारियां, वर्तमान तैयारियां,
उपाय, कदम, आपूर्ति आदि को लेकर जानकारी शून्य के करीब है, वहीं एग्जिट पॉलिसी को
लेकर शून्य!!! अरे भाई, ऐसे ही विश्वगुरु बनना है तो पहले खुद को मूर्ख ही करार दे दीजिए। बुरा लगेगा,
लेकिन सच तीखा ही होता है। अज्ञानता का ऐसा विशाल आनंदलोक कहां मिलेगा? मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास
कि... दोबारा ज़रूर मिलेगा!!!
हम सभी रात को ठीक नौ बजे नौ मिनट तक बत्ती
बुजाए, मोमबत्ती जलाए या दिए प्रकटाएं... पहले अंधेरा करे और फिर टिमटिमाती सी
रोशनी या बालकनी व छतों पर आकर टोर्च जलाएं... जनता कर्फ़यूं के समाप्त होने से
पहले ही सड़कों पर निकलकर थाली पीटे, ताली बजाए या शंख फूंके... हमारी यह देशभक्ति
नोट की जा चुकी है। पता ना हो उन्हें बता दें कि आईटी सेल अभी से आकर्षक
फोटोग्राफ्स तैयार करनें में जुटा है, यूं कहे कि तैयारी पूरी है। पर किस चीज़ की
तैयारी? यही दिखाने कि किसीकी एक आवाज
पर देश एकजुट होकर कोरोना को हरा रहा है। बालकनी में खड़े रहनेवालें सड़कवालों की
नहीं सोचा करते। क्योंकि पिछले कुछ दिनों से अब मीडिया में पलायन की त्रासदी को लेकर
खबरें कम ही आ रही हैं या आ ही नहीं रही। मीडिया में नहीं आ रहा तो सबको लगने लगा है कि
पलायन की समस्या हल हो गई है। उधर अस्थायी शिविरों में बुनियादी ज़रूरतों की कमी के
चलते लोगों की शिविर छोड़कर पलायन कर जाने की घटनाएं सड़क से होती हुई बालकनी तक
पहुंच ही नहीं रही। क्योंकि वहां रोशनी है... अंधेरा रोशनी के पास कैसे जाएगा भला?
यह कड़वा सच है कि भारत में लॉकडाउन के
अलावा दूसरा कोई प्रभावशाली अभियान चल नहीं रहा। सिवां थाली-ताली-दिया-बाती के। लॉकडाउन
होता है क्यों यह उन लोगों को ज़रूर पता है जो इसे लेकर गंभीर है। पूरा देश
व्हाट्सएप विश्वविद्यालय नहीं है। क्योंकि व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी को तो यही लगता है
कि लॉकडाउन वायरस के खात्मे का अमोद्य हथियार है। कोरोना के प्रथम लेख में लॉकडाउन
को विशेषज्ञों के हवाले से प्रथम अस्थायी उपाय के तौर पर हम लिख चुके हैं। यानी कि
वो प्रथम अस्थायी उपाय है, एकमात्र उपाय नहीं है। दूसरे प्रभावशाली अभियान भारत में
चल ही नहीं रहे। डब्ल्यूएचओ ने बार बार कहा कि भारत में जो टेस्टिंग हो रहे हैं उसका
औसत बहुत कम है। लेकिन हर शाम को इक्ठ्ठा होकर लोग कम टेस्टिंग की समस्या पर बात
नहीं करते, वो तो आज का स्कोर पूछते हैं!!! सरकार आनंदलोक की व्यवस्था तो
कर रही है, लेकिन औसतन कम टेस्टिंग के बारे में बता नहीं रही।
दुनिया भर के वैज्ञानिक, चिकित्सक और विशेषज्ञ इस महामारी के बारे में रोजाना नई-नई सूचनाएँ
दे रहे हैं। दूसरे देशों के राष्ट्रप्रमुख प्रेस के सामने आ रहे हैं, सवालों का
सामना कर रहे हैं, लोगों को बीमारी को लेकर सरकारी उपाय और तैयारियों के बारे में बता
रहे हैं। लेकिन हमारे पीएम ने पादरी बनना पसंद कर लिया है! पीएम तीन बार राष्ट्र के सामने आए। तीनों बार के भाषण का
निष्पक्ष और सही विश्लेषण करने पर पता चला कि तीनों बार पादरी टाइप भाषण, दूसरा
कुछ नहीं! उनके मंत्री घर पर बैठकर रामायण देख रहे
हैं! लोग इसकी शिकायत ना करें, क्योंकि पीएम खुद ही पादरी के रोल
में है तो फिर मंत्री अपना कर्तव्य छोड़-छाड़ कर धर पर बैठकर रामायण क्यों न देखे?
जो सरकार महीने भर से सो रही थी वो लोगों को जागरूक बनाने का गजब काम कर रही हैं, गजब इसलिए क्योंकि जागरूकता के लिए सूचना-जानकारी आदि चाहिए,
उपदेश और तेरे-मेरे मन की बात नहीं
यह बिल्कुल सीधा सच है कि अपने स्तर पर भारत को पहले ही जो एहतियाती क़दम उठाने
थे, उसने वे नहीं उठाए। हमारे यहाँ कोराना के पहले पॉजिटिव केस की शिनाख्त 30 जनवरी
को ही हो गई थी। तबसे फ़रवरी के बीच कुछ और मामले सामने आए। पर उन दिनों देश में तमाम
तरह की बड़ी-बड़ी गतिविधियाँ और घटनाएँ हो रही थीं। सरकार का ध्यान उधर ही लगा था।
फ़रवरी के आख़िरी हफ़्ते में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की भारत-यात्रा थी, जिसमें एक लाख से ज़्यादा लोगों की हिस्सेदारी वाला अहमदाबाद-कार्यक्रम
सबसे अहम् था। ट्रंप के भारत दौरे से पहले और उसके दौरान सैकड़ों अमेरिकी अफ़सर, जासूस और कर्मचारी दिल्ली से अहमदाबाद के बीच आते-जाते रहे।
हमारी सरकार देश में एनपीआर-एनआरसी लागू कराने की तैयारी में जुटी थी। समाज का एक हिस्सा
सीएए-एनपीआर आदि के ख़िलाफ़ मैदान में आ चुका था, जगह-जगह धरना-प्रदर्शन हो रहे थे। असम से दिल्ली तक बहुत सारे
लोग जेल भेजे जा रहे थे। इसी बीच दिल्ली विधानसभा का हंगामी चुनाव हुआ। फिर दिल्ली
में भारी दंगा-फसाद हुआ। अनेक लोग मारे गए और हज़ारों बेघर हो गए।
सरकार सो रही थी यह बहुत ही सीधा सच है। इसे लेकर हम एक अलग लेख लिखेंगे। इस
लेख में इसे समन्वित नहीं कर रहे। एक चर्चा दूसरी भी होती है। अर्थव्यवस्था को बचाए
या लोगों को? जिन्होंने आर्टस या साइंस किया है वो लोग भी कॉमर्स का ज्ञान बांटते फिर रहे
हैं और जिन्हें समाज और नागरिकी व्यवस्था की एबीसीडी भी नहीं पता वो लोगों को लेकर उपदेश
देते हैं, ऐसे में इस महत्वपूर्ण सवाल की भारत में धज्जियां सी उडा रहे है लोग। क्योंकि
भारत में कोरोना के पेशेंट कम है, एक्स्पर्ट ज्यादा है!
लॉकडाउन आगे बढ़ेगा या नहीं इसकी चर्चा जोरों
पर हैं। वैसे भी भारत में चुनाव के समय समस्या की बात नहीं होती, बस नतीजों की ही बातें
होती है! कोरोना
को लेकर भी यही हाल है! लोग पॉलिसी और एग्जिट पॉलिसी को लेकर नहीं लेकिन लॉकडाउन के दिनों के गुणाभाग
को लेकर ज्यादा चिंतित है! खैर, किंतु लॉकडाउन लागू होने से पहले ही वैश्विक स्तर पर कहा जा चुका है कि
लंबे समय तक लोगों को घरों में रखना सामाजिक और आर्थिक रूप से संभव नहीं है। जैसे
जैसे 14 अप्रैल की तारीख पास आएगी, लोगों की बातें बढ़ती जाएगी। जी हां, वही लोग जो एग्जिट पॉलिसी को लेकर कभी
बात ही नहीं कर रहे थे! सबको पता है कि एक झटके में लागू हुआ लॉकडाउन झटके में दूर नहीं होगा। सभी
राज्य और उनके मुख्यमंत्री अपने अपने स्तर पर अपने अपने हिसाब से इसे दूर करते
जाएंगे। मतलब कि गांव, नगर, महानगर तथा संगठित व असंगठित क्षेत्रों के स्तर पर। जिसे
चरणबद्ध तरीका कहा जाता है। रही केंद्र की बात, तो उसके पास दूर करने के सिवा
दूसरा कोई विकल्प नहीं होगा, क्योंकि पहले से ही बेहाल अर्थतंत्र इसकी इज़ाज़त नहीं दे
रहा। शिडूअल के हिसाब से इसे फिर लागू करना, फिर दूर करना, यह रणनीति अपनाई जाती
है या नहीं यह तो समय बताएगा। लेकिन कोरोना के खिलाफ लड़ने के लिए जो ढेरों विकल्प
थे उन्हें प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए ही लॉकडाउन होता है, ऐसे में समझना यह
भी होगा कि कोविड-19 कड़ी चेतावनी दे रहा है। हमारें पास संसाधनों की कमी है और संक्रमण
बढ़ता जा रहा है।
पहली बात यह होती है कि जहां संक्रमण कम हो वहां से लॉकडाउन पहले हटाया जाए। यह सिलसिला उन इलाकों से शुरु किया जाता है जहां बीमारी का प्रभाव नगण्य हो। लेकिन सवाल यही है कि ऐसे कौन से इलाके है हमारे यहांं? जवाब नहीं मिल रहे!!! लॉकडाउन से छूट को लेकर अलग-अलग रणनीति होती है, जिसकी संक्षिप्त बात हमने ऊपर की। लेकिन पहली शर्त एक ही हो सकती है, यही कि कोरोना के प्रकोप से मुक्ति। अर्थतंत्र बचाए या लोगों को, यह सवाल तब पीछे जाएगा जब कोरोना के प्रकोप के सही आंकड़े मालूम हो। साफ है कि आम जनता के हिस्से स्पष्ट आंकड़े नहीं आते। ये जमानें से चली आ रही प्रक्रिया है! जो होता है वो दिखता नहीं और जो दिखता है वो होता नहीं! जैसे कि फैज 3 का इकरारनामां कब हो पता नहीं या फिर क्या पता कि शायद उस इकरारनामें में भी चरणबद्ध वाली योजना छिपी बैठी हो! हम भले ही पीएम के व्यर्थ उपदेशों की सख्त आलोचना कर रहे है, लेकिन वो एक अलग हिस्सा है। जबकि दूसरा प्रभावी हिस्सा यह भी है कि अब तक भारत की कोरोना के खिलाफ जंग ठीक-ठाक ही चल रही है। भले ही बेहतरीन ना हो, लेकिन उम्मीद से बेहतर कर रहा है भारत, जिसमें भारत की जनता और भारत की सरकार, दोनों को श्रेय जाता है। इसीलिए एग्जिट पॉलिसी बेहतरीन हो यह देखना ज़रूरी है। स्थानीय लोगों को इजाज़त देना, बाहरी लोगों को वर्जित करना, खास संस्थानों को खोलना और बाकियों को चरणबद्ध तरीके से इजाज़त देते रहना, उम्र के मुताबिक रणनीतियां तय करना, इतना ही लॉकडाउन की अवधि समाप्त करने की कवायद नहीं होती। बहुत बहुत बहुत ही होता है, जिसके लिए एक अलग ही चैप्टर होना चाहिए। मौजूदा हालात और भविष्य, दोनों की गणना होती है। मरीजों के लिए रेल्वे के बीस हजार कोच तैयार किए जाने की खबरें भी हैं, डीआरडीओ, आर्मी, नेवी, एरफोर्स भी अपनी तैयारियों में जुटे हैं। साफ है कि धीरे धीरे ही होना चाहिए, झटके में नहीं। राज्यों और केंद्र का बेहतरीन तालमेल मोदी सत्ता और राज्यों की सरकारों के जिम्मे है। महाराष्ट्र, यूपी में स्थिति ज्यादा गंभीर है, गुजरात का मृत्युदर तो दुनिया के रिकॉर्ड तोड़ रहा है। लेकिन समझना होगा कि भारत में भी स्थिति नाजुक ही है। संभले नहीं तो स्थिति ज्यादा गंभीर होने की संभावना है। जैसे दुनिया में बड़े-बड़े देश फंसे हैं, ठीक इसी प्रकार भारत में भी बड़े-बड़े राज्य गंभीर स्थिति में फंसे हैं! एक तबका यह भी मानता है कि लड़ाई लंबी हो सकती है और लॉकडाउन हटाने का समय अभी नहीं है। उधर वैश्विक स्तर पर जो बात पहले ही कही गई थी (जिसका ज़िक्र ऊपर के पेरा में किया) वो बात तथा पहले से बदहाल अर्थव्यवस्था लंबी लड़ाई के ऊपर भारी पड़ती दिख रही है। केंद्र और राज्य कौन सी राह चलेंगे पता नहीं। कब, कौन से इलाके को कितना इंतज़ार करना पड़ेगा, किसीको नहीं पता। अभी लॉकडाउन की अवधि समाप्ति को काफी दिन है, स्थिति कब किस तरफ मुड़ेगी कोई नहीं जानता। विशेषज्ञों के मुताबिक कोरोना मुक्त होना ही एकमात्र शर्त है और यह शर्त बनी भी रहे यही कामना।
लॉकडाउन की मूल चर्चा यही है कि कोरोना के खिलाफ लड़ने के लिए जो ढेरों विकल्प थे उन्हें प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए ही लॉकडाउन होता है, ऐसे में जनवरी-फरवरी माह में सोयी हुई सरकार लॉकडाउन के दिनों में भी कितना सोयी, कितना जागी, ये तो आनेवाला समय बताएगा। ठीकरा किसके सर फोड़ना है यह सरकारी रणनीति का हिस्सा नहीं होना चाहिए, जैसे नोटबंदी के समय बैंक कर्मचारियों पर भी निशानें साध लिए थे।
लॉकडाउन का पालन करना अगर नागरिकों का कर्तव्य है तो फिर उन नागरिकों को सही जानकारी देना, सूचना पहुंचाना और उसकी ज़रूरतों को पूरा करना सरकार का फर्ज है। दुनिया के तमाम देशों के राष्ट्राध्यक्ष अपने-अपने देशों में स्वास्थ्य सेवाओं और आपदा प्रबंधन तंत्र को ज्यादा से ज्यादा सक्रिय और कारगर बनाने में जुटे हुए हैं। इस सिलसिले में वे डॉक्टरों और विशेषज्ञों से सलाह-मशविरा कर रहे हैं। अस्पतालों का दौरा कर हालात का जायजा ले रहे हैं। सबसे मुख्य बात यह कि वे प्रेस कॉन्फ्रेन्स में तीखे और जायज सवालों का सामना करते हुए लोगों की शंकाओं को दूर करने का प्रयास कर रहे हैं। लेकिन हमारे यहां? चिंता ना करे, राष्ट्रवाद का दिया यूं तो कारगर है, और होगा भी।
पहली बात यह होती है कि जहां संक्रमण कम हो वहां से लॉकडाउन पहले हटाया जाए। यह सिलसिला उन इलाकों से शुरु किया जाता है जहां बीमारी का प्रभाव नगण्य हो। लेकिन सवाल यही है कि ऐसे कौन से इलाके है हमारे यहांं? जवाब नहीं मिल रहे!!! लॉकडाउन से छूट को लेकर अलग-अलग रणनीति होती है, जिसकी संक्षिप्त बात हमने ऊपर की। लेकिन पहली शर्त एक ही हो सकती है, यही कि कोरोना के प्रकोप से मुक्ति। अर्थतंत्र बचाए या लोगों को, यह सवाल तब पीछे जाएगा जब कोरोना के प्रकोप के सही आंकड़े मालूम हो। साफ है कि आम जनता के हिस्से स्पष्ट आंकड़े नहीं आते। ये जमानें से चली आ रही प्रक्रिया है! जो होता है वो दिखता नहीं और जो दिखता है वो होता नहीं! जैसे कि फैज 3 का इकरारनामां कब हो पता नहीं या फिर क्या पता कि शायद उस इकरारनामें में भी चरणबद्ध वाली योजना छिपी बैठी हो! हम भले ही पीएम के व्यर्थ उपदेशों की सख्त आलोचना कर रहे है, लेकिन वो एक अलग हिस्सा है। जबकि दूसरा प्रभावी हिस्सा यह भी है कि अब तक भारत की कोरोना के खिलाफ जंग ठीक-ठाक ही चल रही है। भले ही बेहतरीन ना हो, लेकिन उम्मीद से बेहतर कर रहा है भारत, जिसमें भारत की जनता और भारत की सरकार, दोनों को श्रेय जाता है। इसीलिए एग्जिट पॉलिसी बेहतरीन हो यह देखना ज़रूरी है। स्थानीय लोगों को इजाज़त देना, बाहरी लोगों को वर्जित करना, खास संस्थानों को खोलना और बाकियों को चरणबद्ध तरीके से इजाज़त देते रहना, उम्र के मुताबिक रणनीतियां तय करना, इतना ही लॉकडाउन की अवधि समाप्त करने की कवायद नहीं होती। बहुत बहुत बहुत ही होता है, जिसके लिए एक अलग ही चैप्टर होना चाहिए। मौजूदा हालात और भविष्य, दोनों की गणना होती है। मरीजों के लिए रेल्वे के बीस हजार कोच तैयार किए जाने की खबरें भी हैं, डीआरडीओ, आर्मी, नेवी, एरफोर्स भी अपनी तैयारियों में जुटे हैं। साफ है कि धीरे धीरे ही होना चाहिए, झटके में नहीं। राज्यों और केंद्र का बेहतरीन तालमेल मोदी सत्ता और राज्यों की सरकारों के जिम्मे है। महाराष्ट्र, यूपी में स्थिति ज्यादा गंभीर है, गुजरात का मृत्युदर तो दुनिया के रिकॉर्ड तोड़ रहा है। लेकिन समझना होगा कि भारत में भी स्थिति नाजुक ही है। संभले नहीं तो स्थिति ज्यादा गंभीर होने की संभावना है। जैसे दुनिया में बड़े-बड़े देश फंसे हैं, ठीक इसी प्रकार भारत में भी बड़े-बड़े राज्य गंभीर स्थिति में फंसे हैं! एक तबका यह भी मानता है कि लड़ाई लंबी हो सकती है और लॉकडाउन हटाने का समय अभी नहीं है। उधर वैश्विक स्तर पर जो बात पहले ही कही गई थी (जिसका ज़िक्र ऊपर के पेरा में किया) वो बात तथा पहले से बदहाल अर्थव्यवस्था लंबी लड़ाई के ऊपर भारी पड़ती दिख रही है। केंद्र और राज्य कौन सी राह चलेंगे पता नहीं। कब, कौन से इलाके को कितना इंतज़ार करना पड़ेगा, किसीको नहीं पता। अभी लॉकडाउन की अवधि समाप्ति को काफी दिन है, स्थिति कब किस तरफ मुड़ेगी कोई नहीं जानता। विशेषज्ञों के मुताबिक कोरोना मुक्त होना ही एकमात्र शर्त है और यह शर्त बनी भी रहे यही कामना।
लॉकडाउन की मूल चर्चा यही है कि कोरोना के खिलाफ लड़ने के लिए जो ढेरों विकल्प थे उन्हें प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए ही लॉकडाउन होता है, ऐसे में जनवरी-फरवरी माह में सोयी हुई सरकार लॉकडाउन के दिनों में भी कितना सोयी, कितना जागी, ये तो आनेवाला समय बताएगा। ठीकरा किसके सर फोड़ना है यह सरकारी रणनीति का हिस्सा नहीं होना चाहिए, जैसे नोटबंदी के समय बैंक कर्मचारियों पर भी निशानें साध लिए थे।
लॉकडाउन का पालन करना अगर नागरिकों का कर्तव्य है तो फिर उन नागरिकों को सही जानकारी देना, सूचना पहुंचाना और उसकी ज़रूरतों को पूरा करना सरकार का फर्ज है। दुनिया के तमाम देशों के राष्ट्राध्यक्ष अपने-अपने देशों में स्वास्थ्य सेवाओं और आपदा प्रबंधन तंत्र को ज्यादा से ज्यादा सक्रिय और कारगर बनाने में जुटे हुए हैं। इस सिलसिले में वे डॉक्टरों और विशेषज्ञों से सलाह-मशविरा कर रहे हैं। अस्पतालों का दौरा कर हालात का जायजा ले रहे हैं। सबसे मुख्य बात यह कि वे प्रेस कॉन्फ्रेन्स में तीखे और जायज सवालों का सामना करते हुए लोगों की शंकाओं को दूर करने का प्रयास कर रहे हैं। लेकिन हमारे यहां? चिंता ना करे, राष्ट्रवाद का दिया यूं तो कारगर है, और होगा भी।
पादरीजी ने संमोहित किया, पीएम
ने बिल्कुल निराश किया, पीएम को सूचना-जानकारी देनी चाहिए, उपदेश-भाषण नहीं, पता नहीं कि योग के वीडियो से पीड़ित और पलायन के लिए मजबूर लोगों को क्या फायदा होता है
नो डाउट। पादरीजी ने जमकर संमोहित किया,
किंतु पीएम ने बिल्कुल निराश किया। जब दुनियाभर के राष्ट्रप्रमुख अपने-अपने देशों
के सामने आकर लोगों को जानकारियां दे रहे थे, सूचनाएं दे रहे थे, रणनीतियों के बारे
में सूचित किया जा रहा था, तैयारियों का खाका पेश किया जा रहा था, हमारे यहां उपदेश
वाला चैनल चालू था। दुनिया के देशों के नेता प्रेस के सामने आकर सवालों के जवाब दे
रहे थे, हमारे यहां ऐसा सालों से नहीं हुआ था तो इस बार भी नहीं हुआ। एक तीखी बात के
जरिए सीधा कहा जा सकता है कि पीएम ने देश को संबोधित करने के नाम पर देश का समय भाषण,
प्रचार और उपदेश में बर्बाद कर दिया। जनता कर्फ़यू का आह्वान अद्भुत था, ज़रूरी था,
लेकिन बार-बार टेलिविजन पर आकर उबाऊ एकालाप और निरर्थक संवाद करने का विलक्षण अभियान बिलकुल निष्प्रभावी था।
प्रधानमंत्री ने देशवासियों को उपदेश दे दिया। यह भी कह दिया कि इससे बचने का एक
ही तरीक़ा है कि घरों में बंद रहा जाए और इसके लिए लक्ष्मण रेखा का अच्छा उदाहरण दिया।
किंतु लोगों के अंदर रहने में सहायता का कोई आश्वासन नहीं दिया। यह तो बताया कि 21
दिन की अवधि लंबी है पर यह नहीं बताया कि इस दौरान जानी-अनजानी दूसरी मुसीबत से निपटने
के लिए क्या करना है। उल्टा उन्होंने मीडिया से लेकर पुलिस और स्वास्थ्यकर्मियों का
ख्याल रखने की भी ज़िम्मेदारी जनता पर ही डाल दी!!! यह ज़रूर कहा कि आवश्यक चीजों की
कमी नहीं होने दी जाएगी, पर जब उत्पादन हो ही नहीं रहा है और डिलीवरी होगी नहीं तो
कमी कैसे नहीं होगी यह नहीं बताया। और फिर लॉकडाउन के बाद कुछ
दिनों तक जो हुआ, नोटबंदी की याद आ गई। लगा कि लॉकडाउन ज़रूरी है, लेकिन बिना
प्लानिंग का लॉकडाउन खतरनाक है।
बताइए, इनके पास उपदेश देने के लिए तीन-तीन बार आने का समय था, लेकिन ट्रेन-प्लेन-बसें
आदि बंद होने की सूचना इन्होंने नहीं दी थी। आप खुद उनके तीनों उपदेश (सोरी भाषण) पढ़
लीजिएगा। पीएम ने तो लॉकडाउन की ही सूचना दी, दूसरी कोई जानकारी इन्होंने नहीं दी।
बाकी सब तो कुछ दिनों तक अखबारों में पढ़कर लोग पता लगाते रहे। लोग फंस सकते है यह
सरकार ने यदि नहीं सोचा था तो फिर इसे नोटबंदी जैसी तैयारी ही तो कहेंगे। सरकार के
मंत्रियों ने भी कोई प्रभावी प्रेसवार्ताएँ नहीं की, जानकारियां साझा करने की गंभीर
कोशिशें भी नहीं की। सबसे मुख्य बात यह कि पीएम ने जब जब देश को भाषण दिया,
आधी-अधूरी जानकारी के साथ ही दिया। सबसे आखिरी उदाहरण नौ मिनट का ब्लैकआउट वाला
भाषण था, जिसमें असमंजस इतना फैला कि बिजली विभाग को आकर लोगों को समझाना पड़ गया।
फिर तो आखिर में पीएम को दोबारा कहना पड़ा कि फलांना फलांना करे, फलांना फलांना ना
करे। बताइए, सूचनाए-जानकारी तो नहीं दी, उल्टा जो दिया वो भी अधूरा दिया कि उसे
पूरा करने में विभागों के हाथ-पांव फूल से गए।
पीएम के भाषण में योजनाएं, तैयारियां, रणनीति, दवाइयां, स्टोक, पुष्ट और
प्रमाणित आंकड़े, सैनिटाइज़र, मास्क, चिकित्सा व्यवस्था, बैड्स, टेस्टिंग किट्स आदि
आदि की बातें होनी चाहिए थी, जो थी ही नहीं। पैकेज भी बाद में दिया। दिया तो कह दिया
कि इतने का पैकेज है, लेकिन उस पर भी कोई बात नहीं की। हाल यह कि वो पैकेज पूराने
पैकेट में नया माल सरीखा निकला। जो पहले से था, जो बजट में पहले से ही था, जो इन
दिनों मुमकिन ही नहीं था, ऐसी ऐसी चीजें उस पैकेट में आ गई, जिसकी बात अलग से करेंगे। समझ
नहीं आया कि योग के वीडियों से उन लोगों को क्या फायदा होता होगा जो सड़कों पर
भूखे-तड़पतें अधमरे से पड़े हैं।
भारत अघोषित रूप से तीसरे चरण में प्रवेश कर गया है, लेकिन कई कारणों से सरकार इसके तीसरे चरण में प्रवेश को स्वीकार करने से बच रही है। पादरीजी ने तो संमोहित किया, लेकिन बतौर पीएम निराश कर गए। क्योंकि किसी महामारी के दौरान जो बातें होनी चाहिए थी उसको लेकर कोई बात ही नहीं हुई। ऐसे सवाल जो भाषणबाजी और दिया-बाती से भी ज्यादा ज़रूरी थे। जैसे कि,
भारत अघोषित रूप से तीसरे चरण में प्रवेश कर गया है, लेकिन कई कारणों से सरकार इसके तीसरे चरण में प्रवेश को स्वीकार करने से बच रही है। पादरीजी ने तो संमोहित किया, लेकिन बतौर पीएम निराश कर गए। क्योंकि किसी महामारी के दौरान जो बातें होनी चाहिए थी उसको लेकर कोई बात ही नहीं हुई। ऐसे सवाल जो भाषणबाजी और दिया-बाती से भी ज्यादा ज़रूरी थे। जैसे कि,
दिया-बाती के बाद भी नहीं बताया कि कोरोना वैक्सीन बनाने कि दिशा
में क्या काम हो रहा है?
इसे लेकर बात कर लेते तो अज्ञानता के महासागर में थोड़ी सी ज्ञान की बूंदें तो
दिखती। यूं तो पूरी दुनिया में कोरोना वैक्सीन बनाने के लिए काम हो रहा है। अंतरराष्ट्रीय
मीडिया में खबरें आती-जाती हैं कि कुछ देशों में इसका क्लीनिकल ट्रायल भी शुरू
हो गया है। भारत में भी इस पर कई वैज्ञानिकों ने दावे किए हैं, लेकिन अभी किसी ठोस
नतीजे पर नहीं पहुंचा जा सका है। लेकिन इस पर सरकार की ओर से भी कोई जानकारी नहीं दी
जा रही है कि भारत अपनी खुद वैक्सीन बनाने की कोशिश कर रहा है या इसे भी विदेशों से
ही खरीदने की तैयारी है। कम से कम प्रधानमंत्री को इस बारे में खुद जानकारी देनी चाहिए
थी। दिया-बाती के बाद इतना समय तो था ही!
उन्हें सम्मानजनक नाम तो दिया
लेकिन उन स्वास्थ्य योद्धाओं की सुरक्षा किट कितनी उपलब्ध
है इसे लेकर कोई बात नहीं
इस बीमारी से अग्रिम मोर्चे पर लड़ाई रहे डॉक्टर और नर्स भी इस खतरे से दूर नहीं
है। कई डॉक्टर इसकी चपेट में आ चुके हैं। कई जगहों से खबरें आई है कि इन लोगों के बीच
ज़रूरी दस्ताने और मॉस्क उपलब्ध नहीं हैं। कही पर प्रतीक हड़ताल का वाक़या भी हुआ। पीएम
मोदी देश को इस मुद्दे पर भी आश्वासन दे सकते थे कि सरकार इस दिशा में क्या काम रही
है। कौन सी निजी कंपनियों ने इसके उत्पादन का काम शुरू किया है और मांग के मुताबिक
सप्लाई का स्तर कहा पर है यह बालकनी से ना सही ट्वीट से भी बताया जा सकता था!
देश में कितने आईसीयू और वेंटिलेटर हैं, भाषण में कोई बात नहीं
इटली सहित तमाम ऐसे देश जिन्हें अपनी मेडिकल सेवाओं नाज था वह आज बुरे दौर से
गुजर रहे हैं। अमेरिका भी इस समय वेंटेलेटरों की कमी से जूझ रहा है। भारत में तो कई
ऐसे शहर हैं जहां वेटेंलेटर अभी तक उपलब्ध नहीं हैं। भारत में यह जानकारी अखबार
अपने हिसाब से दे रहे है। जैसे कि गुजरात में घमन की बात हो रही है। लेकिन जो भी
हो रहा है इसकी पुष्टि और इसकी मान्यता सरकार से मिली है या नहीं, किसीको सही-सही
नहीं पता। पीएम का काम यही होता है कि वो इस समस्या को लेकर देश को जानकारी दें। उपदेश
देने का काम पादरी का होता है, पीएम का नहीं! आईसीयू, वेंटेलेटर, इलाज, अस्पताल, दवाइयां, किट... पीएम इन सब चीजों की जगह दिया-बाती-थाली-ताली में ज्यादा विश्वास करते नजर आए!
जल्द से जल्द जांच हो इसके लिए क्या तैयारी है, बलिदान दें रहे लोगों को यह जानने का भी अधिकार नहीं है?
जल्द से जल्द जांच हो इसके लिए क्या तैयारी है, बलिदान दें रहे लोगों को यह जानने का भी अधिकार नहीं है?
इस बीमारी को नियंत्रित करने के लिए लॉकडाउन के अलावा इसके मरीजों की जल्द जांच
भी मायने रखती है। कुछ दिन पहले ही दावा किया गया था कि पुणे की एक लैब ने देसी जांच
किट बना ली है जो जल्द रिपोर्ट दे सकेगी। लेकिन इसके बाद इसे कितने अस्पतालों को उपलब्ध
कराया गया है इस पर भी कोई ठोस जानकारी नहीं है। जो भी खबरें आती है वो अखबारों में
आती है, जिसकी पुष्टि का कोई ठिकाना नहीं होता! तो फिर पीएम को अपने उपदेशात्मक भाषण में इसका ज़िक्र करना
चाहिए था, ताकि दिया तले अंधेरा नहीं रोशनी हो!
दिया-बाती का सहारा लेने की जगह बता ही देते कि क्वारंटाइन में
रखे गए लोगों की देखभाल कैसे हो रही है
जिन संदिग्ध मरीजों को क्वारंटाइन में रखा गया है उनकी क्या देखभाल हो रही है यह
कोई नहीं जानता। कुछ मरीजों के फरार होने की खबरें भी है। अगर ऐसे मरीजों ने दूसरों
को संक्रमित कर दिया तो क्या होगा कोई नहीं जानता। दूसरी ओर जो लोग शहरों से छोड़कर
गांवों में आए हैं उन पर कैसे नजर रखी जा रही है इसकी भी केंद्र स्तर से कोई
जानकारी नहीं है। इस पर भी पीएम मोदी को ठोस जानकारी देनी चाहिए थी। क्योंकि यह
उनका ही काम है, वो सचमुच पादरी थोड़ी न है?
कम से कम इस पर तो बात होनी ही चाहिए थी कि लॉकडाउन के अलावा
और क्या उपाय कर रही है सरकार?
लॉकडाउन के अलावा सरकार और क्या कदम उठा रही है। क्या पीएम को किसीने मना किया
था कि इस विषय पर नहीं बोलना है? उन्हें मना तो कोई कर ही नहीं सकता। तो फिर इस महत्वपूर्ण
विषय पर वो क्यों नहीं बोले? लॉकडाउन के दौरान भी मरीजों की संख्या बढ़ी है। क्या सरकार
ने मरीजों के बढ़ते ग्राफ का कुछ विश्लेषण किया है और उसके नतीजे में और क्या कदम उठाने
की तैयारी है, देश को यह बताने की जगह लोगों को बोल दिया कि बालकनी में जाओ!
घोषणाएं तो हुई है किंतु कैसे पहुंचेगी सरकारी मदद, इस विषय के लिए भी समय था पीएम के पास
घोषणाएं तो हुई है किंतु कैसे पहुंचेगी सरकारी मदद, इस विषय के लिए भी समय था पीएम के पास
जिन लोगों के लिए आर्थिक पैकेज का एलान किया गया है उनमें से आज भी कई ऐसे हैं
जिनका रजिस्ट्रेशन किसी भी सरकारी योजना में नहीं है। ऐसे लोगों के लिए क्या योजना
है इसे कौन बताएगा यही बता देते, अगर आपको दूसरे भाषण ही करने थे तो। ग्राम प्रधान
स्तर पर जो भ्रष्टाचार और भेदभाव होता है इस दौर में इसकी सबसे बड़ी मार गरीब तबके
पर ही पड़ेगी। सरकार ने इसको लेकर कोई समीक्षा की है या नहीं की इसे लेकर वो अपने
देशवासियों को अवगत करवा सकते थे।
तबलीग़ी जमात से जुड़े लोगों की कितनी पहचान? मार्गदर्शिकाएं तोड़ रहे समूहों और सितारों पर पीएम संदेश देते तो अच्छा प्रभाव
जाता
सारी तैयारियों के बीच तबलीग़ी जमात में आए लोगों के संक्रमण ने चिंता बढ़ा दी है।
इस जमात ने जो किया है वो वाकई हैरान करनेवाला है। हम ऐसी मूर्खताओं को लेकर
लिख चुके है कि इतना भी धार्मिक मत बनो कि धर्मसंक्ट यह हो कि धर्म ही संकट बन जाए! वैसे यह अब मूर्खता नहीं है बल्कि गुनाह है। ऐसे गुनाह कनिका कपूर से लेकर तबलीग़ी जमात जैसे समूहों ने
किए है। ऐसे लोगों को लेकर पीएम को कोई संदेश देना चाहिए था, क्योंकि यह समय के
हिसाब से ज़रूरी चीज़ थी। तबलीग़ी जमात से जुड़े लोगों को कैसे ट्रैक किया जा रहा है और
अब तक क्या सफलता है इसका ठोस आंकड़ा नहीं है। फिर एक बार, जो भी है वो अख़बार और
चैनलों पर है! और हर जगह जानकारी अलग-अलग! पीएम मोदी को इस बारे में केंद्र की सूचनाओं को साझा करना चाहिए
था। क्योंकि यह संगीन अपराध था।
बलिदान के नाम पर सबसे बड़ी त्रासदी झेल रहे दिहाड़ी मजदूरों
के लिए क्या उपाय हैं इस पर अंधकार हटाकर दिया जला ही देते तो
ठीक था
देशभक्ति और बलिदान के नाम पर आज से नहीं बल्कि कई अरसे से उन लोगों को पीड़ित
बनना होता है जो इस त्रासदी के बिदा होने के बाद भी जिंदगीभर के लिए पीड़ित सरीखे
नागरिक बनकर रह जाते है। दिहाड़ी मजदूरों पर लॉकडाउन का सबसे ज्यादा असर पड़ा। सरकार
के पास ऐसे लोगों का कोई ठोस आंकड़ा है या नहीं, पीएम ने नहीं बताया। इनके परिवार की
रोज़ी-रोटी पर कोई असर नहीं होगा वाला आश्वासन दिया, लेकिन कैसे असर नहीं होगा, इसके
लिए सरकारी की क्या तैयारियां है, यह नहीं बताया!!! एक ट्वीट से विदेश में जहाज भेजकर वाहवाही लूंटना बुरा नहीं है तो फिर अपने ही बेघरों और अधमरे नागरिकों को संभ्हालना भी बुरा नहीं है।
सबसे बड़े सवाल को लेकर बात कर लेते कि लोगों की नौकरियां कैसे सुरक्षित रहेंगी, वे लोग खुशी में ही दिया जला देते
सबसे बड़े सवाल को लेकर बात कर लेते कि लोगों की नौकरियां कैसे सुरक्षित रहेंगी, वे लोग खुशी में ही दिया जला देते
जनता कर्फ़यूं के लागू होने से एक दिन पहले संभवित लॉकडाउन के इशारे दिए जा
चुके थे। और जिस दिन लॉकडाउन लागू हुआ तभी से एक सबसे बड़ा सवाल है अर्थतंत्र को
लेकर। जैसा कि आईएमएफ ने हाल ही में एलान किया है कि दुनिया इस समय मंदी की चपेट में आ चुकी है। इस हालात में
भारत सरकार की क्या तैयारी है यह तो पीएम को ही बताना चाहिए था, गांव का सरपंच
थोड़ी न बताएगा? आरबीआई ने जीडीपी के आंकड़े जारी नहीं किए हैं और इस बीमारी का असर इस पर पड़ना
तय है। पीएम मोदी अगर कोई ठोस आश्वासन देते तो निश्चित तौर लोगों का विश्वास और मजबूत
होता।
ऐसा क्यों है कि कोई नहीं जानता
कि एग्जिट पॉलिसी क्या है, पादरी के पास समय हो ना हो, पीएम के पास तो इतना समय था
कि इस पर प्रकाश डालते
एग्जिट पॉलिसी को लेकर हमने लेख के शुरुआत
में ही चर्चा की थी। उस चर्चा को दिमाग में रखे। खैर, इधर पीएम राज्यों के साथ यह
बात तो ज़रूर कर रहे है जिसमें धीरे धीरे लोगों का बाहर आना सुनिश्चित किया जा सके।
लेकिन जब कोरोना को लेकर केंद्र का ही कानून लागू है तो फिर एग्जिट पॉलिसी को लेकर
केंद्र की क्या रणनीति है इसे लेकर कोई स्पष्ट सूचना या स्पष्ट जानकारी आम जनता के
पास केंद्र से ही आनी चाहिए, इसका ठीकरा राज्यों पर नहीं फोड़ा जाना चाहिए। सैकड़ों लोग ऐसे है जो सिर्फ नरेंद्र मोदी को ही जानते-पहचानते है। इन सैकड़ों लोगों को अब
भी नहीं पता कि भारत का स्वास्थ्य मंत्री कौन है! उम्मीद है कि अब तक अज्ञान के
आनंदलोक में विहार करने के बाद कम से कम इस नीति को लेकर जनता के पास कोई ठोस
रोडमेप हो। जिनका साथ लेना है उन्हें भी पता होना चाहिए कि साथ देना कैसे है? दिया-बाती तो ठीक है, बुखार-खांसी का
क्या हाल है यह पता हो तो लोग व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी पर लोड देना बंद कर सकते हैं! एग्जिट पॉलिसी को लेकर दूसरी
जो मुख्य बातें थी वो हम लेख के शुरुआती दौर में लिख चुके हैं। लिहाजा वहीं से पढ़
लीजिए, दोबारा कॉपी-पेस्ट करने की ज़रूरत नहीं है। लॉकडाउन
कब खत्म होगा यह सवाल महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि एग्जिट पॉलिसी क्या है यह ज्यादा
मायने रखता है।
‘कुछ लोग’ कह सकते हैं कि यह सब पीएम का
काम नहीं है, इन चीजों के लिए विभाग होते हैं, और वे लोग जानकारी देते है, सब पीएम
नहीं कह सकते। यह ‘कुछ लोग’ कौन होंगे यह समझना आसान है।
उन ‘कुछ लोगों’ के लिए लेख की शुरुआत में
टूटी-फूटी शायरी है। शायरी टूटी-फूटी है, क्योंकि यह कुछ लोग भी...।
खैर, किंतु भारत के करोड़ों लोगों ने लॉकडाउन पर जैसा अमल किया
है, वह अभूतपूर्व तो है ही, सारी दुनिया के लिए भी प्रेरणादायक है। दुनिया के इस सबसे बड़े
लोकतंत्र ने यह सिद्ध किया है कि वह अनुशासन और संयम के मामले में भी किसी से पीछे
नहीं है। व्यापक अशिक्षा और ग़रीबी के बावजूद कोरोना से लड़ने में भारत के लोगों ने
बड़ी जागरूकता का परिचय दिया है। अंतिम बात यही कि भारत इस बीमारी के सामने
जितना भी अच्छा करेगा या जितना भी बुरा करेगा, उसके पीछे भारत की जनता ही प्रथम
रूप से ज़िम्मेदार होगी। क्योंकि लोकतंत्र में जो कुछ अच्छा हो या बुरा हो, सबसे
पहला श्रेय या दोष जनता को ही जाता है।
(इनसाइड इंडिया,
एम वाला)
Social Plugin