सियासत इस कदर अवाम पे अहसान करती है
पहले आँखें छीन लेती है फिर चश्में दान करती है
मेंढकों को पता नहीं होता कि कुएँ के बाहर समंदर भी है। जायके में थोडा कड़वा है, लेकिन सच का कोई जवाब नहीं। सह्योग देना अलग बात है और चमचागिरी करना दूसरी बात है। चाहने वालों और चाटने वालों में फर्क होता है। इसे लेकर हम बहुत पहले पूरा संस्करण लिख चुके हैं, लिहाजा इसे दोबारा साबित करने की ज़रूरत है नहीं। जागरूकता को जिन लोगों तक पहुंचना होता है, पहुंच ही चुकी होती है। लेकिन हमारी मेडिकल तैयारी कितनी है, वेंटिलेटर कितने हैं, बिस्तर कितने हैं, टेस्ट किट हैं या नहीं, देरी क्यों हुई, डब्ल्यूएचओ की चेतावनी तो महीनेभर पहले आ चुकी थी तो फिर सोते रहने वाली सरकार देश को जागरूक बनाने का खेल क्यों खेल रही थी? नागरिक सवाल पूछते हैं और सह्योग देते हैं। जो सवाल नहीं पूछते और महामारी के समय व्हाट्सएप सरीखा हास्यास्पद प्रदर्शन करते रहते हैं उन्हें नागरिक नहीं किंतु प्रजा कहा जाता है।
यदि भारत के वे नागरिक, जिन्हें पैनडेमिक के कानून का उल्लंघन करने पर मैं समाज का अपराधी हूँ वाला बैनर गले में लटकाया जाता था, वे नागरिक समाज के अपराधी माने जा सकते हैं... तब तो भारत सरकार एक प्रकार के सामाजिक अपराध की आका है। जी हां, सामाजिक अपराध की आका। जिस सरकार को डब्ल्यूएचओ ने महीनेभर पहले आगाह किया हो, मार्गदर्शिकाएँ भेजी हो, उपाय सुझाए हो, वेंटिलेटर से लेकर दूसरी ज़रूरी चीजों के लिए कहा हो, लेकिन दो महीने बाद भी सरकार नाकामियों की अंधी गलियों में भटक रही हो, तो फिर एक छोटा सा सवाल तो उठता ही है कि जो भारत सरकार फिलहाल लोगों को जागरूक कर रही है, वह सोती क्यों रही!!!???
दरअसल प्राकृतिक आपदाएँ हो या महामारी हो, कुछ चीजें सामने ले आती हैं ऐसी त्रासदी। वे सरकारों की पोल खोलती है, वे लोगों के समझ का स्तर दिखाती है, वे सरकारों की लंपटता का स्तर भी दिखाती है। भारत ने महीनेभर घर में रहकर कोरोना से ही जंग नहीं लड़ी, उस जनता ने तो हिंदू-मुसलमान के ऊपर भी लड़ाई लड़ी है! इस लड़ाई में भारत के मीडिया ने अपना पूरा योगदान दिया है। किसीके कहने पर योगदान दिया या फिर उनका ऐसे ही मन हो गया होगा, यह मुझे नहीं पता।
इतने लंबे... रिकॉर्डतोड लंबे लॉकडाउन के बाद भी हालात देखिए। किसी भी सरकार के पास फंसे हुए लोगों को घर पहुंचाने की कोई ठोस योजना नहीं है! घोषणाएँ होती हैं, तैयारियां होती हैं, फिर दूसरे दिन सबकुछ पहले जैसा हो जाता है! किसीको पता ही नहीं कि क्या करना है, कैसे करना है! अपनी अपनी ढपली अपना अपना ताल... दो महीने से भी अधिक लंबे लॉकडाउन के बाद भारत ने यही कमाया है! यह वाक़ई दुखदायी और शर्मनाक है कि दुनिया के कई देशों में कोरोना मरीजों का टेस्ट हो रहा है और हमारे देश में कोरोना टेस्टिंग किट का टेस्ट हो रहा है!!! भारत चीन से टेस्टिंग किट खरीदता है और टेस्टिंग किट खराब भी आती है, उपर से दोगुने दाम पर खरीदी होती है! यह बात इतनी सीधी और इतनी आसान है नहीं। देशभक्ति होती तो इस अपराध के लिए सरकार को कटघरे में खड़ा किया जा सकता था, लेकिन देशभक्ति की जगह राष्ट्रवाद की नशे की शीशी है, इसलिए सवाल पूछने की जागरूकता के बजाए गुणगान के किर्तन वाली बेवकूफी को देश ज्यादा पसंद करने लगा है। विश्वगुरु बनने का यह शोर्टकट कई चीजों को कट करके आगे बढ़ा है।
समझ नहीं आ रहा कि दान भी जनता करे, रोजगार भी जनता का खराब हो, खाना भी जनता ही बाँटे, घर में भी जनता ही बंद रहे और कोरोना से जंग मोदी लड़ रहे हैं!!! कैसे??? कोरोना के दौर में शुरुआत से ही यही प्रचार चल रहा है। फिर जंग में पिछड़ते नजर आएँगे तब राज्यों और लोगों पर ठिकरा फोड़ने का काम शुरू होगा। फिर कुछ अच्छा होगा तब, कोरोना से जंग मोदी लड़ रहे हैं वाला गाना गाने वाले कुछ महीने बाद यह भी कह सकते हैं कि अब मोदी ने संभ्हाली कमान, करेंगे कोरोना के खिलाफ जंग की अगुवाई। जैसे कि अब तक युगाण्डा का मुखिया संभ्हाल रहा हो!