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Corona & Government Blunders : यदि भारत के वे नागरिक समाज के अपराधी हैं, तो फिर भारत सरकार उस सामाजिक अपराध की आका है


सियासत इस कदर अवाम पे अहसान करती है
पहले आँखें छीन लेती है फिर चश्में दान करती है
 
मेंढकों को पता नहीं होता कि कुएँ के बाहर समंदर भी है। जायके में थोडा कड़वा हैलेकिन सच का कोई जवाब नहीं। सह्योग देना अलग बात है और चमचागिरी करना दूसरी बात है। चाहने वालों और चाटने वालों में फर्क होता है। इसे लेकर हम बहुत पहले पूरा संस्करण लिख चुके हैं, लिहाजा इसे दोबारा साबित करने की ज़रूरत है नहीं। जागरूकता को जिन लोगों तक पहुंचना होता हैपहुंच ही चुकी होती है। लेकिन हमारी मेडिकल तैयारी कितनी हैवेंटिलेटर कितने हैंबिस्तर कितने हैंटेस्ट किट हैं या नहींदेरी क्यों हुईडब्ल्यूएचओ की चेतावनी तो महीनेभर पहले आ चुकी थी तो फिर सोते रहने वाली सरकार देश को जागरूक बनाने का खेल क्यों खेल रही थी? नागरिक सवाल पूछते हैं और सह्योग देते हैं। जो सवाल नहीं पूछते और महामारी के समय व्हाट्सएप सरीखा हास्यास्पद प्रदर्शन करते रहते हैं उन्हें नागरिक नहीं किंतु प्रजा कहा जाता है।
 
यदि भारत के वे नागरिक, जिन्हें पैनडेमिक के कानून का उल्लंघन करने पर मैं समाज का अपराधी हूँ वाला बैनर गले में लटकाया जाता था, वे नागरिक समाज के अपराधी माने जा सकते हैं... तब तो भारत सरकार एक प्रकार के सामाजिक अपराध की आका है। जी हांसामाजिक अपराध की आका। जिस सरकार को डब्ल्यूएचओ ने महीनेभर पहले आगाह किया होमार्गदर्शिकाएँ भेजी होउपाय सुझाए होवेंटिलेटर से लेकर दूसरी ज़रूरी चीजों के लिए कहा होलेकिन दो महीने बाद भी सरकार नाकामियों की अंधी गलियों में भटक रही हो, तो फिर एक छोटा सा सवाल तो उठता ही है कि जो भारत सरकार फिलहाल लोगों को जागरूक कर रही है, वह सोती क्यों रही!!!???
 
दरअसल प्राकृतिक आपदाएँ हो या महामारी हो, कुछ चीजें सामने ले आती हैं ऐसी त्रासदी। वे सरकारों की पोल खोलती है, वे लोगों के समझ का स्तर दिखाती है, वे सरकारों की लंपटता का स्तर भी दिखाती है। भारत ने महीनेभर घर में रहकर कोरोना से ही जंग नहीं लड़ी, उस जनता ने तो हिंदू-मुसलमान के ऊपर भी लड़ाई लड़ी है! इस लड़ाई में भारत के मीडिया ने अपना पूरा योगदान दिया है। किसीके कहने पर योगदान दिया या फिर उनका ऐसे ही मन हो गया होगा, यह मुझे नहीं पता।
इतने लंबे... रिकॉर्डतोड लंबे लॉकडाउन के बाद भी हालात देखिए। किसी भी सरकार के पास फंसे हुए लोगों को घर पहुंचाने की कोई ठोस योजना नहीं है! घोषणाएँ होती हैं, तैयारियां होती हैं, फिर दूसरे दिन सबकुछ पहले जैसा हो जाता है! किसीको पता ही नहीं कि क्या करना है, कैसे करना है! अपनी अपनी ढपली अपना अपना ताल... दो महीने से भी अधिक लंबे लॉकडाउन के बाद भारत ने यही कमाया है! यह वाक़ई दुखदायी और शर्मनाक है कि दुनिया के कई देशों में कोरोना मरीजों का टेस्ट हो रहा है और हमारे देश में कोरोना टेस्टिंग किट का टेस्ट हो रहा है!!! भारत चीन से टेस्टिंग किट खरीदता है और टेस्टिंग किट खराब भी आती है, उपर से दोगुने दाम पर खरीदी होती है! यह बात इतनी सीधी और इतनी आसान है नहीं। देशभक्ति होती तो इस अपराध के लिए सरकार को कटघरे में खड़ा किया जा सकता था, लेकिन देशभक्ति की जगह राष्ट्रवाद की नशे की शीशी है, इसलिए सवाल पूछने की जागरूकता के बजाए गुणगान के किर्तन वाली बेवकूफी को देश ज्यादा पसंद करने लगा है। विश्वगुरु बनने का यह शोर्टकट कई चीजों को कट करके आगे बढ़ा है।
 
समझ नहीं आ रहा कि दान भी जनता करेरोजगार भी जनता का खराब होखाना भी जनता ही बाँटेघर में भी जनता ही बंद रहे और कोरोना से जंग मोदी लड़ रहे हैं!!! कैसे??? कोरोना के दौर में शुरुआत से ही यही प्रचार चल रहा है। फिर जंग में पिछड़ते नजर आएँगे तब राज्यों और लोगों पर ठिकरा फोड़ने का काम शुरू होगा। फिर कुछ अच्छा होगा तब, कोरोना से जंग मोदी लड़ रहे हैं वाला गाना गाने वाले कुछ महीने बाद यह भी कह सकते हैं कि अब मोदी ने संभ्हाली कमान, करेंगे कोरोना के खिलाफ जंग की अगुवाई। जैसे कि अब तक युगाण्डा का मुखिया संभ्हाल रहा हो!
 
अब तक इस महामारी के खिलाफ सरकार का जिस तरह का लचर प्रदर्शन रहा हैहम लिख सकते हैं कि जिस सरकार के पास कोरोना के खिलाफ लड़ने के लिए किसी प्रकार की कोई ठोस रणनीति ही नहीं हैउसके पास इससे होनेवाले सामाजिक और आर्थिक नुकशान से देश को बचाने की कोई सटीक और ठोस योजना होगी ऐसी संभावना ना के बराबर है। वे नई नई चीजों की घोषणाएँ ज़रूर करेंगे, नये नये पैकेज का एलान करेंगे, लेकिन उस वक्त यह सोचना भी गुनाह होगा कि पुरानी बोतल में पानी भी नया है या पुराना? ऊपर से घोषणा के बाद घोषणा अपने पैरों पर खुद ही चलना शुरू कर पाएगी या नहीं इसको लेकर भी संदेह है।
 
हम तो शुरुआत से लिख रहे हैं कि एक मॉडल जरूर स्थापित है। यही कि जो कुछ अच्छा होगा वह मोदीजी का मास्टर स्ट्रोक होगा और जो कुछ बुरा होगा उसके पीछे राज्य और लोग जिम्मेदार होंगे। मजदूर भले ही सड़कों पर भूखे तड़पते चल रहे हैं, देश के मनोरंजन के लिए हिंदू-मुसलमान, थाली ताली दिया बाती, वगैरह चल रहा है! आगे कुछ और चला देंगे!
 
एक चीज़ कही जाती है कि लेंस बदल देने से चांद बदल नहीं जाता। मोदीजी का शासन इस कथन को झूठा साबित कर चुका है। यहाँ बार बार लेंस बदल कर नये नये चांद दिखा दिए जाते हैं। इसलिए आगे कुछ बुरा या बहुत बुरा भी हो, कौनो दिक्कत नाही।
यूं तो दिसंबर 2019 से ही डब्ल्यूएचओ दुनिया के देशों को इस वायरस से अवगत करा रहा था। फिर 30 जनवरी 2020 को उसने पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी ऑफ इंटरनेशनल कंसर्न की घंटी बजा ही दी। यह डब्ल्यूएचओ का सबसे अंतिम और सबसे ऊंचा अलार्म था। उसकी जो स्थापित नियमावली है उसमें यही सबसे बड़ा और अंतिम अलार्म था। इतिहास के अधूरे ज्ञान और गौरव में जिंदा रहने वाले मेंढकों के लिए बता दें कि पिछले 70 साल के इतिहास में सिर्फ 6 बार पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी ऑफ इंटरनेशनल कंसर्न की घोषणा हुई है। किसी ऐसी बीमारी को पैनडेमिक, यानि वैश्विक महामारी की सूची में डालना सबसे बड़ा अलार्म नहीं माना जाता। बल्कि उस बीमारी को पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी ऑफ इंटरनेशनल कंसर्न के तहत घोषित करना गंभीर और अंतिम चेतावनी मानी जाती है। जो 30 जनवरी 2020 को ही हो गया था। डब्ल्यूएचओ ने कोरोना कोविड 19 को किस दिन पैनडेमिक घोषित किया यह वैज्ञानिक, तकनीकी नजरिए से किसी भी राष्ट्र के लिए उतना महत्वपूर्ण नहीं है, जितना 30 जनवरी 2020 वाली घोषणा को लेकर है।
 
लोगों के दिमाग में कई चीजें मिथक और मान्यताओं के रूप में या तो बैठ जाती हैं या बिठाई जाती हैं। डब्ल्यूएचओ ने कब इसे पैनडेमिक घोषित किया यह बात दिमाग में फिट बैठ गई है, या बिठाई गई है। लेकिन जो नियमवाली हैउसकी माने तोजिसे आप जंग या युद्ध का बिगुल कह रहे हैं, इसका एलान डब्ल्यूएचओ ने जनवरी 2020 की उस तारीख को ही कर दिया था, जो ऊपर लिखी गई है।
 
30 जनवरी 2020 को डब्ल्यूएचओ ने अपना अंतिम और सबसे ऊंचा अलार्म बजा दिया। तब तक चीन के बाहर 18 देशों में यह वायरस अपनी मौजूदगी दर्ज करा चुका था। उस दिन तक भारत में केरल में एक मामला दर्ज हो चुका था, जो कथित रूप से वुहान से ही आया था।
 
यह तारीख इसलिए महत्वपूर्ण है ताकि हम समझ सकें कि डब्ल्यूएचओ द्वारा सबसे अंतिम और सबसे ऊंचे होर्न के बजाने के बाद भी सरकार सोती रही!!! सरकार से जुड़े हुए लोग मार्च 2020 की पैनडेमिक वाली घोषणा के दिन को अपना सहारा बनाते हैं, जबकि वो पूरी तरह गलत आधार है। सरकारें हमेशा चालाक होती है। तत्कालीन सरकार इन चालाकियों में बहुत अव्वल है। इस सरकार से जब कुछ गलत या ऊंच नीच होता है और जब इनसे सवाल पूछा जाता है तो ये कहते हैं कि पिछली सरकार ने ये किया थावो किया था, इतना किया था, उतना किया था, ये हुआ था, वो हुआ था। मगन के पास अपने गुनाहों से बचने के लिए छगन का सहारा रेडीमेड है! बस ऐसे ही, इस महामारी में भी मगन के पास छगन है। कहे तो ढेरों छगन हैं!!! राज्यों पर ठिकरा फोड़ने का रास्ता खुला हैनिहायत लापरवाह लोगों के ऊपर दोष मड़ने की गलियाँ खुली हैंदूसरे देशों में नुकसान हुआ है यह बताकर अपने वाले नुकसान को छोटा मोटा बताने की सड़क भी है। और भी बहुत कुछ है।
 
निष्पक्ष रूप से समझे तो जनवरी 2020 के महीने से देखे तो सरकार की यह लापरवाही आपराधिक लगने लगती है। यह सवाल महत्वपूर्ण क्यों नहीं हो सकता कि 30 जनवरी 2020 से लेकर 13 मार्च 2020 तक भारत की सरकार क्या कर रही थी? यह सवाल क्यों नहीं हो सकता कि पूरा फरवरी महीना और मार्च का करीब करीब आधे से ज्यादा महीना घोर लापरवाही में क्यों बीता? हमें समझना होगा कि हम सिर्फ जानहानि और मौतौं की तरफ ही नहीं बढ़ रहे, हम आर्थिक तबाही की तरफ भी कदम बढ़ा रहे हैं। तो फिर ये सवाल क्यों नहीं पूछा जा सकता कि इस स्थिति में आप नारों और गैरज़रूरी उत्सवों की भेंट देकर कौन सी लड़ाई लड़ रहे हैं? कौन सी ऐसी तैयारियाँ कर रहे हैं?
यह सवाल क्यों नहीं हो सकता कि किन तथ्यों के आधार पर भारत सरकार ने 13 मार्च 2020 के दिन कहा था कि वैश्विक महामारी की स्थिति नहीं है। यह सवाल क्यों नहीं हो सकता कि आपकी सरकार ने, आप की पार्टी के प्रवक्ताओं ने किस आधार पर यह दावा कर दिया था कि कोरोना से डरने की ज़रूरत नहीं है। आप लोग किन तथ्यों के आधार पर कोरोना की गंभीरता की खिल्ली उड़ाकर आपको चेताने वालों पर गरियाते थे। आप किस दम पर कह रहे थे कि भारत में तो कोरोना को लेकर भ्रम फैलाया जा रहा है। ये सवाल क्यों नहीं हो सकता कि जब डब्ल्यूएचओ अपना सबसे ऊंचा अलार्म बजा चुका था तो फिर आप ट्रंप जैसे विदेशी नेता का चुनाव प्रचार यहाँ लाखों लोगों को इक्ठ्ठा करके काहे कर रहे थे?
 
भारत के अलावा दुनिया में दूसरी सरकारों ने भी लापरवाहियोंअहंकार और तमाशे के दम पर तैयारियों को झांसा दिया है इन दिनों। उनका बहाना आगे धर कर मगन’ और छगन’ वाली गलियों की खाक छानना कौन सी बुद्धिमानी है?
 
हालियां सालों को देखे तो 11 जून 2009 को डब्ल्यूएचओ ने नोवल इन्फ्लूएंजा ए वायरस के धमकने का एलान किया था और उसे पैनडेमिक कहा था। यह पहली ज्ञात घटना थी जब एच1एन1 मानव शरीर में पाया गया था और आसानी से एक इंसान से दूसरे इंसान में फैल रहा था। उस समय 74 देशों में मामले मिले थे। बिल्कुल इसी पैटर्न पर अब की बार कोरोना कोविड 19 को लेकर अलार्म बजा दिया गया जनवरी में। इस अलार्म का सिंपल सा अर्थ था कि इस बीमारी को लेकर पूरी आशंका है कि वह दुनिया भर में फैलेगीयह वैश्विक महामारी है।
 
आपको यह भी बता दें कि डब्ल्यूएचओ ने लॉकडाउन, यानी तालाबंदी, का सुझाव किसी देश को नहीं दिया था। ताजा पैटर्न बताता है कि तालाबंदी की नक्ल सबने चीन से शुरू की। चीन ने वुहान को पूरी तरह बंद कर दिया था। डब्ल्यूएचओ ने कोरोना कोविड 19 के उपायों की जो सूची बनाई है उसमें लॉकडाउन नहीं है। हांयह ज़रूर है कि डब्ल्यूएचओ लॉकडाउन को अच्छा और तत्काल उपाय ज़रूर बताता है, किंतु औपचारिक रूप से ही। साथ में यह भी कहता है कि बहुत लंबा लॉकडाउन दूसरी समस्याओं को जन्म दे सकता है। दरअसल लॉकडाउन कितना लंबा या छोटा रखना है वह उस देश के विवेक के ऊपर निर्भर है। सीधा कहे तो जितनी जल्दी से वह देश और उसका प्रशासन अपने सिस्टम को तैयार कर सके, तालाबंदी की अवधि उतनी ही रहे यह भविष्य के लिए बेहतर होगा ऐसा विशेषज्ञों का मानना है।
 
कुल मिलाकर लॉकडाउन प्रथम और अस्थायी उपाय है। सिर्फ इसलिए ताकि वह देश अपने सिस्टम को चाक चौबंद करके पूरी तरह तैयार कर सकें। सिस्टम को कैसे तैयार करना हैक्या तैयारियाँ होनी चाहिएसंसाधन क्या होंगे समेत दूसरी चीजें लागू करना उस राष्ट्र के विवेक के ऊपर निर्भर करता है। इसके लिए डब्ल्यूएचओ ने पूरी सूची दी हैब्यौरा दिया हैउपाय सुझाए हैं। ताली थाली दिया बाती फूल जैसी चीजें किसी देश को करनी है, पूरा वातावरण तैयार करना है, तो यह उस देश की समझ और ज़रूरत पर निर्भर है। सामाजिक और सह्योग का वातावरण तैयार करने से पहले और तैयार करने के बाद भीजो बहुत ज़रूरी चीजें हैंउस पर डब्ल्यूएचओ बार बार बता चुका है, कह चुका है। हम उसी वातावरण को तैयार करने में पीछे रह गए हैं।
 
डब्ल्यूएचओ प्रेस रिलीज़ जारी कर चुका है। उसमें ढेरों सुझाव हैं। जिसमें कुछ सुझाव मुख्य हैं। पहला सुझावयूं कहे कि चेतावनी, कोरोना कोविड 19 को लेकर थी। चेतावनी के बाद हमारे यहाँ क्या हाल थासबको पता है। अमेरिकी चुनाव की तैयारियाँ भारत में चल रही थी उन दिनों!!! डब्ल्यूएचओ की चेतावनी के बाद हमारे यहाँ अहमदाबाद में लाखों लोगों को एक स्टेडियम में इक्ठ्ठा कर, दूसरे सैकड़ों लोगों को सड़कों पर लाकर, ट्रंप का चुनावी प्रचार हो गया!!! चेतावनी के बाद हमारे यहाँ आखिरी समय तक कहीं सरकार बनाने का खेल जारी थाकहीं सरकार गिराने का!!!
कमज़ोर सरकारी इंतज़ाम, बदतर थर्मल स्क्रीनिंग, कनिका कपूर के साथ नेताओं की रातभर की पार्टियाँ... भारत ने डब्ल्यूएचओ की आखिरी चेतावनी के बाद भी बहुत कुछ ऐसी सफलता ज़रूर हासिल की हुई है।
 
डब्ल्यूएचओ ने सुझाव दिया था कि तथ्यों के आधार पर तैयारी और फैसला हो। सोचिए, हमारे यहाँ तथ्य नाम की चिड़िया का क्या हाल है? तथ्य के नाम पर सरकार के लोग बता देते हैं कि कोरोना भारत का कुछ नहीं बिगाड़ेगाविपक्ष वाले डर फैला रहे हैं!!! तथ्य के नाम पर कोई रिसर्च नहीं हैडाटा नहीं हैतैयारी नहीं है।
 
स्वास्थ्य सेवाओं को तुरंत और जल्दी से तैयार किए जाने पर जोर देता है डब्ल्यूएचओ। इस चीज़ में हम कितने पीछे हैंहम देख रहे हैं। टेस्टिंग किट्स और पीपीई किट्स में ही अटके हुए हैं हम अब तक! क्वारंटीन करने की तरीकेज़रूरतेनियम आदि में हम उतना बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाए हैं।
 
अफवाहों और ग़लत सूचनाओं को रोकने पर डब्ल्यूएचओ जोर देता है। जबकि हमारे यहाँ हमारी सरकार के ही मंत्री और उनकी पार्टी के प्रवक्ता कह रहे थे कि भारत में कोरोना जैसा कुछ नहीं हैइससे डरने की ज़रूरत नहीं हैकोरोना का हउआ पैदा कर विपक्ष तो भ्रम फैला रहा हैवगैरह वगैरह!!! हमारे यहाँ सरकार से जुड़े दिग्गज नेताजी गो कोरोना गो जैसी बेवकूफ गलियों में लोगों को घूमा रहे हैं!!!
 
डब्ल्यूएचओ अपने सुझावों में लिखता है कि आपके राष्ट्र में जो डाटा है, तैयारियाँ हैं, चीजें हैं उसकी जानकारी हमारे साथ साझा करें। भारत सरकार क्या साझा करती भला? स्टेडियम का डाटा या फिर राज्य सरकार बनाने गिराने की तैयारी का ब्यौरा!!!
 
डब्ल्यूएचओ कहता है कि यह विज्ञान का समय हैतथ्यों का समय है। इधर हम हिंदू मुसलमान की गलियों की खाक छान रहे हैं! प्रधानमंत्री टाइम टु टाइम भाषण किया करते हैं और उनके ही मंत्री, नेता, नेत्री, कार्यकर्ता और साथ ही दूसरे दलों के भी इसी टाइप जीव, तमाम लोग प्रोटोकॉल की धज्जियाँ उड़ाते रहते हैं! दोनों चीजें साथ चल रही हैं। उधर अलग अलग धर्म से जुड़े धार्मिक प्रतिनिधि लोग बीमारी को लेकर ऐसी चीजें कह रहे हैं जो व्हाट्सएप वालों से भी ज्यादा हास्यास्पद हैं।
 
ये सच है कि डब्ल्यूएचओ से भी गलतियाँ होती रही हैं पहले, आगे भी होगी। डब्ल्यूएचओ पर भी तरह तरह के आरोप लगते रहे हैं, लगते रहेंगे। लेकिन यह सब बातें हमारी गलतियों को ढक नहीं सकती। डब्ल्यूएचओ जानकारी और सलाह देने वाली संस्था है। अगर अनिवार्य संस्था होती तो दिन भर बैठकें करती वह संस्था। डब्ल्यूएचओ की आलोचनाओं के बीच यह भी याद रखना चाहिए कि उसने वह अलार्म बजा दिया था, उसने सुझाव दिए थे, उसने चेतावनी दी थी। 
भारत जैसा द्दश्य कौन से देश में देख रहे हैं आपजहाँ लाखों लोग सड़कों पर भूखे प्यासे भटक रहे हैं और सरकार अपनी वाहवाही कर रही है!!! महामारी के ऊपर नजदीक से जानकारी रखने वाले लोगों का एक सिंपल सी बात को सीधे सीधे कहना है कि लॉकडाउन को बढ़ानाइसका मतलब यह होता है कि जिस चीज़ के लिए वह लॉकडाउन था उसमें सरकार नाकाम रही और उसे अब तैयारियों के लिए और ज्यादा वक्त चाहिए। जबकि हमारे यहाँ लॉकडाउन बढ़ाने पर वातावरण तो ऐसा बना दिया जाता है, जैसे कि कड़ा और बड़ा फैसला और उस फैसले से भव्यता का आसमान ऐसा होता है जैसे कि भारत को बचाने के लिए कोई बड़ा कदम हो! जबकि विशेषज्ञ इसे नाकामी का एलान करार देते हैं।
 
हमने लॉकडाउन के दौर में ऐसा कोई प्रभावी काम नहीं किया हैजिससे यह लगे कि भारत का हेल्थ सिस्टम अब तैयार है। टेस्टिंग और उसके किट्स, पीपीई किट्स, अस्पताल, बेड, दवा, ऑक्सीजन प्लांट्स को सौ फीसदी कार्यरत करना, क्वारंटीन सुविधा से लेकर कौन कौन सी दिक्कतें गिनेंगे आपजिसमें हम आज भी बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पा रहे। ऊपर से देश की सड़कों पर प्रवासी मजदूर मारे मारे फिर रहे हैं, जिनके लिए केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकारें फिसड्डी साबित होती जा रही हैं। नारें बहुत हैं हमारे पास, लेकिन नारों के मुताबिक कोई चीज़ होती तो नहीं दिख रही! टेस्टिंग और ट्रेसिंग के मामले में हमारा प्रदर्शन ठीक नहीं है। हेल्थ सिस्टम के ऊपर आप कितने भी दावे कर ले, हमें जनवरी से जो समय अब तक मिला है, हम उसका सही इस्तेमाल बिल्कुल नहीं कर पाए हैं।
 
स्वास्थ्य तैयारियों के साथ साथ डब्ल्यूएचओ ने सामाजिक और आर्थिक ढाँचे को लेकर भी सुझाया था। सामाजिक ढाँचा तो सड़क पर दिख ही रहा है। आजाद हिंदुस्तान में सन 1947 के बाद पहली बार इतना बड़ा माइग्रेशन हो रहा है। इसलिए हो रहा है, क्योंकि उनके लिए किसी प्रकार की पूर्व तैयारियां किसी ने भी नहीं की थी! उनको अपने घर सही सलामत पहुंचाने का काम ही सरकार नहीं कर रही, तो फिर उनके बारे में किसी ने भी नहीं सोचा होगा, यह अपने आप छलकने वाला सच ही तो है।
जो सरकार दो महीनों पहले देश को बतला रही थी कि कोरोना भारत का कुछ नहीं बिगाड़ लेगाडरे नहींविपक्ष भ्रम फैला रहा हैवह सरकार इस त्रासदी के बाद कह देगी कि बहुत बड़ी महामारी है इसलिए वह मजदूर सड़कों पर हैं!
 
तकरीबन हर चीज़ में लापरवाह रही सरकार आर्थिक ढाँचे को संभालने में विफल होती जा रही है। लाखों लोग नौकरी गंवा चुके हैंसैलरी गंवा चुके हैंटैक्स देने के पैसे नहीं हैईएमआई तक के पैसे नहीं हैसरकारी कर्मचारियों तक को कटौती का सामना करना पड़ रहा हैजबरन दान वसूलने की नौबत आन पड़ी है। साफ है कि स्थिति इससे भी ज्यादा बुरी होगी। जिन सरकारों के पास करोड़ों की मूर्तियाँ बनाने के पैसे थेजिनके पास अपने अपने आईटी सेल चलाने के लिए फंड हैवे कह रहे हैं कि सरकार के पास पैसा नहीं हैदान कीजिए! दान वान के बाद भी टेस्टिंग किट्स को लेकर अटके हुए हैं!
 
भारत सरकार, जो कह रही थी कि महामारी से लड़ने के लिए पैसा नहीं है उसके पास, दान करिएवह भारत सरकार दान मिलने के बाद उसका पैसा आरोग्य सेतु एप पर भी खर्च कर देती है। ट्रेसिंग के लिएयूं कहे कि ट्रेसिंग के डिजिटल तरीके के लिए। उधर डब्ल्यूएचओ जमीनी तैयारियों पर जोर देने की वकालत कर रहा है। कुछ जगहों पर तो एप डाउनलोड नहीं किया तो अपराध! उधर भारत की सड़कों पर सरकार के अपराधों के चलते सैकड़ों लोग भूखे प्यासे घूम रहे हैं। डब्ल्यूएचओ कह रहा है कि आईटी टूल्स उन लोगों की और उन तरीकों की जगह नहीं ले सकते, जिनकी ज़रूरत फिलहाल ज्यादा है। कहते हैं कि तकनीक सहाय कर सकती है, लेकिन समाधान नहीं। भारत में जो कम ज़रूरी है उस पर ज्यादा माथापच्ची चल रही है!
 
अज्ञान का आनंदलोक व्याप्त हैजिसका मजा सरकार से जुड़े लोग भी ले रहे हैं और आम जनता भी! जिसकी जानकारी होनी चाहिए उसका स्तर न्यूनतम स्तर पर है! एग्जिट पॉलिसी तो कहीं पर है ही नहीं! महामारी के इस दौर में नागरिकों को सूचना चाहिएजानकारी चाहिएलेकिन मिल रहा है उपदेश और उत्सव! योग के वीडियो से पता नहीं इन मजबूर और पलायन कर रहे लोगों को क्या फायदा मिलता होगा?
वैक्सीन बनाने की दिशा में भारत में क्या ठोस काम हो रहा हैजमकर वैक्सीनेशन की ज़रूरत होगी तो वैक्सीन के आने के बाद भारत सरकार दूसरे कौन से देशों से वैक्सीन खरीदने की तैयारी कर रही है, दवा और ऑक्सीजन के प्लांट के बारे में क्या हो रहा हैजिन्हें कोरोना योद्धा कहा उन लोगों के लिए सुरक्षा किट क्यों ठीक नहीं है, समय रहते उन्हें क्यों किट नहीं मिल पा रहे, टेस्टिंग और ट्रेसिंग को लेकर चीजें विवादों में क्यों हैं, इसका ठोस और जल्द समाधान कब हो पाएगाकितने आईसीयू हैं, कितने वेंटिलेटर हैं, जल्द से जल्द जाँच हो उसके लिए क्या तैयारियाँ हैं, क्वारंटीन में प्रक्रिया का सही पालन क्यों नहीं हो पा रहावहाँ रखे गए लोगों की देखभाल और रिसर्च के लिए क्यों कुछ नहीं हैजो घोषणाएँ हुई वह तो बजट के समय भी हुई थी उसका क्या और उन घोषणाओं को कैसे लोगों तक पहुंचाया जाएगाकोरोना प्रोटोकॉल सेलेब्स और नेता लोग भी तोड़ रहे हैं तो उन पर क्या आयोजन है सरकार का, त्रासदी झेल रहे दिहाड़ी मजदूरों के लिए क्या किया जा रहा हैलोगों की नौकरियाँ कैसे सुरक्षित रहेगीबलिदान दे रहे लोगों को इनमें से कुछ भी पता नहीं है। बस थाली बजाते जाओदिया जलाते जाओ।
 
लॉकडाउन का पालन करना अगर नागरिकों का कर्तव्य है तो फिर उन नागरिकों को सही जानकारी देनासूचना पहुंचाना और उसकी ज़रूरतों को पूरा करना सरकार का फर्ज है। इस चीज़ का लॉकडाउन के दिनों से गायब होना अनलॉक के इस दौर में कोई नहीं देखेगा।
 
भारतीय नेवी के रिटायर्ड एडमिरल अरुण प्रकाश कहते हैं कि भूखेगरीब और प्रवासी मजदूरों को हमारी सेना ज्यादा बेहतर तरीके से मदद कर सकती हैंलेकिन सेना की क्षमता का ज्यादा इस्तेमाल फूल बरसाने और फ्लाई पोस्ट के लिए ही किया जा रहा है। रिटायर्ड जनरल वीरेंद्र सिंह धनोआ कहते हैं कि यह वो सेना नहीं है जिसमें मैंने अपनी सेवाएँ दी थी। जिन पर फूल बरसाए गए वही डॉक्टर लोग कहते हैं कि फूल तो आ गएपीपीई किट्स और मास्क कौन देगा? पीपीई किट्स और मास्क में कथित घोटाले को लेकर डॉक्टर बोलते हैं तो घोटाले की नहीं बल्कि डॉक्टर की जाँच बिठा दी जाती है!
यहाँ यह दर्ज करना ज़रूरी है कि यह आम भाषा में सुपर वायरस श्रेणी वाला विषाणु है। रंग और रूप बदलते रहने में बहुत ही मास्टर होते हैं ऐसे सुपर कैटेगरी वाले वायरस। हमने कई सालों पहले ऐसी चीजों को लेकर रिसर्च और डाटा के आधार पर लेख लिखा हुआ है। कोरोना भले सबको नया लफ्ज़ लग रहा होलेकिन है नहीं। इसके रंग और रुप नये होते हैं, वह खुद तो पुराना ही होता है। सार्स कोव 2 का ये चैप्टर टाइप वायरस, विशेषज्ञों और जानकारों को लगता है कि आँख मिचोली खेलने की अपनी आदत को ज़रूर घारण किए हुए होगा।
 
विशेषज्ञों के हिसाब से इस प्रकार के वायरस के सामने तीन चीजें बहुत महत्वपूर्ण होती हैं। पहली चीज़ है वैक्सीन। यह कब आएगी और कैसे आएगी, हमें नहीं पता। दूसरी चीज़ है स्वास्थ्य सेवाएँ, स्वास्थ्य का ढाँचा। तीसरी चीज़ है सरकार और आम जनता की उस वायरस के सामने शैली। हमारे यहाँ डब्ल्यूएचओ की आखिरी चेतावनी के बाद भी करीब करीब डेढ़ महीने तक लापरवाही के बाद अचानक से लगे लॉकडाउन के बाद अब तक बाकी की दोनों चीजों में कोई ज्यादा बेहतरी नजर नहीं आ रही। यूं कहे कि बाकी की दोनों चीजों में जैसे कि कोई टेक केयर वाली चीज़ ही नहीं है। उत्सव और मनोरंजन टाइप कार्यक्रम सरकार भी कर रही है और लोग इसका लुफ्त भी उठा रहे हैं! इन चीजों को लेकर इस लेख में ज्यादा लिखने का कोई अर्थ नहीं है। पहले लिख चुके हैं और आगे नयी चीजों को लेकर लिखते रहेंगे।
 
देश कोरोना के संकट में फँसा है। वही देश, जिसकी सरकार से जुड़े हुए लोग अभी दो महीने पहले कोरोना को लेकर न जाने क्या क्या बोल रहे थे! सरकार आम जनता से पैसे मांग रही है और उन पैसों का कैसा इस्तेमाल हो रहा है यह तो दिख ही रहा है। उधर सुपर रिच टैक्स की बात आती है तो सरकार आगबबूला हो जाती है!!! सुपर रिच टैक्स का सुझाव देने वाले अधिकारियों पर कार्रवाई करने का वातावरण तक तैयार कर देती है सरकार!!! उधर यही सरकार कहती है कि मकान मालिक किराया ना ले, फैकट्री और कारखाने वाले सैलरी ना काटे!!! ऐसा कहकर खुद रेल किराया वसूल भी रही है और ऊपर से सुपर रिच से टैक्स लेने की बात आए तो सरकार को आग लग जाती है!!!
 
डब्ल्यूएचओ के आखिरी और सबसे बड़े अलार्म के बाद भी सोने वाली सरकार चिड़िया के खेत चुग जाने के बाद जागरूक बनाने को निकलती है! निकलने के बाद जमीनी स्तर पर जो चीजें बेहद ज़रूरी थी उसमें पिछड़ती है और दूसरी कम ज़रूरी चीजों में आगे निकल जाती है! महामारी से लड़ने के लिए देशभक्ति का वातावरण तो तैयार कर लेती है, लेकिन जो तैयारिया करनी थी उसमें फिसड्डी दिखाई देने लगती है!
हर मसले पर आलंकारिक नारे और राष्ट्रवाद का हथियार चलाकर ही जंग लड़नी है तो फिर विशाल स्तर पर नुकसान के लिए भी तैयार रहिए। दो सिंपल सी बातें पता होनी चाहिए। पहलीनारों से चुनाव जीते जा सकते हैं वायरस को नहीं। दूसरीइस बीमारी का इलाज विज्ञान के पास हैधर्म के पास नहीं।
 
(इनसाइड इंडियाएम वाला)