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Corona Criminals : एक दिया अंधेरगर्दी की इस दुनिया के लिए भी हो! जमात उधर भी है, जमात इधर भी है!



जमात...। यह लफ्ज़ किसी के लिए धर्मविशेष से जुड़ा हुआ शब्द हो सकता है, लेकिन ऐसा है नहीं। जमात लगभग तमाम धर्मों से जुड़ा हुआ विशेषण है। हालांकि कुछ लफ्जों का पहले जो मतलब हुआ करता था वो आजकल है नहीं। जैसे कि भक्त, विश्वगुरु, जमात, कांड, कारनामे... आदि। दरअसल इन लफ्जों का मतलब अब अंधेरगर्दी के आसपास जाकर ठहरता है। हमें तो बात करनी है जमात की। जमात उधर भी है, जमात इधर भी है।

सीधी सी बात है कि कोविड-19 की महामारी भारत ही नहीं समूची दुनिया के लिए अभूतपूर्व त्रासदी है। एक बेहद ही सुक्ष्म जीव ने पुरी दुनिया को हैरान-परेशान कर दिया है। ऐसा अकल्पनीय मंजर ना पुरानी पीढ़ी ने देखा है और ना ही नयी पीढ़ी ने। यह वाकई अविश्वसनीय दौर है जब लगभग पुरी दुनिया एक छोटे से जीव के सामने रुक सी गई है। दुनिया लड़ रही है, भारत लड़ रहा है, लेकिन इस बीच तबलीग़ी जमात ने जो किया वो वाकई हैरान करनेवाला है। हम ऐसी मूर्खताओं को लेकर पहले भी लिख चुके हैं कि इतना भी धार्मिक मत बनो कि धर्मसंकट यह हो कि धर्म ही संकट बन जाए। वैसे इस स्थिति में तबलीग़ी जमात का यह कारनामा मूर्खता नहीं है, बल्कि गुनाह है। भारत में अपनी पहचान और अपनी छवि के लिए फिर से जद्दोजहद करनेवाले मुसलमान समुदाय के लिए तबलीग़ी जमात का अपराध वाकई एक बड़ा धब्बा है।

पाकिस्तान और भारत की तुलना जब भी होती है तब कटाक्ष में कहा जाता है कि एक देश (पाकिस्तान) आज भी जमीनी सरहदों की तारें कैसे काटी जाए उसी में लगा रहता है, जबकि दूसरा देश (भारत) आसमान के उस पार जा चुका है। कटाक्ष सच भी है। लेकिन इस सच के पीछे वजह क्या है यह जानना बेहद ज़रूरी है। इसकी चर्चा बड़ी लंबी है, जिसमें बहूत सारे कोण-पहलू आएंगे। लंबी-चौड़ी चर्चा के बाद अंत एक ही वाक्य से होता है। यही कि भारत में धर्म बाद में रहा, देश पहले रहा, जबकि पाकिस्तान के लिए देश बाद में रहा, धर्म पहले रहा। इस एक वाक्य में ही लंबी चर्चा का सार है। भगवान-अल्लाह या ऊपरवाला, यूं कहे कि धर्म और इसके सामने देश या राष्ट्र... धर्म और राष्ट्र को लेकर हम पहले ही अलग लेख लिख चुके हैं और इस लेख के लिए उसी लेख में समन्वित नजरिया शामिल रहेगा।
आप कहेंगे कि तबलीग़ी जमात के मामलें में चर्चा भारत और पाकिस्तान को लेकर क्यों? चर्चा भारत-पाकिस्तान की नहीं है, चर्चा उस नजरिए की है जिसने दो देशों की प्रगति गाथा को भिन्न बनाया। नोट यह भी करे कि यहां तबलीग़ी ही जमात नहीं है... जमात उधर भी है, जमात इधर भी है!!! फेक न्यूज़ और भीड़ को लेकर हमने लिखा था कि भीड़ उसे ही नहीं कहा जा सकता जो सड़कों पर अधिक संख्या में हो। खाने के मेज पर बैठा हुआ अंधेरगर्दी की दुनिया का एक शख्स भी भीड़ का हिस्सा ही है! वैसे ही जमात का है। जमात में सैकड़ों लोग भी हो सकते है या घर पर बैठा एक शख्स भी। अंधेरगर्दी की दुनिया में तबलीग़ी भी जमात है, अकेली कनिका कपूर भी, दिया-बाती की जगह पटाखे फोड़नेवाले पच्चीस-पचास लोग भी, मोमबत्ती की जगह मशाल लेकर कूदने वाले नेताजी भी या रिवोल्वर लेकर फायरिंग करनेवाली नेत्री भी, थाली पीटते पीटते सड़क पर आकर कानून तोड़ने वाले उत्साही भी। जमात तो हर जगह है। लेकिन यह बात ज़रूर है कि तबलीग़ी जमात ने जो किया वो हैरान ही नहीं करता बल्कि इस स्थिति में सामूहिक अपराध की चरमसीमा है।

हम तो कई बार कहते हैं कि बीजेपी-संघ या उससे जु़ड़े संगठनों की मुसलमानों को लेकर जो अतिवादी कोशिशें है उसमें बीजेपी-संघ या उनके संगठनों पर बाद में उंगली उठाई जा सकती है, पहली उंगली तो मुस्लिमों पर ही उठती है। क्योंकि जब तक कोई मौका नहीं देता तब तक कोई चौका मारेगा भी कैसे? लेकिन साथ में यह भी नोट करे कि चिंतनात्मक लेखक या दार्शनिक लेखक उन अतिवादी कोशिशों को लेकर बीजेपी-संघ को जिस प्रकार से कटघरे में खड़ा करते है वो भी सही ही है, गलत नहीं है। क्योंकि सांप्रदायिकता-धार्मिक द्वेष की राजनीति के अपने बहुत बड़े जोख़िम है। हम बिना किसी तर्क के उस सत्य से पुरी तरह सहमत है जिसमें कहा जाता है कि बीजेपी-संघ के नये रंग-रूप ने भारत में हिंदू-मुस्लिमों का सालों या दशकों पुराना जो भावनात्मक रिश्ता था, जो नेचुरल लिंक था, उसे इतनी जबरदस्त चोट पहुंचायी है कि उसकी भरपाई कई दशकों तक नहीं की जा सकेगी। किंतु हिंदू-मुस्लिम चर्चा का जो मूल है वो लेखों में नहीं बल्कि समाज के भीतर रोजाना जिंदगियों में छुपा हुआ है, जिसे भी देखना चाहिए। समूचा देश चिंतनात्मक नहीं है, दार्शनिक नहीं है, बहुत सारा देश व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी वाला भी है। हम इस विषय पर बाद में एक अलग लेख लिखेंगे। समाज के भीतर जो रोजाना जिंदगियां है उसमें तो तबलीग़ी जमात का यह कारनामा मूर्खता नहीं बल्कि एक सामूहिक अपराध है, जिसने अपनी पहचान और अपनी छवि के लिए जद्दोजहद करनेवाले मुसलमानों के लिए चुनौतियां और कड़ी कर दी है।

बहुत ही सिंपल सी बात है कि कोविड-19 का इलाज धर्म के पास नहीं है, विज्ञान के पास है। इतनी सिंपल सी बात को सामूहिक रूप से खारिज करना या खारिज करने के लिए प्रेरित करना, यह सामाजिक अपराध तो है ही, किंतु जो स्थिति इन दिनों है, यह तो गंभीर कानूनी अपराध ही है। ऊपर से हजारों लोगों को दुनियाभर से बुलवाकर भारत के किसी एक इलाके में इकठ्ठा करना अपराध की चरमसीमा है। देश के सामूहिक प्रयासों पर पानी फैरने के बाद भी सह्योग की जगह असह्योग देना अक्षम्य सामाजिक द्रोह है। तबलीग़ी जमात को लेकर बाद में जो फेक न्यूज़ फैले, थूकने के जो झूठे वीडियों चले उसकी बात हम कर ही नहीं रहे है यह विशेष रूप से नोट करे। बात वही कर रहे है जो प्रमाणित है।
तबलीग़ी जमात, राज्य दिल्ली, जगह निज़ामुद्दीन। देशभर से सैकड़ों मुस्लिम धर्मगुरु इक्ठ्ठा हुए, विदेशों से कई मुस्लिम धार्मिक प्रतिनिधि आएं। उपरांत देश-विदेश से कई दूसरे लोग भी पहुंचे। कोई प्रमाणित आंकड़ा तो नहीं है लेकिन कहा गया कि तादाद हजारों में थी। देशभर में सब कुछ बंद था। केंद्र सरकार की तरफ से सूचना जारी हो चुकी थी। राज्य सरकारें भी आदेश दे चुकी थी। पीएम देश को संबोधित कर बता चुके थे। तबलीग़ी जमात का कहना है कि वो जमा हुए उसके बाद सरकार से सूचना जारी हुई, आदेश आए, पीएम ने संबोधित किया और लॉकडाउन हुआ। 17 गाड़ियों के लिए कर्फ़यू पास मांगने की बात भी सामने आई। चलो मान लेते है सब। लेकिन फिर सवाल उठता है कि हजारों की तादाद में लोग थे वो अभी सामने क्यों नहीं आ रहे? वो सरकार को सह्योग क्यों नहीं दे रहे? वो लोग दूसरे हजारों-लाखों लोगों के बारे में क्यो नहीं सोच रहे है? ऐसा क्यों है कि राज्यों की पुलिस उन्हें ढूंढ रही है? धर्म की मूल समझ के हिसाब से तो उन्हें खुद ही सामने आना चाहिए और सह्योग देना चाहिए। लेकिन उन्हें ढूंढना पड़ रहा है! इतनी नासमझी क्यों है?

कहा गया कि दिल्ली पुलिस को पहले से जानकारी मिल चुकी थी तबलीग़ी जमात की भीड़ को लेकर। पुलिस आयोजकों को थानें में बुलाकर बातचीत कर रही हो ऐसे प्रमाणित वीडियो भी है। बाकायदा नोटिस भी दिया गया था। डब्ल्यूएचओ की टीम 27 मार्च को पुलिस के साथ वहां पहुंची भी थी। तबलीग़ी जमात वाले यह बता नहीं रहे कि उस दिन दरवाजा खुलवानें में पुलिस और डब्ल्यूएचओ की टीम को मशक्कत क्यों करनी पड़ी थी? वो लोग दरवाजा क्यों खोल नहीं रहे थे? उसके बाद भी पुलिस ने नोटिस दिया। दिल्ली सरकार को सूचना दी। अजित डोभाल जैसा सबसे ताकतवर नौकरशाह भी मौलाना साद के साथ मामले में दिखाई दिया। संदिग्ध सामूहिक संक्रमण के इस मामले में बगैर मास्क के थे डोभाल साहब, इसे लेकर भी बातें हुई। लोगों को निकालने के लिए केंद्र सरकार, दिल्ली पुलिस और दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने कौन सी गंभीर कोशिशें की यह किसीको नहीं पता। सब दोषारोपण करते रहे। निज़ामुद्दीन मरकज़ वाला मामला केंद्र, दिल्ली पुलिस और दिल्ली सरकार, तीनों के सामने सवाल खड़े करने के लिए काफी है। लेकिन बात अंधेरगर्दी की दुनिया की हो रही है, इसलिए निज़ामुद्दीन मरकज़ के दूसरे तमाम जायज या नाजायज सवाल अपने-अपने हिसाब से देख लें।    

कोरोना संक्रमण के बीच ये लोग जमा हुए और अब देशभर में फैल चुके हैं! कई राज्यों की सरकारें उन्हें ढूंढ रही हैं, ताकि ऐसे लोगों को अलग किया जा सके। महाराष्ट्र सरकार ने तो 6 मार्च को ही जमात के कार्यक्रम को दी गई पूर्वमंजूरी को रद्द कर दिया था। रद्द होने के बाद जमात अड़ गई तो वहां की सरकार ने कानूनी कार्रवाई की चेतावनी भी दी। इस तथ्य में दिल्ली निज़ामुद्दीन मरकज़ को लेकर दिल्ली पुलिस और दिल्ली सरकार से सवाल तो बनते है, लेकिन मरकज़ से ही मूल सवाल क्यों न हो? उन्हें महाराष्ट्र से पता चल चुका था कि मामला नाजुक है तो फिर दिल्ली में धर्म का गैरज़रूरी जमावड़ा करने की ज़रूरत क्यों महसूस हुई? मान लेते है कि सरकारें-पुलिस आदि नासमझ है, लेकिन धर्म के धुरंधरों को तो समझ होनी चाहिए थी। और यह समझ अब भी जाग क्यों नहीं रही है? अभी भी सैकड़ों जमाती ऐसे हैं जिन्होंंने अपने आपको अस्पतालों के हवाले नहीं किया है! क्या उनके लिए कोई स्पेशल आमंत्रण पत्र तैयार करे भारत सरकार? तभी आएंगे?
जितनों को अस्पताल पहुंचाया गया है वो भी मुहब्बत से तो नहीं गए! जो कह रहे थे कि हमने तों कर्फ़यू पास मांगे थे, वही दरवाजा नहीं खोल रहे थे! तो फिर कर्फ़यू पास क्यों मांगे थे भाई? ऊपर से अस्पतालों में इनकी हरकतों को लेकर सबसे बड़ा बयान स्वयं दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन ने ही दिया है। जैन ने कहा कि तबलीग़ी जमात के लोग इलाज में साथ नहीं दे रहे है और उनका व्यवहार भी अच्छा नहीं है। एक पुष्ट बयान का यह हिस्सा कितना कुछ कह जाता है यह मैट्रिक पास आदमी भी समझ सकता है। बकौल जैन तबलीग़ी जमात के लोग अस्पतालों में जाकर भी कह रहे है कि हमें इलाज की ज़रूरत ही नहीं है! समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक उत्तर रेलवे के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी दीपक कुमार ने भी बताया था कि ये लोग कर्मचारियों के साथ बुरा व्यवहार कर रहे है। मौलाना साद अपने लोगों को नसीहत क्यों नहीं देते? वो तो खुद ही कही बैठे है! सरकारी नोटिस का भी उड़ाऊ जवाब दे रहे है! अपने वकील के जरिए जवाब देते है, खुद नहीं देते! ये सारी चीजें क्या दर्शाती है?

मौलाना साद के भाषणों पर ग़ौर करें तो पता चलता है कि उन्होंने कोरोना के सारे मामले को मुस्लिम विरोधी और इस्लाम विरोधी सिद्ध करने की कोशिश की। मौलाना साद ने अपनी करतूतों के लिए पश्चाताप नहीं किया और माफ़ी भी नहीं माँगी है। ऊपर से उनके कुछ ओडियों भी क्राइम ब्रांच के पास है, जिसमें वे अपने भक्तों को बता रहे है कि मौत के लिए मस्जिद से ज्यादा अच्छी जगह कोई नहीं है, कोरोना हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता!!! यह ईरान की एक घटना जैसा था, जिसमें वहां के सुप्रीम लीडर मौलवी मुहम्मद सईदी ने तो यहां तक कह दिया था कि धार्मिक जगहों पर आने से ऐसी बीमारियां ठीक हो जाती है!!! फिर ईरान का क्या हाल हुआ सबको पता है। मौलाना साद को कहना चाहिए कि अगर कोरोना उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता तो फिर मस्जिद में मौत की बात का उपदेश ही क्यों दिया? धर्म लोगों को बचाता है या मारता है? नये धार्मिक प्रतिनिधियों से मुस्लिम समाज की नयी पीढ़ी को पूछना चाहिए।

इसे हिंदू-मुस्लिम का मुद्दा बनाए बगैर कहे तो प्रथम रूप से ही तबलीग़ी जमात का साफ़-साफ़ दोष है। दुनियाभर में उनकी प्रमुख धार्मिक जगहें बंद थी, फिर भी इन्हें इधर धार्मिक जमावड़ा जमाना था! सच्चाई यह है कि तबलीग़ी जमात ने अपनी गैरजिम्मेदाराना हरकतों से भारत के तमाम मुसलमानों को न केवल शर्मिंदा किया है, बल्कि बहुत ज्यादा सामाजिक नुकसान भी कर दिया है। ये सच है कि दिल्ली दंगे के समय मीडिया को ताहिर मिल गया था अब की बार मरकज़ मिल गया। मीडिया को लेकर तो सबको पता है। सिर्फ जी न्यूज़ वालों को ही नहीं सभी न्यूज़ वालों को भी धंधा करना है भाई! उनका धंधा चलाने के लिए मरकज़ वाले सामने से कूदेंगे तो वे थोड़ी न आलसी है? तबलीग़ी जमात ने जो किया उसके लिए कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए।
वायरस का संक्रमण बढ़ता जा रहा था और इस बीच भोपाल पुलिस को सामूहिक रूप से नमाज अदा करने वालों पर एफ़आईआर दर्ज करनी पड़ी। दुनिया चलानेवाले अल्लाह-भगवान आदि की जगहें बंद थी, दुनिया बचाने वाले अस्पताल ही खुले थे। लेकिन फिर एक बार धर्म आगे निकला, देश हार गया! देशव्यापी लॉकडाउन जारी था, भोपाल में तो कर्फ़यू लगा हुआ था। धार्मिक जगहों, धार्मिक कार्यक्रमों, सामूहिक कार्यक्रमों को लेकर भी कानून लागू था। भोपाल के शहर क़ाज़ी ने लोगों से अपने-अपने घरों में ही नमाज़ अदा करने की अपील की थी। इस तरह की अपील उलेमाओं ने पूरे देश में की थी। लेकिन कुछ जगहों पर लोग सुधरने का नाम नहीं ले रहे थे और चंद लोगों की करतूते समूचे समाज को अपराध की अवधारणा के अंधेरे में ठेले जा रही थी। पुराने भोपाल में एक घर के भीतर सामूहिक रूप से नमाज अदा कराये जाने को लेकर खबर मिली। मकान मालिक समेत तीस लोगों पर एफआईआर दर्ज की गई। मामला थाना टीलाजमालपुरा में दर्ज हुआ।

इस घटना के बाद यूपी के ही कन्नौज जिले में जुमे की नमाज अदा करने के लिए भीड़ जुटी। भीड़ को हटाने गई पुलिस पर पथराव किया गया। चौकी इंचार्ज समेत तीन पुलिसकर्मी घायल हो गए। देश की राजधानी दिल्ली में तो निज़ामुद्दीन तबलीग़ी जमात वाला मामला चल ही पड़ा था। इसके साथ ही यहां वसंत कुंज उत्तरी इलाके में एक मस्जिद में तीस से ज्यादा लोग जमा हुए। दिल्ली पुलिस ने सभी के खिलाफ आईपीसी 188 के तहत केस दर्ज किया। नोएडा के सेक्टर 20 स्थित आवासीय कॉलोनी में एक छत पर समूह में नमाज अदा करने का मामला सामने आया। सामूहिक नमाज को लेकर पुलिस पर हमले का भी वाक़या हुआ।

जनता कर्फ़यू के दिन, जो रात को नौ बजे खत्म होनेवाला था, शाम पांच बजे ही अहमदाबाद के शाहीबाग बीएपीएस मंदिर में 20 से ज्यादा की तादाद में संत और हरिभक्त इक्ठ्ठा हो गए और ढोल-नगाड़े बजाने लगे, नाचने लगे, उत्सव मनाने लगे! स्थानिक अखबार ने इस रिपोर्ट को छापा था। निज़ामुद्दीन वाले मामले के ठीक बाद मजनूं का टिला से भी सैकड़ों को निकाला गया था। जिन दिनों दिल्ली में तबलीग़ी जमात का जमावड़ा हो रहा था, उन्हीं दिनों पटना, हरिद्वार, मथुरा तथा कई अन्य स्थानों पर हिंदूओं ने भी धार्मिक त्योहारों के नाम पर हज़ारों लोगों की भीड़ जमा कर रखी थी! धर्म को सबसे आगे आना चाहिए वही धर्म लोगों को भ्रमित कर रहा था!!! जैसे मौलाना साद ने निहायती बेवकूफी वाली समझ दी अपने लोगों को, हमारे यहां भी हिंदू महासभा के स्वामी चक्रपाणी ने कह दिया था कि कोरोना वायरस नहीं है बल्कि एक अवतार है!!! इन्होंने कोरोना को नोनवेज के साथ जोड़ दिया था!
हम इस लेख में जनता कर्फ़यू और लॉकडाउन के बाद के कारनामों को ही लिख रहे है, लिहाजा इससे पहले जितने भी कारनामें हुए, मसलन मोटेरा स्टेडियम में नमस्ते ट्रंप वाला एक लाख लोगों का कारनामा, एमपी में कांग्रेस-बीजेपी की राजनीति का कारनामा, दिल्ली का हंगामेदार चुनाव और फिर जश्न के दौर, नागरिकता कानून को लेकर विविध जगहों पर सामूहिक प्रदर्शन, विदेश से धड़ल्ले से लोगों का आवागमन, इन सब चीजों को खुद ही सोच लीजिएगा। हम इसलिए इन चीजों को इस लेख में जगह नहीं दे रहे है, क्योंकि इसमें अंधेरगर्दी की दुनिया से भी ज्यादा सरकारी लापरवाही वाला एंगल मजबूत है। हम तो यहां जनता कर्फ़यू और फिर लॉकडाउन के बाद के जमाती कारनामों को लेकर ही बात कर रहे है।

लोगों पर ही लॉकडाउन के उल्लंघन का दोष ना मड़े। जिनके ऊपर लॉकडाउन के समय सबसे बड़ी जिम्मेदारी है वही लोग गजब का उदाहरण पेश करते दिखाई दिए थे यह भी याद रखे। जनता कर्फ़यू के बाद गुजरात के स्थानिक अखबार दिव्य भास्कर का एक रिपोर्ट था। इस रिपोर्ट की माने तो इन दिनों अहमदाबाद के गुजरात कॉलेज के पास कई पुलिसकर्मी क्रिकेट खेल रहे थे!!! रिपोर्ट के मुताबिक इस कारनामे का वीडियों भी वायरल हुआ था। हालांकि लोगों ने जितना कानून का उल्लंघन किया है उतना पुलिस कर्मियों ने किया हो ऐसे वाक़ये बहुत बहुत की कम है। लेकिन कम या ज्यादा की तुलना तो आम नागरिकों के कारनामों को लेकर हो सकती है, कानून के रख़वालों के कारनामों को लेकर नहीं।

एक जगह से तो गजब लापरवाही का नमूना सामने आया। जिन योद्धाओं को लेकर लोग एकजुट थे, सामूहिक अभिवादन हो रहा था, उन्ही योद्धाओं को उनके ही कुछ सैनिक शर्मिंदा कर गए। मुंबई के बिंद्रा कॉम्प्लेक्स से महाकाली अंधेरी का एक वाक़या सामने आया, जहां वायरस के संदिग्ध मरीज़ को लेने आए एम्बुलेंस के स्टाफ ने अपने हाथों के दस्तानों को वहीं खुले में फेंक दिया और चले गए!!!
जमाती कारनामों की शुभ शुरुआत जनता कर्फ़यू के दिन ही हो चुकी थी! देशभर में हुई थी यह शुभ शुरुआत। पीएम मोदी ने जनता कर्फ़यू के दिन शाम पांच बजे घर में रहकर ही थाली-ताली पीटने का आह्वान किया था। पीएम का आह्वान हमेशा आधा-अधूरा होता है, जिससे असमंजस ज्यादा फैलता है इसका जिक्र हम कोरोना को लेकर पिछले लेख में कर ही चुके है, लिहाजा उस कोण को हम यहां छोड़ देते है। शाम पांच बजे घर में ही रहकर थाली-ताली वाला आह्वान हुआ उसके बाद गुजरात में सीएम विजय रुपाणी ने बाकायदा लोगों को कहा था कि रात नौ बजे के बाद भी घर में ही रहे, बाहर ना निकले। लेकिन शाम पांच बजे तो यही लगा कि जनता कर्फ़यू खत्म हो गया, कोरोना मर गया, अब कोई खतरा नहीं है!!! थाली-ताली-शंख जो भी पीटना-फूंकना था घर से ही करना था, लेकिन लोग घरों से बाहर निकल आए!!! हमारे यहां तो कॉर्पोरेटर सरीखे जिम्मेदार व्यक्ति का पूरा परिवार सोसायटी के मेन रास्ते पर थाली लेकर आ गया!!! और ऐसा नजारा देशभर में था!

कोरोना के खिलाफ सच्ची लड़ाई जो लड़ रहे है उनका अभिवादन करने हेतु पीएम का आह्वान था, लेकिन लोगों का जोश इतना बढ़ा कि देशभर के शहरों में लोग सड़कों पर दिखाई दिए! थाली-ताली-शंख के साथ ही नहीं बल्कि बड़े-बड़े तिरंगों के साथ!!! रैलियां निकली, जुलूस निकले, संगीत बजा, डांस हुआ, गरबा खेला, जैसे कि कोरोना की शादी हो और दुल्हन को लेने दूल्हा निकल पड़ा हो!!! लोगों का हुजूम सड़कों पर था इस शाम! पांच बजे के बाद तो जैसे कि जनता कर्फ़यू खत्म हो गया था, कोरोना वायरस मर चुका था!!! हालात यह हुए कि पुलिस को सख्ती करनी पड़ी और जमात को कहना पड़ गया कि जनता कर्फ़यू अब भी चल ही रहा है, जो करना है घर के अंदर जाकर करो। लोग सड़कों पर आकर गरबा करने लगे थे!!! अहमदाबाद की खाडिया और रायपुर पुलिस ने इस मामले को लेकर शिकायतें भी दर्ज की थी।

एक वैश्विक बीमारी को फेस्टीवल के रूप में परिवर्तित करने का श्रेय इन्हीं जमातों के हिस्से जाता है। निहायती गैर-जिम्मेदाराना तरीके से सरधस निकले, रैलियां निकली, जुलूस निकले, शौर-गुल हुआ, ढोल-नगाड़े बजे, पटाखे फूटे...। उत्सव ऐसा जैसे कोविड-19 लोगों की एकजुटता देखकर वापस चीन लौट गया हो!
गुजरात में कोविड-19 से संक्रमितों का आंकड़ा बढ़ता जा रहा था। यह वह दिन थे जब गुजरात में कोविड-19 का मृत्यु दर दुनिया के रिकॉर्ड तोड़ रहा था। मेडिकल इमरजेंसी को देखते हुए अहमदाबाद म्युनिसिपल कारपोरेशन ने अर्बन हेल्थ सोसायटी के तहत 350 से ज्यादा मेडिकल व पेरा मेडिकल कर्मियों की कांट्रेक्ट भर्ती की प्रक्रिया शुरु की। मेडिकल इमरजेंसी को देखते हुए या मेडिकल इमरजेंसी के नाम पर यह फिलहाल तो नहीं पता! लॉकडाउन के बीच यहां मेडिकल भर्ती की प्रक्रिया कितनी जायज थी या कितनी नाजायज यह विशेषज्ञों को पता होगा। लेकिन उस दिन सुबह से ही इच्छुक उम्मीदवारों का तांता लगने लगा था। मीडिया रिपोर्ट की माने तो इंटरव्यू देने आए उम्मीदवारों ने जेरॉक्स की दुकान के आगे लंबी लाइन लगा दी थी! अब यह नहीं पता कि वहां जेरॉक्स की दुकान खोलने की इजाज़त किसने दी थी? कारपोरेशन की आरोग्य कचहरी के सामने ही भीड़ थी उस दिन! सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां तो उड़नी ही थी। जो कारपोरेशन शहर की सड़कों पर जाकर आम दुकानदारों को एक मीटर के अंतर का ज्ञान बांट रहा था, सर्किल बनाने को कह रहा था, उसीकी दहलीज पर सारे निर्देश, सारे एहतियाति कदमों की ऐसी-तैसी हो गई उस दिन!!!

हद तो तब होती है जब ऐसे लोग ही आजकल व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी में स्टेटस डालकर जागरूक रहने की और सरकार को साथ देने की अपीलें करते रहते है!!! दिन भर वो नगर-दर्शन हेतु छुप-छुप कर घूमते हैं और फिर आकर बताते भी हैं कि फलाना-फलाना जगहों पर लोग बाहर आ रहे हैं, कोरोना के खिलाफ लड़ाई में साथ नहीं दे रहे!!! जनता कर्फ्यू की अपील इसलिए की गई थी कि लोग घरों में रहें और सोशल डिस्टेंसिंग का मतलब समझें। देश के लगभग सभी शहरों में जनता कर्फ्यू शुरुआती घंटों में बेहद सफल रहा और लोग बहुत ज़रूरी होने पर ही घरों से बाहर निकले। लेकिन शाम 5 बजे के बाद एकदम माहौल बदल गया और लोगों ने वो जश्न मनाया कि मानो भारत ने विश्व कप जीत लिया हो!!! कुल मिलाकर उन्होंने जनता कर्फ्यू की ऐसी-तैसी कर दी।

क्या दिल्ली और क्या इंदौर, क्या अहमदाबाद और क्या देश के दूसरे इलाक़े। लोग वो नाचे, वो नाचे कि वीडियो को देखा तो पहले तो जी-भरकर हंसी आई, लेकिन फिर लानत-मलानत भी महसूस हुई। जनता कर्फ्यू का समय सुबह 7 बजे से रात 9 बजे तक रखा गया था और लोगों से अपील की गई थी कि वे इस तय समय सीमा का पालन करें। लेकिन न जाने ऐसा क्या हो गया कि लोग 5 बजते ही हाथों में तिरंगा लेकर घरों से निकल पड़े और जो लोग घरों में बैठे थे उन्हें भी बुला लाये और अगले तीन घंटे तक ढोल की थाप पर नाचते रहे!!! छोटे बच्चों से लेकर बड़े-बूढ़ों तक ने इतने नाजुक वक़्त में बिना कोई एहतियात रखे सड़कों पर जमकर धमाल मचाया! कोरोना की वैश्विक महामारी का खौफ दुनिया भर में फैला था, लेकिन यदि दुनिया यह वीडियों देखती तो माथा ही पीट देती।
ख़ुशी में नाचते-झूमते गाते इन लोगों के वीडियो प्रधानमंत्री कार्यालय तक भी पहुंचे और तुरंत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर जश्न मनाने वालों को नसीहत भी दी और कहा कि इसे सफलता ना माने, लड़ाई लंबी है। पीएम मोदी लोगों को नसीहत दे गए किंतु अपने मंत्रियों को नहीं दे सकें!!! जनता कर्फ़यू के दिन से लेकर आज के दिन तक उनके ही नेता, कार्यकर्ताओं को लेकर ऐसी सच्ची खबरें और तस्वीरें आई। एमपी का हाल देख लीजिए। जनता कर्फ़यू के चंद घंटों पहले कमलनाथ सरकार गिर गई, शिवराज सीएम बने। जनता कर्फ़यू के बावजूद यहां से सामूहिक जश्न की तस्वीरें आई! एक सच्ची और प्रमाणित तस्वीर में तो सीएम शिवराज सिंह चौहाण, नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव सैकड़ों कार्यकर्ताओं के साथ खड़े दिख रहे थे!!! इन दिनों फ़ोन कॉल, टीवी, इंटरनेट के माध्यम से सरकार देश के हर नागरिक से एहतियात रखने को, दूरी बनाए रखने को कह रही थी और इधर एमपी में बीजेपी नेता एक-दूसरे से गले मिलने से बाज़ नहीं आ रहे थे!!!

नोट यह भी करे कि यह वही समय था जब देशभर में कनिका कपूर के मामले को लेकर हड़कंप मचा था। बॉलीवुड गायिका कनिका कपूर का मामला कई पर्ते उघेड़ता है, कई सवालों को खड़ा करता है। लेकिन एकजुट होने के आह्वान के नीचे और थाली-ताली-दिया-बाती के सामने यह रहस्य पीछे जा चुका है! कनिका कपूर ने एरपोर्ट के थर्मल स्क्रिनींग से कैसे पार पाया यह ना पूछे, क्योंकि विजय माल्या करोड़ों रुपये बकाया होने के बाद भी बैंकों से लोन पाता रहा तो कनिका कपूर एक जांच से पार नहीं पाएगी? कनिका कपूर कोविड-19 लेकर भारत में लौटी। कनिका ने जो किया वो बैकुंठ उत्थान नहीं था कि उसकी प्रशंसा हो। लौटने के बाद जो हुआ वो जमात का पहला सबसे बड़ा उदाहरण था। हमने ऊपर के पैरा में नेताओं की एक-दूसरे से गले मिलने से बाज़ नहीं आने की जो शिकायत की वह शिकायत भी छोटी पड़ गई जब पता चला कि यहां तो सीएम, कैबिनेट से लेकर राष्ट्रपति कार्यालय तक कनिका कपूर का परचम लहरा रहा है!!! राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, उनके बेटे दुष्यंत सिंह, सासंद वरुण गांधी, पूर्व केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल, सासंद दीपेंद्र सिंह हुड्डा, स्वास्थ्य मंत्री जय प्रताप सिंह, सासंद डेरेक ओ ब्रायन... क्या बीजेपी, क्या कांग्रेस, क्या टीएमसी... सूची इतनी लंबी थी कि आनन-फानन में कई नामों को यकीनन छिपा दिया गया होगा। बताइए, लोगों को सरकार कह रह थी कि अलग-थलग रहो, हाथ मत मिलाओ, इधर यह लोग पार्टियां मना रहे थे, गले मिल रहे थे, मस्ती में चूर थे!!!

विदेश से संक्रमित होकर कनिका कपूर आराम से भारत लौटी!!! फिर लखनउ और कानपुर में बड़े-बड़े सार्वजनिक कार्यक्र्म भी किए!!! नामी सासंदों, नामी मंत्री, पूर्व मुख्यमंत्री, स्वास्थ मंत्री सरीखे हाई प्रोफाइल मेहमानों के साथ जश्न मनाया!!! फिर उन मेहमानों ने भी अन्य जगहों पर जाकर कई छोटे-मोटे कार्यक्रम कर लिए!!!
इतने गंभीर हालात में भी यह नेता लोग सैकड़ों की भीड़ में गलबहियां कर रहे थे! उन्हें जश्न मनाने से किसी ने नहीं रोका, ऊपर से उनके जश्न के चलते पूरे राज्य और देश में हड़कंप फैल गया। तमाम राजनीतिक दलों के बागड़बिल्लें शामिल थे, सो मीडिया को कोई आदेश आ गया होगा। इसीलिए मशीनगन की नाल सिर्फ कनिका कपूर की तरफ मौड़ दी गई!!! धड़ल्ले से आधी रात को गले मिल-मिल कर चकाचौंध वाली राजनेताओं की पार्टी को लेकर कोई बात नहीं हुई!!! लोग तो कोरोना को लेकर जागरूक थे, ऐसी बातों को लेकर तो लोग सदैव अंधेरगर्दी की दुनिया में ही होते हैं! सो लोगों ने भी कनिका कपूर पर मिसाइलें लांच की, नेताओं को बक्ष दिया!!!

उधर गायिका कनिका कपूर भी सेलिब्रिटी थी, नख़रे तो करने ही थे उसको! लखनऊ के संजय गांधी पीजीआई अस्पताल में दाख़िल कराया गया था कनिकाजी को। एक दिन बाद ही स्थिति ऐसी हो गई कि अस्पताल को एक प्रेस रिलीज़ जारी करके कनिका से सहयोग की अपील करनी पड़ी!!! भाई, सेलिब्रिटी थी और बड़े-बड़े लोगों के साथ जश्न मनाकर आई थी, मामूली सा अस्पताल और पीएम के वो चिकित्सक योद्धा कनिका को कैसे कुछ बोल सकते थे? तभी तो प्रेस रिलीज़ जारी कर अस्पताल को अपने एक मरीज़ को इलाज में सह्योग देने की अपील करनी पड़ी!!! वर्ना वो सीधा भी तो बता सकते थे, लेकिन बात पहले से ही टेढ़ी थी तो खीर सीधी उंगली से निकलती भी कैसे? घर का ही खाना खाउंगी, मुझसे अच्छा व्यवहार नहीं किया जा रहा, गंदगी है, यह सुविधा नहीं है वो सुविधा नहीं है... कनिका ने कंपलेन लेटर सोशल मीडिया पर डाल दिया। अस्पताल को प्रेस रिलीज़ जारी कर कहना पड़ा कि कनिका को समझना चाहिए कि वो एक मरीज़ है स्टार नहीं है, उनका इलाज चल रहा है और ठीक तरीके से ही चल रहा है। अरे भाई, इतने सारे महा-संक्रमित लोगों को संक्रमित करके अस्पताल आने का रिकॉर्ड था तो नखरें तो करेगी ही न? मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक अस्पताल प्रशासन के एक जिम्मेदार व्यक्ति ने नाम न छापने की शर्त पर बताया था कि कनिका कपूर को लेकर ऊपर से बड़े लोग अनावश्यक दबाव बना रहे है! बड़े लोगों की पार्टी की शान थी तो फिर बड़े लोग खयाल तो रखेंगे ही न। है न?

ऊपर से कनिका की एक दूसरी सेलिब्रिटी दोस्त मिनी माथुर ने कह दिया कि वो कनिका को पर्सनली तो नहीं जानती लेकिन उसे (कनिका को) पता होता तो वो दूसरों को और अपने ही घर के लोगों को ख़तरे में क्यों डालती, वह गैर जिम्मेदार हो सकती है, अपराधी नहीं, कनिका के खिलाफ शिकायत विंच हंट जैसी है, उसके लिए दयालु बने, क्रूर नहीं। यह बॉलीवुड की दूसरी नायिका मिनी माथुर का कनिका कपूर को लेकर किया गया ट्वीट था। मिनी माथुर की दलील लागू करे तब तो भारत में किसीके खिलाफ शिकायत नहीं होनी चाहिए थी और सारे मासूम बच्चे ही माने जाने चाहिए थे। मिनी माथुर की अपनी सोच है, लेकिन सेलिब्रिटी की सोच भी उसके स्तर जितनी ऊंची ही हो यह ज़रूरी नहीं है! वैसे भी बॉलीवुड के लिए तो अंडरवर्ल्ड और उस अपराध की दुनिया के अपने साथी नायक-नायिकाएँ भी निर्दोष और मासूम ही है! यह वही बॉलीवुड है जिसकी एक जमात 2019 के लोकसभा चुनावों के ठीक पहले एक स्टिंग में कह चुकी है कि जो पैसा देगा उसके पक्ष में प्रचार करेंगे!
सोशल डिस्टेंसिंग के बेहद ज़रूरी दौर में भी लापरवाह जमात के कुछ लोग कइयों को आमंत्रित कर बर्थ-डे सेलिब्रेशन कर रहे थे। इसमें लोग ही नहीं नेता भी शामिल थे। अप्रैल का महीना शुरू हो चुका था। भारत अघोषित रूप से तीसरे चरण में प्रवेश कर चुका था। स्थिति गंभीर थी। इस गंभीर हालात में भी महाराष्ट्र के वर्धा से बीजेपी विधायक दादाराव केचे के घर पर 5 अप्रैल को उनके जन्मदिन के मौक़े पर लगभग 200 लोग जमा हो गए। ये वह दिन था जब पीएम मोदी ने नौ बजे नौ मिनट वाला आह्वान किया था। स्थानीय अधिकारियों ने दादाराव को नोटिस दिया तो दादाराव ने ऐसी किसी घटना से इनकार कर दिया। उल्टा गजब का बहाना बता कर कह दिया कि मैंने तो 21 मजदूरों को बुलाया था, जो इन दिनों बगैर काम के बैठे थे, मैंने तो इन्हें अपने जन्म-दिन पर अनाज बांटने के लिए बुलाया था। बताइए, क्या गजब की समाजसेवा है! ज़रूरतमंदों के पास नहीं गए नेताजी, बल्कि ज़रूरतमंदों को अपने घर पर इक्ठ्ठा किया! बहाने तो ऐसे गजब के कि कोरोना भी सोचता होगा कि मैं कहा आकर फंस गया!!!

इसी दिन अजब से लेकर गजब का कारनामा बीजेपी महिला मोर्चा की एक नेता ने भी कर दिया। यूपी के बलरामपुर ज़िले से बीजेपी महिला मोर्चे की जिलाध्यक्ष मंजू तिवारीजी तो 5 अप्रैल को पीएम के आह्वान के बाद इतनी हरखपदूड़ी (गुजराती शब्द है, जिसका मतलब होता है अति उत्साह में आकर मूर्खता करनेवाला इंसान) हो गई कि इन्होंने तो बाहर आकर हवाई फायरिंग ही कर दी!!! उत्साह इतना अति था कि इन्होंने ना केवल हवाई फायरिंग की, बल्कि इसका वीडियो फेसबुक पर भी डाल दिया!!! फज़ीहत होने के बाद इन्होंने माफी भी मांग ली। कहा कि बहूत शर्मिंदा हूं, लज्जित हूं और जब तक जिंदा रहूंगी ऐसी गलती कभी नहीं करुंगी। क्या यह सब इतना आसान है कि ऐसी भयंकर महामारी के सबसे नाजुक दौर में गलती नहीं बल्कि गुनाह कर दो और फिर माफी मांगकर पतली गली से निकल लो। तब तो देशभर में जितनी शिकायतें दर्ज हुई हैं सबको फाड़कर फेंक ही दो।

पीएम मोदी ने जनता से अपील की, लेकिन शायद उन्हें अपने मंत्रियों और अपने नेताओं के सामने डंडा लेकर ही चले जाना चाहिए और कहना चाहिए कि आपके लिए कोई स्पेशल अध्यादेश बाहर निकालूं क्या? क्योंकि इस सूची में बीजेपी के विधायक और महाशय राजा सिंह की निहायती जाहिलानां हरकत का आना अभी बाकी था। दिन वही था, 5 अप्रैल। तेलंगाना के गोशामहल से बीजेपी विधायक राजा सिंह एक कदम आगे निकले। उन्होंने दीया, मोमबत्ती, टॉर्च या फिर मोबाइल की फ्लैश लाइट तो नहीं जलाई, लेकिन भीड़ को साथ लेकर मशाल जलाते ज़रूर नजर आए!!! ऊपर से अपनी हरकत को सोशल मीडिया पर डालकर गौरवान्वित भी होने लगे! विधायकजी के हाथ में मशाल और पीछे सैकड़ों लोग! वो भी सड़क पर! मशाल जलानी थी तो घर में ही जला देते, कोई मना नहीं कर रहा था। लेकिन वो तो सचमुच राजा बनकर ही निकले! याद रखना होगा कि यह वही तेलंगाना था जिसके सीएम ने कहा था कि लोग यदि बिना वजह के घर से बाहर निकले तो गोली मारने के ओर्डर भी देने पड़ सकते हैं। राजा सिंह ने कहा कि चलाओ गोली अब!!! अपने ही सीएम की धज्जियां तो उड़ा दी, ऊपर से अपने ही पीएम की नसीहतों को ठेंगा दिखा दिया! पीएम देश को नसीहत दे सकते है, अपने नेताओं को नहीं। वो तो कह देंगे, जैसे उस दौर में कहा था, मंत्री नयी है, दलित है, पिछड़े समाज से आयी है, हो जाता है, माफ कर दीजिए। याद है न? ससंद के भीतर ही हुआ था!   
कोरोना वायरस को अंग्रेजी आती होगी, तभी तो इन्होंने मशाल वाले जुलूस में गो बैक गो बैक चाइना वायरस के नारे भी लगाए!!! राजा सिंह ने महाराष्ट्र के नेता रामदास अठावले से प्रेरणा ली होगी, जिन्होंने थाली पीटते पीटते गो बेक कोरोना का नारा दिया था!!! अरे भाई, इन्हें ही नेता कहते है, वर्ना राजपुरूष ना कहते? जिस वायरस को सूर्य प्रकाश नहीं मार पाया उसे हमारे नेता मशाल से जला देंगे!!! दुनिया को हमारे इन नेताओं से समझना चाहिए कि आप लोग फालतू में इतना तंग हो रहे हो कोरोना से! दूसरी बात हमारी जनता को भी समझनी चाहिए। यही कि संविधान एक है बस पालन करवाने के तौर-तरीके अलग-अलग है!

हमने ऊपर लिखा है कि लोगों पर ही लॉकडाउन के उल्लंघन का दोष ना मड़े, क्योंकि जिनके ऊपर लॉकडाउन के समय सबसे बड़ी जिम्मेदारी है वही लोग गजब का उदाहरण पेश करते दिखाई दिए थे यह भी याद रखे। हमने गुजरात के अखबार दिव्य भास्कर के हवाले से पुलिस कर्मियों का क्रिकेट खेलते हुए वीडियो वायरल होने का उदाहरण भी देखा। पुलिस कर्मियों की बात छोड़िए, जिन सरकारी अधिकारियों पर लोगों को जागरूक करने की जिम्मेदारी है वे तक सड़कों पर जुलूस की शक्ल में निकल गए!!! एक सच्चा वीडियो वायरल हुआ, जिसमें पीलीभीत के जिलाधिकारी और एसपी थाली और शंख-घंटे बजाती भीड़ के साथ सड़कों पर दिख रहे थे!!! जिन्हें भीड़ को रोकना था वह यहां भीड़ की अगुवाई कर रहे थे!!! विशेष नोट करे कि यह सब आला अधिकारी थे!!!

सोशल मीडिया पर सवाल उठे तो पीलीभीत पुलिस की तरफ से ट्विटर हैंडल पर सफाई दी गई कि डीएम व एसपी द्वारा जुलूस नहीं निकाला गया, कुछ जनता चूँकि बाहर आ गयी थी अतः भावनात्मक जुड़ाव के द्वारा वहां से हटाया गया, चूँकि बल प्रयोग व्यावहारिक नहीं था, मात्र एकतरफ़ा खबर से भ्रामक खबर चलाई गई है। यह डिजिटल सफाई थी पीलीभीत पुलिस की। एक ऐसी सफाई जो वाकई हास्यास्पद थी। कंफर्म हो गया कि वहां भी व्हाट्सएप चलता होगा, तभी तो छिटकने के लिए ऐसी हास्यास्पद गलियां ढूंढी जा रही है!
6 अप्रैल 2020 को गुजरात के अखबार दिव्य भास्कर का एक रिपोर्ट था। तारीख खास नोट करे, वह तारीख जो संक्रमण के चक्र को लेकर नाजुक दौर था। दिव्य भास्कर के रिपोर्ट की माने तो इन दिनों अहमदाबाद के बोपल पुलिस थाने की महिला पुलिस निरिक्षक और उनके दस्ते ने ही सरेआम सरकारी सर्कुलर का उल्लंघन कर दिया! लॉकडाउन के पालन करवानें का काम जिनके जिम्मे था उन्होंने ही यह किया! इस रिपोर्ट के मुताबिक बोपल की एक सोसायटी में महिला पीआई, पीएसआई और उनके कम से कम 15 साथियों ने एकसाथ मिलकर गरबा खेला!!! ऐसे-वैसे तरीके से नहीं बल्कि किसी गायक कलाकार के साथ! कलाकार सोसायटी के बागीचें में गला खोलकर गा रहे थे, इधर पीआई-पीएसआई-उनके पुलिस साथी मनोरंजन कर रहे थे!!!

जमाती कारनामें तो जनता कर्फ़यू समाप्त हुआ उससे पहले ही चल पड़े थे, जो अब तक जारी है। जनता कर्फ़यू के दिन शाम को बेवकूफों की तरह उत्सव मना रहे लोगों को पत्रकारों ने पूछा तो जवाब मिले... माइंड फ्रेश करने निकले है, सुबह से बंद थे तो शाम को देखने निकले है कि बाहर क्या चल रहा है! जवाब भी गजब के व्हाट्सएपियें टाइप थे। ऐसे ही लोग स्टेटस डालते है कि जागरूक बनो!!! घर में रहकर कोरोना से जंग लड़ रहे कर्मियों का अभिवादन करना था, लेकिन देश तो ऐसे बाहर निकल पड़ा जैसे कि दुश्मन देश के सामने जंग जीत गया हो!

अब ऐसे लोगों को पीएम का वो आह्वान कैसे लागू पड़ेगा? अरे भाई, वही आह्वान जिसमें पीएम ने कहा कि दिन में एक ही बार खाना खाओ और बाकी बचे खाने से दूसरों का पेट भरो। यहां तो एक ही दिन में कई दिनों का खाना खा लेते हैं!!! पीएम को क्या पता कि ऐसे लोगों से घर की औरतें पीड़ित हैं, कह रही हैं कि देश के लिए लॉकडाउन खत्म करो ना करो, इनके लिए तो कर ही दो!!! अगर सरकार घोषित भी कर दे कि सड़क पर दिख रहे लोगों को गोली मार दी जाएगी तो यह प्रजाति देखने के लिए बाहर निकलेगी कि गोली मार भी रहे हैं या नहीं!!! बाइक या कार लेकर निकल पड़ते हैं नगर-दर्शन के लिए!!! कहां पुलिस नाका है, कहां कितनी पुलिस खड़ी हैं, कहां मार रहे है, कहां नहीं मार रहे, कहां मैमो फटता है, कहां नहीं फटता, कौन से रास्ते हैं जहां से बचकर निकला जा सकता है, नगर में क्या चल रहा है, किस दुकान को बंद कराया, किसको जेल में डाला, किसको मैमो लग गया, दिनभर इसी प्रवृत्ति में लगे रहनेवाले यह लोग गली-मोहल्ले या सोसायटी के नाके पर आकर खड़े रहने का शौक रखते हैं! कुछ ज़रूरी काम हो तब ठीक है, लेकिन इनके लिए तो वही ज़रूरी होता है जो बाकियों के लिए गैरज़रूरी होता हो!!! एक्स्पर्ट इतने कि इनकी बाज नजर जैसे कि मीलों दूर होती है!!! पुलिस की गाड़ी या बाइक को आता देख यह खुद को छिपाने में लग जाते हैं! जोड़ो के दर्द से परेशान देश में इतनी भी स्फूर्ति है यह तभी पता चलता है!!! फिर बाहर निकल आते हैं! ठीक है कि लोग घर पर परेशान हैं, वक्त नहीं कटता। लोग यह सब करते हैं इससे कोई शिकायत नहीं है। शिकायत तो यह है कि ऐसा करनेवाले लोग ही बाद में स्टेटस ठेलते हैं कि देश लापरवाह है!!!
 (इनसाइड इंडिया, एम वाला)