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Corona & Testing Kits : दुनिया अपने नागरिकों का टेस्टिंग कर रही थी... हम टेस्टिंग किट के टेस्ट में ही अटके हुए थे !!!


यूं तो दुनिया में कोरोना वायरस की दस्तक को छह से सात महीने हो चुके हैं। हमारी सरकार
, जो महीने भर से जश्नबाजी में मसरूफ़ थी, विदेशी नेता का चुनाव प्रचार हमारे यहाँ कर रही थी, कहीं सरकारें बना रही थी, कहीं गिरा रही थी, वह सरकार जब चिड़िया खेत चुग गई उसके बाद देश को जागरूक बनाने का ढिंढोरा पीट रही थी! हमारे यहाँ लॉकडाउन के दो माह पूर्ण हो चुके हैं। इन दिनों दुनिया के अधिकतर देश अपने यहाँ अपने नागरिकों का टेस्टिंग कर रहे थे। इधर हम थे कि अब भी टेस्टिंग किट के ही टेस्ट में अटके हुए थे! थाली-ताली-दिया-बाती के महत्वपूर्ण कार्यों के चलते शायद किट के टेस्ट में ही हम अटक गए थे!
 
कथित रूप से चीन से कोरोना आया। फिर आधिकारिक रूप से वहीं से टेस्टिंग किट भारत में आई! आई तो नहीं कहा जा सकता, बल्कि लाई गई। चीन की चीजों के बहिष्कार वाली राजनीति को फिलहाल छोड़ ही देते हैं। क्यों? क्योंकि यह विशुद्ध रूप से राजनीति है।
 
इन दो माह में हमें पहली खबर तो यह मिली कि जो टेस्ट किट खरीदी गई थी वो टेस्टिंग के ही नतीजे गलत दे रही थी और दे रही हैं!!! दूसरी खबर यह मिली थी कि भारत को कोविड 19 की रैपिड एंटीबॉडी टेस्ट किट के लिए, जो चीन से खरीदी गई थी, दोगुने दाम चुकाने पड़े थे। भारतीय डिस्ट्रीब्यूटर रीयल मेटाबॉलिक्स ने भारत सरकार को कोविड 19 टेस्ट किट ऊंचे दामों पर बेचा था। वितरक और आयातक के बीच कानूनी मुकदमेबाजी का यह मामला दिल्ली उच्च न्यायालय पहुंचने के बाद इस बात का खुलासा हुआ था। गलत नतीजे देने के बाद कई राज्यों ने इस टेस्ट किट के उपयोग पर रोक लगा रखी है।
सरकार ने इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के जरिए 27 मार्च 2020 को चीन की कंपनी वोन्डफ़ू को 5 लाख रैपिड एंटीबॉडी टेस्ट किट को ऑर्डर दिया था। एनडीटीवी ने कहीं से आईसीएमआर और आर्क फार्मा के बीच हुए करार के दस्तावेज तथा तमिलनाडु सरकार और शान बायोटेक के बीच हुए करार के दस्तावेज ढूंढ निकाले। चीन में भारतीय राजदूत विक्रम मिश्री ने 16 अप्रैल 2020 को ट्वीट में लिखा था कि एंटीबॉडी टेस्ट किट और आरएनए एक्सट्रैक्शन किट समेत 6.50 लाख किट्स को भारत भेज दिया गया है। रिपोर्ट की माने तो इन टेस्ट किट्स को आयातक कंपनी मैट्रिक्स ने चीन से 245 रुपये प्रति किट के हिसाब से खरीदा था। डिस्ट्रीब्यूटर रीयल मेटाबॉलिक्स और आर्क फार्मास्यूटिकल्स ने इसी किट को सरकार को 600 रुपये के भाव पर बेच दिया!
 
मामला उस समय गरमाया जब तमिलनाडु सरकार ने दूसरे डिस्ट्रीब्यूटर शान बायोटेक के जरिए इसी आयातक मैट्रिक्स से किटों को 600 रुपये प्रति किट के हिसाब से खरीदा। रीयल मेटाबॉलिक्स ने मैट्रिक्स द्वारा आयात की गई किट के लिए एक्सक्लूसिव डिस्ट्रीब्यूटर होने का दावा करते हुए इस मामले को लेकर दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। रीयल मेटाबॉलिक्स का आरोप यह है कि तमिलनाडु में किट की आपूर्ति के लिए किसी दूसरे डिस्ट्रीब्यूटर को जोड़ना करार का उल्लंघन है।
 
मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने पाया कि किट के दाम काफी ऊंचे हैं। न्यायालय ने किट्स की कीमत को घटाकर 400 रुपये प्रति किट रखने का निर्देश दिया। इस कीमत में जीएसटी भी शामिल था। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि देश की अर्थव्यवस्था बुरी स्थिति में है, महामारी को रोकने के लिए इस तरह के किट उपलब्ध कराए जाने ज़रूरी है, इस विवाद के बाद जनता की भलाई के लिए यह ऑर्डर दिया जाता है कि रैपिड टेस्ट किट 400 रूपए से ऊँची कीमत पर नहीं बेचा जाना चाहिए।
 
उधर बढ़ी हुई कीमत पर आईसीएमआर की सफ़ाई को भी पूरी सफ़ाई से सुनना चाहिए। आईसीएमआर कहता है कि किट की कीमत 528 रुपए से 795 रुपये तय की गई थी। आईसीएमआर ने कहा था कि यह कीमत किट की क्वालिटी, स्पेसिफिकेशन और सप्लायर की क्षमता पर निर्भर करती है।
सोचिए, 245 रुपये वाली टेस्टिंग किट का दाम ये लोग आपस में ही 528 रुपए से 795 रुपये तक तय कर लेते हैं! साथ में किट की क्वालिटी, स्पेसिफिकेशन, सप्लायर की क्षमता की भी बात करते हैं। एक देश एक टैक्स, एक देश एक चुनाव के नारों के बीच आत्मनिर्भर भारत में एक टेस्टिंग किट अलग अलग दाम!!! वाकई गजब की लड़ाई है कोरोना के खिलाफ!!!
 
कई राज्यों से शिकायत मिलने के बाद आईसीएमआर ने इस किट की ख़रीद वोन्डफ़ू से बंद कर दी। राज्यों ने शिकायत करते हुए कहा था कि किट खराब है और इसके नतीजे पर भरोसा नहीं किया जा सकता। एक राज्य ने तो अपनी शिकायत में कहा कि सिर्फ 5.4 प्रतिशत किट ही ठीक पाए गए, बाकी खराब थे!!! इसके बाद आईसीएमआर ने किट का इस्तेमाल रोकने का फैसला लिया। बताइए, क्वालिटी-स्पेसिफिकेशन जैसी चीजों की दलील देने वाले आईसीएमआर ने इतने बढ़िया स्पेसिफिकेशन के साथ किट खरीदे, जो नतीजे गलत दे रहा था!!!
 
अब ऐसे में भारत में कोरोना संक्रमितों का सही आंकड़ा मिलेगा भी कैसे? आंकड़ा घटाकर दर्शाने का आरोप तो अभी से लग रहा है। इस बीच ऐसे टेस्टिंग किट? आंकड़ों का जाल हद से ज्यादा फैलाने का पूरा इंतज़ाम लगता है।
  
कम से कम इस मामले में किट्स का गलत तरीके से इस्तेमाल या जान-बूझ कर गलत इस्तेमाल होने का तर्क बहुत ज्यादा तो नहीं चल सकता। क्योंकि दाम और गलत नतीजे, दोनों चीजे कई रंग और ढंग से आगे बढ़ चुकी है। अगर ऐसा नहीं होता तो अदालत वह आदेश भी नहीं देती। किट्स के नतीजों को लेकर कुछ संदिग्ध नहीं होता तो सरकार ऑर्डर कैंसिल करने तथा एक रुपये का भी नुकसान नहीं हुआ है वाली जानकारी देश से साझा नहीं करती।
  
पेच अभी भी बाकी है। जो आईसीएमआर इस किट के स्पेसिफिकेशन और क्वालिटी को लेकर दलील दे रहा था, वही आईसीएमआर शुरू में इस किट के ख़िलाफ़ था!!! शुरू में आईसीएमआर का मानना था कि इस किट का इस्तेमाल सिर्फ स्क्रीनिंग के लिए किया जा सकता है, पूरी जाँच के लिए नहीं। आईसीएमआर ने शुरू में यह भी कहा था कि हॉटस्पॉट पर जाँच के लिए यह किट ठीक नहीं है। वही आईसीएमआर महीने भर बाद इस किट की क्वालिटी, स्पेसिफिकेशन देखकर कहता है कि इसके दोगुने से ज्यादा दाम देना ठीक है!!! फिर यही आईसीएमआर कहता है कि यह किट अंडर-परफॉर्मिंग है!!! आईसीएमआर राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के चीफ सेक्रेटरी को चिठ्ठी लिखकर कहता है कि राज्यों की शिकायत सही है, इन कंपनियों के किट से नतीजे में वेरिएशन बहुत ज्यादा है। आईसीएमआर की मान्यता में ऐसा विशाल परिवर्तन कैसे हो गया, हमें नहीं पता। उधर अदालत आईसीएमआर और भारत सरकार को याद दिलाती है कि यह किट जनता की भलाई के लिए खरीदे गए हैं, लिहाजा दाम कम करने होंगे। 
इस बीच चीन की सरकार ने कह दिया कि ये किट खराब क्वालिटी के नहीं थे। भारत सरकार की तरफ से भारत के नागरिकों को, यूं कहे कि प्रजा को, सूचना दी गई कि चीन से मंगाए गए सभी टेस्ट किट्स वापस कर दिए गए हैं और ऑर्डर कैंसिल किया जा चुका है। भारत सरकार ने दावा किया कि इस सौदे में भारत को एक रूपये का भी नुकसान नहीं हुआ है। भारत सरकार ने अप्रैल के आख़िरी सप्ताह में कहा कि कोविड 19 परीक्षण किट प्रदान करने वाली चीनी फर्मों को भुगतान नहीं किए गए हैं। आगे इसका क्या खेल होगा, हमें नहीं पता।
 
नोट करें कि इन दिनों सिर्फ टेस्टिंग किट्स को लेकर ही यह गड़बड़झाला नहीं हुआ, बल्कि पीपीई किट्स-वेंटिलेटर-मास्क आदि को लेकर भी गजब की गड़बड़ी बाहर आ रही थी और आ रही है!!! उत्तर प्रदेश में पीपीई किट्स को लेकर कथित घोटाले की बात सामने आई। यहाँ पहला कदम यही रहा कि कथित घोटाले की नहीं बल्कि कथित घोटाले को उजागर करने वाले की जाँच में प्रदेश सरकार जुट गई!!! हिमाचल प्रदेश में भी पीपीई किट्स को लेकर ऐसा ही मंजर देखा गया! प्रदेश अध्यक्ष तक को इस्तीफ़ा देना पड़ा! मास्क की क्वालिटी, मास्क की कीमत भी हर जगह लूट चक्र के खेल को दर्शा रही थी। गुजरात में धमण नाम के नकली वेंटिलेटर का खेल सभी को हैरत में डाल गया। जिन मशीनों को वेंटिलेटर बताकर लोकापर्ण गुजरात के मुख्यमंत्री ने किया, वे आखिर तो सिर्फ साँस देने वाला उपकरण ही निकला!!! नकली वेंटिलेटर के खेल के अलावा यहाँ भी एन95 मास्क के मामले में मुनाफाखोरी के खेल का आरोप लगा! नोट करें कि यह वह दिन थे, जब सारी चीजें सीधे सीधे केंद्र सरकार तथा राज्य सरकारों के निर्देश व सह्योग के जरिए की जा रही थी। पीपीई किट्स-वेंटिलेटर-मास्क आदि को लेकर हम दूसरे लेख में तफ्सील से बात करेंगे।
  
कोरोना के संबंध में हमारे देश के नमूने टाइप नेता गो कोरोना गो सरीखे जितने भी नारे दें, या हमारे देश के प्रधानमंत्री जितना भी यकीन थाली-ताली टाइप उत्सव मनाने में करें, सच तो यह है कि टेस्टिंग और ट्रेसिंग के जरिए दुनिया के दूसरे देश इस महामारी के सामने जूझ रहे हैं। वे नारे नहीं दे रहे, मेडिकल चीजें दे रहे हैं। हमारे यहाँ उलटा ही हो रहा है! हमारे यहाँ टेस्टिंग किट्स में ही ऐसी चीजें हो रही हैं, जो हमें कहीं पीछे छोड़ रही है।
 
ये साफ है कि जितनी ऐसी चीजें हुई, या हो रही हैं, प्रिंट मीडिया की स्याही इसे लिखने या छापने के समय खत्म हो जाती है! इन चीजों पर बात करने का समय न्यूज़ चैनलों के एंकरों के पास नहीं रहता! न्यूज़ चैनलों में भी नारे चल रहे हैं! वहाँ पर किसने कितनी थाली बजाई, कहाँ कितने दिये जले, टाइप रिपोर्टींग ज्यादा हो रही है! ज्यादातर समय हिंदू मुस्लिम वाली गधापंतियों में निकला जा रहा है! न्यूज़ चैनलों की कृपा से देश के ज्यादातर लोगों को तो यही लगता है कि लॉकडाउन से कोरोना खत्म हो जाएगा!!! लोग समझ नहीं रहे और ना मीडिया अपना कर्तव्य निभाकर समझाने का प्रयत्न कर रहा है कि लॉकडाउन तो प्रथम और अस्थायी उपाय है। लोगों को समझाया नहीं जा रहा कि दरअसल लॉकडाउन होता ही इसलिए है, ताकि सरकार और उसका प्रशासन जल्दी से जल्दी तमाम इंतज़ाम करें।
देश से सरकार को और कितना समय चाहिए तैयारियों के लिए? दो महीने से भी ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी हालात यह कि भारत अब भी टेस्टिंग किट के टेस्ट में अटका हुआ है!!! अब भी देश के ज्यादातर जिलों में आरटी पीसीआर टेस्टिंग लैब ही नहीं है!!! जिस गुजरात मॉडल के सहारे दिल्ली तक का सफर तय हुआ उस गुजरात में 33 जिलों में से 25 जिलों में आरटी पीसीआर लैब नहीं है!!! महाराष्ट्र जैसे राज्य में भी यही हाल है। वहाँ 36 जिलों में से 20 जिलों में यह सुविधा नहीं है!!! गुजरात और महाराष्ट्र, ये वही राज्य हैं, जिन्होंने अपने यहाँ करोड़ों रुपये की मूर्ति बनाई या बन रही है, लेकिन लैब नहीं बना सकें!!!
 
सोचिए, गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्यों की यह स्थिति है तो फिर बाकी देश में क्या हालात होंगे? आईसीएमआर के मुताबिक पूरे देश में आरटी पीसीआर टेस्ट की जाँच के लिए 453 लैब हैं। है न गजब? अभी रुकिए। एक और तथ्य खड़ा है सामने। आईसीएमआर के मुताबिक ये जो 453 लैब हैं, यह सरकारी और निजी, दोनों को मिलाकर दिया गया आंकड़ा है! 304 सरकारी लैब हैं और 149 निजी। इतना बड़ा देश। न जाने कितने ट्रिलियन का सपना देख रहा है यह देश। और उसके पास देश भर में महज 453 लैब ही हैं!!! केंद्र के अधीन आने वाले लद्दाख, दमण, दीव और लक्षद्वीप में तो लैब है ही नहीं!!! देश के 531 जिलों में टेस्टिंग के लिए लैब ही नहीं है!!! यानि इन्हें सैंपल कहीं दूर भेजने पड़ते हैं। नतीजे आते आते दिन गुजर जाते हैं।
 
बहुत आसानी से समझा जा सकता है कि यदि चुनाव होते तो देश के हर जिलों में, हर गाँव में बूथ लेवल तक बसों में ठूस ठूस कर राजनीतिक लोग भेज दिए जाते। वह भी महज कुछ दिनों के भीतर ही। इधर दो माह से ज्यादा का समय बीत चुका है, लेकिन फिर भी टेस्टिंग का ही ठिकाना नहीं है! थाली-ताली-दिया-बाती के जश्न में डूबी सरकार टेस्टिंग किट्स, मास्क, वेंटिलेटर, पीपीई किट्स, दवा में हो रहे तिकड़म को देखे जा रही है! पता नहीं कि इन तिकड़म के पीछे दूसरे क्या क्या तिकड़म होंगे?
  
आपको याद होना चाहिए कि डब्ल्यूएचओ ने 30 जनवरी 2020 को कोविड 19 को लेकर वैश्विक चेतावनी की घोषणा की थी, जिससे कि सभी देश इस महामारी के खिलाफ योजना बना सकें और खुद को तैयार कर सकें। डब्ल्यूएचओ दिसम्बर 2019 से कोरोना के बारे में जानकारी साझा कर रहा है यह भी याद रखें। 12 फरवरी 2020 को डब्ल्यूएचओ ने कोविड 19 को वैश्विक महामारी घोषित किया और खतरे की आख़िरी घंटी बजा दी। डब्ल्यूएचओ की पहली घोषणा के दो हफ्ते बाद भी भारत की संसद चलती रही। संसद तो चली लेकिन इसमें कोविड 19 को लेकर किसी ने कोई चर्चा नहीं की, तैयारियां और योजना को लेकर कोई बात ही नहीं हुई!!! किसी ने कोविड 19 के खतरे से भारत सरकार को आगाह किया तो सरकार के मंत्री ने कह दिया कि कोरोना कोई गंभीर समस्या नहीं है, विपक्ष देश में डर का माहौल ना फैलाएं!!!
 
इसके बाद भी अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप और उनका लंबा-चौड़ा काफ़िला भारत आया। इसके बाद भी अहमदाबाद के मोटेरा स्टेडियम में लाखों लोगों को इक्ठ्ठा कर तामझाम किया गया! इसके बाद भी मध्य प्रदेश में सरकार को गिराने-बनाने का खेल सामूहिक ढंग से चलता रहा! इसके बाद भी कनिका कपूर आसानी से यूपी से लेकर दिल्ली के राष्ट्रपति भवन तक रात की आलीशान पार्टियों में अपने रंग बिखेरती रही! इसके बाद भी पैसे वाले लोग एरोप्लेन में इधर से उधर उड़ते रहे!
और फिर अचानक ही, बस एकदम ही, झटके में ही, बिना कोई पूर्व सूचना दिए, तैयारी का मौका दिए बिना, अचानक ही पीएम मोदी रात को 8 बजे टेलीविजन स्क्रीन पर दिखे और कह दिया कि रात को 12 बजे से देश बंद!!! काला धन वाला मामला था नहीं कि पूर्व सूचना देते तो कोई अपराधी भाग जाता। ना देश को तैयारी का मौका दिया और ना ही प्रशासन को तैयार होने का अवसर दिया! जो रास्तों पर थे, जो बीच सफर में थे, जो बेखबर थे, किसीको कोई मौका नहीं दिया और अचानक ही घोषणा कर दी! भावनाप्रधान सभ्यता ने सरकार का साथ दिया। सरकार को समय चाहिए था, लोगों ने समय दिया। और इतना समय लेने के बाद सरकार ने लोगों को ऐसी टेस्टिंग किट्स दे दी, जो नतीजे ही गलत दे रही थी!!!
 
कोविड 19 के खिलाफ लड़ाई के लिए देशभक्ति का वातावरण तो तैयार कर लिया मोदीजी ने, किंतु तकनीकी रूप से जो वातावरण तैयार करना था, वह नहीं कर रहे! सही टेस्टिंग किट्स का दो महीने के बाद भी अता पता नहीं है! जिन्हें साथ देना है उन लोगों को ही नहीं पता कि साथ कैसे देना है!!! दो महीने से भी ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी सरकार को नहीं पता कि कौन सा टेस्टिंग किट खरीदना है, कहाँ से खरीदना है! बताइए, दूसरों को दवा देता है भारत, लेकिन भारत को ही नहीं पता कि टेस्टिंग के लिए किट कौन सा ले, कहाँ से ले, कितने दाम पर ले, जाँच कर ले या बिना जाँच कर!!! जिन्हें कोरोना के खिलाफ लड़ाई का योद्धा कहा जा रहा है उनके लिए पीपीई किट में घोटाले कर रहे हैं हम!

हर मसले पर आलंकारिक नारे और राष्ट्रवाद का हथियार चलाकर ही जंग लड़नी है तो फिर विशाल स्तर पर नुकसान के लिए भी तैयार रहिए। दो सिंपल सी बातें पता होनी चाहिए। पहली, नारों से चुनाव जीते जा सकते हैं वायरस को नहीं। दूसरी, इस बीमारी का इलाज विज्ञान के पास है, धर्म के पास नहीं।
  
इस पूरे मामले में सर्वप्रथम बात यही सामने आई कि नागरिकों को कोरोना से जंग, हम कोरोना का हराएँगे जैसे जुमले परोस कर जैसे कि सरकारें महामारी के इस दौर में कंपनियों की मुनाफाखोरी के खेल को देखना ही भूल गई हो! गैरज़रूरी चीजों पर लाखों-करोड़ों रुपये बर्बाद करने वाली सरकारें महामारी में कहने लगी कि उनके पास लोगों के लिए पैसे नहीं है, पैसे दान करिए। लोगों ने पैसे दान किए तो अब इन पैसों का जिस सजगता और जिम्मेदारी से इस्तेमाल होना चाहिए, वैसा इस्तेमाल होता नहीं दिख रहा। गजब है कि महामारी के समय सारी चीजें सरकारों ने अपने हाथ में ले रखी है और ऐसे समय में जो चीज़ सबसे महत्वपूर्ण है, टेस्टिंग किट, उसी चीज़ को लेकर कोई ध्यान नहीं दे रहा! उसी चीज़ में मुनाफाखोरी और व्यापार का चक्र चल पड़ा है!
राजनीति, व्यापार, व्यवस्था का सच आदि चीज़ को लेकर यह द्दश्य ही देख लीजिए। कथित रूप से कोरोना जैसी अभूतपूर्व महामारी की भेंट चीन देता है। उसी चीन से भारतीय कंपनियाँ टेस्टिंग किट खरीदती हैं! चीनी बहिष्कार की राजनीति कुएँ के मेंढकों के लिए होती है यह साबित करते हुए खरीदी की जाती है! फिर वह भारतीय कंपनी किसी दूसरी भारतीय कंपनी को मुनाफे के साथ यह किट बेचती है! फिर दूसरी कंपनी उसमें अपना मुनाफा लगाकर यह किट भारत की ही सरकार को बेचती है! सरकार खरीदती भी है! लेकिन जब टेस्टिंग करने वाली किट टेस्ट का नतीजा गलत देती है तब जाकर सारा व्यापार चक्र उजागर होता है। भारत कोरोना से लड़ रहा है!!! है न कमाल की लड़ाई? कहा जा सकता है कि दुनिया के राष्ट्र अपने यहाँ अपने नागरिकों का टेस्टिंग कर रहे थे, हम तब भी टेस्टिंग किट के टेस्ट में ही अटके हुए थे!
 
इन हालातों के बाद भी भावनाप्रधान और विचारशून्य सभ्यता को वही नारे परोस दिए जाएँगे, जो फिलहाल परोसे जा रहे हैं। नागरिक प्रजा बन चुके हैं। इसीलिए प्रजा इन नारों पे नाचेगी, झूमेगी, जश्न मनाएगी। कोरोना क्या कर लेगा? हम ऐसे ही कोरोना को जीत लेंगे! गो कोरोना गो जैसे जुमले हमें जीत दिला ही देंगे!
 
ऐसी नागरिकी समझदारी, ऐसी नागरिकी व्यवस्था सरकारों के लिए आशीर्वाद समान होती है। तभी तो भारत सरकार, वही सरकार, जो चीनी चीजों के बहिष्कार का झूठा उत्सव मनाने में चालाक है, वही सरकार चीन से भारतीय कंपनी ने जो टेस्ट किट खरीदी, उसके दोगुने से ज्यादा दाम उस भारतीय कंपनी को चुकाती है, जो नतीजे ही गलत देती हैं! मेक इन इंडिया, मेड इन इंडिया, आत्मनिर्भर भारत के नारे ऐसे ही चलते होंगे शायद! सोचिए, इस किट की अधिकतम कीमत सरकार को तय करनी चाहिए, लेकिन कीमत तय करने का काम करना पड़ता है अदालत को!!! सरकार तो ताली-थाली-दिया-बाती में व्यस्त है!!! सरकार को जो देखना चाहिए था, उसे अदालत को देखना पड़ रहा है!!! 
 
महामारी के दोर में मुनाफाखोरी का चक्र वहीं से चल पड़ा है, जहाँ केंद्र सरकार स्वयं सब कुछ अपने हाथ में लिए हुए है। आगे जाकर मुनाफाखोरी को राक्षस के रूप में दर्शाया जाएगा। मुनाफाखोरों को विलेन बनाया जाएगा। लेकिन सरकार या सरकारें इस खेल से बड़ी चालाकी से खुद को अलग कर लेगी।
(इनसाइड इंडिया, एम वाला)